रविवार, 28 फ़रवरी 2021

एसपी के दावेदार

 संजय के दीक्षित

तरकश के तीर, 28 फरवरी 2021
पुलिस अधीक्षकों की बहुप्रतीक्षित तबादला सूची विधानसभा का बजट सत्र प्रारंभ होने के एक रोज पहिले याने रविवार शाम निकलने की पूरी तैयारी थी। एक आईपीएस ने तो मंदिर जाने के लिए मिठाइयां भी मंगवा ली थी। मगर ऐन वक्त पर किन्हीं कारणों से लिस्ट फिर रुक गई। अब सुनने में आ रहा है, अगले हफ्ते कुछ हो। अगले सप्ताह नहीं हुआ तो फिर समझिए होली के बाद ही होगा। बहरहाल, एसपी के प्रबल दावेदारों में आधा दर्जन से अधिक नाम गिनाए जा रहे हैं। सुजीत कुमार, राजेश अग्रवाल, लाल उम्मेद सिंह, गिरिजाशंकर, सदानंद समेत और भी कई। बेचारे गिरिजाशंकर का हर बार लक हार्ड हो जाता है। 2019 में उनका बिलासपुर एसपी बनना तय हो गया था। मगर प्रशांत अग्रवाल ने ऐन वक्त पर उन्हें आउट कर दिया। सदानंद के ग्रह-नक्षत्र भी साथ नहीं दे रहे। पिछली सरकार में आईएएस लाॅबी से कंफ्यूज होकर सरकार ने उन्हें एकेडमी भेज दिया था। इस सरकार में भी वे अच्छी स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में, लोगों की उत्सुकता इन दोनों नामों को लेकर ज्यादा है।


नाॅट आउट!

दंतेवाड़ा एसपी डाॅ0 अभिषेक पल्लव सूबे के ऐसे आईपीएस हैं, जो पिछली सरकार में कप्तान पोस्ट हुए और अभी भी क्रीज पर नाॅट आउट हैं। जबकि, सरकार बदलने के बाद ऐसा होता नहीं। जोगी सरकार के समय रायगढ़ कलेक्टर रहे सुबोध सिंह को बीजेपी ने कंटीन्यू किया था। बाकी सभी को एक सिरे से बदल दिया था। कांग्रेस की नई सरकार बनने के बाद कई जिलों में दो-तीन एसपी बदल गए। कलेक्टरों में भी एक भी पुराना नहीं होगा। एमबीबीएस करने के बाद आईपीएस बनें अभिषेक ने दंतेवाडा में नक्सलियों को डोमिनेट करने का ऐसा काम किया कि नई सरकार ने भी उन्हें कंटीन्यू करना बेहतर समझा। अभिषेक आज प्रभारी आईजी सुंदरराज पी के बाद बस्तर पुलिस का एक भरोसेमंद चेहरा हैं। अभिषेक को दंतेवाड़ा में करीब तीन साल होने जा रहा है। निश्चित तौर पर सरकार की नोटिस में ये होगा। अब देखना है कि अभिषेक दंतेवाडा में आगे भी कंटीन्यू करेंगे या सरकार उन्हें कोई ठीक-ठाक मैदानी जिला दे देगी।

कलेक्टर का विकल्प?

कलेक्टरों की लिस्ट निकलने की चर्चा भी पिछले महीने से चल रही है। लिस्ट अगर अंजाम तक पहुंची तो छोटे जिलों के कलेक्टरों के नाम अधिक होंगे। हालांकि, इस सरकार में कौन अफसर कितने दिन रहेगा, इसका कोई दावा नहीं कर सकता….दो साल में जमीन से दो इंच उपर रहने वाले अफसरों को भी औंधे मुंह गिरते लोगो ने देखा है। फिर भी अरपा प्रोजेेक्ट के चलते बिलासपुर कलेक्टर सारांश मित्तर को माना जा रहा, उन्हें अभी और मौका मिलेगा। कोरबा में किरण कौशल का भी ठीक-ठाक चल रहा। जगदलपुर में रजत बंसल सुरक्षित स्थिति में हैं तो दुर्ग में डाॅ0 सर्वेश भूरे भी ठीक-ठाक दिखाई पड़ रहे हैं। रायपुर कलेक्टर भारतीदासन जरूर काफी सीनियर हो गए हैं। मगर उनका कोई विकल्प नहीं मिल रहा…जिसे रायपुर की जिम्मेदारी सौंपी जा सकें। भारतीदासन रायपुर को ठीक-ठाक संभाले हुए हैं, ऐसे में हो सकता है उन्हें कुछ दिन और कंटीन्यू किया जाए।

सीनियर अफसर, छोटा जिला

एसएसपी अजय यादव को छोड़ दें तो पुलिस अधीक्षकों में जीतेंद्र मीणा सबसे सीनियर आईपीएस हैं। 2007 बैच के इस आईपीएस को अगर टाईम पर प्रमोशन मिल गया होता तो वे पिछले महीने डीआईजी बन गए होते। जीतेंद्र फिलवक्त बालोद के एसपी हैं। बालोद का मतलब आप समझ सकते हैं। एसपी के तौर पर बालोद पहला जिला होता है। जीतेंद्र न केवल सबसे सीनियर आईपीएस हैं बल्कि कोरबा जैसे जिला कर चुके हैं। लेकिन, पिछली सरकार में आईएएस किरण कौशल को अंबिकापुर से बालोद का कलेक्टर बनाकर भेज दिया गया था। कुछ इसी तरह जीतेंद्र के साथ हुआ है।

 

यंग्री यंग मैन विधायक

अमितेश शुक्ल को मंत्री बनने का भले ही अवसर नहीं मिल सका लेकिन, वे इस बात से प्रसन्न होंगे कि विधानसभा में सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें यंग्री यंग मैन विधायक की उपमा दे दी। दरअसल, किसानों के मुद्दे पर प्रश्नकाल में सवाल हो रहे थे और विपक्षी कैंप में टोका-टोकी के साथ हंसी-ठिठोली चल रही थी। इस पर अमितेश बिफर उठे। वे खड़े होकर विपक्ष पर तमतमाते हुए ऐसे डपटे कि पूरा सदन सन्न रह गया। अमितेश तीन से चार लाईन ही बोले…किसानों की बात चल रही है और आप लोग मजाक कर रहे हैं…उनके रौद्र रूप को देखकर लगा पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी विधायकों को डांट रहे हैं। छत्तीसगढ़ के 20 साल के इतिहास में कभी किसी स्पीकर, सीएम या नेता प्रतिपक्ष़्ा को भी इस अंदाज में विधायकों को डपटते नहीं देखा गया। राजेंद्र प्रसाद शुक्ला भी नहीं। ऐसे में, यंग्री यंग मैन विधायक….सीएम का इतना कहना तो बनता ही है।

उत्कृष्ट विधायक?

चार बार के विधायक धर्मजीत सिंह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में उत्कृष्ट विधायक रह चुके हैं। धर्मजीत कुशल वक्ता हैं। सदन में न केवल उनके लच्छेदार भाषण होते थे बल्कि बीच-बीच में चुटकी लेकर सदन को हल्का-फुल्का रखने में भी अहम किरदार निभाते थे। रमन सरकार की दूसरी पारी में रविंद्र चौबे, मोहम्मद अकबर और धर्मजीत की तिकड़ी सरकार पर हमेशा भारी पड़ती थी। रमन सिंह के तीन साल पूरे होने पर दिसंबर 2006 में जब सरकार कमाल के तीन साल के पोस्टर से जब पूरा छत्तीसगढ़ पट गया था, तब 2007 के बजट सत्र का धर्मजीत का भाषण अब भी याद है। गजब का भाषण देते हुए उन्होंने कमाल के तीन साल को निशाने पर लिया था। लेकिन, धर्मजीत में वो बातें अब दिखाई नहीं पड़ रही। ऐसा तो नहीं कि पार्टी बदलने के साथ ही धर्मजीत के तेवर भी बदल गए। वे अगर किसी सियासी संशय में हैं, तो उन्हें जल्द निर्णय लेना चाहिए।

कमिश्नरों के ट्रांसफर

राज्य सरकार ने इस हफ्ते पांच नगर निगम कमिश्नरों समेत 10 राप्रसे अधिकारियों का ट्रांसफर किया। दुर्ग कमिश्नर से वहां के विधायक अरुण वोरा खुश नहीं थे तो राजनांदगांव के कमिश्नर का परफारमेंस भी बहुत बढ़ियां नहीं बताया जा रहा। अलबत्ता, सबसे आश्चर्यजनक बिलासपुर कमिश्नर प्रभाकर पाण्डेय का ट्रांसफर रहा। प्रभाकर का हालांकि, दो साल हो गया था। लेकिन, बिलासपुर से हटाकर अंबिकापुर नगर निगम भेजना किसी को समझ में नहीं आ रहा।

अजब पुलिस, गजब पुलिस

जांजगीर जिले के एक दलित युवक को न्याय के लिए आईजी आफिस में जहर खाना महंगा पड़ गया। पुलिस ने उसे न केवल आदतन अपराधी करार दिया बल्कि कुख्यात अपराधी दिखे, इसलिए बेहोशी की स्थिति में हथकड़ी पहना दी। युवक की पत्नी से रसूखदार सरपंच ने घर में घुसकर छेड़खानी की थी। युवक मालखरौदा थाने गया। वहां रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। जांजगीर के बड़े अफसरों ने उसे डांट-डपटकर लौटा दिया गया। ऐसे में, वो क्या करता। कोई आदमी जैसा भी हो अगर उसकी पत्नी पर बात आती है तो वह आन का सवाल बन जाता है। मगर लगता है जांजगीर पुलिस ने नया रेगुलेशन बना लिया है, अपराधी की पत्नी से अगर कोई दुव्र्यवहार करें तो क्या उसकी शिकायत दर्ज नहीं की जाएगी। हालांकि, डीजीपी डीएम अवस्थी ने संज्ञान लेकर आईजी से रिपोर्ट मांगी है। अब देखना है, पुलिस दलित युवक की बात भी सुनती है या फिर विधानसभा सत्र के चलते मामले को दफन कर देगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नया रायपुर से रेलवे स्टेशन बनाने वाली कंपनी काम समेट कर वापिस क्यों जा रही है?
2. क्या किसी मंत्री को दिल्ली में कांगे्रेस पार्टी का महासचिव बनाया जा सकता है?

 

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प्रमोटी कलेक्टरों को महत्व?

 संजय के दीक्षित

तरकश 21 फरवरी 2021
कोरोना को पराजित कर लौटे चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने 17 फरवरी को कलेक्टर्स और जिपं सीईओ से वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये संवाद किया। इस दौरान ऐसा कुछ हुआ कि प्रमोटी कलेक्टर और राप्रसे अधिकारियों के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे। दरअसल, 17 को तीन वीसी थी। लिहाजा, टाईम कम था। सीएस ने संभागवार एक-एक कलेक्टर को बोलने के लिए कहा। इसमें संयोग कहें या इत्तेफाक कि सीएस ने जिन अधिकारियों को जिले का प्रेजेंटेशन देने के लिए कहा, उनमें लगभग सभी प्रमोटी थे। मसलन, बिलासपुर से मुंगेली कलेक्टर पीएस एल्मा, सरगुजा से जशपुर कलेक्टर महादेव कावड़े, रायपुर से महासमुंद कलेक्टर डोमन सिंह, दुर्ग से बालोद कलेक्टर जन्मजय मोहबे। पांचवे संभाग बस्तर से कोंडागांव का नम्बर जरूर लगा लेकिन वहां के डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर छुट्टी में थे। जिपं सीईओ में भी उन्हीं का नम्बर लगा जो राप्रसे से प्रमोट होकर आईएएस बनें हैं या फिर अभी राप्रसे अफसर की हैसियत से ही सीईओ पद संभाल रहे हैं। जांजगीर के राप्रसे सीईओ गजेंद्र सिंह का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, तो वे घर से ही वीसी में शामिल हुए। सीएस ने इसके लिए गजेंद्र की पीठ थपथपाई। सीएस की आखिरी वीसी 8 दिसंबर को हुई थी। उसके बाद ये पहला मौका था। इसलिए, जिलों के कलेक्टरों ने काफी तैयारी की थी। लेकिन, इसमें प्रमोटी अफसरों की अहमियत देखकर निश्चित तौर पर डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों के दिल पर सांप तो लोटे होंगे।


दो पद, 27 दावेदार

सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए 27 अधिकारियों ने आवेदन किया है। इसमें एक दर्जन से अधिक रिटायर आईएएस, आईएफएस शामिल हैं। आधा दर्जन पत्रकार, और लगभग इतने ही वकील और एक्टिविस्ट भी। फाइल जीएडी से होते हुए मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुंच गई है। अब मुख्यमंत्री के उपर निर्भर करेगा कि सलेक्शन कमिटी की मीटिंग कब हो। कमेटी में सीएम, नेता प्रतिपक्ष के साथ एक सीनियर मंत्री मेम्बर होते हैं। हो सकता है कि विधानसभा सत्र के दौरान जब ये तीनों विधानसभा में मौजूद होते हैं, किसी दिन कमेटी इस पर मुहर लगा दे। या फिर लाल बत्ती की दूसरी सूची जारी होने तक वेट करना होगा तो फिर मामला मार्च एंड तक अटक जाएगा।

ब्यूरोक्रेट्स को नुकसान

सूचना का अधिकार जब लागू हुआ तो नौकरशाहों ने ऐसा नियम बनाया था रिटायरमेंट के बाद पांच साल के सम्मानजनक पुनर्वास का इंतजाम हो जाए। लेकिन, सूचना आयोगों में आयुक्त बनें कुछ एक्टिविस्टों ने उनकी योजना को पलीता लगा दी। दरअसल, दिल्ली के कुछ ऐसे ही आयुक्तों ने वीवीआईपी से संबंधित जानकारियां देने के आदेश देने लगे। जबकि, रिटायर ब्यूरोक्रेट्स ऐसा नहीं करते। 32-33 साल नौकरी करने के बाद रिटायर नौकरशाहों की रीढ़ की हड्डियां बची भी नहीं होती कि सरकार के खिलाफ जाकर कुछ कर सकें। बहरहाल, एक्टिविस्टों के फैसले के चलते हुआ यह कि मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों का कार्यकाल घटाकर पांच से तीन साल कर दिया गया। फिर मुख्य आयुक्त और आयुक्त की सेलरी भी बराबर। सवा दो लाख। इससे सीआईसी पद का अवमूल्यन हो गया। फिर, रिटायर आईएएस दो साल, तीन साल की बजाए पांच साल वाले पद को प्राथमिकता देते हैं। यही वजह है कि रिटायरमेंट के बाद कोई पीएससी चेयरमैन नहीं बनना चाहता। क्योंकि, पीएससी में रिटायरमेंट एज 62 साल है। यानी आईएएस से 60 में रिटायर होने के बाद मात्र दो साल मिल पाता है। और, रिटायर आईएएस को चाहिए….मोर। लेकिन अब तीन साल से ही संतोष करना पड़ेगा।

आदिवासी सीएम!

बीजेपी शासनकाल के 15 साल में से 10 साल डाॅ0 रमन सिंह आदिवासी एक्सप्रेस से बेहद परेशान रहे। कभी नंदकुमार साय आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ा देते थे तो कभी रामविचार नेताम। हालांकि, सौदान सिंह के साथ मिलकर रमन सिंह आदिवासी एक्सप्रेस को डिरेल्ड करते रहे। अब सुना है, कांग्रेस के भीतर भी आदिवासी विधायकों के बीच कुछ खुसुर-फुसुर चल रहा है। लेकिन, वक्त अब काफी बदल चुका है। सूबे में ओबीसी वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण हो गया है कि अब आदिवासी सीएम का मामला कमजोर हो गया है। छत्तीसगढ़ में करीब 30 फीसदी आदिवासी तो 50 परसेंट ओबीसी हैं। याद होगा कि इसी 50 परसेंट से अजीत जोगी भी घबरा गए थे। उनके सलाहकार और पूर्व डीजीपी आरएलएस यादव जब पिछड़े वर्ग को एकजुट करने सम्मेलन कराना चालू किया तो आवाज उठ गई थी कि जब ओबीसी ज्यादा तो आदिवासी मुख्यमंत्री क्यों? जोगी चतुर नेता थे। उन्होंने खतरे को तुरंत भांपकर ओबीसी सम्मेलनों पर रोक लगा दी थी। वैसे, छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम की गुंजाइश इसलिए भी परवान नहीं चढ़ सकी, कि राज्य चला सकने लायक कोई आदिवासी चेहरा सामने आया भी नहीं। बस्तर में महेंद्र कर्मा जरूर बड़े नेता रहे। लेकिन, सरगुजा तरफ उनका प्रभाव नगण्य था। नंदकुमार साय विद्वान नेता हैं मगर बीजेपी की सियासत में वे चूक गए। छत्तीसगढ़ में निर्विवाद रूप से एक आदिवासी चेहरा था, जिससे अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज घबरा गए थे। वे थे मरवाही के भंवर सिंह पोर्ते। अर्जुन सिंह ने बड़ी चतुराई से पोर्ते की सियायत को ठिकाने लगा दिया था।

सबको सर्दी-खांसी

राजनांदगांव जिला पंचायत के आईएएस सीईओ अजीत बसंत स्कूलों का जायजा लेने निकले तो शिक्षकों की अनुपस्थिति देखकर हैरान रह गए। तीन स्कूलों के 23 में से 15 टीचर बिना सूचना के गायब मिले। अब तो सरकार ने सर्दी-खांसी पर स्कूल न आने का आदेश निकाल दिया है। ऐेसे में, वही होगा जो कोरोना के दौरान आफिसों में होता था। साहब मेरे पड़ोसी को कोरोना हो गया है तो साहब मेरे किरायेदार को। सरकारी कर्मचारी काम न करने के सौ बहाने ढ़ूढते ही हैं।

वन मैन आर्मी

विधानसभा का बजट सत्र 22 फरवरी से प्रारंभ होने जा रहा है। माना जा रहा ये सत्र काफी हंगामेदार होगा। कई मुद्दों पर सोशल मीडिया और ट्वीटर के जरिये अपने भड़ास निकालने वाले जब नेता विधानसभा में आमने-सामने बैठेंगे तो समझा जा सकता है कि वहां क्या होगा। हालांकि, कांग्रेस के लिए अखरने वाली बात ये है कि दो साल पूरे होने के बाद भी कांग्रेस के मंत्री और न ही विधायक वैसा दम-खम का प्रदर्शन कर पा रहे हैं, जिससे लगे कि 70 सीट वाली सरकार है। बीजेपी के तीन-चार विधायक कांग्रेस के 70 पर भारी पड़ जा रहे। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे विधायक हैं, जिन्हें कभी विस का तर्जुबा नहीं रहा। और नही पारफारमेंस सुधारने की कोशिश कर रहे। उधर, अखाड़े में सामने 15 साल के नाना प्रकार के दांव-पेंच में मंजे नेता हैं। ऐसे में, सदन में जब सीएम भूपेश बघेल होते हैं तो उन्हें मोर्चा संभालना पड़ता है। और जब वे नहीं होते तो सरकार घिर जाती है।

हेल्थ पर सवाल

विधानसभा में अबकी सबसे ज्यादा हेल्थ डिपार्टमेंट से संबंधित सवाल लगे हैं। विधायकों ने कोरोना, कोरोना की किट खरीदी से लेकर जेनेरिक दवाओं पर 200 से अधिक प्रश्न लगाए हैं। जाहिर है, स्वास्थ्य मंत्री को अबकी तैयारी अच्छी करनी पड़ेगी।

एक विभाग मजबूत और दूसरा…

पहले मुहल्ला क्लीनिक का काम हेल्थ विभाग के हाथ से निकलकर नगरीय प्रशासन के पास चला गया। अब शहरों में खुलने जा रहे डाइग्नोस्टिक सेंटर का काम भी नगरीय प्रशासन को मिलने जा रहा। नगर निगम और नगर पालिकाएं 3000 वर्गफुट की बिल्डिंग तैयार कर प्राइवेट लोगों को देगी। आबादी के हिसाब से एक शहर में तीन-तीन, चार-चार डाइग्नोस्टिक सेंटर होंगे। इसमें रियायती दर पर एमआरआई, सिटी स्केन, पैथोलॉजी टेस्ट के साथ ही डॉक्टरी सुविधाएं मुहैया होंगी। सरकार के रणनीतिकारों ने इसके लिए पुणे की पार्टी से बात भी कर ली है। जाहिर है, लोगों के लिए ये एक अच्छी सौगात होगी। शिव डहरिया के नगरीय प्रशासन के लिए भी…क्योंकि कद तो उसका भी बढ़ेगा न।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस रिटायर आईएएस ने नौकर- चाकर, नाते-रिश्तेदार और अपनी माशूका के नाम से 50 से अधिक बेनामी संपत्ति खरीदी है?

2. किस मंत्री के समधी की वसूली अभियान से विभाग के लोग हलाकान हैं?

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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

पहला सिकरेट्री?

 संजय के दीक्षित

तरकश, 14 फरवरी 2021
छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन भारत सरकार में सिकरेट्री इम्पेनल हो गए हैं। हालांकि, उनके पहिले तीन आईएएस और सिकरेट्री इम्पेनल हुए हैं। लेकिन, अभी तक इम्पेनल होने के बाद भी अभी तक छत्तीसगढ़ का कोई आईएएस केंद्र में सिकरेट्री नहीं बन पाया। 87 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमण्यिम पिछले साल सिकरेट्री इम्पेनल हुए हैं। वे अभी जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकरेट्री हैं। चूकि, उनका अगले बरस रिटायरमेंट है, लिहाजा उनके केंद्र में सिकरेट्री बनने की संभावना कुछ कम होती जा रही है। इधर, अमिताभ जैन का अभी लंबा कार्यकाल है। वे जून 2025 में रिटायर होंगे। ऐसे में, माना जा रहा है कि वे केंद्र में इस पद तक पहुंच सकते हैं। वैसे भी, ऐसे अफसर कम होंगे, जो चीफ सिकरेट्री भी रह लिए और केंद्र में भी सेवा दे चुके हों। अमिताभ पोस्टिंग के मामले में किस्मती अफसर हैं। वे डीपीआर से लेकर सिकरेट्री पीडब्लूडी, वाणिज्यिक कर, आबकारी, फायनेंस, राजभवन जैसे कई जगहों पर काम कर चुके हैं। इसके अलावा सेंट्रल डेपुटेशन भी।


2005 बैच का प्रमोशन

2005 बैच के आईएएस अधिकारियों के सिकरेट्री प्रमोशन की फाइल उपर पहुंच चुकी है। जल्द ही औपचारिकताओं के बाद प्रमोशन का आदेश जारी कर दिया जाएगा। इस बैच में पांच डायरेक्ट आईएएस हैं और दो प्रमोटी। इनमें से खबर है किसी एक आईएएस का प्रमोशन ड्राॅप होगा। बाकी छह सिकरेट्री बन जाएंगे। इस बैच में मुकेश बंसल, आर संगीता, रजत कुमार, राजेश टोप्पो, एस प्रकाश, टीपी वर्मा और नीलम एक्का हैं। ओपी चैधरी ने नौकरी छोड़कर सियासी पारी शुरू कर दी है।

छोटा जिला, बड़े अफसर

गरियाबंद भले ही छोटा जिला हो मगर अफसरों की पोस्टिंग की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण जिला। जनवरी 2012 में अस्तित्व मेें आए इस जिले की खास बात यह है कि वहां कलेक्टर, एसपी, जिपं सीईओ और डीएफओ, चारों रेगुलर रिक्रूट्ड अफसर हैं। नीलेश क्षीरसागर कलेक्टर, भोजराम पटेल एसपी, चंद्रकांत वर्मा जिपं सीईओ और मयंक अग्रवाल डीएफओ। छत्तीसगढ़ के 28 में से तीन-चार जिले ही ऐसे होंगे कि सभी डायरेक्ट अफसर हों। वरना, दीगर जिलों में प्रमोटी अफसर बराबरी में डटे हुए हैं।

यह भी रिकार्ड

आईपीएस रतनलाल डांगी छत्तीसगढ़ के ही नहीं बल्कि देश के संभवतः पहले ऐसे आईपीएस होंगे, जो आईजी प्रमोट हुए बिना तीसरा पुलिस रेंज संभाल रहे हैं। कांग्रेस सरकार बनने के बाद सबसे पहिले दुर्ग के आईजी बनें। फिर सरगुजा और उसके बाद अब बिलासपुर के आईजी हैं। बिलासपुर तो सबसे बड़ा पुलिस रेंज है। वैसे भी डांगी ने छत्तीसगढ़ के तीनों डीआईजी रेंज किया है। वे दंतेवाड़ा, कांकेर और राजनांदगांव के डीआईजी रह चुके हैं। स्वाभाविक तौर पर अब उनकी चिंता यह होगी कि मुकद्दर ने उन्हें इतना कुछ दे दिया है कि…आईजी प्रमोट होने के बाद उनके पास पोस्टिंग के लिए दो ही रेंज बचेगा। रायपुर और बस्तर। उसके बाद एडीजी प्रमोशन होने तक क्या करेंगे? वैसे, डांगी कोरबा में दो बार एसपी रहे हैं। आईजी भी रिपीट हो सकते हैं।

जीत का फार्मूला

जिन राज्यों के लिए विधानसभा चुनाव की रणभेड़ी बनजे वाली है, उनमें कांग्रेस को सबसे अधिक उम्मीद असम से है। असम में पिछली बार कांग्रेस को परास्त कर बीजेपी सत्ता में आई थी। इस बार असम में फिर से अपनी सल्तनत कायम करने कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ को पूरा जिम्मा सौंप दिया है। विदित है, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को पर्यवेक्षक बनाया गया है। बूथ मैनेजमेंट की ट्रेनिंग से लेकर घोषणा पत्र तैयार करने के लिए छत्तीसगढ़ से कांग्रेस नेताओं का जत्था गोहाटी पहुंच चुका है। कुछ दिन बाद से मंत्रियों का असम दौरा शुरू हो जाएगा। पार्टी को उम्मीद है कि कांग्रेस ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में जिस तरह एकतरफा जीत दर्ज की, असम में भी प्रयास करने पर कामयाबी मिल सकती है।

पूर्व मंत्री का गुस्सा

केंद्रीय बजट की खासियत को पार्टी नेताओं को ब्रीफ करने नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी इस हफ्ते रायपुर आए। इस मौके पर उन्होंने बिलासपुर से हवाई सेवा के डेट का भी ऐलान किया। बावजूद इसके केंद्रीय मंत्री के दौरे और हवाई सेवा की बजाए की बजाए पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर की नाराजगी की खबर को ज्यादा सुर्खिया मिल गई। दरअसल, अजय इसलिए भड़क गए कि उन्हें केंद्रीय मंत्री की बैठक की सूचना नहीं दी गई थी। हालांकि, ये पहली बार नहीं हुआ। रमन सरकार के अधिकांश पूर्व मंत्रियों का दर्द है कि मीटिंग में बुलाया नहीं जाता। बृजमोहन अग्रवाल कोर कमेटी के मेम्बर की हैसियत से, तो अजय चंद्राकर, राजेश मूणत प्रवक्ता के नाते बैठकों में पहुंच जाते हैं। लेकिन, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल जैसे मंत्रियों को दो साल में एक बार भी नहीं बुलाया गया। अमर अग्रवाल तो बजट के बारे में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक जानकारी रखने वाले नेता माने जाते हैं। वे वित मंत्री रहे हैं। और, केंद्र के जीएसटी मेम्बर भी। लेकिन, विडंबना यह है कि बजट पर चर्चा करने आए केंद्रीय मंत्री की मीटिंग में उन्हें बुलाने की जरूरत नहीं समझी गई। प्रेमप्रकाश और अमर जैसे स्वाभिमानी नेता अब बिना बुलाए तो जाएंगे नहीं।

पुरंदेश्वरी से उम्मीद

तीन साल बाद सरकार बनाने का सपने देख रही बीजेपी के भीतर सब कुछ बढ़ियां नहीं चल रहा। नियुक्तियों को लेकर संगठन में अंतरकलह बढ़ता जा रहा। बात यहां तक पहुंच गई है कि पार्टी नेता आरोप लगाने लगे हैं कि पैसे लेकर नियुक्तियां की जा रही है….सरगुजा संभाग के एक नेता को 10 पेटी लेकर बड़ा पद दिया गया है। तो युवा मोर्चा में 41 साल के एक व्यक्ति को बिठा दिया गया…इस पर भी पार्टी में बहुत कुछ कहा जा रहा है। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को अब प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन से ही उम्मीद है…वे शायद कुछ कर सकें।

बड़ा मंत्रालय

बिहार के बीजेपी नेता नितिन नवीन को लगता है छत्तीसगढ़ का सह प्रभारी बनना फल गया। पटना से विधायक नितिन को मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री बनना तय था लेकिन, पीडब्लूडी जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिल जाएगा, इसका किसी को अंदाजा नहीं था। नितिन के पिता नवीन किशोर सिनहा भी पटना से विधायक थे। नितिन 25 साल की उम्र में विधायक बन गए थे। वे सिक्किम के प्रभारी भी रह चुके हैं। वैसे, छत्तीसगढ़ बीजेपी नेताओं को फल जाता है। देख ही रहे हैं जगतप्रकाश नड्डा, रविशंकर प्रसाद, धमेंद्र प्रधान जैसे नेताओं को…ये सभी यहां के प्रभारी रह चुके हैं।

आईएफएस अवार्ड

इस बार राज्य वन सेवा के आठ अधिकारियों को आईएफएस अवार्ड होगा। इसके लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इसके अलावा एडिशनल पीसीसीएफ, सीसीएफ का भी प्रमोशन होना है। एडिशनल पीसीसीएफ के लिए हालांकि, पहली बार ऐसा होगा कि पद अधिक है और दावेदार इकलौता। तीन पद के विरुद्ध सिर्फ सीसीएफ एसएसडी बड़गैया दावेदार हैं। इसी तरह सीसीएफ के पांच और सीएफ के सात पदों ंके लिए डीपीसी होने वाली है। संकेत हैं, बड़गैया को वाईल्डलाइफ चीफ बनाया जा सकता है। बड़गैया के पास अचानकमार टाईगर रिजर्व और बारनवापारा में वाईल्डलाइफ का लंबा अनुभव है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. 2009 बैच के किस आईएएस को एक बड़े जिले का कलेक्टर बनाकर भेजने की चर्चा है?
2. किस बड़े जिले के कलेक्टर के लचर कामकाज से सरकार बेहद नाराज है?

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मंत्रीजी को अब नाॅनवेज नहीं!

 संजय के दीक्षित

तरकश, 7 फरवरी 2021
मछली के कांटे आमतौर पर गले में फंसता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ के एक मंत्री के दांत में मछली का ऐसा कांटा फंसा कि उसकी तकलीफ से वे उबर नहीं पा रहे। मंत्रीजी गए थे डोंगरगढ़ मां बम्लेश्वरी का दर्शन करने। रोपवे से उतरने के बाद वे रेस्ट हाउस पहुंचे। अफसरों ने उनकी खिदमत में कई तरह के मांसाहारी व्यंजनों का इंतजाम किया था। मंत्रीजी को पहले से भूख लगी थी…नानवेज देखने के बाद और तेज हो गई। बताते हैं, जल्दी के चक्कर में मछली का एक बड़ा कांटा उनके दांत में फंस गया। अब मामला मंत्री का था, सो वहां मौजूद अधिकारियों के हाथ-पांव फुल गए। आनन-फानन में डेटिस्ट को बुलाया गया। डेंटिस्ट ने काफी कोशिश की….नाकाम होने के बाद बोला, कांटा मसूड़े के बेस में घूस गया है…हास्पिटल में आपरेट कर निकालना पड़ेगा। मंत्रीजी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डेंटिस्ट ने हालांकि, कांटा निकाल दिया। किन्तु मंत्रीजी की तकलीफ दूर नहीं हुई है। अलबत्ता, मंदिर में दर्शन के बाद मछली खाने को लेकर सोशल मीडिया में मंत्रीजी का जमकर मजाक उड़ा। शायद यही वजह है कि मंत्रीजी के स्टाफ ने विभाग के अधिकारियों को फरमान जारी कर दिया है….मंत्रीजी अगर किसी मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो उसके बाद खाने में अनिवार्य रूप से शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की जाए, मांसाहारी नहीं।


रोक्तिमा रिलीव, केडी कब?

आईएएस अवार्ड होने के बाद डिप्टी सिकरेट्री रोक्तिमा यादव राजभवन से रिलीव हो गई। उन्हें दो महीने पहिले राजभवन से हटाकर मंत्रालय भेजा गया था। मगर किन्हीं कारणों से इस पर अमल नहीं हो सका। जीएडी वाले आदेश निकालकर भूल गए और रोक्तिमा राजभवन में बनी रहीं। लेकिन, आईएएस अवार्ड होने के बाद रोक्तिमा की पोस्टिंग का आदेश निकला और वे मंत्रालय की रवानगी डाल दी। परन्तु, राजभवन में ज्वाइंट सिकरेट्री बनाए गए केडी कुंजाम का अभी कोई पता नहीं है। रोक्तिमा को राजभवन से हटाने वाले आदेश में ही कुंजाम को ज्वाइंट सिकरेट्री बनाया गया था। उस समय न रोक्तिम हटीं और न कुंजाम आए। लेकिन, अब रोक्तिमा हट गई हैं तो सवाल उठता है कुंजाम राजभवन का चार्ज कब लेंगे।

6 करोड़ का सफेद हाथी

छत्तीसगढ़ बनने के बाद फस्र्ट सीएम अजीत जोगी ने नए राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने के लिए छत्तीसगढ़ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेेंट कारपोरेशन याने सीआईडीसी गठित किया था। बीजेपी सरकार मेें करीब 2005 तक यह कारपोरेशन ठीक-ठाक काम करता रहा। इसी ने टाटीबंध से तेलीबांधा तक और शास्त्री चैक से रेलवे स्टेशन तक फ्लाई ओवर का प्लान तैयार किया था। लेकिन, उसके बाद काडा और फिर एनआरडीए बनने के बाद सीआईडीसी को सरकार ने सफेद हाथी बनने पर मजबूर कर दिया। अमर अग्रवाल जब तक वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहे, सीआईडीसी में बैठते रहे। उनके बाद में कोई झांकने नहीं गया। आज इस निगम में 60 अधिकारी, कर्मचारी हैं। छह करोड़ का सलाना बजट है, जो सिर्फ वेतन पर खर्च होता है। लेकिन आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि यह छह करोड़ रुपए विशुद्ध तौर पर पानी में जा रहा है। क्योंकि, इस निगम के पास कोई काम नहीं है। अफसर, कर्मचारी आफिस आते हैं और हाजिरी लगाकर घर चल देते हैं। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन कभी इसके एमडी रह चुके हैं। उन्हें सीआईडीसी के लिए कोई काम निकालने चाहिए ताकि, राज्य की जनता की जेब का पैसा इस तरह पानी में न जाए।

फर्स्ट आईएफएस

सब कुछ ठीक रहा तो कांकेर के सीसीएफ एसएसडी बड़गैया प्रमोट होकर जल्द ही एडिशनल पीसीसीएफ बन जाएंगे। राज्य वन सेवा से आईएफएस बनने वाले वे पहले अफसर होंगे, जो एडिशनल पीसीसीएफ की कुर्सी तक पहुंचेंगे। अभी तक कम-से-कम मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसी प्रमोटी आईएफएस को यह मौका नहीं मिला है। दरअसल, कम उम्र और फस्र्ट चांस में सलेक्शन होने के फायदे आखिरी समय में मिलते हैं। 96 बैच के आईएफएस बड़गैया अविभाजित मध्यप्रदेश में 20 साल की उम्र में एसीएफ सलेक्ट हो गए थे। इसी तरह आईपीएस राजीव श्रीवास्तव ने डीजी बनने का रिकार्ड बनाया था। राजीव डीजी के पद तक पहुंचने वाले देश के दूसरे प्रमोटी आईपीएस बन गए थे। ये रिकार्ड आज भी उनके नाम है।

कलेक्टरी के दावेदार

कलेक्टरों की लिस्ट निकलने की चर्चाएं तेज होती जा रही है। हालांकि, अभी ये हंड्रेड परसेंट नहीं है कि सरकार बजट सत्र के बाद लिस्ट निकालेगी या उससे पहिले। फिर भी दावेदारों में बेचैनी बढ़ रही है। अभी 2013 बैच पूरा नहीं हुआ है। छह में से सिर्फ विनीत नंदनवार और नम्रता गांधी कलेक्टर बन पाई हैं। चार बचे हैं। सीनियर लेवल पर बात करें तो 2006, 07 और 08 बैच के एक-एक आईएएस रायपुर, जांजगीर और रायगढ़ में कलेक्टर हैं। 2009 बैच में प्रियंका शुक्ला, सौरभ कुमार और समीर विश्नोई सिर्फ एक-एक जिले की कलेक्टरी किए हैं। समीर कोंडागांव में मात्र 11 महीने रह पाए। 2010 बैच में चार आईएएस हैं। इसमें से डाॅ0 सारांश मित्तर बिलासपुर और जयप्रकाश मौर्य धमतरी कलेक्टर हैं। कार्तिकेय गोयल हाल ही में महासमुंद कलेक्टर से रायपुर लौटे हैं। इस बैच की रानू साहू जरूर दो जिले की कलेक्टर रही हैं। लेकिन, दोनों जिले मिलाकर मुश्किल से डेढ़ साल। कांकेर में छह महीने और बालोद में करीब साल भर। 2011 बैच के भास्कर संदीपन एक महीने कलेक्टर रहे हैं। प्रमोटी में 2011 बैच में जितेंद्र शुक्ला भी हैं। बहरहाल, सवाल यह है कि लिस्ट में इनमें से कुछ अफसरों का नम्बर लग पाएगा?

फ्रंटफुट पर अफसर?

छत्तीसगढ़ में सरकार के दो बरस हो गए हैं। अब काम करने के लिए कुल जमा दो साल बचे हैं। पांचवा साल तो इलेक्शन ईयर होता है। उसमें काम होते नहीं। सिर्फ घोषणाएं होती हैं। वैसे भी, सरकार के दो साल में से एक साल महामारी में निकल गया। ऐसे में, अफसरों को अब फ्रंटफुट पर आकर बैटिंग करने की जरूरत है। खासकर कुछ चुनिंदा योजनाओं को लेकर। नरवा जैसी योजना छत्तीसगढ़ के लिए वरदान बन सकती है। छत्तीसगढ़ में 72 फीसदी से अधिक बारिश का पानी बहकर नदियों में चला जाता है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 श्यामाचरण शुक्ला के बाद छत्तीसगढ़ के वाटर रिसोर्सेज पर ध्यान नहीं दिया गया। नरवा योजना के तहत काम तो हो रहा मगर अभी उसे माॅडल के शेप में ही कहा जा सकता है। इससे काम नहीं चलेगा। भारत सरकार के पास वाटरशेड की कई योजनाएं होती हैं। सवाल है कि अफसर आगे बढ़े तब तो? इसके लिए कायदे से एक बोर्ड बना देना चाहिए। जब शौचालय बनाने के लिए आईएएस को डायरेक्टर बनाया जा सकता है तो नरवा जैसी योजना का जिम्मा किसी सीनियर आईएएस को क्यों नहीं दिया जा सकता।

अद्भुत नेता, अद्भुत काम

रायगढ़ के पूर्व विधायक रोशन अग्रवाल नहीं रहे। पत्रकार से नेता बने रोशन न केवल अद्भुत शख्शियत थे बल्कि होम वर्क भी उनका अद्भुत था। जो भी आदमी उनके आफिस गया, उनके फाइल वर्क को देखकर मुरीद बन गया। सीनियर पोजिशन से रिटायर एक आईएएस, जो रायगढ़ में एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं, उनकी माने तो रोशन जैसा जमीनी और फाइल वर्क वाले नेता उन्होंने नहीं देखा। वे बताते हैं, एक बार पूर्व सीएम डाॅ0 रमन सिंह रायगढ़़ के दौरे में रोशन के आफिस गए थे चाय पीने। रायपुर लौटकर उन्होंने कहा था….अपने विधानसभा क्षेत्र की कंप्लीट जानकारी रखने वाला रोशन जैसा आफिस मेरा भी नहीं है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या बीजेपी के पुरंदेश्वरी के जवाब में कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया तीन दिनों के प्रवास पर छत्तीसगढ़ आए हैं?
2. बीजेपी सांसद सरोज पाण्डेय को केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा, इस खबर में कितनी सत्यता है?