शनिवार, 28 अप्रैल 2012

तरकश, 29 अप्रैल



ओवर कांफिडेंस

सुकमा के अगवा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का ओवर कांफिडेंस सरकार को भारी पड़ गया। मेनन जिस तरह से आदिवासी इलाके में काम कर रहे थे, उन्हें अहसास नहीं था कि उनके साथ कोई हादसा हो सकता है। मेनन को लैटिन अमेरिका के क्रांतिकारी एवं गुरिल्ला नेता सी ग्वेरा से खासा प्रभावित बताया जाता है। उनके बैचमेट तो उन्हें ग्वेरा के अनुयायी तक होने का दावा करते हैं। ग्वेरा ने फिदेल कास्त्रों के साथ मिलकर 1963 में क्यूबा की तख्तापलट में अहम भूमिका निभाई थी। अर्जेंटाइना में जन्में ग्वेरा ने ब्यूनर्स आयर्स विवि से मेडिकल की पढ़ाई की और इसके बाद क्रांति की राह पर चल पड़े। 39 साल जीवित रहे ग्वेरा ने क्यूबा की सरकारी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। मेनन को कांफिडेंस था....ग्वेरा की तरह वे भी अंतिम व्यक्ति के लिए काम कर रहे हैं, इसलिए नक्सली उनका कुछ नहीं बिगाड़ेंगे। ग्राम सुराज ही नहीं, बल्कि सुकमा जाने के बाद से ही वे अंदरुनी इलाकों में धुंआधार दौरा कर रहे थे। यहां तक कि दुर्गम इलाके में मोटर सायकिल से भी। और दंतेवाड़ा के लोग कहते हैं, मेनन जिस अंदाज में वहां काम कर रहे थे, उससे सुकमा में नक्सलियों के पैर उखड़ जाते। ऐसे में माओवादी उन्हें कैसे बर्दाश्त करते।

रिहाई में रोड़ा

नक्सलियों की ओर से वार्ताकार अपाइंट किए गए रिटायर आईएएस अधिकारी बीडी शर्मा की भाजपा से कभी पटी नहीं। बल्कि भाजपा सरकार के समय फजीहत भी खूब हुई है। 1991 में बस्तर में एसएम डायकेम स्टील प्लांट के शिलान्यास के समय क्या नहीं हुआ। तत्कालीन सीएम सुंदरलाल पटवा के शिलान्यास कार्यक्रम का विरोध करने बस्तर पहुंचे शर्मा के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं न केवल झूमाझटकी की बल्कि उनके कपड़े भी फाड़ डाले थे। फटे-चीटे कपड़े में वे भोपाल रवाना हुए थे। तीन साल पहले भी, नगरनार प्लांट का विरोध करने पहुंचेे शर्मा को बलीराम कश्यप ने जगदलपुर से आगेे नहीं जाने दिया था। मगर अब मौका शर्मा का है। तभी तो रायपुर आते ही उन्होंने भड़ास निकाला.....नक्सलियों ने गलत नहीं किया है, उनके पास और चारा भी क्या था। वार्ताकारों के मन में जब ऐसी कड़वाहट होगी तो मेनन की जल्द रिहाई की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए। शर्मा आखिर अपना रंग तो दिखाएंगे ही।

इगो का चक्कर

सुकमा कलेक्टर मामले मंे आईएएस और आईपीएस अफसरों में तालमेल की कमी भी उजागर हुई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय कलेक्टर और एसपी आमतौर पर दौरे में साथ निकलते थे। साथ नहीं भी गए तो एसपी को कलेक्टर के दौरे की जानकारी रहती थी। लेकिन राज्य छोटा होने के बाद अब समन्वय नहीं रहा। सुकमा में आलम यह था, एसपी को जानकारी नहीं थी कि कलेक्टर दौरे मेेें हैं। जबकि, 17 फरवरी 2010 को ओड़िसा के मलकानगिरी के कलेक्टर आर विनल कृष्णा का नक्सलियों ने अपहरण किया था, पुलिस मुख्यालय ने एक आदेश निकाल कर कलेक्टरों से कहा था कि जब भी वे दौर पर जाएं, एसपी को बता दें। मगर आईएएस तो देश चलाते हैं। वे पुलिस को बता कर भला दौरे में क्यों जाएं। पीएचक्यू के आदेश का गलत मतलब निकालकर डस्टबीन में डाल दिया।

परमानेंट मेम्बर

सुकमा कलेक्टर की रिहाई के लिए रिटायर चीफ सिकरेट्री एसके मिश्रा को सरकारी वार्ताकार बनाए जाने पर मंत्रालय में इन दिनों खूब चुटकी ली जा रही है। आईएएस अधिकारी ही कह रहे हैं, सरकार की कोई कमेटी बनें और उसमें अपने मिश्रीजी न हो, ऐसा भला हो सकता है। मिश्राजी को सरकार ने पेटेंट कर लिया है। सरगुजा के विकास के लिए बनी इंफ्रास्ट्रक्चर कमेटी हो या गजेटिर बनाने वाली कमेटी। गुरू घासीदास विवि और सरगुजा विवि की संपत्तियों के बंटवारे के लिए मिश्राजी को ही ही आर्बिटेटर बनाया गया है। और अब वार्ताकार।

अमर का हेल्थ

नगरीय प्रशासन विभाग का स्वास्थ्य ठीक करने के चक्कर में स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का स्वास्थ्य बिगड़ गया है। बुधवार को रायपुर बैठक में ही बोमेटिंग शुरू हो गई। डाक्टरों को बुलाकर तत्काल उनका चेकअप कराया गया। अग्रवाल के करीबियों की मानंें तो, मंत्रीजी के इस नए विभाग की हालत इतनी खराब है कि उसे दुरुस्त करने के लिए उन्हें लगातार बैठकें लेनी पड़ रही है। दौरे भी खूब कर रहे हंै। दरअसल, नाक का सवाल है। शहरी क्षेत्रों में भाजपा का ग्राफ लगातार गिर रहा है। सरकार ने गड्ढा पाटने की जिम्मेदारी अमर को दी है। सो, कसौटी पर खड़ा उतरने का टेंशन तो रहेगा ही। आप देख ही रहे होंगे, हेल्थ मिनिस्टर का हेल्थ भी पहले से कुछ कम हुआ है।

तुगलकी फरमान

हरकतों और हादसों की वजह से सुर्खियों में रही बिलासपुर पुलिस अब अपने तुगलकी फरमान को लेकर चर्चा में है। राहुल शर्मा की मौत के बाद बिलासपुर की कमान संभाले रतनलाल डांगी ने थाना प्रभारियों को हिदायत दी है, चोरी गए सामानों की रसीद दिखाने पर ही चोरी की रिपोर्ट दर्ज की जाए। यही नहीं, 50 हजार से अधिक की चोरी की सूचना अब आयकर विभाग को दी जाएगी। याने चोरी होने पर रिपोर्ट लिखाने से पहले रसीद का जुगाड़ करों। डांगी रसीद रखते होंगे, आम आदमी तो रखता नहीं। उपर से आयकर का धौंस। कुल मिलाकर यही कि रिपोर्ट मत लिखाओ। असल में, दोष डांगी का नहीं है। बिलासपुर पुलिस पर शनि की साढ़े साती चल रही है। इसलिए, बिलासपुर ज्वाईन करने वाले आईपीएस अफसरों पर शनि सवार हो जा रहे हैं।

असली कमाई

आज के युग में ऐसी बातें कम ही सुनने को मिलती है....आफिस का बास अगर बीमार पड़े तो पूरा स्टाफ उसकी सलामती के लिए दुआ मांगने लगे। सीएसआईडीसी के एमडी देवेंद्र सिंह का स्वास्थ्य खराब है और महीने भर से वे मुंबई में इलाज करवा रहे हैं। उनके आफिस के लोगों ने सिंह के शीघ्र स्वस्थ्य होने के लिए मृत्युंजय यज्ञ करवाया। नवरात्रि में उनके लिए डोंगरगढ़ और रतनपुर में ज्योत जलवाये।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन ने मात्र दो सुरक्षाकर्मियों को साथ लेकर नक्सल इलाके में जाकर बहादुरी दिखाई या आ बैल मुझे मार वाला काम किया?
2. किस आईपीएस अफसर को आजकल सुपर डीजीपी कहा जा रहा है?

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

तरकश, 23 अप्रैल




नया चेहरा

चुनाव भले ही अगले साल हो मगर सत्ताधारी पार्टी भाजपा अभी से जीतने वाले उम्मीदवारों को टटोलने में जुट गई है। भीतर की खबर है, विधानसभावार पांच-पांचों नामों के पेनल बनाए जा रहे हैं। बड़े ही गोपनीय तौर पर इस अभियान को अंजाम दिया जा रहा है। दरअसल, पार्टी के रणनीतिकारों के सामने तीसरी बार सत्ता में आने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, एंटी इंकम्बेंसी को कम करना। और भाजपा नेताओं को एक ही रास्ता दिख रहा है, अधिक-से-अधिक नए उम्मीदवारों को उतारें। नए प्रत्याशियों से लोगों को गिला-शिकवा नहीं रहता। संगठन के एक प्रभावशाली नेता की मानें तो 50 में से 20 से 25 विधायकों की टिकिट कट सकती है। इनमें दो-तीन मंत्री भी होंगे। मंत्री कितने भी वरिष्ठ हो, पार्टी को इससे कोई मतलब नहीं। पिछली बार भी भाजपा के रिपीट होने का बड़ी वजह एक यह भी रही कि पार्टी ने दर्जन भर सीटिंग विधायकों की टिकिट काट नए लोगों पर दांव लगाया। राजनीतिक प्रेक्षक भी मानते हैं, चुनावी तैयारी में जो दल आगे रहेगा, पलड़ा उसका भारी रहेगा। सो, कांग्रेस भी पीछे नहीं है। प्रत्याशियों का गुणा-भाग वहां भी शुरू हो गया है। असुरक्षित समझ रहे कांग्रेस के कई विधायक सीट बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें धरमजीत सिंह का भी नाम है। पिछले बार ही, पुन्नुराम मोहले को लोरमी से टिकिट मिल गई होती तो स्थिति कुछ और होती।   

झटका

रमन सरकार को इस खबर से झटका लग सकता है कि जिस रिटायर नौकरशाह पर इनायत करते हुए लाल बत्ती से नवाजा, वे कांग्रेस की टिकिट पर अगले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बात मुख्य सूचना आयुक्त सरजियस मिंज की हो रही है। अगले साल राजनीति में कदम रखने के बाद वे कुनकुरी से अपना भाग्य आजमाएंगे। बताते हैं, इसके लिए कांग्रेस नेताओं से हरी झंडी मिल गई है। और कहते हैं, उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। उनकी लाल बत्ती गाड़ी अक्सर कुनकुरी इलाके में घूूमती देखी जा रही है। सूत्रों का ये भी दावा है, अगले साल वे किसी भी समय सूचना आयोग को बाय कह सकते हैं। उधर, आईजी आरसी पटेल का भी कांग्रेस टिकिट से अगला विधानसभा चुनाव लड़ना तय माना जा रहा। चुनाव से पहले उनके भी नौकरी से इस्तीफा देने की चर्चा है। 

कई सवाल

आईएएस अधिकारी आलोक अवस्थी को पाठ्य पुस्तक निगम का एमडी बनाने का मामला किसी को हजम नहीं हो रहा है। सुभाष मिश्रा निगम में महाप्रबंधक हैं और राजधानी में यह बात किसी से छिपी नहीं है, दोनों के बीच किस तरह के मधुर रिश्ते हैं। दोनों जनसंपर्क सेवा के अधिकारी हैं और एलाएड सर्विसेज से जो आईएएस अवार्ड होता है, उसके प्रबल दावेदार थे। मगर आलोक बाजी मार ले गए। सरकार भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। और आमतौर पर इस सिचुयेशन में पोस्टिंग होती नहीं। मगर हो गई तो चर्चा स्वाभाविक है......मिश्रा को निबटाने के लिए आलोक को भेजा गया है या आलोक को.....। यही नहीं, आलोक की जगह जे मिंज को डायरेक्टर पंचायत का प्रभार दिया गया है। मिंज के पास पहले से माध्यमिक शिक्षा मंडल है। सवाल इस पर भी उठ रहे हैं। पंचायत जैसे विभाग के लिए पूर्णकालिक डायरेक्टर क्यों नहीं?  

सावधान

ग्राम सुराज में बदले की भावना से सरकारी मुलाजिमों के खिलाफ शिकायत के प्रकरण भी आ रहे हैं। कोंडागांव जिले में सीएम के सामने ही एक वाकया हुआ। तीन-चार लोगों ने सीएम से पटवारी के खिलाफ पैसा मांगने की शिकायत कर डाली। पटवारी लगा हाथ-पैर जोड़ने.....साब मुझे यहां आए तीन-चार महीने ही हुए हैं। सीएम को खटका......इतने कम समय में शिकायतें होती नहीं। मगर उन्होंने कलेक्टर को पटवारी का ट्रांसफर करने को कह दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य ग्रामीणों से बात की तो पता चला, शिकायत करने वाले बाहरी लोग हैं और गलत ढंग से आदिवासियों की जमीन खरीद कर अपने नाम चढ़वाना चाहते हैं। नाराज होने की बारी अब डाक्टर साब की थी। उन्होंने नए पटवारी से कहा, उन्हें अब छोड़ना नहीं। जमकर रगड़ना। 

सैर-सपाटा

ग्राम सुराज में पूरी सरकार पसीना बहा रही है, सत्ताधारी पार्टी के विधायक इलाके का दौरा कर रहे हैं। मगर सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान सुरम्य वादियों का लुफ्त उठाने जम्मू-कश्मीर निकल लिए हैं। नोटशीट में यह लिख कर दौरे का सरकारीकरण किया गया है, माननीय कश्मीर के औद्योगिकीकरण का अध्ययन करेंगे और लौट कर अपने सूबे में उसे लागू करेंगे। अब कश्मीर में कौन से उद्योग है? वहां तो एक ही उद्योग है, आतंकवाद का। खैर, राजनेताओं के दौरे ऐसे ही बनाए जाते हैं। हवाई जहाज से आने-जाने, तफरी करने का पूरा खर्च सरकारी खाते से। वैसे भी, दीवानजी बुजुर्ग हो गए हैं। उन्हें यह भी मालूम है, अगली बार चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा नहीं। फिर बेवकूफ थोड़े ही हैं। ग्राम सुराज में पसीना  क्यों बहाएं। 

कटघरे में

माइनिंग कारपोरेशन के एमडी राजेश गोवर्द्धन जेपी सीमेंट को नियमों के खिलाफ लाभ पहुंचाने के चलते कटघरे में आ गए हैं। सीएसआईडीसी के एमडी रहने के दौरान उन्होंने सीमेंट कंपनी को सरकारी रेट से सस्ती दर पर जमीन दे डाली। सीएजी ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि इससे सरकार को पांच करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सीएसआईडीसी ने साढ़े तीन लाख रुपए हेक्टेयर की जमीन को 1.80 लाख रुपए हेक्टेयर के हिसाब से दे दिया। शिकायत होने पर कारपोरेशन ने कहा, कंपनी से रिकवरी की जाएगी। मगर चार साल बाद भी एक पैसा नहीं मिला। आरोप है, इसमें बड़ा खेल हुआ।

अंत में दो सवाल आपसे

1 दुर्ग कलेक्टर रीना बाबा कंगाले को हटाने के लिए कुछ आईएएस अधिकारी लाबिंग क्यों कर रहे है?
2 रीना कंगाले की दुबई जाने की शिकायत के पीछे मंत्रालय की किस महिला आईएएस का हाथ है?



शनिवार, 14 अप्रैल 2012

तरकश, 15 अप्रैल



सब पर भारी


नियम-कायदे खुद पर लागू नहीं होते, प्रधानमंत्री कार्यालय के फैसले से तो यही जाहिर हुआ है। 87 बैच के आईएएस अफसर बीबीआर सुब्रमण्यिम पिछले 13 साल से डेपुटेशन पर हैं। और अब पीएमओ में ज्वाइंट सिकरेट्री बन गए हैं। सुब्रमण्यिम छत्तीसगढ़ बनने के पहले याने मध्यप्रदेश के समय ही दिल्ली निकल लिए थे। 2000 में उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर अलाट हुआ, मगर 11 साल में एक बार भी, छत्तीसगढ़ झांकने नहीं आए। जबकि, भारत सरकार ने ही अखिल भारतीय सेवाओं के लिए पांच साल के डेपुटेशन का नियम बना रखा है। इसमें अधिकतम दो साल का एक्सटेंशन हो सकता है। वो भी उन्हीं को, जो केंद्र में ज्वाइंट सिकरेट्री से नीचे के अफसर हैं। इससे पहले, राज्य के कई अफसरों को पीएमओ में लाख कोशिशों के बाद भी डेपुटेशन नहीं बढ़ा। इसी वजह से आंध्रप्रदेश के चीफ सिकरेट्री पंकज द्विवेदी को 2006 में छत्तीसगढ़ से लौटना पड़ा था। सुब्रमण्यिम का छत्तीसगढ़ लौटने की संभावना उसी दिन खतम हो गई थी, जिस रोज पुलक चटर्जी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रींसिपल सिकरेट्री बनें। देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह चटर्जी से सुब्रमण्यिम के करीबी रिश्ते हैं। दोनों वाशिंगटन में भी एक साथ रहे हैं। ऐसे में राज्य के आईएएस अफसरों को दुखी नहंी होना चाहिए। रसूख तो आखिर भारी पड़ता ही है।

झटका

कोर गु्रप की बैठक से पहले सरकार को झटका देने वाले भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को कतई यह भान नहीं होगा कि संगठन इतना कड़ा रुख अपना सकता है। सर्किट हाउस की असंतुष्टों की बैठक की बाद एकात्म परिसर में कोर गु्रप की मीटिंग में सौदान सिंह बेहद गुस्से में थे। उनकी भाव-भंगिमा को भांपकर सीएजी की रिपोर्ट उठाने की किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई। उल्टे इशारे-इशारे में उन्हें बता दिया गया, पार्टी में ब्लैकमेल की राजनीति बर्दाश्त नहीं की जाएगी........उन्हें आगे कोई जिम्मेदारी देने के बारे में भी सोचना पडे़गा। जाहिर है, इशारा टिकिट की ओर था। खास रणनीति के तहत अगले दिन प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जगतप्रकाश नड्डा ने लगभग चेतावनी के लहजे में कहा, जिन्हें पार्टी की चिंता नहंी हैं, पार्टी भी उनकी चिंता नहीं करेगी। असल में, असंतुष्टों को सार्वजनिक तौर पर नसीहत देकर संदेश दिया गया कि पार्टी के अनुशासन का डंडा अभी कमजोर नहीं हुआ है। तभी तो दो दिन पहले तक सरकार के क्रियाकलापों पर खम ठोकने वाले नेता कोर गु्रप की बैठक के बाद मीडिया से नजर बचाते दिखे।

बाबा की कृपा-1

थर्ड आई के जरिये लोगों पर कृपा बरसाने वाले बाबा निर्मलजीत सिंह नरुला के सामने मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने जितने अनुयायी बनाएं हैं, अब उससे कहीं ज्यादा विरोधी खड़े हो गए हैं। थानों में केस दर्ज किए जा रहे हैं तो वेबसाइटों पर सामग्री पटी है.....उनके खिलाफ लगातार खुलासे किए जा रहे हैं। मसलन, झारखंड के कांग्रेस नेता इंदर सिंह नामधारी के साले निर्मलजीत सिंह नरुला ने व्यापार में असफल होने पर अध्यात्म का शार्टकट रास्ता अपनाया और देखते ही देखते करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया......प्रायोजित कार्यक्रमों की सीडी को मोटे पैकेज के साथ वे किस तरह टीवी चैनलों को भिजवाते हैं.....और भी बहुत कुछ। बताते हैं, नरुला के पिता नहंीं थे। सो, नामधारी की सास ने बेटे को अपने यहां ले जाकर काम में लगाने का आग्रह किया था। नामधारी ने गढ़वा रोड र्में इंटा भठ्ठा खोलवाया। भठ्ठा बैठ जाने के बाद नरुला ने कपड़े की दुकान खोली। मगर उनकी किस्मत नहीं बदली। बिजनेस में असफल हो जाने पर बाबा ने खुद ही कृपा बरसाने और लोगों की किस्मत बदलने का काम प्रारंभ कर दिया। और यह चल निकला। वैसे भी कहा जाता है, अपने देश में जब तक मुर्ख रहेंगें, तब तक होशियार भूखे नहीं मर सकता।

बाबा की कृपा-2

धन कमाने का अत्यधिक लोभ और समस्याओं का शार्टकट रास्ता तलाशने का सबसे बड़ा उदाहरण है, निर्मल दरबार। हैरत होती है, जिस देश में गीता को जीवन का आधार माना गया है.....पांच हजार साल पहले कहा गया, कर्म प्रधान हैं, उस देश में अंधविश्वास का ये आलम है कि भजिया, समोसे, जलेबी खाकर और खिलाकर अपनी हथेली की रेखाएं बदलवाने के लिए लोग टूट पड़े हैं। बैंक में पैसा जमा कराकर कृपा पाने के लिए लाइन लगाई जा रही है़। बेटे को कैंसर से निजात दिलाने के लिए बताते हैं, क्रिकेटर युवराज सिंह की मां भी निर्मल दरबार में गई थीं। बाबा ने पूछा कितने दिन पहले सांप देखी हों, समोसा कब खाई। युवराज की मां शबनम समोसा खरीदकर लोगों में बांटती रही और बेटे का मर्ज बढ़ता गया। आखिर में अमेरिका जाना पड़ा। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे अंधविश्वास में आस्था रखने वालों की कमी नहीं है। बुद्धि-विवेक ताक पर रखकर घरों में लोग फोटो टांगे जा रहे हैं। रायपुर में कई रिक्शे वाले भी निर्मल दरबार के लिए काम कर रहे हैं। सवारी बिठाते ही शुरू हो जाते हैं, साब, बाबा की फोटो जब से रखना शुरू किया हूं, रोज 300 रुपए लेकर घर जाता हूं।

बाबा की कृपा-3

बाबा की कृपा भक्तों पर कितनी बरसी पता नहीं, मगर मंदिरों की दान पेटियांें की तो मत पूछिए। भिखारियों को मेहनत करने की नसीहत देने वाले लोग दान पेटियों में जमकर लाल-हरे नोट डाल रहे हैं। खबर आई, रामनवमी को शिरडी के साईं बाबा मंदिर की दान पेटी से रिकार्ड तीन करोड़ रुपए निकले। तो इधर नवरात्रि में, रतनपुर महामाया मंदिर की दान पेटी में भक्तों ने हर रोज एक लाख से अधिक रुपए डाले। इसमें सर्वाधिक पांच सौ के नोट थे। मंदिरों में प्रसाद भी खूब चढ़ाएं जा रहे हैं। एक पाव लड्डू चढ़ाने वाले दो-दो किलो का डिब्बा लेकर जा रहे हैं। बाबा जो कहते हैं, मंदिरों में खूब दान करों और भरपूर प्रसाद चढ़ाओं। बाबा की कृपा ठंडा पेय और लेदर की पर्स बनाने वाली कंपनियों पर खूब बरस रही है। बाबा पूछते हैं, कोका कोला पिए हो। इसके बाद कोका कोला की बिक्री बढ़ गई। लोग लेदर के महंगे पर्स रख रहे हैं। महंगा पर्स रखने पर ज्यादा धन आएगा। आरोप है, ये कंपनियां बाबा के निर्मल दरबार पर कृपा बरपा रही हंै।

और अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस सरकार से खफा होते हैं और चंद घंटे बाद फिर मान कैसे जाते हैं?
2. करुणा शुक्ला को भूषणलाल जांगड़े की जगह अगर राज्य सभा में भेज दिया होता तो सीएजी की रिपोर्ट को वे काल्पनिक बताती या वास्तविक?

रविवार, 8 अप्रैल 2012

तरकश, 8 अप्रैल


अब जुनेजा

बीएस मरावी के निधन के बाद बिलासपुर आईजी के लिए संजय पिल्ले, पवन देव, राजकुमार देवांगन, हिमांशु गुप्ता का नाम खूब उछला। सरगुजा से आउट होकर राजधानी लौटे राजेश मिश्रा ने भी कम कोशिशें नहीं की। मगर सरकार को इनमें से किसी का नाम हजम नहीं हुआ। पिल्ले के पास पीएचक्यू का सबसे अहम विभाग है, इसलिए उन्हें डिस्टर्ब करना वाजिब नहीं समझा गया। फिर दिसंबर तक वे एडीजी भी हो जाएंगे। सो, आईजी, सीआईडी पीएन तिवारी को बिलासपुर का टेम्पोरेरी चार्ज सौंपा गया है। टेम्पोरेरी इसलिए, क्योंकि तिवारीजी का दिसंबर में रिटायरमेंट है। और अगले साल चुनाव भी है। लिहाजा, बिलासपुर पुलिस की लड़खड़ाती पारी को संभालने के लिए सरकार दिल्ली से अशोक जुनेजा को बुला रही है। जुनेजा, वहां नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में हैं और उनके डेपुटेशन से लौटने की प्रक्रिया तेज हो गई है। अगले महीने के अंत तक वे छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। सरकार के रणनीतिकारों की मानें, तो यहां आमद देते ही उन्हें बिलासपुर आईजी की कमान सौंप दी जाएगी। वैसे भी, बिलासपुर की पोलिसिंग चरमरा गई है। थाने में घुस कर मारपीट की घटनाएं तो रोजमर्रा की बात हो गई है। छुटभैया नेता भी कानून को जेब में लेकर चल रहे हंै। आलम देखिए, जिस समय बीएस मरावी को अपोलो अस्पताल में भरती कराया जा रहा था, उस समय शहर के सिविल लाइन थाने के भीतर दो गुटों में धींगामुश्ती हो रही थी। बिलासपुर रेंज में आने वाले विधानसभा इलाके में भाजपा की स्थिति वैसे भी अच्छी नहीं है। बिलासपुर, जांजगीर, कोरबा और रायगढ़ की 24 सीटों में 12 कांग्रेस, 10 भाजपा और दो बसपा के पास है। गुटीय खींचतान में पार्टी की स्थिति खराब ही हुई है। खासकर बिलासपुर में। जुनेजा छत्तीसगढ़ के तीनों बड़े जिले, रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में कप्तानी कर चुके हैं। इसलिए सरकार को लगता है, बिलासपुर रेंज में कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाकर पार्टी की छबि दुरुस्त कर सकते हैं।

मृत्युंजय जाप

बिलासपुर पुलिस को लगता है, जीत टाकिज के गेटकीपर के परिजनों की आह लग गई है। 2010 में वहां के एसपी जयंत थोरात के दबंग देखकर निकलते समय पुलिस की पिटाई से गेटकीपर की मौत हो गई थी। इसके बाद वहां पुलिस की हालत क्या है, सबके सामने है। दो साल में छह आईपीएस बदल गए और 19 दिन में दो चल बसे। कुछ तो बिना खाता खोले पेवेलियन लौट आए। जवानों की दबंगई से थोरात उबर भी नहीं पाए थे कि सुशील पाठक की हत्या हो गई। इसके बाद अजय यादव एसपी बनें। मगर अनुभवहीनता उन्हें ले डूबी। मैनेजमेंट के युग में सत्ताधारी पार्टी के दिग्गज सांसद को भी वे मैनेज नहीं कर सकें। उल्टे सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। उसके बाद क्या हुआ, बताने की जरूरत नहीं। बिलासपुर में नए आईजी की पोस्टिंग के पहले सरकार एक बार मुहुर्त दिखवा लें तो अच्छा होगा.....पीएचक्यू को भी बिलासपुर में मृत्युंजय पाठ वगैरह कुछ करा देना चाहिए। क्योंकि, अबकी कोई विकेट गिरा तो समझिए क्या होगा? अधिकारियों का मन मचलेगा, तब भी उनकी घरवाली बिलासपुर नहीं जाने देंगी।  

रिकार्ड

बीएस मरावी नहीं रहे, मगर एक रिकार्ड जरूर वे अपने नाम कर गए.....सबसे अच्छी पोस्टिंग का। प्रमोटी आईपीएस होने के बाद भी छह जिलों के एसपी रहे। मध्यप्रदेश में दो और छत्तीसगढ़ में चार जिले.....रायपुर, बिलासपुर में एसएसपी और सरगुजा, जशपुर में एसपी। छत्तीसगढ़ में डायरेक्टर आईपीएस भी चार जिले से अधिक नहीं किए। यही नहीं, मरावी ट्रांसपोर्ट में भी रहे। ट्रांसपोर्ट में रहने का मतलब आप समझ सकते हैं। आदिवासी अफसर को ट्रांसपोर्ट में रहने का मौका शायद ही किसी राज्य में मिला हो। आईजी रेंज में भी उन्होंने सरगुजा किया और इसके बाद बिलासपुर गए थे और कयास थे, एक बार रायपुर में भी उन्हें मौका मिलेगा। मगर वक्त को यह मंजूर नहीं था।

मलाल

कहते हैं, आदमी को सब चीज नहीं मिलती। भाजपा सरकार में रिकार्ड पोस्टिंग पाने वाले बीएस मरावी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मरावी पीएचक्यू की अंदरुनी राजनीति के शिकार हो गए। इस वजह से उन्हें गलेंट्री अवार्ड नहीं मिल पाया। याद होगा, सरगुजा के आईजी रहने के दौरान नक्सली मुठभेड़ में मरावी ने बहादुरी से मोर्चा संभाला और जख्मी हुए। मगर मुठभेड़ की फर्जी कहानियां गढ़कर कई आला आईपीएस को गलेंट्री अवार्ड दिला देने वाला पीएचक्यू ने अवार्ड के लिए सरकार के पास मरावी का नाम ही नहीं भेजा। पीएचक्यू की अनुशंसा के बाद ही राज्य सरकार केंद्र को नाम भेजती है। अदम्य बहादुरी के लिए दिया जाने वाला गलेंट्री अवार्ड पुलिस का सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड माना जाता है। इस अवार्ड के मिलने पर ताउम्र एक अटेंडेंट के साथ ट्रेन के एसी टू का पास, टेलीफोन फ्री, हवाई यात्रा में रियायत, मासिक भत्ता जैसी अनेक सुविधाएं मिलती है। अपने ही वरिष्ठों के रवैये से मरावी बेहद आहत थे और सीने में गलेंट्री का मलाल लिए चले गए।

संकट

बीएस मरावी के निधन से सरकार के माथे पर बल पड़ गए हैं। आखिर, आदिवासी कोटे की भरपाई कैसे किया जाए। असल में, आदिवासी अफसरों में मरावी की सुलझे अधिकारी में गिनती होती थी। निर्विवाद तो थे ही, काम से ज्यादा उन्हें कोई मतलब नहीं रहता था। दम-खम में भी कमी नहीं थी.....रायपुर के एसएसपी रहने के दौरान उन्होंने ही बिनायक सेन को गिरफ्तार किया था। आदिवासी अधिकारियों में मरावी सरीखे अधिकारियों का टोटा है। देखा नहीं आपने, कांकेर में रोजगार गारंटी घोटाले के बाद भी सरकार ने धनंजय को सरगुजा का कलेक्टर बनाया। मगर उन्हांेने थोड़े ही दिन में ऐसा जलजला दिखाया कि सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा। मरावी जिस विभाग में रहे, वहां कोई विवाद नहीं हुआ और सरकार को कहने के लिए भी था कि हमने अहम जिम्मेदारी आदिवासी अधिकारी को दिए हैं। सरकार के रणनीतिकार अब उलझन में हैं।

सर्जरी

बजट सत्र के बाद कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलने की संभावना थी। मगर अब ग्राम सुराज तक के लिए यह टल गया है। याने अप्रैल आखिर या मई फस्र्ट वीक तक ही मान कर चलिए। तब तक राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को आईएएस अवार्ड का मामला भी क्लियर हो जाएगा। और अंदर की खबर है, छोटी लिस्ट कहीं, बड़ी लिस्ट में न बदल जाए। क्योंकि, सरकार पुअर पारफारमेंस की वजह से नए जिले के भी दो-एक कलेक्टरों को बदलने पर विचार कर रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पुलिस मुख्यालय के किस अधिकारी के चलते बीएस मरावी को गेलेंट्री अवार्ड के लिए नाम नहीं भेजा जा सका?
2. बजट सत्र निर्धारित समय से पहले समाप्त करने पर विपक्ष कैसे तैयार हो गया?

रविवार, 1 अप्रैल 2012

तरकश, 1 अप्रैल


शर्मनाक

छत्तीसगढ़ विधानसभा संसदीय मर्यादाओं के लिए जाना जाता है। 11 साल में यहां कभी कुर्सी और मेज पलटने की घटना नहीं हुई। गर्भ गृह में आने पर स्वयमेव निलंबित होने का विधान सिर्फ अपने यहां ही है। और शायद यही वजह है, राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने मुंबई विधानसभा के गोल्डन जुबली समारोह में देश के अन्य विधानसभाओं को छत्तीसगढ़ विस का अनुशरण करने की नसीहत दी थी। मगर अबकी विधानसभा में जो कुछ हुआ, उसके अच्छे संदेश नहीं गए। मर्यादाओं को लांघने में दोनों पक्षों में लगा मानों होड़ मच गई हो। राजधानी में भाजपा नेताओं की अश्लील नृत्य पार्टी का मामला उठाते हुए धरमजीत सिंह ने सीडी दिखाई तो बृजमोहन अग्रवाल ने आवेश में ऐसी टिप्पणी कर दी कि लोग आवाक रह गए। अब धरमजीत कहां चूकने वाले थे......नहले पर दहला जड़ दिया। दर्शक दीर्घा में स्कूल-कालेज की छात्राएं बैठी थी। सदन में महिला विधायक तो थीं हीं, कार्यवाहियों को नोट करने वाली विधानसभा की महिला कर्मी भी थी। नजरें नीची करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। खुद स्पीकर भी भौंचक रह गए। उन्होंने फौरन पूरे प्रसंग को विलोपित करा दिया। विलोपित न होता तो भी वह छपने लायक नहीं था। ऐसे में संसद और विधानसभाओं के बारे में अरबिंद केजरीवाल का कथन गलत प्रतीत नहीं होता।  

क्या होगा?

कांग्रेस में एका की जितनी बातें की जा रही, गुटीय खाई उतनी ही बढ़ती जा रही है। बजट सत्र में लोग इसे महसूस भी कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है, विधायक दल एक नहीं, दो-तीन हो गया है। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे, मोहम्मद अकबर और धरमजीत एक साथ। दूसरी ओर अजीत जोगी, शिव डहरिया, अमरजीत भगत और कवासी लखमा। नंदकुमार पटेल का अपना अलग। सत्र के दौरान पटेल का दिल्ली जाना भी खाई बढ़ाने का ही काम किया। विधानसभा की लाबी में कांग्रेस विधायक ही चुटकी लेते रहे, सीएम दिल्ली से तय होता है, इसलिए पटेलजी अभी से दिल्ली दौरा तेज कर दिए हैं। और भी कई तरह की बातें। दूसरी झलक देखिए, विभागीय चर्चा पर जवाब देते समय मुख्यमंत्री ने पटेल पर एक टिप्पणी की, उस समय किसी भी सदस्य ने उसका विरोध करना जरूरी नहीं समझा। जबकि, इस दौरान सदन में विपक्ष के लगभग सभी वरिष्ठ विधायक बैठे थे। रविंद्र चैबे से लेकर अकबर, धरमजीत तक। मगर विपक्षी विधायकों को अध्यक्षजी का इनसल्ट होने का अहसास अगले दिन हुआ। 19 घंटे बाद। प्रश्नकाल में धरमजीत सिंह ने इस मामले को उठाया। कांग्रेस के ही एक विधायक बताते हैं, पटेल बड़े क्षुब्ध थे और रात में कई विधायकों को अपनी भावना से अवगत कराया। जाहिर है, पार्टी में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। और अजीत जोगी राज्यपाल बनकर चले भी जाएं तब भी पार्टी की स्थिति सुधरने की उम्मीद नहीं दिखती।

मंत्री घिरे

जवाब तैयार करने में अफसरों की लापरवाही की वजह से सदन में गृह मंत्री ननकीराम कंवर और राजस्व मंत्री दयालदास बघेल की जमकर भद पिटी। कोरबा में लेंको की जनसुनवाई पर ध्यानाकर्षण में गृह एवं पुलिस महकमे के अधिकारियों ने जो जवाब तैयार किया, उसमें कंवर फंस गए। जवाब में लिखा था, ग्रामीणों ने फोर्स पर पथराव किया और उसमें धारा लगा थी, डकैती की। अकबर ने उसे पकड़ लिया। अब काटो तो खून नहीं वाला हाल था। इसी तरह दुर्ग के धमधा में एक सीमेंट प्लांट को जमीन देने के मामले में बघेल ने जवाब पढ़ा, गड़बड़ी हुई है और एसडीओ प्रथम दृष्टया दोषी हैं। और कार्रवाई के लिए कलेक्टर को लिखा गया है। विपक्ष ने घेरा, एसडीएम को सरकार जब प्रथम दृष्टया दोषी मान रही है तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की। अधिकारी जवाब तैयार करते हैं और मंत्रीजी लोग बिना दिमाग लगाए उसे पढ़ देते हैं, तो ऐसा होगा ही।   

वाया होम गार्ड

यह महज संयोग हो सकता है मगर यह जारी रहा तो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी संतकुमार पासवान को डीजीपी बनने का मौका मिल सकता है। इससे पहले, वीके दास से लेकर अशोक दरबारी और अब अनिल नवानी, सभी वाया होम गार्ड ही डीजीपी बनें। याने पुलिस प्रमुख बनने के पहले होमगार्ड में रहे। पासवान भी अब होमगार्ड में पहुंच गए हैं। वैसे 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद पासवान को होमगार्ढ और नवानी को जेल मिला था। मगर दो दिन में ही आर्डर चेंज कराके नवानी होमगार्ड चले गए थे। बहरहाल, सीनियरिटी में नवानी के बाद पासवान ही हंै। फिर छत्तीसगढ़ में लंबी सेवा भी दी है। पुराने रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव जिले के एसपी, बस्तर के आईजी, इंटेलिजेंस चीफ.....और भी कई। ऐसे में नवंबर में नवानी के रिटायर होने के बाद पासवान का दावा तो बनता ही है। 

मेहरबानी

छत्तीसगढ़ का दोहन करने में बड़े आईएएस अधिकारी भी पीछे नहीं है। 87 बैच के आईएएस एसवी प्रभात राज्य बनने के बाद साल भर से अधिक यहां नहीं रहे होंगे। वो भी दो-तीन किश्तों में। दो-तीन महीने रहने के बाद जुगाड़ लगाकर हमेशा डेपुटेशन पर निकल गए। अगले महीने उनका रिटायरमेंट है और खबर है, इस महीने या अगले महीने मध्य तक तक यहां आ जाएंगे। वे इसलिए नहीं आ रहे हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ उन्हें याद आने लगा है। वे आ रहे हैं प्रमोशन पाकर एसीएस बनने के लिए। प्रींसिपल सिकरेट्री में अभी उनका 67 हजार का पे स्केल है, एसीएस बनते ही 80 हजार हो जाएगा। उसके बाद जिंदगी भर की मौज। मगर छत्तीसगढ़ सरकार भी गजब करती है। एक तरफ डेपुटेशन से न लौटने वाले अधिकारियों को पेंशन आदि रोकने पर विचार कर रही है और दूसरी ओर प्रभात का लाल जाजम बिछा कर इंतजार कर रही है। वे आएं और आते ही उन्हें कितने जल्द एसीएस बना दें। छत्तीसगढ़ से भागे-भागे फिरने वाले अधिकारी के प्रति आखिर, इतनी मेहरबानी क्यों? ऐसा ही रहा तो सुब्रमण्यिम राज्य बनने के पहले से दिल्ली में हैं और वे सीएस बनने के लिए छत्तीसगढ़ लौटेंगे। वैसे भी, सुब्रमण्यिम का पीएमओ में फिर डेपुटेशन मिल गया है। 

कलेक्टरों की शामत

बिना सूचना दिए जिला छोड़ना कलेक्टरों को अब भारी पड़ सकता है। इस बारे में राज्य सरकार एक सख्त फारमान जारी करने जा रही है। सीएस के यहां से नोटशीट एपूव्ह हो गया है। और दो-एक दिन में आर्डर निकल जाएगा। इसमें कलेक्टरों से कहा गया है, चीफ सिकरेट्री या कमिश्नर को बताए बगैर जिला छोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। सरकार को अरसे से शिकायत मिल रही थी कि जिला छोड़कर कलेक्टर दो-दो दिन गायब रहते हैं। खासकर नए जिले के कलेक्टर। मुंगेली के कलेक्टर के खिलाफ भी शिकायत थी, जो शाम को बिलासपुर  चले जाते थे।  

अंत में दो सवाल आपसे

1 नंदकुमार पटेल पर मुख्यमंत्री की टिप्पणी का विरोध जताने में कांग्रेस विधायक      दल को 19 घंटे कैसे लग गए?
2 आनंद तिवारी संविदा पाने में कामयाब हो गए मगर विश्वरंजन कैसे चूक गए?