रविवार, 28 अप्रैल 2019

तीन टिकिट….

28 अप्रैल 2019
सूबे में 94 बैच के तीन आईपीएस हैं। जीपी सिंह, एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता। तीनों का एडीजी प्रमोशन लटका हुआ है….या लटकाया गया है भी बोल सकते हैं। जबकि, प्रतिभा के मामले में तीनों एक से बढ़कर एक हैं। कल्लूरी के बारे में बताने की जरूरत नहीं….उन्हें कौन नहीं जानता। ईओडब्लू से हटने की इच्छा व्यक्त की और उन्हें ट्रांसपोर्ट जैसा महकमा मिल गया। जीपी सिंह बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग, तीनों रेंज के आईजी रह चुके हैं। एक समय तो वे रायपुर आईजी के साथ ही पीएचक्यू के सबसे अहम डिपार्टमेंट फायनेंस एंड प्रोवजनिंग संभाल रहे थे। नई सरकार में वे आईजी ईओडब्लू हैं। रही बात हिमांशु की, तो जीरम कांड के समय वे बस्तर के आईजी थे और अब वीवीआईपी रेंज दुर्ग के आईजी हैं। ऐसे में सवाल तो उठते ही हैं, इतने तेजस्वी अफसरों का प्रमोशन आखिर क्यों नहीं हो पा रहा है। हालांकि, इसका सही जवाब सरकार ही दे पाएगी। अलबत्ता, यह सही है कि तीनों को एडीजी बनाने की फाइल पिछले तीन महीने से एक टेबल से दूसरे टेबल घूम रही है। इन्हीं तीनों के साथ एसपी से डीआईजी और डीआईजी से आईजी प्रमोशन की फाइल चली थी। उनके आदेश कबके जारी हो चुके हैं। हालांकि, तीन टिकिट, महाविकट वाला हालात 88 बैच को डीजी बनाने के समय भी रहा। उस बैच में भी तीन आईपीएस थे। और, 10 महीने के इंतजार के बाद उनका प्रमोशन हो पाया। बहरहाल, लोकसभा चुनाव होने के बाद पीएचक्यू के गलियारों में एडीजी प्रमोशन की चर्चाएं फिर शुरू हो गई है। अब देखना है, सरकार इनका कब तक आर्डर निकालती है।

एक अनार सौ….

लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस विधायकों की नजर अब मंत्री पद पर टिक गई है। सरकार के गठन के समय भूपेश मंत्रिमंडल में एक पद खाली रखा गया था। इसके पीछे रणनीति शायद यही रही कि एक पद रिक्त रखने से लोकसभा चुनाव में विधायक काम अच्छे से करेंगे। अब चुनाव निबट गया है तो जाहिर है दावेदारों की उत्सुकता फिर बढ़ गई है। सत्यनारायण शर्मा, अमितेष शुक्ल, लखेश्वर बघेल, मनोज मंडावी तो हैं ही, तगड़े दावेदारों में अमरजीत भगत का नाम भी उपर है। अमरजीत को मौका मिल भी गया होता मगर सरगुजा महल इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अमरजीत की लाख कोशिशों के बाद भी महल का विनम्र दिल पसीज नहीं रहा। अमरजीत अब राहुल गांधी के लोकसभा क्षेत्र अमेठ जा रहे हैं। शायद राहुल की नजर में आ जाएं। चलिये, शायद इससे भी काम बन जाएं।

कुछ पूजा-पाठ भी

सीएम भूपेश बघेल को लगता है, किसी अच्छे आचार्य से कुछ पूजा-पाठ कराना चाहिए। मंत्रिमंडल गठन के बाद कोई-न-कोई घटनाएं हो जा रही। अभी तक दो बार मंत्री प्रेमसाय सिंह और एक बार मोहम्मद अकबर के बंगले के पास आग लग चुकी है। वरिष्ठ मंत्री रविंद्र चौबे फिलहाल आईसीयू में हैं। एक और मंत्री डाक्टर के नियमित संपर्क में हैं। दरअसल, शपथ के समय मलमास लग गया था। मलमास के कुप्रभाव दूर करने के कुछ उपाय करने चाहिए।

ग्रह-नक्षत्र का खेल

डीएम अवस्थी के पुलिस चीफ बनने के बाद भी ग्रह-नक्षत्र उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। दो महीने तक वे बेहद परेशान रहे। लेकिन, अब देखिए। हर जगह कामयाबी। बस्तर में सब इंस्पेक्टर नक्सलियों के चंगुल से निकल कर आ गया। विधानसभा चुनाव बिना किसी विघ्न के निबट गया। बिलासपुर में विराट के किडनेपिंग की गुत्थी सुलझ गई। गिरधारी नायक भी दो महीने बाद रिटायर हो जाएंगे। इसे ही कहते हैं, ग्रह-नक्षत्र का खेल!

पांचवा किडनेपिंग केस

लो प्रोफाइल में रहने वाले बिलासपुर आईजी कई बार बड़ा काम कर जाते हैं। दुर्ग आईजी रहने के दौरान अभिषेक मिश्रा हत्याकांड जैसे हाईप्रोफाइल केस को सुलझाने में देर नहीं लगाई थी। बिलासपुर के विराट किडनेपिंग में भी उन्होंने न्यू टेक्नालाजी के जरिये ऐसा जाल बिछाया कि अपहरणकर्ता पुलिस के हत्थे चढ़ गए। प्रदीप का किडनेपिंग का केस सुलझाने का यह पांचवा मामला होगा। दुर्ग आईजी और रायपुर आईजी रहने के दौरान भी उन्होंने दो-दो केस सुलझाए थे।

कितनी सीटें?

लोकसभा चुनाव निबटने के बाद सियासत हो या नौकरशाही, बिजनेस, व्यवसाय या फिर आम वर्ग, सब जगह एक ही सवाल है, 11 में से किसको कितनी सीटें। पिछले तीन चुनाव से बीजेपी को एकतरफा दस सीटें मिल रही थीं। और, कांग्रेस को सिर्फ एक। मगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस तरह ऐतिहासिक जनादेश मिला, लगा कि ग्यारह की ग्यारह सीटें कांग्रेस को मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं। बस्तर और कांकेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रभावी रही भी। लेकिन, तीसरे चरण के आते-आते कांग्रेस नेता भी मानने लगे, स्थिति बदल रही है। सरकार में दूसरे नम्बर के मंत्री टीएस सिंहदेव ने उपर से सियासी बयान देकर कांग्रेस के कैंप में बेचैनी बढ़ा दी कि सात से कम सीटें आईं तो कांग्रेस की हार मानी जाएगी। उनके इस बयान के निहितार्थ समझे जा सकते हैं।

मोदी और भूपेश

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस के बीच नहीं, असली लड़ाई नरेंद्र मोदी और भूपेश बघेल के बीच रही। सूबे में 15 साल तक राज करने वाले भाजपा कहीं नहीं थी….लोग न भाजपा का नाम ले रहे थे और न उसके सिंबल कमल का। शहरी इलाकों में वोट की बात पर लोग छूटते ही बोलते थे, मोदी को पीएम बनाना है। फलां कंडिडेट? कंडिडेट को नहीं जानते मोदी को वोट दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस जरूर भारी पड़ी। वो भी इसलिए नहीं कि कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनानी है। कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत थी, सीएम भूपेश के दो महीनों में ताबड़तोड़ फैसले। किसानों का कर्जा माफी से लेकर धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने जैसे फैसले से ग्रामीण इलाकों में प्रभाव तो पड़ा था। वैसे, भूपेश ने बड़ी चतुराई से लोकसभा चुनाव को नेशनल इश्यू के आधार पर वोट मांगने की बजाए उसे राज्य सरकार के जनोपयोगी फैसलों से जोड़ दिया। लास्ट फेज में चुनावी माहौल ने जिस तरह से करवट बदला था, कांग्रेस के लीडर भी मानते हैं, दो महीने के फैसले नहीं होते तो मुश्किल हो जाती।

आईएएस का ये हाल!

रायगढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी पर खनन माफिया अमृत पटेल और उसके गुर्गां ने न केवल हमला किया बल्कि जेसीबी के ठोकर से उनकी कार को डैमेज कर दिया। जेसीबी से उन्हें कुलचने की कोशिश भी की गई। पुलिस ने प्राणघातक हमले का केस भी दर्ज किया है। लेकिन, पखवाड़ा भर से उपर हो गए आरोपी तक पुलिस अभी पहुंच नहीं पाई है। और, ऐसी कोई कोशिश दिख भी नहीं रही कि लगे कि पुलिस ईमानदारी से पकड़ने में जुटी है। हो सकता है, पुलिस की कोई मजबूरियां हो। अलबत्ता, आश्चर्य आईएएस लॉबी को देखकर हो रहा है। भानुप्रतापपुर के एक आईएएस एसडीएम के खिलाफ चक्का जाम हुआ था तो आईएएस अफसर मंत्रालय में लाल सलाम बोलते हुए सीएम सचिवालय पहुंच गए थे। इस मामले में एक लाइन का बयान भी जारी नहीं हुआ है। हो सकता है, पुलिस की तरह की ही सो कॉल मजबूत आईएएस लॉबी की अपनी कोई मजबूरियां हो।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के किस रेंज का आईजी प्रति क्षण गरीबी से लड़ रहा है? 
2. भूपेश सरकार का बारहवां मंत्री कौन बनेगा?

रविवार, 21 अप्रैल 2019

मंत्रियों की प्रतिष्ठा

21 अप्रैल
भूपेश बघेल सरकार ने लोकसभा इलाके की दृष्टि से मंत्रियों को प्रभारी मंत्री बनाए थे और उन्हें ही चुनाव संचालन की कमान सौंपी गई है। मसलन, ताम्रध्वज साहू को दुर्ग, टीएस सिंहदेव को सरगुजा, रविंद्र चौबे को बिलासपुर, मोहम्मद अकबर को राजनांदगांव। तो भाजपा ने इनके खिलाफ अपने पूर्व मंत्रियों को एक-एक लोकसभा सीट का चुनाव संचालक बनाया है। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, बिलासपुर में अमर अग्रवाल, दुर्ग में प्रेमप्रकाश पाण्डेय, राजनांदगांव में राजेश मूणत, महासमुंद में अजय चंद्राकर। इसी तरह दीगर मंत्रियों को भी अन्य लोस सीटों का चुनाव संचालक बनाया है। कांग्रेस से सिर्फ दो ही नाम बड़े हैं। रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर। बाकी के सामने 15 साल वाले मंत्री हैं। महासमुंद में अजय चंद्राकर के सामने रुद्र गुरू, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल के सामने शिव डहरिया। जाहिर है, लोकसभा चुनाव में मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी।

पूत कपूत तो….

एक रिटायर नौकरशाह ने राजभवन में पोस्टेड रहने के दौरान अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए बेटे को यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनवा दिया। लेकिन, बेटे ने अपने कृत्य से पिता का ही नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेसी बिरादरी को शर्मसार कर दिया। अपने ही डिपार्टमेंट की छात्रा से एकतरफा इश्क फरमाने एवं छेड़छाड़ के आरोप में यूनिवर्सिटी ने उसे सस्पेंड कर दिया है। पुलिस ने उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया है। बताते हैं, बेटे की आदत शुरू से बिगड़ैल वाली रही। अफसर जब एक जिले में कलेक्टर थे, तो वहां एक लड़की को लेकर दस दिन फरार रहा। पुलिस में रिपोर्ट भी हुई। लेकिन, उस समय निर्भया कांड नहीं हुआ था….इसलिए, उतनी जागरुकता नहीं थी। फिर, कलेक्टर का मामला था। इसलिए, नौकरशाही ने उसे बचा लिया था। यही नहीं, पिता के प्रिंसिपल सिकरेट्री रहने के दौरान बेटे ने सरकारी गाड़ी को 120 किमी की रफ्तार में डिवाइडर पर चढ़ा कर ऐसा डैमेज किया था कि शोरुम वाले ने हाथ खड़ा कर दिया था। हालांकि, अफसर अब रिटायर हो गए हैं। फिर भी, ब्यूरोक्रेसी की ओर से अफसर पुत्र को बचाने की कोशिशें शुरू हो गई है….यह बोलकर कि रिटायर हुआ तो क्या हुआ, था तो डायरेक्ट आईएएस। कमाल है।

सरकार लखनऊ में

लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में सबसे अधिक डिमांड छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल की है। यूपी के साथ ही बिहार, उडीसा और राजस्थान में स्टार प्रचारक के रूप में उनके कार्यक्रम तय कर दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ में 23 अप्रैल को चुनाव खतम हो जाएगा। इसके अगले दिन ही वे अपनी टीम के साथ यूपी रवाना हो जाएंगे। और, 24 अप्रैल से लेकर 18 मई तक वे लखनऊ में रहेंगे। पता चला है, प्रियंका गांधी ने उन्हें खासतौर पर लखनउ में ही कैंप करने कहा है। बीच-बीच में वे बिहार, उड़ीसा समेत दीगर राज्यों में प्रचार करने जाएंगे। लेकिन, मुख्य रूप से 25 दिन वे रहेंगे लखनऊ में। सीएम के साथ सोशल मीडिया से लेकर पार्टी पदाधिकारियों की पूरी टीम उनके साथ रहेगी। हालांकि, प्रियंका गांधी ने ऐसे दलित मंत्रियों को भी बुलाया है, जिनकी जाति के लोग यूपी में हैं। मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा है नहीं। यहां दलित में दोनों मंत्री सतनामी समुदाय से आते हैं। और, यूपी में सतनामी हैं नहीं। मुख्यमंत्रियों में भूपेश बघेल को मौका मिलने के पीछे एक वजह यह है कि यूपी, बिहार में कुर्मी जाति के वोटरों की संख्या ठीक-ठाक हैं। कांग्रेस आलाकमान का मानना है, अपने देशी अंदाज के भाषण से वे ओबीसी वर्ग को भी प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस के पास ऐसे चेहरे की कमी है, जो ओबीसी हो, लच्छेदार बोल लेता हो और अहम पद पर भी हो। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री खत्री पंजाबी हैं। लिहाजा, वोट की दृष्टि से उनका यूपी में कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत वक्ता अच्छे नहीं हैं। इसलिए, भूपेश बघेल को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि, आवश्यक सरकारी फाइलों को निबटाने के लिए मुख्यमंत्री बीच-बीच में रायपुर आते रहेंगे मगर कम समय के लिए।

राजनांदगांव अपवाद

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में सिर्फ राजनांदगांव एक अपवाद है, जहां के मतदाताओं ने अपने सांसद पर दूसरी बार भरोसा नहीं किया। मोतीलाल वोरा जैसे नेता को भी 1999 में हार का सामना करना पड़ा था। धरमलाल गुप्ता से लेकर अशोक शर्मा, शिवेंद्र बहादुर सिंह, देवव्रत सिंह को भी एक बार सांसद रहने के बाद अगली बार उन्हें सीट गंवानी पड़ी। राजनांदगांव के अलावे दस सीटों पर कांग्रेस, भाजपा के नेताओं को वहां के मतदाताओं ने कई-कई बार लोकसभा में भेजने में गुरेज नहीं किया। बस्तर से बलीराम कश्यप चार बार सांसद रहे। वहीं, कांकेर से सोहन पोटाई चार बार, रायपुर से रमेश बैस सात बार, दुर्ग से ताराचंद साहू चार बार, बिलासपुर से पुन्नूराम मोहले चार बार, रायगढ से विष्णुदेव साय चार बार, जांजगीर से चरणदास महंत और कमला पाटले दो-दो बार, सरगुजा से खेल साय तीन बार। इनके अलावे रायपुर और महासमुंद से स्व0 विद्याचरण शुक्ल आठ बार सांसद रहे। हालांकि, अब ये गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। क्योंकि, दोनों ही पार्टियों ने अपने अधिकांश पुराने चेहरों को बदल दिया है। 22 में से सिर्फ तीन ही दावेदार ऐसे हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने या सांसद में जाने का मौका मिला है। इनमें जांजगीर से बीजेपी से गुहाराम अजगले एक बार सांसद रह चुके हैं। महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी धनेंद्र साहू एक बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि, वे हार गए थे। सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी खेल साय ऐसे नेता हैं, जिन्हें तीन बार लोकसभा में जाने का मौका मिल चुका है।

ब्यूरोक्रेट्स और विदेश

सरकारी खर्चे पर साल में कम-से-कम एक बार विदेश हो आना नौकरशाहों का शगल रहा है। पिछली सरकार में कुछ ब्यूरोक्रेट्स साल में दो-दो फॉरेन ट्रिप कर डाले। यहां तक कि बाहर जाने वाली टीमों में एक-एक कर कई कलेक्टरों को भी सरकार ने विदेश घूमवा दिया। लेकिन, पिछले साल लोक सुराज के बाद अफसरों के विदेश जाने पर ऐसा ब्रेक लगा कि वो हट ही नहीं रहा है। असल में, लोक सुराज के दौरान रमन सरकार ने अफसरों के विदेश दौरे पर रोक लगा दी थी। इसके बाद विकास यात्रा और फिर विधानसभा चुनाव आ गया। चुनाव के बाद सूबे में आए सियासी सुनामी में सब कुछ बदल चुका था। अब, अफसर अपनी गद्दी बचाएं या विदेश जाएं? किसी की हिम्मत नहीं पड़ी….फॉरेन जाने की सोचे भी। झक मारकर न्यू ईयर भी छत्तीसगढ़ में ही सेलिब्रेट करना पड़ा। न्यू ईयर के बाद ट्रांसफर, पोस्टिंग की झड़ी लग गई। फिर, नई सरकार से सेटिंग का भी तो यही समय था। सेटिंग ठीक से हुई नहीं कि लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया। और, अब सुनने में आ रहा कि भूपेश सरकार अफसरों को तफरी करने के लिए विदेश नहीं भेजने वाली। याने नौकरशाहों के अच्छे दिन चले गए।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. दो मंत्रियों के नाम बताएं, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं?
2. दुर्ग के लोकसभा प्रत्याशी प्रतिमा चंद्राकर ने मंत्री ताम्रध्वज साहू के घर पर जाकर ऐसा क्या किया कि साहू वोटर नाराज हो गए?

रविवार, 14 अप्रैल 2019

छत्तीसगढ़ी प्रेम

14 अप्रैल
भूपेश बघेल के सीएम बनने से ये तो हुआ है कि सूबे में छत्तीसगढ़ी को अहमियत मिलने लगी है। अल सुबह नगर निगम की कचरा उठाने वाली गाड़ियां से अब हिन्दी सांग गायब हो गए हैं। छत्तीसगढ़ी शुरू हो गई है….कचरा वाला गाड़ी आए हे, कचरा ले जाए…। प्रेस कांफ्रेंसों में छत्तीसगढ़ी में सवाल हो रहे हैं। तो नौकरशाह भी पीछे नहीं हैं। वे भी अब छत्तीसगढ़ी पर जोर दे रहे हैं। दरअसल, इस समय दिक्कत यह है कि भूपेश बघेल किसी को नजदीक फटकने दे नहीं रहे। ऐसे में, कुछ अधिकारियों ने सीएम के नजदीक जाने के लिए छत्तीसगढ़ी बोलने का अभ्यास चालू कर दिया है। नौकरों एवं ड्राईवरों को बकायदा कहा जा रहा है, वे छत्तीसगढ़ी में ही बात करें। नौकर हैरान हैं, साब को ये क्या हो गया है….साब तो पहले उनकी बात सुनकर नाक-भौं सिकोड़ते थे। चलिये, ये आइडिया उनका शायद काम आ जाए….।

नो टेंशन

विधानसभा चुनावों में कलेक्टर, एसपी को काफी टेंशन रहता है। रुलिंग पार्टी का प्रत्याशी अगर हार गया और फिर से उस पार्टी की सरकार बन गई तो उसकी खैर नहीं। और, सरकार बदल भी गई और वहां अगर नई सरकार का प्रत्याशी हारा तो भी कुर्सी गई समझिए। विधानसभा चुनाव में विपक्ष के प्रत्याशी जिन-जिन जिलों से जीते, आखिर उनमें जांजगीर के कलेक्टर नीरज बंसोड़ ही अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। मगर लोकसभा चुनाव में चूकि राज्य की सत्ता नहीं बदलती, इसलिए उन्हें कोई टेंशन नहीं रहता। फिर, नतीजों के आधार पर कलेक्टरों के कामकाज का मूल्यांकन भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि, दो महीने पहिले अधिकांश की पोस्टिंग हुई है। काम करके दिखाने के लिए ये समय काफी कम होता है। ऐसा ही कुछ एसपी के साथ भी होता है।

विधायकों की मुश्किलें

लोकसभा चुनाव को लेकर ब्यूरोक्रेट्स को कोई फिकर नहीं है मगर सत्ताधारी पार्टी के विधायकों के तनाव के बारे में पूछिए मत! विधानसभा चुनाव से अभी संभले नहीं कि 11 की 11 सीटें देने की चुनौती। जाहिर है, जिस विधायक के इलाके में अगर पार्टी का पारफारमेंस गड़बड़ाया तो उनका आगे का रास्ता ब्लॉक हो जाएगा। लोकसभा चुनाव के बाद बोर्ड, आयोगों में नियुक्तियां होनी है। लोकसभा चुनाव के नतीजों पर बहुत कुछ निर्भर करेगा, दो दर्जन से अधिक बोर्ड, आयोगों में किन विधायकों को बिठाया जाए। ऐसे में, टेंशन रहना स्वाभाविक है।

अब खैर नहीं!

लोकसभा चुनाव के बाद गाड़ियों के शौकीन नौकरशाहों की मुश्किलें बढ़ सकती है। वित्तीय संकट का सामना रही सरकार की नोटिस में ये बात आई है कि अधिकांश नौकरशाह तीन-तीन, चार-चार गाड़ियां रखे हुए हैं। नियमानुसार उन्हें स्टेट गैरेज से एक गाड़ी मिलती है। लेकिन, अफसरों ने डायरेक्ट्रेट की गाड़ियों को भी अपने बीवी-बच्चों के लिए रख ही लिया है, उपर से किराये की गाड़ी भी ले लिया है। सीएम के एक नजदीकी ने बताया कि चुनाव के बाद सरकार इस पर संज्ञान लेगी। हालांकि, गलती अफसरों की भी नहीं है। ब्यूरोक्रेसी में गाड़ी और बंगला, दो से ही स्टेट्स और प्रभाव का पता चलता है। अगर बंगले में पुणे, अहमदाबाद का इंटिरियर ने काम नहीं किया है और गाड़ी बढ़ियां नहीं है तो अफसर बिरादरी में उसकी कोई हैसियत नहीं होती।

होम कैडर

यह पहला मौका होगा, जब यूपीएससी मेंं सलेक्ट छत्तीसगढ़ के दो आईएएस को होम कैडर मिलेगा। दंतेवाड़ा की नम्रता जैन और बिलासपुर के वर्णित नेगी को यह लगभग तय हो गया है कि उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर मिलेगा। इससे पहिले ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक बैच के दो आईएएस को होम कैडर मिला हो। वैसे, 13 साल बाद ये भी हुआ कि यूपीएससी में अंडर फिफ्टीन में छत्तीसगढ़ से दो को अवसर मिला। नम्रता को 12वां और नेगी को 13वां रैंक मिला है। इससे पहिले 2006 में बिलासपुर की आनंदिता मित्रा ने देश में आठवां और महिलाओं में पहला पोजिशन हासिल किया था। आनंदिता को पंजाब कैडर मिला था।

ब्यूरोक्रेट्स और चुनाव

छत्तीसगढ़ से भले ही किसी नौकरशाह को लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला लेकिन, देश में इस बार बड़ी संख्या में रिटायर आईएएस, आईपीएस चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। हालांकि, नौकरशाहों के साथ दिक्कत यह होती है कि पूरी नौकरी करने के बाद रिटायरमेंट के बाद वे राजनीति ज्वाईन करते हैं और वो भी जागते हैं पांच साल में एक बार। सिर्फ चुनाव के समय। यही वजह है कि राजनीतिक उन्हें पसंद नहीं करते तो जनता भी उन्हें आमतौर पर खारिज कर देती है। छत्तीसगढ़ में रिटायर नौकरशाही से जितने भी नाम चुनावी चर्चे में आते हैं, सबके साथ यही चीजें हैं। ओपी चौधरी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए और लगातार सक्रिय होकर राज्य का दौरा कर रहे हैं। बाकी, सभी फिर अब 2023 में सक्रिय होंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बर्खास्त हुए किस आईएएस की जल्द ही नौकरी में वापसी हो सकती है?
2. रिटायर आईएएस सरजियस मिंज को कांग्रेस ने रायगढ़ से टिकिट क्यों नहीं दिया?

फार्म में डीजीपी

डीजीपी डीएम अवस्थी सरकार की पहली पसंद कतई नहीं थे। फर्स्ट च्वाइस गिरधारी नायक थे। मगर उनका दुर्भाग्य कहिए कि छह महीने रिटायरमेंट वाला पेंच आड़े आ गया। और, सरकार को डीएम को पुलिस प्रमुख बनाना पड़ गया। डीएम को पुलिस महकमा सौंपने के बाद भी सरकार के साथ सब कुछ ठीक नहीं था। तीन साल सीनियर नायक को पीएचक्यू में बिठाने से संदेश यही गए कि सरकार प्रभारी डीजीपी से खुश नहीं है। लेकिन, पूर्णकालिक डीजीपी बनने के बाद कानपुर के ब्राम्हण अफसर ने अपने काम से सरकार को खुश कर दिया है। कभी रिव्यू, कभी मीटिंग, कभी वीडियोकांफें्रसिंग तो कभी पुलिस कर्मियों का हौसला अफजाई करने के लिए उनकी क्लास। कांग्रेस के घोषणा पत्र में चिट फंड निवेशकों को पैसा वापस दिलाने एक कमेटी महाराष्ट्र भेज दी। सरकार के करीबी अफसर कहते हैं, डीजी अद्भूत उर्जा के साथ काम कर रहे हैं। मगर डीएम ने इसी तरह अपनी कुर्सी मजबूत कर ली तो जरा सोचिए! डीजीपी के उन दावेदारों पर क्या गुजरेगी? जाहिर है, डीएम अगर 2023 तक पीच पर जमे रह गए तो बीके सिंह, संजय पिल्ले, आरके विज, मुकेश गुप्ता और अशोक जुनेजा को बिना डीजीपी बने रिटायर हो जाना पड़ेगा।

छत्तीसगढ़ मॉडल

छत्तीसगढ़ का शराब मॉडल मध्यप्रदेश भी एडाप्ट करना चाहता है। वहां अभी ठेका सिस्टम में शराब की बिक्री होती है। लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार की शराब बेचने से हो रही आमदनी से कमलनाथ सरकार की आंखों में चमक आ गई है। हाल ही में वहां की एक टीम इसका स्टडी करने छत्तीसगढ़ आई थी। टीम ने यहां एक्साइज सिकरेट्री डा0 कमलप्रीत से मिलने के साथ ही पूर्व आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल से भी मुलाकात की। अमर ने शराब लॉबी से लोहा लेकर ठेका सिस्टम खतम कराया था। बहरहाल, ठेका सिस्टम से सरकार को 2016-17 में 3200 करोड़ मिले थे वहीं, नए सिस्टम से 2017-18 में 4 हजार करोड़। और इस साल यह बढ़कर 4500 करोड़ पहुंच गया है। याने मोटे तौर पर करीब आठ सौ एक हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा था ठेका सिस्टम में। ये पूरा पैसा ठेकेदारों की जेब में जाता था। अलबत्ता, ठेकेदार इसमें नेता, मंत्री, सरकार, अफसर, पुलिस, मीडिया का बखूबी ध्यान रखते थे। अब मध्यप्रदेश गवर्नमेंट की रुचि इसलिए बढ़ी है कि वह छत्तीसगढ़ से है तीन गुना बड़ा। लेकिन, पिछले साल वहां शराब से रेवन्यू आया था नौ हजार करोड़। जबकि, छत्तीसगढ़ का था 4 हजार करोड़। कायदे से वहां बारह हजार करोड़ रेवन्यू आना था। याने तीन हजार करोड़ का खेल हो जा रहा। कर्जमाफी के चलते एमपी गवर्नमेंट की फायनेंसियल स्थिति टाईट चल रही है। ऐसे में, जल्द ही वह खुद शराब बेचने का ऐलान कर दें तो अचरज में मत पड़ियेगा। और, एमपी में अगर सरकार शराब बेचने लगी तो छत्तीसगढ़ में भी शराब बंद हो जाएगा, ऐसा मत सोचिएगा। आखिर शराब से अबकी मिले 4500 करोड़ की भरपाई कहां से होगी।

भाजपा को नुकसान

रमन सरकार के एंटीइकाम्बेंसी का असर कम करने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सभी दसों सांसदों का टिकिट काटते हुए नए चेहरों पर दांव लगाया है। जाहिर है, यह अभूतपूर्व और जोखिम भरा फैसला है। अभूतपूर्व इसलिए कि न इससे पहिले कभी ऐसा हुआ है और न ही इस बार बीजेपी ने दीगर राज्यों में ऐसा प्रयोग किया है। लगता है, तीन महीने पहिले हुए विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा की जिस तरह हार हुई, उसने दिल्ली के नेताओं को हिला दिया। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय और प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी भी अपनी टिकिट नहीं बचा पाए। फिर भी भाजपा के विरोधियों का भी मानना है कि सब धान बाईस पसेरी की तर्ज पर सभी सांसदों की टिकिट काटने की बजाए तीन-चार सांसदों को अगर रिपीट किया जाता तो बीजेपी के लिए स्थिति ज्यादा मुफीद होती।

छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य

बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी आधा दर्जन से अधिक नए उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। स्थिति यह है कि दोनों ही प्रमुख पार्टियों के 22 में से तीन ही प्रत्याशी ऐसे हैं, जिन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा है या फिर सांसद पहुंचने में कामयाब हुए हैं। इनमें कांग्रेस से खेल साय, और भाजपा के गुहाराम अजगले लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। धनेंद्र साहू लोकसभा का चुनाव लड़े हैं, लेकिन जीत नहीं पाए। बाकी, 19 फ्रेश चेहरे हैं। 15 तो विधायक का चुनाव भी नहीं लड़े हैं। जाहिर है, इस बार ऐसे अल्पज्ञात चेहरे पार्लियामेंट में पहुंचेंगे, जिनमें से कई को तो उनके ब्लॉक और जिले के लोग नहीं जानते। हालांकि, सियासत में नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए। लेकिन, एक अनुपात में हो, तो ज्यादा बेहतर होगा। वैसे भी छत्तीसगढ़ के साथ यह विडंबना रही है कि विद्याचरण शुक्ल को छोड़ दे ंतो यहां से ऐसा कोई प्रतिनिधित्व नहीं हुआ, जो दिल्ली में सूबे की आवाज उठा सकें और, उसे वाजिब हक दिला सके। सात बार के सांसद रमेश बैस दिल्ली में अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाए और न ही केंद्रीय मंत्री रह चुके चरणदास महंत और विष्णुदेव साय ने राज्य के लिए ऐसा कुछ किया कि उन पर लोग फख्र कर सके। बाकी सांसदों की बात करें तो कह सकते हैं कि वे हवाई जहाज में दिल्ली जाने और वहां टीए, डीए लेने के अलावा और कोई काम नहीं किया। वे छत्तीसगढ़ के लिए अदद एक सवाल नहीं पूछ पाते। इसे दुर्भाग्य ही तो कहेंगे।

मोह भंग

विधानसभा चुनाव के पहिले रिटायर अधिकारियों में भारतीय जनता पार्टी के प्रति ऐसा अनुराग जागा कि रिटायर डीजी राजीव श्रीवास्तव, सिकरेट्री आरसी सिनहा समेत दो दर्जन अधिकारियों ने भाजपा ज्वाईन कर लिया था। मगर चुनाव में भाजपा की हालत देखकर इन अफसरों ने रंग बदलने में देर नहीं लगाई। तुरंत से इस्तीफा देकर पार्टी से पल्ला झाड़ लिया। हालांकि, रिटायर डीजी राजीव श्रीवास्तव का निर्णय जरूर कुछ गलत हो गया। वरना, बहुत कम लोगों को मालूम है, चुनाव के पहले अरबिंद केजरीवाल ने उन्हें आम आदमी पार्टी ज्वाईन करने कहा था तो कांग्रेस नेताओं से भी उन्हें ऑफर मिले थे। लेकिन, राजीव का फैसला करने में चूक गए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोकसभा चुनाव के बाद जोगी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय हो जाने की अटकलों में कितनी सच्चाई है?
2. धनेंद्र साहू के सांसद चुने जाने के बाद सत्यनारायण शर्मा एवं अमितेष शुक्ल में से किनका मंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त होगा?