28 अप्रैल 2019
सूबे में 94 बैच के तीन आईपीएस हैं। जीपी सिंह, एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता। तीनों का एडीजी प्रमोशन लटका हुआ है….या लटकाया गया है भी बोल सकते हैं। जबकि, प्रतिभा के मामले में तीनों एक से बढ़कर एक हैं। कल्लूरी के बारे में बताने की जरूरत नहीं….उन्हें कौन नहीं जानता। ईओडब्लू से हटने की इच्छा व्यक्त की और उन्हें ट्रांसपोर्ट जैसा महकमा मिल गया। जीपी सिंह बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग, तीनों रेंज के आईजी रह चुके हैं। एक समय तो वे रायपुर आईजी के साथ ही पीएचक्यू के सबसे अहम डिपार्टमेंट फायनेंस एंड प्रोवजनिंग संभाल रहे थे। नई सरकार में वे आईजी ईओडब्लू हैं। रही बात हिमांशु की, तो जीरम कांड के समय वे बस्तर के आईजी थे और अब वीवीआईपी रेंज दुर्ग के आईजी हैं। ऐसे में सवाल तो उठते ही हैं, इतने तेजस्वी अफसरों का प्रमोशन आखिर क्यों नहीं हो पा रहा है। हालांकि, इसका सही जवाब सरकार ही दे पाएगी। अलबत्ता, यह सही है कि तीनों को एडीजी बनाने की फाइल पिछले तीन महीने से एक टेबल से दूसरे टेबल घूम रही है। इन्हीं तीनों के साथ एसपी से डीआईजी और डीआईजी से आईजी प्रमोशन की फाइल चली थी। उनके आदेश कबके जारी हो चुके हैं। हालांकि, तीन टिकिट, महाविकट वाला हालात 88 बैच को डीजी बनाने के समय भी रहा। उस बैच में भी तीन आईपीएस थे। और, 10 महीने के इंतजार के बाद उनका प्रमोशन हो पाया। बहरहाल, लोकसभा चुनाव होने के बाद पीएचक्यू के गलियारों में एडीजी प्रमोशन की चर्चाएं फिर शुरू हो गई है। अब देखना है, सरकार इनका कब तक आर्डर निकालती है।
सूबे में 94 बैच के तीन आईपीएस हैं। जीपी सिंह, एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता। तीनों का एडीजी प्रमोशन लटका हुआ है….या लटकाया गया है भी बोल सकते हैं। जबकि, प्रतिभा के मामले में तीनों एक से बढ़कर एक हैं। कल्लूरी के बारे में बताने की जरूरत नहीं….उन्हें कौन नहीं जानता। ईओडब्लू से हटने की इच्छा व्यक्त की और उन्हें ट्रांसपोर्ट जैसा महकमा मिल गया। जीपी सिंह बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग, तीनों रेंज के आईजी रह चुके हैं। एक समय तो वे रायपुर आईजी के साथ ही पीएचक्यू के सबसे अहम डिपार्टमेंट फायनेंस एंड प्रोवजनिंग संभाल रहे थे। नई सरकार में वे आईजी ईओडब्लू हैं। रही बात हिमांशु की, तो जीरम कांड के समय वे बस्तर के आईजी थे और अब वीवीआईपी रेंज दुर्ग के आईजी हैं। ऐसे में सवाल तो उठते ही हैं, इतने तेजस्वी अफसरों का प्रमोशन आखिर क्यों नहीं हो पा रहा है। हालांकि, इसका सही जवाब सरकार ही दे पाएगी। अलबत्ता, यह सही है कि तीनों को एडीजी बनाने की फाइल पिछले तीन महीने से एक टेबल से दूसरे टेबल घूम रही है। इन्हीं तीनों के साथ एसपी से डीआईजी और डीआईजी से आईजी प्रमोशन की फाइल चली थी। उनके आदेश कबके जारी हो चुके हैं। हालांकि, तीन टिकिट, महाविकट वाला हालात 88 बैच को डीजी बनाने के समय भी रहा। उस बैच में भी तीन आईपीएस थे। और, 10 महीने के इंतजार के बाद उनका प्रमोशन हो पाया। बहरहाल, लोकसभा चुनाव होने के बाद पीएचक्यू के गलियारों में एडीजी प्रमोशन की चर्चाएं फिर शुरू हो गई है। अब देखना है, सरकार इनका कब तक आर्डर निकालती है।
एक अनार सौ….
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस विधायकों की नजर अब मंत्री पद पर टिक गई है। सरकार के गठन के समय भूपेश मंत्रिमंडल में एक पद खाली रखा गया था। इसके पीछे रणनीति शायद यही रही कि एक पद रिक्त रखने से लोकसभा चुनाव में विधायक काम अच्छे से करेंगे। अब चुनाव निबट गया है तो जाहिर है दावेदारों की उत्सुकता फिर बढ़ गई है। सत्यनारायण शर्मा, अमितेष शुक्ल, लखेश्वर बघेल, मनोज मंडावी तो हैं ही, तगड़े दावेदारों में अमरजीत भगत का नाम भी उपर है। अमरजीत को मौका मिल भी गया होता मगर सरगुजा महल इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अमरजीत की लाख कोशिशों के बाद भी महल का विनम्र दिल पसीज नहीं रहा। अमरजीत अब राहुल गांधी के लोकसभा क्षेत्र अमेठ जा रहे हैं। शायद राहुल की नजर में आ जाएं। चलिये, शायद इससे भी काम बन जाएं।
कुछ पूजा-पाठ भी
सीएम भूपेश बघेल को लगता है, किसी अच्छे आचार्य से कुछ पूजा-पाठ कराना चाहिए। मंत्रिमंडल गठन के बाद कोई-न-कोई घटनाएं हो जा रही। अभी तक दो बार मंत्री प्रेमसाय सिंह और एक बार मोहम्मद अकबर के बंगले के पास आग लग चुकी है। वरिष्ठ मंत्री रविंद्र चौबे फिलहाल आईसीयू में हैं। एक और मंत्री डाक्टर के नियमित संपर्क में हैं। दरअसल, शपथ के समय मलमास लग गया था। मलमास के कुप्रभाव दूर करने के कुछ उपाय करने चाहिए।
ग्रह-नक्षत्र का खेल
डीएम अवस्थी के पुलिस चीफ बनने के बाद भी ग्रह-नक्षत्र उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। दो महीने तक वे बेहद परेशान रहे। लेकिन, अब देखिए। हर जगह कामयाबी। बस्तर में सब इंस्पेक्टर नक्सलियों के चंगुल से निकल कर आ गया। विधानसभा चुनाव बिना किसी विघ्न के निबट गया। बिलासपुर में विराट के किडनेपिंग की गुत्थी सुलझ गई। गिरधारी नायक भी दो महीने बाद रिटायर हो जाएंगे। इसे ही कहते हैं, ग्रह-नक्षत्र का खेल!
पांचवा किडनेपिंग केस
लो प्रोफाइल में रहने वाले बिलासपुर आईजी कई बार बड़ा काम कर जाते हैं। दुर्ग आईजी रहने के दौरान अभिषेक मिश्रा हत्याकांड जैसे हाईप्रोफाइल केस को सुलझाने में देर नहीं लगाई थी। बिलासपुर के विराट किडनेपिंग में भी उन्होंने न्यू टेक्नालाजी के जरिये ऐसा जाल बिछाया कि अपहरणकर्ता पुलिस के हत्थे चढ़ गए। प्रदीप का किडनेपिंग का केस सुलझाने का यह पांचवा मामला होगा। दुर्ग आईजी और रायपुर आईजी रहने के दौरान भी उन्होंने दो-दो केस सुलझाए थे।
कितनी सीटें?
लोकसभा चुनाव निबटने के बाद सियासत हो या नौकरशाही, बिजनेस, व्यवसाय या फिर आम वर्ग, सब जगह एक ही सवाल है, 11 में से किसको कितनी सीटें। पिछले तीन चुनाव से बीजेपी को एकतरफा दस सीटें मिल रही थीं। और, कांग्रेस को सिर्फ एक। मगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस तरह ऐतिहासिक जनादेश मिला, लगा कि ग्यारह की ग्यारह सीटें कांग्रेस को मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं। बस्तर और कांकेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रभावी रही भी। लेकिन, तीसरे चरण के आते-आते कांग्रेस नेता भी मानने लगे, स्थिति बदल रही है। सरकार में दूसरे नम्बर के मंत्री टीएस सिंहदेव ने उपर से सियासी बयान देकर कांग्रेस के कैंप में बेचैनी बढ़ा दी कि सात से कम सीटें आईं तो कांग्रेस की हार मानी जाएगी। उनके इस बयान के निहितार्थ समझे जा सकते हैं।
मोदी और भूपेश
छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस के बीच नहीं, असली लड़ाई नरेंद्र मोदी और भूपेश बघेल के बीच रही। सूबे में 15 साल तक राज करने वाले भाजपा कहीं नहीं थी….लोग न भाजपा का नाम ले रहे थे और न उसके सिंबल कमल का। शहरी इलाकों में वोट की बात पर लोग छूटते ही बोलते थे, मोदी को पीएम बनाना है। फलां कंडिडेट? कंडिडेट को नहीं जानते मोदी को वोट दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस जरूर भारी पड़ी। वो भी इसलिए नहीं कि कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनानी है। कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत थी, सीएम भूपेश के दो महीनों में ताबड़तोड़ फैसले। किसानों का कर्जा माफी से लेकर धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने जैसे फैसले से ग्रामीण इलाकों में प्रभाव तो पड़ा था। वैसे, भूपेश ने बड़ी चतुराई से लोकसभा चुनाव को नेशनल इश्यू के आधार पर वोट मांगने की बजाए उसे राज्य सरकार के जनोपयोगी फैसलों से जोड़ दिया। लास्ट फेज में चुनावी माहौल ने जिस तरह से करवट बदला था, कांग्रेस के लीडर भी मानते हैं, दो महीने के फैसले नहीं होते तो मुश्किल हो जाती।
आईएएस का ये हाल!
रायगढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी पर खनन माफिया अमृत पटेल और उसके गुर्गां ने न केवल हमला किया बल्कि जेसीबी के ठोकर से उनकी कार को डैमेज कर दिया। जेसीबी से उन्हें कुलचने की कोशिश भी की गई। पुलिस ने प्राणघातक हमले का केस भी दर्ज किया है। लेकिन, पखवाड़ा भर से उपर हो गए आरोपी तक पुलिस अभी पहुंच नहीं पाई है। और, ऐसी कोई कोशिश दिख भी नहीं रही कि लगे कि पुलिस ईमानदारी से पकड़ने में जुटी है। हो सकता है, पुलिस की कोई मजबूरियां हो। अलबत्ता, आश्चर्य आईएएस लॉबी को देखकर हो रहा है। भानुप्रतापपुर के एक आईएएस एसडीएम के खिलाफ चक्का जाम हुआ था तो आईएएस अफसर मंत्रालय में लाल सलाम बोलते हुए सीएम सचिवालय पहुंच गए थे। इस मामले में एक लाइन का बयान भी जारी नहीं हुआ है। हो सकता है, पुलिस की तरह की ही सो कॉल मजबूत आईएएस लॉबी की अपनी कोई मजबूरियां हो।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ के किस रेंज का आईजी प्रति क्षण गरीबी से लड़ रहा है?
2. भूपेश सरकार का बारहवां मंत्री कौन बनेगा?
2. भूपेश सरकार का बारहवां मंत्री कौन बनेगा?