शनिवार, 29 दिसंबर 2012

तरकश, 30 दिसंबर

36 जिले

सियासी गलियारों में यह चर्चा गरम है कि 26 जनवरी को सरकार कुछ और जिलों का ऐलान कर सकती है। अभी 27 जिले हैं। राज्य जब बनें थे, तब 16 थे। रमन सरकार ने पहली पारी में बीजापुर और नारायणपुर को बनाकर 18 किया था। और पिछले साल जनवरी में 9 और बनाए। प्रशासन को आम आदमी के और नजदीक ले जाने के लिए सत्ता के भीतर, छत्तीसगढ़ में 36 जिले की भी बातें हो रही हंै। फिलहाल, सारंगढ़ और पत्थलगांव की चर्चा ज्यादा है। सियासी पे्रक्षकों का मानना है, ऐसा करके सरकार कांग्रेस बहुल इलाके में सेंध लगाने की कोशिश करेगी। वजह, 2013 का चुनाव कुछ अलग होगा। एक-एक सीट की लड़ाई होगी। सरकार कहीं कोई कोर कसर नहीं रखना चाह रही। बहरहाल, कुछ और नए जिले बनाए गए, तो एसपी और कलेक्टरों के चेंज 26 जनवरी के बाद ही मानकर चलिये। वरना, 10 जनवरी के पहले ट्रांसफर हो जाएंगे।

माटी पुत्र

बस्तर और सरगुजा के कुलपति चयन के लिए राजभवन ने चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार की अध्यक्षता में सर्च कमेटी बना दी है। और समझा जाता है, अगले महीने इस पर निर्णय हो जाएगा। हर बार की तरह, माटी पुत्रों को मौका देने के लिए फिर प्रेशर बनाने की मुहिम शुरू हो गई है। मगर सर्च कमेटी और राजभवन को यह ध्यान रखना होगा, जिन विश्वविद्यालयों को माटी पुत्र संभाल रहे हैं, वहां का हाल क्या है। राज्य के 80 फीसदी से अधिक विवि को वही लोग संभाल रहे हैं। वहां क्वालिटी तो भूल जाइये, एक भी ऐसा काम नहीं हुआ है, जिससे लगे कि वह विश्वविद्यालय है। इनमें से अधिकांश विवि सिर्फ डिग्री बांटने के केंद्र बनकर रह गए हैं। राजनीतिज्ञों को दबाव इस बात के लिए बनाना चाहिए कि विवि में योग्य आदमी की पोस्टिंग हो, जिससे अपना ह्यूमन रिसोर्स स्ट्रोंग हो सकें। आखिर, अमेरिका में ऐसी बातें क्यों नही होती। वहां के आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में भारतीय कुलपति हैं। और, इसी सूबे में बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वीसी लक्ष्मण चतुर्वेदी ने कैसे टाईट करके रख दिया है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी क्वालिटी में ही नहीं, बल्कि डिसिप्लीन में, एक नजीर बन सकता है। स्कूल से भी अधिक अनुशासन....पूरा विवि कांपता है। टीचर अगर 10 बजे की जगह 10.05 पर पहुंच गए, तो खैर नहीं। और कोई छात्र वीसी को एक एसएमएस कर दें, तो फटाक एक्शन। छेड़खानी हो जाए, तो निलंबन तय मानिये। सवाल योग्यता का है। माटी पुत्र ही सही, क्वालिटी तो होनी चाहिए।

चंेज

छत्तीसगढ़ के डीजीपी का चेम्बर देश में संभवतः अकेला होगा, जहां रिटायर एवं दिवंगत डीजीपी की बड़ी-बड़ी फोटुओं की लाइन लग गईं थीं। मोहन शुक्ला से लेकर अनिल नवानी तक। परंपरा बन गई थी, जो भी डीजीपी की कुसी पर आसीन होता, सबसे पहले फोटुओं की लाइन में अपनी एक फोटू टांग देता था। स्थिति यह हो गई थी, एक तरफ का पूरा दीवार भर गया था। शुक्र है, रामनिवास फोटू के मोह में नहीं पड़े। बल्कि, भूतपूर्व, अभूतपूर्व सबकी फोटुओं को निकलवा दिया। उन्होंने कार केट भी नहीं लिया है। उनकी सिंगल गाड़ी चलती है। विश्वरंजन के समय से पायलेटिंग और फालोगार्ड वाहन की व्यवस्था चालू हुई थी। डीजीपी अगर राजधानी से बाहर जाएं, तो समझ में आता है, लोकल में प्याव-प्याव का क्या मतलब। चलिये, रामनिवास ने आफिस और कार केट में तो चेंज कर लिया है, अब उम्मीद करनी चाहिए, पोलिसिंग भी कुछ चेंज आए। 

गर्व

न्यू रायपुर की समस्याओं को लेकर भले ही उंगलियां उठाई जा रही हो, मगर सरकार को संतोष होगा कि उसके डिजाइन को देश में सराहना हो रही है। याद होगा, राज्योत्सव के मौके पर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने नए मंत्रालय और न्यू रायपुर की ड्राइंग की खूब प्रशंसा की थी और उन्होंने कहा था कि इसे देखने के लिए गुजरात से अफसरों की टीम भेजेंगे। चुनाव के व्यस्त समय में भी वे इसे भूले नहीं। उनके प्रींसिपल सिकरेट्री यहां के अफसरों के संपर्क में रहे। और बुधवार को आधा दर्जन से अधिक अफसरों और आर्किटेक्ट की टीम न्यू रायपुर पहंुची और तीन दिन यहां रुककर बारिकी से एक-एक चीज को देखा। मोदी का नया सचिवालय अप्रैल तक तैयार हो जाएगा। अफसरों ने बताया, मंत्रालय के डिजाइन को मोदी के आफिस के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल किया जाएगा।

कठिनाई

नौकरशाह से मुख्य सूचना आयुक्त बनें सरजियस मिंज की कठिनाई बढ़ सकती है। उनके खिलाफ मिली दो दर्जन से अधिक शिकायतों को राजभवन ने जांच के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया है। जीएडी अब शिकायतकर्ताओं को प़त्र भेजकर शिकायत के सिलसिले में विस्तृत जानकारी मांग रहा है। मिंज के खिलाफ ताजा शिकायत हुई है, उनसे 14 लाख रुपए रिकवरी करने की। आरटीआई एसोसियेशन ने बकायदा साक्ष्य के साथ राज्यपाल से शिकायत की है कि फलां-फलां मामलों में मुख्य सूचना आयुक्त ने 25 हजार की जगह हजार-डेढ़ हजार रुपए जुर्माना लगाकर केस खतम कर दिया। और, इससे खजाने को 14 लाख से अधिक का नुकसान हुआ है। 

अंत में दो सवाल आपसे
1. रमन सरकार के किस मंत्री के दिल्ली के एक मंदिर में शादी की चर्चा है?
2. चरणदास महंत केंद्रीय मंत्री बन गए है, ऐसा न कांग्रेस को लग रहा और न जनता को, ऐसा क्यों?

रविवार, 23 दिसंबर 2012

तरकश, 23 दिसंबर

ब्रम्हास्त्र

खाददान्न सुरक्षा विधेयक कानून बनाकर डा0 रमन सिंह ने एक तरह से कहें, तो ब्रम्हास्त्र चला ही दिया। 32 लाख से बढ़कर अब 42 लाख बीपीएल और अतिगरीब इसके दायरे में आ गए हैं। उन्हें अब सस्ते चावल के साथ ही मुफत में नमक, 10 रुपए में दाल और आदिवासी इलाके में पांच रुपए में चना मिलेगा। सरकार ने वोट पौकेट बढ़ाने के लिए बड़ी चतुरार्इ से नार्इ, मोची, राजमिस्त्री जैसे सारे असंगठित क्षेत्रों को शामिल कर लिया है। 42 लाख परिवार मुफत का नमक खाएगा, तो उसका भी कुछ फर्ज बनेगा ही। सत्ताधारी पार्टी को और चाहिए क्या। और, एक अहम बात यह भी, रमन सिंह का कद और बढ़ गया। पता नहीं, लोकल मीडिया ने इसे कैसे अंडरस्टीमेेट कर लिया। नेशनल और अंग्रेजी मीडिया में शनिवार को यह खबर सुर्खियो में रही......खाध सुरक्षा कानून बनाकर छत्तीसगढ़ ने बाजी मारी.....केंद्र को भी पीछे छोड़ दिया। केंद्र पिछले पांच साल से इसके लिए कवायद कर रहा है। हालांकि, रमन इसे ब्रम्हास्त्र नहीं मानते। विधानसभा की लाबी में मीडिया ने जब उनसे पूछा कि क्या यही उनका ब्रम्हास्त्र है, उन्होेंने मुस्कराते हुए इंकार में सिर हिला दिया। लेकिन सियासी प्रेक्षकों की मानें, तो इससे बड़ा ब्रम्हास्त्र नहीं हो सकता। सदन में विपक्ष के चेहरे पर इसका असर पढ़ा जा सकता था।

गिव एंड टेक

कांग्रेस में भले ही महाभारत छिड़ा हो, एक-दूसरे पर भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य का आरोप लगाए जा रहे हों, इसके उलट सत्ताधारी पार्टी हंड्रेड परसेंट चुनावी मोड में आ गर्इ है। सरकार के रणनीतिकारों ने चुनाव तक के कार्यक्रमों का ब्लूपिं्रट तैयार कर लिया है। खाध सुरक्षा कानून बनाने के बाद सरकार अगले महीने नौ नए जिले में जिला उत्सव करने जा रही है। बिल्कुल राज्योत्सव की तरह। 10 जनवरी से इसका आगाज होगा। इसमें रमन का रोड शो होगा और लोगों को बताया जाएगा कि सरकार ने किस तरह आम लोगों का खयाल करके प्रशासन को उनके नजदीक पहुंचाया। इसके निहितार्थ यही हैं, नौ महीने बाद, बटन दबाते समय इसे याद रखना। राजनीति में गिव एंड टेक ही तो चलता है।   

मंत्रालय का बाबू


बाबू और उस पर मंत्रालय का, अच्छे-अच्छे लोग घबराते हैं। अगर इसमें कोर्इ  शक हो तो आप सीआर्इडी के आर्इजी पीएन तिवारी से कंफार्म कर लीजिए। मंत्रालय के गृह विभाग के बाबू ने अंड-बंड नोट लिखकर उनकी फाइल ही अटका दी। तिवारीजी का इसी महीने रिटायरमेंट है और संविदा नियुकित के लिए फाइल चल रही है। बाबू ने नोटिंग कर दी, आर्इजी सीआर्इडी कैडर पोस्ट है, इसलिए इस पर संविदा नियुकित नहीं दी जा सकती। फाइल देखकर पुलिस अफसर सन्न रह गए। वास्तविकता यह है कि आर्इजी सीआर्इडी, कैडर पोस्ट नहीं है। मगर बाबू को फाइल लटकानी थी, सो होशियारी दिखा दी। अब नोटशीट फिर से लिखी जा रही है। मगर इसमें टार्इम लग जाएगा। और पुलिस महकमे की दिक्कत यह है कि आर्इजी का टोटा है। अब बड़ा सवाल है, पंडितजी की फाइल किलयर नहीं हुर्इ, तो 31 दिसंबर के बाद सीआर्इडी कौन देखेगा। 


चुनावी टीम


विधानसभा सत्र खतम होने के साथ ही आर्इएएस, आर्इपीएस की एक बड़ी लिस्ट निकालने की तैयारी शुरू हो गर्इ है। सीएम के करीबी सूत्रों की मानें, तो आधा दर्जन से अधिक जिले के एसपी इसके लपेटे में आएंगे। कर्नाटक कैडर से डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आइर्ं सोनल मिश्रा को रायपुर में मौका मिल सकता है। उनके आर्इएएस पति संतोष मिश्रा रायपुर में ही पर्यटन मंडल के एमडी हैं। वहीं, रायपुर के एसएसपी दिपांशु काबरा अब पीएचक्यू में फुलफलैश एसआर्इबी संभालेंगे। इसी तरह रायगढ़ के एसपी आनंद छाबड़ा जनवरी में डीआर्इजी बन रहे हैं। उन्हें पुलिस मुख्यालय में लाने की खबर है। कांकेर के एसपी राहुल भगत और नारायणपुर के मयंक श्रीवास्तव में से कोर्इ एक रायगढ़ जाएगा। एसपी बनने वालों में अंकित गर्ग, अजय यादव और शेख आरिफ का भी नाम शामिल है। यादव रायगढ़ जा सकते थे मगर बिलासपुर के एसपी रहते उन्होेंने दिलीप सिंह जूदेव को नाराज कर दिया था। सो, जशपुर के पड़ोस में उन्हें भेजना मुनासिब नहीं समझा जा रहा। अक्टूबर तक जिनका तीन साल पूरा हो जाएगा, उनका हटना या जिला चेंज होना, तो एकदम तय है। लिस्ट जल्द ही निकलेगी। एक बार याद होगा, 31 दिसंबर को निकल गर्इ थी। इसी तरह सरकार चौंका सकती है। बस, कलेक्टर और एसपी की लिस्ट में एकाध दिन का अंतर रहेगा। 


देर आए.....


न्यू रायपुर की चमचमाती सड़कों को देखकर हर आदमी के मन में यह सवाल कौंधता था कि राज्य की सड़कें ऐसी क्यों नहीं बनार्इ जा सकती। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भी कर्इ मीटिंग में इस बात को उठा चुके हैं। और सीएम ने भी इसको लेकर झिड़का था। चलिये, देर आए, दुरुस्त आए....पीडब्लूडी ने विधानसभा रोड को माडल रोड के रूप में पेश किया है। बिल्कुल न्यू रायपुर के टक्कर का। बलिक उससे अधिक झम-झाएं। और प्लान है, बरसात के पहले शहरों की सड़कों को चकाचक कर दिया जाए, लंबी दूरी की सड़कों का पेच वर्क भी। बिलासपुर रोड का काम पहले से ही तेजी से चल रहा है। रायपुर और बिलासपुर, दोनों छोर पर 20-20 किलोमीटर फोर लेन होगा। प्लान रोमांचित करने वाला है। मगर साकार हो पाएगा, यह वक्त बताएगा। 


धक्का



शत्रुंजय की आकसिमक मौत ने भाजपा के मास लीडर दिलीप सिंह जूदेव को हिला दिया है। शत्रुंजय को उन्हाेंने न केवल अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, बलिक यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि बिलासपुर से उन्हें अगला लोकसभा चुनाव में उतारने की भी तैयारी कर रहे थे। शत्रुंजय के लिए बिलासपुर अनजान नहीं था। चुनाव के समय वे साये की तरह अपने पिता के साथ रहे, अलबत्ता, उनके सारथी भी रहे। उनकी प्रचार अभियान वाली सफारी गाड़ी को डेढ़ महीने तक शत्रुंजय ने ही ड्राइव किया था।
अंत में दो सवाल आपसे
1.    बालको मामले में विपक्ष से सवाल पूछवाने को लेकर किस आर्इएएस अफसर की भूमिका कटघरे में है?
2.    क्या अनिल नवानी को इसलिए पुलिस हाउसिंग बोर्ड में पुनर्वास नहीं दिया गया, क्योंकि मार्च में रिटायरमेंट के बाद डीजी होमगार्ड संतकुमार पासवान को वहां बिठाया जाएगा?

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

तरकश, 16 दिसंबर


जय हो

गर इरादे नेक हो और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हो, तो सिस्टम को ठीक किया जा सकता है। भिलाई के आरटीआई कार्यकर्ता इंदरचंद सोनी ने युवा आईएएस और दुर्ग जिला पंचायत के सीईओ सेनापति को गाड़ी से बत्ती निकालने पर बाध्य कर दिया। इंदर ने लिखा-पढ़ी करके सितंबर में उनकी पीली बत्ती उतरवाई थी। मगर अन्य आईएएस-आईपीएस की तरह बत्ती सिंड्रोम के शिकार सेनापति ने इसके बाद एडीएम, एसडीएम के लिए निर्धारित लाल-नीली बत्ती लगा ली। सोनी ने फिर कलेक्टर से शिकायत की। बात नहीं बनी तो उन्होंने सोमवार को जनदर्शन में जाकर कलेक्टर को चेतावनी दे आई, आप बत्ती उतरवा दें वरना, मैं उसे पत्थर मारकर फोड़ दूंगा। भले ही इसके बाद मुझे जेल जाना पड़े, परवाह नहीं। कलेक्टर चमक गए। खामोख्वाह लफड़ा होगा। मंगलवार को उन्होंने सेनापति को निर्देश दिया और गुरूवार को उन्होंने बत्ती निकाल दी। इंदर ने अवैध बत्तीधारियों के खिलाफ अरसे से अभियान छेड़ा हुआ है। इससे पहले भी भिलाई, दुर्ग के अफसरों की गाड़ी से बत्ती निकलवा चुके हैं। काश, रायपुर में भी कोई इंदर सोनी होते। मंत्रालय से लेकर पीएचक्यू तक के अपात्र अफसर बेशर्मी के साथ पीली बत्ती लगाकर घूम रहे हैं। पीएचक्यू में तो एआईजी तक। जबकि, एडीजी को भी पीली बत्ती लगाने की पात्रता नहीं है। सिवाय रेंज आईजी के। मंत्रालय के सिकरेट्री को कौन कहें, विभागों के डायरेक्टर तक बत्ती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इंडस्ट्री डायरेक्टर की भी गाड़ी में आप बड़ी-सी पीली बत्ती पाएंगे। ऐसे में इंदर की याद कैसे नहीं आएगी।

डीएम-एसपी

आईजी की लिस्ट निकलने के बाद अब कलेक्टर और एसपी के नम्बर हैं। इनमें पहला नम्बर तो उन अफसरों का लगेगा, जिनका अगले साल नवंबर में तीन साल या उससे अधिक हो जाएगा। आखिर, चुनाव आयोग उन्हें हटा ही देगा, सो, खुद ही उन्हें ठीक जगहों पर शिफ्थ करने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद आएगा, पारफारमेंस का नम्बर। इसके लपेटे में तो दर्जन भर कलेक्टर और लगभग इतने ही एसपी आ रहे हैं। सरकार के पास ऐसी रिपोर्ट है, जिसमें 27 में से 15 जिलों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और पोलिसिंग की स्थिति बेहद खराब है। प्रशासन की छबि बदलने के लिए उन्हें हटाना अनिवार्य हो गया है। जिलों में कहें तो रायपुर, रायगढ़, राजनांदगांव और कवर्धा और कुछ हद तक दंतेवाड़ा की स्थिति कुछ ठीक है। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। ब्र्रजेश मिश्र दुर्ग जैसे जिले के कलेक्टर कैसे बन गए, लोग आज तक नहीं समझ पाए हैं। और तीसरा, जिन कलेक्टर और एसपी के विभिन्न जिलों में लगातार पांच साल हो गए हैं, फेरबदल में उनका भी नम्बर लग सकता है। ऐसे में अधिकांश कलेक्टरों और एसपी का ज्यादा समय अपने आकाओं को खुशामद करने में जा रहा है। ताकि, कोई ठीक-ठाक जिला मिल जाए।    

नहले पे....

छत्तीसगढ़ में पंचायत मंत्री चुनाव नहीं जीतते......कांग्रेस सरकार में अमितेष शुक्ल को चुनाव हारना पड़ा, तो रमन सिंह की पहली पारी में पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर को करारी शिकस्त मिली। 12 दिसंबर को शीतकालीन सत्र में पंचायत के तहत आने वाले शिक्षाकर्मियों के सवाल पर कांग्रेस के धर्मजीत सिंह ने पंचायत मंत्री हेमचंद यादव को निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्हें ऐसा काम नहीं करना चाहिए कि पंचायत मंत्री के हारने की एक परंपरा बन जाए। इस पर पंचायत मंत्री कहां चूकने वाले थे। उन्होंने तपाक से कहा, नेता प्रतिपक्ष भी चुनाव नहीं जीतते। और आप ऐसा कहकर अपने नेता को क्यों डरा रहे हैं। जाहिर है, राज्य में जो भी नेता प्रतिपक्ष बना है, वह अपनी सीट नहीं बचा पाया है। भाजपा के नंदकुमार साय से लेकर कांग्रेस के महेंद्र कर्मा तक।

जोगी स्टाइल

विधानसभा में, मंत्रियों में अरबन एंड हेल्थ मिनिस्टर अमर अग्रवाल का पारफारमेंस बढि़यां रहता है। सबसे उम्दा भी कह सकते हैं। उनकी हाजिरजवाबी को विपक्ष भी मानता है। बुधवार को जब उन्होंने अजीत जोगी को उन्हीं के स्टाईल में पलटवार किया, तो सदन ठहाकों से गूंज गया। हुआ ऐसा, स्वास्थ्य विभाग के प्रश्न के दिन जोगीजी ने केंद्र की राशि से चल रही योजनाओं में राज्य के नेताओं की फोटो का मामला उठाया था। इस पर जरा अमर का जवाब सुनिये, अध्यक्ष महोदय, जब हमलोग विपक्ष में थे और जोगीजी हमारी ओर, उस समय के, उनके भाषण का एक अंश सुनाता हूं......एजेंसी हमारी तो फोटो किसकी छपेगी.....? अंदाज हू-ब-हू जोगीजी का, कांपते हुए....दांत पिसकर और दोनों हाथ से छाती ठोकते हुए। इस पर जोगीजी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। बाहर निकलने पर, लाबी में पक्ष-विपक्ष के विधायक जोगी स्टाईल के लिए अमर को बधाई देते नजर आए। 

प्रथम एसपी

बिलासपुर के एसपी रतनलाल डांगी देश के संभवतः पहले एसपी होंगे, जिन्हें शहर में रहना नहीं भाता। उन्होंने जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कोनी ग्राम पंचायत के आमतौर पर सूनसान रहने वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाया है। जाहिर है, एसपी का बंगला अपने-आप में कंट्रोल रुम से कम नहीं होता, और उस इलाके के दो-तीन किलोमीटर के सराउंडिंग के लोग अपने को सुरक्षित समझते हैं। अब, एसपी ही शहर से बाहर रहेगा, तो पोलिसिंग का अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन कप्तान को बोले कौन। आईजी अशोक जूनेजा ने उनको इशारा किया था। नए आईजी राजेश मिश्रा को पता चला तो वे भी आवाक रह गए। अब, ऐसे में लोगबाग चुटकी क्यों न लें। कह रहे हैं.....डांगी साब, लंबे समय तक कोरबा में एसपी रहे हैं और अब कोरबा नही ंतो कोरबा रोड ही सही। मगर इससे पोलिसिंग का तो बाजा बज रहा है। न्यायधानी, अपराधधानी में तब्दील होती जा रही है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. शिक्षाकर्मियों की भरती में क्या समान काम, समान वेतन के साथ संविलयन की शर्त थी और कांग्रेस अगर सत्ता में आएगी तो क्या इन मांगों को पूरा कर देगी?
2. प्रदेश के किस आईजी द्वारा नोट गिनने वाली मशीन लेने की चर्चा है?

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

तरकश, 10 दिसंबर


क्लास

मंत्रियों के पुअर पारफारमेंस पर मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह के तेवर अब तल्ख होते जा रहे हैं। मंगलवार को पीडब्लूडी की समीक्षा बैठक में तो उनके तेवर देखने लायक थे। सड़कों की दुर्दशा पर उन्होंने यहां तक कह डाला....सड़कें नहीं सुधरी तो जान लो, अफसर तो गाली खाएंगे ही, लोग मंत्री को भी गाली देंगे और सबसे अधिक मुझे। सीएम की भाव-भंगिमा को देखकर कांफ्रेंस हाल में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। बताते हैं, सीएम का लहजा सख्त और अलार्मिंग था। तभी पीडब्लूडी मिनिस्टर बृजमोहन अग्रवाल को तीन महीने के भीतर सड़कें दुरुस्त करने का भरोसा देना पड़ा। इसी दिन, कृषि विभाग की समीक्षा बैठक में डाक्टर साब विभागीय मंत्री चंद्रशेखर साहू को भी निशाने पर लेने से नहीं चूके। बात निकली दिल्ली से फंड लाने की। रमन ने कृषि मंत्री की ओर मुखातिब होते हुए कहा, दिल्ली जितनी बार जाना हो जाइये, मगर अब विदेश जाना बंद कीजिए। वे यही पर नहीं रुके, कहा.....आपका विदेश जाना एकदम बंद। चंद्रशेखर साहू ने बात संभालनी चाही.....इसीलिए तो मैं ंकांफे्रंस में दोहा नहीं गया। इस पर डाक्टर साब बोले, दस महीने बाद आपका दोहा होने वाला है। दोहा का आशय उनका चुनाव मैदान से था। रमन के बदले तेवर से बाकी मंत्री सहमे हुए हैं, न जाने कब किसका नम्बर लग जाए।

मजबूरी 

बुधवार को आर्इजी लेवल पर बड़ी उलटफेर हुर्इ, उसमें कुछ ऐसी पोसिटंग भी हैंं, जिन्हें मजबूरी ही कह सकते हैं। मसलन, एडीजी राजीव श्रीवास्तव। उन्हंें प्रशासन की कमान सौंपी गर्इ है। प्रशासन, पीएचक्यू का अहम पार्ट होता है और अभी तक यह विभाग संभालने वाले पवनदेव ने नेताओं को त्राहि माम कर दिया था। पुलिस भरती में ऐसे सख्त नियम बना डाले कि किसी की दाल नहीं गल पार्इ। इसलिए, ऐसे आदमी की दरकार थी, जिसके डिक्शनरी में नो शब्द ना हो। एडीजी में डीएम अवस्थी दुश्मन नम्बर-वन थे, सो उनका सवाल ही नहीं था। डब्लूएम अंसारी, एएन उपाध्याय से मनमाफिक काम कराने का सवाल ही नहीं उठता। आर्इजी में संजय पिल्ले, अरूणदेव गौतम जैसे अफसर भी फीट नहीं बैठ रहे थे। इस चक्कर में राजीव श्रीवास्तव के नाम पर मुहर लग गया। उधर, र्इओडब्लू की डिमांड अधिक थी मगर सरकार ने चुनाव को देखते इसे साफ-सुथरी छबि के आर्इपीएस संजय पिल्ले के हवाले कर दिया। फेरबदल में मुकेश गुप्ता एक बार फिर ताकतवर होकर उभरे हैं। अनिल नवानी के रिटायर होने के बाद उनको लेकर खूब सवाल हो रहे थे। मगर वे इंटेलिजेंस और एसआर्इबी रखने में कामयाब रहे ही, अपने विश्वस्त जीपी सिंह को राजधानी का आर्इजी बनवा दिया और साथ में फायनेंस और प्लानिंग जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी। फेरबदल में सबसे अधिक नुकसान डीएम अवस्थी को हुआ। रमन सिंह की पहली पारी मे ंतूती बोलने वाले इस अफसर को पुलिस हाउसिंग बोर्ड में भेजकर ठिकाना लगा दिया गया।

छप्पड़ फाड़ के

इसी साल मार्च में, बिलासपुर एसपी राहुल शर्मा की मौत के मामले में आर्इजी जीपी सिंह की खासी लानत हुर्इ थी और एक तरह से कहें तो बड़े बेआबरु होकर बिलासपुर से उन्हें रुखसत होना पड़ा था। मगर नौ महीने के भीतर वाहे गुरू ने उन्हें दिया, तो छप्पड़ फाड़कर। इसी साल आर्इजी बनें सिंह को राजधानी का आर्इजी और साथ में फायनेंस और प्लांनिंग भी। राज्य पुलिस के लिए पूरी परचेजिंग फायनेंस करता है। इससे पहले, इस पोस्ट पर एडीजी या सीनियर आर्इजी रहते आए हैं। दूसरे राज्यों में तो डीजी हेड रहते हैं। ठीक ही कहते हैं, सब समय का खेल है। राहुल शर्मा कांड के बाद लोग जीपी सिंह को दो-चार साल के लिए पिक्चर से बाहर मान रहे थे और अब मुकेश गुप्ता के बाद प्रदेश के दूसरे बड़े कददावर आर्इपीएस बन गए हैं।  

मजाक

आर्इएएस अफसरों की विदेश यात्रा पर पाबंदी लगी हुर्इ है। मगर अफसरों का विदेश जाना बदस्तूर जारी है। रोहित यादव जर्मनी हो आए, तो अलेक्स पाल मेनन दक्षिण कोरिया। अब प्रींसिपल सिकरेट्री अरबन एडमिनिस्ट्रेशन एंड हेल्थ अजय सिंह, अवनीश शरण जैसे नए आर्इएएस अफसरों को लेकर इस महीने 20 को आस्टे्रलिया के लिए उड़ान भरेंगे। बाकी लोगों के लिए पाबंदी और आर्इएएस को स्पेशल केस में इजाजत। पाबंदी का आखिर, यह मजाक नहीं तो क्या है। 

कुर्सी की जंग

2013 के चुनाव में उंट किस करवट बैठेगा, भविष्यवक्ता भी शायद ठीक से न बता पाएं। मगर, कांग्रेस में भावी सीएम की लड़ार्इ और तेज हो गर्इ है। आधा दर्जन से अधिक दावेदार जो हैं। विधानसभा सत्र के ठीक पहले नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे को घेरने की कोशिशों को भी कुछ ऐसा ही माना जा रहा है। चौबे के खिलाफ पत्र लिखना और फिर उसे सुनियोजित ढंग से लीक हो जाना, इसके अपने निहितार्थ हैं। असल मेंं, चौबे की एक अलग छबि है। गरिमा का ध्यान रखते हैं.....विलो स्टैंडर्ड वाला कोर्इ काम नहीं। आजादी के बाद से साजा सीट उनका परिवार जीतता आया है। देश में यह रिकार्ड है। गांधी परिवार भी चुनाव हारा है। पार्टी का ही एक धड़ा मानता है कि कांग्रेस की सत्ता में आने पर चौबे सीएम के मजबूत दावेदार हो सकते हैं। इसलिए, मकसद एक है, चौबे के खिलाफ पेपरबाजी करके विवादित कर दो, जिससे वे रेस से बाहर हो जाएं। कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है, इस पर लगाम नहीं लगा तो पार्टी ही रेस से बाहर हो जाए, तो अचरज नहीं।  

झटका

राज्य मानवाधिकार आयोग ने हार्इ एप्रोच लगा कर राजधानी का फारेस्ट गेस्ट हाउस प्राप्त करने में तो कामयाब हो गया, मगर अब हासिल आया शून्य वाला मामला प्रतीत हो रहा है। दरअसल, गेस्ट हाउस के जिस साज-सज्जा को देखकर आयोग के लोगों का मन ललचा था, जब कब्जा लेने पहुंचे तो सब गायब था। गेस्ट हाउस को सजाने में साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। हर कमरे में एसी, 40 इंच की एलसीडी टीवी और फाइव स्टार जैसे पर्दे और मखमली कालीन। सो, आर्इएफएस अफसरों को अखरना स्वाभाविक था। लेकिन इस बीच आयोग के एक अफसर ने अति उत्साह में आकर गड़बड़ कर दी। पीसीसीएफ को फोन लगाकर फारमान दे दिया, दो दिन के भीतर गेस्ट हाउस का सामान खाली कर दें। और बात को पकड़कर फारेस्ट अफसरों ने पूरा खाली कर दिया। आयोग के लोग जब गेस्ट हाउस पहुंचे तो पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुर्इ। गेस्ट हाउस खंडहर की मानिंद लग रहा था।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. मुख्यमंत्री अपने किन दो वरिष्ठ मंत्रियों के ढील-ढाले कामकाज से नाराज हैं?
2. जीपी सिंह के आर्इजी बनने से रायपुर एसएसपी दीपांशु काबरा कैसा महसूस कर रहे होंगे?

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

तरकश, 2 दिसंबर


उगते सूरज

रिटायर चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन को आर्इएएस अफसरों ने 11 महीने बाद ही सही, आखिरकार फेयरवेल दिया। इसके लिए राजधानी के आफिसर्स क्लब में 27 नवंबर को जोरदार जलसा हुआ। फेयरवेल भी हो जाए और विलंब को लेकर कोर्इ उंगली न उठाए, इसलिए साथ में, 30 नवंबर को रिटायर हुए कुछ और अफसरों की बिदार्इ पार्टी भी रख ली गर्इ थी। खैर, इसमें कोर्इ दिक्कत नहीं है। जब जागे, तब सवेरा। आर्इएएस अफसरों को वैसे भी उगते सूरज को सलाम करने की ही तो टे्रनिंग दी जाती है। देखा ही होगा आपने, सरकार बदलने से पहले अफसरों की निष्ठा कैसे बदल जाती है। राज्य सरकार ने इस साल जनवरी में उम्मेन को हटाकर नौकरशाही की कमान सुनील कुमार को सौप दी थी। उम्मेन को यह नागवार गुजरा और उन्होंने वीआरएस लेकर सरकार कटघरे में खड़ा कर दिया था। ऐसे में उन्हें फेयरवेल देने का मतलब समझा जा सकता है। अब सरकार पसीज गर्इ है और राज्योत्सव में उम्मेन को आउट आफ वे जाकर राष्ट्रपति से सम्मान कराया गया तो अब फेयरवेल देने में कोर्इ खतरा नहीं था। और चतुर आर्इएएस अफसरों ने इसमें देर नहीं लगार्इ। 

चेंजेज

रामनिवास यादव को डीजीपी बनाने के बाद अब उनकी टीम बनाने की कसरत शुरू हो चुकी है। बताते हैं, रमन सरकार की दूसरी पारी का यह बड़ा और आखिरी फेरबदल होगा, जिसमें जिला और रेंज ही नहीं, बलिक पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इधर-से-उधर किए जाएंगे। लिस्ट में उन आर्इपीएस अफसरों का नाम सबसे उपर है, जिनका चुनाव के समय तीन साल पूरा हो जाएगा। रायपुर आर्इजी और इंटेलिजेंस चीफ मुकेश गुप्ता भी मर्इ में तीन साल पूरे कर लेंगे। सो, रायपुर में अशोक जूनेजा और जीपी सिंह में से किसी एक को मौका मिल सकता है। आर्इजी में जूनेजा का टीआरपी ज्यादा है। इसलिए उनका चांस अधिक है। अरुणदेव गौतम पीएचक्यू से दुर्ग आर्इजी बन सकते हैं। बिलासपुर के लिए आदमी बचेगा नहीं, इसलिए राजेश मिश्रा के अलावा सरकार के सामने कोर्इ चारा नहीं दिख रहा। असल में, आर्इजी लेवल पर अफसरों का टोटा है। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज अगले महीने पदोन्नत होकर एडीजी बन जाएंगे। जीपी सिंह बिलासपुर में इंज्योर्ड होकर पेवेलियन लौट गए हैं। और अरुणदेव गौतम एक बार बिलासपुर कर चुके हैं। और चुनाव के समय पवनदेव को आर्इजी बनाने का कोर्इ जोखिम नहीं उठाएगा। फरवरी में सरगुजा आर्इजी भारत सिंह भी रिटायर हो जाएंगे। तब समस्या और गहराएगी। इधर, होम सिकरेट्री एएन उपध्याय के भी मंत्रालय से पीएचक्यू लौटने की चर्चा है। चर्चा तो डीएम अवस्थी की भी है। जाहिर है, पीएचक्यू में व्यापक उठापटक होगी।

ह्रदय परिवर्तन

पीजाय उम्मेन को जब चीफ सिकरेट्री से हटाया था तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएसर्इबी का चेयरमैन बनाए रखने का आफर दिया था। यह कैबिनेट रैंक का पोस्ट है। वैसे भी, उन्हें सिर्फ चीफ सिकरेट्री से हटाया गया था, सीएसर्इबी और एनआरडीए के चेयरमैन तो वे थे ही। मगर गुस्साये उम्मेन केरल से ही वीआरएस का आवेदन भेज दिया था। मगर अब देखिए, उम्मेन का ज्यादा वक्त रायपुर में ही कट रहा है। राज्योत्सव के बाद 27 नवंबर को राजधानी में थे और अभी भी एनआरडीए के सेमिनार में हिस्सा ले रहे हैं। पता चला है, उम्मेन को गृह राज्य केरल में मन नहीं लग रहा है। सो, उम्मेन कैंप का प्रयास है, साब के लिए छत्तीसगढ़ में ही कोर्इ जुगाड़ हो जाए। इससे लाल बत्ती मिल जाएगी और गाड़ी-घोड़ा भी। उम्मेन के साथ सरकार वैसे भी दरियादिली दिखा रही है। सो, उन्हें प्रशासन अकादमी जैसी बिना काम की जगह पर कहीं पोसिटंग मिल जाए, तो अचरज की बात नहीं होगी। 

खेल

धान खरीदी के खेल के लिए मार्कफेड ऐसे ही नहीं जाना जाता है। लेकिन जरा, इस खेल को भी समझिए। साढ़े तीन करोड़ पुराने बोरों को बेचने के लिए मार्कफेड ने अप्रैल 2011 में टेंडर किया था। अलग-अलग छह जिलों में रेट आए थे एक रुपए से लेकर तीन रुपए तक। तब रेट कम होने का हवाला देकर मार्कफेड ने बोरों को बेचने से इंकार कर दिया था। अब, मार्केट में जूट के बोरों को जबर्दस्त शार्टेज चल रहा है। पुराने बोरों के रेट 20 से 24 रुपए तक पहुंच गए हैं। तो मार्कफेड ने पुराने टेंडर को फायनल करने की तैयारी शुरू कर दी है। कौडि़यों के मोल बोरों को बेचने पर एमडी के तैयार न होने पर बोर्ड से इसकी परमिशन ले ली गर्इ। साढ़े तीन करोड़ बोरों में से माना डेढ़ करोड़ बोरे खराब होंगे। दो करोड़ बोरे भी 20 रुपए के हिसाब से 40 करोड़ के होंगे। जबकि, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर का रुल है कि 45 दिन के भीतर टेंडर का निराकरण न होने पर री-टेंडर किया जाए। यहां तो डेढ़ साल से भी अधिक समय हो चुके हैं। और सुनिये। धान खरीदी के पिक पीरियड में ऐसे समय पर पुराने बोरे बेचे जा रहे हैं, जब नए बोरे खरीद कर आ चुके हैं। सूत्रों की मानें तो पुराने बोरे की दर पर लोकल बारदाना दलालों को नए बोरे थमा दिए जाएंगे। तभी तो 5 खोखा का सौदा हुआ है और 50 पेटी एडवांस मिल गया है। इसमें कोर्इ गलत नहीं है। मार्कफेड में बैठे एक राजनीतिज्ञ की चला-चली की बेला है। इसलिए उनका प्रयास है, ज्यादा-से-ज्यादा इकठठा हो जाए। जमार्इ बाबू भी अब पावर में रहे नहीं। सो, आगे की गुंजाइश भी नहीं है।
 
हेल्थ इज.....

आपको याद होगा, मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पिछले साल अपने मोटे- थुलथुले कर्मचारियों को फिट रखने के लिए एक-एक लाख रुपए खर्च किया था। मगर रमन सरकार तो पैरेंटस स्टेट से होशियार निकली। एक ढेला खर्च किए बिना कर्मचारियों के तंदरुस्त रखने का इंतजाम कर दिया। इसे समझना हो, तो नए मंत्रालय घूम आर्इये। पार्किंग से चार नम्बर गेट तक पहुंचने में 10 मिनट तो लगता ही है, सेक्शन इतना लंबा-चौड़ा है कि कर्मचारियों को रोज तीन से चार किलोमीटर पैदल चलने के बराबर मंत्रालय में मूवमेंट हो जाता है। दो-चार बार सचिवालय और मंत्रालय ब्लाक जाना पड़ गया तो और अधिक भी हो सकता है। कर्मचारियों की नए मंत्रालय जाने की एकमात्र खुशी यही है कि उनका तोंद अब कम हो रहा है......अधिकारियों ने अब सुबह की वाकिंग बंद कर दी है। मंत्रियों और अधिकारियों के लिए हालांकि एक नम्बर गेट है। मगर पोर्च से लिफट की दूरी ही 300 मीटर से अधिक है। इसलिए मंत्री तो मंत्रालय जा ही नहीं रहे हैं, अफसर बेचारे हांफते पहुंच रहे हैं....पुराने दिनों को याद करते हुए। पुराने मंत्रालय में पोर्च से 10 कदम की दूरी पर लिफट था। और 10 मिनट में आदमी पूरा मंत्रालय छान देता था। चलिये, हेल्थ इज वेल्थ वाला काम तो हो रहा है। 

अंत में दो सवाल आपसे
1. किन-किन नेताओं और अफसरों के कीचन से लेकर मेहमानवाजी तक का खर्चा पीडब्लूडी वहन करता है?
2. पीडब्लूडी का 100 करोड़ रुपए का जो मिसलेनियस फंड है, उसका उपयोग किस चीज में होता है?