शनिवार, 28 जुलाई 2012

तरकश, 29 जुलाई


पुर्नवास


पीसी दलेई के बाद जवाहर श्रीवास्तव राजभवन के लगातार दूसरे सिकरेट्री होंगे, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास मिलेगा। याद होगा, 2010 में रिटायर होने के बाद दलेई राज्य निर्वाचन आयुक्त बने थे। और इसके बाद अब जवाहर का नम्बर है। वे अगले महीने 31 को रिटायर होंगे। जवाहर के पुनर्वास के लिए सरकार और खासकर चीफ सिकरेट्री पर भारी प्रेशर है। जीएडी का पूरा अमला इसमें जुटा है.......साब के लिए कहां कुर्सी जुगाड़ी जाए। मुश्किल यह है कि पीएससी से लेकर निर्वाचन, बिजली नियामक आयोग जैसे आईएएस रिहैबिलिटेशन सेंटरों में वैकेंसी फुल है। एक, सूचना आयोग ही बचता है, जहां गुंजाइश बन सकती है। आयोग में फिलहाल दो सूचना आयुक्त हैं। जवाहर के लिए एक और पोस्ट क्रियेट की जा रही है। हालांकि, इसमें एक बड़ी अड़चन सुप्रीम कोर्ट की भी आ गई है। देश की शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले हफ्ते कें्रद सरकार को निर्देश दिया कि जब तक मामले की सुनवाई पूरी न हो जाए, तब तक केंद्रीय सूचना आयोग में गैर न्यायिक क्षेत्र के लोगों को आयुक्त अपाइंट न करें। याचिका में कहा गया है कि आयोग का वर्क नेचर न्यायिक है, इसलिए न्यायिक फील्ड से जुड़े लोगों को ही आयुक्त बनना चाहिए। सरकार भी इससे वाकिफ है, सो, दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। कोशिश यह है कि रिटायरमेंट के हफ्ते भर के भीतर जवाहर को पुनर्वास आदेश थमा दिया जाए। आखिर, बड़ी सिफारिश जो है।

 
एक वो.....

कांग्रेस के समय विद्या भैया का कभी जलवा रहा.....उनका मौखिक टीप आदेश हो जाता था। मगर अब, नेताओं का पहले जैसा रुतबा कहां रहा। आलम यह है, केंद्रीय संस्थान भी कांग्रेस के बड़े नेताओं को अहमियत नहीं दे रहे हैं। इसका एक नमूना देखिए, 23 जुलाई को प्रदेश के इकलौते केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत के पिता स्व. बिसाहूदास महंत की पुण्यतिथि थी। बिलासपुर में उनके समर्थकों ने महंतजी के मुख्य आतिथ्य में कुष्ठरोगियों का एक कार्यक्रम कराने के लिए रेलवे से नार्थ ईस्ट इंस्टिट्यूट सभागृह मांगा था। मगर रेलवे ने महज इसलिए इंकार कर दिया कि अफसरों की महिलाओं का दो दिन बाद सावन उत्सव था। और इसके लिए वहां रिर्हसल चल रहा था। महंत के लोगों ने खूब मनुहार की.....रिर्हसल दोपहर में होता है, हमें शाम को दे दो। मगर रेलवे अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए। इसकी जानकारी महंतजी को दी गई। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः कार्यक्रम निरस्त करना पड़ा। इससे पहले, राज्य के एक सेंट्रल स्कूल ने महंतजी की पहली क्लास में दाखिले की सिफारिश को यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि इसके लिए दिल्ली कार्यालय में संपर्क करें।

रिपोर्ट कार्ड


अगले साल चुनाव को देखते सरकार ने कलेक्टरों की सर्जरी में पारफारमेंस को प्राथमिकता देने की कोशिश की..। सीएम ने अपने कवर्धा और राजनांदगांव में बढ़ियां काम करने वाले सिद्धार्थ कोमल परदेशी को राजधानी की कमान सौंपी। वहीं, अनुभवी आईएएस अशोक अग्रवाल को अपने निर्वाचन जिला राजनांदगांव का कलेक्टर बनाया। बताते हैं, कलेक्टर कांफ्रेंस से पहले सरकार ने सभी कलेक्टरों और जिन्हें कलेक्टर बनाना है, उनका रिपोर्ट कार्ड बना लिया था। पारफारमेंस संतोषजनक न होने के कारण ही बिलासपुर ननि कमिश्नर यशवंत कुमार कलेक्टर न बन सकें। उन्हें रायगढ़ जिला पंचायत का सीईओ बनाया गया। कोरबा कलेक्टर आपीएस त्यागी का नाम रायगढ़ के लिए चर्चा में था। मगर अमित कटारिया किसी वजह से रुक गए, सो त्यागी को जांजगीर किया गया। वैसे भी, अनगिनत उद्योगों के आने से जांजगीर की अहमियत बढ़ गई है। फेरबदल में भुवनेश यादव को झटका ज्यादा लगा है। कई साल तक बस्तर में काम किए यादव को एक तो लेट में जिला मिला, उसमें भी नारायणपुर। कुछ और आईएएस के रिपोर्ट कार्ड अच्छे थे मगर अपरिहार्य कारणों से उन्हें मौका न मिल सका। संकेत हैं, राज्योत्सव के बाद दिसंबर में एक छोटी सर्जरी होगी, उसमें उन्हें चांस मिल सकता है।

कलेक्टर दंपति

सरकार ने फेरबदल में कलेक्टरों के पेयर का भी बराबर खयाल रखा। अंबलगन बस्तर के कलेक्टर हैं और उनकी पत्नी ममगई महसमंुद की थी। ममगई को कांकेर का कलेक्टर बनाया गया है। पड़ोसी जिला होने के कारण अंबलगन दंपति अब बिना चीफ सिकरेट्री की इजाजत के भी मिल सकेंगे। हालांकि, पहले भी ऐसा होता रहा है। मध्यप्रदेश के समय सुयोग्य मिश्रा और इंदिरा मिश्रा भिंड और दतिया के कलेक्टर रहे। छत्तीसगढ़ में भी इससे पहले, विकास शील बिलासपुर कलेक्टर थे तो उनकी पत्नी निधि छिब्बर सटे जिला जांजगीर में रहीं। इसके बाद अविनाश चंपावत कांकेर के और उनकी पत्नी नेहा धमतरी की कलेक्टर रहीं। इस मामले में रोहित यादव की किस्मत ठीक नहीं रही। वे रायपुर के कलेक्टर रहे और उनकी पत्नी रीतू सेन 600 किलोमीटर दूर कोरिया की।

उलझन

राज्य सरकार ने डिप्टी कलेक्टर अर्जुन सिंह सिसोदिया को बिलासपुर ट्रांसफर कर वहां के कलेक्टर ठाकुर राम सिंह की उलझनें बढ़ा दी है। सिसोदिया, रामसिंह के बड़े साढ़ू हैं। याने रिश्ते में छोटा और पोस्ट में बड़ा। वास्तविकता यह है कि बिना टाईट किए डिप्टी कलेक्टर काम नहीं करते। और यही, रामसिंह के लिए यह परेशानी का सबब बन गया है। सिसोदिया को ना बोले तो गड़बड़ और बोल दिए, तो शाम को घर भी लौटना है, घरवाली की सुननी पड़ेगी। वैसे भी, बिलासपुर में उनके रिश्तेदारों की कमी थोड़े ही थी। आधा दर्जन से अधिक निकटतम रिश्तेदार तो बिलासपुर शहर में हैं.....पूर्व विधायक ठाकुर बलराम सिंह समेत पहले से ही तीन साढू। साले-सालियों का बड़ा परिवार। फिर रिश्तेदार के रिश्तेदार। सबके सब कांग्रेसी और खासा प्रभावशाली।

छोटी सूची

कलेक्टरों के बाद पुलिस महकमे में भी अगले हफ्ते एक छोटी सूची निकलने की खबर है। इनमें दो-एक जिलों के एसपी इधर-से-उधर किए जाएंगे। बाकी एडिशनल एसपी होंगे। आईपीएस में बड़ा फेरबदल अब नवंबर में होगा, जब डीजीपी अनिल नवानी रिटायर होंगे और आईजी संजय पिल्ले, मुकेश गुप्ता और आरके विज पदोन्नत होकर एडीजी बनेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पिछले एक दशक से धुंआधार पारी खेल रहे आईएफएस अफसर संजय शुक्ला को आउट कर मूल विभाग में भेजने में किसका हाथ रहा?
2. सीएसआईडीसी से रिटायर हुए किस दागी अधिकारी को उद्योग मंत्री राजेश मूणत का ओएसडी बनाने की कोशिश हो रही है?

रविवार, 22 जुलाई 2012

तरकश, 22 जुलार्इ


नाम के 

जवाहर श्रीवास्तव राज्य के पहले प्रमोटी आर्इएएस होंगे, जिन्हें प्रींसिपल सिकरेट्री बनने का मौका मिलने जा रहा हैं। उनके लिए शुक्रवार को मंत्रालय में डीपीसी हुर्इ और दो-एक रोज में आदेश निकल जाएगा। प्रमोटी आर्इएएस बहुत हुआ तो सिकरेट्री तक पहुंच पाते हैं। इस लिहाज से जवाहर का पीएस बनना एक अहम प्रशासनिक घटना होगी। पुराने अफसरों का याद होगा, अविभाजित मध्यप्रदेश में प्रमोटी में अभी तक सिर्फ मोहन गुप्त पीएस बन पाए। 56 साल में किसी और को यह मौका नहीं मिल पाया। जवाहर को भी यह उपलबिध इसलिए हासिल होने जा रही है, क्योंकि वे राजभवन में पोस्टेड है। वैसे, एसवी प्रभात के बाद श्रीवास्तव दूसरे आर्इएएस होंगे, जिनका प्रमोशन सिर्फ उनके नाम और पैसे के लिए होगा। पीएस बनने के बाद श्रीवास्तव की पेंशन बढ़ जाएगी और रिटायर पीएस लिख सकेंगे। मगर राज्य को उनसे कोर्इ फायदा नहीं होने वाला। 31 अगस्त को वे रिटायर हो जाएंगे। इसी तरह प्रभात भी अप्रैल अंत में एसीएस बनें और मर्इ में रिटायर हो गए।

मेहरबान

सरकार इस साल दो आर्इएएस पर खूब मेहरबान रही.......पहला, एसवी प्रभात और दूसरे डीएस मिश्रा। डेपुटेशन न मिलने पर नौकरी से इस्तीफा देने की धमकी देने वाले प्रभात को सरकार ने रिटायरमेंट से चंद दिनों पहले मनुहार करके बुलाकर एसीएस बनाया। और अब मिश्राजी को उपकृत करने के लिए एक्स कैडर में एसीएस का एक पोस्ट कि्रयेट कर डाला। विवेक ढांड जिसके लिए डेढ़ साल से सरकार का मुंह ताकते रहे, मिश्रा उसे बिना कुछ किए, बलिक समय से बहुत पहले पा गए.....एसीएस बनने की अब औपचारिकता भर बची है। सो, मंत्रालय के लोगों को तो यह खटकेगा ही। आखिर, मिश्रा तीन साल तक आउट आफ फार्म रहे। ढार्इ साल में उनका चार बार विभाग बदला......कृषि, वन, पंचायत और अब वित्त। और सबमें उनका एक जैसा पारफारमेंस रहा। मगर अब मिला तो छप्पड़ फाड़ के। ऐसे में, बेटर पारफारमेंस वाले आर्इएएस यह मानते हैं कि सरकार इसी तरह के अफसरों को तोहफे देती है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। अशोक विजयवर्गीय, पीसी दलेर्इ से लेकर सरजियस मिंज तक ढेरों उदाहरण हंै। ये ऐसे अफसर हैं, जिनसे सेवा के दौरान अपनी एक उपलबिध पूछा जाए तो शायद वे सोच में पड़ जाएं।

अगले हफते

कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित सूची इस हफते निकल जाएगी। अधिक-से-अधिक शुक्रवार तक। बरसात में बाढ़ को देखते हालांकि सरकार आगे-पीछे हो रही थी। मगर फाइनली अब सब ओके हो गया है। सूची के बारे में जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, करीब दर्जन भर कलेक्टर इधर-से-उधर किए जाएंगे। कुछ को बड़े जिले की कमान सौंपी जाएगी, तो कुछ जिले से वापस रायपुर बुलाएं जाएंगे। राजधानी के बोर्ड और निगमों में बैठे तीन आर्इएएस को भी कलेक्टर बनाए जाने की खबर है। रायपुर जिला छोटा हो गया है, इसलिए यहां ऐसे आर्इएएस को पोस्ट करने पर विचार किया जा रहा है, जो निगम-बोर्ड के साथ ही कलेक्टरी भी कर ले। प्रभावित होने वाले जिलों में रायपुर से लेकर बिलासपुर, जांजगीर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा, महासमुंद, दंतेवाड़ा का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। सूत्रों का दावा है, रमन सरकार की दूसरी पारी का यह सबसे बड़ा और आखिरी फेरबदल होगा। अभी जो कलेक्टर पोस्ट किए जाएंगे, वो ही अगले साल विधानसभा चुनाव कराएंगे। इसलिए, सोच-समझकर लिस्ट बनार्इ जा रही है।

ढांड को होम

विवेक ढांड को एसीएस बनाने के बाद सरकार के सामने सवाल खड़ा हो गया है, उन्हें विभाग क्या दिया जाए। आमतौर पर प्रमोशन मिलने पर विभाग बदलता है। अलबत्ता, एसीएस होने पर तो इसे और जरूरी समझा जा रहा है। ढांड के कद के हिसाब से कृषि उत्पादन आयुक्त का एक पोस्ट है। अन्य राज्यों में यह कददावर पोस्ट माना जाता है और मप्र में तो हमेशा सीनियर और अच्छे अफसर एपीसी रहे हैं। मगर अभी दिक्कत यह है, छह महीने पहले ही एमके राउत को इसका दायित्व दिया गया है। इसलिए, इतना जल्दी चेंज संभव नहीं है। ढांड के लायक एक पोस्ट बचता है, होम। होम में एनके असवाल है और उनका करीब चार साल हो गया है। विकल्प के अभाव में होम बदला नहीं जा रहा था। कलेक्टरों की लिस्ट के साथ ही मंत्रालय में भी दो-तीन फेरबदल होंगे, इसमें ढांड को पंचायत के साथ ही होम भी मिल जाए तो अचरज नहीं।

गडढा

बिजली बिल पर सीएम को विधानसभा में सफार्इ देनी पड़ी। तो सुबोध सिंह जैसे ठीक-ठाक छबि के एमडी को भी जगह-जगह जवाब देना पड़ रहा है। लाख कोशिशों के बाद विभाग के अफसर समझ नहीं पा रहे कि गडढा है कहां। जबकि, इसमें स्तरहीन मीटरों को इसके लिए नहीं बख्शा जा सकता। हल्की कंपनियों के मीटर गरमी में 40 डिग्री से अधिक टेम्परेचर होते ही जंप करने लगते हैं। पिछले साल भी तो ऐसा ही हुआ था। इस बार रेट बढ़ गए हैं, इसलिए चोट ज्यादा महसूस हो रही है। मीटर की गड़बड़ी के लिए ही आखिर, एमको कंपनी को ब्लैकलिस्टेड किया गया था। असल में, वितरण कंपनी के परचेज विभाग में बड़ा खेल होता है। कर्इ ऐसे लोग हैं, जो गुनताड़ा करके सालों से जमे हैं। मनोज खरे जोगी सरकार के समय 2001 में र्इर्इ, परचेज बनें। बीच में कुछ दिन के लिए बाहर रहे। मगर 2005 में जब राजीब रंजन सीएसर्इबी के चेयरमैन बनें, खरे को फिर परचेज में ले आए। और इसके बाद से वे वहीं जमे हुए हैं। गुरू रंजन 2008 में क्लीन बोल्ड हो गए मगर खरे, वहीं र्इर्इ रहे और अब वहीं एसर्इ बन कर क्रीज पर डटे हुए हैं। प्रायवेट कंपनियां भी आजकल एक जगह पर दो-एक साल से अधिक नहीं रखती। सरकार को ये सब भी तो देखना चाहिए।

पुअर पारफारमेंस

विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस का पारफारमेंस पुअर नहीं तो अच्छा भी नहीं कहा जा सकता। छह दिन में एक भी मौका ऐसा नहीं आया, जब विपक्ष ने सरकार को बैकफुट पर जाने पर मजबूर कर दिया। कोरसागुड़ा मुठभेड़ पर सत्ता पक्ष द्वारा चर्चा के लिए तत्काल राजी हो जाने से हंगामा करने का अवसर नहीं मिल पाया। गर्भाशय कांड पर स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल उल्टे सताधारी दल पर भारी पड़ गए। सत्ता पार्टी की इस पर तैयारी ही नहीं थी। बिजली की अनाप-शनाप बिलिंग जैसे गंभीर विषय को सत्ताधारी पार्टी के देवजी भार्इ ने उठाया। उन्होंने अपनी ही सरकार पर सवालों की बौछारें कर दी और विपक्षी विधायक टुकुर-टुकुर देखते रहे। बलिक राजकमल सिंघानिया ने दिल्ली का मुदा उठाकर सीएम को पलटवार करने का मौका दे दिया। सीएम ने कहा, दिल्ली में छत्तीसगढ़ से दोगुना रेट है। साथ में, यह भी.....छत्तीसगढ़ में सबके सस्ती बिजली है। और यही अगले दिन अखबारों की सुर्खिया भी बनीं। जबकि, बिजली दर वृद्धि मसले पर सरकार को घेरने के लिए अच्छे अवसर थे। मोहम्मद अकबर को छोड़कर ऐसा नहीं लगा कि विपक्ष विधायकों ने सत्र के लिए कोर्इ तैयारी की हो। अकबर, अपनी तैयारी और हाजिरजवाबी से बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत जैसे कर्इ मंत्रियों को घेरने में कामयाब रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. संघ से भाजपा में आए संगठन के किस नेता ने जशपुर में 75 एकड़ जमीन खरीदी है?
2. धान खरीदी की व्यवस्था अगर चाक-चौबंद हो जाए तो मार्कफेड के अफसरों और राज्य के नेताओं को हर साल कितने करोड़ का नुकसान होगा?

शनिवार, 14 जुलाई 2012

तरकश, 15 जुलार्इ

दूसरा बाम्बरा



पुलिस महकमे में संविदा नियुकित न तो भारतीय पुलिस मैन्यूल में है और ना ही किसी और राज्य ने ऐसा किया है। अलबत्ता, यूपी, राजस्थान जैसे राज्यों में इक्का-दुक्का केस ऐसे हुए हैं, तो उन्हें ला एंड आर्डर से अलग रखा गया है। छत्तीगढ़ ही अकेला राज्य है, जहां 65 साल की उम्र में बर्दी पहनकर जीएस बाम्बरा राजधानी की पोलिसिंग संभाल रहे हैं। और अब, 30 जून को रिटायर हुए एडिशनल एसपी आर्इएच खान को यह गौरव हासिल होने जा रहा है। हालांकि, खान की राह में आय से अधिक संपतित का एक बड़ा रोड़ा आ गया है। बेहिसाब संपतित की जांच करने के बाद र्इओडब्लू ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। और आर्इजी प्रशासन पवनदेव ने नोटशीट में इसका ब्यौरा लिखकर डीजीपी को भेज भी दिया है। लेकिन जैक इतना तगड़ा है कि लगता नहीं, खान की फाइल को कोर्इ रोक पाएगा।

6 दिन का सीएस


रिटायरमेंट के बाद एसवी प्रभात के पुनर्वास का प्रस्ताव सीएम ने भले ही खारिज कर दिया मगर चीफ सिकरेट्री की पदास्थापना पटिटका में अपना नाम लिखाकर प्रभात ने छत्तीसगढ़ में अपने-आपको अजर-अमर कर लिया। याद होगा, मर्इ में सुनील कुमार के छुटटी जाने पर प्रभात छह दिन तक सीएस के प्रभार में रहे थे। और उसी दौरान उन्होंने यह कारनामा कर डाला। सुनील कुमार जब छुटटी से लौटे, तो प्रभात के नीचे फिर उनका नाम लिखा गया। जीएडी का स्पष्ट रुल है, सरकार जिसका पदास्थपना आदेश निकालती है, उसी का नाम पटिटका में दर्ज होता है। मगर, तेज-तर्रार और नियम-कायदों से एक इंच इधर-से-उधर नहीं होने वाले सुनील कुमार के चेम्बर में नियमों को ओवरलुक कर दिया गया, लोगों को अचरज हो रहा है। सवाल यह भी मौजूं हैं, अगर ये चलता है तो बाकी का क्या कुसूर था। कार्यवाहक सीएस का नाम अगर लिखा जाए तो दो-तीन पटिटका भर कम पड़ जाएगी। पी जाय उम्मेन के समय सरजियस मिंज 10 बार से भी अधिक सीएस के प्रभार में रहे थे। 10 बार उनका भी नाम लिखना चाहिए। फिर पी रावघव से लेकर बीकेएस रे भी हैं। असल में, प्रभार एक प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि नर्इ नियुकित। अभी तक राप्रसे अधिकारी संजय अलंग को लोग बोलते थे, जो मार्कफेड में दो दिन एमडी रहे और उनका नाम पटिटका में लिखा गया। मगर विलो स्टैंंडर्ड का काम करने में आर्इएएस भी कम नहीं हैं।

कांग्रेस र्इकी खा


कांग्रेस नेता घर ठीक होने का लाख दावा कर रहे हों, मगर धरातल पर सब कुछ ठीक नहीं है। बलिक एनएसयूआर्इ नेता के सिटंग आपरेशन के बाद तो खार्इ और बढ़ गर्इ है। गुट कम नहीं हो रहे हैं। जोगी गुट, पटेल गुट, चौबे गुट और न जाने कर्इ। आलम यह है, विधानसभा में भी इसकी झलक देखने को मिल जा रही है। गुरूवार को लंबोदर बलियार और दारा सिंह को मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे द्वारा श्रंद्धाजलि देने के बाद जोगीजी का नम्बर आया। उन्होंने दारा सिंह के बारे में एक संदर्भ में पूर्व के वक्ताओं में मुख्यमंत्री का दो बार जिक्र किया और चौबे के नाम की जगह किसी ने ऐसा कहा....और दूसरों ने ऐसा कहा....कहकर काम चला लिया। हो सकता है, इसके पीछे उनकी कोर्इ मंशा न हो किन्तु सदन के भीतर जोगीजी अगर नेता प्रतिपक्ष का नाम लेने से बचेंगे तो इसकी चर्चा तो होगी ही।

गरीबों के नेता


नेता बाहर में कुछ और तथा सदन में कुछ और बात करते है....शुक्रवार को विधानसभा में इसका एक वाकया देखने को मिला। पैसे के लिए कम उम्र की महिलाओं का गर्भाशय निकालने के मामले में आश्चर्यजनक ढंग से देवजी भार्इ पटेल और अजीत जोगी डाक्टरों के साथ खड़े नजर आए। प्रश्नकाल में देवजी ने डाक्टरों के साथ नाइंसाफी का सवाल उठाया तो जोगीजी भी उनके साथ हो गए। जबकि, मीडिया में मामला उछलने पर सबसे पहले उन्होंने ही डाक्टरों के खिलाफ कठोर कार्रवार्इ करने की मांग की थी। लेकिन सदन में दोनों नेता दोषी डाक्टरों के खिलाफ कार्रवार्इ की मांग तो कर रहे थे, साथ ही, जिन डाक्टरों पर कार्रवार्इ हुर्इ है, उसका विरोध भी। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल इसे ताड़ गए। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा.....इस सदन में दो तरह की बात हो रही है.....डाक्टरों ने 25 साल की महिलाओं का गर्भाशय निकाल डाला है......सदन चाहेगा तो राज्य के सभी डाक्टरों की जांच करा दूंगा....। अब सकपकाने की बारी जोगी और देवजी की थी।

बढि़यां भाषण


कोरसगुड़ा मुठभेड़ पर कांगे्रस के स्थगन प्रस्ताव पर गुरूवार को सदन में अच्छी चर्चा हुर्इ। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने मार्मिक भाषण दिया। जोगीजी 58 मिनट बोले और इस दौरान सदन में सन्नाटा वाली सिथति रही। मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्री, विधायक, अध्यक्षीय दीर्घा से लेकर अधिकारी दीर्घा और पत्रकार दीर्घा खचाखच भरा था। रविंद्र चौबे का भाषण भी प्रभावी रहा। इसके बाद सीएम ने भी टू दि प्वांट इसका जवाब दिया। अरसे बाद लोगों ने ऐसी चर्चा सुनीं।  

रिजल्ट


सीएम ने जुलार्इ के शुरू में एक झटके में देवचंद सुराना को हटाकर युवा एवं तेज वकील संजय अग्रवाल को राज्य का नया महाधिवक्ता बनाया तो संध और संगठन के लोगों को यह बहुत रास नहीं आया था। पार्टी में खूब खुसुर-पुसुर हुर्इ थी.... अग्रवाल जोगी सरकार के समय डिप्टी एजी रहे.....। मगर हफते भर में मिले रिजल्ट से सबका मुंह बंद हो गया है। नया आरक्षण सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। और विपक्ष 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को असंभव बताते हुए सरकार पर आदिवासियों को गुमराह करने का आरोप लगा रही थी। ऐसे में हार्इकोर्ट से सरकार के पक्ष में फैसला आ जाए तो सरकार के लिए इसकी अहमियत समझी जा सकती है। बताते हैं, महाधिवक्ता और उनकी टीम पूरी तैयारी के साथ सरकार का पक्ष रखा और नतीजा सामने है। इसके अलावा महाधिवक्ता ने दो-तीन और स्टे वैकेंट कराया है। सरकार को अब उम्मीद है, सबसे महत्वकांक्षी परियोजना कमल विहार का रास्ता भी अब साफ हो जाएगा। अंदर की बात भी यही है। संजय को लाया भी इसीलिए गया था। दरअसल, पुराने एजी के रहते आदिवासी आरक्षण और कमल विहार असंभव था।  

अंत में दो सवाल आपसे


1. गर्भाशय कांड में अजीत जोगी डाक्टरों की हिमायत कर रहे हैं तो समझ में आता है......उनकी पत्नी डाक्टर हैं मगर देवजी पटेल के डाक्टरों के साथ खड़े होने की क्या वजह है?
2. सीएम द्वारा कलेक्टर और एसपी को जय-बीरु की तरह काम करने की नसीहत देने के बाद भी किस जिले के कलेक्टर और एसपी के बीच संवादहीनता की सिथति है?


शनिवार, 7 जुलाई 2012

तरकश, 8 जुलार्इ


गुगली पर छक्का

बीजापुर मुठभेड़ मामले में पुलिस की बयानबाजी से विश्वसनीय छत्तीसगढ़ की हवा ही निकल गर्इ थी। रायपुर से लेकर दिल्ली तक चल रही खबरों से यही मैसेज जा रहा था कि बलंडर हुआ है। और उसे छुपाने की कोशिश की जा रही है। अगले साल चुनाव को देखते चिदंबरम ने भी इस बार साथ नहीं दिया। क्षमा तो मांगा ही, यह कहकर राज्य सरकार का संकट और बढ़ा दिया कि राज्य पुलिस के निर्देश पर कार्रवार्इ हुर्इ थी और जांच कराना वहां की सरकार का काम है। इसके बाद राजधानी में सब जगह यही चर्चा थी, सरकार इस बार घिर गर्इ.....जवाब देना मुशिकल होगा। मगर हार्इकोर्ट के एकिटव जसिटस से जांच कराने का ऐलान कर चिदंबरम की गुगली पर छक्का जड़ दिया। राज्य बनने के बाद 12 साल में आखिर, यह पहला मौका होगा, जब किसी मामले की जांच के लिए हार्इकोर्ट के जज से जांच कराने की घोषणा हुर्इ हो। लोकल कांग्रेस नेता भी सकते में हैं, जसिटस से जांच के बाद अब बचता क्या है। बस्तर में खोए आधार को पाने का यह बढि़यां मौका था। सामने विधानसभा भी था। लेकिन गड़बड़ हो गया।

मिशन दिल्ली

रमन सरकार के दिनोंदिन सख्त होते तेवर को सियासी प्रेक्षक मिशन दिल्ली से जोड़कर देख रहे हैं। नरेंद्र मोदी की पीएम की दावेदारी पर नीतिश कुमार के सवाल के बाद भाजपा के पास कम विकल्प बच गए हैं। निर्विवाद छबि की वजह से इनमें रमन का भी एक नाम हो सकता है। राजनीतिक पंडितों का तर्क है, लोकलुभावन योजनाओं से रमन की छबि जनप्रिय नेता की बन गर्इ है, सिर्फ सख्त प्रशासक की कमी थी। अब वो भी आप देख रहे हैं। तीन महीने में तीन बड़ी घटनाएं हुर्इ हैं.....अप्रैल में गरियाबंद में निर्माणाधीन बि्रज गिरने पर पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, एकिजक्यूटिव इंजीनियर, एसडीओ समेत आधा दर्जन अफसरों को तत्काल सस्पेंड। जबकि, सीएम के एक करीबी मंत्री की सिफारिश पर उनके एक ठेेकेदार को इसका काम मिला था। फिर, गरीब महिलाओं के गर्भाशय निकालने पर स्वास्थ्य विभाग ने नौ डाक्टरों के रजिस्ट्रेशन सस्पेंड कर दिए। इनमें ऐसे-ऐसे नाम थे कि अखबारों की खबर पर लोगों को यकीं नहीं हो रहा था। और अब बीजापुर कांड की जांच। इसकी आंच में कुछ पुलिस अधिकारी भी झुलस सकते हैं। मगर इसकी परवाह नहीं की गर्इ। दिल्ली के अखबारों में न्यायिक जांच की खबर फं्रट पेज पर छपी।

अमीर कलेक्ट्रेट

आपको याद होगा, पिछले साल जशपुर को वहां के कलेक्टर द्वारा देश का घटिया जिला बताने पर खूब बवाल मचा था। मगर अब कम-से-कम कलेक्टर के चेम्बर को देखकर जशपुर को कोर्इ घटिया नहीं कह सकेगा। कलेक्टर के लिए 30 लाख रुपए खर्च कर शानदार चेम्बर बनाया गया है.....80 हजार की तो टेबल खरीदी गर्इ। बताते हैं, कलेक्टर ने पीडब्लूडी के अफसरों को चेम्बर का जीर्णाद्धार करने कहा था। अब प्रमोटी कलेक्टर होते तो चल जाता, डायरेक्टर आर्इएएस का सवाल था। सो कंजूसी क्यों किया जाए। चलिये, कलेक्टर साब को अपने चेम्बर में बैठने पर अब बेकार जिला का भान नहीं होगा।

सरप्राइजिंग

नगरीय प्रशासन विभाग के प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह अगर किसी को पत्र भेजकर मिलने के लिए बुलाएं तो खुसुर-पुसुर तो होगी ही। बुधवार को ऐसा ही हुआ। उन्होंने राजधानी के एक समाजेवी को पत्र लिखा, आप मिलने आएंंगे तो हमें अच्छा लगेगा। जाहिर है, अजय सिंह अलग मिजाज के अफसर है......लोगों से मिलने-जुलने में उनको विश्वास नहीं है। मोबाइल रिसीव करने का सवाल ही नहीं उठता। मंत्रालय में लोग शर्त लगाते हैं, सिंह साब मोबाइल रिसीव कर लेंगे तो मैं ये कर......दूंगा। लेकिन इस बार मामला जरा हटकर था। समाज सेवी नगरीय निकाय के एक मामले को लेकर पत्र देने पहुंचे थे। मगर पीए ने उसे लेने से टका-सा जवाब दे दिया......साब ने मना किया है.....सेक्शन में जाकर दे दो। समाजसेवी ने इसकी शिकायत चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार को फैक्स कर दी। और इसी का असर हुआ, समाजसेवी को बुलौवा आ गया।

झुनझुना

पांच-छै मलार्इदार निगम, आयोगों को छोड़ देें, तो बाकी नेताओं के लिए लाल बत्ती झुनझुना से ज्यादा नहीं है। बलिक और यह तकलीफ दे रही है। ठीक से वे इतरा भी नहीं पा रहे हैं। दर्जा है, कैबिनेट मंत्री का, और वेतन मिलता है, मनरेगा मजदूर से भी कम.....1500 रुपए महीना। आयोग के पुराने भृत्यों को भी 10 हजार से कम नहंी मिलता। लाल बत्ती देखकर लोग चंदा के लिए परेशान कर देते हैं, सो अलग। महीने में पेट्रोल की पात्रता है सिर्फ 150 लीटर की। इसके बाद मोटरसायकिल पर घूमो। पुलिस ने पिछले सोमवार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ यादव की मोटरसायकिल को चालान कर दिया। गाड़ी का इंश्योरेंस नहीं था। बदनामी होगी, इसलिए उन्होंने घटना के बारे में किसी को बताया भी नहीं? कर्इ साल की तपस्या और कर्इ चौखटों पर मत्था टेकने के बाद नेताओं को लाल बत्ती मिली है। उसके बाद ये हाल है, तो उनके भीतर का दर्द आप समझ सकते हैं।

टामी का बर्थडे

भाजपा की बैठक में पीए का मामला ऐसे ही नहीं उछला। मंत्रियों के इक्के-दुक्के पीए ही होंगे, जो खास पैसा नहीं बना पाए। वरना, 10 करोड़ से कम का कोर्इ आसामी नहंीं हैं। हाल यह हो गया है कि अब पैसे को क्या करें। सो, अब टामी का बर्थडे भी मनाया जा रहा है। एक मंत्री के पीए के बच्चों द्वारा जीर्इ रोड पर सिथत एक माल के रेस्टोरेंट में अपने टामी का बर्थडे मनाने की खूब चर्चा है। चूकि माल में टामी ले जाना एलाउ नहीं है, सो उसकी फोटो को प्रतीक मानकर केक काटा गया। पीए का जलवा अपने मंत्री से भी ज्यादा है। मंत्री के पास तीन गाड़ी है और पीए के पास भी इतनी ही। स्कार्पियो से लेकर इनोवा तक। एक अपने और एक पत्नी के लिए और एक बच्चों को स्कूल जाने के लिए। मंत्रीजी सीधे-साधे हैं, इसलिए पीए ही उनका मंत्रालय चला रहा है। इसलिए, इस रुतबे को वह डिजर्व करता ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एएसआर्इ के रिजल्ट निकालने और दो नक्सलियों के मारे जाने पर पीएचक्यू में प्रेस कांफें्रस हो जाती है, मगर बीजापुर में 21 नक्सलियों के मारे जाने के बाद पुलिस मुख्यालय में कोर्इ सुगबुगाहट क्यों नहीं हुर्इ?
2. अपनी बेटी को चुनाव न जीतवा पाने वाले आदिवासी नेता अरबिंद नेताम को पार्टी से बाहर करने पर क्या वाकर्इ कांग्रेस को नुकसान होगा?