शनिवार, 25 सितंबर 2021

गुड़ाखू फैक्ट्री में अस्पताल!

 

गुड़ाखू फैक्ट्री में अस्पताल!

संजय के दीक्षित
तरकश, 26 सितंबर 2021
कोरोना के दौरान प्रायवेट अस्पताल वालों ने किस तरह अपनी तिजोरी भरी इससे समझा जा सकता है कि बिलासपुर के एक 50 बेड के अस्पताल ने तीन महीने में सात करोड़ कमा लिया। वो तो हिस्से को लेकर डॉक्टरों का विवाद और अपहरण हो गया और बात खुल गई। वरना….। आप समझ सकते हैं कि 50 बेड वाले अस्पताल अगर इस कदर झोली भर सकते है तो बड़े अस्पतालों ने क्या किया होगा। बताते हैं, कोरोना की लहर को अवसर में बदलने में डॉक्टरों ने कोई कोताही नहीं बरती। सराईपाली का गुखाड़ू कारखाना अस्पताल में बदल गया। दरअसल, कुछ डॉक्टरों ने गुड़ाखू वाले व्यापारी को समझाया कि गुड़ाखू बनाने वाले टीने के शेड को अगर अस्पताल के लिए दे दोगे तो उसके सामने गुड़ाखू की कमाई कुछ भी नहीं। बस क्या था, सेठजी को बात जम गई। चार दिन बाद गुड़ाखू फैक्ट्री पर अस्पताल का बोर्ड लग गया।

मालामाल भगवान

धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों ने कोरोना में इस तरह नगद जमा कर लिया कि इस साल मई-जून तक ये स्थिति आ गई थी कि उसे रखें कहां। राजधानी के एक बड़े कारोबारी का दावा है कि डॉक्टरों का पूरा पैसा रियल इस्टेट में इंवेस्ट हुआ है। डॉक्टरों के पैसा के चलते ही राजधानी, न्यायधानी में जमीनों का रेट आसमान छू रहा। नया रायपुर के पास एक अस्पताल संचालक ने 45 एकड़ जमीन खरीदी है। धरसींवा के पास रायपुर के एक बड़े अस्पताल वाले ने 74 एकड़ जमीन परचेज की है। ये तो बानगी है। रायपुर, बिलासपुर में एक के बाद एक प्रोजेक्ट लांच होते जा रहे हैं, उन सभी में अस्पताल वालों का पैसा लगा है। वाह रे धरती के भगवान…। छत्तीसगढ़ में कोरोना ने सैकड़ों लोगों को छीन लिया…हजारों घरों को तबाह कर दिया और भगवानों के घर भर गए। बिलासपुर में अस्पताल संचालक का अपहरण करने वाले डॉक्टरों ने बयान दिया ही है बिना मेडिसीन दिए ही मेडिसीन का बिल वसूला गया। इसके बाद अब कुछ कहने के लिए नहीं बचता।

ओएसडी की नियुक्ति

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिन चार नए जिलों का ऐलान किया, उनमें जल्द ही एक-एक आईएएस, आईपीएस को प्रशासन और पुलिस का ओएसडी नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए मंथन शुरू हो गया है। नए जिलों के ओएसडी ही जिस दिन से जिला अस्तित्व में आता है, ओएसडी कलेक्टर और एसपी बन जाते हैं। अभी तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि नए जिलों के ओएसडी कलेक्टर या एसपी न बने हों। नए जिलों में आमतौर पर प्रमोटी आईएएस, आईपीएस को प्राथमिकता दी जाती है। वो इसलिए कि उन्हें नए जिलों में क्या-क्या चीजों की जरूरतें होती हैं, उन्हें पता होता है। हालांकि, पिछली सरकार में कुछ डायरेक्ट आईएएस को भी ओएसडी बनाया गया था। मसलन, बलौदा बाजार में राजेश टोप्पो। राजेश वहां ओएसडी से कलेक्टर ही प्रमोट नहीं हुए बल्कि पौने चार साल रहकर कलेक्टरी का रिकार्ड बनाया। नए जिलों में सक्ती को छोड़कर सारे जिलों का नामकरण और जिला मुख्यालय तय हो गया है। वैसे सक्ती को लेकर कोई विवाद नहीं है, इसलिए उसका नाम यथावत रहने वाला है।

कलेक्टर इन वेटिंग

जिलों की संख्या बढ़ने से लगता है कि कलेक्टरों की वेटिंग अब कम होगी। मगर छत्तीसगढ़ में हो उल्टा रहा है। जिले 18 से बढ़कर 32 हो गए। लेकिन, कलेक्टरों की वेटिंग कम होने का नाम नहीं ले रहा। अब देखिए न…दीगर राज्यों में 2015 बैच वाले कलेक्टर बन गए हैं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में अभी 2013 बैच कंप्लीट नहीं हुआ है। डॉ0 जगदीश सोनकर और राजेंद्र कटारा अभी भी क्यूं में हैं। 2014 बैच में भी छह आईएएस हैं। प्रमोटी में भी संजय अग्रवाल, दिव्या मिश्रा जैसे अफसर हैं, जिन्हें कलेक्टरी मिलना ही है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ में 2015 बैच को कलेक्टरी 2023 के पहले संभव प्रतीत नहीं होता। छत्तीसगढ़ में वेटिंग क्लियर न होने के पीछे बड़ी वजह यह है कि 2005 से अचानक हर साल अफसरों की संख्या बढ़ गई। पहले एक बैच में इक्का-दुक्का आईएएस मिलते थे। 2002 बैच में मात्र दो अफसर मिले। उधर, प्रमोटी आईएएस की संख्या भी बढती गई।

नो वाइन, नो व्हीस्की

पुलिस और आर्मी के मेस में अगर जाम न छलके तो फिर मेस नाम क्यों? लेकिन, रायपुर के पुलिस मेस में कुछ ऐसा ही हो रहा है। राजधानी के मेस का पदेन इंचार्ज रेंज आईजी होते हैं। रेंज आईजी माने डॉ0 आनंद छाबड़ा। छाबड़ा के साथ दिक्कत यह है कि पंजाबी होने के बाद भी सिर्फ खाने के शौकीन हैं। दूसरा वाला बिल्कुल नहीं। और डीजीपी का नाम भगवान से शुरू होता है…दुर्गेश माधव… महाकाल के भक्त। दोनों ने मिलकर तय कर दिया….नो शराब। बकायदा आदेश भी निकल गया है बिना डीजीपी के एप्रुवल के पुलिस आफिसर मेंस में पार्टियों में शराब सर्व नहीं होगी। अब उन दोनों को कौन समझाए बिना शराब की कोई पार्टी होती है…। आजकल तो बिना शराब की शादियां नहीं होतीं। लेकिन, बताने वालों का कहना है, पुलिस मेस में शराब बैन करने का कारण कुछ आईपीएस हैं। वे थोड़े से में ही झूमने लगते थे। तीन पैग लिए तो अंग्र्रेजी बोलना और चार से उपर हुआ तो फिर नागिन डांस स्टार्ट। याने मजबूरी का नाम नो वाईन, नो व्हीस्की।

पोस्टिंग का रिकार्ड?

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के नए कुलपति के सलेक्शन के लिए सलेक्शन कमिटी की बैठक होने वाली है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम कमिटी के चेयरमैन हैं और एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू और समाजवादी नेता आनंद मिश्रा मेम्बर। वीसी के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों ने आवेदन किया है। लेकिन वर्तमान कुलपति संजय पाटिल के बारे में कहा जा रहा है कि वे लगातार तीसरी बार कुलपति बनकर कहीं रिकार्ड न बना दें। हालांकि, बाहरी व्यक्ति का हवाला देकर उनका विरोध भी किया जा रहा लेकिन, जो समीकरण दिख रहा, उसमें वे भारी पड़ते दिख रहे हैं। बीजेपी शासनकाल में लगातार दो बार वीसी रहने के बाद भी कांग्रेस सरकार में भी उनका नाम सबसे उपर आ रहा तो फिर इसके बाद कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

बड़ी बात

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के कार्यवाहक जज जस्टिस प्रशांत मिश्रा आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर जा रहे हैं। वहां के चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद दूसरा मौका होगा, जब छत्तीसगढ़ के रहने वाले कोई जस्टिस प्रमोट होकर हाईकोर्ट चीफ जस्टिस बनकर जा रहा है। इससे पहिले सुनील सिनहा सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर गए थे। हालांकि, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट काफी बड़ा है। वहां 37 जज हैं।

एसपी की धड़कनें

मुख्यमंत्री 5 अक्टूबर को एसपी, आईजी की कांफ्रेंस लेने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस साल में एकाध बार हो ही जाती है लेकिन इस बार एसपी साब लोगों की कांफें्रस की खबर पढ़ने के बाद धड़कनें बढ़ी हुई है। पता चला है, जिन एसपी के पारफारमेंस संतोषजनक नहीं होंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। याने छुट्टी। भय की वजह यह है कि एसपी की पोस्टिंग में कोई सिफारिश नहीं चली थी। तो फिर उन्हें पारफारमेंस देना चाहिए। लेकिन, वस्तुस्थिति यह है कि कई जिलों मे पोलिसिंग की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कई बड़े नाम वाले एसपी साब लोगों के जिले में पोलिसिंग बेपटरी है। मुख्यमंत्री ने जबकि चेताया हुआ है कि जुआ, सट्टा जैसे अपराधों पर अंकुश लगाई जाए। लेकिन, कई एसपी साहबानों के संरक्षण में ये सब काम हो रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वर्तमान सियासी हालात में पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम किधर से बैटिंग कर रहे हैं?
2. उदय किरण जैसे फ्री स्टाईल बैटिंग करने वाले एसपी की सूबे के किस जिले में सबसे अधिक जरूरत है?

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रविवार, 19 सितंबर 2021

आईएएस की तीन देवियां

 तरकश, 19 सितंबर 2021

आईएएस में तीन देवियां हैं….तीनों छत्तीसगढ़ कैडर की हैं लेकिन उनका ट्रेक रिकार्ड से लगता है वे डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आती हैं और फिर बॉय-बॉय कर लौट जाती हैं। एक तो राज्य बनने के बाद पहली बार बड़ी मशक्कत के बाद 2014 में रायपुर आईं। इसके बाद एक साल हायर एजुकेशन के नाम पर विदेश में रहीं। और अब फिर छत्तीसगढ़ को बॉय-बॉय। दूसरी देवी…राज्य बनने के दो-एक साल बाद दिल्ली चली गईं थीं। चूकि प्रोफाइल में एक बार कलेक्टर लिखा जाए, इसलिए छह महीने की कलेक्टरी करने के लिए लौटीं। बीजेपी सरकार ने उनके छत्तीसगढ़ आने से पहले ही कलेक्टर का आदेश निकाल दिया था। वे छह महीने की कलेक्टरी कर फिर दिल्ली चली गईं। 2016 में वे फिर छत्तीसगढ़ आईं और अभी फिर कहीं बाहर हैं, इस बारे में जीएडी बता सकता है। तीसरी देवी राज्य बनने के 15 साल बाद छत्तीसगढ़ आई थीं और पिछले साल दिल्ली लौट गईं। इसके आगे नो कमेंट्स।

रिकार्ड ट्रांसफर

राज्य बनने के बाद इतनी बड़ी संख्या में कभी ट्रांसफर नहीं हुए होंगे, जितना बड़ा 12 सितंबर की शाम हुआ। हालांकि, लिस्ट की चर्चा दोपहर में शुरू हो गई थी। लेकिन, रविवार होने के कारण लोगों को यकीं नहीं हुआ। लेकिन, सात बजते-बजते 21 आईएएस की लिस्ट निकली। फिर सरगुजा आईजी समेत पांच आईपीएस। और आधी रात से पहले 96 राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को बदल दिया गया। 96 राप्रसे अफसरों में से ज्यादतर तीन साल वाले थे, जिनका ट्रांसफर लंबे समय से पेंडिंग था।

अहम जिम्मेदारी

डॉ0 कमलप्रीत सिंह को पिछले फेरबदल में फूड और ट्रांसपोर्ट लेकर स्कूल एजुकेशन का सिकरेट्री बनाया गया तो लोग चौंके थे। लेकिन, इस बार सरकार ने न केवल उन्हें सिकरेट्री एग्रीकल्चर बनाया है। साथ ही एपीसी का अहम दायित्व भी। स्कूल एजुकेशन भी उनके पास बना रहेगा। जीएडी का आईएएस शाखा भी। डीलडौल से भी पंजाबी कमलप्रीत के कंधे पर सरकार ने अब बड़ी जिम्मेदारी दे दी हैं। खेती-किसानी भी और बच्चों की शिक्षा भी। बता दें, 2002 बैच के आईएएस कमलप्रीत भारत सरकार में ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल हो चुके हैं। सरकार ने 97 बैच की एम गीता को जरूर एपीसी बना दिया था लेकिन, एसीएस लेवल से नीचे दीगर राज्यों में यह पद मिलता नहीं। ऐसे में, कमलप्रीत का प्रोफाइल ही स्ट्रांग होगा। हेल्थ, फूड, स्कूल शिक्षा, एग्रीकल्चर में भले ही बाकी चीजें ज्यादा नहीं है, लेकिन सोशल सेक्टर के इन विभागों को करने से भारत सरकार में वेटेज मिलता है।

बड़ा विभाग

लंबे समय से हांसिये पर चल रहे 2006 बैच के आईएएस भूवनेश यादव का कद इस पोस्टिंग में बढ़ा है। सरकार ने उन्हें उच्च शिक्षा के विशेष सचिव का स्वतंत्र प्रभार के साथ ही बीज विकास निगम का प्रबंध संचालक बनाया है। सिकरेट्री टू सीएम सिद्धार्थ कोमल परदेसी को भी पीडब्लूडी के साथ अब माईनिंग मिल गया है। सिकरेट्री टू सीएम का पद है ही। ये दोनों अहम विभाग राज्य बनने के बाद सिर्फ एक बार सुबोध िंसंह के पास रहा। सुबोध के पास माईनिंग पहिले से था, 2018 की शुरूआत में पीडब्लूडी भी मिल गया था। राजेश राणा का भी काफी समय से ठीक-ठाक नहीं चल रहा था। अब एमडी पाठ्य पुस्तक निगम बनाया गया है। नरेंद्र दुग्गे को भी संचालक समग्र शिक्षा मिला है। आश्चर्यजनक तौर पर आर प्रसन्ना, एलेक्स पाल मेनन और जूनियर में अभिजीत सिंह पिच पर जम नहीं पा रहे। प्रसन्ना से पंचायत भी ले लिया गया। याने उनके पास बचा कौशल विकास। एलेक्स को भी प्रशासन एकेडमी। और छह महीने में कलेक्टरी से वापिस बुलाए गए अभिजीत को पाठ्य पुस्तक से विदा कर सीएलआर और मुद्रण का जिम्मा दिया गया है।

नाराजगी नहीं?

रायपुर एसएसपी अजय यादव को सरकार ने आधी रात को हटाया तो यह सवाल उठा कि सरकार आखिर नाराज क्यों हो गई राजधानी के कप्तान से। लेकिन, हफ्ते भर के भीतर उन्हें सरगुजा का प्रभारी आईजी अपाइंट करने से साफ हो गया कि अजय से नाराजगी जैसी बात नहीं होगी। क्योंकि, सरकार नाराज होती है तो फिर बिना आईजी बनें रेंज का प्रभार थोड़े देती। नाराजगी का मतलब होता है पीएचक्यू में बिना विभाग की पोस्टिंग।

रमेश बैस भी!

उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने इस्तीफा दे दिया है। उनके विधानसभा चुनाव लड़ने की खबर है। बेबी रानी के इस्तीफा से त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के समर्थक एक बार फिर आशान्वित हो गए हैं। वो इसलिए कि राज्यपाल बनने के बाद ऐसा नहीं कि पालिटिकल कैरियर खतम हो गया। अर्जुन सिंह जैसे कुछेक नाम है, जो राज्यपाल बनने के बाद फिर सक्रिय राजनीति में आए और चमके भी। रही बात रमेश बैस की तो वे रायपुर से सात बार सांसद रह चुके हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव से पहले वे केंद्रीय राज्य मंत्री थे। प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए पहले उनसे ही पूछा गया था। उनकी अनिच्छा के बाद रमन सिंह को छत्तीसगढ़ भेजा गया। और वे 15 साल मुख्यमंत्री रहे। रमन सिंह की पहली पारी में ये खबर हमेशा चर्चा में रही कि बैसजी कभी भी कमान संभाल सकते हैं। सरकार के खिलाफ बैस काफी मुखर भी रहे। लेकिन, बात बनी नहीं। बेबी रानी के बाद अब बैस के समर्थकों को उम्मीद बंध गई है कि भाजपा के इस शीर्ष कुर्मी नेता को एक बार सूबे में फिर किस्मत आजमाने का मौका मिल सकता है।

हफ्ते का व्हाट्सएप

मन चाहा पति पाने के लिए हरतालिका तीज, करवा चौथ, सावन सोमवार, शिवरात्रि व्रत और मनचाही पत्नी पाने के लिए यूपीएससी, पीएससी, एसएससी, व्यापम, रेलवे आदि…ईश्वर ये बहुत नाइंसाफी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भिलाई नगर निगम के आईएएस कमिश्नर ऋतुराज रघुवंशी को आरडीए का सीईओ क्यों बना दिया गया?
2. इस खबर में कितनी सत्यता है कि दो-तीन कलेक्टरों की लिस्ट निकल सकती है?

शनिवार, 11 सितंबर 2021

आरआर लाईन के एसपी

 संजय के दीक्षित

तरकश, 12 सितंबर 2021
आईबी में तीन साल के डेपुटेशन कर छत्तीसगढ़ लौटे आईपीएस बद्रीनारायण मीणा को राज्य सरकार ने दुर्ग का एसएसपी अपाइंट किया है। दुर्ग की कप्तानी संभालने के साथ ही मीणा ने एसपी का न केवल अपना पुराना रिकार्ड ब्रेक किया बल्कि उन्होंने आरआर लाईन कंप्लीट कर लिया है। मई 2018 में आईबी में प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले मीणा आठ जिलों के एसपी रह चुके थे। दुर्ग उनका नौंवा जिला है। छत्तीसगढ़ में किसी और आईपीएस को ऐसा मौका नहीं मिला है। अब आएं आरआर लाईन पर। आईपीएस में पोस्टिंग की दृष्टि से आरआर लाईन का बड़ा क्रेज रहता है। कह सकते हैं…अमूमन आईपीएस का सपना होता है आरआर लाईन कंप्लीट नही ंतो कम-से-कम आधा तो हो ही जाए। आरआर लाईन रायगढ़ से लेकर राजनांदगांव को बोलते हैं। बद्री रायगढ़, जांजगीर, बिलासपुर, रायपुर और राजनांदगांव के एसपी रह चुके हैं। उनका सिर्फ दुर्ग छूटा था। वो भी अब पूरा हो गया। छत्तीसगढ़ में किसी भी आईपीएस ने आआर लाईन को कंप्लीट नहीं किया है। अशोक जुनेजा और दिपांशु काबरा का एक-एक जिला बच गया। हां…रायपुर कप्तान प्रशांत अग्रवाल जरूर बड़ी तेजी से बद्री का पीछा कर रहे हैं। प्रशांत जांजगीर, राजनांदगांव, बिलासपुर, दुर्ग होते हुए रायपुर पहुंचे हैं। उनका अब केवल एक जिला बच गया है, वो है रायगढ़। आईपीएस लॉबी में समझा जाता है बद्री का रिकार्ड प्रशांत तोड़ेंगे। लेकिन, इसके बाद कोई नहीं। क्योंकि, अब आईपीएस कैडर में संख्या बढ़ती जा रही है। अब तीन-चार जिले की कप्तानी मिल गई तो बहुत है।

केके लाइन

केके लाईन कांकेर से लेकर किरंदूल यानी दंतेवाड़़ा को बोला जाता है। हालांकि, अब तो आईपीएस की पहली पोस्टिंग आमतौर पर बस्तर में हो रही है या फिर शुरू में एकाध जिला बस्तर दिया जा रहा है। पहले के कई आईपीएस ऐसे हैं, जो बस्तर कभी गइबे नहीं किए….आरआर लाईन पर अपनी कप्तानी पूरी कर ली। बहरहाल, केके लाईन में डॉ0 अभिषेक पल्लव का नाम सबसे उपर है। कोंडागांव के बाद वे पिछले साढ़े तीन साल से दंतेवाड़ा में फंसे हुए हैं। यहां से कब निकलेंगे, अब वे भी सोचना बंद कर दिए होंगे। केके लाईन वाले आईपीएस में संतोष सिंह, अभिषेक मीणा, जीतेंद्र शुक्ला, केएल ध्रुव जैसे नाम भी थे। लेकिन, फिलहाल ये सभी केके लाईन से निकल गए हैं। इनमें से क्रीज पर सिर्फ अभिषेक मीणा और संतोष सिंह हैं। अभिषेक बिलासपुर, कोरबा के बाद रायगढ़ के कप्तान हैं। केके लाईन के बाद आरआर लाईन पर भी अभिषेक ने अच्छी रफ्तार पकड़ लिए हैं।

आईएएस एसोसियेशन

प्रिंसिपल सिकरेट्री मनोज पिंगुआ को आईएएस एसोसियेशन का नया प्रेसिडेंट चुना गया है। सीके खेतान के रिटायरमेंट के बाद प्रेसिडेंट का पद 31 जुलाई से रिक्त था। कुछ दिन पहले आईएएस एसोसियेशन की बैठक में पिंगुआ को प्रेसिडेंट घोषित किया गया। प्रमुख सचिव रहते एसोसियेशन का अध्यक्ष बनने वाले वे छत्तीसगढ़ के पहले आईएएस हैं। आमतौर पर इस पद पर चीफ सिकरेट्री के समकक्ष अफसरों को बिठाया जाता है। खेतान से पहले एन बैजेंद्र कुमार और बीके एस रे एसीएस थे। पिंगुआ से सीनियर हालांकि, रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू हैं। लेकिन, हो सकता है वे दोनों इंटरेस्ट नहीं दिखाए होंगे। वैसे भी छत्तीसगढ़ में एक बड़ा अजीब मिथक स्थापित हो गया है…जो आईएएस एसोसियेशन का अध्यक्ष बनता है वह मुख्य सचिव नहीं बन पाता। दरअसल, एन बैजेंद्र कुमार और सीके खेतान के साथ ऐसा हुआ। हालांकि, मनोज पिंगुआ का अभी लंबा सफर है। 2024 में वे एसीएस बनेंगे। उसके बाद 2029 तक उनकी सर्विस है। इसलिए, हो सकता है वे इस मिथक के प्रभाव से बच जाएं।

आईएएस की …….!

सोशल मीडिया की गैर जिम्मेदारानापन की शायद ये पराकाष्ठा होगी…दो दिन पहले अचानक सोशल मीडिया में छत्तीसगढ़ के एक महिला आईएएस अधिकारी के साथ अनिष्ट की खबरें वायरल होने लगी। चूकि आईएएस का मामला था, लिहाजा उत्सुकतावश लोग एक-दूसरे को लगे फोन खड़खड़ाने। जबकि, वास्तविकता यह है थी कि महिला आईएएस एकदम स्वस्थ्य हैं…और खबर वायरल के एक दिन पहले ही वे मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शरीक हुई थीं। अभी कुछ महीने पहिले बिना तहकीकात किए एक महिला आईएएस के बेटे की गुंडागर्दी की खबरें सोशल मीडिया ने चला दी थी। बाद में पता चला किसी दूसरी महिला आफिसर का मामला था। मगर नाम एक होने के कारण सोशल मीडिया ने उसे लपक लिया। वाकई! ये बेहद गंभीर है।

विधायकों की किस्मत

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आंधी में जब पार्टी को 90 में से एकतरफा 68 सीटें मिली तो सरकार बनने के बाद भी विधायकों में मायूसी झलक रही थी कि इतनी भीड़ में उन्हें पूछेगा कौन? लेकिन, ठभ्क ही कहा गया है…आदमी नहीं, वक्त बड़ा होता है। विधानसभा चुनाव के कुछ अरसा बाद ही विधायकों की किस्मत ऐसी पलटी कि पूछिए मत! विधायकों के कोई काम नहीं रुकते। पिछले एक साल में कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर में भी विधायकों के पसंद, नापसंद को वेटेज दिया जा रहा।

झूम रहा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में कुछ दिनों से सियासी नारा चल रहा है…डोल रहा है छत्तीसगढ़, अड़ा हुआ है छत्तीसगढ़। लेकिन, देखने में ऐसा लगता नहीं। सूबे की दोनों बड़ी पार्टियों को देखकर लगता नहीं कि छत्तीसगढ़ डोल रहा या कोई सियासी उलझन है। पहले जगदलपुर में भाजपा नेता ये पान वाला बाबू पर जमकर थिरके तो मुख्यमंत्री निवास में तीजा कार्यक्रम में रायपुर के भाटो पर मुख्यमंत्री, मंत्री, नेता, कार्यकर्ता सभी झूमे ही दिल्ली से इस अवसर पर रायपुर आईं कांग्रेस नेत्रियां भी अपने को रोक नहीं सकीं। तो फिर ये क्यों नहीं कहना चाहिए…झूम रहा है छत्तीसगढ़।

अंत में दो सवाल आपसे
1. किस जिले के पुलिस अधीक्षक का विकेट उड़ते-उड़ते बच गया?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो दो तरफा निष्ठा दिखाने की कोशिश में अपना नंबर कम करते जा रहे हैं?

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आईएएस की हिन्दी

 संजय के दीक्षित

तरकश, 5 सितंबर 2021

आईएएस की हिन्दी

ग्लोबल इंवेस्टर्स मीटिंग की खबर आई तो 10 साल पहले नवंबर 2012 में हुए पहले इंवेस्टर्स मीट की याद ताजा हो गई। उस समय मुंबई के रोड शो में एक बडा दिलचस्प वाकया हुआ था। इंवेस्टर्स मीट के बारे में बताने के लिए एक गैर हिन्दी भाषी आईएएस खड़े हुए। दो-तीन लाईन टूटी-फूटी हिन्दी में उन्होंने छत्तीसगढ़ के बारे में बताया। फिर, इस शब्द पर आकर उनकी गाडी अटक गई….एक बार आप छत्तीसगढ आएंगे तो….आईएएस को कुछ सूझ नहीं रहा था कि इसके आगे क्या बोलना चाहिए। पीछे भीड़ जुटाने की दृष्टि से कुछ चिरकुट टाईप उद्योगपति बैठे थे, जिनका इंवेस्ट से कोई लेना-देना नहीं होता। इंवेंट आरगेनाइजिंग कंपनियां भीड़ दिखाने के लिए उन्हें जुटा लेती है। उनमें से कुछ लोग हौले से बोल बैठे…एक बार आओगे तो फिर दोबारा नहीं आओगे। मौके की नजाकत को भांपते मुख्यमंत्री रमन सिंह ने तुरंत सामने रखे माइक उठाया और बोले…हिन्दी कमजोर होने के कारण वे ठीक से अपनी बात रख नहीं पा रहे। इनके कहने का मतलब यह है कि एक बार छत्तीसगढ़ आएंगे तो बार-बार आएंगे। इस पर जमकर ठहाके लगे थे।

सबक ले सरकार

अगले साल जनवरी में आयोजित होने वाले इंवेस्टर्स मीट के लिए अच्छी बात यह है कि इसमें सरकार का कोई खर्चा नहीं होगा। इसके लिए प्रायोजक मिल गया है, जो मेला स्थल पर एडवर्टाइजिंग से अपना खर्चा निकालेगी। मगर सरकार को यह देखना चाहिए कि एमओयू के साथ उद्योग लगाने की एक हद तक गांरटी मिले। क्योंकि, 2012 के इंवेस्टर्स मीट का कड़वा सच यह है कि साढ़े तीन लाख करोड़ के पूंजी निवेश के लिए 275 एमओयू हुए थे। उनमें से मात्र सात कंटीन्यू हैं। बाकी सभी इसलिए निरस्त हो गए क्योंकि, उन्होंने दस साल में एक ढेला काम नहीं किया। जिन सात के एमओयू अभी अस्तित्व में हैं, उनकी दस साल में कुल जमा उपलब्धि यह है कि जमीन लेकर बाउंड्री बना ली है। कब प्लांट लगाएंगे और तब उत्पादन प्रारंभ होगा, इसका कोई भरोसा नहीं। सरकार को एमओयू की संख्या की बजाए इस पर ध्यान देना चाहिए कि ठोस लोगों के साथ एमओयू किया जाए, जो उद्योग लगाने के प्रति गंभीर हो।

पहले कप्तान

राजधानी रायपुर के एसएसपी अजय यादव सूबे के ऐसे पुलिस कप्तान होंगे, जिनकी पोस्टिंग के साथ ही हटने की चर्चाएं शुरू हो गई थी। कोई महीना ऐसा नहीं गुजरता कि लोग दावे नहीं करते कि बस, अजय यादव अब जाने वाले हैं। जून में जब उनका एक बरस पूरा हुआ तो लोग ऐलानिया बोलने लगे थे…कप्तान दुर्ग रेंज प्रभारी बनकर जा रहे हैं। वैसे, कम लोगों को पता है कि अजय यादव को रायपुर का एसपी बनाए जाने के पहले लिस्ट से उनका नाम कट जाने की चर्चाएं शुरू हो गई थीं। याद होगा, राजधानी की खास लॉबी ने उनका विरोध भी किया था। मगर लास्ट ऑवर में मुख्यमंत्री ने अजय के नाम के आगे चिड़िया बिठा दिया था।

अमरेश चले विलायत

2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा हायर स्टडी के लिए विलायत जा रहे हैं। लंदन स्थित आक्सफोर्ड में एक साल के पब्लिक पॉलिसी कोर्स के लिए उनका सलेक्शन हुआ है। अमरेश फिलहाल डेपुटेशन पर एनआईए में हैं। वे डीआईजी लेवल के अधिकारी हैं। दंतेवाड़ा, कोरबा, दुर्ग और रायपुर के पुलिस कप्तान रह चुके हैं। 2019 में प्रतिनियुक्ति पर वे दिल्ली गए थे।

राजभवन का रिकार्ड

आमतौर पर राज्यपालों को रबड़ स्टैम्प माना जाता है…राजभवन की उंची चाहरदीवारियों में आम आदमी का प्रवेश वर्जित रहता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनसुईया उइके इससे इतर राजभवन की मिथकों को तोड़ते हुए आम आदमी के लिए राजभवन का द्वार खोलकर एक अलग नजीर पेश की है। दो साल के कार्यकाल में उनका एक साल कोरोना में गुजरा। इसके बावजूद राजभवन के रजिस्टर में राज्यपाल से मिलने वालों की संख्या 16 हजार को लांघ गई है। वाकई यह रिकार्ड होगा। बड़े राज्यों के राज्यपाल से पांच साल में इतने लोग नहीं पाते।

ब्यूरोक्रेसी की अग्निपरीक्षा

आईएएस, आईपीएस की सर्विस भले ही देश की सर्वोच्च सर्विस मानी जाती होगी मगर सेवाकाल में उन्हें कितना कंप्रोमाइज करना पड़ता है आप कल्पना नहीं कर सकते। आईएएस, आईपीएस की सर्विस उम्र के अनुसार आमतौर पर 30 से 32 साल की होती है। इनमें से करीब पांच साल तो निष्ठा साबित करने में निकल जाता है कि हम पिछली सरकार के आदमी नहीं हैं। पांच साल उस हिसाब से कैलकुलेट किया जाता है कि 30-32 साल में तीन-से-चार मुख्यमंत्री बदल जाते हैं। और जब भी सरकारें बदलती हैं, नौकरशाहों को फिर से वफादारी की परीक्षा पास करनी होती है। वैसे भी, दो-एक अपवादों को छोड़ दें ंतो 30 साल की सर्विस में किसी भी नौकरशाह की 10 साल की पोस्टिंग ही क्रीम होती हैं। 10 साल सामान्य रहता है और 10 साल बहुत बुरा। याने लूप लाईन। नौकरशाह इसे सूत्रवाक्य मानकर चलते हैं।

चिंतन में चिंता-1

भाजपा ने मिशन-2023 को लेकर बस्तर में तीन दिन का चिंतन शिविर किया। लेकिन, कारोबारी नेताओं को चिंतन शिविर से बाहर रखने का नतीजा यह हुआ कि मीडिया में चिंतन से ज्यादा विवादों को प्रमुखता मिल गया। समझा जाता है, पार्टी के शीर्ष नेताओं ने लोगों को मैसेज देने के लिए कारोबारी नेताओं को नजरअंदाज किया। गौरीशंकर अग्रवाल, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत सरीखे नेताओं को चिंतन शिविर से किनारे कर दिया गया। बृजमोहन अग्रवाल चूकि विधायक हैं, इसलिए उन्हें आमंत्रित किया गया। बृजमोहन ने वैसे भी अपना कद ऐसा बना लिया है कि भले ही उन्हें कोई बड़ा दायित्व न सौंपा जाए, किंतु उन्हें किनारे भी नहीं किया जा सकता। उधर, मोर्चा, प्रकोष्ठों के प्रमुखों को भी बुलौवा नहीं भेजा गया। जाहिर है, पार्टी का ये रुखा व्यवहार उन्हें भी खटका होगा। रही-सही कसर आखिरी दिन पूरी हो गई, जब प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी की जुबां फिसल गई।

चिंतन में चिंता-2

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिछड़े वर्गों के ध्रुवीकरण की चिंता बीजेपी के चिंतन शिविर में भी दिखी। बताते हैं, चिंतन शिविर का ब्लू प्रिंट इस लाइन पर तैयार किया गया था कि पिछड़े वर्ग के ध्रुवीकरण से निबटने पार्टी को क्या करना चाहिए। और किस तरह कांग्रेस को पटखनी देते हुए सूबे में भाजपा की सत्ता फिर से स्थापित किया जाए। तीन दिन की मंथन में सार यही निकला कि पार्टी की कमान तेज और बोलने वाले ओबीसी नेता को सौंपा जाए। पार्टी के एक बड़े नेता का दावा है कि चिंतन में हुई चिंता का असर एकाध महीने के भीतर दिख जाएगा। संगठन में सिरे से बदलाव किया जाएगा। अजय चंद्राकर, विजय बघेल, अरुण साव और ओपी चौधरी में से कम-से-कम दो को बड़ा दायित्व मिल सकता है।

छत्तीसगढ़ में तीसरी पार्टी?

बीजेपी के चिंतन शिविर में इस बात पर भी बड़े नेताओं के बीच चर्चा हुई कि सूबे में तीसरी पार्टी अगर बनी तो पार्टी उससे कैसे निबटेगी। दरअसल, भाजपा को यइ चिंता इसलिए सता रही कि छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग की आबादी 50 फीसदी से अधिक है। इत्तेफाकन अगर तीसरी पार्टी का अभ्युदय हुआ तो जाहिर है, उससे वोटों का ध्रुवीकरण बदलेगा। छत्तीसगढ़ में वैसे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तीसरी पार्टी बनाई थी। लेकिन, उन्हें वो कामयाबी नहीं मिल पाई, जिनकी उन्हें उम्मीद थी। रही-सही कसर कांग्रेस की एकतरफा जीत ने खतम कर दी। वरना, उनकी और बसपा की सात सीटें निर्णायक हो सकती थी। जोगी से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ला ने 2003 के विस चुनाव में एनसीपी के साथ इसका प्रयोग किया था। तब सीट तो मात्र एक मिली मगर जोगी सरकार की विदाई में एनसीपी के सात फीसदी वोट अहम कारक बने। क्योंकि तब कांग्रेस से साढ़े तीन फीसद वोटों की बढ़त लेकर भाजपा ने सरकार बनाई थी। अगर सात प्रतिशत वोट वीसी शुक्ला शिफ्थ नहीं कराए होते तो भाजपा किसी भी सूरत में सरकार नहीं बना पाती। चिंतन शिविर में बंद कमरे में शीर्ष नेताओं के बीच इस पर भी गंभीर मंत्रणा हुई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस भाजपा नेत्री से एक बड़े भाजपा नेता इन दिनों किसलिए बड़े घबराए और सहमे-सहमे से नजर आते हैं?
2. क्या यह सही है कि ट्रांसपोर्ट विभाग में ताकतवर अफसरों से ज्यादा एक ड्राईवर की चलती है?

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