रविवार, 27 फ़रवरी 2022

वाह एसपी साब!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 27 फरवरी 2022

सूबे में पोस्टेड एक एसपी साब शौकीन मिजाज के माने जाते हैं। महंगी जगहों पर छुट्टियां मनाना...महंगा शौक फरमाना उनका प्रिय शगल हैं। एसपी साब के बारे में माना जाता है कि वे जहां भी पोस्ट होते हैं, सबसे पहिले एसपी बंगले को अपने अंदाज में रिनोवेट कराते हैं। मगर इस बार उन्होंने ऐसा इंटीरियर करवा डाला कि आरआई माथा पकड़ लिया। पूरे 55 लाख का बिल। आरआई बिल लेकर साब के पास गया तो जमकर झाड़ मिल गई। ठीक भी है, आरआई को कप्तान का लिहाज करना चाहिए न। एसपी के संरक्षण में आरआई लाइन में बैठकर कागजों में किराये की गाडियां दौड़ाकर लाखों का खेल करते है...तमाम धतकरम भी...फिर भी कप्तान से बिल पास करने की उम्मीद। ऐसे में भला किस कप्तान को गुस्सा नहीं आएगा।

सिकरेट्री भी

ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों को तीन चीज का बड़ा चार्म रहता है। बढ़ियां पोस्टिंग, बढ़ियां बंगला और और कम-से-कम तीन बढ़ियां गाड़ी। एक अपने लिए, एक वाइफ और एक बच्चों के लिए। ये तीन चीजें गर मिल गइ, तो उनके आईएएस बनने का उद्देश्य पूरा। बहरहाल, उपर में बात बंगले की हो रही है थी तो बता दें कि कुछ साल पहले एक महिला आईएएस को राजधानी के देवेंद्र नगर आफिसर्स कालोनी में बंगला अलाट हुआ था। उन्होंने रिनोवेशन के लिए विभाग के ठेकेदार से इतना तोड़-फोड़ करवा दी कि बात कालोनी में फैल गई। सरकार ने उनका विभाग बदल दिया था।

पैसा बड़ा या कैरियर

सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश की बात है....ऑल इंडिया सर्विस के कई अच्छे अधिकारी इसी पोस्टिंग, बंगला और गाड़ियों के फेर में अपना अच्छा-खासा कैरियर खराब कर लेते हैं। सेंट्रल डेपुटेशन में डायरेक्टर पर कोई गाड़ी नहीं मिलती। यहां के सिकरेट्री वहां ज्वाइंट सिकरेट्री होते हैं, उनके पास भारत सरकार से सिर्फ एक गाड़ी होती है। यही वजह है, अधिकांश ब्यूरोक्रेट्स सेंट्रल डेपुटेशन से परहेज करते हैं। असल में, राज्यों में प्रोबेशन में ही इतना तामझाम मुहैया हो जाता है कि दिल्ली उनके लिए दूर हो जाती है। छत्तीसगढ़ में आईएएस, आईपीएस को प्रोबेशन में ही इनोवा मिल जाती है। भारत सरकार में डिप्टी सिकरेट्री याने कलेक्टर लेवल के अधिकारियों को शेयर की गाड़ी में दफ्तर आने की मजबूरी। वैसे, स्मार्ट आईएएस, आईपीएस अपने स्टेट में भी काम कर लेते हैं और डेपुटेशन भी कर आते हैं।

अफसर बड़े या सरकार?

सरकार जमीनों का गाइडलाइन रेट तय करें और रजिस्ट्री अधिकारी उसे कम कर दें, आप विश्वास कर सकते हैं। बिल्कुल नहीं...किसी को भी विश्वास नहीं होगा। हमने राजस्व बोर्ड के एक सीनियर अधिकारी से पूछा, उनका जवाब भी यही था, बिल्कुल नहीं। जबकि, जबरिया न्यायालय बताकर सरकार के रेट को कम करने का ये खेल सालों से चला आ रहा है। रायपुर में एक सराफा व्यापारी ने इस महीने खुश होकर स्तंभकार को बताया...मैंने 35 फीसदी रेट कम करवा लिया, जबकि बाकियों का 25 फीसदी से अधिक कम नहीं होता। सरकार और राजस्व बोर्ड के अधिकारियों को जब नहीं मालूम तो व्यापारी को क्या पता...25 फीसदी नहीं, बड़े बिल्डर्स और भूमाफिया गाइडलाइन रेट से 50 से 75 परसेंट तक कम करवा लेते हैं। औद्योगिक भूमि कृषि में बदल जाता है। ऐसा नहीं होता तो बड़े-बड़े अरबपति बिल्डर रजिस्ट्री अधिकारियों की खुशामद में क्यों लगे रहते।

एमपी का वायरस

रजिस्ट्री विभाग से सरकार के खजाने में करीब दो हजार करोड़ राजस्व आता है। अगर जिला पंजीयक गाइडलाइन रेट कम नहीं करें तो है...तो एक मोटा अनुमान है यह राशि बढ़कर ढाई हजार करोड़ हो जाएगी। मगर न सरकार को पता है, न राजस्व बोर्ड को, इस बारे में जानकारी है। बताते हैं, सरकार के रेट को कम करने का ये वायरस मध्यप्रदेश से आया। 80 के दशक में एक रजिस्ट्री अधिकारी ने नियमों का गलत व्याख्या कर गाइडलाइन रेट को कम कर दिया। इस पर न किसी कलेक्टर ने ध्यान दिया और न राजस्व बोर्ड ने। इसके बाद रजिस्ट्री अधिकारी अपना अधिकार समझने लगे। जबकि, देश के किसी भी राज्य में गाइडलाइन रेट कम नहीं होता। सरकार चाहे तो ऑडिट करा कर जानकारी प्राप्त कर सकती है कि किस रजिस्ट्री अधिकारी ने रसूखदारों को कितना उपकृत किया। बता दें, इसकी मूल वजह जबरिया न्यायालय बताना है। सरकार के किसी भी नियम-कानून में रजिस्ट्री आफिस को कोर्ट नहीं माना गया है। मगर छत्तीसगढ़ में रजिस्ट्री अधिकारी अपना कोर्ट घोषित कर दिए हैं तो कोर्ट है।

कलेक्टरों पर सवाल

रजिस्ट्री विभाग को कलेक्टर आफ स्टांप कहा जाता है। मगर किसी भी कलेक्टर को सुध नहीं रहता कि उनकी नाक के नीचे रजिस्ट्री अधिकारी क्या गुल खिला रहे हैं। राजस्व विभाग भी चीफ सिकरेट्री को लिख चुका है कि रजिस्ट्री सिस्टम को ठीक करना है तो 50 लाख से उपर की जमीन या मकान की रजिस्ट्री का अनुमोदन कलेक्टर करें। लेकिन, कोई कलेक्टर ये करना नहीं चाहता, क्योंकि इसमें कलम फंसेगा। बिना कलम फंसे बड़े रजिस्ट्रियांं का हिस्सा पहंच जाता है तो फिर रिस्क क्यों लें।

ब्यूरोक्रेसी का कांफिडेंस

सरकार ने कोरबा में कलेक्टर और डीएफओ के बीच हुई तकरार के बाद डीएफओ को हटा कर वापिस मुख्यालय बुला लिया। बताते हैं, डीएफओ ने एकलव्य आवासीय विद्यालय के लिए लैंड देने से दो टूक इंकार कर दिया था। इससे पहिले मुंगेली में सीईओ रोहित व्यास के साथ महिला नेत्री की अभ्रदता की शिकायत पर भी सिस्टम रोहित के साथ खड़ा हुआ। महिला नेत्री के खिलाफ न केवल मुकदमा दर्ज किया गया बल्कि रोहित को प्रमोशन देकर जगदलपुर का सीईओ अपाइंट किया गया। 2005 बैच की आईएएस संगीता आर सरकार के शपथ लेते ही छुट्टी पर चली गई थीं। उनके बारे में आम चर्चा यह थी कि दुर्ग के कलेक्टर रहने के दौरान सरकार उनसे नाराज थी और छुट्टी से लौटने पर उन्हें जल्दी विभाग नहीं मिलने वाला। लेकिन, ज्वाईन करते ही उन्हें वन, वाणिज्य और उद्योग विभाग में पोस्टिंग मिल गई। जाहिर है, इन तीनों वाकयों से ब्यूरोक्रेसी का कांफिडेंस बढ़ा होगा।

जात न पूछा वीसी की

हंगामा...वार-पलटवार के बाद आखिरकार इंदिरा गांधी कृषि विवि में वाइस चांसलर की नियुक्ति हो गई। राजभवन ने डॉ0 गिरीश चंदेल के नाम पर मुहर लगा दिया। मगर हैरानी की बात यह है कि चर्चा इस बात की नहीं हो रही कि चंदेल कितने काबिल हैं...कितने योग्य हैं। लोगों में ये जानने की दिलचस्पी ज्यादा है कि कुलपति ठाकुर हैं, कुर्मी या सोनी। वाकई ये पराकाश्ठा है...शिक्षक की कोई जाति थोड़ी ही होती है...शिक्षक सिर्फ शिक्षक होता है।

सब खुश

छत्तीसगढ़ में यह पहली बार हुआ कि किसी कुलपति की नियुक्ति से एक साथ कई वर्ग बड़ा खुश हुआ। छत्तीसगढ़ के लोग खुश हैं कि इंदिरा गांधी कृषि विवि को पहली बार छत्तीसगढ़िया कुलपति मिला। कुषि मंत्री रविंद्र चौबे को खुशी का ठिकाना नहीं। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने राज्यपाल अनसुईया उइके को थैंक्स दे डाला। उधर, ओबीसी वर्ग के लोग प्रसन्न हैं कि हमारे बिरादरी में कुलपति की संख्या में इजाफा हो गया। और भाजपा और जनसंघ वाले खुश हैं कि कुलपति अपने आदमी हैं। है न कमाल की बात।

डीपीसी पर ब्रेक

आईपीएस की डीपीसी हो गई। फाइल आगे के प्रॉसेज के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय गई है। गृह विभाग ने कहा है कि डीपीसी प्रक्रिया में है, यथासमय आदेश निकलेगा। मगर लाख टके का सवाल यही है कब? पिछले साल भी गृह विभाग जल्दी में नहीं था। सो, नवंबर में आदेश निकला। पता चला है, दुर्ग के एसएसपी बद्री मीणा आईजी बनने वाले हैं। दुर्ग में वे चीजों को इस कदर ठीक कर दिए हैं कि उनका विकल्प गृह विभाग को सूझ नहीं रहा। ये सौ फीसदी सही है कि बद्री प्र्रमोशन के साथ ही एक हाई प्रोफाइल रेंज के आईजी बनेंगे। लेकिन, फिर वही सवाल...कब? चूकि गृह विभाग ने कहा है यथासमय आदेश निकलेगा। सो, गृह विभाग के एसीएस सुब्रत साहू से मालूम करना पड़ेगा। अगर पता चला तो अगले तरकश में हम बताएंगे।

सरकार का झंझट

सचिन पायलट के चक्कर में अपना नम्बर बढ़ाने के फेर में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मुसीबत बढ़ा डाली। पुरानी पेंशन योजना लागू करने का ऐलान का क्या किया हर कर्मचारी संगठन सिर्फ पेंशन की बात कर रहा। पत्रों, ज्ञापनों और विज्ञप्तियों का दौर शुरू हो गया है। अब देखना है, सरकार इससे कैसे पार पाती है।

हफ्ते का व्हाट्सएप

'कोई तूझे छूकर तो दिखाए, सा...के हाथ-पैर तोड़ देंगे, ऐसा बोलकर बंदे की धुलाई के वक्त गायब हो जाने वाले दोस्त सिर्फ गली-मुहल्ले में नहीं होते, NATO में भी पाए जाते हैं।'

अंत में दो सवाल आपसे

1. जून में छाया वर्मा की खाली हो रही राज्यसभा सीट पर क्या कांग्रेस का कोई बड़ा नेता दिल्ली जाएगा?

2. सूबे के कुछ पुलिस अधीक्षकों को कैलकुलेटर वाला एसपी क्यों कहा जा रहा है?


रविवार, 20 फ़रवरी 2022

ऐसे वकील, ऐसे तहसीलदार

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 20 फरवरी 2022

रायगढ़ में वकीलों और तहसील आफिस के स्टाफ के बीच बेहद शर्मनाक घटना हुई। प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को लोगों ने कैमरे पर लुच्चों की तरह गाली-ग्लौज और मारपीट करते देखा। निश्चित तौर पर इस घटना ने वकीलों की प्रतिष्ठा को गहरा ठेस पहुंचाया है। मगर बात इस पर भी होनी चाहिए कि एक ही थैली के चट्टे-बट्टे कहे जाने वाले वकीलों और तहसीलदार के बीच ये अप्रिय स्थिति उत्पन्न हुई कैसे? खैर इस पर चर्चा लंबी हो जाएगी, किन्तु लोगों के संज्ञान में यह अवश्य रहना चाहिए कि रायगढ़ के तहसीलदार आखिर हैं कौन...जो वकीलों से विवाद के तुरंत बाद खिसक लिए और उनके स्टाफ वकीलों के शिकार हो गए। सुनील अग्रवाल छत्तीसगढ़ के चर्चित तहसीलदार हैं। सारंगढ़ के तहसीलदार रहते पिछले साल उन पर वारे क्लिनिक के डॉक्टर से तीन लाख रुपए रिश्वत के आरोप लग थे। तहसीलदार और उनकी टीम डाक्टर के क्लिनिक में कोविड मरीज भर्ती की जांच करने गए और बड़ा खेल कर डाला। इस मामले की जांच हुई और बिलासपुर के संभागायुक्त संजय अलंग ने 3 जून 2021 को उन्हें सस्पेंड कर दिया। इससे पहिले 2019 में बिलासपुर के तहसीलदार रहते रतनपुर के शहीद नूतन सोनी के परिजनों की जमीन के बंटवारानामा की फाइल सुनील अग्रवाल ने छह महीने तक लटकाए रखा...तब भी उन पर गंभीर आरोप लगे थे। कांग्रेस लीगल सेल के उपाध्यक्ष के हस्तक्षेप पर तत्कालीन कलेक्टर ने तहसीलदार को तलब कर हड़काया। कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार ने शहीद के घर जाकर खेद व्यक्त किया। दिलचस्प यह है कि सारंगढ़ में रिश्वत कांड में सस्पेंड होने के तीन महीने बाद राजस्व विभाग ने सुनील अग्रवाल को प्रमोट करके रायगढ़ जिला मुख्यालय का तहसीलदार बना दिया गया। अब ऐसे तहसीलदार जहां रहेंगे, वहां सब कुछ अच्छा होगा इसकी उम्मीद कैसे और क्यों करनी चाहिए।

 रेवेन्यू कोर्ट क्यों-1

जमीन जायदाद के मामलों में आम आदमी के लिए सबसे बड़ी परेशानी की वजह राजस्व कोर्ट हैं। ये आप इससे समझ सकते हैं कि राजस्व बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन डीएस मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में किसी तहसीलदार पर तल्ख टिप्पणी की थी किस तरह एक केस की सुनवाई उसने 79 बार टाली थी। जाहिर है, नायब तहसीलदार से लेकर उपर तक के अधिकारी कोर्ट की आड़ में गड़बड़ फैसलों के बाद भी जिम्मेदारी से बच जाते हैं। हाईकोर्ट हर साल चार-पांच गलत फैसलों की वजह से जजों को बर्खास्त करता है। क्या राजस्व अधिकारियों पर ऐसी कार्रवाइयां होतीं हैं? कदापि नहीं। राजस्व न्यायालयों में कोर्ट के नियम-कायदों का राई भर भर पालन नहीं किया जाता। मगर धौंस...कोर्ट है। अलबत्ता, ऐसे खटराल अफसरों के लिए कोर्ट ढाल बन जाता है। सूबे के एक एसडीएम जमीन के गोरखधंधे में बर्खास्त होने के बाद भी हाईकोर्ट से बहाल कर दिए....क्यों? क्योंकि, उनके वकीलों ने तर्क दिया कि एसडीएम की कोर्ट ने फैसला दिया था। एक प्रमोटी आईएएस भी मानते हैं कि राजस्व न्यायालय के चक्कर में आम आदमी पिसता है। अफसर गलत फैसला करता है कोई आपत्ति हो तो कहा जाएगा उपर में अपील कर दो। और कमिश्नर कोर्ट तक अपील पहुंचते-पहुंचते सालों लग जाता है...अंग्रेजों की ये व्यवस्था कायदे से बंद करना चाहिए। 

रेवेन्यू कोर्ट क्यों-2  

भूपेश कैबिनेट ने 62 साल पुराने भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पर मुहर लगा दिया है। विस में विधयेक पारित होने के बाद नामंतरण जैसी कई प्रक्रियाएं सरल हो जाएंगी। इसके साथ ही सरकार को राजस्व कोर्ट पर भी फोकस करना चाहिए। तेलांगना ने पिछले साल राजस्व कोर्ट सिस्टम खतम कर दिया। बाकी राज्यों में भी इस पर विचार चल रहा है। दरअसल, नौकरशाही एक्ट का रोड़ा लगा देती है। अगर एक्ट है भी तो उसे बदला तो जा सकता है। इसी राज्य में कई दृष्टांत हैं, जब एक्ट चेंज किए गए। वैसे भी, 1960 में बने भू-राजस्व संहिता में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि विवादित जमीन का कोई मामला होगा, तब राजस्व न्यायालय कहा जाएगा। मगर यहां नायब तहसीलदार से लेकर उपर तक छोटे-छोटे फैसले....मसलन जाति प्रमाण पत्र भी राजस्व न्यायालय के लेटरपैड पर देते हैं। वाकई ये पराकाष्ठा है।  

ये भी जानिये

तरकश में एक जिला पंजीयक के खिलाफ खबर छपी...जिला पंजीयक ने माईनिंग लीज के प्रकरण में सरकार को करोड़ों का फटका लगा दिया। चूकि, पंजीयक कार्यालय वाले भी अपने को कोर्ट घोषित कर दिए हैं, सो कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने को लेकर स्तंभकार को कानूनी नोटिस देने के लिए विधि विषेशज्ञों से राय मशविरा किया गया। इसमें फायनली निष्कर्ष यह निकला कि पंजीयक का कोई कोर्ट नहीं होता। दरअसल, 1975 तक कलेक्टर जिला पंजीयक होते थे। राजस्व न्यायालय के तहत कलेक्टरों का कोर्ट होता है। सो, जमीनों या मकानों की रजिस्ट्री पर जिला पंजीयक कोर्ट लिखा जाता था। 75 के बाद सरकार ने जिला पंजीयक को सेपरेट कर दिया। मगर पंजीयक कोर्ट लिखना बंद नहीं हुआ। और वह अब भी जारी है। छत्तीसगढ़ में बड़े-बड़े नौकरशाह आए-गए लेकिन, किसी ने भी इस गैर कानूनी कोर्ट पर संज्ञान लेने की कोशिश नहीं की। इसमें होता यह है कि पंजीयन अधिकारी रजिस्ट्री का रेट कम-ज्यादा करने का खेल करते रहते हैं। उन्हें कोई बोल नहीं सकता, क्योंकि कोर्ट है। 

नौकरशाही का मतलब

जमीनों का नामंतरण की पेचिदगियों और राजस्व न्यायालय की आवश्यकताओं के बारे में हमने कुछ सीनियर आईएएस अधिकारियों से उनकी राय जाननी चाही। सबने एक सूर में सवाल किया, राजस्व कोर्ट भला कैसे खतम किया जा सकता है। तेलांगना ने फिर कैसे खतम कर दिया इस सवाल पर बोले, वो कर दिया होगा। काफी तर्क-वितर्क के बाद दो-तीन अफसरों ने माना कि कोर्ट खतम किया जा सकता है मगर इसके लिए भू-राजस्व संहिता में बदलाव करना होगा। तो बदलाव करके जब आम आदमी की तकलीफें दूर की जा सकती है तो किया क्यों नहीं जाता। सिर्फ इसलिए कि नौकरशाही इनोवेशन का मतलब पुरस्कार और अवार्ड जानती है। बुनियादी कामों से ज्यादा उनका सरोकार नहीं होता। चमकी-धमकी, मैं सबसे अधिक ज्ञानी...। किसी विभाग में पोस्टिंग का मतलब उनके लिए सबसे जरूरी यह जानना होता है कि वहां कितनी गाड़ियां मिल सकती है, बिल-भत्ता कहां से कितना तक रिअम्बर्स हो सकता है। यही वजह है कि दिल्ली से लेकर राज्य स्तर तक, नौकरशाहों पर संकट मंडरा रहा है। वइ इसलिए कि नौकरशाही अपने को बदलना नहीं चाहती। जबकि, समय है डे-टू-डे बदलाव का। छत्तीसगढ़ में कुछ को छोड़ दें तो बाकी सबका एक ही हाल है।   

संगीता आईं, रीना गईं

राज्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले लंबे अवकाश पर गई हैं। उनके पास राज्य सरकार में महिला बाल विकास और समाज कल्याण का एडिशनल प्रभार था। रीना के जाने से सरकार के ये दोनों विभाग वैकेंट हो गए हैं। उनकी जगह इन विभागों के लिए नया सचिव अपाइंट करना होगा। रीना की जगह नया सिकरेट्री कोई पुरूष होगा या लेडी आईएएस...यह सवालों के घेरे में है। रीना से पहले शहला निगार सिकरेट्री थीं। और उनसे पहले एम गीता। हालांकि, पुरूषों में दिनेष श्रीवास्तव, सोनमणि बोरा महिला बाल विकास के सिकरेट्री रहे हैं। उधर, 2005 बैच की आईएएस संगीता आर भी तीन साल की लंबी छुट्टी के बाद मंत्रालय में आमद दे दी हैं। जब सरकार बदली तो संगीता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिला दुर्ग की कलेक्टर थीं। संगीता सरकार का गठन होते ही छुट्टी पर चली गईं थीं।

मंत्रालय में पोस्टिंग

रीना बाबा छह महीने के लिए पर्सनल लीव पर गई हैं और संकेत हैं कि वे अवकाश को और एक्सटेंड कराएंगी। इसी बीच खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव है। ऐसे में, सरकार को तीन नामों का पैनल निर्वाचन आयोग को भेजना पड़ेगा। चूकि निर्वाचन में कोई जाना चाहता नहीं, लिहाजा कई अफसरों की धड़कनें तेज हो गई है कि सरकार कहीं मेरा नाम भेज दिया तो क्या होगा। उधर, संगीता को सरकार ने अभी कोई पोस्टिंग नहीं दी है। परिस्थितियों को देखते संगीता को फिलहाल ढंग की पोस्टिंग की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। फिर भी कुछ तो मिलेगा ही। सो, मंत्रालय में सचिव स्तर पर छोटी सूची निकलनी तय है। 

कोरोना का धोखा

अस्पताल संचालक तो रो ही रहे हैं, कोरोना की दगाबाजी से प्रायवेट स्कूल मालिकों की भी स्थिति जुदा नहीं है। बिना किसी खर्चे के मस्त दो साल तक बच्चों से फीस वसूली। जाहिर है, कोरोना में स्कूलों ने अधिकांश स्टाफ की छुट्टी कर दी। आधे वेतन पर आधे-आधे-अधूरे टीचर बचे थे। बसों के ड्राईवर, खलासी भी नाम के। कोरोना की तीसरी लहर की आहट मिलते ही स्कूलों ने जो कुछ लोड था, उसे भी हल्का कर लिया। लेकिन, कोरोना दगा दे डाला। उधर, स्कूल शिक्ष़्ा विभाग स्कूल खोलने, आफलाइन एग्जाम लेने प्रेशर बना रहा तो स्कूल मालिक राजनीतिकों की शरण ले रहे हैं। प्रायवेट स्कूल वालों का बैंक बैलेंस जरूर कई गुना बढ़ गया है मगर उतनी ही कठिनाइयां बढ़ गई है। क्योंकि, स्टाफ अब मिल नहीं रहा। तभी सरकारी स्कूल तीसरी लहर के पहले खुल गए मगर प्रायवेट वाले अगर-मगर कर रहे। 

 अंत में दो सवाल आपसे


1. दुर्ग जिले के साथ और कुछ जिलों के एसपी बदल सकते हैं क्या?

2. किस जिले में आधी रात को रजिस्ट्री आफिस खुलवाकर 200 जमीन के टुकड़ों की रजिस्ट्री की गईं?

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

नौकरी बड़ी या प्यार?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 14 फरवरी 2022

छत्तीसगढ़ के आईएएस अवनीश शरण सोशल मीडिया में काफी एक्टिव रहते हैं। उनके फेसबुक पोस्ट और ट्वीट लोगों के ध्यान खींचते हैं। वेलेंटाईन डे के मौके पर उन्होंने एक दिलचस्प ट्वीट किया....इस जन्म में नौकरी, अगले जन्म में प्यार। अब ट्वीट ऐसा है कि इस पर कमेंट्स की बाढ़ आनी ही थी। लोग लिख रहे हैं....नौकरी और प्यार दोनों एक साथ क्यों नहीं....नौकरी मिलने के बाद भी प्यार किया जा सकता है। रिटायर आईपीएस आरके विज भी इस पर मौज लेने से नहीं चूके। विज ने लिखा, पहले प्यार बाद में नौकरी....नौकरी तो मिल जाती है प्यार आसानी से नहीं मिलता...। वैसे....वो एक गाना भी है...हर किसी को नहीं मिलता...यहां प्यार जिंदगी में। बहरहाल, अवनीश को प्यार नहीं मिला या मिला तो क्या हुआ...ये पर्सनल मामला है....पूछना भी नहीं चाहिए। मगर उन्हें पता तो होगा, छत्तीसगढ़ में उन्हीं के अफसर बिरादरी के कई लोग सफलतापूर्वक सब शौक पूरे कर रहे हैं...नौकरी भी, शादी भी और प्यार भी।    

कलेक्टर्स जिम्मेदार?

पिछले 'तरकश' में आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों के भर्ती घोटाले संबंधित खबर पर संज्ञान लेते हुए स्कूल शिक्षा विभाग ने जांच के आदेश दे दिए हैं। मगर जांच के बाद कार्रवाई क्या होगी, यह सवाल अनुत्तरित है। क्योंकि, विभाग के जिन खटराल अधिकारियों ने गेम किया है, उन सबके तार कहीं-न-कहीं से जुड़े हुए हैं। सवाल ये भी उठते हैं, सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी कलेक्टरों को दी गई थी...सीएम ने वीडियोकांफ्रेंसिंग करके कलेक्टरों से कहा था, इस स्कूल को देश के लिए मिसाल बनानी है...वहां मैं भी सिफारिश करूं तो नहीं सुनना...प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला ने भी इन स्कूलों के लिए दिन-रात एक कर दिया था...बावजूद इसके कलेक्टरों ने आंखें क्यों मूंद ली। पता चला है, पोस्टिंग और डेपुटेशन के खेल में कुछ जिलों के कलेक्टर्स भी इनवाल्व हो गए। बस्तर, सरगुजा जैसे दूरस्थ इलाकों के हिंदी मीडियम वालों को डेढ़ से ढाई पेटी लेकर अंग्रेजी स्कूलों में प्रतिनियुक्ति दे दी गई। जबकि, प्रतिनियुक्ति के लिए विभाग ने नियम बनाया था कि संबंधित जिलो के शिक्षकों को ही लेना है। दरअसल, मंत्री समझे कि आत्मानंद स्कूल को अफसर देख रहे हैं और प्रमुख सचिव समझे कि सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग सीधे कलेक्टर कर रहे हैं, ऐसे में किसकी मजाल...मगर यहीं पर चूक हो गई...। खटराल अधिकारियों ने लहर गिन कर पैसा कमाने वाला काम कर डाला। अंग्रेजी स्कूलों में पैसे लेकर हिन्दी मीडियम वालों की भर्ती की ही, जिन हिंदी स्कूलों को अंग्रेजी स्कूल में तब्दील किया था, वहां के हिन्दी मीडियम के शिक्षकों को दूसरे स्कूलों में ट्रांसफर करना था, उसमें भी खेल कर दिया। इन स्कूलों के लिए खरीदी तो ऐसी हुई है कि पूछिए मत! बाजार से चार गुना, पांच गुना रेट पर। आत्मानंद स्कूल चूकि गरीबों के बच्चों के लिए है, सरकार की मंशा भी यही थी कि गरीबों के लिए भी सूब में हाई स्टैंडर्ड का पब्लिक स्कूल हो। लेकिन कुछ जिलों के कलेक्टर और डीईओ इस योजना को पलीता लगाने पर अमादा है। हालांकि, आलोक शुक्ला ने कड़े तेवर दिखाते हुए 24 घंटे में रिपोर्ट तलब की है मगर सिर्फ इससे नहीं होगा...सरकार को कौवां मारकर टांगना चाहिए...।  

नए जिले, खट्टे अनुभव

सरकार ने चार नए जिले बना दिए हैं...मोहला-मानपुर, सारंगढ़, सक्ती और मनेंद्रगढ़ का नोटिफिकेशन भी जारी हो गया है। सरकार वहां किसी भी दिन ओएसडी अपाइंट कर जिलों को प्रारंभ करने का डेट ऐलान कर सकती है। मगर ये भी सही है कि नए जिलों के संदर्भ में पिछली सरकार के अनुभव अच्छे नहीं रहे। 2012 में रमन सरकार ने आधा दर्जन नए जिले बनाए थे, 2013 के विधानसभा चुनाव में उनमें से सिर्फ मुंगेली बीजेपी जीत पाई। वो भी बीजेपी से ज्यादा वह पुन्नूराम मोहिले की जीत थी। हालांकि, नए जिले की इस मिथक से चरणदास महंत को घबराना नहीं चाहिए। सक्ती में उनका प्रभाव बढ़ियां है। सियासात में उनके सूरज के उगने पर कोई संशय तो नहीं दिखता। 

दो और पीसीसीएफ

मंत्रालय में हुई डीपीसी में आईएफएस सुधीर अग्रवाल और एसएस बजाज को पीसीसीएफ बनाने हरी झंडी मिल गई है। फाइल अब अनुमोदन के लिए सीएम हाउस गई है। मुख्यमंत्री के दस्तखत के बाद किसी भी दिन दोनों अफसरों की पदोन्नति का आदेश जारी हो जाएगा। एसएस बजाज अभी लघु वनोपज संघ में हैं और उनके लिए पिछले कैबिनेट में पीसीसीएफ का स्पेशल पोस्ट क्रियेट किया गया। यह पद जून में बजाज के रिटायर होते ही स्वयमेव खतम हो जाएगा। चलिये, गुरू में शनि के प्रवेश की वजह से बजाज को पिछले साल कठिन दिनों का सामना करना पड़ा था। मगर अब उनके ग्रह-नक्षत्र ठीक ठाक हो गए हैं। विदाई अब सम्मानजनक होगी। 

चतुर्वेदी के बाद शुक्ला 

पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी इस साल सितंबर में रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद सीनियरिटी में अतुल शुक्ला हैं और उनके बाद संजय शुक्ला। याने दोनों पंडितजी, दोनों शुक्ला। और संयोग ये भी...दोनों का रिटायरमेंट भी एक ही दिन...अगले साल अगस्त में...31 को। अतुल फिलहाल राज्य वन अनुसंधान संस्थान की जिम्मेदारी संभाल रहे तो संजय लधु वनोपज संघ की। जो भी हो, ये तय है कि राकेश के बाद पीसीसीएफ की गद्दी किसी शुक्ला को मिलेगी।  

डीडी का पलड़ा वजनी

राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह तीन महीने बाद जून में रिटायर हो जाएंगे। इस संवैधानिक पोस्ट के लिए अभी से गुणा-भाग शुरू हो गया है। भीतर-ही-भीतर कई लोग इस पद की दावेदारी कर रहे हैं। मगर जीएडी सिकरेट्री डीडी सिंह का पलड़ा इस पद के लिए भारी दिख रहा है। डीडी रिटायरेंट के बाद संविदा में पोस्टेड हैं। वे राज्य निर्वाचन आयुक्त कार्यालय में सिकरेट्री रह चुके हैं। उसके बाद निर्वाचन आयोग में ज्वाइंट सीईओ भी। 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान सुनील कुजूर चीफ इलेक्शन आफिसर थे और डीडी ज्वाइंट सीईओ। जाहिर है, उनके पास चुनाव का तजुर्बा भी है। हालांकि, ये पद चीफ सिकरेट्री लेवल का है। लेवल का आशय यह कि चीफ सिकरेट्री के समकक्ष या इस पद से रिटायर हुए अफसरों को इस पर बिठाया जाता है। मगर छत्तीसगढ़ में सिर्फ शिवराज सिंह ऐसे निर्वाचन आयुक्त रहे, जो मुख्य सचिव से सेवानिवृत्त होने के बाद निर्वाचन आयुक्त बने थे। वरना, सदैव सिकरेट्री के समकक्ष अधिकारियों को ही मौका मिला है। पीसी दलेई जरूर प्रमुख सचिव से रिटायर हुए थे।    

छोटा सत्र

7 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र प्रारंभ होने जा रहा है। 13 कार्यदिवस के सत्र में पहले दिन राज्यपाल का अभिभाषण होगा। एक दिन सीएम बजट पेश करेंगे। दूसरे हफ्ते में होली की तीन दिन छुट्टी है। पुराने अनुभव बताते हैं कि बजट सत्र कभी भी पूरे समय तक नहीं चला। लगभग हमेशा बजट सत्र निर्धारित तिथि से हफ्ता भर पहले विधटित हुआ है। इस बार भी होली के पहले ही सत्र निबट जाए, तो आश्चर्य नहीं। बीजेपी इस बार भी हंगामा करने की तैयारी कर रही है। जाहिर है, सदन की कार्यवाही बाधित होगी। ऐसे में, एक दिन में तीन-तीन, चार-चार मंत्रियों का बजट पारित कराके होली तक सत्र समाप्त किया जा सकता है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक जि


लों की कलेक्टरी करने का रिकार्ड डोमन सिंह के नाम दर्ज है मगर सर्वाधिक 9 साल तक तक कलेक्टरी करने का रिकार्ड किसने नाम है?

2. पूर्व मंत्री राजेश मूणत का आरोप है कि उन्हें पिटा गया और राजधानी पुलिस मारपीट से इंकार कर रही...इनमें से सच कौन बोल रहा है?

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

नए सीईसी, छत्तीसगढ़ कनेक्शन

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 6 फरवरी 2022

यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों का चुनाव कराकर चीफ इलेक्शन कमिश्नर सुशील चंद्रा 14 मई में रिटायर हो जाएंगे। इसके बाद चुनाव आयोग में दूसरे नम्बर पर राजीव कुमार हैं। हालांकि, सीईसी की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति अलग से आदेश जारी करते हैं। मगर अभी तक की परंपरा के अनुसार दूसरे नम्बर के इलेक्शन कमिश्नर को ही आयोग की कमान सौंपी जाती है। ऐसे में, राजीव कुमार के नाम पर मुहर लगने में कोई संशय नहीं है। राजीव 84 बैच के झारखंड कैडर के आईएएस रहे हैं। रिटायर होने से पहले वे भारत सरकार में सिकरेट्री फायनेंस रहे। सिकरेट्री फायनेंस केंद्र की प्रतिष्ठापूर्ण पोस्टिंग मानी जाती है। राजीव कुमार फरवरी 1960 के बर्न हैं। सीईसी का कार्यकाल छह साल या 65 वर्ष आयु, इनमें से जो पहले आए। राजीव फरवरी 2025 में रिटायर होंगे। यानी छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत आधा दर्जन विधानसभा के चुनावों के साथ ही 2024 का लोकसभा चुनाव भी कराएंगे। राजीव कुमार का रहा छत्तीसगढ़ कनेक्शन, तो फर्स्ट 84 बैच के एमके राउत उनके बैचमेट रहे हैं। राउत छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचना आयुक्त हैं। अब बैचमेट सीईसी बनेगा तो जाहिर है, राउत को खुशी होगी ही। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कनेक्शन यह है कि सूबे के एक बड़े जिले के कलेक्टर राजीव कुमार के रीयल दामाद हैं। अब ससुर सीईसी तो दामाद की प्रतिष्ठा बढ़ेगी ही।

बस्तर के कलेक्टर्स

राहुल गांधी भले ही बस्तर नहीं गए लेकिन, सरकार ने ऐसा किया कि पूरे बस्तर की उपलब्धियों को डोम में उतार दिया...बिल्कुल लाइव। लगा मिनी साइंस कॉलेज पर मिनी बस्तर उतर आया है। यही वजह है कि राहुल गांधी को बस्तर डोम में ही घंटा भर से अधिक समय लग गया, जिसके चलते वे दूसरे डोमों में जा नहीं पाए। बस्तर डोम में सरकार ने सातों जिलों के कलेक्टरों को तैनात किया था। और सातों ने राहुल के समक्ष शमां बांध दिया। फोटो में आपने देखा ही होगा...राहुल कभी डेनेक्स का जैकेट पहनते नजर आए, तो कभी बस्तर के कॉफी का स्वाद लेते। कांकेर का सीताफल, सुकमा का बहुरंगी गोभी और उन्नत पपीता देख राहुल चकित थे। बस्तर का कॉफी उन्हें इतना भाया कि कहना पड़ गया, भूपेशजी सिर्फ देश में नहीं, इंटरनेशनल लेवल पर इसकी ब्रांडिंग कराइये। अब ब्रांडिंग तो सरकार बाद में कराएगी, राहुल ने उससे पहले ऐसी ब्रांडिंग कर दी है कि बस्तर कलेक्टर रजत बंसल को राजधानी के आईएएस फोन कर बोल रहे...कहां छुपा रखा था, भिजवा भाई एकाध पैकेट। बहरहाल, बस्तर के डोम से सरकार का नम्बर बढ़ा ही बस्तर के कलेक्टरों के मार्क्स भी बढ़े।  

राहुल की इच्छा 

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की षपथ लेने के बाद सीधे मंत्रालय पहुंचे थे और किसानों के बोनस पर दस्तखत कर राहुल के दिल्ली लैंड करते ही उन्हें इंटिमेट कर दिया था कि आदेश हो गया। यही वजह है कि राहुल ने इस बार जब भूमिहीन किसान न्याय योजना की राशि बढ़ाने के लिए कहा तो लोगों को लगा कि राहुल के एयरपोर्ट पहुंचने से पहले शायद सरकार ऐलान कर दे। इसी चक्कर में कुछ मीडिया वालों ने एक हजार रुपए बढ़ाने की खबर भी चला दी। लेकिन, ऐसा कुछ था नहीं। हालांकि, राहुल के राशि बढ़ाने की बात सुनते ही सीएम सचिवालय तुरंत हरकत में आया। फायनेंस से लेकर कई और जगह फोन खड़खड़ाए गए। मगर जानकारों ने बताया कि यकबयक ये संभव नहीं। न्याय योजना विधानसभा से नोटिफाई हो चुकी है। ऐसे में, सरकार के हाथ-पैर बंध गए हैं। अब अगर राशि बढ़ाई गई तो विशेषाधिकर हनन का मामला बन जाएगा। सो, ऐसा प्रतीत होता है कि अब बजट भाषण के दौरान मुख्यमंत्री राशि बढ़ाने का ऐलान करें।

दो सीटें खाली

इस साल जून में राज्य सभा की दो सीटें खाली हो जाएंगीं। कांग्रेस से छाया वर्मा और भाजपा से रामविचार नेताम का कार्यकाल चार महीने बाद पूरा हो जाएगा। लिहाजा, यूपी चुनाव के बाद राज्य सभा चुनाव की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो जाएगी। सीटों की अंकगणित चूकि कांग्रेस के पक्ष में है इसलिए देखना होगा कि बीजेपी अपनी सीट बरकरार रख पाएगी या नहीं। बहरहाल, कांग्रेस में कई बड़े नेताओं की निगाहें राज्यसभा सीट पर गड़ गई है। बड़े नेताओं ने इसके लिए जोर-तोड़ भी शुरू कर दिया है।   

अकबर को वेटेज    

राहुल गांधी के कार्यक्रमों में वैसे तो सभी मंत्रियों को पर्याप्त सम्मान दिया गया। एयरपोर्ट से राहुल के साथ भूपेश बघेल के सभी मंत्री बस में सवार होकर कार्यक्रम स्थल पहुंचे। वहां भी उन्हें राहुल के साथ अग्रिम पंक्ति में बिठाया गया। बावजूद इसके, मंत्री मोहम्मद अकबर को कुछ ज्यादा वेटेज मिला...जिम्मेदारियां भी मिली। मुख्य समारोह में वे राहुल गांधी के बगल में बिठाए गए। राहुल के एक तरफ सीएम भूपेश थे तो दूसरी तरफ अकबर। गांधी संगोष्टी में भी अकबर न केवल मंच पर थे बल्कि उन्होंने स्वागत भाषण दिया। अकबर मध्यप्रदेश के समय भी मंत्री रहे। हो सकता है, सीनियरिटी की वजह से उन्हें सम्मान मिला। 

पुलिस में उलटफेर

आईपीएस की डीपीसी के बाद पुलिस महकमे में बड़े बदलाव की खबरें आ रही हैं। पुलिस की कसावट के लिए सरकार कुछ महत्वपूर्ण फैसले ले सकती है। इसमें बड़े स्तर पर सरकार कुछ नई पोस्टिंग करेगी। हो सकता है, आईजी से एडीजी प्रमोट होने वाले दिपांशु काबरा को पुलिस महकमे में कोई अहम जिम्मेदारी मिल जाए। दिपांशु के पास फिलहाल ट्रांसपोर्ट और पब्लिक रिलेशंस हैं। दुर्ग एसएसपी बद्री नारायण मीणा को आईजी बनने के बाद कोई रेंज देने की अटकलें हैं। वैसे भी, अगले साल विधानसभा चुनाव है। अभी राजनीतिक प्रदर्शन बढ़ने के साथ ही विभिन्न संगठनों के आंदोलन तेज होंगे। ऐसे समय में पुलिस का किरदार बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है...। 

दलाली की शिक्षा

स्कूल शिक्षा विभाग में 236 करोड़ की डायरी कांड को पुलिस ने फर्जी करार दिया...इस पर नो कमेंट्स। मगर बिलासपुर की घटना ने सरकार को भी सकते में डाल दिया। तभी पोस्टिंग के लिए लेनदेन का आडियो वायरल होते ही बिलासपुर पुलिस हरकत में आए। पुलिस ने दो शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की तफ्तीश इस बात की ओर इशारा कर रही है कि उपर के अफसरों के संरक्षण के बिना ये खेल संभव नहीं है। इसमें एक दिलचस्प ट्वीस्ट यह है कि दो लोग जो अरेस्ट हुए हैं, वे गुरू-शिष्य रहे हैं। ऑडियो में ट्रेप हुआ शिक्षक नंद साहू संकुल में संबद्ध योगेश पाण्डेय की कोचिंग में गणित की क्लास करता था। संकुल प्रभारी बाद में पोस्टिंग कांड का सरगना बन गया। याने जैसा गुरू, वैसा ही चेला बना दिया।

राम-राम....

आत्मानंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। स्कूल खोलने से पहले सीएम भूपेश बघेल ने अफसरों से कहा था कि इसमें मैं भी कोई सिफारिश करूं तो नहीं सुनना। प्रिंसिपल सिकरेट्री डॉ0 आलोक शुक्ला भी इस प्रोजक्ट को लेकर बेहद संजीदा हैं। मगर बावजूद इसके कुछ बड़े जिलों में शिक्षकों की भरती में जो खेल चल रहा है, वाकई शर्मनाक है....स्कूल शिक्षा विभाग के खटराल अधिकारी सरकार की महत्ती योजना को पलीता लगा रहे हैं। कई जिलों में इंग्लीश मीडियम स्कूल में हिंदी मीडियम के शिक्षकों की भर्ती की जा रही। एक बड़े जिले में तो अधिकारियों ने डेपुटेशन में आने के लिए रेट खोल दिया है। आसपास के जिलों के लिए डेढ़ लाख और दूरस्थ मसलन, बस्तर, सरगुजा के स्कूलों से आने वालों के लिए ढाई-से-तीन लाख रुपए। इस खेल में डीईओ के साथ ही डीपीआई के नीचे के अधिकारी इंवाल्व बताए जा रहे। असल में, मंत्रालय और डायरेक्ट्रेट के सीनियर अधिकारी ये समझते हैं कि डीईओ डेपुटेशन का प्रपोजल भेज रहा तो ठीक ही होगा। और उधर, खेल हो जा रहा। ये खेल इतना खुला चल रहा है कि एसीबी जब चाहे तब ट्रेप कर सकता है। 

घोटाला डेढ़ लाख का और...

ये भी दिलचस्प है...रिटायर आईएएस विजय धुर्वे के डेढ़ लाख के घोटाले के लिए एसीबी का चार-पांच लाख रुपए खरचा हो गया। दरअसल, धुर्वे के खिलाफ 10 साल पुराने मामले में सीजी हाईकोर्ट ने एसीबी को चार्जशीट दाखिल करने कहा। मामला चूकि अंबिकापुर का था...वाहन घोटाले का कनेक्शन द दूसरे राज्यों से जुड़ा था। लिहाजा, विवेचना में दौड़भाग पर एसीबी का चार-से-पांच लाख रुपिया खर्च हो गया। इसी घोटाले में धुर्वे के खिलाफ विभागीय जांच हुई और आईएएस होने के बाद भी वे कलेक्टर नहीं बन पाए। चलिये, ये किस्मत की बात होती है। वरना, बड़े अफसर करोड़ों का वारा-न्यारा कर बेदाग निकल जाते हैं और जिसको फंसना होता है, वह निबट जाता है। 

सीएम के नम्बर

राहुल गांधी का रायपुर दौरा महज साढ़े तीन घंटे का था। लेकिन, साइंस कॉलेज मैदान में सरकार ने कामकाज की ऐसी झांकी दिखाई कि राहुल शाम छह बजे तक रायपुर में रह गए। सरकार ने उन्हें छत्तीसगढ़ व्यंजन ही नहीं चखाया बल्कि राहुल से तारीफ सुन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने टिफिन भी विमान में रखवा दिया। जाहिर है, राहुल के सफल दौरे से सीएम का नम्बर बढ़ा है। 


अंत में दो सवाल आपसे

1. राहुल गांधी के कार्यक्रम में स्वागत भाषण के लिए मंत्री जय सिंह अग्रवाल को क्यों चुना गया?

2. छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन सर्विसेज के एमडी कार्तिकेय गोयल को हटाने के लिए नेताजी लोग सरकार पर प्रेशर क्यों बना रहे?