मंगलवार, 21 अगस्त 2018

तरकश के दस बरस

19 अगस्त
तरकश कॉलम के इस हफ्ते ठीक दस बरस हो गए। 2008 अगस्त के तीसरे हफ्ते से हरिभूमि में यह स्तंभ प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था। हालांकि, कुछ अखबारों में तरकश के तीर नाम से यह स्तंभ जरूर छपता था। लेकिन, संस्थान बदलने के क्रम में इसमें ब्रेक आ गया था। उन्हीं दिनों….तारीख तो याद नहीं है….पुराने मंत्रालय में एक सीनियर सिकरेट्री के कमरे में हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशुजी से मुलाकात हो गई। मुलाकात पुरानी थी मगर उस रोज बरबस बात तरकश की निकली। और, उदार दृष्टि के हिमांशुजी ने तरकश शुरू करने के लिए न केवल हामी भरी बल्कि इसके लिए रविवार का दिन भी तय कर दिया। अब, मेरे समक्ष संकट यह था कि मैं दिल्ली के एक नेशनल डेली से जुड़ा था। इसलिए नाम से कॉलम लिखने पर खतरा था। लिहाजा, प्रारंभ में एस दीक्षित के नाम से यह स्तंभ शुरू हुआ। इसके बाद विषम परिस्थितियों में ही तरकश ब्रेक हुआ। अब तो किसी रविवार को तरकश न आने पर जिस तरह से पाठकों के फोन आते हैं, उसे देखते कॉलम को ब्रेक करने से पहले सोचना पड़ता है। हालांकि, दस बरस की अवधि बहुत लंबी नहीं होती, पर इसे एकदम छोटी भी नहीं कही जा सकती। वो भी अनवरत। यह अवसर मुहैया कराने के लिए हिमांशुजी को आभार। लाखों पाठकों को भी शुक्रिया, जिनके हौसला अफजाई से तरकश ने एक दशक पूरा किया। कुछ सालों से तरकश हरिभूमि के साथ ही अब प्रदेश के सबसे विश्वसनीय न्यूज वेबसाइट न्यूपावरगेमडॉटकॉम पर भी उपलब्ध है। वेबसाइट पर भी इसे उम्मीद से कहीं ज्यादा प्रतिसाद मिल रहा है।

रमन के पीछे अटल!

अटलजी अब नहीं रहे। मगर छत्तीसगढ़ से जुड़े कई वाकये लोगों के अब भी जेहन में हैं। डा0 रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में भी उनका अहम रोल रहा। याद होगा, पार्टी को बहुमत मिलने के बाद वेंकैया नायडू को संसदीय बोर्ड ने सीएम चुनाव का पर्यवेक्षक बनाया था। वेंकैया को हाईकमान से दो नाम मिले थे। एक रमन सिंह और दूसरा रमेश बैस का। सांसद और मंत्री के रूप में सीनियर होने के नाते बैस का दिल्ली की राजनीति में पैठ ज्यादा थी। इसलिए, रमन के लीडरशिप में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी बैस का नाम सामने आ गया। जबकि, रमन सिंह को केंद्रीय मंत्री से इस्तीफा दिलाकर छत्तीसगढ़ भेजा गया था। लोग कहते यह भी हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए पहले बैस को ऑफर दिया गया था। लेकिन, वे केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। लेकिन, पार्टी के जीतते ही सीएम के दावेदार के रूप में बैस का नाम उछाल दिया गया। दरअसल, केंद्र का एक ताकतवर धड़ा बैस को सीएम बनाने के पक्ष में था। लेकिन, वेंकैया की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन पीएम वाजपेयी ने रमन सिंह के नाम पर मुहर लगाने में देर नहीं लगाई।

तीन मंत्री

अटलजी छत्तीसगढ़ को बहुत वेटेज देते थे। कह सकते हैं, मध्यप्रदेश से भी अधिक। उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान केंद्र में छत्तीसगढ़ से तीन मंत्री रहे। डा0 रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव और रमेश बैस। इससे पहिले कभी भी एक साथ तीन मंत्री नहीं रहे। राज्य निर्माण के पहिले श्रीमती इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर और पीवी नरसिम्हाराव सरकार में विद्याचरण शुक्ल छत्तीसगढ़ की नुमाइंदगी करते रहे। जनता पार्टी सरकार में भी पुरुषोतम कौशिक मंत्री रहे। वीपी सिंह, इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवेगौड़ा ने तो किसी को भी मंत्री नहीं बनाया। मनमोहन िंसंह की दूसरी पारी में भी कुछ समय के लिए कांग्रेस के चरणदास महंत को राज्य मंत्री बनाया गया। अलबत्ता, मोदी सरकार में भी छत्तीसगढ़ से सिर्फ विष्णुदेव साय को केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर मिला है।

ट्रांसफर पर लगाम

चुनाव आयोग ने छह अगस्त तक प्रशासनिक अफसरों को बदलने का मौका दिया था। इसके बाद मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम प्रारंभ हो जाने के कारण आयोग ने अब 27 सितंबर तक चुनाव कार्य से जुड़े किसी भी अफसर को हटाने पर रोक लगा दी है। याने कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर अब 27 सितंबर तक आयोग के नियंत्रण में रहेंगे। इसके करीब हफ्ते भर बाद आचार संहिता प्रभावशील हो जाएगी। याने अब जो भी करना होगा, 27 सितंबर के दो-तीन दिन के भीतर ही। क्योंकि, फिर पूरा सिस्टम चुनाव आायोग के नियंत्रण में आ जाएगा। हालांकि, पता चला है सरकार आयोग की विशेष अनुमति से कुछ कलेक्टरों को बदलना चाहती है।

बड़े जिले प्रभावित

आयोग से अनुमति मिलते ही बड़े जिले के तीन-से-चार कलेक्टर बदले जा सकते हैं। इनमें पहला नाम अंबिकापुर कलेक्टर किरण कौशल का है। सरकार के आग्रह के बाद भी चुनाव आयोग उन्हें रिलीफ देने तैयार नहीं हुआ। किरण पिछले विस चुनाव के दौरान अंबिकापुर में सीईओ थी। और, आयोग के क्रायटेरिया के अनुसार पिछले चुनाव के दौरान पोस्टेड अफसर उसी जिले में इस चुनाव में उस पोस्ट या प्रमोशन के पोस्ट पर नहीं रह सकता। लिहाजा, किरण का बदला जाना तय है। सरकार चूकि किरण को राहत दिलाने आयोग तक में दरख्वास्त की थी….अमित शाह के कार्यक्रम के बाद उनका नम्बर काफी बढ़ा हुआ है। जाहिर है, उन्हें अंबिकापुर से चेंज करने पर सरकार उन्हें छोटा-मोटा जिला तो देगी नहीं। उन्हें एक बड़ा जिला मिलने जा रहा है। किरण के अलावे तीन और बड़े जिलों के कलेक्टरों को बदलने की अटकलें हैं। इनमें से एक को मंत्रालय भेजा जाएगा और दूसरे को अपग्रेड करके बड़े जिले में शिफ्थ किया जाएगा। इनमें कुछ नाम ऐसे होंगे, जो आपको चकित करेंगे।

डीएस का पलड़ा भारी

बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन और मेम्बर के लिए आधा दर्जन आवेदन आएं हैं। लेकिन, इनमें दो का ही पलड़ा सबसे भारी है। रिटायर ब्यूरोक्रेट्स डीएस मिश्रा और जीएस मिश्रा। डीएस एसीएस से रिटायर हुए और जीएस प्रिंसिपल सिकरेट्री से। जीएस माटी पुत्र हैं और सत्ता के गलियारों में उनकी पैठ भी अच्छी है। लेकिन, डीएस के लिए आईएएस लॉबी जुटी है। असल में, आईएएस लॉबी में हमेशा से डायरेक्ट आईएएस का प्रभाव रहा है। वो नहीं चाहती कि राज्य निर्वाचन के बाद बिजली विनियामक आयोग का पोस्ट भी प्रमोटी आईएएस के पास चला जाए। निर्वाचन में ठाकुर राम सिंह कमिश्नर हैं। लिहाजा, दोनों मिश्र बंधुओं में डीएस का पलड़ा अभी तक भारी दिख रहा है। ऐन वक्त पर अगर उपर से कोई नाम आ गया तो फिर बात अलग है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चुनाव आयोग की परीक्षा में फेल एक कलेक्टर को सरकार ने प्रमोशन कैसे दे दिया?
2. अमित शाह के छत्तीसगढ़ विजिट में किस अफसर के बीजेपी प्रवेश की जबर्दस्त चर्चा है?

रविवार, 12 अगस्त 2018

धोखे में या इरादतन?

12 अगस्त
आईएएस अंकित आनंद के भारत सरकार में डेपुटेशन से ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध है। हर कोई जानना चाह रहा है कि सरकार के इस पसंदीदा अफसर का नाम धोखे में भारत सरकार को चला गया या इरादतन। आखिर, अंकित साढ़े तीन साल से बिजली वितरण कंपनी संभाल रहे हैं। सरकार को उनका कोई विकल्प नहीं मिल रहा था। जिन आईएएस को अच्छे कामों की वजह से सरकार ने कलेक्टर नहीं बनाया, उनमें राजेश टोप्पो के अलावा अंकित भी हैं। जाहिर है, सरकार अगर लौटी तो उन्हें कम-से-कम एक बड़े जिले का कलेक्टर बनना तय था। लेकिन, जीएडी ने सब गु़ड़ गोबर कर दिया। बताते हैं, भारत सरकार ने जनगणना डायरेक्टर के लिए भारत सरकार से तीन नाम मांगे थे। जीएडी ने अंकित आनंद, यशवंत कुमार समेत एक महिला आईएएस का नाम प्रपोज कर दिया। आमतौर पर भारत सरकार उपर के दो नामों पर विचार करती है। यशवंत का चूकि विजिलेंस क्लियरेंस नहीं था। इसलिए, उनका नाम कट गया। अंकित आईआईटीयन हैं। कंप्यूटर साइंस में उन्होंने बीटेक किया है। इसलिए, उनका नाम ओके हो गया। राज्य सरकार के पास जब इसका आदेश पहुंचा तो आफिसर्स आवाक रह गए। अब सरकार केंद्र को लेटर भेज रही है कि अंकित को एडिशनल चार्ज के रूप में स्टेट में भी काम करने की छूट दी जाए। भारत सरकार ने अगर यह प्रस्ताव मान भी लिया तो भी अंकित का इसमें नुकसान ही हैं। न तो वे एडिशनल चार्ज में कलेक्टर बन पाएंगे और ना ही राज्य सरकार उन्हें महत्वपूर्ण पोस्टिंग दे पाएगी। बहरहाल, सवाल िंफर वही है कि यह सब घोखे में हुआ या इस बिहारी अफसर को ठिकाने लगाया गया?

कप्तानी ब्रेक

राजनांदगांव से हटाए गए एसपी प्रशांत अग्रवाल हफ्ते भर में जबर्दस्त वापसी करते हुए बलौदा बाजार का पुलिस कप्तान बनने में कामयाब रहे। लेकिन, कप्तानी ब्रेक होने से जाहिर तौर पर उन्हें झटका लगा होगा। 2008 बैच के इस आईपीएस का राजनांदगांव तीसरा जिला था। सरकार ने पहली लिस्ट में उन्हें पीएचक्यू में एआईजी बनाया गया। और, चार दिन बाद दूसरी सूची में बलौदा बाजार रवाना कर दिया। वैसे भी वीवीआईपी जिले के अफसरों को कम-से-कम एक पोस्टिंग अच्छी मिलती है। राजनांदगांव सीएम का निर्वाचन जिला है। लिहाजा, प्रशांत को अपेक्षाकृत बड़ा जिला मिलने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन, उनके साथ उल्टा हो गया। पीएचक्यू अगर उन्हें नहीं भेजा गया होता तो बलौदा बाजार उनका चौथा जिला होता। आखिर, लगातार कप्तानी के अपने मतलब होते हैं। छत्तीसगढ़ में बद्री मीणा लगातार सात जिले के एसपी रहे हैं। जो अब तक का रिकार्ड है। हालांकि, संजीव शुक्ला पांचवा जिला कर रहे हैं। जशपुर, राजनांदगांव, रायगढ़, रायपुर और अब दुर्ग। लेकिन, अब वे डीआईजी बन जाएंगे। इसलिए, दुर्ग उनका आखिरी जिला होगा। प्रशांत के डीआईजी बनने में अभी करीब चार साल बचे है। इसलिए, बद्री के रिकार्ड का उनसे खतरा हो सकता था। लेकिन, अब लगता है बद्री का रिकार्ड टूटना मुश्किल होगा।

कलेक्टर की उलझन

सरकार के आग्रह के बाद भी अंबिकापुर कलेक्टर किरण कौशल के मामले में चुनाव आयोग ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। आयोग से न ना हो रहा है और न हां ही। जाहिर है, ऐसे में किसी भी अफसर के लिए असमंजस की स्थिति होगी। हालांकि, उपर से किरण को अश्वस्त किया गया है, आयोग को उन्हें कंटीन्यू करने के लिए तैयार कर लिया जाएगा। मगर जब तक वहां से कोई आदेश नहीं आएगा, तब तक तो पेंडूलम जैसी ही उनकी स्थिति रहेगी। स्वाभाविक तौर पर काम पर भी इसका असर पड़ेगा। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान किरण अंबिकापुर जिपं की सीईओ थीं। चुनाव आयोग के नियमानुसार कोई अफसर अगर पिछले चुनाव के समय वहां पोस्टिंग रहा हो तो अब प्रमोशन पर वहां पोस्ट नहीं हो सकता। सरकार ने अफसरों की कमी का हवाला देते हुए इस क्लॉज से रियायत देने के लिए आयोग को सीईसी क जरिये लेटर लिखा है।

फर्स्ट टाईम-1

मंत्रालय में ज्वाइंट सिकरेट्री यशवंत कुमार को सरकार ने ऐसी पोस्टिंग दी कि लोग बोल रहे हैं….भूतो न भविष्यति। उन्हें वाणिज्य, उद्योग और उर्जा से हटाकर डायरेक्टर लोकल फंड आडिट बनाया गया है। यह पोस्ट या तो एडिशनल तौर पर रहा है या फिर किसी प्रमोटी आईएएस के पास। रेगुलर रिकू्रट्ड आईएएस के पास सिंगल विभाग के रूप में कभी नहीं रहा। 2007 बैच के आईएएस यशवंत की कलेक्टरी की गाड़ी बीजापुर से जो उतरी, अब वे ट्रेक पर आने का नाम नहीं ले रही। एक तो जवानी के तीन साल उन्हें मंत्रालय में बितानी पड़ गई और अब तो उन्हें वहां से भी बाहर का रास्ता दिखा गया है।

फर्स्ट टाईम-2

अरबन एडमिनिस्ट्रेशन में विवेक ढांड, अजय सिंह, एमके राउत, सीके खेतान, आरपी मंडल सरीखे आईएएस सिकरेट्री रहे हैं। उस विभाग को जीएडी ने स्पेशल सिकरेट्री निरंजन दास के हवाले कर दिया है। निरंजन राप्रसे से आईएएस में आए हैं। इससे पहिले इस विभाग में इतना जूनियर अफसर कभी भी पोस्ट नहीं रहा। रोहित यादव स्पेशल सिकरेट्री थे। लेकिन, वे डायरेक्ट आईएएस थे। यद्यपि, विभाग की कमान मिलने के बाद निरंजन ने गजब का उत्साह दिखाया है। हफ्ते भर में बिलासपुर और बस्तर का दौरा कर आए। अब देखना है, सरकार के इस नए प्रयोग में वे कितना खरा उतरते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक अफसर को बेहद सफाई से क्यों किनारे लगा दिया गया?
2. पैराशूट नेताओं को कांग्रेस टिकिट नहीं देगी तो आरसी पटेल, विभोर जैसे अफसरों का क्या होगा?

रविवार, 5 अगस्त 2018

वनवास खतम

5 अगस्त
सरकार ने आईएएस अविनाश चंपावत का वनवास खतम कर दिया है। उन्हें सरगुजा से बुलाकर अब सिंचाई विभाग की कमान सौंप दी है। जाहिर है, उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिली है। चंपावत को पिछले साल लेबर विभाग में चल रहे विवादों के बाद सरगुजा भेज दिया था। हालांकि, बाद में उनकी आईपीएस पत्नी नेहा चंपावत के लिए सशस्त्र बल में डीआईजी का नया पोस्ट क्रियेट कर वहां भेज राहत दी थी। अब, चूकि अविनाश रायपुर लौट रहे हैं। इसलिए, नेहा का आर्डर भी समझिए जल्दी ही निकलेगा।

टेंशनलेस लिस्ट!

सरकार ने 21 आईएएस अफसरों प्रभार में फेरबदल किया। इतनी बड़ी संख्या के बाद भी सरकार ने गजब की जादुगरी दिखाते हुए सबको संतुष्ट किया। कोई भी मायूस नहीं हुआ। भुवनेश यादव और यशवंत कुमार को भी कुछ-न-कुछ दिया। भुवनेश को तो एमडी नॉन का चार्ज मिल गया। बस्तर कलेक्टर धनंजय देवांगन को भी सरकार ने हटाया तो वहीं पर प्रमोट करते हुए उन्हें वहां का कमिश्नर बना दिया। बस्तर कमिश्नर दिलीप वासनीकर हटे तो वो भी रायपुर और दुर्ग का कमिश्नर बनकर। प्रसन्ना आर को फिर से कमिश्नर हेल्थ का चार्ज। कांकेर कलेक्टर को भी प्रमोट करके कमिश्नर सरगुजा। डॉ0 कमलप्रीत को जीएडी का अतिरिक्त प्रभार देकर उनका वजन बढ़ा दिया। अलरमेल मंगई डी, संगीता पी, निरंजन दास का दायित्व भी सरकार ने बढ़ाया है। संगीता पी को जीएसटी में आउटस्टैंडिंग काम करने का सरकार ने इनाम दिया।

उम्मीदें टूटी

फोर्सली रिटायर डीआईजी केसी अग्रवाल को हाईकोर्ट से आखिरकार राहत नहीं मिल सकी। कोर्ट ने कैट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें अग्रवाल के रिटायरमेंट के खिलाफ फैसला दिया था। इससे अग्रवाल को झटका लगा ही, कई और नौकरशाहों की उम्मीदें टूट गईं। भारत सरकार ने पिछले साल आईजी राजकुमार देवांगन, डीआईजी केसी अग्रवाल, एएम जुरी, प्रिंसिपल सिकरेट्री अजय पाल सिंह और बीएल अग्रवाल को सेवा से रिटायर कर दिया था। इनमें से केसी अग्रवाल और बीएल अग्रवाल के पक्ष में कैट का निर्णय आया था। इससे बाकी अफसरों की भी नौकरी में लौटने की उम्मीदें बढ़ी थीं। लेकिन, केसी के मामले में भारत सरकार बिलासपुर हाईकोर्ट में अपील करके अफसरों की उम्मीदों को तोड़ दिया।

तीन नाम

एडिशनल इलेक्शन आफिसर अपाइंट करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने तीन आईएएस अफसरों के नामों का पेनल भारत निर्वाचन आयोग को भेजा था। इनमें एस भारतीदासन, यशवंत कुमार और शिखा राजपूत शामिल थी। निर्वाचन आयोग ने इनमें से 2006 बैच के आईएएस भारतीदासन के नाम को हरी झंडी दे दी। पता चला है, चीफ इलेक्शन आफिसर सुब्रत साहू भी भारतीदासन को चाह रहे थे। वैसे भी, निर्वाचन आयोग सीईओ की सलाह से ही आयोग में नियुक्तियां करता है ताकि कामकाज में समन्वय बना रहे। लिहाजा, जीएडी ने ऐसा पेनल बनाया कि भारतीदासन को अपाइंट करने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

ऐसा भी होता है

निर्वाचन आयोग ने कलेक्टरों का चुनावी ज्ञान परखने के लिए परीक्षा ली। इसके लिए तीन सेंटर बनाए गए थे। रायपुर, बिलासपुर और बस्तर। परीक्षा सुचारु रुप से हो, इसके लिए दिल्ली से दो पर्यवेक्षक आए थे। लेकिन, उन्हें बिलासपुर और बस्तर भेज दिया गया। रायपुर सेंटर पर बिना पर्यवेक्षक का इंतजाम हुआ। लोकल अफसर एग्जाम कंडक्ट कराए। और, सबसे बढ़ियां रिजल्ट रायपुर सेंटर का रहा। सबसे अधिक कलेक्टर और एआरओ बिलासपुर और बस्तर केंद्र से फेल हुए। बताते हैं, रायपुर केंद्र में परीक्षार्थियों में समन्वय का अद्भूत नजारा दिख रहा था। सभी ने मिलजुल कर परीक्षा दी। जाहिर है, रिजल्ट तो बढ़ियां आएगा ही।

शराब और युवा कल्याण

नए फेरबदल में आबकारी आयुक्त एवं सचिव डीडी सिंह को शराब के साथ-साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग सिकरेट्री का अतिरिक्त प्रभार देकर इस सीधे-साधे अफसर को सरकार ने उलझन में डाल दिया है। डीडी अब सरकारी दुकानों में शराब बिकवाएंगे और दूसरी ओर खेल और युवाओं के कल्याण पर काम करेंगे। ये तो उलटबांसी हो गई। बहरहाल, उनकी परेशानी इस बात को लेकर है कि युवाआें के बीच वे नशाबंदी की बात कैसे करेंगे। कोई उल्टे सवाल दाग दिया तो?

पति-पत्नी कलेक्टर

सरकार ने 2010 बैच की आईएएस रानू साहू को कांकेर कलेक्टर बनाया है। वे पिछले साल से कलेक्टर की वेटिंग में थीं। इस बैच में चार आईएएस हैं। इनमें से तीन कलेक्टर बन चुके हैं। उनके हसबैंड जेपी मौर्य भी इसी बैच के हैं और वे सुकमा कलेक्टर हैं। कलेक्टर बनने से छूटी थीं सिर्फ रानू। ऐसे में, उनके मन की पीड़ा समझी जा सकती थी। लेकिन, सरकार ने कांकेर जैसे जिले का कलेक्टर बनाकर इसकी भरपाई कर दी। आमतौर पर किसी आईएएस का कांकेर दूसरा जिला होता है। लेकिन, रानू को पहली बार में कांकेर मिल गया। उन्हें कलेक्टर बनाकर सरकार ने 2010 बैच को भी क्लोज कर दिया है। चलिये, अब 2011 बैच की उम्मीदें बढ़ेगी।

तीसरे कलेक्टर दंपति

राज्य बनने के बाद जेपी मौर्या और रानू साहू तीसरे कलेक्टर दंपति होंगे। इससे पहिले विकास शील बिलासपुर और निधि छिब्बर जांजगीर में एक समय में कलेक्टर थे। इसके बाद अंबलगन पी और अलरमेल मंगई डी भी कलेक्टर रहे। और अब जेपी मौर्य और रानू साहू को ये मौका मिला है। मौर्य दंपति पर एक पुराने अफसर इतने मेहरबान थे कि जेपी को सुकमा और रानू को सरगुजा भेज दिया गया था। लेकिन, वक्त बदला। सरकार ने अब दोनों को न केवल कलेक्टर बना दिया बल्कि नजदीक भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. फेरबदल में वे कौन से दो कलेक्टर बच गए, जिनका विकास यात्रा फेज-2 के बाद ट्रांसफर किया जाएगा?
2. क्या विभागीय जांच की वजह से सरकार ने कांकेर कलेक्टर को हटाकर सरगुजा भेज दिया?