19 अगस्त
तरकश कॉलम के इस हफ्ते ठीक दस बरस हो गए। 2008 अगस्त के तीसरे हफ्ते से हरिभूमि में यह स्तंभ प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था। हालांकि, कुछ अखबारों में तरकश के तीर नाम से यह स्तंभ जरूर छपता था। लेकिन, संस्थान बदलने के क्रम में इसमें ब्रेक आ गया था। उन्हीं दिनों….तारीख तो याद नहीं है….पुराने मंत्रालय में एक सीनियर सिकरेट्री के कमरे में हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशुजी से मुलाकात हो गई। मुलाकात पुरानी थी मगर उस रोज बरबस बात तरकश की निकली। और, उदार दृष्टि के हिमांशुजी ने तरकश शुरू करने के लिए न केवल हामी भरी बल्कि इसके लिए रविवार का दिन भी तय कर दिया। अब, मेरे समक्ष संकट यह था कि मैं दिल्ली के एक नेशनल डेली से जुड़ा था। इसलिए नाम से कॉलम लिखने पर खतरा था। लिहाजा, प्रारंभ में एस दीक्षित के नाम से यह स्तंभ शुरू हुआ। इसके बाद विषम परिस्थितियों में ही तरकश ब्रेक हुआ। अब तो किसी रविवार को तरकश न आने पर जिस तरह से पाठकों के फोन आते हैं, उसे देखते कॉलम को ब्रेक करने से पहले सोचना पड़ता है। हालांकि, दस बरस की अवधि बहुत लंबी नहीं होती, पर इसे एकदम छोटी भी नहीं कही जा सकती। वो भी अनवरत। यह अवसर मुहैया कराने के लिए हिमांशुजी को आभार। लाखों पाठकों को भी शुक्रिया, जिनके हौसला अफजाई से तरकश ने एक दशक पूरा किया। कुछ सालों से तरकश हरिभूमि के साथ ही अब प्रदेश के सबसे विश्वसनीय न्यूज वेबसाइट न्यूपावरगेमडॉटकॉम पर भी उपलब्ध है। वेबसाइट पर भी इसे उम्मीद से कहीं ज्यादा प्रतिसाद मिल रहा है।
तरकश कॉलम के इस हफ्ते ठीक दस बरस हो गए। 2008 अगस्त के तीसरे हफ्ते से हरिभूमि में यह स्तंभ प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था। हालांकि, कुछ अखबारों में तरकश के तीर नाम से यह स्तंभ जरूर छपता था। लेकिन, संस्थान बदलने के क्रम में इसमें ब्रेक आ गया था। उन्हीं दिनों….तारीख तो याद नहीं है….पुराने मंत्रालय में एक सीनियर सिकरेट्री के कमरे में हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशुजी से मुलाकात हो गई। मुलाकात पुरानी थी मगर उस रोज बरबस बात तरकश की निकली। और, उदार दृष्टि के हिमांशुजी ने तरकश शुरू करने के लिए न केवल हामी भरी बल्कि इसके लिए रविवार का दिन भी तय कर दिया। अब, मेरे समक्ष संकट यह था कि मैं दिल्ली के एक नेशनल डेली से जुड़ा था। इसलिए नाम से कॉलम लिखने पर खतरा था। लिहाजा, प्रारंभ में एस दीक्षित के नाम से यह स्तंभ शुरू हुआ। इसके बाद विषम परिस्थितियों में ही तरकश ब्रेक हुआ। अब तो किसी रविवार को तरकश न आने पर जिस तरह से पाठकों के फोन आते हैं, उसे देखते कॉलम को ब्रेक करने से पहले सोचना पड़ता है। हालांकि, दस बरस की अवधि बहुत लंबी नहीं होती, पर इसे एकदम छोटी भी नहीं कही जा सकती। वो भी अनवरत। यह अवसर मुहैया कराने के लिए हिमांशुजी को आभार। लाखों पाठकों को भी शुक्रिया, जिनके हौसला अफजाई से तरकश ने एक दशक पूरा किया। कुछ सालों से तरकश हरिभूमि के साथ ही अब प्रदेश के सबसे विश्वसनीय न्यूज वेबसाइट न्यूपावरगेमडॉटकॉम पर भी उपलब्ध है। वेबसाइट पर भी इसे उम्मीद से कहीं ज्यादा प्रतिसाद मिल रहा है।
रमन के पीछे अटल!
अटलजी अब नहीं रहे। मगर छत्तीसगढ़ से जुड़े कई वाकये लोगों के अब भी जेहन में हैं। डा0 रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में भी उनका अहम रोल रहा। याद होगा, पार्टी को बहुमत मिलने के बाद वेंकैया नायडू को संसदीय बोर्ड ने सीएम चुनाव का पर्यवेक्षक बनाया था। वेंकैया को हाईकमान से दो नाम मिले थे। एक रमन सिंह और दूसरा रमेश बैस का। सांसद और मंत्री के रूप में सीनियर होने के नाते बैस का दिल्ली की राजनीति में पैठ ज्यादा थी। इसलिए, रमन के लीडरशिप में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी बैस का नाम सामने आ गया। जबकि, रमन सिंह को केंद्रीय मंत्री से इस्तीफा दिलाकर छत्तीसगढ़ भेजा गया था। लोग कहते यह भी हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए पहले बैस को ऑफर दिया गया था। लेकिन, वे केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। लेकिन, पार्टी के जीतते ही सीएम के दावेदार के रूप में बैस का नाम उछाल दिया गया। दरअसल, केंद्र का एक ताकतवर धड़ा बैस को सीएम बनाने के पक्ष में था। लेकिन, वेंकैया की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन पीएम वाजपेयी ने रमन सिंह के नाम पर मुहर लगाने में देर नहीं लगाई।
तीन मंत्री
अटलजी छत्तीसगढ़ को बहुत वेटेज देते थे। कह सकते हैं, मध्यप्रदेश से भी अधिक। उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान केंद्र में छत्तीसगढ़ से तीन मंत्री रहे। डा0 रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव और रमेश बैस। इससे पहिले कभी भी एक साथ तीन मंत्री नहीं रहे। राज्य निर्माण के पहिले श्रीमती इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर और पीवी नरसिम्हाराव सरकार में विद्याचरण शुक्ल छत्तीसगढ़ की नुमाइंदगी करते रहे। जनता पार्टी सरकार में भी पुरुषोतम कौशिक मंत्री रहे। वीपी सिंह, इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवेगौड़ा ने तो किसी को भी मंत्री नहीं बनाया। मनमोहन िंसंह की दूसरी पारी में भी कुछ समय के लिए कांग्रेस के चरणदास महंत को राज्य मंत्री बनाया गया। अलबत्ता, मोदी सरकार में भी छत्तीसगढ़ से सिर्फ विष्णुदेव साय को केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर मिला है।
ट्रांसफर पर लगाम
चुनाव आयोग ने छह अगस्त तक प्रशासनिक अफसरों को बदलने का मौका दिया था। इसके बाद मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम प्रारंभ हो जाने के कारण आयोग ने अब 27 सितंबर तक चुनाव कार्य से जुड़े किसी भी अफसर को हटाने पर रोक लगा दी है। याने कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर अब 27 सितंबर तक आयोग के नियंत्रण में रहेंगे। इसके करीब हफ्ते भर बाद आचार संहिता प्रभावशील हो जाएगी। याने अब जो भी करना होगा, 27 सितंबर के दो-तीन दिन के भीतर ही। क्योंकि, फिर पूरा सिस्टम चुनाव आायोग के नियंत्रण में आ जाएगा। हालांकि, पता चला है सरकार आयोग की विशेष अनुमति से कुछ कलेक्टरों को बदलना चाहती है।
बड़े जिले प्रभावित
आयोग से अनुमति मिलते ही बड़े जिले के तीन-से-चार कलेक्टर बदले जा सकते हैं। इनमें पहला नाम अंबिकापुर कलेक्टर किरण कौशल का है। सरकार के आग्रह के बाद भी चुनाव आयोग उन्हें रिलीफ देने तैयार नहीं हुआ। किरण पिछले विस चुनाव के दौरान अंबिकापुर में सीईओ थी। और, आयोग के क्रायटेरिया के अनुसार पिछले चुनाव के दौरान पोस्टेड अफसर उसी जिले में इस चुनाव में उस पोस्ट या प्रमोशन के पोस्ट पर नहीं रह सकता। लिहाजा, किरण का बदला जाना तय है। सरकार चूकि किरण को राहत दिलाने आयोग तक में दरख्वास्त की थी….अमित शाह के कार्यक्रम के बाद उनका नम्बर काफी बढ़ा हुआ है। जाहिर है, उन्हें अंबिकापुर से चेंज करने पर सरकार उन्हें छोटा-मोटा जिला तो देगी नहीं। उन्हें एक बड़ा जिला मिलने जा रहा है। किरण के अलावे तीन और बड़े जिलों के कलेक्टरों को बदलने की अटकलें हैं। इनमें से एक को मंत्रालय भेजा जाएगा और दूसरे को अपग्रेड करके बड़े जिले में शिफ्थ किया जाएगा। इनमें कुछ नाम ऐसे होंगे, जो आपको चकित करेंगे।
डीएस का पलड़ा भारी
बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन और मेम्बर के लिए आधा दर्जन आवेदन आएं हैं। लेकिन, इनमें दो का ही पलड़ा सबसे भारी है। रिटायर ब्यूरोक्रेट्स डीएस मिश्रा और जीएस मिश्रा। डीएस एसीएस से रिटायर हुए और जीएस प्रिंसिपल सिकरेट्री से। जीएस माटी पुत्र हैं और सत्ता के गलियारों में उनकी पैठ भी अच्छी है। लेकिन, डीएस के लिए आईएएस लॉबी जुटी है। असल में, आईएएस लॉबी में हमेशा से डायरेक्ट आईएएस का प्रभाव रहा है। वो नहीं चाहती कि राज्य निर्वाचन के बाद बिजली विनियामक आयोग का पोस्ट भी प्रमोटी आईएएस के पास चला जाए। निर्वाचन में ठाकुर राम सिंह कमिश्नर हैं। लिहाजा, दोनों मिश्र बंधुओं में डीएस का पलड़ा अभी तक भारी दिख रहा है। ऐन वक्त पर अगर उपर से कोई नाम आ गया तो फिर बात अलग है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. चुनाव आयोग की परीक्षा में फेल एक कलेक्टर को सरकार ने प्रमोशन कैसे दे दिया?
2. अमित शाह के छत्तीसगढ़ विजिट में किस अफसर के बीजेपी प्रवेश की जबर्दस्त चर्चा है?
2. अमित शाह के छत्तीसगढ़ विजिट में किस अफसर के बीजेपी प्रवेश की जबर्दस्त चर्चा है?