संजय के दीक्षित
तरकश, 25 अक्टूबर 2020
गरियाबंद कलेक्टर छतर सिंह डेहरे के रिटायरमेंट में अब हफ्ता भर बच गया है। 31 अक्टूबर उनकी लास्ट वर्किंग रहेगी। जाहिर है, 30 या 31 अक्टूबर को नए कलेक्टर का आदेश निकल जाएगा। ब्यूरोक्रेसी में जिज्ञासा इस बात की ज्यादा है कि कलेक्टर का सिंगल आर्डर निकलेगा या गरियाबंद के साथ कुछ और जिलों के कलेक्टर बदल जाएंगे। हालांकि, मरवाही विधानसभा उपचुनाव में सरकार की व्यस्तता को देखते ऐसा लगता नहीं कि लिस्ट में एक से ज्यादा नाम होगा। मगर ये पूरा सरकार के उपर निर्भर करेगा। हो सकता है कि राजधानी से किसी प्रमोटी या डायरेक्ट आईएएस को कलेक्टर बनाकर गरियाबंद भेज दें और मरवाही चुनाव के बाद बाकी लिस्ट निकाली जाए।
फर्जी नहीं भाई, असली
सूबे के एक संसदीय सचिव 20 अक्टूबर को एक दिन के चुनाव प्रचार पर बिहार के मधुबनी गए थे। मगर उनके रायपुर से रवाना होने से पहले उनका निज सचिव ने कुछ ऐसा कर डाला कि पटना से लेकर मधुबनी तक कोहराम मच गया। संसदीय सचिव का प्रोग्राम जारी करते हुए उनके स्टाफ ने बिहार के चीफ सिकरेट्री, डीजीपी, राज्य प्रोटोकाॅल अधिकारी समेत मधुबनी के डीएम, एसपी को पत्र भेज सुरक्षा सुनिश्चित करने लिख दिया। बिहार में एक तो चुनाव चल रहा…आचार संहिता के दौरान इस तरह का लेटर….वो भी संसदीय सचिव के लिए….अफसर हैरानी में पड़ गए। दरअसल, इस तरह का पत्र मुख्यमंत्री के दौरे के संदर्भ में भेजा जाता है। ऐसे में, पटना और मधुुबनी के अफसरों का माथा ठनका कि कोई फर्जी मामला है। वहां के प्रशासनिक अफसरान छत्तीसगढ़ के अपने बैचमेट्स को फोन खड़खडाने लगे। यहां के अफसरों ने बताया कि संसदीय सचिव फर्जी नहीं, असली हैं…अति उत्साह में उनका इस तरह प्रोग्राम जारी हो गया। तब जाकर मामला ठंडा हुआ।
बड़ा दिल!
आईएफएस राकेश चतुर्वेदी आखिरकार हेड आफ फाॅरेस्ट फोर्स प्रमोट हो गए। मगर इसमें दिलचस्प यह है कि डीपीसी के लिए चार सदस्यीय जो कमेटी बनाई गई थी, उनमें सीएस आरपी मंडल, पीएस फाॅरेस्ट मनोज पिंगुआ, भारत सरकार के प्रतिनिधि के अलावा एक नाम सीजी काॅस्ट के डायरेक्टर जनरल मुदित कुमार का भी था। मुदित कुमार बोले तो एक्स पीसीसीएफ एवं हेड आफ फाॅरेस्ट। सरकार ने पिछले साल उनकी जगह पर राकेश चतुर्वेदी को पीसीसीएफ अपाइंट किया था। आमतौर पर ऐसे सिचुएशन में दो बड़ों के बीच केमेस्ट्री गड़बड़ा जाती है। लेकिन, मुदित कुमार ने डीपीसी की बैठक में राकेश चतुर्वेदी को हेड आफ फाॅरेस्ट बनाने में कोई मीन-मेख निकालने की बजाए पूरा सपोर्ट किया। चलिये, ये अच्छी बात है।
अमित कांबले लौटे
आईपीएस अमित कांबले एसपीजी के डेपुटेशन से छत्तीसगढ़़ लौट आए हैं। दुर्ग आईजी विवेकानंद के बाद वे एसपीजी में जाने वाले छत्तीसग़ढ के दूसरे आईपीएस थे। कांबले का एसपीजी में तीन साल हो गया था। वे चाहते तो दो साल और कंटीन्यू कर सकते थे। लेकिन, उन्होंने लौटना मुनासिब समझा। 2009 बैच के आईपीएस कांबले का डीआईजी बनने में ढाई साल बचा है।
लिस्ट दिवाली के बाद
एसपी लेवल पर एक लिस्ट निकलने की चर्चा काफी समय से चल रही है। अब चूकि मरवाही चुनाव में सरकार व्यस्त है और फिर सामने दिवाली है। लिहाजा, समझा जाता है अब दिवाली के बाद ही सरकार आईपीएस की लिस्ट निकालेगी। अब अमित कांबले भी छत्तीसगढ़ लौट आए हैं…एसपी के वे भी दावेदार होंगे। उनके अलावे करीब आधा दर्जन जिले के एसपी ट्रांसफर में प्रभावित हो सकते हैं।
डीपीसी के बाद पोस्टिंग नहीं
आमतौर पर डीपीसी के बाद प्रमोशन के साथ पोस्टिंग आदेश भी निकल जाता है। मगर चार सीसीएफ को प्रमोशन करके फाॅरेस्ट डिपार्टमेंट ने एडिशनल पीसीसीएफ तो बना दिया मगर बिना पोस्टिंग के। सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार, अनुप विश्वास और ओपी यादव को अब नई पदास्थापना के लिए वेट करना होगा। वैसे ये चारों अफसर फरवरी से प्रमोशन का इंतजार कर रहे थे।
एमडी रिटायर
वन विकास निगम के एमडी देवाशीष दास इस महीने रिटायर हो जाएंगे। यानी निगम में एमडी का पद फिर खाली हो जाएगा। कुछ ही महीने पहले राजेश गोवर्द्धन के रिटायर होने से एमडी की कुर्सी खाली हुई थी। खबर है, राज्य वन अनुुसंधान संस्थान के डायरेक्टर अतुल शुक्ला को निगम की कमान सौंपी जा सकती है। हाथियों की लगातार हो रही मौतों के बाद उन्हें वाइल्डलाईफ से हटाकर एसएफआरआई भेज दिया गया था। हाल ही में पीसीसीएफ प्रमोट हुए पीसी पाण्डेय को अतुल शुक्ला की जगह पर एसएफआरआई भेजने की चर्चा है।
जोगी कांग्रेस से उम्मीद
कहते हैं, बीजेपी 90 में से 88 विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ती थी। मरवाही और कोटा, इन दो सीटों पर मजबूरी कहें या कोई दूरभि संधि पार्टी ने कभी दिमाग खर्च नहीं किया। सूबे के दिग्गज आदिवासी नेता डाॅ. भंवर सिंह पोर्ते के कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी को मरवाही में घुसने की गली जरूर मिली थी। रामदयाल उईके ने इसका लाभ उठाकर 97 में मरवाही से विधायक बनने में कामयाब भी हो गए। लेकिन, उईके के 2001 में कांग्रेस ज्वाईन करने के बाद बीजेपी ने कभी मरवाही सीट जीतने को छोड़ दीजिए, कैडर बनाने पर भी ध्यान नहीं दिया। अभी भी बीजेपी को उम्मीद है तो सिर्फ जोगी कांग्रेस और अपने मैनेजमेंट पर।
ऐसे थे भंवर सिंह पोर्ते
पिछले 45 साल में सिर्फ दो बार मरवाही सीट बीजेपी के पाले में गई है। और, दोनों बार भंवर सिंह पोर्ते के कारण। मरवाही से चार बार विधायक रहे पोर्ते काफी क्वालिफाइड नेता थे। अभी के आदिवासी नेताओं जैसा नहीं। दिल्ली के बड़े कांग्रेस नेताओं के साथ उठना-बैठना था। हालांकि, उनका बढ़ता कद उनके लिए नुकसानदायक रहा। 80 के दशक में पोर्ते इतने पावरफुल हो गए थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को अपनी कुर्सी हिलती लगी। पोर्ते पांचवी बार अगर विस चुनाव जीतते तो मुख्यमंत्री बनना उनका निश्चित था। इसलिए, पोर्ते की टिकिट काट दी गई। अर्जुन सिंह ने भंवर सिंह के एक दूर के रिश्तेदार दीनदयाल पोर्ते को टिकिट दे दिया। हालांकि, मुख्यमंत्री के शपथ लेने के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब का राज्यपाल अपाइंट कर चंडीगढ़ भेज दिया था। मोतीलाल वोरा तब सीएम बने थे। अर्जुन सिंह की उपेक्षा से भंवर सिंह ने पार्टी छोड़ दी थी। लेकिन, बीजेपी में उन्हें वे मान-सम्मान नहीं मिला। सुंदरलाल पटवा सरकार में वे मंत्री जरूर रहे। लेकिन, खुश नहीं थे। लिहाजा, उन्होंने बीजेपी छोड़ दिया। इसका लाभ रामदयाल उईके ने उठाया।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो अगर कोई पांच, सात हजार रुपए भी लेकर आ जा रहा तो उसका वे पूरा सम्मान कर रहे हैं?
2. राजधानी के सिटी सेंटर माॅल की नीलामी में कौन से दो आईपीएस अफसर रुचि दिखा रहे हैं?