शनिवार, 26 सितंबर 2020

बीजेपी के मंतूराम

 संजय के दीक्षित

तरकश, 27 सितंबर 2020
मरवाही उपचुनाव में प्रत्याशी को लेकर भाजपा में भी मशक्कत कम नहीं चल रही। पार्टी कई चेहरों में संभावनाएं टटोल रही है। चार बार के विधायक रहे रामदयाल उइके के नाम पर भी पार्टी ने विचार किया। वे बीजेपी से पहली बार मरवाही से ही चुनाव जीते थे। 2001 में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने न केवल विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था बल्कि भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि, 17 साल कांग्रेस में रहने के बाद रामदयाल भाजपा में लौट आए हैं। लेकिन, बीजेपी को कांफिडेंस नहीं है। पार्टी को लगता है कहीं, मंतूराम जैसी स्थिति न पैदा हो जाए। अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के मंतूराम पवार ने नाम वापस लेकर भाजपा को वाॅक ओवर दे दिया था। ऐसे में, भाजपा समीरा पैकरा और डाक्टर गंभीर में से किसी एक पर दांव आजमा सकती है। ठीक भी हैं। प्रत्याशी चयन में सावधानी बरतनी चाहिए। आखिर, मंतूरामों के बारे में बीजेपी से बेहतर कौन समझ सकता है।

अजीत की जगह अजीत

कांग्रेस से मरवाही उपचुनाव के लिए तीन नाम सबसे उपर हैं। अजीत श्याम, प्रमोद परस्ते और डाॅ0 ध्रुव। अजीत श्याम बरसों से कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं। उनकी पत्नी पेंड्रा जनपद पंचायत की उपाध्यक्ष हैं। प्रमोद परस्ते किसी जांच की वजह से सिविल जज से इस्तीफा देकर कांग्रेस ज्वाईन किए थे। और डाॅ0 ध्रुव लोकल नहीं हैं। वे करीब 15 साल से सरकारी सेवा में हैं। प्रैक्टिस उनकी अच्छी है। लेकिन, उन पर जोगी का संरक्षण रहा है और फिर बाहरी होने का इश्यू भी रहेगा। ऐसे में, अजीत श्याम का पलड़ा भारी लग रहा है। यानी अजीत जोगी की खाली सीट पर कांग्रेस से अजीत को उतारा जा सकता है।

कलेक्टर के बाबू

छत्तीसगढ़ बनने के पहिले तक लोगों ने देखा है…जिला मुख्यालयों में तीन बंगले सबसे बड़े होते थे। कलेक्टर, एसपी और सीएमएचओ के। सीएमएचओ तब काफी प्रभावशाली होते थे। लोग इनके नामों से जानते थे। लेकिन, धीरे-धीऐ ऐसा हुआ कि सीएमएचओ नाम का औरा खतम हो गया। सरकारें एक के बाद एक कलेक्टरों को पावर देती गईं। अब आलम यह है कि सीएमएचओ और सिविल सर्जन को छोटा सा भी काम करना है तो इसके लिए कलेक्टर से बात करनी पड़ती है। आज की तारीख में सीएमएचओ की हैसियत कलेक्टर के बाबू से ज्यादा नहीं रह गई है। उनका एक प्रमुख काम रह गया है…कलेक्टरों को टाईम पर खरीदी का कमीशन पहुंचा आओ। ऐसे मेें, स्वास्थ्य योजनाओं का बंटाधार तो होगा ही।

बंगले की बात

बंगले की बात निकली तो देवेंद्र नगर का आफिसर्स कालोनी की बात भी हो जाए। चीफ सिकरेट्री बनने के बाद आरपी मंडल जब नया रायपुर कूच किए तो बहुतों को अंदेशा था कि काफी लोग उनके साथ नया रायपुर जाएंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं। सिर्फ रीता शांडिल्य गईं। कई अफसर अब मान रहे हैं…नया रायपुर शिफ्थ हो गए होते तो इस तरह दुबक कर नहीं रहना पड़ता। देवेंद्र नगर की हालत बड़ी खराब है। हर लेन के दो-एक घरों में कोरोना अब तक दस्तक दे चुका है। डीआईजी ओपी पाल के इंफेक्टेड होने के बाद तो दहशत और बढ़ गई है। अफसरों ने वाॅक पर निकलना बंद कर दिया है। दरअसल, देवेंद्र नगर काफी सघन काॅलोनी है। घरों की दीवारे एक-दूसरे से लगी हुई हैं। काम करने वाले स्टाफ एक-दूसरे से मिलते हैं और या तो कोरोना दे आते है या फिर ले आते हैं।

अलरमेल को फायनेंस

11 आईएएस अफसरों की पोस्टिंग लिस्ट में सबसे अहम अलरमेल मंगई का नाम रहा। मंगई को सिकरेट्री फायनेंस बनाया गया है। फायनेंस में अमिताभ जैन एसीएस हैं। वे रमन सरकार के समय से फायनेंस संभाल रहे हैं। लेकिन, अब उनका इस पद पर रहना संभव नहीं होगा। क्योकि, 30 नवंबर को चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल का रिटायरमेंट है। मंडल के बाद सीनियरिटी में अमिताभ हैं। वे सीएस बने तब भी और ना बने तब भी उन्हें फायनेंस छोड़ना पड़ेगा। ऐसे में, सीएम भूपेश ने सोच-समझकर अमिताभ का विकल्प तैयार करने के लिए मंगई को फायनेंस में भेजा है। असल में, फायनेंस सबके वश की बात नहीं होती। इस विभाग में लंबे समय तक दो ही अफसर काम किए हैं। एक डीएस मिश्रा। रमन सरकार के 15 साल में करीब नौ साल डीएस ने फायनेंस संभाला। और, लगभग चार साल से अमिताभ इस विभाग को देख रहे हैं। सरकारें अगर बदलती हैं तब भी फायनेंस सिकरेट्री नहीं बदला जाता। 2003 में मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह ने भी अशोक विजयवर्गीय को फायनेंस सिकरेट्री के रूप में कंटीन्यू रखा था। फायनेंस सिकरेट्री के पास सरकार के खजाने की चाबी होती है। भरोसेमंद अफसर को ही सरकार फायनेंस का जिम्मा सौंपती है।

ट्रांसपोर्ट में चेंज

ट्रांसपोर्ट के एडिशनल कमिश्नर टीआर पैकरा प्रमोट होकर आईजी बन गए हैं। हालांकि, ट्रांसपोर्ट में हमेशा आईजी लेवल के अफसर ही आमतौर पर एडिशनल कमिश्नर रहे हैं। वायकेएस ठाकुर, आरके विज, अशोक जुनेजा, संजय पिल्ले, बीएस मरावी, एमएस तोमर, एसआरपी कल्लूरी सभी आईजी रहे। रमन सरकार ने पहली बार डीआईजी ओपी पाल को एडिशनल कमिश्नर बनाया था। उनके बाद डीआईजी पैकरा। अब चर्चा है, पैकरा की जगह अब किसी बड़े जिले के एसपी को ट्रांसपोर्ट में बिठाया जा सकता है।

नाम से गफलत

ब्यूरोक्रेसी में हमनाम या मिलते-जुलते नाम के कारण कई बार ब्लंडर हो जाता है। दो दिन पहले ही आर प्रसन्ना को मेडिकल एजुकेशन सिकरेट्री बनाने का आदेश जारी हुआ। और, इसके एक घंटे बाद पता चला कि मामला गफलत का रहा। आदेश निकालना था सीआर प्रसन्ना का तो निकल गया आर प्रसन्ना का। जीएडी ने डेढ़ घंटे बाद फिर संशोधित आदेश निकालकर बताया कि आर प्रसन्ना नहीं, सीआर प्रसन्ना पढ़ा जाए। इससे पहिले भी डीएस मिश्रा और जीएस मिश्रा में बड़ा कंफ्यूजन था। लोगों को दोबारा रिपीट करना पड़ता था…डीएस या जीएस। प्रसन्नाद्वय के साथ भी यही दिक्कत है। फर्क करने के लिए सीआर प्रसन्ना को छोटा प्रसन्ना और आर प्रसन्ना को बड़ा प्रसन्ना कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में संगीता भी दो हैं। एक संगीता आर और दूसरी संगीता पी। इसमें भी छोटी संगीता, बड़ी संगीता।

धनंजय को मौका

कांग्रेस सरकार में धनंजय देवांगन को पहली बार इंडिपेंडेंट चार्ज मिला है। उन्हें हायर एजुकेशन विभाग का सिकरेट्री बनाया गया है। राप्रसे से आईएएस बनने वाले अधिकारियों में वे काफी अनुभवी माने जाते हैं। रिकार्ड पांच जिला पंचायत में वे सीईओ रह चुके हैं। बिलासपुर नगर निगम के कमिश्नर भी। रजिस्ट्रार भी रहे हैं। हालांकि, प्रमोटी में उमेश अग्रवाल को भी स्वतंत्र चार्ज मिलने की उम्मीद थी मगर ऐसा हुआ नहीं। एसीएस सुब्रत साहू के उर्जा विभाग में उन्हें सिकरेट्री का अतिरिक्त चार्ज दिया गया। होम उनके पास पहले से है।

डीजीपी साहब….हमें भी

तरकश की खबर पर संज्ञान लेते हुए डीजीपी डीएम अवस्थी ने एसपी और आईजी को कड़े पत्र लिखकर कहा कि ट्रांसफर हुए अफसरों को अगर रिलीव नहीं किया गया तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। अगले दिन 60 अधिकारी कार्यमुक्त हो गए। इसके बाद बस्तर रेंज के कई जिलों के थानेदारों ने इस स्तंभ के लेखक को मैसेज किया…सर, डीजीपी साहब ने मेरा भी ट्रांसफर किए हैं….मगर एसपी साहब मान नहीं रहे, कहते हैं…बस्तर में डीजीपी साहब का आदेश नहीं चलता…सर! मेरे लिए भी कुछ कीजिए।

डीजीपी और डीजी नक्सल भी

छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में डीजीपी और डीजी नक्सल के प्रयोग पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। कह सकते हैं…इससे पुलिस महकमे का तालमेल गड़बड़ा रहा है। एएन उपध्याय जब डीजीपी थे और डीएम अवस्थी डीजी नक्सल तब ये प्रयोग इसलिए चल गया क्योंकि, उपध्याय भोले-भंडारी थे। बाद में डीएम डीजीपी बन गए और गिरधारी नायक डीजी नक्सल। पुलिस के सीनियर अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि डीजी नक्सल अलग होने के बाद मैदानी और नक्सल इलाकों के बीच एक लकीर खींच गई है। जाहिर तौर पर बस्तर के पुलिस अधिकारी डीजी नक्सल को ही सब कुछ मानते हैं। अगर वास्तव में ऐसा है, तो ये ठीक नहीं है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इसमें कितनी सच्चाई है कि मरवाही में भाजपा दम लगाकर चुनाव लड़ने की बजाए छजपां के अमित जोगी को मदद पहुंचाएगी?
2. 2 अक्टूबर को 70 बरस के हो रहे बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति गौरीदत्त शर्मा का कार्यकाल बढ़ेगा या सरकार कमिश्नर को विवि की कमान सौंप देगी?

रविवार, 20 सितंबर 2020

सीएम बोले…सुधर जाओ

 संजय के दीक्षित

तरकश, 20 सितंबर 2020
इसी हफ्ते सोमवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गृह विभाग के कामकाज का समीक्षा की। इस बार की बैठक कुछ अलग थी। सीएम ने पहले सहलाया। फिर, तगड़ा डोज दे डाला। रिव्यू में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, सीएस आरपी मंडल, एसीएस होम सुब्रत साहू, डीजीपी डीएम अवस्थी समेत पुलिस मुख्यालय के दो दर्जन से अधिक सीनियर अफसर मौजूद थे। बताते हैं, सीएम ने पहले अच्छे कामों के लिए पुलिस की सराहना की। खासकर नक्सल मोर्च पर मिली सफलता की। लेकिन, वो आखिरी के पांच मिनट…आईपीएस को भूलने में वक्त लगेगा। सीएम की भृकुटी ऐसी तनी कि अधिकारी बगले झांकते दिखे। दरअसल, आईपीएस अधिकारियों के शिकवे-शिकायते और आपसी खींचतान से सीएम आजिज आ गए थे। उनकी नोटिस में ये बात भी थी कि कुछ आईपीएस सोशल मीडिया के जरिये एक-दूसरे के खिलाफ कैम्पेन चलवा रहे हैं। मीटिंग के लास्ट में सीएम इस पर भड़क गए। उन्होंने यहां तक कह डाला….एक-दूसरे के खिलाफ खबरें चलवाना बंद करो…अभी भी समय है, सुधर जाओ, वरना दिक्कत में पड़ जाओगे। सरकार के मुखिया की तीखी नाराजगी का असर अधिकारियों के चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता था। मीटिंग के बाद सीएम हाउस से निकल रहे अधिकारियो के चेहरे उतरे हुए थे।

ओपी पाल के बाद

राजधानी में लाॅकडाउन का निर्णय ऐसे ही नहीं हुआ। सरकार में ही कुछ लोग आखिरी समय तक नहीं चाहते थे कि फिर से लाॅकडाउन किया जाए। उनका तर्क था कि पिछले बार लाॅकडाउन का कोई फायदा नहीं हुआ। मगर डीआईजी ओपी पाल का दोबारा कोविड इंफेक्टेड होना नौकरशाही को हिला दिया। अभी तक ऐसी धारणा रही कि एक बार कोविड संक्रमित होने के बाद आदमी टेंशन फ्री हो जाता है। मगर ओपी की खबर मिलने के बाद ब्यूरोक्रेट्स ही नहीं बल्कि राजधानी के बड़े नेता भी सहम गए। मंत्री अंडरग्राउंड हो गए। ओपी पाल देवेंद्र नगर के आफिसर्स कालोनी में रहते हैं। वहां के कई अधिकारियों और उनके यहां काम करने वाले संक्रमित हो चुके हैं। ओपी के बाद मंत्रालय और इंद्रावती भवन में अघोषित अवकाश जैसी स्थिति निर्मित हो गई थी। पाॅजिटिव केसों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। पता चला है, लाॅकडाउन के दौरान कोविड अस्पतालों की सुविधाएं बढ़ाने पर काम किया जाएगा।

घोड़ा चले हाथी की चाल

आदिवासी नेता मोहन मरकाम को जब पीसीसी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब कौन जानता था कि वे सवार को ही पटखनी देकर अलग राह पकड़ लेंगे। जाहिर है, मरकाम को पीसीसी चीफ बनवाने में टीएस सिंहदेव का हाथ था। अमरजीत भगत को मंत्री बनाने के लिए वे इसी शर्त पर राजी हुए थे कि मरकाम को पार्टी की कमान सौंपी जाए। चरणदास महंत का भी इसमें पूरा समर्थन मिला था। मगर सियासत में निष्ठा और वफादारी जैसी कोई चीज स्थायी होती नहीं। एक समय था, जब महंत पार्टी के प्रेसिडेंट थे और उन्होंने मरकाम को कोंडागांव ब्लाॅक अध्यक्ष बनाया था। वही महंत अपने गृह जिला जांजगीर का जिलाध्यक्ष नहीं बदलवा पा रहें। इसको लेकर हाॅट-टाॅक तक हो चुका है। टीएस की भी संगठन संबंधी कई सिफारिशों को मरकाम अनसूना कर चुके हैं। अब घोड़ा ढाई घर चलने की बजाए हाथी की चाल चलने लगे तो बाबा और दाउ दुखी तो होंगे ही न।

एसपी की लिस्ट

सूबे के कुछ जिलों के एसपी बदलने की चर्चा काफी दिनों से चल रही है। खासकर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर, गरियाबंद, जांजगीर जैसे कुछ जिलों के कप्तानों के नाम इसमें शामिल बताए जाते हैं। हालांकि, गरियाबंद का ज्यादा दिन नहीं हुआ है, लेकिन नाम चर्चा में है। मगर कोरोना के बढ़ते ग्राफ के दौरान नहीं लगता कि सरकार इस समय एसपी को बदलेगी। इसलिए, जो आईपीएस एसपी बनने के भागीरथ प्रयास में लगे हुए हैं, उन्हें अब कुछ दिन और वेट करना पड़ेगा।

केडीपी बन गए लेखक

पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की बाट जोहते रिटायर आईएएस केडीपी राव ने अब अखबारों में लेखन प्रारंभ कर दिया है। वे पिछले साल 31 अक्टूबर को एसीएस से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हीं के साथ उस समय के चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर भी रिटायर हुए थे। लेकिन, उन्हें छोटी-मोटी ही सही, पोस्टिंग मिल गई। केडीपी राव की रिटायरमेंट के दौरान राज्य सूचना आयुक्त बनाने की खबर थी। लेकिन, खबर परवान नहीं चढ़ सकी। हालांकि, अभी कई नियुक्तियां होनी है। जाहिर है, केडीपी उम्मीद से तो होंगे ही।

डीजीपी का आदेश और…

डीजीपी डीएम अवस्थी ने बिलासपुर जिले के बिल्हा थाने के टीआई का बलरामपुर ट्रांसफर किया। उन्होंने सिंगल आर्डर निकाला, इससे समझा जा सकता है कि शिकायत कुछ गंभीर टाईप की रही होगी। लेकिन, ट्रांसफर पर अमल नहीं हुआ। तीन लाईन के आदेश में बकायदा डीजीपी का दस्तखत है…तत्काल प्रभाव से लिखा है। उसके बाद भी एक टीआई बिलासपुर से हिलने के लिए तैयार नहीं हो रहा तो फिर सोचने वाली बात है। डीजीपी कोई भी रहे, कुर्सी का सम्मान तो होना ही चाहिए। आईपीएस अफसरों को भी इस पर मंथन करना चाहिए।

सितंबर लास्ट या…

बिहार में 29 नवंबर तक सरकार गठित होनी है। इसलिए, इस महीने के आखिरी या फिर अक्टूबर के पहले हफ्ते चुनाव का बिगुल बज जाएगा। समझा जाता है चुनाव आयोग मतदान का 15 से 20 नवंबर तक के बीच का कोई डेट फायनल करेगा। बिहार चुनाव के साथ ही छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा का उपचुनाव भी होगा। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन से खाली हुई इस सीट के लिए तय है ट्रेंगुलर फाइट होगी। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस, भाजपा और छजपा मैदान में होगी।

राडार पर

जांजगीर पुलिस ने कीटनाशक कंपनी के नाम पर व्यापारियों का गर्दन मरोड़ा है, वह सरकार की नोटिस में आ गई है। बताते हैं, एक कीटनाशक कंपनी के ट्रेडर्स कंपनी का पैसा लेकर फरार हो गया। कंपनी ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई और उधर पुलिस की निकल पड़ी। पुलिस ने ट्रेडर्स समेत अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और उस अन्य का पुलिसिया ट्रिक अपनाते हुए कई कीटनाशक कारोबारियों को लपेट लिया। आतंक ऐसा था कि कोरोना में जेल भेजने का हवाला देकर एक-एक से दस-दस पेटी तक वसूला गया। ऐसे में सरकार के राडार पर तो आना ही था।

आईपीएस के बाद अब आईएफएस?

आईपीएस के बाद अब आईएफएस की बहुप्रतीक्षित डीपीसी की अटकलें शुरू हो गई है। पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी समेत दर्जन भर से अधिक आईएफएस कतार में हैं। लोगों को हैरानी राकेश चतुर्वेदी को लेकर है। सरकार में उनकी ठीक-ठाक पैठ नजर आती थी। चीफ सिकरेट्री से भी अच्छी ट्यूनिंग है। इसके बाद वे हेड आफ फाॅरेस्ट नहीं बन पा रहे। और, जब पीसीसीएफ का अपना नहीं हो पा रहा तो बाकी के लिए वे कैसे प्रयास करेंगे…सवाल तो है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अमित जोगी के कांग्रेस में शामिल होने के क्या सारे रास्ते अब बंद हो चुके हैं?
2. किस जिले को कलेक्टर नहीं, उनकी पत्नी चलाती हैं?

 

शनिवार, 12 सितंबर 2020

डीजी के प्रमोशन

 संजय दीक्षित

तरकश, 13 सितंबर 2020

डीजी के प्रमोशन

डीजी की डीपीसी के बाद सरकार ने आज प्रमोशन आदेश जारी कर दिए। पिछले दिनों डीजी के तीन पदो के लिए डीपीसी हुई थी। लेकिन, इसमें सबसे अधिक उत्सुकता तीसरे पद को लेकर थी। संजय पिल्ले और आरके विज के प्रमोशन में कोई अड़चन नहीं थी। वे बेचारे तो आलरेडी डीजी बन चुके थे। मगर वे किसी और के ग्रह-नक्षत्र र्के शिकार हो गए। तीसरे पद के लिए मुकेश गुप्ता और अशोक जुनेजा तगड़े दावेदार थे। दूसरी बार हुई डीपीसी में भी एक सदस्य ने अपनी तरफ से बात रखी भी कि मुकेश गुप्ता को नजरअंदाज करके अशोक जुनेजा को डीजी प्रमोट करने में वैघानिक दिक्कते आएगी। 2009 में संतकुमार पासवान को रमन सरकार ने स्पेशल डीजी बना दिया था। भारत सरकार की फटकार के बाद पासवान को फिर एडीजी डिमोट किया गया। लेकिन, तब की परिस्थितियां अलग थी। उस समय पोस्ट भी नहीं थे। फिर, सरकार, सरकार होती है। उसके पास असीमित पावर होते हैं। सरकार ने दम दिखाया…मुकेश गुप्ता का लिफाफा बंद किया और आदेश जारी कर दिया।

बीरु बन गया डीजी

एडीजी अशोक जुनेजा का प्रमोशन भी पिछले साल से ड्यू था। आरपी मंडल के सीएस होने के बाद भी जुनेजा का काम बन नहीं पा रहा था। जाहिर है, मंडल और जुनेजा में अच्छी ट्यूनिंग रही है। कई जगहों पर एक साथ वे पोस्टेड रहे। लोग उन्हें जय-बीरु बोलते थे। मंडल का पुराना सपना था कि एक दिन हम दोनों सीएस और डीजी बनेंगे। मंडल तो सीएस बन गए लेकिन, जुनेजा का मामला गड़बड़ा जा रहा था। सीएम ने डीपीसी को आज हरी झंडी देकर अब जुनेजा का रास्ता क्लियर कर दिया है।

हाॅटस्पाॅट क्यों?

राजधानी रायपुर में कोरोना से स्थिति चिंतनीय होती जा रही है। मंत्रालय समेत सरकारी कार्यालयों के हालत ठीक नहीं है। हर जगह कोरोना का संक्रमण बढ़ गया है। हैरत इस बात की है कि इंदौर, भोपाल जैसे शहरों ने हालत बेकाबू होने के बाद भी स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। लेकिन, रायपुर में उल्टा हो रहा। सरकार में बैठे लोग भी मानते हैं कि कोरोना से जिस तरह निबटना था, वैसा हुआ नहीं। खासकर लाॅकडाउन खुलने के बाद। लाॅकडाउन के बाद तो लोग ऐसे सड़कों पर निकल पड़े कि कोरोना-वोरोना जैसा कुछ रह नहीं गया है। अफसरों ने भी गाइडलाइन जारी कर अपना कर्तव्य खतम समझ लिया। अरे भाई! ये इंडिया है। यहां जब तक कड़ाई नहीं होगी, तब तक लोगों को अपना नुकसान भी नहीं समझ में आता…आखिर, सरकार कुछ कह रही है तो उनके भले के लिए है। बात बड़ी सीधी सी है। राजधानी में अगर थोड़ी सी भी कड़ाई बरती गई होती तो आज ये हालत नहीं होते।

एम्स पर दोहरी मार

कोरोना काल में कोई सबसे अधिक फेस कर रह है तो वे हैं एम्स के डायरेक्टर डाॅ0 नीतिन नागरकर। खाने-पीने की बढ़ियां व्यवस्था, बेहतर इलाज और वो भी बिना पैसे का। ऐसे में, रायपुर ही नहीं बल्कि सूबे के कोरोना संक्रमित हर आदमी का पहला प्रयास रहता है कि किसी तरह एम्स में भरती होने का जुगाड़ बैठ जाए। डाॅ0 नागरकर के सामने दिक्कत यह है कि किसकी सिफारिश ठुकराए। कांग्रेस के लोग बोलते हैं, हमारी सरकार में हमारी नहीं सुनी जाएगी तो फिर कईसे काम चलेगा। और, उधर भाजपाई बोलते हैं, एम्स तो भारत सरकार का है, इसलिए प्राथमिकता उन्हें मिलनी चाहिए। पूर्व हेल्थ मिनिस्टर और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहे हैं। सो, छोटे-बड़े लगभग सभी नेताओं के पास नड्डा जी और नड्डाजी के पीए का नम्बर है। लिहाजा, भाजपा के लोग सीधे दिल्ली फोन लगा दे रहे। इस सिचुएशन में समझा जा सकता है एम्स के डायरेक्टर की स्थिति क्या होगी। ऐसे में, वास्तविक लोगों को कोरोना का लाभ नहीं मिल पा रहा और जिन्हें कोई सिन्टम नहीं है, वे एम्स में भरती हो जा रहे। इसी चक्कर में राजधानी के एक युवा कांग्रेस नेता ने एम्स में अच्छा-खासा बवाल खड़ा कर दिया। ये अच्छा है कि सीएम भूपेश बघेल ने अब स्पष्ट आदेश दे दिया है कि सिफारिशों की जगह जरूरतमंदों को प्राथमिकता दिया जाए। सिस्टम को सीएम के इस आदेश को क्रियान्वित कराना चाहिए।

बड़ी देर कर दी

एसीएस रेणु पिल्ले ने हेल्थ विभाग की जिम्मेदारी संभाल ली है। उन्होेंने सिस्टम में कसावट लाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है। सुबह से लेकर देर रात वे अधिकारियों से फाॅलोअप ले रहीं हैं। लेकिन, ऐसे समय में वे हेल्थ की कमान संभाली हैं…जब मामला काफी आगे बढ़ गया है। ऐसा भी नहीं है कि हेल्थ में अफसरों की कमी है। सिकरेट्री से लेकर ओएसडी तक आधा दर्जन से अधिक आईएएस इस विभाग में हैं। डायरेक्टर आईएएस, एनआएचएम एमडी आईएएस और मेडिकल कारपोरेशन का एमडी भी आईएएस। इसके अलावा सरकार ने चार आईएएस को ओएसडी भी बनाया है। बावजूद इसके हेल्थ अफसरों में वो तालमेल दिखा नहीं। हेल्थ वालों ने किसी की सुनी भी तो नहीं। मंत्रालय में डाॅ0 आलोक शुक्ला जैसे आईएएस हैं, जो दो बार हेल्थ सिकरेट्री रह चुके हैं। ऐसा पता चला है कि उन्होंने दो-एक मौकों पर कुछ सलाह देने की कोशिश की तो उनकी बात को भी अनसूनी कर दी गई। अंबिकापुर मेडिकल कालेज को एमसीआई का परमिशन रुका पड़ा है। जबकि, आलोक के बैचमेट एमसीआई के सिकरेट्री हैं। लेकिन, इसमें भी मदद नहीं ली गई। हेल्थ विभाग के अधिकारी अपने मंत्री के क्षेत्र के काॅलेज को परमिशन नहीं दिला सकते तो फिर कोई मतलब ही नहीं है। हेल्थ विभाग के अधिकारियों की आत्ममुग्धता ने विभाग का बड़ा नुकसान किया।

किरण क्यों सहम गई…

राज्य महिला आयोग की चेयरमैन किरणमयी नायक पेशे से वकील हैं। तेज-तर्रार नेत्री भी। महापौर रहते भी उनके काम को लोगों ने देखा है। मगर हैरानी है कि रायपुर मेडिकल काॅलेज के एक सीनियर डाक्टर के खिलाफ वहीं की एक पीजी छात्रा ने यौन शोषण का कांप्लेन किया तो 24 घंटे तक उसकी खबर बाहर नहीं आ पाई। आई भी तो आयोग का कोई जिम्मेदार आदमी इस पर सीधे बात करने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। इतने गंभीर मामले पर चुप्पी क्यों? आखिर, क्या हो गया किरणमयी नायक को? ऐसी तो नहीं थी किरणमयी। कुर्सी मिलने के बाद प्रभाव बढ़ जाता है, ये तो उल्टा हो रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस अशोक जुनेजा डीजी प्रमोट हो गए हैं, इसके आगे अब क्या होगा?
2. मोतीलाल वोरा और ताम्र्रध्वज साहू के कांग्रेस वर्किंग कमेटी से ड्राॅप करने और पीएल पुनिया को छत्तीसगढ़ प्रभारी रिपीट करने के क्या मायने हैं?



रविवार, 6 सितंबर 2020

मंत्रियों पर परिवार हाॅवी

 तरकश, 6 सितंबर 2020

संजय के दीक्षित
छत्तीसगढ़ के कुछ मंत्रियों का जवाब नहीं है…दो साल होने को है मगर अभी तक वे सरकारी और गैर सरकारी बैठकों का मतलब नहीं समझ पाए हैं या यूं कहें कि वे समझना नहीं चाह रहे। ऐसे मंत्रियों से उनके विभाग के अफसर असहज महसूस कर रहे हैं। हालांकि, ये सबके साथ नहीं है। मगर दो-तीन मंत्रियों की मीटिंग या दौरे में तो इंतेहा हो जा रहा। बेटे, भांजे, भतीजे, साले….नहीं तो फिर कार्यकर्ता। मंत्रियों के कुछ रिलेटिव तो बकायदा अधिकारियों को आदेश देते हैं और उनसे सवाल-जवाब भी। वाकई ये सेमफुल है। समझा जा सकता है कि ऐसे में अधिकारियों की स्थिति क्या होती होगी। ठीक है…अफसरों को कोई मैसेज देना है तो मंत्रीजी हौले से इशारा कर सकते हैं…किन्हें वेट देना है…अफसर ऐसे इशारे बखूबी समझते भी हैं। लेकिन, ये तो ठीक नहीं कि रिश्तेदारों और कार्यकर्ताओं को साथ में बिठाकर मीटिंग के डेकोरम का मजाक उड़ाया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग को इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।

हिसाब का चक्कर?

एक मंत्री ने अपने पीएस याने निज सचिव की छुट्टी कर दी। मंत्री के आदेश के बाद पीएस को तुरंत उनके मूल विभाग जीएडी में वापिस भेज दिया गया। मंत्री के इस फैसले से सवाल तो उठते ही हैं कि दो साल से इतना बढ़ियां केमेस्ट्री के बाद आखिर क्या हुआ कि मंत्रीजी को इतना कड़ा निर्णय लेना पड़ गया। कोई कह रहा, हिसाब-किताब का चक्कर था तो कोई कुछ और…। बह

फिफ्टी-फिफ्टी

छत्तीसगढ़ से डेपुटेशन पर जाने वाली महिला आईएएस की संख्या भी ठीक-ठाक होती जा रही हंै। जेन्स में बीवीआर सुब्रमण्यिम, अमित अग्रवाल, सुबोध सिंह, डाॅ0 रोहित यादव, अमित कटारिया, मुकेश बंसल और रजत कुमार। और लेडिज में, निधि छिब्बर, रीचा शर्मा, रीतू सेन, श्रुति सिंह, संगीता पी।

आईपीएस आ रहीं

महिला आईएएस छत्तीसगढ़ छोड़कर जा रही है। और महिला आईपीएस छत्तीसगढ़ आ रही हैं। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल कैडर की आईपीएस भावना गुप्ता इंटर कैडर चेंज कराकर छत्तीसगढ़ आईं हैं। वे जिला पंचायत सीईओ राहुल देव गुप्ता की पत्नी हैं। इस महीने हिमानी खन्ना इंटर कैडर डेपुटेशन पर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ आ रही हैं। हिमानी के पति विनीत खन्ना भी मध्यप्रदेश में डीआईजी हैं। समझा जाता है, वे भी कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ आ जाएं। विनीत मूलतः राजनांदगांव के रहने वाले हैं। उनके पिताजी वहां दिग्विजय काॅलेज के प्रिंसिपल रहे। दोनों दंपति अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान रायपुर में सीएसपी रह चुके हैं।

हिम्मती कलेक्टर

भारत सरकार ने लाॅकडाउन पर प्रतिबंध लगा दिया है…दिल्ली के परमिशन के बिना बंद नहीं किया जा सकता। इसलिए, राजनांदगांव कलेक्टर टीपी वर्मा ने जब हफ्ते भर का लाॅकडाउन किया तो मंत्रालय के अफसर भी चैंक गए। दरअसल, भारत सरकार के गाइडलाईन में है कि कंटेनमेंट जोन में लाॅकडाउन किया जा सकता है। और, राजनांदगांव के सभी वार्ड कंटेनमेंट जोन हो गए हैं। कोरोना के संक्रमण को रोकने कलेक्टर ने हिम्मत दिखाते हुए कंटेनमेंट जोन के नियम के तहत बंद करा दिया। ये होता है कलेक्टरों का पावर। और हिम्मत भी।

मंत्री बड़े या सिकरेट्री

अफसर कितने भी बैकफुट पर हों, उन्हें काम को अंजाम तक पहंुुचाना बखूबी आता है। यहां बात कर रहे हैं, रजिस्ट्री विभाग की। रजिस्ट्री विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारी पिछले महीने रिटायर हुए। दोनों बड़े प्लानिंग के साथ संविदा नियुक्ति के लिए प्रयासरत थे। रणनीति के तहत एक ने मंत्री को पकड़ा और दूसरे ने सिकरेट्री को। सिकरेट्री ने जिस अफसर की फाइल बढ़ाई थी, डेपुटेशन के लिए रिलीव होते-होते जीएडी से रिमार्क कराकर उसे उपर तक पहुंचवा दी। और मंत्री के रिकमांडेशन वाली फाइल अभी मंत्रालय में घूम रही है। अब दोनों में से किसको संविदा नियुक्ति मिलती है या हो सकता है किसी को ना मिले…ये सीएम पर डिपेंड करेगा। मगर ये सही है कि अफसरों को काम कराने का तरीका तो आता है।

ब्यूरोक्रेसी को राहत

15 बरस तक एकतरफा राज करने वाली छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी भले ही इस समय बैकफुट पर है मगर डेपुटेशन और छुट्टियों के मामले में पहले से ज्यादा कंफर्टेबल पोजिशन है। अभी कोई बंदिशें नहीं है और ना ही कोई बीच में रोड़ा। वरना, पहले डेपुटेशन और लीव तो बड़ा कष्टप्रद माना जाता था। सोनमणि बोरा ने पिछली सरकार में कितना प्रयास किया था। उन्हें तो एजुकेशन लीव के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे। बस, एक लाईन में बात खतम कर दी जाती थी…अधिकारियों का बड़ा टोटा है। मनोज पिंगुआ बाल-बाल बचे थे। उनका भी दिल्ली जाना गड़बड़ा ही रहा था। निधि छिब्बर को तो सरकार ने एनओसी देकर पोस्टिंग के बाद रिलीव करने से मना कर दिया। इस चलते भारत सरकार ने उन्हें सेंट्रल डेपुटेशन के लिए पांच साल के लिए डिबार कर दिया था। निधि को कैट की शरण लेनी पड़ी थी। तब जाकर वे दिल्ली जा पाईं। तब डेपुटेशन के लिए एनओसी मिलना किस्मत की बात मानी जाती थी। तभी तो जितने 15 साल में आईएएस डेपुटेशन पर गए, उस फिगर के आसपास इन दो सालों में चले गए। इस सरकार में डेपुटेशन पर जाने वालों में रजत कुमार, मुकेश बंसल, रीचा शर्मा, सुबोध सिंह और संगीता पी शामिल हैं। सोनमणि बोरा को सरकार ने एनओसी दे दिया है। दरअसल, अभी सीएम भूपेश बघेल खुद फैसला ले रहे हैं। इसमें जीएडी का कोई रोल नहीं है। इस सरकार ने जीएडी का ब्रेकर खतम कर दिया है।

सीएस का एक्सटेंशन

चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल की सेवावृद्धि की फाइल डीओपीटी पहुंच गई है। वहां से होकर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जाएगी। प्रधानमंत्री इस पर क्या निर्णय लेते हैं, फिलहाल इसका पता नहीं चलेगा। क्योंकि, ऐसे केसेज में भारत सरकार आखिरी दिनों में फैसला लेती है। अगर एक्सटेंश्न देना होगा तो 29 नवंबर की शाम तक लेटर आ जाएगा और यदि नहीं तो फिर फाइल चुपचाप क्लोज कर दी जाती है। राज्य सरकारें भी एक दिन पहले तक वेट करती है। आदेश नहीं आने पर समझा जाता है कि एक्सटेंशन की अनुमति नहीं मिली। पिछले साल सुनील कुजूर के समय भी ऐसा ही हुआ था। कुजूर को सीएस के पद से 31 अक्टूबर को रिटायर होना था। सरकार ने 30 अक्टूबर तक इंतजार किया। एक्सटेंशन का आदेश नहीं आया तो फिर आरपी मंडल को सीएस बनाने का आर्डर जारी कर दिया गया। इस बार चूकि कोरोना है, इसलिए भारत सरकार से हरी झंडी मिलने की संभावना से जानकार इंकार नहीं कर रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किन दो मंत्रियों के बारे में कहा जा रहा है कि वे सरकार और पार्टी के एजेंडा पर नहीं, अपने समाज के एजेेंडा पर काम कर रहे हैं?

2. बस्तर के एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो गलत-शलत की बिना परवाह किए एक मंत्री के आगे बिछ गए हैं?रहाल, इसकी एथेंटिक वजह क्या है, ये तो मंत्री और पीएस ही बता पाएंगे।



सिकरेट्री की लिस्ट

तरकश, 30 अगस्त 2020
संजय के दीक्षित
हेल्थ सिकरेट्री निहारिका बारिक का दो बरस का चाईल्ड केयर लीव सरकार ने स्वीकृत कर दिया है। वे हसबैंड के साथ जर्मनी जा रही हैं। दो-चार रोज में वे रिलीव हो जाएंगी। उनके अलावे आवास पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री और एनआरडी चेयरमैन संगीता पी की भी सेंट्रल डेपुटेशन का आदेश निकल गया है। उन्हें आधार के रिजनल कार्यालय हैदराबाद में पोस्टिंग मिली है। समझा जाता है, निहारिका बारिक के साथ उन्हें भी कार्यमुक्त कर दिया जाएगा। जाहिर है, दोनों सिकरेट्री के पास महत्वपूर्ण विभाग हैं। उन्हें रिलीव करने से पहिले सरकार को पोस्टिंग आर्डर निकालना होगा। कोरोना का पीक टाईम आने वाला है। इसलिए, ठीक-ठाक अधिकारी को ही हेल्थ का जिम्मा सौंपा जाएगा। हालांकि, संगीता के पास भी बड़ा विभाग है। पिछली सरकार में प्रमुख सचिव और एसीएस लेवल के अफसरों के पास आवास और पर्यावरण विभाग तथा एनआरडीए चेयरमैन का पद था। इस बार संकेत मिल रहे हैं कि किसी पीएस या एसीएस को ही संगीता का विभाग दिया जाएगा। कुल मिलाकर मंत्रालय में सचिवों की एक पोस्टिंग लिस्ट कभी भी निकल जाएगी।

2006 बैच पर भरोसा

मंत्रालय में सचिव स्तर पर वैसे ही अधिकारियों की काफी कमी है। उपर से निहारिका बारिक और संगीता पी बाहर जा रही हैं। सोनमणि बोरा को भी सेंट्रल डेपुटेशन के लिए राज्य सरकार ने एनओसी दे दिया है। पोस्टिंग आदेश निकलने के बाद वे भी एकाध महीने में दिल्ली की फ्लाइट पकड़ लेंगे। मंत्रालय में सीनियर लेवल पर वैसे ही अधिकारियों का टोटा है। अब तीन सचिवों के एक साथ मंत्रालय से रिलीव होने से जाहिर है मुश्किलें बढ़ेंगी। इस हालात में प्रमोटी आईएएस के लिए चांस बढ़ेंगे। अभी उमेश अग्रवाल और धनंजय देवांगन के पास कोई स्वतंत्र जिम्मेदारी नहीं है। उमेश गृह विभाग में हैं, उनके उपर एसीएस सुब्रत साहू हैं। इसी तरह कृषि विभाग में दो-दो सिकरेट्री हो गए हैं। एम गीता और धनंजय। उनके अलावा सरकार को 2006 बैच के आईएएस को भी अब विभागों का प्रभार देना पड़ेगा। अभी 2004 बैच सिकरेट्री बन चुका है। 2005 बैच में छह अफसर थे। मगर अभी सिर्फ एस. प्रकाश बचे हैं। मुकेश बंसल और रजत कुमार सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। ओपी चौधरी ने वीआरएस ले लिया। संगीता आर नई सरकार के बाद से छुट्टी पर हंै। और राजेश टोप्पो की फिलहाल इस स्थिति नहीं है। लिहाजा, 2006 बैच को अब आगे बढ़ाना पड़ेगा। पहले भी ऐसा हुआ है कि जूनियर अफसरों को स्पेशल सिकरेट्री का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया।

रेणु पिल्ले या प्रसन्ना?

कोरोना का पिक टाईम आने वाला है….सितंबर और अक्टूबर में तो चरम पर रहेगा। ऐसे में हेल्थ सिकरेट्री निहारिका बारिक के जर्मनी जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। साथ में, यह जिज्ञासा भी कि कोरोना से जंग के हालात में सरकार किसको स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सौंपती है। मंत्रालय के गलियारों में हेल्थ को लेकर दो नाम चर्चा में हैं। एसीएस रेणु पिल्ले और सिकरेट्री प्रसन्ना आर। इन अटकलों के पीछे वजह यह है कि रेणु फिलहाल एसीएस मेडिकल एजुकेशन हैं और प्रसन्ना डायरेक्टर हेल्थ रह चुके हैं। अब देखना है, सरकार इनमें से किसी नाम पर मुहर लगाती है या किसी तीसरे को हेल्थ सिकरेट्री की कुर्सी पर बिठा देगी।

ऐसे भी आईपीएस

सभी पुलिस वाले एक जैसे नहीं होते। इस युग में भी एएन उपध्याय जैसे एकाध पुलिस वाले निकल जाते हैं। सरगुजा और बस्तर के आईजी रहे। उसके बाद रिकार्ड पौने चार साल डीजीपी। बावजूद इसके, राजधानी में  रैन बसेरा का इंतजाम नहीं कर पाए। रिटायरमेंट के बाद मिले पैसे से उन्होंने एक्स चीफ सिकरेट्री अशोक विजयवर्गीय से धरमपुरा में प्लाॅट खरीद कर मकान बनाना शुरू किया है।

अफसरों का ड्रेस सेंस

मध्यप्रदेश में अफसरों के ड्रेस कोड को लेकर वहां के जीएडी ने आंखें तरेरी है। अफसरों को दो टूक निर्देश दिया गया है कि ड्रेस की मर्यादा कायम रखें…मुख्यमंत्री समेत सीनियर राजनेताओं की बैठकों में इसका खास तौर पर ध्यान रखा जाए, वरना कार्रवाई होगी। वैसे, छत्तीसगढ़ के भी अफसरों का ड्रेस लोगों को खटक रहा है। खासकर, अहम बैठकों में हाफ शर्ट…बिना शर्टिंंग। कोई चप्पल पहनकर पहुंच जाता है तो कोई आस्तिन चढ़ायें। ऐसे बिंदास और गांधीवादी अधिकारियों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे यूपीएससी के इंटरव्यू बोर्ड में भी इसी तरह चले गए थे? नहीं तो फिर अहम मीटिंगों में ड्रेस कोड का सम्मान क्यों नहीं। जीएडी को इसे संज्ञान लेना चाहिए।

सबसे बड़ी होर्डिग्स

एक मंत्रीजी के घर-परिवार में सब कुछ बढ़ियां नहीं चल रहा है। बरतने खड़़कने लगी हैं। बताते हैं, लंबे समय से सियासत में अवसर मिलने की इंतजार में बैठे चचेरे भाई का धैर्य अब चूकने लगा है। समझ लीजिए… बगावत जैसी स्थिति निर्मित हो रही। इसकी एक झलक दिखी सीएम भूपेश बघेल के जन्मदिन पर। चेचेरे भाई ने मंत्री से दो कदम आगे बढ़कर राजधानी में बधाई का सबसे बड़ी होर्र्डिंग्स लगवाई। मंत्रीजी के भाई की राजधानी में बढ़ती सक्रियता से मंत्री खेमा हैरान…परेशान है।

जिम्मेदार विधायक?

छत्तीसगढ़ के विधायकों ने विधानसभा के आदेश की परवाह न करते हुए कोरोना टेस्ट करने से इंकार कर दिया। आलम यह हुआ कि विधायकों के आगे स्पीकर चरणदास महंत को झुकना पड़ गया। इसके बाद सदन में कोरोना पर पूरे चार घंटे चर्चा हुई। अब इसे आप विरोधाभास मत कहियेगा कि कोरोना टेस्ट से भागने वाले विधायक कोरोना पर चार घंटे चर्चा कर रहे। असल में, हमारे विधायक बेहद जिम्मेदार हैं…सूझ-बूझ वाले। आखिर, आ बैल मुझे मार क्यों करें। कोरोना टेस्ट कराकर अगर क्वारंटाईन हो जाते तो फिर सदन में चार घंटे चर्चा कौन करता? ये कहिये कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई। फिर, ये भी तो समझिए कि विधायक आम आदमी थोड़े होता है कि उस पर नियम-कायदे और बंदिशें लागू हो।

मैन आफ मैच

संसदीय कार्य मंत्री के अनुभव का लाभ अजय चंद्राकर को मिल रहा है। मानसून सत्र में सीएम भूपेश बघेल को भी कहना पड़ा…अजय अकेले बैट्समैन हैं…गजब। सीएम विपक्ष के किसी नेता की तारीफ करें, वो भी अजय चंद्राकर जैसे हमलावर सदस्य का तो मानना पड़ेगा। रमन सिंह की तीसरी पारी में अजय पांच साल संसदीय कार्य मंत्री रहे। फिर बोलने में उनकी कोई सानी नहीं। अध्ययन भी करते हैं। सदन में उनके पारफारमेंस से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

अंत मेें दो सवाल आपसे

1. विपक्ष के किस विधायक ने दोस्ती निभाते हुए राजधानी के सरकारी आवास को बीजेपी के एक पूर्व विधायक को रहने के लिए दे दिया है।
2. मरवाही विधानसभा उपचुनाव के लिए पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को प्रभारी बनाए जाने से माना जाए कि बीजेपी की राजनीति में उनका कद बढ़ा है?