शनिवार, 26 सितंबर 2015

भय बिन होत….

भय बिन होत….


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27 सितंबर

संजय दीक्षित
फील्ड में रिजल्ट देने के नाम से पहचाने जाने वाले एक प्रिंसिपल सिकरेट्री काम में ढिलाई होेने पर छोटे अफसरों पर ही नहीं बरसते। बल्कि, मौका मिले तो आईएएस को भी नहीं छोड़ते। हाल ही की बात है। मीटिंग के दौरान बैड पारफारमेंस पर पीएस मातहत आईएएस पर बुरी तरह उखड़ गए। उन्होंने यहां तक पूछ डाला, मिस्टर तुम आईएएस कैसे बन गए? तुम घोखे में सलेक्ट हो गए होगे। अब तुम अगर यूपीएससी में बैठे, तो पक्का फेल हो जाओगे। मीटिंग में पूरे स्टेट के अफसर बैठे हुए थे। पीएस के तेवर देखकर सभाक़क्ष में सन्नाटा पसर गया। आईएएस भी सकपका गए। बाद में, पीएस को लगा कि कुछ ज्यादा हो गया है। आईएएस की पत्नी भी आईएएस हंै। सो, पीएस ने इस तरह से बात संभाली, वैसे यूपीएससी में अब मैं भी बैठूं तो मैं भी फेल हो जाउंगा। बहरहाल, पीएस की झाड़ का बड़ा असर हुआ है। डायरेक्टर लेवल के आईएएस अब दौड़ने लगे हैं। मीटिंग दो रोज बाद उन्होंने शौचालय निर्माण में लापरवाही बरतने वाले 22 मैदानी अफसरों की इंक्रीमेंट रोक दी। ठीक ही कहते हैं, भय बिना…….।

सम्मान का ध्यान

आईएफएस आलोक कटियार ने हैंडलूम बोर्ड में एमडी बनने से लगभग इंकार ही कर दिया है। आर्डर निकलने के महीना भर बाद भी उन्होंने अब तक ज्वाईन नहीं किया है। हैंडलूम बोर्ड की नई पोस्टिंग से वे नाखुश बताए जाते हैं। हालांकि, हैंडलूम बोर्ड भी एकदम ड्राई नहीं है। नारायण सिंह, सीके खेतान, रेणू पिल्ले जैसे कई आईएएस इसके एमडी रह चुके हैं। मगर कटियार का अपना कद है। सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद से ताल्लुकात रखते हैं। ऐसे में, सरकार को भी उनके कद और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए न।

लकी बैच

छत्तीसगढ़ के आईएएस कैडर में 2005 बैच पहला बैच होगा, जिसके तीन अफसर डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस बनें। पहले, ओपी चैधरी, फिर रजत कुमार। और अब राजेश टोप्पो। कलेक्टरी में भी यह बैच आगे है। रायगढ़, जांजगीर, राजनांदगांव, दुर्ग, कोरिया के कलेक्टर 2005 बैच के हैं। मई तक तो टोप्पो भी बलौदा बाजार के कलेक्टर रहे। किसी एक जिले में सर्वाधिक समय तक कलेक्टर रहने का रिकार्ड उनके नाम ही दर्ज है। सवा तीन साल से अधिक। बलौदा बाजार जिला बनने पर ओएसडी बनकर गए थे। फिर, वहीं कलेक्टर बनें।

हींग लगे ना….

देश के सभी राज्यों के सरकारी प्रिटिंग प्रेसों में सिर्फ सरकार के काम होते हैं। सरकारी डायरी, कलेंडर, गजट आदि का प्रकाशन। छत्तीसगढ़ में भी साल भर पहले तक ऐसा ही होता था। मगर अब दीगर काम भी होने लगे हैं। माध्यमिक शिक्षा मंडल से 90 लाख उत्तर पुस्तिका छापने का काम मिल गया है। कई दूसरे विभागों के काम भी मिल रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा हाइट यह है कि प्रायवेट प्रेसों से काम कराए जा रहे हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं, सरकारी प्रेस के नाम पर सरकार से काम लिए जा रहे हैं और प्रायवेट में उसे कराए जा रहे हैं। याने हींग लगे ना फिटकिरी वाला मामला है।

जोगी पर नजर

कांग्रेस का संगठन चुनाव टलने के बाद पार्टी द्वारा अब अजीत जोगी की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। जाहिर है, संगठन चुनाव से जोगी कैंप को बड़ी उम्मीदें थी। वह खतम हो गई है। अब, एक साल बाद क्या होगा, कौन जानता है। भूपेश बघेल इसी तरह बैटिंग करते रहे, तो जोगी के लिए अपने लोगों को बचाना मुश्किल होगा। ऐसे में, जोगीजी शांत थोड़े ही बैठेंगे। कुछ-न-कुछ करेंगे ही। इसलिए, वे अब किससे मिल रहे हैं, इसे वाच किया जा रहा है। तभी तो जोगी की दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात पर सवाल उठाने पर संगठन के नेताओं ने देर लगाई। नेताओं ने कैमरे पर दावा कर दिया कि जोगी की सोनिया से कोई मुलाकात नहीं हुई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. हाल में पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर जिन आरोपों की लपटों से झुलसे, उसे हवा देने में किस सीनियर ब्यूरोक्रेट्स का हाथ माना जा रहा है?
2. छोटे जिले के किस कलेक्टर की छुट्टी होने की चर्चा है?

आईपीएस वर्सेज आईएफएस

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तरकश, 20 सितंबर

संजय दीक्षित
अशोक जुनेजा के खुफिया चीफ बनने के बाद स्पोट्र्स कमिश्नर का पोस्ट वैकेंट हो गया है। इस पोस्ट के लिए सरकार की मेरिट में चार नाम हैं। दो आईपीएस, दो आईएफएस। आईपीएस में राजीव श्रीवास्तव और जीपी सिंह और आईएफएस में संजय शुक्ला और राकेश चतुर्वेदी। राजीव श्रीवास्तव पहले भी डायरेक्टर स्पोट्र्स रह चुके हैं। पीएचक्यू में वे अभी एडीजी सीआईडी हैं। जाहिर है, ये पोस्ट किसी को रास नहीं आता। ऐसे में, कोई भी जोर मारेगा। जीपी सिंह भी डायरेक्टर स्पोट्र्स रह चुके हैं। अभी आईजी रायपुर हैं। वैसे, स्पोट्र्स कमिश्नर के लिए संजय शुक्ला का नाम सबसे उपर था। मगर बताते हैं, वे अपना नाम विड्रो कर चुके हैं। बचे राकेश चतुर्वेदी। राकेश अभी डायरेक्टर कल्चर हैं। स्पोट्र्स मिनिस्टर भैयालाल राजवाडे़ के क्लोज भी हैं। फिर लोकल भी। खांटी रायपुरिया। खुद भी बास्केट बाल के खिलाड़ी रहे हैं और खिलाडि़यों के बीच पैठ भी गहरी है। सो, उनका पलड़ा भारी बैठ रहा है। अगर ऐसा हुआ तो राज्य में पहली बार कोई आईएफएस स्पोट्र्स कमिश्नर बनेगा। बहरहाल, मामला आईपीएस वर्सेज आईएफएस हैं। इसमें जो जीता, वो सिकंदर।

फस्र्ट लेडी एसआरपी

पारुल माथुर राज्य की पहली महिला रेलवे एसपी अपाइंट की गई हैं। इससे पहले, मध्यप्रदेश के समय 1993 में अरुणा मोहन राव रायपुर में एसआरपी थीं। पारुल हाल ही में लंबी छ्ट्टी से लौटी हैं। इससे पहले वे बेमेतरा की एसपी रहीं। हालांकि, उनके बाद स्टेट में किसी महिला आईपीएस को एसपी बनने का मौका नहीं मिला। जबकि, महिला आईएएस गजब की होड़ कर रही हैं। छह जिलों की कलेक्टर आखिर वही हैं। इनमें दुर्ग, रायगढ़ और अंिबकापुर जैसे जिले हैं। पारुल राज्य के रिटायर आईपीएस राजीव माथुर की बेटी हैं। राजीव माथुर रायपुर के आईजी, एडीजी प्रशासन और डीजी होम गार्ड जैसे अहम पदों पर रहे। बाद में, डेपुटेशन पर वे डीजी आरपीएफ बनकर दिल्ली चले गए थे। चलिये, उनके पिता आरपीएफ में शीर्ष पद पर रहे हैं। तो इसका लाभ पारुल को भी मिलेगा। जीआरपी और आरपीएफ में टकराव के हालात तो नहीं बनेंगे।

दो पीसीसीएफ और

हालांकि, मीडिया में ये खबर अभी नहीं आई हैं। मंगलवार को कैबिनेट ने पीसीसीएफ के दो पदों की मंजूरी दे दी है। वन प्लस, वन। एक कैडर, एक एक्स कैडर। एक पीसीसीएफ हर्बल बोर्ड के लिए दूसरा स्टेट रिसर्च सेंटर के लिए। अभी चार पीसीसीएफ हैं। अब, छह हो जाएंगे। नए दो पदों के लिए तीन दावेदार हैं। दिवाकर मिश्रा, प्रदीप पंत और बीके सिनहा। दिवाकर अभी एसईसीएल में डेपुटेशन पर हैं। उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन मिल जाएगा। बचे पंत और सिनहा। दोनों की लाटरी निकलना तय है। हालांकि, यह भी सही है सिनहा जोर नहीं लगाते तो ये कदापि नहीं हो पाता। एडिशनल से तीनों को रिटायर होना पड़ता। जीतेंद्र उपध्याय टाईप। उन्होंने हाउस को तो साधा मगर हाउस से ही सब कुछ नहीं होता। ब्यूरोक्रेसी में फाइल जाकर डंप हो गई। सिनहा ने पूरी सरकार को साधा और काम बन गया। तभी तो उन्हें वन विभाग का चाणक्य कहा जाता है।

उपध्याय युग

अशोक जुनेजा को खुफिया चीफ बनवाकर डीजीपी अमरनाथ उपध्याय ने पुलिस महकमे में अब अपनी स्थिति और सुदृढ़ कर ली है। पुलिस मुख्यालय में अब जितने आईपीएस हैं, वे सभी या तो उनके रिकमांडेशन से लाए गए हैं या फिर उनके भरोसेमंद हैं। सो, ऐसा कहा जा सकता है कि राज्य बनने के बाद पहली बार पीएचक्यू में सिर्फ डीजीपी का गुट होगा। ऐसा तो सबसे ताकतवर डीजीपी विश्वरंजन के समय भी नहीं रहा। उनके समय भी विरोध के दबे स्वर लोग महसूस करते रहे। वैसे, पीएचक्यू में डीजीपी के बाद तीन पोस्ट अहम होते हैं। खुफिया चीफ, प्लानिंग एन प्रोविजनिंग याने पीएनपी और प्रशासन। उपध्याय ने डीजीपी बनते ही साफ-सुथरी छबि के आईपीएस संजय पिल्ले को पीएनपी मंे ले आए थे। खुफिया में अब, जुनेजा आ गए हैं। बहुत कम लोगों का पता होगा कि जुनेजा को खुफिया में लाने के लिए उपध्याय शिद्दत से लगे थे। पुराने पीएचक्यू के समय से ही। जुनेजा के लिए प्लस यह रहा कि वे डीजीपी के पसंद थे तो सीएम और सीएम सचिवालय के भी। सिंगल नाम था। मुकेश गुप्ता का पांच साल हो भी गया था। इसलिए, जुनेजा का नाम ओके होने में दिक्कत नहीं हुई। और अब तीसरे अहम पोस्ट, प्रशासन में राजेश मिश्रा एडीजी हैं। वे जुनियर हैं। सो, अब कह सकते हैं पीएचक्यू में उपध्याय युग शुरू हो गया है। इससे पहले, विश्वरंजन बेहद पावरफुल रहे। तो अपने हाईप्रोफाइल कैरियर के चलते। उपध्याय की सुनवाई इसलिए हो रही है कि उनका अपना कोई एजंडा नहीं है।

हाईप्रोफाइल कैरियर

नए खुफिया चीफ अशोक जुनेजा का हाई प्रोफाइल कैरियर रहा है। बिलासपुर और रायगढ़ के एसपी, रायपुर और दुर्ग के एसएसपी। बिलासपुर और रायपुर के आईजी। एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, स्पोर्ट्स कमिश्नर। सेंट्रल डेपुटेशन। कामनवेल्थ गेम के सिक्यूरिटी इंचार्ज भी रहे। पोस्टिंग के मामले में उन्हें छत्तीसगढ़ का सबसे किस्मती आईपीएस कहा जा सकता है। मगर उस समय वे बुरे वक्त के शिकार हो गए, जब दुर्ग आईजी से पीएचक्यू लौटने के महीना भर के भीतर उन्हें होम सिकरेट्री बनाकर दूसरी बार मंत्रालय में डंप कर दिया गया। तब वे भी नहीं समझ पाए थे, ये हुआ कैसे? इसके पीछे दो वजह मानी गईं। एक तो मंत्रालय में लंबे समय से पोस्टेड एएन उपध्याय को एडीजी प्रशासन बनाना था। और दूसरा, डा0 आनंद कुमार का तब डीजीपी बनना लगभग तय हो गया था। जुनेजा के कुमार से अच्छे रिश्ते हैं। सो, उनके विरोधियों को लगा कि कुमार के चलते कहीं वे आवश्यकता से अधिक कहीं पावरफुल ना हो जाएं। सो, उन्हें पहले ही ठिकाने लगा दिया गया। हालांकि, कुमार ने बाद में खुद ही आने से इंकार कर दिया। इधर, जुनेजा की किस्मत ने फिर चमक गई।

इंम्पोटेंस क्यों?

इंटेलिजेंस चीफ की अहमियत इसलिए नहीं है कि उसे हर साल सिक्रेट सर्विस के नाम पर आठ करोड़ रुपए मिलते हैं और उसका कोई हिसाब नहीं मांगता। खुफिया चीफ का मतलब बेहिसाब पावर है। सीएम से उसे मिलने के लिए टाईम लेने की जरूरत नहीं पड़ती। दिन में कम-से-कम एक बार वह सीएम से अनिवार्य तौर पर मिलकर उन्हें ब्रीफ करता है। सारे एसपी और आईजी सुबह फोन करके इंटेलिजेंस इनपुट्स देते हैं। वीआईपी सुरक्षा से लेकर फोर्स की तैनाती तक खुफिया विभाग हैंडिल करता है। वैसे भी, फोन टेप करने वाली मशीन खरीदकर डीएम अवस्थी खुफिया विभाग को और मजबूत कर गए थे। इसके कारण नेता हो या अधिकारी, सब खुफिया विभाग से चमकते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीनियर आईपीएस डीएम अवस्थी क्या पुलिस मुख्यालय लौट रहे हैं?
2. मुकेश गुप्ता इंटेलिजेंस में पूरे पांच बरस रहे, इसके बाद भी उनके हटने पर कहानियां क्यों गढ़ी जा रही है?

शनिवार, 19 सितंबर 2015

कहीं खुशी, कहीं गम

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13 सितंबर

संजय दीक्षित
सातवें वेतनमान की लागू होने वाली सिफारिशों की भनक ने कई नौकरशाहों की नींद उड़ा दी है। दरअसल, दिल्ली से आ रही खबरों की मानें तो सातवें वेतन आयोग में प्रावधान किया जा रहा है कि रिटायरमेंट की आयु 60 हो या कुल नौकरी 33 बरस। इनमें से जो पहले आएगा, सेवामुक्त कर दिया जाएगा। हालांकि, नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने का बाद केंद्र ने रिटायरमेंट एज 60 से घटाकर 58 करने का फैसला किया था। तब ब्यूरोके्रसी के विरोध के चलते वह परवान नहीं चढ़ सका था। अब बीच का रास्ता निकाला गया है। अगर यह लागू हुआ तो छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में इसका बड़ा फर्क पड़ेगा। 82 बैच तक के आफिसर सिफारिश लागू होते ही एक झटके में घर बैठ जाएंगे। छत्तीसगढ़ में 82 बैच वाले दो आईएएस हैं। एक, चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड 81 बैच और दूसरे, डीएस मिश्रा 82 बैच। हालांकि, मिश्रा का अगले बरस ही रिटायरमेंट है, सो उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। फिलहाल, आईपीएस में 33 वाला कोई नहीं है। डीजीपी एएन उपध्याय 85 बैच के हैं। उनकी सेवा अभी 30 बरस हुई है। डीजी लोक अभियोजन एमडब्लू अंसारी अगले साल रिटायर हो जाएंगे, इसलिए वे भी बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होंगे। डीजी होमगार्ड गिरधारी नायक को जरूर झटका लगेगा। वे 83 बैच के हैं। याने अगले साल उनका भी 33 हो जाएगा। 33 वाले सर्वाधिक आईएफएस में हैं। पीसीसीएफ से लेकर कई एडिशनल पीसीसीएफ। छह से सात। सबकी छुट्टी हो जाएगी। बहरहाल, 33 की सुनामी से कहीं खुशी है तो कहीं गम। नीचे वाले खुश हैं कि जल्दी उपर आने का मौका मिल जाएगा। और, गम का रीजन आप समझ ही गए होंगे।

मेंटर की नियुक्ति

महाराष्ट्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ के दोनों स्मार्ट शहरों के लिए मेंटर की नियुक्ति के लिए टाप लेवल पर विचार किया जा रहा है। महाराष्ट्र के दसों स्मार्ट शहरों के लिए प्रिंसिपल सिकरेट्री से लेकर एडिशनल चीफ सिकरेट्री को मेंटर अपाइंट किया गया है। मेंटर मतलब संरक्षक। एक ऐसा सीनियर आईएएस, जिसके बिहाफ में स्मार्ट शहरों को मेंटेन किया जा सकें। उसे संबंधित स्मार्ट शहर के अफसर सुने। हालांकि, छत्तीसगढ़ में पहले से जिलों में प्रभारी सचिवों की व्यवस्था है। मगर दो-तीन महीने में जिले में जाकर मीटिंग की रस्म के अलावा उनकी कोई भूमिका होती नहीं। मगर, अब मोदी के स्मार्ट सिटी में अफसरों को काम करना होगा। इसलिए, ठीक-ठाक छबि के अफसरों को ही मेंटर बनाया जाएगा।

होड़ हो तो ऐसी

सीएम ने बेरोजगारी दूर करने के लिए जिले के कलेक्टरों को सेना में भरती रैली करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद कुछ कलेक्टरों में तो होड़-सी मच गई है। खासकर, जांजगीर और राजनांदगांव के कलेक्टरों में। जांजगीर में ओपी चैधरी ने पिछले तीन महीने में 249 युवकों को सेना में भरती कराया है। कुछ और होने हैं। जांजगीर में इसकी तैयारी के लिए 10 बड़े प्रशिक्षण कैंप बनाए गए थे। उसमें स्पोट्स टीचरों की ड्यूटी लगाई गई। तब जाकर ये हुआ। उघर, राजनांदगांव कलेक्टर मुकेश बंसल पहली बार एयरफोर्स में भरती कराने जा रहे हंै। चैधरी और बंसल बैचमेट हैं। 2005 बैच के आईएएस। दोस्ती भी दांतकाटी रोटी जैसी। जब उनमें अच्छा करने का होड़ है। तो बाकी से तो उम्मीद करनी ही चाहिए। सेना में प्रतिनिधित्व के मामले में छत्तीसगढ़ वैसे भी काफी नीचे हैं। इसमें बड़ी तालिम की भी जरूरत नहीं पड़ती। और, जब बेरोजगारी की स्थिति यह है कि चपरासी के 22 पोस्ट के लिए 75 हजार आवेदन पहुंच जाते हैं, तो सेना में भरती के लिए ऐसे ही प्रयास होने चाहिए।

पोस्टिंग के पीछे

सीएम सचिवालय में लंबे समय तक काम करने वाले आईएफएस सुब्रमण्यिम की वन मुख्यालय में डेवलपमेंट विंग में पोस्टिंग यूं ही नहीं की गई है। वन विभाग में पीसीसीएफ के बाद कोई मलाईदार पोस्टिंग होती है तो वह है डेवलपमेंट और कैम्पा। कैम्पा में पहले से बीके सिनहा बैठे हैं। सिनहा भले ही सरकारी खेमे के नहीं माने जाते मगर छबि अच्छी है, इसलिए कैंपा में उन्हें बिठाए रखने में सरकार को कोई परेशानी नहीं है। पिछले हफ्ते फेरबदल में डेवलपमेंट विंग के लिए कई अफसर एड़ी-चोटी के जोर लगा रहे थे। कुछ तो बड़े हाउस का भी जैक लगाए। मगर सरकार ने न केवल उन्हें दो टूक इंकार कर दिया बल्कि सुब्रमण्यिम को इस पोस्ट पर बिठा दिया। वन विभाग में कागजों में जो काम होते हैं, उसके बजट इसी विभाग से स्वीकृत होते हैं। बिना कमीशन लिए बजट दिए नहीं जाते। सुब्रमण्यिम के बैठ जाने से वन विभाग में उपर से नीचे तक लोग थोड़ा टाईट रहेंगे।

खफा-खफा से

राजधानी की लड़कियां रायपुर आईजी जीपी सिंह से बेहद नाराज हैं। नाराजगी का कोई और कारण मत समझिएगा। उस टाईप के वे हैं भी नहीं। असल में, उनका सिटीजन काप एप ने लड़कियांे की मुसीबतें बढ़ा दी है। लड़कियां स्कूल, कालेज, ट्यूशन, गार्डन, माल या न्यू रायपुर, कहीं भी जाएं, दुपट्टा बांध के जाएं, वे अब बचेंगी नहीं। अभिभावकों को उनका लोकेशन मिल जाएगा। राजधानी में कार में गैंग रेप की झकझोंरने वाली घटना के बाद सिटीजन काप एप में पालकों की दिलचस्पी और बढ़ गई है। वे अब एप की जानकारी लेने में जुट गए हैं। कुछ तो बकायदा रजिस्ट्रर्ड भी हो गए हैं। ऐसे में, जीपी सिंह को बेचारी लड़कियां कोसेंगी नहीं तो क्या करेंगी। लड़कियों की स्वच्छंदता छिनने की चिंता तो एप के लांचिंग प्रोग्राम में भी दिख रहा था। अग्रसेन महिला महाविद्यालय जहां सीएम ने एप को लांच किया, पीछे बैठी लड़कियां पूरे कार्यक्रम के दौरान कमेंट करती रहीं। मीडियाकर्मियों से भी अनुरोध भी कि आप लोग कुछ कीजिए। बेचारियांे की चिंता स्वाभाविक है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. यूनियन हेल्थ मिनिस्टर और सीएम के कार्यक्रम में पानी के बोतल में सांप मिलने की गंभीरतम घटना के बाद भी कार्रवाई करने में देर क्यों की जा रही है?
2. किस सीनियर आईएएस का मामला पुलिस के पाले में पहुंच गया है?

सोमवार, 7 सितंबर 2015

भूखे मंत्री और…..


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6 सितंबर

संजय दीक्षित
एक नए-नवेले मंत्री को हल्के में लेना सरगुजा के लेबर आफिसर को महंगा पड़ गया। सरकार ने उन्हें सुकमा ट्रांसफर कर दिया है। बताते हैं, मंत्रीजी अपने लाव-लश्कर के साथ पिछले दिनों सरगुजा पहंुचे थे। उनके पेट में चूहे दौड़ रहे थे। सर्किट हाउस के स्टाफ से जब मंत्रीजी के लिए गरमागरम खाना लगाने के लिए कहा गया तो पता चला कि उसकी कोई व्यवस्था ही नहीं हुई है। अब, भूख तेज हो और पता चले कि खाना बना ही नहीं है, तो मंत्रीजी पर क्या गुजरी होगी, आप समझ सकते हैं। जाहिर है, उनका गुस्सा सातवे आसमान पर था। लेबर आफिसर को तलब किया गया। उसने भी तल्खी से जवाब दिया कि खाना का इंतजाम करना उसका काम नहीं है…..प्रोटोकाल अधिकारी को यह देखना चाहिए। इस पर मंत्रीजी भड़क गए। अफसर पर कार्रवाई करने के लिए तत्काल रायपुर के आला अफसरों को फोन लगवाया गया। और, लेबर आफिसर नप गए। 3 सितंबर को उनका धुर नक्सल एरिया के लिए आर्डर निकल गया।

कलेक्टरों को निर्देश

आईएएस रणबीर शर्मा केस में सरकार और ब्यूरोक्रेसी की फजीहत होने के बाद यंग आईएएस अफसरों को कंट्रोल करने के लिए अपर लेवल में कई प्लान बनाए जा रहे हैं। कलेक्टरों को जल्द ही निर्देश जारी हो सकते हैं कि वे युवा अफसरों को ठीक से ट्रेंड करें। साथ ही, उन पर नजर भी रखें। यंग आईएएस अगर रिश्वतखोरी में लिप्त होते हैं, तो उन्हें तत्काल टाईट करें। और, उसकी सूचना जीएडी को दें। लेकिन, मानें तब तो। सीएम के फोन के बाद कांकेर कलेक्टर ने तो कोशिश की थी। मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। युवा आईएएस जल्दी में जो हैं।

नहीं चली मंत्री की

भल्ला मामले में तीखे बोलकर नए मंत्री महेश गागड़ा ने प्रेशर बनाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि पीसीसीएफ अपाइंटमेंट की जानकारी मंत्री को दी जानी चाहिए। मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। दो दिन पहले हुए 23 आईएफएस अफसरांे के ट्रांसफर में वन मंत्री की एक नहीं चली। सरकार में टाप के दो अफसर बैठे और आर्डर निकल गया। कौशलेंद सिंह को वन विभाग मंे डेवलपमेंट विभाग देने का बड़ा जोर था। वन मुख्यालय का पीसीसीएफ के बाद डेवलपमेंट ही मलाईदार विभाग माना जाता है। मगर नान एपीसोड के चलते कौशलेंद के नाम को खारिज कर दिया गया।

सिस्टम का दोष

मंत्रालय में दसवीं, बारहवीं पास अधिकारियों के चलते गुरूवार के रोज सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। एक वीवीआईपी के इलाज के स्वीकृति आदेश में अंडर सिकरेट्री ने अंकों में लिखी राशि में प्वाइंट के बदले कोमा लगाकर राशि कई गुना बढ़ा दी। दोपहर में सोशल मीडिया में जब आर्डर की कापी वायरल हुई तो सरकार हरकत में आई। फाइल चेक की गई तो पता चला प्वाइंट और कोमा के चलते दो अंक बढ़ गया। फिर, सरकारी आदेशों में अंकों में राशि के साथ बे्रेकेट में शब्दों में उसे लिखा जाता है। मगर मूल आदेश में शब्दों में लिखा ही नहीं गया। सरकार की ओर से देर शाम ओरिजनल आर्डर की कापी जब पोस्ट की गई तब जाकर सोशल मीडिया में कमेंट्स का दौर थमा। दरअसल, मंत्रालय में अंडर सिकरेट्री से लेकर ज्वाइंट सिकरेट्री तक इस टाईप के अफसरों की खासी तादात है। हायर एजुकेशन के अफसर 10वीं पास मिल जाएंगे। मंत्रालय का सिस्टम ही ऐसा है कि पीएमओ से अगर कोई लेटर आएगा, तो उसे अंडर सिकरेट्री उसे नोट बनाकर उपर के अफसरों के पास पुटअप करेगा। अधिकांश अंडर सिकरेट्री मैट्रिक पास हैं। अब, आप कल्पना कर सकते हैं।

डीएम बनेंगे डीजी

11 सितंबर को दिल्ली में आईपीएस कैडर का रिव्यू है। इसमें डीजी का एक पोस्ट बढ़ना लगभग तय माना जा रहा है। याने डीजी के अब दो पद हो जाएंगे। अभी एक पोस्ट हैं। और, एक एक्स कैडर पोस्ट। कुल दो। इस पर तीन डीजी हैं। एएनए उपध्याय, डब्लूएम अंसारी और गिरधारी नायक। अंसारी डेपुटेशन पर थे। इसलिए, उपध्याय और नायक डीजी बन गए थे। अंसारी बाद में लौटे तो उन्हें स्पेशल परमिशन लेकर डीजी बनाया गया। अब, दो पोस्ट स्वीकृत होने पर दो एक्स कैडर पोस्ट होंगे। याने चार। पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के एमडी डीएम अवस्थी अगले साल जनवरी में डीजी के लिए आवश्यक अर्हता 30 साल की सर्विस पूरी कर लेंगे। ऐसे में, उन्हें चैथा डीजी बनना तय समझा जा रहा है।

स्मार्ट थाना

राजधानी का आमानाका थाना छत्तीसगढ़ का पहला स्मार्ट थाना होगा। भारत सरकार ने सभी राज्यों में माडल के तौर पर एक स्मार्ट थाना बनाने के लिए कहा था। इसके बाद मंत्रालय में गृह और पुलिस विभाग के आला अफसरों की मीटिंग में आमानाका पर सहमति बनी। स्मार्ट थानों के लिए केंद्र सरकार ने हाईटेक मापदंड तय किए हैं। इनमें फरियादियों की बैठने की बढि़यां व्यवस्था होंगी, साफ-सुथरा टायलेट होगा, गार्डन होगा। कंप्यूटरीकृत सिस्टम रहेगा। अब, सवाल मौजू है कि स्मार्ट थाना को चलाएगा कौन? क्या थाने का स्टाफ भी स्मार्ट होगा?

अच्छी खबर

छत्तीसगढ़ पीएससी ने शुक्रवार को कमाल कर दिया। मेडिकल कालेजों के लिए प्रशासकीय अधिकारी एवं नर्सिंग कालेजों की फैकल्टी के लिए हुए साक्षात्कार के घंटे बाद नेट पर रिजल्ट डाल दिया। इंटरव्यू देकर घर नहीं पहुंचे थे कि उम्मीदवारों को बधाइयां मिलने लगी। यही नहीं, इससे एक दिन पहले मेडिकल कालेज के 98 प्राध्यापकों के सलेक्शन में भी पीएससी ने देर नहीं लगाई। बढि़यां है। पीएससी का अब पुराना दाग धुल जाएगा। दागदार हो चुकी सूबे की भरती संस्थाओं को देर से सही, सरकार ने साफ-सुथरी छबि के अफसरों के हवाले किया है, तो इसके रिजल्ट तो मिलेंगे ही। रिटायर आईएएस आरएस विश्वकर्मा दो महीने पहिले पीएससी के चेयरमैन बनाए गए। वहीं, एसएस बजाज अब व्यापम के प्रमुख अपाइंट किए गए हैं।

हफ्ते का व्हाट्सएप

पति-राजा दशरथ का नाम सुना है?
पत्नी-हां, सुना है।
पति-उनकी तीन रानियां थीं।
पत्नी-हां, पता है।
पति-तो मैं दो और शादी कर सकता हूं।
पत्नी-इंद्राणी मुखर्जी का नाम सुना है?
पति-रहने भी दे पगली, तू तो दिल से ले लेती है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस नेता अजीत जोगी और चरणदास महंत के बीच तल्खी बढ़ने की असली वजह क्या है?
2. किस मंत्री का बेटा भी बंगले से डिलिंग चालू कर दिया है?

शनिवार, 5 सितंबर 2015

भ्रष्टाचार की ट्रेनिंग


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29 अगस्त

छत्तीसगढ़ में करप्शन की क्या स्थिति है, इसकी एक बानगी देखिए। उद्योग से रिलेटेड एक विभाग में 15 सहायक संचालकों का पीएससी से सलेक्शन किया गया। पीएससी से लिस्ट के आने के बाद संबंधित विभाग ने बीते मई में अफसरों को नियुक्ति दे दी। लेकिन, इसके बाद…..? चार महीने हो गए, उन्हें पोस्टिंग के लिए टरकाया जा रहा है। बताते हैं, मंत्रीजी के करिंदे अफसरों को बंगले में बुला कर टटोल रहे हैं, तुम किस जिले में जाना चाहते हो और कितना दे दोगे? सूत्रों की मानें तो रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, जांजगीर और कोरबा जैसे जिले के लिए दो-दो लाख रुपए रेट रखा गया है। याने पोस्टिंग से पहले ही भ्रष्टाचार की ट्रेनिंग। आखिर, बेचारे रणबीर के साथ भी तो ऐसा ही हुआ न। उसे ट्रेनिंग ही ऐसी मिली। उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि कलेक्टर बनने से पहले कोई आईएएस हाथ काला करता होगा। लेकिन, छत्तीसगढ़ में उसने देखा कि एसडीएम से लेकर नगर निगम आयुक्त और जिला पंचायत सीईओ तक चालू हैं। छत्तीसगढ़ में अब ट्रेनिंग ही इस तरह की मिल रही है तो इसमें अफसर का क्या कसूर? मंत्री से लेकर ब्यूरोके्रट्स तक यही ट्रेनिंग दे रहे हैं।

बल्ले-बल्ले

स्मार्ट सिटी के लिए रायपुर के नाम में कोई संशय नहीं था। मगर बिलासपुर को लेकर उहापोह की स्थिति थी। स्मार्ट सिटी के दो-एक पैरामीटर पर बिलासपुर खड़ा नही उतर रहा था। दीगर राज्यों में बिलासपुर से कई बड़े शहर कट गए थे। ऐसे में, उम्मीद थी तो सिर्फ वेंकैया नायडू से। वेंकैया के स्व0 लखीराम अग्रवाल से करीबी रिश्ते थे। लखीराम के पुतर अमर अग्रवाल बिलासपुर से एमएलए हैं। फिर, नगरीय प्रशासन मंत्री भी। उनके लिए बिलासपुर को स्मार्ट बनाना प्रतिष्ठा का प्रश्न था। अमर के लिए वेंकैया ने वीटो लगा दिया। ऐसे में, अमर का बल्ले-बल्ले होना लाजिमी है। नसबंदी कांड के बाद वे अपने मेयर को 35 हजार वोट से जीतवा दिए थे। अब, स्मार्ट बननेे के बाद तो बिलासपुर में अमर के खिलाफ कंडिडेट ढूंढना कांग्रेस के लिए पेचीदा हो जाएगा।

मामा का पाप

मामा का पाप एक यंग आईएएस को भुगतना पड़ गया। हाल में हुए फेरदबल में आईएएस को एक वीआईपी जिला पंचायत में सीईओ बनाया गया था। मगर टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलते ही जिले के नेताओं ने फोन खड़खड़ाना शुरू कर दिया। बताते हैं, आईएएस के मामा एक रेप कांड में फंसे हैं। इससे मामा परिवार की इलाके में खूब भद पिटी थी। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने सरकार को बताया कि आईएएस को पोस्ट करने से बढि़यां मैसेज नहीं जाएगा। सरकार को बात जंची। और, अगले दिन ही आर्डर चेंज करके आईएएस को रिमोट डिस्ट्रिक्ट में भेज दिया गया।

अफवाहों के पीछे

पुलिस महानिरीक्षकों के ट्रांसफर की उड़ाई जा रही खबरों को आईपीएस की गुटीय लड़ाई से जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले दो महीने में तीन बार व्हाट्सएप पर ट्रांसफर की खबर चली। कभी पवनदेव को बिलासपुर से पीएचक्यू भेजा गया तो कभी जीपी सिंह को रायपुर से सरगुजा। दरअसल, दोनों पिच पर जम गए हैं। विरोधी खेमे की कोशिश है कि दोनों का ध्यान भंग हो और वे हिट विकेट हो जाए। मगर इससे दोनों का नम्बर बढ़ ही रहा है। जीपी सिंह जनवरी के बाद भी क्रीज पर टिके रहें, तो अचरज नहीं। उधर, भूपेश बघेल ने पवनदेव को निशाने पर लेकर उन्हें और मजबूत कर दिया है। पवनदेव पर पहले कांग्रेसी लेवल चपका दिया गया था। इसीलिए, पिछले नौ साल तक उन्हें अच्छी पोस्टिंग नहीं मिली। पवन को डायरेक्टर लोक अभियोजन तक बनना पड़ा। तीसरी पारी में ठोक-बजाकर देखने के बाद उन्हें बिलासपुर की कमान सौंपी गई। और, फिलहाल पांच में से जिन दो रेंज से सरकार काफी खुश हैं, उनमें बिलासपुर भी शामिल है। बहरहाल, जनवरी के पहले आईजी के ट्रांसफर होने भी नहीं है। सरगुजा आईजी लांगकुमर जनवरी में एडीजी प्रमोट होंगे। तब एक चेन बनेगा।

अब मार्च में

आईएएस में कलेक्टर लेवल पर फेरबदल के लिए अब बजट सत्र तक का इंतजार करना होगा। याने मार्च मानकर चलिये। इसकी वजह भी है। एक तो, रायपुर और दंतेवाड़ा जैसे एक-दो को छोड़ दें तो अधिकांश कलेक्टरों का अभी एक साल या फिर उससे कम समय हुआ है। कलेक्टर के प्रबल दावेदार 2009 बैच के अधिकांश अफसरों को सरकार ने हाल ही में नई पोस्टिंग दी है। जाहिर है, कम-से-कम वे छह महीना तो वे इस पोस्ट पर रहेंगे। सरकार ने एक काम जरूर अच्छा किया है कि सीधे कलेक्टर बनाने की बजाए अब एडीएम, सीईओ पोस्ट कर रही है। कुछ को मंत्रालय एवं विभागों में भी भेजा गया है। ताकि, कलेक्टर बनने से पहले अफसरों को राजधानी के सिस्टम की जानकारी हो जाए। इससे पहले, डायरेक्टर आईएएस को एडीएम बनाने का सिस्टम खतम हो गया है। अवनीश शरण पहले डायरेक्ट आईएएस होंगे, जो नगर निगम कमिश्नर, एडीएम रहने के बाद अब जिला पंचायत कर रहे हैं।

ननकी की याद

सूखे को देखते सरकार को अब अपने पुराने मंत्री ननकीराम कंवर की याद आ रही है। मंत्री रहने के दौरान कंवर अपने बंगले में पानी के लिए यज्ञ करवाते थे। तब भी, जब कृषि मंत्री नहीं थे। जाहिर है, सरकार कम-से-कम वर्तमान कृषि मंत्री से कुछ उम्मीद तो कर रही होगी। वैसे भी, वे महामंडलेश्वर हैं। संतों से उन्हें ये उपाधि मिली है। दान-दक्षिणा, धरम-करम भी खूब करते हैं। जाहिर है, वे यज्ञ कराते तो उसका कुछ तो असर होता। पर सवाल यह है कि महामंडलेश्वर ऐसा क्यों करेंगे। तीसरी पारी में उनकी खुद की स्थिति भी तो सूखे जैसी ही है।

अच्छी खबर

कम्युनिटी पोलिसिंग में मार्केबल काम करते हुए रायपुर पुलिस रेंज सिटीजन काप नाम से मोबाइल एप चालू करने जा रहा है। इसमें मोबाइल से ही अब थानों में लूट, डकैती या कहीं न्यूसेंस हो रहा हो, तो उसकी सूचना पुलिस को दी जा सकती है। कोई शराब पीकर हुल्लड़ कर रहा हो या कहीं छेड़खानी हो रही हो। सब। मोबाइल गुमने पर अब आपको थानों में चक्कर नहीं लगाना होगा और ना ही सूचना दर्ज करने के लिए जेब ढिली करनी होगी। मोेबाइल, पासबुक, एटीएम समेत जिन चीजों के गुमने में पुलिस को इंफार्म करना होता है, सारी चीजें आपको मोबाइल पर मिल जाएंगी। सिटीजन काप में एसएमएस करने पर आपको एक आईडी मिलेगी। उस आईडी को खोलने पर आपको पावती मिल जाएगी। इनमें दर्जन भर से अधिक और सुविधाएं होंगी। मसलन, सेफ जोन। आपके बच्चे कहीं ट्यूशन जा रहे हैं और आपने उस एरिया को मोबाइल में फीड कर दिया है। उस एरिया से बाहर जाने पर आपको पता चल जाएगा कि आपका बच्चा ट्यूशन गया है या कहीं और। याने बच्चे की किडनेपिंग की स्थिति में भी यह उपयोगी है। आपके पास मैसेज आ जाएगा। कुल मिलाकर यह मल्टी फंक्शनल एप होगा। आईजी जीपी सिंह ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। सीएम से इनाग्रेशन का टाईम मिलने के बाद किसी भी दिन इसे लांच कर दिया जाएगा।

कंधे पर बंदूक

दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने वाला मुहावरा तो आपने सुना होगा, मगर अभनपुर में किसानों के प्रदर्शन के दौरान लोगों ने पुलिस को दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर चलाते देखा। कंधा भी पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू का था। असल में, भीड़ में बंदूक से अश्रू गैस का गोला दागने के लिए स्पेस नहीं मिल रही था। पुलिस वाले ने दिमाग लगाया और बगल में खड़े साहू के कंधे पर बंदूक रखकर फायर कर दिया। साहू इस पर खूब बिगड़े। पहले तो वे समझ नहीं पाए कि हुआ कैसे। इसके बाद वरिष्ठ अधिकारियों को जमकर खरी-कोटी सुनाई….देखो तुम्हारे पुलिस वाले मेरी जान लेने की कोशिश कर रहे हैं….मुझे मार डालेंगे। मुश्किल से साहू को शांत किया गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पंचायत एन हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर का हेल्थ सिकरेट्री विकास शील के साथ कैसी निभ रही है?
2. लेबर मिनिस्टर ने भैयालाल राजवाड़े ने कर्मचारी बीमा अस्पताल में बरसों से जमे डायरेक्टर को हटाया तो एक आला अधिकारी उसे बचाने मंत्री के सामने क्यों आ गए?

एक्शन पर अड़े पीएस

एक्शन पर अड़े पीएस

tarkash photo 

23 अगस्त

महिला सब इंस्पेक्टर से छेड़खानी के मामले में एआईजी संजय शर्मा के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए प्रिंसिपल सिकरेट्री होम बीबीआर सुब्रमण्यिम अड़ गए हैं। उन्होंने गृह मंत्री रामसेवक पैकरा को एआईजी का डिमोशन कर टीआई बनाना प्रस्तावित किया था। मगर गृह मंत्री ने इस नोट के साथ फाइल लौटा दी कि सजा में कुछ नरमी बरती जाए। सुब्रमण्यिम ने अपने रुख से टस-से-मस न होते हुए दोबारा डिमोशन प्रस्तावित कर मंत्री के पास फाइल भिजवा दी है। सो, गेंद अब गृह मंत्री के पाले में आ गया है।

डिमोशन तय!

महिला सब इंस्पेक्टर छेड़छाड़ मामले में पीडि़ता ने भी धमकी दे डाली है कि उसे न्याय नहीं मिला तो वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देगी और, उसमें वह किसी को नहीं बख्शेगी। वैसे भी, मंत्रालय में ब्यूरोक्रेसी जिस तरह लामबंद हुई है, एआईजी संजय शर्मा के बचने के चांस ना के बराबर है। एआईजी को जिस दिन सस्पेंड किया गया, सीएम एन सीएस अहमदाबाद मंे थे। सीएम से आनन-फानन टेलीफोनिक अनुमति लेकर शर्मा के निलंबन की कार्रवाई की गई। कार्रवाई में कोई मरौव्वत न बरतने के लिए गृह महकमे के अफसरों ने सरकार से फ्री हैंड भी ले लिया है। ठीक भी है, पुलिस वाले जब आईएएस के साथ कोई मरौव्वत नहीं कर रहे तो आईएएस क्यों नरमी बरते?

दो और आईएएस

भानुप्रतापुर के एसडीएम रणबीर शर्मा के बाद एसीबी के राडार में दो और युवा आईएएस आ गए हैं। उनके खिलाफ रिश्वतखोरी की गंभीर शिकायतें हैं। सो, वे कभी भी कार्रवाई की जद में आ सकते हैं। उधर, सीनियर आईएएस आफिसर्स भी खिन्न हैं कि रणबीर ने अगर सलाह मान ली होती, तो ब्यूरोक्रेसी की इस कदर भद नहीं पिटती। दरअसल, यंग आईएएस के खिलाफ सीएम को लंबे समय से शिकायतें मिल रही थीं। उन्हें संगठन के लोगों ने बताया था कि आईएएस ने धूम मचा दिया है। इस पर सीएम ने कांकेर कलेक्टर शम्मी आबिदी को फोन पर बात कर एसडीएम की शिकायतों से अवगत कराया था। उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है, शम्मी ने एसडीएम को बुलाकर अलर्ट किया था। लेकिन, हम नहीं सुधरेंगे….वे पकड़े गए।

वास्तुदोष

एक बड़े एपीसोड में आने से बाल-बाल बचे नए हेल्थ सिकरेट्री विकास शील ने मंत्रालय में अपना कमरा बदल दिया है। पहले वे फोर्थ फ्लोर पर चीफ सिकरेट्री के बगल वाले कमरे में बैठते थे। अब वे थर्ड फ्लोर पर आ गए हैं। हालांकि, पहले जिस कमरे में बैठते थे, उसमें चीफ सिकरेट्री बनने से पहले ढांड बैठते थे। वास्तुविदों का कहना है, फरवरी 2014 में गुरू और सूर्य के प्रबल होने के चलते ढांड भले ही सीएस बनने में कामयाब हो गए मगर जब तक उस कमरे में रहे, उन्हें किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, ये बताने की जरूरत नहीं है। इसके बाद विकास शील का कमरा बदलना लाजिमी था।

दूध का जला…..

पीएम के बस्तर विजिट के दौरान डे्रस एपीसोड के बाद अबकी स्वंतत्रता दिवस में पहनावे को लेकर अफसर खासे चैकस दिखे। कलेक्टर, कमिश्नर तो ठीक है, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदारों तक बंद गले के सूट में नजर आए। जिनके पास पुराने थे, वे भी नया सिलवा लिए। एकदम चकाचक। पहले कलेक्टर, कमिश्नर ही पुलिस ग्राउंड के समारोह में इस तरह के ड्रेस दिखते थे। इस बार उपर से नीचे तक। दो-एक कलेक्टरों ने तो टोपियां भी लगाई थी। इसे ही कहते हैं, दूध का जला, छांछ को भी फूंक-फूंककर पीता है।

गुडबुक में

सिद्धार्थ कोमल परदेशी को सरकार ने भले ही बिलासपुर कलेक्टर से हटा दिया। लेकिन, उन्हें जिस तरह की पोस्टिंग दी गई है, उससे जाहिर होता है कि वे सरकार के गुडबुक में बने हुए हैं। पहले उन्हें हाउसिंग बोर्ड का कमिश्नर अपाइंट किया गया। फिर, टाउन एन कंट्री प्लानिंग का डायरेक्टर भी। यह ऐसा महकमा है, जिसमें बड़े-बड़े बिल्डर सूटकेस लेकर घूमते रहते हैं। सीएम ने वहां विश्वस्त और ईमानदार छबि के आईएफएस एसएस बजाज को वहां चार साल से अधिक समय तक रखा। इससे पहले, हाउसिंग बोर्ड के साथ टाउन एन कंट्री प्लानिंग का चार्ज किसी आईएएस को नहीं दिया गया। परदेशी ने लगातार चार जिला किया। इनमें सीएम के गृह एवं निर्वाचन जिला, दोनों शामिल है। उनके अलावा सिर्फ मुकेश बंसल को यह मौका मिला है। बंसल कवर्धा जिला कर चुके हैं। राजनांदगांव में उन्होंने कुछ दिन पहले ही बैटिंग चालू की है।

प्रायवेट रोजगार कार्यालय

आउट सोर्सिंग का कड़ा विरोध करने वाले अमित जोगी ने अब सूबे के पढ़े-लिखे युवकों से आनलाइन आवेदन मंगाया है। बताते हैं, ट्रैक्टर में आवेदनों का बंडल भरकर वे सीएम मिलेंगे। उन्हें वे बताएंगे कि छत्तीसगढ़ में मानव संसाधन की कमी नहीं है। बाहर से टीचर न मंगाए जाए। अब अमित का नम्बर बढ़े, संगठन खेमा इसको कैसे बर्दाश्त करेगा। एक नेता ने चुटकी ली…..देखते हैं, अमित का प्रायवेट रोजगार कार्यालय कितने दिन चलता है।

भूपेश का मीडिया प्रेम!

पहले बड़े मामले में ही पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल की प्रेस कांफ्रेंस होती थी। छोटे इश्यू को कांग्रेस के प्रवक्ता ही निबटा लेते थे। मगर कुछ दिनों से भूपेश खुद फ्रंट पर आकर मीडिया से रु-ब-रु हो रहे हैं। पिछले पांच दिन में कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा, जब भूपेश मीडिया से मुखातिब नहीं हुए। पत्रकारों को कभी पीसी के लिए बुलाया गया तो कभी बाइट के लिए। व्यापम पर पीसी के दौरान ही भूपेश ने बता दिया था कि कल वे कमल विहार मामले में पत्रकारों से बात करेंगे। मीडिया से नजदीकी का उन्हें फायदा भी हुआ। इस हफ्ते वे सुर्खियों में रहने वाले लीडर रहे। ये अलग बात है कि पंचायत मिनिस्टर अजय चंद्राकर ने उन पर मीडिया का रोग लगने का तंज कसा। तो दीगर नेताओं ने मीडिया प्रेम पर उनका मजाक उड़ाया।

पते की बात

देश के कई नेता उस रहस्यमयी विदेशी ठिकाने का पता लगाने में जुटे हैं, जहां 57 दिन रहने से राहुल गांधी के पारफारमेंस में हैरतअंगेज परिवर्तन आ गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रणबीर सिंह एपीसोड में आईएएस एसोसियेशन ने सीएम से मिलकर एसीबी द्वारा नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई न करने की मांग की, उससे किसकी किरकिरी हुई?
2. व्हाट्सएप के जरिये आए दिन आईजी और एसपी की गलत पोस्टिंग का रायता फैलाने में किस आईपीएस अफसर का हाथ हो सकता है?