शनिवार, 24 सितंबर 2016

थ्री आईएएस

25 सितंबर

संजय दीक्षित
सरकार ने तीन युवा आईएएस अफसरों को गड़बड़तम सूची में डाल दिया है। इनमें दो जेन्स और एक महिला आईएएस शामिल हैं। बताते हैं, सरकार किसी की भी रहे, इनकी अब अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने वाली। इसलिए…., क्योंकि, उन्हें आईएएस लाबी भी पसंद नहीं करती। वैसे, एहतियात के तौर पर सरकार अब युवा आईएएस को आगाह कर जिलों में भेज रही है कि वे ठीक से काम करें वरना, चैथा नम्बर उनका हो सकता है। पिछले एक साल में जितने भी कलेक्टर बनें हैं, सबको तोता की तरह सीखा कर भेजा गया कि भैया आदत सुधारो, वरना, दोष मत देना। मगर दिक्कत यह है कि कुछ तो तोता की तरह रट भी रहे हैं, आदत सुधारो…..आदत सुधारो, और उधर आने दो, आने दो भी कर रहे हैं। बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस लिस्ट में अगला नाम किसका एड होता है।

पेड़ के नीचे कलेक्टर

सरगुजा संभाग में एक पुराना पेड़ है। पेड़ के बारे में किवंदती है कि उसके नीचे बैठकर ध्यान लगाने से मन की मुराद पूरी हो जाती है। फिलहाल, पेड़ इस वजह से चर्चा में है कि एक कलेक्टर ने पेड़ के नीचे बैठकर घंटे भर ध्यान-मनन किया। बताते हैं, कलेक्टर की इच्छा भी पूरी हो गई। अब, कई कलेक्टर उस जगह का पता लगवा रहे हैं।

सिकरेट्री दो, परफारमेंस एक

मंत्रालय के दो सिकरेट्री के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। एक प्रिंसिपल सिकरेट्री और दूसरा सिकरेट्री। एक नाम वाले हैं तो दूसरा बद-नाम वाले। सरकार के सामने संकट यह है कि नाम वाले का काम नजर नहीं आ रहा और बदनाम वाले आदत से बाज नहीं आ रहे। लिहाजा, अगले फेरबदल में दोनों उड़ जाएं, तो अचरज नहीं।

पीएचई में कितने दिन?

एक्साइज, ट्रांसपोर्ट की तरह पीएचई को भी खाओ-पीओ विभाग माना जाता है। पीएचई में 60 फीसदी से अधिक हैंड पंप कागजों में लग जाते हैं। बचा 40 फीसदी। इसमें रुलिंग पार्टी के नेता अपने प्रभाव के हिसाब से अपने-अपने इलाके में सेंक्शन करा लेते हैं। लेकिन, सरकार ने स्पेशल सिकरेट्री शहला निगार को इस विभाग की कमान सौंप दी है। शहला की खाओ-पीओ वाली छबि रही नहीं। नान में एक बार उनकी पोस्टिंग हुई थी। लेकिन, जल्द ही गिल्ली उड़ गई थी। जाहिर है, शहला पीएचई की स्क्रू टाईट करने की कोशिश करेगी। इस पर बवाल मचेगा। ऐसे में, सवाल तो उठते हैं, शहला कितने दिन पीएचई में रह पाएंगी। और यह भी कि सरकार ने आखिर ऐसा रिस्क क्यों लिया?

सरकार का पीएमयू

पीएमयू बोले तो प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट। नाम से लगता है, किसी प्रोजेक्ट को हैंडल करने वाली यूनिट। मगर ऐसा नहीं है। छत्तीसगढ़ का पीएमयू सभी 27 जिलों में चल रहे डेवलपमेंट वर्क पर न केवल नजर रखता है, बल्कि इसका एक अहम काम कलेक्टरों के कामकाज का एसेसमंेट करना भी है। सीधी भाषा में कहें तो पीएमयू से कलेक्टरों की रैंकिंग तय होती है। पीएमयू में 10 का स्टाफ है। चिप्स में कंट्रोल रुम है। चिप्स का मतलब आप समझते ही हैं। यूनिट के पास कलेक्टरों की पूरी कंुडली होती है। इसकी फंक्शनिंग एक एग्जाम्पल के साथ आपको बताते हैं। कुछ दिन पहले एक बड़े जिले के कलेक्टर की रिपोर्ट आई….कलेक्टर हैं तो तेज, काम भी उन्हें आता है….मगर कुछ महीनों से वे बेहद सुस्त हो गए हैं….उनकी परफारमेंस रिपोर्ट 20 हो गई है। इसी तरह एक प्रमोटी कलेक्टर के बारे में पीएमयू की रिपोर्ट आई, कलेक्ट कुछ दिन रिचार्ज रहते हैं, फिर ठंडे पड़ जाते हैं। अच्छा होता सरकार इसी तरह का एक पीएमयू एसपी की भी बना लेती। कम-से-कम थानों में किसी गरीब की पीट-पीटकर जान तो नहीं ले ली जाती।

सिर्फ दो एसपी

मुलमुला थाने में दलित युवक की मौत के बाद एक दिन पीएचक्यू जाना हुआ। वहां एक बहुत बड़े पुलिस अफसर के साथ चर्चा छिड़ गई…..अधिकांश कलेक्टरों में काम को लेकर कांपिटिशन शुरू हो गया है, एसपी में क्यों नहीं। ये बहस इस बात पर जाकर एंड हुई कि पुलिस में पानी वाले अफसर ही नहीं हैं। जो हैं, वे इस जल्दी में हैं कि घर में कैसे अधिक-से-अधिक पेटी, खोखा जुटा ले। सो, आला अफसर ने मैदानी इलाके के अच्छे एसपी की गिनती शुरू की तो यह दो के आगे नहीं जा पाई। समझ सकते हैं कि पुलिस का क्या हाल है।

सिस्टम दोषी

अविभाजित मध्यप्रदेश में लोगों ने पन्नालाल और रुस्तम सिंह सरीखे एसपी देखा है। पन्नालाल के नाम से तो अपराधी कांपते थे। मगर अब ऐसे एसपी इतिहास की बात हो गए। असल में, पुलिस का सिस्टम ऐसा है कि सिर्फ तीन की चलती है। इंस्पेक्टर, एसपी और डीजीपी। आईपीएस की बात करें तो मजेदारी सिर्फ एसपी तक है। रेंज आईजी में मुश्किल से 15 परसेंट जलवा रह जाता है। पवनदेव और जीपी सिंह जैसे आईपीएस जरूर अपवाद हो सकते हैं। पीएचक्यू जाने के बाद तो स्थिति बहुत खराब हो जाती है। ट्रेन की टिकिट कटाने के लिए थानेदार नहीं मिलते। प्लेन की तो बात अलग है। पीएचक्यू में माल-मसालेदार पोस्टिंग होती हैं तो सिर्फ दो। खुफिया और प्लाानिंग एंड प्रोविजिनिंग। इसके अलावा सभी डीजीपी के बड़े बाबू होते हैं। जबकि, आईएएस में उल्टा है। आईएएस में एसडीएम से जो चालू होता है, रिटायरमेंट के आखिरी दिन तक गुंजाइश बनी रहती है। इसलिए, चतुर आईएएस जल्दीबाजी नहीं रहते। उन्हें मालूम है कि कलेक्टरी में बिना कहें जो महीना आ रहा है, उसे आने दो। छबि भी बनी रहेगी। बाकी तो सिकरेट्री बनने के बाद एक झटके में भरपाई हो जाएगी। फिर, सीएस बनने तक पांचों उंगली घी में रहनी है। मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर को आईपीएस में भी एक सेवा सुधार आयोग बनना चाहिए। आईएएस की तरह आईपीएस में भी आखिरी दिन तक वाली व्यवस्था बन जाए, तो एसपी भी पेटी-खोखा की चिंता छोड़ काम करने लगेंगे।

दोनों को लाभ

राजधानी के एक होटल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई। इसमें हिस्सा लेने मैडम जोगी पहुंची तो आश्चर्यजनक ढंग से सबने उनका वेलकम किया। चरणदास महंत ने तो उन्हें आग्रहपूर्वक नेता प्रतिपक्ष के बगल में बिठाया। दरअसल, कांग्रेस ने अब रेणू जोगी के प्रति रणनीति बदल दी है। जोगी कांग्रेस बनने के बाद मैडम जोगी अगर बैठकों में जाती थी कि पार्टी के नेता असहज महसूस करते थे। लेकिन, अब नफे का सौदा लग रहा है। मैडम का हवाला देकर कांग्रेस नेता अब जोगी के साथ जाने वालो को अगाह कर रहे हैं, देखों अजीत जोगी को भरोसा नहीं है, इसलिए घर के एक मेम्बर को कांग्रेस में रख छोड़ा है तो आप लोग क्यों रिस्क ले रहे हैं। और, मैडम को कांग्र्रेस में रहने से जोगी कांग्रेस को वहां के फीडबैक मिलते रहते हैं। याने, फायदा दोनों ओर है।

शून्य बट्टा सन्नाटा

कांग्रेस पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष बनने के लिए शह-मात का खेल चल रहा है। चरणदास महंत से लेकर सत्यनारायण शर्मा, रविंद्र चैबे, धनेंद्र साहू, मोहम्मद अकबर, अमितेश शुक्ल जैसे कई नेताओं के नाम चल रहे हैं। और, उधर पार्टी में एक नेता का निलंबन समाप्त करने पर बवाल हो गया है। कांग्रेस नेता पूछ रहे हंै…. तो फिर अजीत जोगी क्या बुरा थें। जोगी के पास कम-से-कम कुछ वोट भी थे….उनके साथ एक वर्ग था। इधर तो शून्य बट्टा सन्नाटा है।

अंत मेें दो सवाल आपसे

1. किस कलेक्टर के दामाद को सरकार ने अनुसचित जनजाति आयोग का सदस्य बनाया है? 
2. कांग्रेस के प्रभारी महासचिव हरिप्रसाद से पार्टी विधायक रामदयाल उइके की बंद कमरे में क्या बात हुई?

शनिवार, 17 सितंबर 2016

जेल की हवा

18 सितंबर

संजय दीक्षित
बिलासपुर के तुरकाडीह ब्रिज केस में पीडब्लूडी के तीन इंजीनियर समेत संुदरानी बिल्डर के मालिक को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। उनके खिलाफ केस तो पहले से दर्ज है, एसीबी ने जांच में चारों को दोषी करार देते हुए कोर्ट में चालान पेश करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग से अनुमति मांगी है। एसीबी ने चारों के खिलाफ गंभीर धाराएं लगाई है। इनमें सरकारी संपति को नुकसान पहंुचाना भी शामिल है। जाहिर है, करोड़ों रुपए से बना तुरकाडीह पुल दो साल में ही धसकने लगा था। इस पर बड़ा बवाल मचा था। सरकार पर भी सवाल उठे थे। बहरहाल, इंजीनियर्स और ठेकेदार के खिलाफ एक्शन से आम आदमी में विश्वास बढ़ेगा कि बड़े लोगों के खिलाफ भी कार्रवाइयां होती हैं। सो, सरकार ने अनुमति दे दी तो पीडब्लूडी के तीन इंजीनियर जेल जाएंगे ही। सुंदरानी बिल्डर्स का नाम देश के बड़े बिल्डरों में शुमार होता है, सरकारी संपति के नुकसान में लंबे समय तक उसकी भी जमानत नहीं होगी।

डीएफओ और जीएडी का गठजोड़

सुकमा के डीएफओ राजेश चंदेले के खिलाफ चालान पेश करने के लिए एसीबी ने साल भर पहिले जीएडी को लेटर लिखा था। लेकिन, जीएडी न केवल कुंडली मार कर बैठ गया बल्कि बाद में चुपके से फाइल क्लोज कर दिया। वो तो डीएफओ बंगले में स्वीमिंग पुल का मामला आ गया वरना डीएफओ की फाइल पर किसी का ध्यान ही नहीं गया होता। स्वीमिंग पुल की खबर मीडिया में उछलने के बाद चंदेले की फाइल ढंूढी गई तो पता चला कि जीएडी ने उसे क्लोज कर दिया है। याने डीएफओ और जीएडी का नायाब गठजोड़। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता होगा कि सीएम को इसकी जानकारी मिलने पर जमकर बिगड़े। उन्होंने डीएफओ की फाइल को रिओपन करके अनुमति के लिए भारत सरकार को भिजवाया। इसलिए, पीडब्लूडी केस में भरोसा नहीं कि चालान पेश करने की अनुमति आसानी से मिल जाएगी। क्योंकि, जो दोषी पाए गए हैं, उनके हाथ बड़े लंबे हैं। और, ये भी सही है कि सरकार ने अगर कार्रवाई की हरी झंडी दे दी तो राज्य का भला हो जाएगा। इसके बाद कोई इंजीनियर और ठेकेदार सड़क और पुल में गड़बड़ी करने से पहिले 10 बार सोचेगा। आखिर, भर्राशाही की लिमिट होती है। विधानसभा रोड का बजट भी 16 करोड़ से बढ़ाकर 32 करोड़ कर दिया पीडब्लूडी ने। और, बताते हैं, 10 करोड़ सीधे अंदर कर लिया। उस रोड में, जिस पर सत्र के दौरान पूरी सरकार चलती है। ऐसे में, भ्रष्ट अफसरों के हौसले का अंदाजा आप लगा सकते हैं। ऐसे में, सरकार को कौवा मारकर टांगना होगा।

जुबां पर दर्द भरी दास्तां…..

कहा जाता है, हर पुरूष की सफलता में किसी नारी का हाथ होेता है। बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लुरी को भी कल्लुरी बनाने में एक महिला का ही हाथ रहा है। आपकी कौतूकता बढ़ी होगी, महिला कौन? तो उनकी जुबां से ही सुन लीजिए। सोमवार को जगदलपुर में समर्पित माओवादियों के एक कार्यक्रम में बोलते हुए कल्लुरी जरा भावुक हो गए। बोले, कांग्रेस शासन काल में मैं बड़े-बड़े जिलों मेें एसपी रहा। बीजेपी का गवर्नमेंट आने के बाद मुझे बलरामपुर जिले की कमान मिली। वहां पत्नी से रोज किच-किच होती थी….पत्नी बोलती थी, कहां लेकर आ गए मुझे…..जब भी मेरी पत्नी से झगड़ा होता, मैं फोर्स लेकर जंगल की ओर निकल जाता….दो-दो, तीन-तीन दिन मैं जंगल में रह जाता था। इससे मेरा खुफिया नेटवर्क मजबूत हो गया….। अब, एसपी जंगल में ही डेरा डाल दें, तो इसका मतलब आप समझ सकते हैं। देखते-देखते बलरामपुर से नक्सलियों के पांव उखडने लगे। इससे पहले कल्लुरी बिलासपुर और कोरबा जैसे बड़े जिले के जलवेदार एसपी रह चुके थे। एमपी के समय में भी, जशपुर जिला किया था। मगर बलरामपुर तो राजस्व जिला भी नहीं था। पुलिस जिला था। तब वहां रहने के लिए ठीक से कोई घर था और ना ही आफिस। याने पोस्टिंग कम पनिशमेंट। वो भी एक्स डीजीपी स्व0 ओपी राठौर की बदौलत। याद होगा, राठौर ने जिम्मेदारी ली थी…. इस लड़के से मैं काम लूंगा। इसीलिए, कल्लुरी की जुबां पर दर्द भरी दास्तां चली आई….।

सरकार की नजरे इनायत

93 बैच के आईएएस सुब्रत साहू को टाईम से तीन महीने पहिले प्रमोशन मिल गया। वे प्रिंसिपल सिकरेट्री हो गए हैं। नियमानुसार, जनवरी में वे पीएस बनते। मगर सरकार की नजरे इनायत हो गई। हालांकि, यह पहली दफा नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में यह परंपरा पुरानी है। सुनील कुजूर जरूर एक अपवाद हैं। उनकी बदकिस्मती कहें कि जनवरी 2016 में एडिशनल चीफ सिकरेट्री के लिए एलिजिबल होने के बाद भी वे नजरे इनायत खातिर टुकटुकी लगाए बैठे हैं। बहरहाल, सुब्रत को पीएस बनाने के साथ ही, सरकार ने उन्हें कमिश्नर हेल्थ एन मेडिकल एजुकेशन बनाया है। याने सुब्रत का कद अब बढ़ गया है।

ध्रुव भी चले दिल्ली

गरियाबंद एसपी अमित कांबले अभी एसपीजी के लिए रिलीव हुए नहीं कि आईपीएस ध्रुव गुप्ता भी डेपुटेशन पर दिल्ली जाने के लिए बोरिया-बिस्तर बांधना शुरू कर दिए हैं। ध्रुव आईबी में जा रहे हैं। फिलहाल, वे एआईजी एसआईबी हैं। हालांकि, डेपुटेशन के लिए एडीजी राजेश मिश्रा और कमांडेंट सेकेंड बटालियन रतनलाल डांगी भी प्रयासरत हैं। बहरहाल, कांबले और ध्रुव के जाने के बाद एसपी लेवल पर एक छोटा से रिसफल होना तय माना जा रहा है।

खेतान भी नहीं लौटेंगे?

भारत सरकार में डेपुटेशन पर पोस्टेड आईएएस गौरव द्विवेदी दंपति को दो साल का एक्सटेंशन मिल गया है। इधर, पता चला है 87 बैच के चितरंजन कुमार खेतान भी फिलहाल, छत्तीसगढ़ लौटने के मूड में नहीं हैं। खेतान ने राज्य सरकार को दो साल डेपुटेशन बढ़ाने के लिए अनुमति चाही है। फाइल सीएम के पास गई है। देखना है, सरकार अब उनके मसले पर क्या निर्णय लेती है।

आनलाइन पद्यमश्री

भारत सरकार ने पद्यमश्री के लिए आनलाइन आवेदन मंगाकर दावेदारों के साथ ही अपनी मुसीबत बढ़ा ली। छत्तीसगढ़ से ही करीब 200 से अधिक लोगों ने अबकी पद्यमश्री के लिए अप्लाई किया है। आलम यह था कि 14 सितंबर लास्ट डेट था और ट्रैफिक इतनी बढ़ गई कि इंटरनेट का सर्वर काम करना बंद कर दिया। वरना, संख्या और अधिक पहुंच जाती।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कोंडागांव के बाद किस जिले के कलेक्टर और एसपी में छत्तीस के रिश्ते बन गए हैं?
2. किस रिटायर आईएएस के खिलाफ तीसरी विभागीय जांच करने के लिए सरकार ने डीओपीटी से अनुमति मांगी है?

शनिवार, 10 सितंबर 2016

कहीं साजिश तो नहीं?

11 सितंबर

संजय दीक्षित
राजनांदगांव बोले तो वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट….सीएम का निर्वाचन जिला। उस जिले के फूड आफिसर संजय दुबे को एसीबी ने 1.40 हजार रिश्वत लेते हुए ट्रेप किया। दुबे को पिछले साल ही राज्योत्सव में चावल की अफरातफरी के मामले में सस्पेंड किया गया था। उसका ट्रेक रिकार्ड कैसा रहा है, यह सबको पता था। ऐसे में, सवाल उठते हंै कि फिर उसे वीवीआईपी जिले के फूड विभाग की कमान कैसे सौंप दी गई। जबकि, रायपुर में वह असिस्टेंट फूड आफिसर है। और, सीएम के जिले में प्रमोशन देकर फूड आफिसर का एडिशनल चार्ज दे दिया गया। इसमे गलती संजय दुबे की नहीं है। आदमी को कहीं भी बिठा दीजिए, मूल स्वभाव भला कैसे बदल जाएगा। चूक उसकी पोस्टिंग करने वालों की है……गलती सरकार के रणनीतिकारों की है। सीएम के जिले में सीएम के लोगों के बिना एप्रूवल के पदास्थापना होनी नहीं चाहिए। पर ऐसा हो नहीं रहा। राजनांदगांव में ऐसे अफसरों की फौज है, जो या तो काम नहीं कर रहे हैं या फिर दो-चार नेताओं को खुश कर अपना काम कर रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अफसर को हटाने के लिए कई बार नोटशीट चली। इस बार भी उसका ट्रांसफर नहीं हुआ। अब, वह अफसर वहां के लोगों को चैलेंज कर रहा है। यही हाल सिंचाई विभाग का है। वैसे, अधिकांश विभागों ने अपने सड़ियल अफसरों को वहां पोस्ट कर दिया है। कुछ साल पहले का आपको याद होगा। पीएमजीएसवाय के ईई भी एसीबी के हत्थे चढ़ गया था। जबकि, सीएम के जिले में ठोक बजाकर अफसर पोस्ट किए जाते हैं। और, ऐसा नहीं हो रहा है तो बातें तो होगी ही। यही कि, वीवीआईपी जिले के साथ साजिश तो नहीं।

अफसर की बद-दुआएं!

फूड विभाग के व्हाट्सएप ग्रुप में झगड़े का पिछले तरकश में जिक्र हुआ था। उसमें एडिशनल डायरेक्टर राजीव जायसवाल ने जिस अफसर को गेहंू चोर, चावल चोर लिखा था, वह असिस्टेंट फूड आफिसर संजय दुबे को निशाना बनाकर लिखा गया था। दुबे ने जायसवाल को आईएएस अवार्ड न होने पर तंज कसा था। इस पर जायसवाल ने जवाबी हमला किया। तो चोर-चोर, मौसेरे भाई की तरह भ्रष्ट आफिसर्स दुबे के साथ हो गए थे। आखिर में जायसवाल को खेद व्यक्त करना पड़ा। मगर लगता है, जायसवाल की बद्-दुआएं दुबे को लग गई। हफ्ते भर में दुबे को जेल की हवा खानी पड़ गई।

महिला आईएएस को प्रताड़ना

मंत्रालय में एक अहम विभाग के सिकरेट्री ने एक महिला आईएएस को इतना प्रताड़ित किया कि सरकार ने महिला आईएएस का विभाग बदलना ही मुनासिब समझा। बताते हैं, विभाग का पूरा काम महिला आईएएस करती थी। मगर सीएम के सामने उसका पूरा क्रेडिट सिकरेट्री उठा ले जाते थे। अलबत्ता, बात-बात में महिला अफसर को फटकारना भी। विभाग का पूरा बोझ उन्होंने महिला आईएएस पर डाल दिया था। इससे दुखी होकर वह लंबी छुट्टी पर चली गई थी। सीएम सचिवालय को इसका पता चला तो डाक्टर साब को वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया। और, तय हुआ कि महिला आईएएस का विभाग चेंज कर दिया जाए। सिकरेट्री हैं मेष राशि वाले। समझते हैं, सबसे काबिल वे ही हैं। लेकिन, दो साल में काबिलियत कुछ दिखा नहीं पाए। सो, फ्रस्टेशन तो निकलेगा ही ना।

दो राहे पर सरकार

नान घोटाले में सरकार दो राहे में फंस गई है। एसीबी ने आरोपी अफसरों के खिलाफ व्यापक भ्रष्टाचार का केस बनाते हुए कोर्ट में चालान पेश कर चुकी है। उधर, अनिल टुटेजा प्रकरण में हाईकोर्ट में सरकार ने पीडीएस की जोरदार वकालत की है। इससे पहिले विधानसभा में भी मंत्री ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के पीडीएस का कोई जवाब नहीं है। ऐसे में यह चर्चा निराधार नहीं लगता कि डा0 आलोक शुक्ला और टुटेज के इश्यू में सरकार कहीं पुनर्विचार के लिए भारत सरकार को लेटर न लिख दें।

2009 बैच क्लोज

समीर विश्नोई के कोंडागांव कलेक्टर बनने के बाद 2009 बैच क्लोज हो गया है। इस बैच के सभी छह अफसर अभी कलेक्टर हैं। 2010 बैच अब कलेक्टर का दावेदार हो गया है। इस बैच में चार आईएएस हैं। सारांश मित्तर, जेपी मौर्य, रानू साहू और कार्तिकेय गोयल। हालांकि, इस साल इनका चांस लगता नहीं।

गौरव को एक्सटेंशन

आईएएस दंपति गौरव द्विवेदी और मनिंदर कौर द्विवेदी को भारत सरकार में दो साल का फिर एक्सटेंशन मिल गया है। दोनों 2009 में डेपुटेशन पर मसूरी गए थे। वहां से वे दिल्ली आए। हालांकि, 2014 में उनका पांच साल पूरा हो गया था। मगर उस समय भी दो साल का एक्सटेंशन मिल गया था। और, इस बार फिर। इस तरह सात साल से अधिक समय तक डेपुटेशन पर रहने वाले बीबीआर सुब्रमण्यिम के बाद दूसरे आईएएस हो गए हैं। सुब्रमण्यिम की ऐसी सेटिंग थी कि उनके लिए पीएम मनमोहन सिंह ने सीएम को लेटर लिख दिया था कि क्या मुझे अपने पंसद से एक आईएएस रखने का अधिकार नहीं है। बहरहाल, गौरव वहां आईटी देख रहे हैं। उन्हीं के निर्देशन में भारत सरकार के एप बन रहे हैं। इसी बेस पर उन्हें एक्सटेंशन मिला है। वरना, सात साल के बाद काफी मुश्किल होता है।

वीरता को पुरस्कार

राजनांदगांव में नक्सलियों फ्रंट पर जोरदार काम करने वाले बीएसएफ के अफसर वायपी सिंह को सरकार ने वीरता का पुरस्कार दिया। उन्हें राज्य सेवा में संवियलन करते हुए उन्हें राज्य पुलिस सेवा का 97 बैच दिया गया है। इसमें अहम यह है कि वायपी ने इसके लिए कोई आवेदन नही दिया था। मगर सीएम ने अपने जिले में उनका काम देखकर खुद इसके लिए पहल की। हो सकता है, रापुसे के अफसरों को यह नागवार गुजरे। वायपी के चलते 2008 बैच के एक अफसर को आईपीएस अवार्ड होने में एक साल की देरी होगी। मगर वीरता को इनाम तो मिलना चाहिए न।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिश्वत लेते पकड़े गए फूड आफिसर संजय पाण्डेय को रायपुर के किस मंत्री का संरक्षण प्राप्त था?
2. न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाने वाले आईएएस अलेक्स पाल मेनन को क्या सरकार सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देगी?

कहीं साजिश तो नहीं?

11 सितंबर

संजय दीक्षित
राजनांदगांव बोले तो वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट….सीएम का निर्वाचन जिला। उस जिले के फूड आफिसर संजय दुबे को एसीबी ने 1.40 हजार रिश्वत लेते हुए ट्रेप किया। दुबे को पिछले साल ही राज्योत्सव में चावल की अफरातफरी के मामले में सस्पेंड किया गया था। उसका ट्रेक रिकार्ड कैसा रहा है, यह सबको पता था। ऐसे में, सवाल उठते हंै कि फिर उसे वीवीआईपी जिले के फूड विभाग की कमान कैसे सौंप दी गई। जबकि, रायपुर में वह असिस्टेंट फूड आफिसर है। और, सीएम के जिले में प्रमोशन देकर फूड आफिसर का एडिशनल चार्ज दे दिया गया। इसमे गलती संजय दुबे की नहीं है। आदमी को कहीं भी बिठा दीजिए, मूल स्वभाव भला कैसे बदल जाएगा। चूक उसकी पोस्टिंग करने वालों की है……गलती सरकार के रणनीतिकारों की है। सीएम के जिले में सीएम के लोगों के बिना एप्रूवल के पदास्थापना होनी नहीं चाहिए। पर ऐसा हो नहीं रहा। राजनांदगांव में ऐसे अफसरों की फौज है, जो या तो काम नहीं कर रहे हैं या फिर दो-चार नेताओं को खुश कर अपना काम कर रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अफसर को हटाने के लिए कई बार नोटशीट चली। इस बार भी उसका ट्रांसफर नहीं हुआ। अब, वह अफसर वहां के लोगों को चैलेंज कर रहा है। यही हाल सिंचाई विभाग का है। वैसे, अधिकांश विभागों ने अपने सड़ियल अफसरों को वहां पोस्ट कर दिया है। कुछ साल पहले का आपको याद होगा। पीएमजीएसवाय के ईई भी एसीबी के हत्थे चढ़ गया था। जबकि, सीएम के जिले में ठोक बजाकर अफसर पोस्ट किए जाते हैं। और, ऐसा नहीं हो रहा है तो बातें तो होगी ही। यही कि, वीवीआईपी जिले के साथ साजिश तो नहीं।

अफसर की बद-दुआएं!

फूड विभाग के व्हाट्सएप ग्रुप में झगड़े का पिछले तरकश में जिक्र हुआ था। उसमें एडिशनल डायरेक्टर राजीव जायसवाल ने जिस अफसर को गेहंू चोर, चावल चोर लिखा था, वह असिस्टेंट फूड आफिसर संजय दुबे को निशाना बनाकर लिखा गया था। दुबे ने जायसवाल को आईएएस अवार्ड न होने पर तंज कसा था। इस पर जायसवाल ने जवाबी हमला किया। तो चोर-चोर, मौसेरे भाई की तरह भ्रष्ट आफिसर्स दुबे के साथ हो गए थे। आखिर में जायसवाल को खेद व्यक्त करना पड़ा। मगर लगता है, जायसवाल की बद्-दुआएं दुबे को लग गई। हफ्ते भर में दुबे को जेल की हवा खानी पड़ गई।

महिला आईएएस को प्रताड़ना

मंत्रालय में एक अहम विभाग के सिकरेट्री ने एक महिला आईएएस को इतना प्रताड़ित किया कि सरकार ने महिला आईएएस का विभाग बदलना ही मुनासिब समझा। बताते हैं, विभाग का पूरा काम महिला आईएएस करती थी। मगर सीएम के सामने उसका पूरा क्रेडिट सिकरेट्री उठा ले जाते थे। अलबत्ता, बात-बात में महिला अफसर को फटकारना भी। विभाग का पूरा बोझ उन्होंने महिला आईएएस पर डाल दिया था। इससे दुखी होकर वह लंबी छुट्टी पर चली गई थी। सीएम सचिवालय को इसका पता चला तो डाक्टर साब को वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया। और, तय हुआ कि महिला आईएएस का विभाग चेंज कर दिया जाए। सिकरेट्री हैं मेष राशि वाले। समझते हैं, सबसे काबिल वे ही हैं। लेकिन, दो साल में काबिलियत कुछ दिखा नहीं पाए। सो, फ्रस्टेशन तो निकलेगा ही ना।

दो राहे पर सरकार

नान घोटाले में सरकार दो राहे में फंस गई है। एसीबी ने आरोपी अफसरों के खिलाफ व्यापक भ्रष्टाचार का केस बनाते हुए कोर्ट में चालान पेश कर चुकी है। उधर, अनिल टुटेजा प्रकरण में हाईकोर्ट में सरकार ने पीडीएस की जोरदार वकालत की है। इससे पहिले विधानसभा में भी मंत्री ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के पीडीएस का कोई जवाब नहीं है। ऐसे में यह चर्चा निराधार नहीं लगता कि डा0 आलोक शुक्ला और टुटेज के इश्यू में सरकार कहीं पुनर्विचार के लिए भारत सरकार को लेटर न लिख दें।

2009 बैच क्लोज

समीर विश्नोई के कोंडागांव कलेक्टर बनने के बाद 2009 बैच क्लोज हो गया है। इस बैच के सभी छह अफसर अभी कलेक्टर हैं। 2010 बैच अब कलेक्टर का दावेदार हो गया है। इस बैच में चार आईएएस हैं। सारांश मित्तर, जेपी मौर्य, रानू साहू और कार्तिकेय गोयल। हालांकि, इस साल इनका चांस लगता नहीं।

गौरव को एक्सटेंशन

आईएएस दंपति गौरव द्विवेदी और मनिंदर कौर द्विवेदी को भारत सरकार में दो साल का फिर एक्सटेंशन मिल गया है। दोनों 2009 में डेपुटेशन पर मसूरी गए थे। वहां से वे दिल्ली आए। हालांकि, 2014 में उनका पांच साल पूरा हो गया था। मगर उस समय भी दो साल का एक्सटेंशन मिल गया था। और, इस बार फिर। इस तरह सात साल से अधिक समय तक डेपुटेशन पर रहने वाले बीबीआर सुब्रमण्यिम के बाद दूसरे आईएएस हो गए हैं। सुब्रमण्यिम की ऐसी सेटिंग थी कि उनके लिए पीएम मनमोहन सिंह ने सीएम को लेटर लिख दिया था कि क्या मुझे अपने पंसद से एक आईएएस रखने का अधिकार नहीं है। बहरहाल, गौरव वहां आईटी देख रहे हैं। उन्हीं के निर्देशन में भारत सरकार के एप बन रहे हैं। इसी बेस पर उन्हें एक्सटेंशन मिला है। वरना, सात साल के बाद काफी मुश्किल होता है।

वीरता को पुरस्कार

राजनांदगांव में नक्सलियों फ्रंट पर जोरदार काम करने वाले बीएसएफ के अफसर वायपी सिंह को सरकार ने वीरता का पुरस्कार दिया। उन्हें राज्य सेवा में संवियलन करते हुए उन्हें राज्य पुलिस सेवा का 97 बैच दिया गया है। इसमें अहम यह है कि वायपी ने इसके लिए कोई आवेदन नही दिया था। मगर सीएम ने अपने जिले में उनका काम देखकर खुद इसके लिए पहल की। हो सकता है, रापुसे के अफसरों को यह नागवार गुजरे। वायपी के चलते 2008 बैच के एक अफसर को आईपीएस अवार्ड होने में एक साल की देरी होगी। मगर वीरता को इनाम तो मिलना चाहिए न।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिश्वत लेते पकड़े गए फूड आफिसर संजय पाण्डेय को रायपुर के किस मंत्री का संरक्षण प्राप्त था?
2. न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाने वाले आईएएस अलेक्स पाल मेनन को क्या सरकार सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देगी?

शनिवार, 3 सितंबर 2016

सरकार ने कहा, अब बस!


संजय दीक्षित
कोंडागांव कलेक्टर को एक साल में हटाना, बाकी कलेक्टरों के लिए एक मैसेज हो सकता है। कोंडागांव में चौतरफा शिकायतें थी। पता चला है, वहां के ठेकेदार सरकार से मिलने रायपुर धमक गए थे। तब कलेक्टर को वहां आठ महीने ही हुए थे। यही कोई मई की बात होगी। इसलिए, कुछ सीनियर आईएएस ने सरकार को सलाह दी, कम-से-कम एक साल बाद ही चेंज करना ठीक होगा। सरकार इस पर सहमत हो गई। जिला पंचायत के सीईओ से कलेक्टर के कैसे रिश्ते थे, किसी से छिपे नहीं हैं। बताते हैं, कलेक्टर ने जिला पंचायत के स्वीकृत कामों की फाइल भी रिव्यू के लिए अपने पास बुला लिया था। एसपी संतोष सिंह ने बस्तर के आईजी समेत डीजीपी से शिकायतें की थीं। पीएस होम की नोटिस में कुछ बातें लाई गईं। एसपी की पीड़ा चीफ सिकरेट्री तक पहुंची। जाहिर है, तालाब में कीचड़ की सफाई को भी सीएम सचिवालय ने सस्ती लोकप्रियता करार दिया था। एसीएस बैजेंद्र कुमार ने तो सीएम की मीटिंग में इस पर कड़ी टिप्पणी की थी। और, आखिर में 15 अगस्त का सलामी के दौरान कलेक्टर द्वारा चप्पल पहनने का विवादित मामला आ गया। जिस कांग्रेस नेता ने इसकी वीडियो वायरल की, जिला प्रशासन ने बेजा कब्जा बताकर उसका घर तोड़ दिया। तो सरकार ने कृष्ण की तरह उंगली उठा दिया। कहा, अब बस! दीगर कलेक्टरों के लिए इसलिए यह एक मैसेज है कि चुनाव में अब बहुत कम समय बच गया है। सरकार अब 20-20 के मोड में आ रही है। सो, जरा-सा भी इधर-उधर उन्हें भारी पड़ सकता है।

चौंकाने वाले ट्रांसफर

आठ आठ अफसरों की नई पोस्टिंग चौंकाने वाली रही। पहले से न कोई सुगबुगाहट और ना ही कोई चर्चा। बीएल तिवारी और बीएस अनंत के रिटायर के बाद लग रहा था कि किसी को एडिशनल प्रभार दे दिया जाएगा। तभी तो लिस्ट निकली तो लोग नौकरशाही भी आवाक रह गई। हालांकि, ट्रांसफर को हरी झंडी 31 अगस्त की शाम मिल गई थी। मंत्रालय में पीडब्लूडी की समीक्षा बैठक शाम साढे सात बजे तक चली। इसके बाद सभी चले गए। रह गए सीएम और सीएस विवेक ढांड, एडवाइजर टू सीएम शिवराज सिंह, बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह, सुबोध सिंह। इसलिए लगा कि कुछ खास होने वाला है। और, ऐसा ही हुआ। सीएम को नाम बताएं गए। हल्का डिस्कशन हुआ और ओके हो गया। आर्डर जरूर अगले दिन निकाला गया।

तू गेहूं चोर, तू चावल चोर

सरकार के सबसे ड्रीम प्रोजेक्ट फूड डिपार्टमेंट में क्या खेल चल रहा है, व्हाट्सएप ग्रुप में अफसरों के बीच हुए झगड़े में इसकी पोल खुल गई। एक अफसर ने यहां तक लिख डाला कि रायपुर के व्यापारियों से मिलकर तूने किस तरह सीलबंद गोदाम से गेंहू चोरी करवा दी….दाल-भात केंद्र के चावल का तू अफरातफरी करवाता है….पकड़ा गया तो बीवी बच्चे के साथ आलोक शुक्ला सर के घर माफी मांगने चला गया। पत्रकारों को पैसा खिलाकर उन्हें सेट करता है। इसके बाद तो मत पूछिए, अफसर पर्सनल मामलों पर उतर आए। तेरी बेटी की शादी तो तेरा……। दरअसल, झगड़ा शुरू हुआ, आईएएस अवार्ड हुए अनुराग पाण्डेय को बधाई देने पर। फूड डिपार्टमेंट में दो गुट है। विरोधी गुट के अफसर ने टांट मारने के लिए जरा जोर से अनुराग को बधाई दे दिया….अनुराग सर, आप दूसरों की जिंदगी बिगाड़ने वालों के लिए उदाहरण बनें। जाहिर है, आईएएस के लिए फूड से भी एक दावेदार थे। सो, फूड आफिसर का निशाना सही लगा। और, दोनों गुटो में व्हाट्सएप पर ही तलवारें निकल गईं। जमकर तलवारें भांजने के बाद अनुराग को बधाई देने वाले अफसर को ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बहरहाल, इस झगड़े में अफसरों के साथ डिपार्टमेंट भी बेनकाब हो गया।

पूत सपूत तो का धन….

एक बड़े परिवार वाले मंत्रीजी ने अपने बेटों को स्थापित करने के लिए कोई जतन नहीं छोड़ा। बिजनेस चालू कराया तो बच्चों ने लंबा घाटा लगवा दिया। पेट्रोल पंप में लोग लाखों पिट रहे हैं, लेकिन मंत्रीजी का पेट्रोल पंप बंद पड़ा है। क्योंकि, बेटे को पंप चलाने से ज्यादा इस बात में रुचि रहती थी कि कितना पैसा आया। एक बेटा जेब में पैसा भरकर गया कि दूसरा आया, फिर तीसरा…..। मंत्रीजी के घर में हर महीने इधर-उधर से जो पैसे आते हैं, उस पर भी बेटे हाथ साफ कर खा पी जाते हैं। अब, मंत्रीजी ने मान लिया है, बेटों का कुछ नहीं हो सकता। सो, अब इधर-उधर से आने वाले पैसे अब खुद सहेज रहे हैं। ठीक ही कहा गया है, पूत सपूत को का धन संचय और पूत…..।

आईएएस का काडर रिव्यू

साल भर से लटके आईएएस के कैडर रिव्यू पर डीओपीटी ने मुहर लगा दिया है। फाइल प्रधानमंत्री कार्यायल पहुंच गई है। पीएम के हस्ताक्षर के बाद इसे हरी झंडी मिल जाएगी। पता चला है, डीओपीटी ने सरकार के 10 फीसदी वृद्धि को मंजूरी दे दी है। फिलहाल, 178 का कैडर है। 10 फीसदी के हिसाब से 18 आईएएस बढ़ेंगे। पिछले साल जीएडी ने 263 का प्रस्ताव भेजा था। इसकी वजह से डीओपीटी ने फाइल आगे नहीं बढ़ाई। जीएडी ने अबकी पोस्ट कम कर संशोधित प्रस्ताव भेजा था। तब जाकर फाइल मूव हुई है। इससे पहले 2010 में आईएएस का कैडर रिव्यू हुआ था। उसमें 156 से बढ़कर 178 का कैडर किया गया था।

नारी सशक्तिकरण

सात जिलों में कलेक्टर की कुर्सी ऑकीपाई करने के बाद महिला आईएएस ने मंत्रालय में भी अबकी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। एम गीता को सरकार ने सिकरेट्री महिला बाल विकास बनाया है। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब किसी नारी को इस विभाग का जिम्मा दिया गया है। शहला निगार को भी लंबे समय तक फायनेंस में काम करने का सरकार ने पुरस्कृत किया है। वे स्पेशल सिकरेट्री पीएचई होंगी। उनका यह स्वतंत्र प्रभार होगा। रेणु पिल्ले पीएस तकनीकी शिक्षा, निधि छिब्बर सामान्य प्रशासन और रीचा शर्मा पहले से फूड संभाल ही रही हैं। यह भी पहली दफा ही होगा कि मंत्रालय में पांच महिला सिकरेट्री होंगी।

बीवीयों की ब्रांडिंग

बस्तर के एक कलेक्टर एवं एसपी ने वंदे मातरत की धुन पर बस्तर की ब्रांडिंग के लिए वीडियो बनवाया है। वीडियो ठीक-ठाक है। कलेक्टर की फोटो और मैसेज से यह शुरू होता है। मगर लोचा यह आ गया है कि उसमें प्रोड्यूसर के तौर पर कलेक्टर, एसपी और प्रोबेशनर आईएएस का नाम तो है ही, उनकी पत्नियों के नाम भी लिखे हैं। अलबत्ता, कोशिश की गई, वीडियों को सरकार एडाप्ट करके इलेक्ट्रानिक चैनलों में इसका प्रचार-प्रसार कराएं। मगर पहली बात, इसमें राज्य के राजा का कहीं जिक्र नहीं है। उस पर, पत्नियों के नाम। जाहिर है, इसमें बस्तर से अधिक कलेक्टर, एसपी और उनकी पत्नियांं की ब्राडिंग हो रही है। सो, सीएम सचिवालय ने टका सा जवाब दे दिया। कहा, पहले बीवियों की ब्रांडिंग बंद करों। फिर, देखेंगे।

जवाहर के नाम की चर्चा

मुख्य सूचना आयुक्त के लिए जवाहर श्रीवास्तव के नाम की चर्चा तेज है। जवाहर अभी सूचना आयुक्त है। और, सत्ता के गलियारों में चल रही बातां पर यकीन करें तो उन्हें वही अपग्रेड कर दिया जाएगां। वैसे, जवाहर के सीआईसी बनने से नौकरशाही को फायदा यह होगा कि वे पांच साल तक सीट छेंक कर नहीं बैठेंगे। वे 63 के हो गए हैं। और, सूचना आयोग में 65 में रिटायरमेंट है। याने दो साल बाद अगस्त 2018 में रिटायर हो जाएंगे। सो, 2017 के बाद रिटायर होने वाले अफसरों के लिए सूचना आयोग में वैकेंसी खाली मिलेगी।
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अंत में दो सवाल आपसे

1. एक आईएएस एमडी और एक एसपी का नाम बताइये, जो परिवार के साथ 14 दिन के यूरोप की सैर पर निकले हैं?
2. अबकी फेरदल में किस आईएएस को सिर्फ इस बेस पर पोस्टिंग मिली है कि मेहनत करके आईएएस बना है, कुछ अर्न कर लें?