शुक्रवार, 28 जून 2019

अर्श से फर्श पर


23 जून 2019
2006 बैच के आईएएस बसव राजू पखवाड़े भर पहिले तक राजधानी रायपुर के कलेक्टर रहे। उन्होंने विधानसभा का चुनाव कराया और लोकसभा का भी। मगर ग्रह-नक्षत्र का खेल देखिए, आज वे कहां हैं, उन्हें खुद को पता नहीं है। सरकार ने उन्हें कलेक्टर से हटाकर राज्य निर्वाचन कार्यालय में भारतीदासन की जगह एडिशनल इलेक्शन आफिसर बनाने का प्रपोजल भारत निर्वाचन आयोग को भेजा था। आयोग ने ओके करके भेज भी दिया। आयोग की हरी झंडी के बाद भारतीदासन निर्वाचन से रिलीव होकर रायपुर की कलेक्टरी संभाल लिए। लेकिन, बसव राजू का निर्वाचन का आदेश नहीं निकल पाया है। हो सकता है, बसव निर्चाचन में जाना नहीं चाह रहे होंगे क्योंकि, फिलहाल वहां कुछ करने के लिए बचा नहीं है। इस वजह से आदेश कहीं अटक गया हो। क्यांंकि, चुनाव आयोग के क्लियरेंस के बाद भी अगर आर्डर नहीं निकला तो कुछ तो बात जरूर होगी। बहरहाल, बेचारे बसव की स्थिति अर्श से फर्श वाली हो गई है। कहां रायपुर के कलेक्टर और कहां अब…..।

गुरू भारतीदासन

विधानसभा चुनाव के सिलसिले में पिछले साल राज्य निर्वाचन कार्यालय में तीन आईएएस अफसरों की पोस्टिंग हुई थी। पहली चीफ इलेक्शन आफिसर सुब्रत साहू की। फिर, ज्वाइंट इलेक्शन आफिसर समीर विश्नोई। सबसे लास्ट में एस भारतीदासन एडिशनल इलेक्शन आफिसर बनकर निर्वाचन में पहुंचे थे….विस चुनाव के ठीक तीन महीने पहिले। लेकिन, दिलचस्प यह रहा कि तीनों में सबसे पहिले भारतीदासन वहां से निकलने में कामयाब हो गए। वो भी सीधे राजधानी का कलेक्टर बनकर। तभी तो ब्यूरोकक्रेसी में लोग उन्हें गुरू बोल रहे हैं। कुछ लोग उस चौखट का भी पता लगा रहे हैं, जहां से वे बाहर निकलकर कलेक्टर बनने में सफल हो गए। हालांकि, भारतीदासन का ट्रेक रिकार्ड भी बढ़ियां रहा है। जांजगीर कलेक्टर के रूप में उन्होंने अच्छा काम किया था। तो मार्कफेड में तो आउटस्टैंडिंग….। धान सूखने के नाम से भारत सरकार ने दो परसेंट का शार्टेज तय किया है। याने धान खरीदने के बाद सूखने या चूहे के खा जाने के बाद धान दो परसेंट कम मान लिया जाता है। मार्कफेड में दस से पंद्रह परसेंट तक शार्टेज शो कर के मार्कफेड के अफसर हर साल करोड़ों के खेल कर जाते थे। फूड सिकरेट्री रीचा शर्मा के नेतृत्व में भारतीदासन ने पहली बार इसे एक परसेंट पर ला दिया। याने काम में भी गुरू हैं भारतीदासन।

मंत्रियों का प्रेशर

कर्मचारियों, अधिकारियों के ट्रांसफर के लिए सरकार पर मंत्रियों का प्रेशर बढ़ता जा रहा है। हर मंत्री के पास पांच सौ से हजार आवेदन पहुंच चुके हैं। बंगले पर भी भीड़ बढ़ती जा रही है। लेकिन, सरकार ताबदले पर से बैन हटाने को लेकर असमंजस में है। दरअसल, सबको पता है कि बैन खुलने के बाद क्या होगा? 15 साल से भाजपा का शासन रहा। अरसे बाद मौका मिलने पर ट्रांसफर का जो कारोबार होगा, उसका असर नगरीय चुनाव पर पड़ेगा ही। हालांकि, कांग्रेस के मंत्री ये नहीं बोल सकते कि पिछली सरकार में उनके लोगों के ट्रांसफर नहीं हो पाते थे। एक भूपेश बघेल को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के अधिकांश मंत्रियों एवं नेताओं के काम रमन सरकार में भी प्राथमिकता के साथ होते थे। इसको लेकर भाजपा के नेता ही तंज कसते थे…..हमारी सरकार में हमारे काम नहीं, कांग्रेसियों के काम हो जाते हैं।

मंत्रालय में छोटी लिस्ट

2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल स्टडी लीव से अमेरिका से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। 21 जून को उन्होंने मंत्रालय पहुंच कर सामान्य प्रशासन विभाग में अपनी ज्वाईनिंग दे दी। उधर, महिला बाल विकास विभाग की सिकरेट्री एम गीता हायर स्टडी के लिए राज्य शासन से रिलीव हो गई है। याने महिला बाल विकास खाली हो गया है। सो, मुकेश को नई पोस्टिंग मिलेगी, वहीं गीता की जगह किसी आईएएस को महिला बाल विकास का चार्ज दिया जाएगा। हालांकि, जुलाई फर्स्ट वीक में सोनमणि बोरा भी स्टडी लीव से लौटने वाले हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुब्रत साहू भी चुनाव हो जाने के बाद सरकार में लौटेंगे ही, भले एडिशनल पोस्टिंग के तौर पर ही सही। बहरहाल, मुकेश और महिला बाल विकास के लिए छोटी लिस्ट तो निकलेगी ही।

पोस्ट रिटायरमेंट तोहफा

छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर 83 बैच के आईपीएस गिरधारी नायक 30 जून को रिटायर हो जाएंगे। नायक उन अभिशप्त आईपीएस अफसरों में शामिल हैं, जिन लोगों ने राज्य बंटवारे के समय मांगकर छत्तीसगढ़ कैडर लिया, इसके बाद भी यहां डीजीपी नहीं बन पाए। नायक तो छत्तीसगढ़ बनने से पहिले भी बिलासपुर में एसपी रहे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद आईजी के रूप में बस्तर में काम किए। नक्सल खुफिया चीफ का दायित्व निभाया। इन सब के बाद भी उनकी कुंडली में डीजीपी बनना नहीं लिखा था। उनसे दो बैच जूनियर एएन उपध्याय पौने पांच साल डीजीपी रह लिए। उपध्याय के बाद नायक से तीन साल जूनियर डीएम अवस्थी छह महीने से डीजीपी हैं। कांग्र्रेस सरकार की नायक से सहानुभूति है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के चलते कुछ कर नहीं पाई। दरअसल, कांग्रेस की सरकार जब आई तो नायक के पास टाईम नहीं बचा था। सुको के अनुसार छह महीने में रिटायर होने वाले आईपीएस को डीजीपी नहीं बनाया जाएगा। और जैसे ही डीएम अवस्थी का आदेश निकला उसके पंद्रह रोज बाद सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने वाला क्लॉज हटा दिया। याने बदकिस्मती का मामला रहा। खैर, नायक को इन विश्लेषणों से कोई मतलब नहीं होगा। उनकी इच्छा होगी कि पोस्ट रिटायरमेंट कोई अच्छा पद मिल जाए। पांच साल वाला। वह पद आपदा प्रबंधन का हो सकता है। चर्चा है, नायक को इसका प्रमुख बनाया जा सकता है।

बिना पोस्टिंग का प्रमोशन

सरकार ने तीन आईपीएस अफसरों को एडिशनल डीजी प्रमोट कर दिया। लेकिन, पोस्टिंग नहीं दी। आदेश में लिखा था, एडीजी प्रमोट किया जाता है….जो जहां है, वहीं पर। फिर, आखिरी में यह भी कि पोस्टिंग का आदेश पृथक से निकलेगा। बताते हैं, 30 जून को डीजी गिरधारी नायक रिटायर होंगे। नायक के पास जेल, होमगार्ड के साथ ही सबसे बड़ा नक्सल एसआईबी का चार्ज है। नायक के रिटायरमेंट के रोज आईपीएस की एक लिस्ट निकलेगी, उसमें प्रमोशन पाए एडीजी की भी पोस्टिंग होगी। हालांकि, सबकी नजर वीवीआईपी रेंज दुर्ग के एडीजी हिमांशु गुप्ता पर है। छत्तीसगढ़ रेंज एडीजी की पोस्टिंग कभी रही नहीं। भोपाल में एक बार शिवराज सिंह सरकार ने विजय यादव को जरूर भोपाल रेंज का एडीजी बनाया था। चूकि, सीएम भी दुर्ग से हैं और गृह मंत्री भी। अगर केमेस्ट्री जम गई होगी तो हिमांशु दुर्ग रेंज में कंटीन्यू भी कर सकते हैं। अलबत्ता, उनका कंटीन्यू करना दुर्ग डीआईजी रतनलाल डांगी के लिए झटका से कम नहीं होगा। लोकसभा चुनाव से पहिले डांगी को दुर्ग का प्रभारी आईजी बनाया गया था। चूकि, डांगी आईजी के लिए अभी एलिजिबल नहीं हुए हैं, इसलिए सरकार ने आचार संहिता के पहिले ही उन्हें हटाकर हिमांशु को पोस्ट कर दिया। तब संकेत यही थे कि चुनाव के बाद डांगी को सल्तनत सौंप दी जाएगी। लेकिन, अब वैसा कुछ होता नहीं दिख रहा है।

चार पीसीसीएफ रिटायर

इस महीने 30 जून को चार पीसीसीएफ रिटायर हो रहे हैं। केसी यादव, कौशलेंद्र सिंह, एके द्विवेदी और आरके डे। इनमें से डे डेपुटेशन पर उड़ीसा में पोस्टेड हैं। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब एक साथ चार पीसीसीएफ रिटायर होंगे। वैसे, चारों के रिटायर होने से पीसीसीएफ के दावेदारों को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि, सरकार ने चार में से दो पोस्ट कम कर दिया है। याने चार के रिटायर होने पर दो आईएफएस ही प्रमोट होकर पीसीसीएफ बन पाएंगे। याने अतुल शुक्ला और आरके गोवर्द्धन। अतुल शुक्ला को वाईल्डलाइफ और गोवर्द्धन को लघु वनोपज संघ का प्रमुख बनाने का प्रपोजल सरकार को चला गया है। हो सकता है, पीसीसीएफ बनने से पहिले ही उन्हें प्रभारी बन दिया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीजी गिरधारी नायक के रिटायर होने से सूबे के तीन डीजी में से सबसे अधिक फायदा किसे होगा?
2. किस मंत्री के बारे में कहा जा रहा है कि उनके साले और साले के साले विभाग चला रहे हैं?

शनिवार, 15 जून 2019

दमदार लोग, दमदार फैसला

16 जून 2019
85 बैच के आईएएस एन बैजेंंद्र कुमार की गिनती एक धाकड़ और बेबाक नौकरशाह के रूप में होती है। छत्तीसगढ़ में वे करीब नौ साल रहे और इस दौरान उन्होंने अपनी कार्यशैली से एक अलग पहचान बनाई। 2017 में भारत सरकार ने उन्हें एनएमडीसी का सीएमडी अपाइंट किया। एनएमडीसी में चल रहे आंदोलन के सिलसिले में वे 12 जून को रायपुर में थे। शाम को सीएम हाउस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उनकी मुलाकात हुई। दो दमदार लोग आमने-सामने होंगे तो जाहिर है, दमदारी भरे फैसले होंगे ही। सीएम ने बैजेंद्र से कहा…..लोहा छत्तीसगढ़ में निकलता है और भरती परीक्ष़्ा हैदराबाद में होती है। नगरनार में लोहा बनेगा और उसका मुख्यालय राज्य से बाहर होगा। बैजेंद्र बोले, साब बताइये करना क्या है। सीएम बोले, बस्तर में एनएमडीसी काम कर रहा तो परीक्षा और मुख्यालय बस्तर में ही होना चाहिए। बैजेंद्र बोले, सर कर दिया। बैजेंद्र ने रात में ही हैदराबाद फोन करके आदेश निकलवा दिया….ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरी की परीक्षा दंतेवाड़ा में होगी….नगरनार का हेडक्वार्टर नगरनार में होगा। भारत सरकार से पूछे बिना इतना बड़ा फैसला किसी दूसरे सीएमडी के लिए संभव नहीं था। उधर, बैजेंद्र ने बस्तर को इतनी बड़ी सौगात दे दी कि सीएम का खुश होना स्वाभाविक था। उन्होंने तुरंत दंतेवाड़ा कलेक्टर टीपी वर्मा से बात की। और, रात नौ बजे एसडीएम दंतेवाड़ा ने आदेश निकाल दिया कि ठीक तीन घंटे बाद रात बारह बजे तक आंदोलनकारी धरना स्थल खाली कर दें, वरना शक्तिपूर्वक उन्हें हटा दिया जाएगा। इसका असर हुआ। अगले दिन दोपहर में एनएमडीसी प्लांट का काम प्रारंभ हो गया। इसमें सबसे अहम यह कि बस्तर को एक बड़ा हक मिल गया।

खेतान का ओहरा बढ़ा?

गृह विभाग की जिम्मेदारी सौंपने के बाद सरकार ने एसीएस सीके खेतान को प्रभारी चीफ सिकरेट्री का दायित्व भी सौंपा है। हालांकि, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर के कनाडा जाने की स्थिति में बैचवाइज सबसे सीनियर खेतान हैं, इसलिए प्रभारी सीएस की उनकी स्वभाविक दावेदारी बनती है। लेकिन, इसमें महत्वपूर्ण यह है कि जिस समय कुजूर कनाडा रवाना हो रहे थे, उस समय खेतान क्लाइमेट चेंज पर वर्कशाप में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया में थे। इंडिया की धरती पर कदम रखने से पहले ही प्रभारी सीएस का उनका आदेश निकल गया। फिर प्रभारी सीएस के रूप में उन्होंने कैबिनेट भी कर ली। पिछले 15 साल में याद नहीं आता कि कोई प्रभारी सीएस कैबिनेट किया हो। कई साल से तो प्रभारी का आदेश निकालना ही बंद हो गया था। बिना प्रभार दिए ही सीएस विदेश जा रहे थे। बहरहाल, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर अक्टूबर में रिटायर हो जाएंगे। याने करीब ढाई महीने बाद सितंबर से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। कुजूर 86 बैच के आईएएस हैं। उनके बाद 87 बैच में तीन आईएएस हैं। सीके खेतान, आरपी मंडल और वीबीआर सुब्रमण्यिम। सुब्रमण्यिम फिलहाल जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकरेट्री हैं। चूकि केंद्र सरकर ने वहां राष्ट्रपति शासन छह महीने और बढ़ा दिया है। लिहाजा, उनका उससे पहले लौटना मुमकिन नहीं लगता। जाहिर है, नौकरशाही के इस शीर्ष पद के लिए अब दो ही नाम बचते हैं। खेतान और मंडल। दोनों न केवल एक ही बैच के हैं बल्कि एक ही प्रदेश के बिलांग करते हैं। बिहार से। इन दोनों में से किसी के सिर पर सीएस का सेहरा बंधेगा।

कमिश्नर होंगे चेंज

राज्य सरकार जल्द ही सरगुजा में नया कमिश्नर अपाइंट कर सकती है। सरगुजा कमिश्नर ए टोप्पो ने स्वास्थ्यगत कारणों से सरकार से आग्रह किया है कि काम करने में वे असमर्थता महसूस कर रहे हैं, लिहाजा उन्हें वहां से हटा दिया जाए। लोकसभा चुनाव के पहले फरवरी में टोप्पो को कमिश्नर बनाकर सरगुजा भेजा गया था। वहीं, अंबिकापुर जिला पंचायत की आईएएस सीईओ नम्रता गांधी मैटरनिटी लीव पर जा रही हैं। सरकार ने उनकी छुट्टी मंजूर कर ली है। उनकी जगह किसी आईएस को पोस्ट किया जाएगा। याने जल्द ही आईएएस में एक छोटी लिस्ट निकलेगी। सरगुजा कमिश्नर टोप्पो प्रमोटी आईएएस हैं। पता चला है, उनकी जगह पर किसी प्रमोटी को ही कमिश्नर बनाकर अंबिकापुर भेजा जाएगा।

कलेक्टरी में दबदबा

बात प्रमोटी आईएएस की निकली तो बता दें, सूबे में प्रमोटी आईएएस का रुतबा बढ़ने लगा है। अभी प्रदेश के 27 में से 11 जिलों में प्रमोटी कलेक्टर हो गए हैं। पिछली लिस्ट में भी दो जिले में प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनाकर भेजा गया। पिछली सरकार चुनाव के समय प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनाने में प्रायरिटी देती थी। बाकी समय तो उनकी संख्या नगण्य ही होती थी। याद होगा, 2013 के विधानसभा चुनाव के समय प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या 12 पहुंच गई थी। लेकिन, चुनाव होते ही पांच पर सिमट गए। भूपेश सरकार ने बिलासपुर, जांजगीर और दंतेवाड़ा जैसे जिलों में प्रमोटी को मौका दिया है। दंतेवाड़ा में केएम पिस्दा के बाद किसी प्रमोटी को चांस नहीं मिला। प्रमोटी कलेक्टर वाले 11 जिलों में दंतेवाड़ा टीपी वर्मा, कोंडागांव नीलकंठ नेताम, बीजापुर केडी कुंजाम, कांकेर केएल चौहान, नारायणपुर पदम सिंह एल्मा, बेमेतरा महादेव कांवड़े, महासमुंद सुनील जैन, गरियाबंद श्याम धावड़े, बिलासपुर डा0 संजय अलंग, जांजगीर जनकराम पाठक, कोरिया डोमन सिंह शामिल हैं।

एलेक्स अमेरिका निकले और….

आईएएस एलेक्स पाल मेनन पारिवारिक कार्य से पिछले महीने अमेरिका रवाना हुए। और, इधर उनका विभाग खिसक गया। एलेक्स के पास डायरेक्टर ट्राईबल के साथ अंत्यव्यवसायी निगम जैसे ट्राईबल से रिलेटेड चार्ज थे। सरकार ने उन्हें मंत्रालय में ज्वाइंट सिकरेट्री पोस्ट किया है। लेकिन, बिना विभाग के। याने बिना विभाग वाले आईएएस की सूची में एलेक्स भी अब शामिल हो गए हैं। एलेक्स 2006 बैच के आईएएस हैं। बरबस अब प्रश्न उठेगा कि उन्हें बेविभाग क्यों गया? तो चिप्स में पोस्टिंग के दौरान किसी मामले से सरकार उनसे नाराज बताई जा रही है।

अब नो चेंज

सामने बरसात को देखते सरकार ने अब कलेक्टरों के ट्रांसफर को ड्रॉप कर दिया है। पिछली लिस्ट में रायपुर, कोरिया और जांजगीर जिले के कलेक्टर बदले गए थे। इसके बाद एक और लिस्ट निकलने की चर्चा थी। लेकिन, अब सरकार ने ना कर दिया है। कोई अपने से हिट विकेट हो जाए तो अलग बात है। वरना, अक्टूबर से पहिले किसी को बदला नहीं जाएगा। अक्टूबर में चीफ सिकरेट्री के रिटायर होने के बाद एक बडी लिस्ट निकलेगी, उसमें कलेक्टरों का नम्बर लगेगा।

पनिशमेंट पोस्टिंग?

सरकार ने इस साल फरवरी में 2011 बैच के आईएएस संदीपन को कोरिया का कलेक्टर बनाया था। मगर हिट विकेट कहें या कुछ और, चार महीने में ही वे मंत्रालय लौट आए। उन्हें डिप्टी सिकरेट्री फॉरेस्ट बनाया गया है। वन विभाग के आईएएस कभी डिप्टी सिकरेट्री नहीं रहा। सिकरेट्री तक आईएफएस होता है। हालांकि, प्रिंसिपल सिकरेट्री या एडिशनल चीफ सिकरेट्री इस विभाग के हेड होते हैं। अभी आरपी मंडल के पास फॉरेस्ट है। संदीपन, एमके राउत और आरपी मंडल के साथ पंचायत में काम कर चुके हैं। पता नहीं कैसे, दोनों से गुरू ज्ञान लेने में संदीपन ने चूक कैसे कर दी? सरकार बदलने के बाद कैसे काम किया जाता है, दोनों का अपना अनुभव है।

लाखों की पगार फ्री में

राज्य में खजाने की स्थिति ठीक नहीं है और सरकार हर महीने नौकरशाहों को दस लाख रुपए से अधिक तनख्वाह बिना काम के बांट रही है। इनमें आईएएस डा0 आलोक शुक्ला, अनिल टुटेजा, आईएफएस में रामाराव, नरसिम्हाराव जैसे कई अफसर शामिल हैं। इन अफसरों के खिलाफ निलंबन जैसी कोई कार्रवाई भी नहीं हुई है, जिस वजह से उनसे काम लेने में दिक्कत हो। सीधी सी बात है, पैसा ले रहे तो उसके एवज में काम तो करना होगा। खासकर आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा जैसे काबिल और रिजल्ट देने वाले अफसर तो वक्त के शिकार हो गए। वरना, सरकारी खजाने को लूटने के बाद भी कई नौकरशाह मजे में अपने पद पर बने हुए हैं। डीएमएफ में तो कई कलेक्टरों ने डकैती कर डाली, फिर भी उनका बाला बांका नहीं हुआ। और, शुक्ला एवं टुटेजा पिछले पांच साल से घर बैठे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईजी से एडीजी का प्रमोशन लिस्ट फिर क्यों अटक गई?
2. चरणदास महंत और टीएस सिंहदेव में नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ रही हैं क्या?

मंगलवार, 11 जून 2019

मंत्रीजी की दरियादिली या…

 9 जून
सूबे के एक मंत्रीजी का लेटरहेड इन दिनों अधिकारियों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। दस्तखत के नाम पर हिन्दी के बमुश्किल तीन अक्षर लिखने वाले मंत्रीजी से उनके कुछ समर्थकों ने कोरे लेटरहेड पर साइन करा लिए हैं और अब उसका बेजा इस्तेमाल की शिकायतें मिल रही हैं। बस्तर संभाग के कई कलेक्टर्स, एसपी के पास ऐसे अनुशंसा वाले लेटर पहुंचे हैं। कुछ कलेक्टरों ने इसकी पुष्टि भी की है। सवाल उठता है, अधिकारी आखिर कितने लेटरहेड का मंत्रीजी से फोन कर पुष्टि करेंगे। वैसे भी सुकमा के पुलिस कप्तान जितेंद्र शुक्ला की जब से छुट्टी हुई है, मंत्रीजी का अफसरों पर कुछ ज्यादा ही रौब गालिब हो गया है। बस्तर संभाग के एक युवा कलेक्टर तो इतने सहमे हैं कि मंत्रीजी मुंह खोले नहीं कि आदेश निकल जाता है। प्रायमरी स्कूल के टीचर को कहा जा रहा, इंचार्ज डीईओ बना दो, कलेक्टर तुरंत आर्डर निकाल देते हैं। जाहिर है, इससे बस्तर के कलेक्टर्स, एसपी की उलझनें बढ़ गई है।

ब्यूरोक्रेट्स और लोकल बोली

डीएफओ कांफ्रेंस में सीएम भूपेश बघेल ने अफसरों से छत्तीसगढी बोली सीखने के लिए कहा। हो सकता है, कुछ अफसरों को यह रास नहीं आया होगा। लेकिन, यह शाश्वत सत्य है, अफसर अगर इलाके के लोगों की बोली, भाषा, उनके इमोशंस को नहीं समझेंगे तब तक उनकी बेहतरी के लिए भला काम कैसे कर पाएंगे। इसकी एक बानगी होंगी पंजाब कैडर की 2006 बैच की आईएएस आनंदिता मित्रा। आनंदिता अपने बिलासपुर की रहने वाली है। आईएएस में आठवां रैंक आया था। महिलाओं में टॉपर थीं। बिलासपुर से पंजाब जाने के बाद वहां की कल्चर में वे एकदम रच-बस गई है। फर्राटेदार पंजाबी बोलती हैं। टोन भी बिल्कुल पंजाबियों जैसा। इसका रिजल्ट यह मिला कि प्रकाश सिंह बादल सरकार में वे कई जिलों की डीसी याने कलेक्टर रहीं तो अमरिंदर सिंह सरकार में नॉन की एमडी के साथ ही डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस भी हैं। पंजाब जैसे अनाज उत्पादक राज्य में नॉन के एमडी का मतलब आप समझ सकते हैं। कहने का आशय यह है कि बेहतर परफारमेंस के लिए उस क्षेत्र के लोगों का विश्वास हासिल करना होगा और बिना भाषा के यह कदापि संभव नहीं है।

आईपीएस की गोंडी

हालांकि, यह अच्छी खबर है कि दंतेवाड़ा के एसपी डा0 अभिषेक पल्लव बस्तर की गोंडी बोली सीख रहे हैं। इसके लिए वे ट्यूटर रख लिए हैं। अपने लोकल स्टाफ को भी गोंडी में बात करने की कोशिश करते हैं। ताकि, भाषा में दक्ष होकर वहां के लोगों से खुलकर बात कर सकें….उन्हें बता सकें कि बस्तर के विकास में नक्सली किस तरह बाधक बन रहे हैं। अभिषेक आठ महीने के छोटे टेन्योर में ही बस्तर में काफी चर्चित हो गए हैं। गोवा से एमबीबीएस और दिल्ली से एमडी करने वाले डा0 अभिषेक आईपीएस तो हैं ही साइकेट्रिक भी हैं।

इनका रुतबा बढ़ा

आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर में जिनका कद बढ़ा है, उनमें एसीएस सीके खेतान, प्रमुख सचिव मनोज पिंगुआ, अंबलगन पी और मोहम्मद कैसर का नाम लिया जा सकता है। खेतान के पास पिछले सरकार के समय से फॉरेस्ट था। नई सरकार में लोगों को उम्मीद थी कि खेतान का इम्पार्टेंस बढ़ेगा। मगर ऐसा हुआ नहीं। इस फेरबदल में उन्हें गृह विभाग की कमान सौंपकर सरकार ने जरूर उनका रुतबा बढ़ा दिया है। आरपी मंडल से गृह विभाग लेकर बदले में उन्हें फॉरेस्ट दिया गया है। याने उनका रुतबा बरकरार रहेगा। पंचायत तो उनके पास रहेगा ही। मनोज पिंगुआ को इंडस्ट्री के साथ-साथ परिवहन सचिव और परिवहन आयुक्त का प्रभार भी मिल गया है। इसी तरह अंबलगन को डायरेक्टर फूड के साथ ही मंत्रालय में माईनिंग जैसे अहम विभाग मिल गया है। इसी तरह मो0 कैसर बिजली वितरण कंपनी के साथ ही अब मार्कफेड भी संभालेंगे। अंबलगन अभी तक मार्कफेड के एमडी थे। करीब 20 हजार करोड़ का सलाना कारोबार करने वाला मार्कफेड छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बोर्ड है।

एक लिस्ट और

सिकरेट्री लेवल पर एक लिस्ट और निकलेगी। वजह यह कि राज्य निर्वाचन पदाधिकारी सुब्रत साहू को इस लिस्ट में नाम नहीं है। विधानसभा और लोकसभा का चुनाव कराने के बाद जाहिर है, सुब्रत अब सरकार में लौटेंगे। हालांकि, इसके लिए सरकार को चुनाव आयोग से परमिशन लेना होगा। वैसे, आचार संहिता खतम होने के बाद आयोग को इसमें कोई दिक्कत नहीं होती। इसी तरह अतिरिक्त निर्वाचन पदाधिकारी भारतीदासन और संयुक्त निर्वाचन पदाधिकरी समीर विश्नोई को भी इस लिस्ट में जगह नहीं मिली है। इन्हें भी पोस्टिंग देनी होगी। क्योंकि, चुनाव के बाद इनके पास कोई काम रह नहीं गया है। वैसे भी ये दोनों पोस्ट चुनाव के दौरान ही भरे जाते हैं। हालांकि, भारतीदासन को रायपुर कलेक्टर बनाने की चर्चा है। चुनाव आयोग से अनुमति मिलने के बाद उनका आदेश निकल जाएगा, ऐसी कहा जा रहा है।

विभागों का एक्सचेंज

वन विभाग के सिकरेट्री पहले आरपी मंडल थे। पिछले साल सीके खेतान जब डेपुटेशन से लौटे तो रमन सरकार ने मंडल से फॉरेस्ट लेकर खेतान को दे दिया था। और, बस बार की प्रशासनिक सर्जरी में फॉरेस्ट फिर आरपी मंडल के पास चला गया है। और मंडल का गृह विभाग खेतान के पास। खेतान और मंडल में समानता यह है कि दोनों एक ही बैच के आईएएस हैं। 87 बैच। दोनों का होम स्टेट भी एक ही है। बिहार।

कलेक्टर कांफ्रेंस में बिजली

6 जून को कलेक्टर कांफ्रेंस में भी बिजली गुल का मामला उठा। सीएम भूपेश बघेल ने कलेक्टरों से पूछा कि जब बिजली का उत्पादन में कमी नहीं आई है तो बिजली कट की शिकायतें क्यों आ रही? इस पर अधिकांश कलेक्टर निरुत्तर हो गए। कुछ ने कहा, बिजली कंपनियों को मेंटेनेंस पर फोकस करना चाहिए। इस पर सीएम ने कहा कि कलेक्टर बिजली अफसरों क साथ मीटिंग कर बिजली व्यवस्था दुरुस्त करें। इस दौरान सीएम ने कलेक्टर सूरजपुर दीपक सोनी के कामों की तारीफ की। दीपक गोठानों से अगरबत्ती बनवाने की योजना पर काम कर रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.पुलिस विभाग के एक मीणा निबट गए, दूसरे मीणा कुर्सी बचाने में कैसे कामयाब हो गए?
2.कोरिया कलेक्टर विलास संदीपन मात्र चार महीने में ही पेवेलियन लौट आए, इसकी असली वजह क्या है?