संजय के. दीक्षित
तरकश, 22 अगस्त 2021
मनेंद्रगढ़ में ठेका कंपनी के कंप्यूटर ऑपरेटर ने भूमाफियाओं से सांठ-गांठ करके ऐसा गुल खिलाया कि पूरा सिस्टम आवाक रह गया। ऑपरेटर ने ई-रजिस्ट्री में सेंध डालके डिप्टी रजिस्ट्रार के आईडी, पासवर्ड से दर्जनों रजिस्ट्री कर डाला। लेकिन, इस मामले में कार्रवाई क्या हुई…कुछ नहीं। जबकि, इस घटना ने रजिस्ट्री सिस्टम पर लोगों का भरोसा ही नहीं तोड़ा बल्कि पहले से बदनाम इस विभाग को और कलंकित किया है। कायदे से विभाग को इस केस में फौरन एफआईआर दर्ज कराना था। मगर मामला पुलिस में जाएगा तो बात दूर तलक जाएगी…अतिप्रिय कंपनी को नुकसान पहुंचेगा…पुलिस वाले भी दस-बीस पेटी ऐंठ लेंगे। उपर से कंपनी की मुश्किलें बढ़ेगी तो महीने का हैंडसम खुरचन पानी से मरहूम होने का खतरा! लिहाजा, अफसरों ने तय किया है कि कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाएगी…घर की बात घर में ही रहने दिया जाए..मीडिया में दो-चार रोज छपेगा, फिर मामला ठंडा पड़ जाएगा। इस मामले की शिकायत करने वाले डिप्टी कलेक्टर को भी समझा दिया गया है…अब आगे कोई लिखा-पढ़ी न करें। व्हाट एन आइडिया!
ऐसी मेहरबानी…
झारखंड की जिस ठेका कंपनी के आपरेटर ने ई-रजिस्ट्री सिस्टम में सेंध लगाया, उस कंपनी को कुछ दिन पहले एक्सटेंशन दिया गया है। रेट भी वहीं पुराना। जबकि, इस शर्त के साथ बीओटी में कंपनी को रजिस्ट्री का काम दिया गया था पांच साल बाद कंपनी का सारा सेटअप सरकार का हो जाएगा। लिहाजा, अब ई-रजिस्ट्री का सेटअप सरकार का है कंपनी का नहीं। फिर पुराने दर पर रजिस्ट्री का ठेका क्यों? अफसरों से इसके पीछे का राज पूछना चाहिए। और यह भी कि जिस कंपनी से झारखंड की सरकार ने काम वापिस ले लिया, उस पर छत्तीसगढ़ में इतनी मेहरबानी क्यों? हकीकत यह है कि कंपनी की छत्तीसगढ़ में जितनी एक महीने की कमाई है, विभाग चाहे तो उससे कम में अपना सिस्टम बनवा सकता है। इससे एक तो रजिस्ट्री में जो चूना लगाने का खेल नहीं होगा, दूसरा सरकारी खजाने में रेवन्यू आएगा। तीसरा छत्तीसगढ़ के लोगों को रोजगार मिलेंगे। झारखंड की कंपनी में 90 फीसदी लोग बाहरी हैं।
छूट गए पल्लव
23 जिलों के एसपी बदल गए। लेकिन, दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव का नाम फिर छूट गया। अभिषेक पहले ऐसे पुलिस कप्तान हैं, जो बीजेपी सरकार के समय दंतेवाड़ा के एसपी बने थे और तीन साल बाद भी कंटीन्यू कर रहे हैं। जबकि, बाकी जिलों में दो से तीन बार एसपी बदल चुके हैं। जाहिर है, अभिषेक का काम बढ़ियां है मगर इसका मतलब ये भी तो नहीं कि उन्हें मैदानी एरिया में पोस्टिंग पाने की इच्छा नहीं होगी। डीजीपी और स्पेशल डीजी नक्सल को दंतेवाड़ा में अभिषेक का विकल्प तैयार करना चाहिए। किसी एक अफसर पर सिस्टम डिपेंडेंट हो जाए, ये भी तो ठीक नहीं।
सेकेंड लांग कुमेर?
छत्तीसगढ़ में अगर किसी अपराधी को ठोका गया तो वह कोरबा जिला था। और सुंदरराज वहां के कप्तान थे। एक जवान की मौत के बाद पुलिस ने अलसुबह गैंगस्टर को गोलियों से शूट कर डाला था। हालाकि, अपराधियों के प्रति ऐसा कठोर तेवर दिखाने वाले नस्ल के एसपी छत्तीसगढ़ में पाए नहीं जाते। लेकिन, तब ऐसा हुआ, जो सच्चाई है। हालांकि, उसके बाद सुंदरराज राजनांदगांव गए मगर वहां पता नहीं क्यों पीच पर जम नहीं पाए और सरकार ने उन्हें हटा दिया। तब से सुंदरराज नक्सल एरिया में काम कर रहे हैं। एक बार कुछ दिनों के लिए वे पुलिस मुख्यालय आए भी तो विभाग नक्सल था। पहले वे बस्तर में डीआईजी रहे और अब प्रभारी आईजी। दूसरा कोई अफसर बस्तर जाना नहीं चाहता इसलिए इससे भी इंकार नहीं कि आईजी के रूप में पता नहीं कब तक वे बस्तर में रहेंगे। बस्तर में लंबे समय तक पूर्व डीआईजी, आईजी रहे लांग कुमेर से सुंदरराज की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि, सुंदरराज काम करने वाले अफसर माने जाते हैं लेकिन, पोस्टिंग के मामले में दूसरे लांग कुमेर बन जाएं तो आश्चर्य नहीं।
कलेक्टर-एसपी की वैकेंसी
चार नए जिले बनने से अब कलेक्टर, एसपी की वेटिंग कुछ हद तक क्लियर हो जाएगी। नए जिलों में पहले ओएसडी की तैनाती होगी। एकाध हफ्ते में सरकार ओएसडी का पोस्टिंग आर्डर जारी कर सकती है। फिर जिस डेट से नए जिला अस्तित्व में आता है, उसके एक दिन पहले सरकार ओएसडी को ही कलेक्टर और एसपी अपग्रेड कर देती है। कलेक्टरों में अभी 2013 बैच क्लियर नहीं हुआ है। 2014 बैच में भी आधा दर्जन आईएएस हैं। हो सकता है, इस बैच के भी दो-एक अधिकारियों का मौका मिल जाए। हालांकि, नए जिले में आमतौर पर एकाध जिले की कलेक्टरी किए अफसरों को भेजा जाता है ताकि वहां नए जिले की दृष्टि से ठीक-ठाक इंतजाम कर सकें। लेकिन, ये आवश्यक नहीं है। बलौदा बाजार जैसे कई जिलों में नए आईएएस को भेजा गया था।
मोहला कष्टदायक
पोस्टिंग के क्रेज के मामले में नए चार जिलों में मनेंदगढ़ टॉप पर रहेगा। सक्ती दूसरे नम्बर पर। सक्ती हावड़ा-मुंबई मेन लाइन पर है। वहां मेल जैसी ट्रेन राज्य बनने के पहले से रुकती है। इसके बाद सारंगढ़ आएगा। सबसे आखिरी में आएगा मोहला-मानपुर। राजनांदगांव के इस धुर नक्सल इलाके में पोस्टिंग मिलने से अधिकारी भी कतराएंगे। दरअसल, मोहला अभी नगर पंचायत भी नहीं है। ग्राम पंचायत है। सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं। अधिकारी, कर्मचारी शाम को राजनांदगांव लौट आते हैं। पुलिस के शीर्ष अधिकारी महीनों से मानपुर नहीं गए हैं। मानपुर राजनांदगांव से 100 किलोमीटर दूर रिमोट इलाका है। नक्सलियों की पैठ को कमजोर करने इसे जिला बनाना आवश्यक था। जिला बनाने के बाद सरकार को सबसे अधिक मोहला-मानपुर को प्रायरिटी पर रखना होगा नहीं तो जिला बनाने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा। अफसर वहां टिक कर तभी काम कर पाएंगे जब उनके रहने और उठने-बैठने के लिए ढंग का इंतजाम हो।
दिग्गी की चूक
मनेंद्रगढ़ को जिला बनाकर भूपेश बघेल ने दिग्विजय सिंह की चूक को दुरुस्त कर दिया। छत्तीसगढ़ बनने से पहिले तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ने जब कोरिया को जिला और वैकुंठपुर को उसका मुख्यालय बनाया था तो मनेंद्रगढ़ में जबर्दस्त तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हुई थी। मनेंद्रगढ़ में गुस्साई भीड़ ने कई बसें फूंक डाली थी। सरकारी बसों को जब आग के हवाले किया जा रहा था तब दिग्गी के इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया कि हमारे पास कई कंडम बसें हैं। वाकई तब वैकुंठपुर में कुछ भी नहीं था सिवाय रामचंद्र सिंहदेव के महल के। रोजमर्रा का सामान मिल जाए, उसके लिए हॉट-बाजार भी नहीं। मनेंद्रगढ़ को देखकर लगता था, उसके साथ नाइंसाफी हुई है। जिले का नाम भी कोरिया इसलिए पड़ा क्योंकि राजवाड़े का नाम कोरिया था। और सिंहदेव कोरिया कुमार थे। हालांकि, पूर्व मंत्री स्व0 सिंहदेव छत्तीसगढ़ के ऐसे शख्सियत थे, जो दिग्विजय सिंह के करीबी थे और उनके बाद मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी के भी। जोगी अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को अदब करते थे तो वे सिंहदेव थे। सिंहदेव नेता जरूर कांग्रेस के थे लेकिन प्रगाढ़ता उनकी सबसे थी। लेकिन, कई बार बड़े-बड़ों से भी अपना और पराया की चूक हो जाती है। यह मानने में किसी को इंकार नहीं होगा कि सिंहदेव के जिद के कारण तब मनेंद्रगढ़ जिला बनने से वंचित हो गया था। चलिये, देर से ही सही उसे इंसाफ तो मिला।
अंत में दो सवाल आपसे
1. डीएमएफ के प्रभुत्व से बेदखल होने पर जिलों के प्रभारी मंत्रियों को कितने वोल्ट का करंट लगा होगा?
2. क्या वाकई अगले साल तक छत्तीसगढ़ में छत्तीस जिले हो जाएंगे?