शनिवार, 24 दिसंबर 2022

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और 2022

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 25 दिसंबर 2022

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और 2022

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के लिए 2022 बहुत अच्छा नहीं रहा। बल्कि कह सकते हैं यह साल जाते-जाते बड़ा दर्द दे गया। सितंबर में प्रिंसिपल सिकरेट्री एम. गीता का निधन हो गया। गीता काफी अच्छी और रिजल्ट देने वाली अफसर थीं। गीता के जाने के दुख से कैडर उबर नहीं पाया था कि ईडी धमक आई। जाहिर है, कई आईएएस अधिकारी ईडी के निशाने पर हैं। आधा दर्जन से अधिक आईएएस को ईडी पूछताछ के लिए तलब भी कर चुकी है। 2009 बैच के आईएएस समीर विश्नोई जेल पहुंच चुके हैं। यही नहीं, पूरा कैडर पिछले दो महीने से खौफ के साये में गुजर रहा...पता नहीं किस दिन राहु की दशा बिगड़ जाए और ईडी वाले घर का कॉल बेल बजा दें। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे कैडर में आईएएस अफसरों में की खौफ का ये आलम है तो साल 2022 खराब ही कहा जाएगा न।

2023 भी अच्छा नहीं!

ब्यूरोक्रेसी के लिए 2022 अच्छा नहीं रहा तो नया साल 2023 भी बहुत बढ़ियां नहीं रहने वाला। जाहिर है, अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव है। चुनावी साल वैसे भी नौकरशाही के लिए परीक्षा की घड़ी होती है। एक तो सरकार को रिजल्ट देने का प्रेशर....उपर से किसकी सरकार बनेगी...कैसे दोनों पार्टियों को साधकर रखें....ताकि मौका आते ही गुलाटी मारी जाए....इसका अलग तनाव। उधर, पंडित कमलकिशोर की भविष्यवाणी है कि 2023 भी छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के लिए बहुत अच्छा नहीं रहने वाला। कुंडली के हिसाब से देखें तो छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के घर में शनि बैठा है। जनवरी में ये झटका दे सकता है...एकाध और आईएएस की स्थिति भी समीर विश्नोई जैसी हो सकती है।

कुछ पूजा-पाठ हो जाए

छत्तीसगढ़ का नारायणपुर ऐसा जिला है, जहां कलेक्टर-एसपी टिक नहीं पा रहे। तू चल, मैं आया...के अंदाज में कलेक्टर, एसपी पोस्टिंग में जाते हैं और फिर चंद दिनों में लौट आ रहे। बता दें, इस जिले में चार साल में पांच कलेक्टरों की पोस्टिंग हुई है तो एसपी सात बदल गए। एसपी की संख्या सात तब हैं, जब मोहित गर्ग का कार्यकाल करीब ढाई साल रहा है। याने बाकी छह की छुट्टी डेढ़ साल में हो गई। मतलब तीन महीने में एक एसपी। सात में जीतेंद्र शुक्ला, कल्याण ऐलेसेला, रजनेश सिंह, मोहित गर्ग, गिरिजाशंकर, उदय किरण और सदानंद शामिल हैं। जीतेंद्र शुक्ला की पोस्टिंग पिछली सरकार ने की थी। कांग्रेस सरकार बनते ही वे हटे। फिर ऐलेसेला आए। उनके बाद रजनेश, मोहित गर्ग, गिरिजाशंकर, उदय किरण और अब सदानंद। कलेक्टरों की स्थि्ित भी जुदा नहीं। 2019 की शुरूआत में टीपी वर्मा को दंतेवाड़ा भेजकर उनकी जगह पीएस एल्मा को कलेक्टर बनाया गया। फिर अभिजीत सिंह, धमेंद्र साहू, ऋतुराज रघुवंशी और अब अजीत बसंत। सीएस और डीजीपी साब को नारायणपुर के लिए कुछ पूजा-पाठ करवाना चाहिए। क्योंकि, इतना छोटा जिला...मात्र दो ब्लाक का। उसमें भी अबूझमाड़ में नक्सलियों का वर्चस्व। मतलब एक ही ब्लॉक। उसमें भी तू चल, मैं आया। अजीत बसंत की पोस्टिंग के साथ ही सवाल उठने लगा है, वे कितने दिन वहां टिकेंगे। अजीत जरा ईमानदार किस्म के हैं...वहां के विधायक के निशाने पर वे न आ जाएं। जाहिर है, अभिजीत की छुट्टी विधायक ने कराई थी।

इसलिए हटाए गए पाठक

सरकार ने रजिस्ट्रार कोआपरेटिव सोसाइटी जनकराम पाठक को ज्वाईन करते ही न केवल काम करने से रोक दिया बल्कि महीने भर में उन्हें रुखसत कर दिया। दरअसल, सरकार ने जब पाठक को तीसरी बार रजिस्ट्रार बनाया तो किसी का ध्यान नहीं था कि अपेक्स और सहकारी बैंकों के सेलरी घोटाले के दौरान पाठक ही रजिस्ट्रार थे। उन्हीं की कलम से बैंकों की सेलरी दुगुनी करने का आदेश हुआ था। बहरहाल, अक्टूबर लास्ट में जब आईएएस की लिस्ट जब जारी हुई तो कुछ अफसरों ने सरकार की नोटिस में ये बात लाई। यही वजह है कि एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू ने तुरंत फोन करके पाठक को काम करने से रोका। सेलरी घोटाले में बैंक के खटराल अधिकारियों ने अपना वेतन दुगुना करने बोर्ड से प्रस्ताव पास करवा लिया...और रजिस्ट्रार से हरी झंडी भी। आलम यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में चीफ सिकरेट्री के बराबर अपेक्स और सहकारी बैंकों के डीजीएम को वेतन मिलने लगा तो कलेक्टर के बराबर बैंकों के ड्राईवर को। रिव्यू मीटिंग में सीएम भूपेश बघेल को जब इसका पता चला तो वे बेहद नाराज हुए। सीएम के निर्देशा पर चार सदस्यीय जांच कमेटी ने जांच प्रारंभ कर दी है। कई अधिकारियों के लिए यह जांच गले का फांस बनने वाला है क्योंकि बैंकों की बेसिक सेलरी पांच साल में तीगुनी बढ़ गई तो डीए 200 परसेंट से अधिक दिया जाने लगा। अपेक्स बैंक के डीजीएम को मध्यप्रदेश के डीजीएम से एक लाख रुपए अधिक वेतन मिल रहा है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक के डीजीएम बेचारे सुबह से लेकर देर रात तक काम करते हैं, तो उनके डीजीएम को पौने दो लाख वेतन मिलता है। और अपेक्स बैंक के डीजीएम को 2.93 लाख रुपए। पराकाष्ठा यह है कि आईएएस एमडी को अपेक्स बैंक में 1.45 लाख वेतन मिलता है और बैंकिंग सर्विस के डीजीएम को उनसे दुगुना से भी अधिक। कभी-न-कभी इसका भंडा तो फूटना ही था।

बड़ी सर्जरी

जनवरी में विधानसभा सत्र के बाद कलेक्टर, एसपी की एक बड़ी लिस्ट निकलने की चर्चा है। एसपी की लिस्ट तो पहले से ही अपेक्षित है। भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव की वजह से एसपी की लिस्ट रुक गई थी। अब सुनने में आ रहा...चुनावी साल को देखते सरकार नए सिरे से कलेक्टर्स, एसपी की जमावट करना चाहती है। ताकि, और बेहतर रिजल्ट मिल सकें। विधानसभा का शीत सत्र जनवरी के पहले सप्ताह में क्लोज हो जाएगा। उसके बाद लिस्ट कभी भी आ सकती है। क्योंकि, जनवरी में नहीं आई तो फिर फरवरी में बजट सत्र आ जाएगा। जिन जिलों में अपराध तेजी से पांव पसार रहे हैं, वहां के पुलिस अधीक्षकों को हटाया जाएगा। ऐसे अफसरों की सूची तैयार कराई जा रही है।

सबसे बड़ी पोस्टिंग

राज्य सरकार ने सीनियर आईएफएस आलोक कटियार पर भरोसा करते हुए २५ हजार करोड़ के जल जीवन मिशन की कमान सौंप दी है। उनके पास क्रेडा का चार्ज यथावत रहेगा। याने सौर बिजली-पानी अब उनके जिम्मे। जल जीवन मिशन भारत सरकार का प्रोजेक्ट है, जिसके लिए 25 हजार करोड़ रुपए सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए स्वीकृत है। इसमें से पिछले साल 1800 करोड़ के काम हुए और उससे पहले 2021 में करीब सात सौ करोड़ के। अभी 22500 करोड़ के काम बचे हैं। इससे पहले किसी आईएफएस अफसर को इतने बड़े बजट वाले काम की जिम्मेदारी नहीं मिली। बहरहाल, कटियार के लिए यह चुनौती भरा काम होगा। क्योंकि, मार्च 2024 तक इसे कंप्लीट करना है। 22 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च करना आसान नहीं होगा। कई जिलों में अभी नल कनेक्शन का 25 फीसदी काम पूरा नहीं हुआ है। सबसे अधिक खराब स्थिति बलरामपुर, सूरजपुर, कोरिया, अंबिकापुर और कोरबा की है। ये जिले नीचे से टॉप 5 हैं। दूसरी दिक्कत यह है कि टंकी बनाने का काम यहां के मजदूर नहीं करते। उसके लिए झारखंड, बिहार के श्रमिक बुलाए जाते हैं। बिहार, झारखंड में इस वक्त तेजी से जल जीवन मिशन के काम चल रहा, सो मजदूर इधर आ नहीं रहे। मिशन के पास पीएचई का सेटअप है, जिसे इतना बड़ा काम करने का तजुर्बा नहीं। पहले सूबे में साल भर में तीन से चार सौ करोड़ का काम होता था। अब इतना एक जिले में हो रहा है। फिर कटियार आईएफएस अफसर हैं। जिलों में कलेक्टरों से रिजल्ट लेने में उन्हें स्मार्टनेस दिखानी होगी।

शनिवार की छुट्टी केंसिल

सरकार ने अधिकारियों, कर्मचारियों की सुविधा के लिए फाइव डे वर्किंग डे वीक किया तो कर्मचारियों ने इसमें आधा दिन अपने तरफ से डंडी मार ली है। याने साढे़ चार दिन कर दिया है। वो इस तरह कि पहले शनिवार जब वर्किंग रहता था तो शनिवार दोपहर से आफिस खाली होने लगता था और अब शुक्रवार दोपहर के बाद आफिसें बियाबान दिखाई देने लगता है। उपर से फाइव डे वीक के फार्मेट में आधा घंटे पहले आना और आधा घंटे बाद जाने का नियम बना था। याने सुबह दस बजे आफिस पहुंचने का टाईम था। मगर अभी भी वही हाल है...11 बजे के पहले कोई दिखेगा नहीं। लिहाजा, दफ्तरों में फाइलें डंप होने लगी हैं। एनआरडीए ने कुछ अधिकारियों, कर्मचारियों को फाइलों के निबटारे के लिए बुलाना चाहा तो नेतागिरी शुरू हो गई। ऐसे में, एनआरडीए ने आदेश निकालकर शनिवार की छुट्टी रद्द कर दी है। हालांकि, कहने वाले कहेंगे कि ये सरकार के आदेश के खिलाफ हुआ...सरकार ने फाइव डे वीक लागू किया हुआ है। मगर कर्मचारी, अधिकारी काम नहीं करेंगे तो और चारा क्या है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. चार साल मलाईदार पोस्टिंग करने के बाद स्मार्ट अफसर चुनावी साल में किनारे हो जाना क्यों पसंद करते हैं?

2. सीनियर मंत्री टीएस सिंहदेव चुनाव से पहले भविष्य के लिए फैसला लेने का बयान दिए हैं। वे क्या फैसला लेंगे?



सोमवार, 19 दिसंबर 2022

77 लाख, 77 पैसे के बराबर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 18 दिसंबर 2022

77 लाख, 77 पैसे के बराबर

प्रेमचंद के जमाने में मास्टर साब लोग दीन-हीन होते थे। लाचार। बेचारे। मगर अब वो दौर नहीं रहा। अब इतने सक्षम और गुणी कि सरकारी खजाने को भी चूना लगा दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं बिलासपुर जिले के बेलतरा स्कूल के व्याख्याता की। ट्रेजरी के बाबू से मिलकर फर्जी बिलों के आधार पर मास्टर साब ने 77 लाख रुपए अपने एकाउंट में ट्रांसफर करवा लिया। मतलब सरकारी खजाने में खुली डकैती। आश्चर्य यह कि बिना रिश्वत दिए ट्रेजरी से सौ रुपए पास नहीं होता, वही ट्रेजरी ने मास्टर साब के खाते में बिना वजह 77 लाख ट्रांसफर कर दिया। इस मामले में स्कूल शिक्षा और ट्रेजरी का रोल चोर-चोर मौसेरा भाई जैसा प्रतीत हो रहा है। डीईओ के पत्र लिखने के बाद भी डीपीआई ने रिकवरी तो दूर की बात एफआईआर तक कराने की जहमत नहीं उठाई, तो ट्रेजरी का भगवान मालिक हैं...अपना पैसा होता तो अधिकारी थाने दौड़ गए होते या फिर एसपी, कलेक्टर को बोलकर मास्टर साब का ऐसी-तैसी करा दिए होते मगर सरकारी पैसा है...। दिक्कत यह है कि सिस्टम वर्क नहीं कर रहा। अब चीफ सिकरेट्री बोलेंगे तो ट्रेजरी वाले कार्रवाई करेंगे वरना सुनकर भी अनसूना। बात वही...सरकारी पईसा है...77 लाख उनके लिए 77 पैसे के बराबर।

ढाई साल...कोई प्रभाव नहीं

छत्तीसगढ़ की सियासत में ढाई साल ऐसा वर्ड है जिसको लेकर नेता हो या मीडिया या फिर आम आदमी...हर किसी की जिज्ञासा बढ़ जाती है। सरकार के चार साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजधानी के प्रमुख पत्रकारों से मुलाकात में यह सवाल आया कि क्या ढाई साल का इश्यू नहीं होता तो कामकाज का रिजल्ट और बेहतर होता? ढाई साल की वजह से सरकार डिफेंसिव हो गई? मुख्यमंत्री ने सधे अंदाज में जवाब दिया। बोले, ये कोई नई बात नहीं है...सियासत में ये सब चलता रहता है...जो सत्ता में होते हैं, उन्हें हटाने की कोशिशें होती हैं। मगर इससे सरकार के कामकाज और आउटपुट पर कोई असर नहीं पड़ा। हमारी सरकार ने आम आदमी का विश्वास जीतने का काम किया।

नए जिले...अब बिल्कुल नहीं

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्पष्ट कर दिया है कि छत्तीसगढ़ में अब नए जिले नहीं बनेंगे। उन्होंने खास इंटरव्यू में कहा कि जिलों के सेटअप बनाने में टाईम लगता है, सो फिलहाल और जिला बनाना अब संभव नहीं है। जाहिर है, भूपेश बघेल सरकार ने चार साल में पांच नए जिले बनाएं हैं। सबसे पहले 2020 में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। फिर इस साल मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, सारंगढ़-बिलाईगढ़, सक्ती और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-सोनहत। इसके बाद चर्चा थी कि अगले साल विधानसभा चुनाव से पहिले जिलों की संख्या बढ़कर 36 हो जाएंगी। विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने एक बार बयान भी दिया था कि जिलों की संख्या बढ़कर 36 होगी। संभावित नए जिलों में पत्थलगांव, भानुप्रतापपुर, सराईपाली और अंतागढ़ की दावेदारी प्रबल है। मगर जिला बनने के लिए उन्हें कुछ और इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि, ये सही है कि सियासत में कई बार अचानक चौंकाने वाला कुछ हो जाता है...अगर ऐसा हुआ तो ठीक वरना, इस सरकार में जिलों की संख्या अब 33 ही रहेगी।

सीएम के सिकरेट्री

सरकार बदलने के बाद आमतौर पर सिकरेट्री टू सीएम बदल जाते हैं। मगर हिमाचल प्रदेश के नए सीएम सुखविंदर सिंह ने शुभाशीष पंडा को ही कंटीन्यू करने का फैसला किया है। शुभाशीष 97 बैच के आईएएस हैं। समान्यतया ऐसा देखा जाता है कि सीएस, डीजीपी भले ही नहीं बदलते मगर मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसर जरूर बदल जाते हैं। जाहिर है, कोई भी मुख्यमंत्री अपनी पसंद से सिकरेट्री अपाइंट करते हैं। दरअसल, माना ये जाता है कि सीएम सचिवालय के सिकरेट्री अगर लंबे समय तक पोस्टेड रह गए तो उनकी समानांतर सत्ता चलने लगती है। मगर अपवाद भी होते हैं। उनके शुभाशीष भी है.. छबि अच्छी है लिहाजा, सरकार बदलने के बाद भी नए सीएम ने उन्हें कंटीन्यू करना मुनासिब समझा।

आनन-फानन में पोस्टिंग

छत्तीसगढ़िया आईएएस धनंजय देवांगन को सरकार ने आनन-फानन में रेरा अपीलीय प्राधिकारण का सदस्य प्रशासकीय और तकनीकी अपाइंट कर दिया। लास्ट संडे उनके वीआरएस के लिए अप्लाई करने की खबर मीडिया में आई और पांचवे दिन दोपहर वीआरएस मंजूर करने के साथ शाम को प्राधिकरण में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का आर्डर निकल गया। बता दें, 2018 में रेरा का गठन हुआ था। मगर अपीलीय प्राधिकरण काफी दिनों तक लटका रहा। इस साल रिटायर जस्टिस शरद गुप्ता को रेरा अपीलीय अथॉरिटी का चेयरमैन बनाया गया किन्तु कोई मेम्बर नहीं था। पता चला है, अथॉरिटी का अफसरों पर प्रेशर बढ़ा तो तलाश शुरू हुई...जल्दी में कौन रिटायर हो रहा है। धनंजय देवांगन फरवरी में सेवानिवृत्त होने वाले थे। वे फौरन रिटायरमेंट लेने के लिए तैयार हो गए। बहरहाल, उनके साथ अरविंद कुमार चीमा को सदस्य विधिक बनाया गया है। चीमा का नाम अवश्य लोगों को चौंकाया। सबका यही सवाल था, चीमा कौन? बाद में पता चला कि चीमा रायपुर लोवर कोर्ट में वकालत कर चुके हैं तथा कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे हैं।

नए निर्वाचन आयुक्त-1

रिटायरमेंट के सात महीने बाद भी ठाकुर राम सिंह की राज्य निर्वाचन आयुक्त की कुर्सी बरकरार है तो इसकी वजह यह है कि सरकार ने रिटायरमेंट के बाद नए निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग तक पद पर बने रहने की मियाद छह महीने से बढ़ाकर एक साल कर दिया है। पुराने नियमों के तहत रिटायरमेंट के बाद निर्वाचन आयुक्त अधिकतम छह महीने तक कुर्सी पर बने रह सकते थे। इस हिसाब से राम सिंह को नवंबर में कुर्सी छोड़ देनी थी। क्योंकि, मई 2022 में वे रिटायर हुए थे। मगर इस नियम में सरकार ने संशोधन कर एक साल कर दिया है। याने राम सिंह अब अगले साल मई तक राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रह सकते हैं। इस दौरान उन्हें वेतन से लेकर सारी सुविधाएं मिलती रहेंगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पद है इसलिए इसे खाली नहीं रखा जा सकता। प्रोटोकॉल और वेतन, सुविधाओं के मामले में यह हाईकोर्ट के जस्टिस के समकक्ष पद है। वैसे भी, राम सिंह पोस्टिंग के मामले में किस्मती अधिकारी माने जाते हैं। कलेक्टरी में रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस उनके आसपास नहीं फटकते। रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर के वे लगातार 11 साल कलेक्टर रहे। इतने लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में किसी आईएएस ने कलेक्टरी नहीं की है।

नए निर्वाचन आयुक्त-2

ठाकुर राम सिंह जब इस साल मई में राज्य निर्वाचन आयुक्त से रिटायर होने वाले थे, तब चर्चा थी कि डीडी सिंह को इस पद पर पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी जाएगी। मगर छह महीने निकल गया...डीडी सिंह की अटकलें आदेश में परिवर्तित नहीं हो पाई। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही कि डीडी सिंह सरकार के भरोसेमंद अधिकारी हैं। सरकार ने सीएम सचिवालय के साथ ही सिकरेट्री टाईबल और जीएडी की जिम्मेदारियां दे रखी हैं। सीएम सचिवालय में उनके होने के सियासी मायने भी हैं। ऐसे में, नहीं लगता कि डीडी सिंह को सरकार वहां से हटाकर निर्वाचन में भेजना चाहेगी। और भेजना ही होता तो अभी तक वेट नहीं करती। सरकार ने ठाकुर राम सिंह को अघोषित एक्सटेंशन दिया तो इसके कोई निहितार्थ होंगे। बहरहाल, नए राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए अब आबकारी सचिव निरंजन दास की चर्चा शुरू हो गई है। निरंजन अगले महीने 31 जनवरी को रिटायर होंगे। याने करीब डेढ़ महीने बाद। अब देखना है, सरकार निरंजन के नाम पर मुहर लगाती है या किसी और को निर्वाचन आयुक्त की कमान सौंपेगी।

सूचना आयोग का वेट

राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के साथ ही सूचना आयुक्त का एक पद खाली है। दोनों पदों के लिए विज्ञापन की प्रक्रिया पूरी हो गई है। सौ के करीब लोगों ने इन पदो ंके लिए अप्लाई किया है। अटकलों के मुताबिक सीआईसी का पद किसी रिटायर नौकरशाह को दिया जा सकता है तो आयुक्त का पद किसी पत्रकार को। हालांकि, अप्लाई करने वालों में रिटायर अधिकारियों, वकीलों, पत्रकारों और समाज सेवियों ने आवेदन किया है। मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत और आयुक्त अशोक अग्रवाल के पिछले महीने रिटायर होने के बाद से ये पद खाली हैं। जैसे संकेत मिल रहे हैं, दोनों पदो ंके लिए कोई जल्दीबाजी नहीं है। हो सकता है, 2 जनवरी से विधानसभा का शीतकालीन सत्र प्रारंभ हो रहा है। उस दौरान नेता प्रतिपक्ष भी रायपुर में मौजूद रहेंगे। हो सकता है, उसी समय इस पर मुहर लगाया जाए। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष कमेटी के मेम्बर होते हैं मगर होता वही है, जो सरकार चाहती है। नेता प्रतिपक्ष की सिर्फ औपचारिकता होती है।

मंदिरों में रौनक

वैसे तो हिन्दू धर्म में महादेव को देवों का देव माना जाता है...ब्रम्हा, विष्णु से उपर। शिवपुराण कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने भगवान शिव के प्रति आस्था और तेज कर दिया है। उनके रायपुर के कार्यक्रम के बाद छत्तीसगढ़ के शिव मंदिरों में गजब की रौनक बढ़ी है। आमतौर पर पहले सोमवार को शिव मंदिरों में चहल-पहल रहती थी। बाकी दिन पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या नगण्य रहती रहती थीं। अब सातों दिन। पंडित प्रदीप मिश्रा ने लोगों से कहा...एक लोटा जल, सारी समस्याओं का हल, उसके बाद शिव मंदिरों में जल चढ़ाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आरक्षण संशोधन विधेयक को राज्यपाल विधानसभा को लौटाएगी या फिर राष्ट्रपति को भेजेंगी?

2. शंटेड अफसर और पुराने अखबार एक समान क्यों कहे जाते हैं?


शनिवार, 10 दिसंबर 2022

एक अफसर, दो कलेक्टर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 11 दिसंबर 2022

एक अफसर, दो कलेक्टर

हेडिंग से आप चौंकिये मत! ये बिल्कुल सही है। छत्तीसगढ़ में नए गठित पांच जिलों में कमोवेश यही स्थिति है...जिला दो, कलेक्टर दो और आफिस एवं अफसर एक। दरअसल, सितंबर में नए जिले तो बन गए मगर अभी तक आफिसों का बंटवारा नहीं हुआ और न अफसरों की पोस्टिंग। ऐसे में, हो ये रहा कि एक अफसर से दोनों कलेक्टरों को काम चलाना पड़ रहा है। मसलन, पीडब्लूडी के ईई पुराने जिले में हुकुम बजा रहे तो नए जिले में भी। कलेक्ट्रेट में हफ्ते में एक दिन टाईम लिमिट याने टीएल मीटिंग होती है। सूबे के सरकारी दफ्तरों में एक तो पांच दिन का वीक हो गया है, उपर से अफसरों का दो दिन दो जिले की टीएल मीटिंग में निकल जा रहा। अधिकारियों को कभी पुराने जिले के कलेक्टर बुलाते हैं तो कभी नए जिले के...अफसरों का पूरा दिन दोनों जिला मुख्यालयों के दौड़ भाग में निकल जा रहा है। ज्ञात है, सूबे में पांच नए जिले बने हैं, उनमें मोहला-मानपुर, खैरागढ़-छुईखदान-गुंडरदेही, सारंगढ़-बिलाईगढ़, सक्ती और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर शामिल है। राजस्व और जीएडी विभाग को इसे संज्ञान में लेते हुए आफिसों का बंटवारा कर देना चाहिए।

तीन कलेक्टर, कलेक्ट्रेट तय नहीं

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला अस्तित्व में आए लगभग तीन बरस हो गए। इस दरम्यान तीन कलेक्टर आए और चले गए। शिखा राजपुत पहली कलेक्टर रहीं। फिर, डोमन सिंह। उनके बाद नम्रता गांधी। और अब ऋचा प्रकाश चौधरी चौथी कलेक्टर। मगर अभी तक यह तय नहीं हो सका कि कलेक्ट्रेट किधर बनेगा। असल में तीन ब्लॉकों को मिलाकर जीपीएम जिला बना है। सो, जिला मुख्यालय बनाने को लेकर खींचतान मची हुई है। गौरेला में हालांकि, पहले से कुछ ठीक-ठाक सुविधाएं हैं। गुरूकुल में जिला मुख्यालय बनाने की तैयारी हो रही है। मगर अधिकारिक तौर पर अभी कुछ नहीं। गौरेला से मरवाही की दूरी करीब 35 किलोमीटर है। जाहिर है, गौरेला में कलेक्ट्रेट बनने से मरवाही वाले खुश नहीं होंगे। मरवाही महंत दंपति का संसदीय इलाका है। सो, प्रेशर दाउ पर भी है। अब देखना है, कलेक्ट्रेट आखिरकार कहां फायनल होता है।

24 कैरेट के कलेक्टर

छत्तीसगढ़ के कलेक्टरों की प्रतिष्ठा कितनी रह गई है और क्या अपनी स्थिति को लेकर वे खुद जिम्मेदार नहीं है...इस पर बाद में कभी। मगर अभी आपको राज्य बनने से जस्ट पहले हम मध्यप्रदेश के समय का वाकया बता रहे हैं। तब बिलासपुर सियासी द्ष्टि से काफी संजीदा और वजनदार इलाका माना जाता था। संभाग से छह से सात कबीना मंत्री होते थे। खुद बिलासपुर से ही तीन-चार। सबसे अपने-अपने गुट। जब इन मंत्रियों, नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में अराजकता बढ़ने लगी तो सीएम दिग्विजय सिंह ने 1998 में शैलेंद्र सिंह को कलेक्टर और विजय यादव को एसपी बनाकर भेजा। शैलेंद्र और विजय ने मिलकर दो साल में सब ठीक कर दिया। कांग्रेस नेताओं को भी जेल भेजने में दोनों ने गुरेज नहीं किया। मगर वे इसलिए ऐसा कर पाए कि खुद 24 कैरेट के थे। 20 कैरेट, 22 कैरेट के अफसर होंगे, तो नेता हॉवी होंगे ही। बिलासपुर जिले में एक पानी वाले कलेक्टर की और सुनिये। नाम था उदय वर्मा। बात पुरानी है...तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह तब बिलासपुर के चकरभाटा हवाई पट्टी पर आने वाले थे। सीनियर मंत्री चित्रकांत जायसवाल ने किसी बात पर उदय वर्मा को झिड़क दिया। उदय वर्मा सीएम को रिसीव करना छोड़ हवाई पट्टी से वापिस आ गए। बाद में अर्जुन सिंह ने उदय वर्मा को बुलाकर बात की। वर्मा बाद में भारत सरकार में कई साल तक अहम विभागों के सिकरेट्री रहे।

आईपीएस अवार्ड

राज्य प्रशासनिक सेवा के 2008 बैच के अधिकारियों को आईएएस अवार्ड करने डीपीसी का प्रासेज शुरू गय है। मगर प्रमोशन के मामले में राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की स्थिति ठीक नहीं है। रापुसे में अभी तक 98 बैच के सभी अधिकारियों को आईपीएस अवार्ड नहीं हो पाया है। इस बैच के सिर्फ विजय अग्रवाल, राजेश अग्रवाल और रामकृष्ण साहू को आईपीएस मिल पाया है। अभी आठ अफसर बचे हुए हैं। याने राप्रसे की तुलना में रापुसे प्रमोशन में एक दशक पीछे चल रहा है। बहरहाल, रापुसे अधिकारियों की नजर अब कैडर रिव्यू पर टिकी है। छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले बन गए हैं। लिहाजा, अब कैडर बढ़ाने एमएचए तैयार हो जाएगा।

परमानेंट होम सिकरेट्री!

92 बैच के आईपीएस अरुणदेव गौतम ने गृह सचिव के तौर पर पूर्व डीजीपी अमरनाथ उपध्याय का रिकार्ड ब्रेक कर दिया है। उपध्याय छह साल तक गृह सचिव रहे। गौतम का गृह सचिव के रूप में सात साल हो गया है। पिछले सरकार से वे मंत्रालय में मोर्चा संभाले हुए हैं। बीच में कुछ दिन के लिए पीएचक्यू गए मगर फिर उन्हे मंत्रालय भेज दिया गया। अब तो उनके मित्र भी चुटकी लेने लगे हैं...गौतम को परमानेंट होम सिकरेट्री घोषित कर देना चाहिए। हालांकि, इसमें एक ट्वीस्ट यह भी है कि उपध्याय सिकरेट्री होम से डीजी पुलिस बनकर पुलिस मंत्रालय से पुलिस मुख्यालय लौटे थे। मगर इस संयोग को दोहराने में अभी टाईम है। अशोक जुनेजा अगस्त 2024 तक पुलिस प्रमुख रहेंगे। जुनेजा के बाद 90 बैच के राजेश मिश्रा जनवरी 2024 में रिटायर हो गए होंगे। 91 बैच के लांग कुमेर भी नागालैंड में रिटायर होकर एक्सटेंशन पर डीजीपी हैं। याने जुनेजा के बाद 92 बैच को डीजीपी बनने का मौका मिलेगा। इस बैच में पवनदेव भी हैं। पवनदेव और गौतम में से कोई एक जुनेजा के बाद डीजीपी बनेगा। दोनों का टाईम भी लंबा है। पवनदेव का रिटायरमेंट जुलाई 2028 है तो गौतम का जुलाई 2027।

सीएस-डीजीपी की जोड़ी

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और डीजीपी अशोक जुनेजा लंबे समय बाद एक साथ बस्तर के नारायणपुर में एक साथ दिखे। मौका था नक्सलियों के गढ़ में सड़क निर्माण के निरीक्षण का। सीएस कमीज की आस्तिन चढ़ाए हुए थे तो डीजीपी फुल वर्दी में। फोटो और वीडियो में दोनों के बॉडी लैंग्वेज...मुख मुद्रा से प्रतीत हो रहा था...ललकारने के अंदाज में...मसलन नक्सलियों के खिलाफ बड़ा कुछ होने वाला है। बता दें, अमिताभ और अशोक दोनों न केवल एक ही बैच के आईएएस, आईपीएस हैं, बल्कि मध्यप्रदेश में राजगढ़ जिले में एक साथ कलेक्टर-एसपी रह चुके हैं। और अब छत्तीसगढ़ में सीएस और डीजीपी हैं।

कर्मचारियों के लिए गुड न्यूज

फरवरी में पेश होने वाले राज्य के बजट में अनियमित कर्मचारियों के लिए गुड न्यूज हो सकता है। करीब डेढ़ लाख अनियमित कर्मियों को रेगुलर करने इस बजट में ऐलान हो सकता है। जाहिर है, बजट की तैयारी प्रारंभ हो चुकी है। इसमें अनियमित कर्मचारियों के रेगुलर करने कितनी धनराशि की जरूरत प़ड़ेगी, इस पर विचार किया जा रहा है। मुख्यमत्री भूपेश बघेल ने पिछले दोनों बजट में शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए बड़ी घोषणा की थी। 2021 के बजट में शिक्षाकर्मियों का संपूर्ण संविलियन और 2022 के बजट में ओल्ड पेंशन शुरू करने का। अनियमित कर्मचारियो को भी इस बजट से काफी उम्मीदें हैं। इससे पहले रमन सिंह की सरकार ने 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले अनियमित कर्मचारियों का नियमितिकरण किया था। 2018 में भी अनियमित कर्मचारी बाट जोहते रह गए मगर रेगुलर नहीं हो पाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस नए जिले में 35 फीसदी के कमीशन पर फर्नीचर परचेज किया जा रहा?

2. कलेक्टर, एसपी की लिस्ट अब विधानसभा के शीत्र सत्र के बाद निकलेगी या उससे पहले?



शनिवार, 3 दिसंबर 2022

7 बैच के 7 सिकरेट्री

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 4 दिसंबर 2022

7 बैच के 7 सिकरेट्री

छत्तीसगढ़ में अगले महीने सात और आईएएस अफसर सिकरेट्री बन जाएंगे। दरअसल, 2007 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के सातों आईएएस अधिकारियों का जनवरी में सिकरेट्री पद पर प्रमोशन ड्यू हो जाएगा। सामान्य प्रशासन विभाग में इन अधिकारियों के प्रमोशन की फाइल आगे बढ़ गई है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद प्रमोशन का प्रॉसेज कंप्लीट हो जाएगा। जीएडी के सूत्रों की मानें तो सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी के पहले हफ्ते में इन अफसरों को न्यू ईयर गिफ्ट मिल सकता है। 2007 बैच में शम्मी आबिदी, केसी देव सेनापति, बसवराजू एस, हिमशिखर गुप्ता, मोहम्मद कैसर हक, यशवंत कुमार और जनकराम पाठक षामिल हैं। इनमें बसवराजू डेपुटेशन पर कर्नाटक में पोस्टेड हैं। बाकी सभी छत्तीसगढ़ में हैं। कुछ मिलाकर सचिवों की संख्या अब 43 हो जाएगी। इनमें से दस सिकरेट्री डेपुटेशन पर हैं। तब भी छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के लिए ये बड़ी संख्या है। बता दें, डेपुटेशन पर पोस्टेड सिकरेट्र्री में सोनमणि बोरा, डॉ0 रोहित यादव, ऋतु सेन, अविनाश चंपावत, अमित कटारिया, संगीता पी, मुकेश बंसल, रजत कुमार, अलेक्स पाल मेनन और श्रुति सिंह शामिल हैं।

भुवनेश पर भरोसा

2006 बैच के आईएएस अधिकारी भुवनेश यादव के पास पहले से महिला बाल विकास, समाज कल्याण और उच्च शिक्षा विभाग था। सरकार ने अब उद्योग विभाग की कमान सौंप दी है। अब वे चार विभागों के सिकरेट्री हो गए हैं। चारों विभाग शिक्षा, सोशल और इंडस्ट्री सेक्टर से जुड़े हुए हैं। इंडस्ट्री अपने आप में बड़ा एक्सपोजर वाला विभाग माना जाता है। आने वाले समय में सूबे में इंवेस्टर मीट होने वाला है, इसका आयोजन भी उनके लिए चुनौती होगी।

ब्रम्हानंद की मुश्किलें

भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए पांच दिसंबर को वोट पड़ेंगे। वोटिंग पूरे होने के साथ ही बीजेपी प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम की मुश्किलें बढ़ सकती है। मानकर चलिए, झारखंड पुलिस भी वोटिंग से पहले कार्रवाई की संजीदगी को समझती है। मतदान के बाद वो भी फ्री होगी तो वहीं छत्तीसगढ़ पुलिस भी वोटिंग की बाट जोह रही है। ब्रम्हानंद ने नामंकन फार्म के साथ भरे शपथ पत्र में अपराध दर्ज होने की जानकारी छिपाई है। इस मामले में पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकती है। कुल मिलाकर उपचुनाव का रिजल्ट कुछ भी आए, ब्रम्हानंद को कुछ दिन कठिनाइयों का सामना करना होगा।

निरंजन और धनंजय

सिकरेट्री लेवल के दो आईएएस अधिकारी अगले जनवरी और फरवरी में रिटायर हो जाएंगे। इनमें निरंजन दास आबकारी आयुक्त और आबकारी सचिव, पंजीयन तथा नान जैसे अहम महकमा संभाल रहे हैं। निरंजन का रिटायरमेंट जनवरी में है तो धनंजय देवांगन उसके एक महीने बाद फरवरी में रिटायर होंगे। निरंजन के बारे में ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें इसी विभाग में संविदा नियुक्ति मिल सकती है। मगर लाख टके का सवाल है कि वर्तमान समय में क्या वे संविदा नियुक्ति चाहेंगे। हमारे खयाल से तो बिल्कुल नहीं। इसके उलट वे भगवान से रोज प्रार्थना कर रहे होंगे, हे ईश्वर! किसी तरह जनवरी निकाल दें। निरंजन दास की तुलना में धनंजय देवांगन को कोई खास पोस्टिंग नहीं मिल पाई। जबकि, वे कांग्रेस नेता के दामाद हैं और अच्छे अधिकारी भी। मगर किस्मत अपनी-अपनी।

रामगोपाल की पोस्टिंग

राज्य सरकार ने रामगोपाल गर्ग को सरगुजा पुलिस रेंज का प्रभारी आईजी अपाइंट किया है। 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी रामगोपाल कुछ महीने पहले सीबीआई से डेपुटेशन से लौटे हैं। कह सकते हैं, उन्हें बड़ा जंप मिला है। अभी 2005 बैच आईजी प्रमोट होने वाला है। 2006 बैच को पीछे छोड़ते हुए 2007 बैच के रामगोपाल को रेंज मिल गया। उन्हीं के बैच के दीपक झा बलौदा बाजार जैसे छोटे जिले में एसएसपी हैं, तो जीतेंद्र मीणा जगदलपुर के कप्तान। हालांकि, रामगोपाल की अच्छे अधिकारियों में गिनती होती है।

कवासी अध्यक्ष?

पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम का कार्यकाल खतम हो गया है। इस समय वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। मरकाम के बाद कौन...? यह सवाल कांग्रेस नेताओं के मन-मतिष्क में कौंध रहा है। वैसे, भीतर की खबर यह है कि कांग्रेस किसी आदिवासी चेहरे को ही फिर पार्टी की कमान सौंपेगी। और यह चेहरा मंत्री कवासी लखमा का हो सकता है। हालांकि, बीजेपी ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। मगर कांग्रेस के साथ ओबीसी को साधने जैसी अब कोई विवशता नहीं है। सीएम भूपेश बघेल खुद ओबीसी वर्ग से हैं तो ओबीसी का आरक्षण 27 फीसदी बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर सरकार ने ट्रंप कार्ड चल दिया है। बात कवासी की तो बीजेपी की तरह कांग्रेस पार्टी के पास भी कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है। कवासी मंत्री रहने के साथ ही पीसीसी की कमान भी संभाल सकते हैं। वैसे भी अगला चुनाव भूपेश बघेल के नाम पर ही होना है।

बारनवापारा में सावधानी...

बारनवापारा सेंचुरी अगर आप जा रहे हैं तो बेहद सावधानी के साथ जाइये। पिछले कुछ महीनों में हाथियों के अचानक गाड़ियों के सामने आ जाने की कई घटनाएं हुई हैं। लास्ट संडे को रायपुर की दो फेमिली दो गाड़ियों में देर बारनवापारा गई थी। देर शाम बड़ी घटना होते-होते बची, जब रोड पर गाड़ी के आगे-पीछे हाथियों का झुंड आकर खड़ा हो गया। फॉरेस्ट के अधिकारी भी मानते हैं कि डेढ़ से दो दर्जन हाथियों का समूह अब बारनवापारा को स्थायी ठिकाना बना लिया है। इसलिए, रात में तफरी तो बिल्कुल नहीं।

तहसील सिस्टम पर सवाल

राजधानी में एक ही जमीन तीन लोगो को बेचने के मामले में तरकश में खबर छपने पर रजिस्ट्री अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर लिया है। मगर इस प्रकरण ने तहसीलदारों के बेलगाम स्वेच्छाचारिता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जाहिर है, मनमोहन सिंह गाबा की रजिस्ट्री मार्च में हुई थी। लेकिन तहसीलदार ने इसका नामांतरण नही किया। वही जमीन मई में रूपेश चौबे के नाम से दूसरी बार रजिस्ट्री हो गई। दूसरे रजिस्ट्री का तहसीलदार ने तुरंत नामांतरण कर दिया। जबकि, दूसरे रजिस्ट्री में न सहकारी सोसायटी का एनओसी था, न टीडीएस काटा गया। हास्यपद यह कि दूसरी रजिस्ट्री पार्किंग में हुई। स्टांप शुल्क की चोरी और बी1 में कैफियत में कामर्सियल लैंड को मिटाया भी गया है। रजिस्ट्री के साथ लगे पार्टनरशिप में दो पार्टनर का नाम है जबकि, विक्रेता कोई और। फिर भी तहसीलदार के न्यायालय ने लंबा चौड़ा कई पेज का आदेश पारित कर दूसरी रजिस्ट्री को सही ठहरा दिया। आदेश का सार ये था कि दूसरे रजिस्ट्री के साथ लगे कंपनी के बोर्ड रेजोल्यूशन में सारे डायरेक्टर के दस्तखत है जबकि, पहले रजिस्ट्री में एक ही डायरेक्टर ने बोर्ड रेसोल्शन का सर्टिफाइड जारी किया है। तहसीलदार कई दिनों के एक्सरसाइज के बाद भी ये भूल गया कि ये तो कंपनी ही नही है। दो पार्टनर का पार्टनरशिप है। पार्टनरशिप में ना तो बोर्ड होता है और ना कोई डायरेक्टर होते हैं। ना बोर्ड रेजोल्यूशन होता है। अगर ये कंपनी होती तो भी रजिस्ट्री को सही गलत ठहराने का पावर केवल सिविल कोर्ट को है। अगर यही काम कोई ज्यूडिशियरी का न्यायाधीश कर देता तो हाईकोर्ट अब तक उसको नौकरी से बेदखल कर चुकी होती। पर तहसीलदार को सफाई से इस मामले में बचा लिया गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भोजराम पटेल महासमुंद एसपी से हट गए तो उन्हें खुश होना चाहिए या दुखी?

2. क्या एसपी की लिस्ट भानुप्रतापपुर उपचुनाव के बाद अगले हफ्ते निकल जाएगी?