रविवार, 26 जुलाई 2020

वक्त होत बलवान

तरकश, 26 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
कहते हैं, राजनीत में किस्मत और वक्त का बड़ा रोल होता है। कांग्रेस नेत्री करूणा शुक्ला से ज्यादा इसे कौन समझ सकता है। अटलबिहारी बाजपेयी सरीखे लोकप्रिय नेता की भतीजी के नाते स्वाभाविक तौर पर बीजेपी में उनका वजन तो होना ही था। जाहिर है, रमन सिंह की पहली पारी में वे बेहद प्रभावशाली रहीं। खासकर, 2004 में कोरबा लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उनका सियासी ग्राफ तेजी से उपर उठा। 2007 के बाद एक समय ऐसा भी आया, जब उनके मुख्यमंत्री बनने की चर्चाएं शुरू हो गई थी। लोग खुलेआम कहने लगे…करूणा दीदी किसी भी दिन सूबे की शीर्ष कुर्सी पर पहुंच सकती हैं। इसका खामियाजा करूणा शुक्ला को उठाना पड़ा। 2009 की लोकसभा चुनाव हार गईं। इसके बाद सिचुएशन ऐसी निर्मित हुई कि बीजेपी छोड़कर उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन कर लिया। सरकार ने अब उन्हें समाज कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया है। इसे ही वक्त कहते हैं…कभी सीएम के लिए नाम चला था, उन्हें अब समाज कल्याण से संतोष करना पड़ा।

धमाकेदार वापसी

छत्तीसगढ़ की राजनीति में सुभाष धुप्पड़ का नाम अपरिचित नहीं है। राज्य बनने से पहिले जिन्होंने दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल का दौर देखा है, वे सुभाष धुप्पड़ और राजेंद्र तिवारी के नाम से भली-भांति वाकिफ होंगे। दोनों विद्या भैया के लेफ्ट, राइट माने जाते थे। विद्या भैया के राज में सुभाष ने पावर का भरपूर इन्जाॅय किया। लेकिन, कभी कोई पद नहीं मिला। राज्य बनने के बाद तीन साल अजीत जोगी और उसके बाद 15 साल बीजेपी सत्ता में रही। इस दौरान सुभाष गुमनामी में ही रहे। लेकिन, भूपेश बघेल की सरकार में उन्होंने धमाकेदार वापसी की। कांग्रेस के लोग ही कह रहे हैं, विद्या भैया के समय उन्हें लाल बत्ती का सुख नहीं मिला। भूपेश बघेल ने उन्हें रायपुर विकास प्राधिकारण का चेयरमैन बनाकर एक महत्वपूर्ण सरकारी प्लेटफार्म दे दिया। धमाकेदार वापसी हुई न यह!

कोरोना में लाल बत्ती?

लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट की आस लगाए बैठे कांग्रेस नेताओं को कोरोना ने बड़ा झटका दे दिया। इस उम्मीद में कांग्रेस नेताओं की सुबह होती थी कि शायद लिस्ट आ जाए। मगर कोरोना के बढ़ते खतरों ने उनकी उम्मीदों को अब फीका कर दिया है। दरअसल, सूबे में कोरोना का संक्रमण जिस तरह फैल रहा, उससे सरकार भी चिंतित है। सरकार की टाॅप प्रायरिटी है कि किसी तरह कोरोना का फैलाव रोका जाए। ऐसे में, यह स्पष्ट है कि अब कोरोना के बाद ही कुछ हो पाएगा।

तीन आईएएस होंगे विदा

छत्तीसगढ़ कैडर के 3 आईएएस इस महीने 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा नाम एन बैजेंद्र कुमार का है। 85 बैच के आईएएस बैजेंद्र डेपुटेशन पर NMDC के सीएमडी हैं। उनके अलावा एमएस बंजारे और एल एन केन भी इसी महीने विदा लेंगे।

एसपी के ट्रांसफर?

पुलिस अधीक्षकों की एक छोटी लिस्ट निकलने की बड़ी चर्चाएं हैं। इनमें दो-से-तीन एसपी बदल सकते हैं। चेन बनने के चक्कर में इसमें एकाध नाम और जुड़ जाए, तो आश्चर्य नहीं। दंतेवाड़ा के एसपी डाॅ0 अभिषेक पल्लव का तीन साल हो गया है। दंतेवाड़ा में उन्होंने अच्छा काम किया है और सरकार के गुडबुक में भी हैं, तो कोई ठीक-ठाक जिला ही मिलेगा। उनकी जगह पर दंतेवाड़ा कौन जाएगा, इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं। इसमें नारायणपुर एसपी मोहित गर्ग का नाम भी आ रहा है। अगर गर्ग दंतेवाड़ा गए तो फिर नारायणपुर खाली होगा। संकेत हैं, सरकार मंुगेली एसपी डी. श्रवण के साथ कुछ करेगी। उनका जरा गड़बड़ हो गया है….कोरबा और जगदलपुर एसपी रहने के बाद मुंगेली का एसपी बनना। हालांकि, कोरोना का संक्रमण तेज होने के कारण अब नहीं लगता कि जल्दी में कोई लिस्ट निकल पाएगी।

चूके जनाब पोस्टिंग से?

जशपुर और सूरजपुर के एसपी रह चुके एक आईपीएस को पिछली लिस्ट में कोंडागांव के एसपी बनाने की बात हुई थी। लेकिन, बताते हैं वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। और, मामला गड़बड़ा गया। डी श्रवण की तरह वे अगर कोंडागांव चल देते तो आॅॅफ ट्रेक नहीं होते। पोस्टिंग का सिद्धांत है कि ट्रेक छूटनी नहीं चाहिए। ट्रेक पर रहने का बड़ा फायदा यह होता है कि आप सरकार के सीधे कंटेक्ट में रहते हैं।

कटघोरा माॅडल

राजधानी रायपुर जिस तरह कोरोना का हाॅट स्पाॅट बना है, वह सचमुच चिंतनीय है। अब ये कैसे हुआ…क्यों हुआ…आपदा के समय इस पर बातें नहीं होनी चाहिए। मगर ये अवश्य है कि राजधानी में बेफिजूल की गतिविधियां चालू हुई है, उसे रोकना होगा। कोरोना से बेपरवाह लोगों ने पार्टी, पिकनिक, जश्न प्रारंभ कर दिया। जाहिर है, इंडियन लोग नियम-कायदों में जरा कम विश्वास रखते हैं। बिना कार्रवाई सुनवाई होती नहीं। दो दिन पहले ही दर्जन भर लड़के-लड़कियां देर रात हुक्का और शराब पार्टी करते मिले। वो भी लाॅकडाउन में। इससे समझा जा सकता है, राजधानी की क्या स्थिति है। कटघोरा में जिस तरह कोरोना से निबटा गया, रायपुर में भी वैसा ही दम खम दिखाना होगा। हालांकि, रायपुर बड़ा है। 267 कंटेनमेंट जोन हैं। इसमें पूरी मशीनरी को झोंकना होगा। वरना, स्थिति और बिगड़ेगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. 31 जुलाई को रिटायर होने के बाद एन बैजेंद्र कुमार को राज्य या केंद्र सरकार में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी?
2. क्या सरकार किसी कलेक्टर को बदलने पर विचार कर रही है?

रविवार, 19 जुलाई 2020

भेड़िया के साथ सिंह!

तरकश, 19 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
संसदीय सचिवों को मंत्रियों के साथ अटैच करने में सरकार ने जोड़ी खूब बनाई है। महिला बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री अनिला भेड़िया के साथ रश्मि सिंह को संबद्ध किया गया है। रश्मि छात्र नेत्री रही हैं…छात्र नेताओं का जब जलजला होता था, उस दौरान वे बिलासपुर जीडीसी की प्रेसिडेंट रहीं। उनके हसबैंड आशीष सिंह बिलासपुर युनिवर्सिटी के फस्र्ट प्रेसिडेंट। पिता भी विधायक और ससुर भी विधायक रहे। कठिन हालात में भी तखतपुर सीट निकाल लीं। ऐसे में, भेड़िया के साथ सिंह को अटैच करने पर सियासी गलियारों में लोग चुटकी तो लेंगे ही। इसी तरह विकास उपाध्याय गृह और पीडब्लूडी मिनिस्टर ताम्रध्वज साहू के साथ अटैच किए गए हैं। विकास बिना किसी पद के झंका-मंका बनाने में माहिर माने जाते हैं, अब तो उनके पास गृह और पीडब्लूडी का लेवल होगा। सरकार ने बीजेपी के बड़े नेता गौरीशंकर अग्रवाल को हराने वाली शकुंतला साहू को भी मौका दिया। उन्हें रविंद्र चैबे के साथ संबद्ध किया गया है। ठीक भी है। चैबेजी अदब वाले कूल नेता हैं। शकुंतला ने हाल में किसी आईपीएस अफसर को चमका डाली थी। अब बैलेंस हो जाएगा।

जल्द ही दूसरी लिस्ट

निगम-मंडलों की पहली सूची जारी हो गई। जिन्हें पोस्ट मिल गया, वे खुश हैं और जिन्हें नहीं मिला वे मायूस। लेकिन, निराश होने की जरूरत नहीं। अब भी कई बडे निगम-बोर्ड खाली हैं। सीएसआईडीसी, व्रेबरेज कारपोरेशन, बीज विकास निगम, सनिर्माण, कर्मकार मंडल, टूरिज्म बोर्ड मलाईदार वाली जगह मानी जाती है। हालांकि, सबसे बड़ा मार्कफेड है और लघु वनोपज संघ। मार्कफेड साल में 15 हजार करोड़ का कारोबार करता है। और लघु वनोपज संघ भी कम नहीं है। लेकिन, सहकारी संस्था होने के कारण दोनों में चुनाव होते हैं। पिछली सरकार ने गुप्ता को बिना चुनाव के मार्कफेड का चेयरमैन बना दिया था। अब देखना है, ये सरकार क्या रूख अपनाती है। बहरहाल, इनके अलावे और कई छोटे आयोग भी खाली है। धीरे-धीरे सरकार और भी लिस्ट जारी करेगी।

नियुक्तियां का महीना

निगम-मंडलों के साथ कई आयोगों में नाॅन पालिटिकल नियुक्तियां भी होने वाली है। निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग, राज्य सूचना आयोग, हिन्दी ग्रंथ अकादमी शामिल जैसे कई जगहों पर पद खाली हैं। विवि नियामक आयोग के चेयरमैन समेत सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राज्य सूचना आयोग में मेम्बर के एक पद छह महीने से रिक्त हैं। सरकार बदलने के बाद हिन्दी ग्रंथ अकादमी में अभी किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। इसके साथ अंबिकापुर, बिलासपुर, खैरागढ़, हार्टिकल्चर एवं वानिकी विश्वविद्यालय में कुलपति अपाइंट होने हैं। कुछ नए प्राधिकरण में भी पोस्टिंग होगी। कुल मिलाकर 15 अगस्त तक नियुक्तियां चलती रहेंगी।

कलेक्टर और गोबर

सीएम भूपेश बघेल ने कलेक्टरों से दो टूक कहा है कि गोबर खरीदी का संचालन और निगरानी कलेक्टरों को करनी है। उन्होंने कलेक्टरों को आगाह भी किया है कि इस योजना में कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्हें यह कहने की जरूरत क्यों पड़ी, इसे समझा जा सकता है। दरअसल, कुछ कलेक्टरों को लग रहा…वे बड़े-बड़े काम करने के लिए आईएएस बने हैं, गोबर जैसे वेस्ट मैटेरियल के लिए थोड़े ही। शीर्ष पद से रिटायर एक आईएएस भी मानते हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए यह योजना मिल का पत्थर साबित होगी। लेकिन, तभी जब नेतृत्व सख्ती बरते। वरना, अफसर इसमें रूचि कम दिखाएंगे। सही भी है….विरोधी भी मान रहे हैं कि गोधन योजना सही रूप में अगर जमीन पर उतर गई तो गावों की अर्थव्यवस्था बदल जाएगी। इसमें ऐसे लोगों को काम मिलेगा, जिनके पास गांवों में थोड़ी सी खेती के अलावा और कोई काम नहीं था। कांग्रेस को साफ्ट हिन्दुत्व का राजनीतिक माइलेज मिलेगा, सो अलग।

लाॅकडाउन की जरूरत क्यों?

कोरोना के मामले में छत्तीसगढ़ सबसे सुरक्षित राज्यों में था। लेकिन, लोगों की बेपरवाहियों ने बेड़ा गर्क कर दिया…कोरोना के प्रोटोकाॅल को धता बताते हुए लोग पिकनिक, पार्टी करने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि सूबे में कोरोना का ग्रोथ रेट 14 से 15 फीसदी पहुंच गया है। और, अगले दो महीने में जो प्रोजेक्शन है, उसकी संख्या जानकर लोग हिल जाएंगे। आशंका है कहीं अस्पतालों के कोविड वार्डों में बेडों की संख्या न कम पड़ जाए। ऐसे में, सरकार को चिंता तो होगी ही। सरकार का प्रयास है कि सबसे पहिले लाॅकडाउन के जरिये ग्रोथ रेट को कंट्रोल किया जाए। एक से दो हफ्ते के लाॅकडाउन में उम्मीद है ग्रोथ रेट 15 से घटकर 10 फीसदी पर आ जाएगा। मगर इसमें आम आदमी को भी समझना होगा, जान है तो जहां है।

कलेक्टर की गोंडी

दंतेवाड़ा के नए कलेक्टर दीपक सोनी इन दिनों गोंडी सीख रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बकायदा एक ट्यूटर रख लिया है। हफ्ते में दो दिन एक-एक घंटे वे गोंडी के शब्दों को सीखने के साथ ही गोंडी में बात करने की प्रैक्टिस करते हैं। दीपक से पहले वहां के एसपी डाॅ0 अभिषेक पल्लव ने भी दंतेवाड़ा में ही गोंडी सीखा था। लोकल लैंग्वेज जानने का नतीजा है कि अभिषेक आज की तारीख में बस्तर में सबसे बेस्ट परफर्म कर रहे हैं। फंडा यह है कि जिस इलाके में आपको काम करना है, वहां की बोली, भाषा और संस्कृति से आप वाकिफ नहीं होंगे, तो टेन्योर तो आप पूरा कर लेंगे मगर लोगों का विश्वास नहीं जीत पाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. दो विधायकों के नाम बताईये, जो निष्ठा बदलकर फायदे वाले खेमे में जाना चाहते हंै?
2. छत्तीसगढ़ में लाॅकडाउन एक हफ्ते का ही होगा या आगे और बढ़ेगा?

सोमवार, 13 जुलाई 2020

जय और वीरू की जोड़ी!

तरकश, 12 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
छत्तीसगढ़ की राजनीति में आजकल जय-वीरू की जोड़ी हाॅट टाॅपिक है। मगर बात जब जय-वीरू की आती है तो बरबस ब्यूरोक्रेसी की भी एक जोड़ी जेहन में आ जाती है। आईएएस आरपी मंडल और आईपीएस अशोक जुनेजा की। इस जोड़ी को लोग भूले नहीं हैं। दोनांे बिलासपुर में कलेक्टर, एसपी रहे। इसके बाद दोनों की जोड़ी रायपुर में भी हिट रही। रायपुर में कलेक्टर, एसपी के रूप में दोनों जहां भी निकलते…एक साथ। किसी पर्सनल फ्रेंड के घर जाते तो साथ और दौरे में जाए तो साथ। याद होगा, 2005 में इस जोड़ी को जय-वीरू कहा जाने लगा था। तभी लोग कहने लगे थे कि एक दिन दोनों चीफ सिकरेट्री और डीजीपी बनेंगे। लेकिन, वक्त की बात है। आरपी मंडल पर साईं बाबा की कृपा रही…वे ब्यूरोके्रसी के शीर्ष पद तक पहुंच गए। लेकिन, जुनेजा जनवरी 2019 में ड्यू होने के बाद भी डीजी प्रमोट नहीं हो पा रहे। डीजीपी तो उसके बाद की बात है। जुनेजा की पोस्टिंग हालांकि, वजनदार है। आर्म फोर्सेज के चीफ के साथ एडीजी नक्सल। लेकिन, डीजी नहीं बन पा रहे। जाहिर है, ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही, वीरू के लिए जय क्या कर रहे हैं….उनकी वो सीएस और डीजीपी वाली जोड़ी बन पाएगी?

कप्तानी का रिकार्ड

बात अशोक जुनेजा की कप्तानी की निकली तो आईपीएस अजय यादव का जिक्र लाजिमी है। अजय छत्तीसगढ़ के दूसरे आईपीएस हैं, जिन्हें सूबे के तीनों बड़े जिले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के एसपी रहने का मौका मिला। उनसे पहिले जुनेजा ने तीनों जिलों में कप्तानी की है। हालांकि, जुनेजा का ब्रेक नहीं हुआ। बिलासपुर के बाद वे दुर्ग और फिर वहां से रायपुर आए थे। अजय को इस दौरान कठिन समय का सामना करना पड़ा। बिलासपुर जैसे बड़े जिले के एसपी रहने के बाद उन्हें जांजगीर का एसपी बना दिया गया। वो भी तब जब उनसे छह साल जूनियर बिलासपुर का एसपी था।

बीजेपी में बगावत?

15 साल सत्ता में रहने के बाद 15 सीटों पर सिमट आई भाजपा के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद पार्टी में असंतोष की खाई और चैड़ी हो गई है। इसकी एक ट्रेलर हाल ही में दिखा…राजधानी में पिछले हफ्ते बीजेपी के कुछ असंतुष्ट नेताओं की बैठक हुई। इनमें पिछली भाजपा सरकार के चार पूर्व मंत्री, तीन विधायक भी शामिल हुए। बताते हैं, वरिष्ठ नेताओं ने तय किया कि मरवाही विधानसभा उपचुनाव में वे कोई जिम्मेदारी नहीं उठाएंगे। नेताओं में इस बात का गुस्सा था कि उन्हें यूज एन थ्रो की तरह इस्तेमाल किया जाता है। पद देने का समय आता है तो वरिष्ठ नेताओं को कोई पूछता नहीं। और चुनाव में उपयोग करने प्रभारी बना दिया जाता है। चुनाव के नतीजे अगर पार्टी के पक्ष में रहा तो विजय रैली में बड़े नेता पहुुंच जाते हैं और अगर हार गए तो फिर प्रभारियों पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। दंतेवाड़ा और चित्रकोट विधानसभा उपचुनाव में ऐसा ही हुआ। बस्तर के नेताओं को छोड़कर शिवरतन शर्मा और नारायण चंदेल को प्रभारी बनाकर भेज दिया गया। बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो मरवाही चुनाव में पार्टी की मुश्किलें बढ़ जाएगी।

ताबड़तोड़ छापे

ईओडब्लू, एसीबी में कोरोना और कुछ इंटरनल कारणों के कारण कुछ दिनों से छापे की कार्रवाई थमी हुई थी। इस बीच ईओडब्लू के चीफ भी बदल गए हैं। पता चला है, कुछ दिनों में भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों के यहां ताबड़तोड़ छापे की कार्रवाई शुरू हो सकती है। ईओडब्लू, एसीबी चीफ आरिफ शेख को सरकार ने फ्री हैंड दे दिया है। इसके बाद एजेंसी के अफसरों ने होम वर्क शुरू कर दिया है।

डीपीसी में पेंच

लंबे समय से लटके डीजी की डीपीसी में लगता है अभी और वक्त लगेगा। बताते हैं, निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता ने गृह विभाग को नोटिस दे दी है, डीपीसी में उन्हें भी शामिल किया जाए….भले ही प्रमोशन देने के बाद उनका नाम लिफाफा में बंद कर दिया जाए। सरकार अब लीगल ओपिनियन ले रही है। इसके बाद ही डीपीसी हो पाएगी। तब तक संजय पिल्ले, आरके विज और अशोक जुनेजा को डीजी बनने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी। क्योंकि, अगर डीपीसी में मुकेश गुप्ता का नाम शामिल किया गया तो फिर अशोक जुनेजा के लिए पद नहीं बचेगा। डीजी के तीन ही पद हैं। अगर मुकेश गुप्ता का नाम डीपीसी से बाहर हुआ, तभी जुनेजा का नम्बर लग पाएगा।

लाल बत्ती की लाटरी

निगम, मंडलों की बंटने वाली रेवड़ी को लेकर कांग्रेस नेताओं की उत्सुकता चरम पर पहुंच गई है। हर आदमी जानने को उत्सुक है कि पहली सूची में किन-किनकी लाटरी लगती है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी के बारे में धारणा है कि इसमें कुछ भी हो सकता है। नामंकन के आखिरी दिन बी फार्म तक बदल जाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय टिकिट वितरण में भी ऐसा ही हुआ था। कई दावेदारों को टिकिट मिलते-मिलते कट गई थी। इसलिए, लाल बत्ती के लिए जिसका नाम फायनल बताया जा रहा, वो भी पूरी तरह से अश्वस्त नहीं हैं। हां, ये जरूर संकेत मिल रहे हैं कि सब कुछ ठीक रहा तो दो-एक दिन में लिस्ट जारी हो सकती है।

12 संसदीय सचिव

निगम-मंडलों के साथ ही अब यह निश्चित हो गया है कि 12 संसदीय सचिव भी अपाइंट किए जाएंगे। उन्हें 12 मंत्रियों के साथ अटैच किया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस संसदीय सचिवों के कंसेप्ट का विरोध करती रही है लेकिन, पार्टी के सामने मजबूरी यह है कि चुनाव में बम्पर मेजाॅरिटी आ गया। जितना सोचे, उससे कहीं अधिक। 90 में से 69 विधायक। इनमें कई मंत्री बनने की योग्यता रखते हैं। मगर मंत्री तो 12 ही हो सकते हैं। उससे अधिक नहीं। इसलिए, 12 विधायकों को संसदीय सचिव से संतुष्ट किया जा सकता है। वैसे भी मंत्रियों के लिए 12 ओएसडी के पद क्रियेट किए गए हैं। उनके पास पहले से एक-एक ओएसडी हैं ही। सरकार चाहे तो नए ओएसडी के पदों को संसदीय सचिवों को दिया जा सकता है। इससे संसदीय सचिवों के पद का वजन बढ़ जाएगा।

अब गुड़ गोबर नहीं

बड़ा प्रचलित मुहावरा था…बचपन से सुनते आए थे…गुड़ गोबर हो गया। लेकिन, छत्तीसगढ़ के संदर्भ में इसे बदलना पड़ेगा। अब गोबर पैसे में बिकेगा। मंत्रियों की समिति ने इसका रेट तय कर दिया है। और सीएस की अध्यक्षता में सचिवों की कमेटी फारमेट तैयार कर रही है। समझा जा सकता है, इससे गोबर की अहमियत। बीजेपी के लोग भी मान रहे हैं कि राजनीतिक तौर पर इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा।

वीरता को नमन

आज 12 जुलाई है….जुलाई का यह तारीख हर साल दिमाग में कौंध जाता है। 2009 में इसी दिन राजनांदगांव के जांबाज पुलिस कप्तान विनोद चौबे मदनवाड़़ा के माओवादी हमले में शहीद हो गए थे। बात सिर्फ शहादत की नहीं, और न ही यह कि नक्सली अटैक में वीरगति प्राप्त करने वाले विनोद चौबे देश के पहले एसपी थे। महत्वपूर्ण यह है कि विनोद ने जिस अदम्य वीरता का प्रदर्शन करते हुए नक्सलियों से लोहा लिया….अपने जवानों के साथ मोर्च पर डटे रहे, उसे आज भी लोग भूले नहीं है। एंबुश में उनके ड्राईवर को गोली लग गई थी। उन्होंने खुद गाड़ी चलाते हुए ड्राईवर को हेल्थ सेंटर तक पहुंचा आए। दूसरा कोई एसपी होता तो एंबुश में दोबारा नहीं लौटता। मगर विनोद ड्राईवर को छोड़कर फिर गाड़ी चलाते हुए घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां उनके जवान एंबुश में फंसे हुए थे। अपनी जान की परवाह किए बिना कर्तव्य पथ पर शहीद हो जाने वाले विनोद चौबे की 10 बरस बाद पिछले साल उनकी जन्म स्थली बिलासपुर में वहां की नगर निगम ने आगे बढ़कर एक प्रतिमा स्थापित की। इसके अलावा और कहीं और कुछ नहीं। कायदे से स्कूली पाठ्यक्रम में उन पर चेप्टर होना चाहिए। ताकि, नौनिहालों को पता चले कि छत्तीसगढ़ में ऐसे बहादुर पुलिस अधिकारी भी थे। सभी जिलों की पुलिस लाईनों में उनकी प्रतिमा स्थापित करना चाहिए,…पुलिस के अधिकारी और जवान उसे देखकर गर्वान्वित महसूस कर सकें। सरकार को इस पर सोचना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या लाल बत्ती देने के साथ ही मंत्रिमंडल में भी कोई बदलाव हो सकता है?
2. क्या गोबर खरीदी के फैसले से किसानों के साथ-साथ सरकार को साफ्ट हिन्दुत्व का लाभ मिलेगा?

सोमवार, 6 जुलाई 2020

आईएएस की गिरफ्तारी?

तरकश, 5 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
छत्तीसगढ़ के एक आईएएस के खिलाफ अपराध दर्ज हो गया…सरकार ने बड़ी कार्रवाई भी कर दी। लेकिन, उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। पता चला है, पुलिस जांच के बाद कोर्ट में चालान पेश कर देगी। अब कोर्ट पर निर्भर करेगा कि अफसर को बेल दे या जेल भेज दे। पुलिस के हाथ पीछे करने की एक वजह यह भी है कि मामला आम सहमति का था। व्हाट्सएप पर देर रात तक हुई वार्तालाप और स्माईली का आदान-प्रदान इसकी चुगली कर रहे हैं। दोनों ओर से खतरनाक टाईप की फोटुओं का आदान-प्रदान किया गया है कि जांच में शामिल महिला अधिकारी भी झेंप गईं। बहरहाल, केस अब इस स्थिति में पहुंच गया है कि अफसर का ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

पीसीसीएफ की मुसीबत

सूबे के अधिकारियों में पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी का पलड़ा सबसे भारी माना जाता है। दरअसल, वे माटीपुत्र हैं….प्रैक्टिकल भी। रिजल्ट भी देते हैं। लेकिन, लोग चैंके तब, जब उनके सबसे विश्वसनीय रायपुर के सीसीएफ एसएसडी बड़गैया का कांकेर ट्रांसफर हो गया। हालांकि, कांकेर भी वन विभाग का अहम सर्किल है। लेकिन, राजधानी रायपुर की बात अलग है। बड़गैया का कांकेर जाना निश्चित तौर पर पीसीसीएफ को अखड़ा होगा। क्योंकि, अब प्रोटोकाॅल समेत अन्य सारा लोड अब पीसीसीएफ पर आ जाएगा। दरअसल, पीसीसीएफ सहज उपलब्ध होते हैं…और लोग छोटे से काम के लिए उन्हें फोन खड़का डालते हैं।

एडीजी का लकी बंगला

एक एडीजी का जीई रोड से लगा शांति नगर का बंगला बेहद लकी था। इसी बंगले से वे बिलासपुर का आईजी बनकर गए। और, भी कई गुड न्यूज इस बंगले से उन्हें मिले थे। उनके बिलासपुर जाने के बाद समीर विश्नोई और उनके बाद शिखा राजपूत को यह मकान आबंटित हो गया। शिखा पिछले साल बेमेतरा की कलेक्टर बनकर गई तो एडीजी ने फिर भिड़-भाड़कर यह बंगला अपने नाम एलाॅट कराया। मकान खाली कराने के लिए उन्हें कम पापड़ नहीं बेलने पड़े। एक शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स ने इसमें उनकी मदद की। एडीजी ने बंगले का कंप्लीट जीर्णोद्धार कराया। 2028 तक उनकी सर्विस है। इस दृष्टि से उनकी पूरी तैयारी थी कि डीजीपी बनते तक इस बंगले में रहना होगा। मगर चैत्र नवरात्रि में वे गृह प्रवेश करने वाले थे कि कोरोना आ गया। और, पिछले हफ्ते एक दूसरा ही कोरोना आ गया। उपर से पैगाम आया, घर लौटा दीजिए….राजधानी के शांति नगर को दिल्ली का कनाॅट प्लेस बनाना है। सिर्फ पुलिस अधिकारी का ही नहीं, उस इलाके में रहने वाले अफसरों को एडीएम का फोन जा रहा, 24 घंटे में घर खाली कर दीजिए। जाहिर है, एडीजी को पीड़ा तो होगी ही, गृह प्रवेश से पहले ही लकी बंगला टूट जाएगा। ध्यान रहे, यह बंगला समीर और शिखा के लिए भी लकी रहा। दोनों, यहां से कलेक्टर बनकर गए थे।

एसपी का मोरल डाउन न हो

कोंडागांव एसपी से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम बेहद नाराज थे। इतने कि सरकार से शिकायत करने की बजाए मीडिया में फूट पड़े। हिन्दुस्तान मेें ऐसा दृष्टांत शायद ही मिलेगा कि रुलिंग पार्टी का प्रेसिडेंट कैमरे पर एसपी के खिलाफ रिश्वत मांगने का आरोप लगाया हो। आमतौर पर अपनी पार्टी की सरकार के अफसरों पर इस तरह के आरोप इसलिए नहीं लगाए जाते क्योंकि कलेक्टर और एसपी सरकार के नुमाइंदे होते हैं। बहरहाल, सरकार ने कोंडागांव एसपी को हटाकर जशपुर भेज दिया है। समझा जाता है कि एसपी का मोरल डाउन न हो, इसलिए एकदम से छुट्टी करने की जगह उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया गया।

टाॅप फाइव मंडल

सूबे में राजनीतिक नियुक्तियों वाले बोर्ड और कारपोरेशनों की संख्या भले ही दो दर्जन से अधिक होगी मगर माल-मसाला वाला तो पांच ही मान सकते हैं। सीएसआईडीसी, माईनिंग कारपोरेशन, कर्मकार मंडल, हाउसिंग बोर्ड, पर्यटन मंडल। इनमें खोखा की कल्पना किया जा सकता है। बाकी दर्जन भर निगम-मंडल ऐसे हैं, जिनमें लेवल से नीचे उतरेंगे तो पेटी का इंतजाम हो पाएगा। इनके अलावा बाकी में गाड़ी, आफिस मिल जाए, तो बहुत है। पिछली सरकार में एक बोर्ड के प्रमुख ने गाड़ी खरीदकर किराये में अपने लिए लगवा ली थी। तीन साल में उनकी गाड़ी फ्री हो गई। बस यही, इससे अधिक कुछ नहीं।

एडीजी का लकी बंगला

एक एडीजी का जीई रोड से लगा शांति नगर का बंगला बेहद लकी था। इसी बंगले से वे बिलासपुर का आईजी बनकर गए। और, भी कई गुड न्यूज इस बंगले से उन्हें मिले थे। उनके बिलासपुर जाने के बाद समीर विश्नोई और उनके बाद शिखा राजपूत को यह मकान आबंटित हो गया। शिखा पिछले साल बेमेतरा की कलेक्टर बनकर गई तो एडीजी ने फिर भिड़-भाड़कर यह बंगला अपने नाम एलाॅट कराया। मकान खाली कराने के लिए उन्हें कम पापड़ नहीं बेलने पड़े। एक शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स ने इसमें उनकी मदद की। एडीजी ने बंगले का कंप्लीट जीर्णोद्धार कराया। 2028 तक उनकी सर्विस है। इस दृष्टि से उनकी पूरी तैयारी थी कि डीजीपी बनते तक इस बंगले में रहना होगा। मगर चैत्र नवरात्रि में वे गृह प्रवेश करने वाले थे कि कोरोना आ गया। और, पिछले हफ्ते एक दूसरा ही कोरोना आ गया। उपर से पैगाम आया, घर लौटा दीजिए….राजधानी के शांति नगर को दिल्ली का कनाॅट प्लेस बनाना है। सिर्फ पुलिस अधिकारी का ही नहीं, उस इलाके में रहने वाले अफसरों को एडीएम का फोन जा रहा, 24 घंटे में घर खाली कर दीजिए। जाहिर है, एडीजी को पीड़ा तो होगी ही, गृह प्रवेश से पहले ही लकी बंगला टूट जाएगा। ध्यान रहे, यह बंगला समीर और शिखा के लिए भी लकी रहा। दोनों, यहां से कलेक्टर बनकर गए थे।

एसपी का मोरल डाउन न हो

कोंडागांव एसपी से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम बेहद नाराज थे। इतने कि सरकार से शिकायत करने की बजाए मीडिया में फूट पड़े। हिन्दुस्तान मेें ऐसा दृष्टांत शायद ही मिलेगा कि रुलिंग पार्टी का प्रेसिडेंट कैमरे पर एसपी के खिलाफ रिश्वत मांगने का आरोप लगाया हो। आमतौर पर अपनी पार्टी की सरकार के अफसरों पर इस तरह के आरोप इसलिए नहीं लगाए जाते क्योंकि कलेक्टर और एसपी सरकार के नुमाइंदे होते हैं। बहरहाल, सरकार ने कोंडागांव एसपी को हटाकर जशपुर भेज दिया है। समझा जाता है कि एसपी का मोरल डाउन न हो, इसलिए एकदम से छुट्टी करने की जगह उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया गया।

टाॅप फाइव मंडल

सूबे में राजनीतिक नियुक्तियों वाले बोर्ड और कारपोरेशनों की संख्या भले ही दो दर्जन से अधिक होगी मगर माल-मसाला वाला तो पांच ही मान सकते हैं। सीएसआईडीसी, माईनिंग कारपोरेशन, कर्मकार मंडल, हाउसिंग बोर्ड, पर्यटन मंडल। इनमें खोखा की कल्पना किया जा सकता है। बाकी दर्जन भर निगम-मंडल ऐसे हैं, जिनमें लेवल से नीचे उतरेंगे तो पेटी का इंतजाम हो पाएगा। इनके अलावा बाकी में गाड़ी, आफिस मिल जाए, तो बहुत है। पिछली सरकार में एक बोर्ड के प्रमुख ने गाड़ी खरीदकर किराये में अपने लिए लगवा ली थी। तीन साल में उनकी गाड़ी फ्री हो गई। बस यही, इससे अधिक कुछ नहीं।

संसदीय सचिव का झुनझुना

विधायकों की तुष्टिकरण के लिए संसदीय सचिव बनाने की चर्चा चल रही है। मगर संसदीय सचिव का फार्मूला झुनझुना से ज्यादा नहीं है। संसदीय सचिवों को एक गाड़ी मिल जाएगी, पीए और बंगला। इसके अलावा और कुछ नहीं। कहने के लिए सरकार मंत्रियों के साथ उन्हें अटैच कर देती है मगर कागजों में कोई अधिकार नहीं। अधिकारी उन्हीं की सुनते हैं, जिनके पास फाइल जाती है। विभागीय कामकाजों में मंत्री संसदीय सचिवों को फटकने नहीं देते। कुल मिलाकर झुनझुना ही है संसदीय सचिव।

सुप्रीम कोर्ट में केस

रमन सरकार द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ वन और आवास, पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने हाईकोर्ट में रिट दायर की थी। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश चैबे ने भी। हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति निरस्त करने का हवाला देते हुए राकेश चैबे की एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया था। याने संसदीय सचिवों की नियुक्ति अगर होती भी है तो उन पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी।

आईपीएस, पपीता और कोरोना

पुराने पुलिस मुख्यालय में नौ लोग कोरोना पाॅजिटिव निकले हैं, उनमें इंटरेस्टिंग यह है कि एसआईबी बिल्डिंग में एक आईपीएस को भृत्य पपीता काटकर खिला रहा था, उसी दौरान एम्स से फोन आया कि फलां बोल रहे हो….भृत्य ने कहा, हां। उधर से जवाब मिला, आपका सेम्पल पाॅजिटिव आया है। भृत्य ने अफसर को कुछ नहीं बताया, धीरे से मोबाइल को जेब में रख लिया। बाहर जाकर उसने अपने साथियों को इस बारे में बताया तो हड़कंप मच गया। एसआईबी बिल्डिंग में तीन सीनियर आईपीएस बैठते हैं। अब इनमें से कितने क्वारंटाईन हुए हैं, इसकी जानकारी नहीं है।

पुनिया से प्रेरणा

कोरोना के बावजूद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया दिल्ली से रायपुर आए। उनसे कई कांग्रेस नेताओं को प्रेरणा मिली…जब 70 प्लस के पुनिया जी कोरोना में बहादुरी के साथ दौरे कर रहे हैं तो फिर हम क्यों डरें। लाल बत्ती की दौड़ में शामिल नेता कोरोना के चलते मन-मसोसकर दिल्ली नहीं जा पा रहे थे, वे अब दिल्ली की टिकिट कटाने लगे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक ऐसे मंत्रीजी का नाम बताइये, जो सिर्फ कैबिनेट की बैठक में नजर आते हैं, उसके अलावा और कहीं नहीं?
2. किस मंत्री की नाराजगी का खामियाजा एक अहम जिले के एसपी को उठाना पड़ सकता है?