शनिवार, 28 सितंबर 2013

तरकश, 29 सितंबर

तरकश, 29 सितंबर

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अकेले पड़ गए मोहन भैया

सुनिल कुमार एपिसोड पर रमन सरकार के ताकतवर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल अकेले पड़ गए। कोशिशों के बाद भी कोई मंत्री खुलकर सामने नहीं आया। कैबिनेट से पहले सीएम के कक्ष में अमर अग्रवाल अपने किसी काम से गए थे। गोलीकांड के मसले पर ननकीराम कंवर कहीं कुछ बोल न दें, इसलिए सीएम ने उन्हें पहले से बुलवा लिया था। रामविचार नेताम भी अपने ही काम से आए थे। बृजमोहन के साथ हेमचंद यादव आए। तब सीएम के पास सुनिल कुमार और सुबोध सिंह थे। बृजमोहन ने सीएम से कहा, आपसे कुछ बात करनी है, सो इशारा भांपकर सीएस और सुबोध बाहर निकल गए। बताते हैं, इसके बाद बृजमोहन ने अपनी भड़ास निकाली। मगर साथी मंत्रियों से जिस तरह की अपेक्षा उन्हेांने की थी, वैसा नहीं हुआ। सभी मंत्री स्कूल शिक्षा मंत्री के चेहरे के भाव-भंगिमा को देखते रहे। अब, मोहन भैया को अखर रहा होगा, काश!प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अजय चंद्राकर चुनाव जीत गए होते। तो आज स्थिति कुछ और होती।

बात पुरानी मगर….

बात 11 साल पुरानी है मगर सत्ता मंे बैठे लोगों के लिए मौजूं है। जब राजधानी के लिए जगह सलेक्ट हुआ था, उस समय कमेटी में एक चीफ सिकरेट्री भी थे। जब तक सरकार जमीन की खरीदी-बिक्री पर रोक लगाई जाती, सीएस के एक करीबी ने चिन्हित जमीन के ठीक बगल में 2 करोड़ की जमीन खरीद डाली। अजीत जोगी ने इसकी जांच कराई और जब पता चला कि वह सीएस का ही आदमी है, और उनके इशारे पर ही यह कारगुजारी की है, जोगी जैसा सीएम ने मौन रहना ही मुनासिब समझा। तब उनके कुछ करीबी लोगों ने पूछा था कि जिम्मेदार पोस्ट पर बैठे अफसर ने इतनी बड़ी गलती की है और आप ने कुछ नहीं किया। तब जोगी ने कहा था, सीएस पर उंगली उठेगी……मामला मीडिया में उछलेगा और इससे ब्यूरोक्रेसी डिमरलाइज होगी। उसका असर शासन-प्रशासन पर पड़ेगा। और अभी भाजपा के राज में क्या हुआ, आप सबने देखा। जाहिर है, इसका मैसेज अच्छा नहीं गया। जाहिर है, जब र्शीर्ष अफसर के साथ ऐसा हो सकता है, तो नीचे के अफसरों के साथ क्या होता होगा, समझा जा सकता है।

अंत भला तो

कहते हैं, अंत भला तो सब भला। मगर अपशकुन कुछ ऐसा हुआ है कि अंत गड़बड़ा जा रहा है। विधानसभा सत्र की तरह रमन कैबिनेट की अंतिम बैठक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीरम नक्सली हमले की वजह से विधानसभा का आखिरी सत्र कड़वाहट भरा रहा। पहली बार न ग्रुप फोटोग्राफी हुई और न ही बिदाई पार्टी। लेकिन इससे भी खराब स्थिति 24 सितंबर को रमन सिंह की आखिरी कैबिनेट के साथ रही। जिम्मेदार मंत्रियों ने ऐसी जिम्मेदारी निभाई कि कैबिनेट की खबर गौण हो गई। मीडिया ने भी इसमंे अपनी ओर से छौंक लगाने में कोई कमी नही की…..मंत्रियों का हंगामा……इस्तीफे की पेशकश…… सीएस हटाओ……एसीएस हटाओ…..। खबरों को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ, मानों मंत्री ट्रेड यूनियन के नेता हो गए हों।

वी वांट थर्टी सीट्स

भाजपा की टिकिट में इस बार आरएसएस का अड़ंगा लग रहा है। अंदरखाने से जो खबरें निकल कर आ रही है, उस पर यकीन करें तो संघ का भारी प्रेशर है कि भाजपा 2008 में जीती 50 सीटें ले लें साथ में, कांग्रेस के साथ नुराकुश्ती में हारने वाली 10 सीटें भी। बची 30 सीटें आरएसएस अपने लिए मांग रही है। वहां वह अपने हिसाब से प्रत्याशी उतारेगी। इसके लिए पिछले सप्ताह नागपुर से भैया जोशी राजनांदगांव पहुंचे थे। संघ और भाजपा नेताओ ंको टिप्स देकर वे वहीं से नागपुर लौट गए। इसको देखकर लगता है, भाजपा के लिए भी अबकी प्रत्याशी चयन करना उतना आसान नहीं होगा।

एक म्यान में

एक म्यान में एक ही तलवार रह सकता है। मगर पीसीसी ने एक में दो तलवार रखने की कोशिश की और उसका रिजल्ट आपने देखा ही। मीडिया सेल के चेयरमैन से नेताजी को इस्तीफा देना पड़ गया। असल में, शैलेष नीतिन त्रिवेदी वहां पहले से कमान संभाले हुए थे। नंदकुमार पटेल ने उन्हें वहां बिठाया था और उन्होंने मीडिया विभाग को सिस्टमेटिक कर दिया था। मगर हर बार की तरह चुनावी सीजन में मीडिया सेल में सक्रिय होने वाले नेताजी ने उपर के नेताओं को साधकर इस बार फिर अपना जलवा दिखाया। मगर इस बार अपने ही अपने सगा से उनका सामना हो गया। रायपुर इंजीनियरिंग कालेज से सिविल में बीई करने के बाद राजनीति में हाथ आजमाने आए त्रिवेदी भी कमजोर थोड़े ही हैं। दोनों ही बलौदा बाजार से टिकिट के दावेदार हैं। नेताजी की बिदाई की एक वजह यह भी बताई जाती है, राहुल की सभा में वे हेलीकाप्टर से जगदलपुर जाना चाहते थे। मगर दाउ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मीडिया सेल का काम मीडिया आफिस में ही बैठकर करें। इसके बाद अनबन हुआ और नेताजी ने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।

सत्तू भैया और अमर

विधानसभा चुनाव के लिए किसी की तगड़ी तैयारी होगी, तो वह हैं कांग्रेस में सत्तू भैया और भाजपा में अमर अग्रवाल की। बताते हैं, 2008 में चुनाव हारने के चार घंटे बाद ही सत्तू भैया ने एक तेरही कार्यक्रम में जाकर लोगों को चैंका दिया था। एक साल से तो वे लगातार अपने इलाके में सक्रिय हैं। रही बात अमर की तो उनसे राजनीतिज्ञों को इलेक्शन मैनेजमेंट सीखना चाहिए। छह महीने तक अमर की स्थिति कमजोर आंकी जा रही थी। मगर अब लोग कह रहे है कि अमर लीड बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकिट का ऐलान होने से पहले शहनवाज हूूसैन अल्पसंख्यकों को और चेतन भगत युवाओं को चार्ज करके जा चुके हैं। अमर ने 22 सितंबर को अपने जन्म दिन का भी बखूबी उपयोग किया। बताते हैं, दिन भर के उनके कार्यक्रम इस तरह तैयार किए गए कि उन्हें 10 हजार से अधिक लोगों से सीधे मिलने का मौका मिल गया। पोस्टर-बैनरों से पूरा बिलासपुर अमरमय रहा। छत्तीसगढ़ मंे संभवतः यह पहला मौका होगा, जब किसी नेता का जन्मदिन इतना धूमधाम से मना हो। अमर जिस तरह से बैक हुए हैं, उससे कांग्रेस के लोग भी हतप्रभ हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. खुद के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करना कितना बड़ा अपराध है?
2. मध्यप्रदेश में 90 बैच के आईएएस प्रींसिपल सिकरेट्र बन गए मगर छत्तीसढ़ में 89 बैच के आईएएस प्रमोट क्यों नहीं हो पाए हैं?

सोमवार, 23 सितंबर 2013

तरकश, 22 सितंबर

फीका प्रवास 

जीरम नक्सली हमले के समय आकस्मिक प्रवास को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह आठ साल बाद छत्तीसगढ़ आए। इसके बावजूद उनका प्रवास फीका रहा। विधानसभा चुनाव सामने है इसलिए, सत्ताधारी पार्टी द्वारा इसे महत्व देने का सवाल ही नहीं था। कांग्रेस ने भी उत्साह दिखाने की कोई कोशिश नहीं की। आलम यह रहा कि अरसे बाद छत्तीसगढ़ आए प्रधानमंत्री का राजधानी रायपुर में वह एक कार्यक्रम नहीं ले पाई। न एक बैनर और ना ही एक पोस्टर। मीडिया में भी पीएम विजिट की खबर खानापूर्ति समान ही लगी। अलबत्ता, मीडिया को यह खबर अधिक अहम लगी कि अजीत जोगी को मंच पर नहीं बिठाया गया। सो, पीएम गौण हो गए और जोगी लीड समाचार बन गए।

अब डीएस भी

 चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार के बाद शनिवार को एसीएस डीएस मिश्रा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपने खिलाफ सीबीआई जांच करने का आग्रह कर दिया। उन्होंने सीएम को लिखा है कि मैरे विरुद्ध कतिपय लोगों ने सायकिल और फर्नीचर खरीदी में चीफ विजिलेंस कमिश्नर से जांच की मांग की गई है। मैं चाहता हूं कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाए, ताकि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाए। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि तीसरा कौन आईएएस इस तरह का साहस दिखाता है।

तू-तू, मैं-मैं

 नौकरशाही में शीर्ष पद के दो दावेदार पिछले हफ्ते जमकर उलझ पड़े। मौका था, राज्य कर्मकार मंडल की बैठक का। इसमें विभागीय आईएएस इस बात को लेकर अड़े थे कि कैश ट्रांसफर उन पर लागू नहीं होता। इसलिए, असंगठित मजदूरों को सायकिल, सिलाई मशीन ही वितरित की जाएगी। और खजाना वाले आईएएस का कहना था, ऐसा संभव नहीं है। उन्हें कैश ही ट्रासंफर किया जाएगा। बताते हैं, इस पर दोनों आला अधिकारी इतने गरम हो गए कि तू-तू, मैं-मैं होने लगीं। आलम यह था कि सिर्फ हाथापाई नहीं हुई। बाकी सब हो गया। हालांकि, आखिर में तय यही हुआ कि कैश दिया जाए।

नेतागिरी का चक्कर


आईएएस अफसरों की नेतागिरी के चक्कर में प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह मारे गए। जनवरी से प्रमोशन ड्यू होने के बाद भी अब तक वे एडिशनल चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाए। नारायण सिंह के विद्युत नियामक प्राधिकरण में जाने से एक पोस्ट खाली हुआ था। लेकिन 83 बैच के आईपीएस गिरधारी नायक के डीजी बन जाने से आईएएस अफसरों ने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया और नायक के बैच के आईएएस एनके असवाल को एसीएस बनाने के लिए लाबिंग कर दी। पहंुच गए सीएम के दरबार में। सीएम तो वैसे भी उदार है, तथास्तु कह दिया। इसके बाद असवाल के लिए 20 अगस्त की कैबिनेट में स्पेशल तौर पर एक पोस्ट क्रियेट किया गया। मगर भारत सरकार की अनुमति की पेंच में मामला फंस गया है। दिल्ली से हरी झंडी मिलें तो डीपीसी हो, मगर अभी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। आचार संहिता के बाद तो मुश्किल ही लगता है।

मेष राशि का लफड़ा


अजय सिंह ही नहीं मेष राशि वाले सभी अफसरों के साथ ऐसा ही चल रहा है। अमिताभ जैन सिकरेट्री होने के बाद भी स्पेशल सिकरेट्री वाला पद पाए हैं, तो अमित अग्रवाल को पोस्टिंग के लिए 11 दिन तक मंत्रालय में धक्के खाने प़ड़े। जगदलपुर के कलेक्टर अंकित आनंद और एसपी अजय यादव एक हादसे में बाल-बाल बचे। बड़ों के प्रेशर में आलोक अवस्थी यूज होकर मुसीबत मोल ले ली।  

चोरी और सीनाजोरी

 34 करोड़ रुपए के पेपर टेंडर घोटाले में पाठ्य पुस्तक निगम चोरी और सीनाजोरी पर उतर गया है। निगम की ओर से जारी बयान में कहा गया है, पेपर की जब खरीदी ही नहीं हुई तो गड़बड़ी कैसे हो गई। ये तो वैसा ही हुआ कि चोर अगर घर का ताला तोड़ते हुए पकड़ा जाए और कहे कि उसने अभी चोरी नहीं की है, तो वह चोर कैसे हो गया। 12 सितंबर को टेंडर ओपन हुआ और उसी दिन वर्क आर्डर जारी कर दिया गया। मन में कहीं से यह डर तो था ही कि शिकायत होने पर मामल बिगड़ न जाए।

अंत में दो सवाल आपसे


1. किस युवक कांग्रेस नेता की वसूली की शिकायत दिल्ली पहुंच गई है और वहां से इसकी क्वेरी भी शुरू हो गई है?
2. मुख्यमंत्री द्वारा कैश ट्रांसफर लागू करने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग और कर्मकार मंडल अब वित्त विभाग से बजट क्यों नहीं मांग रहा है? 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

तरकश, 15 सितंबर

खोखा का खेल
सरकारी स्कूलों के बच्चों को 22 इंच की जगह 20 इंच की सायकिल टिकाने के बाद अब, उनके लिए छपने वाली पुस्तकों में भी खेल षुरू हो गया है। और खेल भी छोटा-मोटा नहीं, एक आयटम के टेंडर में सीधे 10 खोखा का। विभाग ने पिछले सप्ताह कागज खरीदी का टेंडर किया और जो 70 जीएसएम का पेपर रायपुर के बाजार में 49 रुपए प्रति किलो में उपलब्घ है, उसे अहमदाबाद की एक पार्टी से 57 रुपए में खरीदने का टेंडर ओपन कर दिया। जबकि, सरकारी सप्लार्इ में डयूटी भी नहीं लगती। और-तो-और डीजीएसएंडडी रेट 42.55 रुपए का है। वो भी 50 मीटि्रक टन का। 13 हजार मीटि्रक टन में तो रेट और कम हो जाएगा। बहरहाल, सब कुछ प्लान वे में हुआ। रेट कोट करने का खेल जरा समझिए। 57 रुपए, 57.15 रुपए, 57.24 रुपए और 58 रुपए। याने सब मिला-जुला। और 74 करोड़ की खरीदी की तैयारी हो गर्इ। बाजार रेट से 10 खोखा अधिक में। चलिये, चुनाव का समय है। पैसे तो लगेंगे ही। 


विधायकजी की सीडी
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में सीडी की राजनीति गरमाती जा रही है। बस्तर के एक मंत्री की लेन-देन वाली सीडी की चर्चा थी ही, बिलासपुर जिले के सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक की सीडी पर इन दिनों खूब कानाफूसी हो रही है। एनडी तिवारी टार्इप की सीडी को एक संवैधानिक पोस्ट पर बैठे शखिसयत को जांच के लिए दी गर्इ है। पता चला हैं, टिकिट वितरण के बाद सीडी को सार्वजनिक किया जाएगा। इसी तरह, एक कांग्रेस नेता की भी इसी टार्इप की सीडी कांग्रेसियों ने ही बनवार्इ है। कांग्रेस का झगड़ा अगर नहीं थमा तो मानकर चलिये, कांग्रेस में भी बवंडर मचेगा। 


मजबूरी का नाम
रायपुर की नुमाइंदगी करने वाले रमन कैबिनेट के दोनों मंत्री, बृजमोहन अग्रवाल और राजेष मूणत के बीच रिष्ते कैसे हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। मगर गुरूवार को राजधानी में कुछ ऐसा हुआ कि लोग देखकर चौंक गए। रजाबंधा मैदान में एक ट्रेवल्र्स एजेंसी के उदघाटन में दोनों अतिथि थे और मंत्रालय में षाम को कैबिनेट की बैठक खतम होने के बाद दोनों एक ही गाड़ी में सवार होकर कार्यक्रम में पहुंचे। अब, इस पर चर्चा तो होनी ही थी...... चुनाव को देखते कहीं दोनों ने हाथ तो नहीं मिला लिया। आखिर, दोनों की सिथति बहुत अच्छी नहीं है। चाणक्य ने कहा भी है, संकट में दुष्मनों से भी रिष्ते सुधार लेना चाहिए।


झटका
अमिताभ जैन से भी बड़ा झटका अमित अग्रवाल को लगा है। अमिताभ को तो स्वतंत्र ना सही, विभाग तो मिल गया था। पीएमओ में लंबे समय बिता कर छत्तीसगढ़ लौटे अग्रवाल का हाल बुरा है। उन्होंने 6 सितंबर को ज्वार्इनिंग दी। और नौ दिन गुजर जाने के बाद भी उनका विभाग तय नहीं हुआ है। दरअसल, निर्धारित अवधि पूरा होने के बाद भी डेपुटेषन से लौटने में हीलाहवाला करने वाले अफसरों को सरकार एक मैसेज देना चाहती है। आखिर, अग्रवाल सात साल के बजाए नौ साल चार महीने बाद लौटे। राज्य सरकार केंद्र को अफसरों की कमी का हवाला देकर पत्र लिखती रही। और अग्रवाल का डेपुटेषन नियम ना होने के बाद भी बढ़ता रहा। सो, अब बारी सरकार की है।


नायक एडीजी इम्पेनल
डीजी, जेल गिरधारी नायक भारत सरकार में एडीजी के लिए इम्पेनल हो गए हैं। याने केंद्र में वे अगर डेपुटेषन पर जाएं, तो वहां एडीजी की पोसिटंंग मिलेगी। इस तरह रामनिवास के बाद वे एडीजी के तौर पर इम्पेनल होने वाले सूबे के दूसरे आर्इपीएस बन गए हैं। वैसे भी, सीनियरिटी में भी वे रामनिवास के बाद दूसरे नम्बर पर हैं। और, सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल फरवरी में रामनिवास के रिटायर होने के बाद वे पुलिस की कमान भी संभालेंगे।    


प्रमोशन का खौफ
प्रमोशन से लोग खुश होते हैं मगर वन विभाग में उल्टा हो रहा है। डीएफओ से सीएफ बनने वाले आर्इएफएस अफसरों की रात की नींद उड़ी हुर्इ है। हालांकि, सीएफ अभी तक मलार्इदार पोसिटंग मानी जाती थी। मगर कैडर रिव्यू में सीएफ लूपलाइन वाला पद बन गया है। सर्किल में अब, सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट किए जाएंगे। ऐसे में सीएफ बनने का मतलब समझ सकते हैं। कम-से-कम पांच साल तक अरण्य में वनवास। जाहिर है, अरण्य में पांच साल काटना की पीड़ा से अफसर घबराए हुए हैं। हाल ही में प्रमोट हुए तीन अफसर सरकार को लिखकर देने वाले हैं, उन्हें प्रमोशन न दिया जाए।


वेट एंड सी
टिकिट का ऐलान करने में भाजपा और कांग्रेस, दोनों एक ही फामर्ूला अपना रही है। वह है, वेट एंड सी का।  इसलिए, टिकिट भले ही फायनल हो जाए, आचार संहिता लागू होने से पहले घोषित नहीं होने वाली। सियासी विष्लेषकों की मानें तो रणनीति के तहत दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की सूची का इंतजार करेंगी। आचार संहिता 25 सितंबर से पांच अक्टूबर के बीच लगने का अंदेषा है। सो, यह मानकर चलिये कि 10 अक्टूबर से पहले सूची बाहर नहीं आने वाली। 


गडढे रहेंगे या.....
हर अफसर के काम करने और कराने के अपने तरीके होते हैं। उनमें पीडब्लूडी सिकरेट्री आरपी मंडल का अंदाज तो और जुदा है। किसका स्क्रू कसना है और किसको पीठ थपथपाना है, यह कोर्इ मंडल से पूछे। अब उन्होंने एक नया रास्ता निकाला है, षपथ लेने का। पिछले हफते उनकी मौजूदगी में राजनांदगांव जिले में पीडब्लूडी के इंजीनियरों को षपथ दिलार्इ गर्इ कि अक्टूबर अंत तक सड़कों पर एक भी गडढे नहीं रहेंगे। और षायद यह भी कि अक्टूबर तक गडढे रहेंगे या हम। है न अलग अंदाज। तभी तो ऐन वक्त पर विभाग बदलते-बदलते बच गया।


अंत में दो सवाल आपसे

1.    बस्तर से किस मंत्री की टिकिट खतरे में है?
2.    एक आर्इएएस अफसर का नाम बताइये, जो सैर-सपाटे के लिए सरकारी खर्चे पर महीने में चार से पांच बार उड़ान भर लेते हैं?

बुधवार, 11 सितंबर 2013

तरकश, 8 सितंबर

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जोर का झटका

स्कूल शिक्षा विभाग में 22 इंच की जगह 20 इंच की सायकिल टिकाकर करोड़ों का खेल करने वाली कंपनियों को सरकार ने तगड़ा झटका दिया है। कंपनियों ने स्कूल शिक्षा विभाग के खटराल अफसरों से सांठ-गांठ करके आर्डर लेकर चीनी कंपनी को प्रोडक्शन का आर्डर दे दिया था। सायकिलों के कुछ पाट्र्स चाइना से आ भी गए थे। इससे पहले, सरकार ने गडबड़झाले को भांपकर हितग्राहियों को कैश देने का नियम बना दिया। स्कूल विभाग में 35 करोड़ और कर्मकार मंडल में 65 करोड़ के सायकिल और सिलाई मशीनें बांटी जानी थीं। याने 100 करोड़ की। दोनों विभागों में 20 से 25 फीसदी चलता है। इस तरह इतने ही खोखा का जुगाड़ था। और चुनाव के समय 25 खोखा मायने रखता है। मगर खेल बिगड़ गया। अब लुधियाना की कंपनियां थैली लेकर घूम रही है, कोई तो काम करा दें। याद होगा, सीएम ने एक मीटिंग में कहा था कि सायकिलें ऐसी सप्लाई की जा रही है कि बैठने पर टूट जाती है। इसके बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग नहीं चेता।

नया एजी

एडवोकेट जनरल संजय अग्रवाल के हाईकोर्ट जज बनना तय हो जाने के बाद अब नए एजी की खोज शुरू हो गई है। उनकी जगह दो-तीन नाम चल रहे हैं और सभी राज्य के बाहर के हैं। अग्रवाल का आदेश सोमवार को पहुंच सकता है। और हो सकता है, उसके अगले दिन हाईकोर्ट में उनका ओवेशन हो। हालांकि, एजी के रूप में सरकार को अग्रवाल की कमी खटकेगी। उनके महाधिवक्ता कार्यालय संभालने के बाद सरकार को राहत मिली थी। कमल विहार प्रोजेक्ट को उन्होंने हाईकोर्ट से हरी झंडी दिलाई थी। अग्रवाल के लिए उपलब्धि वाली बात यह रही कि कांग्रेस सरकार के समय भी वे डिप्टी एजी रहे और भाजपा सरकार ने भी उन पर भरोसा जताया। आखिर, ये काबिलियत का ही तो प्रमाण है।
ताजपोशी या….
नौ साल तीन महीने दिल्ली डेपुटेशन पर रहने के बाद आईएएस अमित अग्रवाल शुक्रवार को आखिरकार रायपुर लौटे। रमन सरकार आने के छह महीने बाद याने जुलाई 2004 में वे दिल्ली का रुख किए थे। यद्यपि, उनका डेपुटेशन 2011 में पूरा हो गया था। मगर स्पेशल केस में एक-एक साल का एक्सटेंशन लेने में वे कामयाब रहे थे। उन्हें बुलाने के लिए सरकार को कई बार पत्र लिखना पड़ा। सिकरेट्रीज लेवल पर अफसरों की कमी का हवाला दिया गया था। बहरहाल, अग्र्रवाल को दुर्ग संभाग का ओएसडी बनाने की चर्चा है। दुर्ग नया संभाग घोषित हुआ है। अधिसूचना जारी न होने के चलते कमिश्नर के बजाए अभी ओएसडी पोस्ट किया जाएगा। अधिसूचना जारी होने के बाद पदनाम बदलकर कमिश्नर कर किया जाएगा। हालांकि, उनके कुछ हितैषी उन्हें ओएसडी या कमिश्नर बनाकर बीएल तिवारी, बीएल अनंत और आरपी जैन के समकक्ष रखना नहीं चाहते। तो एक पक्ष यह भी है कि डेपुटेशन से लौटने में आनाकानी ़करने वाले अफसरों को आते ही ताजपोशी न की जाए। अब, सीएम के विकास यात्रा से लौटने के बाद इस पर निर्णय होगा कि अमिताभ जैन की तरह अग्रवाल को भी कुछ खास टाईप का मैसेज दिया जाए या फिर अच्छी पोस्टिंग।

बाल-बाल बचे

आचार संहिता लागू होने के पहले ही चुनाव आयोग सरकार को झटका देने के मोड मंे आ गया था। 30 अगस्त को आयोग रायपुर में था, उसी दौरान कवर्धा और सुकमा का कलेक्टर बदला गया। आयोग ने इस पर एतराज किया कि छह महीने के भीतर दोनों को क्यों हटाया गया। सवाल यह भी था कि नक्सल प्रभावित सुकमा में प्रमोटी आईएएस को कमान क्यों सौंपी गई। मगर चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने उन्हंे समझाया कि यह विशुद्ध प्रशासनिक फेरबदल है और इसमें रंच मात्र भी पूर्वाग्रह नहीं है। सुकमा आदिवासी जिला है और एके टोप्पो आदिवासी होने के साथ ही तेज अफसर हैं। तब जाकर बात बनी।

लूट लिया मंच

शुक्रवार को बिलासपुर में अविभाजित मध्यप्रदेश के मंत्री रहे बीआर यादव के अभिनंदन ग्रंथ समारोह में दिग्विजय सिंह समेत चरणदास महंत, रविंद्र चैबे समेत कई कांग्रेसी नेता जुटे थे। समाजवादी नेता रघु ठाकुर भी थे। मगर वक्रतृत्व कला से मौके का लाभ उठा लिया अमर अग्रवाल ने। अमर ने कहा, जब मैं पहली बार चुनाव लड़ रहा था तो यादवजी से आर्शीवाद लेने गया और पूछा था कि लगातार चार बार विधायक कैसे चुने गए। यादवजी ने मुझे इसके टिप्स दिए थे। अमर ने कांग्रेस के मंच से इशारे-इशारे में कांग्रेसियों को बता दिया कि यादवजी के टिप्स से ही लगातार जीतता आ रहा हैं और अब चैथी बार भी….। इसे ही कहते हैं, मंच लूटना।

चैबे के बाद महंत

पाटन में प्रदीप चैबे द्वारा अजीत जोगी पर जहरीले तीर छोड़ने के दो रोज बाद पार्टी के सेनापति ने भी तोप का गोला दाग दिया। बिलासपुर में एक कार्यक्रम में पीसीसी चीफ चरणदास महंत ने कहा, लोग आजकल अपनी जाति छुपाने लगे हैं। जाहिर है, तोप का मुंह जोगी की ओर ही था। और इससे एक बात साफ हो गया कि आलाकमान के निर्देश पर कांग्रेस नेता भले ही गले मिल लें या पैर छूकर आर्शीवाद लें, वे दिल से नहीं मिलने वाले। और भाजपा को इससे अधिक और क्या चाहिए।

राजा का स्वागत

भाजपा प्रवेश के बाद जगदलपुर लौटे बस्तर के राजा कमल भंजदेव का रास्ते भर राजा की तरह ही स्वागत हुआ। अभनपुर से इसका सिलसिला शुरू हुआ और जगदलपुर जाकर समाप्त हुआ। दरअसल, भाजपा मुख्यालय से ही पार्टी कार्यकर्ताओं को इसके लिए मैसेज दिए गए थे। और उस पर अमल करने में कोई कोताही नहीं बरती गई। लेकिन इस स्वागत-सत्कार से बस्तरिया भाजपा नेताओं की धड़कन बढ़ गई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बस्तर के किस मंत्री के रिश्वत लेते हुए सीडी बनने की चर्चा है?
2. किस रिटायर चीफ सिकरेट्री को कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाली पोस्टिंग देने पर विचार किया जा रहा है?