रविवार, 31 जनवरी 2021

बाबू से त्राहि माम आईपीएस

 संजय के दीक्षित

तरकश, 31 जनवरी 2021
राज्य पुलिस सेवा के 16 अधिकारियों को आईपीएस अवार्ड हुए ढाई साल गुजर गए। लेकिन, पराकाष्ठा देखिए…उनका अभी तक बैच अलाटमेंट नहीं हुआ है। अब बैच अलाट नहीं हुआ तो फिर पे फिक्शेसन और स्थायीकरण नहीं हो सकता। कायदे से भारत सरकार के मिनिस्ट्री आॅफ होम अफेयर से आईपीएस अवार्ड होने के दो-तीन महीने के भीतर बैच अलाट हो जाता है। इसके लिए संबंधित राज्य सरकार के गृह विभाग से भारत सरकार को लेटर लिखा जाता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ से ये लेटर अभी तक केंद्र को गया ही नहीं। जबकि, उन्हीं के साथ आईपीएस अवार्ड हुए यूपी, बिहार, झारखंड के अफसरों को कब का बैच अलाॅट हो गया। बताते हैं, मंत्रालय के एक बाबू पुलिस अधिकारियों की फाइल आगे बढ़ा नहीं रहा। उस भोपाली बाबू से पूरा पुलिस महकमा हलाकान है।


ओपी राठौर की याद

मंत्रालय में हाॅवी बाबूगिरी से दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर की याद आ गई। नक्सल मोर्चे पर जाकर फोर्स को मोटिवेट करने वाले डीजीपी राठौर भी गृह विभाग के बाबुओें से बेहद परेशां रहते थे। उस समय छत्तीसगढ़ में सल्वा-जुडूम का आंदोलन बड़ा तेज था। बहुत सारी फाइलें मंत्रालय जाकर अटक जाती थी। तब राठौर खुद ही मंत्रालय के सेक्शन में बाबुओं के पास पहुंचकर फाइल ढूंढवाकर आगे बढ़वाते थे। खैर, वे डीजीपी थे, इसलिए बाबू उनके पहुुंचने पर काम कर देते थे। प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों को वो दूसरा वाला आइडिया आजमाकर अपना काम करा लेना चाहिए। खामोख्वाह क्यों अपना नुकसान करवा रहे हैं।

आनंद को आनंद नहीं

तमाम चीजों के बाद भी राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आनंद मसीह को सरकार ने आईएएस अवार्ड कर दिया मगर पोस्टिंग के मामले में उनकी किस्मत काम नहीं कर रही। आईएएस अवार्ड होने के पांच महीने बाद भी सामान्य प्रशासन विभाग ने उनका आर्डर नहीं निकाला है। जबकि, 2005 बैच के डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग नोटिफिकेशन जारी होने के 15 दिनों के भीतर हो गई। बहरहाल, जाति प्रमाण पत्र केस में बर्खास्त हो चुके आनंद को बाद में हाईकोर्ट से स्टे मिल गया…उसके बाद आईएएस भी। लेकिन, आदेश न निकलने की वजह से वे रिकार्ड में अभी तक आईएएस नहीं बन पाए हैं। जाहिर है, आनंद को आईएएस बनने का आनंद नहीं आ रहा होगा।

ये ट्रेेंड ठीक नहीं

राजस्थान में एसीबी ने एसडीएम को रिश्वत लेते हुए ट्रेप कर जेल भेज दिया। मगर वहां कोई बवाल नहीं मचा। लेकिन, छत्तीसगढ़ में रिटायर एडिशनल कलेक्टर की गिरफ्तारी के विरोध में राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर लामबंद होने लगे हैं। आए दिन वे इसके लिए उच्चाधिकारियों से मुलाकात कर रहे। इससे पहले एक फाॅरेस्ट अधिकारी के खिलाफ राप्रसे अधिकारी एकजुट हो गए थे। छत्तीसगढ़ में ये एक नई परंपरा की शुरूआत हो रही। इससे पहले पिछली सरकार में इसी तरह के वर्क कुछ आईएएस भी करते थे। शुक्र है, वे अभी शांत हैं।

किधर है एसीबी

राजस्थान एसीबी की बात निकली, तो कुछ दिन पहले वहां एक आईएएस को भी दिल्ली जाकर जांच एजेंसी के अफसरों ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन, छत्तीसगढ़ की एसीबी और ईओडब्लू के अधिकारी किधर हैं, पता नहीं चल पा रहा। कार्रवाई के नाम पर पटवारी, बाबू जैसे इक्का-दुक्का कर्मचारियों को ट्रेप करने के अलावा एसीबी के खाते में 2020 में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं रही। छापे तो शायद एक भी नहीं पड़े। ये ठीक है कि एसीबी, ईओडब्लू के अफसर करप्शन को खत्म नहीं कर सकते।

कलेक्टरों की लिस्ट

धान खरीदी के बाद कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलने की चर्चा है। धान खरीदी में जिन कलेक्टरों ने बढ़ियां काम किया है, उन्हें इसका ईनाम देते हुए और महत्वपूर्ण जिला दिया जा सकता है। हालांकि, सरकार से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि अभी इस पर विचार चल रहा कि कलेक्टरों का ट्रांसफर अभी किया जाए या बजट सत्र के बाद। वैसे भी धान खरीदी में सभी कलेक्टरों ने आउटस्टैंडिंग काम किया है। सरकार का सिर्फ एक लाइन का निर्देश था…धान खरीदी में कोई चूक नहीं होनी चाहिए….इसके अलावा कोई हस्तक्षेप और डांट-फटकार नहीं। फिर भी कलेक्टरों ने रिकार्ड बना डाला। वो भी बारदाना की समस्या के बाद भी। लिहाजा, अगर ट्रांसफर के लिए धान खरीदी आधार बनाया जाएगा तो सरकार की काफी मुश्किलें जाएगी। क्योंकि, इसमें मैदानी इलाकों के सभी कलेक्टरों ने बढ़-चढ़कर काम किया है।

एसपी, आईजी किसलिए?

कोरिया के मनचले टीआई की पत्नी कोरिया के एसपी, सरगुजा के आईजी के आगे न्याय के लिए गिड़गिड़ाती रही। लेकिन, एसपी, आईजी ने कोई कार्रवाई नहीं की। डीजीपी डीएम अवस्थी को हस्तक्षेप कर टीआई को सस्पेंड करना पड़ा। डीजीपी ने दो साल में दो दर्जन से अधिक टीआई को सस्पेंड किया है। चिंता की बात है….जो काम एसपी, आईजी को करनी चाहिए, वो पुलिस महकमे के मुखिया को करना पड़ रहा। सवाल यह भी है कि एसपी ऐसे खटराल इंस्पेक्टरों को संरक्षण क्यों दे रहे हैं?

नौकरशाहों से गलत आंकलन?

26 जनवरी को राजभवन की टी पार्टी में नौकरशाहों की उपस्थिति बेहद क्षीण रही। मंत्रालय से सिकरेट्री के नाम पर दो ही लोग पहुंचे। और, पीएचक्यू से भी यही कोई तीन-चार। हालांकि, अफसर जैसा समझ रहे हैं, वो अब पहले जैसा नहीं लगता….खारुन नदी में काफी पानी बह चुका है। राजधानी के पंडरी में स्मार्ट सिटी के कार्यक्रम में राज्यपाल गर्मजोशी से शिरकत की। महिला बाल विकास मंत्री, मेयर समेत तमाम लोग उपस्थित थे। खैर, नौकरशाहों को इतना कैलकुलेटिव नहीं होना चाहिए।

अच्छी खबर

मोबाइल, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दौर में जब पुस्तकें पढ़ने का चलन कम होता जा रहा है बिलासपुर में सेंट्रल लायब्रेरी के इनाॅग्रेशन के पांच दिन के भीतर साढ़े तीन हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया। वहां नगर निगम और स्मार्ट सिटी ने मिलकर भव्य डिजिटल लायब्रेरी बनवाया है। जगदलपुर में भी नई लायब्रेरी बनी है। राजधानी में नालंदा परिसर पहले से बढ़ियां रन कर रहा है। कहने का आशय यह है कि अगर लायब्रेरी हो तो आज भी पढ़ने वाले लोग हैं। सरकार को कम-से-कम नगर निगमों को अनिवार्य करनी चाहिए कि एक लायब्रेरी बनवाए। वैसे भी, नगर निगमों का ये कर्तव्य है कि अपने नागरिकों को एजुकेट करने…उन्हें पढ़ने का वातावरण मुहैया कराएं। सिर्फ नाली तोड़ो, फिर बनाओ, फिर तोड़ो…और अवैध बिल्डिंगों को संरक्षण दें, यही काम थोड़े है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. निगम, मंडलों में लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट किधर अटक गई है?
2. एक पुलिस कप्तान का नाम बताइये, जिनकी कीर्तिमानी पारी से लग रहा कि उन्हें अब दोबारा एसपी बनने का मौका नहीं मिलेगा?

शनिवार, 23 जनवरी 2021

एकेडमी या डंपिंग यार्ड?

 संजय के दीक्षित

तरकश, 24 जनवरी 2021
रायपुर से लगे चंदखुरी पुलिस अकादमी में कभी एसपी लेवल के एकाध अफसर होते थे। कई मर्तबा तो एडिशनल एसपी के हाथ में एकेडमी की कमान रही। लेकिन, इस समय एडीजी जीपी सिंह एकेडमी के डायरेक्टर हैं। डीआईजी संजीव शुक्ला डिप्टी डायरेक्टर और आईपीएस विजय अग्रवाल एसपी। पुलिस ट्रेनिंग इंस्ट्टियूट में इतने सीनियर अफसरों की तैनाती की दो ही वजह हो सकती है। या तो गृह विभाग पुलिस की ट्रेनिंग को और स्ट्रांग करना चाह रहा या फिर एकेडमी को आईपीएस का डंपिंग यार्ड बना रहा है।


अद्भुत रिकार्ड

आपको जानकर ताज्जुब होगा मगर यह सही है कि छत्तीसगढ़़ में एक ऐसे डायरेक्टर हैं, जो राज्य बनने के समय इस पद पर पहली पोस्टिंग पाए और आज भी उनकी कुर्सी कायम है। याने लगातार 20 बरसों से। आयुष विभाग के इस डायरेक्टर का नाम है डाॅ0 जीएस बदेशा। राज्य बनने के दौरान नवंबर 2000 में वे भोपाल से रायपुर आए थे। और क्रीज पर इस तरह जमे कि कोई उन्हें आउट नहीं कर सका। पिछली सरकार में भी उनकी कुर्सी सुरक्षित रही और इस सरकार के दो साल में भी उनका डायरेक्टर का पद बरकरार है। वाकई, अपने आप में यह अद्भुत रिकार्ड होगा। भारत में तो होगा ही। क्योंकि, विभाग प्रमुख के पद पर इतना लंबे समय तक कोई रहता नहीं। अधिक-से-अधिक चार साल, पांच साल। इसके बाद कोई-न-कोई दावेदार खड़ा हो ही जाता है। लंबे समय तक एक ही आदमी के कुर्सी पर जमे रहने का इफेक्ट तो पड़ता ही है। मध्यप्रदेश में आईएएस आयुष डायरेक्टर ने कोरोना के समय इतना काम किया कि हर जगह आयुष विभाग की तारीफ हुई। और छत्तीसगढ़ में…?

प्रमोशन के बाद

लगता है, पुलिस अधीक्षकों की लिस्ट अब प्रमोशन के बाद ही निकल पाएगी। प्रमोशन के लिए पुलिस मुख्यालय से गृह विभाग को फाइल भेजी जा चुकी है। इसमें पी सुंदरराज और रतनलाल डांगी डीआईजी से आईजी प्रमोट होंगे। हालांकि, दोनों फिलहाल बस्तर और बिलासपुर के प्रभारी रेंज आईजी हैं। प्रमोशन के बाद वे पूर्णकालिक आईजी बन जाएंगे। उनके अलावा बस्तर एसपी दीपक झा और बालोद एसपी जीतेंद्र मीणा के साथ कुछ प्रमोटी आईपीएस प्रमोट होकर डीआईजी बन जाएंगे। ये जरूर है कि इस बार पिछले साल की तरह आईपीएस के प्रमोशन में विलंब नहीं होगा। हालांकि, बाकी राज्यों में एक जनवरी को प्रमोशन हो जाता है। छत्तीसगढ़ में भी 2007-08 तक यह परिपाटी रही। इसके बाद इसमें लेट होता चला गया।

आईएएस का भी लोचा

दो दशक बाद यह पहला मौका है, जब आईएएस भी प्रमोशन में पिछड़ गए। वरना, साल खतम होने के दो-चार महीने पहले ही प्रमोशन हो जाता था। इस बार 2005 बैच को सिकरेट्री बनना है। सामान्य प्रशासन विभाग से फाईल मूव भी हो गई है। लेकिन, मामला कहीं पर रुक गया है। वैसे भी 2005 बैच के कुछ आईएएस हिट लिस्ट में हैं। इस बैच में कुल जमा आठ आईएएस हैं। इनमें छह डायरेक्ट हैं और दो प्रमोटी। छह में से ओपी चैधरी ने नौकरी छोड़कर सियासत में उतर आए हैं। मुकेश बंसल और रजत कुमार भारत सरकार में डेपुटेशन पर है। राजेश टोप्पो के खिलाफ जांच चल रही है। संगीता आर इस सरकार के शपथ लेने के बाद से लगातार छुट्टी पर हैं। वे कब लौटेंगी कोई बताने की स्थिति में नहीं है। बचे एस प्रकाश। प्रकाश के संदर्भ में गेहूं के साथ घून वाला मामला है। इसमें दिलचस्प यह है कि इस बैच में टीपी वर्मा और नीलम एक्का प्रमोटी आईएएस हैं। वे डायरेक्ट यानी आरआर आईएएस के फेर में लटक गए हैं। अभी तक होता ऐसा था कि डायरेक्ट के चलते प्रमोटी आईएएस वैतरणी पार कर जाते थे। पहली दफा होगा कि डायरेक्ट के चलते प्रमोटी अफसरों का प्रमोशन लटक गया है।

नो चेंज

सिकरेट्री प्रमोट होने वालों में राजनांदगांव कलेक्टर टीपी वर्मा भी शामिल हैं। संकेत हैं, वे प्रमोशन पाने के बाद भी कलेक्टर बने रहेंगे। वैसे भी राज्य सरकार पर ये निर्भर करता है कि प्रमोशन के बाद अफसर से क्या काम लेना है। आखिर, सीके खेतान, आरपी मंडल और हाल ही में डाॅ0 संजय अलंग सिकरेट्री बनने के बाद भी कलेक्टर बने रहे थे। लिहाजा, टीपी में भी कोई दिक्कत नहीं आएगी।

अहम फैसला

छत्तीसगढ़ में बिना आफिस खोले या जीएसटी नम्बर के ठेका, सप्लाई का काम करने वालों की अब मुसीबतें बढ़ने वाली है। सरकार ने एक मार्च से प्रदेश में जीएसटी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। बाहरी सप्लायरों और ठेेकेदारों को अब छत्तीसगढ़ का जीएसटी नम्बर लेना होगा। इससे राज्य का रेवन्यू तो बढ़ेगा ही यहां डिस्ट्रीब्यूटर्स बनाने की अब विवशता हो जाएगी। इससे लोकल लोगों को रोजगार भी मिलेगा। अभी होता ऐसा था कि अफसर दिल्ली, मुंबई और आंध्रप्रदेश के अपने जान-पहचान वाले सप्लायरों को बुलाकर वर्क आर्डर दे देते हैं। मगर अब जीएसटी नम्बर लेने के बाद ही उनका कुछ हो पाएगा।

अमर का राज

रमन सरकार के कई मंत्री घर में बैठने की वजह से ओवरवेट का शिकार होते जा रहे हैं मगर अमर अग्रवाल का फिटनेस देखकर लोग हैरान हैं। अमर ने न केवल 15 किलो वेट कम किया है बल्कि एकदम स्लिम कर लिया है। हालांकि, सूबे में वेट और भी कई लोग कम किए हैं लेकिन, उनके चेहरे पर इसका विपरीत असर साफ दिखता है। लेकिन, अमर अग्रवाल ने पता नहीं कौन सी बुटी खाई है कि वे और निखर गए हैं। अमर से मिलने वाले भाजपाई ही नहीं, कांग्रेसी भी पहला सवाल यही करते हैं, हमको भी इसका राज बताइये।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नया रायपुर के 13 करोड़ के बाॅटनिकल गार्डन के घोटोले की जांच क्यों ठंडे बस्ते में डाल दी गई?
2. भाजपा आक्रमक हो रही है या फिर ये बीजेपी प्रभारी पुरंदेश्वरी का इम्पैक्ट है?

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

तरकश : सूरा प्रेमियों…बुरी खबर!

 संजय के दीक्षित

तरकश के तीर, 17 जनवरी 2021

सूरा प्रेमियों…बुरी खबर!

कोरोना की वैक्सिन लगनी शुरू हो गई है। जाहिर तौर पर लोगों में राहत के साथ खुशी के भाव हैं। लेकिन, जिन डाॅक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगाए गए हैं, उनमें से कुछ लोगों पर क्या गुजर रही, उनका दर्द कोई समझ नहीं सकता। टीका लगाने से पहले उन्हें दो टूक बताया गया…अगला टीका 28 दिन बाद 13 फरवरी को लगेगी। और इसके चार हफ्ते बाद तक आप ड्रिंक नहीं कर सकते। यानी 16 जनवरी से लेकर 13 मार्च तक। लगभग दो महीने। जो ड्रिंक नहीं करते उनके लिए भले ही यह मामूली बात होगी। लेकिन, जो शौकीन हैं या रोज वाले….? उनका क्या होगा? लाॅकडाउन में दोगुने-तीगुने रेट पर अपने ब्रांड का इंतजाम कर लेने वाले सूरा प्रेमियों के लिए यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होगा। इससे इतर चिंता की बात ये भी है, ड्रिंक की बंदिशों की वजह से कुछ हेल्थ अफसर और वर्कर ऐन वक्त पर गायब हो गए। ये ठीक नहीं। उन्हें समझना होगा शराब बड़ी नहीं, जान बड़ी है। ऐसे लोगों को उन परिवारों से मिलना चाहिए, जिन्होंने कोरोना में अपने प्रिये को खो दिया।

नाम का चक्कर

सेम नाम भी कई बार मुसीबत का सबब बन जाता है। 11 जनवरी को राजधानी में ऐसा ही कुछ हुआ कि दो साल से ठंडी पड़ी ब्यूरोक्रेसी में उबाल आ गया। दरअसल, फायनेंस सर्विसेज की एडिशनल डायरेक्टर गीता सोनी के बेटे के खिलाफ राजधानी के एक थाने में मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ। सोशल मीडिया ने अतिउत्साह में इसे महिला आईएएस के बेटे के नाम से खबर चला दी। जाहिर है, इस पर बवाल तो मचना ही था। आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में इंक्लाब जैसी स्थिति निर्मित हो गई। महिला आईएएस ने लिखा, साजिशतन मेरी छबि खराब करने की कोशिश की जा रही। इसके बाद कुछ काॅमरेड आईएएस अधिकारियों ने पूरा ठीकरा पुलिस पड़ फोड़ दिया। चलिये, नाम के फेर में ही सही, आईएएस जागे तो। वरना, दो साल से व्हाट्सएप ग्रुप पर जन्मदिन के विश के अलावा अभिव्यक्ति की आजादी दिखाई नहीं पड़ रही थी।

बड़ा और छोटा

ब्यूरोक्रेसी में एक नाम के चक्कर में गफलत होना नई बात नहीं है। हाल ही में सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रसन्न्ना पी की जगह प्रसन्ना आर की पोस्टिंग कर दी थी। कुछ घंटे बाद जब चूक का अहसास हुआ तो फिर संशोधित आदेश प्रसन्ना पी के नाम से निकाला गया। इन दोनों अधिकारियों के नाम पर बड़ा कंफ्यूजन होता है। इसीलिए, जल्दी समझने के लिए लोग बड़ा प्रसन्ना, छोटा प्रसन्ना कहते हैं। बड़ा प्रसन्ना मतलब प्रसन्ना आर। और, छोटा….प्रसन्ना पी। छोटा का आशय जूनियर से है। इसी तरह पहले डीएस मिश्रा और जीएस मिश्रा में होता था। जल्दी बोलने पर लोग एक बार में समझ नहीं पाते थे। फिर डीएस मतलब दाढ़ी वाले और जीएस याने जी फाॅर गणेश।

आईएफएस में ऐसा क्यों

रिटायर पीसीसीएफ केसी यादव की कोरोना से मौत हो गई। जाहिर तौर पर इतने बड़ी घटना अगर आईएएस में हुई होती तो उनके घर वालों को भटकना नहीं पड़ता। लेकिन, केसी यादव की पत्नी सुनिति कई महीने से अफसरों का चक्कर लगा रही हैं कि कोई उनकी मदद कर दें तो पेंशन और पीएफ, ग्रेच्यूटी निकल जाए। असल में, रिटायरमेंट के चंद महीने बाद ही यादव को कोरोना ने अपना शिकार बना लिया। रिटायरमेंट के बाद जो पैसा मिलता है, वो भी पूरा नहीं मिला था। उपर से उनकी मौत को छह महीने से उपर होने जा रहा, मगर अभी भी पेंशन की फाइल भटक रही है।

सीएम की घोषणा और…

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नगरनार स्टील प्लांट को केद्र द्वारा निजी हाथों में बेचे जाने के खिलाफ बड़ा फैसला लेते हुए उसे खरीदने का ऐलान किया। लेकिन, बस्तर के जनप्रतिनिधि सीएम के इस गंभीर फैसले को समझने के लिए लगता है तैयार नहीं। हाल यह है कि बाहर से प्लांट की कमीशनिंग के लिए आ रहे एक्सपर्ट को गेट से भीतर नहीं घुसने दिया जा रहा। वो भी तब, जब मुख्यमंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट कर दिया है। ऐसे में, नगरनार प्लांट के प्रति एक स्वाभाविक लगाव बढ़ जाता है। बहरहाल, भिलाई स्टील प्लांट से भी वृहद और अतिआधुनिक नगरनार संयंत्र अब आखिरी स्टेज पर है। 20 हजार करोड़ के इस प्लांट में अगर बाधाएं खड़ी की गईं तो निश्चित तौर पर इसका नुकसान छत्तीसगढ़ और बस्तर का होगा। क्योंकि, सरकार ने अगर उसे खरीदना तय कर लिया है तो पहला मौका राज्य को ही मिलेगा।

चोर की दाढ़ी में तिनका

पिछले तरकश में एक सवाल था….एक रिटायर आईएएस प्रेम की गहराइयों में गोते लगा रहे हैं। इसके बाद रिटायर नौकरशाहों में जाहिर है बेचैनी बढ़नी ही थी। बताते हैं, कुछ के घर में सुबह से गृह युद्ध छिड़ गया तो कुछ की घरवाली अभी भी मुंह फुलाई हुई हैं….सवाल एक ही है….मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया। एक अफसर ने चोर की दाढ़ी में तिनका की की तरह खुद ही पत्नी को तरकश पढ़वा दिया….बाबा मैं नहीं हूं। इसमें इंटरेस्टिंग यह रहा कि सवाल किसी एक रिटायर आईएएस के बारे में था लेकिन, बाद में स्तंभकार के पास फोन करके कई और अफसरों के बारे में भी लोगों ने सनसनीखेज सूचनाएं दे डाली।

एक और आयोग

29 जनवरी को बाल संरक्षण आयोग की चेयरमैन प्रभा दुबे का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। प्रभा भाजपा शासन काल में चेयरमैन बनी थी। चूकि एक्ट के तहत यह आयोग बना है, इसलिए बिना किसी गंभीर मामलों के आयोग के चेयरमैन को हटाया नहीं जा सकता। लिहाजा, सरकार बदलने के बाद भी प्रभा दुबे अपने पद पर कायम रहीं। लाल बत्ती के दावेदारों के लिए एक वैकेंसी और मिल जाएगी।

छत्तीसगढ़ स्वर्ग कैसे?

अफसरों को खुश कर सरकार को चूना लगाने वाली कंपनियों के लिए छत्तीसगढ़ किस तरह स्वर्ग है, ये आज आपको बताते हैं। झारखंड की आईटी कंपनी को छत्तीसगढ़ में रजिस्ट्री आफिस का काम मिला है। कंपनी ने चार साल पहले करीब 10 करोड़ लगाकर आफिस में कंप्यूटरीकरण का काम किया है। और इसके एवज मेें हर साल लगभग 50 करोड़ ऐंठ रही है। वो ऐसे हुआ कि कंपनी ने पिछले सरकार में अधिकारियों से रजिस्ट्री के एक पेज का 60 रुपए रेट तय करवा लिया। जमीन की एक रजिस्ट्री में लगभग 20 पेज का कागज बनता है। यानी एक रजिस्ट्री पर करीब 12 सौ रुपए का सेवा कर कंपनी को देना पड़ता है। सूबे में साल में लगभग चार लाख जमीन की रजिस्ट्री होती है। इस हिसाब से एक साल में 48 करोड़ का भुगतान कर रही सरकार। जबकि, रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी चाहें तो अपना साफ्टवेयर बनवा सकते हैं। डा0 आलोक शुक्ला जब इतने बड़े लेवल पर धान खरीदी का साफ्टवेयर दो महीने में बनवा सकते हैं तो रजिस्ट्री विभाग क्यों नहीं। मगर अधिकारी नकारे और भ्रष्ट हों तो क्या किया जा सकता है। दिलचस्प यह है झारखंड की इस कंपनी को झारखंड में भी काम मिला था। वहां 20 रुपए रेट था। लेकिन, विरोधों के बाद झारखंड सरकार ने कंपनी से करार खतम करते हुए खुद का कंप्यूटराइजेशन कर लिया। दूसरा, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड एक बार रजिस्ट्री आफिस का मुआयना करने पहुंचे थे तो कंपनी के रेट पर हैरानी जताते हुए उन्होंने कहा था, इतना मार्जिन ठीक नहीं। रेट कम किया जाए। फिर भी रेट कम नहीं किया गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एसपी की लिस्ट पहले निकलेगी या एसपी से डीआईजी का प्रमोशन पहले होगा?

2. एक मंत्री को किस वजह से हर फ़ोटो फ्रेम में जगह मिल जाती है?

शनिवार, 9 जनवरी 2021

ब्यूरोक्रेसी में कोरोना

संजय के दीक्षित
तरकश, 10 दिसंबर 2021
कोरोना पीड़ितों की संख्या भले ही इस समय पहले की तुलना में कम हुई हो लेकिन, अब ब्यूरोक्रेसी के लोग ज्यादा शिकार होने लगे हैं। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन समेत मंत्रालय के आधा दर्जन से अधिक आईएएस इस समय कोरोना से पीड़ित हैं। समझा जाता है, विधानसभा के शीतकालीन सत्र दौरान अधिकारी इंफेक्टेड हुए होंगे। सत्र के दौरान मंत्रियों के यहां लगातार ब्रीफिंग हुई। अधिकांश मंत्रियों के बंगले में कोरोना के प्रोटोकाॅल का कोई पालन होता नहीं। जाहिर है, विधायकों में भी एक तिहाई से अधिक कोरोना से संक्रमित हैं। ये वे विधायक हैं, जिन्होंने टेस्ट कराया है। बाकी विधायकों ने मानसून सत्र में ही टेस्ट कराने से दो टूक इंकार कर दिया था। अगर सभी का टेस्ट हो तो विधायकों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है। बहरहाल, अभी तो आईएएस मुश्किल में हैं।


25 करोड़ का क्लब

नया रायपुर की रंगत बढ़ाने एनआरडीए अब कई स्तर पर काम शुरू कर दिया है। मंत्रियों, नौकरशाहों के बंगले का काम अब अंतिम चरण में है….इसके साथ शाही सुख-सुविधाओं वाला एक भव्य क्लब बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। 25 करोड़ में बनने वाले इस क्लब का डिजाइन तैयार करने एनआरडीए आजकल में टेंडर जारी करने वाला है। अफसरों का दावा है, ऐसा क्लब मेट्रो सिटी में भी नहीं होगा। इसमें दिन भर इंगेज करने वाली सुविधाएं होंगी। इंटरनेशनल लेवल की लायब्रेरी, जीम, योगा सेंटर, स्वीमिंग पुल, सैलून, मसाज, थियेटर, बीयर-बार, रेस्टोरेंट, कांफ्रेंस हाॅल के साथ टहलने के लिए बड़ा सा रोज गार्डन। ठीक भी है। इस तरह का क्लब बन जाने के बाद सरकारी अमला और उनके घर वाले नया रायपुर जाने में आगे-पीछे नहीं होंगे। नया रायपुर में रहने का क्रेज बढ़ेगा, सो अलग।

होटल पर मेहरबानी

एनआरडीए के पास एक तरफ कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए पैसे नहीं हैं। उधर, फोर स्टार होटल परिसर के झील और सड़क के सौंदर्यीकरण के लिए एनआरडीए ने 29 करोड़ रुपए का टेंडर जारी कर दिया है। जबकि, होटल को इसी शर्त पर रियायती दर से लैंड दिया गया था कि वो झील को भी डेवलप करेगा। तो फिर बड़े लोगों के होटल पर एनआरडीए की इतनी मेहरबानी क्यों? ये सवाल तो उठते ही हैं।

बिहार पीछे क्यों?

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिलों के दौरे में लोगों से मेल-मुलाकात के साथ ही वहां के अधिकारियों से आत्मीय चर्चा कर रहे हैं। इसमें उनके गांव, घर-परिवार, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जैसी तमाम बातें होती हैं। मुख्यमंत्री इस समय हलके मूड में होते हैं। इसी हफ्ते की बात है….मुख्यमंत्री जांजगीर में थे। उनका संवाद शुरू हुआ तो कुछ प्रशासनिक अफसर अटेंशन में डायरी खोलकर जेब से पेन निकाल लिए। इस पर सीएम मुस्कुराते हुए बोले…डायरी, पेन को अलग रख तन और को हल्का कर लो। संवाद के दौरान मुख्यमंत्री अधिकारियों से कई मामलों में उनकी राय भी पूछते हैं। जैसे रायगढ़ में प्रोबेशनर आईपीएस पुष्कर शर्मा से उन्होंने पूछा, ये बताओ बिहार देश को इतनी बड़ी संख्या में हर साल आईएएस, आईपीएस देता है, फिर विकास के मामले में वो इतना कैसे पिछड़ गया। पुष्कर बिहार से आते हैं।

विश्वस्त आईपीएस

वैसे तो सरकार अपने भरोसेमंद आईपीएस को ही खुफिया चीफ बनाती है। मगर डाॅ0 आनंद छाबड़ा की बात कुछ और है। वे छत्तीसगढ़ के पहले खुफिया चीफ होंगे, जो मुख्यमंत्री के साथ हेलिकाप्टर में जिलों के दौरे में जा रहे हैं। और, पूरे समय उनके साथ होते हैं। चतुर अधिकारी की तरह वे फोटो फ्रेम से दूर रहते हैं, लेकिन पूरी चीजें उनकी निगरानी में होती हैं। इससे पहिले छत्तीसगढ़ में बड़े-बड़े कद्दावर खुफिया चीफ हुए लेकिन, सीएम के साथ हेलिकाप्टर में जाने का मौका किसी को नहीं मिला। पहले सीएम के सिर्फ बस्तर विजिट में खुफिया चीफ जाते थे, वो भी सीएम के साथ नहीं। सरकार से जुड़़े लोग भी मान रहे कि मुख्यमंत्री आनंद पर काफी भरोसा करते हैं। बता दें, हिमांशु गुप्ता के बाद आनंद को जब खुफिया की कमान सौंपी गई थी तो लोग यह मानकर चल रहे थे कि ये टेंटेटिव व्यवस्था है। कुछ दिन बाद खुफिया चीफ बदल जाएंगे। क्योंकि, उनसे कई सीनियर रेंज में आईजी हैं। लेकिन, आज की तारीख में आनंद सरकार के विश्वस्त अफसर बन गए हैं।

विवेकानंद का विकल्प

96 बैच के आईपीएस विवेकानंद सिनहा एडीजी के पद प्रमोशन के पात्र हो गए हैं। वीवीआईपी रेंज के आईजी हैं, इसलिए हो सकता है जल्द ही उनका प्रमोशन हो भी जाए। लेकिन, उनके बाद दुर्ग रेंज का आईजी कौन होगा, ये बड़ा सवाल है। दुर्ग से सीएम सहित पांच-पांच मंत्री हैं। राजनांदगांव जैसा संवेदनशील जिला भी इसी में आता है। सरकार के पास आईजी दूसरा कोई है नहीं। पुलिस मुख्यालय में एक आईजी हैं केसी पैकरा। दूसरे, दिपांशु काबरा को सरकार ने एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बनाया है। इनके अलावे पांच रेंज और पांच ही आईजी हैं। अशोक जुनेजा की जगह पर सरकार विवेकानंद को एडीजी नक्सल बना सकती है। ऐसे में, फिर किसी डीआईजी को सरकार दुर्ग का प्रभारी आईजी बनाएगी। क्योंकि, इसके अलावा सरकार के पास और कोई विकल्प नहीं है।

सात एडीजी

विवेकानंद के प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में सात एडीजी हो जाएंगे। राजेश मिश्रा, पवनदेव, अरुणदेव गौतम, जीपी सिंह, एसआरपी कल्लूरी, हिमांशु गुप्ता, प्रदीप गुप्ता और विवेकानंद। राजेश का नाम इसलिए, क्योंकि उनके डेपुटेशन से लौटने की चर्चा है। इनमें पांच इतने दमदार हैं कि वे ठीक से लग जाएं तो छत्तीसगढ़ पुलिस का नाम हो सकता है। लेकिन, पता नहीं क्यों….पुलिस महकमे को ग्रह-नक्षत्र की शांति के लिए कोई पूजा-पाठ करानी चाहिए।

ट्रांसपोर्ट में दिपांशु

राज्य सरकार ने केसी पैकरा को हटाकर दिपांशु काबरा को ट्रांसपोर्ट की कमान सौंपी है। 97 बैच के आईपीएस दिपांशु आधा दर्जन से अधिक जिलों के एसपी रह चुके हैं और चार रेंज के आईजी। ट्रांसपोर्ट में आरके विज, संजय पिल्ले, अशोक जुनेजा जैसे सीनियर आईपीएस पोस्टेड रहे हैं। अब सरकार ने दिपांशु पर भरोसा करते हुए अहम जिम्मेदारी सौंपी है।

कमिश्नरी बंद

पिछले हफ्ते तरकश में एक सवाल था….सरकार को क्या कमिश्नर सिस्टम बंद कर देना चाहिए, बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी राय भेजी। अधिकांश लोगों का मत था कि कमिश्नर सिस्टम सरकार पर एक बोझ बन गया है। अधिकांश कमिश्नरी में अपील की सुनवाई के नाम पर सिर्फ वसूली चल रही। राजस्व बोर्ड बन जाने के बाद इसका कोई औचित्य भी नहीं है। कलेक्टर कमिश्नर की सुनते नहीं। गरियाबंद के एक व्यक्ति ने तंज कसा…सरकार भी इसे बोझ मानकर ही चल रही। रायपुर और बस्तर संभाग का चार्ज चुरेंद्र जैसे तेज-तर्राट अधिकारी को दे दिया गया था। अभी केए टोप्पो को रायपुर और दुर्ग का कमिश्नर बनाया गया है। टोप्पो हाल ही में कोरोना के प्रकोप से बाहर आए हैं। स्थिति बिगड़ने पर उनकी प्लाज्मा थेेेरेपी की गई थी। सार ये कि कमिश्नरी का कोई तुक नहीं।

पुराना इतिहास

बिलासपुर में विधायक से दुव्र्यवहार की खबर के बीच पुराने लोगों को मध्यप्रदेश के समय की घटना याद आ गई। 1998 में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बिलासपुर आए थे। इंदिरा विहार के हेलिपैड पर उनके सामने पूर्व विधायक अरुण तिवारी की कांग्रेसियों ने ऐसी पिटाई कर दी कि खून से तिवारी का कुर्ता सन गया। दिग्गी हेलिकाप्टर पर बैठने जा रहे थे, तब ये घटना हुई। वे तुरंत मुडे…औऱ नहीं..नहीं….करते बचाने के लिए आगे बढ़े तब तक तो काम हो चुका था। कहने का आशय यह है कि बिलासपुर के कांग्रेस नेताओं का इतिहास पुराना है। कांग्रेस के कैडर में बिलासपुर मजबूत है तो मसल्स पावर में भी कम नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक रिटायर आईएएस का नाम बताइये, जो इन दिनों प्रेम की गहराईयों मे गोते लगा रहे हैं?

2. राजधानी के किस सीनियर आईपीएस की मुश्किलें बढ़ती जा रही है? 


रविवार, 3 जनवरी 2021

आईपीएस की शादी

 संजय के दीक्षित

तरकश, 3 जनवरी 2021
2019 बैच के आईपीएस योगेश पटेल आईएएस रोमा श्रीवास्तव के साथ परिणय सूत्र में बंध गए हैं। भिलाई पुलिस बटालियन के मंदिर में उन्होंने रोमा के साथ सात फेरे लिए। इस अवसर पर दुर्ग आईजी विवेकानंद सिनहा, राजनांदगांव एसपी डी श्रवण, कमांडेंट गोवर्द्धन ठाकुर समेत वर-वधु को आर्शीवाद देने के लिए मौजूद थे। उनके अलावा कोई और नहीं। महासमुंद के रहने वाले योगेश फिलहाल राजनांदगांव में प्रोबेशनर हैं। रोमा वैसे हैं तो झारखंड की मगर उनके पैरेंट्स कोरबा में रहे…पढ़ाई भी एनआईटी रायपुर से हुई। पहली बार आईपीएस के लिए सलेक्ट हुई रोमा को तमिलनाडू कैडर मिला था। दोबारा उन्होंने फिर से यूपीएससी दिया और इस साल आईएएस मिल गया। उन्हें अभी कैडर अलाॅट नहीं हुआ है। बताते हैं, योगेश और रोमा एक साथ आईपीएस बने थे। दोनों ने फिर से यूपीएससी दिया। इसमें रोमा आईएएस बन गई। योगेश का हार्ड लक ये रहा कि दूसरी बार भी उन्हें आईपीएस मिला। चलिये, योगेश आईएएस नहीं बन पाए लेकिन, आईएएस से शादी कर छत्तीसगढ़ कैडर की एक संख्या तो बढ़ा दिए।


हार्ड लक!

2002 बैच के दोनों आईएएस डाॅ0 रोहित यादव और डाॅ0 कमलप्रीत सिंह पिछले साल भारत सरकार में ज्वाइंट सिकरेट्री के लिए इम्पेनल हुए थे। इस लिहाज से समझा जा रहा था कि इस साल 2003 बैच के कम-से-कम आधे आईएएस तो जेएस के लिए इम्पेनल हो ही जाएंगे। मगर पता नहीं भारत सरकार ने कौन सा फार्मूला अपनाया कि छत्तीसगढ़ से एक भी आईएएस को इसमें जगह नहीं मिल सकी। इस बैच में डायरेक्ट और प्रमोटी को मिलाकर कुल 9 आईएएस हैं। इनमें कुछ तो काफी ठीक-ठाक हैं। उम्मीद करते हैं केंद्र सरकार शायद सेकेंड लिस्ट जारी करें और उसमें अपने कैडर के अफसरों को भी जगह मिल जाए।

डेपुटेशन पर हिमांशु

एडीजी हिमांशु गुप्ता डेपुटेशन पर राजस्थान जाने की खबर आ रही हैं। पता चला है सरकार ने उन्हें एनओसी देने के लिए सहमति दे चुकी है। एनओसी मिलने के बाद आवश्यक प्रक्रिया उपरांत हिमांशु जयपुर की फ्लाइट पकड़ लेंगे। राजस्थान हिमांशु का गृह प्रदेश है। हिमांशु जा रहे हैं तो एडीजी राजेश मिश्रा BSF की प्रतिनियुक्ति से रायपुर लौटने की चर्चा है। राजेश 90 बैच के आईपीएस हैं। वे दुर्ग में एसपी रहे और बिलासपुर में आईजी। डीजी अशोक जुनेजा के बाद सीनियरिटी में राजेश का नम्बर है। नियमानुसार इस साल उन्हें डीजी बन जाना चाहिए। बहरहाल, हिमांशु के डेपुटेशन पर जाने के बाद समझा जाता है एसआरपी कल्लूरी को पीएचक्यू में प्रशासन का जिम्मा दिया जाए।

अंकित गर्ग को एक्सटेंशन

आईपीएस अंकित गर्ग को भारत सरकार ने दो साल का एक्सटेंशन दे दिया है। वे 2015 में डेपुटेशन पर एनआईए में गए थे। एनआईए में उनके पास नक्सल सेल का जिम्मा है। पांच साल की समयवधि पूरी होने के बाद एमएचए ने उन्हें दो साल की सेवावृद्धि दे दी है। यानी अब वे 2022 में छत्तीसगढ़ लौटेंगे।

पुरंदेश्वरी की हिंदी

बीजेपी की नई प्रभारी डी0 पुरंदेश्वरी साउथ से आती हैं, लिहाजा उनकी हिंदी पर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होंगे। लेकिन, ऐसा नहीं….उनकी हिंदी इतनी अच्छी है कि भाषण में इस्तेमाल किए गए कई शब्दों से बीजेपी नेता आवाक रह गए। हां ये जरूर हुआ कि अधिकांश बीजेपी नेता अपने उद्बोधन में डी. पुरंदेश्वरी का उच्चारण एक बार में नहीं कर सकें। कुछ बीच में अटक गए….तो कुछ पुरंदे…पुरंदेश्व करते हुए आगे बढ़ गए। बीजेपी के कई नेता अब एक बार में पुरंदेश्वरी बोल जाने की प्रैक्टिस कर रहे हैं।

झटका-1

आईएएस अभिजीत सिंह को कलेक्टरी से हटा दिया गया। वे मई में कलेक्टर बनकर नारायणपुर गए थे। वे अपने पहले जिले में मात्र छह महीने ही रह पाए। सरकार ने उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम का एमडी अपाइंट किया है। आईएएस के लिए यह पोस्टिंग बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। आप इससे समझ सकते हैं कि राज्य बनने के बाद कोई डायरेक्ट आईएएस इस पद पर नहीं रहा है। आईएफएस जरूर पापुनि के एमडी रहे हैं। अभिजीत का लगता है, ग्रह-नक्षत्र ठीक नहीं चल रहा। पिछली सरकार में ग्राम सुराज के समय तब के सीएम रमन सिंह ने उन्हें कोंडागांव जिपं सीईओ से हटा दिया था। और अब कलेक्टरी से।

झटका-2

एडिशनल पीसीसीएफ अरुण पाण्डेय को सरकार ने पोस्टिंग के नौ दिनों मेें ही वन मुख्यालय में विकास और योजना से हटा दिया। उनकी जगह पर जैव विविधता बोर्ड के मेम्बर सिकरेट्री तपेश झा को भेजा गया है और अरुण को झा की जगह पर। ये कैसे हुआ…क्यों हुआ, वन महकमा सकते में है। महत्वपूर्ण यह है कि इस ट्रांसफर के बारे में वन महकमे के किसी को भनक तक नहीं लग सकी। पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी राजधानी से बाहर थे। दो लाईन का नोट आया और आदेश जारी हो गया।

पुलिस का नम्बर

नये साल में जवानों के साथ मुख्यमंत्री का लंच और मुलाकात कार्यक्रम काफी हिट रहा। इसके लिए सीएम सचिवालय से 30 दिसंबर को एक लाइन का मैसेज आया था…इसे करना है। और खुफिया चीफ आनंद छाबड़ा ने 24 घंटे में इसका आयोजन कर दिया। जाहिर है, इससे पुलिस का नम्बर बढ़ा है…नक्सल एरिया में तैनात पैरा मिलिट्री जवानों ने भी छत्तीसगढ़ पुलिस के कोआर्डिनेशन की तारीफ की।

तीन साल में 5 जिला

आईएएस डोमन सिंह ने कलेक्टरी का रिकार्ड बना दिया है… कम समय में ज्यादा जिले के कलेक्टर बनने का। ताजा फेरबदल में उन्हें महासमुंद जिले की कमान सौंपी गई है। 2018 मध्य में उन्होंने मंुगेली से कलेक्टरी की पारी शुरू की थी। इसके बाद कांकेर, फिर कोरिया और गौरेला-पेंड्रा। और अब महासमंद। हालांकि, कांकेर में उन्हें कम समय रहने का मौका मिला। लोकसभा चुनाव के दौरान गृह जिला होने के कारण उन्हें हटना पड़ गया था। प्रमोटी आईएएस में पांच जिला करने वाले डोमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले कलेक्टर होंगे। प्रमोटी में अभी तक चार जिला करने का रिकार्ड ठाकुर राम सिंह के पास है। हालांकि, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और रायगढ़ जैसे बड़े जिले का कलेक्टर रहने का ठाकुर राम सिंह का रिकार्ड टूटेगा, इसमें अब संशय है। अब कलेक्टर छह महीने, एक साल में पेवेलियन लौट जा रहे हैं। फिर, अब आईएएस में संख्या भी काफी हो गई है। पहले संख्या काफी कम होती थी। एक बैच में छत्तीसगढ़ को इक्का-दुक्का आईएएस मिलते थे।

एक और लिस्ट

सरकार ने तीन कलेक्टरों को बदल दिया। नारायणपुर, महासमंुद में प्रमोटी आईएएस को मौका दिया गया तो गौरेला में डायरेक्ट आईएएस नम्रता गांधी को। नम्रता 2013 बैच में सबसे उपर थीं। इस बैच के विनीत नंदनवार पहले ही कलेक्टर बन चुके हैं। 2013 बैच के अभी चार आईएएस क्यूं में हैं। जाहिर है, उन्हें भी कलेक्टर बनाया जाएगा। साथ ही दो-तीन बड़े जिले के कलेक्टर भी आने वाले समय में बदलेंगे। एक बड़े जिले के कलेक्टर का लास्ट मोमेेंट में कैच छूट गया, वरना वे आउट हो गए होते।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आधा दर्जन सीनियर आईपीएस की पोस्टिंग के बाद क्या अब पुलिस अधीक्षकों की लिस्ट निकलेगी ?
2. जब कमिश्नर बनाने के लिए अफसर नहीं मिल रहे तो सरकार को इस सिस्टम को बंद करने पर विचार क्यों नहीं करना चाहिए?