शनिवार, 23 नवंबर 2019

दो गाड़ी, 8 कमिश्नर, कलेक्टर

24 नवंबर 2019
कमिश्नर और सात कलेक्टर दो गाड़ी में….यह थोड़ा अटपटा लग सकता है। मगर 21 नवंबर को दोपहर जब नया रायपुर के स्टार होटल मेफेयर में कमिश्नर, कलेक्टर्स गाड़ी से उतरे तो देखने वाले आवाक रह गए! जनरल पब्लिक की तरह कलेक्टर्स…? दरअसल, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने जब छह दिन के भीतर दूसरी बार बस्तर के कमिश्नर, कलेक्टर्स, सीईओ को रायपुर तलब किया तो साफ तौर पर हिदायत दी गई वे अलग-अलग गाड़ियों में आकर सरकारी धन का अपव्यय करने की बजाए दो गाड़ियों में आएं। अब सीएस का हुकूम था। सो, उसका पालन करना ही था। बस्तर के सभी सातों कलेक्टर कमिश्नर बंगले में एकत्रित हुए। और, फिर वहां से एक गाड़ी में कमिश्नर और तीन कलेक्टर बैठे और दूसरी में चार कलेक्टर। इसी तरह दो अन्य गाड़ियों में सात जिला पंचायत सीईओ। होटल मेफेयर में सभी को लजीज भोजन कराया गया। कई तो धन्य हो लिए मेफेयर होटल को देखकर ही, खाने की तो पूछिए मत! लंच के बाद सभी अफसरों को मंत्रालय ले जाया गया मीटिंग के लिए। वहां फिर बस्तर संभाग के डेवलपमेंट को लेकर अफसरों की ऐसी खिंचाई हुई कि जब वे बाहर निकले तो चेहरा देखने लायक था। खुद को सुपरमैन समझने वाले कलेक्टरों को एक तो गाड़ियों में भर कर आना पड़ा और उस पर से….टांग देंगे, लटका देंगे। इसे ही कहते हैं, खिला-पिलाकर धुलाई। कागजों और सोशल मीडिया में काम करके सरकार को भ्रमित करने वाले कलेक्टरों को अब संभल जाना चाहिए।

अजब-गजब

जिस महिला आईएफएस पर 13 करोड़ के बॉटनीकल गार्डन में गड़बड़झाला करने का आरोप लगा था, वह रायपुर की डीएफओ बन गई। जंगल सफारी में पोस्टिंग के दौरान महिला आईएफएस ने नया रायपुर में 13 करोड़ का बॉटनीकल गार्डन बनवाया था। एक कांग्रेस नेता ने आरटीआई में जानकारी निकलवाई कि गार्डन में मुश्किल से तीन करोड़ भी खर्च नहीं हुए हैं। नेता ने पूरे दस्तावेज के साथ अफसर के खिलाफ ईओडब्लू में शिकायत की। शिकायत गंभीर किस्म की है, इसलिए ईओडब्लू ने जांच के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। अनुमति की फाइल सरकार में प्रक्रियाधीन है। इससे पहिले महिला अफसर को रायपुर जैसे डिवीजन की कमान सौंप दी गई। इस चक्कर में रायपुर के डीएफओ उत्तम गुप्ता को छह महीने में ही हटना पड़ गया। उत्तम वही आईएफएस हैं, जिन्होंने पिछली सरकार के वन मंत्री के 50 लाख के फर्जी वाउचर पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया था। इसके लिए पुरस्कृत होने की बजाए छुट्टी हो गई। है न अजब-गजब!

जय-बीरु की जोड़ी

ब्यूरोक्रेसी में कभी आईएएस आरपी मंडल और आईपीएस अशोक जुनेजा को जय-बीरु की जोड़ी कहा जाता था। दोनों पहले बिलासपुर के कलेक्टर-एसपी रहे और फिर रायपुर के। राजधानी में ये जोड़ी काफी हिट रही….दोनों हर मौके पर साथ दिखते थे। वक्त बदला….जय अब चीफ सिकरेट्री हैं और बीरु एडीजी रह गए। बीरु का जनवरी से प्रमोशन ड्यू है। अब पीएचक्यू में अफसर चुटकी ले रहे हैं…क्या बीरु को डीजी बनाने में जय मदद करेंगे। यह सवाल इसलिए भी मौजूं है कि 30 नवंबर को डीजी जेल बीके सिंह रिटायर हो रहे हैं। सरकार चाहे तो संजय पिल्ले और आरके विज के साथ अशोक जुनेजा को डीजी बनाने के लिए डीपीसी कर सकती है। भारत सरकार से इजाजत लेकर। जाहिर है, बीरु को जय से उम्मीदें तो होगी ही।

27 तक ऐलान

राज्य निर्वाचन आयोग 28 नवंबर या इससे एकाध दिन पहले नगरीय निकाय चुनाव का ऐलान कर सकता है। यह उसकी मजबूरी भी होगी। क्योंकि, पांच जनवरी तक सभी 151 नगर निगम, नगरपालिकाएं और नगर पंचायतों का गठन हो जाना चाहिए। काउंटिंग के बाद कलेक्टर विधिवत बैठक बुलाएंगे। फिर, इस बार मेयर का चुनाव भी राज्य निर्वाचन आयोग कराएगा। पहले पार्षद और महापौर का चुनाव एक ही दिन होते थे। इसलिए, आयोग का काम इसके बाद खतम हो जाता था। अब पार्षद मेयर चुनेंगे। और, यह राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में होगा। लिहाजा समझा जाता है 27, 28 दिसंबर तक काउंटिंग करना अनिवार्य होगा। तभी पूरी प्रक्रिया पूरी कर 5 जनवरी तक पहली बैठक संपन्न हो पाएगी। सो, यह मानकर चलें कि 28 नवंबर तक सूबे में आचार संहिता की घोषणा हो जाएगी।

नया प्रदेश अध्यक्ष


बीजेपी के दर्जन भर नए जिलाध्यक्षों का ऐलान हो गया है। चार जिलों में निर्वाचन की प्रक्रिय पूरी की जाएगी। इसके बाद बाकी जिलों में मनोनयन कर दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा के संविधान के अनुसार कुछ परसेंटेज जिलों में विधिवत चुनाव जरूरी है। याने 27 में से 16 जिलों में। इसके बाद पार्टी मनोनयन के लिए फ्री रहेगी। खासकर जिन जिलों में विवाद की स्थिति है, वहां मनोनयन किया जाएगा। हालांकि, भाजपा के भीतरखाने से यह भी सुनाई पड़ रहा है कि पार्टी अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को भी बदलने पर विचार कर रही है। सत्ताधारी पार्टी और उस पर भी सीएम भूपेश बघेल जैसे आक्रमक राजनीति करने वाले नेता हों, उनके सामने उसेंडी बेहद कमजोर पड़ रहे हैं। नए अध्यक्ष को लेकर भाजपा के भीतर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है। नए अध्यक्ष को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं की नजर पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की ओर है। नया अध्यक्ष उनके पसंद का होगा या फिर पार्टी कोई हटकर फैसला करेगी। वैसे, जिला अध्यक्षों में रमन सिंह की चल रही है। इसलिए, पार्टी के बड़े नेता भी नए अध्यक्ष के बारे में खुलकर कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

कुजूर की ताजपोशी

निवर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुजूर को रिटायर होने के 15 दिन के भीतर ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया है। हालांकि, यह पोस्टिंग चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने वाले अफसर के लायक नहीं है। इस पद पर प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी जीएस मिश्रा पोस्टेड रहे हैं। उनसे पहिले एसीएस DS मिश्रा भी। लेकिन, मिश्रा ने भी रिटायर होने के बाद एक साल तक वेट किया। जब कहीं कोई गुंजाइश नहीं बची तब इस पोस्ट के लिए उन्होंने हां किया था। फिर, निर्वाचन की पोस्टिंग को सरकार ने पांच बरस से घटाकर दो बरस कर दिया है। किन्तु कुजूर के सामने कोई विकल्प नहीं था। सीएस लेवल का पोस्ट कहीं खाली नहीं है। रेरा में विवेक ढांड हैं और मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत। बिजली बोर्ड में शैलेंद्र शुक्ला हाल ही में चेयरमैन बने हैं। एक पद सूचना आयुक्त का था। लेकिन, वो और छोटा हो जाता। लिहाजा, कुजूर ने सहकारिता निर्वाचन को ही ओके कर दिया। वैसे भी, कुजूर के पास चुनाव कराने का खासा तर्जुबा है। देश में सबसे अधिक राज्यों में वे प्रेक्षक बनकर चुनाव कराने गए हैं। कई साल तक प्रदेश के निर्वाचन अधिकारी भी रहे हैं।

केडीपी को वेट

सीएस सुनील कुजूर और एसीएस केडीपी राव एक साथ रिटायर हुए थे। कुजूर को पोस्टिंग मिल गई। ऐसे में, सवाल उठता है केडीपी का क्या होगा। केडीपी की सहकारी निर्वाचन में दिलचस्पी थी। लेकिन, वो अब फुल हो गया है। अब एकमात्र बच रहा है सूचना आयुक्त। वहां भी किसी आरटीआई वाले की नियुक्ति की चर्चा हो रही है। ऐसे में, केडीपी को सूचना आयुक्त के लिए जोर लगाना पड़ेगा। तभी कुछ बात बन पाएगी। वरना, पुराना अनुभव है, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग जितनी जल्दी मिल जाए, उतना अच्छा। धीरे-धीरे मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। गिरधारी नायक का उदाहरण सामने है। याद होगा, एक्स चीफ सिकरेट्री अशोक विजयवर्गीय ने मुख्य सूचना आयुक्त बनने के लिए सीएस जैसा पद छह महीने पहिले छोड़ दिया था। एसीएस सरजियस मिंज ने भी कुछ ऐसा ही किया था। विवेक ढांड को रिटायरमेंट से पहले ही पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को रिटायरमेंट के बाद मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति 12 दिन में मिल गई थी । सिकरेट्री सुरेंद्र जायसवाल को रिटायरमेंट की शाम को ही संविदा नियुक्ति मिल गई थी। इसी तरह का कुछ सिकरेट्री हेमंत पहारे के साथ हुआ था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह और जेल विभाग से ट्रांसपोर्ट को अलग रखने के मायने क्या हैं?
2. रिटायर आईपीएस गिरधारी नायक को आपदा प्रबंधन का प्रमुख बनाने में किसने रोड़ा लगाया है?

शनिवार, 16 नवंबर 2019

आईएएस, आईपीएस और चपरासी

17 नवंबर 2019
र्शीर्षक देखकर आप चौंक गए होंगे….आईएएस, आईपीएस और चपरासी का क्या कांबिनेशन हो सकता है। लेकिन, सूबे के चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल का काम कराने का जुदा अंदाज है….कई बार वे ऐसे उदाहरण दे देंगे कि….। 15 नवंबर की बात है….मंडल स्कूटी में राजधानी में साफ-सफाई का जायजा लेने निकले। शास्त्री चौराहे पर उन्होंने नगरीय निकाय के अफसरों से कहा, अविभाजित मध्यप्रदेश के समय तीन बड़े शहर होते थे। पहले नम्बर पर इंदौर, दूसरा रायपुर और तीसरा भोपाल। साफ-सफाई में इंदौर देश में पहले नम्बर पर आ गया। भोपाल दूसरा और रायपुर 105 वें पर खिसक गया। मंडल बोले, तीन भाई में से एक आईएएस बन गया, दूसरा आईपीएस तो रायपुर चपरासी जैसा क्यों? आईएएस, आईपीएस नहीं बना तो कम-से-कम उसे आईएफएस तो बनना ही चाहिए था। उन्होंने अफसरों से कहा, रायपुर को किसी भी सूरत में साफ-सफाई में अंडर थ्री लाना है। बताते हैं, सीएम भूपेश बघेल ने नए सीएस को टास्क दिया है कि रायपुर को साफ-सफाई के मामले में अव्वल लाना है।

आईपीएस का लास्ट विकेट

डीजी जेल बीके सिंह 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। याने 13 दिन बाद। छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर के लिए 2019 पहला साल होगा, जिसमें चार आईपीएस रिटायर हो चुके हैं….पांचवे का नम्बर है। इनमें तीन तो डीजी लेवल के। सबसे पहिले गिरधारी नायक। फिर, एएन उपध्याय। और, अब 87 बैच के बीके सिंह। छत्तीसगढ़ जैसे छोट कैडर के लिए यह बड़ा वैक्यूम कहा जाएगा, जिसमें छह महीने के भीतर डीजी लेवल के तीन आईपीएस रिटायर हो गए। इसी साल डीआईजी एसएस सोरी और डीएल मनहर भी रिटायर हुए। कुल मिलाकर पांच। हालांकि, आईएएस में भी इस साल सीएस, एसीएस समेत सात अफसर रिटायर हुए। लेकिन, आईएएस का कैडर बड़ा है।

नो पोस्टिंग का रहस्य!

2006 बैच के आईएएस बसव राजू को राज्य सरकार ने आखिरकार कर्नाटक कैडर के लिए रिलीव कर दिया। कर्नाटक बसव का होम स्टेट है। पिछले सरकार के समय से उनका वहां जाने का चल रहा था। याद होगा, डेपुटेशन फायनल होने के बाद जब वे बंगलुरु जाने के लिए पैकिंग कर रहे थे, तो बाई डिफाल्ट वे रायपुर कलेक्टर बन गए। दरअसल, विधानसभा चुनाव के ऐन पहिले रायपुर कलेक्टर ओपी चौधरी के इस्तीफा दे देने के बाद सरकार अंकित आनंद को रायपुर का कलेक्टर बनाना चाहती थी। इसके लिए चुनाव आयोग को तीन नामों का पैनल भेजा गया। लेकिन, आयोग ने दूसरा पैनल मांग लिया। इसमें भी अंकित का नाम सबसे उपर था। सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए बसव राजू का नाम नीचे जोड़ा गया था। बट चुनाव आयोग ने सबसे नीचे वाले नाम पर टिक लगा दिया। और, बसव राजधानी रायपुर के कलेक्टर बन गए। उन्होंने विधानसभा चुनाव कराया और फिर लोकसभा भी। एक समय जब यह कहा जाने लगा था कि बसव अब पिच पर टिक गए हैं, अब वे शायद ही कर्नाटक जाएं, लोकसभा चुनाव के बाद मई एंड में बसव का अचानक विकेट उखड़ गया। इसके बाद से वे बिना विभाग के थे। कहां रायपुर के कलेक्टर और एकदम से जमीन पर….ब्यूरोक्रेसी भी स्तब्ध थी….आखिर हुआ क्या। बसव की नो पोस्टिंग अब भी रहस्य के घेरे में है।

छोटा जिला, बड़ा काम

कलेक्टर कांफ्रेंस और फूड डिपार्टमेंट के रिव्यू में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए कि बड़े जिलों की तुलना में छोटे जिले आउटस्टैंडिंग काम कर रहे हैं। सीएस आरपी मंडल ने जिन जिलों के कामों की तारीफ की, उनमें सूरजपुर, कोंडगांव, दंतेवाड़ा, गरियाबंद और सुकमा शामिल हैं। कलेक्टर कांफ्रेंस की खास बात यह रही कि सुबह दस बजे से दोपहर ढाई बजे तक चली बैठक में नो ब्रेक रहा। साढ़े चार घंटे तक तेज रफ्तार में चली बैठक में कई कलेक्टर पसीने पोंछते नजर आए। दरअसल, कलेक्टरों को यह भ्रम था कि सीएस फील्ड के अफसर हैं, आंकड़ों में उलझाकर वे सफाई से निकल लेंगे। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। मंडल पूरी तैयारी से बैठक में आए थे। वे जब पूछना शुरू किए….मिस्टर! तुम्हारे जिले में फलां महीने में, फलां प्रकरण का इतने ही निबटारा क्यों हुए….कलेक्टर लगे बगले झांकने। सीएस के निशाने पर अधिकांश बड़े जिलों के कलेक्टर रहे। छोटे जिलों में नारायणपुर का पारफारमेंस पुअर रहा। देश के 110 आकांक्षी जिलों में नारायणपुर का नम्बर 104वां है।

जेल किसे?

डीजी जेल और होमगार्ड बीके सिंह इस महीने रिटायर होंगे तो उनकी कुर्सी कौन संभालेंगे, पीएचक्यू में यह बड़ा सवाल है। जेल और होम गार्ड में अभी तक डीजी लेवल के अफसर ही पोस्टेड रहे हैं। वासुदेव दुबे से लेकर राजीव माथुर, संतकुमार पासवान, गिरधारी नायक, बीके सिंह सभी डीजी रैंक के आईपीएस थे। अब दिक्कत यह है कि उपर लेवल में अफसरों की बेहद कमी हो गई है। डीजीपी डीएम अवस्थी के बाद दूसरे, तीसरे नम्बर पर कोई बचेगा ही नहीं। गिरधारी नायक, एएन उपध्याय और अब बीके सिंह रिटायर हो जाएंगे। लिहाजा, डीजी लेवल पर अवस्थी अकेले बच जाएंगे। जबकि, पोस्ट चार का है। पिछली सरकार में तो ये पांच हो गया था। ये स्थिति इसलिए निर्मित हुई है कि 88 बैच के तीन आईपीएस डीजी बन गए थे, उनका डिमोशन हो गया है। वे सभी अब एडीजी हैं। इनमें से अब मुकेश गुप्ता का नाम कट जाएगा। संजय पिल्ले और आरके विज को प्रमोट करने के लिए भारत सरकार से इजातत मांगी गई है। ऐसे में, जेल और होमगार्ड की कमान सरकार को किसी एडीजी को ही सौंपना पड़ेगा।

सीएम की 51 चिठ्ठी

सीएम ने पिछले 11 महीने में चीफ सिकरेट्री को विभिन्न मामलों में 51 लेटर लिखा है। इसमें प्रशासनिक सुधार से लेकर योजनाओं के क्रियान्यवन से संबंधित पत्र शामिल हैं। चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल 14 नवंबर को कलेक्टर कांफ्रेंस में पहुंचे तो यही 51 चिठ्ठियां उनके हाथ में थीं। उन्होंने कलेक्टरों से कहा, ये 51 चिठ्ठियां मेरे लिए 51 जिम्मेदारी हैं, 51 क्विंटल के बराबर। उन्होंने कुछ पत्रों को पढ़कर सुनाया। बोले….यह सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नगरीय निकाय चुनाव नियत टाईम पर होगा या आगे बढ़ सकता है?
2. सिर्फ अल्पसंख्यक आयोग में नियुक्ति करके सरकार ने क्या संदेश दिया है?

शनिवार, 9 नवंबर 2019

टीम मंडल

10 नवंबर, 2019
वैसे तो कहने के लिए सूबे में 80 हजार के स्केल वाले तीन पद हैं, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। लेकिन, ये कहने के लिए है। सीएस ब्यूरोक्रेसी का मुखिया होता है, लिहाजा उसका रुतबा सबसे उपर होता है। पिछले 19 साल में लोगों ने देखा भी कि बड़ी बैठकों में डीजीपी को तीसरे या चौथे नम्बर की ही कुर्सी मिलती थी… पीसीसीएफ तो किसी गिनती में ही नहीं होते थे। डीजीपी में विश्वरंजन ने जरूर अपना ओहरा कायम रखा। बाकी डीजीपी और पीसीसीएफ का प्रोटोकॉल के लायक कभी समझा ही नहीं गया। लेकिन, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने सूबे में नई पहल करते हुए अफसरों को निर्देश दिया है कि कोई भी बड़ी बैठक हो तो सीएस के अगल-बगल डीजीपी और पीसीसीएफ की कुर्सी लगनी चाहिए। पहली बार राज्योत्सव में लोगों ने इसे देखा भी। डीजीपी डीएम अवस्थी और पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी मंच पर नजर आए। यही नहीं, मंडल इन डीजीपी और पीसीसीएफ को साथ लेकर दौरे पर निकलने वाले हैं। टीम मंडल का पहला दौरा बस्तर का होगा।

पूर्व मंत्री का गुस्सा

भाजपा मुख्यालय में 7 नवंबर को जो हुआ, वह पहले कभी नहीं हुआ। नेतृत्व सीधे निशाने पर था। दरअसल, नगरीय निकाय और संगठन चुनाव के लिए बुलाई गई बैठक में पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय को बोलने की बारी आई तो उन्होंने भिलाई में मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के तरीके पर सवाल उठा दिए। उन्होंने बेहद तल्खी के साथ कहा कि 15 साल तक आप लोग भिलाई के संदर्भ में कोई नियुक्ति करनी होती थी तो अपने मन से नाम तय कर मुझे सहमति के लिए भेज देते थे। अब पार्टी विपक्ष में आ गई तो सहमति के लिए मुझसे पूछने की जरूरत नहीं समझी गई। प्रेमप्रकाश का इतना बोलना था कि पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और विधायक शिवरतन शर्मा खड़े हो गए। इसके बाद तो कुछ बाकी नहीं रहा। अजय चंद्राकर यहां तक बोल गए कि 15 साल तक सत्ता में रही पार्टी का ये हाल है कि एक साल होने जा रहा और एक कार्यक्रम नहीं कर सकी है…लोग पूछ रहे हैं, कहां है बीजेपी। इस वाकये के बाद बैठक कक्ष में सन्नाटा पसर गया….बड़े नेताओं की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई। पार्टी पदाधिकारियों के तेवर भांप कर ही फिर 13 नवंबर से जेल भरो आंदोलन का ऐलान करना पड़ा।

एडीजी को आईजी

गृह विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों का जवाब नहीं है। एडीजी, आईजी लेवल के आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर में ऐसी चूक कि अफसर बगले झांकते रहे। पिछले हफ्ते 22 आईपीएस के ट्रांसफर हुए, उसमें एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता के भी नाम थे। हिमांशु दुर्ग रेंज से एडीजी इंटेलिजेंस बनाए गए। और एसआरपी कल्लूरी ट्रांसपोर्ट से पुलिस मुख्यालय। चूकि, इन दोनों जगहों पर आईजी लेवल के अफसर पोस्टेड होते हैं। लिहाजा, मंत्रालय के अफसरों ने ज्यादा दिमाग लगाने की बजाए दोनों को आईजी बना दिया…हिमांशु गुप्ता आईजी खुफिया होंगे कल्लूरी पीएचक्यू में आईजी। जबकि, दोनों कबके एडीजी हो चुके हैं।


कलेक्टरों का ट्रांसफर?

कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट हालांकि, नगरीय निकाय चुनाव के बाद निकलेगी। लेकिन, खबर आ रही है कि चुनाव का ऐलान होने से पहिले एक-दो कलेक्टरों को सरकार बदलने पर विचार कर रही है। खासकर एक कलेक्टर से सरकार कुछ नाराज भी है। संकेत यह भी हैं कि कहीं एक-दो के ट्रांसफर हुए तो हो सकता है, चेन कुछ बड़ा हो जाए।

दो पीसीसीएफ

कैबिनेट द्वारा पीसीसीएफ के दो पदों बढ़ाने की हरी झंडी देने के बाद प्रमोशन की अनुमति के लिए फाइल भारत सरकार भेज दी गई है। वहां से सहमति मिलते ही डीपीसी होगी और आरबीपी सिनहा और संजय शुक्ला पीसीसीएफ हो जाएंगे। हालांकि, सिनहा इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। इसलिए, अगले हफ्ते तक अगर डीपीसी हो गई तो मुश्किल से वे 15 दिन पीसीसीएफ रह पाएंगे। दिसंबर में फिर उनकी जगह पर नरसिम्हा राव पीसीसीएफ बन जाएंगे। पता चला है, इसी डीपीसी में नरसिम्हा राव का नाम लिफाफा में बंद कर दिया जाएगा। ताकि, फिर से डीपीसी करने की जरूरत न पड़े। सिनहा अभी मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सीईओ हैं और संजय लघु वनोपज संघ के एडिशनल एमडी। प्रमोशन के बा समझा जाता है, संजय वहीं पर एमडी बन जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह और जेल और पंचायत मिलने से सुब्रत साहू प्रसन्न होंगे या…..?
2. सुनील कुजूर और केडीपी राव को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग कब तक मिलेगी?