अल्बर्ट पिंटो
रमन इलेवन के एक वरिष्ठ खिलाड़ी को गुस्सा नाहक नहीं आ रहा.......उसके वाजिब कारण हैं। विभाग में निर्माण कार्य का 1800 करोड़ रुपए का टेंडर होना है। अपने लोगों को काम मिल गया तो एकमुश्त आठ-दस खोखा का इंतजाम हो जाएगा। सो, मंत्रीजी मैन्यूल टेंडर के लिए जोर डाल रहे हैं। जबकि, सरकार ने 20 लाख रुपए के अधिक के लिए ई-टेंडर का नियम बना रखा है। और, इसे अब 10 लाख करने पर विचार किया जा रहा है। बावजूद इसके, जल्दी काम करने का हवाला देकर मंत्रीजी ने सबको डीओ लेटर लिखा, मगर चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और एसीएस फायनेंस डीएस मिश्रा अड़ गए। मंत्रीजी ने फिर लिखा, लेट होगा तो दिल्ली की एजेंसी पैसा देने में टालमटोल कर सकती है। इस पर कुमार और मिश्रा ने कहा कि वे दिल्ली में बात करके पैसा रिलीज करा देंगे, मगर ई-टेंडर ही करना पड़ेगा.....हम लोगों को जेल नहीं जाना है। अब, अफसर ऐसे अड़ेंगे, तो कोई कैसे नहीं भड़केगा। अफसरों को इतना खयाल तो करना चाहिए, अगले साल चुनाव है। चुनाव में खरचा लगता ही है। फिर तीसरी बार का क्या भरोसा है। छह-आठ महीने ही बाकी है। उसके बाद अचार संहिता लग जाएगा। थोड़े दिन बचे हैं, कर लेने देना चाहिए।
खफा
ब्यूरोक्रेट्स की एक खासियत होती है......पीठ पीछे एक-दूसरे की लाख बुराई कर लें, बिरादरी पर हमला हुआ, तो एक हो जाते हैं। बीएल अग्रवाल के यहां इंकम टैक्स छापे के समय भी लोगों ने इसे देखा और इस बार भी......। सोमवार को कैबिनेट की बैठक में एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार पर भड़ास निकालने पर मंत्रालय के आईएएस गुस्से मंे हैं। पता चला है, इस मामले में जल्द ही आईएएस एसोसियेशन की बैठक होगी। इसके बाद एसोसियेशन के लोग सीएम से मिलकर अपनी बात रखेंगे। अफसरों में गुस्सा इस बात का है कि गलत काम कराने के लिए प्रेशर बनाने की स्ट्रेटज्डी अपनाई जा रही है, वह ठीक नहीं है। अफसरों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि ऐसा ही रहा तो वे कैबिनेट की बैठक में जाना बंद कर देंगे।
वक्त की बात
वक्त-वक्त की बात होती है......कुछ दिन पहले तक मंत्रालय के दो आला आईएएस अधिकारी एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते थे। एक-दूसरे के प्रमोशन में, दोनों ने अपने हिसाब से खूब रोड़े अटकाएं। मगर देश में हुए कोयला घोटाला और उसकी सीबीआई जांच ने दोनों को अब नजदीक ला दिया है। संचेती बंधुओं को जो कोल ब्लाक आबंटित हुआ है, दोनों आईएएस उस कमेटी के मेम्बर थे। आशंका है, सीबीआई कभी भी दबिश दे सकती है। या और कुछ हो या न हो, दस्तावेज तो मंगा ही सकती है। अब, दोनों अफसर मिलकर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में क्या करना होगा। सीबीआई को क्या दबाव देना चाहिए। चिंता लाजिमी है। जरा सी भी कमेंट आ गई, तो अजय सिंह और एनके असवाल सुनील कुमार की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हो जाएंगे।
मुक्ति
कौशलेंद्र सिंह को नागरिक आपूर्ति निगम से हटाने का एक मामला छोड़ दें, तो भाप्रसे और राप्रसे अफसरों के फेरबदल को अबकी बैलेंसिंग माना जा रहा है। चावल लाबी के प्रेशर के बाद कौशलेंद्र को नान से हटाकर स्वास्थ्य मिशन में भेज दिया गया। वे घटिया क्वालिटी का चावल लेने से मना कर रहे थे। और चावल लाबी का मतलब आप समझ सकते हैं। कहने के लिए ठाकुरों के हाथ में सत्ता है। सरकार और संगठन में हावी तो लक्ष्मीपुत्रों की बिरादरी ही है। बहरहाल, महिला बाल विकास से सुब्रत साहू को और मनोहर पाण्डेय को खेल से हटाकर सरकार ने इस विभाग को कसने की कोशिश की है। सुब्रत की जगह वहां उमेश अग्रवाल को भेजा गया है और मनोहर के स्थान पर सुब्रमण्यिम को। दोनों के बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इससे लता उसेंडी को दिक्कतें बढ़ेंगी। ़अभी तक, इन दोनों विभागों पर लता के चंपु हावी थे। सिकरेट्री और कमिश्नर से अधिक उनकी चौकड़ी की चलती है। एडवांस में कमीशन पहुंचाए बगैर महिला बाल विकास के टेंडर नहीं होते और ना ही जिलों को खेल के प्रस्ताव स्वीकृत होते। उम्मीद है, दोनों विभागों को अब माफियाओं से मुक्ति मिलेगी।
नाराज
ऐश्वर्या का जन्मदिन होने की वजह से अमिताभ बच्चन ने एक नवंबर को राज्योत्सव के उद्घाटन में आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी मगर सात को कवि सम्मेलन के लिए वे तैयार थे। मगर पर्दे के पीछे पैसे की डीलिंग में जो खेल हो रहा था, उससे वे नाराज हो गए। रायपुर में बताया गया, बिग बी दो करोड़ लेंगे और उधर, बीच का आदमी उनसे 60-70 लाख में बात कर रहा था। और इस पर लगभग सहमति बन भी गई थी। लेकिन किसी ने राजधानी के अखबारों में छपी दो करोड़ की रिपोर्ट उन्हें फैक्स कर दिया। खबर है, इसके बाद ही, उन्होंने एकदम से ना कर दिया।
नाकाम
राजधानी का अपना रेस्ट हाउस बचाने की वन विभाग की तमाम कोशिश बेकार साबित हुई। सरकार ने दो टूक कह दिया, इस बारे में अब कोई बात नहीं होगी....आप कोई दूसरा भवन देख लीजिए। उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के नए अध्यक्ष राजीव गुप्ता का आवास बनाने का आदेश एकाध दिन में जारी हो जाएगा़। लोकेशन के हिसाब से यह राजधानी का सबसे बढ़िया रेस्ट हाउस होगा। इससे पहले, वन मंत्री गणेशराम भगत ने अपना आवास बना लिया था। भगत के पिछला चुनाव हारने पर वन विभाग ने राहत की सांस ली थी। रेस्ट हाउस को फर्नीश्ड करने पर साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किया गया था। और वन विभाग को यही अखर रहा है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. राजधानी के किस अफसर की वजह से एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के पारिवारिक जीवन में दरार पड़ने की नौबत आ गई है?
2. राज्योत्सव का श्रेय लेने के लिए किन दो मंत्रियों में शह-मात का खेल चल रहा है?
रमन इलेवन के एक वरिष्ठ खिलाड़ी को गुस्सा नाहक नहीं आ रहा.......उसके वाजिब कारण हैं। विभाग में निर्माण कार्य का 1800 करोड़ रुपए का टेंडर होना है। अपने लोगों को काम मिल गया तो एकमुश्त आठ-दस खोखा का इंतजाम हो जाएगा। सो, मंत्रीजी मैन्यूल टेंडर के लिए जोर डाल रहे हैं। जबकि, सरकार ने 20 लाख रुपए के अधिक के लिए ई-टेंडर का नियम बना रखा है। और, इसे अब 10 लाख करने पर विचार किया जा रहा है। बावजूद इसके, जल्दी काम करने का हवाला देकर मंत्रीजी ने सबको डीओ लेटर लिखा, मगर चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और एसीएस फायनेंस डीएस मिश्रा अड़ गए। मंत्रीजी ने फिर लिखा, लेट होगा तो दिल्ली की एजेंसी पैसा देने में टालमटोल कर सकती है। इस पर कुमार और मिश्रा ने कहा कि वे दिल्ली में बात करके पैसा रिलीज करा देंगे, मगर ई-टेंडर ही करना पड़ेगा.....हम लोगों को जेल नहीं जाना है। अब, अफसर ऐसे अड़ेंगे, तो कोई कैसे नहीं भड़केगा। अफसरों को इतना खयाल तो करना चाहिए, अगले साल चुनाव है। चुनाव में खरचा लगता ही है। फिर तीसरी बार का क्या भरोसा है। छह-आठ महीने ही बाकी है। उसके बाद अचार संहिता लग जाएगा। थोड़े दिन बचे हैं, कर लेने देना चाहिए।
खफा
ब्यूरोक्रेट्स की एक खासियत होती है......पीठ पीछे एक-दूसरे की लाख बुराई कर लें, बिरादरी पर हमला हुआ, तो एक हो जाते हैं। बीएल अग्रवाल के यहां इंकम टैक्स छापे के समय भी लोगों ने इसे देखा और इस बार भी......। सोमवार को कैबिनेट की बैठक में एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार पर भड़ास निकालने पर मंत्रालय के आईएएस गुस्से मंे हैं। पता चला है, इस मामले में जल्द ही आईएएस एसोसियेशन की बैठक होगी। इसके बाद एसोसियेशन के लोग सीएम से मिलकर अपनी बात रखेंगे। अफसरों में गुस्सा इस बात का है कि गलत काम कराने के लिए प्रेशर बनाने की स्ट्रेटज्डी अपनाई जा रही है, वह ठीक नहीं है। अफसरों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि ऐसा ही रहा तो वे कैबिनेट की बैठक में जाना बंद कर देंगे।
वक्त की बात
वक्त-वक्त की बात होती है......कुछ दिन पहले तक मंत्रालय के दो आला आईएएस अधिकारी एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते थे। एक-दूसरे के प्रमोशन में, दोनों ने अपने हिसाब से खूब रोड़े अटकाएं। मगर देश में हुए कोयला घोटाला और उसकी सीबीआई जांच ने दोनों को अब नजदीक ला दिया है। संचेती बंधुओं को जो कोल ब्लाक आबंटित हुआ है, दोनों आईएएस उस कमेटी के मेम्बर थे। आशंका है, सीबीआई कभी भी दबिश दे सकती है। या और कुछ हो या न हो, दस्तावेज तो मंगा ही सकती है। अब, दोनों अफसर मिलकर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में क्या करना होगा। सीबीआई को क्या दबाव देना चाहिए। चिंता लाजिमी है। जरा सी भी कमेंट आ गई, तो अजय सिंह और एनके असवाल सुनील कुमार की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हो जाएंगे।
मुक्ति
कौशलेंद्र सिंह को नागरिक आपूर्ति निगम से हटाने का एक मामला छोड़ दें, तो भाप्रसे और राप्रसे अफसरों के फेरबदल को अबकी बैलेंसिंग माना जा रहा है। चावल लाबी के प्रेशर के बाद कौशलेंद्र को नान से हटाकर स्वास्थ्य मिशन में भेज दिया गया। वे घटिया क्वालिटी का चावल लेने से मना कर रहे थे। और चावल लाबी का मतलब आप समझ सकते हैं। कहने के लिए ठाकुरों के हाथ में सत्ता है। सरकार और संगठन में हावी तो लक्ष्मीपुत्रों की बिरादरी ही है। बहरहाल, महिला बाल विकास से सुब्रत साहू को और मनोहर पाण्डेय को खेल से हटाकर सरकार ने इस विभाग को कसने की कोशिश की है। सुब्रत की जगह वहां उमेश अग्रवाल को भेजा गया है और मनोहर के स्थान पर सुब्रमण्यिम को। दोनों के बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इससे लता उसेंडी को दिक्कतें बढ़ेंगी। ़अभी तक, इन दोनों विभागों पर लता के चंपु हावी थे। सिकरेट्री और कमिश्नर से अधिक उनकी चौकड़ी की चलती है। एडवांस में कमीशन पहुंचाए बगैर महिला बाल विकास के टेंडर नहीं होते और ना ही जिलों को खेल के प्रस्ताव स्वीकृत होते। उम्मीद है, दोनों विभागों को अब माफियाओं से मुक्ति मिलेगी।
नाराज
ऐश्वर्या का जन्मदिन होने की वजह से अमिताभ बच्चन ने एक नवंबर को राज्योत्सव के उद्घाटन में आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी मगर सात को कवि सम्मेलन के लिए वे तैयार थे। मगर पर्दे के पीछे पैसे की डीलिंग में जो खेल हो रहा था, उससे वे नाराज हो गए। रायपुर में बताया गया, बिग बी दो करोड़ लेंगे और उधर, बीच का आदमी उनसे 60-70 लाख में बात कर रहा था। और इस पर लगभग सहमति बन भी गई थी। लेकिन किसी ने राजधानी के अखबारों में छपी दो करोड़ की रिपोर्ट उन्हें फैक्स कर दिया। खबर है, इसके बाद ही, उन्होंने एकदम से ना कर दिया।
नाकाम
राजधानी का अपना रेस्ट हाउस बचाने की वन विभाग की तमाम कोशिश बेकार साबित हुई। सरकार ने दो टूक कह दिया, इस बारे में अब कोई बात नहीं होगी....आप कोई दूसरा भवन देख लीजिए। उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के नए अध्यक्ष राजीव गुप्ता का आवास बनाने का आदेश एकाध दिन में जारी हो जाएगा़। लोकेशन के हिसाब से यह राजधानी का सबसे बढ़िया रेस्ट हाउस होगा। इससे पहले, वन मंत्री गणेशराम भगत ने अपना आवास बना लिया था। भगत के पिछला चुनाव हारने पर वन विभाग ने राहत की सांस ली थी। रेस्ट हाउस को फर्नीश्ड करने पर साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किया गया था। और वन विभाग को यही अखर रहा है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. राजधानी के किस अफसर की वजह से एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के पारिवारिक जीवन में दरार पड़ने की नौबत आ गई है?
2. राज्योत्सव का श्रेय लेने के लिए किन दो मंत्रियों में शह-मात का खेल चल रहा है?