सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

सरकार! ये ठीक नहीं

24 फरवरी 2019
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद भूपेश बघेल 18 घंटे काम कर रहे हैं। अर्ली मॉर्निंग से लेकर रात दो बजे तक। लगातार दौरे भी। वे ऐसे सीएम हैं, जो दौरे से लौटने के बाद सीएम हाउस नहीं जाते। सरकारी मीटिंगों में मंत्रालय पहुंच जाते हैं या फिर पब्लिक कार्यक्रमों में। लोग भी मानने लगे हैं कि सीएम बनने के पहले कांग्रेस में उनके समकक्ष जरूर कई नेता रहे होंगे। लेकिन, अभी तो एक से दस तक वे ही वे हैं। अलबत्ता, एक मोर्चे पर सरकार जरूर पीट रही है, वह है ट्रांसफर-पोस्टिंग। राज्य में इससे अनिश्चितता की स्थिति बन रही है। हाल के दिनों में कई बार ऐसा हुआ कि आदेश निकला और फिर निरस्त हो गया। महिला आईपीएस को राजधानी रायपुर का एसपी बनाया गया और डेढ़ महीने में उनकी रवानगी डल गई। आईके ऐलेसेला महीने भर में नारायणपुर से वापिस हो गए। आईएएस प्रसन्ना का आर्डर 20 दिन तक अटका रहा। सबसे विचित्र आदेश पीएचक्यू में गिरधारी नायक का निकला। हैरानी यह है कि डिप्टी कलेक्टर लेवल के अफसरों के ट्रांसफर आर्डर बदल जा रहे हैं। वो भी तब जब भूपेश बघेल जैसे कड़क फैसला लेने वाले मुख्यमंत्री हों। बहरहाल, इसके मैसेज अच्छे नहीं जा रहे। सीएम को इसे पर्सनली देखना चाहिए। क्योंकि, एक ओर वे दिन-रात राज्य के लिए काम कर रहे हैं, दूसरी ओर उनके अधिकारी पोस्टिंग में गडबड़ कर हास्यपद स्थिति निर्मित कर दे रहे हैं।

एक और प्रमुख सचिव

सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए आईएएस मनोज पिंगुआ छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। भारत सरकार ने पांच साल पूरे होने से महीना भर पहिले उन्हें मूल कैडर में लौटने की इजाजत दे दी है। 25 फरवरी को वे भारत सरकार से रिलीव होंगे। एवं 27 फरवरी को छत्तीसगढ़ में ज्वाइनिंग देंगे। 2004 बैच के आईएएस मनोज प्रिंसिपल सिकरेट्री स्तर के अफसर हैं। पिछले साल राज्य सरकार ने उन्हें प्रिंसिपल सिकरेट्री का प्रोफार्मा प्रमोशन दिया था। वे वहां केंद्रीय सूचना प्रसारण विभाग में ज्वाइंट सिकरेट्री थे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नई सरकार बनने के बाद जीएडी ने अफसरों की कमी का हवाला देते हुए भारत सरकार को पत्र लिख कर मनोज को यथाशीघ्र रिलीव करने का आग्रह किया था। सरकार ने चूकि उन्हें बुलाने के लिए पत्र लिखा था, ऐसे में जाहिर है, उन्हें विभाग भी बढ़ियां मिलेगा। बहरहाल, मनोज के रूप में सरकार को एक बढ़ियां अफसर मिलेगा….उनकी साफ-सुथरी छबि के आईएएस में गिनती होती है।

ऋचा होंगी रिलीव

मनोज पिंगुआ के लौटने पर सरकार प्रिंसिपल सिकरेट्री फूड ऋचा शर्मा को डेपुटेशन के लिए रिलीव कर देगी। ऋचा को यूनियन एनवायरमेंट मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री बनाया गया है। उन्हें संकेत मिले थे कि 15 फरवरी तक उन्हें रिलीव कर दिया जाएगा। सब जगह यह कम्यूनिकेट भी हो गया….लेकिन, बजट सत्र के चलते ऐसा हो नहीं पाया।

इतिहास दोहराया

आईपीएस आरएन दास को बलौदा बाजार का एसपी बनाने के लिए वहां के एसपी आरिफ शेख को अप्रिय तरह से जगदलपुर भेज दिया गया था। उस समय आरिफ को चार्ज लिए डेढ़ महीना ही हुआ था। अब पारुल माथुर को जांजगीर में एडजस्ट करने के लिए दास को डेढ़ महीने में पीएचक्यू वापस बुला लिया गया।

180 डिग्री टर्न

2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा को हटाकर 2010 बैच की नीतू कमल को एसपी बनाया गया था। अब फिर 2005 बैच के आरिफ शेख को राजधानी की कप्तान सौंप दी गई है। यानी, लौटकर फिर 2005 बैच।

अमन की टीआरपी

पिछले सरकार में ताकतवर रहे अमन सिंह की टीआरपी एसआइटी गठन के बाद और बढ़ गई है। पिछले हफ्ते दिल्ली में मुकेश गुप्ता के साथ एक होटल में बैठे उनकी फोटो सोशल मीडिया में खूब वायरल हुई। तो कल बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह के यहाँ पारिवारिक शादी में रमन सिंह और अमन सिंह की एक पान ठेले में पान खाती फोटो सोशल मीडिया में शेयर हो रही हैं।

अधिकतम 28 फरवरी

विधानसभा का बजट सत्र वैसे तो 8 मार्च तक निर्धारित है, लेकिन बिजनेस को देखते लगता है, अब तीन-से-चार दिन में सिमट जाएगा। सीएम को मिलाकर चार मंत्रियों के विभागों पर चर्चा बाकी है। यह दो दिन का विषय है। तीसरे दिन यानी 27 फरवरी को विनियोग विधयेक पर चर्चा होगी। सरकार के अगर कुछ जरूरी विधयेक हुआ, तो 28 को सत्र चलेगा। वैसे, दो दिन व्यवधान हो गया वरना, और पहले भी सत्रावसान हो गया होता।

ताकतवर ईओडब्लू

मुकेश गुप्ता के दौर में भी ईओडब्लू इतना ताकतवर नहीं रहा, जैसा अभी हो गया है। मुकेश से भी एक बैच सीनियर बीके सिंह इसके डीजी बन गए हैं। एडीजी बनने जा रहे एसआरपी कल्लूरी तो हैं ही, दीपक झा और आईके ऐलेसेला सरीखे दो डायरेक्टर आईपीएस ईओडब्लू में मोर्चा संभाले हुए हैं। जबकि, राज्य बनने के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। ईओडब्लू में डीआईजी, आईजी पोस्ट हुए। आनंद तिवारी डीआईजी पोस्ट हुए थे, वहीं वे प्रमोशन पाकर आईजी बनें। डीएम अवस्थी, संजय पिल्ले, मुकेश गुप्ता आईजी के रूप में ईओडब्लू में पोस्ट हुए थे और वहीं एडीजी प्रमोट हुए। कुल मिलाकर आईजी या एडीजी लेवल का ही ये पोस्ट है। पता नहीं, एसआरपी कल्लूरी वहां कैसा फील कर रहे हैं।

हवा में डीएम

डीएम अवस्थी को यूपीएससी से कंफार्मेशन नहीं आने की वजह से सरकार ने चालू डीजीपी का प्रभार सौंपा था। अलबत्ता, उनका मूल विभाग एसआईबी रहा। इसके साथ ईओडब्लू और एसीबी का चार्ज भी। लेकिन, इसी हफ्ते हुए फेरबदल में ईओडब्लू और एसीबी का जिम्मा सरकार ने डेपुटेशन से 16 साल बाद छत्तीसगढ़ लौटे डीजी बीके सिंह को दे दिया। और…, एसआईबी गिरधारी नायक को। यानि, डीएम के पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई। आखिर, उनकी मूल पोस्टिंग एसआईबी थी। जो उनके पास रही नहीं। यूपीएससी ने भी सीएम के आग्रह पर डीजीपी के कंफार्मेशन के लिए दो डेट दिया था। पहला, तीन जनवरी को। उस दिन चीफ सिकरेट्री बदल गए। लिहाजा, वे नहीं जा पाए। दूसरा, 24 जनवरी था। उस दिन बजट पर मंत्रियों से चर्चा के कारण सीएस दिल्ली नहीं जा सकें। सीएस के दो बार गोल मार देने के कारण यूपीएससी ने भी अब चुप्पी साध ली है। ऐसे में, कानपुर के इस ब्राम्हण आईपीएस पर क्या बीत रही होगी, वे ही इस दर्द को समझ सकते हैं।

सोरी होंगे रिटायर

आईपीएस एसएस सोरी इस महीने 28 फरवरी को रिटायर हो जाएंगे। वे फिलहाल, डीआईजी इंटेलिजेंस हैं। सोरी को रिटायर होने पर सरकार को इंटेलिजेंस में एक डीआईजी की पोस्टिंग करनी होगी। हालांकि, आईपीएस के प्रमोशन के बाद सरकार के पास डीआईजी की कमी नहीं रहेगी। 2004 बैच के दो आईपीएस पहले ही डीआईजी प्रमोट हो चुके हैं। 2005 बैच के चार और आईपीएस को प्रमोशन मिलने वाला है। पिछले साल भी 2004 बैच के 11 आईपीएस एकमुश्त डीआईजी बनें थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस के 9 अफसरों की डीपीसी के बाद भी प्रमोशन का आदेश क्यों नहीं निकल पा रहा?
2. क्या आईपीएस गिरधारी नायक चार महीने के लिए उसी एसआईबी में फिर से ज्वाईन करके कंफर्ट होंगे, जिसमें वे आईजी, एडीजी के रूप में पहले तीन बार रह चुके हैं?

पावर की तलाश

17 फरवरी 2019
सीएम भूपेश बघेल को शपथ लिए आज दो महीने पूरे हो गए। 60 दिन में लोग अभी तक पावर सेंटर की खोज पूरी नहीं कर पाए हैं। जैक-एप्रोच, पोस्टिंग, सप्लाई, ठेका वाले काम सरकार में कहां से होंगे, उस पावर न नाम पता चल पा रहा और न ही उसका कोई पता-ठिकाना। एक शीर्ष अफसर की कुर्सी डगमगाती दिखी तो उन्होंने सीएम के एक बेहद करीबी से फोन कर मिलना चाहा। उन्हें दो टूक जवाब मिला….अगर पोस्टिंग के लिए मिलना है तो ना ही मिलिए….कोई फायदा नहीं होगा। हाल ही में कुछ अफसरों पर कार्रवाई हुई। उनमें से एक के लिए सीएम से पुराने संबंध रखने वालों ने सिफारिश की। लेकिन, नतीजा सिफर निकला। कहने का मतलब यह है कि सीएम के दरबार में अभी कोई जैक-एप्रोच नहीं चल पा रहा। खासकर पोस्टिंग और कार्रवाइयों में तो बिल्कुल नहीं। कोई अगर सरकार में पैठ रखकर काम कराने का दावा करता है, तो आप उसके झांसे में मत आइयेगा। हो सकता है, आपको नुकसान उठाना पड़ जाए।

नो डेपुटेशन

प्रिंसिपल सिकरेट्री ऋचा शर्मा को सरकार ने डेपुटेशन के लिए अभी रिलीव नहीं किया है। 15 फरवरी को उन्हें रिलीव करने के संकेत मिले थे। लेकिन, विधानसभा में उनके विभाग के बजट पर चर्चा के बाद ही अब शायद यहां से वे कार्यमुक्त हो पाएंगी। वैसे, ऋचा के बाद किसी आईएएस को कुछ दिन तक शायद ही प्रतिनियुक्ति पर जाने का मौका मिले। वो इसलिए, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले दिनों दिल्ली में पोस्टेड अधिकारियों से मिले थे। उन्होंने राज्य में अफसरों की कमी का हवाला देते हुए उनसे कहा था कि जो लोग वापस लौटना चाहते हैं, लौट सकते हैं। ऐसे में, अब प्रतिनियुक्ति के लिए सरकार शायद ही एनओसी दें। हालांकि, जुलाई तक चार आईएएस छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। मनोज पिंगुआ तो इसी महीने आने वाले हैं। उनके बाद लंबी छुट्टी पर गईं शहला निगार भी दो-एक महीने में आने वाली हैं। मनिंदर कौर द्विवेदी जून में आएंगी। इसके बाद जुलाई में सोनमणि बोरा एजुकेशल लीव से वापिस आ जाएंगे।

गेहूं के साथ….

सरकार ने आईपीएस अफसरों की डीपीसी कर दी लेकिन, उनकी फाइल मंत्रालय में अटक गई हैं। बताते हैं, किसी एडीजी के पारफारमेंस पर सरकार को शंका है। इसलिए, आदेश नहीं निकल रहा। आईजी से एडिशनल डीजी बनने वालों में जीपी सिंह, हिमांशु गुप्ता और एसआरपी कल्लूरी शामिल हैं। इसमें गड़बड़ ये हो गया है कि डीआईजी, आईजी और एडीजी, तीनों के प्रमोशन की एक ही फाइल बन गई है। इनमें चार डीआईजी, तीन एडीजी और दो आईजी के प्रमोशन हैं। अगर अलग-अलग फाइल बनी होती तो एडीजी को छोड़कर डीआईजी, आईजी का आदेश सरकार निकाल देती। एडीजी के चक्कर में अब डीआईजी और आईजी भी कसमसा रहे हैं….चीफ सिकरेट्री साब, आखिर हमारा क्या कुसूर।

ट्रांसफर पर ब्रेक

निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव से पहले राज्य सरकारों को 20 फरवरी तक ट्रांसफर करने का निर्देश दिया था। इसमें अब सिर्फ चार दिन बच गए हैं। लेकिन, राज्य में बनी नई सरकार आईएएस, आईपीएस को छोड़ दें तो कोई ट्रांसफर नहीं कर पाई है। आईएफएस में तो अभी चालू भी नहीं हुआ है….एक डीएफओ तक चेंज नहीं हो पाए हैं। वहीं, एडिशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, एडिशनल एसपी, डीएसपी समेत सैकड़ों ऐसे पद हैं, जो सीधे निर्वाचन से ताल्लुकात रखते हैं। और, इनमें बहुतों का तीन साल से अधिक हो भी गया है। याद होगा, बीजेपी सरकार ने अक्टूबर में विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने से पहिले थोक में ट्रांसफर किया था। अब उन्हीं अफसरों से कांग्रेस सरकार को लोकसभा चुनाव कराना होगा। क्योंकि, 20 के बाद ट्रांसफर पर ब्रेक लग जाएगा।

टी सीरिज बंद होंगे

पिछले 15 साल तक सिंह या ठाकुर प्रभावशाली सरनेम माना जाता था। इस बिरादरी के लोग कई उच्च पदों पर रहे। लेकिन, सब दिन बराबर नहीं होते। सिंह सरनेम वाले अफसर से लेकर नेता, सप्लायर, ठेकेदार तक सफाई दे रहे….पिछली सरकार ने तो हमारा कुछ नहीं किया। जाहिर है, नई सरकार की भी भृकुटी इन पर चढ़ी हुई है। सरकार में बैठे एक बड़े नेता की वर्डिंग थी….टी सीरिज को बंद कर देना है। मगर, इससे पहिले सरकार को ध्यान रखना होगा कि सिंह सरनेम लिखने वाले सभी ठाकुर नहीं हैं। कुछ दूसरे केटेगरी के अफसरों के सरनेम भी सिंह हैं। लिहाजा, टी सीरिज को बंद करने के चक्कर में कहीं दूसरा कोई न शिकार हो जाए।

मंत्रीजी के लायक बेटे

रमन सरकार में उत्तर छत्तीसगढ़ के एक मंत्री के बेटे से पूरा विभाग हलाकान रहा। नोटबंदी के बाद मंत्री पुत्तर दस हजार भी उदारतापूर्वक ले लेते थे। भूपेश सरकार में एक मंत्रीजी के बेटों की कुछ इसी तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है। बताते हैं, मंत्रीजी के बेटों ने सुविधा की दृष्टि से विभागों का बंटवारा कर लिया है। ट्रांसफर के रेट तय करने के लिए पता लगाया जा रहा….पिछली सरकार के रेट क्या थे। रेट फिक्स करने के चक्कर में एक अहम विभाग के 17 अफसरों के ट्रांसफर की फाइल मंत्री बंगले में पखवाड़े भर तक रुकी रह गई। बहरहाल, मंत्रीजी को अपने ऐेसे लायक बेटों से सतर्क रहना होगा। वरना, विभाग में चर्चा तो शुरू हो ही गई है….पिछले वाले मंत्री भी फाइल रोकने के नाम से कु-ख्यात थे….ये वाले भी उसी रास्ते पर हैं।

बीके की पोस्टिंग

16 बरस बाद छत्तीसगढ़ लौटे 87 बैच के आईपीएस अफसर बीके सिंह ने आते ही चूक कर दी। उन्होंने पुलिस मुख्यालय में ज्वाईनिंग देने की बजाए गृह मंत्रालय में आमद दे दी। हालांकि, इंडियन पुलिस सर्विस गृह विभाग के अंतर्गत आती है। आईपीएस के पास दोनों आफ्सन होते हैं। वह होम में भी ज्वाईन कर सकता है। लेकिन, अभी तक परिपाटी रही है कि डेपुटेशन से लौटने वाले आईपीएस पीएचक्यू में ही ज्वाईन करते हैं। पीएचक्यू से उसकी सूचना गृह विभाग को भेजी जाती थी। जाहिर है, मुख्यालय के अफसरों को यह नागवार गुजरा….अपना अफसर मंत्रालय में जाकर ज्वाइनिंग दे। अब देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पोस्टिंग कब तक हो पाती है। 4 फरवरी को उन्होंने यहां ज्वाईन किया और 16 फरवरी तक उनका आदेश नहीं निकला है। 13 दिन उनके यूं ही निकल गए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एडीजी प्रमोट होने के बाद आईपीएस हिमांशु गुप्ता पीएचक्यू लौटेंगे या उनके लिए सरगुजा रेंज को ही आईजी से एडीजी अपग्रेड किया जाएगा? 
2. राज्य में अभी पुलिस मुख्यालय का ओहरा बड़ा है या ईओडब्लू का?

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

ये क्या किए महराज!

10 फरवरी 2019
भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ मोर्चा खोले सरकार से लगता है एक बड़ी चूक हो गई। सरकार ने डा. एसआर आदिले को डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन बना दिया, जो 2006 में इसी पोस्ट पर रहने के दौरान अपनी बेटी और पूर्व सीएम के पीए की भतीजी को एमबीबीएस में गलत ढंग से दाखिला देकर जेल जा चुके हैं….लंबे समय तक वे सस्पेंड रहे। रायपुर के गोलबाजार थाने में उनके खिलाफ केस रजिस्टर्ड है। हाईकोर्ट ने दोनों का एमबीबीएस का दाखिला निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पांच-पांच लाख रुपए जुर्माना कर ह्यूमन ग्राउंड पर इसलिए बख्श दिया था कि दोनों मेडिकल छात्राएं फायनल ईयर में पहुंच गईं थी। एमबीबीएस में भरती का यह मामला 2006 का है। आदिले ने सेंट्रल पुल से अपनी बेटी और एक्स सीएम के पीए की भतीजी का जगदलपुर मेडिकल कालेज में एडमिशन दे दिया था। जबकि, जगदलपुर नया मेडिकल कॉलेज खुला था और वहां सेंट्रल कोटा का प्रावधान ही नहीं था। चूकि, 13 साल पुराना मामला है, इसलिए न सत्ता में बैठे नेताओं को याद रहा और न मीडिया को। कांग्रेस ने तब इस फर्जीवाड़े के खिलाफ काफी हंगामा किया था। साफ-सुथरी छबि के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को लगता है, गलत फीडबैक मिल गया। क्योंकि, अपने अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में जिस डीन को ले गए हैं, वो भी सिम्स के डीन रहते पिछले साल खरीदी-बिक्री और भरती के मामले में सस्पेंड हो चुके हैं। महाराज को थोड़ा सतर्क रहना होगा।

भूपेश और बारिश

सूबे में सीएम भूपेश बघेल और बारिश का अद्भूत संयोग चल रहा है। 17 दिसंबर को भूपेश शपथ लिए, उस दिन इतनी बारिश हुई कि वेन्यू बदलना पड़ा। 26 जनवरी को राजधानी के पुलिस ग्राउंड में उन्होंने झंडा फहराया तो भी सावन जैसी झड़ी लग गई। और, 8 फरवरी को उन्होंने बजट पेश किया तो भी झमाझम बारिश हो गई। वैसे, सीएम बनने के बाद भूपेश भी लगातार बरस ही रहे हैं….। शपथ के दिन से मौसम भी उनका साथ दे रहा है।

अपना मंत्रालय

आईपीएस मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को सरकार ने सस्पेंड कर दिया। भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद सबसे बड़ी ये कार्रवाई होगी। संवेदनशील भी….मुकेश का अपना ओहरा तो है ही, पोस्ट भी डीजी का। इसके बाद भी अवर सचिव ने जो आदेश निकाला, उसमें नान मामले को 2014 की जगह 2004 लिख दिया। बचाव में टंकण त्रुटि….मानवीय भूल कहा जा सकता है। लेकिन, इतने संवेदनशील आदेश में भी ऐसी भूल। दरअसल, मुख्यमंत्री को मंत्रालय के निचले सिस्टम का भी रिव्यू करना चाहिए। आखिर, राज्य में शासन तो यही से चलता है, योजनाओं का क्रियान्वयन यहीं से होता है। अधिकांश विभागों में मैट्रिक पास लोग प्रमोशन पाते-पाते डिप्टी सिकरेट्री, अंडर सिकरेट्री, स्पेशल सिकरेट्री तक पहुंच गए हैं। बाबुओं का बुरा हाल है। पिछले साल एक विभाग को भारत सरकार से 300 करोड़ रुपए मिलने थे। लेकिन, बाबू अलमारी में फाइल रखकर भूल गया। नए सिकरेट्री जब कार्यभार संभाले तो उन्होंने फाइल ढूंढवाई तो पता चला कि डेट निकल गया है। सिकरेट्रीजी को इन्हीं लोगों से काम चलाना है, इसलिए उनकी लाचारगी भी समझी जा सकती है। मगर इससे राज्य का नुकसान होता है।

ब्यूरोक्रेट्स की उम्मीदें

नई सरकार आने के बाद कुछ आईएएस, आईपीएस बेविभाग हुए थे, उनमें एक नाम सौरभ कुमार का भी था। सौरभ को दंतेवाड़ा का कलेक्टर रहने के दौरान इनोवेशन में पालनार बाजार को कैशलेस करने के लिए प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री अवार्ड से नवाजा गया था। लेकिन, बाद में कांग्रेस ने उन पर डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड की बंदरबांट के आरोप लगाए। यही नहीं, साउथ छत्तीसगढ़ में एक दंतेवाड़ा ही रहा, जिसने बीजेपी की लाज बचाई। सरकार बदली तो सौरभ का ट्रांसफर हो गया। डेढ़ महीने से बिना विभाग के मंत्रालय में बैठ रहे सौरभ की पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री से मुलाकात हुई। बताते हैं, सीएम ने सौरभ के पक्ष को गंभीरता से सुना। फिर, बोले…देखते हैं। और, 41 आईएएस की लिस्ट निकली, उनमें सौरभ का नाम आ गया। सौरभ को ज्वाइंट सिकरेट्री स्कूल एजुकेशन बनाया गया है। चलिये, अपने अफसर पर सीएम के बड़ा दिल दिखाने से बाकी बेविभाग नौकरशाहों की इससे उम्मीद जवां हुई है।

2012 बैच की ओपनिंग

भूपेश बघेल की सरकार से ब्यूरोक्रेट्स कितना चैन से हैं ये तो पता नहीं, लेकिन आईएएस के 2011 बैच की खुशी का तो पूछिए मत! इस बैच में छह आईएएस हैं। सभी कलेक्टर बन गए। इस बैच में नीलेश श्रीरसागर, सर्वेश भूरे, दीपक सोनी, विलास भास्कर, चंदन कुमार और संजीव झा हैं। इनके बैचमेट दीगर राज्यों में दूसरे और तीसरे जिले की कलेक्टरी कर रहे हैं। और, यहां श्रीगणेश भी नहीं हुआ था। बहरहाल, 2011 बैच तो कंप्लीट हुआ ही, 2012 बैच की भी शुरूआत हो गई है। इस बैच के रजत बंसल को धमतरी का कलेक्टर बनाया गया है। चलिये, रायपुर जैसे नगर निगम में कमिश्नर के रूप में बिना किसी आरोप के पौने तीन साल सक जाने का उन्हें ईनाम मिला है।

कलेक्टरी का रिकार्ड

मुंगेली जैसे छोटे जिले से कलेक्टरी की शुरूआत करने वाली किरण कौशल ने लगातार चौथे जिले का कलेक्टर बनकर महिला आईएएस में रिकार्ड बनाई है। उनसे पहिले अलरमेल मंगई लगातार तीन जिले की कलेक्टर रहीं। किरण ने चार पुरुष आईएएस की बराबरी कर ली हैं, जिन्होंने बिना विकेट गवाएं चार जिले किए। इस बार माटी पुत्री होने का उन्हें लाभ मिला…..कोरबा जैसे जिले की कलेक्टरी मिल गई।

पहली बार

छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी आईएएस को पशुपालन विभाग का डायरेक्टर बनाया गया है। इससे पहिले वेटनरी डाक्टर इसके हेड होते थे। लेकिन, पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के धमतरी में लंबे समय से कलेक्टरी कर रहे सी प्रसन्ना को इस बार इस विभाग में बिठाया गया है। हालांकि, जिन राज्यों में आईएएस अधिक होते हैं, वहां इस विभाग में डायरेक्टर होते हैं। बहरहाल, प्रसन्ना वेटनरी डाक्टर भी हैं। उनकी पत्नी का भी पशुओं से जुड़ा काम है। इसलिए, नरवा, गरूआ में से गरूआ का काम तो ठीक-ठाक हो जाएगा। लगता है, सरकार ने इसी दृष्टि से यह पोस्टिंग की है।

आईपीएस के बुरे दिन

इस प्रदेश में आईपीएस के बुरे दिन ही चल रहे हैं। एक ही दिन दो आईपीएस सस्पेंड हो गए। पहले आरोप थे कि आईपीएस, आईएएस को निबटा रहे हैं….अब आईपीएस आपस में ही…। प्रमोशन के मामले में भी उनका हाल जुदा नहीं है। थानेदारों जैसा रोने-गिड़गिड़ाने के बाद प्रमोशन देने का पिछले साल जो ट्रेंड शुरू हुआ, इस बरस भी उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। एसपी, डीआईजी, आईजी….सब ताक लगाए बैठे हैं। पिछले साल का आपको याद ही होगा….2004 बैच को डीआईजी बनाने में किस तरह लेटलतीफी हुई थी। बताते हैं, भारत सरकार को प्रमोशन का प्रपोजल ही पुलिस महकमे से काफी विलंब से भेजा गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. राज्य का नया सिकरेट्री फूड क्या कोई 2004 बैच का आईएएस होगा?
2. क्या ये सही है कि सीएम भूपेश बघेल के सस्पेंशन, एफआईआर से राज्य में करप्शन का लेवल एकदम गिर गया है?

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

सिंह का खौफ

3 फरवरी
87 बैच के आईपीएस बीके सिंह 17 साल बाद चार फरवरी को छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। वे 2002 में सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए, उसके बाद नहीं लौटे। ये वही बीके हैं, जो पिछले दो साल से एक्स डीजीपी एएन उपध्याय को परेशान करते रहे। आए दिन मीडिया में ये खबर आ जाती थी…बीके लौट रहे हैं…डीजीपी बनेंगे। हालांकि, बीके के पास ज्यादा वक्त नहीं है। रिटायरमेंट में बस 11 महीने बचे हैं। इसके बाद भी लोग उनसे खतरे में नही रहेंगे, एकदम से ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह इसलिए क्योंकि, बीके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के बेहद क्लोज माने जाते हैं। तब के विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी का जब विंध्य इलाके में जलजला था, तब दिग्विजय ने बीके को रीवा का डीआईजी बनाकर भेजा था। पुराने लोग इसके मायने समझ सकते हैं। छत्तीसगढ़ में भी जब अजीत जोगी की सरकार बनी तो फर्स्ट खुफिया चीफ वे ही बने थे। बाद में जोगी को जब पता चला तो मामला गड़बड़ाया था। दिग्विजय सीएम भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू हैं। ऐसे में, भला छत्तीसगढ़ के सीनियर आईपीएस अफसरों में खौफ कैसे नहीं रहेगा। दिमाग में बार-बार यही कौंध रहा….पहले भी सिंह का खौफ और अब भी…।

विक्रम और अमन

छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद लोगों के मन में बरबस ये सवाल उठ रहे हैं कि सीएम भूपेश बघेल के विक्रम और अमन कौन होंगे। कुछ लोग उनके ओएसडी प्रवीण शुक्ला को विक्रम मान लिए थे। इसके बाद अमन की तलाश हो रही थी…सीएम के ईर्द-गिर्द रहने वालों में अमन का अक्स ढूंढा जा रहा था। लेकिन, प्रवीण शुक्ला का विकेट महीने भर में ही उड़ गया। अब जब विक्रम ही नहीं रहे तो अमन कहां से आएंगे। रही बात अमन की, तो अमन इतना जल्दी बनते नहीं। याद होगा, अमन को अमन बनने में पांच बरस लग गए थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में अमन पावरफुल होकर उभरे थे। अलबत्ता, बहुत कुछ सीएम पर डिपेंड करेगा….वे किसी को अमन बनाना चाहेंगे क्या। वैसे भी, सीएम कई बार कह चुके हैं, वे अफसरों के जरिये सरकार चलाना नहीं चाहेंगे।

न राम मिले, न रहीम

विधानसभा चुनाव में हार से दुखी जोगी कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने कांग्रेस ज्वाईन करने की पूरी तैयारी कर ली थी। राहुल गांधी की सभा में उनका कांग्रेस प्रवेश होने वाला था। इसलिए, नए जैकेट भी खरीद लिए थे। इस बीच सूबे के एक बड़े नेता ने वीटो लगा दिया…कुछ दिन पहले कांग्रेस के खिलाफ बात करने वाले नेताओं को अगर पार्टी में शामिल किया गया तो लोकसभा चुनाव में अच्छा मैसेज नहीं जाएगा। इसके बाद कांग्रेस प्रवेश का मामला गड़बड़ा गया। उधर, जोगी कांग्रेस को इसकी भनक लग गई। पार्टी ने उठाकर सभी को निलंबित कर दिया। अब न वे जोगी कांग्रेस के रहे और न कांग्रेस के।

जिसका झंडा, उसके अफसर

अंतागढ़ एसआईटी के प्रभारी के तौर पर ही सही, आईपीएस जीपी सिंह की वापसी हो गई। दुर्ग रेंज आईजी से हटने के बाद उन्हें कोई विभाग नहीं दिया गया था। जीपी की वापसी से उन अफसरों में उम्मीद जगी है, जो नई सरकार के शपथ लेने के बाद बाद हांसिये पर हैं या कम महत्व के विभाग में बिठा दिए गए हैं। वैसे भी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो जिनका झंडा, उनके अफसर होते हैं। 2003 में लोगों ने आखिर इसे देखा ही। जिन पर जोगी का लेवल लगा था, उनकी भी छह महीने बाद अच्छी पोस्टिंग मिली और रमन सरकार में भी वे काम करके दिखाए। छत्तीसगढ़ में वैसे भी काम करने वाले अफसरों की बेहद कमी है। लिहाजा, रिजल्ट देने वाले अफसरों की हमेशा पूछ बनी रहेगी।

महिला सिकरेट्री का दर्द

पुरस्कारों को लेकर मंत्रालय की एक महिला सिकरेट्री का दर्द आखिर छलक आया। आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में उन्होंने लिखा, तीन साल में हमने विभाग के लिए क्या नहीं किया। फिर भी कोई रिवार्ड नहीं। इसके बाद तो ग्रुप में सहानुभूति जताने वालों की तांता लग गई। आईएएस अफसरों ने लिखा है, हमलोग आपके काम को एप्रीसियेट करते हैं।

मनोज के बदले रीचा

आईएएस मनोज पिंगुआ को दिल्ली डेपुटेशन से बुलाने के लिए भूपेश सरकार ने केंद्र को लेटर लिख दिया है। डीओपीटी से किसी भी दिन मनोज को रिलीव करने का आर्डर निकल सकता है। इधर, रीचा शर्मा क पोस्टिंग भी भारत सरकार में हो गई है। पोस्टिंग के बाद अगर वे वहां नहीं गई तो नियमानुसार वे सेंट्रल डेपुटेशन से पांच साल के लिए डिबार हो जाएंगी। निधि छिब्बर एक बार डिबार हो चुकी हैं। राज्य शासन ने एनओसी देने के बाद उन्हें रिलीव नहीं किया था। रीचा को यहां से कब रिलीव किया जाएगा, कोई सुगबुगाहट नहीं है। समझा जाता है, मनोज के आने के बाद ही रीचा को सरकार रिलीव करें। मनोज और रीचा, दोनों प्रमुख सचिव रैंक के आईएएस हैं। रीचा ने फूड में अपना काम भी बखूबी किया। जब उन्हें सिकरेट्री फूड बनाया गया था, विभाग की हालत बडी दयनीय हो गई थी। नान घोटाला भी उसके कुछ समय पहले ही सामने आया था। सरकार में ताकतवर राईस लॉबी से भी उन्हें लोहा लेना था। मार्कफेड में शार्टेज के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए अंदर किए जा रहे थे। ऐसे विषम हालात में महिला अफसर ने गजब का हौसला दिखाकर फूड को पटरी पर ले आई।

जांच के पीछे

नान घोटाले की एसआइटी और ईडी की जांच के पीछे क्या है, इस संवेदनशील मामले में अभी कुछ कहना जल्दीबाजी होगी। लेकिन, यह तो साफ है कि अगर दोनों ने ढंग से जांच कर दी तो बड़े-बड़ों को आफत आ जाएगी। कुछ आईएएस समेत मंत्रालय के कई लोग भी इसके लपेटे में आएंगे। एक आईएफएस तक भी जांच की लपटें पहुंच सकती है। क्योंकि, एसआइटी 2014 की बजाए 2011 से जांच शुरू कर दी है। आईएफएस को नान घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाता है।

कलेक्टरों का नम्बर

नई सरकार बनने के बाद पहली सूची में छह कलेक्टरों को बदला गया था। उस लिस्ट में मंत्रालय एवं एचओडी लेवल में बड़े फेरबदल किए गए थे। अभी कलेक्टरों की जो लिस्ट निकलने वाली है, उसमें भी बड़ी उलटफेर के संकेत मिल रहे हैं। भूपेश सरकार वैसे भी कलेक्टरों के पारफारमेंस से बहुत खुश नहीं है। सरकार की नोटिस में ये बात है कि बीजेपी को 15 सीटें मिली, उसमें कलेक्टरों की भी भूमिका थी। कलेक्टर अगर बढ़ियां काम किए होते तो ये नौबत नहीं आती। अधिकांश कलेक्टर आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर सरकार से अपना नम्बर बढ़वा लेते थे। इसीलिए, कलेक्टरों की लिस्ट बनाने में इसका ध्यान रखा जा रहा है। सीएम दो दिन राज्य से बाहर हैं। समझा जाता है, उनके लौटने के बाद सोमवार या उसके एक-दो दिन में कलेक्टरों की लिस्ट निकल जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नान घोटाले के एसआइटी जांच के बाद ईडी से जांच के क्या मायने हैं?
2. अंतागढ़ टेप कांड के एसआइटी प्रभारी से रायपुर आईजी आनंद छाबड़ा को एकाएक क्यों हटा दिया गया?