रविवार, 28 मार्च 2021

नौकरशाहों का संकट

 

संजय के दीक्षित
तरकश, 28 मार्च 2021
सीनियर लेवल पर नौकरशाहों की कमी के चलते छत्तीसगढ़ में जिस तरह परिस्थितियां बन रही, उससे आने वाले समय में सरकार को संवैधानिक पदों के लिए अफसर नहीं मिलेंगे। इस साल जुलाई में रेवन्यू बोर्ड के चेयरमैन सीके खेतान रिटायर हो जाएंगे। फिर अगले साल उन्हीं के बैच के बीवीआर सुब्रमण्यिम। हालांकि बीवीआर डेपुटेशन पर जम्मू-कश्मीर में हैं। और, अब शायद ही यहां वे लौटे। इस तरह खेतान के बाद चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन 2025 में रिटायर होंगे। फिर तीन साल बाद रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू की बारी आएगी। याने इस साल खेतान के सेवानिवृत्त के बाद 2028 तक यानी सात साल में मात्र तीन रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस रिटायर होंगे। अमिताभ, रेणु और सुब्रत। इस बीच रेरा, मुख्य सूचना आयुक्त जैसे कई पद खाली होंगे। ये मुख्य सचिव रैंक के पद हैं। ऐसे में सरकार को या तो दूसरे राज्यों से रिटायर आईएएस को बुलाना होगा या फिर किसी दीगर सेक्टर के लोगों को मौका मिलेगा। कुल मिलाकर इससे नौकरशाही का नुकसान होगा। क्योंकि, एक बार पद हाथ से निकल जाने के बाद फिर उसे पाना मुश्किल हो जाएगा।

पाटन का पानी

पाटन बोले तो दुर्ग जिले का तहसील। रायपुर और भिलाई से लगे होने के कारण इस इलाके के लोग पाटन के नाम से भिज्ञ थे लेकिन, सूबे के अन्य हिस्सों के लिए यह अल्पज्ञात ही था। लेकिन, भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद पाटन अब वो पाटन नहीं रह गया। उसकी सियासी हैसियत से अब हर कोई वाकिफ है। चीफ मिनिस्टर का गृह नगर हो या विधानसभा ़क्षेत्र, वैसे ही वीवीआईपी माना जाता है। अब आरएसएस ने भी पाटन के रहने वाले रामदत्त चक्रधर का ओहदा बढ़ाकर वहां की सियासी अहमियत और बढ़ा दी है। रामदत्त संघ के सह सरकार्यवाह बन गए हैं। याने संघ के टाॅप-7 में से एक। उनसे पहिले बीेजेपी सांसद विजय बघेल पाटन के ही रहने वाले हैं। जाहिर है, लोगों में उत्सुकता होगी कि पाटन के पानी में ऐसा कौन सा खास मिनरल है, जिससे वहां के लोग इतना ग्रोथ कर रहे हैं।

नाखुश

बीजेपी में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा। विधानसभा में जिस तरह बीजेपी की रणनीति चूक से समय से पहले सत्र समाप्त हो गया, उसे प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने गंभीरता से लिया है। उधर, सौदान सिंह की जगह पर आए पार्टी के नए क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश भी छत्तीसगढ़ के नेताओं के कामकाज से खुश नहीं है। छत्तीसगढ़ के दौरे में उनका बाॅडी लैंग्वेज बता रहा था कि सब कुछ ठीक नहीं है। शिवप्रकाश फिलहाल बंगाल चुनाव में व्यस्त हैं। लेकिन, वे वहां से लगातार फीडबैक ले रहे हैं।

धरम और चंद्राकर

विष्णुदेव साय भले ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बन गए हों मगर पार्टी में जिस तरह से चीजें चल रही है, वह इस बात की चुगली करती है कि विधानसभा चुनाव के समय चेहरा कोई और होगा। अंदर की खबर है, 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने चेहरे की तलाश शुरू कर दी है। बताते हैं, चूकि कांग्रेस में भूपेश बघेल जैसे दमदार ओबीसी चेहरा है। जाहिर है, बीजेपी भी ओबीसी कार्ड पर भरोसा करेगी। पता चला है, पार्टी एक गुप्त सर्वे करा रही है। उसमें विजय बघेल, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर और ओपी चैघरी के नाम शामिल हैं। इनमें से जिसका ग्राफ उपर होगा, उसके बारे में पार्टी विचार करेगी।

पोस्टिंग का इंतजार

2018 बैच के डीएसपी जिलों में ट्रेनिंग कंप्लीट कर चार महीने से पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं। मगर मार्च भी खतम होने जा रहा है, अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। इस बैच में 23 डीएसपी हैं। इनमें से सिर्फ दो को पोस्टिंग मिली है। पिछले हफ्ते एक महिला अधिकारी को रायपुर में पोस्टिंग दी गई। मगर रसूख का कमाल देखिए, टंकण त्रुटि की आड़ में आदेश बदलकर उन्हें बिलासपुर की मनचाही पदास्थापना मिल गई। बाकी लोगों की ऐसी किस्मत कहां कि 24 घंटे के भीतर ट्रांसफर आदेश बदल जाए। गृह विभाग को इसे संज्ञान लेकर सबके साथ न्याय करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ का हाल

छत्तीसगढ़ में कानून-व्यवस्था की क्या स्थिति बनती जा रही है, इससे समझा जा सकता है कि बिलासपुर के वकीलों ने सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट में फरियाद की है। हाईकोर्ट ने बिलासपुर पुलिस को इस संबंध में आदेश जारी किया है। ये मामला सरगुजा संभाग के एक रसूखदार और दिलफेंक टीआई से जुड़ा हुआ है। टीआई को उसी की पत्नी की शिकायत पर डीजीपी डीएम अवस्थी ने कुछ दिनों पहले सस्पेंड कर दिया था। टीआई की पत्नी ने न्याय के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट में केस लगाई है। इसमें ट्विस्ट ये है कि उसकी पत्नी की केस लड़ने वाले अधिवक्ताओं के घर पहुंचकर परिजनों को धमकाया जा रहा है। लिहाजा, वकीलों को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। छत्तीसगढ़ में ये नया टाईप का ट्रेंड शुरू हो रहा है। पुलिस के सीनियर अफसरों को इसे संज्ञान लेना चाहिए…क्योंकि गंगाजल फिल्म के बच्चा यादव फेम के पुलिस अधिकारियों की संख्या छत्तीसगढ़ में भी बढ़ने लगी है…ये ठीक संकेत नहीं है।

ये अच्छी बात, मगर…

छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला मौका है, जब महिला बाल विकास मंत्री, महिला बाल विकास विभाग के सचिव और डायरेक्टर तीनों महिला हैं। महिला बाल विकास मंत्रालय हमेशा महिला के हाथों में रहा है। लेकिन, सिकरेट्री और डायरेक्टर में एकाधिक बार ही ऐसा हुआ है। मगर तीनों एक साथ महिला कभी नहीं रहीं। इस बार मंत्री अनिल भेड़िया के साथ सचिव शहला निगार और डायरेक्टर दिव्या मिश्रा हैं। ये अच्छी बात है कि सरकार ने महिलाओं और बच्चों के विभाग की संवेदनशीलता को समझते हुए नारी शक्ति को कमान सौंपी है। चूकि, तीनों कंट्रोलिंग पदों पर महिलाएं हैं, लिहाजा यह उम्मीद बनती है कि रुटीन के कार्यक्रमों के साथ ही सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की दिशा में भी काम किया जाए। खासकर, लोवर और मीडिल क्लास में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो वायरस की तरह बैठ गई है। बानगी के तौर पर इससे आप समझ सकते हैं….कोई महिला अगर दुर्भाग्यवश विडो हो गई तो सामाजिक रीति रिवाज के नाम पर उसे जीते जी मार डाला जाता है। ऐसी महिलाएं दोहरी प्रताड़ना का शिकार होती हैं। एक तो पति के जाने का दुख और दूसरा सामाजिक रीति-रिवाज का खौफनाक जिन्न। महिला बाल विकास के आंगनबाड़ी और स्व सहायता समूह से बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ी है। विभाग इस नेटवर्क का इस्तेमाल कर एक बड़ा पुण्य का काम कर सकता है।

हफ्ते का व्हाट्सएप

किसी पुलिस अधिकारी को इतना टारगेट क्यों दे देना चाहिए कि वो उसकी पूर्ति करने अंबानी के घर धमक जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस विभाग के लोग अपने मंत्री से त्राहि माम कर रहे हैं?
2. किस मंत्री के बेटे ने अपने पिता के विभाग से संबंधित हर काम के लिए रेटलिस्ट तय कर दिया है?

 

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बुधवार, 24 मार्च 2021

तरकश : सरकार का गुस्सा!

 

संजय के दीक्षित
तरकश के तीर, 21 मार्च 2021


जिन जिलों में पुलिसकर्मियों की पिटाई हो रही, उससे सरकार बेहद नाराज है। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि जिस सूबे का मुख्यमंत्री इतना तेज-तर्रार हो, वहां उपद्रवी पुलिस की पिटाई कर दें, थाने में घुसकर तोड़फोड़ कर दें, ये बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बताते हैं, मुख्यमंत्री ने कह दिया है…पहले इन जिलों के एसपी की छुट्टी की जाए। बात सही भी है, जो अपने सिपाहियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, उस पर जिले के लोग क्या भरोसा करेंगे। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि जिन दो-एक जिलों में पुलिस पर हमले हुए हैं, उन जिलों के कप्तानों को सरकार जल्द बदल दे।

छोटी लिस्ट

एसपी की बहुप्रतीक्षित लिस्ट निकलेगी, मगर हो सकता है, वो बहुत बड़ी नहीं हो। दो-एक नाम का हो सकता है या इससे कुछ ज्यादा। सरकार जिन पुलिस अधीक्षकों से खफा है, हो सकता है पहली सूची में उनकी रवानगी डाल दें। बाकी, जगदलपुर, बालोद और जशपुर के एसपी डीआईजी प्रमोट होने वाले हैं, इनमें से जगदलपुर एसपी दीपक झा के संकेत हैं, वे डीआईजी बनने के बाद भी जगदलपुर में ही कंटीन्यू करेंगे।

इम्पेनलमेंट

ख़ुफ़िया चीफ एवं रायपुर आईजी डॉ आनंद छाबड़ा भारत सरकार में आईजी इम्पेनल हो गए हैं। अमित कुमार के बाद केंद्र में आईजी इम्पेनल होने वाले वे दूसरे आईपीएस होंगे। अमित 98 बैच के आईपीएस हैं। 1999 और 2000 बैच में छत्तीसगढ़ में कोई आईपीएस नहीं है। आनन्द 2001 बैच के हैं। 2019 में वे छत्तीसगढ़ में आईजी बने। और अब केंद्र में इम्पेनल हो गए। ये ठीक है कि उनका बैच छोटा है लेकिन आनन्द की पहुंच से दुखी रहने वाले अफसरों को निश्चित रूप से ये इम्पेनलमेंट किंचित खटका होगा।

आईजी की बिदाई

इस महीने 31 मार्च को आईजी पुलिस मुख्यालय टीआर पैकरा रिटायर हो जाएंगे। पैकरा इससे पहले ट्रांसपोर्ट में एडिशनल कमिश्नर रहे। आईपीएस में हर महीने कोई-न-कोई रिटायर हो रहा। पिछले महीने डीआईजी एच आर मनहर सेवानिवृत्त हुए थे।

एक जिले वाले कलेक्टर

अभी तक सिर्फ प्रमोटी आईएएस के साथ ऐसा होता था, उन्हें एक जिले की कलेक्टरी करा कर वापिस बुला लिया जाता था। कई प्रमोटी अफसर ऐसे भी रहे, जिन्हें एक भी जिले का कलेक्टर बनने का मौका नहीं मिला। मगर अब रेगुलर रिक्रूटड आईएएस के साथ भी होने लगा है। 2004 बैच से यह चालू हुआ है। संगीता पी सिर्फ धमतरी की कलेक्टर बन पाई। 2005 बैच में राजेश टोप्पो बलौदा बाजार भर कर पाए। हालांकि, वहां उन्हें टाइम अच्छा मिल गया। करीब सवा तीन साल। उनके बाद 2006 बैच में भुवनेश यादव नारायणपुर में करीब 11 महीने रहे। 2009 बैच में प्रियंका शुक्ला और समीर विश्नोई को भी जशपुर और कोंडागांव जिला करने का मौका मिल पाया। समीर कोंडागांव में साढ़े ग्यारह महीने रह पाए। 2010 बैच में रानू साहू जरूर दो जिला की हैं लेकिन उनका टेन्योर छोटा रहा है। 11 और 12 बैच अभी नया है। इनमें से राजेश टोप्पो को छोड़ सबको उम्मीदें होगी…कलेक्टरों के होने वाले फेरबदल में सरकार की नजरे इनायत हो जाये

सीएस की वीसी

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने 18 मार्च को कलेक्टरों की वीसी ली। इस बार एजेंडा ऐसा था कि सभी कलेक्टरों को बोलने का मौका नहीं मिला। सिर्फ उन्हीं चार जिलों के कलेक्टरों से उन्होंने तल्खी से बात की, जहाँ धान की मिलिंग नहीं हो पा रही। कुछ जिलों में पिछले साल का धान पड़ा हुआ है। ऐसे में किसी भी मुख्य सचिव को गुस्सा आ जायेगा। बाकी, उन्होंने एजेंडा के अनुसार सचिवों को बोलने के लिए 15 मिनट का टाइम दिया था। स्वास्थ्य विभाग की एसीएस रेणु पिल्ले ने 14 मिंट में कंप्लीट कर लिया। इस पर सीएस बोले…गुड। मगर दूसरे कई सचिवों ने लंबा खींचा तो उन्होंने टोकना नहीं भूला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चीफ सिकरेट्री की वीडियोकांफ्रेन्सिंग में किन-किन कलेक्टरों से सवाल-जवाब किया गया?

2. छत्तीसगढ़ के एक ऐसे आईएएस का नाम बताइए, जो कलेक्टर का आदेश निकलने के बाद भी विनम्रता पूर्वक कलेक्टर बनने से मना कर दिया था?

रविवार, 7 मार्च 2021

नौकरशाहों से धोखा?

 संजय के दीक्षित

तरकश, 7 मार्च 2021
नवा रायपुर के सेक्टर 15 में जिन नौकरशाहों और बड़े कारोबारियों ने प्लाॅट लिया है, उनके लिए यह खबर परेशां कर सकती है। दरअसल, इसी सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनने वाला था। एनआरडीए ने भी प्लाॅट निकालने के लिए रेलवे स्टेशन के नाम पर ब्रांडिंग की थी। इसका नतीजा हुआ कि बड़ी संख्या में सूबे के नौकरशाहों और राजधानी के बड़े लोगों ने यहां पिछले छह महीने में प्लाॅट की बुकिंग कराई। मगर अब रेलवे स्टेशन का काम खटाई में पड़ता दिख रहा है। जिस कंपनी को रेलवे स्टेशन बनाने का काम दिया गया था, उसे साल भर में एनआरडीए ने एक कौड़ी नहीं दिया। इस महीने कंट्रेक्ट खतम होने पर कंपनी बोरिया-बिस्तर समेट कर लौट जाएगी। बता दें, 2014 में प्राॅसेज शुरू हुआ था तो सात साल में मिट्टी भराई का काम प्रारंभ हुआ था। अब नए सिरे से टेंडर होगा तो समझ लीजिए स्टेशन बनते-बनते एक दशक से ज्यादा टाईम लग जाएगा।


17 मार्च तक

विधानसभा का बजट सत्र कभी भी पूरे समय तक नहीं चला। इस बार भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। देखा ही आपने, दो दिन में पांच मंत्रियों के विभागों पर चर्चा हो गई। अब मुख्यमंत्री समेत आठ मंत्री बचे हैं। अगले हफ्ते 11 मार्च को महाशिवरात्रि है। लिहाजा, चार दिन ही सत्र चलेगा। उसके बाद 15 मार्च सोमवार को सत्र प्रारंभ होगा और अंदेशा है कि 17-18 तक खतम हो जाए। सरकार चाहे तो तीन से चार दिन में आठ मंत्रियों के विभागों पर चर्चा करा सकती है। आधा दिन सरकारी बिल पास करने में लगेगा। और एक दिन चाहिए विनियोग विधेयक पर बहस और चर्चा के लिए। वैसे भी, बंगाल और असम समेत पांच राज्यों में चुनाव है। फिर ये भी है…सरकार विपक्ष को राजनीति करने का नाहक मौका क्यों देना चाहेगी।

प्रभारी मंत्री की पत्नी

एक बड़े जिले के प्रभारी मंत्री की पत्नी से जिले के अधिकारी बड़ा असहज महसूस कर रहे हैं। मंत्रीजी जब जिले के दौरे में होते हैं, उनकी अद्र्धागिनी अनिवार्य रूप से उनके साथ होती हैं। उसके बाद फिर पूछिए मत! अफसरों से तरह-तरह की फरमान। पराकाष्ठा तब होती है, जब सर्किट हाउस में अधिकारियों की मीटिंग में भी वे कुर्सी जमा लेती हैं। अब प्रभारी मंत्री की मैडम हैं, अफसर कुछ कर भी नहीं सकते। वैसे मंत्री पत्नी की विवशता भी समझी जा सकती है। पति महोदय सीधे-साधे हैं। ऐसे में, उन्हें तो नजर रखनी पड़ेगी न।

2013 बैच की धड़कनें

कलेक्टरों की लिस्ट में जैसे-जैस विलंब हो रहा, आईएएस के 2013 बैच की धड़कनें बढ़ती जा रही है। इस बैच में सात आईएएस हैं। इनमें से अब तक सिर्फ दो ही कलेक्टर बन पाए हैं। पांच क्यूं में हैं। इनकी वेटिंग इस साल के अंत तक भी क्लियर हो पाएगी, इसमें संशय है। ये भी जाहिर है कि तीसरे साल के बाद सरकारें कलेक्टर के लिए डायरेक्ट की बजाए प्रमोटी आईएएस को तरजीह देती हैं। इसलिए, नए अफसरों की दिक्कतें बढ़ेंगी। अभी लिस्ट निकलेगी, उसमें कुछ प्रमोटी के नाम तो रहेंगे ही, डायरेक्ट आईएएस में अभी तक जिन अफसरों ने एक या दो जिले की कलेक्टरी की है, उनकी भी कोशिश होगी कि एक जिला और कर लें। ऐसे में, सामान्य प्रशासन विभाग को कुछ ऐसा रास्ता निकालना चाहिए कि वेटिंग कम-से-कम हो जाए।

एक और वैकेंसी

बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन डीएस मिश्रा का कार्यकाल एक अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। यानी 24 दिन बाद रिटायर आईएएस के लिए एक वैकेंसी और निर्मित हो जाएगी। मगर दिक्कत यह है कि आयोग के चेयरमैन का पद चीफ सिकरेट्री के समकक्ष है। इस लेवल का कोई अधिकारी छत्तीसगढ़ में फिलहाल है नहीं। आरपी मंडल रिटायर होने के बाद एनआरडीए चेयरमैन बन गए हैं। सीके खेतान 31 जुलाई को रिटायर होने वाले हैं। सरकार उन्हें चीफ सिकरेट्री नहीं बनाई तो हो सके, इस पद के लिए विचार कर लें। आईएएस नारायण सिंह ने नियामक आयोग का प्रमुख बनने के लिए एसीएस पद से रिटायरमेंट से छह महीने पहले वीआरएस ले लिया था। खेतान के संदर्भ में यह तब होगा, जब मुख्यमंत्री से हरी झंडी मिले। बहरहाल, सरकार के पास विकल्प के तौर पर आईएएस में खेतान हैं। उनका नहीं हुआ तो सरकार फिर किसी गैर आईएएस यानी इंजीनियर कैडर के किसी व्यक्ति को इस पर बिठाएगी। चेयरमैन का कार्यकाल पांच साल या फिर 65 साल तक की उम्र तक रहता है। इनमें से जो पहले आएगा, वो लागू होता है। डीएस मिश्रा रिटायरमेंट से करीब ढाई साल बाद चेयरमैन नियुक्त हुए थे। इसलिए, ढाई साल ही इस पद पर रह पाए।

ब्यूरोक्रेसी को झटका

सूचना आयोग में मीडिया से जुड़े मनोज त्रिवेदी और धनवेंद्र जायसवाल को सूचना आयुक्त बनाने से जाहिर तौर पर ब्यूरोक्रेसी को करंट लगा होगा। इस आयोग के गठन के बाद अभी तक सिर्फ दो ही गैर अफसर सूचना आयुक्त बन पाए हैं। अनिल जोशी और मोहन पवार। दोनों लीगल फील्ड से थे। पत्रकार वो भी एक साथ दो-दो….यह पहली दफा हुआ। सूचना आयुक्त बनने के लिए आधा दर्जन से अधिक रिटायर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारी कतार में थे। लेकिन, सरकार ने पत्रकारों को यह पद देना मुनासिब समझा।

जीजा पीछे….

रिटायर आईएएस आलोक अवस्थी की स्वाभाविक इच्छा रही कि छत्तीसगढ़ में पोस्ट रिटायरमेंट कोई पद मिल जाए। लेकिन, अभी तक उन्हें कोई गुड न्यूज नहीं मिला। लेकिन, मनोज त्रिवेदी सूचना आयुक्त बन गए। मनोज आलोक अवस्थी के रियल साले हैं। कह सकते हैं, जीजा पीछे रह गए और साला आगे निकल गया।

ऐसे डरपोक वीसी क्यों?

बिलासपुर अटल बिहारी विवि के कुलपति 10 साल नौकरी करके चले गए और ओपन यूनिवर्सिटी के वीसी एक टर्म पूरा करके दूसरी पारी खेल रहे हैं। मगर शर्मनाक यह है कि इन दोनों विवि में दो परसेंट पद भी नहीं भर पाए। ये तो एक बानगी है। सूबे के सभी विश्वविद्यालयों का कमोवेश यही हाल है। नियुक्तियों में प्रेशर के डर से कुलपति मैनपावर की भर्ती कर ही नहीं रहे हैं। उनकी रुचि कम रिस्क और अधिक आमदनी वाले चीजों में रहती है। मसलन, खरीदी और बिल्डिंग निर्माण में। जबकि, वहीं स्व0 लक्षमण चतुर्वेदी भी एक वीसी थे। वे रायपुर विवि में भी दर्जनों पदों पर नियुक्तियां की और बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी। सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिलासपुर की वर्तमान वीसी अंजिला गुप्ता ने भी व्यापक स्तर पर नियुक्तियां की है। सवाल उठता है, जब फैकल्टी और मैनपावर नहीं होगा तो विवि के गुणवता का क्या होगा। और जब कुलपतियों को भर्ती करने का साहस नहीं है तो फिर उन्हें अपने पदों पर क्यों रहना चाहिए। सिर्फ अपना घर भरने के लिए…ये ठीक नहीं है।

महिला विधायक

वैसे तो छत्तीसगढ़ विधानसभा में 20 महिला विधायक हैं। इससे पहिले भी बड़ी संख्या में महिला विधायक रहीं हैं। लेकिन, प्रदर्शन के नाम पर किसी महिला विधायक अपना छाप नहीं छोड़ पाई। इस बजट सत्र में रंजना साहू का पारफारमेंस जरूर हैरान कर रहा है। प्रश्नों की तैयारी और लच्छेदार….आक्रमक अंदाज में सदन में जिस तरह वे अपनी बात रख रही हैं, कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ की महिला नेत्रियां भी सशक्त हो रही हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया छत्तीसगढ़ आना कम क्यों कर दिए हैं?
2. चरणदास महंत जैसे स्पीकर से वास्तव में विपक्ष को दिक्कत हो रही है या इसके पीछे सियासत है?