शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

तरकश, 17 फरवरी

संजय दीक्षित

ना बाबा

वीडियोकान की भूल आईपीएल में न दोहराई जाए, इसको लेकर अब सतर्कता बरती जा रही है। याद होगा, 2011 के राज्योत्सव में वीडियोकान ने सलमान खान का छोटा सा कार्यक्रम कराया था। और सलमान ने मंच से वीडियोकान की मदद करने की अपील करके सरकार की भद पिटवाई ही, कंपनी की भी मिट्टी पलीद कर दी थी। अब, आईपीएल की, जो टीम रायपुर आने वाली है, उसका मालिक जीएमआर पावर एनर्जी है। जीएमआर का तिल्डा के पास पावर प्लांट लग रहा है। जीएमआर पावर के चेयरमैन जीएम राव पिछले हफ्ते रायपुर आए थे। वे स्टेडियम गए और आईपीएल की तैयारियों का जायजा लिया। मगर किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई। मीडिया को भी नहीं। 

आईपीएल का मतलब

वैसे तो आईपीएल का मतलब इंडियन प्रीमियम लीग होता है। मगर छत्तीसगढ़ के संदर्भ में इसके कई और अर्थ निकलते हैं। आईपीएल ठीक-ठाक निबट गया, तो छत्तीसगढ़ को बीसीसीआई का 31 वां सदस्य बनना तय मानिये। अगले साल से रणजी टीम की मान्यता मिल जाएगी और उसके बाद, अंतरराष्ट्रीय मैच का रास्ता भी खुल जाएगा। चुनावी साल में रमन सरकार के लिए आईपीएल के अपने मायने हैं। भोपाल और इंदौर में अब तक आईपीएल नहीं हुआ है। यूथ को अट्रेक्ट करने के लिए और क्या चाहिए। मगर, इसके खतरे पर भी गौर करना होगा। जरा-सी भी चूक हुई, तो समझिए गई भैंस पानी में। रणजी तो भूल जाइये, बीसीसीआई की सदस्यता के भी लाले पड़ जाएंगे। अलबत्ता, टाईम भी कम है। आधा फरवरी निकल गया है, सिर्फ मार्च बचा है। और अभी कंसलटेंट अपाइंट करने की कवायद हो रही है। छत्तीसगढ़ की साख का सवाल है, सरकार को इसमें अपने बेस्ट लोगों केा झोंकना होगा। 

ओवरकांफिडेंस

कामयाबी मिलने पर अक्सर ऐसा होता है कि आदमी का ओवरकांफिडेंस बढ़ जाता है। आईपीएल के मामले में भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। तभी, तो जो कहीं और कभी न हुआ, वह यहां हो गया। राज्य निर्माण के बाद से खेल में सीनियर आईजी बैठते रहे हैं। राजीव श्रीवास्तव से लेकर संजय पिल्ले, अशोक जूनेजा तक। खेल आयुक्त राजकुमार देवांगन को हटाने के बाद आश्चर्यजनक रूप से राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर जितेंद्र शुक्ला को उसकी कमान सौंप दी गई। जितेंद्र बढि़यां अफसर हैं। रायपुर, बिलासपुर और कोरबा के ननि आयुक्त रह चुके हैं। और जोगी के सीएम रहने के दौरान उनके इलाके के एसडीएम थे। मगर इसका ये मतलब नहीं कि कोई सिकरेट्री आउटस्टेंडिंग वर्क कर रहा है, तो उसे चीफ सिकरेट्री बना दो। नो दाउट, प्रमुख सचिव के लिए आरपी मंडल बेस्ट च्वाईस थे। मगर, डायरेक्टर के मामले में लगता है, सरकार ने आम फाइलों की तरह बिना देखे दस्तखत कर दी। जाहिर है, आईपीएल में देश-विदेश के खिलाड़ी आएंगे। 15 दिन पहले बीसीसीआई अफसरों का दौरा शुरू हो जाएगा। इंवेट मैनेजमेंट की प्रोफेशनल टीम रायपुर में आकर बैठ जाएगी। उनको हैंडिल करना, उनकी अंग्रेजी की टर्मिनालाजी समझना, उन्हें टेकल करना, इतना आसान नहीं होगा, जितना समझा जा रहा है। आखिर, ओवरकांफिडेंस से नुकसान ही होता है।

घर का जोगी....

आईपीएल कराने के लिए खेल विभाग की टीम नागपुर से लेकर दिल्ली की खाक छान रही है। वहां के स्टेडियम का जायजा लिया जा रहा है। तैयारी की बारीकियां समझी जा रही है। पर, कामनवेल्थ जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन को नजदीक से देखने वाले दुर्ग आईजी अशोक जूनेजा की इसमें कोई भूमिका परिलक्षित नहीं हो रही है। जबकि, आईपीएल में वे उनके तजुर्बों का लाभ मिल सकता था। जूनेजा, न केवल राज्य के खेल आयुक्त रहे हैं, बल्कि दिल्ली में हुए कामनवेल्थ गेम्स के सिक्यूरिटी इंचार्ज भी थे। वे गेम्स आपरेशंस पर किताब लिख रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि सरकार से उनके समीकरण ठीक नहीं है। ऐसा होता, तो उन्हें दुर्ग जैसे रेंज का आईजी थोड़े ही बनाया जाता। इसीलिए, लोगों को आश्चर्य हो रहा है। कहीं, घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध, वाली बात तो नहीं है।

लिफाफे का खेल

रमन सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री दान-दक्षिणा के मामले में जितने उदार हैं, उनका स्टाफ उतना ही गुरूघंटाल है। मंत्रीजी अपने जान-पहचान वालों की शादियों में जाना नहीं भूलते। भले ही आधी रात हो जाए। समझा जा सकता है, दिलेर मंत्री का लिफाफा भी दिलरी वाला ही होगा। मगर इस साल कुछ गड़बड़ हो रहा है। लिफाफे में इस बार 101 रुपए निकल रहे हैं। अब, मंत्रीजी को कोई कैसे बताए। संघ से जुड़े एक कार्यकर्ता ने इस स्तंभकार से शेयर किया। बताते हैं, मंत्रीजी के बंगले में गुरूघंटाली हो रही है। दरअसल, बंगले में हर काम के लिए लोग अपाइंट हैं। लिफाफा तैयार करने के लिए भी। अब मंत्रीजी जेब में रखने से पहले लिफाफा, तो देखते नहीं। इसलिए, बड़े नोट जेब में और 101 रुपए लिफाफे में। 

अच्छी खबर

देश में रायपुर से अधिक बस्तर और दंतेवाड़ा को जाना जाता है। उस बस्तर से एक अच्छी खबर निकल कर आई है। बस्तर और सरगुजा विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए पहली बार अखबारों में विज्ञापन निकालकर आवेदन मंगाए गए। अचरज वाली बात है कि सबसे अधिक 120 आवेदन बस्तर के लिए थे। दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, राजस्थान के शिक्षाविदों ने अप्लाई किया था। वहीं, सरगुजा के लिए आवेदकों की संख्या सौ से नीचे रही।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस रिटायर आईएएस अफसर ने 50 करोड़ रुपए में बिलासपुर की अपनी जमीन बेची है?
2. रेंज आईजी की बैठक में किस बड़े आईपीएस की गैर मौजूदगी पुलिस महकमे में चर्चा का विषय बना है?

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

तरकशए 10 फरवरी

दूसरा शैलेष
तमिलनाडू कैडर से डेपुटेशन पर यहां आए संतोष मिश्रा को छत्तीसगढ़ का दूसरा शैलेष पाठक कहा जा रहा है। शैलेष पाठक बोले तो मैनुपुलेशन में माहिर। जोगी सरकार में उनका जलजला था। किसके वे खास नहीं थे। संतोष मिश्रा भी कुछ इसी तरह फास्ट बैटिंग कर रहे हैं। टूरिज्म बोर्ड के एमडीए तो वे हैं हीए तीन.चार एडिशनल विभाग भी हंै उनके पास। छह महीने के भीतर हीए उन्होंने सीएम का विश्वास हासिल किया हैए तो सीएस के भी नजदीक हैं। पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी उनसे दिक्कत नहीं है। आलम यह हैए ब्यूरोक्रेसी में लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मिश्रा की बैटिंग की यही रफ्तार रहीए तो सत्ता के ताकतवर अफसर बैजंेंद्र कुमार और अमन सिंह को भी कहीं पीछे न छोड़ दें। सत्ता में बढ़ती हैसियत की एक झलक सिरपुर महोत्सव में सबने देखी। सीएम और राज्यपाल के प्रोग्राम में टूरिज्म का प्रींसिपल सिकरेट्री केडीपी राव दर्शक दीर्घा मंे बैठे थे और उनका एमडी संतोष मिश्रा सीएम और गवर्नर के बगल में मंच पर। लोग आवाक थेए सरकार के सामने सार्वजनिक तौर पर डेकोरम का उल्लंघन। बैजेंद्र और अमनए इस तरह कभी अपने को एक्सपोज नहीं करते। इसीलिएए यह मानने वालों की भी कमी नहीं कि बाद मेंए शैलेष जैसे हाल कहीं मिश्रा का न हो जाए। उतावलापन में शैलेष आईएएस छोड़कर प्रायवेट सेक्टर में चले गए और अब आईएएस में लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। 
पोस्टिंग में आगे
छत्तीसगढ़ में एक ऐसे भाग्यशाली सीनियर आईएएस हैंए जो काम में पीछे रहने के बाद भी पोस्टिंग में सबसे आगे रहते हैं। कोई भी मलाईदार कुर्सी उनसे बची नहीं है। एक समय में पावर सिकरेट्री के साथ ही सीएसईबी के चेयरमैन रहे। सालों तक एक्साइजए वाणिज्यिक कर संभाला। अभी भी अहम विभाग संभल रहे हैं। उनकी वजह से विभाग के मंत्री का तारीफ होती हैए वैसे अफसर से भी मंत्रीजी काम चला लेते हैं। और यह भीए शुक्रवार को सीएम हाउस में प्रभारी सचिवों की बैठक में चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार जिस रेडियस वाटर की फाइल पर भड़क गएए उस कमेटी में वही आईएएस थे। जोगी सरकार के समय हुए प्रकरण की फाइल उन्होंने हाल मेंए यह कहते हुए उपर भेजी है कि इसमे मार्गदर्शन दिया जाए। सीएस का कहना थाए सिकरेट्री अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इससे फाइलों में नाहक विलंब होता है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है। गदहे भी खीर खाते हैंए यह मुहावरा ऐसे थोड़े ही बना है।
वन विकेट
आईपीएल की तैयारी शुरू नहीं हुई कि एक अफसर ने अपना विकेट गंवा डाला। खेल सिकरेट्री सुब्रमण्यिम हीट विकेट होकर पेवेलियन लौट गए। और सीएम के पास राजेंद्र प्रसाद मंडल को मैदान पर भेजने के अलावा कोई चारा नहीं था। पीडब्लूडी में आने के बाद मंडल विराट कोहली के अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। आए दिन अफसरों पर कार्रवाई हो रही है। वैसे भीए वे फील्ड में रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। पुचकारने से काम निकल गयाए तो ठीक वरना चमकी.धमकी में तो उनकी मास्टरी है। फिरए खेल विभाग में ऐसे.ऐसे खटराल अफसर बैठे हैंए जो जरा.सा भी कमजोर पड़ने पर सुरेश कलमाडी बना देंगे। उन पर नकैल डालकर आईपीएल करा देने के लिए ही सरकार ने मंडल को भेजा गया है। जाहिर हैए आईपीएल बड़ा आयोजन है। अभी तक भोपाल और इंदौर में आईपीएल नहीं हुआ है। सियासी प्रेक्षको का कहना हैए इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा। वह यूथ कोए तो प्रभावित करेगा ही। जाहिर हैए सरकार के लिए यह प्रतिष्ठा का विषय तो रहेगा ही। 
कामयाब
सुब्रमण्यिम के खेल विभाग से हटने से आईएएस लाबी की प्रसन्नता समझी जा सकती है। सुब्रमण्यिम पिछले छै.सात साल से अहम पद संभाल रहे थे। कहां नहीं रहेए मनरेगाए वेटनरीए मंडी बोर्डए तकनीकी शिक्षाए ड्रग कंट्रोलर जैसे कई जगहों पर। सभी आईएएस कैडर के पोस्ट थे। वे सूबे के पहले आईएफएस थेए जो सीएम सिके्रटेरियेट में रहे। सीएम ने पिछले साल आईएएस सुब्रत साहू से खेल विभाग लेकर सुब्रमण्यिम को सौंपा था। किसी आईएफएस को इंडिविजिवल चार्ज का यह पहला मौका था। मगर आईपीएल आते हीए उन्होंने जिस तरह से अपने ही बल्ले से अपना विकेट गिरा दियाए उससे आईएफएस के साथ ही आईपीएस भी सकते में हैं। इसलिएए क्योंकि उन्होंने आईएएस को यह कहने का मौका दे दिया कि चैलेंजिंग वाला काम वे ही कर सकते हैंए आईपीएसए आईएफएस सेकेंड लाइन के लिए ठीक हंै। सुब्रमण्यिम के करीबी अफसर भी मान रहे हैंए अपने को साबित करने का इससे बढि़यां मौका नहीं मिलता। आखिरए बे्रन ट्यूमर होने के बाद भी अद्भूत जीजीविषा का परिचय देते हुए आईएफएस देवेंद्र सिंह ने सफल इंवेस्टर मीट कैसे करा डाला था। सिंह ने आईएफएस की कामयाबी का जो झंडा गाड़ाए सुब्रमण्यिम के अकारण मैदान छोड़ने से उसकी छबि जाहिर तौर पर धूमिल हुई है।
काका किस्मती
निवर्तमान डीजीपी अनिल नवानी किस्मती निकले। एक तो विश्वरंजन के डिरेल होने के चलते वक्त से आठ महीने पहले डीजीपी बन गए और 16 महीने के कार्यकाल में अलेक्स पाल मेनन के अपहरण के अलावा कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मगर वर्तमान डीजीपी रामनिवास के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्हें दो महीने नहीं हुएए एयरफोर्स के हेलीकाप्टर पर नक्सलियों की फायरिंग और अब तीस मार खां फिल्म के अंदाज में टे्रन हाइजेकिंग हो गई। वो भी राजधानी के बगल में। देश में इस तरह का यह पहला वाकया है। नेशनल मीडिया में यह सुर्खियों में है। इससे रामनिवास की परेशानी तो बढ़ी है। 
फ्ते का एसएमएस
एक सभा में राहुल गांधी जोर.जोर से भाषण दे रहे थेए कांग्रेस में करप्ट  लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। भीड़ से आवाज आईए हाउसफुल हो गया है क्या
अंत में दो सवाल आपसे
1    नीतिन गडकरी के भाजपा अध्यक्ष पद से हटने पर किस आईएएस की स्थिति कमजोर हुई हैघ्
2    सत्ता में रसूख रखने वाले दो भाइयों का नाम बताइयेए जिन पर दो राजनेताओं ने हाईप्रोफाइल शादियों में   केटरिंग की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा था और उन्होंने उसे गुड़.गोबर कर दिया








न्यूपावरगेमडाटकाम से साभार


शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

तरकश, 10 फरवर

दूसरा शैलेष

तमिलनाडू कैडर से डेपुटेशन पर यहां आए संतोष मिश्रा को छत्तीसगढ़ का दूसरा शैलेष पाठक कहा जा रहा है। शैलेष पाठक बोले तो मैनुपुलेशन में माहिर। जोगी सरकार में उनका जलजला था। किसके वे खास नहीं थे। संतोष मिश्रा भी कुछ इसी तरह फास्ट बैटिंग कर रहे हैं। टूरिज्म बोर्ड के एमडी, तो वे हैं ही, तीन-चार एडिशनल विभाग भी हं उनके पास। छह महीने के भीतर ही, उन्होंने सीएम का विश्वास हासिल किया है, तो सीएस के भी नजदीक हैं। पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी उनसे दिक्कत नहीं है। आलम यह है, ब्यूरोक्रेसी में लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मिश्रा की बैटिंग की यही रफ्तार रही, तो सत्ता के ताकतवर अफसर बैजंेंद्र कुमार और अमन सिंह को भी कहीं पीछे न छोड़ दें। सत्ता में बढ़ती हैसियत की एक झलक सिरपुर महोत्सव में सबने देखी। सीएम और राज्यपाल के प्रोग्राम में टूरिज्म का प्रींसिपल सिकरेट्री केडीपी राव दर्शक दीर्घा मं बैठे थे और उनका एमडी संतोष मिश्रा सीएम और गवर्नर के बगल में मंच पर। लोग आवाक थे, सरकार के सामने सार्वजनिक तौर पर डेकोरम का उल्लंघन। बैजेंद्र और अमन, इस तरह कभी अपने को एक्सपोज नहीं करते। इसीलिए, यह मानने वालों की भी कमी नहीं कि बाद में, शैलेष जैसे हाल कहीं मिश्रा का न हो जाए। उतावलापन में शैलेष आईएएस छोड़कर प्रायवेट सेक्टर में चले गए और अब आईएएस में लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। 

पोस्टिंग में आगे

छत्तीसगढ़ में एक ऐसे भाग्यशाली सीनियर आईएएस हैं, जो काम में पीछे रहने के बाद भी पोस्टिंग में सबसे आगे रहते हैं। कोई भी मलाईदार कुर्सी उनसे बची नहीं है। एक समय में पावर सिकरेट्री के साथ ही सीएसईबी के चेयरमैन रहे। सालों तक एक्साइज, वाणिज्यिक कर संभाला। अभी भी अहम विभाग संभल रहे हैं। उनकी वजह से विभाग के मंत्री का तारीफ होती है, वैसे अफसर से भी मंत्रीजी काम चला लेते हैं। और यह भी, शुक्रवार को सीएम हाउस में प्रभारी सचिवों की बैठक में चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार जिस रेडियस वाटर की फाइल पर भड़क गए, उस कमेटी में वही आईएएस थे। जोगी सरकार के समय हुए प्रकरण की फाइल उन्होंने हाल में, यह कहते हुए उपर भेजी है कि इसमे मार्गदर्शन दिया जाए। सीएस का कहना था, सिकरेट्री अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इससे फाइलों में नाहक विलंब होता है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है। गदहे भी खीर खाते हैं, यह मुहावरा ऐसे थोड़े ही बना है।

वन विकेट

आईपीएल की तैयारी शुरू नहीं हुई कि एक अफसर ने अपना विकेट गंवा डाला। खेल सिकरेट्री सुब्रमण्यिम हीट विकेट होकर पेवेलियन लौट गए। और सीएम के पास राजेंद्र प्रसाद मंडल को मैदान पर भेजने के अलावा कोई चारा नहीं था। पीडब्लूडी में आने के बाद मंडल विराट कोहली के अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। आए दिन अफसरों पर कार्रवाई हो रही है। वैसे भी, वे फील्ड में रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। पुचकारने से काम निकल गया, तो ठीक वरना चमकी-धमकी में तो उनकी मास्टरी है। फिर, खेल विभाग में ऐसे-ऐसे खटराल अफसर बैठे हैं, जो जरा-सा भी कमजोर पड़ने पर सुरेश कलमाडी बना देंगे। उन पर नकैल डालकर आईपीएल करा देने के लिए ही सरकार ने मंडल को भेजा गया है। जाहिर है, आईपीएल बड़ा आयोजन है। अभी तक भोपाल और इंदौर में आईपीएल नहीं हुआ है। सियासी प्रेक्षको का कहना है, इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा। वह यूथ को, तो प्रभावित करेगा ही। जाहिर है, सरकार के लिए यह प्रतिष्ठा का विषय तो रहेगा ही। 

कामयाब

सुब्रमण्यिम के खेल विभाग से हटने से आईएएस लाबी की प्रसन्नता समझी जा सकती है। सुब्रमण्यिम पिछले छै-सात साल से अहम पद संभाल रहे थे। कहां नहीं रहे, मनरेगा, वेटनरी, मंडी बोर्ड, तकनीकी शिक्षा, ड्रग कंट्रोलर जैसे कई जगहों पर। सभी आईएएस कैडर के पोस्ट थे। वे सूबे के पहले आईएफएस थे, जो सीएम सिके्रटेरियेट में रहे। सीएम ने पिछले साल आईएएस सुब्रत साहू से खेल विभाग लेकर सुब्रमण्यिम को सौंपा था। किसी आईएफएस को इंडिविजिवल चार्ज का यह पहला मौका था। मगर आईपीएल आते ही, उन्होंने जिस तरह से अपने ही बल्ले से अपना विकेट गिरा दिया, उससे आईएफएस के साथ ही आईपीएस भी सकते में हैं। इसलिए, क्योंकि उन्होंने आईएएस को यह कहने का मौका दे दिया कि चैलेंजिंग वाला काम वे ही कर सकते हैं, आईपीएस, आईएफएस सेकेंड लाइन के लिए ठीक हंै। सुब्रमण्यिम के करीबी अफसर भी मान रहे हैं, अपने को साबित करने का इससे बढि़यां मौका नहीं मिलता। आखिर, बे्रन ट्यूमर होने के बाद भी अद्भूत जीजीविषा का परिचय देते हुए आईएफएस देवेंद्र सिंह ने सफल इंवेस्टर मीट कैसे करा डाला था। सिंह ने आईएफएस की कामयाबी का जो झंडा गाड़ा, सुब्रमण्यिम के अकारण मैदान छोड़ने से उसकी छबि जाहिर तौर पर धूमिल हुई है।

काका किस्मती

निवर्तमान डीजीपी अनिल नवानी किस्मती निकले। एक तो विश्वरंजन के डिरेल होने के चलते वक्त से आठ महीने पहले डीजीपी बन गए और 16 महीने के कार्यकाल में अलेक्स पाल मेनन के अपहरण के अलावा कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मगर वर्तमान डीजीपी रामनिवास के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्हें दो महीने नहीं हुए, एयरफोर्स के हेलीकाप्टर पर नक्सलियों की फायरिंग और अब तीस मार खां फिल्म के अंदाज में टे्रन हाइजेकिंग हो गई। वो भी राजधानी के बगल में। देश में इस तरह का यह पहला वाकया है। नेशनल मीडिया में यह सुर्खियों में है। इससे रामनिवास की परेशानी तो बढ़ी है। 

हफ्ते का एसएमएस

एक सभा में राहुल गांधी जोर-जोर से भाषण दे रहे थे, कांग्रेस में करप्ट  लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। भीड़ से आवाज आई, हाउसफुल हो गया है क्या?

अंत में दो सवाल आपसे

1.    नीतिन गडकरी के भाजपा अध्यक्ष पद से हटने पर किस आईएएस की स्थिति कमजोर हुई है?
2.    सत्ता में रसूख रखने वाले दो भाइयों का नाम बताइये, जिन पर दो राजनेताओं ने हाईप्रोफाइल शादियों में केटरिंग की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा था और उन्होंने उसे गुड़-गोबर कर दिया?

न्यूपावरगेमडाटकाम से साभार

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

तरकश, 3 फरवर


विरोधाभास

दागी और खराब छबि वाले आईएएस अफसरों के रिकार्ड्स की समीक्षा करने वाली कमेटी में प्रशासन अकादमी के महानिदेशक नारायण सिंह भी शामिल हैं। नारायण सिंह का मतलब आप जानते हैं, मालिक मकबूजा कांड। इसके लिए सिंह को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। राज्य के वे पहले आईएएस हैं, जो भारत सरकार द्वारा डिमोेट किए गए। और अब देखिए, वे खराब छबि वाले अफसरों की सूची बना रहे हैं। आईएएस अफसर इसको सूपा और चलनी का मामला बताकर चुटकी ले रहे हैं, तो इसमें गलत क्या है?

डेसिंग

88 बैच के साफ और सौम्य छबि के आईपीएस संजय पिल्ले को जब ईओडब्लू और एसीबी की कमान सौंपी गई थी, तो लोगों को लगा था अब छापे और ट्रेप में कमी आ जाएगी। मगर पिल्ले, तो पूर्ववर्ती ईओडब्लू चीफ दुर्गेश माधव अवस्थी से भी एक कदम आगे निकल गए। महीने भर के भीतर ही बड़ा निशाना बनाया। 10 करोड़ी अफसर को पकड़ा, डिप्टी कमिश्नर कामर्सियल टैक्स शंकरलाल अग्रवाल को। भाजपा शासन काल में अग्रवाल अफसर के घर छापा, किसी अचरज से कम नहीं है।  

खतरा

जैजैपुर के विधायक महंत रामसुंदर दास की गद्दी खतरे में है। उनकी सीट पर कांग्रेस के एक दिग्गज नेता की नजर गड़ गई है। नेताजी अपनी अद्र्धांगिनी को इस सीट से चुनाव लड़ाना चाहते हैं। जैजैपुर सामान्य सीट है और इस समय कांग्रेस के लिए सबसे मुफीद समझी जा रही है। सो, नेताजी को और क्या चाहिए। महंतजी को, उनके लोगों के जरिये समझाने की कोशिश की जा रही है कि जैजैपुर की जगह चांपा या सक्ती में से जहां चाहे, उन्हें टिकिट दिलवा दी जाएगी। पर, महंतजी इसके खतरे से अनभिज्ञ नहीं हैं। फिर, वे जैजैपुर से दूसरी बार विधायक हैं। और तीसरी बार में भी कोई दिक्कत नहीं है। खुदा-न-खास्ते कांग्रेस कहीं आ गई, तो महंतजी मंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे। ऐसे में मना करने के अलावा उनके पास चारा क्या था। मगर नेताजी के लोग कहां मानने वाले। महंतजी के कार्यकर्ताओं को तोड़ने का काम चालू हो गया है। अब देखना है, महंतजी झुकते हैं या नेताजी।  

नम्बर बढ़ा

गर्भवती महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री द्वारा महतारी एक्सप्रेस चलाने की योजना का ऐलान करने पर सयसे अधिक कोई खुश है, तो वे हैं आईएएस सोनमणि बोरा। यह कांसेप्ट मूलतः बोरा का था और इसके लिए उन्हें यूनिसेफ से जमकर सराहना मिली थी। 2010 में बोरा जब बिलासपुर के कलेक्टर थे, तब उन्होंने महतारी एक्सप्रेस चलाई थी। इसके लिए टोल फ्री नम्बर 102 रखा गया था। सरकारी वेबसाइट पर नजर डालें, तो इस योजना का सर्वाधिक लाभ दूरस्थ और आदिवासी इलाके की महिलाओं को मिला था। तब बिलासपुर का संस्थागत प्रसव 17 से बढ़कर 54 फीसदी पहुंच गया था। अब राज्य सरकार ने इसे एडाप्ट कर लिया है। जाहिर है, इससे बोरा का नम्बर बढ़ा है। बोरा अभी हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर के साथ ही डीपीआर हैं।

नया चेहरा

स्टेट पौल्यूशन बोर्ड में जल्द ही नया चेहरा दिख सकता। 87 बैच के आईएफएस अफसर नरसिंह राव पिछले चार साल से बोर्ड की कमान संभाल रहे थे। पता चला है, सरकार अब उन्हें रिप्लेस करने जा रही है। राव की जगह कोई आईएफएस ही लेगा। वह पीसी पाण्डेय हो सकते हैं या फिर आनंद बाबू। इनके अलावे कुछ और आईएएस, आईएफएस भी ट्राई मार रहे हैं। कुछ तो आवास पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव बैजेंद्र कुमार से बहाने ढूंढ-ढूंढकर मिल रहे हैं। शायद, साब सिफारिश कर दें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक मंत्रीजी का नाम बताइये, जो आजकल अपने को सुपरटाईम स्केल वाले मंत्री बताते है?
2. आईएएस बिरादरी में किस आईएएस को छत्तीसगढ़ का दूसरा शैलेष पाठक कहा जा रहा है?