रविवार, 29 दिसंबर 2019

मंत्रियों में घबराहट


29 दिसंबर 2019
नगरीय निकाय चुनाव में जिन इलाकों में सत्ताधारी पार्टी का परफारमेंस पुअर रहा, उन क्ष़्ोत्रों के मंत्रियों की हालत खराब हो रही है। कई मंत्री घबराए हुए हैं। सरकार का वैसे भी एक साल कंप्लीट हो गया है। काम के लिए अब सिर्फ तीन साल बचे हैं। जाहिर है, पांचवे साल में चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है। लिहाजा, सरकार अब कोई एक्सपेरिमेंट नहीं करेगी। वैसे भी, सीएम भूपेश बघेल भी कई बार मंत्रियों को परफारमेंस को लेकर आगाह कर चुके हैं। नगरीय निकाय चुनाव में ओवरऑल पार्टी का प्रदर्शन भी बढ़ियां रहा। राहुल गांधी सीएम की पीठ थपथपा ही गए हैं। सत्यनारायण शर्मा, अमितेष शुक्ल और देवती कर्मा जैसे कई लोग तैयार बैठे हैं। यह सब सोचकर कई मंत्रियों का दिल बैठा जा रहा है। आखिर, दाउ का क्या भरोसा….पुअर परफारमेंस पर कहीं बाहर का रास्ता न दिखा दें?

मंत्रालय में बड़ी सर्जरी

मंत्रालय में सचिव स्तर पर बहुत जल्द एक अहम बदलाव हो सकता है। इसमें सचिव स्तर के कई अधिकारियों की जिम्मेदारियां बदलेंगी। कुछ सचिवों के पास कई-कई विभाग हैं। उनके लोड कम किए जाएंगे तो कुछ के दायित्व बढाएं जाएंगे। प्रसन्ना आर जैसे कुछ सिकरेट्री के पास कोई खास काम नहीं है। सरकार उन्हें कोई दूसरी जिम्मेदारी दे सकती है। कुछ मंत्री भी दुखी हैं कि उनके सिकरेट्री ठीक से काम नहीं कर रहे। फेरबदल में सरकार निश्चित तौर पर इसका भी ध्यान रखेगी। वैसे, पीडब्लूडी में भी कुछ चेंजेस हो सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं, पीएस होम सुब्रत साहू को कोई और अहम जिम्मेदारी मिल जाए। प्रिंसिपल सिकरेट्री डा0 आलोक शुक्ला को भी महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जाना लगभग तय लग रहा है। कुल मिलाकर मंत्रालय की सर्जरी अबकी इस हिसाब से की जाएगी कि वह कम-से-कम दो साल तक चले। सीएम भूपेश की काम करने वाली यही असली टीम होगी। वजह यह कि किसी भी नई सरकार का पहला साल अफसरो को परखने में निकल जाता है। एक साल में सीएम भी समझ गए हैं कि कौन काम करने वाले अफसर हैं और कौन जुबानी जमा खर्च वाले।

वेटिंग चेयरमैन

रिटायर आईपीएस गिरधारी नायक मानवाधिकार आयोग के मेम्बर बन गए हैं। जाहिर है, उनकी नजर प्रभारी चेयरमैन की कुर्सी पर रही होगी। क्योंकि, डीजी से रिटायर हुआ अफसर सिर्फ मेम्बर तो बनेगा नहीं। लेकिन, नायक को इसके लिए अभी वेट करना पड़ेगा। आयोग में अभी डिस्ट्रिक्ट जज रैंक के प्रभारी चेयरमैन हैं। उनके रिटायरमेंट में अभी छह-सात महीने का टाईम है। तब तक नायक को सदस्य बनकर काम करना होगा। हालांकि, प्रभारी चेयरमैन बनने के बाद भी नायक के सामने इस बात की खतरा हमेशा रहेगा कि सरकार कभी किसी हाईकोर्ट जस्टिस को चेयरमैन बना दिया तो? जाहिर है, चेयरमैन का पद वस्तुतः हाईकोर्ट के जस्टिस का है। जस्टिस की नियुक्ति न होने पर सरकार प्रभारी चेयरमैन बनाकर अपने लोगों को उपकृत करती है।

शुक्ला की बिदाई नहीं

करीब चार साल बाद मंत्रालय लौटे सीनियर आईएएस डा0 आलोक शुक्ला का जून 2020 में रिटायरमेंट है। याने सिर्फ छह महीने बाद। आलोक आईएएस से जरूर रिटायर हो जाएंगे। लेकिन, सरकार से नहीं। ताजा अपडेट यह है कि जब तक भूपेश सरकार रहेगी, आलोक सरकारी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहेंगे। बताते हैं, सीएम भूपेश बघेल ने भी उन्हें दो टूक कह दिया है, आपको रिटायर नहीं होना है। सरकार का मानना है, जब पिछली सरकार में रिटायमेंट के दस-दस साल बाद बाहरी अधिकारी जमे रहे तो फिर रिजल्ट देने वाले छत्तीसगढ़ियां आईएएस क्यों नहीं। वैसे ठीक भी है। सूबे में सीनियर लेवल पर अफसरों का वैसे ही टोटा है। आलोक तो काबिल अधिकारी माने जाते हैं। फूड और हेल्थ में उन्होंने काफी काम किया है।

व्यापम में आईएएस

आईएफएस उमा देवी के डेपुटेशन पर भारत सरकार जाने से व्यापम चेयरमैन का पद खाली हो गया है। पीएमटी पर्चा कांड के बाद विवादों में रहे इस भर्ती बोर्ड को सरकार मजबूत करने पर विचार कर रही है। इसके लिए जल्द ही किसी आईएएस को व्यापक का नया चेयरमैन अपाइंट किया जा सकता है। आईएएस भी सीनियर होगा। उन्हें टास्ट दिया जाएगा कि खाली पड़े सैकड़ों पदों पर अगले चार साल में ज्यादा-से-ज्यादा भर्तियां पूरी कर लें।

आईपीएस के प्रमोशन

कुछ साल पहिले तक आईपीएस में परंपरा रही कि एक जनवरी को प्रमोशन मिल जाता था। इसकी तैयारी पहले ही पूरी कर ली जाती थी। और, 31 दिसंबर की शाम को आर्डर निकल जाता था। 2009 के बाद यह परंपरा बंद हो गई। लेकिन, इस बार यह सुनने में आ रहा है कि प्रमोशन को लेकर सरकार संजीदा है। गृह विभाग में इसको लेकर कई बैठकें हो चुकी है। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही आईपीएस में प्रमोशन हो जाएगा। हालांकि, इस बार संख्या काफी कम है। आईजी से एडीजी प्रमोट होने वाले सिर्फ प्रदीप गुप्ता हैं। वे बिलासपुर के आईजी हैं। प्रमोशन के बाद उन्हें वहीं कंटीन्यू कर दिया जाएगा। डीआईजी टीआर पैकरा आईजी बनेंगे। चूकि वे हाल ही में ट्रांसपोर्ट में आए हैं। लिहाजा, उन्हें भी बदलने की कोई संभावना नहीं है। एसपी से डीआईजी बनने वालों में जरूर चार आईपीएस हैं। इनमें एक राजनांदगांव के एसपी बीएस धु्रव भी शामिल हैं। उनके अलावा आरएन दास, मयंक श्रीवास्तव और टी एक्का भी डीआईजी बनेंगे।

महिला अफसरों पर भरोसा

भारत निर्वाचन आयोग ने आईएएस रीना बाबा कंगाले को राज्य निर्वाचन पदाधिकारी बनाने के लिए ओके कर दिया है। हालांकि, जीएडी से उनका अभी आर्डर नहीं निकला है। सरकार चाह रही है कि रीना के पास एडिशनल चार्ज के रूप में मंत्रालय का चार्ज बना रहे। इसके लिए निर्वाचन आयोग से अनुमति मांगी गई है। बहरहाल, निधि छिब्बर के बाद रीना दूसरी महिला आईएएस होंगी, जिन्हें भारत निर्वाचन आयोग ने इस पद पर पोस्टिंग दी है। दिलचस्प यह है कि निधि छिब्बर का नाम जब निर्वाचन आयोग को भेजा गया था तब तीन सदस्यीय पेनल में उनका नाम सबसे उपर था। आयोग ने उनके नाम को टिक कर दिया था। इस बार भी तीन नाम भेजे गए, उनमें रीना कंगाले, अविनाश चंपावत और सुबोध सिंह के नाम थे। हालांकि, सुबोध का नाम कोरम पूरा करने के लिए भेजा गया होगा, क्योंकि उन्हें डेपुटेशन पर जाने राज्य सरकार एनओसी दे चुकी है।

मंत्रियों में टकराव?

नगरीय निकाय चुनाव में राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने पार्टी के पिछड़ने का ठीकरा पुलिस पर फोड़ा है। अग्रवाल का आरोप है कि पुलिस ने कांग्रेस पार्टी के पार्षदों को हराने के लिए काम किया। राजस्व मंत्री के इस आरोप के बाद गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने अपनी पुलिस का बचाव करने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा, पता नहीं मंत्रीजी ने ये कैसे कह दिया। पुलिस ऐसा काम नहीं कर सकती….पुलिस हराने और जिताने का काम नहीं करती। तो क्या इसे मंत्रियों में टकराव की शुरूआत मानी जाए।

विभाग छोटा, काम बड़ा

गर ढंग से काम किया जाए तो छोटा विभाग भी अहम बन जाता है। जैसा संस्कृति विभाग अभी हुआ है। आदिवासी डांस महोत्सव से पहिले भला कौन जानता था कि पुछल्ला सा विभाग राज्य और राज्य सरकार की इस तरीके से ब्रांडिंग करा देगा। नेशनल मीडिया में यह आयोजन सुर्खियों में रहा। इस आयोजन की खासियत यह है कि सरकार का इसमें एक रुपया नहीं लगा। बारह-तेरह करोड़ रुपए में में से साढ़े सात करोड़ एनएमडीसी दे दिया। बाकी पैसा लोकल इंडस्ट्री देने वाली है। इस आयोजन से संस्कृति सचिव सिद्धार्थ परदेशी का नम्बर बढ़ गया है। सरकार में बैठे लोग भी बोल रहे, सिद्धार्थ ने जबर्दस्त मेहनत किया। हालांकि, अगला साल पर्यटन विभाग के लिए भी अहम होगा। रामपथ गमन के साथ ही कोरबा के बांगो को नेशनल लेवल का टूरिस्ट सेंटर बनाने पर काम प्रारंभ हो गया है। बांगो के बारे में बताते हैं, वैसा लंबा झील देश में कहीं नहीं है। भोपाल से भी बड़ा। करीब 40 किमी में पसरा। सिकरेट्री टूरिज्म अंबलगन पी इसके लिए बांगो का मुआयना करके आ चुके हैं। मंत्रालय में इस मास्टर प्लान पर काम प्रारंभ हो चुका है। याने टूरिज्म भी कुछ बड़ा करने वाला है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नए साल में सैर-सपाटे पर जाने सरकार से छुट्टी मांगने से ब्यूरोक्रेट्स घबरा क्यों रहे हैं?
2. दुर्ग सांसद विजय बघेल क्या भारतीय जनता पार्टी के अगले प्रदेश अध्यक्ष होंगे?

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

फिर आचार संहिता



22 दिसंबर 2019
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे 24 दिसंबर को आएंगे। इससे पहिले राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, आयोग के पास टाईम भी नहीं है। 15 फरवरी तक ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायतों के पदाधिकारियों को शपथ दिलाने की प्रक्रिया निबटानी पड़ेगी। खबर है, नगरीय निकाय के रिजल्ट के एक-दो दिन के भीतर ही आयोग पंचायत चुनाव का ऐलान कर देगा। इसके साथ ही कोड ऑफ कंडक्ट फिर प्रभावशील हो जाएगा। इसका मतलब ये हुआ कि आचार संहिता की वजह से डेढ़ महीने से सरकारी कामधाम ठप पड़ा है, वो 20 फरवरी तक फुरसत समझिए। छत्तीसगढ़ के साथ यही बिडंबना है, राज्य सरकार के पांच साल में से सवा साल आचार संहिता में गुजर जाता है। विधानसभा चुनाव के लिए पिछले साल 6 अक्टूबर को कोड ऑफ कंडक्ट लगा था। वह दिसंबर एंड में खतम हुआ। जनवरी नया साल में निकल गया। फरवरी में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। मई एंड में लोस चुनाव संपन्न हुआ तो जून में बरसात शुरू हो गई। अक्टूबर बरसात, दशहरा और दिवाली में निकल गया। नवंबर में ठाकुर राम सिंह ने नगरीय निकाय चुनाव का बिगुल फूंक दिया। और, अब पंचायत चुनाव। वैसे, कम-से-कम इस साल तो ये ठीक है, फरवरी में बजट पेश हो जाएगा। इसके बाद नया बजट, नया काम।

अफसरों को अभयदान

यह बात स्पष्ट है, नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से जिलों के कलेक्टर्स एवं नगर निगम कमिश्नरों का न केवल परफारमेंस आंका जाएगा….बल्कि इसी से उनका भविष्य तय होगा। अधिकांश कलेक्टरों एवं निगम कमिश्नरों का जिलों में एक बरस पूरा हो गया है। ऐसे में, कोई कलेक्टर या कमिश्नर जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। कलेक्टर वैसे भी जिले में सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। रिजल्ट अनुकूल नहीं आने का मतलब होगा, उन्होंने सरकार की योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं कराया। कलेक्टर्स और कमिश्नर्स भी इस चीज को समझ रहे हैं। तभी 25 दिसंबर का डेट उन्हें काफी डराया हुआ है। इस दिन चुनाव के रिजल्ट आएंगे। लेकिन, रिजल्ट अच्छा आए या खराब। पंचायत चुनाव के चलते उन्हें अब फरवरी तक के लिए अभयदान मिल जाएगा। आचार संहिता की वजह से अफसरों को हटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि, कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर होते हैं। उसी तरह निगम कमिश्नर असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर।

अब बजट के बाद

पंचायत चुनाव के चलते लगता है, मेगा प्रशासनिक फेरबदल अब बजट के बाद ही हो पाएगा। फरवरी में मुख्यमंत्री एवं भारसाधक वित्त मंत्री भूपेश बघेल अपना दूसरा बजट पेश करेंगे। तब तक धान खरीदी का काम भी पूरा हो जाएगा। तब जिलों में थोक में ट्रांसफर होंगे। हां, मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय में जरूर कुछ अहम बदलाव हो सकते हैं…. ऐसी खबरें आ रही हैं।

डीजी का प्रमोशन

भारत सरकार ने संजय पिल्ले और आरके विज को फिर से डीजी बनाने के लिए अनुमति दे दी है। फिर से का मतलब आप समझते होंगे….दोनों को पिछले साल 6 अक्टूबर को पिछली सरकार ने डीजी बनाया था। नई सरकार ने पदोन्नति को निरस्त कर पिल्ले, विज और मुकेश गुप्ता को डिमोट कर दिया। मुकेश गुप्ता चूकि सस्पेंड हैं, लिहाजा राज्य सरकार ने दो पदों के लिए डीपीसी करने की अनुमति मांगी थी। इस दौरान 30 नवंबर को डीजी बीके सिंह के रिटायर हो जाने के बाद तीसरा पद भी खाली हो गया है। एडीजी अशोक जुनेजा इस तीसरे पद के इकलौते दावेदार हैं। अब प्रश्न यह है कि सरकार दो पदों पर डीपीसी कर देगी या फिर जुनेजा के लिए भारत सरकार से अनुमति आने का वेट करेगी। हालांकि, पिछली सरकार ने बिना अनुमति ही तीनों को डीजी बना दिया था। जुनेजा का प्रमोशन जनवरी से ड्यू है। कुल मिलाकर संजय पिल्ले के ग्रह-नक्षत्र कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। पिछले साल पोस्ट होने के बाद भी उन्हें प्रमोशन के लिए 10 महीना वेट करना पड़ा। क्योंकि, सरकार विज और गुप्ता के बगैर उन्हें डीजी बनाने के लिए तैयार नहीं थी। पिल्ले डीजी बने और बिना कसूर के डिमोट हो गए। उनके लिए एक पोस्ट तो खाली थी ही। लेकिन, एक ही आदेश में तीनों का प्रमोशन हुआ था इसलिए तीनों का निरस्त करना पड़ गया।

सीएस की क्लास

चीफ सिकरेट्री की कुर्सी संभालने के डेढ़ महीने के भीतर आरपी मंडल 23 दिसंबर को तीसरी बार कलेक्टरों से मुखातिब होंगे। उन्होंने कलेक्टरों के साथ जिला पंचायत सीईओ और डीएफओ को भी वीडियोकांफें्रंसिंग में मौजूद रहने के लिए कहा है। सीएस जिलों में चल रहे मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान का रिव्यू करेंगे। मंडल के बारे में कलेक्टरों का कहना है कि एजेंडा सिर्फ कहने के लिए होता है, सीएस पूरी क्लास ले डालते हैं। इसलिए, पूरी तैयारी करनी पड़ती है। न जाने किस योजना के बारे में पूछ दें। ऐसे में, नए सीएस से जिले के अधिकारी थोड़ा असहज महसूस करने लगे हैं। पहले महीने में एक वीडियोकांफें्रसिंग होती थी। अब 15 दिन में वीडियोकांफें्रसिंग तो हो ही रही है सीएस खुद ही दौरे पर निकल जा रहे हैं। नवंबर में कलेक्टर कांफ्रेंस के बाद वे संभाग मुख्यालयों में जाकर अफसरों की क्लास ले चुके हैं।

कलेक्टर का बंगला

ब्यूरोक्रेसी का भी अजीब आलम है…राजधानी में एक महिला कलेक्टर के घर पर चोरी हुई तो चोरी पर चिंता जताने की बजाए अफसरों के बीच खुसुर-पुसुर शुरू हो गई….कलेक्टर को राजधानी में आवास कैसे मिल गया है। दरअसल, कलेक्टर को सरकार ने विशेष केस में दो महीने बंगला अपने पास रखने की इजाजत दी थी। नवबंर फर्स्ट वीक में यह पीरियड खतम हो गया था। सिर्फ डेढ़ महीना लेट हुआ आवास खाली करने में। तब तक चोरों ने हाथ साफ कर दिया। उधर, कलेक्टर का आदेश निकलते ही एडीजी पवनदेव ने सितंबर में ही यह बंगला अपने नाम पर अलॉट करा लिया था। नया अपडेट यह है कि महिला कलेक्टर ने बंगला खाली कर दिया है। पीडब्लूडी ने उसकी चाबी पवनदेव को सौंप दी है। बिलासपुर आईजी बनने से पहिले पवनदेव इसी बंगले में रहते थे। जाहिर है, इस बंगले से उनका लगाव तो रहेगा ही।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए अफसर आजकल अपने सर्विस के स्टे्टस का ध्यान क्यों नहीं रख रहे?
2. नगरीय निकाय चुनाव के बाद बोर्ड और निगमों में नियुक्तियां होगी या पंचायत चुनाव के बाद?

रविवार, 8 दिसंबर 2019

कलेक्टर्स, कमिश्नर्स और स्कूटी

8 दिसंबर 2019
नौकरशाहों के लिए सबसे प्रिय कोई चीज होती है तो वह है गाड़ी और बंगला। अफसर बिरादरी में इसी से उनकी हैसियत आंकी जाती है। उनके बंगले में कम-से-कम तीन गाड़ियां तो खड़ी होनी ही चाहिए। लेकिन, छत्तीसगढ़ में पता नहीं अफसरों को किसकी नजर लग गई, पहले पीली बत्ती उतर गई। और अब चीफ सिकरेट्री ने ऐसा कर दिया है कि सरकारी गाड़ियों का मोह छोड़ कलेक्टरों, निगम कमिश्नरों को अब मोटरसायकिलों पर घूमना पड़ रहा है। उनमें भी नम्बर बढ़ाने के लिए स्कूटर में बैठे फोटो वायरल करने की मजबूरी। सुबह की ठंड में टू व्हीलर वाली फोटो शेयर करने वाले अफसरों का दर्द आप समझ सकते हैं।

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आईपीएस में उलटफेर

पुलिस मुख्यालय में सरकार जल्द ही बड़ी उलटफेर कर सकती है। संकेत हैं, डीजी के लिए होने जा रही डीपीसी के बाद सरकार अहम आदेश निकालेगी। इसमें पीएचक्यू समेत जेल, होमगार्ड, नक्सल आपरेशन, लोक अभियोजन, सबमें बदलाव किया जा सकता है। नए फेरबदल में आईपीएस अशोक जुनेजा को अहम पोस्टिंग मिल सकती है तो एडीजी पवनदेव को पीएचक्यू में और जिम्मेदारी मिलेगी। अशोक जुनेजा रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर तीनों बड़े जिलों के एसपी रह चुके हैं। बिलासपुर और दुर्ग के आईजी भी। ट्रांसपोर्ट में भी रहे हैं और युवा और खेल में भी। मंत्रालय में सिकरेट्री होम भी। पीएचक्यू में प्रशासन और छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स, पुलिस ट्रेनिंग, पुलिस भरती अभी हैं ही। याने पूरा तजुर्बा है उनके पास। नए फेरबदल में एसआरपी कल्लूरी को भी कोई विभाग दिया जाएगा। ट्रांसपोर्ट से हटने के बाद कल्लूरी के पास अभी कोई विभाग नहीं है।

डीजी के लिए डीपीसी

संजय पिल्ले और आरके विज को एडीजी से डीजी बनाने राज्य सरकार ने भारत सरकार को लेटर लिखा था, उसका अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। और, महीना भर हो भी गया है। नियम यह है कि भारत सरकार महीने भर के भीतर कोई आपत्ति नहीं करती या कोई रिप्लाई नहीं आता तो राज्य सरकार प्रमोशन कर सकती है। हाल ही में 2004 बैच के आईएएस को सिकरेट्री बनाया गया, उसमें भी ऐसा ही हुआ। आदेश के नीचे में जीएडी ने इसका हवाला देते हुए बताया था कि भारत सरकार को एक महीने पहले अनुमति के लिए पत्र भेजा गया और एक महीने की अवधि पूरी हो गई, इसलिए प्रमोशन किया जाता है। ऐसे में, पिल्ले और विज की किसी भी दिन डीपीसी हो सकती है। साथ में, एडीजी अशोक जुनेजा की भी डीपीसी होने की खबर है। क्योंकि, डीजी जेल बीके सिंह के रिटायर होने के बाद डीजी के तीन पद खाली हो गए हैं। और, मुकेश गुप्ता सस्पेंड हैं, लिहाजा उनका प्रमोशन अब हो नहीं सकता। मुकेश के बाद सीनियरिटी में जुनेजा आते हैं। और, जनवरी 2019 से उनका प्रमोशन ड्यू भी हो गया है।

मंत्रालय में भी चेंज

हालांकि, 31 अक्टूबर को नए चीफ सिकरेट्री की पोस्टिंग के साथ ही कुछ सचिवों के प्रभार में बदलाव किया गया था। बावजूद इसके संकेत मिल रहे हैं, मंत्रालय में सिकरेट्री की एक और लिस्ट निकल सकती है। इसमें कुछ अहम विभागों के सचिवों को इधर-से-उधर किया जाएगा। प्रिंसिपल सिकरेट्री होम एंड जेल सुब्रत साहू को एकाध विभाग और मिल सकता है।

कलेक्टरों की बढ़ी धड़कनें

धान खरीदी प्रारंभ होने के बाद सूबे के सीमाई जिलों के कलेक्टरों की धड़कनें तेज हो गई है….पता नहीं किस दिन आर्डर निकल जाए। दरअसल, सरकार की नोटिस में है कि हर साल छत्तीसगढ़ में लगभग पांच लाख मीट्रिक टन अवैध धान दूसरे प्रदेशों से आता है। लगभग 12 सौ करोड़ का। इस साल बिचौलियों के लिए तो लाटरी निकलने जैसा था…भूपेश बघेल सरकार 25 सौ में धान खरीद रही है। लिहाजा, अवैध धान को नहीं रोका गया तो सरकारी खजाने पर चपत बैठनी तय है। इसे रोकना सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है। चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने इसके लिए कलेक्टर, एसपी का अलग से व्हाट्सएप ग्रुप बना दिया है। वे सुबह से पूछना चालू कर देते हैं, किसने, कितना धान पकड़ा। इसके बाद फूड सिकरेट्री कमलप्रीत और मार्कफेड एमडी शम्मी आबिदी का दिन भर कलेक्टरों को फोन। हालांकि, कलेक्टरों ने अभी तक पिछले साल की तुलना में सिर्फ सात दिन में चार गुना अधिक अवैध धान पकड़ लिया है। फिर भी, कोरिया, बलरामपुर, धमतरी, राजनांदगांव, कवर्धा, गरियाबंद समेत दस सीमाई जिलों के कलेक्टरों के लिए मुसीबत तो है, पता नहीं कब क्या हो जाए।

खेतान, सुब्रत भी लपेटे में

आईएएस अफसर विधानसभा में सवाल उठाने को लेकर भले ही भड़के हुए हों लेकिन, क्लास ये भी है कि सवाल के जवाब तैयार करने के तरीके से आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट सीके खेतान और पीए होम सुब्रत साहू भी लपेटे में आ गए हैं। मंत्रालय से विधानसभा को भेजे गए जवाब में खेतान को तीन देश और सुब्रत को दो देशों की निजी यात्रा की जानकारी दी गई। जबकि, खेतान का दो दौरा टोटली सरकारी था। एक तो ऑस्ट्रेलिया में वे नरवा, गरवा पर उन्होंने भाषण दिया था। और, दूसरा आक्सफोर्ड में दो हफ्ते का स्टडी टूर। उन्होंने दो-दो दिन की अतिरिक्त छुट्टी ले ली और उन्हीं के बिरादरी वाले अफसरों ने उसे प्रायवेट यात्रा करार देकर विधानसभा को जानकारी भेज दी। ऐसा ही कुछ सुब्रत साहू के साथ हुआ। ऐसे में, आईएएस लॉबी का जज्बाती होकर न्याय की बात करना, कितना लाजिमी है। आईएएस लॉबी का कहना है, निजी यात्राओं के लिए अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। तो उनसे पूछना चाहिए…फिर खेतान और सुब्रत के सरकारी दौरे को निजी क्यों बता डाले।

रियल इस्टेट को राहत

रियल इस्टेट को भूपेश बघेल सरकार बड़ी राहत देने जा रही है। अभी तक रियल इस्टेट के लिए कोई विभाग नहीं था। कुछ काम टाउन एंड कंट्री में होता था, तो कुछ नगर निगम से। कलेक्टरों को भी बिल्डरों को परिक्रमा लगानी पड़ती थी। अब रियल इस्टेट के लिए आवास पर्यावरण को नोडल विभाग बना दिया है। उनके कामों के लिए सिंगल विंडों सिस्टम प्रारंभ किया जा रहा है। पहले बिल्डरों को प्रोजेक्ट की सरकारी प्रक्रिया पूरी करने में दो साल तक लग जाते थे। बिल्डरों ने सीएम को बताया था कि इसके चलते प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाती है। सीएम ने इसके बाद अफसरों को निर्देश दिए कि ऐसी व्यवस्था बनाएं कि दो महीने में बिल्डरों का काम निबट जाए। इसी तरह उद्योगों के लिए भी सिंगल विंडो सिस्टम प्रारंभ किया जा रहा। अभी तक सिंगल विंडो तो था मगर सिर्फ नाम के लिए। अब इसे धरातल पर उतारा जा रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विदेश यात्राओं पर भड़कने वाली आईएएस लॉबी पिछली सरकार में जब आईएएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई तो चुप्पी क्यों साधे रही?
2. दूसरा सवाल,,,,
2. संजय पिल्ले को एडीजी जेल बनाने के बाद एडीजी आरके विज को भी क्या किसी दूसरी जगह शिफ्ट किया जायेगा?

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

मंत्री को भी चाहिए न्याय

सूबे के युवा आदिवासी मंत्री का बेटा दुर्ग के इंजीनियरिंग काॅलेज से बीई कर रहे हैं। वहां किसी बात को लेकर हाॅस्टल में कुछ छात्रों से विवाद हो गया। छात्रों के समर्थन में एनएसयूआई के नेता हाॅस्टल पहुंचे और मंत्रीजी के बेटे की जमकर पिटाई कर दी। अब बेटा पिट जाए, किसी भी पिता को भला बर्दाश्त कैसे हो सकता है। वो भी पिता जब मंत्री हों। गुस्से में तमतमाते हुए मंत्रीजी ने फौरन दुर्ग के सीनियर पुलिस अधिकारियों को फोन लगाया। बोले, बेटे के साथ मारपीट करने वालों को तुरंत गिरफ्तार कर जेल भिजवाओ, वरना खैर नहीं….विधानसभा चालू होने वाला है…समझ जाना। मगर मंत्रीजी की इस घुड़की का पुलिस अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ। मंत्रीजी इसके बाद दुर्ग गए और बेटे को साथ लेकर गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के पास न्याय मांगने पहुंचे। गृह मंत्रीजी बोले, निश्चित तौर पर कार्रवाई होगी। मगर क्लास यह है कि घटना के एक हफ्ते बाद गिरफ्तारी तो छोड़िये, अभी तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। सुना है, अब मंत्रीजी कार्रवाई के लिए डीजीपी डीएम अवस्थी से मिलने वाले हैं। ऐसे में, समझा जा सकता है, सूबे में पोलिसिंग की क्या हालत है। मंत्री रिपोर्ट लिखाने भटक रहे हैं, तो आम आदमी का क्या होगा?

अफसर, पुलिस और चोर

एक अफसर के घर में चोरी हुई। पुलिस में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई गई। चूकि, बड़े अफसर का मामला था, पुलिस हरकत में आई और हाईप्रोफाइल चोर को पकड़ लिया गया। अब आई पैसे और जेवरात की बरामदगी की बारी। चोरी की रिपोर्ट में जो नगदी और गहने का ब्यौरा दिया गया था, चोरों के पास माल उससे कहीं अधिक ज्यादा मिला। रिपोर्ट जितने की लिखाई गई है, पुलिस उससे अधिक भला बरामदगी कैसे दिखा सकती है। चोरों ने भी मीडिया की खबरों को पढ़ लिया था कि इतनी राशि की चोरी हुई है। लिहाजा, पुलिस और चोरों ने मिलकर आपस में समझ लिया और जितनी रकम और जेवरात अफसर द्वारा बताई गई थी, उतना लौटा दिया गया। व्हाट इज आइडिया!

आईएएस में एक, आईपीएस में जीरो

डीजी जेल और होमगार्ड बीके सिंह के रिटायर होने के बाद आईपीएस में सीनियर लेवल पर शून्यता की स्थिति निर्मित हो जाएगी। राज्य बनने के बाद यह पहली बार होगा कि डीजी लेवल पर डीजीपी के अलावा एक भी अफसर नहीं होगा। जबकि, सूबे में डीजी के चार पोस्ट हैं। लेकिन, इस साल डीजी लेवल के तीन आईपीएस रिटायर हो गए। पहले गिरधारी नायक, फिर एएन उपध्याय और अब बीके सिंह। इससे पहिले डीजी लेवल पर अफसरों की संख्या इतनी होती थी कि स्पेशल डीजी बनाना पड़ता था। संतकुमार पासवान स्पेशल डीजी रह चुके हैं। यानि पोस्ट न रहने के बाद भी भारत सरकार से अनुमति लेकर प्रमोशन दे दिया जाता था। मगर इस बार मामला ही उल्टा है। डीजी लेवल पर कोई अफसर ही नहीं है। पूरे तीन पद खाली हैं। कमोवेश इसी तरह के हालात आईएएस में भी है। चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल के बाद मंत्रालय में सिर्फ एक एडिशनल चीफ सिकरेट्री हैं। अमिताभ जैन। ऐसा कभी नहीं हुआ कि सरकार के पास एक एसीएस हो। एक समय तो छह-छह एसीएस हो गए थे। स्वीकृति पद से भी अधिक। और अभी मात्र एक। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सीएस 87 बैच के हैं। उनसे नीचे 88 बैच में केडीपी राव थे। वे 31 अक्टूबर को रिटायर हो गए। 89 बैच में भी एक ही आईएएस हैं। अमिताभ जैन। 90 बैच के शैलेष पाठक नौकरी छोड़ दिए। 91 बैच में रेणु पिल्ले, 92 बैच में सुब्रत साहू और 93 बैच में अमित अग्रवाल हैं। याने सभी बैच में एक-एक अफसर। 94 बैच में जरूर चार-पांच आईएएस हैं। मगर दिक्कत यह है कि 2024 या बहुत हुआ तो 2023 के एंड में ये एसीएस बन पाएंगे। तब मंत्रालय में यही स्थिति रहनी है।

सीएस के ग्रुप में एसपी

अवैघ धान पकड़ने में जिले के पुलिस कप्तान कितने सजग हैं, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल इस पर नजर रख रहे हैं। इसके लिए चीफ सिकरेट्री ने एक अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाया हैं। उन्होंने इस ग्रुप में सभी 27 जिलों के कलेक्टरों को जोड़कर सभी को एडमिन बना दिया। कलेक्टरों को उन्होंने अपने-अपने जिलों के एसपी को जोड़ने का मैसेज भेजा। अब सारे कलेक्टर, एसपी सीएस के व्हाट्सएप ग्रुप में हैं। हालांकि, कलेक्टर तो सीएस के ग्रुप में रहते ही हैं, पहला मौका होगा जब सीएस के व्हाट्सएप ग्रुप में एसपी भी जोड़े गए हैं। सीएस लगातार व्हाट्सएप के जरिये धान के अवैध ढुलाई को वाॅच कर रहे हैं।

डीएम भी अब सड़क पर

डीजीपी डीएम अवस्थी भी अब पुलिस मुख्यालय से निकलकर फील्ड में उतर गए हैं। पिछले हफ्ते अचानक वे धमतरी जिलों के कई थानों में धमक गए। एक थाने में डीजीपी जब पहुंचे तो वहां जश्न की तैयारी चल रही थी। थाने में एक भी स्टाफ बर्दी में नहीं था। कोई जिंस में था तो कोई टीशर्ट में। डीएम ने थानेदार समेत सात पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया।

अजय अध्यक्ष?

विधानसभा के शीत सत्र में विधायक अजय चंद्राकर गजब फर्म में दिखे। लगा पूरी पार्टी एक तरफ और अजय एक तरफ। विपक्ष की ओर से सत्ता पक्ष पर हमला बोलने का जिम्मा अकेले ही संभाले रहे। उनकी आक्रमकता ने मंत्रियों को भी कई बार असहज किया। पता चला है, बीजेपी में नया अध्यक्ष अपाइंट होने वाला है। उसमें अजय चंद्राकर का भी नाम है। चंद्राकर के साथ सिर्फ एक रोड़ा है वह कुर्मी होना। असल में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी उन्हीं के समुदाय से आते हैं। अब एक ही वर्ग से दो बड़े पदों पर नियुक्ति तो हो नहीं सकती। लेकिन, यह अवश्य है कि अजय चंद्राकर तगड़े दावेदार हैं अध्यक्ष पद के। भाजपा भी चाह रही है कि सूबे में अगर सीएम भूपेश बघेल जैसे नेता से अगर टक्कर लेना है, तो आक्रमक नेता को ही पार्टी की कमान सौंपनी होगी। शिवप्रताप सिंह, रामसेवक पैकरा, विष्णुदेव साय, विक्रम उसेंडी….अब बहुत हो गया।

बनवारीलाल की चूक

भाजपा नेता बनवारीलाल अग्रवाल की एक राजनीतिक चूक ने छत्तीसगढ़ में विपक्ष को विधानसभा का उपाध्यक्ष पद देने की परंपरा ही खतम कर दी। अजीत जोगी सरकार के समय बनवारी लाल अग्रवाल डिप्टी स्पीकर थे। उन्होंने सरकार से किसी बात पर अनबन होने पर इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद तत्कालीन सीएम अजीत जोगी ने कांग्रेस के धरमजीत सिंह को विस उपाध्यक्ष बनवा दिया। कांग्रेस के बाद बीजेपी के कार्यकाल में भी ऐसा ही हुआ। भाजपा ने अपनी ही पार्टी के नारायण चंदेल और बद्रीधर दीवान को विस उपाध्यक्ष बनाया। अब कांग्रेस भी मनोज मंडावी को उपाध्यक्ष बनाने जा रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

नगरीय निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन न करने पर कलेक्टर, नगर निगम कमिश्नरों को क्या बदला जाएगा?
राजस्व सचिव एनके खाखा रिटायर हो रहे हैं, क्या उन्हें कोई पोस्ट रिटायरमेेेंट पोस्टिंग मिलेगी?

शनिवार, 23 नवंबर 2019

दो गाड़ी, 8 कमिश्नर, कलेक्टर

24 नवंबर 2019
कमिश्नर और सात कलेक्टर दो गाड़ी में….यह थोड़ा अटपटा लग सकता है। मगर 21 नवंबर को दोपहर जब नया रायपुर के स्टार होटल मेफेयर में कमिश्नर, कलेक्टर्स गाड़ी से उतरे तो देखने वाले आवाक रह गए! जनरल पब्लिक की तरह कलेक्टर्स…? दरअसल, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने जब छह दिन के भीतर दूसरी बार बस्तर के कमिश्नर, कलेक्टर्स, सीईओ को रायपुर तलब किया तो साफ तौर पर हिदायत दी गई वे अलग-अलग गाड़ियों में आकर सरकारी धन का अपव्यय करने की बजाए दो गाड़ियों में आएं। अब सीएस का हुकूम था। सो, उसका पालन करना ही था। बस्तर के सभी सातों कलेक्टर कमिश्नर बंगले में एकत्रित हुए। और, फिर वहां से एक गाड़ी में कमिश्नर और तीन कलेक्टर बैठे और दूसरी में चार कलेक्टर। इसी तरह दो अन्य गाड़ियों में सात जिला पंचायत सीईओ। होटल मेफेयर में सभी को लजीज भोजन कराया गया। कई तो धन्य हो लिए मेफेयर होटल को देखकर ही, खाने की तो पूछिए मत! लंच के बाद सभी अफसरों को मंत्रालय ले जाया गया मीटिंग के लिए। वहां फिर बस्तर संभाग के डेवलपमेंट को लेकर अफसरों की ऐसी खिंचाई हुई कि जब वे बाहर निकले तो चेहरा देखने लायक था। खुद को सुपरमैन समझने वाले कलेक्टरों को एक तो गाड़ियों में भर कर आना पड़ा और उस पर से….टांग देंगे, लटका देंगे। इसे ही कहते हैं, खिला-पिलाकर धुलाई। कागजों और सोशल मीडिया में काम करके सरकार को भ्रमित करने वाले कलेक्टरों को अब संभल जाना चाहिए।

अजब-गजब

जिस महिला आईएफएस पर 13 करोड़ के बॉटनीकल गार्डन में गड़बड़झाला करने का आरोप लगा था, वह रायपुर की डीएफओ बन गई। जंगल सफारी में पोस्टिंग के दौरान महिला आईएफएस ने नया रायपुर में 13 करोड़ का बॉटनीकल गार्डन बनवाया था। एक कांग्रेस नेता ने आरटीआई में जानकारी निकलवाई कि गार्डन में मुश्किल से तीन करोड़ भी खर्च नहीं हुए हैं। नेता ने पूरे दस्तावेज के साथ अफसर के खिलाफ ईओडब्लू में शिकायत की। शिकायत गंभीर किस्म की है, इसलिए ईओडब्लू ने जांच के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। अनुमति की फाइल सरकार में प्रक्रियाधीन है। इससे पहिले महिला अफसर को रायपुर जैसे डिवीजन की कमान सौंप दी गई। इस चक्कर में रायपुर के डीएफओ उत्तम गुप्ता को छह महीने में ही हटना पड़ गया। उत्तम वही आईएफएस हैं, जिन्होंने पिछली सरकार के वन मंत्री के 50 लाख के फर्जी वाउचर पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया था। इसके लिए पुरस्कृत होने की बजाए छुट्टी हो गई। है न अजब-गजब!

जय-बीरु की जोड़ी

ब्यूरोक्रेसी में कभी आईएएस आरपी मंडल और आईपीएस अशोक जुनेजा को जय-बीरु की जोड़ी कहा जाता था। दोनों पहले बिलासपुर के कलेक्टर-एसपी रहे और फिर रायपुर के। राजधानी में ये जोड़ी काफी हिट रही….दोनों हर मौके पर साथ दिखते थे। वक्त बदला….जय अब चीफ सिकरेट्री हैं और बीरु एडीजी रह गए। बीरु का जनवरी से प्रमोशन ड्यू है। अब पीएचक्यू में अफसर चुटकी ले रहे हैं…क्या बीरु को डीजी बनाने में जय मदद करेंगे। यह सवाल इसलिए भी मौजूं है कि 30 नवंबर को डीजी जेल बीके सिंह रिटायर हो रहे हैं। सरकार चाहे तो संजय पिल्ले और आरके विज के साथ अशोक जुनेजा को डीजी बनाने के लिए डीपीसी कर सकती है। भारत सरकार से इजाजत लेकर। जाहिर है, बीरु को जय से उम्मीदें तो होगी ही।

27 तक ऐलान

राज्य निर्वाचन आयोग 28 नवंबर या इससे एकाध दिन पहले नगरीय निकाय चुनाव का ऐलान कर सकता है। यह उसकी मजबूरी भी होगी। क्योंकि, पांच जनवरी तक सभी 151 नगर निगम, नगरपालिकाएं और नगर पंचायतों का गठन हो जाना चाहिए। काउंटिंग के बाद कलेक्टर विधिवत बैठक बुलाएंगे। फिर, इस बार मेयर का चुनाव भी राज्य निर्वाचन आयोग कराएगा। पहले पार्षद और महापौर का चुनाव एक ही दिन होते थे। इसलिए, आयोग का काम इसके बाद खतम हो जाता था। अब पार्षद मेयर चुनेंगे। और, यह राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में होगा। लिहाजा समझा जाता है 27, 28 दिसंबर तक काउंटिंग करना अनिवार्य होगा। तभी पूरी प्रक्रिया पूरी कर 5 जनवरी तक पहली बैठक संपन्न हो पाएगी। सो, यह मानकर चलें कि 28 नवंबर तक सूबे में आचार संहिता की घोषणा हो जाएगी।

नया प्रदेश अध्यक्ष


बीजेपी के दर्जन भर नए जिलाध्यक्षों का ऐलान हो गया है। चार जिलों में निर्वाचन की प्रक्रिय पूरी की जाएगी। इसके बाद बाकी जिलों में मनोनयन कर दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा के संविधान के अनुसार कुछ परसेंटेज जिलों में विधिवत चुनाव जरूरी है। याने 27 में से 16 जिलों में। इसके बाद पार्टी मनोनयन के लिए फ्री रहेगी। खासकर जिन जिलों में विवाद की स्थिति है, वहां मनोनयन किया जाएगा। हालांकि, भाजपा के भीतरखाने से यह भी सुनाई पड़ रहा है कि पार्टी अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को भी बदलने पर विचार कर रही है। सत्ताधारी पार्टी और उस पर भी सीएम भूपेश बघेल जैसे आक्रमक राजनीति करने वाले नेता हों, उनके सामने उसेंडी बेहद कमजोर पड़ रहे हैं। नए अध्यक्ष को लेकर भाजपा के भीतर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है। नए अध्यक्ष को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं की नजर पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की ओर है। नया अध्यक्ष उनके पसंद का होगा या फिर पार्टी कोई हटकर फैसला करेगी। वैसे, जिला अध्यक्षों में रमन सिंह की चल रही है। इसलिए, पार्टी के बड़े नेता भी नए अध्यक्ष के बारे में खुलकर कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

कुजूर की ताजपोशी

निवर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुजूर को रिटायर होने के 15 दिन के भीतर ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया है। हालांकि, यह पोस्टिंग चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने वाले अफसर के लायक नहीं है। इस पद पर प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी जीएस मिश्रा पोस्टेड रहे हैं। उनसे पहिले एसीएस DS मिश्रा भी। लेकिन, मिश्रा ने भी रिटायर होने के बाद एक साल तक वेट किया। जब कहीं कोई गुंजाइश नहीं बची तब इस पोस्ट के लिए उन्होंने हां किया था। फिर, निर्वाचन की पोस्टिंग को सरकार ने पांच बरस से घटाकर दो बरस कर दिया है। किन्तु कुजूर के सामने कोई विकल्प नहीं था। सीएस लेवल का पोस्ट कहीं खाली नहीं है। रेरा में विवेक ढांड हैं और मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत। बिजली बोर्ड में शैलेंद्र शुक्ला हाल ही में चेयरमैन बने हैं। एक पद सूचना आयुक्त का था। लेकिन, वो और छोटा हो जाता। लिहाजा, कुजूर ने सहकारिता निर्वाचन को ही ओके कर दिया। वैसे भी, कुजूर के पास चुनाव कराने का खासा तर्जुबा है। देश में सबसे अधिक राज्यों में वे प्रेक्षक बनकर चुनाव कराने गए हैं। कई साल तक प्रदेश के निर्वाचन अधिकारी भी रहे हैं।

केडीपी को वेट

सीएस सुनील कुजूर और एसीएस केडीपी राव एक साथ रिटायर हुए थे। कुजूर को पोस्टिंग मिल गई। ऐसे में, सवाल उठता है केडीपी का क्या होगा। केडीपी की सहकारी निर्वाचन में दिलचस्पी थी। लेकिन, वो अब फुल हो गया है। अब एकमात्र बच रहा है सूचना आयुक्त। वहां भी किसी आरटीआई वाले की नियुक्ति की चर्चा हो रही है। ऐसे में, केडीपी को सूचना आयुक्त के लिए जोर लगाना पड़ेगा। तभी कुछ बात बन पाएगी। वरना, पुराना अनुभव है, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग जितनी जल्दी मिल जाए, उतना अच्छा। धीरे-धीरे मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। गिरधारी नायक का उदाहरण सामने है। याद होगा, एक्स चीफ सिकरेट्री अशोक विजयवर्गीय ने मुख्य सूचना आयुक्त बनने के लिए सीएस जैसा पद छह महीने पहिले छोड़ दिया था। एसीएस सरजियस मिंज ने भी कुछ ऐसा ही किया था। विवेक ढांड को रिटायरमेंट से पहले ही पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को रिटायरमेंट के बाद मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति 12 दिन में मिल गई थी । सिकरेट्री सुरेंद्र जायसवाल को रिटायरमेंट की शाम को ही संविदा नियुक्ति मिल गई थी। इसी तरह का कुछ सिकरेट्री हेमंत पहारे के साथ हुआ था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह और जेल विभाग से ट्रांसपोर्ट को अलग रखने के मायने क्या हैं?
2. रिटायर आईपीएस गिरधारी नायक को आपदा प्रबंधन का प्रमुख बनाने में किसने रोड़ा लगाया है?

शनिवार, 16 नवंबर 2019

आईएएस, आईपीएस और चपरासी

17 नवंबर 2019
र्शीर्षक देखकर आप चौंक गए होंगे….आईएएस, आईपीएस और चपरासी का क्या कांबिनेशन हो सकता है। लेकिन, सूबे के चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल का काम कराने का जुदा अंदाज है….कई बार वे ऐसे उदाहरण दे देंगे कि….। 15 नवंबर की बात है….मंडल स्कूटी में राजधानी में साफ-सफाई का जायजा लेने निकले। शास्त्री चौराहे पर उन्होंने नगरीय निकाय के अफसरों से कहा, अविभाजित मध्यप्रदेश के समय तीन बड़े शहर होते थे। पहले नम्बर पर इंदौर, दूसरा रायपुर और तीसरा भोपाल। साफ-सफाई में इंदौर देश में पहले नम्बर पर आ गया। भोपाल दूसरा और रायपुर 105 वें पर खिसक गया। मंडल बोले, तीन भाई में से एक आईएएस बन गया, दूसरा आईपीएस तो रायपुर चपरासी जैसा क्यों? आईएएस, आईपीएस नहीं बना तो कम-से-कम उसे आईएफएस तो बनना ही चाहिए था। उन्होंने अफसरों से कहा, रायपुर को किसी भी सूरत में साफ-सफाई में अंडर थ्री लाना है। बताते हैं, सीएम भूपेश बघेल ने नए सीएस को टास्क दिया है कि रायपुर को साफ-सफाई के मामले में अव्वल लाना है।

आईपीएस का लास्ट विकेट

डीजी जेल बीके सिंह 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। याने 13 दिन बाद। छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर के लिए 2019 पहला साल होगा, जिसमें चार आईपीएस रिटायर हो चुके हैं….पांचवे का नम्बर है। इनमें तीन तो डीजी लेवल के। सबसे पहिले गिरधारी नायक। फिर, एएन उपध्याय। और, अब 87 बैच के बीके सिंह। छत्तीसगढ़ जैसे छोट कैडर के लिए यह बड़ा वैक्यूम कहा जाएगा, जिसमें छह महीने के भीतर डीजी लेवल के तीन आईपीएस रिटायर हो गए। इसी साल डीआईजी एसएस सोरी और डीएल मनहर भी रिटायर हुए। कुल मिलाकर पांच। हालांकि, आईएएस में भी इस साल सीएस, एसीएस समेत सात अफसर रिटायर हुए। लेकिन, आईएएस का कैडर बड़ा है।

नो पोस्टिंग का रहस्य!

2006 बैच के आईएएस बसव राजू को राज्य सरकार ने आखिरकार कर्नाटक कैडर के लिए रिलीव कर दिया। कर्नाटक बसव का होम स्टेट है। पिछले सरकार के समय से उनका वहां जाने का चल रहा था। याद होगा, डेपुटेशन फायनल होने के बाद जब वे बंगलुरु जाने के लिए पैकिंग कर रहे थे, तो बाई डिफाल्ट वे रायपुर कलेक्टर बन गए। दरअसल, विधानसभा चुनाव के ऐन पहिले रायपुर कलेक्टर ओपी चौधरी के इस्तीफा दे देने के बाद सरकार अंकित आनंद को रायपुर का कलेक्टर बनाना चाहती थी। इसके लिए चुनाव आयोग को तीन नामों का पैनल भेजा गया। लेकिन, आयोग ने दूसरा पैनल मांग लिया। इसमें भी अंकित का नाम सबसे उपर था। सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए बसव राजू का नाम नीचे जोड़ा गया था। बट चुनाव आयोग ने सबसे नीचे वाले नाम पर टिक लगा दिया। और, बसव राजधानी रायपुर के कलेक्टर बन गए। उन्होंने विधानसभा चुनाव कराया और फिर लोकसभा भी। एक समय जब यह कहा जाने लगा था कि बसव अब पिच पर टिक गए हैं, अब वे शायद ही कर्नाटक जाएं, लोकसभा चुनाव के बाद मई एंड में बसव का अचानक विकेट उखड़ गया। इसके बाद से वे बिना विभाग के थे। कहां रायपुर के कलेक्टर और एकदम से जमीन पर….ब्यूरोक्रेसी भी स्तब्ध थी….आखिर हुआ क्या। बसव की नो पोस्टिंग अब भी रहस्य के घेरे में है।

छोटा जिला, बड़ा काम

कलेक्टर कांफ्रेंस और फूड डिपार्टमेंट के रिव्यू में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए कि बड़े जिलों की तुलना में छोटे जिले आउटस्टैंडिंग काम कर रहे हैं। सीएस आरपी मंडल ने जिन जिलों के कामों की तारीफ की, उनमें सूरजपुर, कोंडगांव, दंतेवाड़ा, गरियाबंद और सुकमा शामिल हैं। कलेक्टर कांफ्रेंस की खास बात यह रही कि सुबह दस बजे से दोपहर ढाई बजे तक चली बैठक में नो ब्रेक रहा। साढ़े चार घंटे तक तेज रफ्तार में चली बैठक में कई कलेक्टर पसीने पोंछते नजर आए। दरअसल, कलेक्टरों को यह भ्रम था कि सीएस फील्ड के अफसर हैं, आंकड़ों में उलझाकर वे सफाई से निकल लेंगे। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। मंडल पूरी तैयारी से बैठक में आए थे। वे जब पूछना शुरू किए….मिस्टर! तुम्हारे जिले में फलां महीने में, फलां प्रकरण का इतने ही निबटारा क्यों हुए….कलेक्टर लगे बगले झांकने। सीएस के निशाने पर अधिकांश बड़े जिलों के कलेक्टर रहे। छोटे जिलों में नारायणपुर का पारफारमेंस पुअर रहा। देश के 110 आकांक्षी जिलों में नारायणपुर का नम्बर 104वां है।

जेल किसे?

डीजी जेल और होमगार्ड बीके सिंह इस महीने रिटायर होंगे तो उनकी कुर्सी कौन संभालेंगे, पीएचक्यू में यह बड़ा सवाल है। जेल और होम गार्ड में अभी तक डीजी लेवल के अफसर ही पोस्टेड रहे हैं। वासुदेव दुबे से लेकर राजीव माथुर, संतकुमार पासवान, गिरधारी नायक, बीके सिंह सभी डीजी रैंक के आईपीएस थे। अब दिक्कत यह है कि उपर लेवल में अफसरों की बेहद कमी हो गई है। डीजीपी डीएम अवस्थी के बाद दूसरे, तीसरे नम्बर पर कोई बचेगा ही नहीं। गिरधारी नायक, एएन उपध्याय और अब बीके सिंह रिटायर हो जाएंगे। लिहाजा, डीजी लेवल पर अवस्थी अकेले बच जाएंगे। जबकि, पोस्ट चार का है। पिछली सरकार में तो ये पांच हो गया था। ये स्थिति इसलिए निर्मित हुई है कि 88 बैच के तीन आईपीएस डीजी बन गए थे, उनका डिमोशन हो गया है। वे सभी अब एडीजी हैं। इनमें से अब मुकेश गुप्ता का नाम कट जाएगा। संजय पिल्ले और आरके विज को प्रमोट करने के लिए भारत सरकार से इजातत मांगी गई है। ऐसे में, जेल और होमगार्ड की कमान सरकार को किसी एडीजी को ही सौंपना पड़ेगा।

सीएम की 51 चिठ्ठी

सीएम ने पिछले 11 महीने में चीफ सिकरेट्री को विभिन्न मामलों में 51 लेटर लिखा है। इसमें प्रशासनिक सुधार से लेकर योजनाओं के क्रियान्यवन से संबंधित पत्र शामिल हैं। चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल 14 नवंबर को कलेक्टर कांफ्रेंस में पहुंचे तो यही 51 चिठ्ठियां उनके हाथ में थीं। उन्होंने कलेक्टरों से कहा, ये 51 चिठ्ठियां मेरे लिए 51 जिम्मेदारी हैं, 51 क्विंटल के बराबर। उन्होंने कुछ पत्रों को पढ़कर सुनाया। बोले….यह सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नगरीय निकाय चुनाव नियत टाईम पर होगा या आगे बढ़ सकता है?
2. सिर्फ अल्पसंख्यक आयोग में नियुक्ति करके सरकार ने क्या संदेश दिया है?

शनिवार, 9 नवंबर 2019

टीम मंडल

10 नवंबर, 2019
वैसे तो कहने के लिए सूबे में 80 हजार के स्केल वाले तीन पद हैं, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। लेकिन, ये कहने के लिए है। सीएस ब्यूरोक्रेसी का मुखिया होता है, लिहाजा उसका रुतबा सबसे उपर होता है। पिछले 19 साल में लोगों ने देखा भी कि बड़ी बैठकों में डीजीपी को तीसरे या चौथे नम्बर की ही कुर्सी मिलती थी… पीसीसीएफ तो किसी गिनती में ही नहीं होते थे। डीजीपी में विश्वरंजन ने जरूर अपना ओहरा कायम रखा। बाकी डीजीपी और पीसीसीएफ का प्रोटोकॉल के लायक कभी समझा ही नहीं गया। लेकिन, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने सूबे में नई पहल करते हुए अफसरों को निर्देश दिया है कि कोई भी बड़ी बैठक हो तो सीएस के अगल-बगल डीजीपी और पीसीसीएफ की कुर्सी लगनी चाहिए। पहली बार राज्योत्सव में लोगों ने इसे देखा भी। डीजीपी डीएम अवस्थी और पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी मंच पर नजर आए। यही नहीं, मंडल इन डीजीपी और पीसीसीएफ को साथ लेकर दौरे पर निकलने वाले हैं। टीम मंडल का पहला दौरा बस्तर का होगा।

पूर्व मंत्री का गुस्सा

भाजपा मुख्यालय में 7 नवंबर को जो हुआ, वह पहले कभी नहीं हुआ। नेतृत्व सीधे निशाने पर था। दरअसल, नगरीय निकाय और संगठन चुनाव के लिए बुलाई गई बैठक में पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय को बोलने की बारी आई तो उन्होंने भिलाई में मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के तरीके पर सवाल उठा दिए। उन्होंने बेहद तल्खी के साथ कहा कि 15 साल तक आप लोग भिलाई के संदर्भ में कोई नियुक्ति करनी होती थी तो अपने मन से नाम तय कर मुझे सहमति के लिए भेज देते थे। अब पार्टी विपक्ष में आ गई तो सहमति के लिए मुझसे पूछने की जरूरत नहीं समझी गई। प्रेमप्रकाश का इतना बोलना था कि पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और विधायक शिवरतन शर्मा खड़े हो गए। इसके बाद तो कुछ बाकी नहीं रहा। अजय चंद्राकर यहां तक बोल गए कि 15 साल तक सत्ता में रही पार्टी का ये हाल है कि एक साल होने जा रहा और एक कार्यक्रम नहीं कर सकी है…लोग पूछ रहे हैं, कहां है बीजेपी। इस वाकये के बाद बैठक कक्ष में सन्नाटा पसर गया….बड़े नेताओं की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई। पार्टी पदाधिकारियों के तेवर भांप कर ही फिर 13 नवंबर से जेल भरो आंदोलन का ऐलान करना पड़ा।

एडीजी को आईजी

गृह विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों का जवाब नहीं है। एडीजी, आईजी लेवल के आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर में ऐसी चूक कि अफसर बगले झांकते रहे। पिछले हफ्ते 22 आईपीएस के ट्रांसफर हुए, उसमें एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता के भी नाम थे। हिमांशु दुर्ग रेंज से एडीजी इंटेलिजेंस बनाए गए। और एसआरपी कल्लूरी ट्रांसपोर्ट से पुलिस मुख्यालय। चूकि, इन दोनों जगहों पर आईजी लेवल के अफसर पोस्टेड होते हैं। लिहाजा, मंत्रालय के अफसरों ने ज्यादा दिमाग लगाने की बजाए दोनों को आईजी बना दिया…हिमांशु गुप्ता आईजी खुफिया होंगे कल्लूरी पीएचक्यू में आईजी। जबकि, दोनों कबके एडीजी हो चुके हैं।


कलेक्टरों का ट्रांसफर?

कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट हालांकि, नगरीय निकाय चुनाव के बाद निकलेगी। लेकिन, खबर आ रही है कि चुनाव का ऐलान होने से पहिले एक-दो कलेक्टरों को सरकार बदलने पर विचार कर रही है। खासकर एक कलेक्टर से सरकार कुछ नाराज भी है। संकेत यह भी हैं कि कहीं एक-दो के ट्रांसफर हुए तो हो सकता है, चेन कुछ बड़ा हो जाए।

दो पीसीसीएफ

कैबिनेट द्वारा पीसीसीएफ के दो पदों बढ़ाने की हरी झंडी देने के बाद प्रमोशन की अनुमति के लिए फाइल भारत सरकार भेज दी गई है। वहां से सहमति मिलते ही डीपीसी होगी और आरबीपी सिनहा और संजय शुक्ला पीसीसीएफ हो जाएंगे। हालांकि, सिनहा इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। इसलिए, अगले हफ्ते तक अगर डीपीसी हो गई तो मुश्किल से वे 15 दिन पीसीसीएफ रह पाएंगे। दिसंबर में फिर उनकी जगह पर नरसिम्हा राव पीसीसीएफ बन जाएंगे। पता चला है, इसी डीपीसी में नरसिम्हा राव का नाम लिफाफा में बंद कर दिया जाएगा। ताकि, फिर से डीपीसी करने की जरूरत न पड़े। सिनहा अभी मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सीईओ हैं और संजय लघु वनोपज संघ के एडिशनल एमडी। प्रमोशन के बा समझा जाता है, संजय वहीं पर एमडी बन जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह और जेल और पंचायत मिलने से सुब्रत साहू प्रसन्न होंगे या…..?
2. सुनील कुजूर और केडीपी राव को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग कब तक मिलेगी?

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

आईएएस और अपराध

20 अक्टूबर 2019
सूबे के दो आईएएस अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती है। सरकार की नोटिस में इनके खिलाफ गंभीर टाईप के फीडबैक आएं हैं। घटना अपराधिक है। तब एक कलेक्टर थे और दूसरा एसडीएम। एसडीएम फिलहाल एक बड़े जिला पंचायत के सीईओ बन गए हैं। मौत की मिस्ट्री दबाने में पुलिस की भूमिका भी कटघरे में है। हालांकि, तब आईएएस लॉबी का भारी प्रेशर था। तभी ऐसे एसडीओपी और थानेदारों से केस का खात्मा कराया गया, जिन्हें एकाध महीने में रिटायर होना था। सरकार बदलने के बाद अब मिस्ट्री के शिकार घरवाले अब सक्रिय हुए हैं। घरवालों ने उस समय भी तीन पेज में सिलसिलेवार शिकायत की थी। लेकिन, उसे कूड़ेदान में डाल दिया गया। फिलहाल, उपर में शिकायत हुई है कि योजनाबद्ध तरीके से उस घटना को अंजाम दिया गया। केस डायरी अभी भी चुगली कर रही है कि जिला अस्पताल में डेथ घोषित होने के बाद मृतक को सिर्फ इसलिए प्रायवेट अस्पताल में ले जाया गया ताकि, लगे के बचाने का हरसंभव प्रयास किया गया। पुलिस ने फिर से फाईल ओपन कर दी तो निश्चित तौर पर दो आईएएस अफसरों की शामत आ जाएगी।
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अफसर, नेता और दिवाली

अफसरों और नेताओं को प्रभाव आंकने के लिए किसी पंडित से ग्रह-नक्षत्र और कुंडली दिखाने की जरूरत नहीं! दिवाली काफी होती है। दरअसल, दिवाली को अफसरों एवं नेताओं को हैसियत का अहसास कराने वाला पर्व भी माना जाता है। सिर्फ राजधानी में मोटे तौर पर दिवाली में करीब 15 करोड़ के गिफ्ट बंटते हैं। इसमें महंगे गिफ्ट बॉक्स से लेकर सोने के सिक्के और वजनी लिफाफे शामिल हैं। असल में, साल में एक मौका मिलता है….ठेकेदार हो या सप्लायर, व्यवसायिक रिश्तों को रिनीवल करने से कोई चूकना नहीं चाहता। इसमें चतुर टाईप के लोग अफसरों की घरवालियों के पसंद, नापासंद का पूरा ध्यान रखते हैं। कुछ को लिफाफा पसंद होता तो कुछ गोल्ड को देखकर खिल उठती हैं। दिवाली गिफ्ट के लिए कुछ मापदंड भी हैं। सिर्फ बड़ा पद नही चलेगा। पद के साथ लक्ष्मीवाला विभाग भी होना चाहिए। मंत्रालय के तीन-चार विभाग ऐसे हैं कि वहां लिफाफा और गोल्ड क्वाइन की पूछिए मत! कारोबारियों की लाइन लगी रहती है। सेकेंड में आते हैं निर्माण विभाग वाले। लूप लाईन वालों की दिवाली जरूर कुछ फीकी होती है। हालांकि, होशियार ठेकेदार, सप्लायर, बिल्डर लूप लाईन वालों पर भी इंवेस्ट करना बिजनेस ट्रिक मानते हैं। उनको अच्छे से पता होता है, डायरेक्ट आईएएस, आईपीएस है…कुछ दिन बाद फिर ठीक पोजिशन में आएगा ही। हां, जिन अधिकारियों का रिटायरमेंट नजदीक होता है, उनके यहां संख्या कम हो जाती है। कुल मिलाकर गिफ्टों की संख्या और लिफाफों की संख्या प्रभाव का पैमाना होता है।

चारों लोकल, चारों ब्राम्हण

यह एक संयोग है, और बेहद दिलचस्प। फॉरेस्ट में टॉप लेवल पर चार आईएफएस हैं। टॉप लेवल याने पीसीसीएफ, पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, लघुवनोपज विकास संघ और वन विकास निगम। राकेश चतुर्वेदी पीसीसीएफ हैं। अतुल शुक्ला पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, संजय शुक्ला लघुवनोपज संघ प्रमुख और राजेश गोवर्द्धन वन विकास निगम के एमडी। चारों माटी पुत्र हैं। कास्ट ब्राम्हण। सभी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के पास आउट। इसमें एक संयोग ये भी….वन विभाग के एडिशनल चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल भी रायपुर इंजीनियरिंग कालेज वाले हैं। है न इंटरेस्टिंग!

आईपीएस की लिस्ट

चित्रकोट उपचुनाव होने के बाद किसी भी दिन आईपीएस की लिस्ट निकल सकती है। हालांकि, लिस्ट पहले से तैयार हैं। चित्रकोट के लिए आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सरकार इसे स्थगित कर दिया था। लिस्ट में आधा दर्जन एसपी और आईजी शामिल बताए जाते हैं। एक-दो बड़े जिलों के नाम अभी और जुड़ने वाले हैं। चूकि बस्तर आईजी विवेकानंद के कारण लिस्ट अटक गई। ढाई साल से बस्तर में काम कर रहे विवेकानंद को सरकार वहां से निकालना चाहती है। उन्हें दुर्ग का आईजी बनाने के संकेत हैं। अगर विवेकानंद दुर्ग आईजी बनें तो एडीजी हिमांशु गुप्ता रायपुर लौटेंगे। फिर, दो-एक एडीजी की भी नई पोस्टिंग हो सकती है। अब देखना है, सरकार दिवाली बाद लिस्ट निकालती है या फिर पहले। पहले निकालने पर कुछ अफसरों की दिवाली जरूर खराब होगी।

हार्ड लक

डीआईजी एएम जुरी की किस्मत केसी अग्रवाल की तरह साथ नहीं दिया। जुरी को 2017 में भारत सरकार ने फोर्सली रिटायर किया था। वे कैट से अपने पक्ष में जब तक आर्डर लाए, तब रिटायरमेंट में दो दिन बचा था। उसमें भी एक दिन छुट्टी पड़ गई। आखिरी दिन जुरी पुलिस मुख्यालय में काफी प्रयास किए कि ज्वाईनिंग हो जाए। लेकिन, अफसरों ने उन्हें ज्वाईन कराने से हाथ खड़ा कर दिया। चूकि, जुरी को भारत सरकार ने रिटायर किया था, लिहाजा ज्वाईनिंग के लिए वहां से हरी झंडी जरूरी थी। भारत सरकार का प्रॉसेज काफी लंबा होता है। सो, जुरी की आखिरी दि नही सही वर्दी पहनने की आस अधूरी रह गई। हालांकि, उनके साथ डीआईजी केसी अग्रवाल भी फोर्सली रिटायर किए गए थे। मगर एक तो कैट से काफी पहले उन्हें राहत मिल गई। और, उनके रिटायरमेंट में समय भी था। लिहाजा, कैट के बाद जब उनकी ज्वाईनिंग नहीं हुई तो वे हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भारत सरकार ने क्लियरेंस दिया। तब जाकर वे न केवल ज्वाईन किए बल्कि आज सरगुजा के आईजी हैं।

अमिताभ को जल्दी नहीं

नए चीफ सिकरेट्री का रिटायरमेंट डेट जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, दावेदारों के रेस में और नाम जुड़ते जा रहे हैं। कुछ लोग अब एसीएस अमिताभ जैन को भी सीएस के रेस में बता रहे हैं। जबकि, अमिताभ के लिए जल्दी करने के कोई कारण नहीं है। उनके पास पर्याप्त समय है। पूरे छह साल। उन्हें तो ऐसे भी अवसर मिलेगा। और, लंबा मिलेगा। फिर, क्यों दौड़ में शामिल होकर वे अपनी एनर्जी नष्ट करें।

डिप्रेशन में आईएएस

एक युवा आईएएस बेहद डिप्रेशन में है। हालांकि, इसमें अफसर के कलेक्टरों की भूमिका भी कम नहीं रही है। प्रोबेशन या एसडीएम रहने के दौरान अधिकांश कलेक्टरों ने इस अफसर का यूज किया। किसी ने बेजा कब्जा तोड़वाने में तो किसी ने स्टाफ का चमकवाने में। आईएएस जिस जिले में एडिशनल कलेक्टर हैं, वहां के कलेक्टर का ये हाल है कि उन्होंने उन्हें कोई विभाग नहीं दिया है। वजह, काम नहीं करता। अब ये कोई जवाब हुआ। यूपीएससी सलेक्ट होकर आईएएस बना अफसर भला काम कैसे नहीं करेगा। कुछ तो उसकी परेशानी होगी। आईएएस बिरादरी में आजकल एक बुरी बात यह हो गई है कि करप्शन के इश्यू में एक-दूसरे को बचाने के लिए तो सब एक हो जाते हैं मगर व्यक्तिगत मामलों में कोई रुचि नहीं। एमके राउत जब सिकरेट्री पंचायत थे, तब उन्होंने अपने इस अफसर को पटरी पर लाने का काफी प्रयास किया था। अफसर की स्थिति सुधरने लगी थी, तब तक वे रिटायर हो गए। कायदे से यंग आईएएस अगर किसी दिक्कत में है तो उसे मोटिवेट करने का काम संबंधित जिले के कलेक्टर का होता है। पहले ऐसा होता भी था। लेकिन, अब आईएएस लोग ही माटी पुत्र अफसर का मजाक उड़ा रहे हैं। ये भी एक विडंबना है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या सीनियर आईएएस एन बैजेंद्र कुमार एनएमडीसी डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?
2. किस कलेक्टर पर छुट्टी की तलवार लटक रही है?

रविवार, 13 अक्तूबर 2019

माशूका का हाथ, हाथ में….

13 अक्टूबर 2019
भाजपा के भीतर आजकल पार्टी की स्थिति पर खूब तंज कसे जा रहे हैं। बीजेपी के लोग मान रहे हैं कि पार्टी की हालत दिलीप कुमार के मशहूर डॉयलाग….माशूका का हाथ, हाथ में आने पर हथियार छूट जाता है, सरीखी हो गई है। बात सही भी है। 15 साल सत्ता में रहने के बाद अब नेताओं में संघर्ष करने का माद्दा रहा नहीं। पार्टी सिरे से गायब है। दंतेवाड़ा में हारे ही चित्रकोट में भी पराजय तय दिख रहा है। इसी से समझा जा सकता है, बस्तर में चुनाव है और वहां से ताल्लुकात रखने वाले पार्टी के एक शीर्ष नेता सीएम हाउस का चक्कर लगा रहे हैं। जाहिर है, चित्रकोट इलेक्शन से पहिले ही भाजपा ने हथियार डाल दिया है। नगरीय निकाय में भी बीजेपी की स्थिति खास नहीं रहने वाली। वजह? कार्यकर्ताओं में उत्साह नदारत है। और, उनमें जोश जगाने के लिए पार्टी के पास कोई कार्यक्रम है और न ही कोई चेहरा।

तरकश का असर

15 सितंबर के तरकश स्तंभ में एक खबर थी, नौकरशाहों ने रायपुर, नया रायपुर के आवासों को बैंकों को ऑब्लाइज कर मोटी राशि में किराये में उठा दिया। हाउसिंग बोर्ड ने इस पर करीब दर्जन भर ब्यूरोक्रेट्स को नोटिस थमा दी है….हाउसिंग बोर्ड ने लिखा है कि आपने आवासीय उपयोग के लिए मकान खरीदा तो उसे कामर्सियल यूज के लिए कैसे दे दिया। अब अफसर परेशान हैं। और, हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर भीम सिंह भी। आखिर, लोग उन्हीं को फोन करेंगे न।

वीवीआईपी अफसर

छत्तीसगढ़ में 2012 बैच के आईएफएस अफसर हैं प्रणय मिश्रा। प्रणय रायबरेली से हैं। धरमजयगढ़ के डीएफओ रहते उन्होंने बलरामपुर का डीएफओ बनने के लिए ट्राय किया था। लेकिन, वन विभाग ने उन्हें हल्के में ले लिया। और, पिछले महीने बलरामपुर की बजाए उन्हें राजनांदगांव का डीएफओ बनाकर भेज दिया। मगर, प्रणय ठहरे रायबरेली वाले। रायबरेली का मतलब आप समझ सकते हैं। कहीं से फोन आया और अफसरों के हाथ-पांव फुल गए। मंत्रालय से तत्काल एक आर्डर निकाला गया। और, प्रणय 20 दिन से भी कम समय में राजनांदगांव से बलरामपुर के डीएफओ बन गए। बलरामपुपर याने यूपी का बॉर्डर। ठीक भी है। प्रणय का रायबरेली कनेक्शन बना रहेगा।

ये अपना छत्तीसगढ़िया…

अब छत्तीसढ़िया आईएफएस मनीष कश्यप की बात कर लें। मनीष बिलासपुर शहर में समाहित हो गए मंगला गांव के रहने वाले हैं। मंगला बोलें तो कुर्मी, काछी बहुल गांव। मनीष इन्हीं कुर्मी परिवार से आते हैं। खड़गपुर आईआईटी से सिविल में बीई किए हैं। कोरिया डीएफओ के रूप में वे जबर्दस्त काम कर रहे थे। लेकिन, पिछले महीने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने अचानक उन्हें उठाकर बिलासपुर के वन विस्तार मंडल में डंप कर दिया। एक ओर सरकार लोकल को अहमियत देने की बात कर रही, वहीं दूसरी ओर आईआईटीयन माटी पुत्र के साथ ऐसी नाइंसाफी?

भोपाल लॉबी 

राज्य बनने के 19 साल बाद मंत्रालय में भोपाल लॉबी का असर कुछ कम हुआ है। लेकिन, विधानसभा में अभी भी मजबूत पोजिशन में है। इसकी बानगी है एडिशनल सिकरेट्री शिवकुमार राय का एक्सटेंशन। शिवकुमार के रिटायरमेंट के पहिले से स्पीकर चरणदास महंत के सिकरेट्री दिनेश शर्मा का इस पद पर प्रमोशन तय माना जा रहा था। दिनेश स्पीकर के सिकरेट्री हैं। लेकिन, विधानसभा में उनका रैंक डिप्टी सिकरेट्री का है। शिवकुमार रिटायर होते तो दिनेश एडिशनल सिकरेट्री बन जाते। लेकिन, शिवकुमार को एक अक्टूबर से एक साल के लिए एक्सटेंशन मिल गया। और, दिनेश प्रमोशन की बाट जोहते रह गए। जांजगीर के रहने वाले दिनेश अब बिलासपुर के बाशिंदा हो गए हैं। याने विशुद्ध छत्तीसगढ़ियां। उपर से स्पीकर के सिकरेट्री। उसके बाद भी ये हालत!

एक बैच, एक विभाग

2006 बैच के भूवनेश यादव हेल्थ डिपार्टमेंट में पहिले से स्पेशल सिकरेट्री थे और अब उन्हीं के बैच के सीआर प्रसन्ना को स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बनाया गया है। याने एक बैच, एक विभाग। आमतौर पर ऐसा होता नहीं कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में एक बैच के आईएएस एक ही विभाग में रहे। इसमें मजेदार यह भी हुआ है कि प्रसन्ना मानव के स्वास्थ्य का जिम्मा संभालेंगे और पशुओं के भी। उनके पास डायरेक्टर वेटनरी का तो चार्ज है ही, स्वस्थ्य विभाग एडिशनल मिल गया है। मंत्रालय में इस पर चुटकी ली जा रही…वेटनरी की दवाई कहीं गफलत में स्वास्थ्य विभाग को सप्लाई हो गया तो क्या होगा।

सिंहदेव का निशाना

भोपाल के नेशनल शूटिंग एकेडमी में आज सूबे के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव का अचूक निशाना देखकर लोग हतप्रभ रह गए। उन्होंने बंदूक से पोजिशन ली और टारगेट पर फायर कर दिया। इस पर लोग मजे लेने से नहीं चूके…. सियासत में उनका निशाना कैसे चूक गया। जाहिर है, छत्तीसगढ़ का सीएम डिसाइड होने के दौरान एक नाम टीएस का भी था। लेकिन, सियासी निशानेबाजी में भूपेश बघेल बाजी मार ले गए।

कलेक्टर का खेद

कांकेर कलेक्टर केएल चौहान ने पीडब्लूडी के ईई एपीसोड में खेद व्यक्त कर बड़ा दिल दिखाया। वरना, मामला बिगड़ता जा रहा था। कलेक्टर ने सीएम के कार्यक्रम में तैयारियों में लापरवाही के लिए ईई को थाने में बिठा दिया। ऐसा काम सूबे में तेज-तर्रार कलेक्टरी के लिए याद किए जाने वाले कलेक्टरों ने भी कभी नहीं किया। चलिये, ये अच्छा है। कलेक्टर ने मामला खतम कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर आईएएस हेमंत पहारे को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग किसकी सिफारिश पर मिली?
2. 31 अक्टूबर को रिटायर होने जा रहे एसीएस केडीपी राव को क्या पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी?

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

ड्रॉप होंगे तीन मंत्री?

देवती कर्मा के विधायक निर्वाचित होने के बाद सियासी गलियारों में उन्हें मंत्री बनाने की अटकलें बड़़ी तेज हैं। इसके पीछे ठोस तर्क भी दिए जा रहे….बस्तर का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व बेहद कम है। सिर्फ एक। कवासी लकमा उद्योग और आबकारी विभाग संभाल रहे हैं। वहीं, सरगुजा से तीन मंत्री हैं। सबसे सीनियर टीएस सिंहदेव। फिर प्रेमसाय सिंह और नए मंत्री अमरजीत भगत। जाहिर है, सरकार मंत्रिमंडल में बस्तर का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहेगी। और, सियासी दृष्टि से देवती से अच्छा कोई नाम नहीं हो सकता। बस्तर शेर कहे जाने वाले दिवंगत नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं। ट्राईबल भी और महिला भी। कहने के लिए हो जाएगा, भूपेश सरकार ने राज्य बनने के बाद पहली बार दो महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह दी। लेकिन, इसके लिए सरकार को मंत्रिमंडल में एक सर्जरी करनी होगी। क्योंकि, कोटा फुल है। 12 ही मंत्री बन सकते हैं। एक सीट खाली थी, उस पर अमरजीत को मौका मिल गया। वैसे, नगरीय निकाय चुनाव के बाद माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में एक सर्जरी होगी। इसमें दो-से-तीन मंत्री ड्रॉप हो सकते हैं। तीनों के परफारमेंस पुअर है। एक विकेट सरगुजा से गिरेगा। दो और नामों की चर्चा है।
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चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर को छह महीने का एक्सटेंशन देने के लिए सरकार ने केंद्र को रिमाइंडर भेजा है। उसमें बताया गया है कि वर्तमान सीएस को एक्सटेंशन देना क्यों जरूरी है। लिहाजा, अब सीके खेतान और आरपी मंडल के साथ ही सुनील कुजूर का नाम भी सीएस की दौड़ में शामिल हो गया है। हालांकि, पहले यह माना जा रहा था कि भारत सरकार आसानी से एक्सटेंशन देती नहीं। लेकिन, सरकार के रिमाइंडर से यह जाहिर हुआ है कि कुजूर को लेकर सरकार गंभीर है। बहरहाल, रिमाइंडर पर भारत सरकार क्या रुख अपनाती है यह आखिरी समय में ही तय होगा। जानकारों का कहना है, ऐसे केस में भारत सरकार लास्ट वीक या लास्ट दिन भी कई बार फैसले करती है। याने 31 अक्टूबर को कुजूर रिटायर होने वाले हैं तो उससे एक-दो दिन पहले सरकार का फैसला आएगा। यदि एक्सटेंशन मिलेगा तो लेटर आ जाएगा। और, नहीं तो 30 अक्टूबर तक वेट कर राज्य सरकार नए सीएस का ऐलान कर देगी। उससे पहिले सूबे में अटकलों का दौर जारी है। खासकर, ब्यूरोक्रेसी में इसको लेकर खूब गुणा-भाग किए जा रहे हैं। हालांकि, कैलकुलेशन का कोई मतलब नहीं। चीफ सिकरेट्री और डीजीपी वही बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। वरना, कई आईएएस, आईपीएस बिना इस पद को इनज्वॉय किए बिदा नहीं हो गए होते। सुनील कुजूर भी भला कभी सोचे होंगे कि वे चीफ सिकरेट्री बन सकते हैं। और, एक्सटेंशन देने के लिए सरकार प्रयास करेगी। वे तो बेचारे अदद एक बढ़ियां विभाग के मोहताज थे। इसी तरह रिटायर डीजीपी एएन उपध्याय भी हैं। उनके जैसा दुनियादारी से दूर रहने वाले अफसर को सरकार डीजीपी बनाएगी, उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन, उपध्याय ने पोस्टिंग का रिकार्ड ही बना दिया। पूरे पौने पांच साल डीजीपी रहे।

मंत्री के लेटरहेड पर वसूली

स्कूल शिक्षा विभाग के ट्रांसफर में गोलमाल को लेकर सरकार ने मंत्री के ओएसडी और विशेष सहायक की छुट्टी कर दी। लेकिन, इसके बाद भी विभाग में नित नए कारनामे सामने आ रहे हैं। बताते हैं, स्कूल शिक्षा डायरेक्ट्रेट के स्थापना शाखा के एक अधिकारी ने डीईओ, बीईओ के ट्रांसफर के लिए दूसरे विभाग के एक मंत्री का लेटरहेड जुगाड़ लिया। और, जिसने पैसा दिया, उसके लिए उसी लेटरहेड पर मंत्री की तरफ से खुद ही ट्रांसफर की अनुशंसा कर आर्डर निकाल दिया। ताकि, कोई पूछ तो बता दें कि फलां मंत्रीजी ने रिकमांड किया था। स्कूल शिक्षा इससे बेखबर रहे। अफसर के खेल का भंडाफोड़ तब हुआ, जब लिस्ट में एक ही समुदाय के 70 परसेंट से अधिक लोग डीईओ, बीईओ बन गए। सरकार को इसकी जानकारी मिल गई है। जल्द ही स्कूल शिक्षा में तीसरा विकेट गिर जाए, तो आश्चर्य नहीं।

विवेकानंद का रिकार्ड

लांग कुमेर के बाद विवेकानंद बस्तर के पहिले आईजी होंगे, जिन्होंने वहां ढाई साल का लंबा कार्यकाल पूरा कर लिया है और अभी भी पिच पर जमे हुए हैं। वे ऐसे समय में बिलासपुर से बस्तर गए थे, जब बिलासपुर में आईजी बने उनका तीन महीना भी नहीं हुआ था। एसआरपी कल्लूरी को बस्तर से हटाने के बाद सरकार किसी उपयुक्त चेहरे की तलाश कर रही थी। उस समय तत्कालीन डीजीपी एएन उपध्याय ने सरकार को सुझाया कि विवेकानंद बस्तर के लिए बेहतर होंगे। इस बेहतर के फेर में विवेकानंद फंस गए। वरना, बस्तर गए अधिकांश आईजी साल, डेढ़ साल में जोर-जुगाड़ लगाकर रायपुर लौट आए। सिर्फ लांग कुमेर ही ऐसे आईपीएस थे, जो लंबे समय तक बस्तर में रहे। लेकिन, वे वैसा खुद चाह रहे थे। उन्हें हिन्दी का प्राब्लम था फिर वहां उन्होंने ऐसा कुछ जमा लिया था कि डीआईजी, आईजी और एडीजी बनने तक कुछ दिन वे बस्तर रेंज में रहे।

अमिताभ और सोनमणि


अमिताभ जैन जब दिल्ली डेपुटेशन से लौटे थे तो उस समय शेखर दत्त सूबे के गवर्नर थे। राज्य में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की। शेखर दत्त ने मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह से अमिताभ जैन को सिकरेट्री के रूप में मांगा था। और, यह दूसरी बार हुआ कि राज्यपाल अनसुईया उईके ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फोन कर सोनमणि बोरा सचिव के रूप में मांगा। और, मुख्यमंत्री ने इसमें तनिक भी देरी नहीं लगाई। सोनमणि का आदेश राजभवन के लिए जारी हो गया।

22 दिन का कार्यकाल

सोनमणि बोरा के लिए अखरने वाली बात यह रही कि सबसे कम दिन तक किसी विभाग में सिकरेट्री रहने का रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो गया। सिर्फ 22 दिन। इस 22 दिन में एक बहुत बड़ा काम उन्होंने यह किया कि हाईकोर्ट में रिट दायर कर सहायक प्राध्यापकों की भरती पर लगी रोक उन्होंने हटवा दी। संस्कृति सचिव के रूप में ट्राईबल डांस को लेकर भी वे बड़ा तेजी से काम कर रहे थे। ये दोनों उनके हाथ से निकल गए। हालांकि, पहले भी राजभवन के साथ ही हायर एजुकेशन या किसी और विभाग का चार्ज अफसरों के पास हमेशा रहा है। वैसे, छत्तीसगढ़ राजभवन में सुनील कुजूर, आईसीपी केसरी, शैलेष पाठक, अमिताभ जैन सिकरेट्री रहे हैं। आरआर के रूप में सोनमणि का नाम भी इसमें जुड़ गया।

दुआ कीजिए!

हायर एजुकेशन में चार महीने में चार सिकरेट्री चेंज हो गए। 31 मई को सुरेंद्र जायसवाल रिटायर हुए थे। रेणु पिल्ले को उनकी जगह सिकरेट्री बनाया गया था। 9 सितंबर को उन्हें हटाकर सोनमणि बोरा को हायर एजुकेशन का दायित्व सौंपा गया। एक अक्टूबर को वे भी बिदा हो गए। अलरमेल मंगई डी अब उच्च शिक्षा की नई सिकरेट्री बनी हैं। इस विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को कुछ अनुष्ठान वगैरह करना चाहिए। ताकि, मंगई कुछ दिन हायर एजुकेशन में बनी रहें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर के लोकल हनी के गिरफ्त में फंसे कितने आईएएस और आईएफएस के नाम इंटेलिजेंस ने सरकार को दिए हैं?
2. डिप्रेशन के शिकार किस आईएएस को उपचार कराने में मदद की बजाए आईएएस अफसर ही उनका मजाक उड़ा रहे हैं?