शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

Tarkash: 20 साल बाद...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 फरवरी 2023

20 साल बाद...

कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले 2003 में बीजेपी की राष्ट्रीय राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रायपुर में हुई थी। तब केंद्र में एनडीए की सरकार थी। अटलजी प्रधानमंत्री थे। लालकृष्ण आडवाणी गृह मंत्री। उस समय प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर देश भर से बीजेपी कार्यकारिणी के नेता रायपुर आए थे। चूकि वह सिर्फ कार्यकारिणी की बैठक थी, सो वीआईपी रोड के एक बड़े होटल में हो गई। उसके बाद 19 साल तक रायपुर में राष्ट्रीय स्तर का कोई सियासी आयोजन नहीं हुआ। और हुआ तो सीधे राष्ट्रीय अधिवेशन। राज्य बनने के 23 साल का यह पहला बड़ा पॉलीटिकल शो होगा। असम की पुलिस ने इस शो को और हिट कर दिया। विदित है, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को पुलिस ने फ्लाइट से उतार कर गिरफ्तार कर लिया। उस दोपहर से लेकर शाम को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने तक खेड़ा और रायपुर अधिवेशन सुर्खियों में रहा। अलबत्ता, घंटे भर तक रायपुर अधिवेशन टॉप पर ट्रेंड करता रहा...लोग रायपुर को सर्च करते रहे। हालांकि, 2003 की बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक को उस समय की कांग्रेस सरकार ने हिट कर दिया था। पुराने लोगों को याद होगा...कार्यसमिति की बैठक के दिन केंद्र सरकार की नाकामियों का विज्ञापन तमाम अखबारों के पहले पन्ने पर थे। और यह सियासी अदावत चर्चा का विषय बन गया था।

भूपेश का छक्का

ये अलग बात है कि सीएम भूपेश बघेल भौरा चलाते हैं...गेड़ी चढ़ते हैं मगर क्रिकेट उनका पंसदीदा खेल है। वे क्रिकेट खेलते भी रहे हैं। सियासत के क्रिकेट में भी उनका कोई जवाब नहीं है। आखिरी बॉल तक संघर्ष करने वाला कैप्टन। साल भर पहिले तक उनकी सियासी स्थिति क्या रही और अभी देखिए...। दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से मिलने के लिए नेताओं को टाईम मिलना मुश्किल भरा काम होता है, पार्टी की ऐसी हस्तियां तीन दिन से रायपुर में हैं और सीएम भूपेश उनकी मेजबानी कर रहे हैं। यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कर सीएम भूपेश ने पार्टी में अपनी लकीर काफी लंबी कर ली है।

राजेश मूणत कौन...

राष्ट्रीय आयोजन की भव्यता को देखकर रायपुर में लोग पूछ रहे हैं कि कांग्रेस का राजेश मूणत कौन हैं? दरअसल, रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान मंत्री राजेश मूणत को उनका हनुमान कहा जाता था। वे लंबे समय तक पीडब्लूडी और परिवहन मंत्री रहे...जाहिर तौर पर तमाम बड़े आयोजनों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती थी। रमन सरकार के 15 साल में जितने बड़े आयोजन हुए, मूणत ही खड़े होकर मंच से लेकर पंडाल और खाने की व्यवस्था करते दिखे। लेकिन, कांग्रेस का मूणत रमन सिंह के मूणत से आगे निकल गया। नवा रायपुर के अधिवेशन की भव्यता देखकर हर आदमी दंग है...लजीज भोजन। वो भी ऐसा नहीं कि नाश्ता, लंच और डिनर का कूपन देकर पल्ला झाड़ लिए। भोजन की तारीफ भी खूब हो रही है। कोई लिमिट भी नहीं...चाय-बिस्किट, भजिया, पकौड़ा तो किसी भी टाईम जाइये...एवेलेवल मिलेगा। बहरहाल, दूसरों के घरों में क्या हो रहा है, यह जानने की स्वाभाविक बेचैनी होती है। सो, लोग यह नहीं समझ पा रहे कि इतना भव्य आयोजन कराया किसने। राजेश मूणत की खाना बनवाते हुए तस्वीरें मीडिया में आ जाती थी। इस बार ऐसा कुछ हुआ नहीं। चुपचाप सारा काम होता रहा। सीएम भूपेश बघेल मीडिया से बड़ा फेंडली हैं। कोई बड़ा आयोजन होता है तो मीडिया को बुलाकर खुद ब्रीफ करते हैं। मगर इस बार ऐसा कुछ भी नहीं। कांग्रेस में इतना बढ़िया व्यवस्था करने वाला राजेश मूणत कौन है, आपको पता चले तो हमें भी बताइयेगा।

मंत्रिमंडल में सर्जरी!

छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां सवा चार साल में एक बार भी मंत्रिमंडल में चेंज नहीं हुआ। एकाधिक बार सीएम भूपेश बघेल संकेत दिए थे कि हाईकमान से चर्चा कर मंत्रिमंडल में सर्जरी की जाएगी। पर सियासी परिस्थितियां ऐसी नहीं रही की मंत्रिमंडल में फेरबदल को अंजाम दिया जा सके। चुनावी साल में हाईकमान भी चाहेगा कि कुछ नए चेहरों के साथ भूपेश चुनावी मैदान में उतरें। ऐसे में, अधिवेशन के बाद मंत्रिमंडल में कुछ चेहरे बदले तो सियासी पंडितों को भी कोई हैरानी नहीं होगी।

नॉन आईएएस कलेक्टर?

पांच साल बाद हुए कैडर रिव्यू में भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ में सिर्फ नौ आईएएस की संख्या बढ़ाई है। जबकि, 2016 में हुए रिव्यू में 15 पद बढ़ाए गए थे। उस समय कैडर 178 से बढ़कर 193 हुआ था और अभी 193 से 202 किया गया है। बताते हैं, इस बार भी कुल कैडर का आठ फीसदी याने करीब 15 पद बढ़ाने की मांग की गई थी। मगर डीओपीटी ने पांच प्रतिशत के हिसाब याने नौ से अधिक पद देने से टस-से-मस नहीं हुआ। पद कम बढ़ने का नतीजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़कर 33 हो गई है मगर कलेक्टरों का कैडर पोस्ट 29 ही सेंक्शन किया गया है। याने चार कलेक्टर नॉन कैडर होंगे। अब ये चार कलेक्टर कौन होंगे, यह सरकार तय करेगी। मगर इसके साथ यह भी सही है कि सरकार चाहे तो इन चार जिलों में नॉन आईएएस को भी कलेक्टर बना सकती है। उसी तरह जैस नॉन आईपीएस को जिले का कप्तान बनाया जाता है। हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में नॉन आईएएस को कलेक्टर बनाना शुरू हो गया है। मगर अभी हिन्दी राज्यों में ऐसा नहीं हो रहा। मगर कैडर पोस्ट स्वीकृत न होने से सरकार अब फ्री है।

आईपीएस का क्या?

भले ही संख्या कम बढ़ी मगर आईएएस का कैडर रिव्यू हो गया। मगर आईपीएस का अभी अता-पता नहीं है। आलम यह है कि आईपीएस कैडर रिव्यू का प्रस्ताव ही अभी भारत सरकार को नहीं भेजा गया है। कई महीने से फाइल पुलिस मुख्यालय में लंबित है। आईपीएस लॉबी के प्रेशर में सरकार ने अबकी आईएएस से पहले उनका प्रमोशन कर दिया। मगर कैडर रिव्यू में आईपीएस पीछे हो गए।

आरआर-प्रमोटी भाई-भाई

कलेक्टर बनने के मामले में प्रमोटी आईएएस अभी तक उपेक्षित रहते थे। आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस से चार-पांच बैच बाद ही प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनने का नम्बर लगता था। मगर यह पहली बार हुआ है कि आरआर और प्रमोटी दोनों बराबर हो गए हैं। आरआर में 2016 बैच कलेक्टर के लिए कंप्लीट हुआ है। याने इस बैच के सभी अधिकारियों को जिला मिल गया है। वहीं, प्रमोटी में भी 2016 बैच प्रारंभ हो गया है। पहले फरिया आलम सारंगढ़ की कलेक्टर बनी और अभी प्रियंका मोहबिया को सरकार ने जीपीएम का कलेक्टर बनाया है। जो काम बड़े और धाकड़ प्रमोटी आईएएस नहीं करा पाए, वो नारी शक्ति ने कर दिखाया। प्रमोटी आईएएस को इस पर फख्र कर सकते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अधिवेशन से पहले ईडी का छापा और पवन खेड़ा को गिरफ्तार करने से किसको फायदा हुआ और किसको नुकसान?

2. प्रियंका गांधी का रायपुर में अभूतपूर्व स्वागत के क्या कोई मायने हैं?


शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

5 जिलों में डीआईजी

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 फरवरी 2023

5 जिलों में डीआईजी

यह पहली बार होगा कि सूबे के पांच जिलों में डीआईजी कप्तानी कर रहे हैं। इससे पहले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में ही डीआईजी को जिले की कमान सौंपी जाती थी। मगर एसपी लेवल पर अधिकारियों की कमी के चलते अब डीआईजी वाले जिलों की संख्या बढ़ गई हैं। इस समय रायपुर, बलौदाबाजार, गरियाबंद, जशुपर और बस्तर में डीआईजी बतौर एसएसपी पोस्टेड हैं। इनमें दीपक झा और अमित कांबले भी शामिल हैं। दीपक झा रायगढ़, बस्तर और बिलासपुर जैसे बड़े जिले के एसपी रहने के बाद बलौदा बाजार जैसे छोटे जिले में तैनात हैं। इसी तरह अमित कांबले 2017 में गरियाबंद जिले के एसपी थे। वहीं से वे सेंट्रल डेपुटेशन में गए। वहां से लौटने पर पिछले साल उन्हें अंबिकापुर का एसपी बनाया गया। और अब डीआईजी बनने के बाद फिर से गरियाबंद एसपी। याने पांच बरस पहले जहां से उन्होंने एसपी की पारी शुरू की, फिर वहीं पहुंच गए। इसमें खबर यह है कि चूकि डीआईजी वाले जिलों की संख्या पांच हो चुकी है, इसलिए समझा जाता है कि बजट सत्र के बाद एसपी की एक और लिस्ट निकलेगी।

पोस्ट रिटारमेंट पोस्टिंग?

गर किसी आईएएस को सरकार में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी जाती है, तो आमतौर पर उसकी मूल पोस्टिंग इलेक्ट्रॉनिक्स या संसदीय कार्य सचिव की होती है। 31 जनवरी को कई विभागों के एमडी और सिकरेट्री से रिटायर किए निरंजन दास भी सिकरेट्री इलेक्ट्रॉनिक्स बनाए गए। फिर उन्हें कई जिम्मेदारियां सौंपी गई। जाहिर तौर पर लोगों के मन में स्वाभाविक जिज्ञासा होगी कि रिटायर अफसरों को इलेक्ट्रॉनिक्स और संसदीय कार्य सिकरेट्री ही क्यों। दरअसल, रमन सरकार में पहली बार संविदा के लिए तीन पद क्रियेट किए गए थे। तीनों गैर कैडर पोस्ट। इलेक्ट्रॉनिक्स, संसदीय कार्य सचिव और सिकरेट्री टू सीएम। पिछली सरकार में अमन सिंह की मूल पोस्टिंग इलेक्ट्रानिक सिकरेट्री थी। और एमके त्यागी का संसदीय कार्य सचिव। इस सरकार में डॉ. आलोक शुक्ला की मूल पोस्टिंग संसदीय  कार्य सचिव है। डीडी सिंह का सिकरेट्री टू सीएम। फंडा यह है कि सिकरेट्री के सारे पद आईएएस के कैडर पोस्ट हैं। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स, संसदीय कार्य सचिव और सिकरेट्री टू सीएम पद को छोड़कर। रिटायरमेंट के बाद अगर किसी आईएएस को कैडर पोस्ट पर बिठाया जाएगा तो डीओपीटी से ऑब्जेक्शन आ जाएगा। इसलिए, इलेक्ट्रॉनिक्स या संसदीय सचिव की मूल पोस्टिंग देकर दूसरे विभागों का अतिरिक्त प्रभार देने का आइडिया निकाला गया। बता दें, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने संविदा का नियम बनाया था। उससे पहले अमन सिंह को वीआरएस लेने के बाद सचिव बनाने पर हाई कोर्ट में चुनाती दी गई थी। चूकि सरकार ने संविदा नियम बना लिया। लिहाजा, याचिका खारिज हो गई।

25 सीट!

चुनावी साल में कांग्रेस को लेकर आम आदमी के बीच माउथ पब्लिसिटी शुरू हुई है, वह भाजपा के लिए ठीक नहीं है। आपको याद होगा...2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह की जन चर्चाएं हुई थी। ऐसा नहीं कि रमन सरकार ने काम नहीं किया...मगर लोगों ने बोलना शुरू कर दिया था...अबकी बार कांग्रेस। वजह? क्या बीजेपी ने काम नहीं किया? जवाब....काम किया है मगर अब बहुत हो गया, इस बार कांग्रेस को। वैसे भी आजकल विकास को चुनाव जीतने का पैमाना नहीं माना जाता। अजीत जोगी सरकार में सबसे अधिक कहीं विकास के काम हुए थे तो उनके गृह नगर बिलासपुर में। बावजूद इसके 2003 के विस चुनाव में कांग्रेस बिलासपुर नहीं निकाल सकी। राजेश मूणत ने रायपुर पश्चिम में कम काम नही कराए, फिर भी विकास उपध्याय के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। अजय चंद्राकर अपवाद हो सकते हैं...जिन्होंने कुरूद में इतने काम कराए कि कांग्रेस की आंधी में भी अपनी सीट बरकरार रखने में कामयाब रहे। बहरहाल, 15 साल तक सूबे में राज करने वाली बीजेपी की स्थिति यह है कि करना क्या है, किसी नेता को नहीं पता। न कोई प्रदर्शन, और न ही जनता का ध्यान आकृष्ट करने वाला आंदोलन। पूर्व मंत्री कोई बड़ा स्टैंड लेने की स्थिति में नही है...क्योंकि 15 साल में उनके खिलाफ कुछ-न-कुछ निकल ही जाएगा। बाकी सेकेंड लाइन कोई तैयार नहीं। जो तैयार हो रहे थे, उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया गया। अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो थोड़े समय के लिए लगा कुछ बदलेगा। मगर पार्टी उसे कंटीन्यू नहीं रख सकी। पार्टी को लीड कौन कर रहा, कार्यकर्ताओं को ये समझ में नहीं आ रहा है। अरुण साव पढ़े-लिखे हैं...अच्छे वक्ता भी...मगर बड़े मामलों में बयान देने से बचते हैं। नेता प्रतिपक्ष पारिवारिक केस में उलझ गए हैं। सो, फिलवक्त उनके होने-न-होने का कोई मतलब नहीं। सियासी प्रेक्षक इस वक्त बीजेपी को 90 में से 25 सीट से अधिक देने तैयार नहीं हैं। सरकार बनाने के लिए जादुई संख्या 46 चाहिए। और अभी जो पार्टी की स्थिति है, उसमें यह दूर की कौड़ी प्रतीत हो रहा है।

शेखर दत्त का रिकार्ड

बिस्वा भूशण हरिचंदन छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल बनाए गए हैं। पड़ोसी राज्य ओड़िसा के रहने वाले हरिचंदन फिलवक्त आंध्रप्रदेश के राज्यपाल हैं। बलरामदासजी टंडन के बाद हरिचंदन 80 प्लस वाले छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यपाल होंगे। छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय थे। उन्हें एनडीए सरकार ने राज्यपाल बनाया था। मगर अजीत जोगी सरकार से उनके रिश्ते गर्मजोशी वाले रहे। दोनों एक-दूसरे की तारीफ करते नहीं थकते थे। सहाय को छत्तीसगढ़ इतना भा गया था कि त्रिपुरा ट्रांसफर होने पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच पर ही भावुक हो गए थे। सहाय के बाद लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ दूसरे राज्यपाल बनें। तब तक सूबे में बीजेपी की सरकार बन गई थी। और केंद्र में यूपीए की। बावजूद इसके सेठ करीब साढ़े तीन साल गवर्नर रहे। सेठ के बाद ईएसएल नरसिम्हन तीसरे राज्यपाल बनें। नरसिम्हन रिटायर आईपीएस अधिकारी थे। छत्तीसगढ़ में वे तीन साल रहे और प्रमोशन पर आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनकर गए। उनके बाद शेखर दत्त आए। दत्त चूकि रायपुर के कमिश्नर रह चुके थे, इसलिए छत्तीसगढ़ उनके लिए नया नहीं था। केंद्र में यूपीए की सरकार होने के बाद भी उनके सीएम रमन सिंह से मधुर संबंध रहे। शेखर दत्त के बाद बलरामदासजी टंडन राज्यपाल बने। उनका राज्यपाल रहते निधन हो गया। टंडन के बाद मध्यप्रदेश के राज्यपाल आनंदी बेन को छत्तीसगढ़ का अतिरिक्त प्रभार मिला। अतिरिक्त प्रभार में भी वे करीब-करीब साल भर रहीं। आनंदी बेन के बाद जुलाई 2019 में अनसुईया उइके राज्यपाल बनीं। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक समय तक गवर्नर रहने का रिकार्ड शेखत दत्त के नाम है। वे साढ़े चार साल राजभवन में रहे। 23 जनवरी 2010 से एक जुलाई 2014 तक। केएम सेठ और अनसुईया उइके का कार्यकाल करीब-करीब बराबर रहा। लगभग साढ़े तीन साल।

दूसरे राज्यपाल

सत्यपाल मलिक का नाम सबसे अधिक चार राज्यों के राज्यपाल रहने का रिकार्ड है। वे गोवा, जम्मू कश्मीर, बिहार और मेघालय के राज्यपाल रह चुके हैं। उनके बाद दूसरे नंबर पर रमेश बैस हैं। बैस त्रिपुरा, झारखंड के बाद अब महाराष्ट्र जैसे बड़े और विकसित राज्य के राज्यपाल बनाए गए हैं। दो राज्यों के राज्यपाल की फेहरिस्त में कई नाम हैं। मगर तीन बार के राज्यपाल में बैस के अलावा नेट पर कोई नाम नहीं। बहरहाल, बैसजी भले ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए मगर महाराष्ट्र जैसे स्टेट का राज्यपाल बनकर अपना ग्राफ काफी ऊपर कर लिया है। पहले विधायक, लगातार सात बार के सांसद। और अब तीन राज्यों के राज्यपाल। महाराष्ट्र का राज्यपाल का मतलब है उन्होंने शीर्ष नेतृत्व का भरोसा जीता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मुख्यमंत्री जिस नेता की शिकायत एआईसीसी में किए हों, उसे पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन की तीन कमेटियों में शामिल करने का क्या मतलब है?

2. ब्यूरोक्रेसी में इस बात की दबी जुबां से चर्चा क्यों है कि फरवरी लास्ट में कुछ बड़ा होगा?



शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

तरकश: गुमनाम हीरो, मदद के बढ़ते हाथ...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 12 फरवरी 2023

गुमनाम हीरो, मदद के बढ़ते हाथ...

चार बार के ओलंपियन और वर्ल्ड कप हॉकी के हीरो विसेंट लकड़ा रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ ब्लॉक के रिमोट गांव सिथारा में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं। क्रिकेट खिलाड़ी होते तो आज किसी मेट्रो सिटी में लग्जरी जीवन यापन कर रहे होते। मगर दुर्भाग्य देश का और हॉकी का...सिस्टम ने देश और छत्तीसगढ़ की शान बढ़ाने वाले इस हीरो का हाल-चाल जानना जरूरी नहीं समझा और न ही रायगढ़ का कोई जिम्मेदार अधिकारी कभी उनकी सुध लेने गया। देश के गुमनाम हीरोज के नाम से यूट्यूब पर विसेंट लकड़ा का भी एक वीडियो है। उसे देखकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील और एनजीओ वाले विसेंट की मदद करना चाहते हैं। इसके लिए विसेंट का कंटेक्ट नंबर वे तलाश रहे।

कलेक्टर बड़ा या कलेक्टर का रीडर

कानून में यह क्लियर है कि आदिवासी की कोई भी जमीन कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं बेची जा सकती। मगर छत्तीसगढ़ के कुछ कलेक्टर गजबे कर रहे हैं। कई जिलों में आदिवासी लैंड अगर डायवर्टेड है तो कलेक्टर लिख कर दे दे रहे हैं...इसमें कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं है। और कई जिले ऐसे हैं, जहां डायवर्टेड लैंड होने के बाद भी कलेक्टर की अनुमति पाने चप्पल घिस जाते हैं। जाहिर है, अनुमति का प्रोसेस, महीनो की पेशी, बयान, साक्ष्य के बाद पूरा होता है। असल में, कलेक्टरों को आजकल नियम-कायदों की स्टडी होती नहीं। उनका रीडर जो बताता है, उसे वे ओके कर देते हैं। वही कलेक्टर एक जिले में पोस्टिंग के दौरान डायवर्टेड लैंड के मामले में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं लिखकर देते हैं और दूसरे जिले में जाते हैं तो अनुमति अनिवार्य बताते हैं। दरअसल, 2008 में जब राधाकृष्णन राजस्व बोर्ड के चेयरमैन थे, तब भूमाफियाओं ने उनसे आर्डर करा लिया था कि डायवर्टेड लैंड में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं। हालांकि, डीएस मिश्रा ने चेयरमैन बनते ही उसे समाप्त का दिया था। मगर कलेक्टरों के कई खटराल रीडर राधाकृष्णन के उसी फैसले के आधार पर भूमाफियाओं को उपकृत कर रहे हैं। बहती गंगा में हाथ धोते हुए कई रजिस्ट्री अफसर भी कलेक्टर के ऐसे टीप का सहारा लेकर आदिवासी डाइवर्टेड भूमि का बेरोकटोक रजिस्ट्री कर दे रहे। बता दें, छत्तीसगढ़ में एक महिला कलेक्टर को इसी तरह के केस में डीई का आदेष हो चुका था। मगर आईएएस लॉबी के प्रेशर में मामला रफा-दफा कर दिया गया।

छोटा जिला, छोटे कलेक्टर

छत्तीसगढ़ में कभी सात जिले होते थे। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बस्तर, बिलासपुर, रायगढ़ और सरगुजा। अब संख्या बढ़कर 33 पहुंच चुकी हैं। याने एक जिले में पांच-पांच जिला। आलम यह कि जहां कभी एसडीएम बैठते थे, वहां अब कलेक्टर बैठ रहे हैं। जिले छोटे करने का मकसद ये था कि प्रशासन अंतिम व्यक्ति तक आसानी से पहुंच सकें। लेकिन, कलेक्टरों ने खुद को इस कदर सिकोड़ लिया है कि अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की बात तो अलग कलेक्टरों को ढूंढो तो जाने वाला हाल हो गया है। कलेक्टरों के मुख्यतः दो ही काम होते हैं...सरकार के खजाने में अधिक-से-अधिक रेवेन्यू आए और राजस्व मामलों का निबटारा। हर जिले में यही सबसे बड़ी समस्या है। पिछले कलेक्टर कांफ्रेंस में रेवेन्यू नहीं बढ़ाने को लेकर उन्हें आड़े हाथ लिया गया था। और राजस्व मामलों का भगवान मालिक हैं। सालों बाद रायपुर तहसील में राजस्व मामलों के लिए कैंप लगाया गया। वरना, जिलों में पटवारी और भूमाफिया मिलकर राजस्व विभाग चला रहे हैं। कलेक्टरों को डीएमएफ से फुरसत नहीं। आधे-एक घंटे के लिए आफिस पहुंच गए तो बड़ी बात। नहीं तो, बंगले से ही डीएमएफ का खेल। पहले के कलेक्टर आठ-आठ, दस-दस ब्लाकों को दौरे में कवर कर लेते थे। अबके कलेक्टर दो ब्लॉक को ठीक से देख नहीं पा रहे, तो इसका मतलब आप समझ सकते हैं। रायपुर में कलेक्टर एमके राउत और एडिशनल कलेक्टर अनिल टुटेजा हर महीने दो-तीन चौपाल लगा आते थे। मगर अभी के कलेक्टर आफिस में मिल गए तो अपनी किस्मत समझिए। छोटे जिले होने से कलेक्टरों के लिए बड़ा अवसर था...नाम कमा सकते थे। ईश्वर ने उन्हें देश की सर्वोच्च सर्विस के लिए चुना है, वे इसे जस्टिफाई कर सकते थे। मगर मध्यप्रदेश वालों ने गड़बड़ नस्ल के आईएएस अफसरों को छत्तीसगढ़ भेजकर ऐसा नस्ल खराब किया कि अब बेहतर की उम्मीद मुश्किल है। यही हाल पुलिस का भी है। जहां कभी एडिशनल एसपी नहीं होते थे, वहां डायरेक्ट आईपीएस एसपी बने बैठे हैं। मगर जरा पूछिए उनसे आउटकम क्या है।

एसीबी की पोस्टिंग?

लगातार पांच जिलों की क़प्तानी कर राजधानी लौटी डीआईजी पारुल माथुर को सरकार ने एसीबी में पोस्ट किया था। और जाहिर था कि अगले महीने मार्च में डीजी डीएम अवस्थी के रिटायर होने के बाद पारुल एसीबी की कमान संभालती। मगर हफ्ते भर में वे सरगुजा चली गईं। उनकी जगह पर एसपी सीएम सिक्यूरिटी प्रखर पाण्डेय को एसीबी भेजा गया है। डीएम के बाद प्रखर को एसीबी संभालना है, लिहाजा उन्हें किसी अच्छे पंडित को बुलाकर एसीबी में पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, एसीबी में जो भी जा रहा, उसका बहुत अच्छा नहीं हो रहा। या तो वो हिट विकेट हो जा रहा या फिर उसका कैरियर खतम हो जा रहा है। संजय पिल्ले तक सब ठीक था। मगर उसके बाद मुकेश गुप्ता, एसआरपी कल्लूरी, जीपी सिंह, बीके सिंह, पारुल...लिस्ट में कई नाम हैं। बीके सिंह डीजी लेवल के सीनियर आईपीएस थे, अफसरों के साथ उनकी लड़ाई छिड़ गई। जाहिर है, इनमें कई अच्छे अफसर थे, मगर ग्रह-नक्षत्र का खेल देखिए...कई अफसर बियाबान में हैं।

मरकाम को झटका?

पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए एआईसीसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम और पीसीसी के संगठन महामंत्री अमरजीत चावला को नोटिस थमा दी है। चूकि यह नोटिस सीएम भूपेश बघेल की शिकायत पर जारी हुई है, सो इस केस में कार्रवाई भी तय समझी जा रही है। नोटिस से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम को झटका जरूर लगा होगा। खासकर अमरजीत को लेकर। अमरजीत उनके काफी करीबी माने जाते हैं। कुर्मी समाज के खिलाफ वायरल आडियो के बाद अमरजीत को महासमुंद जिला अध्यक्ष से इस्तीफा देना पड़ा था। मरकाम ने उन्हें प्रदेश में दूसरे नम्बर की बड़ी जिम्मेदारी देते हुए संगठन महामंत्री बना दिया था। अब लाचारी यह है कि मुख्यमंत्री की शिकायत पर नोटिस हुई है, इसलिए मरकाम कुछ कर भी नहीं सकते। एक तो हाईकमान सुनेगा नहीं, दूसरा, सूबे के सीएम से पंगा लेने की एक लिमिट होती है। पता चला है, चने के पेड़ पर चढ़ाने वाले कुछ लोगों ने पीसीसी चीफ के खेमे को दिल्ली जाकर बात करने की सलाह दी। पर ऐसा कुछ होगा नहीं। रास्ता निकाले जाने की बात जरूर आ रही है। हो सकता है, संगठन महामंत्री का प्रभार रवि घोष को फिर से मिल जाए।

सियासी भविष्य

अमित शाह के रायपुर दौरे में विधायक धर्मजीत सिंह का बीजेपी प्रवेश होते-होते रह गया था। कहा गया कि टिकिट देने पर कोई बात बनी नहीं। मगर ऐसी सियासी बातों की कोई पुष्टि करता नहीं...पुष्टि हुई भी नहीं। बहरहाल, सवाल तो है कि अब जब विधानसभा चुनाव में छह महीने बच गया है, धर्मजीत का अगला सियासी कदम क्या होगा। जोगी कांग्रेस उन्हें निष्कासित कर चुकी है। कांग्रेस में वर्तमान परिस्थितियों में उनकी इंट्री होगी नहीं। बच गई बीजेपी। बीजेपी नेताओं के वे लगातार संपर्क में हैं। लोकल नेताओं से उनके रिश्ते भी बढ़िया हैं। लेकिन, टिकिट देने का मसला दिल्ली से तय होगा। हालांकि, ऐसा नहीं है कि पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं को बीजेपी टिकिट नहीं दी हो। यूपी में तो कई उदाहरण हैं। बताते हैं, धर्मजीत बीजेपी से तखतपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनके करीबी बताते हैं, तखतपुर से अगर बीजेपी की टिकिट नहीं मिली तो लोरमी से फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हाथ आजमाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सारंगढ़ के कलेक्टर राहुल वेंकट के बाद एसपी राजेश कुकरेजा का भी विकेट गिर गया। क्या इससे उस इलाके के एक संसदीय सचिव का प्रभाव और बढ़ गया?

2. क्या एक मंत्री का भतीजा बीजेपी से विधानसभा चुनाव में उतरेगा?


रविवार, 5 फ़रवरी 2023

रायपुर में एयरोसिटी

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 फरवरी 2023

रायपुर में एयरोसिटी

दिल्ली की तरह अपने रायपुर में भी एयरपोर्ट के पास एयरोसिटी बनेगी। पता चला है, जल्द ही इसका प्रॉसेज प्रारंभ होने वाला है। एयरपोर्ट के आसपास की जमीनों का लैंड यूज बदलने की कवायद शुरू हो गई है। सुब्रत साहू की जगह इसीलिए जनकराम पाठक को आवास और पर्यावरण विभाग का दायित्व सौंपा गया। सुब्रत के पास वर्कलोड काफी था। जनक के साथ जीतेंद्र शुक्ला ज्वाइंट सिकरेट्री होंगे। जीतेंद्र पिछले हफ्ते ही बेमेतरा कलेक्टर से रायपुर वापिस लौटे हैं। वे लंबे समय तक नगर निगमों के कमिश्नर रहे हैं...फिर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर भी। सो, जनक और जीतेंद्र की जोड़ी एयरोसिटी पर शीघ्र ही काम शुरू कर देगी। कोशिश है...एयरोसिटी सुविधाओं के मामले में दिल्ली से पीछे न हो। वहां होटल, क्लब के साथ ही लग्जरी बंगले बनेंगे। एयरोसिटी बनने से ओल्ड और नवा रायपुर के बीच कनेक्शन बढ़ेगा...नवा रायपुर भी डेवलप होगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 26 जनवरी के भाशण में भी एयरोसिटी बनाने का जिक्र किया था।

ऐसा भी खेला

रजिस्ट्री विभाग के जरिये राजधानी में बड़ा खेला चल रहा है। दरअसल, 25 डिसमिल से कम कृषि जमीन को प्लॉट माना जाता है और उसका मूल्यांकन प्लॉट के गाइडलाइन रेट से किया जाता है। प्लॉट के रेट और कृषि भूमि के रेट में पांच से दस गुना का फर्क रहता है। लेकिन शहरो में खेती-किसानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ये नियम निकाला कि अगर क्रेता अपना खेती का रकबा बढ़ाने के लिए अपने कृषि भूमि के सीमा से लगे भूमि को खरीदे, तब 25 डिसमिल से कम बिना लगी भूमि को भी कृषि भूमि मानी जाएगी। लेकिन, नौकरशाहों से लेकर भूमाफिया, इसका खूब फायदा उठा रहे हैं। आलम यह है कि रजिस्ट्री अधिकारियों के जरिये 25 डिसमिल से कम किसी भी जमीन को कृषि भूमि के रेट में धड़ल्ले से रजिस्ट्री किया जा रहा है। कुछ आईएएस अधिकारियों के यहां मारे गए छापे में इसका खुलासा हुआ। अलबत्ता, अधिकारियों, भूमाफियाओं और रजिस्ट्री अधिकारियों के इस मिली-जुली कुश्ती से सरकार को ना केवल स्टांप और रजिस्ट्री खर्चे का नुकसान हो रहा है, बल्कि इनकम टैक्स, कैपिटल गेन टैक्स, कच्चे के रकम में अदायगी के फलस्वरूप मनी लांड्रिंग को बढ़ावा मिल रहा है।

दाऊ भी नेता प्रतिपक्ष

पिछले तरकश में छत्तीसगढ़ नेता प्रतिपक्ष की अभिशप्त कुर्सी का जिक्र किया गया था...उसका सार यह था कि सूबे में जो भी नेता प्रतिपक्ष बनता है...या तो उसकी राजनीति खत्म हो जाती है या सिमट जाती है। तरकश की खबर पढ़कर सीएम भूपेश बघेल के एक पुराने करीबी व्यक्ति का फोन आया। बोले, क्या बताए भैया...अपने दाऊजी भी नेता प्रतिपक्ष बनना चाह रहे थे। 2013 में जब चुनाव जीते तो अगले दिन राहुल गांधी का दाऊ के पास फोन आया। राहुल बोले, सीपी मैम याने कांग्रेस प्रेसिडेंट मैम चाहती हैं कि आप पीसीसी चीफ बनें। मगर दाऊ की इच्छा थी नेता प्रतिपक्ष बनने की। वे हौले से बोले...राहुलजी, अधिकांश बड़े नेता चुनाव हार गए हैं, मेरी इच्छा थी कि मैं नेता प्रतिपक्ष बनूं, ताकि सदन में मजबूती से सरकार को घेरी जा सकें...सीपी मैम से एक बार बात करके देखिएगा। राहुल गांधी बोले, ठीक है। इसके बाद दाउजी निकल गए दौरे में। शाम तक जब दिल्ली से कोई फोन नहीं आया तो दाऊ के मन में शंकाएं उठने लगीं...कहीं मुंह खोल कर गलती तो नहीं हो गई...पता चला नेता प्रतिपक्ष के चक्कर में पीसीसी चीफ का पद भी हाथ से निकल गया। देर रात जब पाटन के एक कार्यकर्ता के यहां दाऊ चाय पी रहे थे तो उसी नंबर से फिर फोन आया। राहुल बोले, सीपी मैम चाहती हैं, आप पीसीसी चीफ ही बनें। इस तरह दाऊ नेता प्रतिपक्ष बनने से बाल-बाल बच गए। अगर नेता प्रतिपक्ष बने होते तो....जाहिर है जो भी बना उसका सब कुछ अच्छा नहीं रहा।

आदिवासी हिंदू नहीं

सरकार के आदिवासी मंत्री कवासी लखमा ने बड़ा बयान दिया है, आदिवासी हिंदू नहीं हैं। वैसे आदिवासी इलाकों में पोस्टर भी दिख रहे, आदिवासी हिंदू नहीं। उसमें सुप्रीम कोर्ट का हवाला भी दिया जा रहा। आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है। मगर सियासी पंडितों का मानना है, फौरी तौर पर इससे भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है। हालाकि, यह भी सही है कि सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले भाजपा शासन काल में ही बस्तर और सरगुजा में काफी चीजें शुरू हो गई थीं। पिछले चुनाव में बीजेपी इसे समझ नहीं पाई। और जो हुआ, उसे बताने की जरूरत नहीं। चुनावी साल में आदिवासी मंत्री ने जोर शोर से यह राग अलापा है तो समझा जाना चाहिए कहीं पर निगाहें हैं, कहीं पर निशाना है।

मंत्रिमंडल में सर्जरी

रायपुर में इस महीने कांग्रेस का अधिवेशन होने जा रहा है। सोनिया, राहुल, प्रियंका से लेकर पूरी कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में रहेगी। सियासी गलियारों में अटकलें चल रही कि अधिवेशन के तुरंत बाद सीएम मंत्रिमंडल की सर्जरी करेंगे। सरकार के चार साल से ज्यादा हो गए, सीएम भूपेश बघेल एक बार भी मंत्रिमंडल में परिवर्तन नहीं कर पाए हैं। पहले ढाई ढाई साल का इशू रहा। फिर यूपी का चुनाव आ गया और इसके बाद राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकल गए। इस साल नवंबर में चुनाव में जाने से पहले कोशिश होगी कि कुछ फ्रेश चहरों को लेकर सीएम भूपेष मैदान में उतरे।

मंत्री के दावेदार

केंद्रीय मंत्री के प्रबल दावेदार मीडिया से बात कर रहे थे। सवाल हुआ...लोग कह रहे हैं कि इस समय चुनाव हो जाए तो कांग्रेस एकतरफा सरकार बना लेगी। नेताजी भी इसे मान लिए। बोले, हां...मैं गलत नहीं बोलूंग...कांग्रेस मजबूत तो है। इस स्पष्टाविदाता के चलते नेताजी की ताजपोशी कहीं खतरे में तो नहीं पड़ जाएगी।

सरकार का नवाचार

सीएम भूपेश बघेल ने 26 जनवरी के भाषण में नवाचार आयोग के गठन का ऐलान किया था। और हफ्ते भर में इसका क्रियान्वन भी हो गया। पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड को नवाचार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। ढांड पौने चार साल सूबे के प्रशासनिक मुखिया रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद यह उनकी दूसरी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग होगी। पहली पोस्टिंग रेरा चेयरमैन की रही। पिछले महीने ही रेरा का कार्यकाल उनका समाप्त हुआ। नवाचार का गठन भी सरकार का एक नवाचार है। क्योंकि, दीगर किसी राज्य में इस नाम का कोई आयोग नहीं है। प्रशासनिक सुधार आयोग नाम से कुछ राज्यों ने जरूर आयोग बनाया है। विवेक ढांड ने भी बताया आयोग प्रदेश में इनोवेशन का वातावरण तैयार करेगा। इसमें प्रशासनिक सुधार भी शामिल होगा।

सिक्रेट्री का मजा नहीं

2007 बैच के आईएएस प्रमोट होकर सचिव बन गए। उनका पोस्टिंग आदेश भी निकल गया...मगर पोस्टिंग यथावत रही। हिमशिखर गुप्ता पहले स्पेशल सेक्रेटरी स्वतंत्र प्रभार थे। अब वहीं सेक्रेटरी हो गए। उनके अलावा सभी वहीं-के-वहीं। याने किसी को विभाग का इंडिपेंडेट चार्ज नहीं। हालांकि, सचिवों की संख्या अब ढाई दर्जन से अधिक हो गई है। लिहाजा, सरकार के पास अब विकल्प की कमी नहीं है। अब जिसका मुकद्दर ठीक रहेगा, उसे ही अच्छे विभागों का सिकरेट्री बनने का मौका मिलेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ से विजय बघेल केंद्रीय मंत्री बनेंगे या गुहाराम अजगले?

2. अगर मंत्रिमंडल की सर्जरी हुई तो बाहर जाने वालों में पहले नम्बर पर कौन मंत्री होंगे?