शनिवार, 18 दिसंबर 2021

आईपीएस की छुट्टी!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 दिसंबर 2021

2006 बैच के आईपीएस माइनथुंगो तुंगोए 2013 में डेपुटेशन पर गृह राज्य नागालैंड गए थे। 2018 में डेपुटेशन खतम हो गया। मगर इसके बाद उनकी कोई खबर नहीं है। गृह विभाग उनको दो नोटिस भेज चुका है। अभी तक कोई रिप्लाई नहीं...आखिर वे हैं कहां...कोई बता पाने की स्थिति में नहीं है। सुना है, अब उनको नौकरी से कंपलसरी रिटायर करने भारत सरकार को अनुशंसा करने पर विचार किया जा रहा है। माइनथुंगो अगर रिटायर  हुए तो गायब रहने के आधार पर नौकरी गंवाने वाले वे पहले आईपीएस होंगे।

एक थे पंकज द्विवेदी

अजीत जोगी सरकार के दौरान आंध्रप्रदेश कैडर के आईएएस पंकज द्विवेदी छत्तीसगढ़ आए थे। रमन सिंह की सरकार आने के बाद भी द्विवेदी को अच्छी पोस्टिंग मिलती रही। जीएडी से लेकर एपीसी तक रहे। बिलासपुर के कोटा में पंकज का ससुराल है। वे कांग्रेस के दिग्गत नेता मथुरा प्रसाद दुबे के दामाद हैं। कोटा विधानसभा सीट से उस जमाने में लगातार पांच चुनाव जीतने की वजह से उन्हें विधानपुरूष कहा जाता था। उनकी बेटी नीरजा पंकज से ब्याही थीं। बहरहाल, डेपुटेशन पूरा होने के तीन बाद भी पंकज जब आंध्र लौटने के लिए तैयार नहीं हुए तो आंध्र सरकार ने आईएएस लिस्ट में उन्हें एबसेंट कर दिया। बदनामी को देखते पंकज आठ साल बाद मन मारकर आंध्र लौटे।     

तेज घोड़ों पर दांव

सरकार का तीन साल पूरा हो गया है। बचा डेढ़ साल। डेढ़ साल इसलिए, क्योंकि आखिरी के छह महीना कोई काम होता नहीं। सो, सरकार का जो लक्ष्य है, उसके लिए वक्त अब कम रह गया है। लिहाजा, जिलों में अब और तेज दौड़ने वाले घोड़ों पर दांव लगाने की तैयारी की जा रही है। सरकार को कई बड़े जिलों से शिकायतें मिल रही हैं....कलेक्टर काफी स्लो हैं। पता चला है, सरकार परफारमेंस के आधार पर ऐसे कलेक्टरों की लिस्टिंग करा रही है, जिनके जिलों में योजनाओं की रफ्तार ढिली है। सुनने में आ रहा...लूज कलेक्टरों के साथ अबकी कोई मरौव्वत नहीं...बिना किसी किन्तु-परंतु के साथ उन्हें बदला जाएगा। बड़े जिलों में दुर्ग, बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर, जगदलपुर जैसे बड़े जिलों को लेकर अटकलें गर्म है....इनमें से कुछ को हटाए जाने की तो कुछ को और अहम जिलों में अपग्रेड करने की खबर है। इसके साथ छोटे जिलों के आधा दर्जन से अधिक कलेक्टर्स भी नप सकते हैं।  

एसपी का पट्टा

कलेक्टरों के साथ-साथ कुछ पुलिस अधीक्षक भी बदले जाएंगे। हालांकि, एसपी की लिस्ट उतनी लंबी नहीं होगी। नारायणपुर और बलौदा बाजार के एसपी पिछले दो महीने में बदले गए हैं। उससे पहिले भी आधा दर्जन से अधिक एसपी इधर-से-उधर हुए थे। बहरहाल, जब भी एसपी की लिस्ट निकलती है, आईपीएस के व्हाट्सएप ग्रुप में डॉ0 अभिषेक पल्लव को लेकर चुटकी षुरू हो जाती है। बैचमेंट बोलते हैं, अभिषेक तू दंतेवाड़ा का ही अब मूल निवासी बन जा...पट्टा लिखवा ले...और भी बहुत कुछ...। जाहिर है, अभिषेक के नाम किसी एक जिले में सबसे लंबे समय तक एसपी रहने का रिकार्ड दर्ज हो गया है। वे पहले एसपी हैं, जिनकी पोस्टिंग भाजपा सरकार में हुई और अभी तक क्रीज पर डटे हुए हैं। याने करीब चार साल से। बताते हैं, दंतेवाड़ा में अभिषेक का कोई विकल्प नहीं मिल रहा। उन्होंने दंतेवाड़ा में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस का मजबूत नेटवर्क बना दिया है। इसलिए, अभिषेक को जब भी चेंज करने की बात आती है तो सीनियर पुलिस अधिकारी आगे-पीछे होने लगते हैं।    

कलेक्टरों को श्रेय या...

धान उठाव और मिलिंग...अबकी बड़ा स्मूथली चल रहा है...कहीं कोई विवाद नहीं। संकट पैदा करने वाले राईस मिलर आगे बढ़कर काम कर रहे हैं। तो क्या इसका क्रेडिट कलेक्टरों को दिया जाए...जो कलेक्टर वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे...उन्हें भी पता है कि इसमें पूरी भूमिका मुख्यमंत्री की है। सीएम ने इस बार ऐसा कुछ किया कि राईस मिलर गदगद हो गए। दो बार हाउस में ससम्मान बुलाकर राईस मिलरों को चाय-नाश्ता कराया, उपर से मिलिंग चार्ज 40 रुपए से बढ़ाकर 120। याने तीन गुना। मिलिंग चार्ज 93 में 40 रुपए तय हुआ था, 28 सालों तक यथावत रहा। अब यकबयक 140 रुपए हो जाने से राईस मिलरों की खुशी समझी जा सकती है। फिर मार्कफेड से मिलिंग के लिए धान उठाने मिलरों को प्रति बोरा 2200 रुपए डिपाजिट करना होता था। इसे अब 1500 कर दिया गया। बोरे का रेट भी 18 से 25। इसके बाद तो राईस मिलर बम-बम हैं...। सीएम के अभिनंदन समारोह में राईस मिलरों ने कहा, व्यापारियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने जो नहीं किया, वह कांग्रेस सरकार ने कर दिया। जाहिर है, राईस मिलरों पर राहतों की झड़ी लगाकर सीएम ने व्यापारी समुदाय को बड़ा मैसेज दिया है।  

आईएएस, आईपीएस कांक्लेव

न्यू ईयर में तीन दिन का आईएएस कांक्लेव होने जा रहा तो दो दिन का आईपीएस कांक्लेव होगा। इसमें हिस्सा लेने पूरे प्रदेश से आईएएस, आईपीएस परिवार के साथ राजधानी रायपुऱ पहंुचेंगे। अभी तक की खबर के अनुसार 7 से 9 जनवरी तक आईएएस और 15 और 16 को आईपीएस कांक्लेव होगा। आईएएस, आईपीएस एसोसियेशन द्वारा इसकी तैयारी षुरू हो गई है। काफी सालों से शांत आईपीएस एसोसियेशन भी अब एक्टिव हो गया है। आईएएस और आईएफएस का सीएम के साथ दिवाली मिलन के बाद आईपीएस में निराशा थी। मगर अब आईपीएस एसोसियेशन भी आगे बढ़ा है। 

एक-एक विकेट

इस महीने पुलिस में एक बड़े अफसर रिटायर होंगे तो एक आईएएस से भी। 88 बैच के आईपीएस आरके विज इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। 89 बैच के आईपीएस अशोक जुनेजा को डीजीपी बनाने की वजह से सरकार ने हाल ही में विज को पीएचक्यू से हटाकर संचालक लोक अभियोजन बनाया है। बस्तर आईजी से रायपुर लौटने के बाद बतौर आईजी, एडीजी और स्पेशल डीजी उन्होंने पीएचक्यू में विभिन्न जिम्मेदारियां संभाली। पुलिस महकमे के वे एक मजबूत स्तंभ माने जाते थे। डीजी बनना उनके माथे पर नहीं लिखा था, सो नहीं हुआ। अब उन्हें लोक अभियोजन से ही गुमनामी में विदा होना पड़ेगा। आईएएस में सरगुजा कमिश्नर जे. किंडो इसी महीने रिटायर होने जा रही हैं। सरकार को उनकी जगह कमिश्नर पोस्ट करना होगा। सरकार के पास सिकरेट्री बहुत हो गए हैं, इसलिए कमिश्नर के च्वाइस में अब कोई दिक्कत नहीं। कमिश्नर में बाकी कुछ हो या न हो, गाड़ी-घोड़ा, बंगला मिल जाता है। बाकी हाथ-पैर चलाने वाला हो तब तो कुछ भी संभव है। 

अजब सिस्टम, गजब अफसर

राजस्व देने वाले सरकार के अहम रजिस्ट्री विभाग में कुछ भी हो रहा है। एक प्रदेश में दो-दो मापदंड। इसका एक मजमूं है यह वाकया....जांजगीर की महिला डिप्टी रजिस्ट्रार ने लाफार्ज सीमेंट के माईनिंग लीज को सिर्फ एक हजार शुल्क लेकर नुवोको के हवाले कर दिया तो विभाग के शीर्ष अफसर उसे सुधारनामा मान कर आंख मूंद लिए। और अब देखिए....बलौदा बाजार के रजिस्ट्री अधिकारी ने एक हजार के स्टांप में लाफार्ज सीमेंट कंपनी की माईनिंग लीज को नुवोको को ट्रांसफर करने से इंकार कर दिया। अफसर का कहना था, ये सुधारनामा नहीं, सेल है इसकी रजिस्ट्री होनी चाहिए। कंपनी इसके खिलाफ राजस्व बोर्ड गई। राजस्व बोर्ड ने इसे सुधारनामा करार दिया। तो इसके खिलाफ विभाग के अधिकारी हाईकोर्ट जा रहे हैं। याने एक जगह सुधारनामा और दूसरी जगह हाईकोर्ट में चैलेंज। पंजीयन विभाग के अफसरों की महिमा अपरंपार है। दरअसल, राजस्व बोर्ड भी सुधारनामा नहीं मानता। विभाग की ओर से न तो पूरा पेपर पेश हुआ और न ही कोई अफसर। बहरहाल, खेल बड़ा है। इसकी शुरूआत हुई जांजगीर से। माईनिंग लीज की अगर विधिवत रजिस्ट्री हुई होती तो सरकार के खजाने में 10 करोड़ से अधिक राशि आती। लेकिन, मात्र एक हजार लेकर कपंनी को उपकृत कर दिया गया। अब कंपनी पर ये उपकार ऐसे तो नहीं किया गया होगा। 

मंत्रिमंडल में सर्जरी

तीन साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इशारे में संकेत दिया कि मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जा सकता है। बशर्ते उन्हें हाईकमान से अनुमति मिले। अब सवाल उठता है हाईकमान से अगर हरी झंडी मिले तो कितने मंत्रियों की छुट्टी होगी? बिलासपुर, सरगुजा और दुर्ग संभाग से एक-एक मंत्री की मुश्किलें बढ़ सकती है। बस्तर में महेंद्र कर्मा के नाम का फायदा उठाने पार्टी देवती कर्मा के नाम पर भी विचार कर रही है। उधर, पीसीसी चीफ मोहन मरकाम भी मंत्री बनने के लिए उत्सुक बताए जाते हैं। कुल मिलाकर मामला पेचीदा होगा। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार के निर्देश के बाद भी कलेक्टरों की टीएल बैठकों में पुलिस अधीक्षक क्यों नहीं जा रहे?

2. स्पीकर चरणदास महंत ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर राज्यसभा में जाने की इच्छा व्यक्त की है, ऐसा क्यों?

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

आईएएस का इस्तीफा?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 12 दिसंबर 2021

2014 बैच के आईएएस अमृत टोपनो ने नौकरी से इस्तीफा तो भेजा है मगर दिक्कत यह है कि मजमूं क्लियर नहीं हो पा रहा। चीफ सिकरेट्री, एसीएस टू होम और जीएडी सिकरेट्री को व्हाट्सएप पर आए मैसेज में उपर इस्तीफा लिखा तो है मगर नीचे में उसका कोई उल्लेख नहीं। टोपनो के व्हाट्सएप से मंत्रालय के अधिकारी भी उलझन में पड़ गए हैं....यंग आईएएस का किया क्या जाए। अलबत्ता, जीएडी ने टोपनो को हार्ड पेपर में लेटर भेजने कहा है, मगर अभी तक उनका कोई रिप्लाई नहीं आया है। टोपनो को प्रॉब्लम क्या है, इस बारे में उनके बैच वाले भी कुछ बता नहीं पा रहे। सिर्फ इतना ही पता है कि वे झारखंड लौट चुके हैं।

शैलेष की याद

आईएएस अमृत टोपनो ने इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे से शैलेष पाठक का इस्तीफा जेहन में आ गया। अजीत जोगी सरकार में काफी पावरफुल अधिकारी रहे शैलेष पाठक 2005 में इस्तीफा देकर प्रायवेट सेक्टर में चले गए थे। लेकिन, ढाई-तीन साल बाद उनका वहां जमा नहीं, मन भी बदला। चूकि दिल्ली में अच्छा कंटेक्ट था, सो वहां उन्होंने जमा लिया। मगर पेंच यह था कि राज्य सरकार अनुमोदन करें। डीओपीटी ने शैलेष को भरोसा दिया था कि आप राज्य सरकार से लेटर ओके करा लाओ, बाकी यहां कोई दिक्कत नहीं। मगर यहां सीएम सचिवालय ने उन्हें दो टूक इंकार कर दिया। सीएम सचिवालय के एक सीनियर और दबंग आईएएस ने मुख्यमत्री रमन सिंह से दो टूक कह दिया...सर, इससे गलत परिपाटी बन जाएगी...नौकरी से त्यागपत्र देकर प्रायवेट में चले जाओ और फिर घूम फिरकर लौट आओ। इस तरह पाठक की वापसी का एपीसोड खतम हो गया। 

सीएम की मारुति

नया रायपुर में इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईविंग एंड रिसर्च के लोकापर्ण समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भाषण दे रहे थे...उन्होंने बताया मेरे पास पहले मोटर सायकिल थी। 93 में जब पहली बार विधायक बना तो नया मोटर सायकिल लेने गया। बाइक एजेंसी वाले ने सलाह दी...भैया अब आप विधायक बन गए हो, मोटरसायकिल में मजा नहीं आएगा...अब तो कार होना चाहिए। बाइक एजेंसी वाले की मारुति की एजेंसी भी थी। उसने मुझे मारुति 800 खरीदवा दी। सीएम ने बताया, मारुति ने उनका काफी साथ दिया। चूकि इंस्टीट्यूट को मारुति के साथ पीपीपी मोड में चालू किया जा रहा। सो, समारोह में मारुति के जेपेनिज एमडी और सीओओ भी मौजूद थे। राज्य के मुखिया द्वारा मारुति की तारीफ मिलने से वे बेहद खुश हुए। 

दूसरे आईपीएस

धार्मिक हिंसा के बाद कवर्धा एसपी मोहित गर्ग आखिरकार हटा दिए गए। उनकी जगह पर लाल उमेद सिंह ने वापसी की है। उमेद पहले भी करीब ढाई साल वहां एसपी रह चुके थे। कवर्धा में ये उनकी दूसरी पारी होगी। आईपीएस मेें उनसे पहले सिर्फ रतनलाल डांगी को एक ही जिला में दो बार कप्तान रहने का मौका मिला है। वे कोरबा में दो बार एसपी रहे। वहीं, कलेक्टरों में जिला रिपीट केवल सुबोध सिंह ने किया। वे रायपुर से बिलासपुर गए थे और वहां से लौटकर फिर बिलासपुर।

बेचारे सिकरेट्री

सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी के पहले हफ्ते में आईएएस का प्रमोशन हो सकता है। इस बार 2006 बैच के आईएएस सिकरेट्री बनेंगे और 97 बैच वाले प्रिंसिपल सिकरेट्री। 97 बैच में छत्तीसगढ़ कैडर में तीन आईएएस हैं। सुबोध सिंह, एम गीता और निहारिका बारिक। सुबोध सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। निहारिका बारिक डेढ़ साल की छुट्टी पर। और गीता भी लगभग डेपुटेशन पर ही। लगभग का मतलब ये कि वे छत्तीसगढ़ भवन ही सही, हैं तो दिल्ली में। और यह भी सही है कि किसी भी दिन भारत सरकार से उनका डेपुटेशन का आर्डर आ सकता है। 2006 बैच में अंकित आनंद, श्रुति सिंह, दयानंद, सीआर प्रसन्ना, अलेक्स पाल मेनन, भूवनेश यादव और भारतीदासन हैं। ये सभी सिकरेट्री बन जाएंगे। हालांकि, 2005 बैच को सिकरेट्री बनने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे लेकिन इस बैच में नहीं लगता कि कोई दिक्कत होगी। याने एक साथ सात सिकरेट्री मिलेंगे सरकार को। 26 तो पहले से हैं, ये सात और। याने अब 33 सिकरेट्री। पता नहीं...इतने थोक में सिकरेट्री उपलब्ध होने पर बेचारों को क्या विभाग मिलेंगे।  

नए कलेक्टर, एसपी

तीन नए जिलों का नोटिफिकेशन तो हो गया मगर अभी तक ओएसडी की तैनाती नहीं हुई है। अगर 26 जनवरी के आसपास भी अगर नए जिलों का इनॉग्रेशन करना हो, तब भी अब ओएसडी की नियुक्ति का अब समय आ गया है। जाहिर है, नए जिलों में कलेक्टर, एसपी बनने वाले आईएएस, आईपीएस सरकार के आदेश पर टकटकी लगाए बैठे हैं। 

मखाना और मैडम 

बैठकों में सीएम भूपेश बघेल सिर्फ भृकुटी ही नहीं चढ़ाते...अगर किसी अधिकारी का दिन खराब हो तो बात अलग है....वरना, चुटकी, हंसी-ठिठोली भी हो जाती है। इसी हफ्ते सीएम हाउस में आयोजित गोधन न्याय योजना के भुगतान की बैठक में आरंग के एक किसान वीवीआईपी के लिए मखाना लेकर आए थे। लेकिन, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को देने के बाद अधिकारियों का नम्बर आया तो मखाना खतम हो गया। मुख्यमंत्री इसको समझ गए। जैसे ही बैठक खतम हुई उन्होंने अपना मखाना दो सीनियर आईएएस को यह कहते हुए दे दिया कि ले जाओ, आपलोगों की मैडम खुश हो जाएंगी। इस पर जमकर ठहाके लगे। 

अफसरों का भगवा ड्रेस

पिछले हफ्ते राजधानी में मैराथन दौड़ हुआ। इसमें हिस्सा लेने एक एक्स चीफ सिकरेट्री समेत कई बड़े अधिकारी पहुंचे। मैराथन को हरी झंडी दिखाने के ठीक पहले आयोजकों ने प्रतिभागियों को चटख भगवा रंग का टीषर्ट पहना दिया। अब अधिकारियों को टीशर्ट निकालते बने, न पहनते। कार्यक्रम में मीडिया वाले भी थे, सो टीशर्ट उतार भी नहीं सकते थे। लिहाजा, कई अफसर बीच में ही मैराथन छोड़ टीशर्ट उतार दिया तो कुछ लोग जैसे ही दौड़ खतम हुई, सबसे पहले ड्रेस बदला। डर था, कहीं कोई देख लिया तो....।    

तीन उमेश

सरकार की छबि चमकाने वा


ले जनसंपर्क विभाग में पहले दो उमेश थे। दोनों उमेश मिश्रा। इनको आईडेंटीफाई करने के लिए कहा जाता था दिल्ली वाले उमेश और दूसरे को संवाद वाले उमेश। एक को दिल्ली वाले इसलिए क्योंकि वे लंबे समय तक दिल्ली में पोस्टेड रहे। जनसंपर्क में अब एक और उमेश की इंट्री हो गई है। याने तीसरा उमेश। ये उमेश पटेल डिप्टी कलेक्टर हैं। पोस्ट है संवाद महाप्रबंधक। इन्हें अब क्या कहा जाए...ये दुविधा दूर की...सीपीआर ने। उन्होंने व्यवस्था दी है, इन्हें फुल नेम उमेश पटेल से आईडेंटिफाई किया जाए।    

रायपुर की पोलिसिंग

6 दिसंबर की रात राजधानी के टिकरापारा इलाके में तनाव की स्थिति निर्मित हुई। स्थिति बिगड़े मत, एसएसपी प्रशांत अग्रवाल सुबह पांच बजे तक टिकरापारा थाने में मोर्चा संभाले रहे। कहने का आशय यह कि अगर सीनियर और संजीदा अफसर होते तो एसएसपी की वहां जरूरत ही नहीं पड़ती। दरअसल, राज्य तो अलग बन गया मगर 21 साल गुजर गए...राजधानी की पोलिसिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। रायपुर जैसे 12 लाख से अधिक आबादी वाले शहर को कंट्रोल करने के लिए सिर्फ एसएसपी से हमाली नहीं कराई जा सकती। जब भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो गया, उसके उलट रायपुर के कप्तान के पास अदद एक सिटी एसपी तक नहीं है। 13 साल पहले स्व0 विनोद चौबे जरूर अषोक जुनेजा के एसएसपी रहने के दौरान सिटी एसपी रहे। लेकिन, उनके ट्रांसफर के बाद यह पद खतम हो गया। रायपुर जैसे शहर को संभालने के लिए अब जरूरी हो गया है, कप्तान को मजबूत हैंड दिया जाए। कम-से-कम दो एसपी याने एक सिटी और एक एसपी ग्रामीण की पोस्टिंग हो। दोनों आईपीएस हो। उसके बाद फिर चार जोन में शहर को बांटकर चार एडिशनल एसपी। 18 लाख की आबादी वाले भोपाल में एडीजी रैंक का पुलिस कमिश्नर। फिर डीआईजी रैंक के चार एडिशनल कमिश्नर। एसपी रैंक के 12 डिप्टी कमिश्नर और एडिशनल एसपी लेवल के 30 एएसपी। और 12 लाख वाले रायपुर की सुरक्षा....? एक एसएसपी और दो एडिशनल एसपी के भरोसे। वक्त आ गया है, सरकार को राजधानी की पोलिसिंग सेटअप को दुरूस्त करने पर विचार करना चाहिए। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. डेपुटेशन से लौट रहे राजेश मिश्रा को क्या कोई महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिलेगी?

2. क्या ये सही है कि एनआरडीए ने नया रायपुर में नौकरशाहों की जमीनों का रेट बढ़ाने उनके सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनाने का टेंडर कर दिया है?

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

बेचारे बैचलर आईएएस

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 दिसंबर 2021

एक युवा आईएएस को सरकार ने हाल ही में हटा दिया। पता चला, वे दो महीने से दफ्तर नहीं आ रहे थे। आईएएस जैसी देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस में सलेक्ट होने के बाद भी इस कदर...चिकित्साविज्ञानी मानते हैं, एक उम्र के बाद बैचलर नहीं रहना चाहिए। बैचलर रहने के कारण छत्तीसगढ़ के कुछ और नौकरशाहों की वर्किंग प्रभावित हो रही है। एक आईएएस कलेक्टर बनने से चूक गए। सूबे में कई अफसर दो-दो, तीन-तीन घरों का सुख ले रहे हैं और ये बैचलर बेचारे एक घर नहीं बसा रहे। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को बैचलर अफसरों के लिए कुछ करना चाहिए...काउंसलिंग का बंदोबस्त ही सही, ताकि टाईम पर वे घर-गृहस्थी बचा लें। 

बेचारे तीन कलेक्टर!

बेमेतरा, कवर्धा और मुंगेली, इन तीन जिलों के अधिकारी डायरेक्ट कॉन्फ्रेंस हो या वीडियोकांफ्रेंसिंग, पारफारमेंस को लेकर घिर जाते हैं। सीएस अमिताभ जैन ने हाल ही में वीसी लिए, उसमें भी इन जिलों के कलेक्टरों को खासतौर पर निर्देश दिया गया। दरअसल, इन तीनों जिलों में डीएमएफ है नहीं, लिहाजा इन कलेक्टरों के हाथ बंधे होते हैं। अब मुंगेली कलेक्टर के पास रिसोर्सेज के नाम पर है क्या? जिन जिलों में डीएमएफ हैं, वहां संसाधनों की कोई कमी नहीं होती। वैसे, इस बार कोरिया कलेक्टर श्याम धावड़े की वीसी में तारीफ हो गई। सीएस बोले, तुम काम अच्छा करते हो मगर बोलते कम हो, इस बार तुम धड़धड़ाकर बोले। इस बार की वीसी की खास बात यह रही कि सभी कलेक्टरों को बोलने का मौका मिला।

महिला एसपी का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ की 2008 बैच की आईपीएस पारुल माथुर बिलासपुर की एसएसपी बनते ही देश में सबसे अधिक जिलों की कप्तान रहने वाली महिला आईपीएस बन गई हैं। देश में अभी तक पांच जिलों की कप्तानी का रिकार्ड है। पारुल छठवीं बार एसपी बनीं हैं। पांच बार जिले की और एक बार लंबे समय तक रेलवे एसपी रही। बीजेपी सरकार में उनके बारे में कहा जाने लगा था कि सरकार ने रेलवे एसपी बनाकर लगता है, भूल गई। बाद में सरकार बदली तो पारुल की किस्मत भी पलटी। वे मुंगेली, जांजगीर, गरियाबंद होते हुए बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले की कप्तान बन गईं। बीजेपी के पीरियड में उनका सबसे पहला जिला बेमेतरा रहा। लेकिन, पारिवारिक वजहों से वे लंबी छुट्टी पर चली गईं थी। फिलहाल, गौर करने वाली बात यह है कि ये चार जिले उन्होंने बिना ब्रेक किया है। इसलिए, कोई आश्चर्य नहीं कि वे एकाध और बड़ा जिला कर लें। पारुल के पिता राजीव माथुर भी आईपीएस अफसर रहे हैं। रायपुर के चर्चित आईजी भी रहे। लेकिन, काबिल होने के बाद भी पीएचक्यू में उन्हें मौका नहीं मिला तो सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए। बहरहाल, पारुल का जांजगीर का कार्यकाल वैसा नहीं रहा...। बिलासपुर के रूप में उन्हें सरकार ने बड़ा अवसर दिया है....उन्हें दबंग महिला एसपी के तौर पर छबि निर्मित करने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए। 

ग्रह-नक्षत्र का फेर

छत्तीसगढ़ में आईपीएस के दिन बदल नहीं रहे। कांस्टेबल और ड्राईवर एसपी लोगों को निबटा दे रहे हैं। बलौदा बाजार के एसपी आईके एलेसेला ने अमर्यादित बातें की....ये कोई नया नहीं था....एसपी अपने सिपाही, दरोगा से किस अंदाज में बात करते हैं...ये पुराने समय से चला आ रहा है। हम एसपी की असंसदीय भाषा से इतेफाक नहीं रखते, न रखना चाहिए, वाकई उनका बर्ताव आपत्तिजनक था। लेकिन कांस्टेबल मोबाइल से अपने साहबों को ट्रेप करने लगें तो समझ जाइये फिर पुलिसिंग का क्या होगा? रिकार्डिंग सुन आप समझ जाएंगे कि किस तरह कांस्टेबल एसपी को ट्रेप करने के लिए बहस को न केवल लंबा खींचने की कोशिश कर रहा बल्कि जुबान लड़ाकर फंसा रहा है....भला कांस्टेबल कभी एसपी को माई-बाप बोलता है। ये पुलिस के ग्रह-नक्षत्र का फेर है....नए डीजीपी अशोक जुनेजा को कुछ पूजा-पाठ करानी चाहिए।  

'बी' का फेर     

छत्तीसगढ़ में बी नाम से छह जिले हैं...बालोद, बेमेतरा, बलौदा बाजार, बस्तर, बिलासपुर और बलरामपुर। इन एक जिले में किसी एसपी की पोस्टिंग होती है तो फिर उसका 'बी' का एकाध सर्कल लगता ही है....। मसलन, आरिफ शेख। आरिफ सबसे पहले बालोद गए। वहां से बलौदा बाजार, बस्तर और फिर बिलासपुर। याने फोर 'बी'। हालांकि, वे बिलासपुर से रायपुर का एसएसपी बन 'बी' के चक्रव्यूह से निकल गए। जीतेंद्र मीणा भी बालोद से बस्तर पहुंच गए। जीतेंद्र का भी 'बी' का चक्कर नहीं छूटा....अपग्रेडेशन जरूर हुआ। सदानंद बलरामपुर और बालोद। इसी तरह पारुल माथुर का पहला जिला बेमेतरा रहा और अब बिलासपुर। दीपक झा आखिरी-आखिरी में अवश्य बी के चक्रव्यूह में फंस गए। बलौदा बाजार के बाद बस्तर, फिर बिलासपुर और अब बलौदा बाजार। बलौदा बाजार मतलब कुछ दिन में उसका आधा हिस्सा सारंगढ़ में चला जाएगा। 

सबसे बड़ा सवाल

बलौदा बाजार एसपी क्यों नपें, बताने की जरूरत नहीं। कवर्धा की धार्मिक हिंसा में मोहित गर्ग को जाना ही था।लेकिन, ब्यूरोक्रेसी में सबसे बड़ा सवाल है...बिलासपुर एसपी दीपक झा का क्या हुआ...वे तो ठीक से अभी पिच पर जम भी नहीं पाए थे। इसकी असली वजह आदेश निकालने वाले गृह विभाग के लोग बता पाएंगे। मगर छन-छनकर जो खबरे आ रही हैं, पिछले दिनों बिलासपुर के कोतवाली थाने में घेराव और नारेबाजी को ढंग से हैंडिल नहीं किया गया...थाने में सरकार के खिलाफ नारे लगते रहे...इसे अच्छे वे में नहीं लिया गया। 

अब नक्सल नहीं!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जब भी कभी दिल्ली मीडिया से मुख़ातिब होते थे तो फोकस हमेशा नक्सल समस्या पर ही होता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुख्यमंत्री मीडिया से जुड़े तीन कार्यक्रमों में गये और उनसे नक्सल समस्या को लेकर कोई प्रश्न नहीं पूछा गया। अलबत्ता, राष्ट्रीय मंच पर छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा हुई, किसानों के ऋण माफ़ी की मांग हुई और गोबर ख़रीदने की गोधन योजना का विस्तार से ज़िक्र हुआ। जिस तरह से मुख्यमंत्री ने ममता बैनर्जी के ताजा कांग्रेस विरोधी रुख़ पर प्रश्न उठाये...प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद ममता के बदले सूर पर अटैक किया....अखिलेश यादव की कांग्रेस पर की गयी टिप्पणी का जिस बेबाकी से प्रतिकार किया, वह उनका सियासी कांफिडेंस बताता है। 

नेताओं को झटका 

बीजेपी के कोर ग्रुप समेत संगठन के पदों पर ठीक-ठाक दायित्व न मिलने से भाजपा के कई नेता खफा बताए जा रहे हैं। एक पूर्व मंत्री सूची जारी होने के बाद दिल्ली में हैं। हालांकि, झटका तो अमर अग्रवाल और अजय चंद्राकर को भी लगा होगा। लेकिन, उन्हें कम-से-कम नगरीय और पंचायतों में कोआर्डिनेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अमर पार्षदों के बीच जाकर समन्वय के साथ आंदोलनों की रूप-रेखा तैयार करवाएंगे तो अजय पंचायत प्रतिनिधियों को कोआर्डिनेट करेंगे। किन्तु कुछ नेताओं को तो कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में, उनका दुखी होना लाजिमी है। 


अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले में पुलिस को बदनाम करने फर्जी गोली कांड हुआ और विवशता में पुलिस उसे जाहिर भी नहीं कर पाई?

2. पारुल माथुर को छोटे जिला से बड़ा जम्प मिला तो क्या अब कोरिया एसपी संतोष सिंह को भी उम्मीद रखनी चाहिए?