शनिवार, 29 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ में 36 का खेला

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 30 अप्रैल 2023

छत्तीसगढ़ में 36 का खेला

पीएम पोषण शक्ति योजना के तहत स्कूलों में सोयाबीन चिक्की का वितरण किया जाना था। चूकि सोया अपने यहां होता नहीं, इसलिए उसकी जगह मिलेट्स चिक्की के लिए सीएम भूपेश बघेल ने दो बार केंद्र को पत्र लिखा। और इसके लिए हरी झंडी मिल भी गई। इस योजना के लिए सूबे के 12 जिलों को चुना गया। एक जिले को करीब ढाई से तीन करोड़ का फंड मिला। याने 12 जिलों को लगभग 36 करोड़। सरकार ने कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए....वन विभाग की समितियांं से मिलेट्स खरीद कर स्कूलों में स्व सहायता समूहों के माध्यम से चिक्की तैयार कराया जाए। मगर अफसरों ने खेला कर दिया। जिला शिक्षा अधिकारियों ने कलेक्टरों से सहमति लेकर सी मार्ट से खरीदी का आदेश जारी कर दिया। और एक कारोबारी को इशारा कर दिया गया। उसने सभी जिलों के सी मार्ट में रेडिमेड चिक्की सप्लाई कर दिया। पता चला है, रायपुर से स्कूल शिक्षा विभाग से आदेश जारी हुए उसी में चूक हुई या की गई। मार्च में भेजे आदेश में लिखा था, 30 अप्रैल तक चिक्की का वितरण कंप्लीट कर लिया जाए। आदेश देखकर डीईओ की बांछे खिल गई। दरअसल, सरकारी स्कूलों में मार्च में परीक्षा के बाद स्कूल खुलता तो जरूर है मगर बच्चे नहीं आते। सिर्फ शिक्षकों की उपस्थिति 30 अप्रैल तक अनिवार्य होती है। जाहिर है, चिक्की का वितरण कागजों में किया जाना था। सो, लार टपकाते हुए आनन-फानन में रेडिमेड चिक्की का आदेश देकर पांच से अधिक जिलों के बंद स्कूलों में इसका वितरण भी कर दिया गया। सीएम ने केंद्र को पत्र लिख मिलेट्स चिक्की के लिए केंद्र को सहमत कराया था, इससे पता चलता है कि वे इसके लिए कितने संजीदा हैं। मगर इस अच्छी योजना को अफसरों ने पलीता लगा अच्छी खासी रकम अंदर कर लिया।

डीएमएफ की लूट

कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड याने डीएमएफ के प्रमुख जरूर होते हैं मगर डीएमएफ में काम क्या करना है, वह रायपुर के मुठ्ठी भर कारोबारी तय करते हैं। व्यापारी ही कलेक्टरों को आइडिया सुझाते हैं और पैसे के मोह में कलेक्टर फंस जाते हैं। पता चला है, हाथी प्रभावित कुछ जिलों में इसी तरह का खेला हुआ है। कलेक्टरों ने वहां डीएमएफ के तहत जंगलों में हाथी अलार्म लगवा दिया है। इसमें भी खटराल सप्लायरों ने कलेक्टरों को आइडिया दिया और कलेक्टरों ने ओके कर दिया। कलेक्टरों को पता होना चाहिए कि डीएमएफ का सेंट्रल ऑडिट होने वाला है। कलेक्टरों ने जिस तरह के कारनामे किए हैं, दर्जन भर वर्तमान और पूर्व कलेक्टरों की शामत आ सकती है। बता दें, पिछली सरकार में भी कई कलेक्टरों ने इसमें खूब गुल खिलाया था।

तीन साल के पीसीसीएफ

पिछले तरकश में हमने लिखा था कि आखिरी वक्त में कोई चमत्कार होगा तभी कोई दूसरा पीसीसीएफ बनेगा वरना श्रीनिवास राव का वन महकमे का मुखिया बनना निश्चित है। और वैसा ही हुआ। श्रीनिवास सात सीनियर आईएफएस को सुपरसीड कर फॉरेस्ट के सुप्रीमो बन गए। उनका रिटायरमेंट 2026 में है। याने वे तीन साल इस पद पर रहेंगे। श्रीनिवास का वर्किंग पैटर्न ऐसा है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं...वे पूरा टर्म कंप्लीट करेंगे। जाहिर है, पिछली सरकार में भी वे प्रभावशाली थे और इसमें भी।

कैम्पा चीफ कौन?

श्रीनिवास राव पिछली सरकार से कैंपा प्रमुख थे और अभी भी हैं। कैंपा को वन विभाग की सबसे क्रीम पोस्टिंग मानी जाती है। वित्तीय अधिकार के मामलों में पीसीसीएफ से भी रसूखदार और सत्ता से नजदीकी वाला। चूकि श्रीनिवास राव अब रेगुलर पीसीसीएफ बन गए हैं सो उन्हें यह पद छोड़ना होगा। पता चला है, इसके लिए तीन नाम चल रहे हैं, सुनील मिश्रा, अरुण पाण्डेय और कोई एक अन्य। चूकि यह कैलकुलेटर लेकर बैठने वाला पद है, इसलिए इनमें से एक इस पद पर आने के लिए इच्छुक नहीं है। एक को उपर के अफसर पसंद नहीं कर रहे। अगर तीसरे पर सहमति नहीं बनी तो हो सकता है कि कुछ दिन तक पीसीसीएफ ही इस पद को संभाले। बहरहाल, कैंपा के साथ ही जो पीसीसीएफ सुपरसीड हुए हैं, उन्हें सरकार नई पोस्टिंग देगी। याने वन विभाग में शीर्ष स्तर पर एक पोस्टिंग आदेश और निकलेगा।

बड़ा पोर्टफोलियो

भूपेश बघेल सरकार ने इस हफ्ते 26 आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग दी, उनमें सबसे अधिक किसी का कद बढ़ा तो वे हैं 2006 बैच के आईएएस अंकित आनंद। अंकित पहले से सिकरेट्री टू सीएम के साथ उर्जा सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसके साथ बिजली कंपनियों के चेयरमैन भी। ताजा फेरबदल में सरकार ने उन पर भरोसा करते हुए सिकरेट्री फायनेंस का भी दायित्व सौंप दिया है। ये तीनों पोस्ट सरकार अपने विश्वस्त और सीनियर अफसरों को सौंपती है। देश में इतना बड़ा पोर्टफोलियों वाला अफसर शायद ही किसी राज्य में होगा। क्योंकि, सिकरेट्री टू सीएम की पोस्टिंग अपने आप में काफी होती है। उपर से बिजली सिकरेट्री और चेयरमैन का की पोस्टिंग अजय सिंह को छोड़ किसी को नहीं मिली। एक समय एक्स चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह चेयरमैन थे तो बैजेंद्र सिकरेट्री इनर्जी। सिकरेट्री फायनेंस होने का मतलब है सारे विभागों का कंट्रोल। अंकित लो प्रोफाइल में रहकर काम करने वाले आईएएस माने जाते हैं...सिर्फ काम से मतलब रखने वाले।

कलेक्टरों का एक आदेश और

सरकार ने 26 आईएएफस अफसरों को नई पोस्टिंग जारी की। इनमें छह जिलों के कलेक्टर भी शामिल थे, जिन्हें बदला गया। मगर ये संख्या काफी कम है। वास्तव में डेढ़ दर्जन से अधिक कलेक्टरों को बदला जाना है। आमतौर पर जून में कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट निकलती है। इस सरकार में चारों साल जून में ही दो दर्जन से अधिक कलेक्टरों के तबादले हुए। जून के चक्कर में ही इस बार सिर्फ छह कलेक्टरों को बदला गया। बड़े जिलों के कलेक्टरों को जून के फेर में मोहलत मिल गई।

बैच नंबर-वन

कलेक्टरी में अभी 2011 बैच टॉप पर चल रहा है। इस बैच के सर्वाधिक सात आईएएस कलेक्टर हैं। रेगुलर रिक्रूट्ड याने आरआर में छह में से पांच कलेक्टर हैं तो प्रमोटी के चार में से दो। आरआर में इस बैच के डॉ. सर्वेश भूरे रायपुर, नीलेश श्रीरसागर महासमुंद, चंदन कुमार बलौदा बाजार, दीपक सोनी कोंडागांव और संजीव झा कोरबा। प्रमोटी में जन्मजय मोहबे कवर्धा और रिमुजियस एक्का बलरामपुर। आरआर में पांच में से चार आईएएस तीन-तीन जिला कर चुके हैं तो चंदन कुमार बलौदा बाजार में चौथा जिला कर रहे हैं। पिछले हफ्ते फेरबदल में उनका जगदलपुर से बलौदा बाजार हुआ है। 2011 बैच के छह में से सिर्फ विलास भोस्कर कलेक्टरी से बाहर हैं। बावजूद इसके, किसी एक बैच के, एक समय में कभी भी इतने कलेक्टर नहीं रहे। याने कलेक्टरी में इसे लकी बैच कहा जा सकता है।

जीएडी की चूक?

2007 बैच के सचिव स्तर के आईएएस कैसर हक को राज्य निर्वाचन आयोग में सिकरेट्री बनाया गया है। अभी तक इस पद पर किसी डायरेक्ट आईएएस को नहीं बिठाया गया। वो भी सिकरेट्री लेवल के। प्रमोटी आईएएस रिमुजियस एक्का को इस पद से कलेक्टर बनाकर बलरामपुर भेजा गया है। इससे समझा जा सकता है कि कैसी पोस्ट है ये। हालांकि, कैसर को सिकरेट्री मेडिकल एजुकेशन का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है मगर राज्य निर्वाचन वाली पोस्टिंग खटकने वाली है। वो भी तब, जब कैसर की छबि ठीकठाक अफसर की है...जीएडी से कहीं चूक तो नही हो गई। लिस्ट में नम्रता गांधी को डायरेक्टर पेंशन, चिकित्सा शिक्षा आयुक्त से हटाकर सिर्फ आयुष जैसे महत्वहीन पद दिया गया है। इसके पीछे उनका किसी डॉक्टर से विवाद होना बताया जा रहा। डॉक्टर लॉबी उनके खिलाफ लामबंद हो गई थी। रजत बंसल बलौदा बाजार से हटे नहीं, बल्कि स्वेच्छा से हटे हैं। उनके फादर इन लॉ चीफ इलेक्शन कमिश्नर हैं। चुनाव के दौरान कोई असहज स्थिति न पैदा हो, इस कारण उन्होंने पोस्टिंग चेंज का खुद आग्रह किया था। इस लिस्ट से एलायड सर्विस से आईएएस का कलेक्टर बनने का रास्ता खुल गया है। सरकार ने गोपाल वर्मा को खैरागढ़ का कलेक्टर बनाया है। आलोक अवस्थी के बाद छत्तीसगढ़ में एलायड कोटे से आईएएस बने किसी को भी कलेक्टर बनने का अवसर नहीं मिला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएएस के आगामी फेरबदल में एक कलेक्टर के सीएम सचिवालय में पोस्टिंग की चर्चा है, कौन हैं वो स्मार्ट कलेक्टर?

2. चार साल मलाईदार पदों पर रहने वाले नौकरशाह अब इस कोशिश में क्यों हैं कि उन्हें कोई गुमनामी वाली पोस्टिंग मिल जाए?


रविवार, 23 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: नए पीसीसीएफ कौन?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 23 अप्रैल 2023

नए पीसीसीएफ कौन?

रेरा चेयरमैन अप्वाइंट होने के बाद हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स संजय शुक्ला ने वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया है। खबर है, 28 अप्रैल तक वे वन विभाग के प्रमुख रहेंगे। 29 और 30 को शनिवार, रविवार की छुट्टी है। वे एक मई को रेरा चेयरमैन का पदभार ग्रहण करेंगे। इससे पहले सरकार को नए पीसीसीएफ की नियुक्ति करनी होगी। नए पीसीसीएफ के लिए जिस तरह की जानकारी भीतरखाने से निकल कर आ रही है, अचानक कोई अवरोध नहीं आया तो कैम्पा प्रमुख श्रीनिवास राव की ताजपोशी निश्चित समझी जा रही है। हालांकि इसके लिए सात आईएफएस की सीनियरटी को ओवरलुक करना होगा। संजय शुक्ला के बाद दूसरे नंबर पर अतुल शुक्ला हैं। वे इसी साल अगस्त में रिटायर हो जाएंगे। आशीष भट्ट का नंबर उनसे पहले जून में आ जाएगा। याने दो माइनस हो गए। बचे सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू। श्रीनिवास को वन बल प्रमुख बनाने के लिए इन सभी को सुपरसीड करना होगा। सरकार के भीतर इस फार्मूले पर विचार चल रहा कि वाइल्डलाइफ और वन विकास निगम में सुधीर और तपेश को, संजय ओझा को वर्किंग प्लान तथा अनिल राय को लघु वनोपज संघ की जिम्मेदारी दी जाए। अनिल साहू पीसीसीएफ प्रमोट कर पर्यटन बोर्ड में ही कंटीन्यू किए जा सकते हैं। अब बिल्कुल ऐसा ही होगा, गारंटेड कुछ नहीं। क्योंकि, सरकार अपने हिसाब से फैसले लेती है। ये जरूर है कि सत्ता के गलियारों में चर्चाएं कुछ इसी तरह की है।

रेरा का पेड़ा

रेरा चेयरमैन के लिए सरकार के पास 10 आवेदन आए थे। मगर तीन सदस्यीय चयन कमेटी ने पीसीसीएफ संजय शुक्ला के नाम पर मुहर लगा दी। हाई कोर्ट के जस्टिस संजय के. अग्रवाल की अध्यक्षता में गठित चयन कमेटी में प्रदेश के आवास और पर्यावरण सचिव तथा विधि सचिव मेंबर थे। आवेदन करने वालों में रिटायर आईएएस केडीपी राव, रिटायर आईएफएस पीवी नरसिम्हा राव, पीसीसीएफ संजय शुक्ला, रिटायर आईएफएस पीसी पांडेय रायपुर, अशोक लूनिया न्यायिक सेवा रायपुर, नरेंद्र सिंह चावला उच्च न्यायिक सेवा रायपुर, प्रिया अग्रवाल रायपुर, मनोज सिंह रायपुर, एम लक्ष्मण मित्तल चंडीगढ़ और देव नारायण दत्ता बिलासपुर शामिल थे। यानी पांच साल की इस पोस्ट रिटायरमेंट कुर्सी के लिए कुल 10 अप्लीकेंट थे। इनमें से नौ लोग रेरा का पेड़ा हासिल करने से वंचित हो गए। बता दें, रेरा का गठन 2017 में हुआ था। विवेक ढांड उसके फर्स्ट चेयरमैन बने थे। ढांड और संजय शुक्ला में समानता ये है कि ढांड ने वीआरएस लेकर इस पोस्ट को होल्ड किया तो संजय शुक्ला भी वीआरएस लेने जा रहे हैं। दोनों के संबंध भी करीबी वाले हैं।

कलेक्टर, एसपी की लिस्ट

कलेक्टर, एसपी की मोस्ट अवेटेड लिस्ट को लेकर अफसरों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। कल देर रात आदेश निकलने की इस कदर चर्चा थी कि अफसर और मीडिया वाले रात दो बजे तक व्हाट्सएप पर नजर गड़ाए रहे...पता नहीं कब लिस्ट आ जाए। ब्यूरोक्रेसी में पिछले एक हफ्ते से अटकलें इस बात की चल रही कि कौन किस जिले में जा रहा और किसकी छुट्टी हो रही है....फलां महिला आईपीएस दुर्ग की कप्तान बन सकती हैं तो फलां आईएएस सीएम सचिवालय में जा रहे हैं। सीएम सचिवालय के एक आईएएस का डेपुटेशन पर जाना तय हो गया है, उनके विभाग भारतीदासन को दिए जाएंगे या किसी और को, ये भी चर्चा में है।

पोस्टिंग

रिटायर आईएएस ठाकुर राम सिंह का राज्य निर्वाचन कमिश्नर का कार्यकाल पिछले साल मई में खत्म हो गया था। सरकार ने पहले छह महीने के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया फिर बाद में एक साल कर दिया। अगले महीने उनका एक्सटेंशन भी खतम होने जा रहा है। इस संवैधानिक कुर्सी के लिए शुरू से रिटायर आईएएस डीडी सिंह के नाम की चर्चा रही। बाद में उन्हें संविदा में सिकरेट्री टू सीएम बना दिया गया। मगर राम सिंह का कार्यकाल समाप्त होने का टाईम जैसे-जैसे नजदीक आ रहा, डीडी सिंह को निर्वाचन आयुक्त बनाने की अटकलें जोर पकड़ने लगी हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री सचिवालय ये एक साथ दो-दो सचिवों का निकलना जरा मुश्किल जाएगा। फिर भी दो बड़े जिलों के कलेक्टरों का सीएम सचिवालय में जाने की चर्चा चल रही है, वे नाम ठीकठाक हैं। एक तो आईआईटीयन हैं।

महिला कलेक्टर

राज्य बनने के बाद पहला मौका होगा, जब एक साथ छह महिला कलेक्टर जिला संभाल रही हैं। इससे पहले एक टाईम में दो-एक महिलाएं कलेक्टर होती थीं। एक बार कुछ महीने के लिए ये संख्या तीन हुई थीं। मगर सरकार ने महिलाओं को अच्छा मौका दिया है। इस समय कांकेर में डॉ. प्रियंका शुक्ला, सूरजपुर में इफ्फत आरा, जीपीएम में प्रियंका मोहबिया, सक्ती में नुपूर राशि पन्ना, जांजगीर में ऋचा प्रकाश चौधरी और सारंगढ़ में फरिया आलम सिद्दकी कलेक्टर हैं। खबर है, महिला कलेक्टरों की अत्यधिक संख्या को देखते सरकार इस पर कुछ विचार कर रही है। वैसे भी चुनावी साल है...कई तरह के समीकरणों को सरकार को ध्यान में रखना पड़ता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एक रिटायर महिला आईएएस को कुनकुरी विधानसभा से कांग्रेस पार्टी की टिकिट मिलेगी?

2. कांग्रेस के सर्वे के बाद कितने विधायकों पर टिकिट का खतरा मंडरा रहा है?


शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट में 16 महीने

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 16 अप्रैल 2023

डीजीपी के 16 महीने

डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। नए पुलिस प्रमुख की अटकलें तक। वायरल खबरों के अनुसार ढाई महीने बाद जून में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे। मगर ऐसे लोगों को शायद पता नहीं कि जुनेजा के रिटायरमेंट में अभी 16 महीने बचे हैं। अगले साल पांच अगस्त को वे सेवानिवृत होंगे। हालांकि, इस साल जून में वे 60 बरस के हो जाएंगे। ऑल इंडिया सर्विसेज में 60 साल में रिटायरमेंट है। मगर सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के अनुसार डीजीपी की पोस्टिंग दो साल के लिए होती है। जाहिर है, राज्य सरकार ने 11 नवंबर 2021 को डीएम अवस्थी को हटाकर जुनेजा को प्रभारी डीजीपी बनाया था। वे 11 नवंबर को ही अगर पूर्णकालिक डीजीपी बन गए होते तब भी दो साल के नियम के अनुसार इस साल 11 नवंबर को रिटायर होते। लेकिन जुनेजा डीएम अवस्थी की तरह पोस्टिंग के मामले में किस्मती हैं। लोग उनके प्रभारी पोस्टिंग पर तंज कसते रहे। और उन्हें 10 महीने का बोनस मिल गया। दरअसल, यूपीएससी से डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल लेट में आया। इस वजह से राज्य सरकार ने पांच अगस्त 2022 को पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकाला। गृह विभाग के आदेश में स्पष्ट तौर पर लिखा है....पुलिस बल प्रमुख का पदभार ग्रहण करने के डेट से दो साल अथवा कोई अन्य आदेश तक वे डीजीपी रहेंगे। याने जुनेजा को प्रभारी डीजीपी के तौर पर 10 महीने काम करने का मौका मिल गया और उसके बाद दो साल पूर्णकालिक तौर पर। वे न केवल इस साल विधानसभा चुनाव कराएंगे बल्कि अगले साल लोकसभा का चुनाव भी। अलबत्ता, आदेश में दो साल अथवा कोई अन्य आदेश लिखा है। अन्य आदेश का मतलब है कि सरकार कहीं किसी वजह से हटा दें। तो ऐसी कोई परिस्थिति फिलहाल दिखाई नहीं पड़ रही।

एसपी की लिस्ट

एसपी की ट्रांसफर लिस्ट लगभग तैयार बताई जा रही है। पेंच सिर्फ रायपुर को लेकर फंसा है। दरअसल, विधानसभा के बजट सत्र के तुरंत बाद ही तबादले होने थे। लिस्ट भी ज्यादा लंबी नहीं थी। जिन पुलिस अधीक्षकों को जिले में डेढ़ से दो साल हो रहे हैं, उन्हें बदला जाना है। मगर रायपुर किसे लाया जाए, ये बड़ा सवाल बन गया है। रायपुर में प्रशांत अग्रवाल एसपी हैं। उलझन यह है कि प्रशांत को किस जिले में भेजा जाए और उनकी जगह राजधानी की कमान किसे सौंपी जाए। पारूल माथुर का नाम रायपुर के लिए पहले चला था। उस समय फार्मूला यह था कि पारुल को रायपुर लाकर प्रशांत को दूसरी बार बिलासपुर का दायित्व दिया जाएगा। लेकिन, बिलासपुर में बढ़ते अपराधों की वजह से पारूल को वहां से हटाकर एसीबी भेज दिया गया। तब भी खबरें यही थी कि कुछ दिन बाद उन्हें रायपुर का कप्तान बनाया जाएगा। लेकिन, पारुल खुद ही हिट विकेट होकर सरगुजा चली गईं। रायपुर के लिए किसी प्रमोटी आईपीएस के नाम भी विचार किया जा रहा है। हालांकि, जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा भी हो सकता है विकल्प के अभाव में प्रशांत ही कंटीन्यू करें।

आईएएस के बुरे दिन

2003 बैच के प्रमोटी आईएएस गोविंद चुरेंद्र कभी रायपुर, बस्तर और सरगुजा के डिविजनल कमिश्नर रहे। मगर सरगुजा में उन्होंने ऐसा कुछ कर डाला कि उनकी गर्दिशों के दिन शुरू हो गए। सरकार ने उन्हें हटाकर बिलासपुर कमिश्नर डॉ0 संजय अलंग को सरगुजा डिविजन का एडिशनल चार्ज दे दिया। चुरेंद्र को नॉन कैडर पोस्ट पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में सचिव बनाया गया और अब राज्य सूचना आयोग के सचिव। इस आयोग में उपेक्षित केटेगरी के डिप्टी कलेक्टर पोस्ट होते रहे हैं। उस पद पर 2003 बैच के आईएएस। जाहिर सी बात है कि 2003 बैच पांच साल पहले सिकरेट्री बन चुका है। अब तो 2007 बैच भी सिकरेट्री प्रमोट हो गया है। मगर चुरेंद्र को अभी तक सचिव पद पर प्रमोशन नहीं मिला। एक पुरानी विभागीय जांच लंबित होने की वजह से उनका प्रमोशन रूक गया।

हार्ड लक!

2011 बैच के आईपीएस अधिकारी इंदिरा कल्याण ऐलेसेला तीन जिलों के एसपी रहे हैं और तीनों बार उनका हार्ड लक रहा। पहली बार रमन सरकार ने उन्हें सुकमा का पुलिस अधीक्षक बनाया था। मगर बस्तर में एक ऑटोमोबाइल शोरूम के उद्घाटन में उनकी जुबां फिसल गई थी। भाषण में उन्होंने कह डाला...बस्तर में माओवादियों को सपोर्ट कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गाड़ी से कुचल देना चाहिए। जाहिर है, इस पर बवाल मचना ही था। तब विस सत्र चल रहा था। रमन सिंह ने विधानसभा के अपने आफिस से कल्याण को हटाने का आदेश जारी किया था। इसके बाद भूपेश सरकार ने उन्हें बलौदा बाजार का एसपी अपाइंट किया। वहां उन्हें एक सिपाही ने ट्रेप कर लिया। क्वार्टर अलॉटमेंट के सिलसिले में सिपाही को एसपी ने कुछ अपशब्द कह दिए थे और सिपाही ने उसे रिकार्ड कर वायरल कर दिया। ऑडिया वायरल होने के बाद सरकार ने उन्हें हटा दिया। तीसरी बार उन्हें बेमेतरा जिले के एसपी बनाया गया। बेमेतरा में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। इसमें तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसमें भी उनका हटना तय माना जा रहा है। क्योंकि, इस तरह की हिंसा के बाद सरकारें अधिकारियों को बदलती हैं।

व्हाट एन आइडिया!

रायपुर के टपरी वाले होटलों में भी 25 रुपए प्लेट से नीचे समोसे नहीं मिलते। और 10 रुपए से नीचे एक कप चाय नहीं। मगर 10 रुपए में भरपेट थाली मिल जाए, तो क्या कहेंगे। इसे चरितार्थ किया है, बिलासपुर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने। वो भी बिना अपना एक पैसा लगाए। स्वाभिमान थाली नाम की यह योजना सिर्फ स्टूडेंट्स के लिए है। कंसेप्ट यह है कि पांच-छह घंटे यूनिवर्सिटी में रहेंगे तो भूख लगेंगी। और भूखे पेट पढ़़ाई कैसे होगी? कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल ने इसके लिए अच्छा आईडिया निकाला। दरअसल, विवि के पास छात्रों को सस्ता भोजन कराने का कोई फंड नहीं होता। जेएनयू जैसे देश के शीर्ष विवि को सब्सिडी मिलती है फिर भी वहां इतना सस्ता भोजन नहीं मिलता। जेएनयू के कैंटीनों में भी एक बार के सामान्य भोजन में 40 से 50 रुपए जेब से निकल जाते हैं। प्रो0 चक्रवाल ने विवि के शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बच्चों के भोजन के लिए स्वेच्छा से अंशदान करें। और देखते-देखते 60 लाख रुपए जमा हो गए। अब तो आउटर लोग भी दान के लिए विवि से संपर्क कर रहे हैं। अर्थशास्त्री कुलपति का है यह आइडिया है। बाकी शैक्षणिक संस्थान के प्रमुखों को भी इस तरह बिना खर्चे वाली अनुकरणीय योजनाएं चलानी चाहिए। क्योंकि, सरकारी संस्थानों में धनाढ्य नहीं बल्कि हर वर्ग के बच्चे बढ़ते हैं।

33 जिले, 77 दावेदार

छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़ गई है तो आईएएस की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। इस समय कलेक्टर बनने की केटेगरी में 77 आईएएस हैं। 2008 बैच कलेक्टर के लिए लगभग क्लोज हो चुका है। 2009 बैच से सौरव कुमार और प्रियंका शुक्ला कलेक्टर हैं। 2016 बैच को कलेक्टर बनने का मौका मिल चुका है। 2017 बैच वेटिंग में है। 2009 से 2017 के बीच कैलकुलेट किया जाए, तो 77 आईएएस होते हैं। इन 77 में से ही इस समय 33 जिलों के कलेक्टर हैं। याने ये 33 आईएएस अपनी कलेक्टरी बचाने की दौड़ में हैं ही, बचे 44 आईएएस कलेक्टर बनने की दौड़ में हैं। बता दें, 2010 बैच के कभी चारों आईएएस कलेक्टर होते थे। इस समय सभी रायपुर वापिस लौट चुके हैं। इस बैच के दो-एक आईएएस कलेक्टर की दौड़ में शामिल हैं, तो प्रमोटी आईएएस में भी कई अधिकारी लंबे समय से वेटिंग में हैं। इनमें एडीएम के तौर पर रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव और कोरबा जैसे जिलों को संभालने वाले संजय अग्रवाल जैसे मैच्योर अफसर भी शामिल हैं। 2017 बैच के आईएएस की प्रतीक्षा अब लंबी होती जा रही है। दूसरा, चुनावी साल है...सरकार सोच-समझकर जिलों में कलेक्टरों को बिठाती है। ऐसे में, पोस्टिंग लिस्ट फायनल होना आसान नहीं है। उपर से तब, जब बेमेतरा जैसी घटना हो गई है, तो सरकार पदुम सिंह एलमा जैसों को कलेक्टरी से उपकृत करने से बचेगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक जिले का नाम बताइये, जहां के कलेक्टर, एसपी में समन्वय की स्थिति यह है कि दोनों आपस में बात नहीं करते?

2. क्या किसी प्रमोटी कलेक्टर को सरगुजा का संभागीय आयुक्त बनाया जाएगा या संजय अलंग अभी कंटीन्यू करेंगे?


शनिवार, 8 अप्रैल 2023

Chhattisgarh: तरकश-विरासत का सम्मान!

 संजय के. दीक्षित

Chhattisgarh: तरकश, 9 अप्रैल 2023

विरासत का सम्मान!

इस हफ्ते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरगुजा के दौरे पर थे। चूकि, मंत्री टीएस सिंहदेव दिल्ली में थे, सो उनके भतीजे और जिला पंचायत के उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को मंच पर बिठाया गया। सीएम के संबोधन के दौरान जब आदित्येश्वर का नाम आया, तो पूरा नाम पढ़ते हुए उन्होंने चुटकी ली...नाम बहुत बड़ा है...आदि बाबा ही ठीक है। सीएम ने आदि को अपनी बगल की कुर्सी पर बिठाकर पांच मिनट बात की। बात क्या हुई...ये किसी को नहीं पता। जाहिर है, आदित्येश्वर को मंत्री सिंहदेव का सियासी वारिस माना जाता है... सरगुजा में मंत्री सिंहदेव के राजनीतिक काम आदि संभालते हैं।

पीसीसीएफ की डीपीसी

तीन आईएफएस अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने के लिए डीपीसी ने हरी झंडी दे दी है। मंत्रालय में इसके लिए 5 अप्रैल को डीपीसी बैठी थी। जिन अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने हरी झंडी मिली है, उनमें तपेश झा, संजय ओझा और अनिल राय का नाम शामिल है। डीपीसी के बाद तीनों आईएफएस अधिकारियों के नाम वन मंत्री मोहम्मद अकबर के पास अनुमोदन के लिए भेज दिए गए हैं। वन मंत्री के बाद फाइल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास फायनल एप्रूवल के लिए जाएगी। मुख्यमंत्री से ओके होने के बाद फिर प्रमोशन का आदेश निकल जाएगा। प्रमोशन के बाद रेगुलर पीसीसीएफ संजय शुक्ला को मिलाकर पीसीसीएफ की संख्या सात हो जाएंगी। संजय शुक्ला, अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल और आशीष भट्ट पहले से पीसीसीएफ हैं।

अगला पीसीसीएफ कौन?

पीसीसीएफ संजय शुक्ला अगले महीने 31 मई को रिटायर होने के बाद रेरा चेयरमैन की कमान संभालेंगे, ये लगभग तय प्रतीत हो रहा है। मगर उनकी जगह अगला पीसीसीएफ कौन बनेगा, ये अभी क्लियर नहीं। संजय के बाद सीनियरिटी में पहला नाम सुधीर अग्रवाल का है। सुधीर इस समय पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ हैं। पीसीसीएफ के प्रबल दावेदारों में एक नाम श्रीनिवास राव का भी है। श्रीनिवास कैम्पा के हेड हैं। हालांकि, वे अभी पीसीसीएफ प्रमोट नहीं हुए हैं। मगर उन्हें पीसीसीएफ का ग्रेड मिल गया है। सो, जानकारों का कहना है कि तकनीकी तौर पर कोई अड़चन नहीं आएगी। एक प्राब्लम ये आएगा कि श्रीनिवास को पीसीसीएफ बनाने के लिए छह आईएफएस अधिकारियों को ओवरलुक करना होगा। छह में से आशीष भट्ट इसी जून में रिटायर हो जाएंगे। मगर सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू का डेढ़ साल से लेकर दो साल की सर्विस बची हुई है। ये सभी ऑल राउंडर हैं...सरकारें कोई भी हो, पोस्टिंग इन्हें अच्छी मिलती रही हैं। हालांकि, उत्तराखंड में पिछले हफ्ते ही रेगुलर पीसीसीएफ को हटाकर जूनियर को सरकार ने कमान सौंप दी थी। इसे कैट में चैलेंज किया गया। और कैट ने सरकार का फैसला पलट दिया। लब्बोलुआब यह है कि अपवादों को छोड़ दें तो होता वही है, जो सरकारें चाहती हैं। और सरकार की तरफ से कोई संकेत नहीं हैं।

पिकनिक भी रद्द

ईडी की मैराथन कार्रवाइयों से छत्तीसगढ़ की नौकरशाही सहमी हुई है। छापों को देखते आईएएस एसोसियेशन ने पहले आईएएस कांक्लेव स्थगित किया। अब माहौल शांत होता देख आईएएस एसोसियेशन द्वारा कांक्लेव की जगह फेमिली पिकनिक का प्लान किया जा रहा था। इसकी तैयारी भी शुरू हो गई थी। मगर ताबड़तोड़ छापों की वजह से अब पिकनिक कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया है।

बड़ी रजिस्ट्री नहीं

ईडी के छापों का असर अबकी जमीनों की रजिस्ट्री पर भी पड़ा है। रजिस्ट्री आफिस मार्च महीने में गुलजार रहता था...पिछले साल 31 मार्च को रात 12 बजे के बाद तारीख बदल गई मगर लाइन खतम नहीं हुई थी। मगर इस बार न लाइन थी और न रौनक। रजिस्ट्री अधिकारी बड़ी पार्टियों के इंतजार करते बैठे रहे। दरअसल, अधिकांश बड़ी रजिस्ट्री मार्च में होती है। इससे खजाने को अच्छा खासा रेवेन्यू आता है। बड़े सौदे भूमाफियाओं, बिल्डरों और नौकरशाहों के होते थे। मगर इस बार ईडी के छापों की वजह से सिस्टम सहमा हुआ है। ईडी की नजर चूकि रजिस्ट्री आफिस पर भी है। रजिस्ट्री अधिकारियों से लगातार जानकारियां मंगाई जा रही है, इसलिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। हालांकि, रेवेन्यू पिछले साल से इसलिए कम नहीं हुआ क्योंकि 2020 के बाद जमीनों का मार्केट उछाल पर है। मगर ये बात जरूर है कि बड़े सौदे होते तो रेवेन्यू का ग्राफ और उपर जाता।

ताजपोशी

डीएम अवस्थी को 31 मार्च को रिटायर होते ही देर शाम पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें पीएचक्यू में ओएसडी बनाया गया है। खबर है कि ओएसडी उनकी मूल पोस्टिंग रहेगी...ईओडब्लू और एसीबी चीफ का अतिरिक्त दायित्व सौंपा जाएगा। रिटायरमेंट के साथ ही पोस्टिंग पाने वाले डीएम सूबे के तीसरे अफसर बन गए हैं। बीजेपी सरकार में विवेक ढांड को आईएएस से वीआरएस स्वीकृत करते ही रेरा चेयरमैन की कमान सौंप दी गई थी। इसी तरह मुख्य सचिव से रिटायर होने के आधे घंटे के भीतर आरपी मंडल को एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आर्डर निकल गया था। रमन सरकार में अधिकांश नौकरशाहों को रिटायरमेंट के हफ्ते-महीना भर बाद ही पोस्टिंग मिली।

प्रमोशन पर ब्रेक

सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड आईएएस अधिकारी अमित अग्रवाल का प्रमोशन रुक गया है। 93 बैच के आईएएस अमित की 30 साल की सर्विस पूरी हो जाने पर एडिशनल चीफ सिकरेट्री का प्रोफार्मा प्रमोशन मिलना था। बता दें, प्रतिनियुक्ति पर पोस्टेड अफसरों को प्रोफार्मा प्रमोशन दिया जाता है। प्रोफार्मा प्रमोशन में पद तो वहां के हिसाब से मिलता है मगर वेतनमान का लाभ मिलने लगता है। 2007 बैच के आईएएस अधिकारियों को सिकरेट्री प्रमोट करने डीओपीटी को फाइल भेजी गई, उसमें अमित अग्रवाल का नाम नहीं था। डीओपीटी से उसके लिए क्वेरी आ गई। ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि डीओपीटी की क्वेरी में अमित अग्रवाल की भूमिका थी। फायनली यह हुआ कि अमित प्रोफार्मा प्रमोशन से वंचित रह गए। अमित का हार्ड लक यह कि उनके बैच का यहां कोई दूसरा आईएएस नहीं है। दूसरे अधिकारियों के प्रमोशन से डेपुटेशन वाले अफसरों को फायदा मिल जाता है। अमित काबिल आईएएस हैं। कलेक्टरी तो महासमुंद जैसे एकाध जिले की किए हैं लेकिन, टेक्नोक्रेट हैं। आईटी में भी पकड़ है। चिप्स के फर्स्ट सीईओ अमित रहे। दिल्ली में मनमोहन सरकार हो या मोदी सरकार...उन्हें लगातार अच्छी पोस्टिंग मिली। रमन सरकार की तीसरी पारी वे छत्तीसगढ़ लौटे थे। लेकिन, उनका मन यहां रमा नहीं। साल भर में वापिस दिल्ली लौट गए। 23 साल में जोगी सरकार के तीन साल और रमन सरकार के समय एक साल...याने चारेक साल ही अमित छत्तीसगढ़ में रह पाए हैं। पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति से लौटने वालों के लिए नियम बनाया था कि उन्हेंं तुरंत पोस्टिंग नहीं दी जाएगी। अमिताभ जैन के साथ अमित अग्रवाल भी दो-एक महीने खाली बैठे रहे। कुल मिलाकर जोगी सरकार के बाद अमित के लिए छत्तीसगढ़ अनुकूल नहीं रहा।

गणेश शंकर की याद

बात प्रमोशन की...तो 1994 बैच के आईएएस भी रिटायर आईएएस अधिकारी गणेश शंकर मिश्रा को मिस कर रहे होंगे। गणेश शंकर के चलते डेढ़-पौने दो साल पहले उनका सचिव से प्रमुख सचिव प्रमोशन मिल गया था। वे प्रमुख सचिव बने और उसी शाम को रिटायर हो गए थे। उनके होने का फायदा बाकी अधिकारियों को मिला। बहरहाल, 1994 बैच को एसीएस बनने में आठ महीने का वक्त बच गया है। इससे पहले 91 और 92 बैच को एक से डेढ़ साल पहले एसीएस का प्रमोशन मिल गया था। लेकिन, 94 बैच में कोई झंडा उठाने वाला अफसर नहीं है। मनोज पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट जरूर हैं। मगर जोड़-तोड़ वाला स्वभाव उनका नहीं है। उनके बैच की ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। अब देखना है, इस बैच का प्रमोशन टाईम पर मिलेगा या उससे पहले?

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के एक मंत्रीजी का नाम बताइये, जो कोई भी प्रदेश प्रभारी बने, उनके खास हो जाते हैं?

2. हाई प्रोफाइल रहने वाले डीएमएफ जिले के कई कलेक्टर इन दिनों खुद को बेहद लो प्रोफाइल में क्यों कर लिए हैं?


शनिवार, 1 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: आईपीएस की रिकार्ड पारी

 संजय के. दीक्षित

Chhattisgarh Tarkash: 

आईपीएस की रिकार्ड पारी

किसी भी राज्य के आईपीएस कैडर में अफसरों की संख्या तो बड़ी होती हैं मगर उनमें चर्चित चेहरे गिने-चुने ही होते हैं। छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर में ऐसा ही एक नाम दुर्गेश माधव अवस्थी याने डीएम अवस्थी का था। डीएम कल 31 मार्च को 37 साल की इनिंग खेलकर रिटायर हो गए। बता दें, छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी आईपीएस ने इतनी लंबी सर्विस नहीं की है। देश में भी अब तक सिर्फ 14 आईपीएस ही ऐसे रहे, जिनकी 37 बरस की सर्विस रही। छत्तीसगढ़ में आईएएस की बात करें तो, 92 बैच के आईएएस सुब्रत साहू 2028 में रिटायर होंगे। उनका सर्विस 36 होगी। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन भी आईएएस में जल्दी सलेक्ट हो गए थे। 89 बैच के अमिताभ 2025 में रिटायर होंगे। याने 36 साल। 72 बैच के बीकेएस रे भी 36 साल की सर्विस कर 2008 में रिटायर हुए। 83 बैच के अजय सिंह एकमात्र आईएएस हैं, जो 37 साल की सेवा के बाद 2020 में रिटायर हुए। बहरहाल, 1986 बैच के कानपुर के इस ब्राम्हण अफसर डीएम अवस्थी की किस्मत भी गजब की रही। दिसंबर 2018 में जब सत्ता बदली तो नए डीजीपी के लिए सरकार के फर्स्ट च्वाइस गिरधारी नायक थे। मगर सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन आड़े आ गया कि रिटायरमेंट में जिसका छह महीने से कम बचा हो, वह पुलिस का प्रमुख नहीं बन सकता। नायक का पांच महीने बचा था रिटायरमेंट में। ऐसे में सीनियरिटी में सिर्फ डीएम का नाम बचता था। डीएम की पुलिस प्रमुख के तौर पर जैसे ही ताजपोशी हुई, उसके महीने भर के भीतर सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने वाला गाइडलाइन हटा दिया। याने एक महीने पहले अगर वह गाइडलाइन चेंज हो गया होता तो डीएम की जगह नायक डीजीपी होते। यही नहीं, तमाम इधर-उधर की बातों के बावजूद वे तीन साल तक डीजीपी बने रहे। 2021 के लास्ट में सरकार ने डीजीपी से हटाकर पुलिस एकेडमी में डायरेक्टर बनाया तब लगा कि एकेडमी से ही डीएम रिटायर हो जाएंगे। मगर उनकी किस्मत ने उनको भी चौंका दिया। सरकार ने रिटायरमेंट के चार महीने पहले ईओडब्लू और एसीबी की कमान सौंपकर प्रतिष्ठापूर्ण बिदाई का इंतजाम कर दिया।

संविदा पोस्टिंग

बड़े पद से कोई भी अफसर रिटायर होता है तो ब्यूरोक्रेसी में उसकी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की चर्चा ट्रेंड करने लगती हैं। डीएम अवस्थी के रिटायर होने से पखवाड़े भर पहले से उनकी पोस्टिंग की अटकलें शुरू हो गई थीं। हालांकि, वास्तविकता यह भी है कि पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग में आईपीएस का नंबर कम लगता है। इस समय सिर्फ गिरधारी नायक मानवाधिकार आयोग में हैं। चीफ सिकरेट्री में तो अमूमन सबको रिटायर होने के बाद पोस्टिंग मिल जाती है। आरपी मंडल, सुनील कुजूर, अजय सिंह, विवेक ढांड, सुनिल कुमार, शिवराज सिंह, एसके मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग मिली। सिर्फ पी जॉय उम्मेन और आरपी बगाई का हार्ड लक रहा। इन दोनों मुख्य सचिवों से रमन सरकार काफी नाराज हो गई थी। डीजीपी की बात करें तो आरएलएस यादव को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अपना सलाहकार बनाया था। इसके बाद रमन सिंह ने अशोक दरबारी को डीजीपी से हटाकर पीएससी का चेयरमैन बनाया। उनके बाद सिर्फ डीजीपी अनिल नवानी को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली। वो भी अल्पज्ञात पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में बतौर मेम्बर। ऐसे में, डीएम अवस्थी के बारे में लोगों की उत्सुकता लाजिमी है।

शक्तिमान डीएफओ

वन विभाग ने पांच करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी करने वाले डीएफओ के खिलाफ जांच बिठाई थी। डीएफओ पर आरोप था कि फर्जी वन समिति बनाकर उन्होंने बड़ी रकम का वारा-न्यारा कर दिया। वन मुख्यालय ने इस प्रभावशाली डीएफओ के खिलाफ बड़ी हिम्मत दिखाई...सीसीएफ की कमेटी ने मामले की जांच की। जांच रिपोर्ट में डीएफओ, एसीएफ, रेंजर समेत सात दोषी पाए गए। रिपोर्ट मिलने पर वन मुख्यालय ने कार्रवाई करने में देर नहीं लगाई। पीसीसीएफ ने रेंजर को सस्पेंड कर दिया। चूकि, अधिकारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार वन मुख्यालय को नहीं है। सो, फाइल उपर भेजी गई, वो उपर में ही अटक गई है। वन विभाग में इस शक्तिमान डीएफओ की शक्ति की बड़ी चर्चा है।

दो सीएम, ओपिनियन एक

पिछली सरकार के मुखिया डॉ0 रमन सिंह वन विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों पर एकाधिक बार तंज कस चुके थे कि हर साल करोड़ों पौधे लगाए जाते हैं...पौधों को जमीन खा जाती है या अफसर। इस सरकार में सीएम भूपेश बघेल भी पिछले साल रिव्यू मीटिंग में इस पर नाराज हुए थे कि अभी तक कागजों में जितने पौधे लगाए गए हैं, पूरा छत्तीसगढ़ जंगलों से पट गया होता...उल्टे वनों का रकबा घटता जा रहा है। ऐसे में लगता है, अफसरों की नाकामियों को देखते ही सरकार ने किसान वन संपदा योजना प्रारंभ किया है। इसमें किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा कि पौधे लगाएं, सरकार उन्हें मदद करेगी। वाकई, वन विभाग के लिए यह शर्मनाक है। राज्य बनने के बाद 23 साल में कई सौ करोड़ पौघारोपण पर फूंक दिए गए। मगर रिजल्ट...? इतना भारी-भरकम विभाग...जिसमें सौ से अधिक आईएफएस अधिकारी...हजारों का मैदानी अमला और जंगलों की ये दुर्गति। दरअसल, वन विभाग का उद्देश्य अब जंगलों को बचाना नहीं रहा। प्रायरिटी क्लियर है। डिवीजनों को किसी तरह अधिक-से-अधिक बजट अलाट हो जाए। फिर कागजों में काम कर पैसा डकारने का खेल।

तरकश का अंदेशा

आईएएस कुणाल दुदावत ने जब बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर का पदभार संभाला था, तब तरकश स्तंभ में हमने अंदेशा व्यक्त किया था कि पिछले दो कुंआरे कमिश्नर की बिलासपुर में पोस्टिंग के दौरान शादी हुई थी, सो कुणाल के साथ ये संयोग दुहरा सकता है। और ऐसा ही हुआ। खबर है, कुणाल की शादी तय हो गई है। अगले महीने वे सात फेरे लेंगे। उनसे पहिले डॉ0 एसके राजू और अवनीश शरण की शादी नगर निगम कमिश्नर रहते हुई थी। राजू बाद में कैडर चेंज कराकर पंजाब चले गए। बहरहाल बता दें, कुणाल 2017 बैच के आईएएस हैं। यह कलेक्टर का वेटिंग बैच है। अब सरकार पर निर्भर करेगा कि उनकी बारात म्यूनिसिपल कमिश्नर के रूप में निकलती है या कलेक्टर के रूप में। जाहिर है, कलेक्टर की बारात की बात ही कुछ और होती है। छत्तीसगढ़ में अभी सिर्फ ओपी चौधरी को यह मौका मिला है।

कलेक्टरों की चुनौती

अप्रैल महीना कलेक्टरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहेगा। आज से आर्थिक-सामाजिक सर्वे प्रारंभ हो गया है...इसे इसी महीने कंप्लीट करना है। बेरोजगारी भत्ता की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। राजीव गांधी भूमिहीन न्याय योजना को शहरों में लागू करने आज से आवेदन भी लेना है। एक तो अप्रैल में छुट्टियां-ही-छुट्टियां हैं। गरमी भी बढ़ रही है। उपर से प्रमुख सचिव डॉ0 आलोक शुक्ला का डीओ लेटर। जांजगीर दौरे से लौटने के बाद स्कूलों की स्थिति पर वे जमकर बिफरे। कलेक्टरों के व्हाट्सएप ग्रुप में सबकी क्लास ली। बड़े मियां तो बड़े मियां....आर्थिक सामाजिक सर्वेक्षण के प्रभारी गौरव सिंह भी कलेक्टरों को लगातार निर्देश भेज रहे हैं। कुल मिलाकर कलेक्टरों का अप्रैल महीने काफी टफ रहने वाला है। दरअसल, कई कलेक्टरों ने डीएमएफ के पैसे को दोनों हाथों से बटोरने के अलावा और कुछ किया नहीं। ऐसे कलेक्टरों की हालत अब खराब हो रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक जिले के एसपी का नाम बताएं, जो लोकप्रियता में कलेक्टर को काफी पीछे छोड़ दिए हैं?

2. रिटायर आईपीएस के लिए संविदा में ओएसडी का पद क्रियेट हुआ है, वह किसे मिलेगा?