शनिवार, 16 जुलाई 2022

आईपीएस के डोमन सिंह

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 10 जुलाई 2022

मंत्रियों की मुश्किलें

राज्य सरकार ने सभी विभाग प्रमुखों को लेटर भेज तीन साल में हुए ट्रांसफर की जानकारी मांगी है। इस पत्र से हड़कंप मच गया है। दरअसल, ट्रांसफर पर बैन लगा हुआ है। सिर्फ सीएम की अध्यक्षता वाली समन्वय समिति की अनुशंसा से ट्रांसफर हो सकते हैं। मगर कई मंत्रियों ने मनमानी चलाते हुए विभाग प्रमुखों के जरिये बड़ी संख्या में तबादले कर डाले। एक विभाग के बारे में जानकारी आ रही....एक हजार से अधिक ट्रांसफर बिना समन्वय के अनुमोदन के कर डाला। जीएडी के इस पत्र के बाद ऐसे मंत्रियों की बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि, सरकार भले कुछ न करें मगर कोई अगर कोर्ट चल दिया तो क्या होगा।

एसपी की छुट्टी क्यों?

सरकार ने जशपुर एसपी राजेश अग्रवाल को दो महीने में ही हटा दिया। राजेश के हटने का बड़ा कारण उन्हीं के बैचमेट और दोस्त विजय अग्रवाल को माना जा रहा है। दरअसल, जशपुर में विजय ने इतनी बड़ी लकीर खींच दी थी कि राजेश के लिए उससे पार पाना मुमकिन नहीं था। गांजा तस्करों द्वारा साधुओं को कुचलने की बर्बर घटना के अलावा वहां जितने भी न्यूसेंस हुए, विजय ने कुशलतापूर्वक हैंडिल किया। इसका ईनाम भी उन्हें जांजगीर एसपी की पोस्टिंग के रूप में मिला। अब राजेश से भी जशपुर के लोग वही उम्मीद कर बैठे। नहीं पूरा हुआ तो तीनों विधायकों ने चढ़ाई कर दी। वैसे, बता दें राजेश अग्रवाल का पहला जिला रायगढ़ था और वहां भी वे पौने चार महीने में ही खो हो गए थे। ऐसे में, गृह विभाग पर सवाल तो उठते ही हैं। रायगढ़ जैसा जिला डायरेक्ट आईपीएस को भी पहली बार में आज तक नहीं मिला...उसे प्रमोटी को दे दिया। और जब वहां वे अपना विकेट नहीं बचा पाए, तो फिर जषपुर जैसे संवेदनशील जिला उनके सुपूर्द क्यों कर दिया गया?

संतोष का जंप

ब्यूरोक्रेसी में छोटा या बड़ा जिला मैटर नहीं करता, ट्रेक पर बने रहना महत्वपूर्ण माना जाता है। सूबे में कई ऐसे कलेक्टर, एसपी हुए, जो बड़े जिले से छोटे जिले में गए और फिर वहां से जोरदार जंप लगाए। हाल में एसपी के फेरबदल में संतोष सिंह के साथ ऐसा ही हुआ। रायगढ़ जैसे जिले के बाद उन्हें कोरिया भेजा गया तो जाहिर है, उन्हें तकलीफ हुई होगी। मगर उन्हें सब्र का फल मिला। संतोष कोरिया से राजनांदगांव भेजे गए और फिलहाल छत्तीसगढ़ के टॉप के जिला कोरबा की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनसे पहिले जीतेंद्र मीणा कोरबा के बाद बालोद गए और वहां से बड़ा जंप लगाते हुए जगदलपुर के एसएसपी। भोजराम पटेल कांकेर के बाद गरियाबंद और उसके बाद हवाई जहाज के टेकआफ की तरह कोरबा पहुंच गए। लिहाजा, जगदलपुर, रायगढ़, बिलासपुर जैसे जिले की कप्तानी करने के बाद बलौदा बाजार भेजे गए एसएसपी दीपक झा को मायूस नहीं होना चाहिए। बहरहाल, बात संतोष सेषुरू हुई थी तो बता दें वे भी बद्री नारायण मीणा के रिकार्ड की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। बद्री 9 जिले के एसपी रहे हैं। आखिरी जिला उनका दुर्ग था, जिसे आईजी बनने के पहले उन्होंने कंप्लीट किया। पुलिस अधीक्षक के रूप में संतोष का कोरबा सातवां जिला है। नारायणपुर, कोंडागांव, महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, राजनांदगांव और अब कोरबा।

एक और आईएएस!

2008 बैच के आईएएस नीरज बंसोड़ डेपुटेशन पर जा रहे हैं। राज्य सरकार से उन्होंने एनओसी के लिए आग्रह किया था। सरकार ने ओके कर दिया है। एनओसी के बाद भारत सरकार में पोस्टिंग की प्रक्रिया प्रारंभ होगी। बंसोड़ को सीनियरिटी के हिसाब से डायरेक्टर की पोस्टिंग मिलेगी। हालांकि, डायरेक्टर लेवल में अफसर केंद्र में जाना नहीं चाहते। इसकी वजह यह है कि डायरेक्टर रैंक में दिल्ली में सुविधाएं काफी कम है। छत्तीसगढ़ जैसे मलाई भी नहीं। डायरेक्टर लेवल में अमित कटारिया भी दिल्ली गए थे। नीरज फिलवक्त डायरेक्टर हेल्थ हैं। वे करीब दो साल से ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कोविड के दौरान भी नीरज के पास हेल्थ था। नीरज बैलेंस और लो प्रोफाइल में रहने वाले आईएएस अफसर माने जाते हैं। यही वजह है कि उन पर कभी उंगलिया नहीं उठी।

डबल डोमन सिंह

राज्य सरकार ने छह जिलों का एसपी बदल दिया। इसमें प्रफुल्ल ठाकुर का नाम लोगों को चौंकाया। प्रफुल्ल को अभी आईपीएस अवार्ड नहीं हुआ है। और चौथे जिले की कप्तानी मिल गई। वो भी राजनांदगांव जैसे जिले की। लोग इस पर चुटकी ले रहे हैं...उन्हें आईपीएस का डोमन सिंह कहा जा रहा है। आईएएस के डोमन सिंह सांतवे जिले का कलेक्टर बन देश में रिकार्ड बनाया है। डोमन प्रमोटी आईएएस हैं। और देश में किसी प्रमोटी ने चार जिले से अधिक कलेक्टरी नहीं की। डोमन सातवां कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि आईएएस और आईपीएस दोनों के डोमन सिंह राजनांदगांव में।

छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं

मीडिया में आईएएस टॉपर टीना डाबी की कलेक्टर पोस्टिंग की खबरें जमकर वायरल हो रही है। राजस्थान सरकार ने उन्हें जैसलमेर का कलेक्टर बनाया है। टीना 2016 बैच की आईएएस हैं। बता दें, कलेक्टरों की पोस्टिंग की दृष्टि से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं है। टीना के बैच के राहुल देव को मुंगेली का कलेक्टर बनाया गया है। निहितार्थ यह है कि कलेक्टरी में छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं।

राजधानी के बाद न्यायधानी

सौरभ कुमार छत्तीसगढ़ के तीसरे कलेक्टर होंगे, जिन्हें राजधानी के बाद न्यायधानी की कमान मिली है। उनसे पहिले सुबोध सिंह औरसोनमणि बोरा रायपुर के बाद बिलासपुर गए थे। सुबोध सिंह तो रायपुर से बिलासपुर गए और फिर दूसरी बार रायपुर के कलेक्टर बनाए गए। रायपुर में दो बार कलेक्टरी करने का रिकार्ड सुबोध के पास है। हालांकि, सुबोध को रायपुर कलेक्टर बनाने के कुछ महीने बाद सीएम सचिवालय बुला लिया गया था। सुबोध इसके बाद जब तक सरकार रही, रमन सिंह के सचिवालय में एक मजबूत स्तंभ के तौर पर रहे। वैसे, इस बात में आश्चर्य नहीं कि सौरभ कुछ हद तक सुबोध सिंह के ट्रेक को रिपीट करें। जाहिर है, आईटी के जानकार होने की वजह से पिछली सरकार ने उन्हें बिलासपुर कमिश्नर से चिप्स का सीईओ बनाकर रायपुर बुला लिया था। रायपुर कलेक्टर रहने के दौरान उनके सीएम सचिवालय जाने की अटकलें रही।

तीसरे कलेक्टर

सौरभ कुमार के साथ एक और रिकार्ड दर्ज हुआ है...छत्तीसगढ़़ के दूसरे ऐसे आईएएस होंगे, जो रायपुर, बिलासपुर नगर निगम के कमिश्नर रहे और फिर दोनों जिलों के कलेक्टर भी। उनसे पहले सोनमणि बोरा बिलासपुर और रायपुर के ननि कमिश्नर रहे और फिर कलेक्टर भी। हालांकि, ओपी चौधरी रायपुर ननि के कमिश्नर रहे और कलेक्टर भी। लेकिन, बिलासपुर में उन्होंने कोई पोस्टिंग नहीं की। बहरहाल, सोनमणि, ओपी और सौरभ से पहिले रायपुर का कोई निगम कमिश्नर रायपुर का कलेक्टर नहीं बन पाया। इसके बावजूद कि रायपुर का ननि कमिश्नर कई जिलों के कलेक्टरों से ज्यादा रुतबा रखता है। राजधानी में पोस्टिंग की वजह से सरकार से प्रगाढ़ता भी अच्छी हो जाती है।

पोस्टिंग या मजाक!

इस तरह के कारनामें एनआरडीए में ही संभव है...रिटायर हुआ छोटे पोस्ट से और संविदा में उससे बड़ी कुर्सी मिल जाए। दरअसल, एक सुपरिटेंडेंट इंजीरियर कुछ दिन पहले रिटायर हुए। एनआरडीए ने उन्हें संविदा पोस्टिंग दे दी। इसके साथ ही चीफ इंजीनियर का चार्ज भी। अब सीनियरिटी में जो एसई उनसे उपर थे, उन्हें अब अपने जूनियर को सलाम ठोकना पड़ रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधायकों की शिकायत के बाद किस कलेक्टर का विकेट निकट भविष्य में गिर सकता है

2. ऐसी क्या बात है कि कुछ आईएएस, आईपीएस इन दिनों बेहद घबराए हुए हैं?


सिकरेट्री जिम्मेदार क्यों नहीं?

संजय के. दीक्षित

तरकश, 17 जुलाई 2022

छत्तीसगढ़ में ट्रांसफर पर बैन के बावजूद तीन साल में हजारों की संख्या में तबादले हो गए। बिना समन्वय की मंजूरी के। जबकि, नियमानुसार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समन्वय समिति के अनुमोदन के बाद ही ट्रांसफर होने चाहिए। लेकिन, अगर बाड़ ही खेत खा जाए तो क्या किया जा सकता है। कई विभागों के मंत्रियों और सचिवों ने नियमों को दरकिनार करते हुए बड़ा खेल कर डाला। एक विभाग में हजार से अधिक ट्रांसफर हो गए। ठीक है, समन्वय के बिना अनुमोदन ट्रांफसर हुए तो क्या विभागों के सचिवों को नहीं पता था कि ट्रांसफर पर बैन लगा है। आखिर, आदेश तो सिकरेट्री की हरी झंडी देने पर ही अंडर सिकरेट्री निकालते हैं। ऐसे में, सिकरेट्री की जिम्मेदारी नहीं बनती? सरकार ने अब तीन साल में हुए ट्रांसफर की जानकारी मंगाई है। कुछ विभागों की रिपोर्ट देखकर सरकार के अफसर दंग रह गए। तो क्या ऐसे सचिवों पर कार्रवाई होगी? सवाल तो उठते ही हैं।

खटराल पीए

सरकार पिछले दिसंबर से बोल रही कि मंत्रियों के निजी स्थापना में पोस्टेड अधिकारियों को दीगर दायित्वों से हटाया जाए। आठ महीने में जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो इस हफ्ते जीएडी सिकरेट्री डीडी सिंह ने सचिवों को फिर पत्र लिख 24 घटे के भीतर कार्रवाई कर अवगत कराने कहा। इसके बावजूद कई मंत्री अपने निजी सहायकों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं। एक डिप्टी कलेक्टर मंत्री के पीएस के साथ ही मलाईदार बोर्ड में बैठे हैं। मंत्रीजी ने उन्हें कह दिया है, कोई चिंता नहीं। एक आदिवासी मंत्री के निजी स्थापना में कार्यरत अधिकारी के पास चार-चार विभाग है। वे भी अपने प्रिय पीए को छोड़ने तैयार नहीं। यही स्थिति अमूमन मंत्रियों के साथ हैं।

3.1 फीसदी कमीशन का राज

एक मंत्री अपने डिप्टी कलेक्टर पीएस को इसलिए छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहे कि उसका मुंह काफी छोटा है। मुंह छोटा का मतलब बेहद कम कमीशन लेना। उसने विभाग में होने वाले निर्माण कार्यो या सप्लायरों से 3.1 प्रतिशत कमीषन तय कर दिया है। तीन परसेंट मंत्रीजी को और प्वाइंट वन परसेंट खुद। मंत्रीजी के पास ईमानदारी से तीन परसेंट पहुंचा दिया जाता है। अब ऐसा पीएस कहां मिलेगा। कई पीएस एक परसेंट तक झटक लेते हैं।

बेचारा कलेक्टर!

हेडिंग पर आपत्ति हो सकती है...कलेक्टर बेचारा कैसे? मगर मुंगेली जैसे जिले के लिए ये शब्द एप्रोपियेट लगता है। एक तो छोटा-सा जिला...हंड्रेड परसेंट सूखा, न्यूसेंस उतने ही ज्यादा। डीएमएफ भी मात्र पांच करोड़। अब पांच करोड़ में कलेक्टर क्या खाएगा, क्या निचोड़ेगा। जिले के एक हिस्से में अचानकमार का टाईगर रिजर्व। तो एक बडा़ इलाका बेहद संवेदनशील। वहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है। देखा ही आपने...जिला पंचायत के आईएएस सीईओ के साथ क्या हुआ। उपर से जिले के तीन विधायक...तीनों विपक्ष के और अनुभवी तथा सीनियर। एक तो नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक। दूसरे चार बार के सांसद और चार बार से अधिक के विधायक पूर्व मंत्री पुन्नूराम मोहिले। तीसरे तो और बड़े वाले...धाकड़ नेता धरमजीत सिंह। इनके उपर कलेक्टरी नहीं झाड़ी जा सकती। अब आपही बताइये, ऐसे जिले के कलेक्टर को और क्या कहा जाएगा?

पंगा नहीं

बात मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की निकली है तो ये बताना लाजिमी होगा कि ब्यूरोक्रेसी में अगर पति-पत्नी दोनों आईएएस, आईपीएस हैं तो लोग पंगा लेने से बचते हैं। क्योंकि, एक नाराज हुआ तो फिर जाहिर है, उसके पति या पत्नी से दुष्मनी मोल लेनी पड़ेगी। ब्यूरोक्रेसी में ऐसे कपल काफी ताकतवर माने जाते हैं। मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की पत्नी आईपीएस हैं। अंबिकापुर जैसे ब़ड़े जिले की एसपी। इसके बाद भी सूरजपुर के कांग्रेसियों ने गलत शिकायत करके जिला पंचायत पद से राहुल को निबटवा दिया। ठीक है...वक्त सबका आता है।

डीएमएफ से रैकिंग

छत्तीसगढ़ में डीएमएफ की मीनिंग बदल गई है। डीएमएफ मतलब डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड नहीं डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फंड हो गया है। और इसी फंड से आजकल जिले की रैंकिंग तय की जा रही है। जिस जिले में डीएमएफ ज्यादा, वह सबसे बड़ा जिला। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक कोरबा में डीएमएफ है, उसके बाद दंतेवाड़ा। और फिर रायगढ़। पहले बताया जाता था इतने ब्लाक का जिला है। अब पूछा जाता है, डीएमएफ कितना है। कलेक्टर भी यह बोलकर गर्वान्वित होते हैं कि हमारे जिले में इतना डीएमएफ है।

ब्यूरोक्रेसी का हफ्ता

पिछला हफ्ता छत्तीसगढ़ की नौकरशाही के लिए अच्छा रहा। डीजीपी अशोक जुनेजा केंद्र में डीजी इम्पेनल किए गए। विश्वरंजन के बाद डीजी इम्पेनल होने वाले वे छत्तीसगढ़ के दूसरे आईपीएस होंगे। उधर, आईएएस में एडिशनल चीफ सिकेरट्री रेणु पिल्ले भारत सरकार में सिकरेट्री इम्पेनल हुईं। वहीं, 2005 बैच के दो आईएएस ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल किए गए। इस बैच की संगीता आर और एस प्रकाश पहले ही ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल हो चुके हैं। हालांकि, 2005 बैच में कुछ प्रमोटी आईएएस भी हैं लेकिन, उनका नम्बर नहीं लगा। वैसे भी प्रमोटी आईएएस में केंद्र में ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल होने वालो में दो ही अफसर रहे हैं। एक दिनेश श्रीवास्तव और दूसरे डीडी सिंह।

राज्यपाल सहमत नहीं

राज्य सरकार ने रोजगार मिशन और मितान क्लब के संचालन के लिए स्टाम्प ड्यूटी पर एक फीसदी उपकर लगाने के लिए अध्यादेश लाया था। इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी। लेकिन, राज्यपाल अनसुईया उइके इस पर सहमत नहीं हुई। उन्होंने अध्यादेश को लौटा दिया। हो सकता है सरकार अब इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश करें। विधानसभा में सरकार के पास बहुमत भी है, पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

मंत्री की मीटिंग

एक मंत्री अपने जिले में अधिकारियों की मीटिंग लेनी चाही। इसके लिए उनका स्टाफ जिला प्रशासन से संपर्क किया। मीटिंग का टाईम तय हो गया और आदेश भी निकल गया। इसके कुछ देर बार अपर कलेक्टर ने दूसरा आदेश निकालकर मीटिंग केंसिल कर दी। इससे ये सवाल पैदा नहीं होता कि जिला प्रशासन मंत्री को खामोख्वाह सहानुभूति अर्जित करने का मौका नहीं दे रहा है। मंत्री भी कम चतुर थोड़े ही हैं, अभी से जनता क बीच माहौल बनाना शुरू कर दिए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग का त्याग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, सरकार ने अगर इसे स्वीकार नहीं किया तो संवैधानिक प्रक्रिया क्या होगी?

2. किस विभाग में मंत्री के भाई को पूरा काम मिल रहा है?