शनिवार, 24 सितंबर 2022

20-20 का समय

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 25 सितंबर 2022

2018 में 6 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ था। इस बार भी लगभग यही टाईम रहेगा। याने विस चुनाव में अब मुश्किल से एक साल का वक्त बच गया है। इसी में नवरात्रि, दशहरा, नया साल, होली और अगला बरसात भी है। सही मायनों में कहा जाए तो जमीन पर काम दिखाने के लिए नौ महीने का समय बचा है। मतलब ट्वेंटी-20 मैच जैसी स्थिति। अब अधिकारियों को अंशुमन गायकवाड़ और रवि शास्त्री जैसे पिच पर ठुक-ठुककर खेलने का नहीं, श्रीकांत और सहवाग जैसे ठोकने का समय है। वैसे भी चार साल का समय गुजर गया है। अब कौन किससे जुड़ा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कि हर बॉल को बाउंड्री तक पहुंचाने वाले बैट्समैन हो। सरकार में भी इसी पर विचार किया जा रहा। हो सकता है, जल्द ही फील्ड में और तेज गति से रिजल्ट देने वाले अधिकारियों को उतारा जाए।

एसपी का ट्रासंफर

छत्तीसगढ़ में आईजी के ट्रांसफर की चर्चा हो रही थी। मगर अब खबर है सरकार एसपी लेवल पर भी एक लिस्ट निकाल सकती है। इसमें दो-तीन बड़े जिले भी प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, सरकार के पास कुछ पुलिस अधीक्षकों के बारे में फीडबैक सही नहीं हैं। बताते हैं, उन कप्तानों से जिला संभल नहीं रहा...कानून-व्यवस्था की स्थिति लड़खड़ा रही है। सो, जिन जिलों में एसपी के परफारमेंस सही नहीं है, उन्हें बदलने पर विचार किया जा रहा है। छोटे जिलों में कुछ एसपी अच्छे रिजल्ट दे रहे हैं, उन्हें बड़े जिलों में शिफ्थ किया जा सकता है।

सड़क, बिजली और...

किसी भी सरकार के रिपीट होने के लिए तीन काम महत्वपूर्ण होते हैं। सड़क, बिजली और लॉ एंड आर्डर। ये काम लोगों को दिखते भी हैं और पब्लिक को प्रभावित भी करते हैं। याद होगा, मध्यप्रदेश में सिर्फ और सिर्फ खराब सड़क और बिजली की आंखमिचौली के कारण दिग्विजय सिंह चुनाव हार गए थे। वरना, इन दो चीजों को छोड़ दें तो दिग्गी राजा का 10 साल का टेन्योर उतना खराब नहीं था। इसके बाद कानून-व्यवस्था का नंबर आता है। कानून-व्यवस्था के नाम पर चुनाव जीतने का ताजा उदाहरण है उत्तर प्रदेश। पोलिसिंग को टाईट करके यूपी में योगी आदित्य नाथ दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुए। अब छत्तीसगढ़ की बात करें। छत्तीसगढ़़ में बिजली की स्थिति बाकी राज्यों जैसी नहीं है। सड़कों को लेकर सरकार ने अधिकारियों को टाईट करना शुरू किया है। ईएनसी की छुट्टी के बाद सीएम के करीबी अफसर अब खुद पीडब्लूडी के कामकाज को वॉच कर रहे हैं। कानून-व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने डीजीपी को कई निर्देश जारी किए हैं। डीजीपी अशोक जुनेजा भी हेलिकाप्टर लेकर सूबे के दौरे पर निकल गए हैं। दो दिन पहले उनका चौपर सरगुजा में उतरा। फिर भी लॉ एंड आर्डर को सरकार को और संजीदगी से लेना होगा। इसके लिए एसपी को दो टूक फरमान जारी करना होगा, चार साल बहुत हुआ, मगर अब खैर नहीं!

पोलिसिंग मजबूरी नहीं

यह विमर्श का विषय हो सकता है कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग टाइप्ड होते गई। जितना धक्का दो, उतनी ही चलेगी। सरकार बोलेगी हुक्का बार पर अंकुश लगाओ तो चार दिन पुलिस इसी एक सूत्रीय अभियान में जुट जाएगी। वाहनों की चेकिंग...तो सारे एसपी सड़क पर उतर जाएंगे। सही मायनो में कहा जाए तो पुलिस का अपना इकबाल होना चाहिए। पुलिस का काम बाकी विभागों से अलग होता है। इसमें इकबाल सबसे उपर होता है और उसके बाद अनुशासन। ये थोड़ी है कि कोई आंदोलन होने वाला है, तो सिपाहियों से लाठी रखवा लो। अफसरों को अपने पर इतना भरोसा तो होना ही चाहिए कि एक लाईन का मैसेज दिया जाए, लाठी चार्ज नहीं करना है तो नहीं होगा। सूबे में चार दिन हुक्का बारों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई चली और फिर...। छत्तीसगढ़ के एक बीयर बार में आधी रात को छत्तीसगढ़ी फिल्म एक्ट्रेस पर हमला हो जाता है। रात को 11 बजे के बाद बार एलाउ नहीं है। मगर किसी जिले में ऐसा नही होगा कि बारह बजे से पहले बंद होता होगा। कुछ महीने पहले की बात है... उड़ीसा से लौटते समय सराईपाली जैसे क्रॉस हुए, लेफ्ट साइड का एक ढाबा ओपन बार बना हुआ था। ढाबे वाले को कोई डर नहीं। क्योंकि, थाने में हर महीने लिफाफे में गांधीजी की फोटो पहुंच जाती है। कहने का मतलब ये है कि पुलिसिंग मजबूरी नहीं...आदत में होनी चाहिए।

थानेदारों से महीना

एसपी पहले थानेदारों से छोटे मोटे बेगारी करा लेते थे। ट्रेन या फ्लाइट का टिकिट हुआ या फिर बाजार से कोई मोबाइल जैसे चीजें मंगवा ली। अब ये एक्स्ट्रा हो गया है। अब तो ये सिस्टम बन गया है... हर महीने कप्तान साब को नजराना पहुंचाना पड़ेगा। एसपी थानेदारों से महीना लेने लगें तो उस राज्य की पुलिसिंग का फिर तो भगवान मालिक हैं। सीधी सी बात है, एसपी एक थाने से पचास लेगा, तो थानेदार उसकी आड़ में पांच लाख वसूलेगा। इसके लिए इलाके में अवैध शराब बिकवाएगा, बिना लाइसेंस होटलों में शराब परोसवाएगा। मसाज पार्लरों में देह व्यापार हो रहा, थानों का बकायदा रेट बंधा हुआ है। हालांकि, इसके लिए रमन सरकार भी जिम्मेदार है। पिछली सरकार ने परिवहन बैरियर समाप्त कर दिया और शराब का ठेका भी। पुलिस को अच्छी खासी रकम इन दोनों जगहों से मिल जाती थी। ऐसे में, कप्तान साहब लोग क्या करें। थानेदारों से महीना वाला सिस्टम उसी समय से चालू हुआ।

नया सीआईसी कौन?

मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत नवंबर में रिटायर हो जाएंगे। नवंबर में ही सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल की भी विदाई होगी। इन पदों पर नई नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकल गया है। आवेदन भी आने शुरू हो गए हैं। खबर है, अगले महीने से नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। लोगों में सबसे अधिक उत्सुकता मुख्य सूचना आयुक्त को लेकर है। वो इसलिए कि कोई सीनियर आईएएस फिलहाल रिटायर नहीं हो रहा। गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में सीनियर लेवल से रिटायर हुए आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों को बिठाया गया है। कुछ राज्यों में हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस भी पोस्ट किए गए हैं। देश में गोवा एकमात्र राज्य है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के विधायक को सीआईसी बनाया गया है। ऐसे में, सवाल घूम-फिरकर वहीं पर आ रहा...राउत के बाद नया सीआईसी कौन? दरअसल, सीआईसी क लिए कोई निश्चित मापदंड नहीं है...सिर्फ सोशल सेक्टर में काम होना चाहिए। यही वजह है नामों को लेकर कई तरह की अटकलें चल रही हैं। कोई किसी पत्रकार को सीआईसी बनाने की बात कर रहा तो कोई किसी दूसरे राज्य के रिटायर नौकरषाह की। देखना है, अब सरकार किसको इस पद पर बिठाती है।

जय-बीरु

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल एक साथ दौरे में निकल रहे हैं। दोनों फिलहाल बस्तर में हैं। भाजपा में इन्हें जय-बीरु की जोड़ी कही जा रही है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में भी तब के पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव एक साथ खूब दौरे किए। दोनों को भी जय-बीरु का नाम दिया गया था। अब सवाल उठता है...नए जय-बीरु की जोड़ी क्या भूपेश और सिंहदेव जैसा प्रभावशाली बन पाएगी...क्या उनमें वो दमखम है। पुराने जय-बीरु ने भाजपा की पारी को 15 रन पर समेट दिया था।

आ बैल मुझे मार...

तिमाही परीक्षा के पर्चा लीक कांड ने विभाग की बिना पुख्ता तैयारी के योजना लाने की पोल तो खोलकर रख ही दी। साथ ही साथ प्रमुख सचिव के बयान से यह भी तय हो गया की विभाग में आपसी तालमेल का अभाव है। केंद्रीकृत तिमाही परीक्षा के लिए आपसी सहमति भी नहीं थी। डीपीआई, माशिमं सचिव और प्रमुख सचिव के अलग अलग बयान इसकी तस्दीक करते है की विभाग प्रयोगशाला बनते जा रहा है। आलोक शुक्ला के बयान से स्पष्ट है कि वे तिमाही परीक्षा के केंद्रीकृत सिस्टम से सहमत नहीं थे। मगर नीचे के अधिकारियों ने आ बैल मुझे मार करने बोर्ड से पेपर तैयार करवा दिया। और वही हुआ, स्कूल शिक्षा विभाग की फजीहत हो गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीएम हाउस का घेराव और अमित शाह के कार्यक्रम से नदारत रहने वाले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विश्णुदेव साय जगतप्रकाश नड्डा के कार्यक्रम में हाजिर हुए, तो क्या मान लेना चाहिए कि उनकी नाराजगी दूर हो गई है?

2. एक एसपी का नाम बताइये, जो खुद कुछ नहीं लेते...दो मोबाइल दुकान वालों को एजेंट बनाए हैं?



शनिवार, 17 सितंबर 2022

अफसर की दूसरी शादी!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 18 सितंबर 2022

वालीवुड की तरह अब अधिकारी बिरादरी में भी लाइफ पार्टनर के लिए शादी-शुदा पुरूषों को प्राथमिकता दी जा रही हैं। छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक गलियारों में ऐसी ही एक शादी की बेहद चर्चा है। बताते हैं, होने वाले वर-वधु राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। एडिशनल कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर। दोनों का लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था। एडिशनल कलेक्टर की पत्नी न्यायिक सेवा क्षेत्र से हैं और हाल ही में उनका तलाक हुआ। आपको याद होगा...दो साल पहले राजधानी के वीआईपी रोड स्थित एक कालोनी में ये प्रेमी जोडा पर्सनल टाईम स्पेंड कर रहा था, तभी एडिशनल कलेक्टर की पत्नी वहां धमक गई थीं, फिर बड़ा तमाशा हुआ...। यह खबर मीडिया मे सुर्खिया बनी थी...क्योंकि, जिस बंगले में प्रेमी जोड़ा रंगे हाथ धरा गया था, वो भारत सरकार के एक उपक्रम का गेस्ट हाउस था। बहरहाल, अब पत्नी से तालाक हो गया है। लिहाजा, एडिशनल कलेक्टर के लिए अब प्रेम के इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई बाधा नहीं है। खबर है, अक्टूबर में अधिकारी जोड़ा सात फेरे लेगा।

ऐसे बने डीजीपी

पोस्टिंग के 11 महीने बाद आईपीएस अशोक जुनेजा छत्तीसगढ़ के पूर्णकालिक डीजीपी बन गए हैं। अब सवाल उठता है, प्रभारी डीजी बनने के बाद पूर्णकालिक बनने में इतना वक्त क्यों लगा तो उसकी वजह है सीनियरिटी में वे पांचवे नम्बर पर थे। उनसे उपर न केवल डीएम अवस्थी थे बल्कि स्वागत दास, रवि सिनहा, संजय पिल्ले और मुकेश गुप्ता थे। इनमें स्वागत दास का नवंबर 2024 और रवि सिनहा का जनवरी 2024 में रिटायरमेंट है। ऐसे में जुनेजा की राह मुश्किल थी। सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग का मुखिया तो बना दिया था मगर यूपीएस से पेनल को मंजूरी न मिलने के कारण उनकी रेगुलर पोस्टिंग अटकी रही। वैसे, 88 बैच के आईपीएस स्वागत दास और 89 बैच के रवि सिनहा सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। पता चला है, दोनों ने यूपीएससी को लिखकर दिया कि वे छत्तीसगढ़ नहीं लौटना चाहते। इसके बाद चार नाम बचे। डीएम अवस्थी, मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और अशोक जुनेजा। इनमें से मुकेश गुप्ता चूकि सस्पेंड थे, इसलिए उनका नाम हट गया। इसके बाद तीन नाम बचे। यूपीएससी के नियमानुसार डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल होना चाहिए। सो, यूपीएससी ने हरी झंडी देते हुए तीन नामों का पैनल छत्तीसगढ़ सरकार को भेज दिया और सरकार ने अशोक जुनेजा के नाम पर टिक लगाते हुए पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी कर दिया। सबसे अहम यह है कि उन्हें आदेश निकलने के डेट से दो साल का कार्यकाल मिल गया। याने अगस्त 2024 तक वे डीजीपी रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के मुताबिक डीजीपी का कार्यकाल दो साल रहेगा। जुनेजा के आदेश में भी लिखा है, आदेश निकलने की तिथि से दो साल। याने जो होता है, अच्छे के लिए होता है। अगर पिछले साल अक्टूबर में ही वे फुलटाईम डीजीपी बन गए होते तो अगले साल अक्टूबर में उन्हें रिटायर होना पड़ता। बहरहाल, फुलटाईम डीजीपी बनते ही जुनेजा एक्शन में आ गए हैं। दो दिन पहले उन्होंने दुर्ग जाकर दुर्ग रेंज के आईजी, एसपी की बैठक ली। इस बैठक में कानून-व्यवस्था को लेकर उन्होंने कड़े तेवर दिखाए। सुना है, दुर्ग के बाद वे एक-एक कर सभी रेंज मुख्यालयों में जाने वाले हैं। कह सकते हैं, पद और पोस्टिंग का फर्क तो पड़ता है।

कलेक्टर-कारोबारी, भाई-भाई

राज्य की सत्ता संभालने के बाद भूपेश बघेल सरकार ने डीएमएफ की बंदरबांट पर लगाम लगाने कई अहम फैसले लिए थे। इसमें बिल्डिंगों के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। पैसे का सही सदुपयोग करने के लिए सरकार ने कई नए नियम बनाए, जिसमें आम आदमी से ताल्लुकात रखने वाले विभागों में डीएमएफ को खर्च करना शामिल था। मसलन, स्कूल, स्वास्थ्य, आदिवासी हॉस्टल। मगर कलेक्टरों और कारोबारियों के नापाक गठजोड़ ने सरकार के नए नियमों में भी छेद कर डाले। आलम यह है कि छात्रावासों की बिल्डिंगें जर्जर है मगर उसमें नए कूलर, फ्रीज, पंखे, फर्नीचर जंग खा रहे हैं। इन गैर जरूरी चीजों की सप्लाई के पीछे मकसद सिर्फ और सिर्फ डीएमएफ का बजट किसी तरह खर्च करना है। कोविड के नाम पर कलेक्टरों द्वारा अभी भी अनाप-शनाप खरीदी की जा रही है। स्कूलों का भी यही हाल है। खासकर, आत्मानंद स्कूलों की अगर जांच कर ली जाए तो कई कलेक्टर और डीईओ निबट जाएंगे। असल में, डीएमएफ में सप्लाई करने से बांटने के बाद भी सप्लायरों को 30 से 40 फीसदी बच जाता है। उपर से सरकारी पेमेंट की तरह नोटशीट घूमने का लफड़ा भी नहीं। कलेक्टर चूकि डीएमएफ के हेड होते हैं और पहले से सब सेट होता है लिहाजा, समान सप्लाई होते ही चेक मिल जाता है। जाहिर है, सप्लयार को भुगतान होगा तभी तो वो उसी गति से हिस्सा पहुंचाएगा। यही वजह है कि सराफा व्यापारी से लेकर राईस मिलरों तक इस सप्लाई के काम में कूद पड़े हैं। दरअसल, इसमें बिना किसी मेहनत का पैसा है। बस, दो-से-तीन कलेक्टरों को ग्रीप में लेना है, उसके बाद बिना बोले आर्डर मिलते जाएगा।

दलालों का अड्डा

छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की हो, डीएमएफ को कलेक्टर ही चला रहे हैं। कलेक्टरों के विजिटर रुम में आप चले जाइये, आम आदमी से ज्यादा वहां सप्लायर दिखेंंगे आपको। दिल्ली, चेन्नई, बंगलोर, कोलकाता तक से सप्लायर छत्तीसगढ़ पहुंच रहे हैं। सरकार को डीएमएफ के मामले में कलेक्टरों को कसने की जरूरत है वरना, नुकसान होगा। क्योंकि अगले साल ही विधानसभा चुनाव है। और अधिकांश कलेक्टर कामधाम छोड़ डीएमएफ के खेल में लगे हुए हैं। खेल इस लेवल पर पहुंच गया है कि डीएमएफ को डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड की जगह अब डीएम फंड कहा जाने लगा है।

बेचारे कलेक्टर!

छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले तो बन गए मगर उन जिलों के कई कलेक्टर खुश नहीं हैं। एक तो ओएसडी के रूप में छह महीने उन्हें कलेक्टर इन वेटिंग रहना पड़ा। दूसरा, जिला बना तो उन्हें लगा कि अब डीएमएफ के हिस्सों का बंटवारा हो जाएगा। मगर पुराने जिलों के कलेक्टर इसके लिए तैयार नहीं हैं...अभी तक उन्हें एक पैसा नहीं मिला है। पुराने जिलों के कलेक्टरों का कहना है, उपर से कोई निर्देश नहीं है। नए जिलों के कलेक्टर इसलिए चिंतित हैं कि अगले साल अक्टूबर में कोड आफ कंडक्ट प्रभावशील हो जाएगा। याने मुश्किल से साल भर बचा है। डीएमएफ का फैसला होने में जितना टाईम लगेगा, बेचारे कलेक्टरों को उतना ही नुकसान होगा।

कमाल के आईएएस

आईएएस की सर्विस के दौरान कामों से ज्यादा अपने कारनामों को लेकर चर्चित रहने वाले एक रिटायर आईएएस ने अपनी जमीन तीन लोगों को बेच दी। हाउसिंग बोर्ड ने ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों को वहां सस्ती दर से जमीन मुहैया कराई थी। आईएएस ने भी 4200 वर्गफुट का प्लाट लिया। इसके लिए उन्होंने बकायदा बैंक से लोन लिया। हैरत की बात यह है कि लोन के बाद भी उन्होंने एक के बाद एक तीन लोगों की जमीन बेच डाली।

कार्रवाई क्यों नहीं?

कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान एक जनपद सीईओ ने मंच से राजनेताओं के खिलाफ लक्ष्मण रेखा लांघते हुए अमर्यादित बातें कही थी। इसको लेकर कांकेर कलेक्टर ने तुरंत तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की। कमेटी की रिपोर्ट बस्तर कमिश्नर तक पहुंच गई है। रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि जनपद सीईओ ने सेवा संहिता का घोर उल्लंघन किया है। इसके बाद भी कार्रवाई कुछ नहीं। तो क्या इसे ये समझा जाए...जातीय समीकरणों कार्रवाई में आडे़ आ गया है।

अहम पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम को रिटायरमेंट से 15 दिन पहले ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। भारत सरकार ने उन्हें सीएमडी इंडियन ट्र्रेड प्रमोशन आरगेनाइजेशन बनाया है। हालांकि, यह दो साल के लिए कंट्रेक्चुअल पोस्टिंग है। मगर रिटायरमेंट से पहले पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग...वो भी सीमडी की। सुब्रमणियम का भारत सरकार में प्रभाव तो है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस युवा आईएएस अधिकारी को रिटायर आईएएस राधाकृष्णन का संस्करण कहा जा रहा है?

2. क्या रेंज आईजी लेवल पर कोई पोस्टिंग आदेश निकलने वाला है?


सोमवार, 12 सितंबर 2022

माथुर का पीएमओ कनेक्शन...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 11 सितंबर 2022

माथुर का पीएमओ कनेक्शन

भाजपा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के दौरान छत्तीसगढ़ की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को हटाकर ओम माथुर को बिठा दिया। ओम माथुर का नाम देश के लिए जाना माना है। वे संघ के प्रचारक रहे हैं। राजस्थान के संगठन मंत्री के रूप में वे भाजपा में उनकी इंट्री हुई और बाद में वहां के प्रदेश अध्यक्ष बनें। फिर गुजरात, यूपी और महाराष्ट्र के प्रभारी का दायित्व भी बखूबी निभाया। ओम माथुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे कनेक्टेड माना जाता है। पीएमओ को भी पता है कि ओम माथुर कौन हैं। इसका मतलब यह समझा जाए कि छत्तीसगढ़ भाजपा में अब सिर्फ और सिर्फ ओम माथुर की चलेगी...दुजा कोई नहीं। असल में, पुरंदेश्वरी जूनियर पड़ जाती थीं। वैसे भी, लगातार 15 साल तक मंत्री रहकर मजबूत हो गए नेताओं पर उनका चाबुक चलाना संभव नहीं था। मगर अब...वही होगा, जिसमें ओम माथुर की सहमति होगी।

पुरंदेश्वरी की ट्रेनिंग?

छत्तीसगढ़ की प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को हटाने को लेकर तरह-तरह की बातें निकलकर आ रही हैं। मगर अंदरखाने की खबर यही है कि उन्हें तेलांगना का सीएम प्रोजेक्ट करने के लिए उनका कार्य क्षेत्र बदला गया है। बताते हैं, आंध्र के पूर्व और लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव की बेटी पुरंदेश्वरी को दो साल पहले ही भाजपा ने तेलांगना में मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का फैसला ले लिया था। उन्हें रणनीति के तहत पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया। एक चीज और समझने की बात है कि पुरंदेश्वरी कई बार बस्तर गई...वहां पार्टी की चिंतन बैठक भी कीं। बस्तर दौरा इसलिए कि वह तेलांगना से लगा हुआ है। बस्तर के अलावा दूसरे संभागों में पुरंदेश्वरी कभी नहीं गईं। तब तो सीएम भूपेश बघेल ठीक कह रहे हैं....कल जेपी नड्डा के दौरे पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा था छत्तीसगढ़ लोग सिखने के लिए आते हैं।

आईएएस राडार पर!

छत्तीसगढ़ में इंकम टैक्स के छापे लगातार चल रहे हैं। कुछ नौकरशाहों को भी नोटिस देने की खबरें कई दिनों से पब्लिक डोमेन में है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आशंका जता चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में आईटी के बाद ईडी भी आएगी। सूबे में जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं, वह मुख्यमंत्री के आरोपों की तस्दीक कर रही हैं। आईटी और ईडी की नोटिसों के बीच एक आईएएस अधिकारी समेत कुछ अफसरों के राडार पर होने के संकेत मिल रहे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियां पुख्ता साक्ष्य जुटाने के बाद किसी आईएएस को गिरफ्त में ले लें, तो अचरज नहीं।

कार्यकारी अध्यक्ष

भाजपा ने साहू वोटरों पर डोरे डालने आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को हटाकर अरुण साव को अध्यक्ष बना दिया। लेकिन, कांग्रेस पीसीसी अध्यक्ष पद आदिवासी नेता के लिए रिजर्व रखेगी। वैसे भी, सीएम ओबीसी समाज से हैं तो पीसीसी इसी समाज से होना सियासी दृष्टि से मुफीद नहीं होगा। बहरहाल, पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम आदिवासी हैं और अंदरखाने की खबर यह है कि अगला अध्यक्ष भी इसी समाज से चुना जाएगा। इसके लिए बस्तर के सांसद दीपक बैज का नाम सबसे उपर चल रहा। उधर, कांग्रेस पार्टी जातीय संतुलन बनाने दो कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति पर भी विचार कर रही है। हालांकि, यह पहली बार नहीं होगा। इसके पहले भी कांग्रेस पार्टी दो बार कार्यकारी अध्यक्ष का प्रयोग कर चुकी है। तत्कालीन पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के साथ भी शिव डहरिया और रामदयाल उईके को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इस बार भाजपा के साहू अध्यक्ष के जवाब में कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष का पद साहू नेता को दे सकती है। इसके लिए बिलासपुर संभाग से एक साहू नेता का नाम चल रहा, तो दलित कोटे से रायपुर संभाग के किसी नेता को लिया जाएगा। कुल मिलाकर अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव जातीय रंग से सराबोर रहेगा।

वक्त का खेल

पीसीसीएफ से रिटायर होने के बाद भूपेश सरकार ने आईएफएस अधिकारी एसएस बजाज को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे दी है। रिटायरमेंट से पहले वे लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी थे और वहीं पर उन्हें फिर से पोस्ट किया गया है। हालांकि, बजाज के रिटायरमेंट से पहले इसी तरकश कॉलम में हमने बताया था कि बजाज को पोस्ट रिटायरमेंट देने की तैयारी है और सरकार ने इस पर मुहर लगा दिया। बहरहाल, इसे ही कहा जाता है, वक्त बलवान होता है...। ग्रह-नक्षत्र का शिकार होकर बजाज जब सस्पेंड हो गए थे तो आईएफएस लॉबी सन्न रह गई थी...क्योंकि, बजाज इधर-उधर वाले स्वभाव के अफसर नहीं माने जाते। मगर यही सरकार ने उन्हें पीसीसीएफ बनाने कैबिनेट से विशेष पद सृजित किया और फिर पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग भी। याने दर्द भी और दवा भी। सही है...हम भ्रम में होते हैं, सारा खेल वक्त का होता है।

भूल सुधार-1

अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में बगावत कर पार्टी प्रत्याशियों को निबटाने वाले नेताओं को फिर से पार्टी में प्रवेश कराने की तैयारी की गई थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के छत्तीसगढ़ दौरे में सराईपाली के संपत अग्रवाल और रायगढ़ के विजय अग्रवाल को पार्टी में शामिल करने पूरा खाका बन गया था। मगर मीडिया में खबर आ जाने के बाद पार्टी ने फिलहाल इसे टाल दिया। बहरहाल, संपत के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़ा हो जाने से भाजपा तीसरे नम्बर पर आ गई थी तो विजय अग्रवाल की बगावत से रायगढ़ में भी ऐसा ही हुआ। तो क्या ऐसा माना जाए कि भाजपा 2018 की अपनी भूल सुधार की कवायद में है।

भूल सुधार-2

मनेंद्रगढ़ को जिला बनाकर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की एक भूल सीएम भूपेश बघेल ने भी सुधारी है। जाहिर है, कोरिया पैलेस के प्रेशर में मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सरकार ने मनेंद्रगढ, चिरमिरी की बजाए कोरिया को जिला और बैकुंठपुर को जिला मुख्यालय बना दिया था। जबकि, हाट-बाजार, कारोबार और सुविधाओं की दृष्टि से आज से दो दशक पहले भी मनेंद्रगढ़ और चिरमिरी आज के नए जिलों से कम नहीं था। आधा किलोमीटर के एरिया में एक सड़क पर बसे बैकुंठपुर को देखकर लगता था कांग्रेस सरकार ने हद से ज्यादा मेहरबानी दिखा दी।

अगले साल 36 जिले!

छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले के साथ ही जिलों की संख्या बढ़कर अब 33 हो गई है। और संकेत हैं कि अगले साल विधानसभा चुनाव के पहले तीन और जिले अस्तित्व में आ जाएंगे। याने तीन नए जिले और बनेंगे। बताते हैं, नए जिलों के लिए सबसे मजबूत दावेदारी पत्थलगांव की है। जैसे मनेंद्रगढ़ और चिरमिरी के साथ अन्याय हुआ, उसी तरह जशपुर राज परिवार के दवाब में पत्थलगांव की भी उपेक्षा की गई। सराईपाली, सीतापुर और अंतागढ़ भी जिले के दौर में शामिल है। अंतागढ़ में तो एडिशनल कलेक्टर की पोस्टिंग भी हो चुकी है। अंतागढ़ में लंबे समय तक जिले के लिए आंदोलन चला है। सियासी दृष्टि से भी कांग्रेस के लिए खासतौर से पत्थलगांव, अंतागढ़ और सीतापुर को जिला बनाना फायदेमंद दिख रहा है। इस बारे में कुछ पुख्ता संकेत तो कुछ नहीं मिल रहा। मगर अंदर की खबरें हैं मुख्यमंत्री अगले साल 26 जनवरी को इन जिलों का ऐलान कर सकते हैं।

जिलों के अंग्रेजी नाम

छत्तीसगढ़ बनने से पहले सिर्फ जांजगीर जिला बनने के दौरान बवाल हुआ था। चांपा में जबर्दस्त तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी। तब की सरकार ने लोगों के गुस्से को ठंडा करने के लिए जांजगीर के साथ चांपा का नाम जोड़ दिया था। इसके बाद रमन सरकार के दौरान बलौदाबाजार जिला बनने पर उग्र विरोध को देखते भाटापारा का नाम जोड़ा गया। हालांकि, सरकारी रिकार्ड में चांपा और भाटापारा का नाम जिले के तौर पर भले ही जुड़ गया मगर बोलचाल में कभी भी इन दोनों का जिक्र नहीं किया जाता। लोग जांजगीर और बलौदाबाजार ही बोलते हैं। इसके बाद भूपेश बघेल सरकार में तीन ब्लॉकों को मिलाकर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला बनाया गया। मगर इसका नाम इतना लंबा है कि उसे अंग्रेजी के शार्ट नाम से जाना जाने लगा...जीपीएम। और अभी जो पांच नए जिले बने हैं, उनमें सिर्फ सक्ती में सिंगल नाम है। सारंगढ़ में बिलाईगढ़ जुड़ा है। जाहिर है, आम बोलचाल में वो सारंगढ़ के नाम से जाना जाएगा। खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, मोहला-मानपुर-अंबागढ़- चौकी तथा मनेंद्रगंढ़-चिरमिरी-भरतपु र में जरूर तीन-तीन नाम हैं। जाहिर हैं, इन्हें केसीजी, एमएमए और एमसीबी शर्ट नेम से जाना जाएगा। याने छत्तीसगढ़ के चार जिलों के नाम अब अंग्रेजी के शर्ट नेम से जाने जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या इस बारे में आपने कुछ सुना है कि नया रायपुर स्थित भारत सरकार के किसी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में छात्रा के साथ रेप की घटना को प्रबंधन द्वारा दबाया जा रहा है?

2. एमके राउत के रिटायर होने के बाद मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी पत्रकार की ताजपोशी होगी?


शनिवार, 3 सितंबर 2022

छत्तीसगढ़ में विषकन्याएं!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 4 सितंबर 2022

सरकारी ऑफिसों में विषकन्याएं जिस तरह मंडरा रही हैं, उससे देखकर लगता है रायपुर में इंदौर हनी ट्रेप कांड जैसा कुछ न हो जाए। दरअसल, खबरें कई तरह की चल रहीं हैं। दिल्ली की एक हनी ने एक युवा आईएएस अधिकारी को ट्रेप कर लिया है...अब वो आईएएस को जैसा चाह रही, वैसा नचा रही है। यही नहीं...एक शरीफ छबि के आईएफएस दो विषकन्याओं की चिकनी-चुपड़ी बातों में फंस गए...और, 27 लाख का प्रोजेक्ट सेंक्शन कर दिया। एक आईपीएस घर से दूर घर जैसा फिलिंग के लिए बढियां एक लग्जरी फ्लैट किराये पर ले लिए हैं। तो सूबे के एक युवा कलेक्टर एक हनी के जाल में फंसकर डीएमएफ से सप्लाई का एकतरफा आदेश दे रहे हैं। राजधानी रायपुर पोस्टेड एक युवा आईएएस के जिस तरह के क्रियाकलाप हैं, कभी भी मुश्किलों में फंस सकते हैं। दरअसल, कन्याओं के जरिये ये काम हथियार बेचने या इसी तरह बड़ा काम करने वाली कंपनियां करती थीं। मगर अब लोकल पार्टियां भी इस नुख्से को समझ गई हैं....अफसरों से काम कैसे निकलेगा। वैसे, ये चीज ही ऐसी है, अच्छे भले, संस्कारी अफसर भी खुद को संभाल नहीं पाते...तो लंगोट के ढीले अधिकारियों को क्या कहें। समझा जा सकता है कि सारी सुख-सुविधाओं के बावजूद अफसरों की पत्नियां बेचारी दुखी क्यों रहती हैं। बहरहाल, सरकार के खुफिया तंत्र को इस पर नजर रखनी चाहिए...विषकन्याओं के फेर में आखिर कुछ बुरा हुआ तो नाम प्रदेश का भी खराब होगा।

अजब अफसर, गजब बोल

वीआईपी रोड के बड़े होटल में एक बोर्ड की सफलता को लेकर जश्न का आयोजन किया गया। इसमें बोर्ड से जुड़े ठेकेदारों, सप्लायरों को भी बुलाया गया था....अच्छे काम करने वाले कुछ लोगों को सम्मानित भी किया गया। सेलिब्रेशन का सबसे बड़ा क्लास, एक सीनियर आईएफएस का स्पीच रहा। उन्होंने सफलता की तुलना टॉयलेट से कर दी। बोले, सफलता टॉयलेट की तरह होती है, जो अपने को बुरा नहीं, लेकिन दूसरा करें तो बुरा लगता है। चूकि, शाम हो गई थीं, महफिल भी जवां..., सो लोगों ने भी मजे लेने में कोई कोताही नहीं की। वाह-वाह करते हुए वन्स मोर-वन्स मोर...हुआ। आईएफएस भी पूरे मूड मेकं थे....उन्हांने उसे फिर दोहराने में कोई हिचक नहीं दिखाई। सेलिब्रेशन हॉल में इसको लेकर लोग चटखारे लेते रहे...साहब ने आज कौन सा लिया है।

खफा-खफा से...

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से हटाने के बाद विष्णुदेव साय पार्टी के कार्यक्रमों में नजर नहीं आ रहे हैं। भाजयुमो के सीएम हाउस घेराव कार्यक्रम में प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी से लेकर तमाम नेताओं की मौजूदगी रही, मगर विष्णु देव नहीं थे। यहां तक कि पार्टी के कद्दावर नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रायपुर आए, उस दौरान भी लोगों की निगाहें विष्णु देव साय को ढूंढती रही। इन दोनों कार्यक्रमों के दौरान वे अपने गृह ग्राम में थे। वैसे तो विष्णु देव साय शांत और सौम्य स्वभाव के नेता माने जाते हैं। 9 अगस्त को उन्हें हटाया गया, तब भी उन्होंने विनम्रता से मीडिया के सवालों का जवाब दिया और इस बदलारव को सहजता से स्वीकार किया। लेकिन, पार्टी के नेता भी मानते हैं नेताजी खफा तो हैं। दावे ये भी किए जा रहे कि आदिवासी नेताओं की बैठकें हो रही हैं। जाहिर है, पार्टी के प्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी लीडर नंदकुमार साय अरसे से असंतुष्ट चल रहे हैं। गाहे-बगो असंतुष्टि को झलकने वाले उनके बयान भी आ जाते हैं। वैसे, बीजेपी के बड़े नेताओं को सनद रहे...हाल में हुए बदलाव से बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा जैसे नेता भी बहुत खुश नहीं हैं। विधानसभा में सबसे उम्दा प्रदर्शन करने के बाद भी अजय को मुख्य प्रवक्ता बनाकर सफाई से किनारे कर दिया गया। अब देखना होगा, असंतुष्ट नेताओं को बीजेपी किस तरह साधने की कोशिश करती है।

भीम की गदा

स्वास्थ्य विभाग में प्रसन्ना आर. को सचिव और भीम सिंह को डायरेक्टर बनाया गया है। प्रसन्ना 2004 बैच के आईएएस हैं और भीम 2008 के। प्रसन्ना और भीम में समानता ये है कि दोनों अंबिकापुर के कलेक्टर रह चुके हैं। वैसे, हेल्थ सिकरेट्री के लिए प्रसन्ना का नाम पहले से लगभग फायनल हो गया था, मगर डायरेक्टर के लिए कश्मकश की स्थिति रही। कई नामों की चर्चा चली। लेकिन, आखिरी में भीम सिंह पिक्चर में आए और उनके नाम पर मुहर लग गई। प्रसन्ना ने हेल्थ की कमान संभालते हुए कामकाज प्रारंभ कर दिया है। ज्वाईन करने के अगले दिन उन्होंने सीजीएमसी का विजिट किया तो 6 सितंबर को डीन, एमएस की अहम मीटिंग कॉल किया है। प्रसन्ना चूकि पहले भी हेल्थ में रहे हैं, इसलिए कामकाज को समझते हैं। भीम पहली बार हेल्थ में आए हैं और उनकी डील-डौल भी कुछ ऐसी है कि हेल्थ वालों को भय सताने लगा है, कहीं वे गदा न चलाने लगे।

शुरुआत मंत्री के इलाके से

राजधानी पुलिस की मीटिंग में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने इलाके वार सटोरियों और अपराधियों की लिस्ट अधिकारियों को सौंप दी थी। अब रायपुर में इस पर कार्रवाई शुरू हुई या...पता नहीं। लेकिन, गृह मंत्री के इलाके में जरूर पुलिस एक्शन में आ गई है। गृह मंत्री का विधानसभा दुर्ग के रिसाली थाने में आता है। उनके इलाके में पुलिस ने दर्जन भर सटोरिये और अपराधियों को पकड़कर जेल भेज दिया है। इसका मतलब ये हुआ कि पुलिस अपने गृह मंत्री के इलाके से सफाई कार्य शुरू करना चाहती है। चलिये, उम्मीद रखी जाए बाकी जिलो की पुलिस भी सरकार और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेगी।

कहां गई वो पुलिस...

स्कूल और कॉलेज के दिनों का याद होगा....उस समय रात में कोई बेमतलब घूमता नहीं था और रेलवे स्टेशन गए तो फिर चौक-चौराहों पर पुलिस रोककर तस्दीक करती थी। कई बार ट्रेेन की टिकिट दिखानी पड़ती थी। पुलिस अश्वस्त हो गई...बंदा ठीक है तो छोड़ दिया वरना, कई बार रात भर थाने में बिठा लिया जाता था। अब वो दिन भी नहीं रहा और वो पुलिस भी नहीं रही। पुलिस सिस्टम में सबसे बड़ी ढिलाई ये आई है कि रात की गश्त बंद हो गई है। पहले एसपी तक हफ्ते में दो-से-तीन रात पुलिस प्वांट पर धमक जाते थे। सीएसपी, टीआई और सिपाही सुबह चार बजे से पहले घर नहीं लौटते थे। अब पुलिस बड़ी उदार हो गई है। तीन सवारी जा रहा तो जाने दो, हेलमेट नहीं पहना तो क्यों रोकना। झारखंड जैसे स्टेट में स्कूटर में पीछे बैठने वाला व्यक्ति भी बिना हेलमेट साहस नहीं करता। हालांकि, पूरा दोष पुलिस को नहीं दिया जा सकता। ठीक है, पुलिस की प्राथमिकताएं बदल गई हैं....आईएएस और खासकर कलेक्टरों की डीएमएफ में अर्निंग देखकर उनका दिमाग भी चौंधियाता है....आखिर वे भी इसी समाज के आदमी है। मगर यह भी सौ फीसदी सही है कि पुलिस अगर एक अपराधी को पकड़ती है, तो मिनटों में फोन घनघनाने लगता है। अब पुलिस वाले अपनी नौकरी बचाएं या फिर कानून की रक्षा करें। राजनेताओं ने पुलिस को इतना निरीह कर दिया है कि पुलिस पर हाथ-लाठी चलने लगे। चाहे भाजपा का समय हो या कांग्रेस का, छत्तीसगढ़ पुलिस हमेशा टारगेट में रही। अब जरूरत है, पुलिस को अपना रुतबा दिखाने की।

तीन बिग विकेट

सितंबर महीना छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के लिए अहम रहेगा। इस महीने तीन बड़े अधिकारी रिटायर होंगे। इनमें छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम पहले नम्बर पर हैं। 87 बैच के आईएएस अधिकारी सुब्रमणियम भारत सरकार में सिकरेट्री हैं। वे 30 सितंबर को रिटायर होंगे। हालांकि, सुब्रमणियम दिल्ली की सत्ता में बेहद प्रभावशील माने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सचिवालय में लंबे समय तक काम करने के बाद भी मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ से बुलाकर जम्मू-कश्मीर का चीफ सिकरेट्री अपाइंट कर दिया था। और, उसके बाद वे केंद्र में सिकरेट्री बन गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी वे कुछ समय तक काम कर चुके हैं। सो, उन्हें एक्सटेंशन मिल जाए या किसी और पद पर ताजपोशी हो जाए, तो अचरज नहीं। उधर, 88 बैच के आईपीएस मुकेश गुप्ता भी इसी महीने रिटायर होंगे। तो पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी तीन साल की पारी खेल कर लौटेंगे। राकेश की पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की चर्चा है।

ईएल का सवाल

कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने तीसरे और चौथे चरण को मिलाकर कुल 17 दिन हड़ताल किया। इसमें बड़ा नुकसान उनकी छुट्टियों का हुआ। अब 17 दिन उनके ईएल में एडजस्ट किया जाएगा। साथ ही बीच में कई लोकल और सावर्जनिक अवकाश भी रहा, वो भी उनकी छुट्टियों में ऐड हो गया। और ये भी...हड़बड़ी में फेडरेशन ने हड़ताल वापिस लिया, उसके पीछे भी तीन छुट्टियों का सवाल था। फेडरेशन ने शुक्रवार को हड़ताल वापसी का ऐलान किया। इसके बाद शनिवार और रविवार अवकाश है। और सोमवार को अगर हड़ताल वापसी होती तो मंगलवार को कर्मचारी काम पर लौटते। इस चक्कर में सोमवार के साथ शनिवार और रविवार भी हड़ताल में ऐड हो जाता। याने फिर 20 दिन का ईएल खराब होता। चलिये, सरकार और कर्मचारियों दोनों के लिए अच्छा हुआ, गतिरोध खतम तो हुआ।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रात 10 बजे के बाद डीजे नहीं बजेगा, ये आदेश सिर्फ औपचारिकता है या प्रशासन और पुलिस इस पर कोई कार्रवाई करेगी?

2. क्या ये सही है कि विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपा के संभावित दावेदारों की दिल्ली की एक एजेंसी द्वारा कुंडली तैयार की जा रही है?