मंगलवार, 28 मई 2019

शक्ति संघर्ष?

26 मई 2019
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सूबे में कांग्रेस की राजनीति में क्या शक्ति संघर्ष बढ़ेगा….यह सवाल अमूमन हर जुबां पर है। कांग्रेस सरकार में नम्बर दो की हैसियत रखने वाले टीएस सिंहदेव चुनाव के पहिले ही कई बार दुहरा चुके थे, सात से कम सीटें मिलने पर पार्टी की हार मानी जाएगी। टीएस के इस सियासी बोल का मतलब कोई भी समझ सकता है। इधर, जनता ने बीजेपी को एकतरफा मेंडेट दे देकर सत्ता कैंप की मुश्किलें बढ़ा दी है। सत्ता पक्ष इसलिए सकते में है कि विधानसभा चुनाव के बाद घोषणाओं को पूरा करने के लिए क्या नहीं किया। शपथ लेने के घंटे भर में किसानों की कर्ज माफी का ऐलान हो गया। धान का समर्थन मूल्य भी बढ़ा दिया। इसके बाद भी ऐसा सिला….छह-छह मंत्रियों वाले दुर्ग में पार्टी प्रत्याशी को करीब चार लाख वोटों से पटखनी मिल गई। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में सीएम के लिए भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू दावेदार रहे। वरिष्ठता की वजह से चरणदास महंत का नाम भी चर्चाओं में रहा। लेकिन, मौका मिला भूपेश को। सो, इन नेताओं के मन में कसक तो होगी ही। लेकिन, पूरे देश में जब कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया हो….राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी सीट नहीं बचा पाए….छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं के राजनीतिक गुरू भोपाल में दो लाख वोट से निबट गए तो फिर छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार पर तकरार होने की गुंजाइश भला बचती है क्या। फिलहाल तो नहीं। हां, फर्क यह आएगा कि सरकार और सजग हो जाएगी।

महंत का कद

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भले ही करारी हार का सामना करना पड़ा हो मगर सूबे के वरिष्ठ नेता और विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत का कद बढ़ गया। विपरीत परिस्थितियों में भी उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत 26 हजार वोट से जीतने में कामयाब रही। हालांकि, कोरबा लोकसभा इलाके में जैसा महंत का प्रभाव है, खासे मार्जिन से ज्योत्सना जीती होतीं। लेकिन, महंत के एक समर्थक से उत्तर भारतीयों से झगड़ा ने मतों का अंतर कम कर दिया। कोरबा संसदीय क्षेत्र में यूपी, बिहार के वोटरों की संख्या करीब दो लाख है। खासकर कोरबा और कोरिया में अधिक हैं। कोरबा विधानसभा में ज्योत्सना 35 हजार और कोरिया इलाके में करीब 40 हजार से पिछड़ गई। महंत 88 में श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल में मंत्री बन गए थे। इसके बाद 90 के दशक में दिग्विजय सिंह सरकार में इतने पावरफुल हो गए थे कि उनकी नम्बर दो की हैसियत हो गई थी। कहा तो ये भी जाता है महंत के बढ़ते रसूख को देखकर तब के सीएम दिग्विजय ने उन्हें 1996 के लोकसभा चुनाव में जांजगीर से लड़ा कर पार्लियामेंट में भेज दिया था। महंत को गर लोकसभा चुनाव लड़ाकर किनारे नही किया गया होता तो मध्यप्रदेश के नहीं तो 2000 में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अवश्य बन गए होते।

प्रशासनिक सर्जरी

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस सरकार को हिला दिया है….तीन महीने में आखिर जनता का मूड कैसे बदल गया। सरकार अब पूरे सिस्टम में आमूलचूल बदलाव करने के मूड में है। 28 मई को आचार संहिता खतम होने के बाद सरकार मंत्रालय से लेकर जिलों के कलेक्टर, एसपी में बड़ा बदलाव करने की तैयारी कर रही है। कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर 3 जून को कलेक्टर, एसपी कांफें्रस में जिलों का पारफारमेंस देखने के बाद किया जाएगा। मंत्रालय में भी कुछ विभागों के सिकरेट्री बदले जाएंगे। हो सकता है, मंत्रालय में सरकार बड़ी सर्जरी कर दें। क्योंकि, अब सरकार समझ गई है रिजल्ट देने की बजाए खाली कुर्सी पर शोभायमान होने वाले अफसर उसकी नैया डूबो देंगे। असल में, सरकार बदलने पर कुछ ऐसे अफसर भी पिछली सरकार को कोस कर कुर्सी पाने में कामयाब हो गए, जो पूरी सर्विस में कभी काम के लिए नहीं जाने गए।

जिसका झंडा, उसके….

इस बार होने वाली प्रशासनिक सर्जरी में पिछली सरकार में अहम पदों पर काम किए अफसरों का इम्पॉटेंस बढ़ने की अटकलें लगाई जा रही है। दरअसल, अफसर किसी के नही होते। जिसका झंडा, उसके अफसर। याद होगा, अजीत जोगी के करीबी अफसर रमन सरकार में कुछ दिन तक जरूर शंट रहे, लेकिन बाद में वे ही मुख्य भूमिका में आ गए। आखिर, काम करने वाले लोगों की ही हर जगह पूछ होती है। सुबोध सिंह जोगी सरकार के दौरान रायगढ़ में साढे़ तीन साल कलेक्टर रहे और बाद में अपने काम की बदौलत रमन सिंह के सचिवालय के मजबूत स्तंभ बन गए। सुनिल कुमार, विवेक ढांड और एमके राउत….तीनों कांग्रेस सरकार में भी महत्वपूर्ण पदों पर रहे और बीजेपी में भी। रायपुर में चकाचक चौड़ी सड़कें बनाने वाले आरपी मंडल भी जोगी के बेहद करीबी रहे और रमन सरकार में जब रायपुर के कलेक्टर बनें तो पहली बार लोगों ने डेवलपमेंट देखा। मंडल ने पूरे रायपुर को बदल दिया…मरीन ड्राईव, केनाल रोड, इंटरस्टेट बस अड्डा, एयरपोर्ट रोड का सिक्स लेन। कहने का मतलब यह कि ब्यूरोक्रेट्स की कोई अपनी कोई जात और निष्ठा नहीं होती। मसूरी में उन्हें यही सिखाया भी जाता है। इसीलिए सरकार बदलने पर बड़ी कुशलता से वे पाला बदल लेते हैं। लब्बोलुआब यह है कि काम करने वाले अफसर जहां भी रहे, काम करते हैं, रिजल्ट देते हैं। और, ना करने वाले,,,,,?

तीन आईएफएस रिटायर

इस महीने भारतीय वन सेवा के तीन अफसर रिटायर हो जाएंगे। पीसीसीएफ लेवल के आईएफएस केसी यादव, कौशलेंद्र सिंह और एके द्विवेदी 30 मई को सरकारी सेवा की अपनी पारी पूरी कर लेंगे। कौशलेंद्र सिंह नान मामले में ईओडब्लू के राडार पर हैं, इसलिए वे तो नहीं मगर केसी यादव और एके द्विवेदी जरूर कोशिश में होंगे कि उन्हें कोई पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल जाए।

छत्तीसगढ़़ से मंत्री

छत्तीसगढ़ से केंद्रीय मंत्री के लिए राज्य सभा सदस्य सरोज पाण्डेय का नाम चर्चा में है। मगर उन्हें मौका तभी मिल पाएगा जब मोदी मंत्रिमंडल की पहिली लिस्ट में छत्तीसगढ़ को नुमाइंदगी मिले। क्योंकि, इस बार तेलांगना, असम जैसे कई राज्यों में बीजेपी को सीटें मिल गई हैं। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में आश्चर्यजनक रूप से सीटों की संख्या बढ़ गई है। बिहार से जेडीयू के भी इस बार मंत्री बनेंगे। अगले साल कुछ राज्यों में चुनाव होंगे। शिव सेना भी इस बार ज्यादा मंत्री मांग रही है। तो नीतिश कुमार 17 में से 17 सीटें जीत कर दिए हैं तो उनकी भी उम्मीदें हैं। ममता बनर्जी को शांति से रखने के लिए स्वाभाविक रूप से वहां ज्यादा मंत्र बनाए जाएंगे। अभी सिर्फ बाबुल सुप्रियो मंत्री हैं। कम-से-कम दो और वहां से मंत्री बनेंगे। ऐसे में, छत्तीसगढ़ से बहुत हुआ तो फर्स्ट लिस्ट में एक राज्य मंत्री का नम्बर लग जाए। हालांकि, पिछली सरकार में विष्णुदेव साय पहली लिस्ट में ही मंत्री बन गए थे। 26 मई 2014 को वे प्रधानमंत्र समेत सभी मंत्रियों के साथ शपथ लिए थे। देखना होगा, अबकी 30 मई को राष्ट्रपति भवन में छत्तीसगढ़ से कोई चेहरा नजर आता है या नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा, कांग्रेस में से किस पार्टी में लंगोट के ढिले नेताओं की संख्या ज्यादा है?
2. लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए सरकार के सभी मंत्रियों एवं नेताओं ने क्या ईमानदारी से काम किया?

रविवार, 19 मई 2019

मुखिया का मिजाज


19 मई 2019
महीने भर के ताबड़तोड़ चुनावी प्रचार से लौटने के घंटे भर बाद ही सीएम भूपेश बघेल ने सरकारी कामकाज की समीक्षा के लिए सिकरेट्री को हाउस तलब कर लिया। इसके लिए सीएम सचिवालय से एक लाइन का संदेश भेजा गया….चार बजे हाउस में साब योजनाओं का रिव्यू करेंगे। मैसेज मिलते ही मंत्रालय में हलचल बढ़ गई। सभी सशंकित थे….महीने भर बाद लौटे हैं….न जाने क्या पूछ दें। अब सीएम का खौफ तो है ही अफसरों में…कुछ मायनो में तो अजीत जोगी से भी ज्यादा….क्या पता, कोई चूक हुई तो उसी रात में छुट्टी का आदेश निकल जाए। लिहाजा, विभिन्न विभागों के सिकरेट्री लंच भूल लगे आवश्यक नोट्स तैयार करने। मगर हुआ उल्टा…, अफसर जैसा सहमे थे, हाउस में वैसा हुआ नहीं। 45 डिग्री टेम्परेचर में दौरा कर लौटे सीएम का मिजाज बड़ा कूल-कूल था। उन्होंने अफसरों से योजनाओं का फीडबैक लिया, कई इश्यूज पर गंभीरता से चर्चा भी हुई। मगर अफसरों से उन्होंने बेहद आत्मीयता से बातें की। कई बार ठहाके भी लगाए। लगता है, चुनाव में कांग्रेस के नतीजे अच्छे आने वाले हैं।

सुबोध और गीता

सुबोध सिंह और एम गीता एक ही बैच के आईएएस हैं। 97 बैच। सुबोध सिंह डेपुटेशन पर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया जाने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन, उन्हें अब तक अनुमति नहीं मिली है। मिलेगी या नहीं, इस पर अभी सस्पेंस है। उधर, एम गीता को सरकार बदलने का जरूर लाभ मिल गया। गीता को दो साल पहिले हार्वर्ड में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स करने के लिए सलेक्शन हुआ था। मगर पिछली सरकार ने उन्हें न 2017 में यूएस जाने की इजाजत दी और न 2018 में। भूपेश सरकार ने गीता को हार्वर्ड जाने के लिए हरी झंडी दे दी है। अगले महीने याने जून के एंड में वे अमेरिका रवाना होंगी।

सीएम आफिस का रिनोवेशन

मंत्रालय में सीएम आफिस का रिनोवेशन चल रहा है। सीएम प्रचार में गए, तब काम प्रारंभ हुआ था और अभी कप्लीट होने में कम-से-कम पंद्रह दिन और लग सकते हैं। तब तक मुख्यमंत्री को अपने निवास कार्यालय में ही सरकारी काम निबटाना पड़ेगा। वैसे भी मुख्यमंत्रियों को मंत्रालय और हाउस में बैठने से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, हाउस में भी पैरेलेल सारी सुविधाएं होती है, जिसमें वे सरकारी कामकाज के साथ ही मीटिंग कर सकते हैं। कैबिनेट की बैठकें भी हाउस में हो जाती हैं। यही नहीं, सौ-दो सौ आदमी की गैदरिंग भी। हालांकि, मंत्रालय के पांचवे फ्लोर के जिस चेम्बर में सीएम बैठते हैं, वो वास्तव में सीएम सिकरेट्री के लिए बनाया गया था। सुरक्षा की दृष्टि से सीएम के लिए सबसे लास्ट में बड़ा भव्य आफिस बना था। उसमें किचन गार्डन के साथ ही आराम करने के लिए भी बड़ा कमरा था। कक्ष से लगा कांफें्रस रुम भी। तीन तरफ से उसमें नया रायपुर का व्यू। चेम्बर के सामने ही सीएम के लिए विशेष लिफ्ट। लॉबी से दो दरवाजे पार कर ही सीएम के चेम्बर में पहुंचा जा सकता था। लेकिन, वास्तु के चलते तब के सीएम डा0 रमन सिंह ने उसे खारिज कर दिया। उन्होंने सिकरेट्री के कमरे को अपने आफिस के रूप में चुना। ऐसे में, मंत्रालय का सबसे बड़ा कमरा एसीएस टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार को अलाट कर दिया गया। बैजेंद्र के डेपुटेशन पर एनएमडीसी जाने के बाद अब उस कमरे में नए सीएम के सिकरेट्री टामन सिंह सोनवानी बैठ रहे हैं। चलिये, सोनवानी ने कभी नहीं सोचा होगा कि मंत्रालय के सबसे बड़े और सर्वसुविधायुक्त चेम्बर में उन्हें बैठने का अवसर मिलेगा।

एक साल में तीन डीजी

छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब एक साल में तीन डीजी रिटायर होंगे। अगले महीने जून में डीजी नक्सल और जेल गिरधारी नायक, अगस्त में पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के एमडी अमरनाथ उपध्याय और नवंबर में ईओडब्लू चीफ बीके सिंह। इनके अलावे दो डीआईजी भी हैं। एक एसएस सोरी फरवरी में रिटायर हो चुके हैं, वहीं डीएल मनहर सितंबर में बिदा होंगे। आईएएस में इस साल सात आईएएस रिटायर होंगे तो आईपीएस से भी पांच कम नहीं है।

नायक डिजास्टर में?

डीजी नक्सल एवं जेल गिरधारी नायक, राजीव माथुर और संतकुमार पासवान उन आईपीएस में शामिल हैं, जिन्होंने राज्य बंटवारे के समय मांगकर छत्तीसगढ़ कैडर लिया था। इनमें से पासवान और नायक बस्तर में आईजी रहे…. नक्सल मामलों के लंबे समय तक एडीजी भी। इसके बाद भी उन्हें डीजीपी बनने का अवसर नहीं मिला। नायक का तो नई सरकार में डीजीपी बनना लगभग तय हो गया था, बस आदेश निकलना बचा था। उन्होंने जेल मुख्यालय के आफिस से अपना पर्सनल सामान वगैरह समेटकर घर भिजवा दिया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन ब्रेकर बन गया। शीर्ष कोर्ट का निर्देश है कि जिन आईपीएस का रिटायरमेंट में छह महीने या इससे कम बचा हो, उन्हें पुलिस प्रमुख न बनाया जाए। लिहाजा, डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाना पड़ा। अब विडंबना देखिए, डीएम का जैसे ही आदेश निकला, उसके पखवाड़े भर बाद सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने की शर्त हटा दी। याने 15 दिन पहले ये आदेश आ गया होता तो नायक आज डीजीपी की कुर्सी पर बैठे होते। बहरहाल, वक्त ने नायक के साथ जो किया, वह सरकार की नोटिस में है। अगले महीने रिटायरमेंट के बाद उन्हें स्टेट डिजास्टर अथॉरिटी का चेयरमैन बनाने की चर्चा है। भूकंप, तबाही मचाने वाली बाढ़, फोनी तूफान जैसे राष्ट्रीय आपदा से निबटने के लिए इस अथॉरिटी का गठन किया जा रहा है। हालांकि, नायक जैसे तेज-तर्राट अफसर के लिए इसमें भी काम कुछ नहीं होगा क्योंकि, छत्तीसगढ़ में भूकंप, बाढ़ और फोनी तूफान आता नहीं। चलिये, पांच साल की पोस्टिंग तो रहेगी।

आईएफएस की वापसी

सरकार बनने के बाद मंत्रालय और विभिन्न बोर्ड, मंडलों से थोक में वन मुख्यालय भेजे गए आईएफएस अफसरों में से कुछ की सरकार में वापसी की अटकलें शुरू हो गई है। कुछ अफसर बोर्डो में, तो कुछ मंत्रालय में लौट सकते हैं। जाहिर है, रमन सरकार में ढाई दर्जन से अधिक आईएफएस डेपुटेशन पर सरकार में पोस्टेड थे। लेकिन, भूपेश सरकार ने तीन-चार को छोड़कर सभी को चलता कर दिया था।

28 के बाद ट्रांसफर

23 मई को काउंटिंग के बाद भी ऑन पेपर 28 मई तक आचार संहिता प्रभावशील रहेगी। हालांकि, सरकार चाहे तो चुनाव कार्यालय से अनुमति लेकर ट्रांसफर या नया कोई ऐलान कर सकती है। अलबत्ता, 24 मई की सुबह तक कुछ राज्यों के नतीजे आएंगे। याने 28 में तब चार दिन बचेंगे। इसलिए, समझा जाता है 29 से सरकार का सामान्य कामकाज शुरू हो जाएगा। उसी के बाद मंत्रालय समेत कुछ जिलों में कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर भी कर सकती है। यद्यपि, जून के पहिले हफ्ते में कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस है। सो, या तो इससे पहिले लिस्ट निकलेगी। या फिर कांफ्रेंस में अफसरों के पारफारमेंस देखने के बाद आदेश निकाले जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या किसी सीनियर आईएएस को बुलाने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा है?
2. छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों से कांग्रेस-भाजपा को कितनी सीटें मिलेंगी?

सोमवार, 13 मई 2019

मंत्री पत्नी पर आपत्ति और…


12 मई 2019
आदिवासी मंत्री प्रेमसाय सिंह ने अपनी पत्नी को पीएस बनाया तो सरकार ने आदेश निरस्त कर दिया। लेकिन, एक मंत्री के बेटे उनके पर्सनल स्टाफ के रूप में लंबे समय से काम कर रहे हैं तो सिस्टम को कोई एतराज नहीं। आखिर ऐसा दोहरा बर्ताव क्यों? कांग्रेस के एक नेता ने जोगी सरकार में मंत्री रहते हुए अपने बेटे को विधानसभा में क्लास थ्री की नौकरी लगवा ली थी। कुछ साल पहले उन्होंने एक चुनाव जीता तो स्पीकर से आग्रह कर बेटे को अपने साथ काम करने के लिए विधानसभा से रिलीव करा लिया। नेताजी अब मंत्री बन गए हैं। बेटा अब पिताजी के साथ अटैच हो गया है।

उच्च सदन का ऊंचा….

विधानसभा बोले तो सूबे का सबसे ऊंचा और गरिमामय स्थान। यह जगह छत्तीसगढ़ के नेताओं के नाते-रिश्तेदारों या फिर उनके स्टाफ को पिछले दरवाजे से घुसाने का उपक्रम बन गया है। पिछले 19 साल में वहां डेढ़ सौ से अधिक भर्तियां हुई और इनमें से अधिकांश नेताओं के अपनो को ही मौका मिल पाया। बिलासपुर हाईकोर्ट ने हाल ही में दस साल नौकरी कर चुके आठ मार्शलों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उनके खिलाफ भी भरती में अनियमितता के गंभीर आरोप पाए गए। यही नहीं, विधानसभा के अनगिनत लोग सालों से नेताओं के यहां अटैच हैं और विधानसभा से वेतन उठा रहे। भाजपा के एक पूर्व मंत्री के पीए 15 साल से विधानसभा से बाहर है। कायदे से मंत्रियों को पीए मुहैया कराने का काम जीएडी का है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में उल्टा हो रहा है। यहां विधानसभा जीएडी का रोल कर रहा है। अभी पिछले दिनों ही एक सीनियर मंत्री के पीए को विधानसभा ने स्वागत अधिकारी की नौकरी दी है। हालांकि, इसकी प्रक्रिया विधानसभा चुनाव के पहिले शुरू हो गई थी। प्लान हुआ था कि एक विधानसभा में उच्च पद पर बैठे एक भाजपा नेता और कांग्रेस के एक नेता के एक-एक व्यक्ति को स्वागत अधिकारी बनाया जाए। लेकिन, प्रक्रिया होते-होते चुनाव आ गया। अब भाजपा की सरकार चली गई। लिहाजा, विधानसभा ने बीजेपी नेता के आदमी को छोड़ कांग्रेस नेता के स्टाफ को स्वागत अधिकारी बनाने का आदेश जारी कर दिया। स्वागत अधिकारी काम करेगा मंत्री के साथ और तनख्वाह उठाएगा विधानसभा से। बहरहाल, अब साफ-सुथरी छबि के नेता चरणदास महंत स्पीकर बन गए हैं। उनसे उम्मीद है कि वे इस पर कुछ जरूर करेंगे।

अकबर ने छोड़ा पद

आवास पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन का पद छोड़ दिया है। टेक्नीकल योग्यता वाले इस पद पर इससे पहिले कभी भी कोई राजनीतिज्ञ नहीं रहा। कांग्रेस की नई सरकार ने निगम, आयोगों में नए चेयरमैन अपाइंट करने की बजाए तत्कालिक तौर पर विभागीय मंत्रियों को चेयरमैन का दायित्व सौंपा था। मोहम्मद अकबर को पौल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन, नियमों का पता चला तो उन्होंने चेयरमैन का पद छोड़ने में देर नहीं लगाई। आवास पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री संगीता पी को अब चेयरमैन की जवाबदेही दी गई है। असल में, पौल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन के लिए बीई या साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट होना चाहिए। हालांकि, ये दोनों ही अर्हताएं संगीता भी पूरी नहीं करती। वे आर्ट से ग्रेजेएट हैं। अब लोकसभा चुनाव के बाद देखना होगा कि सरकार उन्हें इस पद पर बनाए रखती है या कोई फैसला लेती है।

किस्मत हो तो….

आईएएस निरंजन दास को सरकार ने एक्साइज कमिश्नर के साथ एक्साइज सिकरेट्री का जिम्मा सौंपा है। एक्साइज का मतलब आप समझ रहे होंगे, जहां काम कुछ नहीं, महीने में चंद फाइलें। मगर बाकी का तो पूछिए मत….! सब कुछ होता है। निरंजन के पास एक्साइज के अलावे नागरिक आपूर्ति निगम याने नान के प्रबंध निदेशक का पद भी बना रहेगा। नान भी कम नहीं है। वही कथित 35 हजार करोड़ के घपले वाला। निरंजन पर पिछली सरकार ने भी नजरे इनायत में कमी नहीं की। स्पेशल सिकरेट्री होने के बाद भी उन्हें नगरीय प्रशासन विभाग के सिकरेट्री का चार्ज दे दिया था। इस पोस्ट पर कभी विवेक ढांड, एमके राउत, सीके खेतान और आरपी मंडल जैसे अफसर रहे हैं। कांग्रेस सरकार आई तो उन्हें नान का एमडी बना दिया। और, अब एक्साइज। याने किस्मत हो तो….। खैर….किस्मत तो ठीक है, उनकी पोस्टिंग से सीनियर अफसर घबराने लगे हैं। पहले वे नगरीय प्रशासन सचिव डा0 रोहित यादव को रिप्लेस किए थे और अब रोहित के ही 2002 बैच के डॉ0 कमलप्रीत की जगह पर आबकारी में पोस्टिंग पाए हैं। निरंजन आबकारी में ही कमलप्रीत के नीचे स्पेशल सिकरेट्री एक्साइज थे। और, इससे पहिले रोहित के विभाग में डायरेक्टर रहे। जाहिर है, अफसर तो घबराएंगे ही, पता नहीं निरंजन से कब खो हो जाएं।

23 मई पर नजर

23 मई को लोकसभा के नतीजे आएंगे। उसी दिन देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, यह भी तय हो जाएगा। लिहाजा, पूरे देश को 23 मई का इंतजार है तो छत्तीसगढ़ के लोगों की नजर भी इसी डेट पर है। क्योंकि, 23 के बाद ही न केवल राज्य में सरकारी काम प्रारंभ हो पाएंगे। बल्कि, सरकार की सही सोच सामने आएगी कि वह राज्य को विकास की किस दिशा में ले जाना चाहेगी। दरअसल, विधानसभा चुनाव के बाद सरकार को काम करने का मौका मिला नहीं। चुनावी घोषणाओं पर अमल करने के कुछ फैसले हुए कि लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया। छत्तीसगढ़ जैसे देश के पांच राज्यों के लिए दिक्कत यह है कि विधानसभा चुनाव के तीन महीने बाद लोकसभा चुनाव आ जाता है। ऐसे में, आठ महीने तक पूरा सिस्टम बैठ जाता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भूपेश सरकार का बारहवां मंत्री क्या बस्तर से बनेगा?
2. डीजी नक्सल गिरधारी नायक को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी?

रविवार, 5 मई 2019

चुनाव बाद पोस्टिंग

5 मई 2019
आचार संहिता हटने के बाद कुछ जिलों के कलेक्टर, एसपी बदलेंगे तो मंत्रालय में सिकरेट्री की एक लिस्ट भी निकलेगी। ़प्रमुख सचिव ़़ऋचा शर्मा के डेपुटेशन पर दिल्ली जाने के बाद खाद्य विभाग में नई पोस्टिंग नहीं हुई है। शहला निगार भी छुट्टी से लौट आई हैं। उन्हें भी विभाग मिलेगा। 23 मई के बाद राज्य निर्वाचन पदाधिकारी सुब्रत साहू भी मूल सेवा में लौटेंगे। सुब्रत प्रिंसिपल सिकरेट्री रैंक के अफसर हैं। दो-दो चुनाव कराकर लौट रहे हैं तो जाहिर है, उन्हें कोई महत्वपूर्ण पोस्टिंग ही मिलेगी। वैसे, उन्हें पीडब्लूडी मिलने की चर्चा ज्यादा है। पीडब्लूडी अभी एसीएस अमिताभ जैन के पास है। मार्कफेड संभाल रहे अम्बलगन पी को खाद्य विभाग की जिम्मेदारी मिल सकती है। उधर, सिकरेट्री राजभवन और सिकरेट्री हायर एजुकेशन सुरेंद्र जायसवाल इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। सरकार को 31 मई को सिकरेट्री टू गवर्नर और सिकरेट्री हायर एजुकेशन भी अपाइंट करना होगा। ऐसे में, एक चेन बनेगा तो कुछ और विभागों के सिकरेट्री लिस्ट में शामिल हो जाएं तो अचरज नहीं।

रिटायरमेंट की कतार

इस साल रिटायर होने वाले आईएएस की लगता है, लाइन लग जाएगी….आईएएस ओमेगा टोप्पो मार्च और हीरालाल नायक अप्रैल में रिटायर हुए हैं। इस महीने 31 मई को सिकरेट्री हायर एजुकेशन और सिकरेट्री राजभवन सुरेंद्र जायसवाल सेवानिवृत्त होंगे। उनके बाद जुलाई में एमडी खादी बोर्ड आलोक अवस्थी, सितंबर में सिकरेट्री संसदीय कार्य एवं कृषि हेमंत पहाड़े, अक्टूबर में चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर और एसीएस केडीपी राव और नवंबर में सिकरेट्री एनके खाखा मंत्रालय से बिदा हो जाएंगे। याने एक साल में चीफ सिकरेट्री, एडिशनल चीफ सिकरेट्री समेत सात आईएएस का रिटायरमेंट। जाहिर है, मंत्रालय में एक बड़ा वैक्यूम आएगा। वैसे, स्टडी लीव पर यूएस गए मुकेश बंसल अगले महीने और सोनमणि बोरा जुलाई में लौटेंगे तो दो अफसर हो जाएंगे।

सुख-दुख के साथी

31 मई को एक साथ रिटायर होने वाले चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर और एसीएस केडीपी राव में एक समानता और है। दोनों का भाग्योदय एक साथ हुआ। सुनील कुजूर लंबे समय से हांसिये पर रहे। सपने में भी उन्होने कभी चीफ सिकरेट्री की कुर्सी नहीं देखी होगी। कमोबेश यही स्थिति केडीपी की रही। केडीपी ने भी लगभग मान लिया था कि अब राजस्व बोर्ड से उनकी बिदाई हो जाएगी। लेकिन, सरकार बदलते ही कुजूर की किस्मत ऐसी पलटी कि मंत्रालय की सबसे उंची कुर्सी पर विराजमान हो गए। तो केडीपी भी एसीएस एग्रीकल्चर एवं एपीसी बन गए। वैसे, दोनों अफसरों में पुराने मंत्रालय के समय से अच्छी बनती है।

68 सीटों का प्रभाव

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 68 सीटें मिलने के बाद छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं का वजन लगता है, कांग्रेस की राजनीति में बढ़ गया है। पहली बार पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र में प्रचार का जिम्मा छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को सौंपा है। अमेठी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रचार की कमान तो संभाली ही, मंत्री, विधायक से लेकर मेयर, पार्षद तक में अमेठी जाने की होड़ लग गई। कांग्रेस नेताओं के अमेठी में झोंकने के पीछे वजह यह है कि 2014 के चुनाव में राहुल गांधी की लीड कम हो गई थी। लिहाजा, अमेठी की लीड बढाने कांग्रेस कोई कसर नहीं रखना चाहती।

करे कोई, भरे कोई

पिछले दस साल में व्यापम ने अपनी क्रेडिबिलिटी बनाई, वह चिप्स की चूक से पूरी धूल गई। याद होगा, पीएमटी एग्जाम का दो-दो बार पर्चा आउट होने के बाद सरकार ने व्यापम की सर्जरी कर दी थी। दागी छबि के कंट्रोलर को हटाकर प्रदीप चौबे को बिठाया गया था। इसके बाद व्यापम ने विभिन्न विभागों में भरती के लिए दर्जनों परीक्षाएं ली, किसी में भी गड़बड़ी नहीं हुई। लेकिन, चिप्स के अफसरों ने व्यापम का नाम ही खराब नहीं किया बल्कि सीएम को भी दुखी कर दिया। सरकार को चिप्स को दुरुस्त करना चाहिए। क्योंकि, वहां कुछ अफसर प्रायवेट लिमिटेड की तरह चिप्स को चला रहे हैं।

एसआईटी पर ढिलाई

सीएम भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव में क्या व्यस्त हुए, राज्य में जितनी भी एसआइटी गठित हुई है, सभी लगभग ठंडे बस्ते में चली गई हैं। संकेत हैं, चुनाव के बाद सीएम एसआइटी की समीक्षा करेंगे। इसके बाद शायद उसकी वर्किंग में रफ्तार आए। सरकार ने विभिन्न केसों में आधा दर्जन के करीब एसआइटी बनाई है।

अफसरों को राहत!

समाज कल्याण के डायरेक्टर रजत कुमार को छत्तीसगढ़ का जनगणना निदेशक बनाया गया है। इस जनगणना की पोस्टिंग ने पिछले साल से आईएएस अफसरों की नींद उड़ा रखी थी। इसके लिए पिछली सरकार ने भुवनेश यादव, यशवंत कुमार, अलेक्स पाल मेनन और अंकित आनंद का नाम भारत सरकार को भेजा था। भारत सरकार ने इसके लिए अंकित का नाम ओके कर आदेश जारी कर दिया था। अंकित का आदेश जब यहां आया तो हड़कंप मच गया। वे बिजली कंपनी के एमडी थे। लिहाजा, सरकार ने रिलीव करने से दो टूक इंकार कर दिया। अंकित की जगह पर किसी और अफसर की पोस्टिंग होती तब तक विधानसभा चुनाव आ गया। नई सरकार ने जनगणना निदेशक के लिए रजत कुमार का नाम भारत सरकार को भेजा और वहां से उनका नाम फायनल होकर भी आ गया। हालांकि, रजत के लिए राहत यह है कि यह उनकी एडिशनल पोस्टिंग होगी। यानी राज्य शासन में भी वे बनें रहेंगे। बहरहाल, इस पोस्टिंग के बाद कई अफसरों ने राहत की सांस ली है….चलो मैं तो बच गया।

पोस्टिंग का रास्ता

नान मामले में आईएएस अनिल टुटेजा को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। समझा जाता है, सेम ग्राउंड पर डा0 आलोक शुक्ला को भी बेल मिल जाए। उनके भी बेल के कागजात तैयार हैं। हाईकोर्ट से चूकि अग्रिम जमानत मिल गई है, इसलिए समझा जाता है अब उनकी पोस्टिंग का रास्ता भी खुल जाएगा। दोनों 2015 से बिना विभाग के हैं। आलोक के रिटायरमेंट में एक साल बचा है तो टुटेजा के चार साल। आलोक 86 बैच के आईएएस हैं। यानी चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर के बैच के। वे अगर नान के लपेटे में नहीं आए होते तो हो सकता था आज वे किसी उंची कुर्सी पर होते। टुटेजा का आईएएस अलॉट होने से पहिले सब ठीक-ठाक रहा। आईएएस बनते ही एडिशनल कलेक्टर बनाकर कांकेर भेज दिया गया। वहां से बड़ी मुश्किल से वे रायपुर लौटे थे। नान में भी आठ महीने ही वे एमडी रहे। अब इसे समय का फेर ही कहें, वरना दोनों रिजल्ट देने वाले बड़े काबिल अफसर थे।

अंत में सवाल आपसे

 सीएम भूपेश बघेल ने बृजमोहन अग्रवाल को जन्मदिन पर बधाई देते हुए लिखा, ईश्वर उन्हें दुश्मनों से निबटने के लिए साहस दें। भूपेश का इशारा बृजमोहन के किस दुश्मन की ओर था?