रविवार, 31 मई 2015

तरकश, 31 मई


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संजय दीक्षित

पीए का कमाल

मंत्रियों के पीए और उनके स्टाफ द्वारा तोरी की बात कोई नई नहीं है। लेकिन, एक नए मंत्री का स्टाफ इतना जल्दी शुरू हो जाएगा, हैरत होती है। मंत्रीजी ने 22 मई को शपथ लिया और 25 मई को उनके एक चंगु ने बिलासपुर के डिप्टी डायरेक्टर को फोन लगा दिया, मंत्रीजी के किचन का सामान लेने के लिए एक पेटी भिजवा दो। फिर, दूसरे से गाड़ी में फ्यूल भराने के लिए 50 हजार का डिमांड। दुर्ग के डिप्टी डायरेक्टर को भी फोन लगवाया गया। हालांकि, दुर्ग वाले ने दो टूक इंकार कर दिया। मंत्रीजी का स्टाफ इसी तरह सक्रिय रहा, तो मंत्री को लेने के देने पड़ सकते हैं।

जरा संभलके

श्रम मंत्री बनने के बाद भैयालाल राजवाड़े बड़े उत्साहित है। सिस्टम बदलने की बात कर रहे हैं। बिलासपुर में मीडिया से चर्चा में अपने सूट को लेकर विवादित बयान दे डाला। कोट-टाई पहनकर शपथ लेने पर मीडिया ने सवाल किया, तो मंत्रीजी तमतमा गए। बोले, क्या वे बिना कपड़े के शपथ लेते। राजवाड़े का उत्साह स्वाभाविक भी है। पहली बार मंत्री बने हैं…..बड़े-बड़े कल-कारखाने सीधे उनके अंदर आ गए हैं। जब चाहे किसी को टाईट कर सकते हैं। मगर मंत्रीजी को शायद नहीं मालूम कि इंडस्ट्रीज लाबी के तार कहां से जुड़े होते हैं। सरकार किसी की भी पार्टी की हो, चलती उन्हीं की है। बीजेपी की पहली पारी में बृजमोहन अग्रवाल को गृह के साथ श्रम विभाग भी मिला था। याद होगा, बृजमोहन तब कितने पावरफुल थे। इसके बाद भी, आठ महीने में श्रम विभाग चेंज हो गया था। इसलिए, मंत्रीजी जरा संभलके।

नए तेवर

संस्कृति एवं सहकारिता मंत्री दयालदास बघेल का पिछला कार्यकाल कैसा रहा, ये बताने की जरूरत नहीं है मगर अबकी तो वे नए तेवर में नजर आ रहे हैं। गुरूवार को उन्होंने मार्कफेड के अफसरों की जमकर क्लास ले डाली। एक डीएमओ को यहां तक कह दिया, तुम जेल से छुटकर फिर से उसी जिले का डीएमओ कैसे बन गए तो रायपुर वाले से बोले, सस्पेंशन रिस्टेट होने के बाद तुम्हें रायपुर जैसे बड़े जिले की कमान कैसे मिल गई। अब, ये अलग सवाल है कि मंत्रीजी ने पहली बैठक मार्कफेड की ही क्यों ली। और, उन्हें इसके लिए फीडबैक कौन दिया…..इसके पीछे कौन-सी लाबी काम कर रही है। बहरहाल, कारण कोई भी हो, मंत्रीजी जोर से बरसे।

वाह मंत्रीजी!

नान घोटाले में अफसर भले ही टारगेट में रहे, मगर अपने मंत्रीजी लोग कम थोड़े ही हैं। एक बानगी देखिए। दिल्ली का एक फर्म नान में दाल सप्लाई करता है। नान के नियमों केे अनुसार छत्तीसगढ़ में उसकी दाल मिल होनी चाहिए। सो, उरकुरा में 2010 से कागजों में दाल मिल चल रही थी। इस बार जब मिल की अनुमति का नवीनीकरण करने फैक्ट्री अफसर पहुंचे, तो वहां मिल के बदले घास उपजा हुआ था। फैक्ट्री विभाग ने जब फर्जी दाल मिल का रीनिवल करने से मना किया तो एक तेज-तर्रार मिनिस्टर का फोन आ गया। अब नान का केस मुकेश गुप्ता के पास है। मिनिस्टर के प्रेशर में अगर वह फर्जी मिल का रीनिवल करता तो एसीबी के लपेटे में आता। ऐसे में, अफसर ने लंबी छ्ट्टी पर जाना ही मुनासिब समझा।

टेम्पोरेरी पोस्टिंग

बलौदा बाजार कलेक्टर राजेश टोप्पो की कमिश्नर ट्राईबल की पोस्टिंग टेम्पोरेरी मानी जा रही है। इसके पीछे तर्क यह कि साढ़े तीन साल रिकार्ड कलेक्टरी करने वाला आईएएस इस तरह डिरेल्ड नहीं होगा…..एक जिला करने के बाद आउट हो जाए। समझा जाता है, ठीक-ठाक जिले में भेजने के चक्कर में ही उनके ट्रांसफर में लेट हुआ। फिलहाल, कोई बड़ा जिला खाली भी नहीं है, इसलिए उन्हें कमिश्नर ट्राईबल बनाया गया है। जुलाई में विधानसभा के मानसून सत्र के बाद कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलेगी, उनमें उनका नम्बर लग सकता है। हालांकि, दो-तीन छोटे जिलों के कलेक्टरों की लिस्ट अगले महीने निकल सकती है। इसमें 2008 बैच के एकाध आईएएस को एडजस्ट किया जाएगा। इस बैच में राजेश राणा और शिखा राजपूत बचे हैं। इनके चक्कर में 2009 बैच का नम्बर नहीं लग पा रहा है।

पहला जिला

रीता शांडिल्य के कलेक्टर पोस्ट होने के बाद बेमेतरा देश का पहला जिला बन गया है, जहां कलेक्टर एवं एसपी, दोनों महिला हैं। बेमेतरा में पारुल माथुर पहले से एसपी हैं। फिलहाल, वे मैटरनिटी लीव पर हैं। जल्द ही वापस लौटने वाली हैं। बहरहाल, सूबे में कलेक्टरी में महिलाओं का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है। दुर्ग, रायगढ़, कोरबा, अंबिकापुर, कांकेर के बाद बेमेतरा में भी महिला कलेक्टर हो गई हैं। बड़े जिलों में अब रायपुर, बिलासपुर, जांजगीर और राजनांदगांव बच गया है, जहां महिलाएं अभी नहीं पहुंच सकी हैं। मगर 2009 बैच में प्रियंका शुक्ला, किरण कौशल कलेक्टर की तगड़ी दावेदार हैं। 2008 बैच की शिखा राजपूत है हीं। अभी जिन छह जिलों में महिला कलेक्टर पोस्टेड हैं, वहां तलवार लटकने जैसी स्थिति नहीं है। ऐसे में, महिला कलेक्टरों की संख्या एक तिहाई पहुंच जाए, तो अचरज नहीं।

अब आईएएस

अगला डायरेक्टर, मेडिकल एजुकेशन आईएएस हो सकता है। वर्तमान डायरेक्टर प्रताप सिंह आईएफएस हैं और सितंबर में रिटायरमेंट होने के कारण वे वन मुख्यालय लौटना चाहते हैं। ताकि, उनका पेंशन आदि प्रकरणों को बनवाने में सहूलियतें हो सकें। हालांकि, डाक्टरों की एक लाबी नए हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर पर प्रेशर बनाने के लिए चंद्राकर और प्रताप सिंह में विवाद की बात फैला रहा कि नाराज होकर वे वन मुख्यालय लौटना चाहते हैं। जबकि, वास्तविकता यह है कि चंद्राकर को हेल्थ मिलने से पहले ही डीएमई ने सीएस को रिलीव करने के लिए लेटर लिख दिया था। सोशल मीडिया में कहानी गढ़ दी गई कि चंद्राकर के वन मंत्री रहते दोनों में विवाद हुआ था। मगर वास्तविकता यह है कि चंद्राकर के पास कभी वन रहा ही नहीं। मेडिकल लाबी की कोशिश यह है कि किसी डाक्टर को ही डीएमई बनाया जाए।

कटारिया माडल

सूबे की एक जिला पंचायत सीईओ भी इन दिनों कटारिया की राह पर हैं। हालांकि, वे सार्वजनिक नल पर पानी पीते हुए फोटो तो नहीं खिंचवा रही मगर काम कुछ उसी तरह का है। पहले वे सिस्टम में खामियां गिनाकर अफसरों को जमकर लताड़ती हैं, फिर उसके वीडियो व्हाट्सएप पर लोड कर सोशल मीडिया में वाहवाही लेती हैं। सरकार की नोटिस में यह बात आ गई है। अगले फेरबदल में मैडम की जिले से बिदाई हो जाए, तो ताज्जुब नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सोशल मीडिया के सबसे चर्चित आईएएस अमित कटारिया आखिर, इस बात का खंडन क्यों नहीं करते कि वे एक रुपए वेतन लेतेे है?
2. मनिराम से अत्यधिक प्यार करने वाली एक महिला आईएएस का नाम बताइये, जिन्हें सरकार कलेक्टर बनाने से हिचकिचा रही है?

शनिवार, 23 मई 2015

तरकश, 24 मई

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फ्री हैंड…बट

मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह के ग्रह-नक्षत्र लगता है, फिर स्ट्रांग हो गए हैं। नगरीय निकाय चुनाव के बाद एक दौर वह भी आया था, जब उनकी कुर्सी हिलती दिख रही थी। सीनियर मंत्रियों ने दिल्ली विजिट तेज कर दिया था। मगर, छत्तीसगढ़ दौरे में जिस तरह प्रधानमंत्री ने उनकी पीठ थपथपाई और अमित शाह ने मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के लिए उन्हें फ्री हैंड दिया, पार्टी में उनके विरोधी भी स्तब्ध हैं। जिन अमित शाह से मुलाकात न होने के चलते पिछले महीने मंत्रिमंडल विस्तार टल गया था, पिछले हफ्ते मुलाकात हुई तो बताते हैं, उन्होंने इस पर चर्चा भी करने की जरूरत नहीं समझी। संगठन के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो मुलाकात के दौरान सीएम ने जैसे ही मंत्रिमंडल विस्तार की बात शुरू की, शाह ने कहा, रमनजी इसे आप देख लीजिए। जबकि, सीएम पूरी तैयारी के साथ गए थे। मंत्रियों के साथ ही सीनियर विधायकों की सूची भी थी। लेकिन शाह ने एक वाक्य में चेप्टर क्लोज कर दिया। फिर, पीएम का बस्तर विजिट, डेवलपमेंट और नक्सल इश्यू पर चर्चा होने लगी। अब, ये अलग बात है कि सीएम ने फ्री हैंड का लाभ नहीं उठाया। नए मंत्रियों या फिर संसदीय सचिवों की पोस्टिंग में क्षेत्र, जाति और सामुदाय में संतुलन रखा। अलबत्ता, लोगों की उम्मीदें थी और उत्सुकता भी, कि कुछ पुराने चेहरे को बदलकर वे अपनी टीम को और कसेंगे। बट…..।

बड़ी खबर

अंदर की खबर है……मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले सूबे के दो मंत्री और एक विधायक दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मिले थे। मकसद था, एक विधायक को मंत्री बनाना और मंत्रीजी को ठीक-ठाक विभाग मिल जाए। बताते हैं, शाह ने पहले तो मिलने का टाईम नहीं दिया। बाद में, जोर-जुगाड़ लगाकर उनसे मिलने में कामयाब हो गए तो शाह ने यह पूछकर नेताओं के उत्साह पर ठंडा पानी डाल दिया कि फलां समय जो कांड हुआ था, उसे आपलोगों ने ही कराया था न! शाह बेहद प्रोफेशनल राजनीतिज्ञ हैं। जिन नेताओं को वे अपाइंटमेंट देते हैं, उनके बारे में उनका स्टाफ पूरा फीडबैक उन्हें दे देते हैं। शाह के इस सवाल के बाद अब कुछ गंुजाइश बची नहीं थी। इसके बाद ही कुछ मंत्रियों को ड्राप करने की बातें उड़ी थीं।

कटारिया इम्पैक्ट

राजभवन में तीन नए मंत्रियों के शपथग्रहण में कटारिया एपीसोड हावी रहा। खासकर, ब्यूरोके्रट्स पर। ड्रेस के मामले में वे बेहद सजग दिखे। कुछ ने बंद गला का सूट पहन रखा था। जो सूट नहीं पहने, वे भी शोबर पोशाक में थे। सलिके से। हाफ शर्ट मंे तो कोई नहीं। शपथ के बाद दरबार हाल में ड्रेस ही चर्चा का केंद्रबिंदु रहा। किस मंत्री को कौन-सा विभाग मिलेगा, यह सवाल लगभग गौण था। लाइट कलर शर्ट भी अगर किसी ने पहनी थी तो लोग चुटकी लेते थे, आप भी कटारिया की तरह तो नहीं।

अमर का वजन

मंत्रिमंडल के विस्तार में सर्वाधिक कोई नफा में रहा तो वे हैं अमर अग्रवाल। हेल्थ से मुक्ति मिल गई और उपर से उद्योग और वाणिज्य जैसे अहम विभाग भी मिल गए। रमन की फस्र्ट इनिंग में अमर इन दोनों विभागों को संभाल चुके हैं। वजनदार विभागों के मामले में अब वे सबसे उपर हो गए हैं। नगरीय प्रशासन होने के कारण बड़े शहरो से लेकर नगर पंचायतों तक उनकी दखल तो है ही। इंडस्ट्री और कामर्स भी अब उनके हाथ में है। वाणिज्यिक कर विभाग भी उनके पास यथावत रहेगा। हालांकि, अजय चंद्राकर के पास पंचायत के साथ हेल्थ मिला है। इस तरह उनके पास दोनों बड़े विभाग हो गए हैं। लेकिन, यह भी सही है कि बेमन से ही वे हेल्थ लिए होंगे। इसके लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था।

ना बाबा….

नए मंत्रियों के शपथ ग्रहण के बाद राजभवन के दरबार हाल में सबसे अधिक उत्सुकता थी कि हेल्थ किसको मिल रहा है। हेल्थ को लेकर लोग खूब चटखारे ले रहे थे। अजय चंद्राकर ने प्रेमप्रकाश पाण्डेय से मजाक किया, हेल्थ आपको मिल रहा है। पाण्डेय के हाथ में चोट लगी है। वे स्क्रेप बैंड बांध कर आए थे। उन्होंने अपना हाथ दिखाते हुए तपाक से कहा, जो अपना हेल्थ नहीं सुधार सकता, वह दूसरों का हेल्थ क्या सुधारेगा। इस पर खूब ठहाके लगे।

सोशल मीडिया की हीरोइन

एक जिला पंचायत की सीईओ भी अमित कटारिया की तरह सोशल मीडिया की हीरोइन बनने की राह पर चल पड़ी हैं। हालांकि, वे सार्वजनिक नल पर पानी पीने जैसा ढांेग तो नहीं कर रही मगर काम कुछ उसी तरह का है। पहले वे सिस्टम में खामियां निकालकर अफसरों को जमकर फटकार लगाती हैं, फिर उसके वीडियो व्हाट्सएप पर लोड कर दिए जाते हैं। सरकार की नोटिस में यह बात आ गई है। जल्द होने वाले फेरबदल में उनकी छुट्टी तय मानिये।

कलेक्टरों की बारी

मंत्रिमंडल का विस्तार और संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद अब कलेक्टरों की लिस्ट निकलेगी। चार से पांच जिलों के कलेक्टरों के बदलने की खबरें आ रही हैं। बलौदा बाजार का नाम इनमें सबसे उपर है। राजेश टोप्पो को वहां साढ़े तीन साल से उपर हो गया है। दंतेवाड़ा कलेक्टर सेनापति का भी नम्बर लग सकता है। सबसे बड़ी दिक्कत टोप्पो को लेकर आ रही है। बड़ा जिला कोई खाली नहीं है और छोटे जिले में उन्हें अब भेजा नहीं जा सकता। बड़े जिलों में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, जांजगीर, रायगढ़, कोरबा, राजनांदगांव, अंबिकापुर, सभी फुल है। जांजगीर, रायगढ़ और राजनांदगांव में हाल ही में पोस्टिंग हुई है। सो, वहां चांस नहीं है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अमित कटारिया आखिर, इस बात का खंडन क्यों नहीं करते कि वे एक रुपए वेतन लेते हैं?
2. सोशल मीडिया ने अतिसक्रियता दिखाकर अमित कटारिया का नुकसान कराया या फायदा?

रविवार, 3 मई 2015

तरकश, 3 मई


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यौन प्रताड़ना और लीपापोती

इसे दीया तले अंधेरा ही कहा जा सकता है…..पुलिस मुख्यालय में महिला पुलिस अधिकारी दिनदहाड़े छेड़खानी का शिकार हो जाए और उसमें कार्रवाई की बजाए लीपापोती का प्रयास किया जाए। घटना पिछले हफ्ते की है। पुराने पीएचक्यू में महिला सब इंस्पेक्टर लिफ्ट से नीचे उतर रही थी। इस दौरान एक एआईजी ने अकेला देखकर उसे पकड़ने की कोशिश की। महिला ने किसी तरह अपने को बचाया। पीडि़त महिला ने शिकायत की है कि एआईजी उसे लगातार एसएमएस भेज रहे थे। बात उपर पहुंची तो मामले का लिंगारान करने के लिए केस को विशाखा कमेटी के हवाले कर दिया गया। जबकि, निर्भया कांड के बाद किसी महिला को घुरना भी आईपीसी के अंतगर्त अपराध की श्रेणी में आता है। बताते हैं, पुलिस महकमा अपने आरोपी अफसर पर कार्रवाई करना चाहता है। मगर गृह विभाग के अफसर इसके पक्ष में नहीं हैं। गंभीर बात यह भी है कि विशाखा कमेटी की जांच में पीएचक्यू की तीन और महिलाओ ने भी आगे आकर अफसर के खिलाफ इसी तरह की हरकत करने का आरोप लगाया है। बहरहाल, यह घटना उस पीएचक्यू में हुई है, जहां एएन उपध्याय जैसे संवेदनशील और साफ-सुथरी छबि के डीजीपी हैं और डीआईजी एडमिनिस्ट्रेशन महिला आईपीएस सोनल मिश्रा हैं। सवाल यह भी उठता है कि जब पीएचक्यू में ऐसी हरकतें हो रही हैं तो राज्य की महिलाएं पीएचक्यू से कैसे कोई उम्मीद रखेंगी। रमन सरकार एक ओर उर्मिला सोनवानी को ब्रांड एम्बेसडर बना रही है…बेटी बचाओ अभियान चला रही है। दूसरी ओर राज्य के पुलिस हेडक्र्वाटर में इस तरह के काम हो रहे हैं। तो ऐसे में चिंता लाजिमी है।

ना बाबा….

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 9 मई का बहुप्रतीक्षित छत्तीसगढ़ विजिट लगभग टल ही रहा था। प्रधानमंत्री कार्यालय को मालूम था कि इसी दिन रायपुर में आईपीएल का पहला मैच है। लिहाजा, पीएमओ के अफसरों ने यहां फोन करके तस्दीक की, आईपीएल और पीएम विजिट की तैयारी हो जाएगी? चूकि, पीएम का विजिट बार-बार टल रहा था। फिर, 14 मई को उन्हें चीन जाना है। सो, इस बार दौरा स्थगित होता तो भरोसा नहीं था कि छत्तीसगढ़ का नम्बर कब लगता। इसलिए, सीएम के रणनीतिकारों ने कहा, ना बाबा….। और, कार्यक्रम ओके हो गया।

सवा सेर कलेक्टर

प्रमोटी आईएएस दिलीप वासनीकर को बस्तर का कमिश्नर पोस्ट किया गया है। इस तरह अब पांच कमिश्नरी में से चार में प्रमोटी कमिश्नर हो गए हैं। रायपुर, दुर्ग में अशोक अग्रवाल और सरगुजा में टीएस महावर। सिर्फ बिलासपुर में सोनमणि बोरा डायरेक्ट आईएएस हैं। और, सिकरेट्री लेवल के हैं। बाकी तीनों, वासनीकर, अग्रवाल एवं महावर स्पेशल सिकरेट्री रैंक के अफसर हैं। वासनीकर के साथ तो और क्लास है। वे सिर्फ एक जिले का कलेक्टर रहे हैं। गरियाबंद के। वह भी लगभग साल भर। बस्तर के सात जिलों में से पांच में डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर हैं। अमित कटारिया, नीरज बंसोड़, केसी सेनापति जैसे कलेक्टर। अमित के बारे में कहा जाता है, वे अपनी नहीं सुनते और सेनापति तो सेनापति की तरह ही काम करते हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त से सीधे पंगा लेकर पुरस्कार लेने दिल्ली चले गए, तब भी उनका बाल बांका नहीं हुआ। नीरज बंसोड़ इतने दमदार हैं कि बिलासपुर में एक विधायक की बहू ने नेतागिरी करने की कोशिश की तो उन्हें सबक सीखाने में देर नहीं लगाई। याने सवा सेर वाला मामला है। ऐसे में, लाख रुपए का सवाल यह है कि ऐसे अफसरों के बीच वासनीकर की भूमिका क्या होगी।

तीसरा संस्थान

नए रायपुर में निर्मित ट्रीपल आईटी राजधानी का तीसरा संस्थान होगा, जिसका प्रधानमंत्री जैसे देश के शीर्ष शख्सियत द्वारा लोकार्पण किया जाएगा। इससे पहले, रायपुर इंजीनियरिंग कालेज जो अब एनआइटी बन गया है, का राष्ट्रपति डा0 राजेंद्र प्रसाद ने शिलान्यास किया था और तबके प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लोकार्पण। इसी तरह, डीके अस्पताल, याने पुराने मंत्रालय को भी नेहरूजी ने उद्घाटन किया था। और, अब इस कड़ी में ट्रीपल आईटी बिल्डिंग का नाम भी जुड़ गया है। 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 120 करोड़ रुपए से बनी भव्य इमारत देश को समर्पित करेंगे।

वोटिंग नहीं

शनिवार को आला नेताओं की मौजूदगी में हुई प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक में यह लगभग साफ हो गया कि वोटिंग के जरिये संगठन चुनाव नहीं होगा। बल्कि, मनोनयन होगा। बताते हैं, बंद कमरे में हुई बैठक में अजीत जोगी ने वोटिंग के लिए हरसंभव प्रयास किया मगर आला नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। बैठक के बाद प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने मीडिया से कहा कि वोटिंग के जरिये संगठन चुनाव होगा या मनोनयन, वे तत्काल अभी कुछ नहीं बता सकते। जाहिर है, कांग्रेस में संगठन खेमे का वर्चस्व कायम रहेगा।

तमतमाए जोगी

शनिवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक के बाद लोगों ने पहली बार अजीत जोगी को इस तरह तमतमाए हुए कांग्रेस भवन से निकलते देखा। मीडिया से रुक कर बात करने वाले जोगी इस कदर गुस्से में दिखे कि चलते-चलते मीडिया के एकाध सवाल का जवाब दे पाए। जोगी के गुस्से के तीन कारण गिनाए जा रहे हैं। एक तो दिल्ली के नेताओं द्वारा संगठन खेमे को सीमा से बाहर वेटेज देना। दूसरा, चुनाव के लिए किसी भी सूरत में राजी न होना। और, तीसरा आनलाइन सदस्यों को सीधे वोटिंग का अधिकार न देना। जोगी खेमे ने डेढ़ लाख से अधिक आनलाइन मेम्बर बनाए हैं। वरिष्ठ नेताओं ने मीटिंग में यह कहकर पेंच फंसा दिया कि आनलाइन सदस्यों को पहले ब्लाक और जिला कांग्रेस कमेटी तहकीकात करेगी, फिर उन्हें सक्रिय सदस्य बनाएगी, इसके बाद उन्हें वोटिंग का अधिकार होगा। ऐसे में, भला जोगी को गुस्सा कैसे नहीं आएगा।

आईएएस की आत्मकथा

हायर एजुकेशन सिकरेट्री डा0 बीएल अग्रवाल एक किताब लिखने जा रहे हैं। वे पीएचडी है। हावर्ड युनिवर्सिटी से ट्रेनिंग भी की है। सरकार ने उन्हें विभाग भी उनके अनुरुप दिया है। दिन भर प्रोफेसरों से मिलना-जुलना पड़ता है। हायर एजुकेशन की फाइलों को निबटाते हैं। ऐसे में लगता है, बीएल को विभाग का असर हो रहा है। वे भी लिखने-पढ़ने के मोड में आ रहे हैं। पता चला है, वे अपने प्रशासनिक जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को किताब मेें उद्धृत करेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के एक ब्यूरोक्रेट्स का नाम बताइये, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल जानते हैं, बल्कि गुजरात के सीएम रहतेे हुए कई बार उन्हें अहमदाबाद बुला भी चुके हैं?
2. बीजेपी की राष्ट्रीय महामंत्री सरोज पाण्डेय अब महीने में दो दिन भाजपा कार्यायल में कार्यकर्ताओं से मिलेंगी। इससे सत्ता और संगठन के कान क्यों खड़े हो गए हैं?