शनिवार, 30 जुलाई 2016

कम बैक कल्लूरी?

31 जुलाई

संजय दीक्षित
बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी की बस्तर से वापसी हो सकती है। वापसी की वजह ना तो पुअर पारफारमेंस है और ना ही कोई विवाद। सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोग भी मानते हैं कि कल्लूरी के बस्तर जाने के बाद माओवादी बैकफुट पर हैं…..नक्सल हिंसा में भी कमी आई है। मगर ये भी याद रखना होगा कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनने के बाद सूबे की राजनीति बदल रही है। बस्तर में 12 सीट हैं। अजीत जोगी बस्तर में पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं। भनपुरी के दो बार के एमएलए और जनाधार वाले नेता अंतूराम कश्यप को अपनी पार्टी में शामिल कर केदार कश्यप को घेर दिया है। अंतूराम ने बलीराम कश्यप को दो बार हराया था। ऐसे में, बीजेपी के भीतर सरकार पर प्रेशर बनने लगा है कि चुनाव तक कल्लूरी को वापिस बुलाया जाए। सरकार के सामने संकट यह है कि आईजी लेवल पर अफसरों का टोटा हैं। रायपुर, और दुर्ग जाने के लिए आईजी तैयार मिलेंगे। मगर बस्तर के नाम पर हनुमान चालीसा पढ़ने लगते हैं। अलबत्ता, कल्लूरी के साथ प्लस यह है कि वे राजी-खुशी बस्तर गए हैं। बहरहाल, अब सरकार पर निर्भर करेगा कि वह पार्टी की सलाह पर अमल करती है या फिर नजरअंदाज।

बेदाग बरी, बट….

प्रमोशन केस में एडिशनल चीफ सिकरेट्री डीएस मिश्रा बरी हो गए हैं। अलबत्ता, फायनेंस डिपार्टमेंट के नीचे के अफसरों को जरूर नोटिस इश्यू की जा रही है। आपको बता दें, 2008 में फायनेंस के 318 अधिकारियों, कर्मचारियों का बिना प्रोसिजर का पालन किए, प्रमोशन दे दिया गया था। हाल ही में यह प्रकरण कैबिनेट में गया। और, मंत्रियों ने इसकी जांच कर संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने कहा। इसके बाद सरकार ने मामले का परीक्षण कराया। पता चला है, उसकी रिपोर्ट आ गई है। चलिये, डीएस बच गए! मगर प्रमोशन पाए अधिकारियों की शामत आ गई है। अब, उनका अगला प्रमोशन डु्यू हो गया है। लेकिन, पुराने केस के चलते उनका प्रमोशन अधर में लटक गया है। अब, सभी सत्ता के गलियारों में चक्कर लगा रहे है। परन्तु, बड़ों के बीच के पचड़े के चलते उन्हें कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है।

कलेक्टर तालाब में

पिछले हफ्ते की बात है। सीएम हाउस में मीटिंग हो रही थीं। इसमें सीएम के सिकरेट्रीज समेत चुनिंदा अधिकारी मौजूद थे। सीएम ने कहा, कलेक्टरों का अब सड़क पर आना चाहिए। शहरों में बहुत इश्यूज हैं। ट्रैफिक की समस्या लगभग सभी जगहों सामने आ रही है। इस पर एक एसीएस ने चुटकी ली, सर….! हमारे कलेक्टर्स तालाब और कीचड़ में फोटो खींचवा रहे हैं। उसमें से बाहर आए तो सड़क पर आने के लिए कहा जाए! इस पर सीएम समेत सभी ने जोर का ठहाका लगाया। फिर, सीएम गंभीर हुए। बोले, कलेक्टरों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। ध्यान रहे, कुछ कलेक्टरों ने सोशल मीडिया में अपनी फोटो वायरल की थी, उससे मंत्रालय के अफसरों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। सीएम की नोटिस में भी इस बात को लाई गई है।

याद आए बजाज

बजाज कंपनी भले ही अब अप्रासंगिक होती जा रही है मगर आईएफएस के बजाज का सेंसेक्स अभी भी हाई चल़ रहा है। हम बात कर रहे हैं, नया रायपुर के पूर्व सीईओ एवं आईएफएस अफसर एसएस बजाज की। नया रायपुर में पर्यावास भवन के इनाग्रेशन के मौके पर सीएम की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने बजाज को याद किया। सीएम बोले, कहां हैं, बजाज….आया है कि नहीं….। फिर बजाज को देखकर बोले, हूं….। इसने गजब का काम किया। नया रायपुर का जब भी बात होगी, बजाज को लोग याद करेंगे। बजाज के लिए इससे बड़ा आनर क्या होगा। असली कमाई तो यही है।

अब मयंक भी….

बिलासपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव इतनी जल्दी विवादों में फंस जाएंगे, उन्होंने खुद भी नहीं सोचा होगा। गौरांग हत्याकांड में जिस तरह उन्होंने हड़बड़ी में प्रेस कांफ्रेंस कर स्टोरी सुना डाली, वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। बिलासपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश में सवाल उठ रहे हैं कि एसपी ने ऐसा क्यों किया। वजह क्या रही? जबकि, सच्चाई भी वही है, जो मयंक ने बताई। पुलिस के कई अफसरों ने वह वीडियो देखा है, जिसमें गौरांग सीढ़ी से गिर रहा है….उसका पैर उपर और सिर नीचे है। लेकिन, आश्चर्य है, पुलिस ने इसे मीडिया को नहीं दिखाया। असल में, आंदोलन की चेतावनी के कारण पुलिस ने आनन-फानन में मामले का खुलासा कर लोगों के मन में वहम पैदा कर दिया। खैर, मयंक भी क्या करें। बिलासपुर आईजी पवनदेव को जब हटाया गया था, तब ही इसी कालम में मैंने लिखा था कि बिलासपुर पुलिस पर राहु-केतु का प्रकोप चल रहा है। जयंत थोरात, अजय यादव, राहुल शर्मा, बीएस मरावी, राजेश मिश्रा, जैसे ढेरों नाम हैं, जिन्हें समय से पहले हटना पड़ा या फिर स्वर्गवासी हो गए। बिलासपुर रेंज की एक महिला के चलते तो पूरा पुलिस महकमा हिल गया। गुड वर्क के बाद भी पवनदेव को हटना पड़ गया तो पड़ोसी रेंज रायपुर के आईजी और एसपी भी निबट गए। महिला का केस नहीं हुआ होता, तो यकीन कीजिए जीपी अभी भी रायपुर आईजी होते और बद्री यहां के एसपी। खैर, जब जागे सवेरा। डीजीपी को बनारस के किसी पंडित को बुलाकर बिलासपुर में ठीक से पूजा-पाठ करा देना चाहिए।

मुखर होने का डर

कांग्रेस के बागी विधायक आरके राय और सियाराम कौशिक पार्टी को खुला चैलेंज कर रहे हैं। लेकिन, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही, तो इसकी वजह उनके मुखर होने का खतरा है। अमित जोगी के केस में पार्टी को इसका साबका भी पड़ा है। इलेक्ट्रानिक चैनलों को बाइट देने के दौरान नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के जुबां से निकल ही गया, अमित जोगी को निष्कासित करने के बाद वे ज्यादा मुखर हो गए। लिहाजा, दोनों के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी।

जोगी शो और पुलिस

छत्तीसगढ़ बंद फ्लाप होने के बाद भी अजीत जोगी ने अपना माहौल बना ही दिया। सियासत के इस चतुर खिलाड़ी को 27 जुलाई की शाम को ही अहसास हो गया था कि बंद सफल नहीं होगा, जब चेम्बर आफ कामर्स ने समर्थन देकर वापिस ले लिया था। दरअसल, जनता कांग्रेस का पहला बंद था। अगर फ्लाप होता तो बीजेपी से अधिक कांग्रेस ताली बजाती। इसलिए, जोगी ने पैंतरा बदला। 28 जुलाई की सुबह सबसे पहले पुलिस पर उन्होंने बंगले में नजरबंद करने का आरोप लगाकर चैनलों को ब्रेकिंग न्यूज दिया। इससे चैनलों का ध्यान फ्लाप की ओर से हट गया। इसके बाद जोगी का सर्किट हाउस के पास जो हाईप्रोफाइल शो चला, उसे सभी ने देखा और पढ़ा ही। बीजेपी के चंपारण चिंतन शिविर की खबर गायब थी। चर्चा में सिर्फ जोगी रहे। कई बार तो लगा कि असली कांग्रेस यही है? हालांकि, जोगी के आंदोलन को सफल बनाने में पुलिस का भी बड़ा हाथ रहा। जोगी जब बंगले से निकले 300 से अधिक पुलिस वाले उनके पीछे हो लिए। पुलिस ने सिविल लाइन एरिया को जंग के मैदान में तब्दील कर दिया। सीएम हाउस के चारों ओर पहली बार इतनी सुरक्षा देखी गई। जोगी और जोगी के लोग घर लौट चुके थे, लेकिन उनका खौफ ऐसा कि फोर्स रात 10 बजे तक मोर्चे पर डटी रही। जोगी को कायदे से पुलिस को थैंक्स बोलना चाहिए, उनके शो को सफल बनाने के लिए। आखिर, 50-60 कार्यकर्ताओं के लिए 500 से अधिक जवानों की ड्यूटी लगाई गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस रिटायर आईएएस को एक रिटायर नौकरशाह बचाने में लगे हैं तो एक वर्तमान नौकरशाह निबटाने में?
2.क्या राजस्व बोर्ड के चेयरमैन केडीपी राव की एकाध महीने में मंत्रालय वापसी हो जाएगी?

शनिवार, 23 जुलाई 2016

कलेक्टरों की तमाशेबाजी

24 जुलाई

संजय दीक्षित
छत्तीसगढ़ में सुनिल कुमार, प्रशांत मेहता, उदय वर्मा, विवेक ढांड, एमके राउत जैसे कलेक्टरों को लोगों ने देखा है। तब का जिला 150-200 किलोमीटर में पसरा। और, ये आफिसर कभी नाव पर तो कभी राजदूत में दुरुह जिलों का दौरा करते थे। उदय वर्मा और एमके राउत तो गांव में ही दरबार लगाकर मौके पर ही समस्याओं का निबटारा कर देते थे। मगर कभी किसी को बताया नहीं। और, ना ही मीडिया में छपवाया। क्योंकि, मालूम था कि सरकार ने उन्हें जिले का मुखिया बनाया है, तो वह उनकी ड्यूटी है। लेकिन, नए जमाने के कलेक्टर काम कम, तमाशेबाजी ज्यादा कर रहे हैं। कोई कीचड़ में उतर जाता है तो कोई सायकिल चलाने लगता है। फिर, सोशल मीडिया में तस्वीर वायरल की जाती है। यकीनन, कुछ कलेक्टर सोशल मीडिया में ही कलेक्टरी कर रहे हैं। ऐसे अफसरों को पता होना चाहिए कि 12 साल के सीएम और इतने ही साल के अनुभवी उनके रणनीतिकार। वे बखूबी जानते हैं कि कौन क्या कर रहा है। नए कलेक्टरों को मुकेश बंसल, ओपी चैधरी, अलरमेबल ममगई, आर संगीता जैसे सीनियर कलेक्टरों से सीखना चाहिए। कि साइलेंट वर्क कैसे किया जाता है। जीएडी को भी नए कलेक्टरों को समझाना चाहिए कि अल्टीमेटली काम ही काम आता है। तमाशेबाजी नहीं।

बड़ों में टकराव

नान घोटाले के अफसरों को अग्रिम जमानत देने को लेकर ब्यूरोक्रेसी और महालेखाकार आफिस के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। पता चला है, कुछ आला अधिकारी चाहते थे कि महालेखाकार आफिस हाईकोर्ट में अफसरों की जमानत का विरोध ना करें। मगर एजी कार्यालय सहमत नहीं हुआ। बल्कि, सीएम को भी कंविंस कर लिया कि जमानत का विरोध न करने पर गलत मैसेज जाएगा। मीडिया से लेकर विरोधी पार्टी निशाना बनाएगी कि सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। एक ओर केस दर्ज करने के लिए भारत सरकार को अनुशंसा कर रही है तो दूसरी तरफ जमानत दिलवा रही। बताते हैं, सीएम को यह बात समझ में आ गई। उन्होंने ओके कर दिया। लेकिन, नौकरशाही ने इसे मन में बिठा लिया है। नए रायपुर में कामर्सियल कोर्ट की ओपनिंग के मौके पर दोनों के बीच टकराव की झलक दिखी। एजी आफिस के लोगों को मंच से नीचे बिठा दिया। जबकि, प्रोटाकाल में एजी आफिस के लोग नौकरशाहों से उपर होते हैं। जाहिर है, इससे एजी आफिस के लोगों को नाराज होना ही था। चिठ्ठी के जरिये सीएम तक यह बात पहुंच गई है। हालांकि, सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। क्योंकि, दोनों के टकराव से राज्य के केसों पर प्रभाव पड़ेगा।

हाट इश्यू

ब्यूरोक्रेसी में अभी एक ही हाट इश्यू है……डीएस मिश्रा को पोस्ट रिटायरमेंट ताजपोशी होती है या नहीं….नए मुख्य सूचना आयुक्त कौन बनेगा? मंत्रालय के जिस कमरे में जाओ, यही सवाल। दरअसल, सरकार ने भी संकेत दिए थे कि मानसून सत्र के बाद अफसरों को लाल बत्ती दे दी जाएगी। हालांकि, सीएम सचिवालय में इसकी कोई सुगबुगाहट अभी नहीं है। मूख्य सूचना आयुक्त और राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए कमेटी की बैठक होगी। कमेटी में सीएम, नेता प्रतिपक्ष और स्पीकर होते हैं। बैठक की कोई तिथि भी अभी तय नहीं हुई है।

अमर को फ्री हैंड?

किसी भी राज्य में इंवेस्टर्स मीट या रोड शो सीएम का होता है। उद्योग मंत्री उनकी सहायक की भूमिका में होते हैं। लेकिन, अपने उद्योग मंत्री अमर अग्रवाल ने चंडीगढ़ में शुक्रवार को इंवेस्टर्स मीट किया। ऐसे में, यह सवाल उठना लाजिमी है कि अमर को फ्री हैंड देकर सरकार ने उनका कद तो नहीं बढ़ाया है।

सिंह इज किंग

स्टेट हर्बल बोर्ड के सीईओ एवं पीसीसीएफ दिवाकर मिश्रा 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। नए सीईओ के दावेदारों में दो एडिशन पीसीसीएफ हैं। केसी बेवर्ता और आरके सिंह। सिंह दिल्ली में डेपुटेशन पर हैं। मगर पता चला है, वे यहां लौटना चाहते हैं। हालांकि, दोनों सेटिंग वाले अफसर नहीं है। इसलिए, फैसला मेरिट पर ही होना है। दोनों में सिंह सीनियर हैं। इसलिए, उन्हें मौका मिल जाए, तो अचरज नहीं।

जोगी की रणनीति

रेणु जोगी को पार्टी में बनाए रखने की रणनीति तब कारगर दिखी जब पूर्व विधायकों की बैठक में अजीत जोगी के बारे में एक लाइन बात नहीं हो पाई। बताते हैं, रेणु जोगी सामने आकर बैठ गई। इससे, अजीत जोगी के बारे में ना संगठन के नेता बोल पाए और ना ही पूर्व विधायक। जबकि, बातचीत का एजेंडा जोगी ही थे कि किस तरह उनके प्रभाव को कम करते हुए पूर्व विधायकों को काम करना चाहिए। लेकिन, सबको मन मसोसकर रह जाना पड़ा। रेणु जोगी के सामने कोई कैसे बोले।

28 के पहले लाल बत्ती?

आयोग और बोर्डों की लाल बत्ती 29 जुलाई से पहले बंट जाएंगी। 29 को बीजेपी का चंपारण में चिंतन शिविर है। बारनवापारा चिंतन शिविर में तय हुआ था कि चेयरमैन
और मेम्बरों का अपाइंटमेंट इसके पहले कर दिया जाएगा। पता चला है, सीएम, संघ और संगठन के नेताओं की इस पर दो दौर की बातचीत हो चुकी है। संघ ने भी अपने नाम दे दिए हैं और संगठन ने भी। अभी जिन पदों पर नियुक्तियां होनी है, उनमें चेयरमैन कर्मकार मंडल, फिल्म विकास निगम, सिंधी साहित्य एकेडमी, पीएससी मेम्बर, महिला आयोग एवं माध्यमिक शिक्षा मंडल सदस्य शामिल हैं।

गुड न्यूज

सिकरेट्री इंडस्ट्रीज एन माइनिंग सुबोध सिंह ने इडस्ट्रीज को कसने के बाद अब माइनिंग को भी आनलाइन करने जा रहे हैं। अब ट्रांसपोर्ट परमिट के लिए लोगों को अब माइनिंग आफिस नहीं आना पड़ेगा। आनलाइन पैसा जमा करने पर नेट पर टीपी मिल जाएगी। ट्रकों में भी चीप लगाई जाएगी, जिससे पता चल जाएगा कि जहां के लिए माल निकला है, वहां पहुंचा या कहीं और। चलिये, ठीक है, इससे बिलासपुर के बंजारे टाईप माइनिंग अफसरों पर लगाम लगेगा। और लोगों को इंस्पेक्ट राज निजात भी। जाहिर है, सिस्टम जितना आनलाइन होगा, पारदर्शिता उतनी ही बढ़ेगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कोई भी एसपी जिले में जाते ही सबसे पहले क्राइम ब्रांच का गठन करता है और यह ब्रांच उसका सबसे प्रिय क्यों होता है?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जिसे विधायक रहने के दौरान उसके बेटे ने घर से निकाल दिया था और मंत्री बनते ही बेटे ने बंगले पर आकर लेन-देन का कारोबार संभाल लिया है?

शनिवार, 16 जुलाई 2016

फिर भी बुरा मान गए


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17 जुलाई
बद्रीनारायण मीणा बोले तो पोस्टिंग के मामले में सूबे के सबसे लकी एसपी। 2008 से वे लगातार कप्तानी पारी खेल रहे हैं। बलरामपुर से उनकी इनिंग की शुरूआत हुई। इसके बाद कवर्धा, जगदलपुर, कोरबा, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायपुर और अब रायगढ़। याने आठवां जिला। देश में शायद ऐसा कोई एसपी होगा, जिसे लगातार आठ जिला करने का मौका मिला हो। लेकिन, राजधानी में जब कानून-व्यवस्था बेकाबू होने लगी तो उन्हें बदल दिया गया। आमतौर पर किसी अफसर को ऐसे मामलों में छुट्टी करने पर कुछ दिनों के लिए आराम वाली जगह पर पोस्ट किया जाता है। ताकि, चिंतन-मनन कर सकें, हमसे क्या कमी रह गई। मीणा को भी पीएचक्यू भेजने की प्लानिंग थी। मगर कहीं से स्ट्रांग जैक लगा और उन्हें एसपी बनाकर रायगढ़ भेज दिया गया। आईपीएस में रायगढ़ को आजकल क्रीम पोस्टिंग माना जाता है। इसके बाद भी पता चला है, मीणा नाराज हैं। वे एडिशनल एसपी अजातशत्रु को चार्ज देकर चुपके से रायगढ़ निकल लिए। किसी से बात भी नहीं की। मीडिया से भी नहीं। मीणा को इस सरकार ने छप्पड़ फाड़कर दिया। सम्मान के साथ रायगढ़ भेजा। फिर भी जनाब बुरा मान गए!

आईएएस का कांप्लेन

एडिशनल चीफ सिकरेट्री एवं एपीसी अजय सिंह ने 15 जुलाई को एक युवा आईएएस के मामलों की जांच के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को लेटर लिखा है। पत्र में उन्होंने सिलसिलेवार बताया है कि मंडी बोर्ड में रहने के दौरान आईएएस ने किस तरह काला-पीला किया। एसीएस का कांप्लेन आईएएस के लिए यह किसी झटके से कम नहीं होगा। क्योंकि, कुछ दिनों से उनके चंपू व्हाट्सएप कर रहे हैं कि साब को रायगढ़ या कोरबा का कलेक्टर बनाया जा रहा है। अफसर भी अरसे से इस जुगत में हैं कि किसी तरह एक बार और कलेक्टरी मिल जाए। बता दें, आईएएस के कारनामे कम नहीं रहे हैं। इसी ख्याति के चलते सरकार ने एक जिला करने के बाद उन्हेें शंट कर दिया था। अब, एसीएस की शिकायत के बाद आईएएस का कलेक्टर बनने का सपना कहीं बिखर न जाए।

सर्विस का रिकार्ड

आईएएस की 38 साल की पारी खेलकर राधाकृष्णन इस महीने बिदा हो जाएंगे। वे 78 बैच के आईएएस हैं। और, फिलहाल देश के सर्वाधिक सीनियर तीन अफसरों में शामिल हैं। राधाकृष्णन महज 22 साल की उमर में आईएएस में सलेक्ट हो गए थे। अविभाजित मध्यप्रदेश में 22 साल में आईएएस बनने वाला कोई आईएएस नहीं है। इस तरह सबसे अधिक समय तक आईएएसगिरी करने का तो रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो ही जाएगा। उधर, आईपीएस नरेंद्र खरे भी इस महीने रिटायर हो जाएंगे।

याचिका खारिज

नान घोटाले में आईएएस अनिल टुटेजा ने एसीबी के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट दायर की थी। हाईकोर्ट को उन्होंने बताया था कि किस तरह एसीबी ने अकारण फंसा दिया। लेकिन, किस्मत ने इस बार भी उनका साथ नहीं दिया। जस्टिस संजय अग्रवाल ने दोनों पक्षों की सुनने के बाद उनकी याचिका खारिज कर दी है। अब, एसीबी को कहने का हो गया, उसकी कार्रवाई गलत नहीं थी।

बड़बोलापन भारी पड़ा

बिलासपुर के माईनिंग आफिसर बंजारे का बड़बोलापन भारी पड़ गया। जून फस्र्ट वीक में एसीबी ने उनके यहां दबिश दी थी। इसमें एसीबी के हाथ कुछ आया नहीं। तब बताते हैं, बंजारे ने एसीबी अफसरों को हड़का दिया था, अब मैं देख लूंगा….देखना, कैसे सबको कोर्ट में घसीटता हूं। इसके बाद एसीबी अफसरों ने चुटिया बांध ली। और, 45 लाख कैश बरामदगी के साथ ही दो करोड़ की अवैध संपति ढूंढ निकाला। यही नहीं, बंजारे को जेल भी हो जाए, तो अचरज नहीं। क्योंकि, महज सात साल की सर्विस में दो साल प्रोबेशन। याने पांच साल में दो करोड़। हर साल 40 लाख। मामला गंभीर तो है।

फिर झाड़ मिल गई

संसदीय कार्य मंत्री अजय चंद्राकर के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं। तभी तो विधानसभा में भी स्पीकर ने भी उनकी खिंचाई कर डाली। विपक्ष के एक सवाल पर चंद्राकर जब बार-बार घूमा-फिरा कर जवाब दे रहे थे तो स्पीकर ने कहा, आप मंत्री हैं, जवाब देना चाहिए। याद होगा, बजट सत्र में भी स्पीकर ने उन्हें इसी तरह की नसीहत दी थी।

पुलिस की चूक या सरकार की?

राजधानी की पोलिसिंग चुनौतीपूर्ण है, इसे नए आईजी प्रदीप गुप्ता और कप्तान संजीव शुक्ला समझ गए होंगे। 15 जुलाई को किस तरह एनएसयूआई कार्यकर्ता गच्चा देते हुए सीएम हाउस पहंुच गए। और, लाठी चार्ज करना पड़ गया। भिलाई के मेयर तो पिटे ही। रायपुर मेयर प्रमोद दुबे भी नहीं बच पाए। पुलिस ने एनएसयूआई नेताओं को खामोख्वाह राजनीति चमकाने का अवसर दे दिया। बोनस में सोमवार को विस में हंगामा करने के लिए कांग्रेस को इश्यू मिल गया। जबकि, पिछले साल सीएम हाउस घेराव मे राजा बराड़ जैसे कांग्रेस के नेता आए थे। उनके खूनी पंजा वाला पोस्टर चिपकाए गए। लेकिन, धक्कामुक्की तक नहीं हो पाई। हालांकि, आईजी एवं कप्तान दोनों काबिल आफिसर हैं। एसपी तो राजनांदगांव और रायगढ़ के आउटस्टैंडिंग वर्क के चलते ही राजधानी लाए गए। तो क्या एसपी, आईजी को एक साथ बदलना गलत तो नहीं हो गया।

छत्तीसगढ़ियां सबले…..

बिहार में टापर कांड हुआ, वहां आरोपी स्टूडेंट समेत उसके माता-पिता जेल में हैं। बिहार सरकार ने उसकी परीक्षा निरस्त कर दी। और, अपनी पोरा बाई को देखिए। पोरा बाई का केस भी बिहार के टापर कांड जैसा ही था। दूसरा आदमी पेपर दिया और पोरा बाई बारहवीं में टाप आ गई। लेकिन, अफसरों ने उसकी परीक्षा रद्द नहीं की। पोरा बाई अब उसी मार्कशीट के आधार पर कसडोल में शिक्षाकर्मी बन गई है। अब पीएमटी की बात करें। मध्यप्रदेश में पीएमटी में गड़बड़झाला उजागर होने के बाद मंत्री से लेकर कई दर्जनों मेडिकल छात्रों को जेल जाना पड़ा। सरकार ने उनकी परीक्षा भी निरस्त कर दिया। और, अपने छत्तीसगढ़ में ऐसे 25 से अधिक आरोपी छात्र एमबीबीएस करके नौकरी कर रहे हैं। पुलिस में केस होने के बाद भी उनका बाल बांका नहीं हुआ। बस, जांच चल रही है।

प्रोफेशनल्स की टीम

अजीत जोगी ने 2018 की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। वे न केवल कांग्रेस में सेंध लगा रहे हैं बल्कि, आम आदमी पार्टी की तरह प्रोफेशनल की टीम तैयार कर रहे हैं। जोगी हाउस में बकायदा कंट्रोल रुप बन गया है। मीडिया मैनेजमेंट के लिए नागपुर से प्रकाश पाण्डेय को लाया गया है। मीडिया का पूरा काम अब प्रकाश के हवाले रहेगा। भीड़भाड़ से बचने उन्होंने बाउसंर रख ही लिया है।

गुड न्यूज

चिप्स ने 75 हजार करोड़ के निर्माण की मानिटरिंग करने वाला साफ्टवेयर तैयार किया है। 40 हजार करोड़ की तो प्रदेश में सड़क ही बननी है। बाकी, सिंचाई से लेकर अन्य निर्माण कार्य अब चिप्स के राडार पर होंगे। कहीं कोई गड़बड़ी होगी, उसकी जानकारी मिल जाएगी। आप सोच रहे होंगे, इसे चिप्स के सीईओ ने तैयार किया होगा। नहीं! उन्हें सोशल मीडिया से फुरसत मिले तब तो। इस साफट्वेयर को पीएस अमन सिंह के नेतृत्व में एक्स सीईओ सौरव कुमार ने बनाया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ठेका निरस्त हो जाने के बाद किस मंत्री के चंपू से अंबिकापुर के ठेकेदारों ने मारपीट कर 80 लाख रुपए वसूल लिया?
2. रिश्वत की राशि में से अपना कमीशन निकाल लेने वाले किस पीएस को मंत्री के बेटे ने बाहर का रास्ता दिखा दिया?

कोई चारा नहीं


  • 10 जुलाई
    संजय दीक्षित
    महिला कांस्टेबल की शिकायत मामले में सरकार को न चाहते हुए भी बिलासपुर आईजी को बदलना पड़ा। वैसे, आईजी के कामकाज से सरकार को कोई शिकवा नहीं था। लेकिन, महिला की शिकायत के बाद स्थिति प्रतिकूल हो गई। सरकार के रणनीतिकार मानते हैं, आईजी को बदलने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था। क्योंकि, इसी तरह के केस में एआईजी संजय शर्मा को छह महीने पहिले बर्खास्त किया गया है। सरकार को अंदेशा था, किसी प्रेशर में महिला ने अगर शिकायत की होगी, तो उसे दो-एक दिन में वापिस ले लेगी। पर ऐसा हुआ नहीं। उल्टे वह गायब हो गई। फिर, इस तरह के केस में जिस तरह आईएएस एकजुट होते हैं, वैसा कल्चर आईपीएस में कभी रहा नहीं। अलबत्ता, पुलिस महकमे की एक लाबी उल्टे आईजी को निबटाने में जुट गई। सामने विधानसभा था। सो, विपक्ष के हमले को कुंद करने के लिए आईजी को बदलना पड़ गया।

वैकेंसी फुल

रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग आईजी की वैकेंसी फुल होने से सबसे ज्यादा कोई आईपीएस प्रभावित होगा तो वे हैं अमित कुमार। अमित सीबीआई में डेपुटेशन पर हैं। सितंबर में पांच साल की प्रतिनियुक्ति पूरी हो जाएगी। इसके बाद यहां लौटेंगे। मगर दिक्कत यह है कि ठीक ठाक कोई रेंज खाली नहीं है। अमित सरकार के क्लोज अफसर माने जाते हैं। और, अंदर की बात यह है कि रायपुर आईजी के लिए उन्हीं का इंतजार किया जा रहा था। साढ़े तीन साल होने के बाद भी जीपी सिंह के रुके होने के पीछे वजह भी यही थी। सरकार चाह रही थी कि अमित के लौटने पर एक साथ आर्डर निकला जाए। प्लान था, अमित कुमार रायपुर, प्रदीप गुप्ता बिलासपुर और जीपी सिंह दुर्ग जाएंगे। मगर पवन का ऐसा झोंका आया कि प्लान धरा-का-धरा रह गया। बदले हालात में जीपी ने मना कर दिया। आनन-फानन में दिल्ली में विवेकानंद से संपर्क साधा गया। उनकी लौटने की सहमति मिलने के बाद बिलासपुर के सामने विवेकानंद लिखकर आर्डर निकाल दिया गया।

ना बाबा!

रायपुर के आईजी जीपी सिंह साढ़े तीन साल के टेन्योर का कीर्तिमान बनाया। मगर बहुत कम लोगों को पता है कि एक और रिकार्ड बनाने के चांस उन्होंने खुद ही छोड़ दिया। सोमवार शाम जब आईजी की लिस्ट फायनल हो रही थी, 8.20 बजे सीएम सचिवालय से उनके पास फोन आया, आपको दुर्ग भेजा जा रहा है। लेकिन, जीपी ने आग्रह किया, कुछ दिन मैं पीएचक्यू में रहना चाहता हूं। जीपी बोले, साढ़े तीन साल हो गया है सर….! जीपी से यह सुनकर फोन करने वाले अफसर भी चैंके। मगर जीपी की बातों से वे कंविन्स हो गए । इसके बाद दुर्ग के लिए दिपांशु काबरा का नाम तय हो गया। जीपी अगर दुर्ग आईजी बन जाते तो रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, प्रदेश के तीनों बड़े रेंज का आईजी बनने का रिकार्ड बनाते। अब, आप पूछेंगे जीपी को इतना वेटेज क्यों? तो उसकी वजह कवर्धा का कफ्र्यू था। हफ्ते भर पहिले जालेश्वर महादेव चोरी होने के बाद कवर्धा में जब तनाव हुआ, तो वीवीआईपी जिले की स्थिति को संभालने के लिए यहां से जीपी को कवर्धा भेजा गया। जीपी ने दो घंटे में सिचुएशन को काबू में करके रायपुर में रिपोटिंग कर दी थी। इससे सीएम भी खुश हुए, उनके सांसद बेटे ने उन्हें शाबासी दी और डीजीपी ने भी। ऐसे में, जीपी से पूछना तो बनता ही था।

बदलेंगे नजीब जंग

दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग इस महीने के अंत तक बदल सकते हैं। बदलने का कारण समझा जाता है कि वे अरबिंद केजरीवाल को काबू नहीं कर पा रहे हैं। केजरीवाल हर मामले में सवा सेर साबित हो जा रहे हैं। जबकि, उपर वाले चाहते हैं, उपराज्यपाल ऐसा हो, जो केजरीवाल को टाईट कर सकें। बहरहाल, ऐसे शख्स की खोज हो चुकी है। सूबे के लिए यह खबर इसलिए अहम है कि अगला उपराज्यपाल जो बनेगा, उसका छत्तीसगढ़ से करीबी रिश्ता होगा। महीने, दो महीने में उस शख्स का छत्तीसगढ़ का चक्कर लग जाता है। सब्र रखिए, जल्द ही नाम भी आपको मालूम चल जाएगा।

विधानसभा के बाद

रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग की आस में बैठे कई आईएएस अफसरों को विभिन्न तरह की बीमारियां घर करने लगी है। किसी को ब्लडप्रेशर का दौरा पड़ रहा है तो कोई मेंटल प्राब्लम होने पर डाक्टर का चक्कर लगा रहा है। अड़ोसी, पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार न्यू पोस्टिंग के बारे में पूछ-पूछकर तंग कर रहे हैं, सो अलग। खैर, उनके लिए राहत की बात है कि सरकार ने संकेत दिए हैं कि विधानसभा के बाद पोस्टिंग दे दी जाएगी। लाल बत्ती के प्रबल दावेदारों में अभी डीएस मिश्रा, ठाकुर राम सिंह और दिनेश श्रीवास्तव हैं। सरकार से हरी झंडी मिली तो एडिशनल चीफ सिकरेट्री एनके असवाल को भी वीआरएस के लिए तैयार ही समझिए।

आईजी की हैट्रिक

बिलासपुर के नए आईजी विवेकानंद बिहार से हैं। पवनदेव भी बिहार के थे और उनसे पहिले राजेश मिश्रा भी बिहार से ही रहे। याने बिलासपुर रेंज में हैट्रिक बन गई बिहार के अफसरों की। आईपीएस के ट्रांसफर में संयोग यह भी रहा कि विवेकानंद और दिपांशु काबरा जहां एसपी रहे, वहीं आईजी भी बनें। इससे पहले, मुकेश गुप्ता, अशोक जुनेजा सेम जिले में एसपी, आईजी रहे। मुकेश दुर्ग और रायपुर में एसपी और आईजी रहे, जुनेजा बिलासपुर और दुर्ग में।

पोस्टिंग या अभिशाप?

आईपीएस अफसरों को बिलासपुर की पोस्टिंग अब अभिशाप प्रतीत होने लगी है। इसकी वजह भी है। एसपी जयंत थोरात के समय से बिलासपुर पुलिस पर राहू-केतू सवार हुआ, वह टस-से-मस नहीं हो रहा है। बात थोरात से ही शुरू करते हैं। थोरात दबंग फिल्म देखने गए थे। गेटकीपर पहचाना नहीं। टोकाटोकी कर दी। इसके बाद पुलिस वालों की पिटाई से गेटकीपर की मौके पर ही मौत हो गई थी। थोरात के बाद एसपी अजय यादव स्व0 दिलीप सिंह जुदेव के शिकार बन गए। जुदेव के एक लाइन के आरोप, बिलासपुर में प्रशासनिक आतंकवाद चल रहा है, सरकार ने अजय की छुट्टी कर दी थी। एसपी राहुल शर्मा ने सुसाइड ही कर ली। आईजी जीपी सिंह को तीन महीने में ही हटना पड़ गया। इसके बाद आईजी बीएस मरावी की हर्ट अटैक से मौत हो गई। आईजी राजेश मिश्रा का सब ठीक रहा मगर आरसी पटेल को रिटायरमेंट के दिन एडीजी बनाने के चक्कर में सरकार ने जबरिया उन्हें भी एडीजी बना दिया। जबकि, राजेश ऐसा कतई नहीं चाह रहे थे। एडीजी बनने के बाद उन्हें वहां से हटना पड़ गया। और अब पवनदेव भी ग्रह-नक्षत्र के शिकार हो गए। इस पीरियड में सिर्फ अशोक जुनेजा ऐसे आईजी रहे, जिन्होंने अपने उपर राहू का असर नहीं होने दिया और अलबत्ता, वहां से दुर्ग आईजी बनकर शिफ्थ हुए। नए आईजी विवेकानंद और एसपी मयंक श्रीवास्तव को जुनेजा से उस पंजाबी पंडित का पता पूछ लेना चाहिए, जिसके टोटका से बिलासपुर में जुनेजा न केवल राहू पर भारी पड़े बल्कि शानदार कैरियर एंजाय कर रहे हैं।

जोगी इज जोगी

ईद के रोज रायपुर के ईदगाह मैदान में भूपेश बघेल और अजीत जोगी दोनों लगभग एक साथ ही पहंुंचे थे। दोनों के लिए अलग-अलग मंच बनाया गया था। जोगी के आते ही उनसे हाथ मिलाने के लिए धक्का-मुक्की शुरू हो गई और भूपेश खाली बैठे रहे। जबकि, भूपेश के साथ मेयर और पूर्व कुछ पूर्व एमएलए थे। और, जोगी अकेले थे। जाहिर है, भूपेश को आक्वड फिल हुआ होगा। फौरन वे उठकर चले भी गए। इसे भूपेश के रणनीतिकारों की चूक मानी जानी चाहिए। बिना होमवर्क के अपने नेता का कार्यक्रम तैयार कर दिया। जबकि, मालूम था कि वहां जोगी भी आने वाले हैं। पता नहीं, भूपेश अपने सिपहसालारों पर विचार क्यों नहीं करते।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सत्ताधारी पार्टी के किस बड़े नेता की महिला के साथ अंतरंग मुद्रा में खड़े फोटो वायरल हो रही है?
2. किस कांग्रेस नेता की एक सीडी जारी होने की चर्चा है?

शनिवार, 2 जुलाई 2016

सीधा निशाना


 संजय दीक्षित
3 जुलाई, 2016
बीजेपी का बारनवापारा चिंतन शिविर अबकी इस मायने में अलग रहा कि इसमें कहीं पे निगाहें, कहीं पे…..वाला मामला नहीं रहा। शिविर में सीधे तीर छोड़े गए। पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने सबको आईना दिखा दिया। उनकी जब बोलने की बारी आई तो सबसे पहले उन्होंनें राज्य की राजनीति से केंद्र मेें गए नेताओं को टारगेट किया। रामलाल बोले, आप राष्ट्रीय राजनीति में हैं, आप लोगों को राज्य की राजनीति में टांग अड़ाने का कोई हक नहीं है। उन्होंने चेता भी दिया, आपलोग केंद्र की राजनीति करें, वही अच्छा है। रामलाल की इस खरी-खरी से कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया। जिस ग्लेरमस शख्सियत को रामलाल ने टारगेट किया था, उसका हाल तो पूछिए मत! चलिये, संगठन महामंत्री ने बीजेपी नेताओं को मैसेज दे दिया कि छत्तीसगढ़ में जिस लाइन पर राजनीति चल रही है, उसे काटने या छोटी करने की कोशिश ना ही करें।

जोगी सबसे बड़ा खतरा

बारनवापारा चिंतन शिविर मेें कांग्रेस से ज्यादा जोगी कांग्रेस पर चिंतन किया गया। अधिकांश लोगों का मत यही था कि कांग्रेस से अधिक अजीत जोगी बीजेपी के लिए खतरा बन सकते हैं। एक मंत्री ने तो चेताया, कांग्रेस नेताओं के पास टारगेट पर वार करने की क्षमता नहीं हैं। वे आए, बाएं निशाना लगाते हैं…..लेकिन, आप लोग जान लीजिए, अजीत जोगी सीधे नाभी पर वार करेगा। फिर बोले, सवाल यह नहीं कि जोगी को कितनी सीटें मिलेंगी, खतरा इसका है कि जोगी कांग्रेस कितनी सीटों पर हरवा देगा। बात एक मंत्री की नहीं है। लगभग सभी ने आगाह किया कि जोगी से सावधान रहने की जरूरत है। सो, इस पर यकीन किया जा सकता है, सरकार और जोगी कांग्रेस में कटुता बढ़ेगी।

ऐसा भी होता है

छत्तीसगढ़ में कुछ भी संभव है। वरना, ऐसा थोड़े ही होता कि 2002 बैच का आईएएस डिवीजनल कमिश्नर बन जाए और उससे दो साल सीनियर उसी के अंदर में एडिशनल कमिश्नर। हम बात कर रहे हैं, रायपुर डिवीजन का। 2002 बैच के आईएएस बृजेश मिश्रा कमिश्नर हैं। और, 2000 बैच के एलएस केन उनके नीचे एडिशनल कमिश्नर। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां सीनियर आईएएस जूनियर के नीचे काम कर रहा है। याने सीनियर, जूनियर में कोई भेद नहीं। सब एक समान। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग निश्चित तौर पर बधाई का पात्र है।

जय हो!

सामान्य प्रशासन विभाग की सिकरेट्री निधि छिब्बर को दिल्ली डेपुटेशन पर जाने का रास्ता साफ हो गया है। कैट ने उनके पक्ष में फैसला दिया है। निधि को भारत सरकार में डिफेंस में पोस्टिंग मिली थी। लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने दिल्ली जाने की इजाजत नहीं दी। भारत सरकार के नियम अंतगर्त पोस्टिंग आर्डर निकलने के बाद ज्वाईन नहीं करने पर पांच साल के लिए डिबार कर दिया जाता है। निधि को भी भारत सरकार ने पिछले साल डिबार कर दिया था। इसके खिलाफ उन्होंने कैट की शरण ली। उन्होंने राज्य और भारत सरकार, दोनों को पार्टी बनाया था। दिलचस्प यह है कि राज्य में आईएएस की सेवाएं देखने वाले विभाग जीएडी की वे और उनके पति विकास शील सिकरेट्री है। कह सकते हंै, निधि फरियादी थी और प्रतिवादी भी। ऐसे में, फैसला उनके पक्ष में भला कैसे नहीं आएगा।

टूरिज्म का जवाब नहीं

अपने टूरिज्म डिपार्टमेंट का जवाब नहीं। एक समय था, जब करोड़ांे रुपए मोटल-होटल पर बहा दिया गया। और, अब? विभाग सीएम का भी मान नहीं ंरख रहा है। टूरिज्म ने नया रायपुर में सीएम से जिस होटल मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट का 2013 में लोकार्पण कराया, उसे आज तक कंप्लीट नहीं किया। और, ना ही इसका किसी को होश रहा। लोकार्पण कराने वाले सिकरेट्री टूरिज्म आरसी सिनहा रिटायर होकर घर लौट गए। तीन साल से बिल्डिंग अधूरी है। हमर छत्तीसगढ़ का प्रोग्राम करने के लिए जब इस भवन को चुना गया तो पता चला कि भवन अभी अनकंप्लीट है। किसी तरह ढांक-ढुंककर कार्यक्रम निबटाया गया। ऐसे में, सवाल तो उठते ही हैं, सीएम के मान के साथ मजाक क्यों?

वन्यपशुओं, माफ करना

जंगलों में गेस्ट हाउसेज तो होते हैं, मगर अनुष्ठान हाउस आपने नहीं सुना होगा! बारनवापारा के जंगल में एक सीनियर आईएफएस ने अनुष्ठान के लिए लग्जरी हाउस बनाया है। जिस जगह पर यह बना है, उसके 50 मीटर दूरी पर चार कमरों वाला सर्वसुविधायुक्त गेस्ट हाउस है। मगर साब को वहां पूजा-पाठ में व्यवधान पहंुचता था। इसलिए आईएफएस ने 18 लाख रुपए का सिंगल कमरे का टावरनुमा दो मंजिला गेस्ट हाउस बनवा लिया। नीचे मेें किचेन एवं डायनिंग और उपर में अनुष्ठान कमरा और बेडरुम। जिस पैसे से अनुष्ठान हाउस बना है, वह वाइल्डलाइफ के लिए आया था। याने बारनवापारा के वन्यपशुओं के लिए। उनकी हिफाजत के लिए। गरमी में उनके लिए पानी का इंतजामात करने खातिर। मगर अफसर का सनक देखिए। वन्यपशुओं माफ करना, ऐसे आईएफएस को।

राजनीतिक साजिश तो नहीं?

बिलासपुर रेंज के आईजी पवनदेव पर महिला कांस्टेबल के आरोप सुर्खियो में है। आईजी ने भी इसका जवाब दिया है। दोनों पक्षों के आरोप गंभीर हैं। निश्चित तौर पर इसकी जांच होनी चाहिए। और, दोषी पर कार्रवाई। मगर इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि बिलासपुर में पिछले महीने डकैती का पर्दाफाश किया गया था। इसमें सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों तक न केवल पुलिस पहुंच गई थी। बल्कि, ब्रिटेन मेड पिस्तौल भी बरामद हुए थे। दो नेताओं के डकैत रिश्तेदारों के खिलाफ पुलिस ने अब तक एफआईआर क्यों नहीं किया, ये अलग सवाल है। प्रश्न है, इन नेताओं के इलाके मेें शुक्रवार को मिठाइयां क्यों बांटी गई? फिर, दो साल के टेन्योर में आईजी ने गंगाजल-2 टाईप के चार थानेदारों को नौकरी से बर्खास्त किया। कई पुलिस वालों की नौकरी गई। ऐसे में, निष्पक्ष जांच के लिए साजिश के एंगल को भी लेना चाहिए।

मंत्रीजी हाजिर हो!

वैसे तो सूबे के कई मंत्री और नेता फायनेंस करके कार्यक्रमों के अतिथि बनने के लिए जाने जाते हैं। मगर वन और कानून मंत्री महेश गागड़ा का हिसाब उल्टा है। वे बड़े सरकारी कार्यक्रमों से गोल मार दे रहे हैं। पिछले दिनों केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत, केंद्रीय राज्य मंत्री, भारत सरकार के सचिव आए हुए थे। कार्यक्रम में सीएम समेत कई लोकल मंत्री भी थे। मगर जब गागड़ा को बुके देने के लिए डायरेक्टर समाज कल्याण संजय अलंग को मंच पर बुलाया गया तो पता चला मंत्रीजी आए ही नहीं हैं। अलंग शर्मिंदा होकर मंच से उतर गए। और, 2 जुलाई को नए रायपुर में देश के पहले कामर्सियल कोर्ट के ओपनिंग में भी ऐसा ही हुआ। कार्यक्रम में सुप्रीम कोट्र्र के जस्टिस, राजस्थान और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मौजूद थे। सीएम भी थे। कई मंत्री भी। कानून मंत्री गागड़ा को बुके देने के लिए चीफ सिकरट्री विवेक ढांड का नाम पुकारा गया। ढांड हाथ में पुष्पगुच्छ लिए मंत्रीजी को ढूंढने लगे। पीछे से उन्हें किसी ने इशारा किया, मंत्रीजी गोल हैं। अलंग की तरह ढांढ साब भी क्या करें, अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। जबकि, उन्हीं के विभाग का यह कार्यक्रम था। आप समझ सकते हैं, मंत्रीजी पढ़ाई के दौरान क्लास से कितना गोल मारते होंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. न्याय तंत्र पर सवाल के मामले में आईएएस एलेक्स पाल मेनन के खिलाफ नोटिस तैयार करने के बाद भी उसे इश्यू क्यों नहीं किया गया?
2. बीजेपी के चिंतन शिविर में नेताओं को अपनी मस्तानियों से दूर रहने की हिदायत दी गई क्या?