शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

Feb 26





तरकश, 26 फरवरी


ताजपोशी के पीछे
सुनील कुमार को सीएस बनें पखवाड़ा भर निकल गया मगर कुछ सवाल  ऐसे हैं, जो लोगों को अभी भी मथ रहे हैं। मसलन, हफ्ते भर में प्रभारी सीएस से सीएस कैसे बन गए और सरकार को बनाना ही था तो उसी समय क्यों नहीं, जब प्रभारी का आर्डर निकला था। किन्तु धीरे-धीरे रहस्यों से पर्दा अब उठ रहा है। बताते हैं, सीएस बनने पर ब्रेक लगने के बाद नारायण सिंह ने आखिरी दांव चलते हुए प्रेशर बनाने के लिए 6 फरवरी को शाम छह बजे एक महीने की छुट्टी का आवेदन भेज दिया। उनकी अर्जी जैसे ही सीएम सचिवालय पहुंची, खलबली मच गई। सरकार के रणनीतिकारों को इस बात की आशंका थी और खुफिया खबर भी मिली कि आदिवासी अधिकारी मीटिंग कर रहे हैं और आदिवासी नेताओं में भी कुछ पक रहा है। जाहिर है, कोई आदिवासी नेता अगर इस पर बोल देता तो सरकार की मुश्किलें बढ़ जाती। सो, डाक्टर साब को फौरन इतला किया गया। आदिवासी अफसर की उपेक्षा और नाराज होकर नारायण गए छुट्टी पर......खबर मीडिया में उछले, इससे पहले सरकार ने बड़ा फैसला ले लिया। फटाफट नोटशीट बनीं और नारायण का आवेदन मिलने के ठीक घंटे भर बाद सात बजे मुख्यमंत्री ने पूर्णकालिक सीएस के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया। और रमन के रणनीतिकारों की स्ट्रेज्डी सफल रही। सुनील बाबू की ताजपोशी की मीडिया में इतनी टीआरपी मिली कि बाकी चीजें स्वयमेव गौण हो गई। हालांकि, अंदर की बात है, पिछले साल सुनील कुमार जब दिल्ली में थे, तभी मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएस बनाने का फैसला कर लिया था। और राज्योत्सव के समय ही ताजपोशी का प्लान भी था। मगर किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो़ सका। इसके बाद जनवरी आखिरी का समय चुना गया। इशारा होने के बाद पी जाय उम्मेन छुट्टी पर चले गए और सुनील कुमार को पहले प्रभारी बनाया गया कि एकाध महीने के भीतर उनकी ताजपोशी कर दी जाएगी। मगर नारायण ने राह आसान कर दी।


गोपनीयता
शीर्ष स्तर पर सर्जरी में रमन के रणनीतिकारों ने इतनी सतर्कता बरती कि आखिरी वक्त तक किसी तो भनक नहंी लगी। शाम पांच बजे तक मंत्रालय के आईएएस दावा करते रहे कि उम्मेन साब जून तक खींच ले जाएंगे। इसी तरह मंत्रालय में सिकरेट्रीज की लिस्ट का पता तब चला, जब सामान्य प्रशासन विभाग से आदेश पर हस्ताक्षर हो गया। इसी तरह आईपीएस अधिकारियों का भी रहा। रात नौ बजे लिस्ट निकली और मीडिया के जरिये उन्हें इसका पता चला। दरअसल, लिस्ट के नाम बाहर आ जाने से सिफारिशी फोन घनघनाने लगते हैं। और इस वजह से कुछ बार ऐसा भी हुआ कि आदेश निकलने से पहले लिस्ट को पासपंड करना पड़ गया। ऐसे में सीएम सचिवालय का गोपनीयता पर ध्यान देना लाजिमी है। 


एक म्यान और
बिलासपुर की कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रमन सरकार ने दो पंजाबी पुत्तरों को आईजी और एसपी पोस्ट किया तो लगा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। मगर इसके उलट वहां दोनों के बीच भांगड़ा शुरू हो गया है। आईजी जीपी सिंह ने एक विवादास्पद टीआई को सस्पेंड किया तो एसपी राहुल शर्मा ने उसे बहाल कर दिया। गुस्से से लाल आईजी ने टीआई को फिर सस्पेंड कर दिया। यह तो एक बानगी है, बिलासपुर में ऐसे कई किस्से चर्चा में हैं। हालांकि, यह भी सही है, आईजी साब को पांचेक साल बाद फील्ड की पोस्टिंग मिली है, इसलिए जोश स्वाभाविक है। सत्ता में तगड़ी पैठ भी है। सो, आउट होने का खतरा भी नहीं है। इसलिए कप्तानी अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। अलबत्ता, उनकी सक्रियता को आम लोग पसंद कर रहे हैं और लोगों को अरसे बाद महसूस हो रहा है कि पुलिस नाम की कोई चीज है। मगर इसी के साथ एक दूसरी खबर है। राहुल शर्मा मोबाइल पर बात करते हुए घर के आंगन में गिर गए और उनके पैर में सरिया गड़ गया। बताया गया, उनके पैर में 10 टांके लगे है। इसके बाद वे 25 दिन की छुट्टी पर चले गए। यह कारण लोगों को हजम नहीं हो रहा है। एसपी के आंगन में सरिया कहां से आ गया? ऐसे में लोग चटखारे तो लेंगे ही, कहीं एक म्यान में दो तलवार वाली बात तो नहीं है। 


माटी पुत्र
बिलासपुर में खुल रहे नए विवि का कुलपति बनने के लिए जबर्दस्त लाबिंग चल रही है। कुछ रिटायर आईएएस जोर मार रहे हैं तो रायपुर, भोपाल, मणिपुर से लेकर इलाहाबाद और वाराणसी तक के प्रोफेसर भी लगे हुए हैं। कोई ठेठ संघी बन गया है तो कुछ लोग अपने को कट्टर भाजपाई साबित करने में जुटे हुए हैं। एक वर्ग माटी पुत्रों को मौका देने की बात भी उठा रहा है। याने काबिलियत कोई मापदंड नहीं है। बस, माटी पुत्र होना चाहिए। रायपुर, बस्तर, सरगुजा और ओपन यूनिवर्सिटी में तो आखिर माटी पुत्र ही विराजमान हैं। लक्ष्मण चतुर्वेदी के हटने के बाद राजधानी के रविशंकर विवि की क्या स्थिति है, बताने की जरूरत नहीं है। ऐसे ही माटी पुत्रों को अगर कुलपति बनाना हो तो विश्ववि़द्यालयों की संख्या बढ़ाने के अलावा और कोई लाभ नहीं होगा। 


दुखी स्टाफ
वैसे तो मंत्रियों के स्टाफ का बड़ा जलवा रहता है। हाल ही में एक मंत्री के पीए की बेटी का जन्मदिन रायपुर के वीआईपी रोड स्थित एक बड़े होटल में किस तरह शान से मनाया गया और एक पीसीसीएफ समेत दो दर्जन से अधिक आईएफएस अधिकारी शरीक हुए, उसे सबने देखा। मंत्रियों में अमर अग्रवाल अपवाद हो सकते हैं और कुछ हद तक राजेश मूणत, जिनके लोगों को तीन-पांच करने का मौका शायद ही मिल पाता हो। एक यंग्री यंग मैन मंत्री का स्टाफ तो अपनी किस्मत को कोस रहा है। लाल-हरे गांधीजी वाले कागजों को कौन कहें, दौरे एवं कार्यक्रमों में नाश्ता-पानी भी नसीब नहीं हो पाता। मंत्रीजी के सामने जब भी काजू-बादाम का ट्रे आता है, भौंह चढाएं, मैं नहीं खाता, कहकर आगे बढ़ जाते हैं। अब मंत्री नहीं लेते तो स्टाफ कैसे हाथ बढ़ाएं। न्यू रायपुर के दौरे में ऐसा ही हुआ। कई घंटे भूखे-प्यासे रह गए। ऐसे में स्टाफ बेचारे क्या करें। यह कहकर खीज मिटाते हैं, मंत्रीजी बस, एक ही चीज खाते हैं। 


कलेक्टरी या...
राज्य के अधिकांश कलेक्टर और एसपी पालिटिशियन जैसे काम कर रहे हैं। सबका एक सूत्रीय एजेंडा है, इलाके के मंत्रियों और पार्टी के बड़े नेताओं को खुश रखो और खुद भी खुश रहो। जरूरत पड़ने पर कांग्रेसी नेताओं को भी खुरचन पानी दे दो। और जब ये आलम हो तो जनोन्मुखी योजनाओं से वास्ता रखने की जरूरत भी क्या है। नक्सल इलाके के कलेक्टर, एसपी के पास वैसे भी कोई काम नहीं है। सुरक्षा के कारण दौरे पर जा नहीं सकते। नक्सल के नाम पर इलाके के विकास के लिए केंद्र से करोड़ों रुपए आ रहे हैं। आखिर, ये पैसा खर्च तो होना चाहिए न। सो, कई जिलों में प्रशासन और पुलिस के प्रंमुखों ने ठेकेदारी शुरू कर दी है। प्रशासनिक अधिकारियों के पसंदीदा ठेकेदार रोड से लेकर डेम तक बना रहे हैं। और अधिकांश निर्माण कागजों में हो रहा। नक्सली इलाके में फिजिकल वेरिंिफकेशन करने की हिम्मत किसके पास है। मसलन, स्कूल भवन बना नहीं, और बाहर से मलबा डालकर शो कर दो, नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिया। बिल तो आखिर पूरे का ही पास होगा। 


 अंत में दो सवाल आपसे
1. एमके राउत को कृषि विभाग का प्रींसिपल सिकरेट्री और सुब्रमण्यिम को बीज विकास निगम का एमडी विभाग को ठीक करने के लिए बनाया गया है या किसी और को ठीक करने के लिए?
2. राजस्व मंडल में फेरबदल की खबर से आईएएस और बस्तर के आईजी बदलने की बात से आईपीएस अफसरों की धकधकी क्यों बढ़ जाती है?

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तरकश feb 5


बड़ा दांव
मंगलवार को चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन के अचानक छुट्टी पर जाने और सुनील कुमार के प्रभारी सीएस बनने से सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से लेकर नौकरशाही तक सन्न रह गई। किसी को यकीं नहीं हो रहा था.....सख्त और ईमानदार अधिकारी सुनील कुमार को नौकरशाही की कमान सौंपने का सरकार भला रिस्क कैसे ले सकती है। नौकरशाही में ही 90 फीसदी से अधिक अफसरों का मानना था कि बनेंगे तो नारायण सिंह ही। आईएएस ही नहीं, मंत्री स्तर पर भी लामबंदी चल रही थी, किसी भी सूरत में सुनील कुमार को सीएस नहीं बनना चाहिए। अलबत्ता, पिछले साल जब सुनील कुमार दिल्ली से यहां आएंगे या नहीं अटकलें लगाई जा रही थी, तो मैंने इसी कालम में लिखा था कि सुनील कुमार आएंगे तथा सीएस बनेंगे। और ऐसा ही हुआ। प्रशासनिक आतंकवाद, अधिकारियों के निकम्मापन, नौकरशाही हावी, सुस्त कामकाज, मंत्रियों के भ्रष्टाचार के जैसे आरोपों से परेशान रमन ने सुनील कुमार को आगे बढ़ाकर बड़ा दांव खेल दिया। चुनाव में अभी डेढ़ बरस है। और सुनील कुमार के प्रभारी सीएस बनने के अगले दिन मंत्रालय का जरा हाल सुनिये, अक्सर गायब रहने वाले सिकरेट्री भी अपने कमरे में थे, लंच से चार बजे लौटने वाले अफसर ढाई बजे मंत्रालय आ गए थे। और हर जगह यही चर्चा....शार्प है......छोड़ेगा नहीं। बैठक की पूरी तैयारी करके जाना होगा। आईएएस ही नहीं, आईपीएस और आईएफएस भी आठ साल में पहली बार सहमे लगे। और सोचिए, अभी डेढ़ बरस है। जनता तो यही चाहती है, अधिकारी निरंकुश न हो और उनकी सुनवाई हो। इसलिए, रमन का यह दांव कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है।
उम्मेन की बिदाई?
राजधानी में उड़ाई गई, उम्मेन नाराज होकर छुट्टी की अर्जी दे दी। मगर यह किसी के गले नहीं उतर रहा। उम्मेन का न तो ऐसा नेचर हैं और न ही नाराज होने का उनका कोई हक बनता है। आखिर साढ़े तीन साल तक सीएस रहे। असल में, उम्मेन कामकाज में ढीले हैं मगर आदमी सीधे हैं। इसलिए पीसीसीएफ आरके शर्मा और डीजीपी विश्वरंजन की तरह सरकार उन्हें नहीं हटाना चाहती थी। और सुनील कुमार के लिए रास्ता साफ करना भी जरूरी था। 15 दिन की माथापच्ची के बाद बीच का रास्ता निकाला गया। बताते हैं, उम्मेन को इशारा हुआ और उन्होंने तुरंत अवकाश की अर्जी भेज दी। उम्मेन की छुट्टी मार्च तक बढ़ सकती है। इसके बाद किसी दिन उनका एनआरडीए के चेयरमैन का आर्डर निकल जाएं तो चैंकिएगा मत। 
शो पीस
छत्तीसगढ़ बनने के बाद यहां आधा दर्जन चीफ सिकरेट्री हुए मगर इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि इनमें से कोई भी अपना छाप नहीं छोड़ पाया। पीजाय उम्मेन तो इनमें सबसे कमजोर साबित हुए। अशोक विजयवर्गीय से भी अधिक। साढ़े तीन साल में तो छह महीने से अधिक छुट्टी पर रहे या फिर दिल्ली और विदेश प्रवास पर। कामकाज की न तो मानिटरिंग की और न ही किसी अधिकारी से पूछा, वे क्या कर रहे हैे। नए जिले के कलेक्टर माथा पकड़कर बैठे हैं मगर उन्होंने उनकी मीटिंग बुलाकर समस्याओं को जानने की भी कोशिश नहीं की। मंत्रालय का आलम मत पूछिए, सिकरेट्री ही अपने-अपने विभाग के सीएस हो गए थे। जिलों का दौरा भी नहीं। उनके दिल्ली दौरे की वजह से कई अहम फाइलें लटक जाती थी। इससे सरकार की नाराजगी भी बढ़ती जा रही थी। एक तो वे बैचमेट का धर्म निभाते हुए नारायण सिंह को लगातार प्रमोट कर रहे थे। हाईप्रोफाइल सरकारी बैठकों एवं डिनरों में जहां नारायण सिंह की जरूरत न होती थी, वहां भी उम्मेन उन्हें बुला लेते थे। सीएम सचिवालय को यह नागवार गुजरता था। सीएम सचिवालय पर लोड भी बढ़ता जा रहा था। रुटीन के जिन कामों के लिए सीएस को सिकरेट्री को बोलना चाहिए, उसके लिए भी सीएम सचिवालय के अधिकारियों को फोन लगाना पड़ता था। पिछले महीने सीएस की गैर मौजूदगी में दो दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारियों की सर्जरी करके सरकार ने मैसेज दे दिया था कि उम्मेन शो पीस ही रह गए हैं।  
सुनील बाबू
अविभाजित मध्यप्रदेश में सुनील कुमार की गिनती तेज और काबिल अधिकारी के रूप में होती थी। अर्जुन सिंह ने उन्हें डायरेक्ट, पब्लिक रिलेशंस बनाया। इसके बाद वे रायपुर के कलेक्टर बनें। एमपी के समय कलेक्टरी के लिए इंदौर के बाद रायपुर जिले के लिए मारामारी होती थी......राज्य में पोस्टेड सुनील कुमार और एमके राउत ही दो आईएएस हैं, जिन्हें रायपुर की कलेक्टरी करने का चांस मिला। ़इससे पहले दो-एक सीएस ऐसे हुए, जिनमें विजन तो था मगर डेसिंग नहीं रहा। पर्सनल एजेंडा की वजह से वे प्रशासन पर पकड़ नहीं बना पाए। उनके साथी आईएएस ही कहते हैं, प्लानर, एक्जीक्यूटर के साथ सुनील कुमार डेसिंग वाले अधिकारी माने जाते हंै। सबसे बड़ा प्लस यह है कि उनका अपना कोई एजेंडा नहीं रहा। हार्ड वर्क, सुबह 10 बजे मंत्रालय के अपने कक्ष में होते हैं और रात आठ के बाद ही लौटना। दफ्तर में ही 15 मिनट का लांच, शार्प एवं फंडा क्लियर। सही तो सही, गलत तो गलत। काम होने वाला होगा तो होगा, नहीं तो एकदम नहीं। समय मिला तो यायावरी में भी कमी नहीं।
फिर वहीं
नंदकुमार पटेल ने पिछले छह महीने में मिहनत करके कांग्रेस को जहां पहुंचाया, महीने भर में वह फिर वहीं पहुंच गई। अलबत्ता, स्थिति और विकट परिलक्षित हो रही है। पार्टी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से एक साथ कई मोर्चे खुल गए हैं। इंगे्रड मैक्लाउड को आगे करके जोगी खेमा ने विरोध का बिगूल फूंक दिया है। रमन के खिलाफ अजीत जोगी को लड़ाने के मसले पर पटेल को कटघरे में खड़ा करने की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। चरणदास महंत भी संगठन से बहुत खुश नहीं हैं। याद होगा, विधानसभा में कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव के दो दिन पहले मुख्यमंत्री से सौजन्य भेंट करने महंतजी सीएम हाउस पहंुच गए थे। और अभी, वे भाजपा नेताओं के साथ लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं या फिर सौजन्य मुलाकात। पिछले हफ्ते उन्होंने स्पीकर धरमलाल कौशिक और सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान से मिलने उनके बंगले गए। चांपा में उन्होंने नारायण चंदेल के साथ जाज्वल्य समारोह और रायपुर में मत्स्य विभाग के कार्यक्रम में बृजमोहन अग्रवाल और चंद्रशेखर साहू के साथ शामिल हुए। शनिवार को राज्य सरकार द्वारा आयोजित फूड प्रोसेसिंग प्रदर्शनी में महंत सक्रिय थे। अंदरखाने से निकल कर आ रहा है, कांग्रेस के कार्यक्रमों में अहमियत न मिलने से महंतजी खफा हैं। और यहां तक कहा जा रहा है, संगठन को झटका देने के लिए ही वे सरकारी कार्यक्रमों में शरीक हो रहे हैं। ऐसे में रमन सिंह की हैट्रिक भला कौन रोक पाएगा।
चाय की चुस्कियां
रमन सरकार के वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत के बीच सोमवार को हुई गुफ्तगू की राजधानी में बड़ी चर्चा है। रायपुर के बीआईटी मैदान के एक कार्यक्रम में दोनों मंत्री गर्मजोशी से मिले। इसके बाद दोनों को इंडोर स्टेडियम में बास्केट बाल प्रतियोगिता में शिरकत करनी थी। बीआईटी मैदान से निकलते समय महंत ने बृजमोहन से गलबहियां होकर कुछ बात की और फिर उन्हें अपनी गाड़ी में बिठा लिया। शंकर नगर रोड पर एजाज ढेबर के होटल के सामने वीआईपी गाड़ियों के ब्रेक की जोरदार आवाज के साथ काफिला यकबयक रुका तो लोग चैंक गए। दोनों मंत्री गाड़ी से उतरे और होटल के केबिन में जाकर गर्म चाय की चुस्कियां ली। अब सत्ताधारी और विरोधी पार्टी के नेता केबिन में बैठकर चाय की चुस्कियां लें तो जाहिर है, उनके बीच घर-परिवार की बात तो नहीं होंगी। सो, चर्चा लाजिमी है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रिमंडल की सर्जरी पहले होगी या फिर प्रशासनिक अफसरों की?
2. राहुल शर्मा बिलासपुर के एसपी बनकर क्यों अफसोस कर रहे हैं?