शनिवार, 20 जुलाई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की पूजा खेडकर

 तरकश, 21 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ के किस्मती आईएएस अफसर 

डोमन सिंह को राज्य सरकार ने बस्तर का डिवीजनल कमिश्नर नियुक्त किया है। डोमन भारत देश के पहले प्रमोटी कलेक्टर हैं, जिनके नाम सात जिलों की कलेक्टरी करने का रिकार्ड दर्ज है। छत्तीसगढ़ में इतने जिलों की कलेक्टरी किसी आरआर याने डायरेक्टर आईएएस को भी नसीब नहीं हुआ। सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, पी. दयानंद, ठाकुर राम सिंह चार जिलों से आगे नहीं बढ़ पाए। नए वालों में भीम सिंह, किरण कौशल और चंदन कुमार चार जिले के कलेक्टर रहे हैं। और नीलेश क्षीरसागर, दीपक सोनी फोर्थ डिस्ट्रिक्ट क्लब में अभी पहुंचे हैं। याने छत्तीसगढ़ में कोई आईएएस कलेक्टरी में चार जिलों को क्रॉस नहीं कर पाया। मगर डोमन सिंह को पिछली सरकार में पांच साल में पांच जिलों की कलेक्टरी करने का गौरव प्राप्त हुआ। हालांकि, रमन सिंह सरकार में डोमन की कलेक्टरी की पारी शुरू हुई थी। बीजेपी सरकार में वे मुंगेली और कोरिया कलेक्टर रहे। फिर भूपेश बघेल सरकार में कांकेर, महासमुंद, जीपीएम और राजनांदगांव के कलेक्टर बनाए गए। दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की नई सरकार गठन होने के बाद उन्हें राजनांदगांव से हटाया गया। डोमन 2009 बैच के आईएएस हैं। उनका भाग्य कितना प्रबल है, इस बात से आप समझ सकते हैं कि एक तरफ वे कलेक्टरी का कीर्तिमान बना डाले और उनके बैच के बेचारे आरआर अवनीश शरण, डॉ0 प्रियंका शुक्ला और अय्याज तंबोली को दो-तीन जिले से आगे मौका नहीं मिल पाया। बहरहाल, सात जिलों के कलेक्टर रहे डोमन को अब सात जिलों वाले बस्तर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही...डोमन पोस्टिंग प्राप्ति का ज्ञान बढ़ाने कौन सा चूरण खाते हैं...जिले के बाद क्या अब कमिश्नरी में पोस्टिंग का रिकार्ड बनाएंगे।

एक लिस्ट और

राज्य सरकार ने कल चार आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर किया। इसमें बस्तर कमिश्नर डोमन सिंह की पोस्टिंग देखकर प्रतीत हो रहा कि जल्द ही एक लिस्ट और आएगी। दरअसल, डोमन सिंह के बैच वाले दो प्रमोटी आईएएस बस्तर में कलेक्टर हैं। अब एक ही बैच का कमिश्नर और कलेक्टर कैसे होगा? दरअसल, डोमन 2009 बैच के आईएएस हैं और बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय और नारायणपुर कलेक्टर विपीन मांझी भी उन्हीं के बैच के। अलबत्ता, मांझी तो डोमन से बैचवाइज सीनियर हैं। अनुराग पाण्डेय चूकि अगले महीने रिटायर हो रहे, इसलिए उतना चल सकता है। मगर मांझी का रिटायरमेंट अगले साल है। ऐसे में सीनियर कलेक्टर रहेगा, और जूनियर कमिश्नर, इसमें सीनियरिटी का इश्यू तो आएगा ही। सवाल यह भी है कि जूनियर अफसर सीनियर का सीआर कैसे लिखेगा? सो, लिस्ट देखकर लगता है...पोस्टिंग में सीनियरिटी और जूनियरिटी का फर्क मिटाने बस्तर में सरकार कुछ और कलेक्टरों को चेंज करेगी। वैसे भी रायपुर और बिलासपुर के कमिश्नर डॉ. संजय अलंग इस महीने रिटायर होने जा रहे हैं। विधानसभा का मानसून सत्र और अलंग का रिटायरमेंट लगभग एक साथ समाप्त होगा। सत्र का उल्लेख करने का आशय यह है कि इसके बाद 31 जुलाई को आईएएस पोस्टिंग की लिस्ट निकलेगी, जिसमें रायपुर और बिलासपुर में नए कमिश्नर अपाइंट किए जाएंगे।

छत्तीसगढ़ की पूजा खेड़कर-1

छत्तीसगढ़ में भी कई पूजा खेड़कर हैं, जिन्होंने फर्जी जाति, विकलांगता और ईडब्लूएस के सर्टिफिकेट के जरिये नौकरी हथियाने में कामयाब हो गईं। एक लेडी डिप्टी कलेक्टर के खिलाफ मामला बिलासपुर हाई कोर्ट तक मामला पहुंचा। महिला अफसर ने कान से कम सुनाई देने का हवाला दिया और विकलांग कोटे से पीएससी में उप जिलाधीश सलेक्ट हो गई। दिव्यांगों की समिति ने उनका कोटा हड़पने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट ने मेडिकल टेस्ट कर रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया। मगर जिला अस्पताल के डॉक्टरों से किसी बीमारी के कागज पर साइन कराना कितना आसान है, इसे बताने की जरूरत नहीं। महिला अफसर ने कागज जमा कर दिया। हालांकि, मामला अभी खतम नहीं हुआ है। मगर यही टेस्ट अगर एम्स में कराया गया होता तो जाहिर है, महिला डिप्टी कलेक्टर को नौकरी बचाना मुश्किल हो जाता।

छत्तीसगढ़ की पूजा खेड़कर-2

पुराने लोग पोरा बाई को भूले नहीं होंगे। पोरा बाई 2008 में बारहवीं बोर्ड में मेरिट में टॉप आई थी। सेकेंड, थर्ड डिवीजन से हमेशा परीक्षा पास करने वाला अगर प्रदेश में टॉप आ जाएगा, तो कोहराम मचना ही था। बलौदा बाजार जिले की रहने वाली पोरा बाई ने नकल के नाम पर कुख्यात जांजगीर के बिर्रा स्कूल से परीक्षा में बैठी थी। मेरिट में टॉप आने के बाद लोगों के कान खड़े हो गए...टॉपर स्टूडेंट परीक्षा में बैठने के लिए स्कूल तो नहीं बदलते। माध्यमिक शिक्षा मंडल के तत्कालीन चेयरमैन बीकेएस रे ने जांच हुई तो पता चला आंसरशीट में हैंडराईटिंग किसी और की निकली। पुलिस ने पोरा बाई समेत स्कूल के प्रिंसिपल और परीक्षक समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया। पोरा बाई जेल भी गई। मगर 12 साल बाद इस आधार पर कोर्ट ने बरी कर दिया कि पुलिस ने अभियोजन को साबित नहीं किया। पराकाष्ठा तो यह हो गई कि जांच में हैंडराईटिंग किसी और का पाए जाने के बाद भी माशिमं ने पोरा बाई का रिजल्ट केंसिल नहीं किया। और वे इस समय बलौदा बाजार में शिक्षिका बन गई हैं।

मंत्री की बेटी, मंत्री की पोती

देश में जब नीट परीक्षा और पूजा खेड़कर का मामला सुर्खियो में है तो छत्तीसगढ़ का पीएमटी परीक्षा कांड कैसे विस्मित हो सकता है। मामला 2011 पीएमटी का है। तब नीट प्रारंभ नहीं हुआ था। राज्य अपने-अपने हिसाब से प्री मेडिकल टेस्ट लेते थे। 2011 में राज्य सरकार को दो बार पीएमटी परीक्षा निरस्त करनी पड़ी। एक बार गलत पेपर बंटने की वजह से। और दूसरी बार यूपी के एक गैंग ने पर्चा हथिया उसे 13-13 लाख रुपए में बेचने पर। दूसरी बार भंडाफोड़ तब हुआ, जब बिलासपुर जिले के तखतपुर के एक बड़े हॉल में 72 बच्चे पीएमटी का पर्चा हल करते पकड़े गए थे। इनमें मुंगेली से बिलांग करने वाले एमपी के समय के एक पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की पोती भी शामिल थी। इतने के बाद अब परीक्षा रद्द तो बनता ही था। ले-देकर तीसरी बार में परीक्षा जाकर संपन्न हो पाई, जब सरकार ने प्रदीप चौबे को परीक्षा नियंत्रक बनाया। मगर छत्तीसगढ़ में जैसा कि होता है, इतने बड़े कांड के बाद भी कुछ हुआ नहीं। तमाम साक्ष्यों के बाद भी पुलिस ने ऐसा केस बनाया कि सारे आरोपी बरी हो गए। जबकि, मध्यप्रदेश के व्यापम कांड में मंत्री तक जेल चले गए थे। उससे पहले एक स्वास्थ्य मंत्री की बेटी कोटे के चलते पीएमटी क्लियर कर ली थी। मगर बारहवी बोर्ड परीक्षा में फेल हो गई, क्योंकि उसमें कोटा होता नहीं। बाद में सप्लीमेंट्री परीक्षा में पास कराकर एमबीबीएस में दाखिला करा दिया गया, तब तक मेडिकल की सीट रोक रखी गई। मेडिकल एजुकेशन के डायरेक्टर ने नियमों को ताक पर रख सेंट्रल कोटे से अपनी बेटी का रायपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करा दिया। कोर्ट ने इस आधार पर 50 हजार रुपए फाइन करके छोड़ दिया कि अब दो साल की पढ़ाई पूरी कर ली है उनकी बेटी। प्रायवेट कालेज में उस समय 60 लाख फीस थी। अब 60 लाख की जगह 50 हजार में सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़कर बेटी डॉक्टर बन गई, डीएमई साब फायदे में ही रहे। कहने का मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ का परीक्षाओं का ट्रेक रिकार्ड पोरा बाई और मुन्ना भाई, मुन्नी बहनों से भरा पड़ा है।

कलेक्टर से रिटायर

बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय अगले महीने 31 अगस्त को रिटायर हो जाएंगे। चूकि उनके रिटायरमेंट में अब एक महीना 10 दिन बच गए हैं, सो नहीं लगता कि उनका अब कहीं और ट्रांसफर किया जाएगा। याने कलेक्टर से ही वे सेवानिवृत्त होंगे। कलेक्टर से रिटायर होने वाले अनुराग छत्तीसगढ़ के दूसरे आईएएस होंगे। उनसे पहिले गरियाबंद कलेक्टर छतरसिंह देहरे 2021 में गरियाबंद कलेक्टर से रिटायर हुए थे।

उमेद पर भरोसा

पिछली सरकार से एसपी सीएम सिक्यूरिटी की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रफुल्ल ठाकुर को राज्य सरकार ने हटा दिया है। उन्हें चौथी बटालियन में कमांडेंट बनाकर भेजा गया है। उनकी जगह पर बलरामपुर जिले के एसपी लाल उमेंद सिंह को सीएम सिक्यूरिटी की कमान सौंपी गई है। उमेंद मैच्योर पुलिस अधिकारी हैं। राजधानी रायपुर में लंबे समय तक पोस्टेड रहे हैं। मगर इससे इतर लोगों की उत्सुकता इस बात को जानने में है कि आईपीएस राजेश अग्रवाल कैसे उमेंद को खो कर बलरामपुर एसपी बनने में कामयाब हो गए?

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएएस विनीत नंदनवार को ब्रेवरेज कारपोरेशन का एमडी बनाकर सरकार ने पहले उपर चढ़ाया और फिर तीन महीने के भीतर पूर्व की स्थिति में पहुंचा दिया, ऐसा क्यों?

2. SAS अफसर अभिषेक अग्रवाल शराब मार्केंटिंग कंपनी से हटाकर बिना विभाग क्यों कर दिए गए?

शनिवार, 13 जुलाई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: क्या इसलिए टला छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार!

 तरकश, 14 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

क्या इसलिए टला छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार!

राजधानी रायपुर में बीजेपी की हाई प्रोफाइल बैठक हुई और उसी दिन देर रात राज्य सरकार ने मंत्री केदार कश्यप को संसदीय कार्यमंत्री का अतिरिक्त प्रभार सौंपने का आदेश जारी कर दिया। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यह विभाग खाली था। कुछ दिन बाद छत्तीसग़ढ़ विधानसभा का मानसून सत्र है। विपक्ष खामोख्वाह इसे इश्यू बनाता, इसलिए सरकार को अतिरिक्त प्रभार का फैसला करना पड़ा। केदार कश्यप को संसदीय कार्य विभाग देने के बाद जाहिर है कम-से-कम विधानसभा सत्र से पहले अब मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं होगा। मगर उसके बाद कब...? बीजेपी के शीर्ष सूत्रों की मानें तो कैबिनेट का विस्तार अब नवंबर के बाद तक जा सकता है। दरअसल, पार्टी को लग रहा कि मंत्रियों के दो पद खाली रखने का परिणाम नगरीय निकाय चुनावों में देखने मिल सकता है। मंत्री बनने की आस में सारे विधायक अपने-अपने इलाकों में लगकर काम करेंगे। जैसे लोकसभा चुनाव में काम हुआ। विधानसभा चुनाव में बिलासपुर में अमर अग्रवाल की लीड थी 28959 हजार, मगर लोकसभा चुनाव में बढ़कर 52432 हजार हो गई। याने लगभग डबल। इसी तरह रायपुर पश्चिम में राजेश मूणत की विस की लीड थी 41229 और लोस में 87 हजार, कुरूद में अजय चंद्राकर जीते थे 8090 वोटों से और लोस चुनाव में लीड मिली 24929 वोटों की। याने तीगुनी। इससे लगता है, नगरीय निकाय में भी पार्टी को फायदा होगा। मगर सवाल यह भी है कि जिन मंत्रियों के इलाके में लोकसभा चुनाव में पार्टी की लीड बुरी कदर कम हुई या पिछड़ गई....नगरीय निकाय चुनावों में पारफर्मेंस नहीं आया, तो क्या ऐसे मंत्रियों के लिए भी पार्टी रिप्लेसमेंट का कोई फार्मूला बनाएगी? क्योंकि, लोकसभा चुनाव में मोदी का भी असर था, नगरीय निकाय चुनाव विशुद्ध तौर पर मंत्रियों के लिए लिटमस टेस्ट होगा। बहरहाल, बात कैबिनेट विस्तार की, तो कुर्ता, पायजामा और जैकेट सिलवाकर शपथ लेने का इंतजार कर रहे विधायकों को अभी और वेट करना होगा।

एक पोस्ट, 5 का पेनल

एडीजी पवनदेव का बंद लिफाफा खुलने से अब डीजी पुलिस की दौड़ में एक नाम और शामिल हो गया है। दरअसल, डीजी प्रमोशन में डीपीसी ने अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के नाम को हरी झंडी देते हुए आईपीएस पवनदेव के नाम का लिफाफा बंद कर दिया था। मगर जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पवनदेव का नाम ओके कर दिया। सरकार से सहमति मिलने के बाद गृह विभाग ने लिफाफा ओपन कर उन्हें डीजी प्रमोट करने की नोटशीट चला दी है। आजकल में कभी भी पवनदेव को डीजी बनाने का आदेश हो जाएगा। इसके साथ ही अगले महीने 4 अगस्त को खाली हो रहे डीजी पुलिस के लिए अब तीन दावेदार हो जाएंगे। अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के साथ पवनदेव भी। हालांकि, गृह विभाग पांच नामों का पेनल यूपीएससी को भेजने जा रहा है। इनमें एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम भी शामिल है। डीजीपी सलेक्शन का प्रॉसेज यह है कि यूपीएससी चेयरमैन की अध्यक्षता में डीपीसी बैठेगी। इनमें एमएचए के ज्वाइंट सिकरेट्री के साथ ही छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री और वर्तमान डीजीपी होंगे। डीपीसी के बाद यूपीएससी तीन नामों का पेनल फायनल कर राज्य सरकार को भेजेगी। राज्य सरकार उनमें से किसी एक नाम को ओके कर डीजीपी अपाइंट करेगी। लोगों की उत्सुकता इस बात को लेकर है कि विष्णुदेव सरकार इन पांच में से किस पर भरोसा कर छत्तीसगढ़ पुलिस की कमान सौंपती है।

आईपीएस की ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग इस समय बेहद बुरे दौर से गुजर रही तो इसके लिए नए आईपीएस की ट्रेनिंग भी काफी कुछ जिम्मेदार है। आरआर याने डायरेक्ट आईपीएस अधिकारियों को इस तरह पोस्टिंग और दायित्व नहीं मिल रहा, जिससे वे विपरीत परिस्थितियों को कुशलता से हैंडिल कर सके। अब सवाल ट्रेनिंग कमजोर क्यों...तो इसके लिए पीछे चलना होगा। मध्यप्रदेश के दौरान सब कुछ ठीक था। वहां के सिस्टम का असर करीब-करीब 2002-03 तक दिखा। मगर इसके बाद डायरेक्टर आईपीएस की ट्रेनिंग बेपटरी होती गई। दरअसल, एमपी के दिनों में आईपीएस को एडिशनल एसपी का टेन्योर पूरा करने के बाद ही जिले की कमान याने एसपी बनाया जाता था। खुद डीजीपी अशोक जुनेजा बिलासपुर और रायगढ़ के एडिशनल एसपी रहे। मगर राज्य बनने के बाद एडिशनल वाला कल्चर खतम होता गया। प्रोबेशन के बाद बड़े शहरों में आईपीएस अधिकारियों को सीएसपी बनाया जाता है मगर उसके बाद कुछ दिनों के लिए बस्तर भेज फिर सीधे कप्तान अपाइंट कर दिया जा रहा। अब बस्तर में नक्सल को छोड़ और कोई लॉ एंड आर्डर का प्राब्लम नहीं है। इसलिए, वहां के एडिशनल एसपी का अनुभव मैदानी इलाकों में काम नहीं आता। डायरेक्ट आईपीएस को बड़े शहरों में सीएसपी बनाया जाता है मगर सीएसपी के अधिकार क्षेत्र में दो-चार थानों से अधिक कुछ होता नहीं। उन्हें पूरे शहर का अनुभव नहीं मिल पाता। आप याद कीजिए...मध्यप्रदेश के दौर में अमूमन सभी जिलों में दो एडिशनल एसपी होते थे....एक शहर और दूसरा ग्रामीण। डायरेक्ट आईपीएस अफसर को शहर की जिम्मेदारी दी जाती थी और स्टेट सर्विस वाले ग्रामीण की। यह अब पुरानी बात हो गई। लॉ एंड आर्डर की स्थिति हो या फिर कोई वीवीआईपी मूवमेंट का...डायरेक्ट आईपीएस की जगह स्टेट सर्विस वाले आईपीएस को भेज दिया जाता है। प्राईम मिनिस्टर या प्रेसिडेंट का जब भी दौरा होता है तो विजय अग्रवाल का स्कवॉड अफसर बनाया जाता है या फिर शशिमोहन सिंह को। डायरेक्ट आईपीएस को बचा कर रखने की छत्तीसगढ़ में जो परिपाटी सेट हो गई है, वह छत्तीसगढ़ पुलिस की सेहत के लिए अच्छी नहीं। विजय अग्रवाल और शशिमोहन आठ-दस साल में रिटायर हो जाएंगे...वक्त की जरूस्त है नए अफसरों को ट्रेंड किया जाए। वरना, छत्तीसगढ़ पुलिस पोलिसिंग का नहीं, करप्शन का प्रतीक बनकर रह जाएगी।

कका जिंदा हे

बीजेपी और कांग्रेस में फर्क यह है कि कांग्रेस नेता बड़े जीवट होते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी सीना तानकर खड़े रहने वाले। देख ही रहे हैं, पराजय के बाद भी सरकार पर हमला बोलने में कांग्रेस नेता पीछे नहीं। जिन विधायकों पर कई आरोप, वे भी दहाड़ रहे। जबकि, 2018 में जब बीजेपी की करारी पराजय हुई थी, मंत्री समेत सारे नेताओं की बिल में घुसने जैसी स्थिति थी। कई नेताओं का तो अगले विधानसभा चुनाव तक मुंह नहीं खुला। सभी डरे-सहमे सिमटे रहे...कहीं कुछ बोल दिया और फाइल खुल गई तो फिर क्या होगा? आखिरी समय में राजेश मूणत ने कुछ तेवर दिखाने की कोशिश की तो रायपुर पुलिस ने उनके साथ क्या किया, मूणतजी ही जानते हैं...उनके लिए रमन सिंह को थाने जाना पड़ गया। मगर अब तो सरकार बन गई है...10 मंत्री भी हैं लेकिन अधिकांश मंत्री पता नहीं क्यों...डिफेंसिव और बैकफुट पर...। इसके उलट कांग्रेस 2003 से लेकर 2018 तक याने 15 साल सत्ता से बाहर रही...बावजूद इसके, अंदरखाने में भले ही बीजेपी नेताओं के साथ गलबहियां करते करते रहे हो मगर पब्लिक के बीच हमेशा तने रहे। अलबत्ता, इस समय पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकारी निवास में पोस्टर-बैनर लगाए गए है, काबर चिंता करथस...कका अभी जिंदा हे। बलौदा बाजार की पुलिस विधायक देवेंद्र यादव को पूछताछ़ के लिए इंतजार कर रही थी। और देवेंद्र मीडिया को दमदारी के साथ बयान दे रहे थे। इसे ही बोलते हैं जीवटता। बीजेपी के मंत्रियों को भी अब खोल से बाहर निकलना चाहिए।

किस्मती इंजीनियर

कैबिनेट ने सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से चीफ इंजीनियर के प्रमोशन में वन टाईम के लिए अनुभव में एक साल की छूट देते हुए पांच साल से चार साल कर दिया है। इससे राज्य के कितने एसई लाभान्वित होंगे ये तो नहीं पता, मगर ये सही है कि रायपुर में पीडब्लूडी के एक एसई का रुतबा बढ़ गया है। कैबिनेट के फैसले के बाद उनके पास ट्रांसफर, पोस्टिंग की सिफारिशें लेकर लोग पहुंचने लगे हैं। सबको लग रहा कि एसई साब बेहद पावरफुल हैं...तभी उनके लिए कैबिनेट ने प्रमोशन नियम को शिथिल कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस महिला अफसर को जिले से शिफ्थ कर सरकार ने एक कलेक्टर को मुकेश के गाने सुनने की स्थिति में ला दिया है?

2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि एसीबी की शराब घोटाले की सप्लीमेंट्री चार्जशीट बडे़ धमाकेदार होगी?

शनिवार, 6 जुलाई 2024

Chhattisgarh Trakash 2024: छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP


 तरकश, 7 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP

डीजीपी अपाइंटमेंट का टाईम है, सो इस शीर्षक से आप चौंकिएगा मत! छत्तीसगढ़ में कोई बाहर से डीजीपी नहीं आ रहा। इस खबर का तात्पर्य आपको स्मरण कराना है कि छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के भी आईपीएस डीजीपी रह चुके हैं। आईपीएस थे आरएलएस यादव। राज्य बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस का सेटअप ठीक करने उन्हें यहां भेजा गया था। यादव का रिटायरमेंट करीब था, जाहिर है उन्हें एमपी में डीजीपी बनने का मौका नहीं मिलता। इसलिए वे यहीं रुक गए। उस समय डीजीपी नियुक्ति के न तो कड़े नियम थे और न ही कैडर को लेकर भारत सरकार सख्त थी। तभी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री जोगीजी ने उन्हें 26 मई 2001 को सूबे का डीजीपी अपाइंट कर दिया। याने राज्य बनने के छह महीने के भीतर ही। मगर इसके लिए जोगीजी को मानसिक झंझावतों से गुजरना पड़ा। उनके समक्ष धर्मसंकट यह था कि छत्तीसगढ़ के फर्स्ट डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला, जिन्हें उन्होंने ही नियुक्त किया था, उन्हें वे बेहद चाहते थे और आरएलएस यादव तो उनके अपने थे ही। उधर, यादव का रिटायरमेंट भी करीब था। ऐसे में जोगीजी ने श्रीमोहन शुक्ला से आग्रह किया पीएससी चेयरमैन बनने के लिए। आग्रह शब्द का इस्तेमाल यहां इसलिए किया जा रहा कि जोगीजी ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर एक मैसेज देने के लिए सबके सामने कहा था कि ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं। मैसेज यह था कि वे शुक्ला को हटा नहीं रहे हैं, उनका सम्मान करते हैं। तब शुक्ला के रिटायरमेंट में छह महीने से अधिक समय बचा था। उन्होंने जोगीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए आईपीएस से वीआरएस ले लिया और 26 मई 2001 को उन्हें पीएससी का फर्स्ट चेयरमैन बना दिया गया। यादव भी करीब छह महीने ही डीजीपी रहे। जनवरी 2002 में वे सेवानिवृत हो गए। रिटायरमेंट के बाद जोगीजी ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया था। बहरहाल, जोगीजी नहीं रहे। मगर उनके इस फैसले की आज भी ब्यूरोक्रेसी में चर्चा होती है कि उन्होंने आरएलएस यादव को डीजीपी बनाने का वादा भी निभाया और श्रीमोहन शुक्ला का सम्मान भी बरकरार रखा। याने जोगीजी ने दोनों को खुश कर दिया।

DGP: संयोग या दुर्योग

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश बंटवारे में जो आईपीएस खुद की इच्छा से छत्तीसगढ़ आए थे, उनमें से एक को भी डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला। और जो आईपीएस सुप्रीम कोर्ट जाकर केस जीत गए, वे सभी छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुख बने। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने भी डीजीपी बने हैं, वे अगर एमपी में होते तो उनमें से कोई भी वहां डीजीपी नहीं बनता। क्योंकि, एमपी में कैडर बड़ा है। अभी 87 बैच के आईपीएस वहां डीजी हैं। और छत्तीसगढ़ में 91 बैच से नीचे के अफसर इस पद पर पहुंचने वाले हैं। दरअसल, नवंबर 2000 में आईपीएस कैडर का बंटवारा हुआ, उसे छत्तीसगढ़ कैडर के 16 आईपीएस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि गलत रोस्टर के चलते उन्हें छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में वे केस जीत गए। आदेश यह हुआ था कि दोनों राज्यों की सहमति से 16 आईपीएस एमपी जाते और उनके बदले एमपी से 16 अफसर छत्तीसगढ़ आते। मगर एमपी के सीएम दिग्विजय सिंह ने सहमति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद 16 आईपीएस अधिकारियों को मन मारकर छत्तीसगढ़ रहना पड़ा। तब छत्तीसगढ़ नक्सल और आदिवासी स्टेट माना जाता था। आईएएस हो या आईपीएस...छत्तीसगढ़ कैडर उनके लिए बज्रपात समान था। अब बात उनकी जो इच्छा व्यक्त कर छत्तीसगढ़ आए थे। इनमें राजीव माथुर, संतकुमार पासवान और गिरधारी नायक प्रमुख हैं। ये तीनों सारे एजिबिलिटी के बाद भी डीजीपी नहीं बन पाए। नायक को भाग्य इतना खराब था कि भूपेश बघेल उन्हें डीजीपी बनाना चाहते थे मगर उसमें छह महीने का रोड़ा आ गया। दरअसल, उस समय नियम यह था कि जिसके रिटायरमेंट में अगर छह महीने से कम समय बचा है, उसे डीजीपी नहीं बनाया जा सकता। और जैसे ही भूपेश सरकार ने डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाया, महीने भर बाद छह महीने वाला नियम हट गया। अब इसे संयोग बोलिये या दुर्योग।

एसपी, आईजी का नुकसान

एसीबी ने राजधानी रायपुर के महिला थाना प्रभारी को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। ये तब हुआ, जब एसीबी चीफ अमरेश मिश्रा खुद रायपुर रेंज के आईजी हैं। बहरहाल, इस कार्रवाई से टीआई लोग भारी दुखी और नाराज हैं। ठीक भी है...अमरेश ने अच्छा नहीं किया। सूबे के टीआई लोग अगर ईमानदार हो जाएंगे तो फिर एसपी और आईजी साहबों का क्या होगा? जिस प्रदेश में थानों की बोली लगती हो, वहां एसीबी इस तरह की कार्रवाई करने लगे तो फिर पोस्टिंग के लिए पैसा कोई क्यों देगा? लेकिन, अमरेश के साथ दिक्कत यह है कि वे अपनों को भी नहीं बख्शते। कोरबा में एसपी थे तो रिश्वत के मामले में एक सब इंस्पेक्टर की थाने के भीतर जमकर धुलाई कर डाले थे। जाहिर है, अमरेश अगर दो-एक साल एसीबी में टिक गए तो कोई आश्चर्य नहीं की राजस्थान की तरह दो-चार आईएएस और आईपीएस भी सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।

एचओडी पर वर्कलोड

सरकार के दो विंग होते हैं। पहला सिकरेट्री...जो सचिवालय में बैठते हैं...एक तरह से उन्हें सरकार ही कहा जाता है। इनका काम है नीतियां बनाना और उसकी मानिटरिंग करना। दूसरा, सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने के लिए विभागीय एचओडी होते हैं। इसमें सेटअप के हिसाब से डायरेक्टर और कमिश्नर बिठाए जाते हैं। चूकि सरकार की योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाने का जिम्मा विभागीय कार्यालयों का होता है, इससे आप समझ सकते हैं कि एचओडी का पद कितना महत्वपूर्ण है। मगर इस समय डायरेक्टर लेवल के अफसरों की कमी कहेंं या सक्षम अफसर न होने से एचओडी पर लोड बढ़ता जा रहा है। सिकरेट्री की संख्या चूकि काफी बढ़ गई है, लिहाजा वे विभाग के लाले पड़ गए हैं और उधर एक-एक एचओडी के पास दो-दो, तीन प्रभार। जाहिर है, इससे काम की गुणवता पर असर पड़ सकता है।

दो नए कमिश्नर

आईएएस की बहुप्रतीक्षित लिस्ट छोटी हो या बड़ी...ये अवश्य यह है कि इस महीने के लास्ट में दो संभागों में नए कमिश्नर की पोस्टिंग की जाएगी। रायपुर के साथ बिलासपुर संभाग की कमान संभाल रहे डॉ0 संजय अलंग इस महीने 31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं। उनके रिटायर होने से पहले सरकार दो कमिश्नर अपाइंट करेगी। हो सकता है, अफसरों को इधर-से-उधर करने के क्रम में दो-एक और कमिश्नरों के नाम जुड़ जाएं।

गुस्से में सांसदजी

राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने दिल्ली में हाई प्रोफाइल डिनर कराकर अपनी ताकत दिखा दिए। इससे छत्तीसगढ़ में उनका रुतबा बढ़ना था। मगर उल्टा हो गया। कवर्धा में दो करोड़ की लागत से थाना भवन का लोकार्पण हुआ, उस कार्यक्रम में उन्हें पूछा तक नहीं गया। राजनांदगांव में आईजी आफिस का लोकार्पण करने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह पहुंचे थे, उस कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र से सांसदजी का नाम गोल था। ऐसे में, सांसद का भड़कना स्वाभाविक था...चार दिन पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री से लेकर बीएलए संतोष, शिवप्रकाश जैसे दिग्गजों को अपने घर पर डिनर कराने के बाद ये हाल...। पता चला है, सरकार से भी अफसरों को इसके लिए तीखी झिड़की मिली है। मगर इसमें अफसरों का क्या कसूर? कसूर यही कि दो बड़ों के विवाद में सरकारी मुलाजिम पिसता ही है।

मंत्रिमंडल का विस्तार?

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार जुलाई फर्स्ट वीक में होना तय माना जा रहा था। मगर पूरा हफ्ता निकल गया, अभी इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सत्ता प्रतिष्ठान से भी खामोश है। जानकारों की मानें तो, विधानसभा के मानसून सत्र तक कैबिनेट का विस्तार टल सकता है। तब तक जैसा चल रहा है, वैसा चलता रहेगा। सत्र भी सिर्फ पांच दिन का है। सो, इसमें संसदीय कार्य मंत्री का बहुत रोल नहीं है। बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यही एक विभाग ऐसा है जिसका भूमिका सदन में होती है।

खटराल अफसर

बात करीब दो दशक पुरानी होगी...बिल्डरों और भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने रजिस्ट्री विभाग के एक खटराल आईजी ने ऐसा नियम दिया, जिससे न केवल राज्य सरकार को बल्कि इंकम टैक्स को भी चुना लग रहा है। नियम है...अगर कोई अपने जमीन से लगा अनडायवर्टेड जमीन खरीदता है, तो बाजार दर एकड़ रेट से निर्धारित किया जाएगा। ऐसा नासमझी भरा नियम देश के किसी भी प्रांत में नहीं है। असल में, एकड़ में रेट कर देने से बाजार मूल्य 5 से 10 गुना कम हो जाता है। हकीकत यह है कि बाजार का प्राइस मेकैनिज्म लगे हुए भूमि की कीमत कभी कम नहीं कर सकता। बल्कि यह हास्यपद है। इस नियम के आड़ में भूमि चाहे लगा हो, चाहे ना लगा हो, जमीन माफिया अपने छोटे टुकड़ों का एकड़ रेट में बाजार मूल्य निकालता है और इनकम टैक्स, रजिस्ट्री आदि कई विभागों को नुकसान पहुंचता है। इस नियम के संरक्षण में बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग होता है। रजिस्ट्री सिकरेट्री को इस पर गौर करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि किसी बड़े नौकरशाह को पीएससी का चेयरमैन बनाने सरकार विचार कर रही है?

2. क्या जातिगत समीकरणों की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार का मामला फंस गया है?

रविवार, 30 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: डिनर और सियासत

 तरकश, 30 जून 2024

संजय के. दीक्षित

डिनर और सियासत 

सियासत में चाय और डिनर के अपने निहितार्थ होते हैं...भारत में तो चाय पर चर्चा के बाद लोगों ने सरकार गिरते भी देखा है। तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललीता सोनिया गांधी के यहां चाय पीने गई और अटलजी की सरकार गिर गई थी। बहरहाल, बात यहां छत्तीसगढ़ के सांसद के डिनर की। दरअसल, राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने 28 जून को दिल्ली के अपने सरकारी निवास में हाई प्रोफाइल दावत रखी थी। जाहिर है, पाण्डेय जी को मोदी कैबिनेट 3.0 में मंत्री बनाए जाने की बड़ी चर्चाएं थी। अटकलों में पंख लगाने वालों के तर्क नाहक नहीं थे। संतोष के साथ संघ का टैग लगा ही है, राजनांदगांव सीट से दूसरी बार निर्वाचित हुए और वो भी भूपेश बघेल जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता को पराजित कर। खैर...बात डिनर की। संतोष पाण्डेय के डिनर में शामिल होने रायपुर से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और संगठन मंत्री पवन साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव ही नहीं पहुंचे बल्कि दिल्ली से शीर्ष नेता बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल ने भी शिरकत की। संतोष पाण्डेय का नार्थ एवेन्यू के 173 नंबर के घर में शाम से हाई प्रोफाइल डिनर की तैयारियां हो रहीं थीं...बड़ी शख्सियतों को आना था, सो गहमागहमी भी थी। शाम होते ही छत्तीसगढ़ के सांसदों का जमावड़ा लगने लगा। करीब दो घंटे तक डिनर चला। जाहिर है, इतने बड़े लोग जिस डिनर में शिरकत कर रहे हो, उसमें दाल, सब्जी और पाताल के झोझो के रेसिपी पर तो चर्चा नहीं हुई होगी। इस खास डिनर से सांसद संतोष पाण्डेय का कद बढ़ गया है। रेगुलर फ्लाइट केंसिल हो जाने पर सीएम विष्णुदेव साय चार्टर प्लेन से दिल्ली पहुंचे। उपर से बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल जैसे नेता उनके घर आए...सूबे के सारे सांसदों को जुटा लिया...कवर्धा वाले पाण्डेय जी ने वाकई कमाल कर दिया।

दलित कोटे से मंत्री?

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव कैबिनेट में मंत्रियों के दो पद खाली है और किसी भी दिन शपथ के लिए राजभवन में समारोह आयोजित किया जा सकता है। 12 मंत्रियों के कोटे में एक पद पहले से खाली था और दूसरा बृजमोहन अग्रवाल के सांसद निर्वाचित होने से खाली हुआ है। इसमें सामान्य वर्ग के साथ ही दलित याने सतनामी समुदाय के भी अपने दावे और सियासी दलील हैं। दावे इसलिए क्योंकि कांग्रेस सरकार में सतनामी समुदाय से दो मंत्री रहे...शिव डहरिया और रुद्र गुरू। बीजेपी की चार सरकारों में रमन कैबिनेट 3.0 को छोड़ दें तो तीनों में एक-एक दलित नेता को मंत्री बनाने का मौका मिला। रमन कैबिनेट 3.0 में पुन्नूराम मोहले और दयाल दास बघेल मंत्री रहे। उससे पहले रमन कैबिनेट 1.0 में डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी और 2.0 में पुन्नूराम मोहले मंत्री रहे। फिलवक्त विष्णुदेव साय कैबिनेट में दयालदास बघेल इस समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अब सियासी दलील...। राजनीतिक नफे-नुकसान के हिसाब से देखें तो मंत्रिमंडल में दावेदारी को लेकर दलितों का पलड़ा भारी दिखाई पड़ रहा है। जाहिर है, यूपी, बिहार जैसे दीगर राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी का दलित समाज से दुरियां बढ़ी है। एक समय था, जब अनुसूचित जाति का आरक्षण कम होने के बाद भी 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 10 में से नौ विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। मगर विशुद्ध तौर पर वह मैनेजमेंट का कमाल था। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को धक्का लगा ही, 2023 के एसेम्बली इलेक्शन में पार्टी चार सीटें जीत पाई। बसपा का गढ़ कहे जाने वाली जांजगीर में बीजेपी को हमेशा तीन-से-चार सीटें मिल जाती थी। इस चुनाव में सभी छह सीटें कांग्रेस ले उड़ी। बलौदा बाजार की घटना के बाद बीजेपी दलित वोट बैंक के छिटकने की आशंका और बढ़ गई होगी। क्योंकि, इसमें आपसी सियासत भी तेज है। सरकार ने गिरौदपुरी की समिति से विजय गुरू को हटाकर गुरू बालदास को नियुक्त कर किया। जानकारों का कहना है कि बलौदा बाजार घटना का बीजारोपण इसी दिन हो गया था। सो, बीजेपी भी चाहेगी कि सतनामी समाज में उसकी पकड़ और मजबूत हो...गुरू बालदास को भी मजबूत किया जाए। ऐसे में, दलित समाज से एक और मंत्री बनाने की अटकलों और दावों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

रिटायर आईएएस का टोटा

राज्यों में कुछ आयोग ऐसे होते हैं, जिनमें आमतौर पर चीफ सिकरेट्री या इसके समकक्ष पदों से रिटायर आईएएस अधिकारियों को ही बिठाया जाता है। इनमें राज्य निर्वाचन आयुक्त भी शामिल है, जिसमें विष्णुदेव साय सरकार ने रिटायर चीफ सिकरेट्री अजय सिंह को पोस्ट किया है। इसके अलावे शीर्ष पदों से रिटायर होने वाले आईएएस अफसरों से भरे जाने वाले पदों में राजस्व बोर्ड, मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य नीति आयोग शामिल हैं। हालांकि, नीति आयोग के उपाध्यक्ष का चार्ज सरकार ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन को दिया है। मगर यह टेम्पोरेरी व्यवस्था ही होगी। क्योंकि, चीफ सिकरेट्री के पास वर्क लोड इतना ज्यादा होता है कि उन्हें ज्यादा दिनों के लिए अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जा सकता। राजस्व बोर्ड में उमेश अग्रवाल के रिटायर होने के बाद से चेयरमैन का पद खाली है। रीता शांडिल्य अभी राजस्व बोर्ड का प्रभार देख रही हैं। सरकार के सामने दिक्कत यह है कि सीनियर लेवल के ऐसे अफसर नहीं, जो हाल में रिटायर हुए हो या रिटायर होने वाले हो। यही वजह है कि अधिकांश पद पिछली सरकार के समय से खाली हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद पिछले साल नवंबर में खाली था। राजस्व बोर्ड चेयरमैन, मुख्य सूचना आयुक्त, पीएससी चेयरमैन के पद पिछली सरकार के दौरान ही खाली हुई थी। ये तीनों प्रभार में चल रहा है। यदि यहां अफसर उपलब्ध नहीं हुए तो सरकार को दूसरे राज्यों से आयात करना पड़ेगा।

नीति आयोग में तीसरे सीएस

नीति आयोग में अभी तक तीन चीफ सिकरेट्री उपाध्यक्ष बन चुके हैं। इसमें पहला नाम सुनील कुमार का आता है। 2014 में सीएस से रिटायर होने के बाद रमन सरकार ने उन्हें 2015 में इस आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था। सुनील 2015 से लेकर 2018 के विधानसभा चुनाव तक इस पद पर रहे। बीजेपी की पराजय के बाद सुनील ने इस्तीफा दे दिया था। फिर भूपेश बघेल सरकार ने मार्च 2019 में अजय सिंह की जगह सुनील कुजूर को चीफ सिकरेट्री बनाया और अजय को नीति आयोग में पोस्टिंग दी गई। वे 2020 में नीति आयोग से ही आईएएस से रिटायर हुए मगर उपाध्यक्ष का पद उनका बरकरार रहा। पिछले हफ्ते उन्हें राज्य निर्वाचन में शिफ्थ किया गया और अब नीति आयोग का प्रभार चीफ सिकरेट्री को दिया गया है।

डीजी की एक और डीपीसी

डीपीसी ने एडीजी अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता को डीजी बनाने के लिए हरी झंडी दे दिया है। गृह मंत्रालय से फाइल अनुमोदन के लिए सीएम हाउस पहुंच गई है। फाइल गृह मंत्रालय में 15 दिन पड़ी रही और सीएम हाउस से खासतौर से बुलवाया गया है, इसलिए अब नहीं लगता कि इसमें विलंब होगा। दोनों अफसरों को डीजी बनाए जाने का आदेश कभी भी जारी हो सकता है। जांच की वजह से पवनदेव का लिफाफा बंद हो गया किन्तु उनका पद समाप्त नहीं किया गया है। याने उनके डीजी बनने की उम्मीदें खतम नहीं हुई है। बहरहाल, कोई व्यवधान नहीं आया तो अगस्त में डीजी के एक पद की डीपीसी और होगी। असल में, डीजीपी अशोक जुनेजा महीने भर बाद 4 अगस्त की शाम रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद डीजी का एक पद वैकेंट हो जाएगा। इसके लिए 94 बैच के आईपीएस एसआरपी कल्लूरी दावेदार होंगे। इस बैच में तीन आईपीएस हैं। चूकि हिमांशु गुप्ता का रास्ता क्लियर हो गया है। हिमांशु के बाद जीपी सिंह आते हैं। जीपी की सेवा फिर से बहाल करने फाइल भारत सरकार गई है। उनके बाद कल्लूरी का नंबर है। अगर डीपीसी हुई तो फिर कल्लूरी को परिस्थितियों का लाभ मिल सकता है। मगर जीपी सिंह की सभी फाइले वंदे भारत के स्पीड से दौड़ गईं तो फिर कंपीटिशिन टफ हो जाएगा।

सांप गुजरने के बाद लकीर पीटना

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार पर मंथन करने पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली को छत्तीसगढ़ भेजा है। चार दिन के दौरे में वे रायपुर के बाद आज बिलासपुर में हैं...फिर बस्तर जाएंगे। उनके दौरे पर कांग्रेस नेता ही तंज कस रहे हैं...काश पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ की सुध ले लिया होता, तो ये दिन नहीं देखने पड़ते। दरअसल, सूबे के सारे नेता आपस में ही एक-दूसरे को निबटाने में लगे रहे। पहले अपनो को टिकिट दिलाने और टिकिट न मिलने पर सामने वाले को हराने में ताकत झोंक दिया। रायपुर में डॉ0 राकेश गुप्ता का टिकिट काटने से बड़ा प्रमाण क्या होगा। उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। मगर पार्टी नेताओं ने किसी फर्जी एजेंसी के सर्वे के बहाने उनका टिकिट काट दिया। दर्जन भर से अधिक मामले ऐसे हुए, जिसे पार्टी संज्ञान लेकर उपयुक्त प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुनाव का सीन बदल सकती थी। मगर पार्टी के जिम्मेदार लोग खुद ही गुटबाजी के दलदल में फंसे रहे। ऐसे में, सूबे के कांग्रेस नेताओं का यह कहना गलत नहीं है कि सांप गुजरने के बाद पार्टी अब दिखावे के लिए लकीर पीट रही है।

विलपावर बरकरार

मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बृजमोहन अग्रवाल का पावर निश्चित तौर पर घट गया है मगर उनका विल पावर और सियासत में अपनी जगह बनाने का माद्दा कायम है। दिल्ली में पहली बार बीजेपी के सांसद नेशनल मीडिया पर नारे लगाते दिखे। दरअसल, स्पीकर के चुनाव के बाद लोकसभा में आपातकाल के खिलाफ संकल्प आया और इसके बाद इमरजेंसी का जिन्न एक बार फिर से जाग उठा। कुछ देर बाद बृजमोहन अग्रवाल टॉप के टीवी चैनलों पर आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए। उनके साथ में केंद्रीय राज्यमंत्री समेत पार्टी के सभी सांसद थे। दरअसल, स्टूडेंट पॉलिटिक्स से सियासत में आए बृजमोहन को पता है कि मीडिया में क्या बिकता है और कैसे अवसरों का इस्तेमाल करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एसीएस सुब्रत साहू का प्रशासन अकादमी का वनवास खतम होगा...सरकार उन्हें कुछ कामकाज वाला विभाग देने जा रही है?

2. छत्तीसगढ़ के एक डीजी पुलिस का नाम बताइये, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद एक केस में सस्पेंड होना पड़ा।



रविवार, 23 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: कलेक्टर संज्ञान लें

 तरकश, 23 जून 2024

संजय के. दीक्षित

कलेक्टर संज्ञान लें

तरकश स्तंभ के टॉप पर अगर एसडीएम और पटवारी की खबर लग रही है तो आप इसकी गंभीरता को समझ सकते हैं। दरअसल, पूरे प्रदेश में एसडीएम और पटवारियों के गठजोड़ से एक बड़ा खेला चल रहा है...कागज से नाम गोल कर दो, और उसके बाद एसडीएम का चक्कर लगाकर नाम जुड़वाने की एवज में धनदोहन करो। दरअसल, जमीन के पेपर से अगर त्रुटिवश नाम हट गया हो तो सरकार ने उसके लिए एसडीएम को अधिकार दिया है कि दस्तावेजों को चेककर नाम जोड़ें। मगर इस अधिकार की आड़ में पटवारी और एसडीएम ऐसा गदर मचा डाले हैं कि आम आदमी ़त्राहि माम कर रहा है। जानकारों को इसमें साजिश की बू आ रही। क्योंकि, इतने बड़े स्तर पर नाम कैसे गायब हो सकते हैं। अधिकांश एसडीएम कार्यालयों में रोज भीड़ लग रही है...सैकड़ों की संख्या में नाम दुरूस्त करने के आवदेन जमा हो रहे हैं। प्रार्थी की हुलिया देखकर एसडीएम आफिस के बाबू रेट तय कर रहे। अगर सामान्य आदमी है तो 10 से 15 हजार और ठीकठाक तो फिर 20 हजार से लेकर 30 हजार। कलेक्टरों को इसे देखना चाहिए क्योंकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि राजस्व महकमे में बहुत गड़बड़ियां है। कलेक्टर अगर हर महीने इसका रिव्यू कर लें, उतने में ही एसडीएम आफिसों का गोलमाल काफी कुछ कंट्रोल हो जाएगा। वरना, सरकार अभी एक्शन मोड में है। सीधे छुट्टी या सस्पेंड किया जा रहा है।

आईएएस की पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने कल तीन अफसरों की पोस्टिंग का आदेश निकाला, उसमें नम्रता जैन को सुकमा जिला पंचायत का सीईओ बनाया गया है। नम्रता की पोस्टिंग हसबैंड की पोस्टिंग के बेस पर हुई है। उनके आईपीएस पति सुकमा में एएसपी हैं। इसलिए, नम्रता सुकमा के लिए प्रयासरत थीं। और उनकी किस्मत से वहां एक आईएएस की वैकेंसी हो भी गई। दरअसल, सुकमा जिपं के सीईओ लक्ष्मण तिवारी कैडर चेंज कराकर बिहार शिफ्थ हो रहे हैं। उधर, रजत बंसल को मनरेगा आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। उनके पास पहले से जीएसटी कमिश्नर, डायरेक्टर प्रधानमंत्री आवास योजना का चार्ज है। उपर से मनरेगा भी। रजत मनरेगा से ही जीसएटी में आए थे। पता चला है, दीपक सोनी के बलौदाबाजार का कलेक्टर बनकर जाने की वजह से मनरेगा आयुक्त की कुर्सी खाली हो गई थी। और ग्रामीण और पंचायत मंत्री विजय शर्मा ने बार-बार आग्रह कर रहे थे कि किसी की पोस्टिंग हो जाए। समझा जाता है, रजत की यह टेम्पोरेरी पोस्टिंग होगी। क्योंकि, जीएसटी और पीएम आवास में काफी काम है। ऐसे में हो सकता है, अगले प्रशासनिक फेरबदल में पूर्णकालिक मनरेगा आयुक्त मिल जाएगा। रही बात तीसरे आईएएस कुलदीप शर्मा को रजिस्ट्रार को-आपरेटिव सोसाइटी बनाने की तो दीपक सोनी के पास ये भी चार्ज था। सो, उनके हटने के बाद कुलदीप को रजिस्ट्रार का प्रभार मिल गया। इस पोस्टिंग से कुलदीप अपने समकक्षों में सबसे उपर हो गए हैं। उनके पास पहले से कंट्रोलर फूड एंड ड्रग्स और एमडी पाठ्य पुस्तक निगम की जिम्मेदारी है। उस पर अब रजिस्ट्रार। रजिस्ट्रार काफी रिसोर्सफुल पोस्ट माना जाता है। मध्यप्रदेश में अभी भी 15 साल से कम सर्विस वाले आईएएस को रजिस्ट्रार नहीं बनाया जाता।

कलेक्टरों की लिस्ट

लोकसभा चुनाव के बाद दो कलेक्टर हिट विकेट होकर पेवेलियन लौट चुके हैं। पहले कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह हटाए गए और उनके बाद बलौदा बाजार कलेक्टर केएल चौहान की सरकार ने छुट्टी कर दी। लोकसभा चुनाव के बाद करीब दर्जन भर कलेक्टरों को बदला जाना था। इनमें से दो अपने आप बाहर हो गए। सो, लगता है पांच-सात जिलों के कलेक्टर और बदले जा सकते हैं। इनमें सरकार का पहला पैरामीटर दो साल का टेन्योरा कंप्लीट और पारफर्मेस बताया जा रहा है। खासकर, कांग्रेस सरकार में पोस्टेड कलेक्टर्स, जो जनवरी में हुए फेरबदल में बच गए, उनमें से कई को चेंज किया जाएगा या फिर किसी अन्य जिले में शिफ्थ किए जाएंगे। इनमें विजय दयाराम जगदलपुर, जन्मजय मोहबे कवर्धा, राहुल देव मुंगेली, डॉ0 रवि मित्तल जशपुर, आर एक्का बलरामपुर, विनय लंगेह कोरिया, एस0 जयवर्द्धने मानपुर-मोहला जयवर्द्धने और हरिस एस0 सुकमा शामिल हैं। इनमें से रवि मिततल खुद हटने के इच्छुक बताए जा रहे और दयाराम को अगर बीजेपी प्रेसिडेंट किरण सिंहदेव वीटो नहीं लगाए तो उन्हें हटना पड़ जाएगा। मगर ये कब तक होगा? ये अभी फायनल नहीं...मगर सीएम हाउस में नामों पर चर्चा शुरू हो गई हैं।

अजय सिंह की लाटरी

रिटायर चीफ सिकरेट्री अजय सिंह को सरकार ने नीति आयोग से हटाकर राज्य निर्वाचन आयुक्त पोस्ट कर दिया है। अब ये सवाल बाद में आएगा कि किसके लिए नीति आयोग में वैकेंसी बनाई गई है। अभी बात सिर्फ अजय सिंह की। दरअसल, इस पोस्टिंग से अजय का प्रोफाइल और प्रतिष्ठा उंची हो गई है।़ राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद हाई कोर्ट के सीटिंग जज के समकक्ष होता है। फिर यह संवैधानिक पद है....एक बार पोस्ट करने के बाद सरकार हटा भी नहीं सकती। इसके लिए महाभियोग लाना पड़ेगा। अजय सिंह के छोटे भाई पटना हाई कोर्ट के जज हैं और अब अजय सिंह भी रैंक में उनके बराबर हो गए हैं। बहरहाल, अजय सिंह शुरू से पोस्टिंग के मामले में किस्मती रहे हैं। कांग्रेस सरकार में चीफ सिकरेट्री के पद से अचानक हटा दिए जाने के एक मामले को छोड़ दें तो 37 साल की आईएएस की सर्विस में उन्हें हमेशा अच्छी पोस्टिंग मिलती रही। रमन सरकार में वे एक समय सिकरेट्री इनर्जी के साथ बिजली कंपनी के चेयरमैन रहे। वे लंबे समय तक एक्साइज सिकरेट्री और इसी विभाग के कमिश्नर रहे। फायनेंस सिकरेट्री से लेकर अरबन एडमिनिस्ट्रेशन, हेल्थ और एपीसी का भी चार्ज उनके पास रहा। हालांकि, उनकी पोस्टिंग से राज्य निर्वाचन आयुक्त पद की गरिमा और बढ़ गई है। क्योंकि, छत्तीसगढ़ बनने के बाद सिर्फ दो ही चीफ सिकरेट्री लेवल के अफसर इस आयोग में पोस्ट हुए हैं। पहला शिवराज सिंह और दूसरे अजय सिंह। असल में, है भी ये चीफ सिकरेट्री रैंक का पद। स्केल भी सीएस का।

मंत्रिमंडल विस्तार

सत्ता के गलियारों से जैसी कि खबरें आ रही है...विष्णुदेव मंत्रिमंडल का विस्तार जुलाई फर्स्ट वीक तक हो जाएगा। इसकी वजह भी है। 12 मंत्रियों वाले स्टेट में दो-दो मंत्रियों की जगह खाली हो गई है। एक सीट पहले से खाली थी, दूसरी बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद रिक्त हो गई। ऐसे में, सबसे अधिक लोड मुख्यमंत्री पर आ गया है। उनके पास पहले से ही जीएडी, माईनिंग, आबकारी, ट्रांसपोर्ट विभाग थे ही, अब बृजमोहन का शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन और संसदीय कार्य भी आ गया है। दरअसल, 21 दिसंबर को मंत्रियों के शपथ के बाद विभागों का बंटवारा हुआ था, उस आदेश में लिखा था कि जो विभाग किसी मंत्री के पास नहीं होगा, उसे मुख्यमंत्री के पास माना जाएगा। इसी आदेश के तहत बृजमोहन के विभाग सीएम के पास आ गए। जाहिर है, नए मंत्रियों को सीएम के कुछ विभाग दिए जाएंगे तो कुछ विभागों को इधर-से-उधर किए जाएंगे।

दो सीट, आधे दर्जन दावेदार

पहली बार निर्वाचित दर्जन भर से अधिक विधायकों को आए दिन मंत्री बनने के सपने आ रहे हैं...कुछ को तो सुबह के सपने...भगवा रंग के जैकेट पहने...राजभवन में शपथ ले रहा हूं। सुबह के सपने कहा जाता है सच होते हैं...सो दो-तीन विधायकजी इतने अश्वस्त हैं कि मंत्रालय जाकर अपने बैठने की जगह-वगह भी देख आए हैं। बहरहाल, धरातल की बात करें तो...विष्णुदेव मंत्रिमंडल के दो पदों के लिए आधा दर्जन नामों की चर्चा बड़ी तेज है। इनमें रायपुर से राजेश मूणत, कुरुद के अजय चंद्राकर, दुर्ग से गजेंद्र यादव, कोंडागांव से लता उसेंडी, बिलासपुर से अमर अग्रवाल और पंडरिया से भावना बोहरा। सियासी पंडितों का दावा है कि इन छह में से दो को मंत्री बनाया जाएगा। हालांकि, इन दोनों मंत्रियों का नाम केंद्रीय नेतृत्व फायनल करेगा मगर सीएम विष्णुदेव की राय अहम रहेगी। क्योंकि, मंत्रियों से काम लेकर रिजल्ट उन्हें देना है।

मंत्रिमंडल और जातीय संतुलन

छत्तीसगढ़ के मंत्रिपरिषद में इस समय छह मंत्री ओबीसी से हैं। दो ट्राईबल से और सामान्य तथा दलित वर्ग से एक-एक। ओबीसी से अरुण साव, ओपी चौधरी, लखनलाल देवांगन, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और टंकराम वर्मा। इसी तरह ट्राईबल से रामविचार नेताम, केदार कश्यप। सामान्य वर्ग से विजय शर्मा और दलित समुदाय से दयालदास बघेल। सामान्य से बृजमोहन अग्रवाल भी थे, मगर उनका इस्तीफा हो गया है। जाहिर है, विष्णुदेव मंत्रिमंडल में इस समय ओबीसी का पलड़ा भारी है। अगर दो रिक्त पदों में से किसी ओबीसी को मंत्री बनाना होगा तो एक से इस्तीफा लेना होगा। क्योंकि 12 में सात मंत्री ओबीसी से तो नहीं हो सकते। फिर यह भी कि बस्तर से हमेशा दो मंत्री रहे हैं। पहला ऐसा मौका कि सरगुजा से तीन मंत्री और बस्तर से सिर्फ एक। ऐसे में, लता उसेंडी की संभावना बढ़ी है। क्योंकि, वे आदिवासी के साथ महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करेंगी। अब सामान्य वर्ग की बात। अजीत जोगी सरकार में सामान्य वर्ग से चार मंत्री रहे। उसके बाद रमन सिंह की सरकार 15 साल रही। उसमें भी तीन मंत्री इस वर्ग से रहे। मगर इस समय बृजमोहन के इस्तीफे के बाद सिर्फ एक मंत्री हैं। जाहिर सी बात है कि सरकार सामान्य वर्ग से एक मंत्री तो लेगी ही। इनमें राजेश मूणत से लेकर अमर अग्रवाल, भावना बोहरा जैसे कोई भी एक नाम हो सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के नीति आयोग का उपाध्यक्ष किसी रिटायर और अनुभवी नौकरशाह को बनाया जाएगा या किसी विषय विशेषज्ञ को?

2. क्या ये खबर सही है कि मंत्रिमंडल के आगामी फेरबदल में सरगुजा से तीन में से एक मंत्री को ड्रॉप किया जाएगा?


रविवार, 16 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ और खतरे की आहट

तरकश, 16 जून 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ और खतरे की आहट

छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मामले आमतौर पर आदिवासी इलाकों में ज्यादा होते थे। मगर अब गैर आदिवासी इलाकों में यह संख्या इतनी तेजी से बढ़ी है कि सूबे के सामाजिक ताने-बाने परआईपीएस  खतरे मंडराने लगे हैं। खासकर, जांजगीर, सक्ती, बलौदा बाजार, सारंगढ इलाकों में वृहत पैमाने पर धर्मांतरण कराए जा रहे। इससे इन इलाकों में न केवल उच्छृंखलता बढ़ी है बल्कि अराजकता के हालात बनते जा रहे हैं। इन इलाकों में आए दिन युवाओं की नई सेनाएं गठित हो रही हैं...और पुलिस चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही। सरकार के साथ सामाजिक संस्थाओं के लिए ये बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि, हालात यही रहा तो सिचुएशन और खराब होगा। जाहिर है, बस्तर के दो वर्गों में पहले से तनाव चल रहा है। मैदानी इलाकों में कम-से-कम सामाजिक सौहार्द्र मुकम्मल रहे, इसके लिए सामाजिक संस्थाओं और धर्म गुरूओं को सक्रिय होना पड़ेगा। क्योंकि, कुछ काम ऐसे होते हैं, जो सरकारों के लिए संभव नहीं होते।

कलेक्टर, CEO में जंग

जिलों में कलेक्टर और जिला पंचायत के सीईओ सबसे बड़े अफसर होते हैं। इनमें अगर आपस में टकराव शुरू हो जाए, तो समझा जा सकता है कि फिर जिले में कैसी अराजकता होगी। और वही हुआ। रायपुर के एक पड़ोसी जिले के कलेक्टर ने सरकार के शीर्ष अफसरों को पत्र लिखकर सीईओ की शिकायत की थी और महिला सीईओ कलेक्टर की कंप्लेन कर रही थी। मंत्रालय के अफसरों को पहले लगा कि दोनों में से किसी एक की शिकायत सही होगी। मगर बाद में पता चला कि दोनों के बीच कमीशन को लेकर विवाद चल रहा था। अगर उसी समय दोनों की छुटटी कर दी होती तो हो सकता था कि जो हुआ, वह नहीं होता। लेकिन, यह भी सही है कि होनी को कौन टाल सकता है।

प्रशासन का इकबाल

बलौदा बाजार से पहले छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े कई सामुदायिक विवाद हो चुके हैं। इनमें से कई बार पुलिस को स्थिति को काबू में करने बल भी प्रयोग करने पड़े। बिलासपुर शहर से लगे चकरभाटा एयरपोर्ट के आगे बोड़सरा में कई साल तक तनाव कायम रहा। 2008 में बोड़सरा में सतनामी समाज का मेला लगा था। वहां जैतखाम को लेकर विवाद हो गया। देखते-ही-देखते प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि बिलासपुर के तत्कालीन एसपी प्रदीप गुप्ता की उंगली में तलवार लग गई। स्थिति को संभालने एसपी ने लाठी चार्ज का आदेश दिया। इसी तरह 2013 में सर्व आदिवासी समाज सीएम हाउस का घेराव करने जा रहा था। आईजी थे मुकेश गुप्ता। भीड़ अनियंत्रित होने लगी तो लाठी चार्ज का आदेश दिया। समाज के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ साल पहले एक और समाज के लोग विधानसभा घेरने जा रहे थे, उस समय भी राजधानी पुलिस ने जमकर लाठी चार्ज किया था। इसके बाद फिर कभी विधानसभा का घेराव करने का किसी ने साहस नहीं किया। कहने का आशय यह कि पुलिस और प्रशासन के बड़ा कोई नहीं होता। और यह भी सही है कि प्रशासन इकबाल से चलता है। वक्ती जरूरत इकबाल बहाल करना होना चाहिए।

फील्ड पोस्टिंग क्यों?

यह छत्तीसगढ़ में सालों से चल रहा कि अफसर की विदाई के दो-एक साल पहले उसे अच्छी पोस्टिंग मिल जाती है। सरकारों को इस ट्रेंड को बदलना चाहिए। क्योंकि, नौकरी में रहते 25 साल, 30 साल में अफसर ने कुछ नहीं किया तो आखिरी समय में राज्य के लिए कौन सा तीर मार देगा। जाहिर है, फील्ड या मलाईदार पोस्टिंग में अधिकांश अफसर बुढ़ापे के साथ अगली दो-तीन पीढ़ियों के लिए इंतजाम में लग जाते हैं। ऐसे में, सरकार की प्राथमिकताएं प्रभावित होती हैं। बता दें, बलौदा बाजार कलेक्टर का भी अगले साल रिटायरमेंट है।

विधायकों से खतरे

आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार को विपक्ष से अधिक अपने विधायकों से प्राब्लम फेस करने पड़ सकते हैं। क्योंकि, कांग्रेस विधायकों ने जो किया, उसी नक्शे कदम पर बीजेपी के अधिकांश विधायक चल पड़े हैं। इनोवा गाड़ी उनके लिए छोटी होती जा रही...फारचुनर से नीचे कई विधायक बात नहीं कर रहे। पहली बार के विधायकों से आप सीधे बात नहीं कर सकते। अहंकार तो आसमान पर। पीए या पीएसओ की इच्छा होगी तो बात कराएगा वरना, आप फोन लगाते रहिये। सरगुजा के एक युवा विधायक को पार्टी को बड़ी उम्मीद रही होगी। बड़े धूमधड़ाके के साथ सियासत के पिच पर उन्हें उतारा गया था। मगर उनके बारे में आप सुनेंगे तो सहसा विश्वास नहीं होगा। जनता के प्रतिनिधि का ऐसा आचरण कैसे हो सकता है। भूपेश बघेल सरकार को उनके विधायकों ने डूबोया...सरकार से अधिक उनके विधायकों का एंटी इंकाबेंसी था। उसी तरह के वायरस बीजेपी के विधायकों में आ गए हैं। कहां से कितना गांधी जी के दर्शन हो जाएं, सिर्फ एक ही गुनतारा। रेत माफियाओं को संरक्षण, ठेकेदारों और अफसरों से उनकी युगलबंदी बढ़ती जा रही। सरकार और बीजेपी के लिए यह खतरे का संकेत हैं। वक्त रहते सरकार को अपने विधायकों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, सामने नगरीय निकाय चुनाव है।

सियासत के नए रंग

छत्तीसगढ़ में सियासत गजब रंग दिखा रहा है। डिप्टी सीएम अरुण साव खुद की मजबूती के लिए संघर्षरत थे। अब बीजेपी ने उनके खुद के विधानसभा इलाके के तोखन साहू को केंद्रीय मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें शहरी मंत्रालय दे दिया। एक तो अरुण के सजातीय, उपर से विभाग भी सेम। अरुण के पास राज्य का नगरीय विभाग है तो राज्य मंत्री ही सही, तोखन के पास केंद्र का। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक दिग्गज भी बीजेपी की इस राजनीति को समझ नहीं पा रहे। कोई कह रहा, अरुण के कद को कम किया गया है। जाहिर है, एक ही समाज के दो लोग तो किसी-न-किसी के हाइट को फर्क तो पड़ेगा। मगर जानकारों का कहना है कि देश में तेली समाज से और कोई नेता जीता नहीं। पिछली सरकार में असम से रामेश्वर तेली केद्रीय मंत्री थे। जातिगत राजनीति के युग में तेली समाज से किसी को मंत्री बनाना था। सो, तोखन के अलावा मोदी जी के पास कोई विकल्प नहीं था। बाकी तो मोदी जी और अमित शाह बताएंगे, इसके पीछे का असली राज। अपन तो इसमें खुश हैं कि हमर बिलासपुर के विकास को अब चार चांद लगेंगे।

IAS बिहार शिफ्थ

सुकमा के एसडीएम लक्ष्मण तिवारी बिहार जा रहे हैं। वे आईपीएस पत्नी के बेस पर अपना कैडर चेंज करा लिया है। लक्ष्मण तिवारी काफी तेज-तर्राट आईएएस अफसर हैं। उस तरह के अफसर, जो बड़े सपने और हौसले लेकर ब्यूरोक्रेसी में आते हैं और गांधीजी की फोटो देखकर बदलते नहीं। लक्ष्मण वही हैं, जिन्हें सरगुजा संभाग की एक महिला नेत्री ने उन्हें सूरजपुर से सीधे सुकमा भिजवा दिया था। लगभग 900 किलोमीटर दूर। कसूर यह था कि महिला के रेत ठेकेदार पति की गाड़ियों को उन्होंने पकड़ लिया था। अच्छे अफसर सरकार के एसेट होते हैं। ब्यूरोक्रेसी को ऐसे अफसरों को रोकना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने वैसे ही छांट के अफसरों को यहां भेज दिया था। वरना, आप भी देखते होंगे मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की अभी भी रीढ़ की हड्डी बची हुई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ढाई साल से डीजी प्रमोट होने की आस में बैठे आईपीएस अरुणदेव और पवनदेव की डीजी बनने की भागीरथी प्रतीक्षा कब पूरी होगी?

2. क्या बस्तर से लता उसेंडी को विष्णुदेव मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी?


शनिवार, 8 जून 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अफसरों की रफ्तार और नीयत

 तरकश, 9 जून 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों की रफ्तार और नीयत

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने आचार संहिता समाप्त होने के दूसरे ही दिन कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह को हटा दिया मगर खबर है कि सरकार स्पीड और साफ नीयत से काम करने वाले अफसरों को प्रोटेक्शन देगी। वैसे भी, ब्यूरोक्रेसी का थंब रुल है कि अफसरों को जब तक संरक्षण नहीं दिया जाएगा, तब तक वे रिस्क लेकर काम नहीं करेंगे। जब आदमी दौड़ता है, तो उसमें गिरने के भी खतरे होते हैं। कई बार अच्छे अफसरों से कुछ चीजें चूकवश हो जाती है। सो, अभी होने वाले आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर में इस बात का ध्यान रखा जाएगा। दरअसल, सरकार स्पीड पर काफी जोर दे रही है। अफसर ईमानदार हों मगर कामकाज की गति धीमी हो तो न तो उससे राज्य को कोई फायदा होता और न ही सरकार को। ऐसे में, दो-एक अच्छे कलेक्टरों की छुट्टी की चर्चाएं, चर्चाएं तक रह जाए, तो आश्चर्य नहीं।

अफसरों और नेताओं को झटका

छत्तीसगढ़ के वित्त विभाग ने एक बड़ा फैसला लेते हुए किराये की गाड़ियां लेने पर ब्रेक लगा दिया है। विभाग ने आदेश जारी कर कहा है कि अगर बहुत आवश्यक हो तो वित्त से अनुमति लेने के बाद ही गाड़ियां हायर किया जाए। यह आदेश सरकार के साथ ही बोर्ड और निगमों में भी लागू होगा। इस आदेश से अफसरों के साथ ही बीजेपी नेताओं के चेहरे की रंगत भी बदली होगी। क्योंकि, गाड़ियां अफसरों की गुरूर होती है। ब्यूरोक्रेसी का सीधा सा फंडा है...जितने बड़े ठसन वाले अफसर, उतनी लग्जरी गाड़ियां। आईएएस की किसी विभाग में पोस्टिंग होती है तो ज्वाईन करते ही तस्दीक शुरू हो जाती है...सरकारी पुल के अलावा बोर्ड और निगमों से कितनी गाड़ियां मिल सकती है। खुद के अलावा एक वीबी और एक चुनमुन के लिए तो चाहिए ही। यही हाल नेताओं का भी है। मंत्रियों के बंगले में दर्जन भर गाड़ियां खड़ी नहीं तो फिर काहे का मंत्री। बीजेपी राज के कई नेताओं को लोग जानते हैं कि बोर्ड और निगमों में पोस्टिंग के बाद खुद के इस्तेमाल के लिए गाड़ी खरीदकर लगा दिए और बोर्ड से मुंहमांगा किराया भी वसूले। अपनों को उपकृत करने का भी यह बढ़ियां माध्यम है। नेता अपने करीबी समर्थकों की दो-चार गाड़ियां आफिसों में लगवा देते हैं ताकि उसके मौज-मस्ती का इंतजाम हो जाए। मगर जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल ने आदेश जारी कर अफसरों और नेताओं पर बड़ा वज्रपात कर दिया।

जनपद सीईओ और सिकरेट्री बराबर

लग्जरी गाड़ियों के मामले में छत्तीसगढ़ में ऐसा रामराज है कि यहां छोटे-बड़े में कोई फर्क नहीं बच गया है। जनपद सीईओ और नगरपालिकाओं के सीएमओ जैसे छोटे मुलाजिम इनोवा में चलते हैं और मंत्रालय के सिकरेट्री भी। असिस्टेंट कलेक्टर के पास भी इनोवा और एसीएस के पास भी इनोवा। चीफ सिकरेट्री से ज्यादा लग्जरी गाड़ियों में बोर्ड के एमडी चलते हैं। दरअसल, वित्तीय भर्राशाही के चलते छत्तीसगढ़ में गाड़ियों की पात्रता मजाक बनकर रह गई। राज्य के बजट से ना सही, अफसरों ने केंद्र की योजनाओं से खरीद डाला। मंत्री और अफसर तो ठीक है, उनके पीए के पास भी लग्जरी गाड़ियां। आखिर छोटे बड़े में कुछ तो अंतर होना चाहिए. 

अविभाजित एमपी, सबसे बड़े नेता

अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर कमलनाथ के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक अपनी सीट नहीं बचा सके मगर चरणदास महंत ने पत्नी ज्योत्सना को चुनाव जीतवाकर अपनी रणनीति का झंडा गाड़ दिया। जाहिर है, इन दोंनों राज्यों में सिर्फ एक सीट कांग्रेस की झोली में आई, वह कोरबा से। साढे तीन दशक से एमपी और छत्तीसगढ़ की सियासत में सक्रिय महंत ने स्थानीय, छत्तीसगढ़िया और ओबीसी का ऐसा चक्रव्यूह बनाया, जिसे बीजेपी की सरोज पाण्डेय जैसी तेज-तर्रार नेत्री भी वेध नहीं पाईं। प्रधानमंत्री के सिर पर लाठी मारने वाले बयान से भी उन्हें फायदा ही मिला। उनके खिलाफ बीजेपी का गुस्सा भड़का...चुनाव आयोग ने एफआईआर कराई। महंत ने यह कहते हुए मामले को छत्तीसगढ़ियावाद तरफ मोड़ दिया कि बाहरी लोगों को छत्तीसगढ़ी आती नहीं, मेरे बोलने का मतलब ये नहीं था। लास्ट में तो ये रहा कि बीजेपी के बड़े-बड़े नेता देखते रह गए और महंत ने बीजेपी के वोट बैंक में भी सेंध लगा दिया। कह सकते हैं, इस जीत से कांग्रेस पार्टी में चरणदास का रुतबा बढ़ा है।

ब्राम्हण...बिल्कुल नहीं!

सरोज पाण्डेय को कोरबा संसदीय सीट से उतारने के समय भाजपा इतना ओवरकांफिडेंस में रही कि उसे ये सनद नहीं रहा कि मुकाबला जांजगीर और कोरबा इलाके से 35 बरस से सतत संपर्क रखने वाले चरणदास महंत से है। और यह भी कि, 2009 में कोरबा लोकसभा सीट बनने के बाद बीजेपी का ब्राम्हण कंडिडेट कभी जीता नहीं। 2009 में करुणा शुक्ला हारी और 2019 में ज्योतिनंद दुबे। 2014 में ओबीसी से वंशीलाल महतो को बीजेपी ने टिकिट दिया और वे जीते भी। दरअसल, कोरबा लोकसभा इलाके में आठ में से छह विधानसभा बीजेपी के पास है, इसी में वह गच्चा खा गई। बहरहाल, बीजेपी के तीसरे ब्राम्हण उम्मीदवार की हार के बाद कोरबा में कोई भी पार्टी अब ब्राम्हण पर दांव नहीं लगाएगी।

आईएएस का पुनर्वास केंद्र

दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर की अपनी अहमियत होती हैं। भारत सरकार में स्टेट का काम फास्ट और स्मूथली हो, रेजिडेट कमिश्नर की ड्यूटी होती है। यही वजह है कि दीगर राज्यों में सीनियर अफसरों को पोस्ट किया जाता है, जिसका दिल्ली में अपना प्रभाव हो। मगर छत्तीसगढ़ में कुछेक बार ही सीनियर अफसर पोस्टेड रहे, बाकी समय यह पोस्टिंग आईएएस का पुनर्वास केंद्र रहा। जिन आईएएस अफसरों को दिल्ली नहीं छोड़ना, वे जोर-जुगाड़ लगाकर अपनी पोस्टिंग करा लेते हैं। इस समय कई आईएएस अफसरों की नजरें इस पोस्ट पर टिकी है। कुछ छत्तीसगढ़ में हैं और कुछ ऐसे हैं, जिनका सेंट्रल डेपुटेशन कंप्लीट होने वाला है। रेजिडेंट कमिश्नर का मतलब यह होता है कि दिल्ली में स्टेट पुल से मकान, गाड़ी, ड्राईवर, असिमित नौकर-चाकर समेत और भी कई सुविधाएं। काम इतना ही कि सीएम दिल्ली गए तो एयरपोर्ट जाकर रिसीव कर ले और सीएम के लौटने के बाद फिर फुरसत। बहरहाल, रेजिडेंट कमिश्नर का पद एक अनार सौ बीमार वाला बन गया है।

पोस्टिंग और किस्मत

नौकरशाहों की पोस्टिंग में किस्मत का बड़ा रोल रहता है। नीलेश श्रीरसागर के केस में आपने देखा ही। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें महासमुंद कलेक्टर से बुलाकर निर्वाचन में पोस्ट किया गया और लोकसभा चुनाव का कोड ऑफ कंडक्ट समाप्त होने के अगले ही दिन उन्हें कांकेर कलेक्टर बनाने का आदेश निकल गया। जशपुर, गरियाबंद और महासमुंद के बाद नीलेश का यह चौथा जिला होगा। नीलेश का लक रहा कि कांकेर जैसा बढ़ियां जिला मिल गया और अभिजीत का हार्ड लक देखिए कि पूरा चुनाव संपन्न करा दिया। काउंटिंग के आखिरी समय में वे हिट विकेट होकर अपना विकेट गंवा बैठे। इसे ही कहते हैं किस्मत अपनी-अपनी। न वे अभिजीत आउट होते और न नीलेश की इतनी जल्दी पोस्टिंग मिलती। ऐसा तो नीलेश ने सोचा भी नहीं होगा।

कांकेर, चुनाव और विवाद

कांकेर ऐसा जिला है, जहां आमतौर पर चुनाव के दौरान कोई सियासी बवाल खड़ा होता है या फिर अधिकारी की छुट्टी हो जाती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन एसडीएम भुवनेश यादव का बीजेपी के सांसद प्रत्याशी सोहन पोटाई से भीड़ लेकर कलेक्ट्रेट में आने पर नोंकझोंक हो गई थी। इसके बाद भुवनेश को भोपालपटनम भेज दिया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कलेक्टर डोमन सिंह हटा दिए गए थे। इस बार पूरे चुनाव पीरियड के दौरान कुछ नहीं हुआ। मगर आखिरी क्षणों में ऐसा कुछ हुआ कि कलेक्टर अभिजीत सिंह की छुट्टी हो गई। इसी कांकेर में मंतूराम पवार ने अपने ही कांग्रेस पार्टी को गच्चा देते हुए आखिरी समय में नाम वापिस लेकर पूरे छत्तीसगढ़ को हतप्रभ कर दिया था। पिछले साल कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी रेप केस के मामले में गिरफ्तार कर लिए गए थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या सरगुजा के आईजी अंकित गर्ग अब बस्तर के नए आईजी होंगे?

2. लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखकर क्या ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में पहली बार के विधायकों को नए मंत्री बनने का मौका मिलेगा?