शनिवार, 7 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

 तरकश, 8 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

मध्यप्रदेश के बंटवारे के दौरान वहां के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कैडर आबंटन में ऐसी चकरी चलाई कि अधिकांश छंटे हुए आईएएस छत्तीसगढ़ आ गए। उसके बाद रही-सही कसर छत्तीसगढ़ पीएससी ने पूरी कर दी। डिप्टी कलेक्टर प्रशासन के रीढ़ माने जाते हैं। मगर पीएससी ने भर्ती में ऐसा खेला किया कि छत्तीसगढ़ में प्रशासन की रीढ़ ही टूट गई। जो नायब तहसीलदार बनने लायक नहीं थे, वे दरबारी और टामन युग में डिप्टी कलेक्टर बन गए उसके बाद आईएएस भी। ऐसे अफसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

अभी राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अधिकारियों को आईएएस अवार्ड हुआ है, उनमें दो-तीन को छोड़ दें तो बाकी कर्मकांडियों के आईएएस बनने पर भगवान भी हैरान होंगे। इनमें से दो अफसरों ने रायपुर और दुर्ग में पोस्टिंग के दौरान अवैध प्लाटिंग की धूम मचा दी थी। पहले अवैध प्लाटिंग के लिए नोटिस दो और लिफाफा मिलने पर केस क्लियर। ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों से छत्तीसगढ़ को क्या उम्मीद होगी। दिल को तसल्ली देने के लिए यही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ का भाग्य ही खराब है।

जीरो टॉलरेंस का मैसेज

सरकार ने आईएएस अवार्ड में अपनी तरफ से जीरो टॉलरेंस की भरपूर कोशिश की। जीएडी को इंस्ट्रक्शन था कि किसी दागी को आईएएस अवार्ड नहीं करना है। पीएससी की परीक्षा नियंत्रक रही आरती वासनिक के खिलाफ सीबीआई ने इंटरव्यू के दो दिन पहले ही एफआईआर की रिपोर्ट भेजी थी। वरना, आरती वासनिक को ड्रॉप करने का कोई आधार नहीं था।

बाकी लोग सीनियरिटी में आ गए तो डीपीसी के मेम्बर रेणु पिल्ले और मुकेश बंसल भी कुछ नहीं कर सकते थे। आरती वासनिक का नाम कट गया इसलिए नायब तहसीलदार से भर्ती हुए वीरेंद्र बहादुर पंच भाई तक की किस्मत का पिटारा खुल गया। वे भी आईएएस अफसर बन गए। कह सकते हैं, छत्तीसगढ़ में चना-मुर्रा वाला हाल हो गया है आईएएस का।

नए चीफ सिकरेट्री कौन?

हालांकि, चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अभी छह महीने से अधिक समय बाकी है। मगर उनकी गद्दी संभालने वाले की चर्चाएं ब्यूरोक्रेसी में अभी से शुरू हो गई हैं। अमिताभ के बाद सीनियरिटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। 93 बैच में फिर अमित अग्रवाल हैं।

अमित इस समय भारत सरकार में पोस्टेड हैं और सबसे अधिक संभावनाएं उनकी बताई जा रही है। अमित की संभावनाएं इसलिए कि उनके बाद 94 बैच में मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा हैं। इनमें से अगर किसी को सीएस बनाया जाएगा तो एक को फिर मंत्रालय से बाहर पोस्टिंग देनी होगी। चूकि दोनों अच्छे अफसर हैं, इसलिए सरकार ऐसा चाहेगी नहीं।

ऐसे में, एक ही रास्ता है कि अमित अग्रवाल छत्तीसगढ़ लौटें। यद्यपि, अमित दिल्ली में अच्छे पोजिशन में हैं, खुद भी छत्तीसगढ़ लौटने के इच्छुक नहीं दिख रहे। मगर जैसे कि कई राज्यों में दिल्ली से चीफ सिकरेट्री भेजा गया है, वैसा कुछ हुआ तो फिर अमित को लौटना पड़ेगा। उच्च स्तर की लोगों की इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात होने की चर्चाएं भी हैं। बहरहाल, अमित आएं या न आएं, उनके नाम से ही ब्यूरोक्रेसी में धकधकी शुरू हो गई है...अफसरों का आखिर रामराज खतम हो जाएगा।

चेंबर में कैमरा

घर-परिवार से असंतुष्ट या आदत से लाचार छत्तीसगढ़ के कुछ अफसरों के इधर-उधर बहकते कदम की चर्चाएं अब पब्लिक डोमेन में होने लगी हैं। अलबत्ता, ये भी सही है कि ऐसे मामलो को चटपटा बनाने उसमें मिर्च-मसाले भी मिला दिए जाते हैं। फिर भी...बिना आग के धुंआ निकलता नहीं। जीएडी सिकरेट्री को इसके लिए काउंसलिंग करनी चाहिए। आखिर, इससे राज्य का नाम ही खराब होगा। बरसते नोटो की गड्डियां, गोल्ड-डायमंड की ज्वेलरी और महंगे उपहारों की चकाचौंध में घरवालियां व्यस्त हो जाती हैं, और अफसर लगते हैं गुल खिलाने।

कायदे से जितने बड़े अफसर, उनके लंगोट उतने ही टाईट होनी चाहिए। मगर कलयुग ये है। दरअसल, कुछ फर्म और कंपनियां सुनियोजित ढंग से अफसरों को ट्रेप करने के लिए हनी गर्ल याने खूबसूरत लड़कियों को अपाइंट कर लिया है। उनका काम ही है चिकनी-चुपड़े बात कर अफसरों को फंसाना और उसके बाद मनमाफिक फाइलों को ओके कराना। हनी गर्ल के जाल में अफसर ट्रेप होते जा रहे हैं और हिट विकेट भी।

हालांकि, चरित्र को लेकर चौकस कुछ अफसर विषकन्याओं से बचने अपने चेंबर में कैमरा लगाने लगे हैं। पारदर्शिता की दिशा में ये अच्छा कदम है। सरकार को इसे एप्रीसियेट करनी चाहिए।

पसंद अपनी-अपनी

विषकन्याओं की बात आई तो एक पुराना वाकया याद हो आया। पुराने मंत्रालय की बात है। दोपहर का वक्त था...सिकरेट्री होम एएन उपध्याय के पास मैं बैठा था। तभी भृत्य एक विजिटिंग कार्ड लाकर उन्हें दिया। मुझे वहां बैठे करीब घंटा भर हो गया था, फिर किसी आगंतुक का कार्ड भी आ गया था, सो मैं उठने लगा। मगर उपध्यायजी ने मुझे बिठा लिया। बोले...बैठो अभी। दिल्ली की हथियार सप्लाई करने वाली कंपनी की महिला आई है...इन लोगों से मैं डरता हूं...आप थोड़ी देर और बैठ जाओ। उनका आग्रह था, मैं बैठ गया। उन्होंने घंटी बजाई और भृत्य से कहा, भेजो।

दरवाजा खुला तो एक लंबी-चौड़ी कद काया की गौर वर्ण की बेहद आकर्षक युवती भीतर दाखिल हुई। नजाकत और नफासत के साथ वह अपनी कंपनी के गोला-बारूद, रायफल की बारे में बताती रही और उपध्याय जी आदतन हूं...हां करते रहे। उपध्याय जी तरफ से रिस्पांस काफी ठंडा था। इसलिए वह ज्यादा देर बैठ नहीं सकी। करीब 10 मिनट में ही थैंक्स बोलकर खड़ा हो गई।

उसी दिन शाम करीब छह बजे पुलिस मुख्यालय के एक बहुते बड़े अफसर से मेरा अपाइंटमेंट था। मैं नियत समय पर उनके पास पहुंच गया। अभी उनके पास बैठे दो-से-तीन मिनट हुआ होगा कि हथियार सप्लाई कंपनी की वही युवती बेधड़क दरवाजा खोलकर दाखिल हुई। युवती को देखते ही अफसर के चेहरे पर चमक आ गई...उन्होंने बड़ा वार्म वेलकम किया। इतना वार्म कि मुझे दो-चार पल बैठना असहज लगने लगा। चूकि चाय आ गई थी, सो जैसे-तैसे दो-चार चुस्की लेकर निकल गया। कहने का आशय यह है...पसंद अपनी-अपनी। लंगोट के पक्के लोग सुंदरियों को देखकर भी अपना धैर्य नहीं खोते और लंगोट के ढिले लोग जीभ लपलपाने लगते हैं।

सरकार नाराज?

भारत सरकार से सात वर्ष के डेपुटेशन से लौटे अमित कटारिया को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। अंदेशा व्यक्त किया जा रहा कि कहीं अमित की लंबी छुट्टी से सरकार खफा तो नहीं है। जाहिर है, भारत सरकार से रिलीव होने के बाद अमित दो महीने की छुट्टी पर चले गए थे। छुट्टी पूरी होने पर वे रायपुर आए और ज्वाईन करने के साथ ही दो महीने की छुट्टी ले ली। फिर छुट्टी खतम होने पर पिछले महीने रायपुर आए मगर ज्वाईनिंग के बाद फिर दिल्ली चले गए।

इससे पहले की बीजेपी सरकार में अघोषित नियम बन गया था दिल्ली से लौटने वाले अफसरों को पोस्टिंग के लिए महीने भर तक वेट करना पड़ता था। अमिताभ जैन, अमित कुमार और गौरव द्विवेदी को भी इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मगर ये तीनों रायपुर में डटे रहे। अमित और गौरव आफिसर्स क्लब में महीना भर तक पोस्टिंग की बाट जोहते रहे। बहरहाल, सरकार को समझना चाहिए दिल्ली की चकाचौंध में सात साल तक नौकरी करने के बाद रायपुर में रहना मुश्किल तो होगा ही।

संयोग ऐसा भी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जब केंद्र में इस्पात राज्य मंत्री थे तो विशाखापटनम के सांसद किंजरामू राममोहन नायडू उनसे मिलने आया करते थे। दरअसल, भारत सरकार का स्टील प्लांट विशाखापटनम में है और नायडू वहीं से पहली बार के सांसद थे तो किसी-न-किसी इश्यू को लेकर वे विष्णुदेव से मिलते रहते थे। नायडू अब केंद्र में एवियेशन मिनिस्टर बन गए हैं। वो भी स्वतंत्र प्रभार।

इस बार संयोग ऐसा रहा कि छत्तीसगढ़ की एयर कनेक्टिविटी को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं उनसे मिलने पहुंचे। विष्णुदेव को देख नायडू को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सीएम उन्हें मुद्दे गिनाते गए और वे यस बोलते गए। टूटी-फूटी हिंदी में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए जो भी बन पड़ेगा...हम जरूर करेगा। चलिये, अच्छा है। छत्तीसगढ़ में एयरकनेक्टिविटी दुरूरूत होने की संभावनाएं अब काफी प्रबल हो गई हैं।

सीएम सिक्यूरिटी में चूक क्यों?

पिछले दो महीने में तीन से चार बार सीएम सिक्यूरिटी में चूक हुई है। पहली बार दुर्ग में काफिले की गाड़ियां आपस में टकरा गईं। फिर रायगढ़ में ट्रेफिक जाम हुआ। और अब कवर्धा में कुछ पल के अंतराल में दो घटनाएं। पहले में सीएम का काफिला जहां से गुजरना था, वहां एक लावारिस कार खड़ी थी और दूसरा...सीएम को ट्रैफिक जाम की वजह से पीछे लौटना पड़ा।

कवर्धा में मुख्यमंत्री का जनवासय में जाने का कार्यक्रम अचानक बना। मगर वहां के पुलिस अधिकारियों को 10 मिनट टाईम लेकर रोड क्लियरेंस करा लेना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। इसमें पुलिस अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है। गृह विभाग को कम-से-कम अपने विभागीय मंत्री के जिले में ठीकठाक अफसर को पोस्ट करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि सरगुजा पुलिस रेंज के किसी एसपी की छुट्टी होने वाली है?

2. मंत्रियों के पीए और अघोषित सलाहकारों की धुंआधार बैटिंग को रोका क्यों नहीं जा रहा है?

शनिवार, 30 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्रियों का बंगला उत्सव

 तरकश, 1 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों का बंगला उत्सव

नया रायपुर में मंत्रियों के सरकारी बंगले में इन दिनों प्रवेश का उत्सव चल रहा है। शक्ति प्रदर्शन जैसा जलसा और तामझाम के साथ मंत्री नए बंगले में प्रवेश कर रहे हैं। हालांकि, मंत्रियों के नए घरों को बंगला कहना थोड़ा कम आंकना होगा। तीन-तीन, चार-चार एकड़ में पसरे कोठियों को देख खुद मंत्री भी स्तब्ध हैं।

किसी मंत्री ने सोचा नहीं होगा कि राजनीति में ऐसा कोठी सुख उन्हें मिलेगा। आखिर, दिल्ली में बड़े केंद्रीय मंत्रियों के भी इतने आलीशान घर नहीं होते। ऐसे में, कई बार मंत्रियों के मुंह से थैंक्स भूपेश जी निकल जाता होगा। भूपेश सरकार ने ही इन बंगलों का निर्माण कराया था। उनकी सरकार में इसका काम कंप्लीट भी हो गया था। मगर भविष्य को कौन जानता है। अजीत जोगी की तरह भूपेश बघेल भी नहीं जानते थे उनकी सरकार दोबारा नहीं लौटेगी। न ही बीजेपी को पता था कि उनकी वापसी हो रही है। अगर ऐसा है तो फिर बंगला उत्सव क्यों? वक्त का क्या भरोसा...अगले चुनाव में कई मंत्री दोबारा इस कोठी में लौटने लायक बचेंगे या नहीं?

मंत्रियों को मुख्यमंत्री से सीखना चाहिए...उन्होंने दो-चार फाइलें कर नए हाउस में प्रवेश कर लिया था। वैसे भी मोदी युग में काम का उत्सव मनाना चाहिए न कि बंगले का...जिसका कोई भरोसा नहीं। एक साल में किसी मंत्री ने कोई अहम काम किया हो, उसका यदि मंत्री जश्न मनाते तो बात कुछ और होती।

छत्तीसगढ़िया चीफ सिकरेट्री

अमिताभ जैन ने छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री के तौर पर चार साल पूरे कर लिए हैं। राज्य बनने के बाद 24 साल में फोर ईयर क्लब में शामिल होने वाले अमिताभ फर्स्ट चीफ सिकरेट्री हैं। उनके पहिले विवेक ढांड 48 दिन से इस क्लब में शामिल होने से चूक गए थे। खास बात यह है कि तीन साल से अधिक चीफ सिकरेट्री रहने वालों में तीन में से छत्तीसगढ़ के दो आईएएस शामिल हैं।

जाहिर है, विवेक और अमिताभ, दोनों माटी पुत्र हैं। मगर इसके बाद युगों युग तक कोई छत्तीसगढ़िया चीफ सिकरेट्री नहीं बनने वाला। अमिताभ के 1989 में आईएएस में सलेक्ट होने के 16 साल बाद 2005 में ओपी चौधरी आईएएस बने थे। ओपी ने 2018 में आईएएस की नौकरी छोड़ दी...वे अब सरकार में मंत्री हैं। उनके बाद के छत्तीसगढ़ियां आईएएस काफी जूनियर हैं।

मसलन, शिखा तिवारी 2007 बैच, किरण कौशल 2009 बैच, रानू साहू 2010 बैच। रीतेश अग्रवाल और विनीत नंदनवार 2012 और 2013 बैच के हैं। मतलब दिल्ली अभी दूर है। चीफ सिकरेट्री से एक पायदान नीचे एसीएस तक पहुंचते-पहुंचते क्या होगा, इसका कोई भरोसा नहीं।

बहरहाल, इसका जिक्र लाजिमी है कि अभी तक छत्तीसगढ़ होम कैडर के तीन आईएएस चीफ सिकरेट्री बने हैं। विवेक ढांड, अजय सिंह और अमिताभ जैन। विवेक को अजय ने रिप्लेस किया था। अजय सिंह 11 महीने सीएस रहे। कांग्रेस सरकार ने उनकी जगह सुनील कुजूर को सीएस बनाया था।

सिर्फ अमित अग्रवाल

अमिताभ जैन के चीफ सिकरेट्री का रिकार्ड सिर्फ अमित अग्रवाल तोड़ सकते हैं। 93 बैच के अमित का जून 2030 में रिटायरमेंट है। अगर वे सीएस बनाए गए तो पूरे पांच साल इस पद पर रहेंगे। हालांकि, अमित अभी यहां हैं नहीं। वे डेपुटेशन पर भारत सरकार में हैं। बहरहाल, इस समय सीएस के एलिजिबल जो आईएएस हैं, उनमें रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू 2028 में रिटायर हो जाएंगे। याने इनके पास तीन साल ही बचेगा। ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकास शील और मनोज पिंगुआ 1994 बैच के आईएएस हैं। इनमें ऋचा मार्च 2029, निधि और विकास जून 2029 और मनोज अगस्त 2029 में रिटायर होंगे।

निधि, विकास और मनोज चार साल के क्लब में शामिल जरूर हो सकते हैं मगर चार साल सात महीने का रिकार्ड नहीं तोड़ पाएंगे। मनोज अगर जून 25 में सीएस बन गए तो चार साल तीन महीने का कार्यकाल उनका अवश्य हो जाएगा। कुल मिलाकर अमिताभ को अमित अग्रवाल से ही खतरा रहेगा। मगर इंपॉर्टेंट यह भी है कि अमित जैसे टेंपरामेंट के अफसर इतने लंबे समय तक किसी स्टेट के सीएस रह सकते हैं क्या?

निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग-1

रिटायर आईएएस सुनील कुजूर की सहकारिता निर्वाचन की पारी खतम हो गई है। पिछले महीने अक्टूबर में उम्र 65 साल हो जाने की वजह से वे रिटायर हो गए। सुनील को विष्णुदेव साय सरकार ने लोकसभा चुनाव के बाद एक साल का एक्सटेंशन दिया था। मगर 65 के हो जाने के कारण टाईम से पहले उनका टेन्योर पूरा हो गया।

सुनील को 2019 में गणेश शंकर मिश्रा को हटाकर सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था। बता दें, रमन सरकार ने आईएएस से रिटायर होने के बाद गणेश शंकर मिश्रा को इस पद पर बिठाया था। राज्य निर्वाचन आयुक्त की तरह सहकारिता निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह साल निर्धारित किया गया। मगर फर्स्ट कमिश्नर गणेश शंकर का हार्ड लक रहा।

निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग-2

जाहिर है, पिछली सरकार का गणेश शंकर मिश्रा के साथ विशेष अनुराग था। सो, उन्हें हटाने के लिए सरकार ने नियम बदलकर सहकारिता निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह साल से घटाकर दो साल कर दिया था। इसके बाद एक-एक साल एक्सटेंशन का प्रावधान किया गया। इसका नुकसान सुनील कुजूर को भी उठाना पड़ा। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता की वजह से उनका एक्सटेंशन दो महीना अटक गया।

बहरहाल, देखना है विष्णुदेव सरकार नियम बदलकर फिर से कार्यकाल बढ़ाती है या फिर वर्तमान व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए पोस्टिंग करेगी। अगर छह साल हो गया तो इस रिटायर आईएएस पुनर्वास केंद्र का क्रेज थोड़ा बढ़ा जाएगा...लोग आना भी चाहेंगे।

सचिवों का बदलेगा प्रभार?

छत्तीसगढ़ में सचिवों की एक ट्रांसफर लिस्ट निकल सकती है। वो इसलिए क्योंकि आईएएस अमित कटारिया केंद्र से लौट चुके हैं। भले ही ज्वाईन करने के बाद वे दिल्ली चले जा रहे मगर उन्हें कोई-न-कोई पोस्टिंग मिलेगी ही। वैसे चर्चा हेल्थ की ज्यादा है। हेल्थ इस समय एसीएस मनोज पिंगुआ के पास है। उनके पास लंबे समय से गृह और जेल भी है।

सरकार अगर गृह और जेल बदलने पर विचार कर रही है। अगर गृह और जेल भी बदला तो हो सकता है कि लिस्ट थोड़ी लंबी हो जाए। याने दोनों हो सकता है...अमित कटारिया का सिंगल आदेश निकल जाए या फिर हेल्थ के साथ ही गृह और जेल बदला तो फिर लिस्ट थोड़ी बड़ी हो जाएगी। रायपुर दक्षिण विधानसभा का उपचुनाव पूरा हो जाने के बाद सीईओ रीना बाबा कंगाले भी अब मंत्रालय लौटेंगी! चुनाव आयोग की अनुमति से पहले भी सीईओ को विभागों की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जाती रही है। हो सकता है कि उन्हें कोई विभाग मिल जाए।

एसपी की लिस्ट

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के पहले से सूबे में कई पुलिस अधीक्षकों के बदले जाने की चर्चाएं बड़ी तेज थी। फिर हुआ...आचार संहिता के बाद होगा। मगर अब खबर है...नगरीय और पंचायत चुनाव के बाद ही बड़े स्तर पर एसपी में बदलाव किया जाएगा। पुलिस अधीक्षकों को मैसेज भी हो गया है कि जो होगा, अब दो महीने बाद ही होगा। इसलिए, एसपी साब लोग अब एकाग्र होकर काम में जुट गए हैं। दरअसल, लोकल और पंचायत चुनाव तक सरकार नहीं चाहती कि सिस्टम में कोई बड़ी उठापटक हो, जिसका असर चुनाव पर पड़े।

कलेक्टर का नायाब अंदाज

एक कलेक्टर ने बढ़ियां तरीका निकाला है। जैसे ही घड़ी का कांटा शाम सात को क्रॉस करता है वे बंगले से फोन लगवाते हैं...बुलाओ फलां अफसर को। कोई अफसर यदि यह बताने फोन लगा दिया कि सर, मैं कहीं आ गया हूं, एकाध घंटा लग जाएगा तो उसमें भी कोई मरौव्वत नहीं...ठीक है तुम नौ बजे आओ, लेकिन आओ। अफसर के पहुंचते ही कलेक्टर की एकतरफा फायरिंग शुरू हो जाती है...तुम्हारी शिकायतें बहुत आ रही है...तुमने इसमें एक करोड़ का गड़बड़ किया है....तो तुमने इतने का। यह क्रम दो-एक बार चलता है। तीसरे बार अफसर लिफाफा लेकर पहुंच जाता है। इसके बाद कलेक्टर का उद्देश्य पूरा और अफसर भी सुरक्षित। अच्छा आइडिया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ की ध्वस्त हो चुकी मशीनरी कब तक लौटेगी पटरी पर?

2. पीएचक्यू ने सिपाहियों को इंटर रेंज ट्रांसफर करते हुए उनके होम डिस्ट्रिक्ट में भेजना प्रारंभ कर दिया है तो फिर अच्छी पोलिसिंग और लॉ एंड आर्डर की बातें क्यों?

Chhattisgarh Tarkash 2024: नए डीजीपी का पैनल

 तरकश, 24 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

नए डीजीपी का पैनल

छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। दरअसल, कुछ राज्यों में ऐन मौके पर डीजीपी नियुक्ति की फाइल यूपीएससी को भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी। अपेक्स कोर्ट ने कहा था कि नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया तीन महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए। तीन महीने के पैरामीटर से देखें तो छत्तीसगढ़ में कुछ लेट हुआ है। डीजीपी अशोक जुनेजा का छह महीने का एक्सटेंशन 5 फरवरी को कंप्लीट हो जाएगा। बहरहाल, जैसा कि पता चला है...छत्तीसगढ़ के नए डीजीपी पैनल के लिए फाइल का प्रॉसेज शुरू हो गया है। एसीएस होम, गृह मंत्री से होकर फाइल अंतिम अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री तक जाएगी। पैनल में तीन नाम भेजा जाए या पांच, इस पर मशिवरा चल रहा है। यदि तीन नाम भेजना होगा तो पवनदेव, अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता का नाम होगा। और पांच जाएगा तो एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम जुड़ जाएगा। हालांकि, डीजीपी कौन होगा, यह लगभग तय हो चुका है। यूपीएससी से पैनल एप्रूव्ह होने के बाद उसी नाम पर सरकार टिक लगा देगी। अलबत्ता, ऐन वक़्त पर अगर अशोक जुनेजा का ऊपर से एक्सटेंशन का कोई आदेश आ गया तो फिर बात अलग है।

मंत्रियों के सिपहसालार

लोकसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ के मंत्रियों के लिए आईआईएम में स्पेशल क्लास आरगेनाइज किया गया था। मगर मंत्रियों की 11 महीने की वर्किंग और परफार्मेंस देखकर नहीं लगता कि देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की क्लास से कोई फायदा हुआ। स्थिति विकट है...करीब-करीब साल गुजरने वाला है मगर मंत्रियों का कोई काम ट्रेक पकड़ता नहीं दिख रहा है। इसकी दो महत्वपूर्ण वजह बताई जा रही है। पहली, अधिकांश मंत्रियों को काम सीखने में इंट्रेस्ट नहीं प्रतीत हो रहा। और दूसरी, गड़बड़ नस्ल के उनके स्टाफ। पिछले सरकारों के सारे खटराल पीए और सिपहसालार जोर-जुगाड़ लगाकर नए मंत्रियों के साथ जुड़ गए। मंत्रियों के पीए सलेक्शन में न जीएडी ने ध्यान दिया और न ही मंत्रियों ने। नतीजा यह हुआ कि मंत्रियों को ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेला में उलझा दिया गया। मंत्रियों के विभाग की बात तो अलग उनके सिपहसालारों ने उनके गृह जिलों का भी कबाड़ा कर दिया। अब ये कितनी हैरान करने वाली बात है कि डिप्टी सीएम अरुण साव के गृह नगर पंचायत लोरमी को लोवर ग्रेड के बाबू रैंक का सहायक राजस्व निरीक्षक चला रहा है। जबकि, अरुण इसी विभाग के मंत्री हैं...कायदे से सूबे के सबसे काबिल सीएमओ की वहां नियुक्ति की जानी चाहिए थी। वहीं, दूसरे डिप्टी सीएम विजय शर्मा के गृह क्षेत्र कवर्धा का कलेक्टर एलायड सर्विस के एक ऐसे अफसर को बना दिया गया, जिन्हें न रेवेन्यू का अनुभव है और न एडमिनिस्ट्रेशन का। बाकी मंत्रियों का हाल भी कमोवेश वही है। ऐसी स्थिति रही तो बीजेपी को कैबिनेट में बड़ी सर्जरी करनी पड़ जाएगी।

रांग नंबर डायल

मंत्रीजी के लोगों के पीए खुद को मंत्री से कम नहीं समझते। अफसरों को इस अंदाज में फोन लगाते हैं, जैसे पीए नहीं मंत्री वे ही हो। मगर एक मंत्री के पीए ने एक गलत नंबर डॉयल कर दिया। उन्होंने रायपुर पुलिस के एक बड़े अफसर को फोन लगाया...मंत्रीजी ने कहा है...ये काम करना है। दूसरे दिन फिर फोन...मंत्रीजी पूछ रहे हैं, जो बताया था, वो हुआ नहीं। अफसर ठहरे 24 कैरेट वाले। सो, पलट कर ऐसा हड़काया कि अब फिर पीए की हिम्मत नहीं होगी अफसर को फोन लगाने की। वैसे, इससे पहले मुकेश गुप्ता का भी ऐसा औरा था कि मंत्री के पीए कौन कहें, मंत्रियों को बात करने से पहले दस बार सोचना पड़ता था।

अमित को विभाग

2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। हालांकि, उन्होंने ज्वाईन अगस्त में कर लिया था मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। हालांकि, इससे पहले वे डेपुटेशन कंप्लीट करने के बाद ज्वाईन करने आए थे मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। अमित केंद्र से लौटे हैं, तो विभाग भी ठीकठाक ही मिलने की उम्मीदें होंगी। ब्यूरोक्रेसी में जिस तरह की चर्चाएं हैं, उसके मुताबिक अमित को हेल्थ, पीडब्लूडी और नगरीय निकाय में से कोई एक विभाग मिल सकता है। बता दें, ये सिर्फ अटकलें हैं, तय तो सीएम विष्णुदेव साय को करना है। कई बार ज्यादा चर्चाएं होने पर सरकारें अपना डिसिजन बदल देती हैं।

चिप्स में डबल आईएएस

राज्य सरकार ने विश्वरंजन को सीओओ अपाइंट किया है। इससे पहले प्रभात मलिक सीईओ बनाए गए थे। छत्तीसगढ़ में यह पहला मौका होगा, जब चिप्स में दो-दो आईएएस होंगे। आईटी के इस युग में चिप्स के पास काम करने की अतंहीन संभावनाएं हैं। वैसे में और भी जब विष्णुदेव सरकार ऑनलाईन वर्किंग पर जोर दे रही है...वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विभागों के आईटी वर्क के लिए पहली बार 300 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। अब चिप्स को अपना पैटर्न दुरूस्त करना चाहिए। पिछले महीने व्यापम पुलिस की परीक्षा इसलिए नहीं ले पाया क्योंकि चिप्स के साफ्टवेयर को लेकर बात नहीं बन सकी। चिप्स कोर्ट केस को लेकर ऐसी परीक्षाओं से बचना चाहता है कि उसे भी पार्टी बनाया जा सकता है। अब सिस्टम में हैं तो कोर्ट-कचहरी उसका पार्ट होता है। चीफ सिकरेट्री को भी कई बार कोर्ट से नोटिस आ जाती है। इसका मतलब ये नहीं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साफ्टवेयर ही न तैयार करें।

गले का फांस?

राज्य सरकार ने नगरीय निकायों के अध्यक्षों से चेक पर साइन करने का अधिकार समाप्त कर दिया है। अब सिर्फ सीएमओ के ही चेक पर दस्तखत होंगे। हालांकि, रमन सिंह की 15 साल की सरकार में भी चेक पर सीएमओ के ही दस्तखत होते थे मगर पिछली सरकार ने ये व्यवस्था बदलते हुए डबल सिगनेचर अनिवार्य कर दिया था। सीएमओ के साथ चेयरमैनों की भी। मगर सरकार बदलते ही यह नियम बदल दिया गया। सरकार ने यह बदलाव अच्छा किया है। जनप्रतिनिधियों के चेक पर हस्ताक्षर करने का मतलब समझा जा सकता है, इसके पीछे मकसद क्या होगा। मगर यह भी सही है कि सीएमओ पर भी सरकार को नजर रखनी होगी। वरना नगरीय निकाय चुनाव के आचार संहिता प्रभावशील होने से पहले सीएमओ कहीं धूम मत मचा दें।

भाग्य क़े धनी सुनील बाबू

छत्तीसगढ़ में भाग्य क़े धनी राजनेताओं की बात होगी तो सुनील सोनी का नाम टॉप थ्री में होगा. सुनील रायपुर क़े महापौर रहे, रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन बनाये गए. फिर रायपुर लोकसभा से सांसद चुने गए. और अब विधायक निर्वाचित हुए हैं. वो भी थोड़े वोट से नहीं...46 हजार की लीड. अगर वोटिंग परसेंट ठीक ठाक रहता तो हो सकता था, गुरू गुड़ और चेला शक्कर हो जाता. गुरू यानी बृजमोहन अग्रवाल. गुरू विधानसभा चुनाव में 67 हजार से जीते थे. अलबत्ता, सुनील को जब टिकिट मिला तो चौक-चौराहों पर लोग नाक- भौं सिकोड़ कर रहे थे... बीजेपी ने ये क़्या किया. मगर या तो पार्टी ने ज्यादा मेहनत कर दी या फिर वही...सुनील सोनी भाग्य लिखा कर लाए हैं...कम वोटिंग में भी उन्हें बड़ी लीड मिल गई.

अंत में दो सवाल आपसे?

1. छत्तीसगढ़ क़े भाग्य क़े धनी तीन नेताओं क़े नाम बताइये?

2. छत्तीसगढ़ का अगला DGP कौन बनेगा?

शनिवार, 16 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: एसपी साहबों की क्लास

 तरकश, 17 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

एसपी साहबों की क्लास 

डीजीपी अशोक जुनेजा ने एसपी लोगों की इमरजेंसी बैठक बुलाई और उसमें ऐसा कुछ हुआ, जो राज्य बनने के बाद कभी नहीं हुआ। डीजी ने सबकी लानत-मलानत कर दी। बोलने में कोई मरौव्वत नहीं। एक-एक एसपी की कुंडली पहले से ही तैयार कर खुफिया चीफ अमित कुमार ने डीजी को दे दी थी। कुछ मामले डीजी के संज्ञान में भी थे कि कौन जिले में कप्तानी कर रहा है और कौन पोलिसिंग छोड़ बाकी सब कुछ। डीजीपी ने एक-एक एसपी की कारगुजारियों को सबसे सामने बताया और हिदायत भी कि अब बहुत हुआ। कुछ एसपी के बारे में ऐसी बातें सामने आई, जो एसपी जैसे पद की गरिमा के विपरीत है। उसे यहां लिखा नहीं जा सकता। रही-सही कसर इंटेलिजेंस चीफ अमित कुमार पूरी कर दी। साढ़े तीन घंटे की बैठक खतम होने के बाद साढ़े छह बजे एसपी पीएचक्यू से बाहर निकले, तो सबके चेहरे लटके हुए थे। कोई किसी को हेलो-हाय भी नहीं किया। चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठे और निकल लिए।

बड़ी देर कर दी!

वैसे तो कहा जाता है...जब जागे, तब सबेरा। मगर छत्तीसगढ़ पुलिस के संदर्भ में ये मौजूं नहीं। सरकार बदलते ही अगर पुलिस प्रमुख ने ये रौद्र रुप दिखाया होता तो छत्तीसगढ़ पुलिस की विकट स्थिति नहीं होती। लोहारीडीह में तीन लोगों की हत्या भी शायद नहीं हुई होती और सूरजपुर में कबाड़ी के हाथों पुलिस का एक पूरा परिवार तबाह होने से बच जाता। खैर, वरिष्ठ अफसरों के लिए उपर का इशारा भी महत्वपूर्ण होता है। डीजीपी और इंट चीफ अगर हरकत में आए हैं तो समझा जाना चाहिए कि अब सब कुछ अच्छा होगा। तीन महीने बाद फरवरी फर्स्ट वीक में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे मगर उनके इस तेवर का लाभ नए डीजीपी को मिलेगा। तब तक डीजीपी का यही रुख रहा तो छत्तीसगढ़ पुलिस कुछ हद तक पटरी पर आ जाएगी। बता दें, डीजीपी ने कहा है कि हर महीने वे रिव्यू करेंगे। ये काम अगर वे कर लिए तो काफी कुछ चीजें बदल जाएंगी।

डीजीपी साब, संरक्षण भी

बेशक छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग डिरेल्ड हो चुकी है। एसपी या उसके किसी भी पद पर होने का मतलब सिर्फ पैसा हो चुका है। मगर यह भी सही है कि अच्छे काम करने वाले एसपी को संरक्षण भी चाहिए। कवर्धा के एसपी राजेश अग्रवाल एक महीने से छुट्टी पर हैं। सिस्टम को यह भी पता लगाना चाहिए कि वास्तव में बीमार हैं या कोई और बात है। राजेश अग्रवाल की जगह जिसे कवर्धा का प्रभारी एसपी बनाया गया है, उनकी नियुक्ति कैसे हो गई, इसे भी मालूम करना चाहिए। डीजीपी साब को शायद ये पता है कि नहीं कि आज की तारीख में कोई भी अच्छा एसपी जिले में नहीं रहना चाह रहा। सभी इस कोशिश में हैं कि किसी बटालियन या फिर पीएचक्यू में ही सही...पोस्टिंग हो जाए। जाहिर सी बात है, अच्छे काम के लिए रिस्क लेना पड़ता है। उसमें खतरे भी होते हैं। सो, बिना संरक्षण के कोई अफसर आ बैल मार क्यों करेगा।

अब सिंगल कलेक्टर

बलरामपुर जिले से रिमुजिएस एक्का की विदाई के बाद अब पिछली सरकार वाले सिर्फ एक कलेक्टर बच गए हैं राहुल देव। बाकी का या तो जिला बदल गया या फिर उन्हें रायपुर वापिस बुला लिया गया। राहुल को मुंगेली में लगभग दो साल हो गया है। उनसे पहले मुंगेली में कोई भी कलेक्टर साल भर से अधिक नहीं रहा। कई तो जोर-जुगाड लगाकर चार-पांच महीने में निकल लिए। वैसे, राहुल का नाम भी कई बार बड़े जिलों के लिए चला मगर जब लिस्ट आती है, तो उनका नाम गायब रहता है। लोगों को ताज्जुब इस बात को लेकर है कि पिछली सरकार के नाम पर उन्हें हटाया भी नहीं जा रहा और न ही अपग्रेड कर बड़ा जिला दिया जा रहा।

कलेक्टर की पोस्टिंग

राहुल देव के मुंगेली के कलेक्टर बने रहने पर लोगों को ताज्जुब हो रहा, उसी तरह का आश्चर्य राजेंद्र कटारा के बलरामपुर जिले का कलेक्टर बनाने पर भी हो रहा है। राजेंद्र को बीजापुर से कुछ महीने पहले हटाया गया था, तब बीजेपी के लोगों की काफी सारी दिक्कतें बताई गई थी। मगर अब फिर बलरामपुर की कलेक्टरी? यदि ये पोस्टिंग सही है तो फिर बीजापुर से हटाना सही नहीं था?

बैचमेट के हवाले हेल्थ

कहते हैं, दो के विवाद में तीसरे को फायदा होता है। डायरेक्टर हेल्थ और एमडी एनआरएचएम के बीच भरी मीटिंग में जो हुआ, उसका खामियाजा ये हुआ कि पहले एनआरएचएम से जगदीश सोनकर को हटाया गया और अब डायरेक्टर हेल्थ से ऋतुराज रघुवंशी को। बताते हैं, इसमें एक की चक्कर में दूसरा भी निबट गया। बहरहाल, इस समय 2009 बैच की आईएएस किरण कौशल कमिश्नर हेल्थ एजुकेशन हैं और इसी बैच की डॉ0 प्रियंका शुक्ला डायरेक्टर हेल्थ और स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बन गई हैं। एसीएस के तौर पर मनोज पिंगुआ रहेंगे मगर सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने वाले 2009 बैच की दोनों महिला आईएएस होंगी।

ओपी की आत्मा रजत में?

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विधानसभा में बजट पेश करते समय जैसा भाषण दिया था, कुछ वैसा ही इंडस्ट्रियल पॉलिसी के विमोचन में इंडस्ट्री सिकरेट्री रजत कुमार ने दिया। बिना देखे, पढ़े...धड़धड़ाते हुए रजत कुमार बोल रहे थे, और लोग उन्हें देख रहे थे। मंत्री ओपी और रजत आईएएस में एक ही बैच था। 2005। ओपी बाद में इस्तीफा देकर सियासत में आ गए और रजत प्रमोट होकर अब सिकरेट्री बन गए हैं। दोनों में गहरी छनती भी है। विमोचन कार्यक्रम में ओपी भी मंच पर थे। कुल मिलाकर रजत ने औद्योगिक नीति 2024-30 की लांचिंग का ग्रेंड आयोजन कर अपनी लकीर बड़ी कर ली। इंडोर हॉल में आतिशबाजी के साथ रंगारंग आयोजन था। रजत ने बड़ा दिल दिखाकर पूर्व उद्योग सचिव अंकित आनंद को भी इस मौके पर याद ही नहीं बल्कि पॉलिसी बनाने का क्रेडिट भी दिया।

हर लिस्ट में चंदन

बलौदा बाजार कलेक्टर से हटने क़े बाद भी आईएएस चंदन कुमार कमजोर तो नहीं हुए मगर उनके साथ ये बात खास रही कि जब भी कोई आईएएस की लिस्ट निकलती है, आमतौर पर उसमें एक नाम चंदन कुमार का अवश्य होता है. कभी एक विभाग ऐड होता है तो कभी एक कम हो जाता है. दो रोज पहले सात आईएएस अफसरों का ट्रांसफर आदेश निकला, उसमें एक नाम चंदन कुमार का था. चंदन रिजल्ट देने वाले अफसर हैं मगर लगता है सिस्टम समझ नहीं पा रहा कि एक चंदन का कहां-कहां उपयोग करें.

तरकश के 16 साल

ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक घटनाओं पर आधारित साप्ताहिक स्तंभ तरकश ने 16 साल पूरा कर लिया है। छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार हरिभूमि से 2008 में इसका सफर चालू हुआ था। उसके बाद कभी रुका नहीं। किसी एक अखबार में संभवतः सबसे लंबे समय तक चलने वाला यह पहला स्तंभ होगा। इसके लिए पाठकों के साथ ही हरिभूमि पत्र समूह को आभार।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन होगा?

2. 11 महीने होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश मिनिस्टर ट्रेक पर क्यों नहीं आ रहे?

शनिवार, 9 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्री की गंभीर चूक

 तरकश, 10 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्री की गंभीर चूक

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति का एक लाईन ऑफ प्रोटोकॉल होता है। ये जब राज्यों के दौरे पर होते हैं तो इनकी अगुवानी करने के लिए मंत्रियों की तो दूर की बात राज्यपाल और मुख्यमंत्री को विमान लैंड करने से पहले एयरपोर्ट पहुंचना होता है। जबकि, विमान लैंड होने के बाद रनवे पर रेंगने, सिक्यूरिटी नार्म पूरा करने और दरवाजा खुलने में 20 से 25 मिनट तक लग जाता है, बावजूद इसके राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत वे तमाम विशिष्ट लोग एयरपोर्ट पर हाजिर रहते हैं, जिनके नाम स्वागत सूची में होते हैं। मगर छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव के अलंकरण समारोह में रायपुर पहुंचे उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ के अगुवानी में एक मंत्रीजी ने इंतेहा कर दी।

उपराष्ट्रपति का भारतीय वायु सेना का प्लेन देर शाम रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर लैंड किया। प्रोटोकॉल के अनुसार राज्यपाल रमेन डेका, सीएम विष्णुदेव साय समेत वेलकम करने वाले सभी एयरपोर्ट पहुंच चुके थे। उपराष्ट्रपति विमान से उतरे तो कतार में सबसे आगे खड़े सबसे राज्यपाल ने उनका स्वागत किया, फिर मुख्यमंत्री ने। 

इसी बीच एक मंत्रीजी तेज कदमों से चलते हुए आए और लाइन के बीच में घुस गए। ठीक उसी तरह जैसे रेलवे के टिकिट काउंटर पर लोग बीच में घुस जाते हैं। इसे देख उपराष्ट्रपति के सिक्यूरिटी अफसर बेहद नाराज हुए। उन्होंने पूछा कि व्हाइस प्रेसिडेंट के विमान से उतरने के बाद टॉप सिक्योरिटी प्रीमाइसिज में मंत्री को इंट्री कैसे मिल गई? अब कोई क्या जवाब देता...मंत्री ठहरे, सो पुलिस वाले किंकर्तव्यविमूढ़ थे।

कुल मिलाकर मंत्री जैसे जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा व्हाइस प्रेसिडेंट के प्रोटोकॉल और सिक्यूरिटी की धज्जियां उड़ाने से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी खफा बताए जा रहे हैं...स्वाभाविक भी है, कम-से-कम मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। लेटलतीफी के लिए मशहूर रायपुर के एक भैया ने भी 35 साल के सार्वजनिक जीवन में कभी ऐसा नहीं किया, जो नए मंत्रीजी ने कर डाला।

विजन डॉक्यूमेंट और दिवाली की खुमारी

विजन डॉक्यूमेंट-2047 बनाने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है। अभी सिर्फ गुजरात का बना है...बाकी एमपी, राजस्थान, बिहार जैसे कई राज्य इसकी कवायद में लगे हुए हैं। मगर छत्तीसगढ़ आगे निकल गया। जाहिर है, राज्य में कोई अच्छी बात हो, तो प्रसन्नता स्वाभाविक है। मगर विजन डॉक्यूमेंट तभी प्रभावी होगा, जब आम आदमी का विजन भी बदले। लोग छुट्टियां का आनंद भी उठाएं और काम भी डटकर करें। छत्तीसगढ़ में विगत कुछ सालों से होली, दिवाली जैसे त्यौहारों में इंतेहा हो जा रही है।

इस बार दिवाली गुरूवार को थी। शुक्रवार, शनि, रविवार की तो उम्मीद बेमानी थी। लगा सोमवार से सब कुछ पटरी पर आ जाएगा। मगर पूरा हफ्ता निकल गया। सोमवार, मंगलवर को सड़कें सूनी रही। हर आदमी को तीज-त्यौहार को इंज्वाय करने का अधिकार है। मगर ये भी सोचना होगा कि एक त्यौहार में 10-10 दिन तक स्टेट ठहर जाए, तो फिर छत्तीसगढ़ गुजरात कैसे बन पाएगा? कायदे से चीफ सिकरेट्री को रायपुर आईआईएम से इस पर काम कराना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के मेहनतकश लोगों के श्रम की यूपी, पंजाब और जम्मू में इतनी प्रशंसा क्यों होती है...वो चीजें लोकल स्तर पर क्यों नहीं?

ह्यूमन रिसोर्स का कबाड़ा

चूकि उपर बात वर्क कल्चर और ह्यूमन रिसोर्स की हो रही तो इसका भी जिक्र लाजिमी है कि छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में कलेक्टरों द्वारा नकल वगैरह करवाने के बाद भी फर्स्ट डिविजन वालों की संख्या 30 फीसदी से उपर क्यों नहीं जा पा रही। कलेक्टर और नकल...इस पर आप चौंकेंगे तो इसे क्लियर करना आवश्यक है। अधिकांश कलेक्टर अपने जिले का रिजल्ट ठीक दिखने के लिए स्कूल शिक्षा के अधिकारियों को बता देते हैं कि जैसे भी हो, जिले का परफार्मेंस खराब नहीं होना चाहिए।

बहरहाल, कालेजों का हाल भी जुदा नहीं है। सरकारी कॉलेजों में संसाधन नहीं है और मोटी फीस लेने वाले प्रायवेट इंस्टिट्यूट डिग्री बेचने वाले केंद्र बनकर रह गए हैं। प्रायवेट कालेज वालों ने बीएड, फार्मेसी जैसे पाठ्यक्रमों के लिए बिना क्लास अटेंड किए परीक्षा में बिठाने 30 से 40 हजार रुपए का रेट निर्धारित कर दिया है। ऐसे में, छत्तीसगढ़ के ह्यूमन रिसोर्स का भगवान मालिक हैं। इस हालत में कल-कारखाने वाले दूसरे राज्यों से स्किल्ड लोगों को बुलाकर काम नहीं कराएंगे तो क्या करेंगे? बता दें, राज्य बनने के 24 सालों में ह्यूमन रिसोर्स को मजबूत करने पर कभी बात ही नहीं हुई।

ठोकने वाला सीएम

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठोकने वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। दरअसल, विधानसभा का उनका एक चर्चित भाषण है, जिसमें वे कह रहे हैं कि माफिया लोग अपराध से बाज आए वरना उन्हें ठोक देंगे। और ऐसा हुआ भी। उत्तप्रदेश में बड़ी संख्या में माफियाओं के एनकाउंटर हुए। अब छत्तीसगढ़ में भी इसकी शुरूआत हो गई है। पुलिस ने 8 नवंबर को भिलाई में एक अपराधी को मार गिराया।

बताते हैं, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। यद्यपि, मुख्यमंत्री का ऐसा स्वभाव नहीं। उनके स्वभाव से जुड़े सवाल पर मुख्यमंत्री के एक करीबी ने चुटकी ली...छत्तीसगढ़ बदल रहा है तो मुख्यमंत्री का बदलना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ बदलने का तात्पर्य उनका इस बात से था कि अपराध की प्रवृति बदल रही है। जाहिर है, गैंगवार में गोलियां बरस रही हैं। खैर...महत्वपूर्ण यह है कि पुलिस अब एक्शन में दिखेगी। क्योंकि, उपर से अब ठोकने जैसे निर्देश जारी हो गए हैं।

एडीजी को नई जिम्मेदारी

एडीजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को डीजीपी अशोक जुनेजा ने प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है। हिमांशु गुप्ता के डीजी जेल अपाइंट होने के बाद से यह पद खाली था। आईजी के तौर पर बद्रीनारायण मीणा प्रशासन संभाल रहे थे। यह नियुक्ति डीजीपी की सिफारिश पर हुई है। डीजीपी ने कल्लूरी का नाम रिकमांड किया और सरकार ने ओके कर दिया। हालांकि, आदेश डीजीपी ने ही निकाला। पीएचक्यू में खुफिया और फायनेंस एंड प्रोवजनिंग के बाद प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है। कह सकते हैं कल्लूरी का कद बढ़ा है।

इंद्रावती भवन का हाल खराब

सिकरेट्री की गंभीर चूक से मंत्रालय में जगह का टोटा पड़ने की तरकश की खबर के बाद स्तंभकार के पास कई लोगों के फोन आए कि विभागाध्यक्ष भवन का भी यही हाल है। इंद्रावती भवन बनाने के पीछे कंसेप्ट यही था कि पुलिस मुख्यालय और वन मुख्यालय को छोड़ सारे विभाग के लोग एक ही बिल्डिंग में बैठेंगे। इससे फाइलों की आवाजाही आसान होगी, काम स्मूथली होगा। मगर धीरे-धीरे जीएसटी, विकास भवन, पीडब्लूडी, हेल्थ जैसे कई अलग बिल्डिंगें बन गई। बावजूद इसके इंद्रावती भवन में जगह की कमी पड़ जा रही। वहां यह कोई देखने वाला भी नहीं कि जिस विभाग में कोई काम नहीं उन्हें भी उतना ही स्पेस मिला है और जिन विभागों में फाइलें दौड़ती रहती हैं, उन्हें भी उतना ही।

फिर एक सवाल यह भी है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद जब संसदीय सचिव अपाइंट किए जाएंगे, तो वे कहां बैठेंगे। क्योंकि सिकरेट्री ब्लॉक में कमरे न होने से मंत्री ब्लॉक में कई सचिवों को बिठाया जा रहा है। नए साल में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद जीएडी सिकरेट्री अविनाश चंपावत के लिए यह एक बड़ा सिरदर्द बनेगा। क्योंकि, मंत्री ब्लॉक में बैठने वाले अधिकांश सिकरेट्री हाई प्रोफाइल वाले हैं।

प्रमोशन में ब्रेकर

छत्तीसगढ़ के आईएफएस अधिकारी आईएएस, आईपीएस अफसरों की तरह खुशकिस्मत नहीं हैं। आलम यह है कि जनवरी में पीसीसीएफ का प्रमोशन ड्यू होने के बाद नवंबर आधा निकलने वाला है मगर उनकी फाइल किधर है, इसे कोई देखने वाला नहीं। 93 बैच में आलोक कटियार हैं और 94 बैच में अरुण पाण्डेय, सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार और अनूप विश्वास हैं।

इनमें से अनूप इसी महीने 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। सरकार ने इनकी अगर डीपीसी नहीं की तो अनूप के लिए बड़ा हार्डलक रहेगा। उन्हें बिना पीसीसीएफ प्रमोट हुए नौकरी से विदा लेनी पड़ेगी। हो सकता है कि इनमें से किसी अफसर विशेष के प्रमोशन को लेकर सिस्टम संशय में होगा, तो ऐसे मामलों से निबटने के लिए सिस्टम के पास बहुत सारे रास्ते होते हैं। उन्हें ड्रॉप कर बाकी की डीपीसी कराई जा सकती है।

एंटीइंकाम्बेंसी

छत्तीसगढ़ में उल्टा हो रहा है...सरकार की जगह लोकल नेताओं की एंटीइंकाम्बेंसी बढ़ती जा रही है। कई जिलों में विधायकों और संगठन के स्थानीय नेताओं ने बेईमान सिस्टम से गलबहियां कर ली है तो कई जगहों पर ईमानदार सिस्टम बुरी कदर परेशान है। कांग्रेस शासनकाल में पिछले पांच साल में जो हुआ, उसी को बीजेपी के नेता आदर्श पथ मान चुके हैं। स्थिति यह है कि अधिकारियों, ठेकेदारों से विधायकों को भी खुशामद चाहिए और संगठन के जिला स्तर के नेताओं को भी।

कांग्रेसी राज में जिस तरह जुआ, सट्टा, शराब के कारोबार पर लोकल नेताओं का वर्चस्व था, कमोवेश स्थिति बदली नहीं है। लॉ एंड आर्डर के लिए सारा ठीकरा पुलिस पर फोड़ना भी ठीक नहीं। पुलिस पर नेताओं का प्रेशर बढ़ता जा रहा। संवेदनशील मामलों में कोई मार्गदर्शन देने वाला नहीं। याने एसपी अपने स्तर पर निबटे। अगर लाठी चला दिया तो भी सस्पेंड होगा और नहीं चलाया तो भी।

ये कितना अजीब है कि रुलिंग पार्टी के लोग थानों में हुड़दंग मचाने लगे हैं। मोदी युग में कम-से-कम ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। उपर बैठे नेताओं को कैडर को बताना चाहिए कि केंद्रीय नेतृत्व ने अगर जोर नहीं लगाया होता तो बीजेपी विपक्ष में बैठी होती। पीएम मोदी के अथक परिश्रम से बीजेपी सत्ता में आ गई है तो नेताओं को पार्टी की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। वरना, लोग जिस तरह कांग्रेस के समय ऐलान करने लगे थे कि इनमें से आधे विधायक भी दोबारा जीतकर नहीं आएंगे, वैसा ही कुछ बीजेपी के विधायकों के बारे में कहा जाने लगेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोगों को आत्मनिर्भर बनाए बिना छत्तीसगढ़ का विकास संभव है क्या?

2. क्या नगरीय और पंचायत चुनाव तक लाल बत्ती पर अब ब्रेक लग गया है?


शनिवार, 2 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सचिवों का अर्धशतक

 तरकश, 3 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

सचिवों का अर्धशतक

पांच-सात साल पहले तक छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में सचिवों का ऐसा टोटा था कि स्पेशल सिकरेट्री को विभागों की कमान सौंपनी पड़ रही थी। मगर अब स्थिति ये है कि एसीएस, और प्रिंसिपल सिकरेट्री को छोड़ सिर्फ सिकरेट्री लेवल के अफसरों की संख्या 50 पहुंच गई है। वो भी तब जब इस साल 2024 में छह सचिव रिटायर हो चुके हैं। शारदा वर्मा अगले महीने दिसंबर में रिटायर होंगी।

सचिवों की संख्या में एकाएक इजाफा इसलिए भी हुआ कि छह महीने के भीतर आधा दर्जन से अधिक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसग़ढ़ लौट आए। उपर से 2005 के बाद छत्तीसगढ का आईएएस अलॉटमेंट भी बढ़ गया। याद होगा, 2002 तक एक-एक, दो-दो आईएएस छत्तीसगढ़ को मिलते थे।

मसलन, 2002 बैच में सिर्फ दो। रोहित यादव और कमलप्रीत सिंह। 1998 और 2001 में एक भी नहीं। 1999 और 2000 में एक-एक। 2005 के बाद उत्तरोत्तर संख्या बढ़ती गई। बहरहाल, जनवरी में 2009 बैच के आईएएस भी प्रमोट होकर सचिव बन जाएंगे। इस बैच में 11 आईएएस हैं। याने जनवरी तक सचिवों की संख्या 61 पहुंच जाएगी। ऐसे में, विभागों के बंटवारे में सरकार के पास विकल्प खुले रहेंगे। जाहिर है, पुअर परफर्मेंस वाले सचिवों की दिक्कतें बढ़ेंगी। उन्हें अल्पज्ञात विभागों के सचिव होने से ही दिल को दिलासा देना होगा।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-1

अंग्रेज जब इमारतें बनाते थे, तो 100 साल आगे की प्लानिंग करते थे। मगर इंडियन लोगों की स्थिति यह है कि दस-बारह साल में प्लानिंग ध्वस्त होने लगती है। इसका नायाब नमूना है, छत्तीसगढ़ का मंत्रालय महानदी भवन। 2012 में महानदी भवन में पुराना मंत्रालय शिफ्थ हुआ था। करोड़ों रुपए से निर्मित इस भवन में सचिवों के लिए चार फ्लोर बनाए गए हैं। एक फ्लोर में सात सचिव बैठ सकते हैं। याने एसीएस, प्रिंसिपल सिकरेट्री मिलाकर 28 सिकरेट्री।

सचिवों की संख्या अब बढ़ गई है इसलिए सचिवालय ब्लॉक में कमरे का टोटा पड़ गया है। आलम यह है कि कई सचिवों को मंत्रियों के ब्लॉक में बिठाना पड़ रहा है। ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रोहित यादव जैसे कई सिकरेट्री मिनिस्ट्रियल ब्लॉक में बैठ रहे हैं।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-2

दरअसल, मंत्रालय भवन की प्लानिंग जब तैयार हो रही थी, तब छत्तीसगढ़ को एक-एक, दो-दो आईएएस का आबंटन मिलता था। मगर जब बिल्डिंग बनने लगी तब इसमें इजाफा हो गया। उस समय पूर्व मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन प्रमुख सचिव आवास और पर्यावरण विभाग थे। नया रायपुर की पूरी प्लानिंग उम्मेन के कार्यकाल के दौरान ही फाइनल हुई। उम्मेन से लेकर तब की सारी एजेंसियां यह अंदाज लगाने में गच्चा खा गई कि आगे चलकर अफसरों की संख्या बढ़ गई तो क्या होगा।

अब तीन महीने के अवकाश के बाद अगले महीने अमित कटारिया ज्वाईन करेंगे। उसके महीने भर बाद 2009 बैच के प्रमोट होने वाले 11 सचिवों की संख्या और बढ़ जाएगी। यक्ष प्रश्न यह है कि इन्हें कहां बिठाया जाएगा? और 12 साल के भीतर ही अगर नया मंत्रालय भवन बनाने या एक्सटेंशन करने की नौबत आ जाए तो क्या यह मजाक नहीं होगा? ब्यूरोक्रेसी को भविष्य के लिए इससे सबक लेनी चाहिए।

सुबोध सिंह की पोस्टिंग

97 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस सुबोध सिंह को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। उन्हें स्टील मिनिस्ट्री में एडवाइजर बनाया गया है। रायगढ़, बिलासपुर और रायपुर की चार बार कलेक्टरी कर चुके सुबोध 2020 में सेंट्रल डेपुटेशन पर गए थे। याने उनका तीन साल कंप्लीट हो चुका है। राज्य सरकार अगर प्रयास करें तो सुबोध को रिलीव करने में भारत सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। सूबे में सचिवों की संख्या भले ही 50 पहुंच गई है मगर सुबोध जैसे अफसरों की संख्या अभी भी महसूस की जा रही है।

कबाड़ी, पुलिस और पॉलिटिक्स

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में कबाड़ी को पुलिसिया और राजनीतिक संरक्षण की वजह से कैसा बवाल हुआ, ये किसी से छुपा नहीं है। सरकार को सूरजपुर के पुलिस अधीक्षक को हटाना पड़ गया। बावजूद इसके, पुलिस का सिस्टम सबक नहीं ले रहा है। कबाड़ी को बचाने की इसी हफ्ते ताजा घटना रायपुर से लगे धमतरी जिले के कुरूद में हुई।

रायपुर-विशाखापट्टनम सिक्स लेन ग्रीन कारिडोर बना रही लखनउ की कंट्रक्शन कंपनी का 29 टन सरिया का ट्रक पार हो गया। इसमें कंपनी के कुछ स्टाफ भी शामिल रहे। कंपनी ने खुद ही तीन लोगों को पकड़कर कुरूद पुलिस के हवाले किया। पकड़े गए लोगों ने बताया कि ट्रक को कुरूद के एक राईस मिल में अनलोड किया गया। उसके बाद एक कबाड़ी उसे खरीदकर ले गया। इसके बाद भी पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में खेल कर दिया।

एक तो दूसरे दिन एफआईआर दर्ज हुआ। पहले दिन पुलिस ने यह कहकर आरोपियों को कंपनी के लोगों के सुपूर्द कर दिया कि कल लेकर आईयेगा। उसके बाद 8 लाख की सरिया को एफआईआर में 80 हजार की चोरी कर दिया गया। जाहिर है, कबाड़ी और राईस मिलर को बचाने यह किया गया। चूकि चोरी की राशि कम हो गई, इसलिए केस कमजोर पड़ जाएगा। बता दें, राईस मिलर और कबाड़ी को बचाने पुलिस पर भारी प्रेशर था...पुलिस दबाव में आ भी गई।

मंत्री पद की दावेदारी

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव का परिणाम 23 नवंबर को आएगा। मगर रिजल्ट क्या आएगा, इस पर सियासी प्रेक्षकों को कोई उलझन नहीं है। भाजपा भी जानती है रिजल्ट क्या आएगा और कांग्रेस भी। खैर, सत्ताधारी पार्टी के सुनील सोनी अगर चुनाव जीते तो मंत्री पद का एक दावेदार और बढ़ जाएगा।

इस समय विष्णुदेव कैबिनेट में दो पद खाली हैं। बृजमोहन अग्रवाल के सांसद चुने जाने के बाद रायपुर से इस समय कोई मंत्री नहीं है। लिहाजा, राजेश मूणत की दावेदारी है तो पुरंदर मिश्रा भी महाप्रभु जगन्नाथ से चमत्कार की आस लगाए बैठे हैं। अब ओबीसी से सुनील सोनी भी मैदान में होंगे। लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि कैबिनेट के 9 मंत्रियों में से ओबीसी कोटे से इस समय छह मंत्री हैं। याने 66 परसेंट।

चूकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की राजनीति ट्राईबल और ओबीसी की धुव्रीकरण की है, इसलिए ओबीसी से एक मंत्री और बनाया जा सकता है। तब सात ओबीसी मंत्री हो जाएंगे। सत्ताधारी पार्टी के लिए यह परफेक्ट समीकरण होगा। आदिवासी मुख्यमंत्री प्लस दो आदिवासी, एक अनुसूचित जाति, सात ओबीसी और दो जनरल केटेगरी से मंत्री।

इससे स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल की दो रिक्त सीटों में ओबीसी और जनरल से एक-एक को मौका मिलेगा। अब मंत्री बनने वाले दो भाग्यशाली विधायक कौन होंगे, ये तो नहीं पता, मगर ये अवश्य है कि अब हेड काउंटिंग के लिए मंत्री नहीं बनाया जाएगा। पार्टी अब परफार्मेंस को प्राथमिकता देगी। क्योंकि, ओबीसी और जनरल में रिजल्ट देने वाले विधायकों की कमी नहीं है।

तीन साल चुनाव में

विष्णुदेव साय सरकार का एक साल लगभग निकल गया है। आखिरी साल चुनावी वर्ष होता है। उसमें उद्घाटन और चुनाव में माहौल बनाने के लिए शिलान्यास के काम होते हैं। बचा तीन साल। इसी में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होगे। सरकार को इसी पीरियड में अपना बेस्ट दिखाना है। लिहाजा, मंत्रियों के साथ अब सचिवों के लिए अगला तीन साल चुनौतीपूर्ण होंगे।

इसी तीन साल में प्लानिंग करनी होगी और उसका क्रियान्वयन भी। इसके लिए सरकार को बेस्ट अफसरों की फारवर्ड टीम तैयार करनी होगी...उसके कंधे पर हाथ रखना होगा...बिना पुख्ता संरक्षण के अफसर रिस्क लेकर काम करते नहीं। पिछली सरकार ने टीम बनाने में चूक की। इससे उसे खामियाजा यह उठाना पड़ा कि भूपेश बघेल जैसे कमांडर के होने के बाद भी बीजेपी उसे परास्त करने में कामयाब हो गई।

अंत में दो सवाल

1. दिवाली, होली जैसे त्यौहारों की डेट में कंफ्यूजन पैदा करने से किसका हित सध रहा है?

2. दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर बनने के लिए आईएएस अफसर इतना जोर क्यों मार रहे हैं?


शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अफसरों की दिवाली खराब

 तरकश, 27 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों की दिवाली खराब

छत्तीसगढ़ के 19 आईएएस अधिकारियों की दिवाली खराब हो गई। चुनाव आयोग ने उन्हें आब्जर्बर बना दिया है। पहली बार छत्तीसगढ़ की लिस्ट में महिला आईएएस के भी नाम हैं। विदित है, महाराष्ट्र और झारखंड में दो चरणों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी अधिकारियों को 28 अक्टूबर को संबंधित जिलों में रिपोटिंग करने कहा गया है।

इसके तीसरे दिन ही दिवाली है, सो उन्हें अब घर आने का मौका मिलेगा नहीं। लक्ष्मीपूजा के त्यौहार में ऐन समय अफसरों के बाहर रहने से क्या-क्या नुकसान होगा....उनकी पीड़ा को यहां कुरेदना ठीक नहीं। चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार को कम-से-कम दिवाली का खयाल तो करना था।

भरोसे की पिटाई

बलरामपुर बवाल का वीडियो देखकर छत्तीसगढ़ का आम आदमी हिल गया। बड़ा भयावह दृश्य था....छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़ियां...कहे जाने वाले प्रदेश की महिलाओं ने पुलिस पार्टी पर हमला बोल दिया। थाने के सामने एक महिला बत्ती लगी पुलिस की गाड़ी के शीशे को पत्थर बरसा रही थी तो दूसरी महिला जूती निकालकर महिला एडिशनल एसपी की पिटाई करती दिखी।

वीडियो देख सरगुजा रेंज पुलिस, पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग के मुख्तारों को पता नहीं कैसा लगा....मगर अकल्पनीय हालात देख छत्तीसगढ़ का आम आदमी हतप्रभ है। भयभीत भी। दरअसल, पुलिस आम आदमी के भरोसे की प्रतीक होती है।

रसूखदार आदमी रसूख के बल पर और पैसे वाले पैसे के बल पर अपना काम करा लेता है। मगर समाज के 95 परसेंट लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर पुलिस पर निर्भर होते हैं। इस 95 परसेंट पर जब भी कोई संकट आता है तो सीधे थाने दौड़ता है। मगर उसका विश्वास इस तरह जूती से पिटेगा तो घबराना वाजिब है।

हनुमानजी प्रसन्न नहीं!

छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा शपथ लेने के बाद पहली बार पुलिस मुख्यालय पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां बजरंगबली की पूजा की थी, नारियल फोड़ने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ हुआ था। मगर पुलिस पर संकट देखकर लगता है, पूजा से हनुमानजी प्रसन्न नहीं हुए। वरना ऐसा थोड़े होता है...डंडे बरसाने वाली पुलिस पर ही डंडे बरस रहे...।

कवर्धा में गृह मंत्री के दो करीबी लोगों को हिंसा में जान गंवानी पड़ गई। एसपी, एडिशनल एसपी का लगातार निलंबन और छुट्टी की कार्रवाई भी प्रभावी नहीं हो पा रही। गृह विभाग को काशी के किसी अच्छे पंडित से अनुष्ठान करा पुलिस की ग्रह-दशा को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।

सवाल 73 विधानसभा सीटों का

बस्तर में नक्सल मोर्चे पर फोर्स को बड़ी कामयाबी मिल रही है। गृह विभाग और पुलिस महकमा इसके लिए सराहना का पात्र है। मगर बस्तर की सफलता मैदानी इलाकों में पुलिस की अ-क्षमता से धुल जा रही है। सिस्टम को यह भी ध्यान रखना होगा कि बस्तर में विधानसभा की केवल 17 सीटें हैं। 73 सीटें मैदानी इलाकों में हैं।

बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव के परिवार की सत्ता का अंत हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर रही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बदली तो उसके पीछे कानून-व्यवस्था भी एक कारण रहा। याद होगा, डेढ़ साल पहले रायपुर शहर में नशे में युवती ने एक युवक की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसलिए, पीएचक्यू को लॉ एंड आर्डर को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।

सस्पेंशन या जूते

छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के ध्वस्त होने के पीछे बड़ी वजह है पुलिस का लोकलाइजेशन। मध्यप्रदेश में आज भी सिपाहियों को गृह जिले में पोस्टिंग नहीं मिलती। मगर छत्तीसगढ़ में ये वर्जनाएं ऐसी टूटी कि अब नेताजी लोगों की कृपा से पुलिसकर्मियों को उनके गांव के नजदीकी थाने में पोस्टिंग मिल जा रही। कई जिलों की स्थिति ये हो गई है कि लोकल पुलिस का परसेंटेज 70 से 80 पहुंच गया है।

बलौदा बाजार की हिंसा में भी इसे महसूस किया गया, जब भीड़ को देखकर पुलिस मौके से गायब हो गई। असल में, वर्दी वालों से तिमारदारी कराना नेताओं को गर्व की अनुभूति कराता है और जाहिर है, पुलिस वाले नेताओं के जब लटर-पटर वाले काम करेंगे, तो उसकी कीमत भी वसूलेंगे ही।

सूबे में इससे सबसे बड़ा नुकसान पोलिसिंग का हुआ है। पुलिस का पूरा सिस्टम काम धाम छोड़ उगाही में जुट गया। दूसरी बड़ी वजह है...लॉ एंड आर्डर का अनुभव नहीं होना है। पुलिस में गिने-चुने अफसर भी नहीं हैं, जिन्हें विषम परिस्थितियों को संभालने का अनुभव हो। बलरामपुर बवाल में सबको पता था कि मृतक बंगलादेशी रिफ्यूजी परिवार से है। बंगाल और बंग्लादेश में प्रतिरोध का एक अलग तरीका होता है।

ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री डॉक्टरों से नहीं निबट पा रही तो बंग्लादेश में लोगों ने ऐसी लड़ाई लड़ी कि पीएम शेख हसीना को राजपाट छोड़ इंडिया भागना पड़ा। ऐसे में, सवाल उठता है...सरगुजा और बलरामपुर के पुलिस अधिकारियों ने अंडरस्टीमेट कैसे कर लिया। जो चूक सूरजपुर पुलिस ने की, उसी की पुनरावृत्ति बलरामपुर में भी हुई। बाहर से फोर्स बुलाकर अगर तुरंत तैनाती कर दी गई होती तो भीड़ को थाने में घुसने का मौका नहीं मिलता।

तीसरा, पुलिस को उग्र भीड़ से निबटने के लिए फ्री हैंड चाहिए। पुलिस के सामने दोहरा संकट है। बल प्रयोग किया तो सस्पेंड और बल प्रयोग नहीं तो बलरामपुर की तरह पीठ पर जूते खाओ। कवर्धा के लोहारीडीह कांड में अगर एसपी को हटाना ही था तो फिर एडिशनल एसपी को सस्पेंड करने का क्या तुक?

पुलिस को अगर टाईट करनी है तो आपको उसे संरक्षण भी देना होगा। छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग को अगर जिंदा रखनी है तो गृह और पुलिस महकमे को इस पर चिंतन करनी चाहिए।

कड़े और अलोकप्रिय फैसले

सरकार ने तेज-तर्रार नेता विजय शर्मा को गृह मंत्रालय की कमान सौंपी हैं तो उन्हें डिरेल्ड हो चुकी पोलिसिंग को पटरी पर लाने कुछ कड़े और अलोकप्रिय फैसले लेने पड़ेंगे। इसके लिए सबसे पहले पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करना होगा। ट्रांसफर, पोस्टिंग में कुछ साल नो सिफारिश। स्टेट लेवल पर भर्ती नहीं कर सकते तो जिला लेवल पर तो ना ही हो।

पुलिस की भर्ती रेंज स्तर हो और उसमें जिले का विकल्प न दिया जाए। याने संबंधित रेंज के किसी भी जिले में सिपाहियों की पोस्टिंग की जा सकती है। इससे खटराल सिपाहियों को अपराधियों से गठजोड़ टूटेगा। पहले पुलिस के इंफर्मर होते थे, आजकल अपराधियों के इंफर्मर पुलिस हो गई है। ऐसे में, पुलिस का भगवान मालिक है।

कप्तानी का रिकार्ड

आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईपीएस में कप्तानी का रिकार्ड बद्री नारायण मीणा और संतोष सिंह के नाम दर्ज है तो स्टेट सर्विस वाले आईपीएस में प्रशांत ठाकुर सबसे आगे हैं। प्रशांत जशपुर, जांजगीर, बेमेतरा, बलौदा बाजार, दुर्ग, धमतरी जिले के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर में हेड कांस्टेबल की पत्नी और बेटी की हत्या के बाद सरकार ने उन्हें वहां का एसपी अपाइंट किया है। सूरजपुर उनका सातवां जिला हुआ। बद्री और संतोष को छोड़ दें तो सात जिला किसी आरआर वाले आईपीएस ने भी नहीं किया होगा।

वीवीआईपी कलेक्टर

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने गृह जिले जशपुर के कलेक्टर के लिए रोहित व्यास को चुना है। सत्ता से नजदीकी दिखाने वाला जशपुर का एक बड़ा वर्ग कलेक्टर के रूप में जिपं के पूर्व सीईओ को देखना चाहता था। मगर सीएम ने रोहित का नाम ओके कर दिया।

दरअसल, कोरोना के समय बगीचा के एसडीएम रहे रोहित की वर्किंग को सीएम भलीभांति जानते थे। 2017 बैच के आईएएस रोहित के बारे में आम धारणा है कि वे अनावश्यक राजनीतिक प्रेशर में नहीं आते।

कलेक्टर से सीपीआर

छत्तीसगढ़ में यह दूसरा मौका है, जब सरकार ने कलेक्टर को जिले से बुलाकर सीपीआर याने जनसंपर्क प्रमुख बनाया है। इससे पहले 2014 में ओपी चौधरी को दंतेवाड़ा कलेक्टर से रायपुर बुलाकर डीपीआर बनाया गया था। बाद में ओपी यहीं से जांजगीर कलेक्टर बनकर गए और वहां से फिर रायपुर कलेक्टर बनें। उनके बाद जशपुर कलेक्टर डॉ0 रवि मित्तल को कलेक्टर से जनसंपर्क प्रमुख बनाया गया है।

हालांकि, राज्य बनने से पहले सुनिल कुमार रायपुर कलेक्टर से डीपीआर बने थे। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। वे एक दिन के दौरे पर रायपुर आए थे। और लौटे तो दूसरे दिन सुनिल कुमार को डीपीआर बनाने का आदेश हो गया। बहरहाल, खास बात यह है कि जशपुर दौरे में सीएम ने तीन कलेक्टरों समेत 10 आईएएस अधिकारियों को बदलने के आदेश पर साइन किया तो कलेक्टर के रूप में रवि वहीं थे। सोशल मीडिया में आदेश वायरल होते ही रवि को बधाइयां मिलने लगी।

ऐसा ही कुछ 2016 में हुआ था...जब मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने मंच से ऐलान किया किया था कि आपके कलेक्टर मुकेश बंसल को मैं बड़ा काम कराने के लिए रायपुर ले जा रहा हूं...तो सभा स्थल पर मुकेश को बधाइयों का तांता लग गया था। बता दें, रवि मित्तल की सहायक कलेक्टर के रूप में पहली पोस्टिंग राजनांदगांव रही और मुकेश से ही उन्हें प्रशासन का प्रारंभिक गुरूज्ञान मिला।

दिलफेंक प्रोफेसर

राजधानी रायपुर के एक दिलफेंक प्रोफेसर की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। वे कपड़े की भांति अपना दिल बदलते हैं। उनके खिलंदरपन से परेशान होकर पत्नी ने संबंध विच्छेद कर लिया, इसके बाद भी प्रोफेसर साब का दिल समझने को तैयार नहीं हैं। अलबत्ता, सिक्सटी प्लस उम्र भी उनके हौसले पर कोई असर नहीं डाल पा रहा। रामविचार जी को देखना चाहिए, कहीं कुछ उंच-नीच हो गया तो खामोख्वाह बदनामी होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सांसद बृजमोहन के खासमखास सुनील सोनी को रायपुर दक्षिण से टिकिट मिलने के बाद कांग्रेस क्या दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी?

2. राज्य मानवाधिकार आयोग में किस रिटायर अफसर की पोस्टिंग हो रही है?