शनिवार, 4 जनवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2024: डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल

 तरकश, 5 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल

छत्तीसगढ़ के विधानसभा में कुछ दिन पहले ही दंतेवाड़ा में आरईएस द्वारा बिना सड़क बनाए पैसे भुगतान पर बवाल मचा था। इस पर पंचायत मिनिस्टर विजय शर्मा ने चार अफसरों को सस्पेंड करने का ऐलान किया। इधर, पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में पीडब्लूडी के अफसर निशाने पर हैं। 56 करोड़ की सड़क का 112 करोड़ पेमेंट कर दिया गया।

जब तक ऐसे ठेकेदार और अफसर रहेंगे, अमित शाह लाख कोशिश कर लें, बस्तर नक्सलियों से मुक्त नहीं हो सकता। आखिर, यह शाश्वत सत्य है कि नक्सलियों को टैक्स देने के बाद ही ठेकेदारों को काम करने की हरी झंडी मिलती है। नेताओं से लेकर अफसरों और नक्सलियों को मालूम होता है कि काम कागजों पर होना है।

तभी एक दशक पहले तक एसपीओ की मामूली नौकरी करने वाला सुरेश चंद्राकार 500 करोड़ का ठेकेदार बन जाता है। बहरहाल, संयोग यह है कि दोनो विभाग डिप्टी सीएम का है। अरुण साव के पास पीडब्लूडी है और विजय शर्मा के पास पंचायत और ग्रामीण विकास।

दोनों उप मुख्यमंत्रियों को अपने अधिकारियों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, बिना इसके अमित शाह का ड्रीम प्रोजेक्ट कामयाब नहीं हो सकता। फिर महत्वपूर्ण यह भी है कि दोनों सरकार के वरिष्ठतम मंत्री हैं...वे एक्शन मोड में आएंगे तो देखादेखी नए मंत्री भी उनका अनुसरण करेंगे। सिर्फ ये बोलकर वे जिम्मेदारी से मुक्त नहीं काट सकते कि हमारी चल नहीं रही है।

मोदी बड़े या राहुल?

पुलिस में किराये की गाड़ियों में हो रहे खेला पर डीजीपी अशोक जुनेजा ने सवाल-जवाब किया तो एक दिलचस्प खुलासा हुआ। डीजीपी की मीटिंग से लौटने के बाद एक जिले के पुलिस अधीक्षक ने किराये की गाड़ियों की जांच कराई तो पता चला कि विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने 85 इनोवा और स्कार्पियो किराये पर लिया था और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए 140। याने पीएम मोदी से अधिक राहुल की सुरक्षा?

200 करोड़ का खेला

सालां से चला आ रहा पुलिस विभाग का किराये की गाड़ियों का खेला पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाता अगर डीजीपी अशोक जुनेजा ने भृकुटी टेढ़ी नहीं की होती। पिछले महीने एसपी की मीटिंग में उन्होंने सबको खरी-खरी सुनाई। दरअसल, छत्तीसगढ़ पुलिस जितना पैसा हर साल किराये की गाड़ी में फूंक रही है, उतने में हर साल एक हजार इनोवा गाड़ी खरीदी जा सकती है।

मोटे आंकलन के तौर पर हर जिले में साल में सात-से-दस करोड़ रुपए किराये गाड़ियों पर खर्च किए जाते हैं। इस हिसाब से 33 जिलों में हर साल करीब 250 करोड़ रुपए गाड़ियों के किराये के नाम पर बहाया जा रहा। इस 250 करोड़ में से मुश्किल से पूरे प्रदेश में 50 करोड़ वास्तविक खर्च होता होगा। बाकी 200 करोड़ रुपए आरआई से लेकर पुलिस अफसरों की जेब में।

सबसे अधिक बुरी स्थिति है राजनांदगांव और रायपुर रेंज की। तीन टुकड़ों में बंट गए राजनांदगांव जैसे छोटे जिले में 100 इनोवा और स्कार्पियो किराये की चल रही है...इसे एसपी कांफ्रेंस में सार्वजनिक रूप से बताया गया। असल में, किराये की गाड़ियों के नाम पर बरसों से जिलों में बड़े स्तर पर संगठित भ्रष्टाचार चल रहा है।

वस्तुस्थिति यह है कि गाड़ियां कागजों में चल रही है। क्योंकि, इतनी गाड़ियों की जरूरत नहीं होती। पीएचक्यू में प्रदीप गुप्ता जैसे साफ-सुथरी छबि के एडीजी वित्त और योजना के बैठे होने के बाद भी आश्चर्य है कि उन्होंने इसे संज्ञान कैसे नहीं लिया? अलबत्ता, कड़वी सच्चाई यह भी है कि इनमें से आधी गाड़ियां खुद पुलिस अधिकारियों की है, जो अपने परिजनों और रिश्तेदारों या फिर टैक्सी वालों के जरिये चलवा रहे हैं।

वित्त मंत्री को संज्ञान

वीआईपी के फॉलोगार्ड में चार गाड़ी और तीन जवान...आपको विश्वास नहीं होगा कि ये भला कैसे संभव होगा। तीन जवान चार गाड़ी में कैसे बैठेंगे? डीजीपी की मीटिंग के बाद एक एसपी ने रैंडम जांच की तो पता चला कि हड़बड़ी में बिल बनाने के चक्कर में आरआई ने तीन जवानों को चार गाड़ियों में बिठाने का कारनामा कर डाला। बहरहाल, जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल ने अक्टूबर में एक आदेश निकाला था कि बिना अनुमति गाड़ियां हायर नहीं की जाएगी। मगर पता नहीं किधर से प्रेशर आया, उन्होंने अपना आदेश खुद ही निरस्त कर दिया।

वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसे संज्ञान लेना चाहिए। पुलिस विभाग भले ही उनका नहीं मगर खजाने का चाबी सरकार ने उन्हें सौंपी है तो साल का 200 करोड़ रुपए पुलिस अधीक्षकों और आरआई लोगों की जेब में क्यों जाए। इस 200 करोड़ से हर साल पुलिस जवानों के लिए सुविधायुक्त आवास बनाए जा सकते हैं...पुलिस को संसाधनों से लैस किया जा सकता है।

सुबोध सिंह और कठिन टास्क

पीएस टू सीएम सुबोध सिंह ने कार्यभार संभालने के बाद प्रशासन में सुधार के काम तेज कर दिए हैं। सीएम के सचिवों को भी अब संभागों का दायित्व सौंप दिया है। याने कलेक्टर, एसपी पावर देखकर मुख्यमंत्री के सचिवों की चापलूसी नहीं करेंगे, उन्हें अपने संभाग के प्रभारी सचिवों से ही बात करनी होगी। यह सुशासन की दिशा में अच्छा कदम है।

मगर सुबोध सिंह के समक्ष चुनौतियां कहीं अधिक है। असल में, छत्तीसगढ़ के लिए सुबोध नए नहीं है, इसलिए सभी की यही उम्मीद है कि सुबोध सिंह कुछ करेंगे। सुबोध सामने सबसे तगड़ा टास्क होगा, प्रशासनिक करप्शन को रोकना। एक तरह से कहें तो प्रशासनिक अराजकता की स्थिति है।

आम आदमी बोल रहे, सरकार बदल गई...मगर अफसर और अफसरों की करतूतें नहीं बदली। हाल यह है कि सरकार के साल भर हो गए मगर किधर से कौन बॉल फेंक रहा...किसी को समझ नहीं आ रहा। खटराल अफसर सरकार और संगठन के कई चौखटों का फायदा उठा रहे, इस पर भी स्वच्छ प्रशासन के लिए अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।

अफसरों को इसका अहसास होना चाहिए कि गड़बड़ करने पर अब कोई भाई साब नहीं बचाएंगे, तभी सूबे में प्रशासनिक शुचिता और कसावट आ पाएगी। वरना, अफसर मासूमियत भरी सफाई देकर एनजीओ को करोड़ों का टेंडर देते रहेंगे।

इसी हफ्ते की घटना है...सीजीएमससी के प्रमुख ने कहा कि उन्हें मालूम नहीं कि अस्पतालों के फायर ऑडिट का काम जिसे दिया गया है, वह एनजीओ है। जबकि, टेंडर के आदेश में उन्होंने ही स्पष्ट तौर पर डायरेक्टर को लिखा...फलां समिति को आप लोग काम दें। अब उन्हें प्रायवेट लिमिटेड और समिति का अंतर नहीं मालूम को क्या कहा जा सकता है। यकीनन...सुबोध सिंह के सामने कठिन टास्क है।

अनलिमिटेड आईजी

कभी एक समय था कि आईजी बनाने के लिए अफसर नहीं होते थे। कई साल तक स्थिति यह रही कि पांच रेंज, पांच आईजी स्तर के आईपीएस रहे। विकल्प न होने पर डॉ. रमन सिंह को कई बार किसी आईपीएस को नहीं चाहते हुए भी आईजी बनाना पड़ा। मगर इस समय छत्तीसगढ़ में पूरे 18 आईजी हो गए हैं। पीएचक्यू में ही आधा दर्जन से ज्यादा होंगे।

संख्या बढ़ने से 2007 बैच के आईपीएस अधिकारियों के आईजी प्रमोशन में लोचा आ गया था। इस बैच में तीन आईपीएस हैं रामगोपाल गर्ग, दीपक झा और अभिषेक शांडिल्य। डीपीसी के बाद सरकार को इनके प्रमोशन के लिए इसे आधार बनाकर रास्ता निकालना पड़ा कि तीन अफसर डेपुटेशन पर है। इस चक्कर में बाकी आईपीएस का प्रमोशन का आदेश रुक गया है।

16 को आचार संहिता?

नगरीय और पंचायत चुनाव में आगे-पीछे होने की एक वजह यह भी रही कि सिस्टम दो महीने से काफी व्यस्त रहा। दिवाली, राज्योत्सव, सरकार का एक साल, अमित शाह का 15 दिन में दो बार दौरा, विधानसभा का शीतकालीन सत्र। ऐसे में, महापौर, अध्यक्ष और पार्षद प्रत्याशियों के लेवल पर कोई काम ही नहीं हुआ। राज्य निर्वाचन आयोग ने जब चुनाव ऐलान करने की तैयारी तेज की तो लगा कि कुछ गड़बड़ हो रहा है। फिर आरक्षण आगे बढ़ाया गया। बहरहाल, 15 जनवरी को मतदाता पुनरीक्षण का काम कंप्पलीट हो जाएगा। इसके अगले दिन 16 जनवरी को चुनाव का ऐलान हो जाएगा।

बीजेपी के नए अध्यक्ष OBC से?

बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश की मौजूदगी में 3 जनवरी को रायपुर में पार्टी की एक अहम बैठक हुई। पार्टी कार्यालय के बाद सभी छत्रप सीएम हाउस गए। वहां क्या हुआ, ये तो नहीं पता मगर ये जरूर है कि बैठक छत्तीसगढ़ के नए अध्यक्ष के लिए मंथन हुआ। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव को मंत्रिमंडल में शामिल करने पार्टी गंभीर है। रही बात नए प्रदेश अध्यक्ष की तो इसके लिए पार्टी किसी ओबीसी नेता पर दांव लगाने विचार कर रही है। इसमें नारायण चंदेल के लिए जबर्दस्त लॉबिंग चल रही है। हालांकि, ओबीसी से इस समय छह मंत्री हैं। गजेंद्र यादव को कहीं मौका मिल गया तो फिर सात हो जाएंगे। आदिवासी वर्ग से सीएम हैं तो इसमें अब कोई स्कोप नहीं। सामान्य से अमर अग्रवाल, किरण सिंहदेव और ओबीसी से गजेंद्र यादव...मंत्री के लिए ये तीन नाम इस समय सबसे अधिक चर्चाओं में है। अब देखना है पार्टी किस पर मुहर लगाती है। 

उल्टी गंगा

छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी इस कदर कभी बैकफुट पर नजर नहीं आई। हालत यह है कि बीएड धारी 2855 सहायक शिक्षकों की बर्खास्तगी पर विपक्ष हमलावर है और बिना किसी चूक के बीजेपी बगले झांक रही है। न मंत्री दमदारी से कुछ बोल रहे और न उसके प्रवक्ता। ऐसा ही कुछ पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में भी हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रीय पदाधिकारी ने दिल्ली से सरकार को आड़े हाथ लेकर ट्वीट कर दिया और आरोपी का कांग्रेस कनेक्शन की फोटुएं सोशल मीडिया पर भरी होने के बाद भी बीजेपी के न मीडिया सेल से कुछ ट्वीट हुआ और न पार्टी के किसी पदाधिकारी ने बयान दिया। कांग्रेस के ट्वीट के बाद बीजेपी हरकत में आई...फिर उसकी काट के तौर पर आधी रात के बाद ट्वीट हुआ। सरकार बने अब साल भर हो गए हैं...बीजेपी नेताओं को आत्ममुग्धता से बाहर आना होगा। वरना, अगले महीने नगरीय और पंचायत चुनाव में परेशानी आ सकती है। सत्ताधारी पार्टी को कम-से-कम सरकार के पक्ष को दमदारी से रखनी चाहिए। इसके लिए मोदीजी, अमित शाह या मनसुख मांडविया थोड़े आएंगे।

आईएएस की वैकेंसी

छत्तीसगढ़ में एलायड सर्विस कोटे से आईएएस का दो पद खाली हो गया है। पहला अनुराग पाण्डेय के रिटायर होने के बाद अगस्त में खाली हुआ और दूसरा शारदा वर्मा की 31 दिसंबर को विदाई के बाद। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक इस कोटे से चार अफसरों को आईएएस अवार्ड हुआ है। जनसंपर्क, इंडस्ट्री, जीएसटी और ट्राईबल से एक-एक। मगर काम से अपनी पहचान बनाने वालों में आज भी एमपी के समय आईएएस बने आरएस विश्वकर्मा और डॉ0 सुशील त्रिवेदी ही याद आते हैं। सरकार को इस बार ठोक बजाकर काबिल अफसरों को ही मौका देना चाहिए। तभी आईएएस पदनाम के साथ न्याय हो पाएगा। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा ने मंत्री पद के दावेदारों की धड़कनें क्यों बढ़ाकर रखा है?

2. हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी बस्तर के आदिवासियों की सूरत नहीं बदली मगर वहां के नेता, ठेकेदार, सप्लायर, अफसर और माओवादी कैसे मालामाल हो गए?

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: आईएएस अफसरों को प्रमोशन गिफ्ट

 तरकश, 29 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

आईएएस अफसरों को प्रमोशन का गिफ्ट

यूपी में 2009 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में भी इस बैच को सिकरेट्री बनाने की अटकलें तेज हो गई है। 2009 बैच के छत्तीसगढ़ में 11 आईएएस हैं। छह आरआर और पांच प्रमोटी।

आरआर के छह में से समीर विश्नोई कोयला घोटाले में जेल में हैं, और तंबोली अय्याज फकीरभाई सेंट्रल डेपुटेशन पर। बची डॉ. प्रियंका शुक्ला, किरण कौशल, अवनीश शरण, सौरव कुमार, सुनील जैन, कुमार चौहान, विपिन मांझी, डोमन सिंह और केडी कुंजाम। ये सभी नए साल में सचिव प्रमोट हो जाएंगे। इनमें चौहान और मांझी छह महीने ही सचिव रह पाएंगे। मई में दोनों एक साथ रिटायर हो जाएंगे।

विभाग नो चेंज!

प्रमोशन के बाद 2009 बैच के आईएएस अधिकारियों का विभाग बदलेगा, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा। क्योंकि, सिकरेट्री में पहले से ही ओवरफ्लो हो रहा है। लिहाजा, प्रियंका शुक्ला हेल्थ में डायरेक्टर से कमिश्नर हो जाएंगी। किरण कौशल कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन पहले से हैं। सौरव कुमार एनआरडी और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में हैं, उनकी भी पोस्टिंग यथावत रहने वाली।

इस बैच के एकमात्र कलेक्टर अवनीश शरण इस समय बिलासपुर में हैं। अवनीश को पिछली सरकार में पूरे पांच साल हांसिये पर रखा गया। इसलिए लगता है वे बिलासपुर में शायद कंटीन्यू कर जाएं।

सचिव बनने के बाद कलेक्टर रहने के छत्तीसगढ़ में कई दृष्टांत रहे हैं। आरपी मंडल सात महीने राजस्व सिकरेट्री रहने के बाद रायपुर के कमिश्नर बनाए गए थे।

बहरहाल, विष्णुदेव सरकार सूबे के 50 से अधिक आईएएस अधिकारियों को प्रमोशन का गिफ्ट देगी, जिनमें 2012 बैच के 11 आईएएस स्पेशल सिकरेट्री और 2016 बैच के 18 आईएएस अफसर ज्वाइंट सिकरेट्री बनेंगे।

95 बैच के दोनों आईएएस डेपुटेशन पर हैं और 2000 बैच जीरो है, इसलिए एसीएस और प्रिंसिपल सिकरेट्री में कोई प्रमोशन नहीं होगा।

छत्तीसगढ़ के 3 जिलों में डीआईजी

छत्तीसगढ़ में 17 आईपीएस अधिकारियों को न्यू ईयर में प्रमोशन का गिफ्ट मिलेगा। इनमें दीपक झा और रामगोपाल गर्ग आईजी बनेंगे। वहीं 2011 बैच के सात आईपीएस संतोष सिंह, इंदिरा कल्याण ऐलेसेला, लाल उमेद सिंह, अजात बहादुर सिंह, जीआर ठाकुर, टीआर कोशिमा, प्रशांत ठाकुर डीआईजी प्रमोट होंगे।

इनके अलावा 2012 बैच के आशुतोष सिंह, विवेक शुक्ला, शशिमोहन सिंह, राजेश कुकरेजा, श्वेता राजमणि, राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल और रामकृष्ण साहू को सलेक्शन ग्रेड मिलेगा। याने इन सभी का ओहदा बढ़कर एसपी से अब एसएसपी हो जाएगा

आईपीएस प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में तीन डीआईजी पुलिस अधीक्षक होंगे तो पांच सलेक्शन ग्रेड वाले। याने अब पांच जिलों में एसएसपी और तीन जिलों में सुपर एसएसपी होंगे।

हालांकि, छत्तीसगढ़ में यह पहली बार नहीं हो रहा...डीआईजी प्रमोट होने के बाद कप्तान रहने वालों की लिस्ट बड़ी लंबी है। बहरहाल, 33 में से आठ जिलों में अब सीनियर एसपी होंगे...ऐसे में लॉ एंड आर्डर की स्थिति सुधरने की उम्मीद की जा सकती है।

प्रशासन का कबाड़ा

अंग्रेजों के समय से सिस्टम बनाया गया था...कलेक्टरों को गाइड करने के लिए संभागों में कमिश्नर बिठाए जाते थे। इससे कलेक्टरों को फायदा यह होता था कि प्रशासन की गाड़ी अटकने पर वे कमिश्नरों से मार्गदर्शन ले लेते थे। मध्यप्रदेश के दौर में छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक धाकड कमिश्नर रहे। बीएस बासवान से लेकर हर्षमंदर तक।

मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह सिस्टम ध्वस्त हो गया। अजीत जोगी सरकार ने इसे औचित्यहीन मानते हुए कमिश्नर सिस्टम खतम कर दिया था। बीजेपी की सरकार ने 2005 में इसे फिर से चालू किया मगर दो-एक मौकों को छोड़ कभी आरआर वालों को कमिश्नर नहीं बनाया।

अंदर की बात यह है कि अधिकांश कलेक्टर नहीं चाहते कि कोई डायरेक्ट आईएएस उनके उपर कमिश्नर बनकर बैठ जाए। इसलिए, शुरू से कुतर्क देते हुए लाबिंग की गई...डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर बनने पर समानांतर दुकान खोल देगा...कलेक्टरों से टकराव होगा।

समझने की बात है कि उपर में जब सरकार बैठी है...चीफ सिकरेट्री हैं...जीएडी सिकरेट्री हैं, तब कमिश्नर अपनी मनमानी कैसे चलाएंगे। और कमिश्नर अगर दुकानदारी किए तो सरकार के पास स्कू कसने के लिए पेंचिस तो है।

मगर कमिश्नर-कलेक्टर में तालमेल बिगड़ने का परसेप्शन फैलाकर अधिकांश संभागों में डमी कमिश्नर बिठा दिया गया। ताकि, कलेक्टर डीएमएफ से लेकर जिसमें मन चाहे अपनी चला सकें।

अभी सरगुजा कमिश्नर की पोस्टिंग होनी है। 31 दिसंबर को जी0 चुरेंद्र रिटायर होने जा रहे हैं। सरगुजा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का खुद का संभागीय मुख्यालय है। ऐसे में, सरकार को सरगुजा से इसकी शुरूआत करनी चाहिए।

बड़ा जिला, सीनियर कलेक्टर-एसपी

एक दशक पहले तक प्रशासन का थंब रुल था कि बड़े जिलों में सबसे सीनियर अफसरों को कलेक्टर, एसपी बनाया जाता था। मध्यप्रदेश के समय में इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और रायपुर के कलेक्टर-एसपी छांट के बनाए जाते थे। इन पांचों के कलेक्टर और कप्तान बनना गर्व की बात होती थी।

छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक दशक तक ये परंपरा चलती रही। मगर उसके बाद ऐसे-ऐसे पठरु लोगों को कलेक्टर-एसपी बना दिया जा रहा है कि लोगों को उनका नाम तक पता नहीं होता। जाहिर है, पहले के कलेक्टर, एसपी का नाम लोगों  की जुबां पर होता था।

पिंक महल, DMF और प्रशासन का शीर्षासन

छत्तीसगढ़ में भी कम-से-कम संभागीय मुख्यालयों में तो सीनियर अफसरों को बिठाना चाहिए। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी इसका फायदा होता है। आसपास के जिलों के कलेक्टर भी उसके अच्छे कामों को फॉलो करते हैं। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के डिवीजनल कमिश्नर और पुलिस रेंज के आईजी की पोस्टिंग में भी सरकार को ऐसा सोचना चाहिए। तब जाकर रिजल्ट दिखाई देगा।

लक्ष्मीजी के बल पर या जोर-जुगाड़ लगाकर कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर, आईजी अपनी पोस्टिंग करा लेते हैं, उसका परिणाम छत्तीसगढ़ में दिख ही रहा है। सिस्टम रहा नहीं। न प्रशासन बचा है और न पुलिस। विकास हुआ है तो सिफ कलेक्टर और एसपी के बंगले का। डीएमएफ के पैसे से छत्तीसगढ़ के कलेक्टर, एसपी के बंगले पिंक महल बन गए हैं। ये हम नहीं कह रहे सरकार के पास रिपोर्ट आई है कि कलेक्टरों ने सरकारी बंगलों पर कैसे डीएमएफ का करोड़ों रुपए फूंक दिया।

हालांकि, राहत की बात यह है कि पुलिस अधीक्षकों ने बंगलों और गार्डन को सजाने में सरकारी खजाने का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कोयला, कबाड़ी और जुआरियो-सटोरियो का इस्तेमाल किया। पुलिस अधीक्षकों को उतना कसूर नहीं।

कलेक्टरों से कंपीटिशन में एसपी डिरेल्ड हुए और कलेक्टरों की वर्किंग डिरेल्ड हुई करोड़ों रुपए के डीएमएफ से। रिजल्ट ये निकला कि छत्तीसग़ढ़ में प्रशासन से लेकर कानून-व्यवस्था सिर के बल है। और आम आदमी? इसका जवाब है...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़ियां।

ऐसे भी अफसर

ऐसा भी नहीं कि छत्तीसगढ़ के सारे अफसर डिरेल्ड हो गए हैं। कुछ पहले भी ट्रेक पर थे और आज भी रास्ता नहीं बदले हैं। डेपुटेशन से रायपुर लौटे एक सीनियर आईपीएस अफसर सोफा लेने फर्नीचर दुकान पहुंचे।

अफसर के कद के हिसाब से दुकान वाला रेट बताना शुरू किया...। 12 लाख से लेकर जब वह डेढ़ लाख पर आया तो आईपीएस ने कोने में रखे सोफे का रेट पूछा। दुकान वाला बोला...23 हजार। अफसर बोले, इसी को दे दो।

दुकानदार हैरान...छोटे-मोटे डीएसपी, एडिशनल एसपी इतने लो लेवल पर नहीं आते और इतने बड़े साब....? कलेक्टरों में कुछ इतना बढ़ियां काम कर रहे हैं कि आप जानकर हैरान रह जाएंगे। लेकिन, दुकान में सरेआम रेट लिस्ट लगाने वालों की तुलना में अच्छे कलेक्टरों की संख्या मामूली है। इसलिए उनकी कोई चर्चा नहीं।

डेट ऑफ बर्थ का लोचा

पंजीयन सचिव शारदा वर्मा 31 दिसंबर को आईएएस से रिटायर हो जाएंगी। हालांकि, उनका डेट ऑफ बर्थ 1 जनवरी है। मगर रिटायमेंट का नियम है कि दो तारीख तक अगर कोई पैदा हुआ है तो उसका रिटायरमेंट लास्ट मंथ के लास्ट डेट को होगा। और दो के बाद...तो फिर वह पूरा महीना कंप्लीट करेगा।

मसलन, शारदा वर्मा की जन्मतिथि अगर 3 जनवरी होती तो फिर वह 31 जनवरी को रिटायर होतीं। ऐसे में, जो लोग बच्चों को स्कूल में दाखिले के टाईम जन्मतिथि एक लिखवा देते हैं, उन्हें इस बात को सनद रखना चाहिए।

अफसरों के लिए सबक

सरगुजा के डिवीजनल कमिश्नर जी0 चुरेंद्र आज से तीन दिन बाद 31 दिसम्बर को रिटायर हो जाएंगे। आईएएस के कैरियर में उन्होंने कमिश्नर पोस्टिंग का रिकार्ड बनाया है। बिलासपुर को छोड़ वे सभी संभागों में आयुक्त रह लिए। सबसे बड़े रायपुर संभाग में भी।

मगर उन्हें ताउम्र यह मलाल रहेगा कि स्पेशल सिकरेट्री से रिटायर होना पड़ा। चुरेंद्र के खिलाफ एसडीएम रहने के दौरान राजस्व के कुछ केस बने थे और उसमें उन्हें क्लीन चिट नहीं मिल पाई। इससे उनका सिकरेट्री प्रमोशन नहीं हो पाया। ब्यूरोक्रेसी के लिए यह सबक है।

ठीक है...पूर्व जन्मां के कुछ अच्छे कर्मों की वजह से सभी पकड़े नहीं जाते। मगर छत्तीसगढ़ में दो आईएएस, दो आईटीएस अफसर, दो एसडीएम समेत कई ज्वाइंट डायरेक्टर, एसई, ईडी जैसे अफसर जेल में हैं। तीर्थराज अग्रवाल और आरती वासनिक आईएएस अवार्ड से वंचित हो गए। ये घटनाएं आंखें खोलने के लिए होती हैं। मगर खुले तब तो।

मनमोहन की विनम्रता

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह कितने विनम्र थे, छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी इस छोटे से वाकये से आप समझ जाइयेगा। बात 14-15 साल पुरानी होगी। यही कोई 2009-10 के आसपास की। तब छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम प्रधानमंत्री कार्यालय में पोस्टेड थे। डेपुटेशन की निर्धारित अवधि सात वर्ष से दो बरस क्रॉस कर चुकी थी।

चूकि उस दौरान छत्तीसगढ़ में अफसरों की भारी कमी थी, लिहाजा सरकार चाह रही थी केंद्र उन्हें वापिस भेज दे। इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ सरकार से जब बार-बार रिमाइंडर जाने लगा तो डीओपीटी सिकरेट्री ने मनमोहन सिंह से बात की। बताते हैं, उन्होंने विनम्रता से कहा, क्या प्रधानमंत्री अपने कार्यालय में अपनी पसंद का एक आईएएस नहीं रख सकता?

प्रधानमंत्री की भावना का सम्मान करते हुए सीजी सरकार ने फिर इस चेप्टर को क्लोज कर दिया। यद्यपि, सुब्रमणियम छत्तीसगढ़ लौटे, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार के एक मंत्री का नाम बताइये, जिन्होंने अपने विभाग के वसूली का काम जिलेवार प्रायवेट लोगों को सौंप दिया है?

2. छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के लास्ट और छत्तीसगढ़ कैडर के फर्स्ट आईएएस, आईपीएस कौन-कौन हैं?


शनिवार, 14 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash: अज्ञानी कलेक्टर, दुःसाहसिक कार्य

 तरकश, 15 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अज्ञानी कलेक्टर-1

सक्ती जिले में ट्राईबल लैंड केस में जो हुआ, वह तो एक बानगी है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश कलेक्टर सालों से ये चूक कर रहे हैं। फर्क इतना ही है कि कोई पैसा लेकर आंखें मूंद ले रहा तो कुछ को रीडर घूमा दे रहे हैं। जबकि, भू-राजस्व संहिता 165 में यह क्लियर है कि आदिवासी की कोई भी जमीन कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं बेची जा सकती। मगर छत्तीसगढ़ में डायवर्टेड आदिवासी जमीन को कलेक्टर लिख कर दे दे रहे हैं...इसमें कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं है। सक्ती कलेक्टर ने भी ऐसा ही किया। दरअसल, सिस्टम की विडंबना यह है कि सम्मानजनक चढ़ावा न चढ़ाने पर कलेक्टर की अनुमति पाने चप्पल घिस जाएंगे। और पैसे दे दिए तो...।

अज्ञानी कलेक्टर-2

जाहिर है, आदिवासी जमीन को बेचने की अनुमति का प्रोसेस, महीनो की पेशी, बयान, साक्ष्य के बाद पूरा होता है। इसलिए इसमें डायवर्टेड लैंड का रास्ता निकाला गया। असल में, कलेक्टरों को आजकल नियम-कायदों की स्टडी होती नहीं। उनका रीडर जो बताता है, उसे वे ओके कर देते हैं। वही कलेक्टर एक जिले में पोस्टिंग के दौरान डायवर्टेड लैंड के मामले में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं लिखकर देते हैं और दूसरे जिले में जाते हैं तो अनुमति अनिवार्य बताते हैं।

दरअसल, 2008 में जब राधाकृष्णन राजस्व बोर्ड के चेयरमैन थे, तब भूमाफियाओं ने उनसे आर्डर करा लिया था कि डायवर्टेड लैंड में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं। हालांकि, डीएस मिश्रा ने चेयरमैन बनते ही उसे समाप्त का दिया था। मगर कलेक्टरों के कई खटराल रीडर राधाकृष्णन के उसी फैसले के आधार पर भूमाफियाओं को उपकृत कर रहे हैं। बहती गंगा में हाथ धोने में रजिस्ट्री अधिकारी भी पीछे नहीं। कई मामले तो रजिस्ट्री अधिकारी सलटा दे रहे...पुराने केस का हवाला देकर वे कलेक्टर के पास केस जाने ही नहीं देते। आदिवासी स्टेट, आदिवासी मुख्यमंत्री के बाद भी अगर ऐसा हो रहा तो ये कलेक्टरों की दुःसाहस कही जाएगी।

पूत सपूत तो का धन संचय

छत्तीसगढ़ की हाल की दो घटनाएं हिला देने वाली है। पहली घटना राजधानी रायपुर की है...एक रिटायर इंजीनियर इन चीफ अपनी संपत्ति बेटे के नाम कर पछता रहे हैं। वे रजिस्ट्री अधिकारियों से संपर्क में हैं कि क्या बेटे के नाम की गई रजिस्ट्री शून्य हो सकती है। दरअसल, सूबे में जब ईडी के छापे पड़ने शुरू हुए तो ईएनसी डरकर अपनी कई संपत्तियों को परिजनों के नाम कर दिया था।

मगर अब रिटायर होने के बाद बेटे-बहू यह कहते हुए उन्हें आंख दिखाना शुरू कर दिया है कि कौन सा आप मेहनत करके कमाए हो। बहू तंज कसती है...ईडी नहीं आती तो प्रॉपर्टी मेरे नाम करते क्या?

दूसरी घटना छत्तीसगढ़ की न्यायधानी से है। बिलासपुर के एक नामी सर्जन ने अकूत संपत्ति अर्जित की। देखते-देखते उन्होंने बिलासपुर शहर के मध्य 200 बेड का अस्पताल खड़ा कर दिया। रायपुर के वीआईपी क्लब के पास एकड़ में प्लाट। दोनों बेटों को तगड़ा डोनेशन दे, डॉक्टर बनाया। मगर उन्होंने एक काम नहीं किया...बेटों को संस्कारित करना। वैसे, दीन-दुखियों की जेब से पैसा निकालना फलता भी नहीं। नतीजा यह हुआ कि उनके स्वर्गवास होते ही करोड़ों की संपत्ति के लिए बेटे सरेआम जुतमपैजार कर रहे हैं।

अलबत्ता, सर्जन दो-ढाई दशक पुराने युग के थे, इसलिए कुछ तो नेक काम किए ही होंगे। कोविड युग के डॉक्टरों और अस्पताल मालिकों को सोचना चाहिए...कोविड में बिना इलाज किए...सिर्फ बीमारी की खौफ में इतनी दौलत अर्जित कर लिए कि सिरदर्द हो गया है...बोरियों में रखे कैश को 'अब' किधर लगाएं। रायपुर, बिलासपुर शहर के आसपास की जमीनें डॉक्टरों से बची नहीं। बिल्डरों के पास पैसा लगाने पहले से ही राजनेताओं और नौकरशाहों की लाइन लगी है।

कहने का आशय यह है कि पुरानी कहावतें गलत नहीं होती...पूत सपूत तो का...। पैसे कमाइये...सारे शौक पूरे कीजिए...दुनिया की सैर कीजिए। बट एक सेल्फ लिमिट तय कीजिए। इसके तीन फायदे होंगे। गरीब लुटने से बच जाएगा। भ्रष्ट लोग जेल जाने से बच जाएंगे। और तीसरा संपत्ति विवाद में सड़क पर इज्जत की नीलामी नहीं होगी। बहरहाल, उपर की दोनों घटनाएं आंखें आंखें खोलने के लिए काफी है। तय करना आपका काम है।

सिस्टम जिम्मेदार

करप्शन के लिए राजनीतिक सिस्टम भी कम जिम्मेदार नहीं है। 50 करोड़ के मनरेगा घोटाले में अगर आईएएस टामन सिंह सोनवानी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई होती तो उसे पीएससी में बच्चों का भविष्य खराब करने की हिम्मत नहीं पड़ती। उसी तरह 2005 पीएससी में अगर सिस्टम कड़ा स्टैंड लिया होता तो आरती वासनिक को न आईएएस अवार्ड से मरहूम होना पड़ता और न वो जेल जाती।

ठीक है, जब तक किसी केस में फैसला नहीं हो जाता, प्रमोशन नहीं रोका जाता। मगर ये नियम बनाया कौन है? अफसरशाही ने अपनी सुविधा के लिए बनाई है। अलबत्ता, सरकार को अधिकार है कि जिनकी नीयत और निष्ठा सही नहीं है, उसे प्रमोशन से वंचित कर दें।

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पीएससी 2005 की भर्ती को निरस्त कर दिया था। इससे गंभीर केस क्या हो सकता है। इसके बाद भी सरकारें उन्हेंं धड़ाधड़ प्रमोशन ही नहीं दी बल्कि महत्वपूर्ण पोस्टिंग भी देती रही। इंतेहा तो तब हो गई जब, राज्य सरकार ने 2005 के सभी राप्रसे अधिकारियों को डीओपीटी से आईएएस अवार्ड करवा डाला।

सिस्टम जब तक कौवा मारकर नहीं टांगेगा, तब तक भ्रष्ट तंत्र इसी तरह पुष्पित-पल्लवित होता रहेगा। राज्य सरकार ने इस बार दो अफसरों का आईएएस अवार्ड रोका है...यह अच्छा संकेत है।

मगर यह भी सही है कि 2005 बैच वाले चार-पांच अधिकारियों को सरकार ने कलेक्टर बना डाला है, इसके संदेश अच्छे नहीं जाते...शुचिता कायम करने सिस्टम को इस पर विचार किया जाना चाहिए।

एसपी का आदेश

रायपुर के एसएसपी संतोष सिंह को हटने-हटाने को लेकर लंबे समय से चर्चाएं चल रही थी। मगर जब यह परसेप्शन बन गया कि अब नगरीय निकाय चुनाव तक कोई ट्रांसफर नहीं होंगे। सरकार ने बुधवार को देर संतोष सिंह को हटाकर पीएचक्यू भेज दिया। कोरिया के एसपी का हटना अपेक्षित था। पिछले तरकश में यह सवाल भी पूछा गया था कि सरगुजा पुलिस रेंज के किस एसपी को सरकार हटाने वाली है।

इसलिए, कोरिया के एसपी हटने पर कोई हैरानी नहीं हुई। मगर ट्रांसफर लिस्ट में संतोष सिंह का नाम देखकर लोग चौंक गए। पता नहीं, ऐसा क्या हुआ कि सीएम विष्णुदेव साय ने अफसरों से कहा कि दोनों एसपी के आदेश आज ही जारी किए जाएं।

संतोष का अनूठा रिकार्ड

रायपुर एसएसपी संतोष सिंह को भले ही रातोरात बदल दिया गया। मगर उन्हें यह संतोष होगा कि कप्तानी का उनका बनाया हुआ रिकार्ड निकट भविष्य में कोई तोड़ नहीं पाएगा। एसपी के तौर पर संतोष ने बिना ब्रेक लगातार नौ जिला किया। कोंडागांव से शुरू हुई उनकी कप्तानी का सफर नारायणपुर, महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, राजनांदगांव, कोरबा, बिलासपुर होते हुए रायपुर में खतम हुआ।

हालांकि, छत्तीसगढ़ के आईपीएस बद्री नारायण मीणा ने भी एसपी के तौर पर नौ जिला किया है। मगर दो अलग-अलग दौर में। आईबी में डेपुटेशन पर जाने से पहले उनका सात जिला हुआ था और फिर लौटकर जांजगीर और दुर्ग जिला किया। बहरहाल, संतोष के नौ जिले में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लगातार तीन सरकारों में बिना ब्रेक वे एसपी रहे। सरकारें बदलती रहीं मगर उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आया।

रमन सरकार में कोंडागांव और नारायणपुर के एसपी रहे। भूपेश सरकार में महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, कोरबा और बिलासपुर। इसके बाद दिसंबर 2023 में बीजेपी की सरकार बनी तो उन्हें बिलासपुर में कंटिन्यू किया गया। इसके बाद फिर रायपुर के एसएसपी बनें। याने विष्णुदेव सरकार में दो जिला उन्होंने किया। बेशक, तीन-तीन सरकारों में बिना ब्रेक एसपी रहने का देश में एक नया रिकार्ड होगा।

डीजीपी के दावेदार

सुप्रीम कोर्ट के तेवर के बाद भारत सरकार ने जीपी सिंह को आईपीएस की सर्विस बहाल कर दिया है। इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें पोस्टिंग देगी। हालांकि, जीपी की मशक्कतें अभी भी जारी रहेगी। उनके सामने अब विभागीय जांच खतम करा डीजी प्रमोशन कराना बड़ा टास्क रहेगा। चूकि कैट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दिया है इसलिए अब विभागीय जांच में भी कुछ होना नहीं है।

सिर्फ बाइंडिंग की औपचारिकता बची है। उसके बाद फिर डीजी प्रमोशन के लिए डीपीसी होगी। जीपी के पास अगर एकाध महीने का भी वक्त होता तो वे डीपीसी कराने के बाद डीजीपी के पेनल में नाम जुड़वाने के लिए यूपीएससी को प्रेजेंटेशन दे सकते थे। तब डीजीपी के चार दावेदार हो जाते। मगर अब उन्हें वेट करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. निलंबन में पैसा मिलेगा, मगर काम नहीं...अंग्रेजों के समय की इस व्यवस्था को टाईट क्यों नहीं की जा रही, ताकि गलत कार्य करने से लोग बचे?

2. छत्तीसगढ़ में कौन-कौन मंत्रियों ने प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर डाला हैं?

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

 तरकश, 8 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

मध्यप्रदेश के बंटवारे के दौरान वहां के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कैडर आबंटन में ऐसी चकरी चलाई कि अधिकांश छंटे हुए आईएएस छत्तीसगढ़ आ गए। उसके बाद रही-सही कसर छत्तीसगढ़ पीएससी ने पूरी कर दी। डिप्टी कलेक्टर प्रशासन के रीढ़ माने जाते हैं। मगर पीएससी ने भर्ती में ऐसा खेला किया कि छत्तीसगढ़ में प्रशासन की रीढ़ ही टूट गई। जो नायब तहसीलदार बनने लायक नहीं थे, वे दरबारी और टामन युग में डिप्टी कलेक्टर बन गए उसके बाद आईएएस भी। ऐसे अफसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

अभी राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अधिकारियों को आईएएस अवार्ड हुआ है, उनमें दो-तीन को छोड़ दें तो बाकी कर्मकांडियों के आईएएस बनने पर भगवान भी हैरान होंगे। इनमें से दो अफसरों ने रायपुर और दुर्ग में पोस्टिंग के दौरान अवैध प्लाटिंग की धूम मचा दी थी। पहले अवैध प्लाटिंग के लिए नोटिस दो और लिफाफा मिलने पर केस क्लियर। ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों से छत्तीसगढ़ को क्या उम्मीद होगी। दिल को तसल्ली देने के लिए यही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ का भाग्य ही खराब है।

जीरो टॉलरेंस का मैसेज

सरकार ने आईएएस अवार्ड में अपनी तरफ से जीरो टॉलरेंस की भरपूर कोशिश की। जीएडी को इंस्ट्रक्शन था कि किसी दागी को आईएएस अवार्ड नहीं करना है। पीएससी की परीक्षा नियंत्रक रही आरती वासनिक के खिलाफ सीबीआई ने इंटरव्यू के दो दिन पहले ही एफआईआर की रिपोर्ट भेजी थी। वरना, आरती वासनिक को ड्रॉप करने का कोई आधार नहीं था।

बाकी लोग सीनियरिटी में आ गए तो डीपीसी के मेम्बर रेणु पिल्ले और मुकेश बंसल भी कुछ नहीं कर सकते थे। आरती वासनिक का नाम कट गया इसलिए नायब तहसीलदार से भर्ती हुए वीरेंद्र बहादुर पंच भाई तक की किस्मत का पिटारा खुल गया। वे भी आईएएस अफसर बन गए। कह सकते हैं, छत्तीसगढ़ में चना-मुर्रा वाला हाल हो गया है आईएएस का।

नए चीफ सिकरेट्री कौन?

हालांकि, चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अभी छह महीने से अधिक समय बाकी है। मगर उनकी गद्दी संभालने वाले की चर्चाएं ब्यूरोक्रेसी में अभी से शुरू हो गई हैं। अमिताभ के बाद सीनियरिटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। 93 बैच में फिर अमित अग्रवाल हैं।

अमित इस समय भारत सरकार में पोस्टेड हैं और सबसे अधिक संभावनाएं उनकी बताई जा रही है। अमित की संभावनाएं इसलिए कि उनके बाद 94 बैच में मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा हैं। इनमें से अगर किसी को सीएस बनाया जाएगा तो एक को फिर मंत्रालय से बाहर पोस्टिंग देनी होगी। चूकि दोनों अच्छे अफसर हैं, इसलिए सरकार ऐसा चाहेगी नहीं।

ऐसे में, एक ही रास्ता है कि अमित अग्रवाल छत्तीसगढ़ लौटें। यद्यपि, अमित दिल्ली में अच्छे पोजिशन में हैं, खुद भी छत्तीसगढ़ लौटने के इच्छुक नहीं दिख रहे। मगर जैसे कि कई राज्यों में दिल्ली से चीफ सिकरेट्री भेजा गया है, वैसा कुछ हुआ तो फिर अमित को लौटना पड़ेगा। उच्च स्तर की लोगों की इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात होने की चर्चाएं भी हैं। बहरहाल, अमित आएं या न आएं, उनके नाम से ही ब्यूरोक्रेसी में धकधकी शुरू हो गई है...अफसरों का आखिर रामराज खतम हो जाएगा।

चेंबर में कैमरा

घर-परिवार से असंतुष्ट या आदत से लाचार छत्तीसगढ़ के कुछ अफसरों के इधर-उधर बहकते कदम की चर्चाएं अब पब्लिक डोमेन में होने लगी हैं। अलबत्ता, ये भी सही है कि ऐसे मामलो को चटपटा बनाने उसमें मिर्च-मसाले भी मिला दिए जाते हैं। फिर भी...बिना आग के धुंआ निकलता नहीं। जीएडी सिकरेट्री को इसके लिए काउंसलिंग करनी चाहिए। आखिर, इससे राज्य का नाम ही खराब होगा। बरसते नोटो की गड्डियां, गोल्ड-डायमंड की ज्वेलरी और महंगे उपहारों की चकाचौंध में घरवालियां व्यस्त हो जाती हैं, और अफसर लगते हैं गुल खिलाने।

कायदे से जितने बड़े अफसर, उनके लंगोट उतने ही टाईट होनी चाहिए। मगर कलयुग ये है। दरअसल, कुछ फर्म और कंपनियां सुनियोजित ढंग से अफसरों को ट्रेप करने के लिए हनी गर्ल याने खूबसूरत लड़कियों को अपाइंट कर लिया है। उनका काम ही है चिकनी-चुपड़े बात कर अफसरों को फंसाना और उसके बाद मनमाफिक फाइलों को ओके कराना। हनी गर्ल के जाल में अफसर ट्रेप होते जा रहे हैं और हिट विकेट भी।

हालांकि, चरित्र को लेकर चौकस कुछ अफसर विषकन्याओं से बचने अपने चेंबर में कैमरा लगाने लगे हैं। पारदर्शिता की दिशा में ये अच्छा कदम है। सरकार को इसे एप्रीसियेट करनी चाहिए।

पसंद अपनी-अपनी

विषकन्याओं की बात आई तो एक पुराना वाकया याद हो आया। पुराने मंत्रालय की बात है। दोपहर का वक्त था...सिकरेट्री होम एएन उपध्याय के पास मैं बैठा था। तभी भृत्य एक विजिटिंग कार्ड लाकर उन्हें दिया। मुझे वहां बैठे करीब घंटा भर हो गया था, फिर किसी आगंतुक का कार्ड भी आ गया था, सो मैं उठने लगा। मगर उपध्यायजी ने मुझे बिठा लिया। बोले...बैठो अभी। दिल्ली की हथियार सप्लाई करने वाली कंपनी की महिला आई है...इन लोगों से मैं डरता हूं...आप थोड़ी देर और बैठ जाओ। उनका आग्रह था, मैं बैठ गया। उन्होंने घंटी बजाई और भृत्य से कहा, भेजो।

दरवाजा खुला तो एक लंबी-चौड़ी कद काया की गौर वर्ण की बेहद आकर्षक युवती भीतर दाखिल हुई। नजाकत और नफासत के साथ वह अपनी कंपनी के गोला-बारूद, रायफल की बारे में बताती रही और उपध्याय जी आदतन हूं...हां करते रहे। उपध्याय जी तरफ से रिस्पांस काफी ठंडा था। इसलिए वह ज्यादा देर बैठ नहीं सकी। करीब 10 मिनट में ही थैंक्स बोलकर खड़ा हो गई।

उसी दिन शाम करीब छह बजे पुलिस मुख्यालय के एक बहुते बड़े अफसर से मेरा अपाइंटमेंट था। मैं नियत समय पर उनके पास पहुंच गया। अभी उनके पास बैठे दो-से-तीन मिनट हुआ होगा कि हथियार सप्लाई कंपनी की वही युवती बेधड़क दरवाजा खोलकर दाखिल हुई। युवती को देखते ही अफसर के चेहरे पर चमक आ गई...उन्होंने बड़ा वार्म वेलकम किया। इतना वार्म कि मुझे दो-चार पल बैठना असहज लगने लगा। चूकि चाय आ गई थी, सो जैसे-तैसे दो-चार चुस्की लेकर निकल गया। कहने का आशय यह है...पसंद अपनी-अपनी। लंगोट के पक्के लोग सुंदरियों को देखकर भी अपना धैर्य नहीं खोते और लंगोट के ढिले लोग जीभ लपलपाने लगते हैं।

सरकार नाराज?

भारत सरकार से सात वर्ष के डेपुटेशन से लौटे अमित कटारिया को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। अंदेशा व्यक्त किया जा रहा कि कहीं अमित की लंबी छुट्टी से सरकार खफा तो नहीं है। जाहिर है, भारत सरकार से रिलीव होने के बाद अमित दो महीने की छुट्टी पर चले गए थे। छुट्टी पूरी होने पर वे रायपुर आए और ज्वाईन करने के साथ ही दो महीने की छुट्टी ले ली। फिर छुट्टी खतम होने पर पिछले महीने रायपुर आए मगर ज्वाईनिंग के बाद फिर दिल्ली चले गए।

इससे पहले की बीजेपी सरकार में अघोषित नियम बन गया था दिल्ली से लौटने वाले अफसरों को पोस्टिंग के लिए महीने भर तक वेट करना पड़ता था। अमिताभ जैन, अमित कुमार और गौरव द्विवेदी को भी इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मगर ये तीनों रायपुर में डटे रहे। अमित और गौरव आफिसर्स क्लब में महीना भर तक पोस्टिंग की बाट जोहते रहे। बहरहाल, सरकार को समझना चाहिए दिल्ली की चकाचौंध में सात साल तक नौकरी करने के बाद रायपुर में रहना मुश्किल तो होगा ही।

संयोग ऐसा भी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जब केंद्र में इस्पात राज्य मंत्री थे तो विशाखापटनम के सांसद किंजरामू राममोहन नायडू उनसे मिलने आया करते थे। दरअसल, भारत सरकार का स्टील प्लांट विशाखापटनम में है और नायडू वहीं से पहली बार के सांसद थे तो किसी-न-किसी इश्यू को लेकर वे विष्णुदेव से मिलते रहते थे। नायडू अब केंद्र में एवियेशन मिनिस्टर बन गए हैं। वो भी स्वतंत्र प्रभार।

इस बार संयोग ऐसा रहा कि छत्तीसगढ़ की एयर कनेक्टिविटी को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं उनसे मिलने पहुंचे। विष्णुदेव को देख नायडू को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सीएम उन्हें मुद्दे गिनाते गए और वे यस बोलते गए। टूटी-फूटी हिंदी में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए जो भी बन पड़ेगा...हम जरूर करेगा। चलिये, अच्छा है। छत्तीसगढ़ में एयरकनेक्टिविटी दुरूरूत होने की संभावनाएं अब काफी प्रबल हो गई हैं।

सीएम सिक्यूरिटी में चूक क्यों?

पिछले दो महीने में तीन से चार बार सीएम सिक्यूरिटी में चूक हुई है। पहली बार दुर्ग में काफिले की गाड़ियां आपस में टकरा गईं। फिर रायगढ़ में ट्रेफिक जाम हुआ। और अब कवर्धा में कुछ पल के अंतराल में दो घटनाएं। पहले में सीएम का काफिला जहां से गुजरना था, वहां एक लावारिस कार खड़ी थी और दूसरा...सीएम को ट्रैफिक जाम की वजह से पीछे लौटना पड़ा।

कवर्धा में मुख्यमंत्री का जनवासय में जाने का कार्यक्रम अचानक बना। मगर वहां के पुलिस अधिकारियों को 10 मिनट टाईम लेकर रोड क्लियरेंस करा लेना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। इसमें पुलिस अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है। गृह विभाग को कम-से-कम अपने विभागीय मंत्री के जिले में ठीकठाक अफसर को पोस्ट करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि सरगुजा पुलिस रेंज के किसी एसपी की छुट्टी होने वाली है?

2. मंत्रियों के पीए और अघोषित सलाहकारों की धुंआधार बैटिंग को रोका क्यों नहीं जा रहा है?

शनिवार, 30 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्रियों का बंगला उत्सव

 तरकश, 1 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों का बंगला उत्सव

नया रायपुर में मंत्रियों के सरकारी बंगले में इन दिनों प्रवेश का उत्सव चल रहा है। शक्ति प्रदर्शन जैसा जलसा और तामझाम के साथ मंत्री नए बंगले में प्रवेश कर रहे हैं। हालांकि, मंत्रियों के नए घरों को बंगला कहना थोड़ा कम आंकना होगा। तीन-तीन, चार-चार एकड़ में पसरे कोठियों को देख खुद मंत्री भी स्तब्ध हैं।

किसी मंत्री ने सोचा नहीं होगा कि राजनीति में ऐसा कोठी सुख उन्हें मिलेगा। आखिर, दिल्ली में बड़े केंद्रीय मंत्रियों के भी इतने आलीशान घर नहीं होते। ऐसे में, कई बार मंत्रियों के मुंह से थैंक्स भूपेश जी निकल जाता होगा। भूपेश सरकार ने ही इन बंगलों का निर्माण कराया था। उनकी सरकार में इसका काम कंप्लीट भी हो गया था। मगर भविष्य को कौन जानता है। अजीत जोगी की तरह भूपेश बघेल भी नहीं जानते थे उनकी सरकार दोबारा नहीं लौटेगी। न ही बीजेपी को पता था कि उनकी वापसी हो रही है। अगर ऐसा है तो फिर बंगला उत्सव क्यों? वक्त का क्या भरोसा...अगले चुनाव में कई मंत्री दोबारा इस कोठी में लौटने लायक बचेंगे या नहीं?

मंत्रियों को मुख्यमंत्री से सीखना चाहिए...उन्होंने दो-चार फाइलें कर नए हाउस में प्रवेश कर लिया था। वैसे भी मोदी युग में काम का उत्सव मनाना चाहिए न कि बंगले का...जिसका कोई भरोसा नहीं। एक साल में किसी मंत्री ने कोई अहम काम किया हो, उसका यदि मंत्री जश्न मनाते तो बात कुछ और होती।

छत्तीसगढ़िया चीफ सिकरेट्री

अमिताभ जैन ने छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री के तौर पर चार साल पूरे कर लिए हैं। राज्य बनने के बाद 24 साल में फोर ईयर क्लब में शामिल होने वाले अमिताभ फर्स्ट चीफ सिकरेट्री हैं। उनके पहिले विवेक ढांड 48 दिन से इस क्लब में शामिल होने से चूक गए थे। खास बात यह है कि तीन साल से अधिक चीफ सिकरेट्री रहने वालों में तीन में से छत्तीसगढ़ के दो आईएएस शामिल हैं।

जाहिर है, विवेक और अमिताभ, दोनों माटी पुत्र हैं। मगर इसके बाद युगों युग तक कोई छत्तीसगढ़िया चीफ सिकरेट्री नहीं बनने वाला। अमिताभ के 1989 में आईएएस में सलेक्ट होने के 16 साल बाद 2005 में ओपी चौधरी आईएएस बने थे। ओपी ने 2018 में आईएएस की नौकरी छोड़ दी...वे अब सरकार में मंत्री हैं। उनके बाद के छत्तीसगढ़ियां आईएएस काफी जूनियर हैं।

मसलन, शिखा तिवारी 2007 बैच, किरण कौशल 2009 बैच, रानू साहू 2010 बैच। रीतेश अग्रवाल और विनीत नंदनवार 2012 और 2013 बैच के हैं। मतलब दिल्ली अभी दूर है। चीफ सिकरेट्री से एक पायदान नीचे एसीएस तक पहुंचते-पहुंचते क्या होगा, इसका कोई भरोसा नहीं।

बहरहाल, इसका जिक्र लाजिमी है कि अभी तक छत्तीसगढ़ होम कैडर के तीन आईएएस चीफ सिकरेट्री बने हैं। विवेक ढांड, अजय सिंह और अमिताभ जैन। विवेक को अजय ने रिप्लेस किया था। अजय सिंह 11 महीने सीएस रहे। कांग्रेस सरकार ने उनकी जगह सुनील कुजूर को सीएस बनाया था।

सिर्फ अमित अग्रवाल

अमिताभ जैन के चीफ सिकरेट्री का रिकार्ड सिर्फ अमित अग्रवाल तोड़ सकते हैं। 93 बैच के अमित का जून 2030 में रिटायरमेंट है। अगर वे सीएस बनाए गए तो पूरे पांच साल इस पद पर रहेंगे। हालांकि, अमित अभी यहां हैं नहीं। वे डेपुटेशन पर भारत सरकार में हैं। बहरहाल, इस समय सीएस के एलिजिबल जो आईएएस हैं, उनमें रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू 2028 में रिटायर हो जाएंगे। याने इनके पास तीन साल ही बचेगा। ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकास शील और मनोज पिंगुआ 1994 बैच के आईएएस हैं। इनमें ऋचा मार्च 2029, निधि और विकास जून 2029 और मनोज अगस्त 2029 में रिटायर होंगे।

निधि, विकास और मनोज चार साल के क्लब में शामिल जरूर हो सकते हैं मगर चार साल सात महीने का रिकार्ड नहीं तोड़ पाएंगे। मनोज अगर जून 25 में सीएस बन गए तो चार साल तीन महीने का कार्यकाल उनका अवश्य हो जाएगा। कुल मिलाकर अमिताभ को अमित अग्रवाल से ही खतरा रहेगा। मगर इंपॉर्टेंट यह भी है कि अमित जैसे टेंपरामेंट के अफसर इतने लंबे समय तक किसी स्टेट के सीएस रह सकते हैं क्या?

निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग-1

रिटायर आईएएस सुनील कुजूर की सहकारिता निर्वाचन की पारी खतम हो गई है। पिछले महीने अक्टूबर में उम्र 65 साल हो जाने की वजह से वे रिटायर हो गए। सुनील को विष्णुदेव साय सरकार ने लोकसभा चुनाव के बाद एक साल का एक्सटेंशन दिया था। मगर 65 के हो जाने के कारण टाईम से पहले उनका टेन्योर पूरा हो गया।

सुनील को 2019 में गणेश शंकर मिश्रा को हटाकर सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था। बता दें, रमन सरकार ने आईएएस से रिटायर होने के बाद गणेश शंकर मिश्रा को इस पद पर बिठाया था। राज्य निर्वाचन आयुक्त की तरह सहकारिता निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह साल निर्धारित किया गया। मगर फर्स्ट कमिश्नर गणेश शंकर का हार्ड लक रहा।

निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग-2

जाहिर है, पिछली सरकार का गणेश शंकर मिश्रा के साथ विशेष अनुराग था। सो, उन्हें हटाने के लिए सरकार ने नियम बदलकर सहकारिता निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह साल से घटाकर दो साल कर दिया था। इसके बाद एक-एक साल एक्सटेंशन का प्रावधान किया गया। इसका नुकसान सुनील कुजूर को भी उठाना पड़ा। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता की वजह से उनका एक्सटेंशन दो महीना अटक गया।

बहरहाल, देखना है विष्णुदेव सरकार नियम बदलकर फिर से कार्यकाल बढ़ाती है या फिर वर्तमान व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए पोस्टिंग करेगी। अगर छह साल हो गया तो इस रिटायर आईएएस पुनर्वास केंद्र का क्रेज थोड़ा बढ़ा जाएगा...लोग आना भी चाहेंगे।

सचिवों का बदलेगा प्रभार?

छत्तीसगढ़ में सचिवों की एक ट्रांसफर लिस्ट निकल सकती है। वो इसलिए क्योंकि आईएएस अमित कटारिया केंद्र से लौट चुके हैं। भले ही ज्वाईन करने के बाद वे दिल्ली चले जा रहे मगर उन्हें कोई-न-कोई पोस्टिंग मिलेगी ही। वैसे चर्चा हेल्थ की ज्यादा है। हेल्थ इस समय एसीएस मनोज पिंगुआ के पास है। उनके पास लंबे समय से गृह और जेल भी है।

सरकार अगर गृह और जेल बदलने पर विचार कर रही है। अगर गृह और जेल भी बदला तो हो सकता है कि लिस्ट थोड़ी लंबी हो जाए। याने दोनों हो सकता है...अमित कटारिया का सिंगल आदेश निकल जाए या फिर हेल्थ के साथ ही गृह और जेल बदला तो फिर लिस्ट थोड़ी बड़ी हो जाएगी। रायपुर दक्षिण विधानसभा का उपचुनाव पूरा हो जाने के बाद सीईओ रीना बाबा कंगाले भी अब मंत्रालय लौटेंगी! चुनाव आयोग की अनुमति से पहले भी सीईओ को विभागों की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जाती रही है। हो सकता है कि उन्हें कोई विभाग मिल जाए।

एसपी की लिस्ट

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के पहले से सूबे में कई पुलिस अधीक्षकों के बदले जाने की चर्चाएं बड़ी तेज थी। फिर हुआ...आचार संहिता के बाद होगा। मगर अब खबर है...नगरीय और पंचायत चुनाव के बाद ही बड़े स्तर पर एसपी में बदलाव किया जाएगा। पुलिस अधीक्षकों को मैसेज भी हो गया है कि जो होगा, अब दो महीने बाद ही होगा। इसलिए, एसपी साब लोग अब एकाग्र होकर काम में जुट गए हैं। दरअसल, लोकल और पंचायत चुनाव तक सरकार नहीं चाहती कि सिस्टम में कोई बड़ी उठापटक हो, जिसका असर चुनाव पर पड़े।

कलेक्टर का नायाब अंदाज

एक कलेक्टर ने बढ़ियां तरीका निकाला है। जैसे ही घड़ी का कांटा शाम सात को क्रॉस करता है वे बंगले से फोन लगवाते हैं...बुलाओ फलां अफसर को। कोई अफसर यदि यह बताने फोन लगा दिया कि सर, मैं कहीं आ गया हूं, एकाध घंटा लग जाएगा तो उसमें भी कोई मरौव्वत नहीं...ठीक है तुम नौ बजे आओ, लेकिन आओ। अफसर के पहुंचते ही कलेक्टर की एकतरफा फायरिंग शुरू हो जाती है...तुम्हारी शिकायतें बहुत आ रही है...तुमने इसमें एक करोड़ का गड़बड़ किया है....तो तुमने इतने का। यह क्रम दो-एक बार चलता है। तीसरे बार अफसर लिफाफा लेकर पहुंच जाता है। इसके बाद कलेक्टर का उद्देश्य पूरा और अफसर भी सुरक्षित। अच्छा आइडिया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ की ध्वस्त हो चुकी मशीनरी कब तक लौटेगी पटरी पर?

2. पीएचक्यू ने सिपाहियों को इंटर रेंज ट्रांसफर करते हुए उनके होम डिस्ट्रिक्ट में भेजना प्रारंभ कर दिया है तो फिर अच्छी पोलिसिंग और लॉ एंड आर्डर की बातें क्यों?

Chhattisgarh Tarkash 2024: नए डीजीपी का पैनल

 तरकश, 24 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

नए डीजीपी का पैनल

छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। दरअसल, कुछ राज्यों में ऐन मौके पर डीजीपी नियुक्ति की फाइल यूपीएससी को भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी। अपेक्स कोर्ट ने कहा था कि नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया तीन महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए। तीन महीने के पैरामीटर से देखें तो छत्तीसगढ़ में कुछ लेट हुआ है। डीजीपी अशोक जुनेजा का छह महीने का एक्सटेंशन 5 फरवरी को कंप्लीट हो जाएगा। बहरहाल, जैसा कि पता चला है...छत्तीसगढ़ के नए डीजीपी पैनल के लिए फाइल का प्रॉसेज शुरू हो गया है। एसीएस होम, गृह मंत्री से होकर फाइल अंतिम अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री तक जाएगी। पैनल में तीन नाम भेजा जाए या पांच, इस पर मशिवरा चल रहा है। यदि तीन नाम भेजना होगा तो पवनदेव, अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता का नाम होगा। और पांच जाएगा तो एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम जुड़ जाएगा। हालांकि, डीजीपी कौन होगा, यह लगभग तय हो चुका है। यूपीएससी से पैनल एप्रूव्ह होने के बाद उसी नाम पर सरकार टिक लगा देगी। अलबत्ता, ऐन वक़्त पर अगर अशोक जुनेजा का ऊपर से एक्सटेंशन का कोई आदेश आ गया तो फिर बात अलग है।

मंत्रियों के सिपहसालार

लोकसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ के मंत्रियों के लिए आईआईएम में स्पेशल क्लास आरगेनाइज किया गया था। मगर मंत्रियों की 11 महीने की वर्किंग और परफार्मेंस देखकर नहीं लगता कि देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की क्लास से कोई फायदा हुआ। स्थिति विकट है...करीब-करीब साल गुजरने वाला है मगर मंत्रियों का कोई काम ट्रेक पकड़ता नहीं दिख रहा है। इसकी दो महत्वपूर्ण वजह बताई जा रही है। पहली, अधिकांश मंत्रियों को काम सीखने में इंट्रेस्ट नहीं प्रतीत हो रहा। और दूसरी, गड़बड़ नस्ल के उनके स्टाफ। पिछले सरकारों के सारे खटराल पीए और सिपहसालार जोर-जुगाड़ लगाकर नए मंत्रियों के साथ जुड़ गए। मंत्रियों के पीए सलेक्शन में न जीएडी ने ध्यान दिया और न ही मंत्रियों ने। नतीजा यह हुआ कि मंत्रियों को ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेला में उलझा दिया गया। मंत्रियों के विभाग की बात तो अलग उनके सिपहसालारों ने उनके गृह जिलों का भी कबाड़ा कर दिया। अब ये कितनी हैरान करने वाली बात है कि डिप्टी सीएम अरुण साव के गृह नगर पंचायत लोरमी को लोवर ग्रेड के बाबू रैंक का सहायक राजस्व निरीक्षक चला रहा है। जबकि, अरुण इसी विभाग के मंत्री हैं...कायदे से सूबे के सबसे काबिल सीएमओ की वहां नियुक्ति की जानी चाहिए थी। वहीं, दूसरे डिप्टी सीएम विजय शर्मा के गृह क्षेत्र कवर्धा का कलेक्टर एलायड सर्विस के एक ऐसे अफसर को बना दिया गया, जिन्हें न रेवेन्यू का अनुभव है और न एडमिनिस्ट्रेशन का। बाकी मंत्रियों का हाल भी कमोवेश वही है। ऐसी स्थिति रही तो बीजेपी को कैबिनेट में बड़ी सर्जरी करनी पड़ जाएगी।

रांग नंबर डायल

मंत्रीजी के लोगों के पीए खुद को मंत्री से कम नहीं समझते। अफसरों को इस अंदाज में फोन लगाते हैं, जैसे पीए नहीं मंत्री वे ही हो। मगर एक मंत्री के पीए ने एक गलत नंबर डॉयल कर दिया। उन्होंने रायपुर पुलिस के एक बड़े अफसर को फोन लगाया...मंत्रीजी ने कहा है...ये काम करना है। दूसरे दिन फिर फोन...मंत्रीजी पूछ रहे हैं, जो बताया था, वो हुआ नहीं। अफसर ठहरे 24 कैरेट वाले। सो, पलट कर ऐसा हड़काया कि अब फिर पीए की हिम्मत नहीं होगी अफसर को फोन लगाने की। वैसे, इससे पहले मुकेश गुप्ता का भी ऐसा औरा था कि मंत्री के पीए कौन कहें, मंत्रियों को बात करने से पहले दस बार सोचना पड़ता था।

अमित को विभाग

2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। हालांकि, उन्होंने ज्वाईन अगस्त में कर लिया था मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। हालांकि, इससे पहले वे डेपुटेशन कंप्लीट करने के बाद ज्वाईन करने आए थे मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। अमित केंद्र से लौटे हैं, तो विभाग भी ठीकठाक ही मिलने की उम्मीदें होंगी। ब्यूरोक्रेसी में जिस तरह की चर्चाएं हैं, उसके मुताबिक अमित को हेल्थ, पीडब्लूडी और नगरीय निकाय में से कोई एक विभाग मिल सकता है। बता दें, ये सिर्फ अटकलें हैं, तय तो सीएम विष्णुदेव साय को करना है। कई बार ज्यादा चर्चाएं होने पर सरकारें अपना डिसिजन बदल देती हैं।

चिप्स में डबल आईएएस

राज्य सरकार ने विश्वरंजन को सीओओ अपाइंट किया है। इससे पहले प्रभात मलिक सीईओ बनाए गए थे। छत्तीसगढ़ में यह पहला मौका होगा, जब चिप्स में दो-दो आईएएस होंगे। आईटी के इस युग में चिप्स के पास काम करने की अतंहीन संभावनाएं हैं। वैसे में और भी जब विष्णुदेव सरकार ऑनलाईन वर्किंग पर जोर दे रही है...वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विभागों के आईटी वर्क के लिए पहली बार 300 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। अब चिप्स को अपना पैटर्न दुरूस्त करना चाहिए। पिछले महीने व्यापम पुलिस की परीक्षा इसलिए नहीं ले पाया क्योंकि चिप्स के साफ्टवेयर को लेकर बात नहीं बन सकी। चिप्स कोर्ट केस को लेकर ऐसी परीक्षाओं से बचना चाहता है कि उसे भी पार्टी बनाया जा सकता है। अब सिस्टम में हैं तो कोर्ट-कचहरी उसका पार्ट होता है। चीफ सिकरेट्री को भी कई बार कोर्ट से नोटिस आ जाती है। इसका मतलब ये नहीं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साफ्टवेयर ही न तैयार करें।

गले का फांस?

राज्य सरकार ने नगरीय निकायों के अध्यक्षों से चेक पर साइन करने का अधिकार समाप्त कर दिया है। अब सिर्फ सीएमओ के ही चेक पर दस्तखत होंगे। हालांकि, रमन सिंह की 15 साल की सरकार में भी चेक पर सीएमओ के ही दस्तखत होते थे मगर पिछली सरकार ने ये व्यवस्था बदलते हुए डबल सिगनेचर अनिवार्य कर दिया था। सीएमओ के साथ चेयरमैनों की भी। मगर सरकार बदलते ही यह नियम बदल दिया गया। सरकार ने यह बदलाव अच्छा किया है। जनप्रतिनिधियों के चेक पर हस्ताक्षर करने का मतलब समझा जा सकता है, इसके पीछे मकसद क्या होगा। मगर यह भी सही है कि सीएमओ पर भी सरकार को नजर रखनी होगी। वरना नगरीय निकाय चुनाव के आचार संहिता प्रभावशील होने से पहले सीएमओ कहीं धूम मत मचा दें।

भाग्य क़े धनी सुनील बाबू

छत्तीसगढ़ में भाग्य क़े धनी राजनेताओं की बात होगी तो सुनील सोनी का नाम टॉप थ्री में होगा. सुनील रायपुर क़े महापौर रहे, रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन बनाये गए. फिर रायपुर लोकसभा से सांसद चुने गए. और अब विधायक निर्वाचित हुए हैं. वो भी थोड़े वोट से नहीं...46 हजार की लीड. अगर वोटिंग परसेंट ठीक ठाक रहता तो हो सकता था, गुरू गुड़ और चेला शक्कर हो जाता. गुरू यानी बृजमोहन अग्रवाल. गुरू विधानसभा चुनाव में 67 हजार से जीते थे. अलबत्ता, सुनील को जब टिकिट मिला तो चौक-चौराहों पर लोग नाक- भौं सिकोड़ कर रहे थे... बीजेपी ने ये क़्या किया. मगर या तो पार्टी ने ज्यादा मेहनत कर दी या फिर वही...सुनील सोनी भाग्य लिखा कर लाए हैं...कम वोटिंग में भी उन्हें बड़ी लीड मिल गई.

अंत में दो सवाल आपसे?

1. छत्तीसगढ़ क़े भाग्य क़े धनी तीन नेताओं क़े नाम बताइये?

2. छत्तीसगढ़ का अगला DGP कौन बनेगा?

शनिवार, 16 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: एसपी साहबों की क्लास

 तरकश, 17 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

एसपी साहबों की क्लास 

डीजीपी अशोक जुनेजा ने एसपी लोगों की इमरजेंसी बैठक बुलाई और उसमें ऐसा कुछ हुआ, जो राज्य बनने के बाद कभी नहीं हुआ। डीजी ने सबकी लानत-मलानत कर दी। बोलने में कोई मरौव्वत नहीं। एक-एक एसपी की कुंडली पहले से ही तैयार कर खुफिया चीफ अमित कुमार ने डीजी को दे दी थी। कुछ मामले डीजी के संज्ञान में भी थे कि कौन जिले में कप्तानी कर रहा है और कौन पोलिसिंग छोड़ बाकी सब कुछ। डीजीपी ने एक-एक एसपी की कारगुजारियों को सबसे सामने बताया और हिदायत भी कि अब बहुत हुआ। कुछ एसपी के बारे में ऐसी बातें सामने आई, जो एसपी जैसे पद की गरिमा के विपरीत है। उसे यहां लिखा नहीं जा सकता। रही-सही कसर इंटेलिजेंस चीफ अमित कुमार पूरी कर दी। साढ़े तीन घंटे की बैठक खतम होने के बाद साढ़े छह बजे एसपी पीएचक्यू से बाहर निकले, तो सबके चेहरे लटके हुए थे। कोई किसी को हेलो-हाय भी नहीं किया। चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठे और निकल लिए।

बड़ी देर कर दी!

वैसे तो कहा जाता है...जब जागे, तब सबेरा। मगर छत्तीसगढ़ पुलिस के संदर्भ में ये मौजूं नहीं। सरकार बदलते ही अगर पुलिस प्रमुख ने ये रौद्र रुप दिखाया होता तो छत्तीसगढ़ पुलिस की विकट स्थिति नहीं होती। लोहारीडीह में तीन लोगों की हत्या भी शायद नहीं हुई होती और सूरजपुर में कबाड़ी के हाथों पुलिस का एक पूरा परिवार तबाह होने से बच जाता। खैर, वरिष्ठ अफसरों के लिए उपर का इशारा भी महत्वपूर्ण होता है। डीजीपी और इंट चीफ अगर हरकत में आए हैं तो समझा जाना चाहिए कि अब सब कुछ अच्छा होगा। तीन महीने बाद फरवरी फर्स्ट वीक में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे मगर उनके इस तेवर का लाभ नए डीजीपी को मिलेगा। तब तक डीजीपी का यही रुख रहा तो छत्तीसगढ़ पुलिस कुछ हद तक पटरी पर आ जाएगी। बता दें, डीजीपी ने कहा है कि हर महीने वे रिव्यू करेंगे। ये काम अगर वे कर लिए तो काफी कुछ चीजें बदल जाएंगी।

डीजीपी साब, संरक्षण भी

बेशक छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग डिरेल्ड हो चुकी है। एसपी या उसके किसी भी पद पर होने का मतलब सिर्फ पैसा हो चुका है। मगर यह भी सही है कि अच्छे काम करने वाले एसपी को संरक्षण भी चाहिए। कवर्धा के एसपी राजेश अग्रवाल एक महीने से छुट्टी पर हैं। सिस्टम को यह भी पता लगाना चाहिए कि वास्तव में बीमार हैं या कोई और बात है। राजेश अग्रवाल की जगह जिसे कवर्धा का प्रभारी एसपी बनाया गया है, उनकी नियुक्ति कैसे हो गई, इसे भी मालूम करना चाहिए। डीजीपी साब को शायद ये पता है कि नहीं कि आज की तारीख में कोई भी अच्छा एसपी जिले में नहीं रहना चाह रहा। सभी इस कोशिश में हैं कि किसी बटालियन या फिर पीएचक्यू में ही सही...पोस्टिंग हो जाए। जाहिर सी बात है, अच्छे काम के लिए रिस्क लेना पड़ता है। उसमें खतरे भी होते हैं। सो, बिना संरक्षण के कोई अफसर आ बैल मार क्यों करेगा।

अब सिंगल कलेक्टर

बलरामपुर जिले से रिमुजिएस एक्का की विदाई के बाद अब पिछली सरकार वाले सिर्फ एक कलेक्टर बच गए हैं राहुल देव। बाकी का या तो जिला बदल गया या फिर उन्हें रायपुर वापिस बुला लिया गया। राहुल को मुंगेली में लगभग दो साल हो गया है। उनसे पहले मुंगेली में कोई भी कलेक्टर साल भर से अधिक नहीं रहा। कई तो जोर-जुगाड लगाकर चार-पांच महीने में निकल लिए। वैसे, राहुल का नाम भी कई बार बड़े जिलों के लिए चला मगर जब लिस्ट आती है, तो उनका नाम गायब रहता है। लोगों को ताज्जुब इस बात को लेकर है कि पिछली सरकार के नाम पर उन्हें हटाया भी नहीं जा रहा और न ही अपग्रेड कर बड़ा जिला दिया जा रहा।

कलेक्टर की पोस्टिंग

राहुल देव के मुंगेली के कलेक्टर बने रहने पर लोगों को ताज्जुब हो रहा, उसी तरह का आश्चर्य राजेंद्र कटारा के बलरामपुर जिले का कलेक्टर बनाने पर भी हो रहा है। राजेंद्र को बीजापुर से कुछ महीने पहले हटाया गया था, तब बीजेपी के लोगों की काफी सारी दिक्कतें बताई गई थी। मगर अब फिर बलरामपुर की कलेक्टरी? यदि ये पोस्टिंग सही है तो फिर बीजापुर से हटाना सही नहीं था?

बैचमेट के हवाले हेल्थ

कहते हैं, दो के विवाद में तीसरे को फायदा होता है। डायरेक्टर हेल्थ और एमडी एनआरएचएम के बीच भरी मीटिंग में जो हुआ, उसका खामियाजा ये हुआ कि पहले एनआरएचएम से जगदीश सोनकर को हटाया गया और अब डायरेक्टर हेल्थ से ऋतुराज रघुवंशी को। बताते हैं, इसमें एक की चक्कर में दूसरा भी निबट गया। बहरहाल, इस समय 2009 बैच की आईएएस किरण कौशल कमिश्नर हेल्थ एजुकेशन हैं और इसी बैच की डॉ0 प्रियंका शुक्ला डायरेक्टर हेल्थ और स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बन गई हैं। एसीएस के तौर पर मनोज पिंगुआ रहेंगे मगर सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने वाले 2009 बैच की दोनों महिला आईएएस होंगी।

ओपी की आत्मा रजत में?

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विधानसभा में बजट पेश करते समय जैसा भाषण दिया था, कुछ वैसा ही इंडस्ट्रियल पॉलिसी के विमोचन में इंडस्ट्री सिकरेट्री रजत कुमार ने दिया। बिना देखे, पढ़े...धड़धड़ाते हुए रजत कुमार बोल रहे थे, और लोग उन्हें देख रहे थे। मंत्री ओपी और रजत आईएएस में एक ही बैच था। 2005। ओपी बाद में इस्तीफा देकर सियासत में आ गए और रजत प्रमोट होकर अब सिकरेट्री बन गए हैं। दोनों में गहरी छनती भी है। विमोचन कार्यक्रम में ओपी भी मंच पर थे। कुल मिलाकर रजत ने औद्योगिक नीति 2024-30 की लांचिंग का ग्रेंड आयोजन कर अपनी लकीर बड़ी कर ली। इंडोर हॉल में आतिशबाजी के साथ रंगारंग आयोजन था। रजत ने बड़ा दिल दिखाकर पूर्व उद्योग सचिव अंकित आनंद को भी इस मौके पर याद ही नहीं बल्कि पॉलिसी बनाने का क्रेडिट भी दिया।

हर लिस्ट में चंदन

बलौदा बाजार कलेक्टर से हटने क़े बाद भी आईएएस चंदन कुमार कमजोर तो नहीं हुए मगर उनके साथ ये बात खास रही कि जब भी कोई आईएएस की लिस्ट निकलती है, आमतौर पर उसमें एक नाम चंदन कुमार का अवश्य होता है. कभी एक विभाग ऐड होता है तो कभी एक कम हो जाता है. दो रोज पहले सात आईएएस अफसरों का ट्रांसफर आदेश निकला, उसमें एक नाम चंदन कुमार का था. चंदन रिजल्ट देने वाले अफसर हैं मगर लगता है सिस्टम समझ नहीं पा रहा कि एक चंदन का कहां-कहां उपयोग करें.

तरकश के 16 साल

ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक घटनाओं पर आधारित साप्ताहिक स्तंभ तरकश ने 16 साल पूरा कर लिया है। छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार हरिभूमि से 2008 में इसका सफर चालू हुआ था। उसके बाद कभी रुका नहीं। किसी एक अखबार में संभवतः सबसे लंबे समय तक चलने वाला यह पहला स्तंभ होगा। इसके लिए पाठकों के साथ ही हरिभूमि पत्र समूह को आभार।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन होगा?

2. 11 महीने होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश मिनिस्टर ट्रेक पर क्यों नहीं आ रहे?