शनिवार, 8 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सड़क पर अफसर, बंगले में मंत्री

 तरकश, 9 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

सड़क पर अफसर, बंगले में मंत्री

पिछली कांग्रेस सरकार में चीफ सेक्रेटरी का इयरमार्क बंगला एक मंत्री को दिया गया तो ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध रह गई थी. चीफ सेक्रेटरी सिर्फ प्रशासनिक मुखिया नहीं नौकरशाही का गुरुर होता है, उसका आवास छीन जाने पर ब्यूरोक्रेसी पर क़्या गुजरी, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इसी तरह का एक वाक्या रायपुर से सटे जिले में हुआ है. मंत्री जी के लिए जिला पंचायत के सीईओ को बंगले से रुख़सत होना पड़ गया. चीफ सेक्रेटरी एपिसोड में राहत की बात ये थी कि अजय सिंह पद से हट चुके थे. इसी बीच बंगले का बोर्ड बदल दिया गया. यह मामला ज्यादा संजीदा है. जिला पंचायत सीईओ हाल ही में ट्रांसफर होकर आए थे. सरकारी बंगले में जैसे ही सामान जमाकर उसका सुख लेते, तब तक बेदखली का फरमान आ गया. दूसरा कोई कलेक्टर होता तो अपने सीईओ के सम्मान के लिए कुछ प्रयास करता, मगर उन्होंने तगादा कर और जल्दी मकान खाली करा दिया. ऐसे में सीईओ बेचारे क़्या करते. गृहस्थी का सामान क्लब में रखवा सर्किट हाउस में शरण लिए हैं.

सस्पेंशन...सजा या मजा

सरकारी मुलाजिमों के कदाचरण के केस में सस्पेंशन उस दौर में कार्रवाई मानी जाती थी, जिस समय सामाजिक प्रतिष्ठा नाम की कोई चीज होती थी। अब तो सस्पेंशन में अधिकारियों, कर्मचारियों को आधा वेतन मिल जाता है और जो पैसे कमाए हैं, उसे ठिकाने लगाने के लिए समय भी।

छत्तीसगढ़ में पिछले 24 साल से यही देखने में आ रहा...किसी बड़े स्कैम में अगर कोई अफसर 25-50 करोड़ कमा लिया तो इसमें से दो करोड़ खर्च करके रिस्टेट हो जाएगा और फिर अच्छी पोस्टिंग भी मिल जाएगी। राज्य प्रशासनिक सेवा का अफसर अगर सस्पेंड हुआ तो आगे चलकर आईएएस भी बन जाता है।

अभनपुर के चर्चित भारतमाला परियोजना मुआवजा स्कैम में सस्पेंड हुए एसडीएम जोर-जुगाड़ लगाकर जगदलपुर जैसे नगर निगम कमिश्नर की पोस्टिंग पा गए थे। आगे चलकर वे आईएएस भी बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। रायगढ़ के एनटीपीसी के लारा मुआजवा स्कैम में तत्कालीन एसडीएम सस्पेंड हुए, फरारी काट कर आए। बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गया। अब वे आईएएस भी बन जाएंगे। क्योंकि, उसी क्लीन चिट के आधार पर यूपीएससी ने उनका आईएएस अवार्ड रोका नहीं, बल्कि उनकी सीट रिजर्व रख दिया है।

बहरहाल, ये स्थिति पूरे देश की अफसरशाही की है। करप्शन उजागर होता है, मीडिया में खबरें छपती है...अच्छी सेटिंग नहीं तो अफसर सस्पेंड होता है। उसके बाद बहाल होकर फिर वही काम। छत्तीसगढ़ में कौवा मारकर टांगने का मुहावरा भी फेल हो गया है। दो आईएएस समेत दर्जन भर अफसर इस समय जेल में हैं, उसके बाद कौन सा करप्शन रुक गया। सरकार में बैठे लोगों को अब कुछ नया सोचना पड़ेगा.

राडार पर मंत्रियों के पीएस

10 में से करीब आधे मंत्रियों के यहां ई-ऑफिस पर काम होने लगा है। याने नोटशीट से लेकर आदेश अब ऑनलाईन हो गए हैं। मगर अभी भी कुछ मंत्री इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। कुछ मंत्रियों के पीए नहीं चाहते कि सिस्टम ऑनलाइन हो। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ई-ऑफिस के बाद मंत्रियों के यहां फाइलें रोकी नहीं जा सकेंगी।

इस समय सबसे तेज काम सीएम सचिवालय में हो रहा है। सीएम के यहां फाइलें इतनी फास्ट हो रहीं कि एक से डेढ़ दिन में उसे डिस्पोज कर दिया जा रहा। पीएस टू सीएम सुबोध सिंह खुद देख रहे हैं कि फाइलों में अनावश्यक विलंब न हो। मगर कई मंत्रियों के यहां अभी भी फाइलें डंप हो रही हैं। मंत्रियों के पीए की कारस्तानियां सीएम सचिवालय की नोटिस में है। पता चला है, विधानसभा सत्र के बाद इस पर कार्रवाई होगी। पहले मंत्रियों की नोटिस में इसे लाया जाएगा। यदि इसमें सुधार नहीं हुआ तो जीएडी उनकी छुट्टी करेगा। जाहिर है, शिकायत मिलने पर सरकार इससे पहले दो मंत्रियों के पीएस को हटा चुकी है।

मंत्रियों का प्रदर्शन

पिछले हफ्ते तरकश में एक सवाल था...10 में से आठ मंत्री सरकार के लिए लायबिलिटी हो गए हैं। खैर इस पर चर्चा कभी बाद में। अभी हम विधानसभा में मंत्रियों के प्रदर्शन की बात कर रहे हैं। सदन में जो हाल भूपेश बघेल के मंत्रियों का था, वही हाल विष्णुदेव मंत्रिमंडल का है। खासकर, तीन मंत्रियों का परफार्मेंस इतना खराब है कि प्रश्नकाल में उनकी निरीह हालत देखकर दया आ जाएगी। तीनों हर सवाल में घिरते हैं। इस सत्र में मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल का प्रदर्शन काफी सुधरा है। उनका हेल्थ विभाग जैसा भी हो मगर सदन में कंफिडेंस के साथ जवाब देने में वे निपुण हो गए हैं।

यही वजह है कि मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियांं की गैर मौजूदगी में श्यामबिहारी को प्रश्नकाल में जवाब देने का दायित्व सौंपा जा रहा है। 7 मार्च के प्रश्नकाल पर सबकी नजर थी। सवाल सबसे चर्चित स्कैम सीजीएमएससी के रीएजेंट खरीदी से जुड़ा था। इस पर वे अजय चंद्राकर जैसे विधानसभा के सबसे फास्ट बॉलर को झेल गए।

विपक्ष के विधायकों की बात करें तो बजट सत्र में उमेश पटेल का आश्चर्यजनक ढंग से प्रादुर्भाव हुआ है। उमेश बिना उत्तेजित या धैर्य खोते हुए टू द प्वाइंट प्रश्न पूछ रहे हैं, बल्कि दूसरे के प्रश्नों में पूरक प्रश्न भी कर रहे। बुजुर्ग महिलाओं को महतारी वंदन में 500 रुपए काटकर भुगतान करने का उन्होने प्रश्न उठाया और महिला विकास मंत्री ने कहा कि वे इसे ठीक कराएंगी। इसी तरह सत्ता पक्ष के सुशांत शुक्ला ने भी सर्पदंश की आड़ में करोड़ों के मुआवजा बांटने का मुद्दा उठाकर ध्यान खींचा।

मई के बाद बड़ी सर्जरी?

जैसी खबरें थीं, सरकार ने दो कलेक्टरों ही की पोस्टिंग की। वो भी दोनों जिलों के कलेक्टरों के डेपुटेशन पर जाने की वजह से। बहरहाल, 21 मार्च तक विधानसभा का बजट सत्र चलेगा। 24 को राष्ट्रपति आ रही हैं। 30 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी आएंगे। इसके बाद अप्रैल में सरकार गांवों में विकास कार्यों की मानिटरिंग से संबंधित योजना पर विचार कर रही है। इसमें मुख्यमंत्री के साथ ही अफसरों की चौपाल लगाई जा सकती है। चौपाल योजना यदि शुरू हुई तो फिर कलेक्टर लेवल पर बड़ी सर्जरी फिर मई के बाद ही होगा। तब तक इक्का-दुक्का, या कोई हिट विकेट हो जाए, तो बात अलग है।

आईजी पोस्टिंग

ब्यूरोक्रेसी के संदर्भ में विष्णुदेव साय सरकार की खास बात यह रही कि भारत सरकार से डेपुटेशन से जो भी आईएएस, आईपीएस अफसर लौटे, उन्हें महत्वपूर्ण पोस्टिंग से नवाजा गया। अमित कुमार से लेकर सोनमणि बोरा, रोहित यादव, मुकेश बंसल, रजत कुमार, अमरेश मिश्रा, अविनाश चंपावत सभी को अच्छी पोस्टिंग मिली। सीबीआई से लौटे आईपीएस अमित कुमार को खुफिया चीफ बनाया गया तो एनआईएस से आए अमरेश मिश्रा को रायपुर रेंज आईजी के साथ खुफिया चीफ की जिम्मेदारी दी गई। मगर सीबीआई से लौटे अभिषेक शांडिल्य को अभी इंटेलिजेंस में बिठाकर रखा गया है। इंटेलिजेंस में जबकि आईजी का कोई पद नहीं है। अभी तक आईजी या एडीजी लेवल के इंटेलिजेंस चीफ होते थे, जिनके नीचे एकाध डीआईजी, एआईजी का सेटअप था। मगर पांच साल सीबीआई में काम कर के लौटे अभिषेक की तरह गृह विभाग का ध्यान कैसे नहीं जा रहा, आश्चर्य की बात है। वैसे संभावना है, विधानसभा सत्र तथा प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर विजिट के बाद आईजी लेवल पर कुछ तब्दिलियां की जाए, उसमें अभिषेक शांडिल्य को किसी रेंज में पोस्टिंग मिल जाए।

लाल बत्ती और अटैची

विधानसभा सत्र के बाद निगम, मंडलों में नियुक्तियां होंगी. अब कोई ब्रेकर भी नहीं है. पंचायत चुनाव तक निबट गया है. नगरीय और पंचायत दोनों मे रिजल्ट भी अच्छे आएं हैं, सो अब इसे और टालने की गुंजाईश नहीं हैं. बीजेपी के भीतर भी लाल बत्ती को लेकर सरगर्मिया बढ़ गई है. पार्टी के लिए पसीना बहाने वाले लोग तो लाइन में हैं ही, कुछ ठेकेदार और कारोबारी नेता अटैची लेकर नेताओं के चौखटो पर दस्तक दे रहे हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें पैसा नहीं कमाना. उन्हें स्टेटस सिम्बल के लिए लाल बत्ती चाहिए.

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूखाग्रस्त माना जाने वाले सरकारी प्रेस की रेटिंग किस आईएएस अफसर ने बढ़ा दी?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि सरकार आईएएस रेणु पिल्ले को मुख्य सचिव बनाने जा रही है?

शनिवार, 1 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: तरकश से खुलासा

 तरकश, 2 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

तरकश से खुलासा

पिछले हफ्ते के तरकश (Tarkash) स्तंभ में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग में स्टेट इलेक्शन कमिश्नर बनने का जिक्र था। उसका लब्बोलुआब ये था कि फरवरी 2026 में अजय सिंह के रिटायर होने के बाद अमिताभ के सामने राज्य निर्वाचन आयुक्त का बेहतर विकल्प रहेगा।

तरकश की इस पोस्ट के बाद ब्यूरोक्रेसी से एक बड़ी जानकारी निकलकर सामने आई कि राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद अब छह साल या 66 वर्ष वाला नहीं रहा। पिछली सरकार में पता नहीं कब, इसे एक साल बढ़ाकर 67 कर दिया गया। अगर 66 साल की एज लिमिट होती तो अजय सिंह फरवरी 2026 में रिटायर हो जाते।

मगर अब 67 करने के साथ ही छह महीने अतिरिक्त का भी प्रावधान कर दिया गया है। अतिरिक्त इसलिए कि उस पद के काबिल कोई नहीं मिला तो छह महीने तक उन्हें कंटीन्यू किया जा सके। तभी ठाकुर राम सिंह साढ़े सात साल तक इस पद पर रह लिए। वैसे ठाकुर राम सिंह पोस्टिंग के मामले में पूरे कैरियर में बेहद किस्मती रहे।

रमन सिंह सरकार में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और रायगढ़ जिले की कलेक्टरी की। बिना ब्रेक इन चारों बड़े जिलों में वे 9 साल कलेक्टर रहे। इस रिकार्ड को कोई डायरेक्ट आईएएस न तोड़ पाया और न आगे कोई ब्रेक कर पाएगा। आईएएस से रिटायर होने के बाद रमन सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया। बाद में भूपेश बघेल सरकार आई तो उन्हें दुर्ग के कलेक्टर रहने का लाभ मिल गया।

डीडी सिंह सीएम सचिवालय में रहने के बाद भी हाथ मलते रह गए। और ठाकुर राम सिंह के लिए जीएडी से एक साल के लिए इस पद का कार्यकाल बढ़ाने का आदेश निकल गया। फिर छह महीने का बोनस भी। ऐसे में, अमिताभ जैन के लिए अब मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा कोई और विकल्प नहीं।

नए माफिया की इंट्री

छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन के एक एमडी ने बस्तर में बांस की ट्रांसपोर्टिंग करने वाले छोटे व्यवसायी को जमीन से उठाकर एक हजार करोड़ का आसामी बना दिया था। हालांकि, वक्त ने उसे अब सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। मगर अफसर भी कम थोड़े हैं। अब दूसरा चोपड़ा बनाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है।

नए मेडिकल माफिया का भोपाल से ताल्लुकात है। दो-एक साल पहले तक मध्यप्रदेश के हेल्थ विभाग में उसकी तूंती बोलती थी। मगर मोहन यादव की नई सरकार ने उसके खिलाफ मुकदमा कायम कर खेल खतम कर दिया। चूकि छत्तीसगढ़ में पुराने माफिया के रहते उसकी इंट्री नहीं हो सकती थी, सो उसके जेल जाने के बाद नए माफिया के रास्ते खुल गए।

सीजीएमएससी के अफसरों ने उसके लिए जगह तैयार करनी शुरू कर दी है। 44 लाख लोगों की सिकलसेल जांच के लिए न केवल पॉलिसी बदल दिया बल्कि टेंडर में ऐसे क्लॉज डाल दिए हैं कि भोपाल वाले के अलावा किसी और को नहीं मिल सकता।

सवाल यह है कि जब 80 लाख लोगों की इन हाउस सिकलसेल जांच हो चुकी थी तो उसका पैटर्न बदलकर पीपीपी मोड क्यों किया गया? फिर अजीबोगरीब शर्त...ज्वाइंट वेंचर वाली पार्टी ही इसमें अप्लाई कर सकती है। भोपाल वाली पार्टी ने ज्वाइंट वेंचर बनाकर रखा है। टेंडर में ऐसे कई शर्त रख दिए गए हैं, जो इस बात की चुगली कर रही कि किसी नए माफिया को छत्तीसगढ़ में स्थापित करने की तैयारी है।

हेल्थ में त्राहि माम

हेल्थ विभाग के डिरेल्ड सिस्टम को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने भले ही अमित कटारिया को स्वास्थ्य सचिव बना दिया। बावजूद इसके विभाग की भर्राशाही कम नहीं हो रही। जिलों के सीएमओ और सिविल सर्जन त्राहि माम कर रहे हैं। नेताओं के लोगों ने रैकेट बनाकर लूट मचा दी है...हर जिले में वसूली एजेंट। हर किसी को महीना चाहिए या फिर सप्लाई का आर्डर। दोनों में से कोई एक नहीं हुआ तो फिर सीएमओ, सिविल सर्जन को अगली लिस्ट में हटाने की चेतावनी।

ताज्जुब इस बात का है कि सीजीएमएससी या हेल्थ डायरेक्ट्रेट से उन्हें अ्रस्पतालों के रिक्वायरमेंट की लिस्ट कैसे मिल जा रही? वे लिस्ट लेकर पहुंच जा रहे...आप सीजीएमएससी को पैसा ट्रांसफर कीजिए, बाकी जेम पोर्टल को वे देख लेंगे।

सुबोध की चुनौती

पीएस टू सीएम सुबोध सिंह करप्शन रोकने के लिए ऑनलाइन वर्किंग पर जोर देते रहे हैं। माइनिंग और बिजली विभाग को उन्होंने ही ऑनलाइन किया था। राजस्व को भी उन्होंने पटरी पर लाने का प्रयास किया था मगर तब तक उनके डेपुटेशन को हरी झंडी मिल गई।

बहरहाल, उनके लिए बड़ी चुनौती होगी कि छत्तीसगढ़़ में ऑनलाइन सिस्टम भी करप्शन से अछूता नहीं रह गया है। जेम और भुईया पोर्टल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। भुईया पोर्टल लाया ही इसलिए गया था कि पटवारियों की कारगुजारी रुक जाए। मगर इसमें क्या हुआ...विधानसभा में सबने देखा। विधानसभा अध्यक्ष डॉ0 रमन सिंह को तल्ख नसीहत देनी पड़ गई...मंत्रीजी सिस्टम को वेंटिलेटर पर जाने से पहले ठीक कर लीजिए।

दरअसल, भुईया के जरिये पटवारी और तहसीलदार मालामाला हो रहे हैं। दस्तावेजों में कृत्रिम त्रुटि कर आम आदमी का जेब काटो। इसी तरह खटराल सप्लायरों के आगे बेचारा जेम पोर्टल असहाय नजर आ रहा। जेम की तोड़ के लिए सप्लायरों ने तीन-चार कंपनियां बना लिया है। इसमें होता ऐसा है कि टेंडर निकालने से पहले ही विभागों में सेटिंग हो जा रही...ये क्लॉज डाल दीजिएगा, बाकी हम देख लेंगे।

फिर अपनी ही तीनों कंपनियों से टेंडर डलवा काम हथिया लिया जा रहा। हेल्थ, सीजीएमएससी से लेकर सभी विभागों की खरीदी में ऐसा ही हो रहा। सरकार जेम से सरकारी खरीदी का ढिढोरा पिटती है, उधर जेम अवैध को वैध करने का पोर्टल बनकर रह गया है। सुबोध को इसे नोटिस में लेनी चाहिए।

सीएम के तेवर और संदेश

विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर सीएम विष्णुदेव साय के घंटे भर के भाषण की सत्ता के गलियारों में बड़ी चर्चा है। असल में, मुख्यमंत्री ने जिन कठोर शब्दों का प्रयोग किया, वह उनकी स्थापित छबि से मेल नहीं खाता।

पीएससी स्कैम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सिविल सेवा के अफसर शासन में सरिया की तरह होते हैं। पिछली सरकार ने सिविल सर्विस में भ्रष्टाचार का नकली सरिया लगा दिया गया। इशारे में उन्होंने महाभारत के पात्रों की तुलना करते हुए प्रोटेक्शन मनी और महादेव ऐप्प की भी बात कर डाली। जाहिर है, सीएम के इस बदले अंदाज में विरोधियों और भ्रष्ट सिस्टम के लिए बड़ा संदेश छिपा है।

राजा की दंड व्यवस्था

मनु स्मृति के मुताबिक राजा को दंड का रुप माना गया है...दंड से राजा प्रजा का शासन करता है...दंड से प्रजा का रक्षा होती है...दंड से प्रजा खुश रहती है। मगर छत्तीसगढ़ के साथ दुर्भाग्य यह रहा कि राज्य बनने के बाद दंड की बजाए भ्रष्टचारियों, धतकरमियों के साथ अतिशय उदारता बरती गई।

स्थिति यह है कि हर शाख पर उल्लू बैठा है...जिस विभाग में हाथ डालिये, 50-100 करोड़ का भ्रष्टाचार निकल आएगा। न मंत्री पर कोई कंट्रोल है और न अफसरों पर। जाहिर है, पीएससी 2003 में अगर चेयरमैन और एग्जाम कंट्रोलर के साथ कठोर कार्रवाई की गई होती तो पीएससी 2021 में सैकड़ों युवाओं का भविष्य खराब करने की टामन सोनवानी की हिम्मत नहीं होती।

पीएमटी परीक्षा का फर्जी टॉपर डॉक्टर बन मजे में नौकरी कर रहा है तो 12वीं बोर्ड की फर्जी टॉपर स्कूल में मास्टरनी बन गई। 2010 के रायगढ़ एनटीपीसी लैंड मुआवजा स्कैम में तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल ने एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के खिलाफ 2700 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को भेज सस्पेंड करवाया था। तत्कालीन एसपी राहुल भगत ने एफआईआर दर्ज कराया था। इस मामले में तीर्थराज को क्लीन चिट मिल गई।

इसका नतीजा यह हुआ कि अभनपुर के एसडीएम ने केंद्र के भारतमाला प्रोजेक्ट में 35 करोड़ की जगह 326 करोड़ का मुआवजा घोटाला कर दिया। राज्य बनने के बाद अनियमितता और भ्रष्टाचार के 500 से अधिक केसेज होंगे, जिनमें आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कार्रवाई हुई भी तो दिखावे वाली। सरकारों को प्रजा को सुखी रहने और अपना औरा स्थापित करने के लिए मनु स्मृति को फॉलो करना चाहिए।

रमन का रिकार्ड

वित्त मंत्री ओपी चौधरी 3 मार्च को दूसरी बार राज्य का बजट पेश करेंगे। बता दें, 24 साल में सबसे अधिक बजट पेश करने का रिकार्ड पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के नाम दर्ज है। अमर अग्रवाल की एक सियासी चूक की वजह से वित्त विभाग रमन िंसंह के पास गया और उसके बाद 2018 तक उन्हीं के पास रह गया। उन्होंने लगातार 12 बजट पेश किया।

अमर ने अगर इस्तीफा नहीं दिया होता तो 15 बजट पेश करने का रिकार्ड उनके नाम होता। अमर के इस्तीफे के बाद वित्त विभाग 17 साल के लिए मुख्यमंत्री के पास चला गया। जाहिर है, 12 साल रमन सिंह और उसके बाद पांच साल भूपेश बघेल ने वित्त संभाला। बहरहाल, रमन के बाद दूसरे नंबर पर भूपेश बघेल हैं। उन्होंने पांच बजट पेश किया। उनके बाद स्व0 रामचंद्र सिंहदेव और अमर अग्रवाल ने तीन-तीन बजट पेश किए।

पीसीसीएफ, वन मंत्री और धोखा

वन मंत्री केदार कश्यप 15 साल मंत्री रहे हैं, इसके बाद भी खुलकर सामने नहीं आ रहे तो इसकी वजह पीसीसीएफ का मैटर तो नहीं है? जाहिर है, सरकार बदलने के बाद तय हो गया था कि नया पीसीसीएफ अपाइंट किया जाएगा। बताते हैं, पीसीसीएफ श्रीनिवास राव ने खुद ही पेशकश की थी कि उन्हें हटाकर वाईल्डलाइफ में पोस्ट कर दिया जाए।

इसके बाद वन मंत्री केदार कश्यप ने सरकार से चर्चा कर अनिल राय को पीसीसीएफ बनाने की नोटशीट चलाई। मुख्यमंत्री से अनुमोदन भी हो गया। मगर दो दिन के लिए एसीएस फॉरेस्ट छुट्टी पर गए और खेला हो गया। दिल्ली से किसी अदृश्य शक्ति का फोन आया, उसके बाद अनिल राय की नोटशीट आसमान खा गया या जमीं निगल गई...कोई पता नहीं चला। उपर से अनिल राय के खिलाफ खबरें भी प्लांट होने लगी।

बताते हैं, इस विश्वासघात से केदार कश्यप का मन टूट गया। हालांकि, अरण्य के विरोध और एसीएस फॉरेस्ट से भिड़-भाड़कर वन मंत्री ने कैबिनेट से पीसीसीएफ के लिए पांच नए पदों का सृजन करा लिया है। मगर जिनको वे नए पीसीसीएफ बनाना चाहते हैं, उनसे भी उनसे वफादारी की उम्मीद नही करनी चाहिए।

वन विभाग के लिए दुर्भाग्य रहा कि पीसीसीएफ की कुर्सी पर मिलनसार और अच्छे व्यक्ति तो कई रहे, मगर विभाग को ताड़ने वाला कोई नहीं मिला। संजय शुक्ला की धमक जरूर थी, अगर वे दो साल पीसीसीएफ रह गए होते तो आज तस्वीर अलग होती। सुनील मिश्रा एक अच्छा नाम हो सकता है मगर वे इंटरेस्टेड नहीं, इसी साल अक्टूबर में उनका रिटायरमेंट है।

ये बनेंगे पीसीसीएफ

कैबिनेट से पीसीसीएफ के पांच अतिरिक्त पदों की मंजूरी मिली है। इसके बाद 93 बैच के कौशलेंद्र कुमार, आलोक कटियार, 94 बैच के अरुण पाण्डेय सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार और ओपी यादव पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे। ओपी यादव को वेटिंग प्रमोशन दिया जाएगा। अक्टूबर में सुनील मिश्रा के रिटायरमेंट से खाली पद पर ओपी को प्रमोट किया जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा में अगर अजय चंद्राकर और राजेश मूणत नहीं होते तो फिर विपक्ष का क्या होता?

2. छत्तीसगढ़ के 10 में से आठ मंत्री सरकार के लिए लायबिलिटी क्यों बन गए हैं?


शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सरकार बड़ी या अफसर

 तरकश, 23 फरवरी

संजय के. दीक्षित

सरकार बड़ी या अफसर

छत्तीसगढ़ में जमीन के धंधे में नेता से लेकर नौकरशाह तक ऐसे आकंठ डूबे हुए हैं कि इससे जुड़ा कोई अफसर अगर कोई बड़ा कांड भी कर दे तो उसका कोई बाला बांका नहीं हो पाएगा। हम बात कर रहे हैं आरआई विभागीय परीक्षा स्कैम का।

कमिश्नर लैंड रिकार्ड ऑफिस के जिन लोगों ने 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान आरआई एग्जाम में खेला किया, उसी पैटर्न पर...वही लोग 2023 के विधानसभा चुनाव और नई सरकार बनने के दरम्यान परीक्षा में घालमेल कर डाला। बवाल मचा तो दो-दो आईएएस अफसरों की कमेटी से जांच कराई गई।

जांच कमेटी के चेयरमैन केडी कुंजाम पर इतना प्रेशर था कि उन्होंने गोलमोल रिपोर्ट देते हुए अलग से जांच कराने की अनुशंसा कर दी। असल में, जांच कमेटी के कुछ लोग दूध-का-दूध, और....करने पर अड़ गए, इसलिए कुंजाम खुलकर क्लिन चिट नहीं दे पाए।

मगर अलग जांच के लिए लिखा तो इसकी लीपापोती के लिए राजस्व विभाग ने एसीएस होम को इंवेस्टिगेशन के लिए पत्र लिख दिया। जबकि, गृह विभाग कोई जांच एजेंसी नहीं है। एसीएस होम ने मीडिया से कहा भी, उन्हें थाने में रिपोर्ट दर्ज कराना चाहिए।

मीडिया में खबर उछली तो लैंड विभाग से जुड़े अफसर मंत्रालय के अफसरों का परिक्रमा कर आए। अब छत्तीसगढ़ के 97 परसेंट ब्यूरोक्रेट्स जमीन वाले हैं, तो फिर वे जमीन से जुड़े अफसर के खिलाफ कार्रवाई कैसे करते? मगर इतना ही पूछ लेते कि जब कोई मामला ही नहीं था तो भाई जांच कमेटी क्यों बनाई गई? एसीएस होम को पत्र क्यों लिखा जांच के लिए?

चलिए....कोई नहीं। न जाने कितने चीफ सिकरेट्री, एसीएस, पीएस सिकरेट्री और कलेक्टरों को भू-पति बनने में मदद की तो इसका ईनाम तो उन्हें मिलना चाहिए न।

विधायक जीते, बीजेपी हारी

छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय इलेक्शन बीजेपी के लिए ऐतिहासिक रहा तो पंचायत चुनाव में भी ट्रेंड कमोवेश वही रहा। जिन इलाकों में सत्ताधारी पार्टी को झटका लगा, उसके लिए वहां के विधायक और पार्टी के नेता जिम्मेदार हैं।

राजधानी रायपुर से लगे अभनपुर ब्लॉक के तीन जिपं सदस्य चुनाव हार गए तो सोशल मीडिया के स्टेट संयोजक जनपद सदस्य की सीट नहीं निकाल पाए। पता चला है, पार्टी ने जिन पार्टी समर्थित लोगों को चुनाव में उतारा था, वहां के लोकल नेताओं को पसंद नहीं आया। उनने अपने लोगों को पैरेलेल खड़ा कर दिया।

यही वजह रही कि अभनपुर में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। जशपुर में बीजेपी तीन सीट हार गई, उसके पीछे भी वहां के लोकल नेताओं की जिद रही। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज के भाई को बगीचा से टिकिट नहीं देने दिया। वजह? जशपुर के विधायक को अगला चुनाव बगीचा से लड़ना है।

अगर चिंतामणि के भाई जीत जाते तो...? हालांकि, बीजेपी नेताओं की तमाम जोर-आजमाइश के बाद भी चिंतामणि के भाई बगीचा से जीत गए। सूरजपुर और मनेंद्रगढ़ में भी ऐसा ही हुआ। आगे चलकर विधायक टिकिट का दावेदार न बन जाएं, इसलिए योग्य प्रत्याशियों का पत्ता काट दिया गया। संगठन मंत्री पवन साय को अनुशासन का डंडा चलाना चाहिए, क्योंकि इससे बीजेपी की अनुशासित पार्टी की छबि को धक्का लगा है।

मिनिस्टर लेट

22 फरवरी को मंत्रालय में विष्णुदेव कैबिनेट की अहम बैठक हुई। अहम इसलिए कि कैबिनेट में मंत्रियों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद विधानसभा में पेश किए जाने वाले बजट को हरी झंडी दी गई। ऐसे में मंत्री अगर विलंब से पहुंचेंगे तो बातें तो होगी ही।

दो मंत्री आज काफी विलंब से बैठक में पहुंचे। उनमें एक तो लेटलतीफी के लिए बदनाम हो चुके हैं। बहरहाल, मुख्यमंत्री ने कुछ बोला नहीं मगर बैठक के बाद मंत्रियों के बीच इस पर काफी देर तक खुसुर-फुसुर होती रही।

वैसे, ये प्रोटोकॉल के खिलाफ भी है। कैबिनेट में सीएम के पहुंचने से पहले मंत्रियों को पहुंच जाना चाहिए।

वैश्यों की पार्टी?

कुछ साल पहले तक बीजेपी अग्रवालों, मारवाड़ियों की पार्टी कही जाती थी। खासकर, छत्तीसगढ़ में वाकई दबदबा था। 2018 तक इस व्यवसायिक समुदाय से तीन-तीन मंत्री होते थे।

बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल और राजेश मूणत। स्पीकर भी गौरी शंकर अग्रवाल। छगन मूंदड़ा सीएसआईडीसी और संतोष बाफना पर्यटन बोर्ड चेयरमैन।

संगठन में भी काफी एकतरफा था...चार-से-पांच जिला अध्यक्ष तो होते ही थे। मगर समय का चक्र कहिए कि मंत्री और बोर्ड के चेयरमैन कौन कहें, आज की तारीख में बीजेपी के 33 जिला अध्यक्षों में एक भी इस समुदाय से नहीं हैं।

अमर अग्रवाल को जरूर मंत्री बनाए जाने की संभावनाएं हैं, मगर सिर्फ वैश्य समुदाय से होने से नहीं...इसके पीछे उनकी काबिलियत और मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत पसंद होगी। अलबत्ता, बीजेपी द्वारा रेखा गुप्ता के दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाए जाने से इस समुदाय से जुड़े नेताओं के चेहरे पर रौनक लौटी है।

बीजेपी की चाबुक

नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी ने ट्रिपल इंजन का स्लोगन दिया और जनता ने इसे हाथोहाथ लेते हुए एकतरफा जनादेश भी दे दिया। मगर इससे बीजेपी की चुनौतियां बढ़ गई है। रुलिंग पार्टी अब दूसरों पर ठीकरा नहीं फोड़ सकती।

छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार 01, 02 और 03 के दौरान पार्टी कई नगरीय निकायों की सीटें हार जाती थी। सो, शहरों के डेवलपमेंट का काम नहीं होने पर सरकार को विपक्ष पर आरोप लगाने का स्पेस मिल जाता था।

अब शहरी इलाकों में विकास कार्यों के साथ महापौरों, अध्यक्षों और पार्षदों पर लगाम रखने की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है, 2023 के चुनाव में जीतने वाले कई नए विधायकों की उच्छृंखलता से बीजेपी परेशान रही। उन्हें पटरी पर लाने में एक साल लग गए।

अब तो महापौर से देकर पार्षद तक भरे पड़े हैं। विधानसभा चुनाव 2028 में वे एंटी इंकाम्बेंसी का कारण न बन जाए, इसके लिए बीजेपी संगठन को अभी से चाबुक तैयार रखना होगा।

अफसरशाही में जातिवाद

अफसरशाही को जाति, धर्म और क्षेत्रवाद से अलग रहना चाहिए। मगर छत्तीसगढ़ में एक विशेष वर्ग के अफसर, सरकार और आम जनता के लिए नहीं, अपने वर्ग के लिए समर्पित हो गए हैं, ये ठीक नहीं।

ये अफसर जातिवादी संगठनों को चंदा दिलवाते हैं, उनके कार्यक्रमों में खुलकर हिस्सा लेते हैं बल्कि उनकी गोपनीय बैठकों में भी शिरकत कर रहे हैं। यदि ऐसा रहा तो अफसरशाही पर से जनता का विश्वास उठेगा। जीएडी को इसे देखना चाहिए।

सीआईसी कौन-1

राज्य सरकार ने तीनेक साल से खाली मुख्य सूचना आयुक्त सलेक्शन का प्रॉसेज प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए एसीएस मनोज पिंगुआ की अध्यक्षता में चार सचिवों की सर्च कमेटी गठित कर दी गई है।

संकेत हैं, सरकार आसन्न बजट सत्र में नए सीआईसी के नाम पर मुहर लगा देगी।

मगर सवाल उठता है बनेगा कौन? कुछ दिन पहले तक मुख्य सचिव अमिताभ जैन का नाम इस पद के लिए पक्का माना जा रहा था। दरअसल, पोस्ट विज्ञापित होते ही उन्होंने अप्लाई कर दिया।

मगर इसमें ट्विस्ट तब आया, जब पता चला अमिताभ के बाद निवर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा, पूर्व मुख्य सचिव आरपी मंडल और पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी ने भी आवेदन भर दिया है। इससे लगता है कि विवेक ढांड का इतिहास कहीं दुहरा न जाए।

सीआईसी कौन-2

सरजियस मिंज के रिटायर होने के बाद तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पर तत्कालीन चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड ने रुमाल रख दिया था। लिहाजा, करीब साल भर तक ये कुर्सी खाली रही। इसी बीच रेरा का गठन हो गया।

चमक-धमक वाले इस पद को देख ढांड का मन बदल गया। उन्होंने अप्लाई किया और रेरा के फर्स्ट चेयरमैन के लिए उनका सलेक्शन हो भी गया। अमिताभ के सामने भी इस तरह के विकल्प हैं। वे चाहें तो सीआईसी का मोह छोड़ राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए वेट कर सकते हैं।

अमिताभ के पास अभी राज्य योजना आयोग के व्हाइस चेयरमैन का पद अतिरिक्त प्रभार है। 30 जून को रिटायरमेंट के बाद वे इस पद पर कंटीन्यू कर सकते हैं। उसके बाद अजय सिंह के 11 फरवरी 2026 को रिटायर होने से राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद खाली हो जाएगा।

अमिताभ को सात महीने राज्य योजना आयोग में रहना होगा। तत्पश्चात उन्हें छह साल वाली पोस्टिंग मिल जाएगी। वैसे भी एमके राउत के बाद सीआईसी में अब कुछ खास बचा नहीं है।

2020 से सीआईसी का पद पांच साल से घटाकर तीन साल कर दिया गया है, बल्कि सुविधाओं में भी काफी कटौती कर दी गई है। कहने का आशय यह है कि अशोक विजयवर्गीय, सरजियस मिंज और एमके राउत के दौर वाला तामझाम इसमें नहीं बच नहीं गया है।

ऐसे में, अमिताभ के लिए तीन साल वाले सीआईसी से कहीं ज्यादा बेहतर राज्य निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग होगी। फरवरी में भी अगर वे ज्वाईन करेंगे तो इसमें उन्हें साढ़े पांच साल रहने का वक्त मिल जाएगा। ये समीकरण अगर काम किया तो फिर कोई पूर्व डीजीपी सीआईसी बन जाएगा।

यंग अफसर और विदेश

ये ठीक है कि विदेश का सैर-सपाटा अब बहुत खर्चिला नहीं रहा। लोवर मीडिल क्लास के लोग भी अब दो-एक चक्कर लगा आ रहे हैं तो फिर आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की तो बात ही नहीं। मगर पैसा है तो इसका ये मतलब नहीं...एक सेल्फ डिस्पिलीन होनी चाहिए...आंखों में पानी भी।

छत्तीसगढ़ के खासकर यंग अफसरों में यह देखने को आ रहा कि साल में वे दो-दो, तीन-तीन फॉरेन टूर कर ले रहे। पता नहीं, सरकार से दूसरी, तीसरी बार इजाजत मांगने की हिम्मत कैसे हो जा रही।

एसपी जिले से गायब

छत्तीसगढ़ सरकार ने कलेक्टर, एसपी के लिए एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि बिना अनुमति जिला मुख्यालय छोड़ने वालों की अब खैर नहीं। मगर कई कलेक्टर, एसपी जिला मुख्यालय कौन कहें, बिना इजाजत लिए कुंभ में डूबकी लगा आए।

पिछले दिनों दो पुलिस अधीक्षक बिना बताए गृह मंत्री से मिलने कवर्धा पहुंच गए थे। पुलिस मुख्यालय ने पूछा तो बताए गृह मंत्रीजी ने बुलाया है। इस पर पीएचक्यू ने अफसरों को यह कहते हुए फटकारा कि गृह मंत्री बुलाएं तो जाओ मगर जिला मुख्यालय छोड़कर जाने का सूचना तो दो।

असल में, पिछले कुछ सालों में कलेक्टर, एसपी इस कदर बेलगाम हो गए हैं कि उन पर जीएडी और पीएचक्यू के फारमानों का भी कोई असर नहीं हो रहा।

एक करोड़ की सरपंची

पंचायती राज ने सरपंचों को इतना अधिकारसंपन्न बना दिया है कि शहरों के बड़े-बड़े पार्षद उसके सामने फीके पड़ जा रहे। वर्तमान पंचायत चुनाव की ही बात करें...सरपंच पद का एक-एक प्रत्याशी 10 लाख से लेकर एक करोड़ तक खर्च कर रहा है।

उद्योग तो छोड़ दीजिए, जिन पंचायतों में मुरुम और पत्थर खदानें ज्यादा हैं, वहां बजट करोड़ को क्रॉस कर गया है। नगद नारायण में भी सरपंच आगे हैं। रायपुर, बिलासपुर जैसे शहरों में पार्षद या महापौर के लिए प्रति वोट 500 रुपए बांटे गए, वहीं गांवों में सरपंच के लिए एक वोट का रेट ढाई से तीन हजार तक पहुंच गया है।

दरअसल, सरपंचों के पास इन दिनों असीमित पावर हो गए हैं...उनके बिना एनोसी के आप कुछ कर ही नहीं सकते। अदद आटा चक्की लगाना होगा तो सरपंच बिना 20-25 हजार लिए एनओसी नहीं देगा। छत्तीसगढ़ के सैकड़ों सरपंच अगर स्कार्पियो और इनोवा मेंटेन कर रहे हैं तो आप समझ सकते हैं सरपंची का आउटकम कैसा होगा।

गांवों की जीडीपी टॉप पर

छत्तीसगढ़ के सरपंच प्रत्याशियों से ढाई-से-तीन हजार रुपए मिल ही रहे हैं, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य बांट रहे, वो अलग। एक घर में अगर चार वोट भी है तो गिरे हालत में 20-25 हजार आ ही जा रहा।

एक से अधिक प्रत्याशियों को टोपी पहनाने में सफल हो गए तो फिर और वृद्धि। आपको बता दें, इस समय गांवों में कैश का फ्लो ऐसा बढ़ गया है कि वित्त विभाग अगर कैलकुलेशन करा ले तो इस फरवरी महीने में छत्तीसगढ़ के गांवों की जीडीपी देश में टॉप पर होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जेल से छूटकर आए कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव क्या विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाएंगे?

2. कलेक्टरों की ट्रांसफर लिस्ट क्या अगले सप्ताह निकल जाएगी?

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: हिन्दुत्व की इंट्री!

 तरकश, 16 फरवरी

संजय के. दीक्षित

हिन्दुत्व की इंट्री!

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के नतीजों ने चौंकाया ही था, नगरीय निकाय के परिणाम ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है। बात महज सीटों की नहीं, जीतने वाली पार्टी का वोट शेयर और मार्जिन कभी ऐसा नहीं रहा।

रायपुर में मुस्लिम बहुत इलाके से एजाज ढेबर जैसे नेता को पराजय का सामना करना पड़ा। तो मीनल चौबे को 1.53 लाख की ऐतिहासिक लीड मिली।

बिलासपुर में ओबीसी को छोड़ दें तो भी मुस्लिम, क्रिश्चियन और दलितों के 40 हजार वोट निर्णायक हैं। कांग्रेस के प्रमोद नायक का चेहरा अपेक्षाकृत ज्यादा वजनदार और सौम्य था। उसके बाद भी पूजा विधानी 66 हजार मतों से जीत गई।

अंबिकापुर में डॉ0 अजय तिर्की की लोकप्रियता ऐसी कि कांग्रेस को छोड़िये, बीजेपी भी मान रही थी कि उन्हें 10 में से नौ सीटें मिल रही हैं। याने डॉ0 तिर्की की हैट्रिक में भाजपा को भी कोई संशय नहीं दिख रहा था। मगर तिर्की को भी हार का मुंह देखना पड़ा।

रायगढ़ में चाय बेचने वाले जीवर्द्धन चौहान 61 परसेंट वोट शेयर के साथ चमकदार जीत दर्ज करने में कामयाब हुए। कांकेर में 50 साल और आरंग में 25 साल से बीजेपी जीत के लिए तरस रही थी, इस चुनाव में ये दोनों नगरपालिका भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई। हालांकि, इससे कोई इंकार नहीं कि लोकल इलेक्शन में रुलिंग पार्टी को फायदा मिलता है।

बीजेपी का टिकिट वितरण और मैनेजमेंट भी बहुत बढ़िया रहा। नेताओं ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। फिर भी....बिना किसी करंट के ऐसे नतीजे नहीं आते। और आज के दौर में ऐसे करंट जाति और धर्म के बिना मुमकिन नहीं। छत्तीसगढ़ में जाति की राजनीति कभी परवान नहीं चढ़ सकी। लोगों ने इसे 2003 के विधानसभा चुनाव में भी देखा और 2023 में। मगर विधानसभा के बाद लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से लगता है छत्तीसगढ़ में दबें पांव हिन्दुत्व की इंट्री हो गई है।

मंत्रिमंडल का विस्तार?

नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव निबटने के साथ ही विष्णुदेव कैबिनेट विस्तार का जिन्न फिर बाहर आने लगा है। चुनाव के दौरान भी बीजेपी के अंदर इस पर बातें हो रही थी कि विधानसभा के बजट सत्र से पहले या उस दौरान भी नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। वैसे कोई ऐसा नियम भी नहीं है कि सत्र के दौरान कोई बडा काम नहीं हो सकता।

बहरहाल, कैबिनेट विस्तार सत्र से पहले हो या बाद में, इतना जरूर है कि नगरीय निकाय चुनाव के ऐतिहासिक नतीजों से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राजनीतिक तौर पर काफी स्ट्रांग हो गए हैं। याने अब उनके पंसदीदा मंत्रियों के शपथ लेने में कोई संशय नहीं।

दो एक्स एमएलए

नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बीजेपी ने एक और कांग्रेस ने दो डॉक्टरों को चुनाव मैदान में उतारा था। इनमें दो पूर्व विधायक थे। बीजेपी ने पूर्व विधायक और महासमुंद नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष डॉ0 विमल चोपड़ा को खडा किया था। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल को चिरमिरी से और डॉ. अजय तिर्की को अंबिकापुर से टिकिट दिया था। तीनों डॉक्टर चुनाव हार गए। चिरमिरी और अंबिकापुर में अपने प्रत्याशी को जीताने के लिए चरणदास महंत का यह बयान भी काम नहीं आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगला विधानसभा चुनाव महराज याने टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में होगा।

कांग्रेस का प्रत्याशी चयन

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा तो इसकी एक अहम वजह प्रत्याशी चयन भी रही। एक तो टिकिट फायनल करने में पार्टी ने काफी देर लगा दी, उपर से गुटीय लड़ाई आखिरी दौर तक जारी रही। 27 जनवरी को नामंकन का आखिरी दिन था और 26 जनवरी की शाम तक कांग्रेस में शह-मात का खेल चल रहा था। कांग्रेस के लोग भी स्वीकार करते हैं कि बिलासपुर और अंबिकापुर जैसे दो-एक नगर निगमों को छोड़ दें कांग्रेस ने ठीकठाक चेहरों को मैदान में उतारा नहीं।

रायपुर में पांच साल महापौर और पांच साल सभापति रहे प्रमोद दुबे की पत्नी को टिकिट दे डाला, वहीं चिरमिरी में डॉ. विनय जायसवाल को। पांच साल विधायक रहने के कारण उनकी एंटीइम्बेंसी थी ही, उनकी पत्नी चिरमिरी की महापौर रहीं। याने एक और एक ग्यारह हो गया। अपने लोगों को टिकिट देने के चक्कर में कांग्रेस नेताओं ने ऐसी गल्तियां कई जगहों पर की।

हर शाख पे उल्लू बैठे हैं...

शौक बहराइच का शेर...हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा...छत्तीसगढ़ के संदर्भ में एकदम सटीक बैठता है। छत्तीसगढ़ के जिस विभाग में हाथ डाल दीजिए, कोई-न-कोई स्कैम निकल आएगा। पीएससी परीक्षा से लेकर सीजीएमससी, आरआई परीक्षा, आयुष्मान योजना, पाठ्य पुस्तक निगम, पुलिस भर्ती, फॉॅरेस्ट गार्ड भर्ती, कालोनाईजर स्कैम...याने जिधर नजर डालिये, उधर स्कैम। सरकार भी परेशान और एसीबी भी हलाकान। लोग भी हैरान...हमर छत्तीसगढ़ को किसकी नजर लग गई, जिसको मौका मिला, वो लूटने से चूक नहीं रहा। सूरजपुर के डीईओ को देखिए रिटायरमेंट से 14 दिन पहले एक लाख रिश्वत लेते ट्रेप हो गया।

साल में 40 खोखा

पाठ्य पुस्तक निगम का कबाड़ घोटाला इस समय खूब चर्चा में है। दरअसल, यह निगम शुरू से बदनाम रहा है। इसमें सब कुछ फिक्स रहता है। साल में दो बार खेल होगा और इतना बड़ा कि उसके बाद कुछ करने की जरूरत नहीं। पहला कागजों के टेंडर में। 12 लाख मीट्रिक टन कागज खरीदी में कागजों के जीएसएम और ब्राइटनेंस का बड़ा रोल होता है। दो परसेंट जीएसएम और ब्राइटनेस कम हो गया तो 10 करोड़ का खेल हो गया।

इसी तरह बाजार से चार गुने रेट पर किताबों को छापने का टेंडर किया जाता है। उसमें 15 से 20 खोखा का जुगाड़। फिर हर साल 10 से 15 लाख किताबों कागजों में छपवाई जाती है। कुल मिलाकर पापुनि में 40 खोखा का काम हो जाता है। तभी तो वहां का एक जीएम सरकार से लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

कलेक्टरों का ट्रांसफर

पंचायत चुनाव की आचार संहिता खतम होने से एक रोज पहले इस बार विधानसभा का बजट सत्र प्रारंभ हो जाएगा। उधर, कलेक्टरों को बदला जाना भी अपरिहार्य हो गया है। धमतरी और दुर्ग की दोनों महतारी कलेक्टर दिल्ली डेपुटेशन पर जा रही हैं। जाहिर है, पंचायत चुनाव के बाद उन्हें रिलीव किया जाएगा। यद्यपि, एक मिथक बना हुआ है कि विधानसभा सत्र के दौरान अफसरों के ट्रांसफर नहीं किए जाते। मगर रमन सिंह की सरकार ने तीसरी पारी में दो बार इस मिथक को तोड़ लोगों को चौंका दिया था।

वैसे, विधानसभा की सत्र से कलेक्टरों को कोई वास्ता भी नहीं होता। प्रश्नों के जवाब नीचे का स्टाफ बनाता है...वह कलेक्टर कोई भी रहे सिस्टम अपना काम करता है। ऐसे में, इस बार विधानसभा सत्र के दौरान ही कलेक्टरों की लिस्ट निकलेगी, इसमें कोई संशय नहीं है।

हाजिरी 90 परसेंट, बट...

सरकार अगर चाह ले तो कुछ भी संभव है। मंत्रालय में सरकार ने टाईमिंग को लेकर मजबूत इच्छा शक्ति दिखाई, उसकी नतीजा यह हुआ कि उपर से लेकर नीचे के 80 परसेंट अफसर टाईम पर आने लगे हैं। अलबत्ता, कई तो 10 बजे से पहले महानदी भवन पहुंच जा रहे। दरअसल, सिस्टम मैसेज से चलता है। मुख्यमंत्री ने एक जनवरी को अफसरों की टाईमिंग को लेकर खरी-खरी बात की। उसके बाद सीएम सचिवालय हरकत में आया। पीएस टू सीएम ने आईएएस ग्रुपों में मैसेज किया...अनौपचारिक मैसेज यह भी हुआ कि सीएम सचिवालय अफसरों के अटेंडेंस की मानिटरिंग कर रहा है।

हालांकि, मानिटरिंग हो भी रही है। रोज दोपहर दो बजे हाजिरी चार्ट सीएम सचिवालय के एक अफसर के पास पहुंच जाता है। चार्ट में कोई बड़ा-छोटा नहीं...चीफ सिकरेट्री से लेकर सीएम सचिवालय तक के अफसरों का टाईम दर्ज किया जाता है। मगर बता दें, यह सुधार अभी नया रायपुर तक सीमित है। जिलों में वही पुराना ढर्रा चल रहा है। सीएम सचिवालय और जीएड को कलेक्टरों को टाईट करना पड़ेगा, तभी जिलों का वर्किंग कल्चर बदलेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि सीजीएमएससी की गंगा में डूबकी लगाने के लिए एक ब्यूरोक्रेट्स ने पार्टनरशीप में रायपुर से 50 किलोमीटर दूर दवाई की फैक्ट्री खोल ली है?

2. क्या टीएस सिंहदेव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का आदेश जल्द निकलने वाला है?

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: पड़ोसी गांवों, दो डीजीपी

तरकश, 9 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

पड़ोसी गांव, दो डीजीपी

छत्तीसगढ़ राज्य के 24 साल में अब तक 12 डीजीपी बने हैं। इनमें छह यूपी से रहे। प्रथम डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला, आरएलएस यादव, अशोक दरबारी, एएन उपध्याय, डीएम अवस्थी और अब अरुणदेव गौतम। वैसे यह जानकर आप चौकेंगे कि डीएम अवस्थी और अरुणदेव गौतम अगल-बगल जिले के ही नहीं बल्कि अगल-बगल गांव से हैं। डीएम कानपुर जिले के महौली गांव के रहने वाले हैं। और अरुणदेव फतेहपुर जिले के बॉर्डर गांव अभयपुर के। अभयपुर फतेहपुर जिले में जरूर आता है। मगर बॉर्डर के गांव होने की वजह से महौली और अभयपुर अगल-बगल में है। डीएम और अरुण आईपीएस बनने से पहले से एक-दूसरे को जानते थे। डीएम छत्तीसगढ़ के 10वें डीजीपी बने और अरुणदेव 12वें।

यूपी जीता, बिहार....

छत्तीसगढ़ के डीजीपी के लिए 92 बैच के दो आईपीएस अधिकारी प्रमुख दावेदार थे। पवनदेव और अरुणदेव गौतम। पवन बिहार से हैं और अरुण यूपी से। पवनदेव बैचवाइज सीनियर थे और अरुण उनके बाद। डीजीपी पद के दोनों प्रमुख दावेदार मुख्य पोलिसिंग से पिछले पांच-सात साल से बाहर थे, इसलिए 94 बैच के हिमांशु गुप्ता भी उम्मीद से थे। मगर गंगा किनारे वाले अरुणदेव की कुंडली में गुरू के घर में बुध बैठा है। मौनी अमावस्या से पहले वे प्रयागराज में अमृत स्नान करके आ गए थे। सो, उन्हें इसका लाभ मिल गया।

नए डीजीपी और चुनौतियां

अरुणदेव गौतम अभी प्रभारी डीजीपी हैं। यूपीएससी से पेनल आने के बाद फिर सरकार पूर्णकालिक डीजीपी अपाइंट करेगी। हालांकि, प्रभारी डीजीपी को ही आमतौर पर कंटीन्यू किया जाता है। सरकार ने अरुणदेव को इस पद के लिए चुना है तो इसमें कोई संशय नहीं कि आगे चलकर अपना मन बदल देगी। मगर इससे अरुणदेव की चुनौतियां कम नहीं हो जाती। नक्सल मोर्चे पर उन्हें बड़ा टास्क मिला है। मैदानी इलाकों की पोलिसिंग खतम हो चुकी है। एसपी से लेकर नीचे तक का अमला मनीराम की गिरफ्त में है।

पवनदेव के रिटायरमेंट में अभी चार साल बचे हैं। तो जीपी सिंह की सुपरसोनिक रफ्तार देखकर लोग हैरान हैं। लोगों ने देखा ही...अशोक जुनेजा 4 फरवरी की शाम रिटायर हुए, उससे चंद घंटे पहले जुनेजा की खाली जगह पर जीपी को डीजी बनाने डीपीसी हो गई। अलबत्ता, अरुणदेव का एक बड़ा प्लस है कि उनकी छबि साथ-सुथरी है। मगर सिर्फ इससे काम नहीं चलेगा। मृतप्राय जैसी हो गई पोलिसिंग में प्राण फूंकने के लिए उन्हें कुछ एक्सट्रा करना होगा।

गुप्त काल से पहले सिंहकाल?

अरुणदेव के डीजीपी बनने पर पुलिस महकमे में लोग खूब मौज काट रहे हैं। आईपीएस के व्हाट्सएप ग्रुपों में मैसेज चल रहा...देव युग के बाद गुप्त काल आएगा या उससे पहले सिंह काल प्रारंभ हो जाएगा। जाहिर है, 94 बैच में हिमांशु गुप्ता और 95 बैच में प्रदीप गुप्ता आगे चलकर डीजीपी के प्रबल दावेदार होंगे। मगर उससे पहले कहीं जीपी सिंह डीजीपी बन गए तो फिर उनका रिटायरमेंट 2030 में है। तब तक कई दावेदार रिटायर हो जाएंगे।

छह साल की एक पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईपीएस पवनदेव को पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में छह साल से ज्यादा वक्त हो गया है। हो सकता है, सरकार ने उनकी वरिष्ठता को ओवरलुक किया है तो उन्हें कोई सम्मानजनक पोस्टिंग दे। डीजी लेवल के प्रदेश में तीन पद हैं। जेल, होमगार्ड और लोक अभियोजक। जेल में इस समय हिमांशु गुप्ता डीजी हैं।

अरुणदेव के पुलिस प्रमुख बनने के बाद होमगार्ड अभी खाली है। वैसे जानकारों का कहना है कि 94 बैच के तीनों आईपीएस अधिकारियों को पीएचक्यू से अलग पोस्टिंग सरकार कर सकती है। क्योंकि, अरुणदेव 92 बैच के हैं, इसलिए पीएचक्यू में दूसरे नंबर के अफसरों तो कम-से-कम तीन-से-चार बैच जूनियर होना चाहिए। वरना, समन्वय गड़बड़ाता है। विश्वरंजन के समय तो आईजी बेस्ड पीएचक्यू हो गया था। सारे एडीजी, डीजी पीएचक्यू से बाहर हो गए थे।

अब मुख्य सचिव

डीजीपी अशोक जुनेजा का युग समाप्त होने के बाद छत्तीसगढ़ में अब नए मुख्य सचिव की चर्चाएं शुरू हो गई है। हालांकि, अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अभी चार महीने से ज्यादा समय बचा है मगर कार्यपालिका के इस सबसे बड़े पद के दावेदारों को लेकर अटकलों का बाजार फिर गर्म हो गया है। अमिताभ जैन के बाद सीनियरिटी में पहले नंबर पर रेणु पिल्ले हैं और उनके बाद सुब्रत साहू। चर्चाओं में आईएएस ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ का नाम भी है। अब देखना होगा, सरकार किस पर अपना भरोसा व्यक्त करती है। अलबत्ता, लोग तो चुटकी इस पर भी ले रहे कि दिल्ली से कोई पर्ची आ जाए, इससे पहले सरकार को अपना चयन कर लेना चाहिए।

पीसीसीएफ को अभयदान?

डीजीपी के साथ ही पीसीसीएफ श्रीनिवास राव के बदलने की अटकलें भी तेज थी। श्रीनिवास को पिछली सरकार ने सात आईएफएस अफसरों को सुपरशीड कर वन बल प्रमुख बनाया था। इस पर काफी बवाल मचा था। इस पद के दावेदारों की छत्तीसगढ़ में कमी नहीं है...वे हरसंभव प्रयास भी कर रहे हैं। मगर श्रीनिवास राव के औरा के सामने टिक नहीं पा रहे। पता चला है, उन्हें फिर से अभयदान मिल गया है।

बडी सर्जरी

नगरीय निकाय चुनाव के बाद विष्णुदेव साय सरकार सूबे में अहम प्रशासनिक सर्जरी करेगी। धमतरी, दुर्ग समेत आधा दर्जन कलेक्टर बदले जाएंगे। दुर्ग कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी डेपुटेशन पर जा रही हैं। सीजीएमएससी की एमडी को भी चेंज किया जाएगा। पता चला है, सरकार अब ठोक बजाकर पोस्टिंग करेगी।

असल में, उपर की सिफारिशों पर सरकार पोस्टिंगे दे देती है मगर गड़बड़झाला की जिम्मेदारी सिफारिश करने वाले नहीं लेते। पूरा ठीकरा सरकार पर फूटता है। याने खाए-पीए कुछ नहीं गिलास फोड़े बारह आना। सरकार की मुसीबत यह रहती है कि नेताओं की सिफारिश न मानें तो कहा जाता है सीएम हाउस सुन नहीं रहा और उनकी बात मान लिया तो सरकार की भद पिटती है। जाहिर है, सीजीएमएससी एमडी की इसमें कोई गलती नहीं। गलती बनवाने वालों की है।

कलेक्टर की दावेदारी

कलेक्टर बनने के लिए आईएएस अफसरों की दावेदारी प्रारंभ हो गई है। धमतरी और दुर्ग दोनों जिला खाली हो रहा है। दोनों ठीकठाक पोस्टिंग मानी जाती है। दोनों जिले राजधानी रायपुर से लगे हुए हैं। कलेक्टर बदलने वाले जिले में खैरागढ़ का नाम भी आ रहा है। पुअर परफार्मेंंस वाले दो-तीन जिलों के कलेक्टर और बदले जाएंगे।

इसके लिए ब्यूरोक्रेसी के गलियारों में जोर-तोड़ शुरू हो गई है। 2011 बैच के चंदन कुमार की कलेक्टर के रूप में इंट्री हो सकती है तो इस बैच के एक आईएएस को कलेक्टरी से वापिस बुलाया जा सकता है। सुबह से कैलकुलेटर लेकर बैठ जाने वाले दो-तीन कलेक्टर सरकार के राडार पर हैं। मनरेगा का काम ठेकेदारी में कराने वाले एक कलेक्टर की कुर्सी भी खिसक सकती है। सीएम सचिवालय कलेक्टरों के कार्यां का बारीकी से मूल्यांकन कर रहा है। काम कम, दिखावा ज्यादा वाले कलेक्टरों की अब नहीं चलेगी।

सीआईसी कौन?

एमके राउत के रिटायर होने के बाद पिछले तीन साल से खाली पडे़ मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्ति की प्रक्रिया तेज हो गई है। इस पद के लिए मुख्य सचिव अमिताभ जैन, निवर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा, पूर्व मुख्य सचिव आरपी मंडल और पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी समेत 58 आवदेन आए हैं।

सरकार ने जीएडी से आवदेनों की फाइलिंग करने कहा था। मगर स्कूटनी का एक लोचा आ गया है। पिछले महीने अंजलि वर्मा वर्सेज भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने सीआईसी के लिए कमेटी बनाकर स्कूटनी करने कहा था और यह भी कि अब बताना होगा कि किस आधार पर नियुक्ति की जा रही है।

हालांकि, ये बहुत बड़ा इश्यू नहीं है। जीएडी स्कूटनी कमेटी बनाने की तैयारी कर रहा है। कह सकते हैं...सीआईसी की नियुक्ति जल्दी होगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि अमिताभ, जुनेजा, मंडल और डीएम में से किसे सीआईसी की कुर्सी मिलती है। वैसे सीटिंग चीफ सिकरेट्री का पौव्वा ज्यादा होता है मगर निवर्तमान डीजीपी को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता।

यद्यपि, जुनेजा को गृह विभाग का सलाहाकार बनाए जाने की भी खबरे तैर रही हैं। जुनेजा से पहले आरएलएस यादव, आरएल वर्मा और आरपी मोदी सलाहकार रह चुके हैं। यादव और वर्मा अजीत जोगी के शासनकाल में और मोदी रमन सिंह के समय एडवाइजर रहे। बहरहाल, बजट सत्र के दौरान सीआईसी के लिए सलेक्शन कमेटी की बैठक हो सकती है।

ईवीएम पर ठीकरा

छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के लोग अगर अभी से ईवीएम को निशाने पर लेने लगे हैं, तो इसका मतलब 15 फरवरी को कुछ अलग होने वाला है। दरअसल, कांग्रेस इस चक्कर में धोखा खा गई कि चुनाव मई से पहले नहीं होगा। सो, तैयारी रही नहीं उपर से आपसी गुटबाजी को रोकने के लिए पार्टी ने कोई कदम नहीं उठाया। छत्तीसगढ़ में सरकार होने के बाद भी प्रदेश प्रभारी नीतीन नबीन कई राउंड के दौरे कर गए मगर कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट का पूरे चुनाव में कोई पता नहीं चला।

उधर, रही-सही कसर नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने महाराज के नेतृत्व में अगला चुनाव कराने का राग अलाप कर पूरा कर दिया। जंग में जब आमने-सामने सेना खड़ी हो, उस दौरान नए कमांडर की चर्चा छेड़ दिया जाए तो जाहिर है कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ेगा ही। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि सीएम विष्णुदेव साय के हाथ की लकीरें पूर्व मुख्यमंत्रियों से भी ज्यादा सूर्ख हो गई है। सियासी पंडितों का कहना है कि इस बार ऐसे नतीजे आएंगे, जो कभी नहीं आए। जाहिर है, राज्य के मुखिया के खाते में ही ये क्रेडिट जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों में बीजेपी और कांग्रेस के कितने महापौर चुने जाएंगे?

2. कौन ऐसी अदृश्य शक्ति है, जो सरकार के निर्देशों पर बनी जांच रिर्पोटों को दबवा दे रही है?

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: पार्टनरशिप, धोखा और मौत

 तरकश, 2 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

पार्टनरशिप, घोखा और मौत

सीजीएमएससी के अरबपति सप्लायर के करिश्माई प्रोग्रेस को जानकार आप हैरान रह जाएंगे। एक दशक पहले तक वह बस्तर में लकड़ी ढुलाई का काम करता था। उस दौरान वहां पोस्टेड एक आईएफएस अधिकारी के संपर्क में आया और वह उसके लिए टनिंग प्वाइंट साबित हुआ।

अफसर के संरक्षण में पहले उसने बांस का खेला शुरू किया। जंगल विभाग के अच्छे बांसों को रिजेक्टेड बांस के रूप में खरीदता और उसे चार गुना रेट में बाजार में बेच देता। कुछ दिन बाद आईएफएस ने उपर सेटिंग करके रायपुर स्थित कारपोरेशन में अपनी पोस्टिंग करा ली। चूकि दोनों में ट्यूनिंग बैठ गई थी, इसलिए अफसर ने सीजीएमएससी में आरोपी सप्लायर का रजिस्ट्रेशन करा दिया।

इसके बाद संगठित लूट का सिलसिला चालू हो गया। पता चला है, सप्लायर ने दो-तीन कंपनियों में अफसर को पार्टनर बना लिया और उनका कमीशन उसमें लगा देता था। 2018 के एंड में कुछ आरटीआई वालों को इस घपले की भनक लग गई, वे जानकारियां निकालने लगे। इससे अफसर बेहद परेशान हो उठे...कुछ महीने बाद ब्रेन हैम्ब्रेज से उनकी मौत हो गई।

उनके जाने के साथ ही अफसर का करीब 70-75 खोखा डूब गया, जिसे उन्होंने आरोपी सप्लायर की कंपनी में लगाया था। सप्लायर ने सिर्फ इतनी हमदर्दी दिखाई कि अफसर के एक बेहद निकट परिजन की शादी का खर्चा उठाया और एक करीबी परिजन को फ्लैट खरीदकर दे दिया। चूकि अफसर अब इस दुनिया में नहीं, इसलिए इससे अधिक कुछ लिखना मुनासिब नहीं होगा।

आईएएस का साला बेईमान

पीएससी के एक बड़े पोस्ट पर काम कर चुके रिटायर अफसर सरगुजा में पोस्टिंग के दौरान बड़े स्तर पर जमीनों की खरीदी की थी। चूकि सरकारी अधिकारी थे, सो अपने नाम पर खरीदते तो फंस जाते, इसलिए साले के नाम पर जमीनों की रजिस्ट्री कराई।

अफसर जब आईएएस से रिटायर हुए तो उन्होंने साले से कहा कि जमीनों को मेरे नाम पर रजिस्ट्री कर दें। मगर साले के मन में खोट आ गया था, उसने जमीनें देने से साफ इंकार कर दिया। अफसर ने सरगुजा के कलेक्टर, आईजी लेवल के अफसरों से बड़ी चिरौरी की, साले को चमकाकर जमीन वापिस करा दें मगर बात बनी नहीं। अब जीजा और साला दोनों सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं।

साले ने जीजा से बेईमानी की, उपर से उनकी आड़ में बेरोजगारों को नौकरी दिलाने कई करोड़ वसूल लिया। बहरहाल, ये तो एक बानगी है...भ्रष्टाचार से अर्जित 50 परसेंट से अधिक संपत्तियों का यही हश्र होता है। धन के भूख में अफसर और नेता नौकर-चाकर, ड्राईवर, नाते-रिश्तेदारों के नाम पर संपत्तियों का पिरामिड खड़ा करते रहते हैं, मगर बाद में उन्हीं के लोग अंगूठा दिखा देते हैं। ऐसी अर्जित संपत्तियों को लास्ट में कोई भोगने वाला नहीं होता या फिर घर-परिवार वालों के बीच झगड़ा-फसाद का जड़ बनता है।

हमनाम का चक्कर

राज्य सरकार ने यशवंत कुमार की जगह आईएएस सीआर प्रसन्ना को राजभवन का नया सचिव अपाइंट किया है। बताते हैं, सरकार ने राजभवन से पेनल भेजा था, उसमें प्रसन्ना का नाम शामिल था। वहां किसी ने प्रसन्ना के बारे में पूछा तो एक व्यक्ति ने तपाक से कह दिया...ठीक है।

प्रसन्ना हायर एजुकेशन सिकरेट्री हैं, इस लिहाज से भी उनका राजभवन में रहना अच्छा होगा...आखिर, राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। प्रसन्ना के नाम को हरी झंडी का मैसेज उपर चला गया और शाम तक राजभवन के नए सिकरेट्री की पोस्टिंग भी हो गई। मगर जब पोस्टिंग आदेश निकला तो लोग चौंक गए...लोगों के मुंह से बरबस निकल पड़ा...ये क्या हुआ।

दरअसल, छत्तीसगढ़ में प्रसन्ना नाम के दो आईएएस हैं। एक सीनियर प्रसन्ना और दूसरा जूनियर प्रसन्ना। सीनियर का नाम आर प्रसन्ना है, वे 2004 बैच के आईएएस हैं। और जूनियर का नाम सीआर प्रसन्ना है। ये 2006 बैच के आईएएस हैं। आर प्रसन्ना सिकरेट्री हायर एजुकेशन हैं। इसे कहते हैं हमनाम का चक्कर। राजभवन जाना किसी को था और चला कोई गया। हालांकि, ये नाम के धोखे में हुआ या कोई बात होगी, जीएडी बेहतर बता पाएगा।

नाम टेंट-कुर्सी, खेल 100 करोड़ का

फायनेंस के अफसर पाई-पाई जोड़कर राज्य का खर्चा चला रहे हैं, ऐसे में टेंट, कुर्सी के नाम पर पीडब्लूडी के अफसर साल में 100 करोड़ का चूना लगा दें, तो इसे आप क्या कहेंगे। सरकारी कार्यक्रमों, मंत्रियों के दौरे के नाम पर टेंट, कुर्सी का यह खेला पिछले कई बरसों से बदस्तूर चल रहा है।

ओवर बिलिंग के इस खेल में 80 परसेंट हिस्सा उपर के अधिकारियों को जाता है। टेंट वालों को मिलता है सिर्फ 20 परसेंट। इस 20 परसेंट में भी कई टेंट वाले करोड़ों में खेल रहे तो इससे आप समझ सकते हैं कि ओवर बिलिंग का लेवल कितना हाई होगा। दरअसल, छत्तीसगढ़ के रग-रग में भ्रष्टाचार समा गया है।

आखिर सीजीएमएससी को छह महीने पहले तक कौन जानता था, कि वहां के सप्लायर पांच-सात साल में 50 लाख से एक हजार करोड़ का आसामी बन गया। पीडब्लूडी के टेंट-कुर्सी का खेला भी इसी तरह से दबा हुआ था। 80 परसेंट कमीशन मिलता है, इसलिए अफसर भी चाहते हैं कि जितना अधिक बिल बनेगा, उनका हिस्सा उतना बढ़ेगा।

फायनेंस अधिकारियों को एक बार इस टेंट, कुर्सी के खेला की तरफ भी देखना चाहिए। क्योंकि, इसमें खजाने को बड़ा बट्टा लगाया जा रहा है। पीडब्ल्ूडी के बड़े अफसरों से लेकर जिले के कलेक्टरों तक को इसका हिस्सा जाता है। सरकारी और वीआईपी कार्यक्रमों के लिए आखिर खर्च की कोई लिमिट तो तय होनी चाहिए न। फिर वाजिब खर्च में किसी को कोई एतराज नहीं होगा। यदि अफसरों को 80 परसेंट हिस्सा पहुंचाने के लिए बिलिंग की जा रही तो ये गलत है।

करप्शन का ट्रैक्टर

आमतौर पर पीडब्लूडी, इरीगेशन, आबकारी और फॉरेस्ट को कमाई वाला विभाग माना जाता है मगर छत्तीसगढ़ में लेबर वेलफेयर से लेकर एग्रीकल्चर में भी अफसर मालामाला हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में हाथकरघा विभाग में भी हाथ साफ करने के उदाहरण रहे हैं।

असल में, अफसर इतने हुनरमंद हैं, कि उन्हें आप खराब-से-खराब विभाग में भेज दीजिए, वे गागर में सागर पैदा कर देंगे। बहरहाल, अभी बात किसानों के ट्रैक्टर की सब्सिडी की। भारत सरकार ट्रैक्टर खरीदने पर किसानों को फिफ्टी परसेंट सब्सिडी देती है। इसके लिए एग्रीकल्चर के चेम्स पोर्टल में ऑनलाइन अप्लाई करना पड़ता है।

हमारे एक करीबी रायपुर के एक डीलर के पास टै्रक्टर खरीदने पहुंचे। डीलर ने रेट बताया आठ लाख। आठ लाख का उसने कोटेशन भी दे दिया। उन्होंने जैसे ही यह कहा कि वे चेम्स पोर्टल से खरीदना चाहते हैं, डीलर ने दो लाख रेट बढ़ाकर 10 कर दिया। क्योंकि, चेम्स में मैनुफैक्चरर सप्लाई रेट 10 लाख है।

अब आप भी हैरान होंगे कि सेम कंपनी का मैनुफैक्चरर रेट 10 लाख और उसी कंपनी का सेम मॉडल 8 लाख में कैसे? तो इसका जवाब यह है कि छत्तीसगढ़ में हर साल चेम्स पोर्टल से 400 के करीब किसानों द्वारा ट्रैक्टर खरीदी जाती है। उपर का दो लाख रुपए चेम्स के अफसरों के पास पहुंच जाता है।

यानी साल का आठ करोड़। ये तो सिर्फ एक ट्रैक्टर का मद है। कृषि में मशीनों से लेकर बीज, कीटनाशक और फर्टिलाइजर का करोड़ों का बजट होता है। सरकारें किसानों की हितैषी होने का ढिढोरा पिटती रहती हैं, उधर अफसर उनकी जेब काटते रहते हैं।

ट्रैक्टर अगर बाजार रेट से आठ लाख में मिलता तो किसानों को चार लाख ही जेब से लगता। बाकी का चार लाख सब्सिडी हो जाती। बता दें, दिसंबर 2024 में शपथ लेने के बाद मंत्री रामविचार नेताम से अफसरों ने सबसे पहली फाइल चेम्स पोर्टल से खरीदी की कराई थी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है...जिस तरह पुलिस में ट्रांसपोर्ट की पोस्टिंग के लिए बोली लगती है, उसी तरह सीजीएमएसी में इंजीनियरों के डेपुटेशन के लिए बड़ी बोली लगती है?

2. कांग्रेस शासन काल में लंबे समय तक पीडब्लूडी के ईएनसी रहे अफसर को फिर से ईएनसी के लिए दांव क्यों लगाया गया है?