शनिवार, 10 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

 


तरकश, 11 मई 2025

संजय के. दीक्षित

प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

कुछ दिन पहले कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के ट्रांसफर में सरकार ने एकाध सर्जिकल स्ट्राईक किया था। दीगर राज्य के एक बड़े नेता की सिफारिशी कलेक्टर की हरकतें जब सीमा को लांघने लगी तो सरकार ने उनकी छुट्टी कर दी। मगर टारगेट अभी भी कई हैं। सूबे में ऐसे अफसरों की कमी नहीं, जो सिफारिशों के बल पर अंगद की तरह कुर्सी पर जमे हुए हैं। किसी के लिए इस राज्य के नेता का फोन आता है, तो किसी के लिए फलां स्टेट से। पिछली कांग्रेस सरकार में एक महिला आईएएस ने दिल्ली बीजेपी के एक ऐसे बड़े आदमी से फोन कराया कि विरोधी सरकार होने के बाद भी कोई आह-उंह नहीं हुआ...स्टेट में ज्वाईनिंग का नियम तोड़ सरकार ने चुपके से ऐसे आर्डर निकाल दिया कि किसी को पता नहीं चल पाया। जबकि, ऋतु सेन को छत्तीसगढ़ आकर ज्वाईन करना पड़ा, फिर उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग मिली। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ये सभी सर्विसों में हो रहा है...अफसर परिस्थितिजन्य फायदा उठा रहे हैं। कायदे से तगड़ा सर्जिकल स्ट्राईक की जरूरत है। सरकार जब तक योग्य और काबिल लोगों की फील्ड में पोस्टिंग नहीं करेगी, तब तक उसके गुड गवर्नेंस का मिशन पूरा नहीं होगा। सिफारिशी पोस्टिंग वाले 10 परसेंट अधिकारी ही सरकार के सिस्टम को पलीता लगा रहे हैं।

पीएचक्यू का टॉलरेंस

भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान मानपुर-मोहला पुलिस ने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के फौजी के छोटे भाई को इसलिए दो दिन थाने में बिठा लिया कि उसे एक लाख रुपए रिश्वत नहीं मिला। मामला छत्तीसगढ़ से खेती-किसानी के लिए एक जोड़ी बैल खरीदकर ले जाने का था। मोहला-मानपुर पुलिस ने मवेशी तस्करी का केस बनाने की धमकी देकर उसे हिरासत में ले लिया। इस बीच पीड़ित युवक की मां चल बसी...अंत्येष्टि में टाईम पर गांव नहीं पहुंच पाने पर लोगों का गुस्सा भड़क गया। बात महाराष्ट्र से होते हुए छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय तक पहुंची। अफसरों ने मानपुर-मोहला के बड़े अफसर को फोन लगाकर पूछा, तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। जिले के अफसर ने कहा...सर, रिश्वत की रकम वापिस हो गई है तो अब क्या कार्रवाई की जाए। पीएचक्यू नाराज हुआ, तब जाकर अफसर ने अपने प्रिय वसूलीबाज थानेदार को सस्पेंड किया। याने दूसरे राज्य में छत्तीसगढ़ का नाम खराब करने की सजा सिर्फ थानेदार का निलंबन। इससे ज्यादा पीएचक्यू कुछ कर भी नहीं सकता। कौवा मारकर टांगने का पावर उसके पास है नहीं। कुछ एक्सट्रा रसूखदार केस में सिस्टम भी हाथ खड़ा कर देता है। ऐसे में फिर पोलिसिंग की बात करना बेमानी है।

कप्तान....पानी-पानी

इस सरकार में पुलिस मुख्यालय के अफसरों को कम-से-कम इस बात का फ्रीडम मिला है कि वे पुलिस अधिकारियों को आईना दिखा सकते हैं। इस मौके का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। पीएचक्यू के प्रेशर में 200 करोड़ का वाहन घोटाले पर नकैल कसा गया है। पिछले दिनों एसपी कांफ्रेंस में खुफिया चीफ अमित कुमार ने एसपी लोगों से दो टूक कहा कि न मैं और न डीजीपी साब...किसी ने एक टीआई की नियुक्ति को लेकर फोन किया होगा। तुमलोग अपने मन से थानेदारों की नियुक्ति कर रहे हो...फिर क्राईम काब में क्यों नहीं आ रहा। इस पर एसपी लोग बगले झांक रहे थे।

भावी CS एसी में और बेचारे...

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी सुशासन तिहार में लगातार जा रहे हैं। अमिताभ के रिटायरमेंट में अब बमुश्किल 40 दिन बच गए हैं। ऐसे में, बेचारे का मई की गरमी में घूमना लोगों को इसलिए खटक रहा कि जिनको उनके बाद प्रदेश की प्रशासनिक कमान संभालनी है, वे मंत्रालय के एसी कमरों में बैठे हुए हैं और जो पिछले पांच साल में ऐसे कई दौरे कर चुके हैं, वे जाते-जाते तपती धूप का सामना कर रहे हैं। हालांकि, सरकार की भी मजबूरी है। जिन्हें चीफ सिकरेट्री बनाना है, उसे लेकर सीएम अपने साथ घूमने लगे तो फिर सारा कुछ पहले ही एक्सपोज हो जाएगा। फिर भी, नए सीएस के लिए यह अच्छा मौका था...प्रदेश की जमीनी हकीकत से वाकिफ होने का...सारे कलेक्टरों का नब्ज भी उन्हें पता चल जाता। अब 30 जून को जो नया मुख्य सचिव बनेगा, उनको क्या पता रहेगा कि सीएम का ये 36 पेज वाला एजेंडा क्या है और कलेक्टरों ने इसमें क्या रिस्पांस दिया है।

खाता-बही वाले मंत्रीजी

खरीदी-सप्लाई का हिस्सा न पहुंचने से पीए ने मंत्रीजी को चुगली कर दी...साब जिले वाला एजेंट पैसा दबा दे रहा है। फिर क्या था...मंत्रीजी ने राजनांदगांव के अधिकारियों को बुला लिया। फिर उनके सामने खाता-बही खोलकर बैठ गए...इतने की खरीदी हुई तो फिर इसका 15 परसेंट पहुंचाए क्यों नहीं? अधिकारी बेचारे गिड़गिड़ा रहे थे...सर, टेंडर नियम से हुआ है...इसमें कुछ मिलता नहीं...मगर मंत्रीजी मानने के लिए तैयार नहीं थे...दो टूक धमकी दे डाले...ऐसा नहीं चलेगा। दरअसल, मंत्रीजी सभी जिलों में एक-एक प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर रखे हैं। इस वजह से पीए कसमसा रहे हैं। इस वजह से मंत्री के पीए और एजेंटों में टकराव की स्थिति निर्मित होती जा रही है। सही भी है...पेट की चोट पीए लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे।

समझदार मंत्री, समझदार अफसर

होशियार मंत्री और अफसर अपने स्टॉफ की नियुक्ति के मामले में बड़े चौकस रहते हैं। वे तगड़ी स्क्रीनिंग के बाद अपने पीए अपाइंट करते हैं। रमन सरकार के दौरान दो मंत्री इस मामले में हमेशा अलर्ट रहे तो पिछली कांग्रेस सरकार में किसी भी मंत्री ने इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान नहीं दिया। इस सरकार की, तो 10 में से सिर्फ एक मंत्री ऐसे हैं, जिनके स्टॉफ को अहम मामलों की भनक नहीं लग पाती। अफसरों के साथ भी यही है। ब्यूरोक्रेसी में जो अफसर स्टडी नहीं करता, उन्हें पीए अपने इशारों पर नचाते हैं। कई नौकरशाहों के पीए ऐसी फाइलों पर हस्ताक्षर करा लेते हैं, जिसमें जांच हो जाए तो जेल जाने से उन्हें कोई बचा नहीं पाएगा। फिर दूसरा इंपोर्टेंंट यह कि पीए लोगों से कनेक्ट होने में सबसे बड़े ब्रेकर होते हैं। वे मंत्री या अफसर से आसानी से मिलने नहीं देंगे। अगर मंत्री या अफसर से आपको बिना किसी अवरोध के मिलना है तो उसका एक ही उपाय है...पीए की खुशामद के साथ कुछ चढ़ावा चढ़ाते रहिये।

पीए की ऐसी छुट्टी

बात निकली पीए के ब्रेकर बनने की, तो एक पुरानी घटना जेहन में आ गई। बात नवंबर या दिसंबर 2011 की होगी। सुनिल कुमार उसी समय लंबे डेपुटेशन से दिल्ली से रायपुर लौटे थे, या यों कहें बुलाए गए थे। थोड़े दिन के लिए वे यहां एसीएस स्कूल शिक्षा रहे। इसके बाद जनवरी 2012 में वे पी जाय उम्मेन के हटने के बाद सीएस बन गए थे। बहरहाल, बात मुद्दे की। सुनिल कुमार से पुरानी जान-पहचान थी, ज्वाईनिंग के बाद एकाध मुलाकात हो चुकी थी। उसके बाद एक दिन मैंने उनसे मिलने के लिए फोन लगाया, उन्होंने मुझे शाम पांच बजे का टाईम दिया। नियत टाईम पर पुराने मंत्रालय पहुंच कर उनके पीए को मैंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। पीए के रिप्लाई से मैं सोच में पड़ गया...सुनिल कुमार तो ऐसे नहीं करते। पीए ने स्पष्ट तौर से कहा...साब अभी मीटिंग में हैं, अभी नहीं मिल सकते। मैं बरामदे में खड़ा होकर कुछ देर सोचा। फिर तय किया कि उन्हें कम-से-कम सूचित कर दूं कि मैं टाईम पर मंत्रालय पहुंच गया था। उन्हें फोन कर बताया, मैं मिलने आया था...मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि वे बोले...आइये, अंदर आ आइये। भीतर गया तो देखा कोई मीटिंग नहीं। वे किसी फाइल को पढ़ रहे थे। कुछ देर बैठने के बाद मैं पीए के बारे में बताया...सुनकर वे आवाक रह गए। उस समय पीए को बुलाकर वे डांटे या नहीं, इसे मैं रिकॉल नहीं कर पा रहा मगर अगले दिन पता चला कि पीए की वहां से छुट्टी हो गई। जाहिर है, पीए ने वह हरकत नहीं की होती तो वो सुनिल कुमार के साथ मुख्य सचिव सचिवालय भी गया होता। सार यह है कि पीए अगर आपने ढंग का नहीं रखा तो फिर आपको वो अलोकप्रिय बना देगा। क्योंकि, हर आदमी अफसर या मंत्री से पीए की शिकायत कर नहीं पाता।

32 की जगह चार

रमन सिंह सरकार के दौर में आईएफएस अफसरों का स्वर्णिम दौर रहा। तब एक समय 32 आईएफए डेपुटेशन में राज्य सरकार में विभिन्न बोर्ड और कारपोरेशनों को संभाल रहे थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में सुब्रमणियम सिकरेट्री टू सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए थे। नया रायपुर को बनाने वाले एसएस बजाज भी आईएफएस थे। अनिल राय लंबे समय तक पीडब्लूडी सिकरेट्री रहे तो राकेश चतुर्वेदी, संजय शुक्ला, स्व0 देवेंद्र सिंह और सुनील मिश्रा भी कई अहम पदों पर रहे। मगर अब आलम यह है कि यह संख्या चार पर सिमट गई है। अरुण प्रसाद मेंबर सिकरेट्री पौल्यूशन बोर्ड, जगदीशन डायेक्टर हार्टिकल्चर, विवेक आचार्य एमडी टूरिज्म और कल्चर तथा विश्वेष कुमार एमडी सीएसआईडीसी। दरअसल, अब आईएएस में डायरेक्टर, एमडी लेवल के अफसरों पर संख्या काफी बढ़ गई है। उधर, आईएफएस में भी उस तरह के अफसर बचे नहीं, जिनका काम अच्छा हो और राज्य सरकार में कनेक्शन भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी खास वजह है कि दूरस्थ और छोटे जिले बोर्ड परीक्षाओं में बाजी मार ले जाते हैं और बड़े शहरों के कोचिंग और ट्यूशन करने वाले बच्चे पीछे?

2. भारत-पाक में सीजफायर की खबर से छत्तीसगढ़ में वो कौन तीन लोग हैं, जो सबसे अधिक खुश हुए होंगे?




Chhattisgarh Tarkash 2025: सीएस और सीआईसी पर मौन

 तरकश, 4 मई 2025

संजय के. दीक्षित

सीएस और सीआईसी पर मौन

छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी में इस समय नए चीफ सिकरेट्री और चीफ इंफार्मेशन कमिश्नर हॉट टॉपिक है मगर इन दोनों विषयों पर सिस्टम खामोश है। सीआईसी के लिए 16 अप्रैल को सलेक्शन कमेटी की बैठक होनी थी। मगर सीएम के बस्तर दौरे की वजह से टल गई। इसके बाद पखवाड़ा गुजर गया, अगली बैठक की कोई सुगबुगाहट नहीं है। कुछ दिन पहले तक सीएस अमिताभ जैन का सीआईसी बनना तय माना जा रहा था, किंतु रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा की इंट्री के बाद इस पर धूंध छा गया है। फिर भी पलड़ा अमिताभ की ही भारी बताया जा रहा है। उधर, नए मुख्य सचिव की तस्वीर भी साफ नहीं हो पा रही है। इस शीर्ष पद के लिए रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ पात्रता रखते हैं। पर आम परसेप्शन ये बन गया है कि मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ के बीच होगा। रेणु पिल्ले, अमित या ऋचा को 80 से 90 परसेंट लोग रेस से बाहर बता रहे हैं। इन तीनों में से कोई एक नाम अगर आश्चर्यजनक रूप से सामने आ गया तो, वो किसी अद्श्य शक्ति का कमाल होगा। इसमें भारत सरकार का इंटरफेयरेंस भी एक हो सकता है। जैसे मध्यप्रदेश, ओड़िसा, राजस्थान और हरियाणा में हुआ। संभवतः यही वजह है कि सुब्रत और मनोज का नाम तो लोग ले रहे मगर कांफिडेंट कोई नहीं। आखिर, एमपी में अनुराग जैन का नाम दिल्ली से तब आ गया था, जब राज्य सरकार ने सीएस अपाइंटमेंट की नोटशीट चला दी थी। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में देखना है मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इन पांच में से किसे मौका देते हैं।

यमराज बड़ा या पटवारी!

पंजीयन विभाग के 10 सुधारों के आगाज के मौके पर राजस्व और पंजीयन विभाग आज सबके निशाने पर रहा। यहां तक कि हवा का रुख देख राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बोले...जनता को राजस्व विभाग के चक्कर से अब छूटकारा मिलेगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का भड़ास भी आज बाहर आ गया। पटवारी, तहसीलदारों की मनमानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला कि पटवारी यमराज से बड़े हो गए हैं...जिंदा आदमी को कागज में मार देते हैं। फिर जिंदा आदमी को साबित करने महीनों, सालों कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ जाता है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद किसी विभाग के खटराल मुलाजिमों के बारे में उनका पहली बार इस तरह गुस्सा बाहर आया होगा। वहीं, पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने बताया कि सुधारों के लिए किस तरह उन्हें उंगली टेढ़ी करनी पड़ी। उन्होंने दिलचस्प किस्सा बताते हुए कहा कि 10 परसेंट जो कभी नहीं सुधरते, पंजीयन विभाग में वे आंदोलन का माहौल बनाने लगे थे। उन्होंने छह लोगों की फाइल तैयार करवाई। फिर मंत्रालय में बुलाया। बोला...देख लो, इसमें क्या करना है। उसके बाद सभी के जोश ठंडे पड़ गए। उन्होंने इसका भी खुलासा किया, उन छह फाइलों में से तीन ही सही थी, तीन फाइलों में फर्जी पेपर रखे थे। ओपी के कहने का आशय यह था कि किसी भी सुधार के लिए लंबा पापड़ बेलना पड़ता है, विरोधों का सामना करना पड़ता है। उसमें सियासत भी आड़े आती है।

कलेक्टरों की निगरानी

महत्वपूर्ण योजनाओं के क्रियान्वयन में कलेक्टरों की पुअर रिपोर्ट मिलने के बाद सीएम सचिवालय ने कलेक्टरों पर निगरानी का काम प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए अटल मॉनिटरिंग पोर्टल बनाया गया है। इस पोर्टल से कलेक्टरों की मुश्किलें इसलिए बढ़ेगी कि अब वे आंकड़ों की बाजीगरी नहीं कर पाएंगे। जाहिर है, सीएम सचिवालय अपने स्तर पर विभागों से डेटा लेकर कलेक्टरों को आईना दिखाता रहेगा कि उनके जिले में क्या चल रहा है। सीएम सचिवालय ने उदाहरण के लिए कलेक्टरों से सभी 33 जिलों की राजस्व कोर्ट का डेटा शेयर किया है। इसमें बस्तर संभाग को छोड़ दे ंतो सरगुजा और मैदानी इलाकों का बुरा हाल है। कई जिलों में 50 परसेंट भी राजस्व मामलों का निबटारा नहीं हुआ है।

डीएमएफ में बिजी कलेक्टर

दरअसल, कलेक्टरों के राजस्व न्यायालय में दिलचस्पी न लेने की एक बड़ी वजह यह है कि राज्य बनने के बाद इस पर सिस्टम ने ध्यान नहीं दिया। मध्यप्रदेश के दौर में सन 2000 तक बड़े-बड़े कलेक्टर कोर्ट में बैठकर राजस्व केस निबटाते थे। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में पैसे का फ्लो ऐसे बढ़ा....ब्यूरोक्रेसी यह भूल गई कि ईश्वर ने उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस के लिए चुना है तो ईश्वर को थैंक्स के नाम पर कुछ अच्छा भी कर जाएं। जाहिर है, राज्य निर्माण के बाद नवंबर 2000 से 2002 तक सिस्टम सेट होने में लगा। 2003 से 2010 तक नौकरशाही खेत-खलिहान, फार्म हाउस बनाने में उलझी रही। इसके बाद कलेक्टरों के पास डीएमएफ आ गया। डीएमएफ के बाद कलेक्टरों के पास राजस्व कोर्ट में बैठने का फुरसत कहां। 60 फीसदी कलेक्टर सुबह से कैलकुलेटर लेकर बैठ जाते हैं...और जो थोड़े-बहुत अच्छे हैं, उन्हें लगता है कि जमीन-जायदाद के पचड़े में फालतू पड़ना क्यों? यही वजह है कि पिछले एक दशक में कलेक्टर्स अपने न्यायालयीन दायित्व को लगभग भूल गए। अधिकांश कलेक्टरों ने अपना कोर्ट अपर कलेक्टरों के हवाले कर दिया है। बहरहाल, सीएम सचिवालय ने अब मॉनिटरिंग शुरू की है...पीएस टू सीएम सुबोध सिंह इसे देख रहे हैं...उन्होंने सभी कलेक्टरों को मैसेज कर खबरदार भी किया है....तो उम्मीद करें कि छत्तीसगढ़ में कलेक्टर कोर्ट की रौनक लौटेगी।

दो को सजा, दो को ईनाम

मध्यप्रदेश के बंटवारे के बाद दो-चार स्वाभिमानी ब्यूरोक्रेट्स भोपाल से रायपुर आए थे, उनमें आईएएस केके चक्रवर्ती भी शामिल थे। उन्होंने ही 2003 में छत्तीसगढ़ का पहला विधानसभा चुनाव कराया। उसके बाद वे सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए। उनके बाद 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ0 आलोक शुक्ला, 2009 का लोकसभा, 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव सुनील कुजूर, 2018 का विधानसभा और 2019 का लोकसभा चुनाव सुब्रत साहू तथा 2013 का विधानसभा और 2024 का लोकसभा चुनाव रीना बाबा कंगाले ने बतौर सीईओ कराया। इनमें से डॉ0 आलोक शुक्ला और सुनील कुजूर के टेन्योर के दौरान विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा हुआ कि रमन सरकार को नागवार गुजरा। आचार संहिता में हाई प्रोफाइल डीजीपी विश्वरंजन से लेकर कई अफसरों की छुट्टी हो गई। आलम यह हुआ कि आलोक को लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ छोड़कर दिल्ली जाना पड़ गया...और सुनील कुजूर ने भले ही एक विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव कराने का रिकार्ड बनाया, मगर सरकार की नाराजगी ऐसी तीव्र थी कि उन्हें लंबे समय तक प्रमोशन से वंचित रहना पड़ा। प्रमोटी आईपीएस राजीव श्रीवास्तव जब डीजी हो गए तो बैजेंद्र कुमार पहुंच गए सीएम के पास। उसके बाद कुजूर फिर प्रमुख सचिव बनें। अलबत्ता, सुब्रत साहू और रीना कंगाले को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत का ईनाम मिला। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी और कांग्रेस की ऐतिहासिक विजय। सुब्रत को लोकसभा चुनाव के बाद सीएम सचिवालय की पोस्टिंग मिली तो 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आश्चर्यजनक जीत के लिए रीना कंगाले को फूड में पोस्टिंग देकर सरकार ने बड़ा संदेश दिया है।

तीन अफसरों का पेनल

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त करने के लिए राज्य सरकार ने तीन आईएएस अधिकारियों का पेनल भारत निर्वाचन आयोग को भेजा था। इनमें यशवंत कुमार, शिखा राजपूत और केडी कुंजाम शामिल है। यशवंत चूकि राजभवन में सचिव रहे हैं इसलिए प्रोफाइल बढ़ियां होने के चक्कर में वे बेचारे फंस गए। निर्वाचन आयोग ने उनके नाम पर टिक लगा दिया। हालांकि, संकेत हैं कुछ दिन बाद सरकार उन्हें निर्वाचन आयोग से इजाजत लेकर कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी देगी, जैसा कि पहले होता आया है। वैसे भी अगला विधानसभा चुनाव नवंबर 2028 में है। और ये भी आवश्यक नहीं कि यशवंत ही चुनाव कराएंगे। हो सकता है, उसके पहले उनका प्रभार बदल जाए। उनके पहले भी कई सीईओ रहे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं कराया। सुब्रत से पहले निधि छिब्बर भी विधानसभा चुनाव से पहले डेपुटेशन पर चली गईं थीं।

मंत्री और लाल बत्ती उलझी

लगता है, विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार किसी ग्रह-नक्षत्र का शिकार हो गया है। क्योंकि, पहलगाम की आतंकी घटना के बाद अब कुछ महीनों तक कम-से-कम कोई राज्य सरकार मंत्रिमंडल विस्तार या सर्जरी की बात तो नहीं ही करेगा। यही हाल लाल बत्ती में भी होगा। जिन्हें निगम-मंडलों में पोस्टिंग मिल गई, वे किस्मती रहे। सभी ने झंका-मंका के साथ अपना पदभार ग्रहण कर लिया। मगर कुछ दिनों के लिए अब इस पर ब्रेक समझिए। बीजेपी के अंदरखाने की जानकारी रखने वालों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर राहू-केतु की कुदृष्टि पड़ गई है। मुख्यमंत्री को इसके लिए कोई अनुष्ठान करा लेना चाहिए। ताकि, पाकिस्तान से युद्ध ठीकठाक निबटने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार की बात बढ़ाई जा सकें।

सीएस की भाषण कला

जैसे-जैसे रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा, सीएस अमिताभ जैन के चेहरे की रौनक बढ़ती जा रही, वैसे ही उनके भाषण कला में निखार आता जा रहा है। नवा रायपुर के एक बड़े होटल में पंजीयन विभाग के कार्यक्रम में उन्होंने ऐसे सधे और मारक अंदाज में भाषण दिया कि पूछिए मत! उन्होंने हरीत, लाल और सुधार क्रांति की बातें कर डालीं। उन्होंने राजस्व विभाग के खटराल सिस्टम को निशाने पर लेते हुए कहा कि अधिकारियों और कर्मचारियों का अधिकार कम कर ये सरकार जनता को सुविधाएं मुहैया करा रही है...ये एक बड़ा विजनरी बदलाव है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. काफी जोर होने के बाद भी राज्य सरकार ने राहुल देव को बिलासपुर का कलेक्टर क्यों नहीं बनाया?

2. क्या आईएएस सोनमणि बोरा अगले प्रिंसिपल सिकरेट्री होम होंगे?

रविवार, 27 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

 तरकश, 27 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

पाठ्य पुस्तक निगम के चर्चित घपले की जांच का ऐसा असर हुआ कि पेपर का रेट इस बार गिरकर 77 रुपए प्रति किलो पर आ गया। जबकि पिछले साल 109 रुपए किलो से टेंडर हुआ था। सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए करीब 50 लाख पुस्तकें छापने के लिए पापुनि हर साल करीब 10 हजार टन पेपर की खरीदी करता है। 77 रुपए के हिसाब से इस बार 77 करोड़ ही खर्च हुआ। याने खजाने का 32 करोड़ बच गया। पापुनि से जुड़े लोगों की मानें तो 30 परसेंट रेट गिरने के बाद भी 77 करोड़ में से आठ-से-दस करोड़ बंट जाएगा। तो फिर इसे यूं समझा जाए कि पिछले साल करीब 40 करोड़ का खेला हुआ। बता दें, विधानसभा चुनाव 2023 से महीने भर पहले नवंबर 2023 में ही रेट फायनल कर पेपर सप्लाई का आर्डर दे दिया गया था। पापुनि की किताबें कबाड़ में पाए जाने के बाद बवाल मचा तो पता चला बीजेपी वाले खाए पीए कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना वाला हाल हो गया। याने आवश्यकता से अधिक पुस्तकें छपवाने के खेल की पृष्ठभूमि विधानसभा चुनाव से पहले बनी और विकास उपाध्याय ने ठीकरा फोड़ दिया सरकार के माथे। अलबत्ता, पापुनि ने जांच के नाम पर खटराल अधिकारियों की कमेटी बनाकर खानापूर्ति करने का प्रयास किया। मगर सीएम विष्णुदेव साय बिगड़ पड़े...बोले, सबसे बढ़ियां जांच कौन करेगा, बताया गया रेणु पिल्ले। पिल्ले कमेटी की जांच का ऐसा असर हुआ कि इस बार पेपर का रेट धराशायी हो गया। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब इतना कम रेट गया होगा। बता दें, डेढ़ दशक पहले एक मंत्री ने अपना रेट 25 प्रतिशत फिक्स कर दिया था, उसके बाद पापुनि में घोटाला चरम पर पहुंच गया था। शुक्र है, पापुनि की व्यवस्था पटरी पर आ गई, खजाने का 32 करोड़ बचा सो अलग।

ऐतिहासिक राहत और 'डंडी'

विष्णुदेव साय सरकार ने जमीन-जायदाद के नामंतरण के मामले में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सिस्टम को ऑटोमेटिक कर दिया। याने रजिस्ट्री होते ही अब अपने आप रिकार्ड में आपका नाम चढ़ जाएगा। सरकार के इस फैसले से लोगों का न केवल सिरदर्द कम होगा बल्कि साल में हजार करोड़ का भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा। मगर इसके साथ ही सरकार के लिए संज्ञान लेने लायक प्वाइंट यह है कि राजस्व विभाग ने तीन ऐसी शर्ते जोड़ दी है, उससे सरकार का मूल उद्देश्य के पूरा होने पर संशय है। पहला, कोई विवाद नहीं होनी चाहिए, दूसरा जिओ रेफ्रेंस और तीसरा बटांकन। छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में बटांकन का काम पूरा नहीं हुआ है। सूबे में सिर्फ रायगढ़ और राजनांदगांव जिले में 70 परसेंट बटांकन हुआ है। यही हाल, जिओ रेफें्रस का है। पिछले दसेक साल से कई कंपनियां इस पर काम कर रही मगर आज तक यह कंप्लीट नहीं हुआ। और शिकायत तो कोई शरारत करते हुए एक अर्जी दे देगा रजिस्ट्री विभाग में, तो उसका आटोमेटिक नामंतरण नहीं होगा। याने मामला फिर तहसीलदार के पास जाएगा। राजस्व विभाग के अधिकारियों ने पिछली सरकार में भी यही खेला किया था। तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस के भाषण में नामंतरण के सरलीकरण की घोषणा की थी। उसके बाद आईएएस निरंजन दास की अध्यक्षता में तीन आईएएस अधिकारियों की कमेटी बनी। निरंजन दास कमेटी ने भी पटवारी, तहसीलदारों के पक्ष में रिपोर्ट देते हुए कहा कि 14 दिन में अगर नामंतरण नहीं हुआ तो तहसीलदार की कोर्ट में प्रकरण दर्ज हो जाएगा। याने कमेटी ने पेचीदगियां और बढ़ा दी। बहरहाल, वर्तमान सरकार ने बड़ा फैसला किया है...उसकी नीयत नेक है...इसे लागू होने में अभी हफ्ते भर का टाईम है। 3 मई को इसका उद्घाटन किया जाएगा। तीनों शर्तों को अगर शिथिल कर दिया जाए, तो आम आदमी के लिए सचमुच...अकल्पनीय राहत होगी।

2005 बैच, 5 कलेक्टर

पीएससी के चर्चित 2005 बैच के इस समय पांच कलेक्टर हो गए। तीन पहले से थे, दो अभी बने हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा संयोग पहली बार हुआ है कि एक बैच के पांच-पांच अफसरों को जिला मिल गया हो। हालांकि, इसमें कोई गलत नहीं है। हर आईएएस का सपना होता है कलेक्टर बनना। पहले के समय में बेचारे सुरेंद्र बेहार जैसे कई अफसर बिना जिला किए ही रिटायर हो गए। मगर बात 2005 बैच के संदर्भ में तो, सरकार को 360 डिग्री वाला मानिटरिंग सिस्टम स्ट्रांग करना होगा। वरना, 2005 बैच के अधिकारियों का जैसे-जैसे रिटायरमेंट का वक्त आ रहा...इन बेचारों का लीगल खर्चा बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट के सिर्फ एक स्टे पर इनकी नौकरी अटकी हुई हैं। वरना, बिलासपुर हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने तो इनकी नियुक्ति निरस्त कर सड़क पर ला दिया था। वो तो भला हो देश के सबसे बड़े और महंगे वकील हरीश साल्वे का, जिनके चलते सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल गया। नौ साल से यह स्टे कंटिन्यू कर रहा है। राहत की बात यह कि राज्य सरकारों ने भी स्टे हटवाने कोई प्रयास नहीं किया। उपर से नजरे इनायत ऐसी कि पिछली सरकार में उन्हें आईएएस भी अवार्ड हो गया।

समरथ को नहीं दोष गोसाई

यह आठवां आश्चर्य होगा कि सीजीएमएससी के इतने कारनामों के बाद भी एमडी का बाल बांका नहीं हुआ। चार कॉलेजों के टेंडर में 500 करोड़ का स्कैम के बाद भी सीजीएमएससी में सब कुछ अनवरत चल रहा है, मानो कुछ हुआ ही नहीं। दरअसल, पीएससी का 2005 बैच धनबल से इतना ताकतवर है कि बेचारी वर्षा डोंगरे दो दशक से संघर्ष करते-करते थक गई। पिछली सरकार ने उल्टे वर्षा को सस्पेंड कर दिया था। एक दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता को लग्जरी रिसोर्ट बनवाकर उनका मुंह बंद करा दिया गया। 2005 बैच के अफसर दबी जुबां से मानते हैं कि पोस्टिंग के हिसाब से हमें योगदान देना पड़ता है। जैसे कलेक्टर या मलाईदार बोर्ड या निगम में हैं तो फिर महीने का हेवी हिस्सेदारी उन्हें निभानी पड़ती है। ऐसे में वर्षा डोंगरे क्या कर लेगी, जब पूरा सिस्टम समरथ के साथ है...सुप्रीम कोर्ट से जब तक स्टे हटेगा, तब तक सभी रिटायर हो चुके होंगे। भगवान सिंह उईके तो अगले साल दिसंबर में ही रिटायरमेंट है। हमारे कहने का यह आशय कतई नहीं कि 2005 बैच वाले सारे-के-सारे बैकडोर वाले हैं....मगर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने नियुक्ति निरस्त की थी, तो कुछ तो उन्होंने देखा ही होगा। वैसे, पीएससी ने भी कोर्ट में गलती मान ली थी, मगर एक्शन कुछ लिया नहीं। पुणे की पूजा खेड़कर का मामला नेशनल लेवल पर उछल गया इसलिए यूपीएससी ने पूजा का आईएएस निरस्त कर दिया। और छत्तीसगढ़ में....छत्तीसगढ़िया सबले बढ़ियां...यहां जेल जा चुकी बारहवीं की फर्जी टॉपर पोरा बाई सरकारी नौकरी कर रही है...और भर्ती निरस्त हो चुकी अफसर कलेक्टरी।

सूचना आयोग का औचित्य?

पीएससी 2005 की बात चली तो सूचना आयोग की अहमियत पर भी चर्चा लाजिमी है। 2005 में ही सूचना आयोग की स्थापना हुई थी। 20 साल में एकमात्र बड़ी सूचना पीएसससी की ही निकली थी। आरटीआई से ही खुलासा हुआ था कि पीएससी 2005 परीक्षा में किस तरह पैसे और पहुंच के बल पर मेरिट लिस्ट पलट दी गई। इसके बाद फिर सूचना आयोग ने फिर कोई ऐसी जानकारी नहीं दी। एक तरह से कहें तो अब ये सफेद हाथी की तरह हो गया है। हालांकि, दिक्कत सूचना आयुक्तों की नहीं, उन्हें नियुक्त करने वालों की है। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त ऐसे अधिकारियों को बनाया जाता है, जो पूरी सरकारी नौकरी के दौरान मामलों पर पर्दा डालने का काम करते हैं। रिटायरमेंट के बाद अगर उन्हें सूचना आयुक्त बना दिया जाएगा तो उनसे जानकारी का खुलासा करने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है।

तहसीलदारों का बोझ हल्का

नामंतरण का अधिकार रजिस्ट्री अधिकारी को देकर राज्य सरकार ने तहसीलदारों का न केवल जेब हल्का किया बल्कि उनके कंधों का बोझ भी हल्का कर दिया है। नामंतरण के लिए 14 दिन टाईम लिमिट था मगर बात नहीं बनी तो महीनों फाइल लटकी रहती थी। कभी वीआईपी ड्यूटी का बहाना तो कभी वुनाव का। सरकार ने एक झटके में तहसीलदारों का दोनों बोझ हल्का कर दिया है।

रिटायरमेंट से पहले मान

आईएएस टोपेश्वर वर्मा से काम राजस्व बोर्ड चेयरमैन का लिया जा रहा था और पोस्ट मेंबर का था। मेंबर की हैसियत से वे प्रभारी चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे थे। राज्य सरकार ने आईएएस के फेरबदल में इस विडंबना को दूर करते हुए टोपेश्वर को चेयरमैन की पोस्टिंग दे दी है। टोपेश्वर का इसी साल अक्टूबर में रिटायरमेंट है। रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन मुख्य सचिव के समकक्ष पद है। उपर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भांजी दामाद होने के बाद भी सरकार ने टोपेश्वर का कद बढ़ाने में दिल छोटा नहीं किया। पूर्व सीएम के एक भांजी दामाद गृह मंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा के कलेक्टर हैं। अब आप ये मत समझिएगा कि पूर्व मुख्यमंत्री का इस सरकार में चल रही है। कवर्धा वाला मामला विशुद्ध तौर से गृह मंत्रीजी के दोस्ती का है, और टोपेश्वर का सरकार की उदारता का।

कांग्रेस मंत्री का मॉल और बीजेपी प्रेम

रायगढ़ के रहने वाले केके गुप्ता छत्तीसगढ़ बनने से पहले दिग्विजय सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। कारोबारी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले गुप्ता का रायगढ में होटल खुला तो बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने फीता काटा था। बिलासपुर के मॉल के समय भी ऐसा ही हुआ। राजधानी रायपुर के एक पुराने मॉल का भी बीजेपी के मुख्यमंत्री ने उद्घाटन किया। कल रायपुर के जोरा मॉल के उद्घाटन में मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपमुख्यमंत्री से लेकर बीजेपी के सारे बड़े नेता फोटो में नजर आए, कांग्रेस के एक भी नहीं। पूर्व मंत्री का कारोबार जिस ढंग से बढ़ रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वे बीजेपी ज्वाईन कर लें।

दिल्ली स्टाईल में ट्रांसफर

आईएएस के ट्रांसफर इस बार भारत सरकार के स्टाईल में हुए। अभी तक एक अधिकारी के पास कई-कई एचओडी और मंत्री होते थे। इसमें दिक्कत यह होती थी कि कई बार सेम टाईम में दो-दो मंत्रियों की बैठक हो जाती थी। विधानसभा सत्र के दौरान ब्रीफिंग में भी ये कठिनाई आती थी। सरकार ने अब एकजाई करके एक एचओडी, एक मिनिस्टर कर दिया है। याने अफसरों को अब इधर-उधर भागना नहीं पड़ेगा। उनका एक एचओडी होगा और एक मंत्री। राजस्व पर भी सरकार ने पहली बार ध्यान दिया है। राजस्व बोर्ड वन मैन आर्मी की तरह काम कर रहा था, सरकार ने एक मेम्बर और बिठाया है। रायपुर, दुर्ग संभागों में सर्वाधिक केसों को देखते दोनों संभागों में एक-एक अपर आयुक्त की पोस्टिंग की गई है। अबकी पोस्टिंग में इस सरकार, उस सरकार वाला लेबल हटा दिया गया है। याने पिछले सरकार वाले अफसरों को भी उनके काम के हिसाब से पोस्टिंग दी गई है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. आपकी नजर में रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा के मुख्य सूचना आयुक्त बनने की संभावना कितना प्रतिशत है?

2. मीनल चौबे के महापौर बनने के बाद अगर राजेश मूणत मंत्री बन गए तो फिर बृजमोहन अग्रवाल खेमे का क्या होगा?


रविवार, 13 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मुलाकात टैक्स 25 हजार

 तरकश, 13 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

मुलाकात टैक्स 25 हजार

ये दीया तले अंधेरा, जैसा मामला है। रायपुर में एक बड़े साब से किसी आरगेनाइजेशन को मिलना है, तो उसके लिए नजराना याने मुलाकात टैक्स देना पड़ता है। नजराना भी हल्का-फुल्का नहीं...25 हजार से उपर का। हाल ही की बात है, एक रेपुटेडेट संस्था के प्रतिनिधियों ने साब से मिलने के लिए टाईम मांगा। टाईम तो मिल गया मगर साथ में पीए का टका सा निर्देश भी मिला...ठीकठाक कोई गिफ्ट लेते आइयेगा। संस्था के लोगों के लिए ये नया अनुभव था। फिर भी सम्मानजनक गिफ्ट खरीद लिया। मिलने पहुंचे तो सवाल हुआ...कितने का है? बोले, 12 हजार का। प्रशासनिक महिला अफसर बोली...नहीं चलेगा। जहां से लेकर आए हैं, वहां जाकर वीडियोकॉल कर दिखाइये। संस्था वाले गिफ्ट शॉप गए। वीडियोकॉल पर महिला अफसर ने 35 हजार का गिफ्ट सलेक्ट किया। तब जाकर बात बनी। खैर, ये तो छोटी बात है, कई संस्थाओं में मेंबरों की नियुक्तियों के लिए रेट फिक्स कर दिया गया है। बड़ी नियुक्तियों का तो और बड़ा रेट। संभव है, बड़े साब को इन चीजों का भान न हो। अगर ऐसा है तो उन्हें अपने तंत्र पर निगरानी बढ़ानी चाहिए। वरना, मोदीजी का 360 डिग्री वाला राडार एक्टिव हुआ, तो फिर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। रायपुर के लोगों ने बड़े लोगों का अच्छा-खासा कैरियर चौपट होते देखा है।

कलेक्टर बहादुर अली

ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ ने आईएएस अफसरों को बुलाकर उन्हें शुचिता का पालन करने की समझाइश दी थी। बताया था कि ब्यूरोक्रेसी के इस बुरे दौर में बहादुर अली बनकर कैडर की और छीछालेदर मत कराओ। मगर नौकरशाहों के जिंस में करप्शन का वायरस ऐसा घुस गया है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके भले की बात कर रहा है, कौन जेल में है, और कौन जेल जाने वाला है। हम बात कर रहे हैं सूबे के एक स्मार्ट क्लेक्टर की। डीएमएफ में सप्लाई का काम करने के लिए उन्होंने अपने साले को बुला लिया है। फर्जी कंपनी बनाकर साला अब पूरे जिले में डीएमएफ और अपने जीजा का झंडा बुलंद कर रहा है। मगर ऐसी बातें छुपती कहां है। छोटी जगह है...पुराने सप्लायरों के पेट पर चोट पहुंचेगी तो वे चुप थोड़े ही बैठेंगे....इसकी कानाफूसी अब राजधानी रायपुर पहुंचने लगी है। ऐसे में, ऋचा और मनोज का कर लेंगे। उन्होंने तो रास्ता दिखाने का काम किया था। अब कोई अपना कब्र खोदने पर अमादा है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता।

बड़ी जांच और 3 सवाल

राज्य सरकार ने अभनपुर भारतमाला मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मगर राजस्व विभाग ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए जांच का दायरा बढ़ाकर 11 जिलों में किया ही, पांचों कमिश्नरों से इसकी रिपोर्ट मांग ली है। जाहिर है, इन ग्यारहों जिलों में नेशनल हाईवे के मुआवजे की बंदरबांट की जांच हो गई तो दर्जन भर से अधिक आईएएस, आईपीएस सलाखों के पीछे जाएंगे, इससे कुछ अधिक राजनेताओं की फजीहत होगी। सैकड़ों सेठ-साहूकारों के खिलाफ केस दर्ज होगा, जिन्होंने भारत सरकार के पैसे को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जाहिर है, ईमानदारी से इस स्कैम की जांच हो गई तो इतना बड़ा बम फूटेगा कि शायद उसके बाद करप्शन से लोग तोबा कर लें। यही वजह है...राजस्व विभाग की इस मेगा जांच पर स्वाभाविक जिज्ञासा और सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला, राजस्व विभाग की कड़ाई से जांच वाली छबि नहीं रही। इसलिए आशंका ये व्यक्त की जा रही कि ईओडब्लू जांच से घबरा लिंगारान करने के लिए कहीं कमिश्नरों से जांच तो नहीं कराई जा रही। दूसरा, जांच के लिए कमिश्नरों को पत्र लिखा गया है, उसकी भाषा से प्रतीत होता है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। क्योंकि, लेटर में लिखा है कि अनियमितता का पूरा डिटेल अपने वेबसाइट पर अपलोड करें। गड़बड़ियों की जानकारी ऑनलाइन होते ही प्रदेश में रायता फैल जाएगा...इतने बड़े-बड़े चेहरे बेनकाब होंगे कि छत्तीसगढ़ हिल जाएगा। और तीसरा सवाल यह है कि क्या भारत सरकार या केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने कोई पेंच फंसाया है? अभनपुर स्कैम की जांच के लिए नेशनल हाईव के चीफ विजिलेंस आफिसर ने 2021 से 2024 के बीच कई बार पत्र लिखा था, उसके बाद भी राजस्व विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। कुल मिलाकर इस जांच के पीछे कोई बड़ा राज छिपा है।

सीएस के दावेदार

पिछली सरकार में एसीएस टू सीएम रहे आईएएस सुब्रत साहू का नाम अभी तक मुख्य सचिव के दावेदारों में नहीं लिया जा रहा था। मगर पिछले एक हफ्ते में आश्चर्यजनक रूप से उनकी नाम की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सीएस के लिए इस समय पांच दावेदार हैं। रेणु पिल्ले और ऋचा शर्मा के नाम को अलग कर दें तो तीन बचते हैं। सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ। अमित दिल्ली में हैं। अमित शाह उन्हें यहां भेज दें तो बात अलग है। या फिर किसी ईश्वरीय चमत्कार से नारी शक्ति में से कोई दुर्गा बनकर प्रगट हो जाए। वरना, सलेक्शन सुब्रत और मनोज में से होना है। दोनों को तराजू पर तौला जा रहा है। सरकार के मापदंड में जो खरा उतरेगा, उसके नाम पर मुहर लग जाएगा। अब ये अलग बात है कि सलेक्शन के लिए मापदंड क्या रखे गए हैं...जैसा चल रहा है, चलते रहने देना या फिर बदनाम ब्यूरोक्रेसी की छबि बदलना।

एमडी और सीईओ का रहमोकरम

निगम-मंडलों में पोस्टिंग को लेकर राजनीतिज्ञों में बड़ी उत्सुकता रहती है। उन्हें लगता है चेयरमैन बन गए तो फिर तो जलवे होंगे। मगर वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं होता। पांच-सात मलाईदार निगमों में भी सीईओ और एमडी के रहमोकरम से कुछ मिल जाए, तो बात अलग है। वरना, थोड़ा नवाबी दिखाए तो फिर गाड़ी के डीजल, पेट्रोल पर सवाल उठभ् जाएंगे...आपको इतने की पात्रता है, इससे अधिक नहीं। दरअसल, सरकारें नेताओं को खुश करने के लिए निगम-मंडलों में पोस्टिंग दे देती है वरना इनका कोई संवैधानिक अस्त्तिव नहीं है। पूरा पावर एमडी और सीईओ में समाहित होता है। टेंडर फायनल करने से लेकर चेक काटने तक। सभी एमडी, सीईओ आईएएस होते हैं। वे उन्हीं चेयरमैनों की थोड़ा-बहुत भाव देते हैं, जो दबंग हो, साथ ही सरकार से करीबी ताल्लुकात। दोनों में से कोई एक हुआ तब भी बात नहीं बनेगी। इस बार निगम की पोस्टिंग के बाद एक मलाईदार चेयरमैन से एमडी मिलने पहुंची तो भावविह्वल होकर उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दिया...एमडी साहिबा से आत्मीय मुलाकात हुई। अब आप समझ सकते हैं...आगे क्या होगा। चेयरमैनों को अपना सम्मान बनाए रखना है तो सरकार को चाहिए कि संजय श्रीवास्तव से दो दिन की ट्रेनिंग दिला दें कि घोड़े की सवारी कैसे करनी चाहिए। संजय इसमें माहिर हो चुके हैं।

बीरबल की खिचड़ी

छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार बीरबल की खिचड़ी हो गई है, जो पकने का नाम नहीं ले रही है। दिसंबर में शपथ होते-होते नहीं हुआ और इस बार तो बेचारे एक भावी मंत्रीजी ने पंडरी से लीनेन का कपड़ा लेकर दर्जी से रातोरात कुर्ता और जैकेट सिलवाया, क्योंकि दिसंबर में बनवाए थे, वो थोड़ा टाईट हो गया था। इस बार उन्होंने बधाइयां भी स्वीकार करना शुरू कर दी थी। मगर राजभवन में शपथ लेने का ख्वाब बिखर गया, जब 9 अप्रैल को देर शाम तक शपथ का कोई फोन नहीं आया। बताते हैं, दिसंबर में एक बड़े नाम पर ब्रेक लग गया और इस बार एक छोटे नाम पर उपर में सहमति नहीं बन पाई। बहरहाल, इस बार मिं़त्रमंडल विस्तार को ऐसा करंट लगा कि अब जब तक अधिकारिक घोषणा नहीं होगी, कोई भरोसा नहीं करेगा। दिक्कत यह है कि सौदान सिंह टाईप दिल्ली में दमदारी से बात रखने वाला छत्तीसगढ़ बीजेपी में कोई पर्सनाल्टी नहीं है। इसका नुकसान राज्य का हो रहा है। कैबिनेट में दो-दो, तीन-तीन पद लंबे समय से खाली हैं।

अजब एसडीएम, गजब करप्शन

शासन-प्रशासन में करप्शन के भांति-भांति के किस्से अपन सुनते हैं। मगर ये जरा हटकर है। बिलासपुर के एक एसडीएम और पटवारी ने हॉरिजंटल नहर को वर्टिकल बना दिया। दरअसल, कोविड काल में जब लोग जान बचाने बदहवास थे, तब 1141 करोड़ के नहर के मुआवजा के खेल में एसडीएम और पटवारी व्यस्त थे। दोनों ने नहर के एलाइनमेंट में आएं-बाएं चेंज करके कइयों को करोड़पति बना दिया और खुद भी कई खोखा भीतर कर लिया। बिलासपुर शहर से लगे सकरी में एक फर्जी व्यक्ति को साढ़े तीन करोड़ का मुआवजा देने कागजों में नहर को 200 मीटर शो कर, जिस जमीन का 20 लाख एकड़ रेट था, उसे 12.5 करोड़ रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे दिया। वो भी जिसकी जमीन थी, उसे नहीं किसी और को। उन्हें लगा कि कोविड में कौन बचेगा, कौन नहीं? फिर देखा जाएगा। मगर उनकी सोच गलत निकली। जिसकी जमीन थी, वह कोविड में बच गया और प्रगट होकर शिकायत कर दी। शिकायत में एसडीएम समेत राजस्व विभाग के छह मुलाजिम दोषी पाए गए। मगर वक्त का खेल देखिए कि अभनपुर मुआवजा घोटाले में दो राप्रसे अधिकारी कुर्रे और साहूजी सस्पेंड हो गए मगर अरपा भैंसाझाड़ नहर वाले एसडीएम तिवारीजी बड़े चतुर निकले...जुगाड़ लगा वे बिलासपुर में नोट छापने वाली जगह पर बैठ गए। है न कमाल की बात। ठीक कहते हैं, समरथ को, नहीं, दोष गोसाई।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. किस ब्यूरोक्रेट्स ने अपने लाड़ले के लिए 75 लाख का घोड़ा खरीदा है?

2. चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा है, राजा को राजकाज में अतिसंकोची नहीं होनी चाहिए?


रविवार, 6 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: चाल, चरित्र और लाल बत्ती

 तरकश, 6 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

चाल, चरित्र और लाल बत्ती

आखिरकार, सत्ताधारी पार्टी के 36 नेताओं को निगम-मंडलों में पोस्टिंग मिल गई। इनमें जमीन की दलाली और चापलूसी के लिए ख्यात कुछ गुरूघंटाल अच्छी पोस्टिंग पाने में कामयाब हो गए। बावजूद इसके पार्टी ने चाल-चलन और चरित्र को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सरकार बनने के बाद छह महीने तक जिन नेताओं ने मौके का फायदा उठाकर जमकर तोड़ी की, पार्टी ने उन्हें लाल बत्ती से आंखें फेर लिया। शौकीन मिजाजी को लेकर चर्चित कुछ नेताओं को झटका देकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। लाल बत्ती के लिए सरकार और संगठन ने जो पैरामीटर सेट किया था, उनमें पार्टी के लिए परिश्रम के साथ छबि और आचरण मुख्य था। यही वजह रही कि काली कमाई वाले कुछ कारोबारी नेता अटैची लेकर घूमते रहे...मगर उनकी दाल नहीं गल पाई।

एक निगम, दो पार्टनर

रमन सरकार की तीसरी पारी में बीजेपी नेता छगन मूंदड़ा सीएसआईडीसी के चेयरमैन रहे। कांग्रेस गवर्नमेंट में यह पद खाली रहा। सरकार ने इसमें पोस्टिंग की जरूरत नहीं समझी। मगर विष्णुदेव सरकार ने राजीव अग्रवाल को सीएसआईडीसी का चेयरमैन बनाया है। राजीव रायपुर बीजेपी के शहर अध्यक्ष रहे हैं। वे छगन मूंदड़ा के बिजनेस पार्टनर हैं। छगन और राजीव ने मिलकर रायपुर रियल इस्टेट कंपनी बनाई थी। चलिये, सीएसआईडीसी में छगन के अनुभवों का लाभ राजीव को मिलेगा। दूसरा, सबसे महत्वपूर्ण यह कि वैश्य समुदाय को अब रंज नहीं रहेगा कि नई सरकार में उन्हें वेटेज नहीं दिया जा रहा।

सबसे बड़ा बोर्ड

ऐसे तो कहा जाए तो साल में 25 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाला मार्केटिंग फेडरेशन याने मार्कफेड छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बोर्ड (फेडरेशन) होगा। मगर नेताओं की नोटिस में न होने से सबसे अधिक आकर्षण सीएसआईडीसी, क्रेडा, माईनिंग कारपोरेशन, पाठ्य पुस्तक निगम, नागरिक आपूर्ति निगम, ब्रेवरेज कारपोरेशन जैसे बोर्ड-निगमों का रहता है। अलबत्ता, बिना मगजमारी के झोली भरने वाली निगम है तो वह है पाठ्य पुस्तक निगम की। एकदम साफ-सुथरा काम। साल में एक बार 50 लाख पुस्तकों के लिए पेपर और प्रिंटिंग का टेंडर होता है, और गिरे हालत में चार-पांच खोखा का इंतजाम। ब्रेवरेज कारपोरेशन में भी बिना मेहनत का सब कुछ आता है। ब्रेवरेज में प्रबल प्रताप की दावेदारी प्रबल होने के बाद भी पता नहीं वे कैसे चूक गए।

लाल बत्ती के बाद फुल स्टॉप  

मोतीलाल वोरा को छोड़ दें तो अविभाजित मध्यप्रदेश और पृथक छत्तीसगढ़ में कोई ऐसा चेहरा नहीं, जो निगम-मंडल अध्यक्ष की कुर्सी के बाद सियासत में शिखर पर जा पाया या नाम कमाया हो। अपवाद के तौर पर मोतीलाल वोरा राज्य परिवहन संघ के अध्यक्ष रहे, उसके बाद मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री तक पहुंचे। उनके अलावा कनक तिवारी हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे और रामानुजलाल यादव माईनिंग कारपोरेशन के। दोनों का सियासी कैरियर इसी के साथ खतम हो गया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 25 सालों में कोई ऐसा निगम-मंडल के अध्यक्ष का नाम आपके ध्यान में नहीं होगा, जो उसके बाद राजनीतिक कैरियर आगे बढ़ा हो। गौरीशंकर अग्रवाल जरूर माईनिंग कारपोरेशन के चेयरमैन रहने के बाद विधानसभा अध्यक्ष बनें। मगर उन्हें अगले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उनका भी सियासी कैरियर अब खतम ही समझिए। छत्तीसगढ़ बनने के बाद चार मुख्यमंत्री बनें और चारों सरकारों में 65 से अधिक मंत्री रहे, मगर किसी का भी बैकग्राउंड निगम और मंडल वाला नहीं रहा। बहरहाल, अभी जिन 36 नेताओं को पोस्टिंग मिली है, उनमें कई अच्छे और बढियां काम करने वाले चेहरे हैं, उन्हें किसी अच्छे पंडित से 'ग्रह-दशा' ठीक करा लेनी चाहिए। नहीं हो तो अटल श्रीवास्तव से मशिवरा कर लें। अपवादस्वरूप पर्यटन बोर्ड के चेयरमैन रहने के बाद वे विधायक बनने में कामयाब रहे, वो भी मोदी गांरटी की लहर में।

हाईटेक लोक सुराज

लोक सुराज अभियान को इस बार गुड गवर्नेंस से जोड़ा जा रहा है। नाम भी रखा गया है सुशासन तिहार। इस बार शिकायत नहीं, सरकार समाधान पर जोर दे रही है। इसलिए शिकायत पेटी नहीं, समाधान पेटी और समाधान शिविर की बातें हो रही। इस बार टेक्नॉलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया जाएगा। शिकायतों के लिए पंचायत मुख्यालयों में समाधान पेटी रखी जाएगी, तो लोग चलते-फिरते मोबाइल से भी अपने प्राब्लम पोर्टल पर दर्ज कर सकेंगे। साफ्टवेयर ऐसा तैयार किया जा रहा कि मोबाइल नंबर टाईप कर आवेदन की स्थिति का पता चल जाएगा। किस जिले में कितने आवेदन आए और उसका कैसे निबटारा हुआ...सीएम सचिवालय से इसकी सत्त मानिटरिंग की व्यवस्था बनाई जा रही है। पूरा सीएम सचिवालय पखवाड़े भर से इस काम में जुटा हुआ है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों और प्रभारी सचिवों का महीने भर का दौरा कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है।

ईओडब्लू जांच और ब्रेकर!

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार शुरू से गुड गवर्नेंस को प्रायरिटी दे रही है। जाहिर है, सरकार बनते ही मंत्रियों को आईआईएम में क्लास कराई गई थी। सुशासन की दिशा में सरकार ने कई फैसले भी किए हैं। मुख्यमंत्री ने कई मौकों पर कहा है...करप्शन में किसी को बख्शा नहीं जाएगा। अभनपुर भारतमाला परियोजना में 324 करोड़ के घोटाले में उन्होंने ईओडब्लू जांच का ऐलान करने में देर नहीं लगाई। मगर यह भी सही है कि सिस्टम में बैठे कुछ लोग सरकार के गुड गवर्नेंस लाने की कोशिशों में रोड़े अटका रहे हैं। आलम यह है कि अभनपुर मुआवजा घोटाले की जांच की 12 मार्च को घोषणा हुई और उसकी नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग की फाइलों की ढेर से बाहर निकल नहीं पा रही है। सिस्टम को गुड गवर्नेंस के ऐसे 'ब्रेकरों ' पर नजर रखनी चाहिए।

कलेक्टरों का ट्रांसफर

सुशासन तिहार से पहले कलेक्टरों के ट्रांफसर की चर्चाएं बड़ी गर्म है। पिछले बुधवार को लिस्ट निकलने की अटकलें ब्यूरोक्रेसी में बड़ी तेज थी। हालांकि, सस्पेंस इस पर भी है कि लोक सुराज से पहले ट्रांसफर होंगे या बाद में। इसमें ताजा अपडेट है...लोक सुराज से पहले कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलेगी। अमित शाह के दौरे के बाद इस पर मंत्रणा होगी कि किन-किन जिलों में बदलाव किया जाए। वैसे लिस्ट बहुत बड़ी नहीं होगी। पांच-सात जिले इसकी चपेट में आ सकते हैं। 8 अप्रैल से सुशासन तिहार शुरू होने वाला है। ऐसे में लगता है कि दो-एक दिन में सरकार को इस पर फैसला लेना होगा।

नए सीआईसी और परसेप्शन

मुख्य सूचना आयुक्त का इंटरव्यू देने चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और निर्वतमान डीजीपी अशोक जुनेजा एक साथ हंसते-मुस्कराते सर्किट हाउस पहुंचे थे...उसको लेकर प्रशासनिक हल्को में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। लोग जुनेजा को लेकर दावे कर रहे हैं...वे ऐसे ही दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर सीआईसी का इंटरव्यू देने थोड़े आए होंगे। मगर सवाल है, जुनेजा अगर सीआईसी तो फिर चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन का क्या? अमिताभ को लोग बिजली कंपनियों का चेयरमैन बना दे रहे हैं। दलील भी कि एसके मिश्रा और शिवराज सिंह सीएस से रिटायरमेंट के बाद इस पद को संभाल चुके हैं। मगर ये बातें हैं...बातें का क्या। फैसला मुख्यमंत्री को लेना है। कई बार परसेप्शन कुछ और बनता है और होता कुछ और है।

चीफ सिकरेट्री की विदाई

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के ढाई दशक में 11 मुख्य सचिव हुए हैं। अमिताभ जैन 12वें हैं। इन 11 में से आठ की विदाई सामान्य रही। सुनिल कुमार के लिए तो कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी। मगर तीन मुख्य सचिवों की किस्मत वैसी नहीं रही। एक तरह से कहें तो बेआबरु होकर तेरे कूचे...सरीखी स्थिति रही। पी. जॉय उम्मेन को रमन सिंह सरकार ने हटाया तो खफा होकर उन्होंने वीआरएस ले लिया। यद्यपि, सरकार ने उन्हें सरकारी बिजली कंपनी का चेयरमैन पद पर कंटिन्यू करने का ऑफर दिया था। मगर छुट्टी में रहने के दौरान हटा देना उन्हें अपमानजनक लगा और केरल से ही वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया। उनसे पहले आरपी बगाई से भी राज्य सरकार के रिश्ते अत्यधिक खराब हो गए थे। चूकि उनका कार्यकाल कम बचा था, इसलिए उन्हें हटाया नहीं गया मगर पुराने लोगों को याद होगा कि नक्सल सलाहकार केपीएस गिल को लेकर चीफ सिकरेट्री और सरकार के बीच कैसी खटास आ गई थी। दरअसल, केपीएस गिल को बगाई के सुझाव पर सरकार ने एडवाइजर बनाया था मगर गिल के शाही शौक और नित नए डिमांड से सरकार आजिज आ गई थी। उपर से केपीएस के पक्ष में बगाई की वकालत। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार और सीएस के बीच रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे। सरकार के तेवर भांप आईएएस एसोसियेशन की बगाई की विदाई देने की हिम्मत नहीं पड़ी। इसके बाद तीसरा नंबर विवेक ढांड का रहा। हालांकि, उनका मामला सार्वजनिक नहीं हो पाया। ढांड का रेरा चेयरमैन में सलेक्शन हो चुका था। समझा जा रहा था कि रिटायर होने के बाद वे नई जिम्मेदारी संभालेंगे। सरकार और उनके रिश्ते में दूरियां तब सामने आई, जब रमन सिंह और उनकी टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे से यकबयक ढांड का नाम कट गया। उसके बाद एक रोज अचानक खबर आ गई कि ढांड ने वीआरएस लिया और अजय सिंह को नया मुख्य सचिव बनाया गया। जाहिर है, सीएस के तौर पर ढांड का अंतिम समय अच्छा नहीं रहा। इस मामले में अपने अमिताभ जैन का जवाब नहीं। पिछली सरकार ने सीएस बनाया। सरकार बदली...पांचवा साल चल रहा, मगर ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर। सबसे अधिक समय तक सीएस की कुर्सी पर रहने का कीर्तिमान बनाने के बाद भी अमिताभ जैन सभी के लिए कंफर्ट...सभी के लिए ठीक रहे।

सीएस और डीजीपी की छुट्टी

छत्तीसगढ के 25 बरसों में सिर्फ तीन बार सरकार बदली है। पहली बार 2003 में। फिर 2018 और 2023 में। 2003 में अजीत जोगी सरकार बदली तो एसके मिश्रा चीफ सिकरेट्री थे। रमन सरकार ने उन्हें रिटायर होते तक कंटिन्यू ही नहीं किया, बल्कि बाद में सीएसईबी चेयरमैन की पोस्टिंग भी दी। 2018 में जब कांग्रेस सरकार बनी तो अजय सिंह मुख्य सचिव थे। अजय को महीने भर में हटा दिया गया। उनकी जगह सुनील कुजूर को नया सीएस बनाया गया। 2023 में जब सरकार बदली तो अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री थे, वे अभी भी कंटिन्यू कर रहे हैं। पोस्टिंग के मामले में बेहद किस्मती रहे अजय सिंह का चीफ सिकरेट्री के तौर पर हार्ड लक रहा। सरकार बदलने पर हटाए जाने वाले एकमात्र सीएस के रूप में उनका नाम दर्ज हो गया। रही बात डीजीपी की तो सरकार बदलने के बाद डीजीपी हमेशा टारगेट पर रहे, सिर्फ अशोक जुनेजा को छोड़। 2003 में बीजेपी की सरकार बनने के थोड़े दिन बाद ही अशोक दरबार को बदल दिया गया। 2018 में एएन उपध्याय को सरकार गठित होने के 24 घंटे के भीतर हटाया गया। सिर्फ जुनेजा ऐसे आईपीएस रहे, जो रमन सिंह सरकार में खुफिया चीफ रहने के बाद भी कांग्रेस सरकार में डीजीपी बने और फिर बीजेपी सरकार में अपना कार्यकाल कंप्लीट किया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ के अगले चीफ सिकरेट्री अमित अग्रवाल होंगे?

2. बोर्ड-निगमों की पोस्टिंग में रायपुर जिले को सबसे अधिक जगह मिलने के बाद क्या नए मंत्रियों में रायपुर की संभावना खतम समझा जाए?

रविवार, 30 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 2500 करोड़ वेतन और लालफीताशाही

 तरकश, 30 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

2500 करोड़ वेतन और लालफीताशाही 

छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों, अधिकारियों के वेतन पर हर महीने खजाने का 25 सौ करोड़ रुपए खर्च बैठता है। सूबे में इस समय 3.84 लाख राज्य शासन के कर्मचारी, अधिकारी हैं, जिनमें 2.10 लाख शिक्षक हैं। 25 सौ करोड़ महीने के हिसाब से वेतन कैलकुलेट करें तो यह साल का 30 हजार करोड़ होता है। इसके बाद भी लालफीताशाही हॉवी है, तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। सिस्टम को इस पर मंथन करना चाहिए कि राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे करने के बाद भी छत्तीसगढ़ में वर्किंग कल्चर क्यों नहीं बन पाया। मध्यप्रदेश के समय राजधानी भोपाल बस्तर और सरगुजा से 900 किलोमीटर दूर था, फिर भी छत्तीसगढ़ के पटवारी, तहसीलदार और बाबू, अधिकारी उस समय निरंकुश नहीं हुए थे। स्कूल के मास्टर साहबों में इतनी स्वच्छंदता नहीं थी। बड़़े लोगों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे। तब जिले के कलेक्टरों का रुतबा होता था। कलेक्टर जिस दिशा में निकल जाए, उस इलाके में हड़कंप मच जाता था...सरकारी ऑफिस के लोग अलर्ट हो जाते थे। हालांकि, वर्किंग कल्चर बनाने विष्णुदेव सरकार ने कोशिशें शुरू की है, मगर चीजें इतनी बिगड़ चुकी है कि सरकारी प्रयास नाकाफी प्रतीत हो रहा। इसके लिए एक मुहिम चलानी पड़ेगी। ई-ऑफिस और अफसरों की टाईम से उपस्थिति सिर्फ मंत्रालय तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। दूरदराज के गांवों के स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों में शिक्षकों और डॉक्टरों की मौजूदगी सुनिश्चित हो...टारगेट उस लेवल का रखना चाहिए। आखिर, महीने का 2500 करोड़ खर्च हो रहा वेतन पर।

ब्यूरोक्रेसी में बहादुर अली

करप्शन को लेकर देश में बदनाम हो रहे छत्तीसगढ़ कैडर से चिंतित आईएएस एसोसियेशन ने कुछ दिन पहले अफसरों की एक अहम बैठक बुलाई थी। शाम पांच बजे के बाद हुई इस बैठक को काफी गुप्त रखा गया। मीटिंग को होस्ट करते हुए अपर मुख्य सचिव मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा ने चिंता जताई उसका लब्बोलुआब यह था कि इतना छोटा कैडर होने के बाद भी दो-दो आईएएस अधिकारी इस समय जेल में हैं, उसके बाद भी कई अफसर बहादुर अली बने हुए हैं। अफसरों से कहा गया कि वे देश के सबसे प्रतिष्ठित सर्विस में हैं, उन्हें इसके मान-सम्मान का खयाल रखना चाहिए। एसोसियेशन की चिंता सही है। ईडी की बड़ी कार्रवाइयों के बाद भी अफसरशाही के तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया है। अब तो मसूरी के आईएएस एकेडमी में छत्तीसगढ़ कैडर की चर्चाएं हो रही हैं...2010 तक छत्तीसगढ़ कैडर मिलने पर अफसर नाक-भौं सिकोड़ते थे, अब प्रायरिटी देकर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। कारण आप समझ सकते हैं।

करप्शन को संरक्षण

छत्तीसगढ़ कैडर की बदनामी को लेकर आईएएस एसोसियेशन चिंतित जरूर है मगर कैडर को पथभ्रष्ट करने में उनके पूर्वजों का बड़ा हाथ है। राज्य बनने के बाद मध्यप्रदेश से छांट कर छत्तीसगढ़ को टिकाए गए अधिकांश पुराने अफसरों ने दोनों हाथ से लूटा ही, किसी अफसर का कोई मामला फंसा तो उनके लिए ढाल बनकर खड़े हो गए। राधाकृष्णन माध्यमिक शिक्षा मंडल के एकाउंट से आठ करोड़ निकाल आराम से रिटायर होकर घर चले गए। आईएएस केडीपी राव ने जीएडी को इसकी रिपोर्ट भेजी मगर आईएएस लॉबी ने डीई-डीई खेलकर आज तक कोई एक्शन नहीं होने दिया। तत्कालीन खेल सचिव एमएस मूर्ति ने क्रिकेट स्टेडियम बनाने में घोटाले के नए प्रतिमान स्थापित किए। रेणु पिल्ले की जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया। मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सारे मुख्य सचिव गांधीजी के तीन बंदर की तरह इस पर आंख मूंदे रहे। एनटीपीसी के 500 करोड़ के मुआवजा प्रकरण में रायगढ़ के तत्कालीन कलेक्टर और एसपी ने दमदारी दिखाते हुए एसडीएम को सस्पेंड कराने के साथ एफआईआर दर्ज कराया था। कई महीने तक एसडीएम फरारी में रहे। कुछ दिनों पहले सिस्टम ने उन्हें क्लीन चिट दे दिया, वो भी तब जब उस समय के रायगढ़ के कलेक्टर, एसपी इस समय बेहद पावरफुल पोजिशन में हैं। अभनपुर के भारतमाला प्रोजेक्ट में 324 करोड़ के बंदरबांट मामले में जांच रिपोर्ट छह महीने पहले आ गई थी। अक्टूबर 2024 में राजस्व विभाग ने दो पटवारियों को सस्पेंड कर मामले को दबा दिया। मीडिया में जब यह मामला उछला तो फिर दो राप्रसे अधिकारियों को निलंबित किया गया। इसमें दो आईएएस की संलिप्तता सामने आ रही है कि, जिन्होंने दलालों के साथ मिलकर जमीन खरीदी और उसके टुकड़े कर करोड़ों रुपए का मुआवजा अंदर कर लिया...फिर भी सिस्टम आंख बंद किया हुआ है।

ब्यूरोक्रेसी की कड़वी सच्चाई

ये अच्छी बात है कि आईएएस एसोसियेशन कैडर की शुचिता को लेकर गंभीर हुआ है। उंच-नीच देखने पर सीएम सचिवालय के अफसर आजकल फोन खड़का अफसरों को टोक दे रहे हैं। मगर ब्यूरोक्रेसी की कड़वी सच्चाई यह है कि साफ-सुथरी छबि के जो 20-25 परसेंट अफसर हैं, अपनी लाइन तो सही रखते हैं मगर भ्रष्ट अफसरों को टोकने और क्रीटिसाइज करने की बजाए उनके बचाव में उतर आते हैं...इससे अपचारियों को बल मिल जाता है। ये छत्तीसगढ़ ही नहीं, कमोवेश पूरे देश की स्थिति है। कैडर के साथियों के प्रति अति-अनुराग का ही नतीजा है कि शायद ही कोई राज्य बचा होगा, जहां के एकाध आईएएस जेल में न हों। अच्छे अधिकारियों को इस पर विचार करना चाहिए। जिसके जींस में करप्शन का वायरस घुस गया है, उन्हें तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कितने साथी उनके जेल में हैं। मगर कम-से-कम नए अफसरों को सही रास्ता दिखाया जा सकता है।

ऐसे भी आईएएस

ऐसा नहीं कि छत्तीसगढ़ की पूरी ब्यूरोक्रेसी दागदार हो गई है। छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसे आईएएस भी हैं, जिनके पास अपना स्वाभिमान है और काम भी। एक जिला पंचायत की महिला आईएएस सीईओ पानी और फसल चक्र पर ऐसा काम कर रही कि उसका जवाब नहीं। उसी तरह एक छोटे जिले के कलेक्टर एक बड़े नगर निगम में कमिश्नर रहते ऐसे बड़े-बड़े काम कर डाले कि वहां के लोग आज भी याद करते हैं। पिछली सरकार में जब ब्यूरोक्रेसी के लोग काम करने का माहौल नहीं होने का रोना रो रहे थे, तब यंग आईएएस ने बड़े लोगों का कब्जा तोड़ 40 फुट नया रोड निकाल दिया। इसके लिए उन्होंने हाई कोर्ट जाने से भी गुरेज नहीं किया। अफसर ने कई गंदे तालाबों को रमणीक स्थल बना दिया...शहर को लाइट से ऐसा रौशन किया कि रायपुर भी उसके सामने फीका पड़ जाता है। इसी तरह एक प्रमोटी कलेक्टर का ग्राउंड पर इतना तगड़ा काम है कि सरकार उसे मॉडल के तौर पर पेश कर सकती है। सिस्टम को ऐसे अफसरों की लिस्टिंग करनी चाहिए कि कौन रीयल वर्कर है और कौन कागजी? जाहिर है, काम करने वाले अफसर एक हद से अधिक जी-हुजूरी करते नहीं। और कड़वा सत्य है कि सिस्टम को चाटुकारिता पसंद होता है। मामला यही पर गड़बड़ा जाता है। इससे नुकसान राज्य का होता है।

पूर्णकालिक डीजीपी

अशोक जुनेजा के रिटायर होने के बाद सरकार ने अरुणदेव गौतम को कार्यकारी डीजीपी बना दिया है। मगर पूर्णकालिक पुलिस प्रमुख के लिए पेनल फायनल नहीं हो रहा। यूपीएससी से बार-बार क्वेरी आ जा रही। पेनल में पवनदेव, अरुणदेव गौतम और हिमांशु गौतम के साथ अब जीपी सिंह का नाम भी जुड़ गया है। जीपी सीनियरिटी में तीसरे नंबर पर हैं। याने हिमांशु से उपर। बहरहाल, सरकार को क्वेरी क्लियर कराकर जल्द पेनल मंगवानी चाहिए। क्योंकि, पूर्णकालिक डीजीपी का एक कांफिडेंस अलग होता है। हालांकि, अशोक जुनेजा 11 महीने तक कार्यकारी डीजीपी रहे थे। सितंबर 2021 में डीएम अवस्थी को हटाकर उन्हें एक्टिंग डीजीपी बनाया गया था। उसके बाद सितंबर 2022 में उनका पूर्णकालिक का आदेश हुआ। बहरहाल, अरुणदेव गौतम के लिए राहत की बात यह है कि नक्सल मोर्चे पर कामयाबी बदस्तूर जारी है। उनकी फोर्स ने 30 नक्सलियों को ढेर कर दिया। मगर मैदानी इलाकों में स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। रायपुर जहां पूरा सिस्टम बैठा है, वहां की हालत यह है कि इस हफ्ते एक महिला को इसलिए आत्महत्या करनी पड़ गई कि थाने में उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। महिला की मौत होते ही रिपोर्ट दर्ज कर ली गई। रायपुर के एक थाने में इसी तरह की घटना और हुई। कहने का आशय यह है कि अरुणदेव को मेजर सर्जरी करनी होगी। सरकार को भी एसपी, आईजी की पोस्टिंग में उनकी राय को वेटेज देना होगा। वरना, छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग शीर्षासन मुद्रा में बनी रहेगी।

पीएचक्यू में बदलाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 30 मार्च को छत्तीसगढ़ दौरे के बाद पुलिस मुख्यालय में भी कुछ बदलाव हो सकता है। सूबे के सबसे सीनियर आईपीएस अधिकारी पवनदेव को हाउसिंग कारपोरेशन में सवा पांच साल हो गए हैं। इतना टाईम तो टीआई और डीएसपी भी एक जगह नहीं टिकते। ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों के लिए तीन-चार साल का समय स्ट्रीम होता है। पांच साल से अधिक समय तक एक ही कुर्सी पर बैठने से उसकी मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे समझा जा सकता है। ऐसे में, लगता है सरकार पवनदेव को कोई और पोस्टिंग दे सकती है। जीपी सिंह को भी ज्वाईनिंग के बाद अभी कोई पोस्टिंग नहीं मिली। अरुणदेव गौतम को प्रदेश पुलिस का मुखिया बनाने के बाद उन्हें होमगार्ड, फायर ब्रिगेड समेत कई जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया गया है। एफएसएल और अभियोजन खाली पड़ा है। इससे ऐसा लगता है कि सरकार डीजीपी को अन्य दायित्वों से अलग करते हुए उन्हें पोलिसिंग पर फोकस करने का मौका देगी। वैसे, कोई डीजीपी चाहता भी नहीं कि पुलिस का सुप्रीमो बनने के बाद कोई और चार्ज उसके पास रहे। ये तो ऐसा ही हुआ कि चीफ सिकरेट्री बना दिया और साथ में एक विभाग भी थमा दिया जाए। एएन उपध्याय के साथ भी ऐसा ही हुआ था। डीजी बनाने के बाद भी उनके पास काफी समय तक प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी रही।

कलेक्टर, एसपी ट्रांसफर पर ब्रेक?

प्रधानमंत्री के दौरे के बाद सरकार तुरंत लोक सुराज अभियान का ऐलान करेगी। हो सकता है, नवरात्रि में ही इसकी घोषणा हो जाए। सचिवालय में इसकी युद्ध स्तर पर तैयारी की जा रही है। ऐसे में, कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों का ट्रांसफर लोक सुराज से पहले होगा या बाद में, सीन क्लीयर नहीं हो रहा है। वैसे, ट्रांसफर पर डिसिजन करना सीएम और उनके सचिवालय का काम है। मगर इसमें महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि ट्रांसफर की लटकी तलवार के चलते कई जिलों के कलेक्टर, एसपी काम करना लगभग बंद कर दिए हैं...उन जिलों में सिर्फ रुटीन के काम निबटाए जा रहे हैं। जाहिर है, जिन कलेक्टर्स, एसपी पर खतरे मंडरा रहे हैं, उनका काम में मन कैसे लगेगा? वे जब तक रहेंगे, सिर्फ खानापूर्ति ही होगा। सो, ट्रांसफर जितना लंबा खींचेगा, सिस्टम का उतना नुकसान होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीजीपी अरुणदेव गौतम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पोलिसिंग है या कुछ और?

2. सीएस अमिताभ जैन और रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा में से कोई मुख्य सूचना आयुक्त बनेगा या किसी तीसरे की इंट्री होगी?

रविवार, 23 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: महिला IAS, तीखे तेवर...

 तरकश, 23 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

महिला IAS, तीखे तेवर

आबकारी सचिव आर. शंगीता की हाई प्रोफाइल मीटिंग की ब्यूरोक्रेसी में बड़ी चर्चा है। नई आबकारी पॉलिसी में शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने से लेकर उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर आबकारी सचिव ने 19 मार्च को कलेक्टर, एसपी, आईजी, कमिश्नर्स की वीडियोकांफ्रेंसिंग कर क्लास ली। संगीता कुछ पुलिस अधीक्षकों से इसलिए खफा थीं कि होली के दिन शराब दुकान वाले सुरक्षा के मद्देनजर थानों में पैसा रखवाने गए तो थानेदारों ने इंकार कर दिया। कुछ जिलों में आबकारी विभाग के मुलाजिमों के साथ दुर्व्यव्हार हुआ, तो कुछ जगहों पर कार्रवाई के नाम पर पुलिस वाले आबकारी अधिकारियों से भिड़ गए...इस पर तीन-चार एसपी साहबों की खिंचाई हुई। मसला यह भी आया कि शराब दुकानों के बाहर पुलिस वाले ताक में बैठे रहते हैं, थोड़ी-सी मात्रा अधिक हुई नहीं कि लोगों को पकड लें।

आबकारी सचिव ने कलेक्टरों से भी खरी-खरी अंदाज में ही बात की। बिलासपुर और बस्तर कलेक्टरों की जरूर तारीफ हुई कि उनके जिलों में शराब दुकानें काफी व्यवस्थित और साफ-सुथरी हैं। बहरहाल, महिला ब्यूरोक्रेट्स में सख्त एडमिनिस्ट्रेशन के लिए अभी तक रेणु पिल्ले और ऋचा शर्मा जानी जाती थीं। आर. शंगीता के प्रशासनिक तेवर देख कलेक्टर, एसपी हैरान थे। अफसरों को झेंप कुछ इसलिए भी आई कि वीडियोकांफ्रेंसिंग में जिला आबकारी अधिकारी भी कनेक्ट थे। और उनके सामने सारा कुछ हुआ...डेढ़ घंटे की मीटिंग के बाद एसी में बैठे कलेक्टर, एसपी, आईजी, कमिश्नर पसीना पोंछ रहे थे। ठीक भी है, छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक हलकों में जिस तरह लचरता आ गई है, सख्ती की जरूरत तो है। मगर इसके साथ कुछ उठते सवाल भी हैं....

प्रोटोकॉल का सवाल

आबकारी सचिव की वीडियोकांफ्रेंसिंग के बाद सवाल उठ रहा कि क्या मंत्रालय का कोई सचिव कलेक्टर, एसपी के साथ ही आईजी और कमिश्नरों की मीटिंग ले सकता है? दरअसल, छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद 25 साल में ऐसा कभी हुआ नहीं। किसी प्रमुख सचिव या अपर मुख्य सचिव को भी ऐसी बैठकें लेते देखा नहीं। हो सकता है कि ब्यूरोक्रेसी के प्रोटोकॉल की हमारी समझ थोड़ी कम हो। मुझे अभी तक ये ही पता था कि कलेक्टर, एसपी के साथ आईजी, कमिश्नरों की बैठक या तो मुख्यमंत्री लेते हैं या फिर चीफ सिकरेट्री। सीएम सचिवालय के शीर्ष अफसर भी ऐसी बैठक ले तो कोई हर्ज नहीं, क्योंकि सीएम सचिवालय को सीएम का हिस्सा समझा जाता है। ऐसे में, एक प्रसंग याद आता है। पिछली सरकार में 2022 की बात रही होगी। डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने कलेक्टरों की मीटिंग लेनी चाही। ग्रामीण और पंचायत सचिव गौरव द्विवेदी ने सभी कलेक्टरों को सूचना भेज दी। मगर बाद में प्रोटोकॉल के नाम पर बैठक को रद्द कर दिया गया। खैर, सचिव कमिश्नर, आईजी की बैठक ले सकता है या नहीं, यह देखना सिस्टम का काम है।

कांग्रेस का नया पायलट

चर्चा है, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी को जल्द ही नया प्रदेश प्रभारी मिल सकता है। सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने की खबर है। उन्हें वहां अगर पीसीसी की कमान सौंप दी गई तो फिर पार्टी छत्तीसगढ में नए प्रभारी बनाकर भेजेगी। वैसे भी सचिन बेमन से ही प्रभारी थे। नगरीय निकाय चुनाव के दौरान एक बार भी वे छत्तीसगढ़ नहीं आए। सत्ता में होने के बाद भी बीजेपी के प्रदेश प्रभारी नीतीन नबीन महीने में छत्तीसगढ़ का दो चक्कर लगा जाते हैं। सचिन पायलट 25 जनवरी को महापौर प्रत्याशियों की टिकिट फायनल करने वाली मीटिंग में हिस्सा लेने रायपुर आए थे, उसके बाद पूरा चुनाव निबट गया, पायलट का कोई पता नहीं था। दो महीने बाद सीधे 19 मार्च को वे रायपुर आए। और कहीं वे राजस्थान पीसीसी के अध्यक्ष बन गए तो फिर उनका यह आखिरी दौरा ही होगा। याने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को नया पायलट मिलेगा।

5 नामों का पेनल!

एक से बढ़कर एक दावेदारों के चलते छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचना आयुक्त का सलेक्शन काफी हाई प्रोफाइल हो गया है। 26 मार्च को एसीएस मनोज पिंगुआ की अध्यक्षता वाली पांच आईएएस अधिकारियों की कमेटी के समक्ष 33 दावेदारों का इंटरव्यू होगा। कमेटी सभी का साक्षात्कार लेकर एक पेनल बनाएगी। हालांकि, अभी ये फायनल नहीं हुआ है कि पेनल तीन का होगा या पांच का। सूत्रों का कहना है कि कमेटी किसी तरह के विवाद से बचने कोशिश करेगी कि ज्यादा नामों का ही पेनल बनाए। ऐसे में, पांच की संभावना अधिक है। इंटरव्यू के बाद सर्च कमेटी पेनल बनाकर सामान्य प्रशासन विभाग को सौंप देगी। पेनल तैयार होने के बाद सलेक्शन कमेटी की बैठक के लिए नियमानुसार 15 दिन का समय रखा जाना चाहिए। याने 26 मार्च को इंटरव्यू लेने के बाद अगर 27 को पेनल जीएडी में जाएगा तो 11 अप्रैल से पहले सलेक्शन कमेटी की बैठक नहीं होगी। मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीनियर मंत्री की तीन सदस्यीय कमेटी पेनल में से किसी एक नाम पर टिक लगाएगी। याने सब कुछ ठीक रहा तो 25 अप्रैल से पहले सीआईसी की नियुक्ति हो जाएगी।

चीफ सिकरेट्री पर सस्पेंस

बड़े-बड़े लोग सीआईसी के लिए अप्लाई किए हैं, सिर्फ इसलिए लोगों की इसमें उत्सुकता नहीं है। दरअसल, मुख्य सूचना आयुक्त के साथ मुख्य सचिव की नियुक्ति जुड़ी हुई है। मुख्य सचिव अमिताभ जैन अगर सीआईसी बन गए तो छत्तीसगढ़ का अगला चीफ सिकरेट्री कौन होगा, ये सवाल बड़ा है। इस समय नए सीएस के लिए पांच दावेदार हैं। सीनियरिटी की बात करें तो अमिताभ के बाद 91 बैच की आईएएस रेणु पिल्ले हैं। उनके बाद फिर 92 बैच में सुब्रत साहू। 93 बैच के अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। 94 बैच में मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा हैं। ये तय है कि इन पांच में से ही कोई एक छत्तीसगढ़ का नया प्रशासनिक मुखिया बनेगा। मगर वह एक कौन? इस बारे में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ही बता सकते हैं या फिर उनके प्रमुख सचिव सुबोध सिंह। दरअसल, सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ की नियुक्ति मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है। विष्णुदेव केंद्र के शीर्ष नेताओ के विश्वासप्राप्त भी हैं, सो यहां यूपी, एमपी जैसा कोई सरप्राइजिंग होगा नहीं।

मनोज पिंगुआ का औरा

चीफ सिकरेट्री बनने की अर्हता रखने करने वाले पांच आईएएस अफसरों में से एक नाम एसीएस मनोज पिंगुआ का भी है। वे चीफ सिकरेट्री बनेंगे या नहीं, ये वक्त बताएगा। वैसे भी चीफ सिकरेट्री वही बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। मगर ये अवश्य है कि सरकार ने सीआईसी सर्च कमेटी का चेयरमैन बनाकर मनोज पिंगुआ की हैसियत बढ़ा दी है। सिर्फ इससे समझा जाइये कि वे बड़े-बड़े लोगों का इंटरव्यू लेने वाले हैं।

घर में भी सीनियर, बैच में भी

ये जनरल परसेप्शन है कि घरों में महिलाओं की ज्यादा चलती है। पतियों के पास कोई चारा नहीं होता। बहरहाल, छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में दो जोड़े ऐसे हैं, जो आईएएस के बैच में भी अपने पतियों से सीनियर हैं। 94 बैच की निधि छिब्बर इस बैच में अपने पति विकास शील गुप्ता से उपर हैं। इसी तरह हाल ही में एसीएस प्रमोट हुईं डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी 95 बैच में अपने हसबैंड गौरव द्विवेदी से सीनियर हैं। ये दोनों आईएएस दंपती एसीएस हैं। और संयोग से चारों इस समय सेंट्रल डुपेटेशन पर हैं। अगर कभी मुख्य सचिव बनने की बारी आई तो सीनियरिटी में इन दोनों महिला अफसरों का नाम उपर होगा। और उनके पतियों को मंत्रालय से बाहर जाना होगा। क्योंकि, सेम बैच का अगर कोई चीफ सिकरेट्री बनता है तो परिपाटी के अनुसार उसके बैच के अफसरों को मंत्रालय से बाहर सीएस के समकक्ष कोई पोस्टिंग दी जाती है।

एम्स की प्रतिष्ठा

एम्स देश का एक बेहद प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान हैं। इस पर लोगों का इतना भरोसा है कि हर आदमी चाहता है कि उसके बीमार परिजन को एम्स में दाखिला मिल जाए। रायपुर एम्स भी कुछ इसी तरह का था। मगर इस समय जो सुनने में आ रहा, उससे थोड़ी हैरानी होती है। रायपुर से एक व्यक्ति हार्निया का ऑपरेशन कराने 5 सितंबर 2024 को एम्स पहुंचा तो उसे दिसंबर 2025 का टेंटेटिव डेट दिया गया। याने 16 महीने आगे का डेट। रायपुर सांसद की चिठ्ठी-पत्तरी भी इसमें कोई काम नहीं आई। एम्स में इलाज के इश्यू को रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने भी लोकसभा में उठाया है। आईएमए रायपुर के प्रेसिडेंट डॉ कुलदीप सोलंकी ने इसको लेकर एम्स प्रबंधन के खिलाफ अहम बयान दिया है. एम्स रायपुर को इसे नोटिस में लेनी चाहिए, ताकि देश की शीर्ष चिकित्सा संस्था पर लोगों का विश्वास कायम रहे।

200 करोड़ के मोड का खेला!

सीजीएमएससी ने चार मेडिकल कॉलेजों को क्लब कर घोटाले का टेंंडर निकाला था, हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया की सख्ती के बाद उसे रद्द कर दिया गया है। मगर कंसलटेंट मोड के नाम पर 200 करोड़ का खेला की फाइल अभी चल रही है। ईपीसी मोड में चारों कॉलेजों को बनाने में 50 करोड़ के हिसाब से 200 करोड़ ज्यादा बैठ रहा है। याने ढाई सौ करोड़ के कालेज में डिजाइन और कंसलटेंसी के नाम पर 50 करोड़ एक्सट्रा दिया जाएगा। इस पर राजेश मूणत ने विधानसभा में सवाल किया कि तीन मेडिकल कालेज बनवाए जा रहे, वो किस मोड में है तो लिखित जवाब आया, पीएमसी मोड याने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट एंड कंसलटेंसी। ईपीसी याने इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एंड कंट्रक्शन मोड में एक कॉलेज के पीछे 50 करोड़ रुपए बढ़ा देने का मतलब सीजीएमएससी वाले ही समझा सकते हैं। हेल्थ के जिम्मेदारों को 200 करोड़ के इस खेल का समझना चाहिए कि जब तीन कॉलेज पीएमसी मोड में बन रहे तो फिर ईपीसी की जरूरत क्यों पड़ी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री ने अपनी भांजी के नाम पर बिल्हा के पास 70 एकड़ जमीन ख़रीदा है?

2. किस जिले में कल एक विशिष्ट व्यक्ति के दौरे में पत्ता गोभी की सब्जी बनने पर अफसरों ने बवाल काट दिया?