तरकश, 8 दिसंबर 2024
संजय के. दीक्षित
छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष
मध्यप्रदेश के बंटवारे के दौरान वहां के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कैडर आबंटन में ऐसी चकरी चलाई कि अधिकांश छंटे हुए आईएएस छत्तीसगढ़ आ गए। उसके बाद रही-सही कसर छत्तीसगढ़ पीएससी ने पूरी कर दी। डिप्टी कलेक्टर प्रशासन के रीढ़ माने जाते हैं। मगर पीएससी ने भर्ती में ऐसा खेला किया कि छत्तीसगढ़ में प्रशासन की रीढ़ ही टूट गई। जो नायब तहसीलदार बनने लायक नहीं थे, वे दरबारी और टामन युग में डिप्टी कलेक्टर बन गए उसके बाद आईएएस भी। ऐसे अफसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
अभी राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अधिकारियों को आईएएस अवार्ड हुआ है, उनमें दो-तीन को छोड़ दें तो बाकी कर्मकांडियों के आईएएस बनने पर भगवान भी हैरान होंगे। इनमें से दो अफसरों ने रायपुर और दुर्ग में पोस्टिंग के दौरान अवैध प्लाटिंग की धूम मचा दी थी। पहले अवैध प्लाटिंग के लिए नोटिस दो और लिफाफा मिलने पर केस क्लियर। ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों से छत्तीसगढ़ को क्या उम्मीद होगी। दिल को तसल्ली देने के लिए यही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ का भाग्य ही खराब है।
जीरो टॉलरेंस का मैसेज
सरकार ने आईएएस अवार्ड में अपनी तरफ से जीरो टॉलरेंस की भरपूर कोशिश की। जीएडी को इंस्ट्रक्शन था कि किसी दागी को आईएएस अवार्ड नहीं करना है। पीएससी की परीक्षा नियंत्रक रही आरती वासनिक के खिलाफ सीबीआई ने इंटरव्यू के दो दिन पहले ही एफआईआर की रिपोर्ट भेजी थी। वरना, आरती वासनिक को ड्रॉप करने का कोई आधार नहीं था।
बाकी लोग सीनियरिटी में आ गए तो डीपीसी के मेम्बर रेणु पिल्ले और मुकेश बंसल भी कुछ नहीं कर सकते थे। आरती वासनिक का नाम कट गया इसलिए नायब तहसीलदार से भर्ती हुए वीरेंद्र बहादुर पंच भाई तक की किस्मत का पिटारा खुल गया। वे भी आईएएस अफसर बन गए। कह सकते हैं, छत्तीसगढ़ में चना-मुर्रा वाला हाल हो गया है आईएएस का।
नए चीफ सिकरेट्री कौन?
हालांकि, चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अभी छह महीने से अधिक समय बाकी है। मगर उनकी गद्दी संभालने वाले की चर्चाएं ब्यूरोक्रेसी में अभी से शुरू हो गई हैं। अमिताभ के बाद सीनियरिटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। 93 बैच में फिर अमित अग्रवाल हैं।
अमित इस समय भारत सरकार में पोस्टेड हैं और सबसे अधिक संभावनाएं उनकी बताई जा रही है। अमित की संभावनाएं इसलिए कि उनके बाद 94 बैच में मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा हैं। इनमें से अगर किसी को सीएस बनाया जाएगा तो एक को फिर मंत्रालय से बाहर पोस्टिंग देनी होगी। चूकि दोनों अच्छे अफसर हैं, इसलिए सरकार ऐसा चाहेगी नहीं।
ऐसे में, एक ही रास्ता है कि अमित अग्रवाल छत्तीसगढ़ लौटें। यद्यपि, अमित दिल्ली में अच्छे पोजिशन में हैं, खुद भी छत्तीसगढ़ लौटने के इच्छुक नहीं दिख रहे। मगर जैसे कि कई राज्यों में दिल्ली से चीफ सिकरेट्री भेजा गया है, वैसा कुछ हुआ तो फिर अमित को लौटना पड़ेगा। उच्च स्तर की लोगों की इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात होने की चर्चाएं भी हैं। बहरहाल, अमित आएं या न आएं, उनके नाम से ही ब्यूरोक्रेसी में धकधकी शुरू हो गई है...अफसरों का आखिर रामराज खतम हो जाएगा।
चेंबर में कैमरा
घर-परिवार से असंतुष्ट या आदत से लाचार छत्तीसगढ़ के कुछ अफसरों के इधर-उधर बहकते कदम की चर्चाएं अब पब्लिक डोमेन में होने लगी हैं। अलबत्ता, ये भी सही है कि ऐसे मामलो को चटपटा बनाने उसमें मिर्च-मसाले भी मिला दिए जाते हैं। फिर भी...बिना आग के धुंआ निकलता नहीं। जीएडी सिकरेट्री को इसके लिए काउंसलिंग करनी चाहिए। आखिर, इससे राज्य का नाम ही खराब होगा। बरसते नोटो की गड्डियां, गोल्ड-डायमंड की ज्वेलरी और महंगे उपहारों की चकाचौंध में घरवालियां व्यस्त हो जाती हैं, और अफसर लगते हैं गुल खिलाने।
कायदे से जितने बड़े अफसर, उनके लंगोट उतने ही टाईट होनी चाहिए। मगर कलयुग ये है। दरअसल, कुछ फर्म और कंपनियां सुनियोजित ढंग से अफसरों को ट्रेप करने के लिए हनी गर्ल याने खूबसूरत लड़कियों को अपाइंट कर लिया है। उनका काम ही है चिकनी-चुपड़े बात कर अफसरों को फंसाना और उसके बाद मनमाफिक फाइलों को ओके कराना। हनी गर्ल के जाल में अफसर ट्रेप होते जा रहे हैं और हिट विकेट भी।
हालांकि, चरित्र को लेकर चौकस कुछ अफसर विषकन्याओं से बचने अपने चेंबर में कैमरा लगाने लगे हैं। पारदर्शिता की दिशा में ये अच्छा कदम है। सरकार को इसे एप्रीसियेट करनी चाहिए।
पसंद अपनी-अपनी
विषकन्याओं की बात आई तो एक पुराना वाकया याद हो आया। पुराने मंत्रालय की बात है। दोपहर का वक्त था...सिकरेट्री होम एएन उपध्याय के पास मैं बैठा था। तभी भृत्य एक विजिटिंग कार्ड लाकर उन्हें दिया। मुझे वहां बैठे करीब घंटा भर हो गया था, फिर किसी आगंतुक का कार्ड भी आ गया था, सो मैं उठने लगा। मगर उपध्यायजी ने मुझे बिठा लिया। बोले...बैठो अभी। दिल्ली की हथियार सप्लाई करने वाली कंपनी की महिला आई है...इन लोगों से मैं डरता हूं...आप थोड़ी देर और बैठ जाओ। उनका आग्रह था, मैं बैठ गया। उन्होंने घंटी बजाई और भृत्य से कहा, भेजो।
दरवाजा खुला तो एक लंबी-चौड़ी कद काया की गौर वर्ण की बेहद आकर्षक युवती भीतर दाखिल हुई। नजाकत और नफासत के साथ वह अपनी कंपनी के गोला-बारूद, रायफल की बारे में बताती रही और उपध्याय जी आदतन हूं...हां करते रहे। उपध्याय जी तरफ से रिस्पांस काफी ठंडा था। इसलिए वह ज्यादा देर बैठ नहीं सकी। करीब 10 मिनट में ही थैंक्स बोलकर खड़ा हो गई।
उसी दिन शाम करीब छह बजे पुलिस मुख्यालय के एक बहुते बड़े अफसर से मेरा अपाइंटमेंट था। मैं नियत समय पर उनके पास पहुंच गया। अभी उनके पास बैठे दो-से-तीन मिनट हुआ होगा कि हथियार सप्लाई कंपनी की वही युवती बेधड़क दरवाजा खोलकर दाखिल हुई। युवती को देखते ही अफसर के चेहरे पर चमक आ गई...उन्होंने बड़ा वार्म वेलकम किया। इतना वार्म कि मुझे दो-चार पल बैठना असहज लगने लगा। चूकि चाय आ गई थी, सो जैसे-तैसे दो-चार चुस्की लेकर निकल गया। कहने का आशय यह है...पसंद अपनी-अपनी। लंगोट के पक्के लोग सुंदरियों को देखकर भी अपना धैर्य नहीं खोते और लंगोट के ढिले लोग जीभ लपलपाने लगते हैं।
सरकार नाराज?
भारत सरकार से सात वर्ष के डेपुटेशन से लौटे अमित कटारिया को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। अंदेशा व्यक्त किया जा रहा कि कहीं अमित की लंबी छुट्टी से सरकार खफा तो नहीं है। जाहिर है, भारत सरकार से रिलीव होने के बाद अमित दो महीने की छुट्टी पर चले गए थे। छुट्टी पूरी होने पर वे रायपुर आए और ज्वाईन करने के साथ ही दो महीने की छुट्टी ले ली। फिर छुट्टी खतम होने पर पिछले महीने रायपुर आए मगर ज्वाईनिंग के बाद फिर दिल्ली चले गए।
इससे पहले की बीजेपी सरकार में अघोषित नियम बन गया था दिल्ली से लौटने वाले अफसरों को पोस्टिंग के लिए महीने भर तक वेट करना पड़ता था। अमिताभ जैन, अमित कुमार और गौरव द्विवेदी को भी इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मगर ये तीनों रायपुर में डटे रहे। अमित और गौरव आफिसर्स क्लब में महीना भर तक पोस्टिंग की बाट जोहते रहे। बहरहाल, सरकार को समझना चाहिए दिल्ली की चकाचौंध में सात साल तक नौकरी करने के बाद रायपुर में रहना मुश्किल तो होगा ही।
संयोग ऐसा भी
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जब केंद्र में इस्पात राज्य मंत्री थे तो विशाखापटनम के सांसद किंजरामू राममोहन नायडू उनसे मिलने आया करते थे। दरअसल, भारत सरकार का स्टील प्लांट विशाखापटनम में है और नायडू वहीं से पहली बार के सांसद थे तो किसी-न-किसी इश्यू को लेकर वे विष्णुदेव से मिलते रहते थे। नायडू अब केंद्र में एवियेशन मिनिस्टर बन गए हैं। वो भी स्वतंत्र प्रभार।
इस बार संयोग ऐसा रहा कि छत्तीसगढ़ की एयर कनेक्टिविटी को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं उनसे मिलने पहुंचे। विष्णुदेव को देख नायडू को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सीएम उन्हें मुद्दे गिनाते गए और वे यस बोलते गए। टूटी-फूटी हिंदी में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए जो भी बन पड़ेगा...हम जरूर करेगा। चलिये, अच्छा है। छत्तीसगढ़ में एयरकनेक्टिविटी दुरूरूत होने की संभावनाएं अब काफी प्रबल हो गई हैं।
सीएम सिक्यूरिटी में चूक क्यों?
पिछले दो महीने में तीन से चार बार सीएम सिक्यूरिटी में चूक हुई है। पहली बार दुर्ग में काफिले की गाड़ियां आपस में टकरा गईं। फिर रायगढ़ में ट्रेफिक जाम हुआ। और अब कवर्धा में कुछ पल के अंतराल में दो घटनाएं। पहले में सीएम का काफिला जहां से गुजरना था, वहां एक लावारिस कार खड़ी थी और दूसरा...सीएम को ट्रैफिक जाम की वजह से पीछे लौटना पड़ा।
कवर्धा में मुख्यमंत्री का जनवासय में जाने का कार्यक्रम अचानक बना। मगर वहां के पुलिस अधिकारियों को 10 मिनट टाईम लेकर रोड क्लियरेंस करा लेना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। इसमें पुलिस अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है। गृह विभाग को कम-से-कम अपने विभागीय मंत्री के जिले में ठीकठाक अफसर को पोस्ट करना चाहिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या ये सही है कि सरगुजा पुलिस रेंज के किसी एसपी की छुट्टी होने वाली है?
2. मंत्रियों के पीए और अघोषित सलाहकारों की धुंआधार बैटिंग को रोका क्यों नहीं जा रहा है?