रविवार, 1 अक्तूबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: सबसे छोटी जीत

Chhattisgarh तरकश, 1 अक्टूबर 2023

संजय के. दीक्षित

सबसे छोटी जीत

आजादी के बाद छत्तीसगढ़ की कोटा और खरसिया ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस पार्टी अपराजेय रही है। इन सीटों पर कभी भी किसी और पार्टी को जीत का मौका नहीं मिला। फिलहाल बात कोटा की। कोटा से मथुरा प्रसाद दुबे लगातार चार बार विधायक चुने गए। सबसे कम मतों से जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है। 1977 के विधानसभा चुनाव में कोटा में मात्र 74 वोट से उन्होंने जीत दर्ज की थी। हालांकि, विधायक वे चार बार ही रहे मगर सियासत में ख्याति उन्होंने खूब कमाई। मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रहे। विधायिकी ज्ञान के कारण उन्हें विधान पुरूष की उपाधि दी गई थी। मथुरा दुबे के सियासी विरासत को उनके भांजे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने आगे बढ़ाया। उनके बाद 1985 के चुनाव में कोटा सीट से राजेंद्र प्रसाद को टिकिट दी गई और लगातार पांच बार उन्होंने जीत दर्ज की...मृत्यु पर्यंत उन्होंने इस सीट की नुमाइंदगी की।

सिंहदेव की तारीफ के मायने

ये बात पुरानी हो गई थी कि पीएम नरेंद्र मोदी के रायगढ़ के सरकारी कार्यक्रम में मंत्री टीएस सिंहदेव ने उनकी तारीफ की...सिंहदेव को इसके लिए पार्टी के हैदराबाद सम्मेलन में खेद प्रगट करना पड़ा। मगर पीएम मोदी ने आज बिलासपुर में सिंहदेव की तारीफ और कांग्रेस पार्टी पर तंज कस मामले को फिर से ताजा कर दिया। मोदी के इस कटाक्ष के निहितार्थ समझे जा सकते हैं। दरअसल, ढाई-ढाई साल के इश्यू को लेकर सिंहदेव पार्टी से खफा थे। चुनाव से ऐन पहिले डिप्टी सीएम की कुर्सी देकर कांग्रेस द्वारा उन्हें साधने की कोशिश की गई थी। मगर मोदी और सिंहदेव की एक-दूसरे की तारीफ ने उनकी स्थिति विचित्र कर दी है। जाहिर है, कांग्रेस पार्टी ने सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाकर कार्यकर्ताओं को एकजुटता का संदेश दिया था। मगर इस तारीफ एपीसोड ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल सिंहदेव के सियासी भविष्य को लेकर है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है, मोदी ने सिंहदेव की तारीफ कर उन्हें साधने की कोशिश की है तो कांग्रेस की एकजुटता में सेंध भी लगा दिया। अब देखना होगा, मोदी के तरकश के इस तीर से कांग्रेस पार्टी कैसे निबटती है?

कांग्रेस की टिकिट

टिकिट वितरण में बीजेपी जरूर आगे निकल रही है मगर सत्ताधारी पार्टी होने के नाते कांग्रेस के लिए टिकिट फायनल करना आसान नहीं है। खासकर ऐसे में और मामला और पेचीदा हो जाता है, जब 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक दावेदार हों। पता चला है, सिंगल या कम दावेदारी वाली दो दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान जल्द ही कर दिया जाएगा मगर करीब 50 से 60 सीटें नामंकन के आखिरी दिनों में क्लियर होने के संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि पार्टी में नेताओं की संख्या काफी है। याद कीजिए, 2018 में कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब भी टिकिट का क्रेज कम नहीं था। आलम यह रहा कि नामंकन शुरू हो गया था और दिल्ली में मशक्कत जारी रही। अब तो पार्टी सरकार में है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी इस बार बड़ी संख्या में चेहरे बदलने जा रही है। पार्टी के सर्वेक्षणों में यह बात आई है कि विधायकों के एंटी इंकाम्बेंसी ज्यादा है...71 में से करीब दो दर्जन से अधिक विधायकों की टिकिट काटनी पड़ेगी। ये ऐसे विधायक हैं, जो कांग्रेस की लहर में वैतरणी पार हो गए और उसके बाद अपनी छबि भी नहीं बना पाए। टिकिट कटने पर असंतुष्टों को डैमेज करने का मौका नहीं मिल पाए, इसलिए दूसरी और बड़ी लिस्ट नामंकन के दौरान ही निकल पाएगी।

आखिरी चुनाव

81 की उम्र में रामपुकार सिंह पत्थलगांव से टिकिट की दावेदारी कर रहे हैं और उम्मीद भी है कि कांग्रेस पार्टी इस वरिष्ठ नेता का सम्मान करते हुए उन्हें टिकिट दे दें। उम्र के मद्देनजर ये उनका आखिरी चुनाव होगा। जाहिर तौर पर इसके बाद वे चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं होंगे। उम्र और स्वास्थ्य के हिसाब से देखें तो कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और रामपुर के विधायक और पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर का भी ये आखिरी चुनाव है। कंवर को इसी नजरिये से टिकिट देने पर विचार किया जा रहा है कि मेरा आखिरी चुनाव...के दांव पर उनकी सीट निकल जाए।

नॉट आउट एसपी

पिछले पांच साल में लगातार हुए ट्रांसफर के बीच छत्तीसगढ़ में दो ऐसे एसपी हैं, जो छह साल से ज्यादा समय से नॉट आउट क्रीज पर टिके हुए हैं, और उनकी वर्किंग से समझा जाता है, आगे भी बैटिंग करते रहेंगे। इनमें पहला नाम है बिलासपुर एसपी संतोष सिंह और दूसरा कबीरधाम के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव। दोनों पिछली सरकार में एसपी अपाइंट हुए थे और आज भी जिला संभाल रहे हैं। संतोष का ये आठवां जिला है और अभिषेक का चौथा। संतोष कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, कोरिया, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा के बाद बिलासपुर में कप्तानी कर रहे हैं। संतोष इतना बैलेंस काम कर रहे हैं कि पिछली सरकार में भी उनका ठीक ठाक था और इस सरकार में भी। बिलासपुर के बाद बहुत संभावना है कि वे रायपुर जिले का एसपी बन बद्री मीणा का नौ जिले का रिकार्ड ब्रेक करें। उधर, अभिषेक दंतेवाड़ा, जांजगीर, दुर्ग जिले के बाद अब कबीरधाम के एसपी हैं। दंतेवाड़ा में करीब चार साल एसपी रहने का उन्होंने रिकार्ड बनाया। सोशल मीडिया सक्रियता की वजह से वे अपने ही आईपीएस बिरादरी के निशाने पर आ गए वरना कामकाज और साफ-सुथरी छबि के मामले मे वे चुनिंदा पुलिस अफसरों में उनका नाम शुमार किया जाता है। फिर भी अच्छी बात यह है कि एसपी के ट्रेक पर बने हुए हैं। सबसे जरूरी भी है...ट्रेक पर बने रहना। संतोष सिंह को इसी सरकार ने जब रायगढ़ से हटाकर कोरिया भेजा था, तब कहा गया था संतोष की पारी अब खतम है। मगर उसके बाद वे राजनांदगांव, कोरबा के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इन दोनों के अलावा 2018 के चुनाव वाले तीन एसपी और हैं, जो इस समय भी जिला संभाल रहे हैं। मगर ये तीनों बीच में कुछ समय के लिए ट्रेक से बाहर रहे। इनमें दीपक झा, जीतेंद्र मीणा, अभिषेक मीणा और लाल उम्मेद सिंह शामिल हैं। दीपक इस समय बलौदा बाजार, जीतेंद्र बस्तर, अभिषेक राजनांदगांव और लाल उम्मेद बलरामपुर के एसपी हैं।

स्पीकर की चुनौती

छत्तीसगढ़ में मिथक था...नेता प्रतिपक्ष और विधानसभा अध्यक्ष चुनाव नहीं जीतते। प्रथम नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय से लेकर महेद्र कर्मा और रविंद्र चौबे तक चुनाव हार गए। इनमें से सबसे अधिक धक्का चौबे को लगा। साजा सीट पर तीन दशक से उनके परिवार का कब्जा रहा। मगर 2013 के चुनाव में उन्हें भाजपा के अल्पज्ञात व्यापारी नेता से पराजय का सामना करना पड़ा। चौबे की हार के बाद टीएस सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष बनें। उन्हांंने 2018 के चुनाव में जीत दर्ज कर नेता प्रतिपक्ष के चुनाव न जीतने के मिथक को तोड़ दिया। रही बात स्पीकर की, तो यह मिथक अभी कायम है। राज्य बनने के बाद राजेंद्र शुक्ल स्पीकर बने और 2003 का चुनाव जीते। मगर उनके बाद कोई भी स्पीकर चुनाव नहीं जीत पाया। प्रेमप्रकाश पाण्डेय से लेकर धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल अपनी सीट नहीं बचा पाए। ऐसे में, स्पीकर डॉ. चरणदास महंत के सामने इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती होगी। खासकर ऐसे में, जब सक्ती में प्रायोजित ही सही...राजपरिवार द्वारा उनका विरोध किया जा रहा।

कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर?

आचार संहिता लागू होने से पहिले कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकल सकती है। इनमें ऐसे अफसरों का नाम हो सकता है, जो चुनाव आयोग के राडार पर हैं। वैसे, चार अक्टूबर तक वोटर लिस्ट का काम चलेगा, उसके बाद ही कलेक्टरों का ट्रांसफर हो सकता है। किन्तु एसपी का सरकार जब चाहे तब कर सकती है। एसपी की इस हफ्ते चर्चा भी उड़ी थी, मगर लिस्ट निकल नहीं पाई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या राज्य सरकार पीएससी केस में कोई बड़ा एक्शन लेने की तैयारी कर रही है?

2. आसन्न विधानसभा चुनाव में बसपा दो-एक सीट निकालेगी या वोट प्रभावित करेगी?


शनिवार, 23 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?

 तरकश, 24 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?

2018 के विधानसभा चुनाव के समय 6 अक्टूबर को चुनाव का ऐलान हुआ था...इसी दिन से आचार संहिता भी प्रभावशील हो गई थी। तब नवंबर मे पहले हफ्ते में 7 को दिवाली थी। इसलिए फर्स्ट फेज में 18 सीटों की पोलिंग 12 नवंबर को हुई और सेकेंड फेज की 72 सीटों पर वोटिंग 20 नवंबर को हुई थी। इस बार दिक्कत यह हो रही कि लगभग 12 नवंबर को दिवाली है और छठ पूजा 19 को। इस चक्कर में हो सकता है, दिवाली, गोवर्द्धन पूजा, भाई दूज और छठ के बाद याने 20 और 25 के बीच दो फेज में वोटिंग हो। चुनाव आयोग से जुड़े अफसरों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो इस बार आचार संहिता अक्टूबर के पहिले हफ्ता की बजाए 12 से 15 अक्टूबर तक जा सकती है।

टिकिट पर घमासान

भाजपा ने अगस्त एंड में 21 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान करके सबसे पहिले टिकिट वितरण कर सियासी पंडितों को चौंकाया तो कांग्रेस भी एक्साइटेड होकर 6 सितंबर को पहली सूची जारी करने की घोषणा की थी। मगर इस डेट को निकले पखवाड़ा भर से अधिक हो गया, कांग्रेस का कोई नेता पुख्ता कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है। राहुल जी आएंगे...खड़गे जी आएंगे उसके बाद...। यानी 28 सितंबर को बाद ही कोई उम्मीद की जानी चाहिए। पता चला है, 30 सितंबर के आसपास 12 मंत्रियों समेत सिंगल नाम वाले दो-तीन सीटों पर पार्टी ऐलान कर सकती है। बची सीटों पर आचार संहिता लगने के बाद ही कुछ हो पाएगा। सूबे के 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक कांग्रेस नेताओं ने दावेदारी की है। जाहिर है, कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रहा कि पहले टिकिट वितरण में नुकसान हो सकता है। हालांकि, भाजपा का हाल भी जुदा नहीं है। 21 प्रत्याशियों की घोषणा कर बाजी मारने वाली बीजेपी अब फूंक-फूंककर कदम रख रही है। 12 सितंबर के आसपास भाजपा की एक लिस्ट आने की चर्चा थी...पार्टी के कई नेताओं ने इशारों में इसकी पुष्टि भी की। किन्तु भाजपा भी अब वेट एंड वॉच की मुद्रा में दिखाई पड़ रही है।

सीएम का सपना

2005 में जब पीएससी घोटाला हुआ था, तब कांग्रेस ने ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ को कड़ा एक्शन लेने विवश होना पड़ा था। उन्होंने डीजीपी रहे पीएससी के हाई प्रोफाइल चेयरमैन अशोक दरबारी को सस्पेंड कर दिया था। राज्य सरकार ने भी ईओडब्लू जांच का ऐलान करना पड़ा। बहरहाल, 2005 की तरह इस समय भी पीएससी सुर्खियों में है। बेटे-बेटियों, रिश्तेदारों को डिप्टी कलेक्टर बनाने की खबरें पब्लिक डोमेन में घूम रही हैं। मगर ताज्जुब की बात यह है कि चुनाव के दो महीने पहले युवाओं से जुड़े इसे मसले पर भी 15 साल सत्ता में रही बीजेपी के बड़े नेता उज्जवल दीपक जैसे तीसरी पंक्ति के नेता को आगे कर सीएम के सपने देखने में व्यस्त हैं। वैसे, उज्जवल कई महीनों से सरकार के फैसलों को ट्वीटर के जरिये उठाए पड़े हैं। लेकिन सवाल उठता है छत्तीसगढ़ के कितने परसेंट लोग ट्वीटर से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा के ही एक पूर्व मंत्री ने अपने नेताओ ंपर तंज किया...हमारे नेताजी लोग सीएम की शपथ लेने का सपना देखने में बिजी हैं...किस कलर का कुर्ता पहनूंगा, किस कलर का जैकेट। बाकी ओम माथुर, अनिल जामवाल और नीतिन नबीन मेहनत कर ही रहे हैं...बचेगा वो मोदीजी और अमितशाह जी देख लेंगे।

पूर्व मंत्रियों को डर

बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर बिना किसी हो-हंगामे के साइलेंटली काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में जाकर कार्यकर्ताओं से संपर्क कर रहे हैं। यही वजह है कि सूबे में चुनाव को लेकर परसेप्शन बदला है। लोग कहना शुरू कर दिए हैं कि सत्ताधारी पार्टी के लिए 2018 जैसा नहीं रहेगा। बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि लोकल नेता उस तरह सक्रिय नहीं हैं, जैसा होना चाहिए। सूबे में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरा डॉ0 रमन सिंह हैं...उनको छोड़ मीडिया में किसी को इम्पॉर्टेंस नहीं मिलता। पार्टी रमन सिंह को सम्मान बराबर दे रही है मगर फैसलों में ये नजर नहीं आता। हाल यह है कि लता उसेंडी को उनके समकक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव साफ-सुथरी छबि के नेता हैं...अच्छे वक्ता भी मगर उन्हें वैसा फ्री हैंड नहीं है, जैसा होना चाहिए। पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम रमन सरकार के 12 मंत्री कर सकते थे। लेकिन, वे किन्हीं कारणों से सहमे, डरे प्रतीत होते हैं...वे सड़क पर उतरना नहीं चाहते। मंत्री तो मंत्री बीजेपी के समय के महापौर, आयोग और निगमों के नेता भी मुंह सिले हुए हैं...पता नहीं उसका क्या साइड इफेक्ट आ जाए। केद्रीय नेताओं के दौरे जरूर तेज हो गए हैं। लेकिन बीजेपी नेताओं को कर्नाटक चुनाव सनद होगा। पीएम मोदी और अमित शाह ने वहां क्या नहीं किया। मगर लोकल फेस नहीं होने की वजह से कर्नाटक में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। जाहिर है, ऐसे में ओम माथुर की चुनौती और बढ़ जाएगी।

पहली महिला मंत्री

महिला आरक्षण के वक्त में यह सवाल मौजूं हैं कि महिलाएं राजनीति में अपनी ठोस जगह क्यों नहीं बना पाती। देश की सियासत में वही गिने-चुने चेहरे...। छत्तीसगढ़ भी इससे जुदा नहीं है। रेणू जोगी को छोड़ दें तो सूबे में किसी भी महिला विधायक दो बार से अधिक चुनाव नहीं जीत पाई। या तो उन्हें टिकिट नहीं मिला और मिला तो वे सीट निकाल नहीं पाईं। कोटा उपचुनाव से चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले रेणू जोगी इसी सीट से लगातार चौथी बार विधायक हैं। हालांकि, मध्यप्रदेश के दौर में मिनी माता पांच बार लोकसभा का चुनाव जीती। मिनी माता का जन्म स्थान असम रहा मगर छत्तीसगढ़ को उन्होंने कर्मभूमि बनाया। छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री गीता देवी सिंह रहीं। खैरागढ़ राजपरिवार से जुड़ी गीता देवी को प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने महिला बाल विकास मंत्री बनाया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. महादेव ऐप से आईएएस अफसरों में राहत के भाव और पुलिस वालों में घबराहट क्यों है?

2. लोकसभा में महिला आरक्षण का क्रेडिट लेने सभी पार्टियों में होड़ रही तो क्या छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा नैतिक तौर पर 33 परसेंट आरक्षण का पालन करेगी?


शनिवार, 16 सितंबर 2023

Chhattisgar Tarkash: 7 दिन के सीएम

 तरकश, 17 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

7 दिन के सीएम

छत्तीसगढ़ से एक ऐसे मुख्यमंत्री भी हुए, जो महज सात दिन अपनी कुर्सी पर बैठ पाए। मध्यप्रदेश के दौर का यह वाकया पुराना है। छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...1967 में संविद सरकार के समय विधायकों की नाराजगी के चलते गोविंद नारायण सिंह की सरकार गिर गई थी। ऐसे में, प्रश्न उठा कि गोविंद की जगह किसे सीएम बनाया जाए। कई दिन की सियासी जोर आजमाइश के बाद सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र सिंह का नाम फायनल हुआ। नरेशचंद्र आदिवासी राजा थे। सारंगढ़ रियासत का मध्यप्रदेश की सियासत में काफी दखल था। उनकी बेटी पुष्पा सिंह 80 और 90 के दशक में कई बार रायगढ़ से सांसद चुनी गईं। बहरहाल, नरेशचंद्र के शपथ लेने के तीसरे दिन विधायकों ने बगावत कर दी। विधायकों का विरोध इतना व्यापक हुआ कि उन्हें सातवें दिन ही कुर्सी छोड़नी पड़ गई। बता दें, 10 दिन के भीतर सीएम की कुर्सी गंवाने वाले मध्यप्रदेश में दो सीएम रहे हैं। नरेशचंद्र के अलावा अर्जुन सिंह। 1985 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बम्पर बहुमत से जीताने के बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब का गवर्नर बनाकर चंडीगढ़ भेज दिया था। दूसरी बार शपथ लेने के तीसरे दिन ही उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ गई। आज भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अर्जुन सिंह के बढ़ते राजनीतिक कद को कम करने के लिए ऐसा किया गया। चलिए बात छत्तीसगढ़ से सीएम की...तो बहुतों को यही मालूम है कि एमपी के समय छत्तीसगढ़ से श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा ही सीएम रहे हैं। मगर ऐसा नहीं...इस लिस्ट में नरेशचंद्र का नाम भी शामिल करना चाहिए।

देश भक्ति कार्ड

छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी को कभी सफलता नहीं मिल पाई। उनमें सरगुजा संभाग की सीतापुर सीट भी शामिल हैं। इस सीट से खाद्य मंत्री अमरजीत भगत लगातार चार बार से जीत रहे हैं। उससे पहिले भी कांग्रेस ही इस सीट से जीतते रही है। मगर इस सीट पर बीजेपी ने देशभक्ति का दांव चल दिया है। इस बार बीएसएफ के जवान रामकुमार टोप्पो को वहां से मैदान में उतारने जा रही है। रामकुमार को वीरता के लिए राष्ट्रपति से मैडल मिल चुका है। जाहिर है, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर इस बार ऐसी सीटों पर खासतौर से फोकस कर रहे हैं, जिस पर बीजेपी कभी जीत नहीं पाई। बीएसएफ जवान की स्क्रिप्ट उनकी प्लानिंग के तहत ही लिखी गई है। बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। सीतापुर के सैकड़ों युवा रामकुमार को चुनाव लड़ने के लिए पत्र लिखते हैं। पत्र मिलते ही इस्तीफा और आनन-फानन में स्वीकार भी। नौकरी छोड़कर रामकुमार सीतापुर पहुंचे तो पांच हजार से अधिक युवाओं ने उनकी अगुवानी की। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा के समक्ष पार्टी ज्वाईन करने कल बीएसएफ के पूर्व जवान सीतापुर से निकले तो उनके काफिले में 100 से अधिक गाड़ियां रहीं। हालांकि, अमरजीत भगत ने भी सीतापुर में अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली हैं। मगर देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के देशभक्ति कार्ड को अमरजीत कैसे फेस करते हैं।

नो एडिशनल सीईओ

अभी तक छत्तीसगढ़ में हुए तीनों विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चीफ इलेक्शन आफिसर के साथ ही एक एडिशनल सीईओ के साथ एक-एक ज्वाइंट सीईओ, डिप्टी सीईओ की व्यवस्था रही है। 2013 के समय डीडी सिंह ज्वाइंट सीईओ रहे तो 2018 के विधानसभा चुनाव के समय डॉ. एस भारतीदासन। मगर फर्स्ट टाईम अबकी एडिशनल सीईओ की पोस्टिंग नहीं होगी। पता चला है, जीएडी से इसके लिए नामों का पेनल भेजा गया था। मगर सीईओ आफिस ने बता दिया कि एडिशनल सीईओ की जरूरत नहीं। इस समय सीईओ रीना बाबा कंगाले के नीचे नीलेश श्रीरसागर और विपिन मांझी ज्वाइंट सीईओ हैं। यही तीन अफसरों की टीम पर चुनाव का दारोमदार रहेगा।

मौज-मस्ती का बंगला

छत्तीसगढ़ के कई नौकरशाह इन दिनों रहते हैं अपने प्रायवेट बंगलो में मगर सरकारी मकान भी अलाट करा रखा है। इसका इस्तेमाल वे मौज-मस्ती या फिर भांति-भांति के मेल-मुलाकात के लिए कर रहे हैं। एक यंग अफसर का रायपुर के सबसे पॉश कालोनी में निवास है मगर देर रात तक उनकी महफिल सजी रहती है सरकारी बंगले में। ईडी के दौर में आजकल अफसरों ने काम करने का अपना तरीका बदल दिया है। ठेकेदारों और सप्लायरों को पीए बता देते हैं साब के सरकारी बंगले में इतने बजे पहुंच जाइयेगा।

भगवान मिल जाए, मगर...

कांग्रेस की टिकिट का पेंच फंसता जा रहा है। भाजपा की पहली लिस्ट से उत्साहित प्रदेश प्रभारी सैलजा ने छह सितंबर को पहली लिस्ट जारी करने का ऐलान किया था। पर 16 तारीख निकल गई, टिकिट तय करने वाले भी नहीं जानते कि सूची कब और कैसे जारी होगी। टिकिट के लिए नेताओं की बैठकें हो रही, उससे बात बन नहीं पा रही। सबकी अपनी लिस्ट है। सीएम तो राज्य के मुखिया होते हैं, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत स्क्रीनिंग कमिटी में हैं ही, पता चला है पीसीसी के नए चीफ दीपक बैज भी अपने पद और पावर को लेकर संजीदा हो गए हैं। बहरहाल, ऐसी खींचतान में कोई हल निकलेगा नहीं। जाहिर है, फाइनल दिल्ली से होगा। वैसे भी कांग्रेस की टिकिट के बारे में कहा जाता है भगवान मिल जाएंगे मगर कांग्रेस की टिकिट नहीं। कांग्रेस पार्टी में नामंकन भरने के आखिरी दिन तक मशक्कत चलती रहती है। सत्ता में रहने के दौरान तो और भी मत पूछिए। कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता टिकिट का दावेदार है। वैसे, दावेदारी के भी अपने फायदे हैं। नाम चर्चा में आने पर कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ मिल जाते हैं। ठेका, सप्लाई, और तोरी का लेवल बढ़ जाता है।

एजी वर्सेज 50 वकील

बिलासपुर हाई कोर्ट में शिक्षक पोस्टिंग स्कैम पर बहस की बड़ी चर्चा है। शिक्षकों के तरफ से 50 से अधिक वकील खड़े थे और सरकार की तरफ से महाधिवक्ता सतीश चंद्र। एजी उस दिन रोज पूरे रौ में थे। बचाव पक्ष के वकीलों की उनके सामने एक नहीं चल पाई। जब ये कहा गया कि जब इतना बड़ा मामला था तो ज्वाइंट डायरेक्टरों को सिर्फ सस्पेंड क्यों किया गया। इस पर किंचित तमतमाते हुए एजी ने कहा, आप देखते जाइए... हम एफआईआर भी करने जा रहे हैं। उनकी तार्किक दलील का ही नतीजा था कि कोर्ट ने शिक्षकों के वकीलों की एक न सुनी। वकील आग्रह करते रह गए। जस्टिस अरविंद चंदेल बोले... नो... नो। आप अपील कर सकते हैं।

ब्राम्हणों का शक्ति प्रदर्शन

बिलासपुर में 17 सितंबर को छत्तीसगढ़ ब्राम्हण परिषद का एक बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है। इसमें सूबे के मुखिया भूपेश बघेल मुख्य अभ्यागत होंगे। उनके सलाहकार प्रदीप शर्मा इस ताकत नुमाइश के मुख्य सूत्रधार बताए जाते हैं। उन्होंने ही परिषद को भवन बनाने दो एकड़ जमीन दिलाई है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य है चुनाव के समय विप्रजनों की एकजुटता को प्रदर्शित करना। इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रदेश भर से ब्राम्हण बिलासपुर पहुंचेंगे। ब्राम्हणों का पूरा जोर ब्राम्हण डोमिनेटिंग बेलतरा की टिकिट को लेकर है। कांग्रेस ने जब तक ब्राम्हणों को टिकिट दिया, उसे जीत हासिल होती रही। उसके बाद न ब्राम्हण को टिकिट मिली और न कांग्रेस को सीट। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है जातीय राजनीति के दौर में एक जिले में आखिर कितने ब्राम्हण को टिकिट मिलेगी। बिलासपुर में ऑलरेडी कांग्रेस के विधायक हैं।

एक्साइज के अगले त्रिपाठी

एक्साइज में महादेव कांवड़े को सचिव और कमिश्नर बनाया गया है। मगर उनके नीचे एपी त्रिपाठी मॉडल का कोई अफसर नहीं है, जो शराब की खरीदी-बिक्री की सिस्टम को आपरेट कर सके। ऐसे में, डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग में आए एक अफसर की चर्चा है कि वे अपना प्रताप दिखाने रायपुर हेड क्वार्टर लाए जा रहे हैं। अगले हफ्ते उनका आदेश निकल सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और मंत्री जय सिंह को एक-दूसरे की मजबूरी क्यों कहा जाता है?

2. मंत्री टीएस सिंहदेव ने शिष्टाचारवश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच से केंद्र सरकार की तारीफ की...इससे कांग्रेस पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?



रविवार, 10 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: निर्वाचन आयोग की तलवार

 तरकश, 10 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

निर्वाचन आयोग की तलवार

विभागों और जिम्मेदारियों के मामले में छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी जनकराम पाठक को सरकार ने यकबयक हटाकर लोगों को चौंका दिया। चरित्र को तार-तार करने वाले गंभीर किसिम के केस दर्ज होने के बाद पाठकजी सिकरेट्री नहीं बन पाए। लेकिन, छत्तीसगढ़ में उनकी तरक्की वैसी ही रही, जैसे हवाई जहाज टेकआफ करता है। पाठक जी इस तरह सस्ते में क्यों निबट गए...इस पर फिर कभी। मगर उनके पांचों मलाईदार विभाग महादेव कांवरे को सौंप दिए गए हैं। याने कावरे साब ही हैसियत भी बढ़ गई है। उन्हें इसका कभी सपना भी नहीं आया होगा कि आवास पर्यावरण सिकरेट्री, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग कमिश्नर, एक्साइज सिकरेट्री, एक्साइज कमिश्नर, एमडी ब्रेवरेज कारपोरेशन, शराब खरीदी करने वाली कंपनी के एमडी में से कभी एक के भी वे मुखिया बन पाएंगे। मगर वक्त है...बन गए। हालांकि, चुनाव के समय कावरे पर कुर्सी बचाने के खतरे भी होंगे। शराब जब्ती को लेकर निर्वाचन आयोग बेहद सख्त है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार थी तो आयोग ने एक्साइज सिकरेट्री और एक्साइज कमिश्नर डीडी सिंह को हटा दिया था। सो, कावरे को सतर्कता से काम करना होगा।

आप के मिशनरी प्रत्याशी

आम आदमी पार्टी ने अपने 10 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। इनमें पत्थलगांव और कुनकुरी से दो ईसाई उम्मीदवार शामिल हैं। इन दोनों विधानसभा सीटों पर मिशनरीज का अच्छा प्रभाव है...बल्कि जीत-हार तय करने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। कुनकुरी में यूडी मिंज 2018 के कांग्रेस की लहर में 4500 वोट से जीत पाए थे। किंतु, पत्थलगांव में रामपुकार सिंह की मार्जिन अच्छी रही। फिर भी आप के इन मिशनरी उम्मीदवारों से इन दोनों सीटों पर सत्ताधारी पार्टी की चुनौतियां बढ़ सकती है। आम आदमी पार्टी का अकलतरा का कंडिडेट भी ठीक-ठाक है। इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के आनंद प्रकाश मिरी की दलित समुदाय में अच्छी पैठ है। वैसे सूबे में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा। पूर्व की तरह बसपा को दो-एक सीटें मिल जाएंगी। आप के लिए जरूर इस बार कोई स्कोप नहीं दिख रहा...सिवाय वोट परसेंटेज बढ़ाने के। हां...ये जरूर होगा कि कुछ सीटों पर नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में वह रहेगी। ऐसे में, आप को बीजेपी का बी टीम बोलना है तो लोग बोलते रहे...आखिर, बसपा को तो लोग बोल ही रहे हैं।

मंत्री, पूर्व मंत्री फायनल

रुलिंग पार्टी किसी भी मंत्री का टिकिट नहीं काट रही...सभी 12 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने पर सहमति बन गई है। इसी तरह रमन सरकार के 12 में से 9 मंत्रियों की टिकिट निश्चित समझी जा रही हैं। इनमें सीनियर मंत्री तो लगभग सभी हैं। रामविचार नेताम को मिल ही गई है...बचे बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, पुन्नूराम मोहले, केदार कश्यप। हालांकि, पहले ये संदेश दिए गए थे कि पुराने नेताओं की बजाए अब नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा। मगर ओम माथुर के प्रभारी बनने के बाद क्रायटेरिया में बदलाव हुआ है। माथुर से जुड़े लोगों का मानना है कि 15 साल मंत्री रहे नेताओं का अपना एक प्रभाव है।

कलेक्टर की छुट्टी

बात 2003 के विधानसभा इलेक्शन की है। चुनाव की रणभेड़ी बज चुकी थी। आचार संहिता लागू होने के बावजूद सूबे के एक कलेक्टर ने ऐसी गलती कर डाली कि चुनाव आयोग ने उनका विकेट उड़ा दिया। दरअसल, 19 नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जशपुर में सभा थी। इसके बाद उन्हें लोदाम जाना था। प्रमोटी आईएएस डॉ. बीएस अनंत तब जशपुर के कलेक्टर थे। आचार संहिता में कलेक्टर ने न केवल सीएम की हेलीपैड पर अगुवानी की बल्कि जशपुर से लोदाम जाने के लिए सीएम के हेलिकाप्टर पर सवार हो गए। सोशल मीडिया का वो युग नहीं था। 20 नवंबर को अखबारों में सीएम के हेलिकाप्टर में बैठते-उतरते कलेक्टर की फोटो छपी। बीजेपी ने चुनाव आयोग को फैक्स के जरिये पेपरों की कटिंग भेज दी। फैक्स मिलते ही चुनाव आयोग ने कलेक्टर की छुट्टी कर दी। केके चक्रवर्ती उस समय राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी थे। उनके पास दिल्ली से फोन आया...चीफ सिकरेर्टी से बात करके दो घंटे के भीतर तीन नामों का पेनल भेजिए। चक्रवर्ती ने पेनल भेजा और उसी दिन शाम को आयोग ने गौरव ि़द्ववेदी को कलेक्टर अपाइंट कर दिया। उस समय भी जशपुर पहुंचना कठिन काम था...रायपुर से सुबह निकलिए तो देर शाम से पहले संभव नहीं...20 साल बाद भी स्थिति वही है...रायपुर से उड़ीसा होकर जाएं तब भी 10 से 11 घंटा लगेगा ही। बहरहाल, कनेक्टिविटी के प्राब्लम को देखते आयोग ने चीफ सिकरेट्री को आदेश दिया कि गौरव को जशपुर जाने के लिए हेलिकाप्टर मुहैया कराई जाए। गौरव द्विवेदी 21 नबवंर को हेलिकाप्टर से ज्वाईन करने जशपुर पहुंचे और 19 दिसंबर को चुनाव संपन्न कराकर रायपुर लौटे।

सबसे अधिक चुनाव

कलेक्टर के रूप में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक आम चुनाव कराने का रिकार्ड ठाकुर राम सिंह के नाम दर्ज है। राम सिंह लगातार नौ साल कलेक्टर रहे। इनमें रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर जैसे जिले शामिल हैं। उन्होंने 2008 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा तथा 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव कराया। दूसरे नंबर पर दयानंद हैं। वे दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव कराए हैं। बिलासपुर कलेक्टर रहते उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव कराया मगर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हट गए। अभी 33 जिलों में से सिर्फ दो ही ऐसे कलेक्टर हैं, जो 2018 का विधानसभा चुनाव कराए हैं। प्रियंका शुक्ला और डोमन सिंह। तब प्रियंका जशपुर में कलेक्टर थीं और डोमन कांकेर में। ये अलग बात है कि निर्वाचन आयोग ने डोमन सिंह के सीनियरिटी और काबिलियत का सम्मान नहीं किया। यूपी के एक्स सीएस और निर्वाचन आयुक्त अनूप पाण्डेय तो लगभग टूट ही पड़े।

चार यार...

इस समय 33 में से चार कलेक्टर ऐसे हैं, जिन्हें 2019 का लोकसभा चुनाव कराने का अनुभव है। इनमें रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश भूरे, बिलासपुर कलेक्टर संजीव झा, बलौदा बाजार कलेक्टर चंदन कुमार और कोंडागांव कलेक्टर दीपक सोनी। दिलचस्प यह है कि चारों सेम बैच के आईएएस हैं...2011 के। 2019 के जनवरी में चारों एक ही लिस्ट में पहली बार कलेक्टर बनें और अभी भी क्रीज पर जमे हुए हैं। इस दौर में पौने पांच साल से कलेक्टरी की पिच पर जमा रहना आसान काम नहीं है।

फरवरी में चुनाव!

यद्यपि, ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि पांच राज्यों के इलेक्शन नीयत समय याने नवंबर में होंगे...क्योंकि, वन नेशन, वन इलेक्शन इतना आसान नहीं है। मगर पीएम नरेंद्र मोदी हमेशा चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों के पालिटिशियन सांस रोक कर 18 तारीख के विशेष सत्र का इंतजार कर रहे हैं। राजनेताओं को डर सता रहा...कुछ भी हो सकता है। वैसे भी, पीएम नरेंद्र मोदी जी-20 में बड़े-बडे राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी कर अपना विल और स्ट्रांग कर लिए हैं। भारत सरकार में बैठे अफसर भी इस बात से इंकार नही ंकर रहे कि इलेक्शन फरवरी तक जा सकता है। लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के भी चुनाव होते हैं। सरकार एक फार्मूला बना सकती है कि जिन सरकारों का चार साल हो गया है, वहां लोकसभा के साथ ही इलेक्शन करा दिया जाए। ऐसे में, दो-चार राज्य और शामिल हो सकते हैं। बहरहाल, क्लियर अभी कुछ भी नहीं। 18 सितंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा कि विशेष सत्र के बिल में क्या है। जाहिर है, तब तक राजनेताओं की धड़कनें बढ़ीं रहेंगी।

ताकतवर अफसर!

सात सीनियर अफसरों को सुपरसीट करके राज्य सरकार ने एडिशनल पीसीसीएफ श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ बनाया था। अब तीन महीने के भीतर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स याने हॉफ बन गए। ऐसा प्रभाव पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी और संजय शुक्ला का भी नहीं रहा। उन्हें भी हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने में वक्त लगा था और मशक्कत भी। राज्य में तीन शीर्ष स्केल वाले पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। श्रीनिवास राव अब सूबे के तीन सबसे बड़े अफसरों में शामिल हो गए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जीएडी द्वारा कुछ अधिकारियों को शंट किया जा रहा है, इसकी क्या वजह है?

2. कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी में मंत्री जय सिंह अग्रवाल के लोगों को सबसे अधिक जगह कैसे मिल गई?


शनिवार, 2 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: सबसे अधिक लड़ैया

 तरकश, 3 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

सबसे अधिक लड़ैया

बिलासपुर जिले की बेलतरा विधानसभा सीट से सीएम के एडवाइजर प्रदीप शर्मा के चुनाव लड़ने की माउथ पब्लिसिटी हुई मगर दावेदारी जताने का मौका आया तो प्रदीप को छोड़ 99 दावेदार मैदान में कूद पड़े। बता दें, सूबे की 90 सीटों पर 1900 नेताओं ने दावेदारी की है, उनमें सर्वाधिक संख्या बेलतरा की है। दरअसल, 15 साल मंत्री रहे अमर अग्रवाल की वजह से बिलासपुर हाई प्रोफाइल सीट हो गई है, लिहाजा, बिलासपुर के अधिकांश नेता बिलासपुर से लड़ना नहीं चाहते। इसके बनिस्पत बेलतरा उन्हें ज्यादा मुफीद लगता है। ये अलग बात है कि, तीन दशक से इस सीट से कांग्रेस जीती नहीं है। आखिरी जीत 1993 में मिली थी, जब चंद्रप्रकाश बाजेपेयी विधायक बने थे। ब्राम्हण बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने बाजपेयी के बाद किसी ब्राम्हण को टिकिट दिया भी नहीं। अब देखना है, सबसे अधिक दावेदारों वाली इस सीट पर कांग्रेस अबकी किसे प्रत्याशी बनाती है...ब्राम्हण को या किसी गैर ब्राम्हण को?

ठाकुरों में जंग

जोगी कांग्रेस से विधायक रहे धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। और जैसी चर्चाएं है...तखतपुर से उन्हें चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो वहां दो ठाकुरों में दिलचस्प मुकाबला होगा। इस समय रश्मि सिंह बाजपेयी कांग्रेस से विधायक हैं। और सुनने में आ रहा इस बार उनके पति आशीष सिंह तखतपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी हो सकते हैं। रश्मि के साथ आशीष ने भी दावेदारी की है। जाहिर तौर पर धर्मजीत सिंह बिलासपुर जिले का एक बड़ा नाम है। विद्याचरण शुक्ल के सियासी स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं...बात रखने का अपना प्रभावशाली अंदाज है। तो 18 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट बन गए आशीष भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके पिता बलराम सिंह तखतपुर से विधायक रहे हैं। और, सबसे बड़ी बात...प्रदेश का कोई विधायक जितना अपने इलाके का दौरा या संपर्क नहीं बनाकर रखा होगा, उससे कहीं ज्यादा विधायक पति आशीष अपने इलाके में सक्रिय रहे। कुल मिलाकर चुनावी रण में दो बड़े ठाकुरों की लड़ाई देखने लायक होगी।

छत्तीसगढ़ के अजातशत्रु

छत्तीगसढ़ में पांच बार से अधिक कोई ऐसा विधायक जो लगातार चुनाव जीत रहा है तो वह नाम है बृजमोहन अग्रवाल का। प्रदेश के कांग्रेस और भाजपा के सारे दिग्गज एक या एक से अधिक बार पराजित हो चुके हैं मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने हुए हैं। पहली बार वे 1990 में कांग्रेस के स्वरूपचंद जैन को हरा कर विजयी हुए थे। तब रायपुर में दो सीट होती थी। एक रायपुर शहर और दूसरा रायपुर ग्रामीण। रायपुर शहर से स्वरुपचंद जैसे नेता को हराने का उन्हें ईनाम मिला और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। इसके बाद वे इस समय सातवी बार विधायक हैं। भाजपा के ही पुन्नूराम मोहले अभी तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। वे चार बार लोकसभा और चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के कवासी लखमा आएंगे। वे भी पिछले पांच बार से लगातार जीत दर्ज करा रहे हैं। रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे इस समय बृजमोहन से आगे होते। बृजमोहन का प्लस यह है कि उन्होंने अपना ऐसा औरा बनाया है कि टिकिट मिलेगी, तब तक वे जीतेंगे। हालांकि, कांग्रेस के प्रमोद दुबे बृजमोहन को टक्कर देने का एक मौका गंवा दिए। 2018 के चुनाव में प्रमोद को टिकिट मिल रही थी मगर उन्होंने ठुकरा दिया। तब कांग्रेस की आंधी में प्रमोद कुछ भी कर भी सकते थे।

चिंता का विषय!

राष्ट्रपति के विजिट की वजह से राजधानी रायपुर हाई सिक्यूरिटी मोड पर रही। बाहर से एक आईजी, दो डीआईजी समेत कई आईपीएस, एसपीएस अधिकारियों को बुलाया गया...दीगर जिलों से आए दो हजार से अधिक जवान भी रहे तैनात। बावजूद इसके रायपुर में नए अंदाज में लूट की घटना हो गई...राखी बांधकर लौट रहीं दो बहनों से अनाचार की शर्मनाक घटना भी। पुलिस महकमे को इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए...अपराधियों में पुलिस की बर्दी का खौफ क्यों खतम होते जा रहा है। राजधानी में क्राइम बढ़ने का एक बड़ा कारण नशीले पदार्थों की बिक्री है। पिछले साल हुई एसपी कांफ्रें्रस में भी नशे में युवती द्वारा चाकू मारकर एक युवक की हत्या का हवाला देते पुलिस अधिकारियों से सवाल-जवाब किया गया था। मगर नशे का कारोबार का ये हाल है कि पान ठेलों में धड़ल्ले से चल रहा है।

नशे का ठेला

राजधानी के खम्हारडीह थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित पान दुकान। एक रात, यही कोई 10 बजे...एक गेस्ट के साथ टहलते हुए पहुंच गए पान ठेला कि बहुत दिनों से चमन चटनी पान नहीं खाए हैं। मगर वहां का नजारा देखकर हिल गया। ग्रीन नेट से पान ठेला ढका हुआ...अंदर में धुंआ उड़ाते हुए लाल...डरावने आंखों वाले लंपट टाईप युवक...मदहोशी में धुंए के छल्ले उड़ा रहे थे। परिस्थितियों को देखते वहां से लौट जाना ही मुनासिब समझा। बता दें, ये पान दुकान उस रोड पर स्थित है, जहां से रोज कई आईपीएस और सीनियर एसपीएस अधिकारी गुजरते हैं। ऐसे में, राखी के दिन दो सगी बहनों के साथ दुष्कर्म की घटना के लिए मंदिर हसौद थाने को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बेचारे थानेदार क्या-क्या करें...। मंदिर हसौद रायपुर के टॉप थ्री थानों में से एक जो माना जाता है।

पहले आईपीएस

जुलाई में रिटायर हुए 1988 बैच के रिटायर आईपीएस संजय पिल्ले को राज्य सरकार ने उसी जेल विभाग में बतौर डीजी संविदा पोस्टिंग दी है, जहां से वे रिटायर हुए थे। सरकार ने कुछ आईपीएस अधिकारियों को सुपरसीड करके अशोक जुनेजा को डीजी पुलिस बनाया था, उनमें संजय पिल्ले भी शामिल थे। इस बात का ध्यान में रखते हुए रिटायरमेंट के अगले महीने सरकार ने उन्हेंं पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे दी। संजय इस मामले में किस्मती हैं कि राज्य बनने के 23 साल में अभी तक डीजी लेवल पर सुपरसीड होने वाले किसी आईपीएस को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग नहीं मिली। वासुदेव दुबे, राजीव माथुर, संत कुमार पासवान, गिरधारी नायक, डब्लूएम अंसारी ऐसे नाम हैं, जो डीजीपी की दौड़ में पिछड़ गए। इन अफसरों को कोई पोस्टिंग नहीं मिली। नायक को रिटायमेंट के कुछ समय बाद मानवाधिकार आयोग में अपाइंट किया गया मगर उसमें संजय पिल्ले जैसी बात नहीं। जिस विभाग से रिटायर हो रहे, उसी कुर्सी पर पोस्टिंग मिलना ऑनर की बात है।

राडार पर कलेक्टर, एसपी

मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकलना तय है। इसमें खासतौर से उन कलेक्टर, एसपी के नाम होंगे, जो निर्वाचन आयोग की बैठक में निशाने पर रहे। जाहिर सी बात है, आचार संहिता लगने के बाद आयोग द्वारा अफसरों को हटाने पर मामला पेचीदा हो जाता है। आयोग को तीन नामों का पेनल भेजना पड़ता है। चुनाव आयोग जिस नाम पर टिक लगाएगा, उसे कलेक्टर अपाइंट करना होगा। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय ऐसा ही हुआ था। सरकार जिसे रायपुर का कलेक्टर बनाना चाहती थी, आयोग उसके लिए तैयार नहीं हुआ। सरकार को दोबारा पेनल भेजना पड़ा। इसके लिए चतुराई पूरी की गई...तीन में से नीचे के दो ऐसे अफसरों का नाम डाला गया, जिस पर आयोग कतई राजी नहीं होता। मगर आयोग ने दूसरा पेनल मंगा लिया। और, इसमें से आयोग ने बसव राजू का नाम फायनल किया। बहरहाल, ऐसी स्थिति से बचने सरकार चाहेगी कि आचार संहिता लगने से पहले ही उन अधिकारियों को शिफ्थ कर दिया जाए, जिन पर गाज गिरने की आशंका है। ऐसे में, कलेक्टरों की संख्या आधा दर्जन से उपर जा सकती है। लगभग इसी तरह की संख्या एसपी में होगी।

28 दिन के आईजी

दूसरी बार खुफिया चीफ बनकर रायपुर आ रहे आईजी आनंद छाबड़ा बिलासपुर में 28 दिन आईजी रह पाए। सरकार ने उन्हें दुर्ग से बिलासपुर ट्रांसफर किया था। वे एक अगस्त को बिलासपुर रेंज ज्वाईन किए और 28 अगस्त को उनका एज ए इंटेलिजेंस चीफ रायपुर ट्रांसफर हो गया। सबसे कम दिनों की आईजी पोस्टिंग वालों में दिपांशु काबरा का भी नाम शामिल हैं। पिछली सरकार में सरगुजा से उनका एक महीने चार दिन में दुर्ग ट्रांसफर हो गया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अगला पीएससी चेयरमैन कोई आईएएस होगा या शिक्षाविद?

2. वन नेशन, वन इलेक्शन का बिल पारित हो गया तो विधानसभा चुनाव कब तक के लिए टल जाएगा?


शनिवार, 26 अगस्त 2023

फ्लैशबैक...चार्टर प्लेन से बी फार्म

 तरकश, 27 अगस्त 2023

संजय के. दीक्षित


फ्लैशबैक...चार्टर प्लेन से बी फार्म

विधानसभा चुनाव का मौका है तो फ्लैशबैक की कुछ घटनाओं की चर्चा भी लाजिमी है। आज हम बी फार्म की अहमियत को इस वाकये से बताना चाहेंगे कि मध्यप्रदेश के समय 1998 में बिलासपुर में कांग्रेस प्रत्याशी का बी फार्म नामंकन जमा होने से घंटे भर पहले चार्टर प्लेन से भेजना पड़ा। दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने पहले अनिल टाह को प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही बी फार्म भेज दिया था। मगर नामंकन के आखिरी दिन की पूर्व संध्या भोपाल में पर्दे के पीछे बड़ी सियासी उठकपटक हुई। और पार्टी ने प्रत्याशी चेंज कर पूर्व मंत्री बीआर यादव के बेटे राजू यादव का नाम फायनल कर दिया। चूकि नामंकन जमा करने का आखिरी डेट था और सड़क या ट्रेन से भोपाल से बी फार्म भेजा जाता तो समय पर पहुंच नहीं पाता। सो, आनन-फानन में मुंबई से किराये पर चार्टर प्लेन मंगाया गया। नामंकन जमा होने के दो घंटे पहले बिलासपुर के चकरभाटा हवाई पट्टी पर चार्टर प्लेन उतरा। इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना नामंकन दाखिल किया। प्रत्याशी बदलने का खामियाजा यह हुआ कि बिलासपुर से कांग्रेस 20 साल के लिए बाहर हो गई। इस चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्र्रवाल को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस बिलासपुर के अपने सबसे मजबूत गढ़ में चुनाव हार गई जहां 1977 में जनता पार्टी की लहर में भी वह जीत गई थी।

कलेक्टर, एसपी की क्लास

निर्वाचन आयोग की बैठक में कल कलेक्टर, एसपी के साथ जो हुआ, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। पूरी बैठक में इन अफसरों की हालत फुटबॉल की तरह रही। कोई इधर से मार रहा था, कोई उधर से। ऐसा भी नहीं कि एक बार पूछे, कमी पाई गई तो डपट दिए और चेप्टर क्लोज। घूम फिरकर चुनिंदा अधिकारियों की दिन भर खिंचाई...तुमने ऐसा क्यों नहीं किया...समझ लो, ऐसा नहीं हुआ तो हटा देंगे। आयोग के तेवर देख लगा कि क्या करना है, वे इसका पूरा होम वर्क करके आए थे। खास बात यह रही कि उन्होंने सिर्फ बड़े जिलों के कलेक्टर, एसपी को टारगेट किया। दोपहर लंच तक अफसरों की स्थिति ये हो गई थी खौफ में लंच भी ठीक से नहीं कर पाए, पता नहीं शाम तक और क्या होगा। किसी ने सैलेट का दो-एक टुकड़ा खाया तो कुछ सूप पीकर कांफ्रेंस हॉल में लौट गए...अब कोई निकम्मा करार दे तो खाना खाया भी कैसे जाएगा। कलेक्टर, एसपी इलेक्शन कमिश्नर अनूपचंद पाण्डेय का चेहरा नहीं भूल पाएंगे। रात में सपने में भी उन्हें पाण्डेय दिखाई पड़ रहे थे। पाण्डेय यूपी के चीफ सिकरेट्री रह चुके हैं। उनके तीर इतने मारक थे कि कलेक्टर-एसपी को भीतर तक वेध जाता था। मीटिंग के बाद एक कलेक्टर ने अपनी व्यथा इन शब्दों में प्रगट की...धोबी की तरह धो दिया।

आयोग के शिकार

चुनाव आयोग ने कलेक्टर, एसपी की बैठक में जिस तरह तेवर दिखाए उससे साफ हो गया है कि आचार संहिता प्रभावशील होते ही कई कलेक्टर, एसपी आयोग के शिकार बनेंगे। दरअसल, बैठक में आयोग ने कुछ खास अफसरों को टारगेट किया। इससे प्रतीत होता है कि सारे कलेक्टर, एसपी की कुंडली आयोग के पास है। मीटिंग का मजमूं पढ़ कई अफसर भी मान रहे हैं कि इस बार आधा दर्जन कलेक्टर, एसपी की छुट्टी हो सकती है। तीन-से-चार कलेक्टर और दो-से-तीन एसपी।

कैरियर पर फर्क नहीं?

निर्वाचन आयोग की कार्रवाइयों से कलेक्टर, एसपी के कैरियर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। हां...उन्हें अपमान से जरूर गुजरना पड़ता है। असल में, किसी भी कलेक्टर के लिए प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर का विजिट कराना तथा चुनाव कराना प्राउड की बात मानी जाती है। ऐसे में, ठीक चुनाव के बीच छुट्टी हो जाए तो जाहिर तौर पर पीड़ा तो होगी ही, देश भर में खबर पहुंच जाती है कि फलां कलेक्टर, एसपी को आयोग ने हटा दिया। छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आने के बाद तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में अब तक करीब दर्जन भर आईएएस, आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है। सबसे अधिक कलेक्टर, एसपी 2003 के विधानसभा चुनाव में इलेक्शन कमीशन के शिकार हुए। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई, उनमें से अधिकांश उच्च पदों पर पहुंचे या फिर अभी भी ठीक-ठाक मुकाम पर हैं। सिर्फ मंत्री से मिलने के कारण चुनाव आयोग के निशाने पर आ गए एक कलेक्टर विधानसभा के बाद लोकसभा इलेक्शन में भी हटाए गए। वे अभी भारत सरकार में पोस्टेड हैं। दूसरा मामला...आयोग ़द्वारा हटाए गए एक कलेक्टर न केवल बाद में फिर बड़े जिले के कलेक्टर बने बल्कि ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पद तक पहुंचे। कहने का आशय यह है कि चुनावी कार्रवाइयों की चर्चा चुनाव के बाद खतम हो जाती है। कैरियर पर उसका कोई असर नहीं होता। वैसे भी आयोग की कुछ कार्रवाइयां कौवा मारकर टांगने जैसी भी होती है। ताकि बाकी कलेक्टर, एसपी चौकस हो जाएं।

कुल्हाडी पर पैर

संसदीय सचिव और कुनकुरी के विधायक यूडी मिंज ने लगता है सोगड़ा आश्रम की खिलाफत कर कुल्हाड़ी पर पैर मार लिया है। सोगड़ा का अघोरेश्वर आश्रम आस्था का ऐसा केंद्र है, जहां आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े नेता और ब्यूरोक्रेट्स मत्था टेकने जाते हैं। इस आश्रम पर कभी किसी पार्टी का लेवल नहीं लगा। मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह भी वहां जाते थे और वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी। मगर यूडी मिंज का पत्र वायरल होते ही जशपुर में बीजेपी को वहां एक संवेदनशील मुद्दा मिल गया। बीजेपी के चुनाव प्रभारी ओम माथुर अध्यक्ष अरुण साव को लेकर जशपुर पहुंच गए। दिलीप सिंह जूदेव के दौर में इस जिले की तीनों सीटें बीजेपी को मिलती थी। मगर उनके परिवार वाले इसे मेंटेन नहीं रख पाए। 2018 के चुनाव में तीनों सीटें कांग्रेसी की झोली में चली गई। अलबत्ता, कांग्रेस की अभूतपूर्व लहर में भी यूडी मिंज करीब साढ़े चार हजार वोट से जीत पाए थे। इस बार सोगड़ा आश्रम के खिलाफत के बाद कुनकुरी में बीजेपी ही नहीं, बल्कि दो पूर्व आईएएस भी सक्रिय हो गए हैं। एसीएस से रिटायर हुए सरजियस मिंज पिछले बार भी दावेदार थे और इस बार सरगुजा कमिश्नर से रिटायर जेनेविवा किंडो का नाम भी दावेदारों में जुड़ गया है। जेनेविवा हाल ही में कांग्रेस पार्टी ज्वाईन की हैं। कुल मिलाकर यूडी मिंज ने अपनी मुश्किलें बढ़ा ली हैं।

एक सीट, दो दावेदार

जशपुर जिले के कुनकुरी में एशिया का सबसे बड़ा चर्च होने का दावा किया जाता है। उस विधानसभा सीट पर टिकिट के लिए बीजेपी नेताओं में जमकर शह-मात का खेल चल रहा है। इस सीट से खड़े होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार के सांसद विष्णुदेव साय विधानसभा पहुंचना चाहते हैं तो उधर रायगढ़ से लोकसभा सदस्य गोमती साय अपना दावा ठोक रही हैं। गोमती कुनकुरी विधानसभा की रहने वाली हैं और विष्णुदेव कुनकुरी के बार्डर के गांव का। गोमती पढ़ी-लिखी हैं...लोकसभा में उनका प्रदर्शन भी ठीक रहा है। इसलिए उनके समर्थकों को लग रहा वे अगर विधायक बन गई तो आगे चलकर आदिवासी महिला होने की वजह से सीएम फेस भी हो सकती हैं।

बीजेपी की दूसरी सूची

बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची सितंबर के पहिला सप्ताह में किसी दिन जारी हो जाएगी। कांग्रेस की पहली लिस्ट भी छह-सात सितंबर को आनी है। इसी के आगे-पीछे भाजपा की दूसरी सूची भी आएगी। पार्टी ने पहली सूची में 21 उम्मीदवारों के नाम घोषित किया था। दूसरी सूची में दसेक प्रत्याशियों के नाम होंगे। पता चला है, बीजेपी इसी तरह तीन-चार सूची जारी करेगी। उसकी रणनीति यह है कि बड़े चेहरों के नाम आखिरी लिस्ट में जारी किए जाएंगे। क्योंकि, अभी से बड़़े नेताओं का नाम जारी हो जाने से वे अपने विधानसभा ़क्षेत्रों में फोकस हो जाएंगे। पार्टी के रणनीतिकारों की कोशिश है कि बड़े नेताओं का दूसरी सीटों पर कार्यक्रम कराकर माहौल बनाया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बीजेपी ने जिन 21 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं, उनमें जितने वाले कितने होंगे?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि कुछ मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में ड्रॉप कर उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा जाएगा?


शनिवार, 12 अगस्त 2023

Chhattisgarh Tarkash: उम्र 84 की, हौसला...

 तरकश, 13 अगस्त 2023

संजय के. दीक्षित

उम्र 84 की, हौसला...

छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह जशपुर जिले के पत्थलगांव विधानसभा सीट से आठवी बार नुमाइंदगी कर रहे हैं। वे अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहे और मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सरकार में भी। 2013 में सिर्फ एक बार चुनाव हारे, जब पत्थलगांव को जिला बनाने का वादा कर बीजेपी के शिव शंकर पैकरा चुनाव जीतने मे कामयाब हो गए थे। उम्र की बात करें तो रामपुकार सिंह इस समय 84 क्रॉस कर रहे हैं। जीवन का ये ऐसा पड़ाव होता है...जहां 80 फीसदी से अधिक लोग पहुंच नही पाते और पहुंच भी गए तो देश-दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं रह जाता। मगर इस सीनियर आदिवासी विधायक के हौसले को सैल्यूट करना चाहिए...इस उम्र में भी वे फिर से चुनाव लड़ने तैयार दिख रहे हैं। हाल ही में सीएम भूपेश बघेल ने सूबे में अपने दम पर चुनाव जीतने वाले नेताओं में रामपुकार का नाम का जिक्र किया था। रामपुकार सिंह का सबसे बड़ा प्लस यह है कि इतनी लंबी सियासी पारी के बाद भी उन्होंने अपनी छबि निर्विवाद और बेदाग रखा।

पैलेस बेअसर!

जशपुर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर कभी दिलीप सिंह जूदेव का जादू चलता था। जब तक वे रहे, कम-से-कम इन तीन सीटों पर बीजेपी की जीत की गारंटी रही। मगर उनके असमय दिवंगत होने के बाद परिवार वाले जूदेव की विरासत को संभाल नहीं पाए। उपर से करेला और नीम चढ़ा...पैलेस में वर्चस्त की लड़ाई तेज हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि 2018 के विस इलेक्शन में तीनों सीटों कांग्रेस की झोली में चली गई। जूदेव परिवार के लिए पुराना वैभव याने जिले की तीनों सीटों को फिर से हासिल करना जैसी कोई इच्छा नहीं दिख रही। राजा रणविजय सिंह पिक्चर से गायब हैं। प्रबल प्रताप सिंह सरगुजा के किसी विधानसभा सीट से किस्मत आजमाने की कोशिश कर रहे तो युद्धवीर जूदेव की पत्नी चंद्रपुर सीट पर दावा करने वहां शिफ्थ हो गई हैं। बीजेपी के लिए खटकने वाली बात ये भी होगी कि उसके तीन बड़े नेता याने संगठन मंत्री पवन साय, पूर्व केंद्रिय मंत्री विष्णुदेव साय और पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह जशपुर जिले से आते हैं मगर वे पैलेस पर इस कदर आश्रित हो गए कि खुद के जिले में अदद एक सीट दिलाने की गारंटी नहीं दे सकते।

कमिश्नर, कलेक्टर सेम बैच

पोस्टिंग में आमतौर पर सीनियर, जूनियर का खयाल रखा जाता है। खासकर ब्यूरोक्रेसी में। मगर इन दिनों से मामला गडबड़ाया हुआ है। सरगुजा में 2008 बैच की आईएएस शिखा राजपूत कमिश्नर हैं तो उन्हीं के बैच के नरेंद्र दुग्गा मनेंद्रगढ़ जैसे नए नवेले जिले के कलेक्टर। इसी तरह बिलासपुर में 2009 बैच के के डी कुंजाम को कमिश्नर बनाया गया है। बिलासपुर में 2009 बैच के ही आईएएस सौरव कुमार कलेक्टर थे। कुछ दिन पहले ही उनका कोरबा ट्रांसफर हुआ है। कोरबा भी बिलासपुर संभाग में आता है। मतलब सरगुजा जैसी स्थिति यहां भी रहेगी। एक ही बैच का अफसर कमिश्नर रहेगा और उसी बैच का कलेक्टर। सरगुजा में तो फिर भी डायरेक्टर और प्रमोटी का फर्क है। शिखा आरआर याने डायरेक्ट आईएएस हैं और दुग्गा प्रमोटी। बिलासपुर में उल्टा है...सौरव के लिए कष्टदायक भी। बिलासपुर में प्रमोटी आईएएस कमिश्नर हैं और कोरबा कलेक्टर डायरेक्ट आईएएस। बिलासपुर के एडिशनल कमिश्नर कुमार चौहान की पीड़ा भी समझी जा सकती है। चौहान 2009 बैच के आईएएस हैं। और उन्हीं के 2009 बैच के केडी कुंजाम को कमिश्नर बना दिया गया। याने एक ही ऑफिस में सेम बैच का अफसर बॉॅस और सबआर्डिनेट होंगे। बहरहाल, इसके साइड इफेक्ट सामने आने लगे हैं। सरगुजा कमिश्नर मनेद्रगढ़ में एक तहसीदार की पोस्टिंग की। अगले दिन कमिश्नर के आदेश को ताक पर रखते हुए मनेंद्रगढ़ कलेक्टर ने तहसीलदार को हटाकर अपने पसंदीदा को तहसीलदार पोस्ट कर दिया।

सबसे बड़ा पुलिस रेंज

पुलिस रेंज के पुनर्गठन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पुलिस रेंज हो गया है। इसमें जिलों की संख्या बढ़कर अब नौ हो गई हैं। बिलासपुर, मुंगेली, जीपीएम, कोरबा, जांजगीर, सक्ती, रायगढ़, सारंगढ़ और जशपुर। जशपुर पहले सरगुजा में था, उसे भी अब बिलासपुर में शामिल कर दिया गया है। जशपुर के कारण झारखंड बार्डर भी अब बिलासपुर रेंज में आ गया है। कुल मिलाकर बिलासपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा का औरा बढ़ा है। छत्तीसगढ़ के लगभग एक तिहाई एरिया के वे पुलिस चीफ होंगे। जिस रेंज में कोरबा और रायगढ़ जैसे इंडस्ट्रियल जिला शामिल हो, उस रेंज की अहमियत समझी जा सकती है।

जशपुर के साथ न्याय?

पुलिस रेंज के पुनर्गठन मे जशपुर को सरगुजा पुलिस रेंज से निकालकर बिलासपुर रेंज में शामिल किया गया है। इसके पीछे गृह विभाग की सोच यह बताई जा रही कि रायगढ़ नया पुलिस रेंज बनेगा तो उसमें जशपुर को शामिल कर लिया जाएगा। ठीक है, ये जब होगा, तब होगा। अभी तो जशपुर के लोगों के लिए दिक्कतें बढ़ गई। कमिश्नर आफिस सरगुजा रहेगा और पुलिस रेंज बिलासपुर। जशपुर से रोड कनेक्टिविटी की ये स्थिति है कि बिलासपुर के लोग रायगढ़ से उड़ीसा के झारसुगड़ा होकर जशपुर पहुंचते हैं। या फिर अंबिकापुर होकर। जब तक रायगढ़ नया रेंज नहीं बन जाता, तब तक जशपुर को सरगुजा में ही रहने देना न्यायसंगत होगा।

वक्त का खेल

रिटायर पीसीसीएफ एसएस बजाज को राज्य सरकार ने उस न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथारिटी का चेयरमैन अपाइंट किया है, जिसके पी जाय उम्मेन, एन बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह, आरपी मंडल जैसे आईएएस चेयरमैन रहे हैं। इसी एनआरडीए के सीईओ रहने के दौरान एक मामले में 2019 में बजाज सस्पेंड हो गए थे। तब उन पर आरोप लगा था कि सोनिया गांधी पोता चेरिया में नया रायपुर की आधारशिला रखीं थीं, उसके शिलालेख को बजाज ने उखड़वाकर आईआईएम कैम्पस में रखवा दिया। बाद में पता चला, खुले में पड़े शिलालेख की हिफाजत की दृष्टि से बजाज ने ऐसा किया था। मगर, वक्त का खेल देखिए...उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुआ है। और फिर बजाज न केवल रिस्टेट हुए बल्कि कैबिनेट में पोस्ट क्रियेट कर उन्हें पीसीसीएफ प्रमोट किया गया। रिटायरमेंट के बाद उन्हें तुरंत सीजीकॉस्ट का डायरेक्टर जनरल की पोस्टिंग दी गई। और अब एनआरडीए चेयरमैन की कमान। कह सकते हैं, वक्त ने बजाज को जितना जख्म दिया, ब्याज समेत गरिमा और सम्मान लौटा दिया। बजाज नया रायपुर के शिल्पी रहे हैं। सीईओ के तौर पर वे करीब 10 साल काम किए और नया रायपुर में चमचमाती सड़कें, मंत्रालय, विभागाध्यक्ष भवन दिख रहा है, सब उनका बनवाया हुआ है। बीई सिविल के बाद आईएफएस अफसर बने बजाज ने 245 किमी फोर लेन सड़क निर्माण के साथ ही साढ़़े पाच हजार हेक्टेयर प्रायवेट लैंड का अधिग्रहण किया। समझा जा सकता है कि नए रायपुर को शेप देने में उनकी कैसी भूमिका रही होगी।

दूसरी पोस्टिंग

आईएफएस अधिकारी अरुण प्रसाद को आईएएस सारांश मित्तर की जगह डायरेक्टर इंडस्ट्री और सीएसआईडीसी का एमडी बनाया गया है। सीएसआईडीसी में अरुण की ये दूसरी पोस्टिंग होगी। इससे पहले भी इसी सरकार में वे सीएसआईडीसी के एमडी रहे हैं। उनके पास पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मेम्बर सिकरेट्री की जिम्मेदारी है, जो यथावत रहेगी। पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में वे पहले भी एक बार मेम्बर सिकरेट्री रह चुके हैं।

सिस्टम पर भारी

स्कूल शिक्षा की कुख्यात लॉबी सिस्टम पर भारी पड़ जा रही है। सरकार ने वहां के माफियाओं पर लगाम लगाने के लिए दो डिप्टी कलेक्टरों की तैनाती की। मगर इस पर कुछ लोग कोर्ट चले गए। और उस पर ब्रेक लग गया। शिक्षा विभाग के खेल में सिर्फ विभाग के अधिकारी, बाबू ही नहीं शिक्षक नेता और सियासी लोग भी संलिप्त हैं। पोस्टिंग घोटाले को ही लीजिए...इसमें करीब 50 करोड़ का वारा-न्यारा हुआ। मगर यह पैसा सिर्फ जेडी के जेब में नहीं गया। कुछ शिक्षक नेता भी मालामाल हुए। एक जिले के दो विधायकों को 40-40 पेटी मिला ताकि संरक्षण बना रहे। पुराने मंत्री के यहां से चूकि फाइल वापिस लौटती नहीं थी इसलिए तीन-तीन आईएएस होने के बाद भी वे कुछ कर नहीं पा रहे थे। मगर अब नए मंत्री आए तो ताबड़तोड़ कार्रवाइयां हो रही है। मगर सिस्टम इतना बिगड़ चुका है कि उसे पटरी पर लाने में वक्त लगेगा।

विभाग की रेटिंग

अभी तक पीडब्लूडी, एक्साइज, इनर्जी, इरीगेशन, इंडस्ट्रीज जैसे विभाग की रेटिंग अच्छी मानी जाती थी मगर पोस्टिंग घोटाले ने स्कूल शिक्षा विभाग और दवा खरीदी घोटाले ने लेबर डिपार्टमेंट की रेटिंग बढ़ा दी है। स्कूल शिक्षा विभाग का वौल्यूम काफी बड़ा है...कोई दो लाख के करीब शिक्षक। सो, थोड़े-थोड़े में बड़ा खेल हो जाता है। ट्रांसफर के सीजन में कई खोखा का काम हुआ तो इस विभाग की रेटिंग हाई करने में डीएमएफ का भी बड़ा योगदान है। बिलासपुर के अंग्रेजी स्कूल में डीएमएफ के पैसे से चौगुने रेट में परचेजिंग की गई। ऐसा अमूमन सभी जिलों में हुआ। इसलिए क्योंकि डीएमएफ का पैसा खर्च करना था। खर्च करेंगे तभी तो कमीशन मिलेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. दूसरी बार कांग्रेस छोड़ने वाले आदिवासी नेता अरविंद नेताम विस चुनाव में फ्यूज बल्ब साबित होंगे या कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे?

2. शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण के आदेश में कैबिनेट के फैसले की बजाए महाधिवक्ता के अभिमत का हवाला क्यों दिया गया?