शनिवार, 25 मार्च 2023

एसपी की बड़ी लिस्ट

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 मार्च 2023

एसपी की बड़ी लिस्ट

विधानसभा का बजट सत्र समाप्त होने के बाद पुलिस अधीक्षकों की बहुप्रतीक्षित लिस्ट निकालने की कवायद शुरू हो गई है। खबर है, इस बार सूची लंबी होगी...10 से 12 जिलों के कप्तान बदल सकते हैं। सूबे के पांच जिलों में डीआईजी को एसपी बनाकर बिठाया गया है, उनमें से अधिकांश इस बार चेंज हो जाएंगे, तो कुछ सीनियर अफसरों को बड़े जिलों की कमान सौंपी जाएगी। डीआईजी वाले जिलों में रायपुर, बस्तर, बलौदा बाजार, गरियाबंद और जशपुर जिला शामिल हैं। अब बात रायपुर से....रायपुर एसएसपी प्रशांत अग्रवाल का सब ठीक-ठाक है...लिहाजा वे अगर हटे तो किसी ठीक-ठाक जिले में जाने की संभावना ज्यादा है। रायपुर के लिए दीपक झा और अभिषेक पल्लव के नामों की चर्चा है। दीपक को बस्तर, बिलासपुर और रायगढ़ जैसे जिले संभालने का तजुर्बा है। वहीं, अभिषेक दंतेवाड़ा, जांजगीर के बाद इस समय दुर्ग के कप्तान हैं। दोनों की रेटिंग भी अच्छी है। रेटिंग कांकेर एसपी शलभ सिनहा का भी है। मगर पिछले कई महीने से उनकी चर्चा होती है मगर लिस्ट में उनका नाम छूट जा रहा। इस बार दुर्ग के लिए उनके नाम की चर्चा है। वैसे, एसपी की पिछली लिस्ट भी ठीक निकली थी और इस बार भी अच्छे नाम सुनने में आ रहे हैं। बहरहाल, इस बार की लिस्ट चुनावी नजरिये से निकाली जाएगी। जाहिर है, जिलों में जिनकी पोस्टिंग की जाएगी, वही विधानसभा चुनाव कराएंगे। ऐसे में, पोस्टिंग की संजीदगी समझी जा सकती है।

बदलेंगे कलेक्टर!

हालांकि, अभी एसपी के ट्रांसफर की तैयारी की जा रही है मगर अप्रैल फर्स्ट वीक के बाद कलेक्टरों की भी एक लिस्ट निकलने की चर्चा है। कलेक्टरों की लिस्ट ज्यादा बड़ी नहीं होगी क्योंकि अधिकांश कलेक्टरों को अभी एक साल नहीं हुआ है। 80 प्रतिशत से अधिक कलेक्टर जून में गए हैं। कलेक्टरों के साथ कुछ नगर निगमों के कमिश्नरों के साथ जिला पंचायत के सीईओ भी चेंज होंगे। रायपुर, बिलासपुर और भिलाई के निगम कमिश्नर कलेक्टर की वेटिंग लिस्ट में हैं। तीनों 2017 बैच के आईएएस हैं। 2016 बैच के कंप्लीट होने के बाद 2017 बैच का अब नंबर है। एक बड़े जिला पंचायत की सीईओ अज्ञात कारणों से लंबी छुट्टी पर चली गई हैं। पारफारमेंस बेहद पुअर होने पर कलेक्टर ने उन्हें सुना दिया, जिसके बाद सीईओ ने अवकाश ले लिया। अब वहां नया सीईओ अपाइंट किया जाएगा। इसके साथ मंत्रालय में भी कुछ सचिवों को इधर-से-उधर किया जाएगा। कई सिकरेट्रीज के पास दो-दो, तीन-तीन विभाग हैं। कुछ के वर्कलोड कम किए जाएंगे।

कलेक्टर जीरो, एसपी तीन

एक समय था, जब कलेक्टर, एसपी रेयर केस में डेढ़-दो साल से पहले हटते थे। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद धीरे-धीरे टेन्योर कम होता गया। इस समय स्थिति यह है कि कलेक्टरों में दो साल कौन कहें...एक साल वाला भी कोई नहीं है। पीएस एल्मा का धमतरी में एक साल हुआ था, मगर वे भी हट गए। पिछले साल जून में 22 कलेक्टर बदले गए थे। यान जून आएगा तब जाकर किसी कलेक्टर का एक साल पूरा होगा। वो भी अगर आने वाली लिस्ट में नाम आ गया तो फिर चांस खतम। एसपी में जरूर तीन अफसर ऐसे हैं, जिनका दो साल का टेन्योर पूरा हो गया होगा। इनमें बस्तर, कांकेर और सुकमा शामिल हैं। याने तीनों बस्तर से। जगदलपुर में जीतेंद्र मीणा, कांकेर में शलभ सिनहा और सुकमा में सुनील शर्मा एसपी हैं। इन तीनों का लगभग दो साल कंप्लीट हो रहा है।

कलेक्टरों का खेला

आदिवासी जमीनों की खरीद-फरोख्त का मामला इस बार सदन में खूब गरमाया। कांग्रेस के ही कई सदस्यों ने इसको लेकर कलेक्टरों पर गंभीर आरोप लगाए। बताते हैं, छत्तीसगढ़ में आदिवासी जमीनों का सबसे अधिक खेला बिलासपुर और सरगुजा संभाग में हुआ है। बाहरी कंपनियां कलेक्टरों से मिलकर पहले अपने नौकरों के नाम पर आदिवासी जमीनों की रजिस्ट्री कराई और फिर कुछ दिन बाद अपने नाम पर पलटी करा लिया। कुछ जिलों में कलेक्टरों ने दो दिन के भीतर आदिवासी जमीन खरीदने की अनुमति दे दी। जबकि, सामान्य मामलों में कलेक्टर से अनुमति लेने में लोगों के चप्पल घीस जाते हैं। बताते हैं, बड़े आसामियों ने एक-एक केस के लिए कलेक्टरों को बड़ी रकम भेंट की। एकड़ के हिसाब से दो से पांच पेटी। अच्छे लोकेशन पर लैंड अगर हैं तो एक एकड़ के पीछे पांच पेटी कलेक्टरों ने लिए।

करप्शन में आगे

आदिवासी जमीनों का खेला हो या कोई दूसरा करप्शन...इसमें बिलासपुर, सरगुजा और बस्तर संभाग इसलिए आगे है कि क्योंकि, बड़े कद वाले जनप्रतिनिधियों का वहां बड़ा टोटा है। एक तो बड़े नेता नहीं हैं और एकाध हैं तो सीधे-साधे या फिर खुद उसी रंग में रंगे हुए। इस वजह से अधिकारियों पर नेताओं का कोई भय नहीं। बिलासपुर संभाग में दो-एक नेता ठीक-ठाक होंगे तो खटराल अधिकारियों ने उनके रेट फिक्स कर दिए हैं। यही हाल बस्तर का भी है। बिलासपुर की तरह बस्तर भी डीएमएफ संभाग है। करोड़ों रुपए हर साल डीएमएफ मिलता है कलेक्टरों को। बस्तर में तो और बड़ा खेला होता है। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता कि रायपुर और दुर्ग संभाग में करप्शन नहीं है...या गड़बड़ियां नहीं होती। होती हैं मगर बड़े नेता हैं, नजर रखते हैं, इसलिए अधिकारियों को वैसा फ्री हैंड नहीं, जैसा बिलासपुर और बस्तर में है।

अब सिर्फ छह महीने

विधानसभा का बजट सत्र समाप्त हो गया है। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने में छह महीने बच गए हैं। 2018 में छह अक्टूबर को चुनाव का ऐलान हुआ था, इस बार भी इसी के आसपास डेट रहेगा। याने सरकार के पास अब काम करने के लिए अप्रैल से सितंबर तक का टाईम बच गया है। बहरहाल, समय कभी किसी का वेट नहीं करता...देखते-देखते लगभग साढ़े चार साल निकल गए, पता नहीं चला। वैसे भी, किसी नई सरकार के लिए पहला साल हनीमून पीरियड की तरह होता है। दूसरे साल में काम प्रारंभ होता है और तीसरे साल के उत्तरार्ध से रिजल्ट दिखना शुरू होता है। मगर भूपेश बघेल सरकार का हनीमून जैसे ही खतम होने को आया...कोरोना धमक आया। साल, डेढ़ साल त्राहि माम की स्थिति रही। कोरोना ठंडा पड़ा तो ढाई-ढाई साल वाला सियासी कोरोना आ गया। करीब एक साल राजनीतिक झंझावत चलता रहा। कुल मिलाकर कहें तो भूपेश बघेल को आखिरी के करीब साल भर निश्चिंत होकर बैटिंग करने का टाईम मिला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या मजबूरी रही कि भाजपा ने पूरे बजट सत्र में महिला सुरक्षा पर एक भी प्रश्न नहीं पूछा?

2. सात जिलों की कलेक्टरी कर चुके राजनांदगांव कलेक्टर डोमन सिंह को क्या आठवां जिला मिलेगा या अब पेवेलियन लौटेंगे?



रविवार, 19 मार्च 2023

धोती खोल राजनीति

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 मार्च 2023

धोती खोल राजनीति

विधानसभा में इस बार गजबे हो गया। एक ही इलाके के...एक ही पार्टी के दो विधायक एक-दूसरे की सरेआम धोती खोल रहे थे। स्पीकर चरणदास महंत अवाक थे...और मंत्री कवासी लखमा हैरान। सदन में बैठे विधायकों और अधिकारी दीर्घा के अफसरों के लिए भी यह पहला मौका था। धोती खोल राजनीति का सार यह था कि एक का भाई क्लब में शराब बेचता है तो दूसरे की करीबी महिला नेत्री ढाबे में शराब बेचती हैं। एक ने क्लब पर कार्रवाई करने के लिए हल्ला बोला तो दूसरे ने यह कहते हुए सामने वाले की पगड़ी हवा में उछाल दी कि फलां महिला नेत्री ढाबे में शराब क्यों बेच रही है? घर का झगड़ा था...ऐेसे में बेचारे मंत्री कवासी लखमा क्या बोलते। कुछ देर तक मौन रहे, फिर बोले, अध्यक्ष जी!...आपस का झगड़ा है। जाहिर है, चुनावी साल में इस तरह के आपस के झगड़े से नुकसान पार्टी का होगा। क्योंकि, पब्लिक सब जानती है। पवित्र सदन में शराब की अवैध बिक्री, महिला का शराब वाला ढाबा, विधायक का भाई, विधायक की करीबी समर्थक, एक-दूसरे को गुलाब देते हुए फोटो...सोशल मीडिया में खूब वायरल हुए। सरकार के रणनीतिकारों को यह देखना होगा।

मजबूरी का नाम...

कवासी लखमा के पास उद्योग और आबकारी जैसे मंत्रालय जरूर हैं मगर विधानसभा में प्रश्नों का जवाब मंत्री मोहम्मद अकबर देते हैं। क्यों देते हैं? यह बताने की आवश्यकता नहीं। बहरहाल, इस बार बुधवार को प्रश्नकाल में आबकारी और उद्योग विभाग का नम्बर था। मगर उस दिन अकबर की मां का देहावसान हो गया। सो, वे सदन में नहीं आए। मजबूरी में कवासी लखमा को खड़ा होना पड़ा। स्पीकर चरणदास महंत ने इस पर चुटकी भी ली। क्लब और ढाबे में शराब बेचने पर हंगामे के समय उन्होंने कहा कि आपलोगों को ये भी देखना चाहिए कि मंत्रीजी आज जवाब दे रहे हैं...उन्हें एप्रीसियेट कीजिए। कवासी भी भले ही कम शब्दों में जवाब दिए मगर कांफिडेंस के साथ।

बदले-बदले से...

बजट सत्र में विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत के तेवर कुछ बदले-बदले से दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि, गुरूवार को सदन में जो कुछ हुआ, उसके पीछे मंत्री का ओवर कांफिडेंस भी था। असल में, बेरोजगारी पर अजय चंद्राकर सवाल कर रहे थे। विभागीय मंत्री उसका जवाब दे रहे थे। जिस तरह मंत्री बिना स्टडी के सदन पहुंच जाते हैं, उस रोज भी कुछ वैसा ही आलम था। स्थिति यह हो गई कि स्पीकर यह कहते हुए मंत्री से खुद ही सवाल करने लगे कि बेरोजगारी का गंभीर मुद्दा है...इसे आप टालिये मत। उधर, अजय चंद्राकर सवाल-पर-सवाल दागे जा रहे थे। इस पर एक दूसरे मंत्री ने अजय चंद्राकर के पूरक प्रश्नों की झड़ी पर आपत्ति जताई। स्पीकर कभी तमतमाते नहीं...मगर मंत्री के इस सवाल पर उनका चेहरा खींच गया...आंखें खुली...कुर्सी से खड़े हो गए....बोले, छत्तीसगढ़ के लिए यह गंभीर मुददा है...एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार...जितना बार मुझे लगेगा पूरक प्रश्न पूछने की अनुमति दूंगा। स्पीकर के इस तेवर से पूरा सदन सन्न रह गया।

पहला राज्य

भूपेश बघेल कैबिनेट ने पत्रकार सुरक्षा बिल पास कर दिया है। अब इसी सत्र में इस पर मुहर लग जाएगा। अगर यह कानून बन गया तो छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून होगा। इससे पहले महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने 2017 में पत्रकार सुरक्षा बिल को विधानसभा से पास कराया था। लेकिन, सजा के कुछ प्रावधान के चलते राष्ट्रपति भवन से उसे एप्रूवल नहीं मिल पाया। पता चला है, इसको देखते छत्तीसगढ़ के पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस की अगुआई में एक कमेटी बनाई गई। जस्टिस की अध्यक्षता में कमेटी ने पूरी छानबीन के बाद ड्राफ्ट तैयार किया है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून के रास्ते में कोई अवरोध आने की गुंजाइश नहीं दिख रही।

दीया तले अंधेरा

जीएडी ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को आईएएस अवार्ड करने का प्रॉसेज शुरू कर दिया है। 2021 में तीन पद था और 2022 में चार पद। जीएडी दोनों साल के वैकेंसी को क्लब करते हुए सात पदों पर डीपीसी कराने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए सूबे के पांचों कमिश्नरों को 19 अधिकारियों की लिस्ट भेजकर स्टेट्स रिपोर्ट मंगाई गई है। याने किसी के खिलाफ कोई मामला तो नहीं है। मगर वास्तविकता यह है कि लिस्ट में जिन राप्रसे अधिकारियों के नाम हैं, वे सभी अपर कलेक्टर रैंक के अफसर हैं। और कमिश्नरों को अपर कलेक्टर की रिपोर्ट देने का अधिकार नहीं है। कमिश्नर को ज्वाइंट कलेक्टर तक के पावर हैं। अपर कलेक्टर सीधे जीएडी से हैंडिल होते हैं। कुछ अधिकारी मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री हैं। वे सामान्य प्रशासन विभाग के हिस्सा हैं। मंत्रालय में उनकी पोस्टिंग भी जीएडी ने किया है। वैसे भी, अपर कलेक्टर रैंक के अधिकारी के खिलाफ कोई भी जांच जीएडी ही कर सकता है। जाहिर है, पूरी कुंडली जीएडी के पास होती है। मगर जीएडी के बाबुओं का कमाल देखिए...कमिश्नर को लेटर लिख दिया। इस कहते हैं, नाहक की मशक्कत।

बोर्ड से इस्तीफा

रिटायर चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने एनडीटीवी बोर्ड से इस्तीफा दे दिया है। एनडीटीवी को अडानी के टेकओवर के बाद पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार और पूर्व सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह को बोर्ड का डायरेक्टर अपाइंट किया गया था। जनवरी में सुनिल कुमार ने बोर्ड को ज्वाईन किया और नौ मार्च को इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे में उन्होंने इतना जल्द त्याग पत्र देने का कोई कारण उल्लेख नहीं किया है। 79 बैच के आईएएस सुनिल कुमार पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के सिकरेट्री रहे। बाद में केद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के पीएस का दायित्व निभाया। रमन सरकार ने 2012 में उन्हें छत्तीसगढ़ का चीफ सिकरेट्री अपाइंट किया था। सीएस से रिटायरमेंट के बाद वे राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा के बाद क्या पुलिस अधीक्षकों की बहुप्रतीक्षित लिस्ट निकलेगी?

2. पटवारी और आरआई के खिलाफ कार्रवाई होना लोगों को अच्छा क्यों लगता है?


मुलाकात पर चुटकी

 ये बताने की आवश्यकता नहीं कि सीएम भूपेश बघेल केंद्र पर सबसे ज्यादा हमलावर रहते हैं। मुख्यमंत्रियों में तो सबसे ऊपर। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल के तेवर ढीले पड़ गए मगर भूपेश केंद्र को आड़े हाथ लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते। मगर, नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री से दो महीने के भीतर अगर उनकी दो मुलाकातें होंगी तो...कुछ तो लोग कहेंगे...चुटकी लेंगे। और वही हो रहा है। दरअसल, दोनों मुलाकातें गर्मजोशी और आत्मीयता भरी रही। इस बार तो टाइम मांगा और तुरंत मिल भी गया। मोदी ने सीएम के फाग गाने का खास तौर पर जिक्र किया। ऐसे में, हेमंत बिस्वा सरमा से लेकर नाना प्रकार की चुटकी ली जा रही है। खैर, ये तो मजाक की बात हुई, वास्तविकता यह है कि सीएम भूपेश बघेल सियासत में ताकतवर तो हुए हैं। मॉस लीडर में गांधी परिवार के बाद दूसरी हैसियत भूपेश की बनती जा रही है। उनके पास उम्र भी है...मेहनत और माद्दा भी। इस साल होने वाले इलेक्शन में सिर्फ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रिपीट होने की संभावना जताई जा रही। इसे एक लाइन में आप समझिए जो स्थिति केंद्र में कांग्रेस की है...ठीक वैसी स्थिति छत्तीसगढ़ में बीजेपी की है।

जान-में-जान

भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के बयान से टिकिट के दावेदारों को आशा की किरण दिखाई देने लगी है। असल में, लोकसभा चुनाव के बाद इस बात को स्थापित कर दिया गया था कि विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी चेहरे बदले जाएंगे। इससे कई पूर्व मंत्री अपनी टिकिट को लेकर कई सशंकित हो गए थे। लेकिन, माथुर के इस बयान से कि 30 से 40 परसेंट चेहरे बदलेंगे, पुराने नेताओं की उम्मीदें जगीं हैं। अब देखना यह है कि क्या वाकई ऐसा होगा या फिर पुराने नेताओं को काम पर लगाने माथुर ने यह पत्ता फेंका है।

और 7 आईएएस

राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को आईएएस अवार्ड करने डीपीसी होनी है। राप्रसे अफसर चाहते हैं कि 2021 और 2022 की वैकेंसी को क्लब कर एक साथ डीपीसी हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो छत्तीसगढ़ को सात और आईएएस मिल जाएंगे। इससे पहले एक बार दो बैच की डीपीसी एक साथ हो चुकी है। मतलब उम्मीद जगने का आधार है।

जिधर जाइएगा, उधर पाइएगा

सूबे में डिप्टी कलेक्टरों की संख्या जिस हिसाब से बढ़ रही है, आने वाले समय में उनका आईएएस बनना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि, उतनी वैकेंसी नहीं होंगी। हालाकि, अभी तो दो-तीन बैच तक दिक्कत नहीं है। मगर 2014 बैच से मामला गड़बड़ाएगा। डिप्टी कलेक्टरों की संख्या बढ़ने के चलते ही जनपद सीईओ से लेकर डिप्टी सेक्रेटरी...यानी जिधर जाइएगा, उधर पाइएगा, वाली स्थिति हो गई है।

सवाल का जवाब!

तरकश स्तंभ में दो हफ्ते पहले, अंत में दो सवाल में से एक सवाल ये भी था.. किस मंत्री का भतीजा बीजेपी से विधानसभा का चुनाव लड़ेगा। इस सियासी प्रश्न पर कई लोगों के जवाब आए। कुछ सही थे, तो कुछ सही के करीब। कुछ लोग इस बात को लेकर जिज्ञासु थे कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए मंत्री टीएस सिंहदेव का एक बयान मौजूँ हो सकता है। होली मनाने सरगुजा पहुंचे टीएस ने कहा, मेरे विचार बीजेपी से मेल नहीं खाते, इसलिए मैं कभी बीजेपी में नहीं जाऊंगा। मगर मेरे परिवार के लोग अगर जाते हैं तो मैं क्या कर सकता हूं। मंत्री का विचार सामने आने के बाद आगे कुछ कहने के लिए बचता कहां है।

छत्तीसगढ़ की लोकल राजधानी

राज्य बनने के बाद नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ से राजधानी एक्सप्रेस चली थी तो लोगों को गर्व की अनुभूति हुई थी। खुशी होने की वजह थी और मौका भी। उससे पहले लोग राजधानी एक्सप्रेस का नाम सुनते थे, वो छत्तीसगढ़ से शुरू हो गई थी। ऐसी प्रतिष्ठित ट्रेन को रेलवे अफसरों ने लोकल से भी बदतर कर दिया है। पिछले हफ्ते नागपुर जाने के लिए इस ट्रेन का विकल्प आजमाया। पर पछताने और रेलवे को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं था। साढ़े तीन घंटे में यह ट्रेन रायपुर से डोंगरगढ़ पहुंची और पांच घंटे में गोंदिया। नागपुर पहुंचे तक लगभग आधी रात। पेंट्री वालों ने बताया, साल भर से यही स्थिति है।

धनवंतरी को नुकसान

यूं तो कुछ जिलों में धनवंतरी योजना में बढ़िया काम हो रहा है, मगर कुछ कलेक्टर खानापूर्ति कर रहे हैं। कुछ जिलों में पता चला है, कलेक्टर अपनी पीठ थपथपवाने के लिए जिला अस्पतालों पर फोर्स कर धनवंतरी से दवाइयां खरीदवा रहे, ताकि, बिक्री ज्यादा दिखा कर सरकार से नंबर बढ़वाया जा सकें। कलेक्टरों पर सरकार ने धनवंतरी का जिम्मा सौंपा है। वे ही अगर ऐसा करेंगे तो फिर क्या होगा?

प्रमोटी कलेक्टर

इस समय सूबे के 33 जिलों में से आठ में प्रमोटी आईएएस कलेक्टर हैं। और 25 में डायरेक्ट। सुना है, चुनाव को देखते प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या कुछ और बढ़ सकती है। अभी बस्तर संभाग के सातों जिलों में आरआर याने डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर हैं। प्रमोटी कलेक्टर वाले जिलों में राजनांदगांव, बालोद, कबीरधाम, सारंगढ़, जीपीएम, रायगढ़, सूरजपुर और मनेद्रगढ़ शामिल हैं। बहरहाल, सरकार के समक्ष दिक्कत यह होगी कि 2017 बैच के आरआर वाले भी क्यू में हैं। अब देखना है, कितने आरआर और कितने प्रमोटी का नंबर लग पाता है।

अंत में दो सवाल आपसे

  • 1. विधानसभा अगले हफ्ते खत्म हो जाएगा, या पूरे 13 दिन चलेगा?
  • 2. बिलासपुर जिला पंचायत सीईओ लंबी छुट्टी पर कैसे चली गईं?

शनिवार, 4 मार्च 2023

Tarkash: न सूत, न कपास...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 मार्च 2023

न सूत, न कपास...

छत्तीसगढ़ में और एम्स खुले, इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है। मगर बात धरातल की होनी चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव शरीफ और सहज मंत्री हैं...सो एम्स पर उनका पहला जवाब यही था कि नए एम्स के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। फिर जिस दिन प्रश्नकाल में एम्स खुलने पर बात हुई, संशोधित जवाब आ गया...केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया है। समझदार समझ गए...मजरा क्या है। बहरहाल, सदन में स्वास्थ्य मंत्री बार-बार यह कहते रहे कि कई राज्यों में एम्स आज भी नहीं है। मगर चुनावी साल है...कोई कहां सुनने वाला था...पक्ष-विपक्ष में होड़ मच गई...सदन में एक बार ऐसा लगा कि जैसे एम्स नहीं, हाईस्कूल खोलने की बात हो रही हो। बता दें, एम्स कहां खुलेगा, यह राज्य नहीं बल्कि केंद्र तय करता है...लोकसभा में पारित किया जाता है। देश के सिर्फ 19 राज्यों में एम्स है। नौ राज्य अभी भी वेटिंग में हैं। रायपुर भी वेटिंग में ही होता। मगर तब की स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज की नजदीकियों का फायदा उठाकर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रमेश बैस ने 6 एम्स में रायपुर का नाम जोड़वा लिया। ये अलग बात है कि उस समय सोशल मीडिया नहीं था और न ही बैसजी के पास ब्रांडिंग की वैसी टीम थी...लिहाजा, उन्हें इसका कोई क्रेडिट नहीं मिल पाया।

एम्स का जाप क्यों?

स्वास्थ्य सुविधाओं में साउथ के राज्यों का जवाब नहीं है। यूपी के पीजीआई लखनउ और बिहार के पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल का इतना नाम है कि वहां जल्दी नंबर नहीं लगता। चंडीगढ़ के पीजीआई का नाम आपने सुना ही होगा। अलबत्ता, छत्तीसगढ़ के बनें 22 साल हो गए। 15 साल बीजेपी की सरकार रही। सात साल कांग्रेस की। सवाल उठता है कि सरकारों ने क्या किया। रायपुर में जब केंद्र सरकार का एम्स इतना बढ़िया बन सकता है और रन कर सकता है तो राज्य सरकार अदद एक अस्पताल को तो मुकम्मल कर सकती है। भले ही वो एम्स के बराबर न हो, लेकिन उस पर प्रदेश के लोगों का भरोसा तो हो। पुराने लोगों को भिलाई का सेक्टर-9 हॉस्पिटल याद होगा। बलरामपुर से लेकर बीजापुर तक के लोगों का वो आशा का केंद्र होता था। 22 बरस पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने सिम्स के उद्घाटन समारोह में कहा था, प्रदेश का यह उत्कृष्ठ संस्थान बनेगा। लेकिन, सिस्टम ने सिम्स का कबाड़ा कर दिया। बिलासपुर में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कई साल से बन ही रहा है। सरकार, अफसर और जनप्रतिनिधि अगर ठान लें तो क्या नहीं हो सकता। मध्यप्रदेश के समय बिलासपुर के कलेक्टर रहे शैलेंद्र सिंह ने प्रशासनिक व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर तब के जिला अस्पताल को ऐसा ठीक किया था कि लोग आज भी याद करते हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इसे संज्ञान में लेना चाहिए।

...सरकार रचि राखा

ताजा कैडर रिव्यू में आईएएस के 9 पद बढ़े हैं, उनमें अगर दीगर विभाग वाले तगड़ा जैक लगा दिए तो हो सकता है एक पोस्ट उन्हें मिल जाए। अभी एलायड सर्विस से तीन आईएएस हैं। अनुराग पाण्डेय, शारदा वर्मा और गोपाल वर्मा। अनुराग और शारदा अगले साल रिटायर हो जाएंगे। दो पद वो खाली होंगे। जानकारों का कहना है कि 202 के कैडर में चार पद एलायड वालों के लिए हो सकता है। ऐसा अगर कहीं हो गया तो अगले साल एलायड वालों की लाटरी निकल जाएगी। एक साथ तीन पद की वैकेंसी हो जाएगी। हालांकि, इनमें नंबर उन्हीं का लगता है, जिसे सरकारें चाहती हैं। पिछली सरकार में और इस सरकार में भी अप्लाई तो कइयों ने किया...फील्डिंग सभी ने की। लेकिन, बात वही...होइहि सोई...जो सरकार रचि राखा। हालांकि, ये भी सही है कि एलायड कोटे से आईएएस बनने वालों की अब वो बात नहीं रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद डॉ0 सुशील त्रिवेदी मध्यप्रदेश से आए थे। वे न केवल बिलासपुर जैसे जिले के कलेक्टर रहे, बल्कि राजभवन में सिकरेट्री, कई विभागों के सिकरेट्री और रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनें। आरएस विश्वकर्मा का प्रोफाइल तो और तगड़ा रहा। उन्होंने कोरबा, रायगढ़, राजनांदगांव को मिलाकर चार जिले की कलेक्टरी की। सिकरेट्री प्रमोट होने के बाद माईनिंग और वाणिज्यिक कर जैसे क्रीम पोस्ट भी होल्ड किया। उनके बाद जनसंपर्क अधिकारी आलोक अवस्थी को आईएएस अवार्ड हुआ। वे जांजगीर और कोरिया के कलेक्टर रहे। मगर उनके बाद जो आईएएस बनें, उन्हें वो मौका नहीं मिला। अनुराग पाण्डेय संघ पृष्ठभूमि के होने और बीजेपी की सरकार होने के बाद भी जिला पंचायत सीईओ से उपर नहीं पहुंच सकें। आईएएस लॉबी ने बड़ी चतुराई से उन्हें किनारे लगा दिया। शारदा वर्मा को कलेक्टर तो दूर की बात है, फील्ड की कोई पोस्टिंग नहीं मिली है, अगले साल वे रिटायर हो जाएंगी।

7 हजार करोड़ से शुरूआत

छत्तीसगढ़ का पहला बजट वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने सात हजार करोड़ का पेश किया था। इसमें अनुपूरक के 1300 करोड़ भी शामिल है। इसके बाद बजट का आकार लगातार बढ़ता गया। राज्य निर्माण के 22वें साल में ये बढ़कर एक लाख करोड़ को क्रॉस कर गया। बता दें, जोगी सरकार में तीन बजट सिंहदेव ने प्रस्तुत किए थे। उसके बाद बनी भाजपा सरकार के पहले वित्त मंत्री की कमान अमर अग्रवाल को मिली। अमर ने तीन बजट पेश किया। अमर की एक छोटी सी सियासी चूक की वजह से वित्त मंत्रालय हमेशा के लिए मुख्यमंत्री के पास चला गया। वित्त की अहमियत को समझते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अमर के इस्तीफे के बाद इस विभाग को अपने पास रख लिया। उसके बाद सबको समझ में आ गई कि फायनेंस का क्या महत्व है। दरअसल, विभागों का सारा दारोमदार वित्त पर टिका होता है। विभागीय बजट को छोड़ भी दें नए पद से लेकर गाड़ी-घोड़ा खरीदने की फाइल पर भी वित्त से परमिशन लगता है। लिहाजा, अधिकारी से लेकर नेता, मंत्री तक वित्त विभाग के लोगों को खुश रखने की कोशिश करते हैं। सिंहदेव के बाद अमर ने इस विभाक को रेपो काफी बढ़ा दिया था। बहरहाल, अमर के बाद रमन सिंह ने पहली पारी का चौथा बजट पेश किया। इसके बाद उन्होंने 2108 तक लगातार 12 बजट प्रस्तुत कर देश में रिकार्ड बना दिया। इससे पहले किसी राज्य के वित्त मंत्री के 12 बार बजट पेश करने के दृष्टांत नहीं हैं। केंद्र में मोरारजी देसाई ने 10 बार और चिदंबरम ने 8 बार बजट पेश किया है। राज्यों में छह-सात बार से ज्यादा किसी वित्त मंत्री ने बजट पेश नहीं किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का लगातार यह पांचवा बजट होगा।

डीएफओ का कमाल

22 हजार करोड़ की लागत से बन रहे रायपुर-विशाखापटनम सिक्स लेन ग्रीन कारिडोर का निर्माण धमतरी डीएफओ ने क्यों रोक दिया है, ये बात केंद्रीय सड़क मंत्रालय से लेकर नेशनल हाईवे अथॉरिटी तक किसी को समझ में नहीं आ रहा है। दरअसल, जिस इलाके से एनएच गुजरना है, वहां कुछ पेड़ थे। एनएच ने किसानों को उसका मुआवजा दे दिया। कलेक्टर ने भी दो महीने पहले पेड़ काटने की अनुमति दे दी थी। मगर डीएफओ ने कम पेड़ का हवाला देकर निर्माण पर रोक नहीं लगाया बल्कि जेसीबी वगैरह जब्त कर लिया है। नेशनल हाईवे के अधिकारियों का कहना है कि पेड़ कम है, तो उससे डीएफओ को क्या परेशानी। दिक्कत यह है कि अगर प्रोजेक्ट लेट हुआ, तो निर्माण एजेंसी को प्रतिदिन के हिसाब से 20 लाख रुपए जुर्माना देना पड़ेगा। तभी एनएचए के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने धमतरी कलेक्टर को पत्र लिख कहा है कि ग्रीन कॉरिडोर भारत सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना है...उच्च स्तर से इसकी मानिटरिंग हो रही है...इसे समय पर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। वन विभाग जब्त मशीनों को तत्काल लौटा दे। ग्रीन कॉरिडोर के बन जाने से रायपुर-विशाखापटनम की दूरी पांच घंटे कम हो जाएगी। इस ग्रीन कारिडोर के दोनों तरफ ग्रील लगाए जाएंगे ताकि कोई मवेशी या व्हीकल अचानक बीच में न आ जाए। तभी सात घंटे में आदमी विशाखापटनम पहुंच जाएगा। अब ऐसी सड़क को डीएफओ साब ब्रेक लगा दे रहे हैं तो समझा जा सकता है, वन विभाग के अफसर क्या कर रहे हैं। हालांकि, जेसीबी जब्त कर डीएफओ फंस गए हैं। रेवेन्यू लैंड में परिवहन गाड़ियों के अलावा किसी और वाहन पर फॉरेस्ट अफसर कार्रवाई नहीं कर सकते। लेकिन, अब उनसे न निगलते बन रहा और न उगलते। सवाल उठता है, ऐसा करने के पीछे डीएफओ साब की आखिर मंशा क्या थी...इसे पता करना पड़ेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीएम अवस्थी के इस महीने रिटायर होने के बाद एसीबी का अगला चीफ कौन बनेगा?

2. बस्तर के नारायणपुर के बाद अब कवर्धा में हिंसा...पुलिस पर हमला....इससे क्या मायने निकलते हैं?



शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

Tarkash: 20 साल बाद...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 फरवरी 2023

20 साल बाद...

कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले 2003 में बीजेपी की राष्ट्रीय राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रायपुर में हुई थी। तब केंद्र में एनडीए की सरकार थी। अटलजी प्रधानमंत्री थे। लालकृष्ण आडवाणी गृह मंत्री। उस समय प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर देश भर से बीजेपी कार्यकारिणी के नेता रायपुर आए थे। चूकि वह सिर्फ कार्यकारिणी की बैठक थी, सो वीआईपी रोड के एक बड़े होटल में हो गई। उसके बाद 19 साल तक रायपुर में राष्ट्रीय स्तर का कोई सियासी आयोजन नहीं हुआ। और हुआ तो सीधे राष्ट्रीय अधिवेशन। राज्य बनने के 23 साल का यह पहला बड़ा पॉलीटिकल शो होगा। असम की पुलिस ने इस शो को और हिट कर दिया। विदित है, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को पुलिस ने फ्लाइट से उतार कर गिरफ्तार कर लिया। उस दोपहर से लेकर शाम को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने तक खेड़ा और रायपुर अधिवेशन सुर्खियों में रहा। अलबत्ता, घंटे भर तक रायपुर अधिवेशन टॉप पर ट्रेंड करता रहा...लोग रायपुर को सर्च करते रहे। हालांकि, 2003 की बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक को उस समय की कांग्रेस सरकार ने हिट कर दिया था। पुराने लोगों को याद होगा...कार्यसमिति की बैठक के दिन केंद्र सरकार की नाकामियों का विज्ञापन तमाम अखबारों के पहले पन्ने पर थे। और यह सियासी अदावत चर्चा का विषय बन गया था।

भूपेश का छक्का

ये अलग बात है कि सीएम भूपेश बघेल भौरा चलाते हैं...गेड़ी चढ़ते हैं मगर क्रिकेट उनका पंसदीदा खेल है। वे क्रिकेट खेलते भी रहे हैं। सियासत के क्रिकेट में भी उनका कोई जवाब नहीं है। आखिरी बॉल तक संघर्ष करने वाला कैप्टन। साल भर पहिले तक उनकी सियासी स्थिति क्या रही और अभी देखिए...। दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से मिलने के लिए नेताओं को टाईम मिलना मुश्किल भरा काम होता है, पार्टी की ऐसी हस्तियां तीन दिन से रायपुर में हैं और सीएम भूपेश उनकी मेजबानी कर रहे हैं। यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कर सीएम भूपेश ने पार्टी में अपनी लकीर काफी लंबी कर ली है।

राजेश मूणत कौन...

राष्ट्रीय आयोजन की भव्यता को देखकर रायपुर में लोग पूछ रहे हैं कि कांग्रेस का राजेश मूणत कौन हैं? दरअसल, रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान मंत्री राजेश मूणत को उनका हनुमान कहा जाता था। वे लंबे समय तक पीडब्लूडी और परिवहन मंत्री रहे...जाहिर तौर पर तमाम बड़े आयोजनों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती थी। रमन सरकार के 15 साल में जितने बड़े आयोजन हुए, मूणत ही खड़े होकर मंच से लेकर पंडाल और खाने की व्यवस्था करते दिखे। लेकिन, कांग्रेस का मूणत रमन सिंह के मूणत से आगे निकल गया। नवा रायपुर के अधिवेशन की भव्यता देखकर हर आदमी दंग है...लजीज भोजन। वो भी ऐसा नहीं कि नाश्ता, लंच और डिनर का कूपन देकर पल्ला झाड़ लिए। भोजन की तारीफ भी खूब हो रही है। कोई लिमिट भी नहीं...चाय-बिस्किट, भजिया, पकौड़ा तो किसी भी टाईम जाइये...एवेलेवल मिलेगा। बहरहाल, दूसरों के घरों में क्या हो रहा है, यह जानने की स्वाभाविक बेचैनी होती है। सो, लोग यह नहीं समझ पा रहे कि इतना भव्य आयोजन कराया किसने। राजेश मूणत की खाना बनवाते हुए तस्वीरें मीडिया में आ जाती थी। इस बार ऐसा कुछ हुआ नहीं। चुपचाप सारा काम होता रहा। सीएम भूपेश बघेल मीडिया से बड़ा फेंडली हैं। कोई बड़ा आयोजन होता है तो मीडिया को बुलाकर खुद ब्रीफ करते हैं। मगर इस बार ऐसा कुछ भी नहीं। कांग्रेस में इतना बढ़िया व्यवस्था करने वाला राजेश मूणत कौन है, आपको पता चले तो हमें भी बताइयेगा।

मंत्रिमंडल में सर्जरी!

छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां सवा चार साल में एक बार भी मंत्रिमंडल में चेंज नहीं हुआ। एकाधिक बार सीएम भूपेश बघेल संकेत दिए थे कि हाईकमान से चर्चा कर मंत्रिमंडल में सर्जरी की जाएगी। पर सियासी परिस्थितियां ऐसी नहीं रही की मंत्रिमंडल में फेरबदल को अंजाम दिया जा सके। चुनावी साल में हाईकमान भी चाहेगा कि कुछ नए चेहरों के साथ भूपेश चुनावी मैदान में उतरें। ऐसे में, अधिवेशन के बाद मंत्रिमंडल में कुछ चेहरे बदले तो सियासी पंडितों को भी कोई हैरानी नहीं होगी।

नॉन आईएएस कलेक्टर?

पांच साल बाद हुए कैडर रिव्यू में भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ में सिर्फ नौ आईएएस की संख्या बढ़ाई है। जबकि, 2016 में हुए रिव्यू में 15 पद बढ़ाए गए थे। उस समय कैडर 178 से बढ़कर 193 हुआ था और अभी 193 से 202 किया गया है। बताते हैं, इस बार भी कुल कैडर का आठ फीसदी याने करीब 15 पद बढ़ाने की मांग की गई थी। मगर डीओपीटी ने पांच प्रतिशत के हिसाब याने नौ से अधिक पद देने से टस-से-मस नहीं हुआ। पद कम बढ़ने का नतीजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़कर 33 हो गई है मगर कलेक्टरों का कैडर पोस्ट 29 ही सेंक्शन किया गया है। याने चार कलेक्टर नॉन कैडर होंगे। अब ये चार कलेक्टर कौन होंगे, यह सरकार तय करेगी। मगर इसके साथ यह भी सही है कि सरकार चाहे तो इन चार जिलों में नॉन आईएएस को भी कलेक्टर बना सकती है। उसी तरह जैस नॉन आईपीएस को जिले का कप्तान बनाया जाता है। हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में नॉन आईएएस को कलेक्टर बनाना शुरू हो गया है। मगर अभी हिन्दी राज्यों में ऐसा नहीं हो रहा। मगर कैडर पोस्ट स्वीकृत न होने से सरकार अब फ्री है।

आईपीएस का क्या?

भले ही संख्या कम बढ़ी मगर आईएएस का कैडर रिव्यू हो गया। मगर आईपीएस का अभी अता-पता नहीं है। आलम यह है कि आईपीएस कैडर रिव्यू का प्रस्ताव ही अभी भारत सरकार को नहीं भेजा गया है। कई महीने से फाइल पुलिस मुख्यालय में लंबित है। आईपीएस लॉबी के प्रेशर में सरकार ने अबकी आईएएस से पहले उनका प्रमोशन कर दिया। मगर कैडर रिव्यू में आईपीएस पीछे हो गए।

आरआर-प्रमोटी भाई-भाई

कलेक्टर बनने के मामले में प्रमोटी आईएएस अभी तक उपेक्षित रहते थे। आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस से चार-पांच बैच बाद ही प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनने का नम्बर लगता था। मगर यह पहली बार हुआ है कि आरआर और प्रमोटी दोनों बराबर हो गए हैं। आरआर में 2016 बैच कलेक्टर के लिए कंप्लीट हुआ है। याने इस बैच के सभी अधिकारियों को जिला मिल गया है। वहीं, प्रमोटी में भी 2016 बैच प्रारंभ हो गया है। पहले फरिया आलम सारंगढ़ की कलेक्टर बनी और अभी प्रियंका मोहबिया को सरकार ने जीपीएम का कलेक्टर बनाया है। जो काम बड़े और धाकड़ प्रमोटी आईएएस नहीं करा पाए, वो नारी शक्ति ने कर दिखाया। प्रमोटी आईएएस को इस पर फख्र कर सकते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अधिवेशन से पहले ईडी का छापा और पवन खेड़ा को गिरफ्तार करने से किसको फायदा हुआ और किसको नुकसान?

2. प्रियंका गांधी का रायपुर में अभूतपूर्व स्वागत के क्या कोई मायने हैं?


शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

5 जिलों में डीआईजी

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 फरवरी 2023

5 जिलों में डीआईजी

यह पहली बार होगा कि सूबे के पांच जिलों में डीआईजी कप्तानी कर रहे हैं। इससे पहले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में ही डीआईजी को जिले की कमान सौंपी जाती थी। मगर एसपी लेवल पर अधिकारियों की कमी के चलते अब डीआईजी वाले जिलों की संख्या बढ़ गई हैं। इस समय रायपुर, बलौदाबाजार, गरियाबंद, जशुपर और बस्तर में डीआईजी बतौर एसएसपी पोस्टेड हैं। इनमें दीपक झा और अमित कांबले भी शामिल हैं। दीपक झा रायगढ़, बस्तर और बिलासपुर जैसे बड़े जिले के एसपी रहने के बाद बलौदा बाजार जैसे छोटे जिले में तैनात हैं। इसी तरह अमित कांबले 2017 में गरियाबंद जिले के एसपी थे। वहीं से वे सेंट्रल डेपुटेशन में गए। वहां से लौटने पर पिछले साल उन्हें अंबिकापुर का एसपी बनाया गया। और अब डीआईजी बनने के बाद फिर से गरियाबंद एसपी। याने पांच बरस पहले जहां से उन्होंने एसपी की पारी शुरू की, फिर वहीं पहुंच गए। इसमें खबर यह है कि चूकि डीआईजी वाले जिलों की संख्या पांच हो चुकी है, इसलिए समझा जाता है कि बजट सत्र के बाद एसपी की एक और लिस्ट निकलेगी।

पोस्ट रिटारमेंट पोस्टिंग?

गर किसी आईएएस को सरकार में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी जाती है, तो आमतौर पर उसकी मूल पोस्टिंग इलेक्ट्रॉनिक्स या संसदीय कार्य सचिव की होती है। 31 जनवरी को कई विभागों के एमडी और सिकरेट्री से रिटायर किए निरंजन दास भी सिकरेट्री इलेक्ट्रॉनिक्स बनाए गए। फिर उन्हें कई जिम्मेदारियां सौंपी गई। जाहिर तौर पर लोगों के मन में स्वाभाविक जिज्ञासा होगी कि रिटायर अफसरों को इलेक्ट्रॉनिक्स और संसदीय कार्य सिकरेट्री ही क्यों। दरअसल, रमन सरकार में पहली बार संविदा के लिए तीन पद क्रियेट किए गए थे। तीनों गैर कैडर पोस्ट। इलेक्ट्रॉनिक्स, संसदीय कार्य सचिव और सिकरेट्री टू सीएम। पिछली सरकार में अमन सिंह की मूल पोस्टिंग इलेक्ट्रानिक सिकरेट्री थी। और एमके त्यागी का संसदीय कार्य सचिव। इस सरकार में डॉ. आलोक शुक्ला की मूल पोस्टिंग संसदीय  कार्य सचिव है। डीडी सिंह का सिकरेट्री टू सीएम। फंडा यह है कि सिकरेट्री के सारे पद आईएएस के कैडर पोस्ट हैं। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स, संसदीय कार्य सचिव और सिकरेट्री टू सीएम पद को छोड़कर। रिटायरमेंट के बाद अगर किसी आईएएस को कैडर पोस्ट पर बिठाया जाएगा तो डीओपीटी से ऑब्जेक्शन आ जाएगा। इसलिए, इलेक्ट्रॉनिक्स या संसदीय सचिव की मूल पोस्टिंग देकर दूसरे विभागों का अतिरिक्त प्रभार देने का आइडिया निकाला गया। बता दें, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने संविदा का नियम बनाया था। उससे पहले अमन सिंह को वीआरएस लेने के बाद सचिव बनाने पर हाई कोर्ट में चुनाती दी गई थी। चूकि सरकार ने संविदा नियम बना लिया। लिहाजा, याचिका खारिज हो गई।

25 सीट!

चुनावी साल में कांग्रेस को लेकर आम आदमी के बीच माउथ पब्लिसिटी शुरू हुई है, वह भाजपा के लिए ठीक नहीं है। आपको याद होगा...2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह की जन चर्चाएं हुई थी। ऐसा नहीं कि रमन सरकार ने काम नहीं किया...मगर लोगों ने बोलना शुरू कर दिया था...अबकी बार कांग्रेस। वजह? क्या बीजेपी ने काम नहीं किया? जवाब....काम किया है मगर अब बहुत हो गया, इस बार कांग्रेस को। वैसे भी आजकल विकास को चुनाव जीतने का पैमाना नहीं माना जाता। अजीत जोगी सरकार में सबसे अधिक कहीं विकास के काम हुए थे तो उनके गृह नगर बिलासपुर में। बावजूद इसके 2003 के विस चुनाव में कांग्रेस बिलासपुर नहीं निकाल सकी। राजेश मूणत ने रायपुर पश्चिम में कम काम नही कराए, फिर भी विकास उपध्याय के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। अजय चंद्राकर अपवाद हो सकते हैं...जिन्होंने कुरूद में इतने काम कराए कि कांग्रेस की आंधी में भी अपनी सीट बरकरार रखने में कामयाब रहे। बहरहाल, 15 साल तक सूबे में राज करने वाली बीजेपी की स्थिति यह है कि करना क्या है, किसी नेता को नहीं पता। न कोई प्रदर्शन, और न ही जनता का ध्यान आकृष्ट करने वाला आंदोलन। पूर्व मंत्री कोई बड़ा स्टैंड लेने की स्थिति में नही है...क्योंकि 15 साल में उनके खिलाफ कुछ-न-कुछ निकल ही जाएगा। बाकी सेकेंड लाइन कोई तैयार नहीं। जो तैयार हो रहे थे, उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया गया। अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो थोड़े समय के लिए लगा कुछ बदलेगा। मगर पार्टी उसे कंटीन्यू नहीं रख सकी। पार्टी को लीड कौन कर रहा, कार्यकर्ताओं को ये समझ में नहीं आ रहा है। अरुण साव पढ़े-लिखे हैं...अच्छे वक्ता भी...मगर बड़े मामलों में बयान देने से बचते हैं। नेता प्रतिपक्ष पारिवारिक केस में उलझ गए हैं। सो, फिलवक्त उनके होने-न-होने का कोई मतलब नहीं। सियासी प्रेक्षक इस वक्त बीजेपी को 90 में से 25 सीट से अधिक देने तैयार नहीं हैं। सरकार बनाने के लिए जादुई संख्या 46 चाहिए। और अभी जो पार्टी की स्थिति है, उसमें यह दूर की कौड़ी प्रतीत हो रहा है।

शेखर दत्त का रिकार्ड

बिस्वा भूशण हरिचंदन छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल बनाए गए हैं। पड़ोसी राज्य ओड़िसा के रहने वाले हरिचंदन फिलवक्त आंध्रप्रदेश के राज्यपाल हैं। बलरामदासजी टंडन के बाद हरिचंदन 80 प्लस वाले छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यपाल होंगे। छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय थे। उन्हें एनडीए सरकार ने राज्यपाल बनाया था। मगर अजीत जोगी सरकार से उनके रिश्ते गर्मजोशी वाले रहे। दोनों एक-दूसरे की तारीफ करते नहीं थकते थे। सहाय को छत्तीसगढ़ इतना भा गया था कि त्रिपुरा ट्रांसफर होने पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच पर ही भावुक हो गए थे। सहाय के बाद लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ दूसरे राज्यपाल बनें। तब तक सूबे में बीजेपी की सरकार बन गई थी। और केंद्र में यूपीए की। बावजूद इसके सेठ करीब साढ़े तीन साल गवर्नर रहे। सेठ के बाद ईएसएल नरसिम्हन तीसरे राज्यपाल बनें। नरसिम्हन रिटायर आईपीएस अधिकारी थे। छत्तीसगढ़ में वे तीन साल रहे और प्रमोशन पर आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनकर गए। उनके बाद शेखर दत्त आए। दत्त चूकि रायपुर के कमिश्नर रह चुके थे, इसलिए छत्तीसगढ़ उनके लिए नया नहीं था। केंद्र में यूपीए की सरकार होने के बाद भी उनके सीएम रमन सिंह से मधुर संबंध रहे। शेखर दत्त के बाद बलरामदासजी टंडन राज्यपाल बने। उनका राज्यपाल रहते निधन हो गया। टंडन के बाद मध्यप्रदेश के राज्यपाल आनंदी बेन को छत्तीसगढ़ का अतिरिक्त प्रभार मिला। अतिरिक्त प्रभार में भी वे करीब-करीब साल भर रहीं। आनंदी बेन के बाद जुलाई 2019 में अनसुईया उइके राज्यपाल बनीं। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक समय तक गवर्नर रहने का रिकार्ड शेखत दत्त के नाम है। वे साढ़े चार साल राजभवन में रहे। 23 जनवरी 2010 से एक जुलाई 2014 तक। केएम सेठ और अनसुईया उइके का कार्यकाल करीब-करीब बराबर रहा। लगभग साढ़े तीन साल।

दूसरे राज्यपाल

सत्यपाल मलिक का नाम सबसे अधिक चार राज्यों के राज्यपाल रहने का रिकार्ड है। वे गोवा, जम्मू कश्मीर, बिहार और मेघालय के राज्यपाल रह चुके हैं। उनके बाद दूसरे नंबर पर रमेश बैस हैं। बैस त्रिपुरा, झारखंड के बाद अब महाराष्ट्र जैसे बड़े और विकसित राज्य के राज्यपाल बनाए गए हैं। दो राज्यों के राज्यपाल की फेहरिस्त में कई नाम हैं। मगर तीन बार के राज्यपाल में बैस के अलावा नेट पर कोई नाम नहीं। बहरहाल, बैसजी भले ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए मगर महाराष्ट्र जैसे स्टेट का राज्यपाल बनकर अपना ग्राफ काफी ऊपर कर लिया है। पहले विधायक, लगातार सात बार के सांसद। और अब तीन राज्यों के राज्यपाल। महाराष्ट्र का राज्यपाल का मतलब है उन्होंने शीर्ष नेतृत्व का भरोसा जीता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मुख्यमंत्री जिस नेता की शिकायत एआईसीसी में किए हों, उसे पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन की तीन कमेटियों में शामिल करने का क्या मतलब है?

2. ब्यूरोक्रेसी में इस बात की दबी जुबां से चर्चा क्यों है कि फरवरी लास्ट में कुछ बड़ा होगा?



शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

तरकश: गुमनाम हीरो, मदद के बढ़ते हाथ...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 12 फरवरी 2023

गुमनाम हीरो, मदद के बढ़ते हाथ...

चार बार के ओलंपियन और वर्ल्ड कप हॉकी के हीरो विसेंट लकड़ा रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ ब्लॉक के रिमोट गांव सिथारा में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं। क्रिकेट खिलाड़ी होते तो आज किसी मेट्रो सिटी में लग्जरी जीवन यापन कर रहे होते। मगर दुर्भाग्य देश का और हॉकी का...सिस्टम ने देश और छत्तीसगढ़ की शान बढ़ाने वाले इस हीरो का हाल-चाल जानना जरूरी नहीं समझा और न ही रायगढ़ का कोई जिम्मेदार अधिकारी कभी उनकी सुध लेने गया। देश के गुमनाम हीरोज के नाम से यूट्यूब पर विसेंट लकड़ा का भी एक वीडियो है। उसे देखकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील और एनजीओ वाले विसेंट की मदद करना चाहते हैं। इसके लिए विसेंट का कंटेक्ट नंबर वे तलाश रहे।

कलेक्टर बड़ा या कलेक्टर का रीडर

कानून में यह क्लियर है कि आदिवासी की कोई भी जमीन कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं बेची जा सकती। मगर छत्तीसगढ़ के कुछ कलेक्टर गजबे कर रहे हैं। कई जिलों में आदिवासी लैंड अगर डायवर्टेड है तो कलेक्टर लिख कर दे दे रहे हैं...इसमें कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं है। और कई जिले ऐसे हैं, जहां डायवर्टेड लैंड होने के बाद भी कलेक्टर की अनुमति पाने चप्पल घिस जाते हैं। जाहिर है, अनुमति का प्रोसेस, महीनो की पेशी, बयान, साक्ष्य के बाद पूरा होता है। असल में, कलेक्टरों को आजकल नियम-कायदों की स्टडी होती नहीं। उनका रीडर जो बताता है, उसे वे ओके कर देते हैं। वही कलेक्टर एक जिले में पोस्टिंग के दौरान डायवर्टेड लैंड के मामले में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं लिखकर देते हैं और दूसरे जिले में जाते हैं तो अनुमति अनिवार्य बताते हैं। दरअसल, 2008 में जब राधाकृष्णन राजस्व बोर्ड के चेयरमैन थे, तब भूमाफियाओं ने उनसे आर्डर करा लिया था कि डायवर्टेड लैंड में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं। हालांकि, डीएस मिश्रा ने चेयरमैन बनते ही उसे समाप्त का दिया था। मगर कलेक्टरों के कई खटराल रीडर राधाकृष्णन के उसी फैसले के आधार पर भूमाफियाओं को उपकृत कर रहे हैं। बहती गंगा में हाथ धोते हुए कई रजिस्ट्री अफसर भी कलेक्टर के ऐसे टीप का सहारा लेकर आदिवासी डाइवर्टेड भूमि का बेरोकटोक रजिस्ट्री कर दे रहे। बता दें, छत्तीसगढ़ में एक महिला कलेक्टर को इसी तरह के केस में डीई का आदेष हो चुका था। मगर आईएएस लॉबी के प्रेशर में मामला रफा-दफा कर दिया गया।

छोटा जिला, छोटे कलेक्टर

छत्तीसगढ़ में कभी सात जिले होते थे। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बस्तर, बिलासपुर, रायगढ़ और सरगुजा। अब संख्या बढ़कर 33 पहुंच चुकी हैं। याने एक जिले में पांच-पांच जिला। आलम यह कि जहां कभी एसडीएम बैठते थे, वहां अब कलेक्टर बैठ रहे हैं। जिले छोटे करने का मकसद ये था कि प्रशासन अंतिम व्यक्ति तक आसानी से पहुंच सकें। लेकिन, कलेक्टरों ने खुद को इस कदर सिकोड़ लिया है कि अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की बात तो अलग कलेक्टरों को ढूंढो तो जाने वाला हाल हो गया है। कलेक्टरों के मुख्यतः दो ही काम होते हैं...सरकार के खजाने में अधिक-से-अधिक रेवेन्यू आए और राजस्व मामलों का निबटारा। हर जिले में यही सबसे बड़ी समस्या है। पिछले कलेक्टर कांफ्रेंस में रेवेन्यू नहीं बढ़ाने को लेकर उन्हें आड़े हाथ लिया गया था। और राजस्व मामलों का भगवान मालिक हैं। सालों बाद रायपुर तहसील में राजस्व मामलों के लिए कैंप लगाया गया। वरना, जिलों में पटवारी और भूमाफिया मिलकर राजस्व विभाग चला रहे हैं। कलेक्टरों को डीएमएफ से फुरसत नहीं। आधे-एक घंटे के लिए आफिस पहुंच गए तो बड़ी बात। नहीं तो, बंगले से ही डीएमएफ का खेल। पहले के कलेक्टर आठ-आठ, दस-दस ब्लाकों को दौरे में कवर कर लेते थे। अबके कलेक्टर दो ब्लॉक को ठीक से देख नहीं पा रहे, तो इसका मतलब आप समझ सकते हैं। रायपुर में कलेक्टर एमके राउत और एडिशनल कलेक्टर अनिल टुटेजा हर महीने दो-तीन चौपाल लगा आते थे। मगर अभी के कलेक्टर आफिस में मिल गए तो अपनी किस्मत समझिए। छोटे जिले होने से कलेक्टरों के लिए बड़ा अवसर था...नाम कमा सकते थे। ईश्वर ने उन्हें देश की सर्वोच्च सर्विस के लिए चुना है, वे इसे जस्टिफाई कर सकते थे। मगर मध्यप्रदेश वालों ने गड़बड़ नस्ल के आईएएस अफसरों को छत्तीसगढ़ भेजकर ऐसा नस्ल खराब किया कि अब बेहतर की उम्मीद मुश्किल है। यही हाल पुलिस का भी है। जहां कभी एडिशनल एसपी नहीं होते थे, वहां डायरेक्ट आईपीएस एसपी बने बैठे हैं। मगर जरा पूछिए उनसे आउटकम क्या है।

एसीबी की पोस्टिंग?

लगातार पांच जिलों की क़प्तानी कर राजधानी लौटी डीआईजी पारुल माथुर को सरकार ने एसीबी में पोस्ट किया था। और जाहिर था कि अगले महीने मार्च में डीजी डीएम अवस्थी के रिटायर होने के बाद पारुल एसीबी की कमान संभालती। मगर हफ्ते भर में वे सरगुजा चली गईं। उनकी जगह पर एसपी सीएम सिक्यूरिटी प्रखर पाण्डेय को एसीबी भेजा गया है। डीएम के बाद प्रखर को एसीबी संभालना है, लिहाजा उन्हें किसी अच्छे पंडित को बुलाकर एसीबी में पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, एसीबी में जो भी जा रहा, उसका बहुत अच्छा नहीं हो रहा। या तो वो हिट विकेट हो जा रहा या फिर उसका कैरियर खतम हो जा रहा है। संजय पिल्ले तक सब ठीक था। मगर उसके बाद मुकेश गुप्ता, एसआरपी कल्लूरी, जीपी सिंह, बीके सिंह, पारुल...लिस्ट में कई नाम हैं। बीके सिंह डीजी लेवल के सीनियर आईपीएस थे, अफसरों के साथ उनकी लड़ाई छिड़ गई। जाहिर है, इनमें कई अच्छे अफसर थे, मगर ग्रह-नक्षत्र का खेल देखिए...कई अफसर बियाबान में हैं।

मरकाम को झटका?

पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए एआईसीसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम और पीसीसी के संगठन महामंत्री अमरजीत चावला को नोटिस थमा दी है। चूकि यह नोटिस सीएम भूपेश बघेल की शिकायत पर जारी हुई है, सो इस केस में कार्रवाई भी तय समझी जा रही है। नोटिस से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम को झटका जरूर लगा होगा। खासकर अमरजीत को लेकर। अमरजीत उनके काफी करीबी माने जाते हैं। कुर्मी समाज के खिलाफ वायरल आडियो के बाद अमरजीत को महासमुंद जिला अध्यक्ष से इस्तीफा देना पड़ा था। मरकाम ने उन्हें प्रदेश में दूसरे नम्बर की बड़ी जिम्मेदारी देते हुए संगठन महामंत्री बना दिया था। अब लाचारी यह है कि मुख्यमंत्री की शिकायत पर नोटिस हुई है, इसलिए मरकाम कुछ कर भी नहीं सकते। एक तो हाईकमान सुनेगा नहीं, दूसरा, सूबे के सीएम से पंगा लेने की एक लिमिट होती है। पता चला है, चने के पेड़ पर चढ़ाने वाले कुछ लोगों ने पीसीसी चीफ के खेमे को दिल्ली जाकर बात करने की सलाह दी। पर ऐसा कुछ होगा नहीं। रास्ता निकाले जाने की बात जरूर आ रही है। हो सकता है, संगठन महामंत्री का प्रभार रवि घोष को फिर से मिल जाए।

सियासी भविष्य

अमित शाह के रायपुर दौरे में विधायक धर्मजीत सिंह का बीजेपी प्रवेश होते-होते रह गया था। कहा गया कि टिकिट देने पर कोई बात बनी नहीं। मगर ऐसी सियासी बातों की कोई पुष्टि करता नहीं...पुष्टि हुई भी नहीं। बहरहाल, सवाल तो है कि अब जब विधानसभा चुनाव में छह महीने बच गया है, धर्मजीत का अगला सियासी कदम क्या होगा। जोगी कांग्रेस उन्हें निष्कासित कर चुकी है। कांग्रेस में वर्तमान परिस्थितियों में उनकी इंट्री होगी नहीं। बच गई बीजेपी। बीजेपी नेताओं के वे लगातार संपर्क में हैं। लोकल नेताओं से उनके रिश्ते भी बढ़िया हैं। लेकिन, टिकिट देने का मसला दिल्ली से तय होगा। हालांकि, ऐसा नहीं है कि पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं को बीजेपी टिकिट नहीं दी हो। यूपी में तो कई उदाहरण हैं। बताते हैं, धर्मजीत बीजेपी से तखतपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनके करीबी बताते हैं, तखतपुर से अगर बीजेपी की टिकिट नहीं मिली तो लोरमी से फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हाथ आजमाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सारंगढ़ के कलेक्टर राहुल वेंकट के बाद एसपी राजेश कुकरेजा का भी विकेट गिर गया। क्या इससे उस इलाके के एक संसदीय सचिव का प्रभाव और बढ़ गया?

2. क्या एक मंत्री का भतीजा बीजेपी से विधानसभा चुनाव में उतरेगा?