रविवार, 20 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

 तरकश, 20 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

सूरजपुर घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बंद कमरे में पुलिस अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उनका प्वाइंटेड प्रश्न था...आरोपी जब एक दिन पहले थाने में आकर धमका गया था तो पुलिस एक्शन में क्यों नहीं आई? अपराधियों के खिलाफ पुलिस सख्ती क्यों नहीं बरत रही? सीएम का गुस्सा जायज था। वैसे गुस्से में आम पब्लिक भी है और सूबे के 70 हजार पुलिस परिवार भी। पुलिस ने बलरामपुर बस स्टैंड में नाटकीय ढंग से मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी की, उससे पुलिस परिवारों का खून खौल गया। आरोपी हाफ पैंट में ठसन के साथ चल रहा था और पुलिस उसके साथ फोटो और वीडियो बनवा रही थी। पुलिस अधिकारियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा तब हो गई, जब हाफ पैंट में ही आरोपी को प्रेस के सामने पेश कर दिया। जिस समय पुलिस बलरामपुर में अपराधी के साथ फोटो सेशन करवा रही थी, उसी दौरान टीवी पर यूपी के बहराइच कांड के जख्मी आरोपी का वीडियो चल रहे थे, जिसमें वह कराह रहा था...साब गल्ती हो गई, अब कभी ऐसा नहीं होगा। एनकाउंटर में दोनों के पैर में गोली लगी थी। और हमारी छत्तीसगढ़ की पुलिस...? बताते हैं, मुख्य आरोपी को बचाने उसके पुलिसिया खैरख्वाह एक्टिव हो गए थे। योजनाबद्ध ढंग से उसे गढ़वा से बुलाया गया, यह गारंटी देकर कि कुछ नहीं होगा, आ जाओ। फिर स्टोरी प्लांट की गई...गढ़वा से अंबिकापुर आ रहा था। तभी पुलिस को इनपुट मिले और उसे बलरामपुर बस स्टैंड में दबोच लिया गया। पता नहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस में पानी बचा है या नहीं। हेड कांस्टेबल के घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या हो जाती है, उसके बाद भी लहू गरम नहीं होता। मुख्य आरोपी के अहसान से दबे सूरजपुर पुलिस का एक धड़ा उसे बचाने में जुट गया है। जाहिर है, सीजी पुलिस के लिए आजकल सबसे बड़ा रुपैया हो गया है...ईमान-धरम सब पीछे।

पुलिस अफसर और जुआ

राजधानी रायपुर से लगे अमलेश्वर में कुछ सीनियर राजपत्रित पुलिस अधिकारी हाई प्रोफाइल जुआ खिलवा रहे थे। खुफिया चीफ अमित कुमार को इसकी भनक लग गई। उन्होंने अधिकारियों को बुलवाकर जमकर हड़काया। दिल्ली से 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौटे अमित हैरान थे कि छत्तीसगढ़ पुलिस को आखिर क्या हो गया है...पैसे के लिए पुलिस इतनी नीचे गिर जाएगी! दरअसल, अतीत में जो हुआ, वह पोलिसिंग को चौपट कर दिया। वर्दी वालों को पैसे की ऐसी लत लग गई कि छत्तीसगढ़ में कौन अफसर काबिल और कौन नाकाबिल...इसका भेद खतम हो गया है। सट्टा और जुआ ने कई उर्जावान अफसरों का कैरियर चौपट कर डाला। हालत यह है कि सरकार एक आईजी लॉ एंड आर्डर बनाना चाहती है मगर इसके लायक कोई अफसर नहीं दिखाई पड़ रहा।

महिला पुलिस और उपयोगिता

छत्तीसगढ़ पुलिस की ट्रेनिंग चौपट हो गई है, उपर से लाखों रुपए खर्च कर ट्रेनिंग हो रही, उसका भी उपयोग नहीं किया जा रहा। सूबे में ढाई-तीन दर्जन महिला डीएसपी, एडि. एसपी होंगी। इनमें से अधिकांश बटालियन या फिर चिटफंड और आईयूसीएडब्लू में पोस्टेड हैं। सवाल उठता है कि पीएससी में सलेक्ट होकर सीट अकुपाई करने वाली महिला पुलिस अधिकारी फील्ड में काम क्यों नहीं करना चाहतीं और पुलिस मुख्यालय पोस्टिंग के समय इस पर गौर क्यों नहीं करता? महिला पुलिस अधिकारी एसी चेंबर, गाड़ी, बंगला और अर्दली से ही संतुष्ट क्यों हो जा रही...पीएचक्यू को इसकी स्टडी करानी चाहिए। हालांकि, इससे इंकार नहीं कि महिला अधिकारियों के लिए व्यवस्थागत खामियां भी है। छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक गृह मंत्री और डीजीपी हुए मगर आज तक किसी ने ये नहीं सोचा कि महिला सिपाही या अधिकारी को फील्ड में ड्यूटी लगाई जाएगी तो वे वॉशरुम कहां जाएंगी। वीआईपी के लिए चलित शौचालय का बंदोबस्त हो जाता है मगर किराये की गाड़ी के नाम पर हर साल कई करोड़ रुपए बहाने वाली पुलिस अपने महिला स्टाफ के लिए एक मोबाइल टॉयलेट नहीं खरीद सकती। दूसरा, पीएचक्यू को ये भी देखना चाहिए कि पुरूष प्रभुत्व सिस्टम में महिला अफसरों के साथ कोई नाइंसाफी तो नहीं हो रही। बहरहाल, समाज में डे-टू-डे महिला अपराध बढ़ रहे, तब महिला पुलिस अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग और जरूरी हो जाती है।

ब्यूरोक्रेसी और रिफार्म

जब देश में अंग्रेजों के टाईम के कानून बदले जा रहे हैं...तब छत्तीसगढ़ का राजस्व विभाग ने तहसीलदारों के आगे घूटने टेकते हुए उन्हें अंग्रेजों की बनाई न्यायालयीन संरक्षण उपलब्ध करा दिया। याने अब बिना विभागीय अनुमति के तहसीलदारों, नायब तहसीदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। असल में, नौकरशाही के साथ दिक्कत यह है कि सिस्टम के सुधार में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। चूकि, इसमें रिस्क होता है, इसलिए ब्यूरोक्रेसी की सिंगल लाईन होती है...जैसा चल रहा, चलने दो। खैर...छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व न्यायालय को समाप्त कर दिया है। मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों में ़ऋण पुस्तिका की भी अब आवश्यता नहीं। अनेक ऐसे स्टेट हैं, जहां रजिस्ट्री होते ही आटोमेटिक नामंतरण हो जाता है। और इधर छत्तीसगढ़ में....। राजस्व महकमे के मुलाजिमों से वैसे भी पब्लिक त्राहि माम कर रही है। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी एकाधिक बार स्वीकार कर चुके हैं कि सबसे अधिक उनके पास राजस्व विभाग की शिकायतें आती है। कलेक्टर कांफ्रेंस में पहली बार अबकी राजस्व, बंटवारा और नामंतरण का एजेंडा सबसे उपर रखा गया था। बावजूद इसके राजस्व विभाग ने राजस्व अधिकारियों के आगे नतमस्तक हो गया, तो फिर क्या कहा जा सकता है।

फिर बर्खास्त क्यों नहीं?

जाहिर है, राजस्व अधिकारी आएं-बाएं फैसला पारित करते हैं और न्यायालय की आड़ में बच जाते हैं। उनके गलत फैसलों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। राजस्व विभाग में कोई विजिलेंस सेल नहीं है। जबकि, ज्यूडिशरी में निगरानी का अपना एक सिस्टम है। जजों को विशेष संरक्षण मिला है मगर वो अगर गलत फैसला देते हैं, तो हाई कोर्ट के राडार पर आते हैं और साल में 10-12 जजों की बर्खास्तगी भी होती है। किन्तु गलत फैसले के लिए आपने कभी एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार को बर्खास्त होते देखा है? जब दोषपूर्ण फैसलों पर राजस्व अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं तो फिर उन्हें विशेष संरक्षण क्यों? सिस्टम को इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि, सबसे अधिक अगर किसी विभाग में करप्शन है तो वह राजस्व विभाग है। पिछले हफ्ते एक महिला आईएएस ने किसी रिश्तेदार के नाम पर एक जमीन का नामंतरण कराया। उन्हें नामंतरण और सीमांकन के लिए दो लाख रुपए देने पड़े, तब जाकर काम हो पाया। दरअसल, अंग्रेजी शासन के प्रारंभ में कलेक्टरों को फांसी देने का अधिकार होता था। बाद में ये पावर ले लिया गया। मगर सिविल मामलों का अधिकार इसलिए उनके पास यथावत रखा क्योंकि, उस समय लगान से ही सरकार को मुख्य राजस्व प्राप्त होता था। उस समय सरकार के पास पैसे होते नहीं थे। इसीलिए कलेक्टर नाम पड़ा...रेवेन्यू कलेक्ट करने वाला। राजस्व अमलों को न्यायालयीन अधिकार करप्शन को ढकने का एक बड़ा प्रोटेक्शन बन गया है।

आईएएस की पोस्टिंग

2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया अगले महीने छुट्टी से लौट आएंगे। वे एक सितंबर को सात साल का डेपुटेशन कंप्लीट कर दिल्ली से लौटे थे। ज्वाईन करने के बाद वे दो महीने के अवकाश पर चले गए थे। अगले महीने वे लौटेंगे तो सचिव स्तर पर एक सर्जरी होगी। कटारिया चूकि भारत सरकार से लौट रहे हैं, इसलिए उन्हें ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। कटारिया कवर्धा, रायगढ़ और बस्तर के कलेक्टर के साथ ही नगर निगम कमिश्नर रह चुके हैं। निगम कमिश्नर के तौर पर रायपुर में मंत्रालय, मोतीबाग, बस स्टैंड के आसपास के बेजा कब्जा हटाने में अमित की अहम भूमिका रही।

पिंगुआ को वेट

एसीएस मनोज पिंगुआ के पास इस समय चार विभाग हैं। गृह, जेल, हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन। छत्तीसगढ़ लेवल के अन्य राज्यों में इन चारों विभाग के लिए चार अलग-अलग सिकरेट्री होते हैं। रजत और रोहित यादव के दिल्ली से लौटने पर हुई सर्जरी में हेल्थ से पिंगुआ से हेल्थ हटने की चर्चाएं थी मगर ऐसा हुआ नहीं। अब अमित कटारिया छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं तो फिर कहा जा रहा कि उन्हें हेल्थ दिया जाएगा। मगर अंदर से जो खबरें आ रही, उसके मुताबिक पिंगुआ को विभागों के लोड से हल्का होने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। क्योंकि, अमित को एक डिप्टी सीएम का विभाग मिलने वाला है।

बिफोर प्रमोशन

छत्तीसगढ़ में सचिवों की भरमार हो गई है मगर प्रमुख सचिव स्तर पर अधिकारियों की भारी कमी है। इसको देखते चर्चा है 2000 बैच के साथ ही 2002 बैच का पिं्रसिपल सिकरेट्री पद प्रमोशन दे दिया जाएगा। मंत्रालय में सिस्टम का बैकबोन होता है। याने क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो मध्यक्रम के बल्लेबाज। छत्तीसगढ़ में सिर्फ दो ही पीएस हैं। निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर द्विवेदी और सुबोध सिंह पीएस हैं मगर वे इस समय सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। 99 बैच के बोरा पिछले साल प्रमुख सचिव बने थे। उनके बाद 2000 बैच में शहला निगार हैं। जनवरी में शहला भी पीएस बन जाएंगी। उनके बाद 2001 बैच खाली है। 2002 में डॉ0 रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह हैं। प्रमुख सचिव के पोस्ट भी काफी हैं। सो, समझा जाता है शहला के साथ रोहित और कमलप्रीत भी प्रमुख सचिव बन जाएंगे। इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका है जब समय से पहले अफसरों को प्रमोशन दिया गया। सीके खेतान और आरपी मंडल को छह महीने पहले प्रमुख सचिव बना दिया गया था। तो पिछली सरकार में रेणु पिल्ले को छह महीने पहले एसीएस बनाया गया तो सुब्रत साहू डेढ़ साल पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। प्रमुख सचिव की संख्या बढने पर सरकार के पास विकल्प रहेगा कि वह कुछ महत्वपूर्ण विभागों में सचिव के उपर प्रमुख सचिव पोस्ट कर दें। मध्यप्रदेश में चूकि अधिकारियों की संख्या काफी है, इसलिए वहां लगभग सारे विभागों में प्रमुख सचिव रहते हैं। कई में सिकरेट्री, प्रिंसिपल सिकरेट्री के उपर एडिशनल चीफ सिकरेट्री भी होते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऋता शांडिल्य पीएससी की कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी या किसी शिक्षाविद को पूर्णकालिक चेयरमैन बनाया जाएगा?

2. मुख्यमंत्री के बाद क्या अब मंत्री और अधिकारी भी नया रायपुर जाएंगे रहने?


शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

 तरकश, 6 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 24 सालों से भ्रष्टाचार का गढ़ बना पाठ्य पुस्तक निगम के किताब घोटाले में सरकार इतने गुस्से में है कि दो जांच कमेटी बन गई। दरअसल, स्कूल शिक्षा विभाग इस समय मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं। सो, मीडिया में जैसे ही खबर आई...अफसरों ने आनन-फानन में पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी। मगर कमेटी में अफसरों के नाम देखकर सीएम नाराज हो गए। कमेटी में निगम के आईएएस एमडी ही प्रमुख बन गए थे। पापुनि के राप्रसे अधिकारी कैडर के जीएम मेम्बर। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे एक-एक किताब का हिसाब चाहिए...कि किन परिस्थितियों में लाखों किताबें ज्यादा छप गई। उन्होंने अफसरों से पूछा...कौन आईएएस निःपक्ष जांच कर सकता है। इस पर उन्हें एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सुझाया गया। अफसरों ने तुरंत पिल्ले जांच कमेटी का आर्डर निकाल दिया। रेणु पिल्ले का नाम सामने आने के बाद अब अफसरों से लेकर पेपर सप्लायरों तक की नीदें उड़ गई है। क्योंकि, अभी तक पाठ्य पुस्तक निगम में पोस्टिंग ही कमाने के लिए होती थी। एक मोटे अनुमान के तहत निगम के चेयरमैन से लेकर एमडी और जीएम को साल में गिरे हालत में दो खोखा की आवक बन जाती है। अब रेणु पिल्ले की जांच के बाद सबका पोल खुल जाएगा। क्योंकि, वे अपनी नहीं सुनती।

मंत्रियों, अधिकारियों की मुसीबत

नया रायपुर में तीन साल से अफसरों के बंगले बनकर तैयार हैं मगर कोई यहां से जाना चाह नहीं रहा। मंत्रियों में सिर्फ रामविचार नेताम शिफ्थ हुए हैं। मगर अब खुद सीएम विष्णुदेव ने पहल कर आज गृह प्रवेश कर लिया है। आज रात में वे नए रायपुर के नए घर में ही रुक रहे। इस खबर के बाद मंत्रियों और अधिकारियों के चेहरे पर तनाव बढेगा। क्योंकि, जब मुख्यमंत्री चले गए नया रायपुर तो उन्हें भी एक दिन जाना पड़ेगा ही। वैसे भी नई सरकार नए रायपुर की बसाहट को लेकर काफी संवेदनशील है।

अफसरों को प्रोटेक्शन

अच्छे अफसरों को जब सिस्टम से प्रोटेक्शन मिलता है तो वे अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं। मगर जब लगता है कि हालात फेवरेबल नहीं तो फिर उनका हौसला कमजोर पड़ने लगता है। रायपुर जेल प्रकरण में कुछ ऐसा ही हुआ। विपक्ष के दिग्गज नेता इस इश्यू को तीन दिन खेल गए। पहले दिन जेल में आरोपी से मुलाकात...अगले दिन प्रेस कांफ्रेंस और तीसरे दिन सीजेआई को लेटर। मगर सरकार से न किसी मंत्री का बयान आया और न ही सत्ताधारी पार्टी के किसी नेता ने मुंह खोला। यहां तक कि हर बॉल को आगे बढ़कर खेलने वाले विभागीय मंत्री विजय शर्मा भी खामोश रहे। ऐसे में, अफसरों से अच्छा करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। क्योंकि, यह सच्चाई है कि कई बार अच्छा और फास्ट करने के चक्कर में कई बार थोड़ा इधर-उधर हो जाता है। वैसे, अच्छे अधिकारियों को संरक्षण न मिलने वाला मामला पिछली सरकार में भी रहा। वक्त को देखते रीढ़ वाले अधिकारियों ने खुद को समेट लिया था...मालूम था कि जरा सा इधर-से-उधर हुआ तो छुट्टी होने में देर नहीं। अलबत्ता, खोटे सिक्कों ने खूब मौज काटा...सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती से लेकर सप्लाई तक का पैसा कई कलेक्टर खा गए। बहरहाल, पते की बात यह है कि ब्यूरोक्रेट्स तभी जोखिम लेकर काम करते हैं, जब उन्हें ये भरोसा रहे कि उंच-नीच होने पर उसे समझने वाला आदमी है। वरना, फिर बैकफुट पर रहना मुनासिब समझता है। आखिर, काम करें या न करें...गाड़ी-घोड़ा, बंगला, नौकर-चाकर तो 60 बरस तक मिलेगा ही।

कमाल के गडकरी

केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नीतीन गडकरी के कामकाज के स्टाईल के अनेक किस्से वैसे तो सुनने को मिलते हैं मगर 30 सितंबर को दिल्ली में हुई हाई प्रोफाइल मीटिंग को छत्तीसगढ़ के जिन अफसरों ने अटैंड किया, उसे लाइव देखा। गडकरी का छत्तीसगढ़ की सड़क परियोजनों के होम वर्क को देखकर लोग हैरान थे। जितनी जानकारियां छत्तीसगढ़ के लोगों को नहीं थी, उसके ज्यादा गडकरी बिना कोई कागज देखे जुबानी बोल गए। गडकरी को यहां तक पता था कि किन छह जिलों में सड़कों का निर्माण कार्य स्लो चल रहा है। उन्होंने उन जिलों का बकायदा नाम लेकर कहा कि इन जिलों के कलेक्टरों के साथ नियमित रिव्यू कर प्राब्लम को शार्ट आउट किया जाए। ये अलग बात है कि हफ्ता भर बीत गया, अभी तक किसी रिव्यू की खबर नहीं दिखाई पड़ी है।

उल्टा-पुल्टा

गडकरीजी कुछ भी कह लें, छत्तीसगढ़ में सिस्टम अपने हिसाब से ही चलता है। उसका नमूना है, रायपुर-विशाखापत्तनम सिक्स लेन रोड। छत्तीसगढ़ की यह पहली क्लोज डोर सड़क होगी। इसके बन जाने से रायपुर से वाइजेक की 14 घंटे की दूरी सात घंटे में सिमट जाएगी। मगर दो-तीन साल पहले अभनपुर के एसडीएम ने भूखंडों को टुकड़ों में बेचने का ऐसा गुल खिलाया कि नेशनल हाईवे पर 78 करोड़ की चोट बैठ जा रही। एनएच वाले 2022 में रायपुर कलेक्टर से जांच की गुहार लगाई मगर कलेक्टर क्या कर लेंगे, उसमें कई बड़े नेताओं के भी क्लेम हैं। सो, कलेक्टर्स उस फाइल में हाथ नहीं डाल पा रहे। ताजा अपडेट यह है कि जिस दिन गडकरीजी दिल्ली में काम प्रभावित न होने की टिप्स दे रहे थे, उसी दिन किसानों ने एक्सप्रेसवे का काम रोक दिया। बताते हैं, संगठन के एक नेताजी ने अभनपुर के राजस्व अधिकार को फोन कर दिया कि बिना 78 करोड़ मुआवजा मिले बगैर काम प्रारंभ नहीं होना चाहिए। अब आप बताइये...ऐसा उल्टा-पुल्टा काम होगा तो दिल्ली में बैठे गडकरी जी क्या कर लेंगे?

पोस्टिंग के लिए नो वेट

पीएमओ में डेपुटेशन कर छत्तीसगढ़ लौटे आईएएस डॉ0 रोहित यादव को उर्जा विभाग का सिकरेट्री बनाने के साथ उन्हें बिजली कंपनियों के चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। रोहित ने पीएमओ में पांच साल इंफ्रास्ट्रक्चर डिपार्टमेंट संभाला है, जिसमें 13 विभाग आते हैं। इनमें उर्जा महत्वपूर्ण है। हो सकता है कि इसी को देखते सरकार ने रोहित को बिजली की पूरी कमान सौंप दी। मगर उनकी पोस्टिंग में एक खबर और है कि डेपुटेशन से लौटने के तीसरे दिन विभाग पाने वाले वे पहले आईएएस बन गए हैं। पिछले 20 साल में अपवादस्वरूप सुनिल कुमार को छोड़ दें तो ऐसा याद नहीं कि दिल्ली से लौटने वाले आईएएस को किसी सरकार ने तीन दिन के भीतर पोस्टिंग दे दी हो। अमिताभ जैन, अमित अग्रवाल, गौरव द्विवेदी, सोनमणि बोरा जैसे अनेक नौकरशाहों को महीना भर तक वेट करना पड़ गया था। हालांकि, इस सरकार में मुकेश बंसल और रजत कुमार को भी हफ्ते भर के भीतर पदास्थपना मिल गई थी। चलिए ये अच्छी बात है। सरकारों को डेपुटेशन से लौटने वाले अधिकारियों के प्रति धारणा बदलनी चाहिए। आखिर, वे स्टेट से एनओसी मिलने के बाद ही तो प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं।

मंत्रिमंडल का विस्तार!

तरकश के पिछले स्तंभ में इस बात का जिक्र किया गया था कि सत्ताधारी पार्टी का एक खेमा निगम चुनाव से पहले कुछ आयोगों में नियुक्तियों के साथ ही दो नए मंत्रियों को शपथ दिलाने के पक्ष में है। इस खेमे के नेताओं का मानना है कि सरकार का कामकाज और अच्छा होने के साथ ही कार्यकर्ताओं में एक पॉजीटिव संदेश जाएगा। इसके बाद आयोगों में नियुक्तियां प्रारंभ हो गई है। युवा आयोग के बाद छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग आयोग चेयरमैन का भी आदेश निकल गया है। इसको देखते बीजेपी के विधायकों में मंत्रिमंडल के शपथ को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। मंत्री पद के दर्जन भर से अधिक दावेदार पता लगाने में जुटे हैं कि अंदरखाने में क्या चल रहा है? क्या नए मंत्रियों का शपथ होगा और होगा तो उसका नंबर लगेगा या नहीं?

पार्टी पीछे, लाल बत्ती आगे

जब से सीएम विष्णुदेव ने बोर्ड, आयोगों में पॉलीटिकल नियुक्तियां शुरू की है, बीजेपी नेताओं को रोज रात में लाल बत्ती के सपने आ रहे हैं। नवरात्रि में विशेष पूजापाठ के साथ दिल्ली के भी चक्कर लगाए जा रहे...शायद यहां से नहीं तो कुछ उधर से जुगाड़ निकल जाए। बता दें बीजेपी के नेताओं का इस समय एक सूत्रीय एजेंडा है...किसी तरह किसी बोर्ड या निगम में अध्यक्ष बन जाएं और ये नहीं हुआ तो किसी ठीकठाक बोर्ड-निगम मेम्बर ही सही। यही वजह है, बीजेपी मुख्यालय में देर रात तक पार्टी नेताओं का जमघट लग रहा है। बीजेपी के कई नेता प्रदेश मुख्यालय में ही निवास करते हैं, इसलिए होटलों से तैयार होकर लोग सुबह-सुबह पार्टी मुख्यालय धमक जा रहे। लिहाजा, इस समय बीजेपी पीछे है...लाल बत्ती आगे हो गई है।

अंत में एक सवाल आपसे

1. किस मंत्री का एक गुप्त स्थान में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान चल रहा है?


रविवार, 29 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: कैबिनेट में नए मंत्री

 तरकश, 29 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

कैबिनेट में नए मंत्री?

नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही विष्णुदेव साय कैबिनेट में दो नए मंत्रियों की इंट्री होगी, यह धारणा पलट भी सकती है। बीजेपी के अंदरखाने में इस बात पर मंथन चल रहा कि इलेक्शन से पहले नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल करना कितना फायदेमंद होगा। दरअसल, मंत्रियों पर विभागों का लोड काफी बढ़ गया है। राज्य बनने के बाद कैबिनेट में कभी भी एक से अधिक सीटें खाली नहीं रहीं। 12 मंत्रियों के कोटे वाले छत्तीसगढ़ में इस समय दो मंत्रियों की जगह खाली है। याने लगभग 17 फीसदी की वैकेंसी। इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है। राजकाज में मुख्यमंत्री को सपोर्ट करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने दो डिप्टी सीएम का फार्मूला लाया था, वह लगभग सभी सूबों में निरर्थक ही साबित हो रहा है। वैसे भी छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों का समय बहुत अच्छा नहीं चल रहा। फिर उन्हें अभी उतना तजुर्बा भी नहीं कि किसी मुश्किल घड़ी में वे सरकार के खेवनहार साबित हो सकें। उधर, दो मंत्री पेंशनधारी की तरह काम कर रहे हैं। याने दिन-दुनिया में क्या हो रहा, इसमें कोई रुचि नहीं। जैसे उमर हो जाने पर आदमी बाल-बच्चों को धंधापानी सौंप विश्राम के मोड में आ जाता है, उसी तरह की स्थिति इन दोनों मंत्रियों की है। उनके करीबी लोग विभाग संभाल रहे हैं। तीन नए मंत्री इतनी जल्दी में लगते हैं मानो पांच साल के लिए शपथ नहीं लिए हों। अलबत्ता, सामने नगरीय निकाय चुनाव है...और भूपेश बघेल जैसा हर बॉल को उठाकर मारने वाला विपक्ष का नेता। ऐसे में, संगठन के कुछ गंभीर नेता जल्द मंत्रिमंडल के विस्तार के पक्ष में हैं। अब देखना है कि अंतिम फैसला क्या होता है। और होता भी है तो किसका नंबर लगता है। क्योंकि, नए से लेकर पुराने तक दर्जन भर विधायक शेरवानी सिलवाकर तैयार बैठे हैं।

बड़ी घटनाएं और राजनीति

छत्तीसगढ़ में पिछले नौ महीने में दो बड़ी घटनाएं हुई हैं। पहला बलौदा बाजार आगजनी और दूसरा कवर्धा की हिंसा। बलौदा बाजार के सामाजिक विवाद में राजनीति का तड़का पड़ा और हिंसा ने उग्र रूप ले लिया। इसी तरह का कुछ कवर्धा में हुआ...साहू समाज के तीन लोग काल के गाल में समा गए। इनमें एक पूर्व मंत्री का आदमी था तो दो लोग वर्तमान मंत्री के बेहद करीबी। पूर्व मंत्री के विश्वासप्राप्त एक ने अपनी पत्नी से दुष्कर्म की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। आरोपी के जमानत पर छूटकर आने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराने वाले की फांसी पर लटकी लाश मिली। इस पर भड़के ग्रामीणों ने दुष्कर्म के आरोपी के साथ उसके घर को फूंक डाला। और तीसरे साहू युवक की अग्निकांड में पुलिस की कथित पिटाई से मौत हो गई। यकीनन, बलौदा बाजार हो या फिर कवर्धा हिंसा...निश्चित तौर पर दोनों घटनाएं सूझबूझ से रोकी जा सकती थी। मगर दोनों घटनाओं को लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने बेहद हल्के में लिया और नेताओं ने भी।

चुनाव टाईम पर

ओबीसी आरक्षण के चक्कर में नगरीय निकाय चुनाव दो-एक महीने आगे खिसकने की चर्चाएं है। राजनीतिक पार्टियां यह मानकर चल रहीं कि जनवरी, फरवरी से पहले चुनाव संभव नहीं। मगर इस भ्रम में रहने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। ओबीसी कल्याण आयोग जिस गति से काम कर रहा, उससे स्पष्ट हो गया है कि न रिपोर्ट में देरी होगी और न चुनाव टलेगा। याने दिसंबर में ही वोटिंग होगी। बता दें, आयोग का सर्वे कंप्लीट हो गया है। अब कंप्यूटर में उसे फीड करने का काम चल रहा है। पिछड़ी जातियों का पूरा कैलकुलेशन करके आयोग 15 अक्टूबर तक अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा। पिछले चुनाव की बात करें तो 2019 के नगरीय निकाय चुनाव की अधिसूचना 15 नवंबर को जारी हुई थी। इस बार भी इसी के आसपास चुनाव का ऐलान किया जाएगा। दिसंबर में 15 से 20 के बीच वोटिंग होगी और 31 दिसंबर से पहले रिजल्ट आ जाएगा। महापौरों का कार्यकाल 4 जनवरी 2025 को समाप्त हो रहा है। सो, राज्य निर्वाचन से जुड़े अधिकारिक सूत्रों का दावा है कि 4 जनवरी से पहले नगरीय परिषद का गठन हो जाएगा।

ओबीसी को झटका?

ओबीसी आयोग के सर्वे में पिछड़ी जातियों को आरक्षण का हल्का झटका लग सकता है। क्योंकि, इससे पहले कभी नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया। इस चक्कर में बस्तर, सरगुजा जैसे इलाके जहां ओबीसी का प्रतिशत कम है, वहां भी मैदानी इलाकों की तरह उनकी 25 परसेंट सीटें मिल जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत करार देते हुए ओबीसी के पॉपुलेशन और सामाजिक-आर्थिक आधार पर सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया है। साथ ही कंडिशन यह भी है कि बिना ओबीसी की सीटें पुनर्निधारित किए नगरीय निकाय चुनाव न कराया जाए। इसी चक्कर में महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में चुनाव लटका हुआ है। एमपी में अभी हाल में चुनाव हुआ, मगर नए ओबीसी आरक्षण के साथ। छत्तीसगढ़ में भी दो साल पहले ओबीसी कल्याण आयोग का गठन हो जाना था। विलंब को देखते राज्य सरकार ने आरएस विश्वकर्मा जैसे रिजल्ट देने वाले रिटायर आईएएस को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। विश्वकर्मा कमेटी ने उन आशंकाओं को निर्मूल करार दिया, जिसमें तय मानकर चला जा रहा था कि आयोग की रिपोर्ट में देरी की वजह से चुनाव आगे जाएगा। बहरहाल, बस्तर, सरगुजा जैसे इलाकों में ओबीसी की कुछ सीटें कम होंगी मगर यह भी सही है कि मैदानी इलाकों में बढ़ेंगी। वैसे जिन इलाकों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी कम है, वहां उनकी भी सीटें कम होंगी। फिर भी ओबीसी को नुकसान थोड़ा ज्यादा होगा क्योंकि बस्तर और सरगुजा के रिमोट आदिवासी इलाकों में पिछड़ा वर्ग की आबादी बेहद कम है।

स्टार प्रचारक

सीएम विष्णुदेव साय दो दिन झारखंड के सिमडेगा में थे। सिमडेगा उनके गृह क्षेत्र कुनकुरी से लगा हुआ है। सीएम बनने से पहले से विष्णुदेव का झारखंड के सीमावर्ती इलाकों से बढ़ियां सामाजिक कनेक्शन रहा है। तभी मुख्यमंत्री को देखने के लिए सिमडेगा में ऐसी भीड़ उमड़ी कि वहां के पॉटिशियन हैरान थे। बताते हैं, पार्टी आसन्न चुनाव में इसका पूरा उपयोग करेगी। विष्णुदेव को स्टार प्रचारक बनाने वाली है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है छत्तीसगढ़ से लगी झारखंड की दर्जन भर सीटों पर विष्णुदेव साय के प्रचार से पार्टी को लाभ मिल सकता है।

आईएएस पोस्टिंग

मंत्रालय में सचिव स्तर पर एक छोटी सर्जरी और होगी। वह इसलिए कि अक्टूबर फर्स्ट वीक में रोहित यादव छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। रोहित 2002 बैच के सिकरेट्री रैंक के आईएएस हैं। 2017 में वे केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के पीएस बनकर सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए थे। मगर बाद में उन्होंने अच्छा जंप करते हुए पहले स्टील मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री बनें...और इसके कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की पोस्टिंग। बहरहाल, पांच साल का टेन्योर कंप्लीट करने के बाद पीएमओ से वे रिलीव हो गए हैं। छत्तीसगढ़ लौटने के बाद उन्हें कोई ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। क्योंकि, एक तो वे पीएमओ से आ रहे हैं और दूसरा वहां वे इंफ्र्रास्ट्रक्चर देख रहे थे। पीएमओ में इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

सक्रिय राज्यपाल

छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल रमेन डेका सक्रियता के मामले में पहले के राज्यपालों से आगे हैं। वे खूब दौरे कर रहे हैं और प्रशासनिक अफसरों की बैठकें भी। इससे पहले आईपीएस बैकग्राउंड के पूर्व राज्यपाल नरसिम्हन राजधानी के अफसरों को समय-समय पर अवश्य बुलाकर बात करते थे मगर जिलों में कभी इतना सक्रिय नहीं रहे। हालांकि, उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। फिर भी नरसिम्हन के चलते उस समय के सीएम डॉ0 रमन सिंह को कभी उलझन का सामना नहीं करना पड़ा। नए राज्यपाल रमेन डेका भी किसी तरह के विवादों में नहीं पड़ना चाहते। तभी बैठकों से पहले ये जरूर क्लियर कर देते हैं कि ये समीक्षा नहीं है, उनका उद्देश्य सिर्फ जानकारी लेना और प्रायरटी वाली योजनाओं को बताना है। जिला प्रशासन की बैठकों में राज्यपाल का उन्हीं मुद्दों पर जोर रहता है, जो केंद्र की टॉप प्रायरिटी वाली योजनाएं हैं। जाहिर है, राज्य सरकार को भी इससे कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर विष्णुदेव साय जैसे सहज सीएम को तो और नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विष्णुदेव कैबिनेट में कौन से दो मंत्री पेंशनभोगी टाईप काम कर रहे हैं?

2. इस बात में कोई सत्यता है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना कोई ठेकेदार चला रहा है?

शनिवार, 21 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्री को फटकार!

 तरकश, 22 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्री को फटकार!

ट्रांसफर केस में अपना भद पिटवा बैठे एक मंत्रीजी की क्लास लिए जाने की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। मंत्रीजी ट्रांसफर करके कहीं घूमने-फिरने चले गए थे। बिल्कुल बेफिकर होकर। मगर ट्रांसफर की परतें जब खुलने लगी तो साब का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया। नाराजगी इतनी तीव्र थी कि मंत्री की गैर मौजूदगी में उनके लोगों को इतला कर दिया गया था कि वे जैसे ही लौटे, हाउस भेजा जाए। रायपुर लौटने पर मंत्रीजी कृ़त्रम मुंह लटकाए दरबार में पहुंचे। उनके सामने पड़ते ही साब भड़क गए। पूछे...ऐसा क्यों कर रहे हो? मंत्रीजी ने सर, सर...कर सफाई देने की कोशिश की मगर साब कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। साब का यद्यपि ऐसा स्वभाव नहीं मगर मंत्रीजी ने काम ही ऐसा किया था। किसी को नहीं छोड़ा। बोली लगा दी। उपर से नियम-कायदों की अनदेखी भी। नियमानुसार विभागीय सचिव और मुख्य सचिव से होते हुए समन्वय में ट्रांसफर की फाइलें भेजी जाती हैं। मगर मंत्रीजी ने बिना प्रक्रिया का पालन किए सब कुछ करा लिया। अगर प्रॉपर चैनल से फाइल चली होती तो हो सकता था कि किरकिरी कराने वाले ट्रांसफर नहीं होते।

2000 ट्रांसफर और सिकरेट्री

लोकसभा चुनाव से पहले एक मंत्रीजी ने 2000 ट्रांसफर की फाइलें विभाग को भेजी थी। मगर विभागीय सचिव ने स्व-विवेक से फाइलें उपर नहीं भेजी कि इस स्तर पर समन्वय में तबादले नहीं होते। कहने का आशय यह है अंडर सिकरेट्री से लेकर सिकरट्री, चीफ सिकरेट्री का चैनल इसीलिए बनाया गया है कि कोई त्रुटि हो तो पकड़ी जा सकें। मगर इसे ओवरलुक किया जाएगा तो फिर ब्लंडर होगा ही। आखिर, नए मंत्री को इतना कहां पता होता है कि सस्पेंशन में ट्रांसफर होता है नहीं। अभी तो कुछ मंत्रियों की भूख की ये स्थिति है कि पैसा देने पर रिटायर आदमी की पोस्टिंग की फाइल चला दें।

पीए डूबो रहे मंत्रियों को

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत सरकार में मंत्रियों के पीए और पीएस अपाइंट करने में काफी सावधानी बरती जाती है। एक तो वहां मंत्रियों की पसंद के पीए नहीं मिलते, उपर से 360 डिग्री सिस्टम से उनकी मानिटरिंग की जाती है। छत्तीसगढ़ में जीएडी को इस तरह का कुछ करना चाहिए। क्योंकि, मंत्रियों को बदनाम करने वाले कृत्यों में उनके स्टाफ का बड़ी भूमिका है। काम-धाम छोड़कर पीए सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग और कमीशन के धंधे में लिप्त हो गए हैं। 24 घंटे सिर्फ सिर्फ एक ही काम...कुर्सी पर टिके रहना है तो इतनी पेटी पहुंचा दो। अब लक्ष्मीजी किसे नहीं भाती...मंत्रीजी लोग मुग्ध हैं। लेकिन ये मुग्धता कहीं उन्हें ले न डूबे ।

बड़ा मैसेज, मगर...

राज्य सरकार ने कवर्धा हिंसा में पुलिस पिटाई से आरोपी की मौत के बाद बड़ी कार्रवाई करते हुए कलेक्टर जन्मजय मोहबे और एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव को हटा दिया। इस घटना के तूल पकड़ने के बाद इस बात का अंदेशा था कि एसपी को बदला जाएगा। मगर कलेक्टर के बारे में किसी ने सोचा नहीं था। सरकार ने कलेक्टर को भी हटा दिया। आपको याद होगा कलेक्टरों की जिम्मेदारी तय करते हुए सरकार कई मौकों पर कह चुकी था कि जिलों में अगर हिंसा होगी तो उसके लिए कलेक्टर भी जिम्मेदार होंगे। ये बात पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पहले कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में कही थी और वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी। मगर इस पर अमल हो जाएगा, ब्यूरोक्रेसी में इसका किसी को अंदाजा नहीं था। हालांकि, कवर्धा कलेक्टर को नागरिक आपूर्ति निगम का एमडी बनाया गया है। ये पांचों उंगली घी में...वाली पोस्टिंग है। जन्मजय पिछली सरकार में पहले बालोद का कलेक्टर बनाए गए थे और फिर कवर्धा के। दिसंबर 2023 में सरकार बदलने पर कई कलेक्टर गुमनामी में चले गए थे। किन्तु जन्मजय बीजेपी की सरकार आने के बाद भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। और इस बार हटाए जाने के बाद बढ़ियां पोस्टिंग पाने में। यकीनन, जन्मजय किस्मत के धनी तो हैं।

दामाद बाबू कलेक्टर

डिप्टी सीएम के जिले में जन्मजय मोहबे की जगह गोपाल वर्मा को कलेक्टर बनाया गया है। वाणिज्यिक कर विभाग के अफसर गोपाल वर्मा एलायड कोटे से 2021 में आईएएस बने हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें खैरागढ़ का कलेक्टर बनाया गया था। मगर सरकार बदलने के बाद स्वाभाविक तौर पर पहली ही लिस्ट में उनका विकेट उड़ गया था। लेकिन, अभी कुछ अस्वाभाविक हो गया। कवर्धा हिंसा के बाद जन्मजय को हटाकर गोपाल को जिले की कमान सौंपी गई है। गोपाल एक एक्स सीएम के भांजी दामाद हैं। डिप्टी सीएम ने किस रणनीति के तहत पूर्व मुख्यमंत्री के रिश्तेदार को अपने जिले में कलेक्टर बनवाया है, ब्यूरोक्रेसी का दिमाग काम नहीं कर रहा है। खुद गोपाल का भी दिमाग चकरा रहा होगा...अच्छे दिनों में खैरागढ़ जैसे नए जिले से संतोष करना पड़ा था और इस सरकार में कवर्धा जैसा पूर्व सीएम और वर्तमान डिप्टी सीएम का जिला मिल गया।

पुलिस के खराब योग

छत्तीसगढ़ पुलिस में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। तीन महीने में दो डायरेक्ट आईपीएस सस्पेंड हो गए। पहला, एसएसपी। और दूसरा आईपीएस की पिच पर उतरते ही एडिशनल एसपी। जाहिर है, एडिशनल एसपी लेवल पर आईपीएस विरले ही सस्पेंड होते हैं। इस कार्रवाई से नए और तेज-तर्रार अफसर के कैरियर पर बड़ा धब्बा लग गया। इसके बाद कवर्धा के एसपी अभिषेक पल्लव यकबयक हटा दिए गए। ये तीनों आईपीएस एक ही प्रदेश के रहने वाले हैं। ग्रह-नक्षत्र का खेल देखिए...तीनों ऐसे समय में वक्त का शिकार हुए हैं, जब उसी प्रदेश के लोग उपर में बेहद मजबूत स्थिति में हैं।

कुछ पूजा-पाठ

डीजीपी अशोक जुनेजा और एसीएस होम मनोज पिंगुआ को पुलिस मुख्यालय में कुछ पूजा-पाठ कराना चाहिए। क्योंकि, पुलिस के योग अच्छे नहीं चल रहे हैं। इस समय प्रदेश के अधिकांश पुलिस अधीक्षक ज्ञात-अज्ञात वजहों से दुखी चल रहे हैं। और जब कप्तान खुश नहीं तो फिर अच्छी पोलिसिंग की उम्मीद कैसे की जा सकती है। एसीएस और डीजीपी को अच्छे पुलिस अधिकारियों को हौसला बढ़ाने की जरूरत है।

आईएएस और ओड़िया लॉबी

चूकि प्रदेश विशेष और आईएएस लॉबी की बात निकली तो बता दें कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में एक दौर ओड़िसा के अफसरों का था। एसके मिश्रा चीफ सिकरेट्री थे। उनकी पत्नी इंदिरा मिश्रा एडिशनल चीफ सिकरेट्री। उसके बाद डीएस मिश्रा प्रमुख सचिव, एमके राउत सिकरेट्री। इनके बाद सुब्रत साहू। तब छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में ओड़िसा के नौकरशाहों की तूती बोलती थी।

लाल बत्ती, भाजपा और कांग्रेस

सत्ताधारी पार्टी के नेता लाल बत्ती के लिए बेचैन हैं। इतने व्यग्र उन्हें कभी नहीं देखा गया। रमन सिंह की 15 साल वाली सरकारों में भी नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही सियासी नियुक्तियां हुई थी। मगर इस बार भाजपाइयों को धैर्य नहीं। कांग्रेसियों की तरह अपने ही पोस्ट में गोल मारने जैसी भ्रांतियां फैला रहे हैं...सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका नहीं छोड़ रहे। 2018 की जीत के बाद कांग्रेसी भी कहते थे...हमने सरकार बनवाई। और बीजेपी वाले भी यही दावे कर रहे..। सवाल यह है कि कांग्रेसियों ने सरकार बनाई तो फिर 15 साल सत्ता से बाहर क्यों रहे। और प्रश्न भाजपाइयों से भी कि महतारी वंदन योजना के साथ अगर पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अगर झांकी नहीं बनाई होती तो सरकार बनती क्या? अब आप बताइये...कांग्रेस और बीजेपी में फर्क क्या है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. कवर्धा हिंसा में जब एसपी को हटाना था तो उससे पहले एडिशनल एसपी के निलंबन को आप कितना जायज मानते हैं?

2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद दो नहीं, बल्कि पांच मंत्री शपथ लेंगे?


शनिवार, 14 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

 तरकश, 15 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

काम-धाम, वर्क कल्चर और तरक्की के मामले में मध्यप्रदेश भले ही छत्तीसगढ़ से आगे हो मगर करप्शन के रेट में काफी पीछे है। शुक्रवार की की ही बात है...मउगंज के अपर कलेक्टर पांच हजार रिश्वत लेते पकड़े गए। जमीन बंटवारे के केस में फैसला देने के लिए उन्होंने 20 हजार मांगा और पांच हजार लेते ट्रेप हो गए। जबकि, उससे एक दिन पहले छत्तीसगढ़ की एसीबी ने बाबू को एक लाख रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ा था। अब आप समझ सकते हैं...छत्तीसगढ़ का बाबू एक लाख और एमपी में एडिशनल कलेक्टर पांच हजार...। दरअसल, सूबे में करप्शन का लेवल इतना बढ़ गया है कि बिना पैसे के आप वाजिब काम की भी कल्पना नही ंकर सकते। मुलाजिमों को छोड़िये...ठेका, सप्लाई में कई मंत्री 35 परसेंट के रेट से नीचे जाने तैयार नहीं। रमन और भूपेश सरकार में दो-एक मंत्रियों ने अपने खर्चे को देखते रेट 35 से 40 फीसदी तक बढ़ा दिया था, इस समय भी कुछ मंत्री पुराने रेट को कम करने तैयार नहीं।

जेलों में जगह नहीं

एमपी में 5 हजार रुपए के चक्कर में मउगंज के अपर कलेक्टर के निबट जाने की खबर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोगों ने खूब मौज ली। एक ने लिखा, छत्तीसगढ़ में अगर पांच हजार रिश्वत वालों को पकड़ना शुरू कर दिया जाए तो जेलों में जगह कम पड़ जाएगी...वैसे भी छत्तीसगढ़ की जेलों में क्षमता से दोगुने, तीगुने कैदी हैं। किसी ने लिखा...सरकार को नए जेल बनवाने पड़ेंगे। देर रात एसीबी के एक अफसर ने भी चुटकी ली...पांच हजार रुपए वालों को हमलोग चाय-पानी का खर्चा मान छोड़ देते हैं, ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करते। जाहिर है, विष्णुदेव से फ्री हैंड मिलने के बाद छत्तीसगढ़ की एसीबी इस समय फुल मोड में है। छह महीने में 35 अधिकारियों, कर्मचारियों को जेल भेज चुकी है। इनमें एसडीएम से लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और टीआई, एसआई तक शामिल हैं।

मंत्रियों को मर्यादा की पाठ

कई मंत्रियों की कारगुजारियों से छत्तीसगढ़ सरकार की छबि को लेकर अच्छे संदेश नहीं जा रहे हैं। लिहाजा, संगठन मंत्री पवन साय को मंत्रियों को मर्यादा को याद दिलाना चाहिए। क्योंकि, ये आवश्यक नहीं कि जो मुख्यमंत्री करें, वो मंत्री भी करने लगें। मुख्यमंत्री निवास में तीजा महोत्सव मना तो एक मंत्रीजी ने भी अपने सरकारी बंगले में धूमधाम से तीज उत्सव का आयोजन कर डाले। मुख्यमंत्री किसी मंत्री के इलाके में जाए और वहां के मंत्री उस कार्यक्रम से गोल रहे तो ये सीधे-सीधे प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। ये तो हुई अदब और प्रोटोकॉल की बात। करप्शन में दो-तीन मंत्री पिछली सरकारों के अपने भाइयों को पीछे छोड़ दिए हैं। ट्रांसफर में मुलाजिमों के पास मंत्रियों के करिंदों के फोन जा रहे...कुर्सी पर टिके रहना है तो इतना पेटी पहुंचा दो। अगर पैसे देने में इधर-उधर किए तो फिर तबादला। सीधे तौर पर कहें तो पोस्टिंग की बोली लग रही है। रेट भी बेहद हाई। सरकार की सेहत के लिए ये ठीक नहीं। मुख्यमंत्री गुड गवर्नेंस के लिए दो दिन सर्किट हाउस में कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों की क्लास लेते रहे मगर मंत्रियों को इससे कोई वास्ता नहीं। उन्हें चाहिए सिर्फ पेटी। पवन साय जी को थोड़ा कड़क होना पड़ेगा, जरूरी हुआ तो डंडे भी चलाएं...क्योंकि मोदी की गारंटी और विष्णु के सुशासन के लिए इस टाईप के मंत्रियों को टाईट करने रखना होगा।

टी ब्रेक केंसिल

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने एक चीज स्पष्ट कर दिया कि काम नहीं करोगे तो उसके जिम्मेदार आप होगे...गड़बड़ी करने वालों को आप जेल नहीं भेजोगे तो हम कार्रवाई करेंगे। जाहिर है, सीएम ने कलेक्टर-एसपी को बड़ा टास्क दे दिया है। डीएम-एसपी के पद को सिर्फ पैसा कमाने का जरिया समझने वालों को इससे मायूसी हुई होगी। बता दें, दो दिन के कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस को सीएम ने इतना इम्पॉर्टेंस दिया कि दो दिन वे वहां से हिले नहीं। प्रोग्राम में दोनों दिन टी ब्रेक था, सीएम ने उसे रोकवा दिया। बोले, चाय की जरूरत नहीं। लिहाजा, अफसरों को भी चाय का ब्रेक नहीं मिल पाया। सीएम ने दोनों दिन सर्किट हाउस में ही खाना खाया। जबकि, चार कदम पर सीएम हाउस है। सबसे अहम बात कलेक्टर-एसपी से आई कंटेक्ट। किसी भी अफसर के प्रेजेंटेशन को उन्होंने अनसूना नहीं किया। पूरे समय उन्होंने रिस्पांस दिया और प्रेजेंटेशन देने वाले अफसर को सुनते रहे। कलेक्टर्स, एसपी को अब डर सता रहा कि सीएम साब ने इतना ध्यान से उनके प्रेजेंटेशन को सुना है तो अगली बार अगर कोई चूक हुई तो फिर क्या होगा?

अधिकारियों, कर्मचारियों का डेटा

नगरीय प्रशासन विभाग ने इस हफ्ते एक ऐसे कार्यपालन अभियंता का ट्रांसफर कर दिया, जिसका फरवरी में रिटायरमेंट है। उसे कोरबा से बिलासपुर ट्रांसफर किया गया। आमतौर पर ट्रांसफर से छह महीने पहले ट्रांसफर नहीं किया जाता। फिर नगर निगमों के मुलाजिम मूल पदास्थापना से ही रिटायर होते हैं। ईई का मूल पोस्टिंग कोरबा है। और इसी आधार पर ट्रांसफर के तीसरे दिन ही बिलासपुर हाई कोर्ट से उन्हें स्टे मिल गया। छत्तीसगढ़ सरकार को गुड गवर्नेंस के प्रयासों के बीच कर्मचारियों और अधिकारियों का एक डेटा तैयार कराना चाहिए। ताकि, मालूम रहे कि किसका कब रिटायरमेंट है, उसकी मूल पोस्टिंग कहां है। वरना, इस तरह तबादले से विभागों के साथ ही सरकार की छबि धूमिल होती है।

नया ट्रांसफर मॉडल

पिछले महीने पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने सरकारी खजाने को डेढ़ करोड़ का चूना लगाने के मामले में तीन रजिस्ट्री अधिकारियों को सस्पेंड किया था। इस कार्रवाई के खिलाफ पंजीयन अधिकारियों ने प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत हड़ताल पर उतरने की तैयारी कर लिया था। मगर इस बार कोई मौका नहीं मिला। तीन दिन की छुट्टी शुरू होने के दिन पंजीयन विभाग ने 60 अधिकारियों, कर्मचारियों को एक झटके में बदल दिया। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के सारे स्टाफ हटा दिए गए। इससे पहले हाई कोर्ट में केवियेट दायर हो चुका था। ट्रांसफर के कुछ घंटे के भीतर उसी दिन सभी को रिलीव कर दिया गया। ठीक ही कहा गया है...सरकार, सरकार होती है।

7 दिन का टाईम क्यों?

मध्यप्रदेश बड़ा राज्य था। ग्वालियर से लेकर दंतेवाड़ा और जशपुर तक। इसलिए वहां अधिकारियों, कर्मचारियों के ट्रांसफर में कार्यभार ग्रहण करने के लिए सात दिन का टाईम दिया जाता था। छत्तीसगढ़ में भोपालपटनम से बलरामपुर भी सुबह निकलकर शाम तक पहुंचा जा सकता है। नई ज्वाईनिंग के लिए सात दिवस का समय दिए जाने से होता ये है कि अधिकांश तबादलों पर स्टे मिल जा रहा। ट्रांसफर आदेश निकलते ही लोग बिलासपुर में अपने परिचित वकील को फोन लगाते हैं और अगली सुबह पहुंचकर वहां अर्जी दाखिल हो जाती है। एमपी के समय जबलपुर हाई कोर्ट था। तब रोड कनेक्टिविटी भी पुअर रहा। इसलिए, वहां जाने के पहले सोचना पड़ता था। बहरहाल, जानकारों का कहना है कि छोटे राज्य में ज्वाईनिंग के लिए तीन दिन का टाईम काफी है। मगर यह भी सही है कि ट्रांसफर के पीछे किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।

देर आए दुरुस्त आए

रायपुर कलेक्टर रहे डॉ0 सर्वेश भूरे को सरकार ने जलग्रहण मिशन का सीईओ बनाया है। सर्वेश के पास नौ महीने से अल्पज्ञात विभाग था...राज्य निर्वाचन आयुक्त के सचिव का। चलिये, देरी से हुआ मगर सरकार ने उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। करीब 25 हजार करोड़ के जलग्रहण मिशन के तहत घर-घर को नलजल से जोड़ने की योजना है। सरकार का बेहद फोकस वाला यह मिशन है।

बड़ा फैसला

हाल में आईएएस अफसरों के फेरबदल में सरकार ने एसीएस ऋचा शर्मा को खाद्य विभाग की कमान सौंपी है। उनके पास फॉरेस्ट भी रहेगा। ऋचा पहले भी खाद्य विभाग संभाल चुकी है। छत्तीसगढ़ में राईस माफियाओं पर अंकुश लगाने में उनका अहम योगदान रहा है। कई बड़े-बड़े नाम वाले फूड सिकरेट्री जो नही ंकर पाए, उसे ऋचा ने किया था। वैसे भी, देखा गया है कि कई मामलों में लेडी अफसर माफिया तंत्र पर भारी पड़ जाती है। सामने अगर तेज महिला अफसर है तो बड़े रसूखदार लोग भी पांव पीछे खींच लेते हैं। अब सरकार ने दूसरी बार ऋचा को फूड की कमान सौंपी है तो कुछ तो बात होगी। हो सकता है कि पिछली सरकार में मिलिंग चार्ज तीगुना किया गया था, उसे कम किया जाए। मिलिंग चार्ज का करोड़ों रुपए राईस मिलरों की जेब में जा रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री के जोरु का भाई ट्रांसफर का खाता-बही लेकर काउंटर खोल दिया है?

2. वास्तव में अभी लाल बत्ती दी जाएगी या फिर अफवाहें फैलाई जा रही?

रविवार, 8 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अमेरिका का वीजा और संयोग



 तरकश, 8 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अमेरिका का वीजा और संयोग

छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री को अमेरिका का वीजा न मिलने से मायूस होकर रायपुर लौटना पड़ गया। वीजा क्लियर न होने में गफलत कहां पर हुआ, ये पता नहीं...हो सकता है सरकार इसकी जांच करवा रही हो। मगर लोगों का क्या? इसे शगुन और संयोग से जोड़ना शुरू कर दिया। आखिर, गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नरेंद्र मोदी ने कई बार अमेरिका जाने का प्रयास किया था मगर उन्हें वीजा नहीं मिला। इसलिए, छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री को इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। किस्मत को कौन जानता है। मोदीजी का तब कितना मन दुखित हुआ होगा। बाद में वे जैसे ही प्रधानमंत्री बनें, अमेरिका ने तुरंत उनका वीजा जारी कर दिया। और अब तो उनके लिए वहां लाल जाजम बिछाया जाता है। सही भी है, आदमी की किस्मत का क्या भरोसा? उप मुख्यमंत्रीजी जवां हैं...पूरी उम्र बाकी है।

टॉप लेवल, डबल वैकेंसी

एसएस बजाज ने छत्तीसगढ़ साइंस एंड टेक्नालॉजी कौंसिल के डायरेक्टर जनरल और न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। पीसीसीएफ से रिटायर होने के बाद बजाज को सरकार ने सीजी कॉस्ट का डीजी बनाया था। बाद में आरपी मंडल जब एनआरडीए से हटाए गए तो बजाज को उसका एडिशनल चार्ज सौंपा गया। साफ-सुथरी छबि के बजाज को पिछली सरकार ने बिना कसूर का सस्पेंड कर दिया था। मगर बाद में चूक का अहसास होने पर उसकी भरपाई करने का प्रयास किया। बहरहाल, बजाज के इस्तीफे से एक साथ दो पद खाली हो गए हैं। इसमें सीजी कॉस्ट का डीजी कुलपति रैंक का पद है। पीसीसीएफ मुदित कुमार भी इस पद पर काम कर चुके हैं। चूकि इसमें 70 साल की एज लिमिट है, लिहाजा कई रिटायर ब्यूरोक्रेट्स भी इसके लिए प्रयास प्रारंभ कर दिए हैं। अब सवाल एनआरडीए का है। सरकार के स्तर पर नया रायपुर का तेजी से विस्तार करने की प्लानिंग की जा रही है। आईटी सेक्टर को डेवलप किया जाना है। मेट्रो ट्रेन भी दौड़ानी है। मगर पैसे का टोटा है। एनआरडीए में ऐसा आदमी चाहिए, जो दिल्ली से प्रोजेक्ट के लिए पैसा ला सकें। इसके लिए रिटायर कोई आईएएस पात्र नहीं दिखाई पड़ रहा। रमन सिंह सरकार के समय बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह जैसे अफसर इसके चेयरमैन रहे हैं। ऐसे में, दिल्ली से लौटे रजत कुमार सरकार की बेस्ट च्वाइस हो सकते हैं। रजत एनआरडीए के सीईओ रह चुके हैं। नया रायपुर में पर्यावास और सीबीडी जैसे भवन बनाने में रजत की भूमिका अहम रही। लिहाजा, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी विभाग का सचिव बनाने के साथ रजत को एनआरडीए का एडिशनल चार्ज दिया जाए। मगर ये कयास और अटकलें हैं। फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि मुख्यमंत्री क्या सोचते हैं।

आईएएस की छोटी लिस्ट

सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे आईएएस रजत कुमार को राज्य सरकार आजकल में किसी विभाग की जिम्मेदारी सौंपेगी। जानकारों का कहना है, दो-तीन दिन से लगातार छुट्टियां चल रही हैं, इसलिए आदेश नहीं निकल पा रहा होगा। रजत को विभाग देने के लिए आईएएस की एक लिस्ट निकलेगी। हालांकि, नाम ज्यादा नहीं होंगे। लिस्ट छोटी होगी। बड़ी लिस्ट निकलेगी अक्टूबर फर्स्ट वीक में। तब डॉ0 रोहित यादव डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटेंगे। हेल्थ में अगर अभी कोई चेंज नहीं हुआ तो फिर रोहित के लौटने के बाद होगा।

600 करोड़ का फायदा

छत्तीसगढ़ सरकार ने एक झटके में शराब के लायसेंसी यानी बिचौलिया सिस्टम पर ब्रेक लगा कर लोगों को चौंका दिया था। इसके फायदे तीन महीने में ही नजर आ गए। शराब के नए टेंडर से 600 करोड़ का राजस्व मिला है। ये पूरे पैसे बिचौलियों के जेब में जाते थे। दूसरा, अब प्रदेश में सभी ब्रांड के वाइन, बीयर, व्हीस्की, रम, वोदका, स्कॉच उपलब्ध होंगे। इसलिए टारगेट भी ढाई हजार करोड़ बढ़ा दिया गया है। पिछले साल 8500 करोड़ का लक्ष्य था। उसे बढ़ाकर इस बार 11 हजार करोड़ रुपए किया गया है। याने 2500 करोड़ की बढ़त। वो भी तब जब इस वित्तीय वर्ष में छह महीने निकल चुका है। अगर पुरा साल होता तो पांच हजार से उपर जाता। अफसरों को उम्मीद है कि सारे ब्रांड उपलब्ध हो जाने पर शराब से राजस्व बढ़ेगा।

शराब और टूरिज्म

एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि जहां टूरिज्म बढ़ा है या आईटी सेक्टर में ग्रोथ हुआ है, वहां शराब की एवेबिलिटी अच्छी होती है। छत्तीसगढ़ सरकार भी प्रदेश का टूरिज्म बढ़ाने बीयर-बार का लायसेंस सिस्टम सरल करने पर विचार कर रही है। जाहिर है, नया रायपुर को आईटी हब के तौर पर विकसित करने का काम प्रारंभ हो गया है। दो-तीन आईटी कंपनियां आईं हैं, उसमें हजार के करीब इम्प्लाई हैं। इसमें और इजाफा ही होगा। इसको देखते शराब का ऐप बनाने पर भी विचार किया जा रहा ताकि कौन सी दुकान किस लोकेशन पर है और वहां कौन-कौन से ब्रांड उपलब्ध हैं, बाहर से आए लोगों को मोबाइल से पता चल जाए। मगर एक्साइज विभाग के अफसर हिचकिचा भी रहे हैं कि कहीं इसे गलत तरीके से प्रचारित मत किया जाए। मसलन, स्टेट में शराब को बढ़ावा दिया जा रहा है। बहरहाल, सिस्टम अगर फैसले लेने की स्थिति में आ गया तो मंझोले होटलों, रेस्टोरेंटों को बीयर-बार का लायसेंस दिया जा सकता है। इससे होटल इंडस्ट्री काफी खुश है। क्योंकि बार का लायसेंस न होने से कई लोग चोरी-छुपे ये काम करते हैं मगर इसके लिए पुलिस और एक्साइज विभाग के साहबों को हर महीने मोटी रकम देनी पड़ती है।

दवा और दारु

छत्तीसगढ़ के मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के पास स्वास्थ्य कल्याण विभाग है। इसके साथ वे आबकारी विभाग का कामकाज भी देख रहे हैं। दरअसल, राजनीतिक नियुक्ति होने तक सरकार ने उन्हें ब्रेवरेज कारपोरेशन के चेयरमैन का दायित्व सौंपा है। नई नीति के तहत इस समय वेंडरों से शराब खरीदी चल रही है। सरकार ने लायसेंसी सिस्टम खतम कर ब्रेवरेज कारपोरेशन को शराब सप्लाई का जिम्मेदारी दी है। लिहाजा, श्याम बिहारी इस समय ब्रेवरेज को भी टाईम दे रहे हैं। हालांकि, आबकारी विभाग मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के पास है। मगर राज्य के मुखिया के पास उतना समय होता नहीं। उनके पास माईनिंग, ट्रांसपोर्ट, सामान्य प्रशासन विभाग, सुशासन और जनसंपर्क विभाग भी है। इसलिए रुटीन के काम हेल्थ मिनिस्टर संभाल रहे हैं। ऐसे में, श्याम बिहारी के करीबी लोग खूब चुटकी ले रहे हैं...अपने श्याम भैया के पास दवा और दारु...दोनों है। ठीक भी है...कई बार दवा असर न करने पर दारु काम कर जाता है।

कलेक्टर का सम्मान

सरकार ने एक ठेकेदार बीजेपी नेता से विवाद के बाद बीजापुर कलेक्टर को हटा दिया था। इसके बाद बीजेपी नेता के खिलाफ एफआईआर हुआ और उन्हें जेल भेजा गया। बता दें, कलेक्टर का 31 अगस्त को रिटायरमेंट था। आमतौर पर रिटायरमेंट के मंथ में किसी का ट्रांसफर नहीं किया जाता। अत्यधिक गंभीर केस हो तभी चला-चली के मौके पर किसी का ट्रांसफर या सस्पेंशन होता है। मगर ब्यूरोक्रेसी के लिए सुखद यह रहा कि कलेक्टर को हटाने के बाद रिलीव नहीं किया गया। वे 31 अगस्त को रिटायर होकर रायपुर लौटे। नए कलेक्टर भी उनके सेवानिवृत होने पर ही बीजापुर पहुंचे। याद होगा, तरकश में हमने एक सवाल पूछा था कि क्या कारण है कि कलेक्टर की छुट्टी के बाद आईएएस लॉबी मौन है? कहीं उसका असर तो नहीं!

सीएस साहब मैं भी...

2003 बैच की सिकरेट्री रैंक की आईएएस रीना बाबा कंगाले का मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बने तीन साल से अधिक हो गया है। इस दरम्यान उन्होंने विधानसभा का चुनाव कराया और फिर लोकसभा का भी। विधानसभा में बीजेपी ने 15 से 51 सीट पर पहुंच धमाकेदार वापसी की। लोकसभा चुनाव भी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में एकतरफा ही रहा। कांग्रेस को 11 में से सिर्फ कोरबा लोकसभा सीट से संतोष करना पड़ा। मगर बात अब मुद्दे की...आमतौर पर सरकार के पक्ष में जब फैसले आते हैं तो चीफ इलेक्शन आफिसर को अच्छी पोस्टिंग मिलती है। 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा के समय सुब्रत साहू सीईओ थे। उन्हें एसीएस टू सीएम बनाया गया था। मगर लगता है रीना को चीफ सिकरेट्री भूल गए हैं। जाहिर है, आईएएस की जब भी लिस्ट निकलने की चर्चाएं होती होगी, निश्चित तौर पर रीना की उम्मीदें बंधती होगी। रही बात, चुनाव आयोग से परमिशन के, तो दो चुनाव कराने वाली रीना के लिए आयोग से परमिशन मिलना कठिन थोड़े ही होगा। वैसे भी छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी से चुनाव आयोग के अच्छे संबंध हैं। ऐसे में, जब भी आईएएस की पोस्टिंग होती होगी, रीना का जी मचलता होगा...सीएस साब, मैं भी हूं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि ब्यूरोक्रेट्स अगर पोस्टिंग और पैसे की चिंता करना छोड़ दें तो कोई ताकत उसे झुका नहीं सकती?

2. क्या नगरीय और पंचायत चुनाव एक साथ जनवरी-फरवरी में होंगे?

रविवार, 1 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: धर्म, आईएएस और खतरे

 


तरकश, 1 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

धर्म, आईएएस और खतरे

आईएएस जैसी देश की सर्वोच्च सर्विस के लोग अगर धर्म, जाति देखकर फैसले लेने लगे तो समझा जा सकता है सिस्टम किधर जा रहा है। छत्तीसगढ़ के एक आईएएस ने जो किया, वाकई स्तब्ध करने वाला है। हम बात कर रहे हैं, बिलासपुर के निर्वतमान डिविजनल कमिश्नर की। सरकार ने भले ही एक झटके में उनकी छुट्टी कर दी। मगर विषय इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। मिशनरीज संस्था को उन्होंने करीब 1000 करोड़ के मूल्य वाले कब्जे को बिना सोचे-समझे स्टे दे दिया। बताते चले, मध्यप्रदेश के दौरान 1962 में सरकार ने बिलासपुर शहर के प्राइम लोकेशन पर मिशन अस्पताल के लिए साढ़े 10 एकड़ लैंड दिया था। आज की तारीख में इस जमीन की कीमत 20 से 25 हजार रुपए फुट होगी। इतनी कीमती जमीन का 1992 के बाद लीज का रिनीवल नहीं हुआ। अलबत्ता, संस्था के लोग लैंड का कामर्सियल उपयोग कर सालों से लाखों रुपए किराया वसूल रहे थे। दिसंबर 2023 में सूबे में नई सरकार बनने के बाद जिला प्रशासन ने अवैध कब्जे को हटाने की कोशिशें शुरू की। मिशनरीज ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट की शरण ली। वहां से याचिका खारिज हो गई। संस्था ने कहीं कोई रास्ता न देख कलेक्टर से कब्जा खाली करने के लिए टाईम मांगा। उसने लगभग 75 परसेंट काम समेट भी लिया था। इसी दौरान अचानक इसमें कमिश्नर की इंट्री हुई और उन्होंने पहली पेशी में ही हजार करोड़ की बेशकीमती जमीन पर संस्था के पक्ष में स्टे दे दिया। छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी के लिए दो-दो आईएएस के जेल जाने से भी ये ज्यादा शर्मनाक घटना होगी। इस पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो छत्तीसगढ़ का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा।

स्टेराइड का इस्तेमाल

छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन की गति बढ़ने पर पहले भी इसी स्तंभ में हम सिस्टम को आगाह कर चुके हैं। मगर अब जो सुनने में आ रहा वह और खतरनाक है। धर्म परिवर्तन के लिए आयोजित की जाने वाली मजलिसों में दुखी, पीड़ितों को स्टेराइड का घोल पिलाया जा रहा है। दरअसल, धार्मिक सभाओं में बीमारी से परेशान लोग भी पहुंचते हैं। धर्म गुरू कुछ मंत्र पढ़ने का अभिनय कर स्टेराइड पिला देते हैं। फिर बताते हैं, कैसे और किसने किया चमत्कार। इसकी आड़ में अपना मकसद साधा जा रहा है। अभी तक धर्म परिवर्तन के मामले सरगुजा और बस्तर संभागों में ही सुनने को मिलते थे। मगर अब स्थिति इतनी विकट हो गई कि मैदानी इलाकों में भी सभाएं आयोजित की जाने लगी हैं और ओबीसी तथा दलित समुदायों के लोग भी ऐसे तत्वों के मोहपाश के शिकार बनते जा रहे हैं। जांजगीर, सारंगढ़, सराईपाली, बलौदा बाजार, कोरबा, मुंगेली में बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन का खेल शुरू हो गया है। सरकार के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।

टीम अमिताभ

सेंट्रल डेपुटेशन से आईएएस अफसरों का लगातार लौटना जारी है। हफ्ते भर के भीतर डॉ0 रोहित यादव और रजत कुमार छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। 2004 बैच के अमित कटारिया का भी सात साल पूरा हो गया है। मगर वे लौट रहे या अभी वहां रुकेंगे, क्लियरिटी नहीं है। सुबोध सिंह भी आएंगे ही। इनसे पहिले ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रीतू सैन, मुकेश बंसल, अविनाश चंपावत छत्तीसगढ़ लौट चुके हैं। अलेक्स पॉल मेनन के भी लौटने की खबरें आ रहीं हैं। कुल मिलाकर इस साल करीब दर्जन भर आईएएस छत्तीसगढ़ में आमद देंगे। याने अमिताभ जैन की टीम अब मजबूत होने वाली है। अब उनके पास बेस्ट ओपनर के साथ मध्यक्रम के भी मजबूत बैट्समैन का च्वाइस रहेगा। कुछ प्लेयर एक्सट्रा भी उनके पास रहेंगे। आखिर, इतने सारे सचिवों के लिए अमिताभ जैन विभाग कहां से लाएंगे।

कमिश्नर का टोटा

दर्जनों सचिव होने के बाद सरकार के सामने दिक्कत यह है कि ढंग का कमिश्नर नहीं मिल रहा। संजय अलंग को रायपुर के साथ बिलासपुर का चार्ज दिया गया था। घूम-फिर कर अब वही स्थिति आ गई है। महादेव कांवरे रायपुर के साथ बिलासपुर संभालेंगे। अलंग के बाद सरकार ने एक को झाड़-पोंछकर बिलासपुर भेजा मगर वे हिट विकेट होकर 28 दिन में ही पेवेलियन लौट गए। दूसरे कमिश्नर का दो घंटे में आदेश बदल गया। बेचारे का आम सहमति का एक पुराना मामला अलग से उखड़ गया। दरअसल, सिकरेट्रीज की फौज तो बड़ी है मगर सरकार आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को कमिश्नर बनाना नहीं चाहती। उसकी सबसे बड़ी वजह है प्रमोटी आईएएस की दुकान छोटी होती है। मगर आरआर वाले शोरुम खोलकर बैठ जाते हैं। कुछ आरआर वालों को सरकारों ने कमिश्नर बनाया मगर उसके अनुभव अच्छे नहीं रहे। फिर जिलों के कलेक्टर भी नहीं चाहते कि उनके उपर कोई आरआर वाला आकर बैठ जाए। प्रमोटी कमिश्नर उन्हें भी सुहाता है। आरआर कलेक्टरों के जोर से नमस्ते कर देने भर से प्रमोटी कमिश्नर खुश हो जाते हैं। कलेक्टर जरा सा खुशामद कर ए प्लस सीआर लिखवा लेते हैं। मगर आरआर वालों को रिझाना कठिन होता है।

जरूरी है कमिश्नर सिस्टम?

छत्तीसगढ़ के फर्स्ट सीएम अजीत जोगी खुद ब्यूरोक्रेट रहे थे। वे जानते थे कि राजस्व मामलों में अपील की एक सीढ़ी और होने से आम पब्लिक को परेशानी में डालने के अलावा कोई मतलब नहीं। इसीलिए उन्होंने कमिश्नर सिस्टम खत्म कर दिया था। मगर बाद मे बीजेपी सरकार ने कमिश्नर प्रणाली फिर से प्रारंभ कर दिया। तब सरकार का तर्क दिया था कि राजस्व बोर्ड से पहले कलेक्टर के फैसले पर एक अपीलीय संस्था और होनी चाहिए। दूसरा, कलेक्टरों के खिलाफ कोई शिकायत आए तो उसकी जांच कौन करेगा। इसके लिए कमिश्नर सिस्टम फिर से चालू कर दिया गया। मगर सवाल उठता है कि पिछले 10 साल में किस कमिश्नर ने किस कलेक्टर को जांच कर दोषी ठहराया है। अगर कलेक्टर के खिलाफ कोई मामला आता है तो जीएडी जांच अधिकारी अपाइंट कर सकता है। फिर राजस्व मामलों की कमिश्नर कोर्ट में अपील करने से कितने लोगों को फायदा होता है? कमिश्नर कोर्ट के 95 परसेंट से अधिक मामले हाई कोर्ट जाते हैं। ऐसे में, न्याय मिलने में और टाईम लगता है। लोगों की जेब पर डाका पड़ता है, सो अलग। सिस्टम को इस पर एक बार विचार करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ का अपमान?

छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम अरुण साव और उनके पीडब्लूडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह दिल्ली में चार दिन प्रतीक्षा कर वापिस लौट आए मगर अमेरिकी एंबेसी ने उन्हें लगातार बुलाने के बाद भी वीजा क्लियर नहीं किया। कायदे से यह राज्य का अपमान है। छत्तीसगढ़ भारत के टॉप टेन राज्यों में शामिल है। अरुण साव की हैसियत भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर की है। सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि चूक कहां पर हुई। अमेरिका दौरा को प्रायोजित करने वाली एशियाई डेवलपमेंट बैंक ने पहले से अगर वीजा का बंदोबस्त कर लिया होता तो डिप्टी सीएम जैसे शख्सियत को दिल्ली में चार दिन नहीं वेट नहीं करना पड़ता। अरुण साव पीडब्लूडी, नगरीय प्रशासन और पीएचई जैसे बड़े विभाग के मिनिस्टर हैं, कमलप्रीत भी सीनियर सिकरेट्री हैं, मगर अमेरिकी अधिकारियों ने कोई अदब नहीं दिखाई।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

सरकार ने शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का फैसला वापिस ले लिया है। इस मसले पर बीजेपी और कांग्रेस नेता एक राय हो गए थे। बीजेपी नेता सरकार को पत्र लिख रहे थे, तो कांग्रेस नेताओं का लगातार बयान आ रहे थे। मगर किसी ने यह नहीं सोचा कि सूबे के रिमोट इलाकों में स्थित शिक्षक विहीन उन 5781 स्कूलों का क्या होगा? 13 हजार सरप्लस शिक्षक एक तरफ पैसे और एप्रोच के बल पर बिना पोस्ट के शहर के स्कूलों में कुर्सी तोड़ रहे हैं, और उधर 5781 गांवों के गरीब बच्चे एक अदद शिक्षक के लिए तरह रहे हैं। आखिर उन बच्चों का क्या कसूर? कसूर यही कि वे पिछड़े इलाके में पैदा हुए। सवाल उठता है, उनकी कौन सुनेगा? सुधार के काम में अगर इसी तरह सियासत होगी तो फिर रिफर्म की कल्पना मत कीजिए। वैसे भी काम करने से चुनाव नहीं जीता जाता।

सत्ताधारी पाटी को वोट क्यों नहीं

राजनेताओं को इस पर सर्वे कराना चाहिए कि कर्मचारी संगठन सत्ताधारी पार्टी को वोट क्यों नहीं देते। छत्तीसगढ़ में यही देखने में आ रहा। रमन सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षाकर्मियों के संविलियन का फैसला किया, तब नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुनिल कुमार ने उन्हें बहुत समझाया कि संविलियन करना ठीक नहीं, इससे आपको वोट नहीं मिलेंगे। मगर रमन सिंह ने कहा, मैंने प्रॉमिस किया है तो इस बार करना ही होगा। और चुनाव हुआ तो 15 साल की सरकार 15 सीटों पर सिमट आई। भूपेश बघेल की सरकार ने भी डीए छोड़ दें, तो बाकी कोई कमी नहीं की। शिक्षाकर्मियों के संविलियन में रमन सरकार ने जो टाईम की शर्ते रखी थी, भूपेश सरकार ने उसे भी समाप्त कर सबको मर्ज कर दिया। फाइव डे वीक का फैसला भी उसी सरकार में हुआ। इसके अलावा छुट्टियों की झड़ी लगा दी। डीए भी लास्ट-लास्ट में दिया ही। तब भूपेश बघेल इस गफलत में रह गए कि कर्मचारियों को इतनी छुट्टियां दे दिए हैं, किसानों को हजारों करोड़ रुपए दे रहे हैं, वो भी उनके परिवार में ही जा रहा है। मगर रिजल्ट आया तो पासा पलट गया था। राजनेताओं को किसी नेशनल एजेंसी से इस पर काम करवाना चाहिए कि आखिर क्या बात है कि कर्मचारी सत्ताधारी पार्टी को वोट नहीं देते? कहां पर चूक होती है? इससे राजनेताओं को ही फायदा होगा...इससे बड़ा वोट बैंक को साधने का रास्ता भी निकलेगा।

किस्मत अपनी-अपनी

98 बैच रापुसे अधिकारी प्रफुल्ल ठाकुर को आईपीएस अवार्ड हो गया मगर उनके एक रैंक उपर राजेंद्र भैया का लिफाफा बंद हो गया। उनके खिलाफ कोई मामला है, जिससे उनको आईपीएस नहीं मिला। प्रफुल्ल के बाद 99 बैच खाली है। इसके बाद 2000 बैच के विजय पाण्डेय का नंबर लग गया। इस तरह प्रफुल्ल और विजय के रूप में छत्तीसगढ़ में दो आईपीएस और बढ़ गए। वैसे रापुसे का 98 बैच किस्मत वाला है। विजय अग्रवाल एसपी के तौर पर चौथा जिला बलौदा बाजार कर रहे हैं। रजनेश सिंह धमतरी, नारायणपुर के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इसी तरह राजेश अग्रवाल, रामकृष्ण साहू का तीसरा जिला चल रहा है। मगर इन सबसे आगे हैं, प्रफुल्ल ठाकुर। वे बिना आईपीएस हुए ही चार जिले के एसपी रह चुके हैं। जबकि, इस बैच के चार आईपीएस को अभी तक कोई जिला नहीं मिला है। चलिये किस्मत अपनी-अपनी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ में बड़ा प्रशासनिक बदलाव होने वाला है?

2. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ में अब सहकारिता के कामों में तेजी आने वाला है?