रविवार, 31 मार्च 2019

फिफ्टी-फिफ्टी बॉस

31 मार्च 2019
डीजीपी डीएम अवस्थी से तीन बैच सीनियर गिरधारी नायक को डीजी नक्सल आपरेशन बनाने से खासकर नक्सल प्रभावित बस्तर और राजनांदगांव के पुलिस अधिकारियों के समक्ष कई बार धर्मसंकट की स्थिति निर्मित हो जा रही है। सवाल यह है, वे हंड्रेड परसेंट बॉस किसे मानें। क्योंकि, डीजीपी होने के नाते डीएम जनरल पोलिसिंग के बॉस हैं, तो नक्सल मूवमेंट के गिरधारी नायक। याने फिफ्टी-फिफ्टी। पिछले हफ्ते की बात है, डीएम नया रायपुर के पीएचक्यू से सूबे के पुलिस अधीक्षकों से वीडियोकांफ्रेंसिंग पर मुखातिब थे। वीसी में नक्सल आपरेशन के अफसरों को भी कनेक्ट होना था। डीएम बेफिक्र थे कि नक्सल आपरेशन से कोई नीचे का अफसर आएगा, लेकिन वीसी में पुराने पीएचक्यू से डीजी नायक कनेक्ट हो गए। इससे एसपी तो हड़बड़ाए ही….डीएम के चेहरे की बदली भाव-भंगिमा को भी अफसरों ने महसूस किया।

ब्यूरोक्रेट्स और चुनाव

लोकसभा चुनाव के लिए सूबे के कई रिटायर नौकरशाह टिकिट की क्यूं मे थे। सरजियस मिंज तो रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकिट के लिए लगभग आशान्वित हो गए थे। लेकिन, ऐन मौके पर उनकी किस्मत दगा दे गई। ठीक विधानसभा चुनाव की तरह। विस चुनाव से पहिले मिंज इसी आस में कांग्रेस में शामिल हुए थे कि कुनकुरी से उन्हें टिकिट मिल जाएगी। लेकिन, तब भी उन्हें मायूसी हाथ आई। और, अब भी। मिंज की तरह विधानसभा की टिकिट से चुकने वाले रिटायर आईएएस आरपीएस त्यागी भी कोरबा से लोकसभा सीट के लिए दावेदार थे। मगर कांग्रेस ने वहां पहले से ही महंत परिवार के लिए टिकिट तय कर दिया था। हालांकि, लोकसभा चुनाव में रिटायर आईपीएस संतकुमार पासवान को भी धक्का लगा है। छत्तीसगढ़ से डीजी जेल से रिटायर हुए पासवान पिछले साल बिहार में कांग्रेस पार्टी ज्वाईन किए थे। हाजीपुर संसदीय इलाके में उन्होंने काफी काम किया था…. आलाकमान से उन्हें इशारा भी मिल चुका था। लेकिन, एलायंस में हाजीपुर सीट लालू यादव ले जाने में कामयाब हो गए। हाजीपुर सीट की शर्त पर ही राजद शत्रुघ्न सिनहा के लिए पटना साहिब सीट छोड़ने पर तैयार हुआ। इस चक्कर में पासवान का नुकसान हो गया। हालांकि, पासवान के लिए राहत की बात यह है कि एक साल बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होना है।

11 मंत्री, 11 सीट

भूपेश सरकार ने प्रभारी मंत्री बनाते समय लोकसभा इलेक्शन को खास तौर पर ध्यान रखा। जाहिर है, सूबे में 11 मंत्री हैं, और 11 लोकसभा सीटें। सीएम ने जिले के अनुसार मंत्रियों को प्रभार नहीं दिया। बल्कि, रणनीति के तहत लोकसभावार कर दिया। मसलन, ताम्रध्वज साहू दुर्ग और बेमेतरा के प्रभारी। दुर्ग लोस में ये ही दो जिले आते हैं। इसी तरह मोहम्मद अकबर को राजनांगांव और कवर्धा, शिव डहरिया को रायपुर और बलौदाबाजार, रविंद्र चौबे को बिलासपुर और मुगेली। रुद्र गुरू को महासमुंद, धमतरी और गरियाबंद। महासमुंद संसदीय क्षेत्र में ये तीनों जिले आते हैं। इससे मंत्रियों को लोकसभावार जिम्मेदारी बांटने में सहूलियत हो गई। अब पारफारमेंस लूज होने पर सरकार मंत्रियों से पूछ तो सकेगी।

पहली बार

छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार प्रमोटी आईएएस के साथ ही डायरेक्ट याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस को विभिन्न राज्यों मे इलेक्शन आब्जर्बर बनाया गया है। वरना, पहले डेढ़-दो दर्जन आब्जर्बरों में डायरेक्ट से सिर्फ दो नाम होते थे। एक भुवनेश यादव और दूसरा यशवंत कुमार। भुवनेश ने तो चुनाव कराने का कीर्तिमान बना डाला है। दरअसल, जीएडी में पहले निबटाने का खेल भी होता था। प्रमोटी की सूची निर्वाचन आयोग को भेज दी जाती थी। और, आयोग आदेश निकाल देता था। किन्तु, इस बार बड़ी संख्या में डायरेक्ट आईएएस को भी आब्जर्बर बनाया गया है। ऐसे में, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर से प्रमोटी आईएएस का खुश होना लाजिमी है।

ट्रेंगुलर मुकाबला?

लोस चुनाव में दो सीटों को लेकर कांग्रेस पार्टी कुछ ज्यादा ही संजीदा होगी, वह है बिलासपुर और कोरबा। विधानसभा चुनाव में भी बिलासपुर संभाग में ही कांग्रेस का पारफारमेंस पुअर रहा था। उसी बिलासपुर से जोगी कांग्रेस के विधायक धरमजीत सिंह और कोरबा में पार्टी के संस्थापक अजीत जोगी के चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है। दोनों अगर सियासी रणक्षेत्र में उतर गए तो जाहिर है, मुकाबला ट्रेंगुलर हो जाएगा। कांग्रेस भी इससे नावाकिफ नहीं है कि ट्रेंगुलर की स्थिति में नुकसान पार्टी का होना है। लेकिन, सियासी गलियारों से आ रही खबरों पर भरोसा करे तो कांग्रेस को घबराने की जरूरत नहीं है। जोगी और धरमजीत का माहौल अवश्य बन गया मगर उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं क्षीण प्रतीत होती हैं।

हाईप्रोफाइल नहीं

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस, भाजपा से कोई बड़ा नाम न होने से पर्टिकुलर सीट को लेकर लोगों में उत्सुकता नहीं है। हाईप्रोफाइल मुकाबला तो भूल ही जाएं। दरअसल, कांग्रेस, भाजपा के 22 में से 19 प्रत्याशी नए हैं। याने पहली बार वे लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। खेल साय, धनेंद्र साहू और गुहराम अजगले ही तीन ऐसे नेता है, जो लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। साय और अजगले सांसद रह चुके हैं। धनेंद्र हार चुके हैं। इनके अलावा और कोई नामचीन चेहरा नहीं है। बीजेपी ने तो अधिकांश फ्रेश चेहरों पर दांव लगाया है। याने पूरे मोदी के भरोसे। यकीनन, इस चुनाव में लोगों को वह मजा नहीं आएगा, जिसका लोगों को इंतजार रहता है।

लटकी तलवार

हाईकोर्ट ने विधानसभा में आठ बरस तक नौकरी कर चुके आठ मार्शलों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उन पर गलत ढंग से नौकरी पाने के गंभीर आरोप थे। आमतौर पर माना जाता है कि एक बार नौकरी मिल जाए, तो मानवीय ग्राउंड पर कोर्ट भी नरमी बरत देता है। लेकिन, हाईकोर्ट के कंपा देने वाले आदेश से चार दर्जन से अधिक कर्मचारियों, अधिकारियों की रात की नींद उड़ गई है, जिन्हें बैक डोर से इंटी मिली है। कोई किसी नेता का भाई है, भतीजा है या भांजा-भांजी। सबने लगभग मान लिया था कि अब उनके लिए कोई खतरा नहीं है। परन्तु, सावधान! इनके खिलाफ हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल होने जा रही है। समझिए, इन पर तलवार लटक गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोकसभा चुनाव में रुचि न लेने वाले किस मंत्री से सीएम भूपेश बघेल खुश नहीं हैं?
2. राजधानी के डीकेएस अस्पताल में हुई गड़बड़ियों के लिए क्या स्वास्थ्य महकमे के अधिकारी दोषी नहीं हैं?

शनिवार, 23 मार्च 2019

सीएम के कड़वे बोल

24 मार्च 2019
छत्तीसगढ़ में आईएएस, आईपीएस की पोस्टिंग, ट्रांसफर पर सोशल मीडिया में बहस छिड़ जाती है। बिहार में वहां के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भरी मीटिंग में ऐसा कुछ बोल गए कि ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध रह गई। पटना में गृह और पुलिस विभाग के अफसरों की मीटिंग में डीजीपी की ओर मुखातिब होकर नीतिश बोले….डीजीपी साब अखबारों का हेडलाइन मत बनिये…मीडिया वाले किसी के नहीं होते….वही आपको निबटा देंगे। दरअसल, डीजीपी कुछ दिनों से रोज अखबारों में फ्रंट पेज पर छप रहे थे। जाहिर है, डीजीपी जैसे सीनियर अफसर के खिलाफ किसी सीएम का काफी कडवा बोल होगा।

दबदबा

छत्तीसगढ़ में समय-समय पर राज्य विशेष के अफसरों का दबदबा रहा है। कभी बिहार, यूपी तो कभी साउथ तो कभी उड़ीसा के। एक समय तो सरकार में उड़ीया अफसरों की तूती बोलती थी। एसके मिश्रा, इंदिरा मिश्रा, बीकेएस रे, एमके राउत…और भी कई। अभी मराठी अफसर ठीक-ठाक स्थिति में हैं। याद होगा, पहले सिर्फ एक मराठी कलेक्टर होते थे….सिद्धार्थ कोमल परदेशी। अब चार हो गए हैं। कैसर हक कोरबा से लौट आए, वरना पांच होते। फिलहाल, अय्याज तंबोली जगदलपुर कलेक्टर हैं। नीलेश क्षीरसागर जशपुर, सर्वेश भूरे मुंगेली और विलास संदीपन कोरिया। रायपुर के एसएसपी शेख आरिफ भी पुणे से हैं। दरअसल, पिछले कुछ सालों में मराठी अफसरों की तादात ज्यादा रही। जैसे, 2007 तक छत्तीसगढ़ में साउथ के अफसर काफी आए। अब चार-पांच साल से बिहार, यूपी से आईएएस आ रहे हैं।

आयोग और सरकार

छत्तीसगढ़ में चुनाव आयोग और राज्य सरकार में इस बार तालमेल की बड़ी वजह सुनील कुजूर का चीफ सिकरेट्री होना है। कुजूर लंबे समय तक न केवल राज्य निर्वाचन अधिकारी रहे हैं, बल्कि विभिन्न राज्यों के विधानसभा, लोकसभा चुनावों में आठ बार आब्जर्बर रहने का उन्हें मौका मिला है। आयोग के सिस्टम को वे बखूबी समझते हैं। इसलिए, चुनाव के ऐलान होने से पहिले ही जिन अफसरों पर आयोग की कार्रवाई हो सकती थी, उन्हें बदलने में देर नहीं लगाई। राज्य निर्वाचन अधिकारी सुब्रत साहू के लिए भी यह कंफर्ट स्थिति होगी। बिना किसी विवाद के सरकार से सारे काम हो जा रहे। वैसे, तकरार न हो, ये ही अच्छा है….आखिर दो महीने बाद सुब्रत को मंत्रालय में ही जाना है।

प्रतिष्ठा का सवाल

सरकार और पार्टी का मुखिया होने के नाते वैसे तो सीएम भूपेश बघेल के लिए सूबे की सभी ग्यारह सीटें महत्वपूर्ण है। लेकिन, बिलासपुर से अपने सबसे करीबी अटल श्रीवास्तव को टिकिट दिलाकर उन्हें निजी तौर पर खुशी मिली होगी। तीन महीने पहिले हुए विधानसभा चुनाव में लाख कोशिश के बाद भी ऐसी सिचुएशन बनी कि अटल टिकिट से वंचित हो गए। टीएस सिंहदेव कैम्प के शैलेष पाण्डेय अटल को मात देने में कामयाब रहे। इस बार भी बिलासपुर लोकसभा सीट की बारी आई तो अटल को रोकने के लिए खूब सियासी दांव चले गए। मगर अंततोगत्वा दिल्ली से अटल का नाम फायनल हो गया। सीएम भूपेश से अटल के पुराने रिश्ते हैं। मध्यप्रदेश के समय भूपेश जब मंत्री थे, उस समय अटल उनके सबसे खास होते थे। भरोसे का यह रिश्ता दो दशक बाद भी कायम रहा। पीसीसी चीफ बनते ही भूपेश ने अटल को प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री बनाया था। कांग्रेस सरकार में अटल का रुतबा किसी मंत्री से कम नहीं है….अधिक ही बोल सकते हैं।

भाभी, देवर में फंसी सीट

जांजगीर लोकसभा सीट से जयंत मनहर टिकिट के मजबूत दावेदार थे। जयंत लोकसभा और राज्यसभा में छत्तीसगढ़ का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके भगतराम मनहर के बेटे हैं। उनकी मां कमला मनहर भी राज्यसभा सदस्य रहीं हैं। लेकिन, दिलचस्प यह है कि जांजगीर सीट से ही जयंत की भाभी पदमा मनहर भी लोकसभा की टिकिट मांग रही थीं। भाभी-देवर के चक्कर में न पड़ते हुए कांग्रेस आलाकमान ने परसराम भारद्धाज के बेटे रवि भारद्वाज को जांजगीर की टिकिट दे दी।

दो के जवाब में दो?

भाजपा ने लोकसभा के पांच प्रत्याशियों का एनाउंस किया है, इनमें दो महिला हैं सरगुजा से रेणुका सिंह और रायगढ़ से गोमती साय। चर्चा है, कांग्रेस दो के जवाब में दो महिलाओं को उतार सकती है। दुर्ग से प्रतिमा चंद्राकर और कोरबा से ज्योत्सना महंत। इन दोनों को छोड़कर कांग्रेस ने बाकी सभी नौ सीटों के उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। हालांकि, कोरबा और दुर्ग का ड्रॉप करने के पीछे कांग्रेस देख रही है कि भाजपा किसे वहां से उतारती है। कोरबा से कहीं बीजेपी ने किसी दमदार को टिकिट दे दिया तो हो सकता है स्पीकर चरणदास महंत पर प्रेशर पड़े के वे स्पीकर से इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव लड़े। क्योंकि, पार्टी में अधिकांश नेताओं का मानना है कि कोरबा सीट को दाउ याने चरणदास ही निकाल सकते हैं।

पिता का बदला

जांजगीर लोकसभा सीट से भाजपा ने गुहाराम अजगले को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस से रवि भारद्वाज हैं। गुहाराम सारंगढ़ से एक बार सांसद रह चुके हैं। सारंगढ़ से लोकसभा चुनाव में उन्होंने परसराम भारद्वाज को हराया था। परसराम के बेटे रवि अब उनके सामने हैं। देखना हैं, रवि अपने पिता की हार का हिसाब चुकता करने में कामयाब होते हैं या गुहाराम पिता के बाद बेटे को भी सियासी जंग में मात दे देंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरगुजा से खेल साय को लोकसभा चुनाव में उतारने के पीछे कौन सा सियासी खेल है?
2. विधानसभा चुनाव में प्रमोद दुबे ने बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ चुनाव लड़ने से मना कर दिया था तो क्या प्रमोद के खिलाफ बृजमोहन अग्रवाल चुनाव लड़ेंगे?

बुधवार, 20 मार्च 2019

सरकार का खौफ?

17 मार्च 2019
दंतेवाड़ा में एसआई का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया। आमतौर पर बस्तर में ऐसी कोई घटना होती है तो फौरन मुख्यमंत्री को सूचना दी जाती है। ताकि, उनकी नोटिस में रहे। लेकिन, पुलिस अफसरों ने….कह सकते हैं, हिम्मत नहीं पड़ी….सीएम सचिवालय को सूचना पहुंचवा दी। वैसे, देर शाम खबर आ गई थी कि अब खैर नहीं! कोई अनहोनी हो गई है। ऐसे में, पुलिस अधिकारियों को रात में नींद कैसे आती। उधर, दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव रात भर जागते रहे और इधर सरकार को फेस करने के खौफ से राजधानी के अफसर करवट बदलते रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसी घटना हो जाए तो पुलिस और सरकार की स्थिति क्या होगी, समझी जा सकता है। बस्तर एसपी विवेकानंद ने जब सुबह जब शीर्ष अफसरों को गुड न्यूज दी कि एसआई लौट कर आ गया है तो फिर मुख्यमंत्री को फोन से इसकी जानकारी दी गई। सीएम बोले, गुड।

किस्मती कप्तान

2013 बैच के तीन आईपीएस बस्तर में पोस्टेड थे। इनमें से सुकमा एसपी जितेंद्र शुक्ला हिट विकेट होकर रायपुर लौट आए हैं। बीजापुर एसपी मोहित गर्ग डिमोट कर नारायणपुर के कप्तान बना दिए गए। दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव सब इंस्पेक्टर अपहरण में बाल-बाल बचे। वरना, यह तय था कि सरकार के जिस तरह के तेवर हैं, अभिषेक के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती। हालांकि, अभिषेक ने इस केस में तत्परता से काम किया और किस्मत ने भी साथ दिया। एसआई के किडनेपिंग के बाद नक्सली समर्थक चार ग्रामीणों को पुलिस ने थाने में बिठा लिया था। उनका मोबाइल थानेदार ने अपने पास रख लिया था। बताते हैं, देर रात किसी नक्सली नेता का फोन आया। थानेदार ने फोन पिक किया। नक्सली नेता को थानेदार ने दो टूक चेतावनी दी….तुम हमारे एसआई को छोड़ दो, वरना, तुम्हारे इन चारों का खैर नहीं। थानेदार की इस घुड़की का फर्क पड़ा। नक्सलियों ने एसआई को सुबह चार बजे थाने के पास छोड़ कर चले गए।

नॉट ए जोक

सरकार के नरवा, गरुआ को लेकर शहरी इलाकों में हंसी-मजाक चल रहा है….भूपेश के चार चिन्हारी पर जोक भी बन गए हैं। लेकिन, ग्रामीण इलाके में इसका ऐसा इम्पेक्ट हुआ है कि पूछिए मत! लोग महसूस कर रहे हैं कि पहली सरकार होगी, जो हमारे बारे में, हमारे गांव के स्ट्रक्चर के बारे में सोच रही है। लोकसभा चुनाव में भूपेश का नरुआ, गरुआ…भाजपा के लिए चिंता का सबब बन सकता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में। क्योंकि, दो महीने पहले हुए चुनाव में किसानों के मुद्दे को उठाकर कांग्रेस 68 सीट झटकने में कामयाब हो गई। नरवा, गुरूआ के चक्कर में बीजेपी की दिक्कतें और न बढ़ जाए।

फेक में भी चूक

आचार संहिता लगने के बाद चीफ सिकरेट्री के फर्जी दस्तखत से एक आदेश वायरल हुआ। लेकिन, फर्जीवाड़ा करने वाले ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर आदेश पर साइन नहीं करते। पहले के मुख्य सचिव जरूर आदेश पर दस्तखत करते थे। लेकिन, कुजूर ने इस परिपाटी को बदल दिया। ट्रांसफर आर्डर पर भी जीएडी सिकरेट्री का साइन होता है। वो भी इसलिए कि आदेश नीचे लेवल से जारी होने पर कहीं लीक न हो जाए। बाकी पर तो अंडर सिकरेट्री से काम चल जाता है। इसलिए, फेक आर्डर जारी होते ही पकड़ में आ गया। क्योंकि, उस पर चीफ सिकरेट्री का दस्तखत था।

नया किरदार

पुरानी सरकार में दो-तीन आईएएस सोशल मीडिया के हीरो थे। आईएएस अमित कटारिया की सार्वजनिक नल की टोंटी में मुंह लगाकर पानी पीते फोटो खूब वायरल हुई थी। अलेक्स पाल मेनन द्वारा न्यायपालिका पर उठाए गए सवाल भी आपको याद होगा। अब सोशल मीडिया का नया अवतार बनकर जितेंद्र शुक्ला सामने आए हैं। जितेंद्र को किन परिस्थितियों में मंत्री कवासी लखमा को कड़ी भाषा में पत्र लिखना पड़ा, अंदर की बातें अभी सामने नहीं आई है। लेकिन, यह तो स्पष्ट है कि यह उनका अनुचित कदम था। ऐसा देखा गया है की इस तरह के पोस्ट से अफसरों को सोशल मीडिया में सुर्खियां मिल जाती है। लेकिन, अफसर के कैरियर के लिए यह नुकसानदायक होता है। जीतेंद्र शुक्ला को फेसबुक, व्हाट्सएप पर लोग सैल्यूट कर रहे हैं। लोग कसीदें गढ़ रहे हैं। लेकिन, ऐसा करके लोग जीतेंद्र का नुकसान कर रहे हैं। लोग उन्हें जितना सैल्यूट करेंगे, उनका उतना ही नम्बर कम होगा।

त्रिकोणीय मुकाबला

वैसे तो कांग्रेस तीन चौथाई बहुमत के साथ छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में कामयाब हुई। इसका मतलब यह नहीं है कि लोकसभा चुनाव को भी वह उतना ही आसान मान रही है। 11 में से कम-से-कम तीन सीटों पर सत्ताधारी पार्टी के लिए डगर आसान नहीं होगा। जाहिर है, बिलासपुर संभाग की बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर लोकसभा सीट पर जोगी कांग्र्रेस गंभीरता से तैयारी कर रही है। ये तीन सीटें ऐसी हैं, जहां विधानसभा चुनाव में जोगी कांग्रेस-बसपा गठबंधन को पौने नौ लाख से अधिक वोट मिले हैं। यद्यपि, विधानसभा चुनाव के बाद चार पूर्व विधायकों समेत बड़ी संख्या में नेताओं ने पार्टी को बॉय-बॉय कर दिया है। लोकसभा चुनाव में अब जोगी कांग्रेस का पारफारमेंस जैसा भी रहे, कांग्रेस के लिए चिंता की बात तो रहेगी।

सबसे कम वोट से जीत

पिछले लोकसभा चुनाव में कोरबा सीट से भाजपा के वंशीलाल महतो सबसे कम मतों से जीतकर पार्लियामेंट में पहुंचे थे। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चरणदास महंत को चार हजार दो सौ वोटों से हराया था। जाहिर है, महंत के लिए यह बाउंड्री पर कैच हो जाने जैसा रहा। कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ कहे जाने वाले कोरबा में उन्हें 20 हजार से मात मिली थी। जबकि, दो महीने पहिले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जयसिंह अग्रवाल 14 हजार वोटों से जीते थे। इसको देखते महंत कोरबा को लेकर अश्वस्त रहे। और, यही कांफिडेंस उन्हें भारी पड़ गया।

महंत, साहू पर दांव

कांग्रस के भीतरखाने से खबर आ रही है, पार्टी स्पीकर चरणदास महंत और गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू पर लोकसभा चुनाव में दांव लगा सकती है। महंत को कोरबा लोकसभा सीट से और ताम्रध्वज को दुर्ग से। यदि ऐसा होता है तो महंत के लिए यह दूसरा मौका होगा, जब उन्हें राज्य की सत्ता से दिल्ली जाने के लिए मैदान में उतरना होगा। इससे पहिले मध्यप्रदेश के समय 1998 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ था, जब गृह और जनसंपर्क मंत्री चरणदास महंत को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जांजगीर लोकसभा की टिकिट दे दी थी। महंत चुनाव लड़े और जीते भी। कल कोरिया में सीएम भूपेश बघेल की सभा में लोगों ने जय-जय चरण के नारे लगाए तो सीएम ने कहा कि मैं आपकी भावनाओं को राहुलजी तक पहुंचा दूंगा। इससे लगता है, महंत को लेकर कुछ-कुछ चल तो रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीजीपी अपाइंटमेंट के बारे में सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से डीजी नक्सल आपरेशंस गिरधारी नायक को क्या अफसोस हो रहा होगा?
2. भाजपा के किन दो पूर्व मंत्रियों को लोकसभा चुनाव में उतारने जा रही है?

मंगलवार, 12 मार्च 2019

एक इलेक्शन, तीन कलेक्टर

10 मार्च 2019
लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में एक बार ऐसा भी हुआ था, जब चुनाव आयोग ने एक ही जिले के दो कलेक्टरों का विकेट उड़ा दिया था। बात है 2004 के लोकसभा चुनाव का है। और, जिला है महासमुंद। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस से तथा विद्याचरण शुक्ल बीजेपी से मैदान में थे। कलेक्टर थे मनोहर पाण्डेय। जोगी के नामंकन दाखिल करने के दौरान कलेक्ट्रेट में इतनी अफरा-तफरी मच गई कि आब्जर्बर ने आयोग में रिपोर्ट कर दी….जो कलेक्टर अपने कलेक्ट्रेट की व्यवस्था मुकम्मल नहीं रख सकता, वो चुनाव क्या कराएगा। इस पर आयोग ने मनोहर की छुट्टी कर दी। इसके बाद शैलेष पाठक कलेक्टर बनाकर महासमुंद भेजे गए। शैलेष ने चुनाव तो बिना किसी बिघ्न के संपन्न करा ली। मगर चुनाव के बाद वोट के ट्रेंड पर सवाल पूछ अपना विकेट गवां डाले। दरअसल, वोटिंग के बाद कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं से उन्होंने वोटिंग ट्रेंड के बारे में पूछ डाला। इस पर आयोग को शिकायत हुई कि कलेक्टर सर्वे करा रहे हैं…महासमुंद से कौन जीतेगा। आयोग ने शैलेष का विकेट उडा दिया। शैलेष के बाद फिर गौरव द्विवेदी को महासमुंद भेजा गया। उन्होंने काउंटिंग कराई। इस तरह से महासमुंद संभवतः देश का फर्स्ट डिस्ट्रिक्ट होगा, जहां एक कलेक्टर ने नामंकन दाखिल कराया, दूसरे ने वोटिंग कराई और तीसरे ने काउंटिंग कराकर जीत का सर्टिफिकेट दिया।

आयोग से पंगा

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार का चुनाव आयोग से विवाद हो गया था। उसकी कीमत तीन जिलों के कलेक्टर और एक एसी को चुकानी पड़ी। आयोग ने बिलासपुर, अंबिकापुर और जशपुर के कलेक्टरों को हटा दिया था। बिलासपुर के एसपी को भी। जशपुर के कलेक्टर बीएस अनंत इसलिए हटा दिए गए कि उन्होंने आचार संहिता लगने के बाद मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ हेलीकाप्टर पर उड़ लिए थे। बताते हैं, जशपुर के बाद पत्थलगांव में सीएम की सभा थी। कलेक्टर को भी एक मीटिंग के सिलसिले में पत्थलगांव जाना था। उन्होंने सीएम से पूछा, मैं भी चलूं क्या। सीएम बोले, चलो। हेलीकाप्टर जैसे ही उड़ा अनंत को ध्यान आया….बड़ी चूक हो गई। घंटे भर बाद आयोग ने उन्हें हटाने का आदेश दे दिया।

जय महाकाल!

डीएम अवस्थी प्रभारी डीजीपी से पूर्णकालिक डीजीपी बन गए। हालांकि, यूपीएसी से नाम तीन आए थे। सरकार की इच्छा पर था, जिस पर चाहे टिक लगा दे। याने डीएम के समक्ष खतरे तो थे। लेकिन, महाकाल की कृपा बरसी….सरकार ने उन पर भरोसा करते हुए आदेश जारी कर दिया। डीएम महाकाल के अनन्य भक्त हैं। आफिस में महाकाल की फोटो जरूर होती है। उज्जैन के वे एसपी रह चुके हैं। उज्जैन और उससे लगे इंदौर के एडिशनल एसपी रहते उन्होंने न्यूसेंस वाले इलाके में ऐसी लाठी बरसाई थी कि उनका नाम डंडा मार अवस्थी पड़ गया था। हालांकि, डीजीपी तक पहुंचने की उनकी राह आसान नहीं रही। लेकिन, काल उसका क्या, जो भक्त हो…..।

हनीमून पीरियड

सीएम भूपेश बघेल भले ही अठारह घंटे काम कर रहे हों। मगर उनके मंत्रियों का हनीमून पीरियड खतम नहीं हो पा रहा है। दो-एक मंत्रियों को छोड़ दे ंतो किसी की मौजूदगी दिखाई नहीं पड़ रही। अधिकांश मंत्री स्वागत-समारोह की खुमारी में डूबे हुए हैं। जबकि, लोकसभा चुनाव सिर पर आ गया है। 70 दिन का रिपोर्ट कार्ड पूछें तो जुबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। अलबत्ता, कुछ अभी से ट्रांसफर उद्योग को सींचने में जुट गए हैं। रेट भी अनाप-शनाप। मानो, 15 साल का का कसर दो महीने में पूरा कर लेंगे। सीएम को मंत्रियों से 70 दिन का रिपोर्ट कार्ड मांगना चाहिए।

रमन की पैठ

विधानसभा चुनाव में भाजपा का पारफारमेंस भले ही ठीक नहीं रहा लेकिन, कुछ फैसलों से यह प्रूव हो गया है, पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की दिल्ली में पैठ अभी भी मजबूत है। पहले नेता प्रतिपक्ष उनके पसंद का बना तो अब प्रदेश अध्यक्ष भी। नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के समय भी कई दावेदार थे। बृजमोहन अग्रवाल से लेकर ननकीराम कंवर, पुन्नूलाल मोहले, नारायण चंदेल तक मैदान में डटे थे। मगर डाक्टर साब ने धरमलाल कौशिक के नाम पर मुहर लगवा लिया। प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी अनेक नाम थे। मगर आश्चर्यजनक ढंग से पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह ने विक्रम उसेंडी का नाम फायनल कर एक तरह से संदेश दिया कि भाजपा के शीर्ष नेताओं का भरोसा रमन सिंह पर कायम है। जाहिर है, इससे पार्टी में रमन विरोधियों का हौसला पस्त होगा।

वनवास खतम?

आईएएस चंद्रकांत उईके को हटाकर सरकार ने आईएफएस अफसर अनिल साहू को संस्कृति का नया डायरेक्टर अपाइंट कर दिया। इस फैसले से आईएफएस बिरादरी में उम्मीद की किरण जगी है। जाहिर है, सरकार ने आते ही दो-एक को छोड़कर सारे आईएफएस अफसरों को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। आलम यह हुआ कि वन मुख्यालय में अफसरों के बैठने की जगह कम पड़ गई थी। लेकिन, अब लगता है आईएफएस का वनवास खतम हो गया है।

दामाद बाबू

पिछली सरकार में कई दामाद प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए थे। नीना सिंह के दामाद विजयेंद्र सिंह और रमेश बैस के कजिन दामाद नंदकुमार। विजयेंद्र असम कैडर के आईएएस थे तो नंदकुमार महाराष्ट्र कैडर के। पिछली सरकार की खूबसूरती यह थी कि कांग्रेस नेताओं के भी काम नहीं रुकते थे….सिर्फ एक का छोड़कर, जो अब सबसे बड़े ओहदे पर बैठे हैं। सो, एक कांग्रेस नेता के आईआरएस दामाद को भी पिछली सरकार ने डेपुटेशन पर पोस्टिंग दे दी थी। अब, अपनी सरकार आई तो जमाई बाबू को जमाई के हिसाब से पोस्टिंग तो बनती ही है न। उन्हें एक अहम बोर्ड का एमडी बना दिया गया है। आईएएस हेमंत पहाड़े को हटाकर। यानी, आईएएस एसोसियेशन का डिनर डिप्लोमेसी काम नहीं आ पाई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस सरकार के बृजमोहन अग्रवाल कौन हैं?
2. राजस्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल के बंगले के सामने से गुजरने पर नौकरशाहों के सीने पर सांप क्यों लोट जाता है?

शनिवार, 2 मार्च 2019

ब्राम्हणों का दबदबा

3 मार्च 2019
विधानसभा चुनाव से पहिले सीएम भूपेश बघेल को लेकर ब्राम्हणों के बीच अनेक प्रकार की बातें प्रचारित की जाती थी। लेकिन, शीर्ष पदों पर ब्राम्हणों को लगातार अहमियत देकर मुख्यमंत्री ने तमाम बातों को निर्मूल करार दिया है। याद होगा, 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री का शपथ लेने के बाद भूपेश बघेल ने पहला आर्डर अपने सिकरेट्री गौरव द्विवेदी का निकाला था। इसके अगले दिन ही उन्होंने चार सलाहकार अपाइंट किए, उनमें कृषि और पंचायत सलाहकार प्रदीप शर्मा और संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी शामिल थे। इसके बाद डीएम अवस्थी को राज्य का डीजीपी नियुक्त किया गया। महाधिवक्ता के लिए भी सरकार के पास ढेरों नाम आए….लेकिन, सीएम भूपेश बघेल ने ब्राम्हण वकील कनक तिवारी पर भरोसा करना ज्यादा मुनासिब समझा। बिजली कंपनियों के चेयरमैन जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए भी सीएम ने शैलेंद्र शुक्ला को चुना। जबकि, इस पद के लिए छत्तीसगढ़ ही नहीं, उसके बाहर से भी अनेक दावेदारों के नाम सामने आ रहे थे। सरकार की छबि बनाने वाले विभाग संवाद का डायरेक्टर के लिए भी सरकार ने उमेश मिश्रा को चूज किया। दो दिन पहले राकेेेश चतुुर्वेदी को सरकार नेे पीसीसीएफ बनाया। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी, भूपेश सरकार में ब्राम्हणों का दबदबा बढ़ा है।

डिनर डिप्लोमेसी

भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद आईएएस एसोसियेशन ने इस हफ्ते गेट-टूगेदर रखा। इसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी आमंत्रित किया गया। उनके साथ मंत्रियों ने भी शिरकत की। 15 बरस भाजपा सरकार के साथ काम करने के बाद आईएएस अफसरों को नई सरकार से नजदीकियां बढ़ाने के लिए ये कार्यक्रम जरूरी भी था। बहरहाल, आईएएस की देखादेखी अब आईपीएस में भी ऐसे आयोजन करने की चर्चा शुरू हो गई है।

डेपुटेशन नहीं

प्रिंसिपल सिकरेट्री फूड ऋचा शर्मा के बारे में खबर आ रही है कि वे अब डेपुटेशन पर नहीं जा रही हैं। भारत सरकार में एनवायरमेंट डिपार्टमेंट में ज्वाइंट सिकरेट्री के लिए उनका आदेश निकला था। 15 फरवरी तक उनके रिलीव होकर दिल्ली में ज्वाईन करने की भी खबर थी। लेकिन, विधानसभा सत्र के चलते ऐसा हो नहीं पाया। पता चला है उन्होंने अब दिल्ली जाने का अपना इरादा त्याग दिया है।

जीरम का धमाका

गिरधारी नायक जब हफ्ते भर के डीजीपी बने थे तो उन्होंने एसआईबी चीफ मुकेश गुप्ता से जीरम नक्सली हमले के दौरान रायपुर से भेजे गए इंटेलिजेंस नोट्स मांग लिए थे। इसको लेकर काफी बवाल मचा था। अब, सरकार ने नायक को उसी एसआईबी का प्रमुख बना दिया है। जीरम के इंटेलिजेंस नोट्स अब उनके हाथ में आ गए हैं। तो क्या माना जाए कि किसी दिन कोई धमाका करेंगे वे।

आचार संहिता

2014 के लोकसभा चुनाव में पांच मार्च को आचार संहिता लगी थी। इस बार भी उपर से संकेत हैं कि अगले हफ्ते किसी भी दिन चुनाव का ऐलान हो सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग ने भी इसी हिसाब से चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले बार तीन चरण में लोस चुनाव हुए थे। इस बार देखना है, दो चरण में होते हैं या पिछली बार जैसे तीन चरणों में।

आईजी की पोस्टिंग

सरगुजा आईजी हिमांशु गुप्ता मार्च 2016 में अंबिकापुर गए थे। इस महीने उनका तीन साल पूरा हो जाता। चुनाव आयोग के गाइडलाइन के अनुसार सरकार को सरगुजा में नया आईजी पोस्ट करना था। लिहाजा, सरकार ने हिमांशु को वहां से चेंज कर दुर्ग भेज दिया। केसी अग्रवाल को सरगुजा का नया आईजी बनाया गया है। केसी का अगले साल रिटायरमेंट है, इसलिए माना जा रहा है, वे वहीं से अब रिटायर होंगे। लेकिन, दुर्ग का चुनावी अरेंजमेंट माना जा रहा है। वहां अभी रतनलाल डांगी प्रभारी आईजी थे। चूकि मूल तौर पर वे अभी डीआईजी हैं। चुनाव के दौरान आयोग के पचड़े से बचने के लिए सरकार ने एहतियात के तौर पर उन्हें बदल दिया। समझा जाता है, लोकसभा चुनाव के बाद डांगी की फिर दुर्ग वापसी हो जाएगी। क्योंकि, हिमांशु एडीजी प्रमोट हो जाएंगे।

चूक कलेक्टर की और….

कांकेर कलेक्टर डोमन सिंह को 26 दिन में ही हटना पड़ गया। डोमन के हटने की वजह बालोद उनका होम डिस्ट्रिक्ट होना है। कांकेर लोकसभा इलाके में बालोद आता है। कांकेर के कलेक्टर रहते हुए वे बालोद के भी डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर होते। हालांकि, इसमें जीएडी की जितनी चूक है, उतनी ही डोमन सिंह की भी। जीएडी के ध्यान में नहीं आया तो आर्डर निकलते समय डोमन सिंह को सरकार की नोटिस में इस बात को ला देनी थी। उस समय सरकार उनका आर्डर ड्राप कर देती या फिर किसी और को कलेक्टर बनाकर कांकेर भेजती। ऐसे अफसर ही तो सरकार की किरकिरी कराते हैं।

संकट?

राज्य के पुलिस प्रमुख बनने के बाद भी डीएम अवस्थी को राहु पीछा नहीं छोड़ रहा। पीएचक्यू में उनसे तीन बरस सीनियर गिरधारी नायक की नियुक्ति हो गई। उधर, दो-तीन दिन में आचार संहिता लग जाएगी और अभी तक वे पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बन पाए हैं। दो-तीन दिन में इसका फैसला अगर नहीं हुआ तो डीजीपी का मसला चुनाव आयोग के हाथ में चला जाएगा। 1 मार्च को हालांकि, दिल्ली में यूपीएससी की मीटिंग में डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल तैयार हो गया है। तीन नामों में डीएम का नाम सबसे उपर है। वे सबसे सीनियर भी हैं। लेकिन, उनका संशय तब तक बढ़ा रहेगा, जब तक उनका आदेश नहीं निकल जाता। आखिर, नायक की नियुक्ति से उनका कांफिडेंस डगमगा गया होगा।

पुरानी जोड़ी?

एसीएस आरपी मंडल जब 2003 में बिलासपुर में कलेक्टर थे तो एसआरपी कल्लूरी वहां के एसपी। मंडल उस समय के सबसे पावरफुल कलेक्टर थे तो कल्लूरी सुपर पावर एसपी। दोनों की आपस में केमेस्ट्री कैसी थी, इस पर नो कमेंट्स। 16 बरस बाद दोनों एक साथ हैं। मंडल अब ट्रांसपोर्ट कमिश्नर हैं तो कल्लूरी उनके एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर। बहरहाल, ट्रांसपोर्ट जैसे विभाग में दो-दो बिग गन का मतलब लोगों को समझ में नहीं आ रहा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईजी से एडीजी का प्रमोशन कहां और क्यों अटक गया है?
2. पांच में से चार रेंज के आईजी बदल गए, बस्तर आईजी विवेकानंद कैसे छूट जा रहे हैं?