सुनील बाबू
चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भारत सरकार में सिकरेट्री के लिए इम्पेनल हो गए हैं। 79 बैच के जिन 26 आईएएस को इसके लिए चुना गया है, उनमें उनका नम्बर पांचवां है। और 78 बैच के बचे लोगों को मिलाकर तेरहवां। जानकारों का कहना है, 13 रैंक ज्यादा नहीं है, इसलिए बहुत हुआ तो फरवरी तक उनका नम्बर लग जाएगा। तब तक छत्तीसगढ़ में चीफ सिकरेट्री के तौर पर उनका एक साल पूरा भी हो जाएगा। वैसे भी, अगर अच्छा विभाग मिल जाए, तो गवर्नमेंट आफ इंडिया का सिकरेट्री होना चीफ सिकरेट्री से अधिक प्रेसटीजियस माना जाता है। फिर, दिल्ली में उनकी फेमिली भी है। संकेत जो मिल रहे हैं, कुमार अब यहां ज्यादा दिन रुकेंगे नहीं। सो, यह मानकर चलिये, जनवरी में नए सीएस की कवायद शुरू हो जाएगी। सत्ता के गलियारों में नए सीएस के लिए अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है। सीनियरिटी में दूसरे नम्बर पर विवेक ढांड हैं। लेकिन आरपी बगाई के बाद से राज्य में सीनियरिटी की परंपरा खतम हो गई है। इसलिए, चर्चा डीएस मिश्रा और नारायण सिंह पर केंद्रित है। नारायण सिंह पर ज्यादा, क्योंकि आदिवासी होने के साथ ही सीनियर भी हैं। दूसरा, सुनील कुमार को सीएस बनाने पर उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे सरकार असहज महसूस की हो।
हाथ जलाया
चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन को राज्य सरकार ने भले ही समय से पहले हटा दिया मगर उनके सम्मान में कोई कमी नहीं की। नए मंत्रालय के ग्राउंड फ्लोर पर सबसे अधिक उन्हीं की फोटो लगी हैं। यहीं नहीं, सरकार ने आउट आफ वे जाकर अलंकर समारोह में राष्ट्रपति के हाथों उनका सम्मान कराया। मगर इसके बाद जो हुआ, उससे छोटापन ही झलका। मीडिया में उनके सम्मान का व्यापक कवरेज न होने पर उम्मेन ने कई अफसरों को फोन खड़खड़ा डाला। वे जानना चाहते थे आखिर उनकी खबर क्यों नहीं छपी। आलम यह हो गया कि जनसंपर्क विभाग को साक्ष्य के साथ सफाई देनी पड़ी कि हमने तो खबर रिलीज की थी....। जबकि, उम्मेन के सम्मान को परंपरा के विपरीत बताते हुए एक बड़े नौकरशाह ने आपत्ति जताई थी। अफसर का मत था कि अलंकर समारोह में उन्हीं को सम्मानित किया जाता है, जो प्रक्रिया के तहत चयनित किए जाते हैं। और राष्ट्रपति भवन ने भी, इसी आधार पर मिनट-टू-मिनट कार्यक्रम से उम्मेन का सम्मान को निकाल दिया था। बाद में, मुश्किल से इसे शामिल किया गया। और अब, सरकार का हाल, होम करने में हाथ जला, वाला हो गया है।
अच्छी खबर
रायपुर में हुए इंवेस्टर्स मीट से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतने प्रभावित हुए कि अफसरों की टीम यहां भेज रहे हैं कि सरकार ने इसे कैसे आर्गेनाइज किया। मोदी गुजरात में कई साल से वायबें्रट गुजरात का आयोजन कर रहे हैं। वहां सिर्फ इंवेस्टर्स मीट होता है और उसमें पब्लिक नहीं जुटती। अपने रायपुर में राज्योत्सव, विभागों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ इंवेस्टर्स मीट हुआ, वह मोदी को अलग और आकर्षक लगा। याद होगा, राज्योत्सव में जब वे रायपुर आए थे तो उन्होंने इसकी तारीफ की थी। और अहमदाबाद जाते ही अफसरों को रायपुर जाने का निर्देश दे डाला। अगले हफ्ते गुजरात से अफसरों की टीम यहां पहुंच रही हैं।
चमत्कार
डीजीपी अनिल नवानी शुक्रवार को रिटायर हो जाएंगे.....महज चार दिन बाद। अगली ताजपोशी किसकी होगी, इस पर से धंूध छंटी नहीं है? सीनियरिटी में संतकुमार पासवान आते हैं, उसके बाद रामनिवास। पासवान के साथ पहला माईनस है चार महीने बाद रिटायरमेंट और दूसरा, सत्ता में पैठ की कमी। रामनिवास के साथ, दोनों प्लस है। भारत सरकार के ना-नुकूर के बाद आखिर, स्पेशल डीजी वे ऐसे थोड़े ही बन गए। सो, रामनिवास का पलड़ा भारी प्रतीत हो रहा है। लेकिन यह भी, पुलिस महकमे के कुछ लोग पासवान को दौड़ से अभी भी बाहर नहीं मान रहे हैं.....तरह-तरह के तर्क दिए रहे हंै। मसलन, चुनाव के साल मंे सरकार दलितों को और नाराज नहीं करेगी। फिर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से गिरौधपुरी जैतखंभ का उद्घाटन कराने का प्रयास किया जा रहा है। मीरा कुमार जैसे बिहार के कई नेता दिल्ली में खासा प्रभाव रखते हैं। और पासवान भी बिहार के। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक काम करने का अनुभव पासवान को है और राज्य बनने पर वे छत्तीसगढ़ कैडर मांगकर यहां आए थे। इन सबके बाद भी पासवान का डीजीपी बनना चमत्कार से कम नहीं होगा।
रिकार्ड
अनिल नवानी भाजपा शासन काल के पहले डीजीपी होंगे, जो कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद 2004 में अशोक दरबारी को हटाकर ओपी राठौर को डीजीपी अपाइंट किया था। मगर असमय निधन हो जाने से राठौर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद, विश्वरंजन सर्वाधिक समय तक डीजीपी रहने का रिकार्ड तो अपने नाम किया, मगर आठ महीने पहले ही उन्हें रुखसत होना पड़ा। इसके बाद आए नवानी। रिटायर चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन के स्टाईल में काम करने के बाद भी नवानी कार्यकाल पूरा करने में कामयाब रहे।
पुनर्वास
सरकार से नाराजगी मोल लेने की वजह से रिटायर डीजीपी विश्वरंजन भले ही पुनर्वास से वंचित रह गए मगर डीजीपी अनिल नवानी ने ऐसा कुछ नहीं किया है। हवा के साथ चलते रहे। गड़बड़ नहीं हैं, इसलिए दामन साफ तो रहना ही था। सो, उनकी व्यवस्थापन तय मानिये। पता चला है, नवानी को पुलिस हाउसिग बोर्ड का चेयरमैन बनाया जा रहा है। रिटायरमेंट के बाद नवानी ने सरकारी बंगले में रहने के लिए चार महीने का एक्सटेंशन मांगा है। सूत्रों की मानें तो 30 को नए डीजीपी के आदेश के साथ ही नवानी का पुनर्वास का मामला तय हो जाएगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. न्यू रायपुर जैसी चमचमाती सड़कें राज्य में क्यों नहीं बनाई जा सकती?
2. संसदीय सचिवों को मंत्रालय में कमरा नहीं दिया जाता, इसके बावजूद जीएडी ने सभी नौ संसदीय सचिवों को मंत्रियों के बराबर कमरा कैसे अलाट कर दिया?