शनिवार, 29 मार्च 2014

तरकश, 30 मार्च

तरकश

 तलवार

चुनाव आयोग द्वारा यूपी में एकमुश्त 22 कलेक्टर, 19 एसपी और तीन डीआईजी के हटाए जाने के बाद सूबे के कुछ अफसरों को डरावने सपने आने लगे हैं। इनमें दो कलेक्टर भी शामिल हैं। एक कलेक्टर का सताधारी पार्टी के प्रत्याशी से मधुर संबंध छिपा नहीं है। कलेक्टर साब ने जिले में न केवल प्रत्याशी के बेटे का धंधा पानी जमवाया है, बल्कि, अपुष्ट खबर ये भी है कि टिकिट फायनल होने में कलेक्टर के रिकमांडेशन की भी भूमिका रही। इसकी आयोग में शिकायत हुई है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा किसी को भी टच न करने पर अफसर कंफार्ट फील कर रहे थे। ब्यूरोक्रेसी में चर्चा यही थी कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर वीएस संपत काफी लिबरल हैं। मगर अब धारणा बदल गई है।

पहली बैठक

चीफ सिकरेट्री बनने के बाद विवेक ढांड ने शुक्रवार को मंत्रालय में सभी विभागों के सिकरेटीज की पहली बैठक ली। और, इसमें यह तय हो गया कि नए सीएस का फोकस बस्तर और वहां की नक्सल प्राब्लम पर रहेगा। तभी तो तीन घंटे से अधिक चली बैठक में घंटे भर से अधिक चर्चा सिर्फ बस्तर पर हुई। सीएस ने सभी सिकरेट्रीज से बस्तर समस्या के समाधान के लिए लिखित में अपनी राय मांगी है। ढांड, राज्य निर्माण के दौरान बस्तर के कमिश्नर रहे। जाहिर है, वहां के सिचुएशन से वे भली-भांति वाकिफ होंगे। फस्र्ट मीटिंग में ही उन्होंने इंटरेस्ट दिखाया है। सो, उम्मीद तो अच्छे की ही करनी चाहिए।

रिलेक्स

दो साल में पहला मौका था, जब शुक्रवार को मंत्रालय में सीएस मीटिंग में सारे सिकरेट्रीज रिलेक्स होकर बैठे थे। बिल्कुल, नो टेंशन…….न डांट खाने का डर। पहले की मीटिंगों में गड़बड़ टाईप के अफसर मुंह सिले रखना ही मुनासिब समझते थे…..आ बैल मुझे मार, क्यों करें? मगर शुक्रवार की बैठक में सबके चेहरे खिले हुए थे। और, सभी खुलकर बोले भी। खासकर, वो भी जो पिछले दो साल में एक लाइन नहीं बोले थे। कुछ तो बेहद एक्साइटेड थे……आखिर, अरसे बाद यह मौका आया है। बस्तर के नक्सल समस्या पर एक्सपर्ट की मानिंद ढेरों सलाह दे डाली। एक आईएएस ने तो यहां तक कह डाला, सर, टाटा का प्लांट लग जाता तो नक्सल समस्या खतम हो जाती। मेरे रहते, टाटा की पूरी तैयारी हो गई थी। मगर मेरे हटने के बाद वहां टाटा का आना असंभव है। इस पर सीएस को टोकना पड़ा कि ऐसा नहीं है, टाटा अभी भी आ सकता है।

खुलकर

भले ही संघ प्रमुख ने कहा हो कि नमो-नमो करना संघ का काम नहीं है। मगर वास्तविकता यह है कि मोदी को सता की शीर्ष पर बिठाने के लिए संघ भी इस बार खुलकर मैदान में आ गया है। पिछले हफ्ते स्टेशन रोड स्थित एक होटल में मुस्लिम वोटों को लेकर संघ की बैठक हुई। संघ के बैनर में लोगोें ने पहली बार मुस्लिम नेताओं का इस तरह जमावड़ा देखा। मंच पर बैनर पर मुस्लिम नेताओं और धार्मिक नेताओं की फोटुएं लगी थीं। मुस्लिम नेताओं ने कहा भी कि मोदी को पीएम बनाना है, इसलिए हमलोग उनके लिए काम कर रहे हैं।

सिर्फ त्यागी

मार्च से लेकर जुलाई तक पांच आईएएस अफसर रिटायर होंगे। 31 मार्च को दुर्गेश मिश्रा, 30 अप्रैल को एमके त्यागी और एमएस परस्ते एवं 31 जुलाई को आरपीएस त्यागी और एनके मंडावी। याने पांच। इनमें से सिर्फ एमके त्यागी को संविदा में पोस्टिंग मिल सकती है। वे फिलहाल सिकरेट्री सीएम के साथ माईनिंग देख रहे हैं। त्यागी साफ-सुथरी छबि के आईएएस में शुमार होते हैं। इसीलिए, कोरबा कलेक्टरी से हटने के बाद सीएम ने अपने साथ रखा था। सूत्रों की मानें तो उनकी संविदा नियुक्ति भी सीएम सचिवालय में ही होगी।

नो टेंशन

भाजपा में किस्मत वालों की कमी नहीं है। एक भैया तो लगभग इसी के सहारे लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। अबकी तो मैदान और साफ नजर आ रहा है। उपर से नगद नारायण से लेकर मैन पावर की कोई कमी नहीं। सबको पता है, एनडीए की गवर्नमेंट बनने पर भैया को अबकी कैबिनेट मंत्री बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। लिहाजा, भैया के घर पर हर तरह के मददगारों की लाईन लग रही है। सार यह है कि भैया के घर से अबकी कुछ नहीं लगने वाला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. दुर्ग लोकसभा सीट पर कांटे की लड़ाई की चर्चा क्यों है?
2. आईएएस एलएस केन को कोर्ट द्वारा दो साल की सजा होने पर पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर को क्यों खुश होना चाहिए?

शनिवार, 22 मार्च 2014

तरकश, 23 मार्च

तरकश



आईएएस का कुत्ता

राजधानी में मकान के लिए भले ही आईजी, डीआईजी जैसे अफसर चिरौरी कर रहे हों मगर एक डीओजी का रुतबा देखिए कि वह देवेंद्र नगर के आफिसर्स कालोनी के एक ई टाईप बंगले में ठाठ से रह रहा है। उसके खिदमत के लिए दो चपरासी भी तैनात हैं। एक दिन में, तो दूसरा रात के लिए। डीओजी को गरमी बर्दाश्त नहीं होती, इसलिए, एक कमरे में एसी लगाया गया है। दरअसल, बंगला एक आईएएस के नाम से अलाट है। ढाई साल पहले उनकी पोस्टिंग राजधानी से बाहर हुई, मगर उन्होंने बंगले का मोह नहीं छोड़ा। कब्जा बना रहे, इसके लिए उन्होंने विदेशी नस्ल के अपने प्रिय कुत्ते को रख छोड़ा है। अब, आईएएस का कुत्ता है तो उसके लिए उसी के अनुरुप इंतजाम तो करने पड़ेंगे न। इससे लोगों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए।

दिया तले अंधेरा

राजधानी में मकानों की कमी से जूझ रहे नौकरशाह रिटायर आईएएस आरपी बगाई की याद कर रहे हैं। होम में रहने के समय बगाई ने रिटायरमेंट या ट्रांसफर के बाद देवेंद्र नगर का बंगला नहीं छोड़ने वाले नौकरशाहों पर एक से डेढ़ लाख रुपए तक जुर्माना ठोक दिया था। इसमें एक सीनियर एसीएस का भी डेढ़ लाख जुर्माना था। इसके कारण तब फजीहत होने के डर से कई अफसरों ने फटाफट घर खाली कर दिया था। मगर अभी का हाल सुनिये। कई अफसर रहते हैं भिलाई में और देवेंद्र नगर में बंगला कब्जिआएं हुए हैं। कुछ तो अरसे से राजधानी से बाहर हैं मगर बंगला नहीं छोड़ा है। सरकारी बंगले का मोह के मामलेे मंे राजनीतिज्ञ भी पीछे नहीं हैं। लता उसेंडी और रेणूका सिंह चुनाव हार गईं मगर दोनों ने अभी तक बंगला खाली नहीं किया है।

मेष राशि

सूबे की 11 लोकसभा सीटों में से दो सीट को तो लोग अभी से क्लियर मान कर चल रहे हैं। एक महासमुंद और दूसरा, राजनांदगांव। एक पर अजीत जोगी चुनाव लड़ रहे हैं और दूसरे पर मुख्यमंत्री के बेटे अभिषेक। दोनों मेष राशि वाले हैं। ज्यातिषियों की मानें तो मेष राशि के लिए अभी समय भी अच्छा चल रहा है। तभी तो ना…ना….करते हुए जोगी टिकिट लेने में कामयाब हो गए, तो अभिषेक की लांचिंग राइट टाईम पर हो गई। उनके लिए इससे बढि़यां समय नहीं होता। छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार है और दिल्ली में भी लगभग आ ही जाएगी। जाहिर है, राज्य के लोगों की सबसे अधिक उत्सुकता इन दोनों सीटों को लेकर होगी। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि लीड के मामले में अजीत जोगी आगे रहते हैं या अभिषेक।

इगो की लड़ाई

विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार पटखनी खाने के बाद भी कांग्रेस नेताओं ने सबक नहीं ली। इगो की लड़ाई में पार्टी की फजीहत करा दी। चुनावी इतिहास में शायद ही कहीं ऐसा हुआ होगा, जब किसी सीट पर तीन बार प्रत्याशी बदला गया होगा। वो भी कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी द्वारा। रायपुर में पार्टी नेताओं ने ऐसा ही किया। अब, चैथी बार प्रत्याशी बदलने पर विचार चल रहा है। इसीलिए, छाया वर्मा को अभी बी फार्म नहीं मिला है। जबकि, रायपुर राजधानी है और यहां से पूरे प्रदेश में मैसेज जाता है। इसके बावजूद, कांग्रेस नेताओं ने पार्टी को तमाशा बनाने में कोई कमी नहीं की। कांग्रेस कार्यकर्ता भी महसूस कर रहे हैं कि बड़े नेताओं ने, तुम्हारी क्यों? मेरी चलेगी के चक्कर में पार्टी का बडा नुकसान कर दिया। ऐसे में, भाजपाई अगर 2004 और 2009 का रिजल्ट दोहराने का दावा कर रहे हैं तो विस्मय नहीं होना चाहिए।

बड़ा दांव

लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी ने चतुराई के साथ पत्ते फेंके और पार्टी में अपना जलवा बरकरार रखने में कामयाब रहे। कांकेर से फूलोदेवी नेताम को टिकिट दिलवा दिया तो महासमुंद से प्रतिभा पाण्डेय की दावेदारी कमजोर करने के लिए करुणा शुक्ला को बिलासपुर से खड़ा करा दिया। अब, दो कान्य कुब्ज महिला को कांग्रेस टिकिट दे नहीं सकती। इससे, उनके लिए महासमुंद में गुंजाइश बन गई। बिलासपुर में करुणा को आगे करने के लिए पीछे राजनीति यह भी थी कि दूसरे किसी को टिकिट दिलाएं और अगर जीत गया तो आगे चलकर कहीं भस्मासुर न बन जाए। करुणा बिलासपुर के लिए बाहरी हैं इसलिए जीते या हारे, जोगी खेमे की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

दुर्भाग्य

बिलासपुर के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता। 2009 में इस सीट के सामान्य होने के पहले पुन्नूराम मोहले चार बार यहां से प्रतिनिधित्व किए। और, केंद्र में एनडीए की सरकार रहने के बाद भी इस दौरान विकास के एक काम नहीं हुए। 29 साल बाद लोकसभा सीट सामान्य हुई तो अजीत जोगी की पत्नी को हराना है, इस चक्कर में लोगों ने दिलीप सिंह जूदेव को जीतवा दिया। जूदेव जो जीत कर गए, दोबारा फिर झांके नहीं। इस बार उम्मीद थी कि कोई दमदार कंडिडेट खड़ा होगा। मगर दोनों ही पार्टियों ने निराश किया। अजीत जोगी मजबूत प्रत्याशी थे मगर हार के डर से वहां से किनारा करना ही मुनासिब समझा। कांग्रेस ने आठ दिन पहले पार्टी में आई करुणा शुक्ला को मैदान में उतार दिया। इससे, पार्टी की गंभीरता समझी जा सकती है। और, भाजपा में धरमलाल कौशिक से लेकर मूलचंद खंडेलवाल, अरुण साव जैसे नेताओं के नाम चलें मगर पार्टी ने एक ऐसे चेहरे को खड़ा कर दिया, जिसका अधिकांश लोगों ने नाम ही नहीं सुना था।

राजधानी पुलिस

होली में अबकी राजधानी पुलिस ने पहली बार अपने होने का अहसास कराया। ऐसी टाईट पोलिसिंग हुई कि गुंडे-मवालियों की अपने रंग मंे होली मनाने की तैयारी धरी-की-धरी रह गई। पुलिस ने दो दिन पहले से मुहिम चलाकर डेढ़ हजार से अधिक लड़कों-लफंगों की बाइक जब्त कर ली। हर चैक पर दर्जन भर से अधिक जवान तैनात रहे। जहां तीन सवारी देखा, बाइक जब्त करने में देर नहीं लगाई। उपर से निर्देश भी थे किसी को छोड़ना नहीं है। यही कारण है कि कुछ भइया लोगों के फोन भी आए, तो बड़े अफसरों ने उनसे दो दिन के लिए माफी मांग ली। े

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मसले को लेकर राजधानी में गुरूवार को देर रात तक तीन मंत्रियों की बैठक चली?
2. कांग्रेस के तीन और कौन बड़े नेता भाजपा से जुड़ने के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं?

शनिवार, 8 मार्च 2014

तरकश, 9 मार्च

तरकश



सस्ते में

कोरबा एसपी रतनलाल डांगी ने सोचा भी न होगा कि वे इस कदर सस्ते में आउट हो जाएंगे। विधानसभा चुनाव के ऐन पहले बिलासपुर से जब उनका कोरबा ट्रांसफर हुआ था, वे वहां जाना नहीं चाहते थे। और अब, जब वे मान लिए थे कि दिसंबर-जनवरी से पहले कुछ नहीं होने वाला। तब आचार संहिता लागू होने के दो दिन पहले उनका ट्रांसफर हो गया। वह भी बटालियन में कमांडेंट। आजकल नान आईपीएस भी कमांडेंट बन जा रहे हैं। डांगी तो दंतेवाड़ा, कोरबा और बिलासपुर जैसा जिला कर चुके हैं। ऐसे में, उनकी नई पोस्टिंग को लेकर लोगों का चैंकना स्वाभाविक था। आखिर, उनकी फिल्डिंग कमजोर कैसे पड़ गई।

सीनियरिटी का सम्मान

सीनियर होने के बाद गिरधारी नायक भले ही डीजीपी न बन सकें, मगर 3 मार्च को मंत्रालय में चुनावी तैयारियों की बैठक हुई तो वहां डीजीपी एएन उपध्याय ने उनके सम्मान का पूरा खयाल किया। चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड के एक ओर पीएस होम एनके असवाल के लिए कुर्सी लगी थी और दूसरी ओर डीजीपी के लिए। और उसके बाद वाली कुर्सी पर नायक बैठे थे। उपध्याय कुछ विलंब से पहुंचे। उन्होंने डीजीपी की कुर्सी पर बैठने के बजाए असवाल के बगल में बैठ गए। लोगों ने पूछा तो उन्होंने कहा, होम सिकरेट्री रहते हमेशा वे असवाल के बगल में बैठते रहे हैं। मगर ये कारण कतइ्र्र नहीं था। उपध्याय को शायद लगा कि डीजीपी ना बनने से नायक दुखी होंगे, उपर से पहली मीटिंग में ही उनसे पहले बैठकर उनका दिल और क्यों दुखाया जाए। सीनियर का सम्मान करके उपध्याय ने अपना बड़प्पन दिखाया।

ग्रेट

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान शराब वितरण पर जिस तरह कंट्रोल किया गया, चुनाव आयोग ने न केवल इसकी जमकर तारीफ की है। बल्कि, लोकसभा चुनाव में पूरे देश में इसे एक माडल की तरह एडाप्ट करने का संकेत दिया है। जाहिर है, टूरिज्म बोर्ड के एमडी संतोष मिश्रा को विस चुनाव के लिए लीकर आब्जर्बर बनाया गया था। और, उन्होंने इतना टाईट इंतजाम कर दिया था कि राजनीतिक दलों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। आचार संहिता लागू होने से पहले जिनने डंप कर लिया था, वही काम आया। बाकी चुनाव के दौरान तो फैक्ट्रियों से शराब निकल ही नहीं पाई। गेट पर कैमरा लगा दिए गए थे, अफसर भी तैनात थे। आयोग ने पिछले हफ्ते मिश्रा को दिल्ली बुलाया था। वहां, मुख्य चुनाव आयुक्त समेत भारत सरकार के कई सिकरेट्रीज के समक्ष मिश्रा ने अपना प्रेजेंटेशन दिया। ग्रेट……।

बेचारे

गौरव द्विवेदी और उनकी पत्नी मनिंदर कौर द्विवेदी के चक्कर में निधि छिब्बर और उनके पति विकास शील का डेपुटेशन रुक गया। निधि का डिफेंस जैसी मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री की पोस्टिंग मिल गई थी। लेकिन द्विवेदी दंपति ऐन-केन-प्रकारेण दो साल का डेपुुटेशन बढ़ाने में कामयाब रहे। जबकि, निवर्तमान चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने द्विवेदी को एक्सटेशन की सहमति देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि सबको अवसर मिलना चहिए। सरकार का फंडा साफ था कि दो आएंगे, तो दो जाएंगे। वैसे भी, द्विवेदी दंपति को दिल्ली गए पांच साल हो गए हैं। और आगे के लिए उन्हें स्टेट गवर्नमेंट को परमिशन चाहिए। मगर किन्हीं अदृश्य ताकत के दबाव में सरकार ने निधि और विकास का डेपुटेशन रोकते हुए द्विवेदी दंपति को एक्सटेंशन दे दिया। अब, निधि के सामने भारत सरकार द्वारा डिबार कर दिए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

बल्ले-बल्ले

सिकरेट्री और प्रींसिपल सिकरेट्री लेवल पर अफसरों का टोटा होने का लाभ आईएफएस अफसरों को मिल रहा है। मंत्रालय में, इस समय आधा दर्जन आईएफएस विभिन्न विभागों के सिकरेट्री हैं। इनमें संजय शुक्ला आवास एवं पर्यावरण, पीसी पाण्डेय कृषि, जतीन कुमार श्रम, मुरूगन ट्राईबल, देवाशीष दास पंचायत और अनिल साहू फारेस्ट शामिल हैं। हाल में, मनोज पिंगुआ भी डेपुटेशन पर चले गए। उधर, पंचायत सिकरेट्री विवेक ढांड चीफ सिकरेट्री हो गए। इसके कारण आईएएस पर वर्क लोड काफी बढ़ गया है। आलम यह है कि पुअर परफारमेंस वाली सूची के आईएएस अफसरों के पास भी दो-दो विभाग हो गए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कितने आईएएस अफसरों ने अभी तक देवेेंद्र नगर का बंगला खाली नहीं किया है और गृह विभाग उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की है? 
2. कितने ऐसे आईएएस और आईपीएस होंगे, जो भिलाई में बीएसपी का बंगला ले रखे हैं और राजधानी में सरकारी बंगला भी?

शनिवार, 1 मार्च 2014

तरकश, 2 मार्च

तरकश

अभिषेक का अभिषेक

मुख्यमंत्री के बेटे अभिषेक सिंह का अबकि राजनांदगांव लोकसभा सीट से उतारकर सक्रिय राजनीति में अभिषेक किया जा सकता है. जाहिर है, पिछले दो विधानसभा चुनावों से उनकी पालिटिकल ट्रेनिंग चल रही है. 2008 और 2013, दोनों विधानसभा चुनावों में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव की कमान उन्होंने संभाली, बल्कि इस बार तो कवर्धा में पार्टी को जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही. हालांकि विधानसभा चुनाव के समय ही उन्हें टिकट देने की खूब चर्चा रही, मगर रमन सिंह ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अभी समय नहीं आया है. लेकिन इससे बढ़िया समय अब हो भी नहीं सकता. केंद्र में एनडीए की सरकार फ र्म होने की संभावना बढ़ती जा रही है. फि र, सांसद के रूप में कैरियर शुरू करने के अपने मायने होते हैं. केंद्र सरकार में तीन युवा मंत्री ऐसे हैं, जो पहली बार सांसद चुन कर गए हैं. सो, दिस इज राइट टाइम.

अब पीएचडी

चीफ सिकरेट्री पद से रिटायर होकर कल दिल्ली लौटे सुनिल कुमार अब पीएचडी पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. 2010 में जामिया मिलिया यूनिर्वसिटी में पीएचडी के लिए वे सलेक्ट हुए थे, मगर छत्तीसगढ़ आ जाने के चलते रिसर्च में ब्रेेक आ गया था. पीएचडी का उनका टापिक मीडिया से रिलेटेड है. सोमवार से इस पर वे काम शुरू कर देंगे. महीनेभर में रिसर्च का उनका काम कंप्लीट हो जाएगा. इस बीच उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी मिल जाए, तो अचरज नहीं. मंत्रालय के गलियारों में जैसी चर्चा है, छत्तीसगढ़ सरकार दिल्ली में उन्हें कोई पोस्ट दे सकती है.

आईएम आईएएस

सुनिल कुमार की विदाई के बाद शुक्रवार को मंत्रालय के आईएएस अफ सरों ने खुली हवा में सांसें लीं. चीफ सिकरेट्री चैंबर का दरवाजा खुल गया और उसमें गुलदस्ते का ढेर लग गया. सुनिल कुमार के समय में डीजीपी अनिल नवानी का गुलदस्ता भी बाहर रखवा लिया गया था. मगर शुक्रवार को बदला-बदला नजारा था. मंत्रालय के सिकरेट्रीज दो साल तक भारी प्रेशर में रहे. 10 से 5 बजे तक आफि स पहुंचने की विवशता. हर दिन दो-तीन मीटिंगें. मीटिंग में सीएस क्या पूछ दें और उसी पर सार्वजनिक रूप से क्लास लें लें, इसका खौफ हमेशा मंडराता रहता था. दिल्ली, मुंबई और गोवा जाओ तो उसका कारण बताओ. पिछले दो साल से आईएएस अफ सरों ने तफ रीह के लिए बाहर जाना बंद कर दिया था. चापलूसी करने किसी को सीएस चैंबर में आने की इजाजत नहीं थी. मिलना है, तो पहले एसएमएस कर या पीए से बात कर काम बताओ, फि र अपाइंट मिलेगा. भ्रष्ट अफ सर भी कागजों पर बेहद सावधानियां बरत रहे थे कि पकड़ लिया, तो छोड़ेगा नहीं, लेकिन अब ये फ ालतू के लफ ड़े बंद हो गए हैं. और, मंत्रालय के आईएएस अब महसूस कर रहे हैं कि वे सचमुच आईएएस हैं.

पावर गेम

85 बैच के आईपीएस एएन उपध्याय के डीजीपी बन जाने के बाद इसी बैच के एन. बैजेंद्र कुमार के अब एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनने का रास्ता खुल गया है. इसी आधार पर डीएस मिर्शा भी समय से पहले एसीएस बन गए थे. मिर्शा 82 बैच के हैं. और, इसी बैच के रामनिवास तब डीजीपी बने थे. हालांकि, सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद एसीएस का एक पोस्ट वैकेंट हो गया है. इस पर 84 बैच के एमके राउत एसीएस बन जाएंगे. चूंकि, अगले हफ ्ते आचार संहिता लग जाएगी, इसलिए, फि लहाल तो डीपीसी की संभावना नहीं दिख रही है. मगर पावर गेम के तहत सरकार की कोशिश होगी कि जितना जल्द हो सके, राउत और बैजेंद्र एसीएस बन जाएं.
भाग्य
एएन उपध्याय ने देश में सबसे कम उम्र का डीजीपी बनने का रिकार्ड बनाया है. वे 85 बैच के हैं और उनके बैच के संजय कुमार हिमाचल प्रदेश में डीजीपी हैं, मगर वे भी उपध्याय से आठ महीने बड़े हैं. 15 अगस्त 1959 को जन्मे उपध्याय अभी 54 साल छह महीने के हैं. सब कुछ अच्छा रहा, तो वे साढ़े पांच साल डीजीपी रहेंगे. इतनी कम उम्र का देश में किसी दूसरे आईपीएस को डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला है. दूसरे कई राज्यों में तो 30 साल की सर्विस वाले अभी डीजी नहीं बने हैं. और, उपध्याय 29 साल में डीजीपी. इसे ही कहते हैं भाग्य. सब कुछ होने के बाद भी आखिर आनंद कुमार की ताजपोशी नहीं हो पाई.

डोंट वरी
कांग्रेस की डूबती कश्ती पर करुणा शुक्ला की सवारी को दोतरफा मजबूरी से जोड़कर देखा जा रहा है. करुणा के लिये भाजपा में कोई जगह नहीं बच गई थी. राजनांदगांव में रमन के खिलाफ प्रचार कर और राजनाथ सिंह को निशाने पर लेकर भाजपा का रास्ता उन्होंने खुद ही बंद कर लिया था. और,कांग्रेस को बिलासपुर में कोई ढ़ंग का उम्मीदवार नहीं मिल रहा था. साथ में, बोनस में अटल बिहारी का नाम मिल रहा था. सो,कांग्रेस प्रवेश हो गया. मगर बड़ा सवाल यह है कि करूणा को अगर बिलासपुर से टिकट मिल भी गया, तो कांग्रेस के गुटीय पालिटिक्स में वे कितना सफल हो पायेंगी. बिलासपुर में प्रभावी गुट क्यों चाहेगा कि उनके क्षेत्र में एक नेत्री स्थापित हो जाये. ऐसे में, भाजपा तनिक भी चिंतित नहीं है.

नये चेहरे

लेकसभा चुनाव के लिये अबकी भाजपा के लिस्ट में आधा दर्जन नये चेहरे होंगे. बिलासपुर सांसद दिलीप सिंह जूदेव और सरगुजा सांसद मुरारी सिंह के निधन के कारणदोनों सीटों पर पार्टी नये चेहरे उतारेगी. इसके अलावा, चार वर्तमान सांसदों के टिकट काटने की तैयारी है. जिन सांसदों पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है, उनमें जांजगीर, कांकेर, बस्तर और महासमुंद शामिल हैं. राजनांदगांव के सांसद मधुसूदन यादव की सीट बदलकर अबिक महासमुंद से महासुंद से उतारने की चर्चा तेज है.

पकड़

प्रदेश कांग्रेस में बरसों से जमे प्रभारी महामंत्री सुभाष शर्मा को हटाकर भूपेश बघेल ने पार्टी पर अपनी पकड़ और बढ़ा ली है. मोतीलाल वोरा के कट्टर समर्थक सुभाष पिछले 10 वर्षो से इस अहम पद पर थे. इस दौरान छ: अध्यक्ष बदल गये, मगर उन्हें कोई हिला नहीं पाया. नंदकुमार पटेल ने कोशिश की थी, लेकिन बाद में पीछे हट गये. भूपेश ने पहले अपने दो समर्थकों को महामंत्री बनाया, फिर शनिवार को शर्मा को हटाकर अपने सबसे खास गिरीश देवांगन को महामंत्री पद पर बैठा दिया. यध्दपि, कांग्रेस में यह मानने वालों की कमी नहीं कि भूपेश ने वोराजी से हरी झंडी लिये बगैर यह कदम नहीं उठाया होगा. मगर, दम तो दिखाया.

अंत में दो सवाल आपसे

1) 28 फरवरी को मंत्रालय के किन दो वरिष्ठो को सुलह के लिये एक साथ बैठाया गया ?
2) रमन सरकार ने आखिर क्या करतब दिखाया कि जिस गृहमंत्रालय ने आनंद कुमार को नो आब्जेक्शन नहीं दिया, उसने एएन उपाध्याय को 10 महिने पहले डीजी बनने की अनुमति दे दी ?