2 दिसंबर 2018
बदलाव की चर्चा और कांग्रेस नेताओं के सीटों के दावे भले ही बढ़-चढ़कर किए जा रहे हों। मगर वास्तविकता यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस उधेड़बून में लगी है कि सीटों की संख्या अगर 40 के आसपास आकर ठहर गई तो ऐसे में कौन सा फार्मूला सही रहेगा। बीजेपी के अंदरखाने में सारे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। तो उधर बताते हैं, दिल्ली में राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं की मीटिंग में यही टिप्स दिया….गोवा और मणिपुर जैसा नहीं होना चाहिए। वहां कम सीटें पाकर भी बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई थीं। राहुल ने कहा कि एकदम मुस्तैद रहना है। सरकार बनाने का दावा करने में देर नहीं करना। बैठक में इस पर भी गंभीरता से चर्चा हुई कि अगर सरकार बनाने के जादुई संख्या तक सीटें नहीं मिली तो पार्टी की रणनीति क्या होगी। कांग्रेस में इस पर भी मंथन हो रहा कि अगर बहुमत मिल गई तो दिक्कत नहीं, लेकिन 40 के आसपास रुक गया तो फिर जोगी की बजाए बसपा को साधा जाए। क्योंकि, बसपा के विधायक अगर पाला बदल लें तो एकाध निर्दलीय को मिलाकर गवर्नमेंट फर्म कर लिया जाए। क्योंकि, कांग्रेस अगर जोगी को मिलाकर सरकार बनाएगी तो उसे बहुत बड़ी कीमत अदा करनी पड़ेगी। राजनीति के जादूगर जोगी यूं ही कांग्रेस का साथ नहीं दे देंगे। जाहिर है, सीएम भी लगभग वे ही तय करेंगे। और, पुनिया, भूपेश और टीएस ऐसा कतई नहीं चाहेंगे। लेकिन, ये स्थिति तभी बनेगी, जब जोगी की झोली में कम-से-कम पांच सीटें आ जाएं। फिर, जोगी के लिए कंफर्ट कौन रहेगा….बीजेपी या कांग्रेस, ये सबसे बड़ा सवाल है।
बदलाव की चर्चा और कांग्रेस नेताओं के सीटों के दावे भले ही बढ़-चढ़कर किए जा रहे हों। मगर वास्तविकता यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस उधेड़बून में लगी है कि सीटों की संख्या अगर 40 के आसपास आकर ठहर गई तो ऐसे में कौन सा फार्मूला सही रहेगा। बीजेपी के अंदरखाने में सारे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। तो उधर बताते हैं, दिल्ली में राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं की मीटिंग में यही टिप्स दिया….गोवा और मणिपुर जैसा नहीं होना चाहिए। वहां कम सीटें पाकर भी बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई थीं। राहुल ने कहा कि एकदम मुस्तैद रहना है। सरकार बनाने का दावा करने में देर नहीं करना। बैठक में इस पर भी गंभीरता से चर्चा हुई कि अगर सरकार बनाने के जादुई संख्या तक सीटें नहीं मिली तो पार्टी की रणनीति क्या होगी। कांग्रेस में इस पर भी मंथन हो रहा कि अगर बहुमत मिल गई तो दिक्कत नहीं, लेकिन 40 के आसपास रुक गया तो फिर जोगी की बजाए बसपा को साधा जाए। क्योंकि, बसपा के विधायक अगर पाला बदल लें तो एकाध निर्दलीय को मिलाकर गवर्नमेंट फर्म कर लिया जाए। क्योंकि, कांग्रेस अगर जोगी को मिलाकर सरकार बनाएगी तो उसे बहुत बड़ी कीमत अदा करनी पड़ेगी। राजनीति के जादूगर जोगी यूं ही कांग्रेस का साथ नहीं दे देंगे। जाहिर है, सीएम भी लगभग वे ही तय करेंगे। और, पुनिया, भूपेश और टीएस ऐसा कतई नहीं चाहेंगे। लेकिन, ये स्थिति तभी बनेगी, जब जोगी की झोली में कम-से-कम पांच सीटें आ जाएं। फिर, जोगी के लिए कंफर्ट कौन रहेगा….बीजेपी या कांग्रेस, ये सबसे बड़ा सवाल है।
राजभवन की भूमिका
चौथे विधानसभा चुनाव में अगर दोनों ही पार्टियां सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाईं तो राजभवन की भूमिका अहम हो जाएगी। क्योंकि, फिर तोड़-फोड़ समर्थन देने-लेने का दौर चलेगा। ऐसे में, गेंद राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के पाले में जाएगा। हाल ही में, जम्मू-कश्मीर का राजभवन चर्चा में रहा, जब महबूबा ने सरकार बनाने का दावा किया तो राजभवन का फैक्स मशीन खराब हो गई थी।
15 निर्णायक सीटें
जोगी के बसपा गठबंधन को कितनी सीटें मिलेगी….सियासी प्रेक्षकों की नजर में इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो गया है कि जोगी का बैल और हाथी किस करवट बैठेगा….किसको डैमेज करेगा। सूबे में करीब 15 सीटों पर जोगी कांग्रेस और बसपा ने मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। इनमें 15 हजार से 40 हजार तक वोट खींचने की क्षमता वाले चेहरे भी हैं। अजीत जोगी खुद मरवाही से हैं। खैरागढ़, भाटापारा, चंद्रपुर, अकलतरा, चांपा, मस्तूरी, कोटा, तखतपुर, बेलतरा, बिल्हा, कसडोल जैसे 15 सीटों पर ट्रेंगुलर फाइट हैं। इनमें से कितनों के भाग्य में विधानसभा पहुंचना लिखा है, ये तो 11 दिसंबर को पता चलेगा। मगर भाजपा और कांग्रेस के लिए उम्मीद और आशंका की वजह जरूर बन गए हैं। आप समझ सकते हैं, जब कुछ सौ वोटों में जीत-हार के फैसले होते हों, वहां 15 से 40 हजार वोट पाने वाले प्रत्याशी किसी भी पार्टी को डूबोने या वैतरणी पार कराने में अहम भूमिका तो निभा ही सकते हैं। इन्हीं 15 सीटों से बीजेपी को सबसे अधिक उम्मीद तो कांग्रेस को सबसे अधिक आशंका।
किंग मेकर जोगी
जोगी परिवार को खबरों में रहने की कला में निपुणता हासिल है। अब देखिए, जोगीजी का परिवार चुनावी थकान मिटाने गोवा की सैर पर है। लेकिन, अपने ट्वीट से राजनीतिज्ञों का बीपी ही नहीं बढ़ा रहा बल्कि आउट ऑफ स्टेट होने के बाद भी खबरों के केंद्र में भी बना हुआ है। छोटे जोगी कभी भावी सीएम के साथ गोवा ट्रिप तो कभी मां रेणु और अपनी पत्नी ऋचा को भावी विधायक बताते हुए ट्वीट कर रहे हैं। गोवा के समुद्र तट से फोटो भी ऐसे पोस्ट हो रहे हैं, जिसमें जोगीजी के परिवार का बॉडी लैग्वेज और कांफिडेंस देखकर लग रहा….किंग मेकर बनने से उन्हें कोई रोक नहीं पाएगा।
किस-किसको साधें
बदलाव की चर्चा से सर्वाधिक कोई उलझन में है तो वे हैं सूबे के नौकरशाह। आखिर वे किस-किसको साधे। कांग्रेस में एक-दो नहीं, मुख्यमंत्री के आधा दर्जन दावेदार हैं। भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत, रविंद्र चौबे और ताम्रध्वज साहू। ये पांच नाम तो ओपन हैं। कुछ चेहरे ऐसे हैं, जिन्हें लगता है कहीं बिल्ली के भाग्य से सिकहर टूट जाए तो उन्हें भी मौका मिल सकता है। इनमें कांग्रेस के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के कुछ नेता बेहद उत्साहित हैं। ऐसे में बेचारे नौकरशाहों की मानसिक यंत्रणा समझी जा सकती है। कहां-कहां हाजिरी लगाएं। ठीक है, वे पाला बदलने में माहिर माने जाते हैं। 2003 के चुनाव के बाद अफसरों के इस कौशल को लोगों ने देखा ही है। लेकिन, इस बार स्थिति जुदा है। पांचों के चौखट पर वे जा नहीं सकते। पहले सबसे अधिक टीएस से उम्मीद थी। लेकिन, राहुल ने ताम्रध्वज को भी मैदान में उतार दिया। अब, शिगूफा चल रहा, जमीन तैयार भूपेश ने की है तो उन्हें राहुल नजरअंदाज नहीं करेंगे। उधर, महंत भी दावेदारी में पीछे नहीं हैं। अफसरों के लिए ये उलझन ही तो हैं।
पहली बार आईएएस
आईएफएस राकेश चतुर्वेदी को लघु वनोपज संघ का प्रमुख बनाने के बाद जीएडी ने आईएएस जीतेन्द्र शुक्ल को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क का सीईओ अपाइंट कर दिया। रुरल एरिया में सड़क बनाने वाली इस एजेंसी का कभी आईएएस सीईओ नहीं बना। सालों से इस पोस्ट पर आईएफएस का कब्जा रहा। चुतुर्वेदी से पहिले आलोक कटियार, सुधीर अग्रवाल, पीसी पाण्डेय सभी आईएफएस थे। हालांकि, राकेश के प्रमोशन के बाद यह पद खाली था, इसलिए मंत्रालय के गलियारों में इसे टेम्पोरेरी पोस्टिंग मानी जाती है….लोग मान रहे हैं कि 11 दिसंबर के बाद लिस्ट निकलेगी, उसमें फायनल होगा। लेकिन, जानने वाले को पता है कि जब तक आरपी मंडल पंचायत विभाग के एसीएस रहेंगे, जीतेंद्र को कोई हिला नहीं पाएगा। पंचायत विभाग की कमान संभालते ही जीतेंद्र को मंडल डायरेक्टर पंचायत बनाकर लाए थे। अब, सीईओ भी बनवा लिए हैं। दरअसल, मंडल और जीतेंद्र में बड़ी अच्छी केमेस्ट्री है। दोनों सालों से एक साथ काम कर रहे हैं। मंडल पिछले दस साल में जिस भी विभाग में रहे, जीतेंद्र उनके साथ रहे। अरबन, पीडब्लूडी, पंचायत सभी में। जोड़ी तभी ब्रेक होगी, जब जीतेंद्र कलेक्टर बन जाएं।
कांग्रेस के 90 विधायक!
रायपुर के राजीव भवन में कांग्रेस नेताओं ने सभी 90 प्रत्याशियों को बुलाकर पूछा कि कौन-कौन जीत रहा है तो एक-एक कर सभी 90 खड़े हो गए। इस पर जमकर ठहाके लगे। हालांकि, बाद में चरणदास महंत ने चुटकी ली….पहली और आखिरी बार आप सभी 90 भावी विधायकों को एक साथ बुलाया गया है। उनका इशारा इस ओर था कि सभी 90 तो जीत कर आएंगे नहीं। इसलिए पहली और आखिरी बार ही हुआ न।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रमन सरकार के कितने मंत्री अपनी सीट बचा पाएंगे?
2. कांग्रेस के सीएम पद के किस दावेदार की सीट फंस गई है?
2. कांग्रेस के सीएम पद के किस दावेदार की सीट फंस गई है?