शनिवार, 18 दिसंबर 2021

आईपीएस की छुट्टी!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 दिसंबर 2021

2006 बैच के आईपीएस माइनथुंगो तुंगोए 2013 में डेपुटेशन पर गृह राज्य नागालैंड गए थे। 2018 में डेपुटेशन खतम हो गया। मगर इसके बाद उनकी कोई खबर नहीं है। गृह विभाग उनको दो नोटिस भेज चुका है। अभी तक कोई रिप्लाई नहीं...आखिर वे हैं कहां...कोई बता पाने की स्थिति में नहीं है। सुना है, अब उनको नौकरी से कंपलसरी रिटायर करने भारत सरकार को अनुशंसा करने पर विचार किया जा रहा है। माइनथुंगो अगर रिटायर  हुए तो गायब रहने के आधार पर नौकरी गंवाने वाले वे पहले आईपीएस होंगे।

एक थे पंकज द्विवेदी

अजीत जोगी सरकार के दौरान आंध्रप्रदेश कैडर के आईएएस पंकज द्विवेदी छत्तीसगढ़ आए थे। रमन सिंह की सरकार आने के बाद भी द्विवेदी को अच्छी पोस्टिंग मिलती रही। जीएडी से लेकर एपीसी तक रहे। बिलासपुर के कोटा में पंकज का ससुराल है। वे कांग्रेस के दिग्गत नेता मथुरा प्रसाद दुबे के दामाद हैं। कोटा विधानसभा सीट से उस जमाने में लगातार पांच चुनाव जीतने की वजह से उन्हें विधानपुरूष कहा जाता था। उनकी बेटी नीरजा पंकज से ब्याही थीं। बहरहाल, डेपुटेशन पूरा होने के तीन बाद भी पंकज जब आंध्र लौटने के लिए तैयार नहीं हुए तो आंध्र सरकार ने आईएएस लिस्ट में उन्हें एबसेंट कर दिया। बदनामी को देखते पंकज आठ साल बाद मन मारकर आंध्र लौटे।     

तेज घोड़ों पर दांव

सरकार का तीन साल पूरा हो गया है। बचा डेढ़ साल। डेढ़ साल इसलिए, क्योंकि आखिरी के छह महीना कोई काम होता नहीं। सो, सरकार का जो लक्ष्य है, उसके लिए वक्त अब कम रह गया है। लिहाजा, जिलों में अब और तेज दौड़ने वाले घोड़ों पर दांव लगाने की तैयारी की जा रही है। सरकार को कई बड़े जिलों से शिकायतें मिल रही हैं....कलेक्टर काफी स्लो हैं। पता चला है, सरकार परफारमेंस के आधार पर ऐसे कलेक्टरों की लिस्टिंग करा रही है, जिनके जिलों में योजनाओं की रफ्तार ढिली है। सुनने में आ रहा...लूज कलेक्टरों के साथ अबकी कोई मरौव्वत नहीं...बिना किसी किन्तु-परंतु के साथ उन्हें बदला जाएगा। बड़े जिलों में दुर्ग, बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर, जगदलपुर जैसे बड़े जिलों को लेकर अटकलें गर्म है....इनमें से कुछ को हटाए जाने की तो कुछ को और अहम जिलों में अपग्रेड करने की खबर है। इसके साथ छोटे जिलों के आधा दर्जन से अधिक कलेक्टर्स भी नप सकते हैं।  

एसपी का पट्टा

कलेक्टरों के साथ-साथ कुछ पुलिस अधीक्षक भी बदले जाएंगे। हालांकि, एसपी की लिस्ट उतनी लंबी नहीं होगी। नारायणपुर और बलौदा बाजार के एसपी पिछले दो महीने में बदले गए हैं। उससे पहिले भी आधा दर्जन से अधिक एसपी इधर-से-उधर हुए थे। बहरहाल, जब भी एसपी की लिस्ट निकलती है, आईपीएस के व्हाट्सएप ग्रुप में डॉ0 अभिषेक पल्लव को लेकर चुटकी षुरू हो जाती है। बैचमेंट बोलते हैं, अभिषेक तू दंतेवाड़ा का ही अब मूल निवासी बन जा...पट्टा लिखवा ले...और भी बहुत कुछ...। जाहिर है, अभिषेक के नाम किसी एक जिले में सबसे लंबे समय तक एसपी रहने का रिकार्ड दर्ज हो गया है। वे पहले एसपी हैं, जिनकी पोस्टिंग भाजपा सरकार में हुई और अभी तक क्रीज पर डटे हुए हैं। याने करीब चार साल से। बताते हैं, दंतेवाड़ा में अभिषेक का कोई विकल्प नहीं मिल रहा। उन्होंने दंतेवाड़ा में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस का मजबूत नेटवर्क बना दिया है। इसलिए, अभिषेक को जब भी चेंज करने की बात आती है तो सीनियर पुलिस अधिकारी आगे-पीछे होने लगते हैं।    

कलेक्टरों को श्रेय या...

धान उठाव और मिलिंग...अबकी बड़ा स्मूथली चल रहा है...कहीं कोई विवाद नहीं। संकट पैदा करने वाले राईस मिलर आगे बढ़कर काम कर रहे हैं। तो क्या इसका क्रेडिट कलेक्टरों को दिया जाए...जो कलेक्टर वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे...उन्हें भी पता है कि इसमें पूरी भूमिका मुख्यमंत्री की है। सीएम ने इस बार ऐसा कुछ किया कि राईस मिलर गदगद हो गए। दो बार हाउस में ससम्मान बुलाकर राईस मिलरों को चाय-नाश्ता कराया, उपर से मिलिंग चार्ज 40 रुपए से बढ़ाकर 120। याने तीन गुना। मिलिंग चार्ज 93 में 40 रुपए तय हुआ था, 28 सालों तक यथावत रहा। अब यकबयक 140 रुपए हो जाने से राईस मिलरों की खुशी समझी जा सकती है। फिर मार्कफेड से मिलिंग के लिए धान उठाने मिलरों को प्रति बोरा 2200 रुपए डिपाजिट करना होता था। इसे अब 1500 कर दिया गया। बोरे का रेट भी 18 से 25। इसके बाद तो राईस मिलर बम-बम हैं...। सीएम के अभिनंदन समारोह में राईस मिलरों ने कहा, व्यापारियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने जो नहीं किया, वह कांग्रेस सरकार ने कर दिया। जाहिर है, राईस मिलरों पर राहतों की झड़ी लगाकर सीएम ने व्यापारी समुदाय को बड़ा मैसेज दिया है।  

आईएएस, आईपीएस कांक्लेव

न्यू ईयर में तीन दिन का आईएएस कांक्लेव होने जा रहा तो दो दिन का आईपीएस कांक्लेव होगा। इसमें हिस्सा लेने पूरे प्रदेश से आईएएस, आईपीएस परिवार के साथ राजधानी रायपुऱ पहंुचेंगे। अभी तक की खबर के अनुसार 7 से 9 जनवरी तक आईएएस और 15 और 16 को आईपीएस कांक्लेव होगा। आईएएस, आईपीएस एसोसियेशन द्वारा इसकी तैयारी षुरू हो गई है। काफी सालों से शांत आईपीएस एसोसियेशन भी अब एक्टिव हो गया है। आईएएस और आईएफएस का सीएम के साथ दिवाली मिलन के बाद आईपीएस में निराशा थी। मगर अब आईपीएस एसोसियेशन भी आगे बढ़ा है। 

एक-एक विकेट

इस महीने पुलिस में एक बड़े अफसर रिटायर होंगे तो एक आईएएस से भी। 88 बैच के आईपीएस आरके विज इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। 89 बैच के आईपीएस अशोक जुनेजा को डीजीपी बनाने की वजह से सरकार ने हाल ही में विज को पीएचक्यू से हटाकर संचालक लोक अभियोजन बनाया है। बस्तर आईजी से रायपुर लौटने के बाद बतौर आईजी, एडीजी और स्पेशल डीजी उन्होंने पीएचक्यू में विभिन्न जिम्मेदारियां संभाली। पुलिस महकमे के वे एक मजबूत स्तंभ माने जाते थे। डीजी बनना उनके माथे पर नहीं लिखा था, सो नहीं हुआ। अब उन्हें लोक अभियोजन से ही गुमनामी में विदा होना पड़ेगा। आईएएस में सरगुजा कमिश्नर जे. किंडो इसी महीने रिटायर होने जा रही हैं। सरकार को उनकी जगह कमिश्नर पोस्ट करना होगा। सरकार के पास सिकरेट्री बहुत हो गए हैं, इसलिए कमिश्नर के च्वाइस में अब कोई दिक्कत नहीं। कमिश्नर में बाकी कुछ हो या न हो, गाड़ी-घोड़ा, बंगला मिल जाता है। बाकी हाथ-पैर चलाने वाला हो तब तो कुछ भी संभव है। 

अजब सिस्टम, गजब अफसर

राजस्व देने वाले सरकार के अहम रजिस्ट्री विभाग में कुछ भी हो रहा है। एक प्रदेश में दो-दो मापदंड। इसका एक मजमूं है यह वाकया....जांजगीर की महिला डिप्टी रजिस्ट्रार ने लाफार्ज सीमेंट के माईनिंग लीज को सिर्फ एक हजार शुल्क लेकर नुवोको के हवाले कर दिया तो विभाग के शीर्ष अफसर उसे सुधारनामा मान कर आंख मूंद लिए। और अब देखिए....बलौदा बाजार के रजिस्ट्री अधिकारी ने एक हजार के स्टांप में लाफार्ज सीमेंट कंपनी की माईनिंग लीज को नुवोको को ट्रांसफर करने से इंकार कर दिया। अफसर का कहना था, ये सुधारनामा नहीं, सेल है इसकी रजिस्ट्री होनी चाहिए। कंपनी इसके खिलाफ राजस्व बोर्ड गई। राजस्व बोर्ड ने इसे सुधारनामा करार दिया। तो इसके खिलाफ विभाग के अधिकारी हाईकोर्ट जा रहे हैं। याने एक जगह सुधारनामा और दूसरी जगह हाईकोर्ट में चैलेंज। पंजीयन विभाग के अफसरों की महिमा अपरंपार है। दरअसल, राजस्व बोर्ड भी सुधारनामा नहीं मानता। विभाग की ओर से न तो पूरा पेपर पेश हुआ और न ही कोई अफसर। बहरहाल, खेल बड़ा है। इसकी शुरूआत हुई जांजगीर से। माईनिंग लीज की अगर विधिवत रजिस्ट्री हुई होती तो सरकार के खजाने में 10 करोड़ से अधिक राशि आती। लेकिन, मात्र एक हजार लेकर कपंनी को उपकृत कर दिया गया। अब कंपनी पर ये उपकार ऐसे तो नहीं किया गया होगा। 

मंत्रिमंडल में सर्जरी

तीन साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इशारे में संकेत दिया कि मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जा सकता है। बशर्ते उन्हें हाईकमान से अनुमति मिले। अब सवाल उठता है हाईकमान से अगर हरी झंडी मिले तो कितने मंत्रियों की छुट्टी होगी? बिलासपुर, सरगुजा और दुर्ग संभाग से एक-एक मंत्री की मुश्किलें बढ़ सकती है। बस्तर में महेंद्र कर्मा के नाम का फायदा उठाने पार्टी देवती कर्मा के नाम पर भी विचार कर रही है। उधर, पीसीसी चीफ मोहन मरकाम भी मंत्री बनने के लिए उत्सुक बताए जाते हैं। कुल मिलाकर मामला पेचीदा होगा। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार के निर्देश के बाद भी कलेक्टरों की टीएल बैठकों में पुलिस अधीक्षक क्यों नहीं जा रहे?

2. स्पीकर चरणदास महंत ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर राज्यसभा में जाने की इच्छा व्यक्त की है, ऐसा क्यों?

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

आईएएस का इस्तीफा?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 12 दिसंबर 2021

2014 बैच के आईएएस अमृत टोपनो ने नौकरी से इस्तीफा तो भेजा है मगर दिक्कत यह है कि मजमूं क्लियर नहीं हो पा रहा। चीफ सिकरेट्री, एसीएस टू होम और जीएडी सिकरेट्री को व्हाट्सएप पर आए मैसेज में उपर इस्तीफा लिखा तो है मगर नीचे में उसका कोई उल्लेख नहीं। टोपनो के व्हाट्सएप से मंत्रालय के अधिकारी भी उलझन में पड़ गए हैं....यंग आईएएस का किया क्या जाए। अलबत्ता, जीएडी ने टोपनो को हार्ड पेपर में लेटर भेजने कहा है, मगर अभी तक उनका कोई रिप्लाई नहीं आया है। टोपनो को प्रॉब्लम क्या है, इस बारे में उनके बैच वाले भी कुछ बता नहीं पा रहे। सिर्फ इतना ही पता है कि वे झारखंड लौट चुके हैं।

शैलेष की याद

आईएएस अमृत टोपनो ने इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे से शैलेष पाठक का इस्तीफा जेहन में आ गया। अजीत जोगी सरकार में काफी पावरफुल अधिकारी रहे शैलेष पाठक 2005 में इस्तीफा देकर प्रायवेट सेक्टर में चले गए थे। लेकिन, ढाई-तीन साल बाद उनका वहां जमा नहीं, मन भी बदला। चूकि दिल्ली में अच्छा कंटेक्ट था, सो वहां उन्होंने जमा लिया। मगर पेंच यह था कि राज्य सरकार अनुमोदन करें। डीओपीटी ने शैलेष को भरोसा दिया था कि आप राज्य सरकार से लेटर ओके करा लाओ, बाकी यहां कोई दिक्कत नहीं। मगर यहां सीएम सचिवालय ने उन्हें दो टूक इंकार कर दिया। सीएम सचिवालय के एक सीनियर और दबंग आईएएस ने मुख्यमत्री रमन सिंह से दो टूक कह दिया...सर, इससे गलत परिपाटी बन जाएगी...नौकरी से त्यागपत्र देकर प्रायवेट में चले जाओ और फिर घूम फिरकर लौट आओ। इस तरह पाठक की वापसी का एपीसोड खतम हो गया। 

सीएम की मारुति

नया रायपुर में इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईविंग एंड रिसर्च के लोकापर्ण समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भाषण दे रहे थे...उन्होंने बताया मेरे पास पहले मोटर सायकिल थी। 93 में जब पहली बार विधायक बना तो नया मोटर सायकिल लेने गया। बाइक एजेंसी वाले ने सलाह दी...भैया अब आप विधायक बन गए हो, मोटरसायकिल में मजा नहीं आएगा...अब तो कार होना चाहिए। बाइक एजेंसी वाले की मारुति की एजेंसी भी थी। उसने मुझे मारुति 800 खरीदवा दी। सीएम ने बताया, मारुति ने उनका काफी साथ दिया। चूकि इंस्टीट्यूट को मारुति के साथ पीपीपी मोड में चालू किया जा रहा। सो, समारोह में मारुति के जेपेनिज एमडी और सीओओ भी मौजूद थे। राज्य के मुखिया द्वारा मारुति की तारीफ मिलने से वे बेहद खुश हुए। 

दूसरे आईपीएस

धार्मिक हिंसा के बाद कवर्धा एसपी मोहित गर्ग आखिरकार हटा दिए गए। उनकी जगह पर लाल उमेद सिंह ने वापसी की है। उमेद पहले भी करीब ढाई साल वहां एसपी रह चुके थे। कवर्धा में ये उनकी दूसरी पारी होगी। आईपीएस मेें उनसे पहले सिर्फ रतनलाल डांगी को एक ही जिला में दो बार कप्तान रहने का मौका मिला है। वे कोरबा में दो बार एसपी रहे। वहीं, कलेक्टरों में जिला रिपीट केवल सुबोध सिंह ने किया। वे रायपुर से बिलासपुर गए थे और वहां से लौटकर फिर बिलासपुर।

बेचारे सिकरेट्री

सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी के पहले हफ्ते में आईएएस का प्रमोशन हो सकता है। इस बार 2006 बैच के आईएएस सिकरेट्री बनेंगे और 97 बैच वाले प्रिंसिपल सिकरेट्री। 97 बैच में छत्तीसगढ़ कैडर में तीन आईएएस हैं। सुबोध सिंह, एम गीता और निहारिका बारिक। सुबोध सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। निहारिका बारिक डेढ़ साल की छुट्टी पर। और गीता भी लगभग डेपुटेशन पर ही। लगभग का मतलब ये कि वे छत्तीसगढ़ भवन ही सही, हैं तो दिल्ली में। और यह भी सही है कि किसी भी दिन भारत सरकार से उनका डेपुटेशन का आर्डर आ सकता है। 2006 बैच में अंकित आनंद, श्रुति सिंह, दयानंद, सीआर प्रसन्ना, अलेक्स पाल मेनन, भूवनेश यादव और भारतीदासन हैं। ये सभी सिकरेट्री बन जाएंगे। हालांकि, 2005 बैच को सिकरेट्री बनने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे लेकिन इस बैच में नहीं लगता कि कोई दिक्कत होगी। याने एक साथ सात सिकरेट्री मिलेंगे सरकार को। 26 तो पहले से हैं, ये सात और। याने अब 33 सिकरेट्री। पता नहीं...इतने थोक में सिकरेट्री उपलब्ध होने पर बेचारों को क्या विभाग मिलेंगे।  

नए कलेक्टर, एसपी

तीन नए जिलों का नोटिफिकेशन तो हो गया मगर अभी तक ओएसडी की तैनाती नहीं हुई है। अगर 26 जनवरी के आसपास भी अगर नए जिलों का इनॉग्रेशन करना हो, तब भी अब ओएसडी की नियुक्ति का अब समय आ गया है। जाहिर है, नए जिलों में कलेक्टर, एसपी बनने वाले आईएएस, आईपीएस सरकार के आदेश पर टकटकी लगाए बैठे हैं। 

मखाना और मैडम 

बैठकों में सीएम भूपेश बघेल सिर्फ भृकुटी ही नहीं चढ़ाते...अगर किसी अधिकारी का दिन खराब हो तो बात अलग है....वरना, चुटकी, हंसी-ठिठोली भी हो जाती है। इसी हफ्ते सीएम हाउस में आयोजित गोधन न्याय योजना के भुगतान की बैठक में आरंग के एक किसान वीवीआईपी के लिए मखाना लेकर आए थे। लेकिन, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को देने के बाद अधिकारियों का नम्बर आया तो मखाना खतम हो गया। मुख्यमंत्री इसको समझ गए। जैसे ही बैठक खतम हुई उन्होंने अपना मखाना दो सीनियर आईएएस को यह कहते हुए दे दिया कि ले जाओ, आपलोगों की मैडम खुश हो जाएंगी। इस पर जमकर ठहाके लगे। 

अफसरों का भगवा ड्रेस

पिछले हफ्ते राजधानी में मैराथन दौड़ हुआ। इसमें हिस्सा लेने एक एक्स चीफ सिकरेट्री समेत कई बड़े अधिकारी पहुंचे। मैराथन को हरी झंडी दिखाने के ठीक पहले आयोजकों ने प्रतिभागियों को चटख भगवा रंग का टीषर्ट पहना दिया। अब अधिकारियों को टीशर्ट निकालते बने, न पहनते। कार्यक्रम में मीडिया वाले भी थे, सो टीशर्ट उतार भी नहीं सकते थे। लिहाजा, कई अफसर बीच में ही मैराथन छोड़ टीशर्ट उतार दिया तो कुछ लोग जैसे ही दौड़ खतम हुई, सबसे पहले ड्रेस बदला। डर था, कहीं कोई देख लिया तो....।    

तीन उमेश

सरकार की छबि चमकाने वा


ले जनसंपर्क विभाग में पहले दो उमेश थे। दोनों उमेश मिश्रा। इनको आईडेंटीफाई करने के लिए कहा जाता था दिल्ली वाले उमेश और दूसरे को संवाद वाले उमेश। एक को दिल्ली वाले इसलिए क्योंकि वे लंबे समय तक दिल्ली में पोस्टेड रहे। जनसंपर्क में अब एक और उमेश की इंट्री हो गई है। याने तीसरा उमेश। ये उमेश पटेल डिप्टी कलेक्टर हैं। पोस्ट है संवाद महाप्रबंधक। इन्हें अब क्या कहा जाए...ये दुविधा दूर की...सीपीआर ने। उन्होंने व्यवस्था दी है, इन्हें फुल नेम उमेश पटेल से आईडेंटिफाई किया जाए।    

रायपुर की पोलिसिंग

6 दिसंबर की रात राजधानी के टिकरापारा इलाके में तनाव की स्थिति निर्मित हुई। स्थिति बिगड़े मत, एसएसपी प्रशांत अग्रवाल सुबह पांच बजे तक टिकरापारा थाने में मोर्चा संभाले रहे। कहने का आशय यह कि अगर सीनियर और संजीदा अफसर होते तो एसएसपी की वहां जरूरत ही नहीं पड़ती। दरअसल, राज्य तो अलग बन गया मगर 21 साल गुजर गए...राजधानी की पोलिसिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। रायपुर जैसे 12 लाख से अधिक आबादी वाले शहर को कंट्रोल करने के लिए सिर्फ एसएसपी से हमाली नहीं कराई जा सकती। जब भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो गया, उसके उलट रायपुर के कप्तान के पास अदद एक सिटी एसपी तक नहीं है। 13 साल पहले स्व0 विनोद चौबे जरूर अषोक जुनेजा के एसएसपी रहने के दौरान सिटी एसपी रहे। लेकिन, उनके ट्रांसफर के बाद यह पद खतम हो गया। रायपुर जैसे शहर को संभालने के लिए अब जरूरी हो गया है, कप्तान को मजबूत हैंड दिया जाए। कम-से-कम दो एसपी याने एक सिटी और एक एसपी ग्रामीण की पोस्टिंग हो। दोनों आईपीएस हो। उसके बाद फिर चार जोन में शहर को बांटकर चार एडिशनल एसपी। 18 लाख की आबादी वाले भोपाल में एडीजी रैंक का पुलिस कमिश्नर। फिर डीआईजी रैंक के चार एडिशनल कमिश्नर। एसपी रैंक के 12 डिप्टी कमिश्नर और एडिशनल एसपी लेवल के 30 एएसपी। और 12 लाख वाले रायपुर की सुरक्षा....? एक एसएसपी और दो एडिशनल एसपी के भरोसे। वक्त आ गया है, सरकार को राजधानी की पोलिसिंग सेटअप को दुरूस्त करने पर विचार करना चाहिए। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. डेपुटेशन से लौट रहे राजेश मिश्रा को क्या कोई महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिलेगी?

2. क्या ये सही है कि एनआरडीए ने नया रायपुर में नौकरशाहों की जमीनों का रेट बढ़ाने उनके सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनाने का टेंडर कर दिया है?

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

बेचारे बैचलर आईएएस

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 दिसंबर 2021

एक युवा आईएएस को सरकार ने हाल ही में हटा दिया। पता चला, वे दो महीने से दफ्तर नहीं आ रहे थे। आईएएस जैसी देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस में सलेक्ट होने के बाद भी इस कदर...चिकित्साविज्ञानी मानते हैं, एक उम्र के बाद बैचलर नहीं रहना चाहिए। बैचलर रहने के कारण छत्तीसगढ़ के कुछ और नौकरशाहों की वर्किंग प्रभावित हो रही है। एक आईएएस कलेक्टर बनने से चूक गए। सूबे में कई अफसर दो-दो, तीन-तीन घरों का सुख ले रहे हैं और ये बैचलर बेचारे एक घर नहीं बसा रहे। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को बैचलर अफसरों के लिए कुछ करना चाहिए...काउंसलिंग का बंदोबस्त ही सही, ताकि टाईम पर वे घर-गृहस्थी बचा लें। 

बेचारे तीन कलेक्टर!

बेमेतरा, कवर्धा और मुंगेली, इन तीन जिलों के अधिकारी डायरेक्ट कॉन्फ्रेंस हो या वीडियोकांफ्रेंसिंग, पारफारमेंस को लेकर घिर जाते हैं। सीएस अमिताभ जैन ने हाल ही में वीसी लिए, उसमें भी इन जिलों के कलेक्टरों को खासतौर पर निर्देश दिया गया। दरअसल, इन तीनों जिलों में डीएमएफ है नहीं, लिहाजा इन कलेक्टरों के हाथ बंधे होते हैं। अब मुंगेली कलेक्टर के पास रिसोर्सेज के नाम पर है क्या? जिन जिलों में डीएमएफ हैं, वहां संसाधनों की कोई कमी नहीं होती। वैसे, इस बार कोरिया कलेक्टर श्याम धावड़े की वीसी में तारीफ हो गई। सीएस बोले, तुम काम अच्छा करते हो मगर बोलते कम हो, इस बार तुम धड़धड़ाकर बोले। इस बार की वीसी की खास बात यह रही कि सभी कलेक्टरों को बोलने का मौका मिला।

महिला एसपी का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ की 2008 बैच की आईपीएस पारुल माथुर बिलासपुर की एसएसपी बनते ही देश में सबसे अधिक जिलों की कप्तान रहने वाली महिला आईपीएस बन गई हैं। देश में अभी तक पांच जिलों की कप्तानी का रिकार्ड है। पारुल छठवीं बार एसपी बनीं हैं। पांच बार जिले की और एक बार लंबे समय तक रेलवे एसपी रही। बीजेपी सरकार में उनके बारे में कहा जाने लगा था कि सरकार ने रेलवे एसपी बनाकर लगता है, भूल गई। बाद में सरकार बदली तो पारुल की किस्मत भी पलटी। वे मुंगेली, जांजगीर, गरियाबंद होते हुए बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले की कप्तान बन गईं। बीजेपी के पीरियड में उनका सबसे पहला जिला बेमेतरा रहा। लेकिन, पारिवारिक वजहों से वे लंबी छुट्टी पर चली गईं थी। फिलहाल, गौर करने वाली बात यह है कि ये चार जिले उन्होंने बिना ब्रेक किया है। इसलिए, कोई आश्चर्य नहीं कि वे एकाध और बड़ा जिला कर लें। पारुल के पिता राजीव माथुर भी आईपीएस अफसर रहे हैं। रायपुर के चर्चित आईजी भी रहे। लेकिन, काबिल होने के बाद भी पीएचक्यू में उन्हें मौका नहीं मिला तो सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए। बहरहाल, पारुल का जांजगीर का कार्यकाल वैसा नहीं रहा...। बिलासपुर के रूप में उन्हें सरकार ने बड़ा अवसर दिया है....उन्हें दबंग महिला एसपी के तौर पर छबि निर्मित करने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए। 

ग्रह-नक्षत्र का फेर

छत्तीसगढ़ में आईपीएस के दिन बदल नहीं रहे। कांस्टेबल और ड्राईवर एसपी लोगों को निबटा दे रहे हैं। बलौदा बाजार के एसपी आईके एलेसेला ने अमर्यादित बातें की....ये कोई नया नहीं था....एसपी अपने सिपाही, दरोगा से किस अंदाज में बात करते हैं...ये पुराने समय से चला आ रहा है। हम एसपी की असंसदीय भाषा से इतेफाक नहीं रखते, न रखना चाहिए, वाकई उनका बर्ताव आपत्तिजनक था। लेकिन कांस्टेबल मोबाइल से अपने साहबों को ट्रेप करने लगें तो समझ जाइये फिर पुलिसिंग का क्या होगा? रिकार्डिंग सुन आप समझ जाएंगे कि किस तरह कांस्टेबल एसपी को ट्रेप करने के लिए बहस को न केवल लंबा खींचने की कोशिश कर रहा बल्कि जुबान लड़ाकर फंसा रहा है....भला कांस्टेबल कभी एसपी को माई-बाप बोलता है। ये पुलिस के ग्रह-नक्षत्र का फेर है....नए डीजीपी अशोक जुनेजा को कुछ पूजा-पाठ करानी चाहिए।  

'बी' का फेर     

छत्तीसगढ़ में बी नाम से छह जिले हैं...बालोद, बेमेतरा, बलौदा बाजार, बस्तर, बिलासपुर और बलरामपुर। इन एक जिले में किसी एसपी की पोस्टिंग होती है तो फिर उसका 'बी' का एकाध सर्कल लगता ही है....। मसलन, आरिफ शेख। आरिफ सबसे पहले बालोद गए। वहां से बलौदा बाजार, बस्तर और फिर बिलासपुर। याने फोर 'बी'। हालांकि, वे बिलासपुर से रायपुर का एसएसपी बन 'बी' के चक्रव्यूह से निकल गए। जीतेंद्र मीणा भी बालोद से बस्तर पहुंच गए। जीतेंद्र का भी 'बी' का चक्कर नहीं छूटा....अपग्रेडेशन जरूर हुआ। सदानंद बलरामपुर और बालोद। इसी तरह पारुल माथुर का पहला जिला बेमेतरा रहा और अब बिलासपुर। दीपक झा आखिरी-आखिरी में अवश्य बी के चक्रव्यूह में फंस गए। बलौदा बाजार के बाद बस्तर, फिर बिलासपुर और अब बलौदा बाजार। बलौदा बाजार मतलब कुछ दिन में उसका आधा हिस्सा सारंगढ़ में चला जाएगा। 

सबसे बड़ा सवाल

बलौदा बाजार एसपी क्यों नपें, बताने की जरूरत नहीं। कवर्धा की धार्मिक हिंसा में मोहित गर्ग को जाना ही था।लेकिन, ब्यूरोक्रेसी में सबसे बड़ा सवाल है...बिलासपुर एसपी दीपक झा का क्या हुआ...वे तो ठीक से अभी पिच पर जम भी नहीं पाए थे। इसकी असली वजह आदेश निकालने वाले गृह विभाग के लोग बता पाएंगे। मगर छन-छनकर जो खबरे आ रही हैं, पिछले दिनों बिलासपुर के कोतवाली थाने में घेराव और नारेबाजी को ढंग से हैंडिल नहीं किया गया...थाने में सरकार के खिलाफ नारे लगते रहे...इसे अच्छे वे में नहीं लिया गया। 

अब नक्सल नहीं!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जब भी कभी दिल्ली मीडिया से मुख़ातिब होते थे तो फोकस हमेशा नक्सल समस्या पर ही होता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुख्यमंत्री मीडिया से जुड़े तीन कार्यक्रमों में गये और उनसे नक्सल समस्या को लेकर कोई प्रश्न नहीं पूछा गया। अलबत्ता, राष्ट्रीय मंच पर छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा हुई, किसानों के ऋण माफ़ी की मांग हुई और गोबर ख़रीदने की गोधन योजना का विस्तार से ज़िक्र हुआ। जिस तरह से मुख्यमंत्री ने ममता बैनर्जी के ताजा कांग्रेस विरोधी रुख़ पर प्रश्न उठाये...प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद ममता के बदले सूर पर अटैक किया....अखिलेश यादव की कांग्रेस पर की गयी टिप्पणी का जिस बेबाकी से प्रतिकार किया, वह उनका सियासी कांफिडेंस बताता है। 

नेताओं को झटका 

बीजेपी के कोर ग्रुप समेत संगठन के पदों पर ठीक-ठाक दायित्व न मिलने से भाजपा के कई नेता खफा बताए जा रहे हैं। एक पूर्व मंत्री सूची जारी होने के बाद दिल्ली में हैं। हालांकि, झटका तो अमर अग्रवाल और अजय चंद्राकर को भी लगा होगा। लेकिन, उन्हें कम-से-कम नगरीय और पंचायतों में कोआर्डिनेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अमर पार्षदों के बीच जाकर समन्वय के साथ आंदोलनों की रूप-रेखा तैयार करवाएंगे तो अजय पंचायत प्रतिनिधियों को कोआर्डिनेट करेंगे। किन्तु कुछ नेताओं को तो कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में, उनका दुखी होना लाजिमी है। 


अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले में पुलिस को बदनाम करने फर्जी गोली कांड हुआ और विवशता में पुलिस उसे जाहिर भी नहीं कर पाई?

2. पारुल माथुर को छोटे जिला से बड़ा जम्प मिला तो क्या अब कोरिया एसपी संतोष सिंह को भी उम्मीद रखनी चाहिए?

रविवार, 21 नवंबर 2021

छत्तीसगढ को बड़ा एक्सपोजऱ

 तरकश, 21 नवंबर 2021

संजय के दीक्षित

भारत सरकार के कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को अगर देश के दीगर शहरों के मेयर, अरबन सिकरेट्री और कमिश्नरों को पुरस्कार देने का अवसर मिल जाए, तो इसे क्या कहेंगे....सम्मान की बात न! दरअसल, दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित स्वच्छता पुरस्कार कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चीफ गेस्ट थे। और यूनियन अरबन मिनिस्टर हरदीप सिंह पुरी अध्यक्ष। चूकि छत्तीसगढ़ को देश में सबसे स्वच्छ शहर का पुरस्कार मिलना था, लिहाजा उन्हें राष्ट्रपति के बगल में बिठाया गया था। मुख्य पुरस्कार देने के बाद राष्ट्रपति कार्यक्रम से रुखसत हो गए। इसके बाद हरदीप पुरी को भी किसी कार्यक्रम में जाना था, सो तय किया गया कि सबसे स्वच्छ राज्य का मुखिया अगर मौजूद हैं, तोे उनके हाथों क्यों नहीं। फिर क्या था...विभिन्न राज्यों के करीब 50 शहरों को उनके हाथों पुरस्कार मिला। वैसे भी विज्ञान भवन में आज छत्तीसगढ़ ही छाया हुआ था। सबसे स्वच्छ राज्य के साथ ही कई केटेगरी में उसके शहरों को प्रथम स्थान मिला था। उपर से छत्तीसगढ़ के मुखिया ने न केवल पुरस्कार ग्रहण किया बल्कि दूसरों को प्रदान भी किया।  

नींद खराब

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कार्तिक पूर्णिमा के दिन हर बार की तरह इस बार भी सुबह साढ़े चार बजे महादेव घाट पहुंच गए थे। तय कार्यक्रम के अनुसार उनके एडवाइजर प्रदीप शर्मा सुबह चार बजे सीएम हाउस पहुंच गए। सीएम का काफिल जैसे ही चार बजकर दो मिनट पर महादेव घाट के लिए रवाना होने के लिए स्टार्ट हुआ, कई कांग्रेस नेता भी नींद भरी आंखों से भागते हुए सीएम के काफिले में शामिल हो गए। इनमें दो नेता ऐसे थे, जिनकी नौ बजे से पहले सुबह होती नहीं। अब राज्य के मुखिया के साथ महादेव घाट में डूबकी लगाते फोटो फ्रेम में आना था, सो बेचारे रात आखों में काटी। किसी ने पूछ दिया, अरे आप भी! तो जवाब मिला...क्या बताउं भाई! अपन दाउ थोड़े ही हैं...एक बार सो जाते तो फिर सुबह उठ नहीं पाते। सो, टीवी देखते रात निकाल दिए। इसके बाद मीडिया ने मुख्यमंत्री से पूछा, इतना सुबह आप कैसे उठकर स्नान करने आ जाते हैं। मुख्यमंत्री बोले, जब गाड़ी नहीं थी तब भी कार्तिक में 15 दिन पाटन से बैलगाड़ी में सुबह चार बजे महादेव घाट स्नान करने आता था। अब तो रायपुर में हूं, सुविधा भी है।

योग गुरू

ऑल इंडिया सर्विसेज के आफिसर फिटनेस पर खासा ध्यान देते हैं, मगर बिलासपुर आईजी रतन डांगी तो उससे एक कदम आगे निकल गए हैं। अब वे दौरे पर निकलते हैं, तो वहां के पुलिस कर्मियों को योग कराने लगे है। हाल ही की बात है, वे जांजगीर में थे। वहां उन्होंने मैदान में बाबा रामदेव टाईप दरी बिछाकर धुनी जमा दिए। पुलिस अधिकारियों को उन्होंने घंटे भर से ज्यादा योग कराया। 

सुब्रत सीएस क्यों?

डीजीपी बदलते ही मीडिया में चीफ सिकरेट्री बदलने की अटकलें शुरू हो गई है। खबरंे चल रहीं...चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू रिप्लेस करेंगे। सवाल है, अमिताभ को हटाया क्यों जाएगा और सुब्रत अभी सीएस बनना क्यों चाहेंगे। 92 बैच के आईएएस सुब्रत का रिटायरमेंट 2028 में है। याने अभी करीब-करीब सात साल की सर्विस बाकी है। इतने लंबे समय तक कोई सीएस रहता नहीं। अभी बनने का मतलब है, सर्विस का अंतिम समय राजस्व बोर्ड जैसे बियाबान में गुजरेगा। सरकार से अगर केमेस्ट्री बहुत अच्छी भी हो, तो भी तीनेक साल बाद उल्टी गिनती चालू हो जाती है। पी जाय उम्मेन और विवेक ढांड इसके एग्जाम्पल हैं। सुब्रत क पोस्टिंग भी कोई ऐसी-वैसी नहीं है...सीएम के एसीएस हैं। अमिताभ जैन अगर हिट विकेट नहीं हुए तो जाहिर है 2022 तो पूरा निकाल लेंगे। ऐसी संभावना है, सीएस के तौर पर तीनेक साल पूरे करने के बाद वे भारत सरकार चले जाएं। उनका रिटायरमेंट 2025 में है। तब जाकर भले ही कुछ हो। मगर अभी ऐसा कुछ होना प्रतीत नहीं होता।   

गरियाबंद में एसएसपी 

2008 बैच के जिन पांच आईपीएस अधिकारियों को सलेक्शन ग्रेड मिला है, उनमें पारुल माथुर और प्रशांत अग्रवाल भी शामिल हैं। पारुल गरियाबंद और प्रशांत रायपुर के पुलिस अधीक्षक हैं। सलेक्शन ग्रेड का मतलब अब ये दोनों एसपी से एसएसपी हो गए। याने अब गरियाबंद में भी एसएसपी होगा। आमतौर पर बड़े जिलों में एसएसपी की पोस्टिंग की जाती है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी सरकार ने पहली बार मुकेश गुप्ता को रायपुर का एसएसपी बनाया था। मुकेश के बाद रमन सिंह सरकार में डीएम अवस्थी और अशोक जुनेजा एसएसपी बनें। इसके बाद तो फिर कई नाम जुड़ गए। हालांकि, बालोद जैसे छोटे जिले में 2007 बैच के आईपीएस जीतेंद्र मीणा एसएसपी रहे। उसके बाद उन्हें बड़ जम्प मिला और वे फिलवक्त जगदलपुर के एसएसपी हैं। तो क्या इसे समझा जाए...पारुल को भी कोई बड़ा जिला मिलेगा?

छूट गई प्रमोशन की ट्रेन

2008 बैच के छह में से पांच आईपीएस अफसरों को प्रमोशन के साथ सलेक्शन ग्रेड मिल गया। मगर राजनांदगांव के एसपी श्रवण गर्ग का नाम छूट गया। बताते हैं, श्रवण का एसीआर नहीं पहंुच पाया। ये भी अजब है....11 महीने लेट प्रमोशन हो और किसी एसपी का एसीआर छूट जाए। ताज्जुब है, एसपी होने के बाद भी वे अपने एसीआर का ध्यान नहीं रख पाए। गृह विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, एसीआर आएगा, तो उन्हें प्रमोशन मिल जाएगा।

सिकरेट्री सड़क पर 

राज्य की सड़कों की स्थिति जानने पीडब्लडी सिकरेट्री सिद्धार्थ परदेशी सड़क मार्ग से कटघोरा होते हुए अंबिकापुर गए। वहां से फिर पत्थलगांव होते जशपुर भी। उनके साथ ईएनसी समेत पूरा अमला था। अभी तक पीडब्लूडी के मीटिंग के लिए मैदानी अधिकारियों को रायपुर बुला लेते थे और अगर जशपुर, पत्थलगांव तरफ जाना भी हुआ तो सराईपाली, उड़ीसा होते हुए जशपुर जाते थे। मगर इस बार सिकरेट्री साथ में थे, इसलिए मजबूरी में ही सही अफसरों को पत्थलगांव इलाके की जर्जर सड़कों को नापना पड़ा।  

अंत में दो सवाल आपसे


1. क्या आईएफएस संजय शुक्ला का कुछ और अच्छा होने वाला है?

2. मुख्यमंत्री ने एसपी साहबों को टाईट कर दिया है, क्या कलेक्टरों के साथ भी ऐसा कुछ होगा?

शनिवार, 13 नवंबर 2021

सीएस-डीजीपी की जोड़ी

 संजय के दीक्षित

तरकश, 14 नवंबर 2021

रायपुर में कलेक्टर और एसएसपी रहने के दौरान आरपी मंडल और अशोक जुनेजा की जोड़ी बड़ी चर्चित रही...उन्हें जय-बीरु कहा जाता था। वक्त का पहिया घूमा...जय चीफ सिकरेट्री बन गए मगर उन्हें ये कसक रह गई...काश! वे और बीरु एक साथ सीएस और डीजीपी होते। चलिये देर से ही सही जुनेजा भी डीजीपी बन गए। उनकी पोस्टिंग के साथ ही चीफ सिकरेट्री के साथ उनकी अनूठी जोड़ी बन गई है। पहला, दोनों एक ही बैच के हैं। अमिताभ जैन 89 बैच के हैं और जुनेजा भी। दूसरा, अमिताभ और अशोक दोनों मेष राशि वाले हैं, दोनों का नाम अ से शुरू होता है। और तीसरा, जो बिरले हीे होते हैं....छत्तीसगढ़ में कभी नहीं हुआ, मध्यप्रदेश में भी किसी को याद नहीं। अमिताभ और अशोक 97 में मध्यप्रदेश के राजगढ़ में कलेक्टर और एसपी रह चुके हैं। और अब सीएस और डीजीपी। जाहिर है, दोनों में ट्यनिंग भी अच्छी है।  

कमजोर बॉल पर छक्का

नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रेस कांफ्रेंस कर धान खरीदी में लेटलतीफी को देखते सरकार से किसानों को धान का रेट 28 सौ रुपए क्विंटल देने की मांग की। लेकिन, ये मामला उल्टा पड़ गया। मुख्यमंत्री ने धरम के बॉल लांग ऑन पर छक्का जड़ दिया। उन्होंने 28 सौ का ऐलान ही नहीं किया बल्कि कैलकुलेशन भी बता दिया कि चुनाव आते-आते किस तरह छत्तीसगढ़ के किसानों को धान का रेट 28 सौ मिलने लगेगा। बीजेपी सरकार में 18 सौ में धान खरीदती थी। अब अगर हजार रुपए ज्यादा मिलेगा तो समझा जा सकता है क्या होगा? बीजेपी को बैट्समैन को देखते बॉल फेंकना चाहिए।

डीजीपी की बिदाई!

अशोक जुनेजा से पहिले छत्तीसगढ़ में 10 डीजीपी हुए। उनमें से सिर्फ चार ही डीजीपी किस्मती रहे, जो पुलिस प्रमुख की कुर्सी से बिदा हुए। बाकी को किन्हीं-न-किन्हीं वजहों से बीच में ही रुखसत होना पड़ा। टेन्योर पूरा न करने वालों में पहला नाम छत्तीसगढ़ के पहले डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला का है। उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले अजीत जोगी ने हटाकर पीएससी का फर्स्ट चेयरमैन अपाइंट कर दिया था। उनके बाद वीके दास अपना टेन्योर कंप्लीट कर पाए मगर अशोक दरबारी के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्हें रमन सिंह ने रिटायरमेंट से पहले पीएससी की कमान सौंप दी। दरबारी के बाद डीजी बनें ओपी राठौर का एक कार्यक्रम में भाषण देते समय दिल का दौरा पड़ने से नहीं रहे। सबसे बूरा हुआ सबसे ताकतवर डीजीपी विश्वरंजन का। दो साल तक तो उनका जलजला सबने देखा। लेकिन, बाद में रमन सरकार इस तरह खफा हुई कि वे बेटी से मिलने अहमदाबाद जा रहे थे....अहमदाबाद एयरपोर्ट पर फ्लाइट से जैसे ही वे उतरे चीफ सिकरेर्ट्री पी जाय उम्मेन ने उन्हें फोन कर बताया कि सरकार ने आपको हटाकर अनिल नवानी को डीजीपी बना दिया है। उनके बाद दिसंबर 2018 में जब सरकार बदली तो डीजीपी एएन उपध्याय को हटाकर हाउसिंग कारपोरेशन भेज दिया गया। और अब डीएम अवस्थी रिटायरमेंट से करीब डेढ़ साल पहले डीजी पद से बिदा हो गए। बहरहाल, वीके दास, आरएलएस यादव, नवानी और रामनिवास...ये चार ही आईपीएस ऐसे हुए छत्तीसगढ़ में, जो डीजीपी की कुर्सी से रिटायर हुए। 

आईजी, एसपी रोड पर

सरकार चाहे तो कुछ भी संभव है और पुलिस चाहे तो परिंदा पर नहीं मार सकता.... मुख्यमंत्री के पुलिसिंग पर तीखे तेवर के बाद ये साफ हो गया है। आईजी और एसपी वातानुकूलित कमरों से निकलकर रोड पर कुर्सी-टेबल लगाए बैठे दिख रहे हैं। ऐसा दृश्य छत्तीसगढ़़ में कभी दिखा नहीं। रायपुर पुलिस ने एक ही दिन में तीन कमरों में भरा 60 लाख का हुक्का सामग्री पकड़ लिया। दूसरे जिलों में भी ऐसी ही दबिश दी जा रही। मगर ये दो-चार दिन दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए। अगर ये कंटीन्यू कर गया तो निश्चित तौर पर क्राइम पर अंकुश लगेगा। वैसे भी पुलिस चाह ले तो 70 परसेंट अपराध कम हो जाएं। आखिर, हम सभी बचपन से सुनते आएं हैं...पुलिस को सब पता होता है। बस सीएम को महीने-दो महीने में एक बार रिव्यू कर अपना तेवर दिखाते रहना होगा। 

22 दिन में दूसरा फंक्शन

कोरोना के बाद आईएएस एसोसियेशन एक्शन में आ गया है। 21 अक्टूबर को कलेक्टर कांफ्रेंस के बाद होटल सयाजी में बड़ी पार्टी हुई और अब 13 नवंबर को 21 रिटायर आईएएस अफसरों का फेयरवेल देने के साथ ही दिवाली मिलन किया जा रहा है। याने 22 दिन में दूसरी पार्टी। हालांकि, आज की पार्टी में अफसरों को 21 अक्टूबर वाला सेलिब्रेशन का आनंद नहीं आएगा। इसमें सिर्फ डिनर होगा क्योंकि, आज के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रहेंगे।  

स्पीकर खफा

एक सीनियर मंत्री के ढीले-ढाले रवैये से विधानसभा अध्यक्ष इतने नाराज हैं कि एक रोज उनके मुंह से निकल गया...अब मैं कभी कोई काम नहीं बोलूंगा। उनके एक बेहद करीबी बताते हैं, मंत्री को किसी काम के लिए भैया ने तीन महीने में तीन बार रिमाइंड किया। उसके बाद भी आदेश नहीं निकला। 

ऐसे भी स्पीकर

छत्तीसगढ़ बनने के बाद दबंग कांर्ग्रेस नेता राजेंद्र प्रसाद शुक्ल विधानसभा के स्पीकर बनाए गए थे। एक बार उनके कोटा निर्वाचन क्षेत्र में उपद्रव के बाद कर्फ्यू


लग गया। पुलिस ने लोगों पर जमकर लाठियां भांजी। शुक्लाजी ने एसपी को फोन किया। उसके बाद भी पुलिस की कार्रवाई नहीं रुकी। इसके बाद उन्होंने तेवर दिखाया...वे मैसेज कराए, पुलिस अगर अब भी नहीं रुकी तो विधानसभा में सिस्टम को नंगा कर दूंगा। उनके मैसेज का असर यह हुआ कि तत्कालीन गृह मंत्री नंदकुमार पटेल भागते हुए शुक्लाजी के बंगले पहुंचे....खेद जताया। सीएम ने भी तब के एसपी को फटकार लगाई। तब जाकर मामला शांत हुआ।                         

अंत में दो सवाल आपसे

1. इस बात में कितन सत्यता है कि डीजीपी की कुर्सी जाने में उद्योगपति सोमानी अपहरण कांड में पुलिस टीम को इंक्रीमेंट न मिलना भी एक वजह रही?

2.राज्यपाल ने सबको चौंकाते हुए झीरम कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट सरकार को कैसे भेज दी?

शनिवार, 6 नवंबर 2021

हिमाचली टोपी

 तरकश, 7 नवंबर 2021

संजय के दीक्षित

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजधानी के चुनिंदा संपादकों और पत्रकारों को दिवाली मिलन पर आमंत्रित किया था। सीएम हिमाचली टोपी पहनकर पत्रकारों के बीच पहुंचे तो लगा पत्रकारों के बीच खुसुर-पुसुर होने...क्या बात है पूर्व सीएम भी ऐसे समय में हिमाचल के टोपी पहनते थे और वर्तमान भी...दोनों को आखिर टोपी देने वाला आदमी जरूर कोई एक होगा। इस दौरान एक टेबल पर पत्रकारों के बीच जब मुख्यमत्री पहुंचे तो हास-परिहास के अंदाज में इस पर सवाल हो गया। मुख्यमंत्री ने भी उत्सुकता शांत कर दी। उन्होंने बताया कि हिमाचल के चुनाव प्रचार में गए थे, तो वहां कार्यक्रम में लोगों ने हिमाचली टोपी पहनाई तो उसे लेते आए कि यहां पहनना पड़ेगा। उन्होंने ये भी बताया कि उनके बड़े पिताजी के निधन की सूचना मिलने पर वे कैसे कार्यक्रम निरस्त कर वापिस लौटना तय कर लिए थे।   

एक्सटेंशन 

एक्स चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर को रिटायर होने के बाद रांज्य सरकार ने 2019 में सहकारिता निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग दी थी। निर्धारित दो साल का कार्यकाल पूरे हो जाने पर पता चला है, सरकार ने उनके आदेश को रिनीवल कर दिया है। याने कुजूर अब इस पद पर आगे भी कंटीन्यू करेंगे। पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग में कुजूर पहले रिटायर नौकरशाह होंगे, जिन्हें एक्सटेंशन मिला है।

 ट्रांसफर लिस्ट


दिवाली के बाद अब कलेक्टर, एसपी की धड़कनें फिर बढ़ने लगी है। दरअसल, कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद चर्चा थी कि एक लिस्ट निकलेगी। मगर दिवाली को देखते सरकार ने इसे टाल दिया था। अब चूकि दिवाली निकल गई है लिहाजा टांसफर की अटकलें फिर शुरू हो गई है। खबर है, तीन-चार जिलों के कलेक्टर इधर-से-उधर हो सकते हैं। तो वहीं दो-तीन एसपी भी बदले जा सकते हैं। लेकिन, जब लिस्ट निकलेगी तब इसकी वास्तविक संख्या पता चल पाएगी। क्योंकि, कई बार ऐसा देखा गया है कि लिस्ट निकलते-निकलते चेन की साइज बढ़ गई। बहरहाल, जब तक लिस्ट नहीं आएगी, कलेक्टर, एसपी की बेचैनी बनी रहेगी।   

जय-बीरू

मुख्यमंत्री ने कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में इस बात पर खास जोर दिया था कि कलेक्टर्स, एसपी में बेहतर कोआर्डिनेशन हो और महीने में कम-से-कम जिले का एक दौरा वे साथ करें। इसके बाद लगता है, कुछ कलेक्टरं, एसपी पर इसका असर पड़ा है। हाल की बात है, एक एसपी मुश्किल में फंसे तो उस जिले के कलेक्टर ने हर वो प्रयास किया, जिससे मामला एसपी के खिलाफ न जाए। ठीक भी है। वैसे पहले कोआर्डिनेशन होता भी था। कलेक्टर, एसपी मुख्यालय से बाहर अगर जाते थे, तो एक साथ। ये सिर्फ छत्तीसगढ़ और अनडिवाइडेड मध्यप्रदेश की बात नहीं, पूरे देश में ऐसा होता था। आरपी मंडल और अशोक जुनेजा जब रायपुर के कलेक्टर, एसएसपी रहे तब उनमंें ऐसी ट्यनिंग थी कि उन्हें जय-बीरू की जोड़ी कही जाती थी। 

कुत्ते की खोज

छत्तीसगढ़ के एक एनजीओ ने वन मुख्यालय में एक प्रपोजल दिया है। प्रपोजल का सब्जेक्ट दिलचस्प है....हैरान भी कर सकता है। बिलासपुर जिले के अचानकमार टाईगर रिजर्व में कुत्तों की सेहत को लेकर एनजीओ चिंतित है। वह एक स्टडी करना चाहता है कि कुत्तों को अचानकमार में खाने-पीने को मिल रहा या नहीं। इसके लिए सरकार से 25 लाख रुपए मांगा गया है। अब देखना है, वन विभाग इस पर क्या फैसला लेता है। 

झीरम की रिपोर्ट

जस्टिस प्रशांत मिश्रा एकल जांच आयोग ने जीरम नक्सली हमले की रिपोर्ट राज्यपाल अनसुईया उइके को सौंप दी है। आयोग की तरफ से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने राजभवन में राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी। राज्यपाल अब रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को भेजेगी। वैसे समझा जाता है, जस्टिस प्रशांत मिश्रा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बन गए हैं। इसलिए चीफ सिकरेट्री की बजाए रजिस्ट्रार जनरल ने राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी होगी। वैसे भी, सरकार का संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1 पुलिस जुआ से जितनी राशि बरामद करती है, वास्तविक फिगर उससे कितने गुणा अधिक रहता होगा?

क्या छत्तीसगढ़ भाजपा में भी पिछडे वर्ग का वर्चस्व बढ़ रहा है?

रविवार, 31 अक्तूबर 2021

दिवाली खराब नहीं

 तरकश, 31 अक्टूबर 2021

संजय के दीक्षित

कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद एक ट्रांसफर लिस्ट निकलने की चर्चा थी। मगर आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्योत्सव के चलते सरकार ने इसे आगे बढ़ा दिया। अब सुनने में आ रहा कि सरकार किसी कलेटर, एसपी के परिवार की दिवाली खराब नहीं करना चाहती। इसलिए, लिस्ट अब दिवाली के बाद निकाली जाएगी। सरकार कितना भी उदारता दिखला लें, जिन चार-पांच अफसरों के नाम हटने वालों में चर्चा में हैं, उनकी दिवाली पहले जैसी थोड़े ही रहेगी। ठेकेदार, सप्लायर बेहद चालाक होते हैं। दिवाली की की लेन-देन में वे डंडी मार ही देते हैं।

कागजों में सीनियर

यह पहला मौका होगा, जब पीएससी ने महीने भर की आड़ में दो मेंस परीक्षा का रिजल्ट जारी किया है। पीएससी-2019 का सितंबर में और पीएससी-2020 का 29 अक्टूबर को। अब ऐसा क्यों हुआ, कोरोना से लेकर अलग-अलग कारण गिनाए जा सकते हैं। मगर पते की बात यह है कि कोरोना के बाद भी नीट और यूपीएससी के एग्जाम हुए और उसके रिजल्ट भी जारी हुए। किसी का सेशन बेकार नहीं हुआ। बहरहाल, एक महीने के अंतराल में दो रिजल्ट घोषित होने पर सबसे बड़ी दिक्कत ट्रेनिंग और सीनियरिटी की आएगी। डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी के दोनों बैच एक साथ ट्रेनिंग करेंगे तो निश्चित तौर पर 2020 बैच वालों के मन में कसक तो रहेगी। उपर से सरकार के समक्ष पोस्टिंग का संकट भी। एक साल इतने सारे डीसी और डीएसपी की पोस्टिंग भी तो देनी होगी।

गीता को एनओसी

97 बैच की छत्तीसगढ़ कैडर की आईएएस एम गीता को भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार ने एनओसी दे दिया है। खबर है, जल्द ही उन्हें केंद्र में पोस्टिंग मिल जाएगी। वैसे अभी भी वे डेपुटेशन टाईप की ही पोस्टिंग में हैं। सरकार ने उन्हें हाल ही में दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर बनाया है। याने हैं तो वे दिल्ली में ही। भारत सरकार में पोस्टिंग के बाद फर्क यही आएगा कि छत्तीसगढ़ सरकार का लेवल हट जाएगा।

सीएम की घोषणा

छत्तीसगढ़ के चर्चित सोमानी अपहरण कांड में उद्योगपति को सुरक्षित रिहा कराने वाली पुलिस पार्टी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सीएम हाउस बुलाकर उनकी पीठ थपथपाई थी। उन्होंने शाबासी के तौर पर एक इंक्रीमेंट देने का भी ऐलान किया था। ये बात जनवरी 2020 की है। अब मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर अमल करने, कराने का काम तो विभाग का होता है। मगर दो साल होने को है, पुलिस अधिकारी इंक्रीमेंट की बाट जोह रहे हैं।

ढाई साल वाले

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आईजी-एसपी कांफ्रेंस में ढाई साल से एक जगह पर जमे सिपाहियों से लेकर अधिकारियों तक को हटाने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री के इस फैसले से सैकड़ों जवानों और अधिकारियों की फेमिली में खुशी की लहर दौड़ गई है। दरअसल, रिमोट इलाकों में कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर तक कई-कई साल से फंसे हुए हैं। जो ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई जैक नहीं है। बिल्कुल सीधे-साधे। खटराल लोग तो रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग से हिलते नहीं। हालांकि, मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद आईजी, एसपी को कम-से-कम अपने लेवल वाले ट्रांसफर शुरू कर ही देना था।

फंस गया पेंच

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल एक नवंबर को समाप्त हो जाएगा। नया कुलपति अपाइंट करने के लिए सर्च कमेटी ने जो पैनल राजभवन को दिया था, उनमें से कोई नाम राज्यपाल अनसुईया उइके को नहीं जंचा। राज्यपाल ने कमेटी को और नाम देने के लिए कहा है। तब तक यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर टीचिंग डॉ0 एसएस सेंगर को प्रभाारी कुलपति नियुक्त कर दिया है। तब तक नए कुलपति की तलाश जारी रहेगी। हालांकि, ये पहली बार हुआ है। इससे पहिले परंपरा रही है, विवि के किसी कुलपति को हटाया जाता था या कार्यकाल खतम होता था तो संभागायुक्त को चार्ज सौंपा जाता था। मगर अब ये परंपरा टूटी है और सूबे के विश्वविद्यालयों के सीनियर फैकल्टी इससे खुश होंगे कि अब कमिश्नर प्रभारी कुलपति नहीं बनेंगे।

नए नक्सल चीफ?

सरकार ने 96 बैच के आईपीएस विवेकानंद सिनहा को एडीजी नक्सल आपरेशन बनाया है। विवेकानंद एडीजी प्रमोट होने के बाद भी बतौर आईजी दुर्ग रेंज संभाल रहे थे। अब नई जिम्मेदारी मिलने के साथ सवाल उठता है कि डीजी नक्सल आपरेशन अशोक जुनेजा अपने पद पर बनें रहेंगे या उनके प्रभार में कोई परिवर्तन होगा। क्योंकि, नक्सल में डीजी के साथ एडीजी स्तर का अधिकारी कभी रहा नहीं। ये भी हो सकता है कि सरकार ने नक्सल आपरेशन में विवेकानंद को तैयार करना चाह रही हो। विवेकानंद काफी समय तक बस्तर के आईजी रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ सरकार के एक मंत्री को उनके परिवार, रिश्तेदार वाले मिठलबरा मंत्री क्यों कहते हैं?

2. सिस्टम में ये विरोधाभास क्यों है कि आबकारी विभाग शराब बेचता है और नशा मुक्ति अभियान चलाने के लिए समाज कल्याण को पैसा भी देता है?


मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

कलेक्टर सबसे बड़ा नेता


 संजय के दीक्षित

तरकश, 24 अक्टूबर 2021

कलेक्टर कांफ्रेंस में अबकी किसी को डांट-फटकार नहीं मिली। लेकिन, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इषारे-इषाारे में कलेक्टरों को आगाह जरूर कर दिया वे कहां पर चूक रहे हैं और उन्हें क्या करना चाहिए। बैठक में सबसे अधिक किसी सब्जेक्ट पर चर्चा हुई तो वो कवर्धा का मामला था। कलेक्टर कांफ्रेंस हो या एसपी कांफ्रेंस, दोनों में डेढ़-से-दो घंटा इसी पर विमर्श हुआ। इस दौरान मुख्यमंत्री दो-से-तीन बार बोले...कलेक्टर जिले का सबसे बड़ा नेता होता है...फिर उसे चीजों की जानकारी क्यों नहीं। आईएएस दसेक साल की सर्विस के बाद कलेक्टर बनता है...उसके पास लोगों का चेहरा पढ़कर मजमूं भापने की कला होती है। उन्होंने अपने जमाने की याद करते हुए बताया कि कलेक्टरों से विभिन्न वगों के लोग मिलने आतेे हैं, उन्हें जिले के बारे में सब कुछ पता होता था....कहां क्या चल रहा है और क्या होने वाला है। इसलिए वे तुरंत हैंडिल कर लेते थे। सीएम ने कलेक्टरों से कहा कि वे जिलों में सूचना तंत्र को मजबूत करें।

दंगा से निबटने गुर नहीं

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में कवर्धा पर फोकस रहने की वजह है। वहां दो समुदायों में हुई हिंसा के बाद पिछले 17 दिन से पूरा शहर कर्फ्यू के साये में है। जिला प्रशासन ने अब 12 घंटे की ढील दी है। फिर भी रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक कर्फ्यू प्रभावषील है। मुठ्ठी भर आबादी वाले षहर को एसपी के अलावे आधा दर्जन आईपीएस भी नहीं संभाल पाए। आसपास के जिलों से आईपीएस को वहां तैनात किया गया था। सीनियर अफसर भी वहां कैंप कर रहे थे। पुलिस अधिकारियों की चूक तो इसमें साफ झलकती है। तभी एसपी कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने एसपी से दो टूक पूछ दिया, आपसे क्या चूक हुई? दरअसल, पते की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में दो-एक आईपीएस को छोड़कर, जो मध्यप्रदेश के दंगा प्रभावित इलाकों में तैनात रहे हैं, किसी को भी दंगा से निबटने का अनुभव नहीं है। 6 अक्टूबर की घटना के बाद भी पुलिस अगर बिना किसी भेदभाव के दोनों पक्षों की अंधाधुंध गिरफ्तारियां की होती...डंडे चलाई होती तो तीन-से-चार दिन में सब ठंडा हो जाता। पुलिस की अक्षमता और जिला प्रषासन की अदूरदर्षिता की वजह से छत्तीसगढ़ के दामन पर संप्रदायिक हिंसा का दाग लग गया। आज तक छत्तीसगढ़ के किसी शहर में कभी भी इतना लंबा कर्फ्यू नहीं लगा। 

लिस्ट की चर्चा

कवर्धा में जो कुछ हुआ, उसके बाद वहां के जिम्मेदार अधिकारियों को बदला जाना तय माना जा रहा है। इसके साथ कुछ और आईएएस, आईपीएस की लिस्ट निकल सकती है। इसकी चर्चा कल एसपी कांफ्रेंस के बाद से ही शुरू हो गई थी। सुनने में आया, अंबिकापुर कलेक्टर संजीव झा रायगढ़ जा रहे। और रायगढ़ कलेक्टर भीम सिंह दुर्ग। मगर कुछ लोगों का कहना है, दुर्ग वाले कहीं नहीं जा रहे। खबर कोंडागांव कलेक्टर कोे लेकर भी है। गरियाबंद कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर को किसी दूसरे जिले में शिफ्थ किया जा सकता है। खैर ये चर्चा है...जब तक आदेश नहीं निकलेगा तब तक अटकलों का दौर जारी रहेगा। 

राडार पर तीन एसपी

एसपी कांफ्रेंस में तीन एसपी मुख्यमंत्री के राडार पर रहे। पहला कवर्धा। दूसरा कोंडागांव और तीसरा सुकमा। कवर्धा की वजह तो पता ही है। कोंडागांव वाले धर्मांतरण को लेकर निशाने पर रहे तो सुकमा वाले पत्र लिखने को लेकर। हालांकि, इन तीनों पुलिस अधिकारियों की कोई शिकायत नहीं है। मगर इनमें से कुछ समय का चक्र और कुछ अनुभव की कमी का शिकार हो गए।      

मंत्री की रेटिंग

कलेक्टर और एसपी कांफ्रेंस में पहली बार मंत्रियों को वेटेज मिला। खासकर, एग्रीकल्चरल मिनिस्टटर रविंद्र चौबे कलेक्टर कांफ्रेंस में पूरे समय रहे तो एसपी कांफ्रेेंस में भी। हालांकि, एसपी कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू को भी साथ रखा। लेकिन, रविंद्र चौबे दोनों दिन कांफ्रेंस में सिर्फ मौजूद ही नहीं रहे बल्कि उन्होंने कलेक्टर, एसपी को संबोधित भी किया। ये जाहिर करता है, मध्यप्रदेष में भी मंत्री रहे रविंद्र चौबे का सियासी रेटिंग बढ़ा हुआ है।

आईएएस का डिनर 

कलेक्टर कांफ्रेंस समाप्त होने के बाद होटल सयाजी में आईएएस एसोशियेशन का डिनर था। कोविड के चलते पिछले दो साल से आईएएस एसोसियेषन का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था। लास्ट कार्यक्रम अक्टूबर 2019 मे हुआ था। चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर के रिटायरमेंट के दौरान। इसके बाद सीनियर अफसरों का कलेक्टरों या नए अफसरों के साथ कोई इंटरेक्शन नहीं हुआ। इस बार नए से लेकर पुराने आईएएस ने खूब इन्जॉय किया। देर रात तक महफिल गुलजार रही....ठहाकों का दौर चलता रहा। कुल मिलाकर राज्य बनने के बाद पहली बार आईएएस अधिकारियों ने एक साथ बैचलर टाईप पार्टी सेलिब्रेट किया। मनोज पिंगुआ के लिए भी अच्छा रहा। प्रेसिडेंट बनते ही बड़ा सेलिब्रेशन हो गया। 

आईएएस का व्हाट्सएप ग्रुप

एक वो भी दौर था, जब आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में क्रांतिकारी विचार व्यक्त किए जाते थे। लेकिन, अभी आईएएस का व्हाट्सएप ग्रुप शांत है। सिर्फ जन्मदिन का विश। इसके अलावा कुछ नहीं। लेकिन, अभी हाल ही में एक रिटायर आईएएस ने सियासत के बारे में कोई खबर डाल दी, तो अफसर चौंके। हालांकि, इस पर कोई प्रतिक्रिया किसी ने नहीं दी....देनी भी नहीं थी, लेकिन, सवाल तो उठते ही हैं। दरअसल, आईएएस के ग्रुप में वर्तमान के साथ ही पुराने याने रिटायर अफसर भी शामिल हैं। रिटायर अफसरों को अब काहे का डर। लेकिन, ऐसे पोस्टों की संख्या बढ़ेगी तो ग्रुप एडमिनों की चिंता भी बढेगी।  

दम भी, दिमाग भी

छत्तीसगढ़ पुलिस में सहवाग टाईप फ्री होकर खेलने वाला एक तो बैट्समैन है पर वो भी ग्रह-दषा का शिकार हो गया है। हम बात कर रहे हैं, आईपीएस उदयकिरण की। उन्हें ड्राईवर की पिटाई के बाद नारायणपुर एसपी के पद से हटाया गया है। उदयकिरण किस अंदाज में बैटिंग करते हैं, महासमुंद के पूर्व विधायक मोहन चोपड़ा से बेहतर कौन बता सकता है। बिलासपुर और कोरबा में भी उदयकिरण ने धुंआधार ठुकाई की। बिलासपुर में तो आलम यह रहा कि भूमाफिया शहर छोड़कर भागने लगे थे। लेकिन, अच्छा बैट्समैन वो माना जाता है जो पिच पर ठहरे भी। सहवाग हमेषा आउट ही नहीं होते थे। उन्होने दोहरा षतक भी जमाया है। उदय किरण के पास दम तो है मगर इसके साथ दिमाग भी होना चाहिए। 

गिरिजाशंकर ट्रेक पर

उदय किरण के सस्ते में विकेट गंवाने के बाद सरकार ने गिरिजाशंकर को नारायणपुर का एसपी बनाकर भेजा है। चलिये, गिरिजाशंकर का किस्मत का ताला तो खुला। लंबे समय से उन्हें एसपी बनाने की बात चल रही थी। जब भी कोई लिस्ट निकलने वाली होती थी तो चर्चाओें में गिरिजाशंकर का नाम जरूर होता था। प्रषांत अग्रवाल के पहले उनका बिलासपुर का एसपी बनना पक्का बताया जा रहा था। मगर हुआ नहीं। एक बार उन्हें कोंडागांव का एसपी बनाने के लिए मैसेज किया गया था। मगर दो जिले करने के बाद कोंडागांव जैसे छोटे जिले में जाने से उन्होंने मना कर दिया था। बहरहाल, गिरिजाशंकर अब एसपी के ट्रेक पर आ गए हैं। आईएएस, आईपीएस की पोस्टिंग में सबसे आवश्यक होता है ट्रेक पर बने रहना। इससे आगे का रास्ता बना रहता है।

सीएम का होम वर्क


 
कलेक्टर कांफ्रेंस के लिए मुख्यमंत्री ने भी होमवर्क किया था। तभी रेवन्यू सिकरेट्री रीता शांडिल्य ने जब 10 मिनट में विभाग का ब्रिफ समेट दिया तो मुख्यमंत्री किंचित खफा हो गए। बताते हैं, सीएम बोले...ये क्या है...पूरा बताइये, किस जिले का क्या पारफारमेंस है। रीता के पास तो पूरा डिटेल था ही। उन्होंने फिर पूरा पढ़ दिया।      

अंत में दो सवाल आपसे

1. इसमें कितनी सच्चाई है कि पुलिस देह व्यापार करने वाले उन्हीं मसाज सेंटरों में दबिश देती है, जो हर महीने उन्हें खुशामद नहीं पहुंचाते?

2.. वो कौन से कलेक्टर हैं, जिन्हें नए जिले मोहला-मानपुर का भी कलेक्टर बना दिया जाए, तो वे हंसते-कूदते चले जाएंगे?

रविवार, 17 अक्तूबर 2021

एसपी बड़े या सरकार?

छत्तीसगढ़ पुलिस के पुलिस अधीक्षकों ने अजीब परंपरा शुरू कर दी है। इन दिनों वे अपने हिसाब से सीएसपी को थाने का बंटवारा करने लगे हैं। जबकि, एसपी को ये अधिकार ही नहीं है। सीएसपी की पोस्टिंग मुख्यमंत्री के अनुमोदन से गृह विभाग करता है। पोस्टिंग आदेश में साफ तौर पर लिखा होता है सीएसपी फलां। याने कार्यक्षेत्र का नाम। लेकिन, कुछ दिनों से सरकार के आदेश को ओवरलुक करते हुए एसपी चहेते अफसरों को अपने हिसाब से लगे हैं रेवड़ी बांटने। यही नहीं, एसपी साहबानों की शह पर सीएसपी आजकल मानिटरिंग नहीं, बल्कि थानेदारी करने लगे हैं। अब सीएसपी और डीएसपी खुद ही थानेदारी करने लगे तो वही होगा जो राज्य में हो रहा है। पोलिसिंग का कबाड़ा। कोंडागांव में इसकी झलक दिखी। एसडीओपी की जमकर पिटाई हो गई। ये पुलिस पर उठते विश्वास का प्रतीक है। वरना, पहले कभी ऐसा देखा, सुना नहीं गया कि डीएसपी, सीएसपी की पिटाई होने लगे। मगर ये छत्तीसगढ़ में हो रहा है। और ये हो रहा तो सीधे तौर पर एसपी साहब लोगों की ये कमजोरी से हो रहा। जिले का कप्तान अगर टाईट हो जाए, तो मजाल है कानून-व्यवस्था में सेंध लगाने की कोई सोच लें। सरकार को 22 अक्टूबर को एसपी कांफ्रेंस में इस पर बात करनी चाहिए।  

 ब्यूरोक्रेसी पटरी पर

ढाई-ढाई साल की सियासी झंझावतों के बीच सांस रोककर शुतुरमुर्ग की मुद्रा में दुबकी छत्तीसगढ़ की नौकरशाही अब फिर से एक्टिव होने लगी है। मंत्रालय, इंद्रावती भवन में बैठकों का दौर शुरू हो चला है...तीन महीने से ठहरी फाइलें अब दौड़ने लगी है। जिलों के कार्यालयों में भी अब चहल-पहल दिखाई पड़ने लगी है। कलेक्टर-एसपी भी अब खोल से बाहर निकल आए हैं। वाकई, तीन महीने छत्तीसगढ़ के लिए बड़ा बुरा रहा। तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम की वजह से सरकारी कामकाज एकदम से ठहर-सा गया था।     

राहुल का छत्तीसगढ़ दौरा

खबर है, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस महीने के अंत में छत्तीसगढ़ आ सकते हैं। छत्तीसगढ़ दौरे में वे बस्तर और सरगुजा जाएंगे या नहीं, ये अभी क्लियर नहीं हुआ है। मगर आदिवासी महोत्सव में वे शिरकत कर सकते हैं। इस महोत्सव में सभी 28 राज्यों से आदिवासियों का सांस्कृतिक जत्था रायपुर आएगा। तीन दिन का ये महोत्सव 28 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 30 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद एक नवंबर को राज्योत्सव है। पहले सुनने में आया था कि वे राज्योत्सव के चीफ गेस्ट होंगे। लेकिन, राज्य के बने दो दषक से ज्यादा समय हो जाने की वजह से अब सरकार राज्योत्सव को बहुत ग्लेमराइज नहीं करना चाह रही। आदिवासी महोत्सव बड़ा कल्चरल इंवेट हैं। लिहाजा, राहुल इसमें आ सकते हैं।   

उलझन में कलेक्टर

पहले कलेक्टर काफ्रेंस रखा गया था 22 अक्टूबर को और एसपी, आईजी काफ्रेंस उससे एक रोज पहले 21 को। मगर 21 अक्टूबर को षहीदी दिवस के चलते सरकार ने डेट एक्सचेंज करके 21 को कलेक्टर और 22 को एसपी, आईजी कांफ्रेंस कर दिया। लेकिन, अब कलेक्टरों के लिए उलझन ये हो गई है कि शहीदी दिवस में वे कैसे जा पाएंगे। राजधानी में मुख्यमंत्री, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी समेत सीनियर अधिकारी शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने शिरकत करते हैं तो जिलों में कलेक्टर-एसपी। अब 21 अक्टूबर को कलेक्टर नहीं जा पाएंगे श्रद्धांजलि देने। दरअसल, पहले 5 अक्टूबर को रखा गया था एसपी कांफ्रेंस और 18 को कलेक्टर कांफ्रेंस। लेकिन, 5 को मुख्यमंत्री का लखनऊ जाने का कार्यक्रम आ गया। लिहाजा, एसपी कांफ्रेंस को स्थगित करना पड़ा। और कलेक्टर कांफें्रस इसलिए आगे बढ़ाना पड़ा क्योंकि 19 अक्टूबर तक विभिन्न तीज-त्यौहार हैं। बार-बार डेट इधर-उधर खिसकाने की बजाए सरकार ने अब 21 और 22 अक्टूबर का डेट फायनल कर दिया है। 

छोटी लिस्ट

कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद एक छोटी लिस्ट निकलने की खबर है। बताते हैं, मुख्यमंत्री भूपेष बघेल की क्लास में जिन कलेक्टर्स, एसपीज के पारफारमेंस ठीक नहीं आएंगे, उनकी कुछ घंटे बाद छुट्टी कर दी जाएगी। पता चला है, मुख्यमंत्री सचिवालय ने कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों का अपने सोर्सेज के आधार पर एक रिपोर्ट कार्ड तैयार करके रखा है। पारफारमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर कुछ कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के भविष्य तय होंगे। हालांकि, कलेक्टर, एसपी काफ्रेंस ट्रांसफर का कोई मापदंड नहीं है। मगर पहले कई मौकों पर ऐसा हो चुका है। अब चूकि सरकार के पास समय नहीं है। डेढ़ साल बचा है विधानसभा चुनाव में। लिहाजा, हो सकता है सरकार कोई मरौव्वत न करें। 

गजब सर्जरी

उद्योग विभाग में इस हफ्ते हुई सबसे बड़ी सर्जरी में अपर संचालक से लेकर सीजीएम, जीएम, मैनेजर, लिपिक समेत 48 लोगों के ट्रांसफर हो गए। राज्य बनने के बाद उद्योग विभाग में पहली बार इतना व्यापक तबादला हुआ होगा। उद्योग विभाग में पूरे राज्य में अधिकारी, कर्मचारी मिलाकर करीब 600 को अमला है। इसमें से 48 को इधर-से-उधर कर दिया गया। यानि करीब 10 परसेंट एकमुश्त। इनमें से 80 फीसदी से ऐसे अधिकारी, कर्मचारी ऐसे थे, जो फील्ड में थे, तो कई साल से फील्ड में और जो हेड क्वार्टर में थे वो हेड क्वार्टर में। मुख्यालय वालों का राजधानी में कंफर्ट लेवल इतना बढ़ गया था फील्ड की कमाईदार पोस्टिंग भी उन्हें रास नहीं आ रही थी। लेकिन, सरकार ने अब कंफर्ट लेवल खतम कर दिया है।

ऐसे भी मंत्री-1

चूकि, चर्चा उद्योग विभाग की हो रही, इसलिए अपने उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा का स्मरण हो आया। कवासी भले ही पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन रुटीन के मामले में उनका अंदाज जुदा है। चार बजे उनकी सुबह हो जाती है। अगर वे रायपुर में हैं तो सुबह पांच बजे वे सड़क पर वॉॅक करते दिख जाएंगे। इसके बाद छह बजे तक तैयार होकर लोगों से मिलना षुरू। उन्हें जानने वालों को पता है कि मंत्रीजी से इस टाईम मिलना बेहद आसान है। तब उनके साथ कोई सरकारी अमले की रोक-टोक जैसी बंदिशें नहीं होती। तभी सुबह छह बजे से उनके बंगले में लोगों का जुटना शुरू हो जाता है। 

ऐसे भी मंत्री-2

कवासी लखमा से उलट भूपेश बघेल कैबिनेट में एक ऐसे मंत्री भी हैं, जिनकी लेटलतीफी से अधिकारियों का समय काफी जाया होता है। उनके बारे में तरह-तरह के किस्से हैं। एक तो 11 बजे से पहले उनकी सुबह होती नहीं। दूसरा, कई बार मंत्रीजी दोपहर में अधिकारियों की मीटिंग रख लेते हैं। पर बंगले पहुंचने पर पता चलता है साब अभी तैयार नहीं हुए हैं। हालांकि, देर से उठने वाले मंत्री रमन सरकार में थे, लेकिन वे देर रात तक लोगों से मिलते-जुलते भी थे। ये वाले रात को जल्दी भीतर चले जाते हैं और सुबह बाहर आते भी हैं अपने टाईम से।     

डीजीपी और काली मंदिर

डीजीपी डीएम अवस्थी आफिस रवाना होने से पहिले आकाशवाणी चौक स्थित काली मंदिर में माथा टेकना नहीं भूलते। उनके ड्राईवर को पता है...बंगले के गेट से गाड़ी निकालते ही वह काली मंदिर की ओर मोड़ देता है। ये सिलसिला आज से नहीं...लंबे अरसे से बना हुआ है। काली मंदिर के पुजारी याद करते हैं, साब जब आईजी रायपुर थे, उसके पहले से माई के दर्शन करने आ रहे हैं। फर्क यह है कि पहले कोई तामझाम नहीं होता था। और, अब चूकि डीजीपी हैं, इसलिए दो-चार जवान आसपास खडे हो जाते हैं। डीएम ने बंगला भी ऐसा अलॉट कराया है, जिसकी मंदिर से दूरी बमुश्किल 300 मीटर होगी। याने सीधे काली माई से शक्ति मिलती रहे। अध्यात्मिक मिजाज के डीजीपी वैसे महाकाल के भी परम भक्त हैं। वाकई उन पर महाकाल और काली माई की कृपा परिलक्षित भी हो रही है। आपको याद होगा...2018 में सरकार बदलने पर गिरधारी नायक इसलिए डीजीपी नहीं बन पाए कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक उनके रिटायरमेंट में छह महीने से कम समय बचा था। डीएम बन भी गए तो उसी दिन से भविष्यवाणियां चालू हो गई थी, बस साल भर। फिर हुआ सुप्रीम कोर्ट का दो साल की सर्विस की क्रायटेरिया पूरा होते ही। मगर कृपा देखिए, डीएम और पिच पर जमे हुए हैं। और, फिलहाल कोई खतरा भी नहीं दिख रहा। दिसंबर में उनका तीन साल हो जाएगा। ठीक ही कहा गया है, सब माथे पर लिखा होता है। खासकर, पीएम, सीएम, सीएस, डीजीपी, पीसीसीएफ तो बिल्कुल ही।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक मंत्रीजी का नाम बताएं, जो पूरे परिवार के साथ आत्मग्लानि व्यक्त करने दरबार में पहुंच गए?

2. एक ऐसे विधायक का नाम बताएं, जो अगला चुनाव बीजेपी के नाम पर लड़ने की मानसिकता में हैं?

तेरे घर के सामने-1

 एनआरडीए ने घर के सामने रेलवे स्टेशन बनने का हवाला देकर  नया रायपुर में सेक्टर-15 के लगभग सारे प्लाट सेल कर डाले। प्लॉट लेने वालों में ढाई दर्जन से ज्यादा छत्तीसगढ़ के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस हैं। कई दूरदर्शी अफसरों ने दो-दो प्लॉट परचेज कर डाले कि आज नहीं तो 20 साल बाद सही, नाती-पोतों के लिए हैंडसम एसेट खड़ा हो जाएगा। लेकिन, उन्हें झटका तब लगा, जब रोकड़ा के अभाव में एनआरडीए ने स्टेशन का प्रोजेक्ट बाइंडअप करने का फैसला ले लिया। जाहिर है, इससे ब्यूरोक्रेट्स नाराज होंगे ही....घर के सामने स्टेशन बनेगा, यह सोचकर ही तो पैसा फंसाए थे। अब सुनने में आ रहा...अफसरों की नाराजगी को भांपते हुए एनआरडीए के अधिकारियों ने रास्ता निकाला है। अब चार स्टेशनों के पुराने टेण्डर को निरस्त कर सिर्फ सेक्टर-15 के सामने एक स्टेशन बनाने के लिए नया टेंडर निकाला जाएगा। याने अब चार की जगह सिर्फ एक स्टेशन बनेगा....अधिकारियों के घर के सामने।

तेरे घर के सामने-2

एनआरडीए के पास जब धन की कमी है तो सवाल उठता है, सेक्टर-15 के सामने रेलवे स्टेशन बनाने के लिए पैसा किधर से आएगा। पता चला है, इसके लिए स्मार्ट सिटी से 45 करोड़ रुपए निकाला जाएगा। हालांकि, ये भी असान नहीं है। क्योंकि, पहले ये एनआरडीए का टेंडर था। अब स्मार्ट सिटी से बनाने के लिए इसके बोर्ड आफ डायरेक्टर से पारित कराना होगा। ठीक है....अफसरों का मामला है तो सब हो जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे पिछली सरकार को झांसा देकर नौकरशाहों ने अपनी धरमपुरा कालोनी के सामने से फोर लेन निकाल दिया। तब सरकार को समझाया गया...साहब वीआईपी रोड का चौड़ीकरण करना बेहद कठिन काम है...बड़े-बड़े होटल हैं, उन्हें तोड़ने पर विवाद होगा। लिहाजा, एयरपोर्ट के लिए वैकल्पिक रोड बनाना बेहद जरूरी है। और फिर पीडब्लूडी ने 200 करोड़ का फोर लेन बनाकर अफसरों के 200 रुपए फुट की जमीन को तीन हजार रुपए फुट कर दिया। इसमें क्लास यह हुआ कि धरमपुरा में जैसे ही नया रोड बना, वीआईपी रोड की चौड़ीकरण की बाधाएं दूर हो गई और वहां सिक्स लेन रोड का प्रारुप तैयार कर दिया। व्हाट एन आइडिया....! 

अफसर को घर नहीं!

जिले के कलेक्टर, एसपी को अगर सरकारी आवास न मिले तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी में सरकारी आवासों की क्या स्थिति है। बताते हैं, रायपुर के एसएसपी को महीने भर बाद भी अभी मकान फायनल नहीं हुआ है। तो जांजगीर कलेक्टर से रायपुर आने के बाद आईएएस यशवंत कुमार को लंबे समय तक कृषि विभाग के गेस्ट हाउस में गुजारना पड़ा। उन्हें न तो देवेंद्र नगर के आईएएस कालोनी में आवास मिल सका और न कचना के जीएडी कालोनी में। थक-हार कर उन्होंने एग्रीकल्चर कालोनी में अपना आशियाना बनाया है। वो भी ग्रेड से नीचे का मकान में। लेकिन, यशवंत क्या करें...मजबूरी है। दरअसल, आवासों की दिक्कत इसलिए पैदा हुई है कि कई अफसर ट्रांसफर हो जाने के बाद भी मकान खाली नहीं कर रहे। संपदा विभाग ने उन्हें कई बार नोटिस सर्व कर चुका है। फिर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। दूसरी वजह है...देवेंद्र नगर कालोनी में राजनीतिज्ञों को भी आवास आबंटन किया जाना। हालांकि, पिछली सरकार में इसकी शुरूआत हो गई थी। सबसे पहिले वहां चरणदास महंत और स्व0 नंदकुमार पटेल को आवास दिया गया। अब संख्या और बढ़ गई है। ऐसे में, किल्लत तो होगी ही। 

सैल्यूट या नमस्ते!

राज्य सरकार ने सूबे में नया प्रयोग करते हुए सीनियर आईपीएस दिपांशु काबरा को जनसंपर्क आयुक्त की कमान सौंपी है। चूकि सूबे में यह पहली बार हुआ है लिहाजा लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। और शायद इसीलिए दिपांशु की पोस्टिंग पर खूब चुटकी ली जा रही। जनसंपर्क अधिकारियों से लोग पूछ रहे आपलोग नए साब को नमस्ते ठोकते हो या सैल्यूट। मजाक भी चल रहा...अब बंदूक के साये में कलम...। हालांकि, छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है। दीगर राज्यों के लिए यह नया नहीं है। पड़ोसी या यों कहें कि अपने पुराने राज्य मध्यप्रदेश में आशुतोष प्रताप सिंह दूसरी बार डीपीआर हैं। 2010 बैच के आशुतोष को सीएम शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री की अपनी तीसरी पारी में डीपीआर बनाया था। बाद में कमलनाथ ने उन्हें हटा दिया। मगर शिवराज फिर सत्ता में आए तो आशुतोष को दूसरी बार जनसंपर्क की कमान सौंप दी। दिपांशु काबरा के बैचमेट बृजेश सिंह महाराष्ट्र में पूरे चार साल जनसंपर्क प्रमुख रहे। दिपांशु को सरकार की छबि चमकाने वाले विभाग की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे समझा जाता है मीडिया से उनके फेंडली टर्म एक वजह होगी।  

आईपीएस की पोस्टिंग

अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह ने आईपीएस अधिकारियों को दीगर विभागों में पोस्ट करना शुरू किया था। याद होगा, तब कई आईपीएस जिला पंचायतों में सीईओ बनाए गए थे तो विभागों के प्रमुख भी। लेकिन, छत्तीसगढ़ बनने के बाद आईएफएस अधिकारियों ने पोस्टिंग में आईपीएस अफसरों को किनारे कर दिया। दिपांशु अगर जनसंपर्क में कामयाब रहे तो आईपीएस अधिकारियों के पुलिस के इतर दूसरे विभागों में भी पोस्टिंग के विकल्प खुलेंगे। जाहिर है, इससे पुलिस वाले प्रसन्न होंगे।  

ये कैसी कार्रवाई?

बिलासपुर में पुलिस अधिकारियों के बियर-बार में हंगामा और मारपीट मामले में मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद दो महिला डीएसपी की रवानगी डाल दी गई। मगर आश्चर्यजनक तौर पर एक महिला सीएसपी को न केवल बख्श दिया गया। बल्कि, कप्तान ने ईनाम देते हुए सीएसपी को चार और थाने की जिम्मेदारी सौंप दी। सवाल उठता है, आखिर न्याय में ये दोहरा मापदंड क्यों? अगर मंत्री पुत्रों को जात-भाई का संबंध निभाना था तो फिर बाकी दोनों के खिलाफ कार्रवाई क्यों?

कांग्रेस के कमलप्रीत

पिछले हफ्ते कांग्रेस के जनरल सिकरेट्री वेणुगोपाल ने एक के बाद एक कई आदेश निकाले। एक रोज तो तीन-तीन। ठीक उसी तरह जैसे बैक-टू-बैक आदेश जीएडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह निकालते हैं। वेणुगोपाल का आदेश देख कांग्रेसी चुटकी लेने से नहीं चूके....कांग्रेस के कमलप्रीत सिंह बन गए हैं वेणुगोपाल।

इत्तेफाक ऐसा भी

भले ही ये इत्तेफाक हो सकता है....मगर इस पर लोग खूब मजे ले रहे हैं। दरअसल, झारखंड के बॉडर स्टेट जशपुर में कलेक्टर भी अग्रवाल और एसपी भी अग्रवाल हो गए हैं। सरकार ने पहले विजय अग्रवाल को एसपी बनाकर भेजा फिर रितेश अग्रवाल को कलेक्टर। हालांकि, टेम्परामेंट के मामले में दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं। मगर काम और ऑनेस्टी में मिलता-जुलता माना जा सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्हें सर्विस से बर्खास्त किया जा सकता है?

2. समाज कल्याण विभाग के कथित घोटाले में अफसरों को राहत मिली है या उलझनें बढ़ी है?

शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

माथे पर लिखा…सीएम

 

संजय के दीक्षित
तरकश, 3 अक्टूबर 2021

पंजाब के घटनाक्रम से फिर ये बात स्थापित हो गई है कि लाख मशक्कत कर लें, सीएम जैसा पद मुकद्दर में है तभी मिलेगा। सिद्धू के साथ आखिर क्या हुआ…वो साल भर से ताली ठोक रहे थे मगर जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो चरणजीत सिंह चन्नी यकबयक प्रगट होकर कुर्सी पर बैठ गए। छत्तीसगढ़ में 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी सबने देखा…दिलीप सिंह जूदेव सीएम के रेस में सबसे आगे थे और जाहिर है वे सीएम बनते भी। मगर तकदीर देखिए, चुनाव से ऐन पहिले ट्रेप में फंस गए। रमेश बैस भी अगर चुनाव से पहले केंद्रीय राज्य मंत्री का पद छोड़कर छत्तीसगढ़ आने के लिए तैयार हो गए होते तो रमन सिंह 15 साल सीएम रहने का रिकार्ड नहीं बना पाते। सो, माथे पर लिखा होना जरूरी है।

नाम या बदनाम…?

कांग्रेस नेता एवं पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने कांग्रेस शासित राज्यों में चल रही सियासी तनातनी पर एक डिबेट में थे। उन्होंने पंजाब, राजस्थान का नाम लेने के बाद माथे के नसों को सिकोड़ते हुए बोले, झारखंड के बगल में वो कौन सा राज्य है…एंकर बोली, छत्तीसगढ़। नटवर बोले…हां, वहीं। ठीक है नटवर की उमर हो गई है…ऐसे में याददश्त क्षीण हो जाती है। लेकिन, इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि छत्तीसगढ़ के बारे में बाहर में उतना नहीं पता, जितना 21 साल में होना था। दरअसल, विद्याचरण शुक्ल के कद जैसा छत्तीसगढ़ में कोई दुजा शख्सियत हुआ नहीं, जिसके कारण छत्तीसगढ़ को जाना जाए। अभी सियासी टकराव और सुप्रीम कोर्ट के नौकरशाहों तथा पुलिस अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी से छत्तीसगढ़ जरूर कुछ चर्चा में है। नेशनल लेवल पर ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर पंजाब, राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ की भी चर्चा सरगर्म है। तो उधर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वी रमन्ना ने छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस के प्रकरण में सरकारों और नौकरशाहों के गठजोड़ पर तल्ख टिप्पणी की है। जाहिर है, इस खबर को सुर्खियां मिलनी ही थी। अब इसको नाम बोलें या….।

महिला आईपीएस ज्यादा काबिल

छत्तीसगढ़ के 28 जिलों में सिर्फ दो महिला एसपी हैं। पारुल माथुर और भावना गुप्ता। जांजगीर जैसा बड़ा जिला करने के बाद फिलवक्त गरियाबंद जिले की कप्तान हैं। इससे पहले भी कमोवेश यही स्थिति रही है। दो-एक या जीरो…। कम ही मौका रहा, जब एक साथ सूबे में दो महिला एसपी रहीं। पारुल और नीतू कमल। नीतू फटाफट चार जिलों की कप्तानी करके डेपुटेशन पर सीबीआई चली गईं। दूसरा अभी सूरजपुर एसपी हैं भावना गुप्ता। महिला एसपी का प्रतिनिधित्व कम होने की प्रमुख वजह यह है कि छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर में महिलाओं को बेहद टोटा है। सीनियर लेवल में सिर्फ नेहा चंपावत। वो भी डीआईजी रैंक की। आईजी, एडीजी में कोई नहीं। पारुल माथुर पिच पर डटी हुई हैं। पहले बेमेतरा एसपी रहीं। उसके बाद रेलवे एसपी फिर मुंगेली, जांजगीर होते हुए गरियाबंद। भावना का सूरजपुर पहला जिला है। जबकि, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने हाल ही में दिल्ली में अपराधों का विवेचना कराया था, तो उन्हें पता चला कि जिन दो जिलों में महिला कप्तान हैं, वहां अपेक्षाकृत क्राइम पर कंट्रोल हुआ है। इसको देखते हुए उन्होंने तीन और जिलों को महिला आईपीएस के हवाले कर दी है। यानी डीसीपी अपाइंट किया है। याने दिल्ली के 13 में से पांच जिलों में अब महिला डीसीपी हो गई हैं।

कलेक्टरी की छूटी ट्रेन

सरकार ने राजेंद्र कटारा को बीजापुर का कलेक्टर बनाकर 2013 बैच को क्लोज कर दिया। लेकिन, एमबीबीएस करके आईएएस में आए डॉक्टर जगदीश सोनकर की ट्रेन छूट गई। उनको छोड़कर सरकार ने 2014 बैच चालू कर दिया। हालांकि, एकाध बार पहले भी ऐसा हुआ है। 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान 2008 बैच की शम्मी आबिदी की बजाए सरकार ने 2008 बैच के भीम सिंह को धमतरी का कलेक्टर बना दिया था। लेकिन, वो चुकि चुनाव के पहले नाइट वाचमैन की तरह की नियुक्ति थी, इसलिए उसमें कोई अन्यथा लेने जैसा कुछ नहीं था। लेकिन, जगदीश सोनकर का मामला जुदा है। हालांकि, आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को कम-से-कम एक जिले की कलेक्टरी तो मिलती है। अब देखना है कि उन्हें कब मौका मिलता है।

2014 बैच का खाता

पिछले सप्ताह तरकश में एक खबर थी…दीगर राज्यों में 2015 बैच के आईएएस कलेक्टरी में दूसरा जिला कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में 13 बैच की वेटिंग खतम नहीं हो रही…। सरकार ने अगले दिन याने सोमवार शाम आदेश निकालकर 2014 बैच का खाता खोल दिया। 6 आईएएस के बैच में कुंदन सिंह सबसे उपर थे। सीनियरिटी के हिसाब से उन्हें सबसे पहले मौका मिला। कुंदन के ओपनिंग बैट्समैन के रूप में पिच पर उतरने के बाद बाकी पांच की उम्मीदें भी अब बढ़ गई है। आखिर कलेक्टरी करना आईएएस का सबसे बड़ा सपना जो होता है।

हेमूनगर की पुनरावृत्ति?

बिलासपुर शहर के हेमूनगर में 97 में एक बड़ी डकैती की वारदात हुई थी। उसमें डकैतों ने लूटपाट के साथ दो लोगों को मार डाला था। तब मध्यप्रदेश का समय था और बिलासपुर के एसपी थे शैलेंद्र श्रीवास्तव। घटना के चार दिन बाद सीएम दिग्विजय सिंह को बिलासपुर आना था। सो, पुलिस ने सीएम के दौरे से एक दिन पूर्व चार युवकों के चेहरों को काले कपड़े से ढक कर मीडिया के सामने पेश कर दिया…यही हैं आरोपी। ये चारों आरोपी छह महीने के भीतर कोर्ट से बरी हो गए। क्योंकि, उनके खिलाफ पुलिस के पास कोई साक्ष्य था नहीं। इसी तरह की कानाफूसी लैलूंगा डबल मर्डर केस में हो रही है। पुलिस ने नाबालिग लड़कों को पकड़ कर प्रेस कांफ्रेंस कर दिया। लेकिन, परिवार वालों को पुलिस की थ्योरी पर यकीन नहीं है। इस संदर्भ में फेमिली ने सीएम से मुलाकात की है। वाकई इस केस में कई सवाल अनुतरित हैं। अगर 25 लाख की लूट हुई तो बरामद 75 हजार क्यों हुआ? फिर ये 25 लाख तो परिवार वालों का फिगर है। बताने वाले तो और बहुत कुछ बता रहे हैं। असल में, इंकम टैक्स का लोचा भी तो है। परिवार वालों की विवशता समझी जा सकती है। रायगढ़ पुलिस को उनके सवालों का जवाब देना चाहिए। वरना, लोग हेमूनगर जैसी बातें करने लगेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ऐसा क्यों बोल रहे…ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर?
2. विधायकों के पांचों उंगली घी में और…ऐसा क्यों कहा जा रहा है?

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शनिवार, 25 सितंबर 2021

गुड़ाखू फैक्ट्री में अस्पताल!

 

गुड़ाखू फैक्ट्री में अस्पताल!

संजय के दीक्षित
तरकश, 26 सितंबर 2021
कोरोना के दौरान प्रायवेट अस्पताल वालों ने किस तरह अपनी तिजोरी भरी इससे समझा जा सकता है कि बिलासपुर के एक 50 बेड के अस्पताल ने तीन महीने में सात करोड़ कमा लिया। वो तो हिस्से को लेकर डॉक्टरों का विवाद और अपहरण हो गया और बात खुल गई। वरना….। आप समझ सकते हैं कि 50 बेड वाले अस्पताल अगर इस कदर झोली भर सकते है तो बड़े अस्पतालों ने क्या किया होगा। बताते हैं, कोरोना की लहर को अवसर में बदलने में डॉक्टरों ने कोई कोताही नहीं बरती। सराईपाली का गुखाड़ू कारखाना अस्पताल में बदल गया। दरअसल, कुछ डॉक्टरों ने गुड़ाखू वाले व्यापारी को समझाया कि गुड़ाखू बनाने वाले टीने के शेड को अगर अस्पताल के लिए दे दोगे तो उसके सामने गुड़ाखू की कमाई कुछ भी नहीं। बस क्या था, सेठजी को बात जम गई। चार दिन बाद गुड़ाखू फैक्ट्री पर अस्पताल का बोर्ड लग गया।

मालामाल भगवान

धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों ने कोरोना में इस तरह नगद जमा कर लिया कि इस साल मई-जून तक ये स्थिति आ गई थी कि उसे रखें कहां। राजधानी के एक बड़े कारोबारी का दावा है कि डॉक्टरों का पूरा पैसा रियल इस्टेट में इंवेस्ट हुआ है। डॉक्टरों के पैसा के चलते ही राजधानी, न्यायधानी में जमीनों का रेट आसमान छू रहा। नया रायपुर के पास एक अस्पताल संचालक ने 45 एकड़ जमीन खरीदी है। धरसींवा के पास रायपुर के एक बड़े अस्पताल वाले ने 74 एकड़ जमीन परचेज की है। ये तो बानगी है। रायपुर, बिलासपुर में एक के बाद एक प्रोजेक्ट लांच होते जा रहे हैं, उन सभी में अस्पताल वालों का पैसा लगा है। वाह रे धरती के भगवान…। छत्तीसगढ़ में कोरोना ने सैकड़ों लोगों को छीन लिया…हजारों घरों को तबाह कर दिया और भगवानों के घर भर गए। बिलासपुर में अस्पताल संचालक का अपहरण करने वाले डॉक्टरों ने बयान दिया ही है बिना मेडिसीन दिए ही मेडिसीन का बिल वसूला गया। इसके बाद अब कुछ कहने के लिए नहीं बचता।

ओएसडी की नियुक्ति

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिन चार नए जिलों का ऐलान किया, उनमें जल्द ही एक-एक आईएएस, आईपीएस को प्रशासन और पुलिस का ओएसडी नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए मंथन शुरू हो गया है। नए जिलों के ओएसडी ही जिस दिन से जिला अस्तित्व में आता है, ओएसडी कलेक्टर और एसपी बन जाते हैं। अभी तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि नए जिलों के ओएसडी कलेक्टर या एसपी न बने हों। नए जिलों में आमतौर पर प्रमोटी आईएएस, आईपीएस को प्राथमिकता दी जाती है। वो इसलिए कि उन्हें नए जिलों में क्या-क्या चीजों की जरूरतें होती हैं, उन्हें पता होता है। हालांकि, पिछली सरकार में कुछ डायरेक्ट आईएएस को भी ओएसडी बनाया गया था। मसलन, बलौदा बाजार में राजेश टोप्पो। राजेश वहां ओएसडी से कलेक्टर ही प्रमोट नहीं हुए बल्कि पौने चार साल रहकर कलेक्टरी का रिकार्ड बनाया। नए जिलों में सक्ती को छोड़कर सारे जिलों का नामकरण और जिला मुख्यालय तय हो गया है। वैसे सक्ती को लेकर कोई विवाद नहीं है, इसलिए उसका नाम यथावत रहने वाला है।

कलेक्टर इन वेटिंग

जिलों की संख्या बढ़ने से लगता है कि कलेक्टरों की वेटिंग अब कम होगी। मगर छत्तीसगढ़ में हो उल्टा रहा है। जिले 18 से बढ़कर 32 हो गए। लेकिन, कलेक्टरों की वेटिंग कम होने का नाम नहीं ले रहा। अब देखिए न…दीगर राज्यों में 2015 बैच वाले कलेक्टर बन गए हैं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में अभी 2013 बैच कंप्लीट नहीं हुआ है। डॉ0 जगदीश सोनकर और राजेंद्र कटारा अभी भी क्यूं में हैं। 2014 बैच में भी छह आईएएस हैं। प्रमोटी में भी संजय अग्रवाल, दिव्या मिश्रा जैसे अफसर हैं, जिन्हें कलेक्टरी मिलना ही है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ में 2015 बैच को कलेक्टरी 2023 के पहले संभव प्रतीत नहीं होता। छत्तीसगढ़ में वेटिंग क्लियर न होने के पीछे बड़ी वजह यह है कि 2005 से अचानक हर साल अफसरों की संख्या बढ़ गई। पहले एक बैच में इक्का-दुक्का आईएएस मिलते थे। 2002 बैच में मात्र दो अफसर मिले। उधर, प्रमोटी आईएएस की संख्या भी बढती गई।

नो वाइन, नो व्हीस्की

पुलिस और आर्मी के मेस में अगर जाम न छलके तो फिर मेस नाम क्यों? लेकिन, रायपुर के पुलिस मेस में कुछ ऐसा ही हो रहा है। राजधानी के मेस का पदेन इंचार्ज रेंज आईजी होते हैं। रेंज आईजी माने डॉ0 आनंद छाबड़ा। छाबड़ा के साथ दिक्कत यह है कि पंजाबी होने के बाद भी सिर्फ खाने के शौकीन हैं। दूसरा वाला बिल्कुल नहीं। और डीजीपी का नाम भगवान से शुरू होता है…दुर्गेश माधव… महाकाल के भक्त। दोनों ने मिलकर तय कर दिया….नो शराब। बकायदा आदेश भी निकल गया है बिना डीजीपी के एप्रुवल के पुलिस आफिसर मेंस में पार्टियों में शराब सर्व नहीं होगी। अब उन दोनों को कौन समझाए बिना शराब की कोई पार्टी होती है…। आजकल तो बिना शराब की शादियां नहीं होतीं। लेकिन, बताने वालों का कहना है, पुलिस मेस में शराब बैन करने का कारण कुछ आईपीएस हैं। वे थोड़े से में ही झूमने लगते थे। तीन पैग लिए तो अंग्र्रेजी बोलना और चार से उपर हुआ तो फिर नागिन डांस स्टार्ट। याने मजबूरी का नाम नो वाईन, नो व्हीस्की।

पोस्टिंग का रिकार्ड?

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के नए कुलपति के सलेक्शन के लिए सलेक्शन कमिटी की बैठक होने वाली है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम कमिटी के चेयरमैन हैं और एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू और समाजवादी नेता आनंद मिश्रा मेम्बर। वीसी के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों ने आवेदन किया है। लेकिन वर्तमान कुलपति संजय पाटिल के बारे में कहा जा रहा है कि वे लगातार तीसरी बार कुलपति बनकर कहीं रिकार्ड न बना दें। हालांकि, बाहरी व्यक्ति का हवाला देकर उनका विरोध भी किया जा रहा लेकिन, जो समीकरण दिख रहा, उसमें वे भारी पड़ते दिख रहे हैं। बीजेपी शासनकाल में लगातार दो बार वीसी रहने के बाद भी कांग्रेस सरकार में भी उनका नाम सबसे उपर आ रहा तो फिर इसके बाद कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

बड़ी बात

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के कार्यवाहक जज जस्टिस प्रशांत मिश्रा आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर जा रहे हैं। वहां के चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद दूसरा मौका होगा, जब छत्तीसगढ़ के रहने वाले कोई जस्टिस प्रमोट होकर हाईकोर्ट चीफ जस्टिस बनकर जा रहा है। इससे पहिले सुनील सिनहा सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर गए थे। हालांकि, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट काफी बड़ा है। वहां 37 जज हैं।

एसपी की धड़कनें

मुख्यमंत्री 5 अक्टूबर को एसपी, आईजी की कांफ्रेंस लेने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस साल में एकाध बार हो ही जाती है लेकिन इस बार एसपी साब लोगों की कांफें्रस की खबर पढ़ने के बाद धड़कनें बढ़ी हुई है। पता चला है, जिन एसपी के पारफारमेंस संतोषजनक नहीं होंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। याने छुट्टी। भय की वजह यह है कि एसपी की पोस्टिंग में कोई सिफारिश नहीं चली थी। तो फिर उन्हें पारफारमेंस देना चाहिए। लेकिन, वस्तुस्थिति यह है कि कई जिलों मे पोलिसिंग की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कई बड़े नाम वाले एसपी साब लोगों के जिले में पोलिसिंग बेपटरी है। मुख्यमंत्री ने जबकि चेताया हुआ है कि जुआ, सट्टा जैसे अपराधों पर अंकुश लगाई जाए। लेकिन, कई एसपी साहबानों के संरक्षण में ये सब काम हो रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वर्तमान सियासी हालात में पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम किधर से बैटिंग कर रहे हैं?
2. उदय किरण जैसे फ्री स्टाईल बैटिंग करने वाले एसपी की सूबे के किस जिले में सबसे अधिक जरूरत है?

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