तरकश, 26 फरवरी
ताजपोशी के पीछे
सुनील कुमार को सीएस बनें पखवाड़ा भर निकल गया मगर कुछ सवाल ऐसे हैं, जो लोगों को अभी भी मथ रहे हैं। मसलन, हफ्ते भर में प्रभारी सीएस से सीएस कैसे बन गए और सरकार को बनाना ही था तो उसी समय क्यों नहीं, जब प्रभारी का आर्डर निकला था। किन्तु धीरे-धीरे रहस्यों से पर्दा अब उठ रहा है। बताते हैं, सीएस बनने पर ब्रेक लगने के बाद नारायण सिंह ने आखिरी दांव चलते हुए प्रेशर बनाने के लिए 6 फरवरी को शाम छह बजे एक महीने की छुट्टी का आवेदन भेज दिया। उनकी अर्जी जैसे ही सीएम सचिवालय पहुंची, खलबली मच गई। सरकार के रणनीतिकारों को इस बात की आशंका थी और खुफिया खबर भी मिली कि आदिवासी अधिकारी मीटिंग कर रहे हैं और आदिवासी नेताओं में भी कुछ पक रहा है। जाहिर है, कोई आदिवासी नेता अगर इस पर बोल देता तो सरकार की मुश्किलें बढ़ जाती। सो, डाक्टर साब को फौरन इतला किया गया। आदिवासी अफसर की उपेक्षा और नाराज होकर नारायण गए छुट्टी पर......खबर मीडिया में उछले, इससे पहले सरकार ने बड़ा फैसला ले लिया। फटाफट नोटशीट बनीं और नारायण का आवेदन मिलने के ठीक घंटे भर बाद सात बजे मुख्यमंत्री ने पूर्णकालिक सीएस के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया। और रमन के रणनीतिकारों की स्ट्रेज्डी सफल रही। सुनील बाबू की ताजपोशी की मीडिया में इतनी टीआरपी मिली कि बाकी चीजें स्वयमेव गौण हो गई। हालांकि, अंदर की बात है, पिछले साल सुनील कुमार जब दिल्ली में थे, तभी मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएस बनाने का फैसला कर लिया था। और राज्योत्सव के समय ही ताजपोशी का प्लान भी था। मगर किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो़ सका। इसके बाद जनवरी आखिरी का समय चुना गया। इशारा होने के बाद पी जाय उम्मेन छुट्टी पर चले गए और सुनील कुमार को पहले प्रभारी बनाया गया कि एकाध महीने के भीतर उनकी ताजपोशी कर दी जाएगी। मगर नारायण ने राह आसान कर दी।
गोपनीयता
शीर्ष स्तर पर सर्जरी में रमन के रणनीतिकारों ने इतनी सतर्कता बरती कि आखिरी वक्त तक किसी तो भनक नहंी लगी। शाम पांच बजे तक मंत्रालय के आईएएस दावा करते रहे कि उम्मेन साब जून तक खींच ले जाएंगे। इसी तरह मंत्रालय में सिकरेट्रीज की लिस्ट का पता तब चला, जब सामान्य प्रशासन विभाग से आदेश पर हस्ताक्षर हो गया। इसी तरह आईपीएस अधिकारियों का भी रहा। रात नौ बजे लिस्ट निकली और मीडिया के जरिये उन्हें इसका पता चला। दरअसल, लिस्ट के नाम बाहर आ जाने से सिफारिशी फोन घनघनाने लगते हैं। और इस वजह से कुछ बार ऐसा भी हुआ कि आदेश निकलने से पहले लिस्ट को पासपंड करना पड़ गया। ऐसे में सीएम सचिवालय का गोपनीयता पर ध्यान देना लाजिमी है।
एक म्यान और
बिलासपुर की कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रमन सरकार ने दो पंजाबी पुत्तरों को आईजी और एसपी पोस्ट किया तो लगा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। मगर इसके उलट वहां दोनों के बीच भांगड़ा शुरू हो गया है। आईजी जीपी सिंह ने एक विवादास्पद टीआई को सस्पेंड किया तो एसपी राहुल शर्मा ने उसे बहाल कर दिया। गुस्से से लाल आईजी ने टीआई को फिर सस्पेंड कर दिया। यह तो एक बानगी है, बिलासपुर में ऐसे कई किस्से चर्चा में हैं। हालांकि, यह भी सही है, आईजी साब को पांचेक साल बाद फील्ड की पोस्टिंग मिली है, इसलिए जोश स्वाभाविक है। सत्ता में तगड़ी पैठ भी है। सो, आउट होने का खतरा भी नहीं है। इसलिए कप्तानी अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। अलबत्ता, उनकी सक्रियता को आम लोग पसंद कर रहे हैं और लोगों को अरसे बाद महसूस हो रहा है कि पुलिस नाम की कोई चीज है। मगर इसी के साथ एक दूसरी खबर है। राहुल शर्मा मोबाइल पर बात करते हुए घर के आंगन में गिर गए और उनके पैर में सरिया गड़ गया। बताया गया, उनके पैर में 10 टांके लगे है। इसके बाद वे 25 दिन की छुट्टी पर चले गए। यह कारण लोगों को हजम नहीं हो रहा है। एसपी के आंगन में सरिया कहां से आ गया? ऐसे में लोग चटखारे तो लेंगे ही, कहीं एक म्यान में दो तलवार वाली बात तो नहीं है।
माटी पुत्र
बिलासपुर में खुल रहे नए विवि का कुलपति बनने के लिए जबर्दस्त लाबिंग चल रही है। कुछ रिटायर आईएएस जोर मार रहे हैं तो रायपुर, भोपाल, मणिपुर से लेकर इलाहाबाद और वाराणसी तक के प्रोफेसर भी लगे हुए हैं। कोई ठेठ संघी बन गया है तो कुछ लोग अपने को कट्टर भाजपाई साबित करने में जुटे हुए हैं। एक वर्ग माटी पुत्रों को मौका देने की बात भी उठा रहा है। याने काबिलियत कोई मापदंड नहीं है। बस, माटी पुत्र होना चाहिए। रायपुर, बस्तर, सरगुजा और ओपन यूनिवर्सिटी में तो आखिर माटी पुत्र ही विराजमान हैं। लक्ष्मण चतुर्वेदी के हटने के बाद राजधानी के रविशंकर विवि की क्या स्थिति है, बताने की जरूरत नहीं है। ऐसे ही माटी पुत्रों को अगर कुलपति बनाना हो तो विश्ववि़द्यालयों की संख्या बढ़ाने के अलावा और कोई लाभ नहीं होगा।
दुखी स्टाफ
वैसे तो मंत्रियों के स्टाफ का बड़ा जलवा रहता है। हाल ही में एक मंत्री के पीए की बेटी का जन्मदिन रायपुर के वीआईपी रोड स्थित एक बड़े होटल में किस तरह शान से मनाया गया और एक पीसीसीएफ समेत दो दर्जन से अधिक आईएफएस अधिकारी शरीक हुए, उसे सबने देखा। मंत्रियों में अमर अग्रवाल अपवाद हो सकते हैं और कुछ हद तक राजेश मूणत, जिनके लोगों को तीन-पांच करने का मौका शायद ही मिल पाता हो। एक यंग्री यंग मैन मंत्री का स्टाफ तो अपनी किस्मत को कोस रहा है। लाल-हरे गांधीजी वाले कागजों को कौन कहें, दौरे एवं कार्यक्रमों में नाश्ता-पानी भी नसीब नहीं हो पाता। मंत्रीजी के सामने जब भी काजू-बादाम का ट्रे आता है, भौंह चढाएं, मैं नहीं खाता, कहकर आगे बढ़ जाते हैं। अब मंत्री नहीं लेते तो स्टाफ कैसे हाथ बढ़ाएं। न्यू रायपुर के दौरे में ऐसा ही हुआ। कई घंटे भूखे-प्यासे रह गए। ऐसे में स्टाफ बेचारे क्या करें। यह कहकर खीज मिटाते हैं, मंत्रीजी बस, एक ही चीज खाते हैं।
कलेक्टरी या...
राज्य के अधिकांश कलेक्टर और एसपी पालिटिशियन जैसे काम कर रहे हैं। सबका एक सूत्रीय एजेंडा है, इलाके के मंत्रियों और पार्टी के बड़े नेताओं को खुश रखो और खुद भी खुश रहो। जरूरत पड़ने पर कांग्रेसी नेताओं को भी खुरचन पानी दे दो। और जब ये आलम हो तो जनोन्मुखी योजनाओं से वास्ता रखने की जरूरत भी क्या है। नक्सल इलाके के कलेक्टर, एसपी के पास वैसे भी कोई काम नहीं है। सुरक्षा के कारण दौरे पर जा नहीं सकते। नक्सल के नाम पर इलाके के विकास के लिए केंद्र से करोड़ों रुपए आ रहे हैं। आखिर, ये पैसा खर्च तो होना चाहिए न। सो, कई जिलों में प्रशासन और पुलिस के प्रंमुखों ने ठेकेदारी शुरू कर दी है। प्रशासनिक अधिकारियों के पसंदीदा ठेकेदार रोड से लेकर डेम तक बना रहे हैं। और अधिकांश निर्माण कागजों में हो रहा। नक्सली इलाके में फिजिकल वेरिंिफकेशन करने की हिम्मत किसके पास है। मसलन, स्कूल भवन बना नहीं, और बाहर से मलबा डालकर शो कर दो, नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिया। बिल तो आखिर पूरे का ही पास होगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एमके राउत को कृषि विभाग का प्रींसिपल सिकरेट्री और सुब्रमण्यिम को बीज विकास निगम का एमडी विभाग को ठीक करने के लिए बनाया गया है या किसी और को ठीक करने के लिए?
2. राजस्व मंडल में फेरबदल की खबर से आईएएस और बस्तर के आईजी बदलने की बात से आईपीएस अफसरों की धकधकी क्यों बढ़ जाती है?
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