21 अप्रैल
भूपेश बघेल सरकार ने लोकसभा इलाके की दृष्टि से मंत्रियों को प्रभारी मंत्री बनाए थे और उन्हें ही चुनाव संचालन की कमान सौंपी गई है। मसलन, ताम्रध्वज साहू को दुर्ग, टीएस सिंहदेव को सरगुजा, रविंद्र चौबे को बिलासपुर, मोहम्मद अकबर को राजनांदगांव। तो भाजपा ने इनके खिलाफ अपने पूर्व मंत्रियों को एक-एक लोकसभा सीट का चुनाव संचालक बनाया है। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, बिलासपुर में अमर अग्रवाल, दुर्ग में प्रेमप्रकाश पाण्डेय, राजनांदगांव में राजेश मूणत, महासमुंद में अजय चंद्राकर। इसी तरह दीगर मंत्रियों को भी अन्य लोस सीटों का चुनाव संचालक बनाया है। कांग्रेस से सिर्फ दो ही नाम बड़े हैं। रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर। बाकी के सामने 15 साल वाले मंत्री हैं। महासमुंद में अजय चंद्राकर के सामने रुद्र गुरू, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल के सामने शिव डहरिया। जाहिर है, लोकसभा चुनाव में मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी।
भूपेश बघेल सरकार ने लोकसभा इलाके की दृष्टि से मंत्रियों को प्रभारी मंत्री बनाए थे और उन्हें ही चुनाव संचालन की कमान सौंपी गई है। मसलन, ताम्रध्वज साहू को दुर्ग, टीएस सिंहदेव को सरगुजा, रविंद्र चौबे को बिलासपुर, मोहम्मद अकबर को राजनांदगांव। तो भाजपा ने इनके खिलाफ अपने पूर्व मंत्रियों को एक-एक लोकसभा सीट का चुनाव संचालक बनाया है। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, बिलासपुर में अमर अग्रवाल, दुर्ग में प्रेमप्रकाश पाण्डेय, राजनांदगांव में राजेश मूणत, महासमुंद में अजय चंद्राकर। इसी तरह दीगर मंत्रियों को भी अन्य लोस सीटों का चुनाव संचालक बनाया है। कांग्रेस से सिर्फ दो ही नाम बड़े हैं। रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर। बाकी के सामने 15 साल वाले मंत्री हैं। महासमुंद में अजय चंद्राकर के सामने रुद्र गुरू, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल के सामने शिव डहरिया। जाहिर है, लोकसभा चुनाव में मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी।
पूत कपूत तो….
एक रिटायर नौकरशाह ने राजभवन में पोस्टेड रहने के दौरान अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए बेटे को यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनवा दिया। लेकिन, बेटे ने अपने कृत्य से पिता का ही नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेसी बिरादरी को शर्मसार कर दिया। अपने ही डिपार्टमेंट की छात्रा से एकतरफा इश्क फरमाने एवं छेड़छाड़ के आरोप में यूनिवर्सिटी ने उसे सस्पेंड कर दिया है। पुलिस ने उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया है। बताते हैं, बेटे की आदत शुरू से बिगड़ैल वाली रही। अफसर जब एक जिले में कलेक्टर थे, तो वहां एक लड़की को लेकर दस दिन फरार रहा। पुलिस में रिपोर्ट भी हुई। लेकिन, उस समय निर्भया कांड नहीं हुआ था….इसलिए, उतनी जागरुकता नहीं थी। फिर, कलेक्टर का मामला था। इसलिए, नौकरशाही ने उसे बचा लिया था। यही नहीं, पिता के प्रिंसिपल सिकरेट्री रहने के दौरान बेटे ने सरकारी गाड़ी को 120 किमी की रफ्तार में डिवाइडर पर चढ़ा कर ऐसा डैमेज किया था कि शोरुम वाले ने हाथ खड़ा कर दिया था। हालांकि, अफसर अब रिटायर हो गए हैं। फिर भी, ब्यूरोक्रेसी की ओर से अफसर पुत्र को बचाने की कोशिशें शुरू हो गई है….यह बोलकर कि रिटायर हुआ तो क्या हुआ, था तो डायरेक्ट आईएएस। कमाल है।
सरकार लखनऊ में
लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में सबसे अधिक डिमांड छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल की है। यूपी के साथ ही बिहार, उडीसा और राजस्थान में स्टार प्रचारक के रूप में उनके कार्यक्रम तय कर दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ में 23 अप्रैल को चुनाव खतम हो जाएगा। इसके अगले दिन ही वे अपनी टीम के साथ यूपी रवाना हो जाएंगे। और, 24 अप्रैल से लेकर 18 मई तक वे लखनऊ में रहेंगे। पता चला है, प्रियंका गांधी ने उन्हें खासतौर पर लखनउ में ही कैंप करने कहा है। बीच-बीच में वे बिहार, उड़ीसा समेत दीगर राज्यों में प्रचार करने जाएंगे। लेकिन, मुख्य रूप से 25 दिन वे रहेंगे लखनऊ में। सीएम के साथ सोशल मीडिया से लेकर पार्टी पदाधिकारियों की पूरी टीम उनके साथ रहेगी। हालांकि, प्रियंका गांधी ने ऐसे दलित मंत्रियों को भी बुलाया है, जिनकी जाति के लोग यूपी में हैं। मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा है नहीं। यहां दलित में दोनों मंत्री सतनामी समुदाय से आते हैं। और, यूपी में सतनामी हैं नहीं। मुख्यमंत्रियों में भूपेश बघेल को मौका मिलने के पीछे एक वजह यह है कि यूपी, बिहार में कुर्मी जाति के वोटरों की संख्या ठीक-ठाक हैं। कांग्रेस आलाकमान का मानना है, अपने देशी अंदाज के भाषण से वे ओबीसी वर्ग को भी प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस के पास ऐसे चेहरे की कमी है, जो ओबीसी हो, लच्छेदार बोल लेता हो और अहम पद पर भी हो। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री खत्री पंजाबी हैं। लिहाजा, वोट की दृष्टि से उनका यूपी में कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत वक्ता अच्छे नहीं हैं। इसलिए, भूपेश बघेल को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि, आवश्यक सरकारी फाइलों को निबटाने के लिए मुख्यमंत्री बीच-बीच में रायपुर आते रहेंगे मगर कम समय के लिए।
राजनांदगांव अपवाद
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में सिर्फ राजनांदगांव एक अपवाद है, जहां के मतदाताओं ने अपने सांसद पर दूसरी बार भरोसा नहीं किया। मोतीलाल वोरा जैसे नेता को भी 1999 में हार का सामना करना पड़ा था। धरमलाल गुप्ता से लेकर अशोक शर्मा, शिवेंद्र बहादुर सिंह, देवव्रत सिंह को भी एक बार सांसद रहने के बाद अगली बार उन्हें सीट गंवानी पड़ी। राजनांदगांव के अलावे दस सीटों पर कांग्रेस, भाजपा के नेताओं को वहां के मतदाताओं ने कई-कई बार लोकसभा में भेजने में गुरेज नहीं किया। बस्तर से बलीराम कश्यप चार बार सांसद रहे। वहीं, कांकेर से सोहन पोटाई चार बार, रायपुर से रमेश बैस सात बार, दुर्ग से ताराचंद साहू चार बार, बिलासपुर से पुन्नूराम मोहले चार बार, रायगढ से विष्णुदेव साय चार बार, जांजगीर से चरणदास महंत और कमला पाटले दो-दो बार, सरगुजा से खेल साय तीन बार। इनके अलावे रायपुर और महासमुंद से स्व0 विद्याचरण शुक्ल आठ बार सांसद रहे। हालांकि, अब ये गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। क्योंकि, दोनों ही पार्टियों ने अपने अधिकांश पुराने चेहरों को बदल दिया है। 22 में से सिर्फ तीन ही दावेदार ऐसे हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने या सांसद में जाने का मौका मिला है। इनमें जांजगीर से बीजेपी से गुहाराम अजगले एक बार सांसद रह चुके हैं। महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी धनेंद्र साहू एक बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि, वे हार गए थे। सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी खेल साय ऐसे नेता हैं, जिन्हें तीन बार लोकसभा में जाने का मौका मिल चुका है।
ब्यूरोक्रेट्स और विदेश
सरकारी खर्चे पर साल में कम-से-कम एक बार विदेश हो आना नौकरशाहों का शगल रहा है। पिछली सरकार में कुछ ब्यूरोक्रेट्स साल में दो-दो फॉरेन ट्रिप कर डाले। यहां तक कि बाहर जाने वाली टीमों में एक-एक कर कई कलेक्टरों को भी सरकार ने विदेश घूमवा दिया। लेकिन, पिछले साल लोक सुराज के बाद अफसरों के विदेश जाने पर ऐसा ब्रेक लगा कि वो हट ही नहीं रहा है। असल में, लोक सुराज के दौरान रमन सरकार ने अफसरों के विदेश दौरे पर रोक लगा दी थी। इसके बाद विकास यात्रा और फिर विधानसभा चुनाव आ गया। चुनाव के बाद सूबे में आए सियासी सुनामी में सब कुछ बदल चुका था। अब, अफसर अपनी गद्दी बचाएं या विदेश जाएं? किसी की हिम्मत नहीं पड़ी….फॉरेन जाने की सोचे भी। झक मारकर न्यू ईयर भी छत्तीसगढ़ में ही सेलिब्रेट करना पड़ा। न्यू ईयर के बाद ट्रांसफर, पोस्टिंग की झड़ी लग गई। फिर, नई सरकार से सेटिंग का भी तो यही समय था। सेटिंग ठीक से हुई नहीं कि लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया। और, अब सुनने में आ रहा कि भूपेश सरकार अफसरों को तफरी करने के लिए विदेश नहीं भेजने वाली। याने नौकरशाहों के अच्छे दिन चले गए।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. दो मंत्रियों के नाम बताएं, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं?
2. दुर्ग के लोकसभा प्रत्याशी प्रतिमा चंद्राकर ने मंत्री ताम्रध्वज साहू के घर पर जाकर ऐसा क्या किया कि साहू वोटर नाराज हो गए?
2. दुर्ग के लोकसभा प्रत्याशी प्रतिमा चंद्राकर ने मंत्री ताम्रध्वज साहू के घर पर जाकर ऐसा क्या किया कि साहू वोटर नाराज हो गए?
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