संजय के दीक्षित
तरकश, 20 सितंबर 2020इसी हफ्ते सोमवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गृह विभाग के कामकाज का समीक्षा की। इस बार की बैठक कुछ अलग थी। सीएम ने पहले सहलाया। फिर, तगड़ा डोज दे डाला। रिव्यू में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, सीएस आरपी मंडल, एसीएस होम सुब्रत साहू, डीजीपी डीएम अवस्थी समेत पुलिस मुख्यालय के दो दर्जन से अधिक सीनियर अफसर मौजूद थे। बताते हैं, सीएम ने पहले अच्छे कामों के लिए पुलिस की सराहना की। खासकर नक्सल मोर्च पर मिली सफलता की। लेकिन, वो आखिरी के पांच मिनट…आईपीएस को भूलने में वक्त लगेगा। सीएम की भृकुटी ऐसी तनी कि अधिकारी बगले झांकते दिखे। दरअसल, आईपीएस अधिकारियों के शिकवे-शिकायते और आपसी खींचतान से सीएम आजिज आ गए थे। उनकी नोटिस में ये बात भी थी कि कुछ आईपीएस सोशल मीडिया के जरिये एक-दूसरे के खिलाफ कैम्पेन चलवा रहे हैं। मीटिंग के लास्ट में सीएम इस पर भड़क गए। उन्होंने यहां तक कह डाला….एक-दूसरे के खिलाफ खबरें चलवाना बंद करो…अभी भी समय है, सुधर जाओ, वरना दिक्कत में पड़ जाओगे। सरकार के मुखिया की तीखी नाराजगी का असर अधिकारियों के चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता था। मीटिंग के बाद सीएम हाउस से निकल रहे अधिकारियो के चेहरे उतरे हुए थे।
ओपी पाल के बाद
राजधानी में लाॅकडाउन का निर्णय ऐसे ही नहीं हुआ। सरकार में ही कुछ लोग आखिरी समय तक नहीं चाहते थे कि फिर से लाॅकडाउन किया जाए। उनका तर्क था कि पिछले बार लाॅकडाउन का कोई फायदा नहीं हुआ। मगर डीआईजी ओपी पाल का दोबारा कोविड इंफेक्टेड होना नौकरशाही को हिला दिया। अभी तक ऐसी धारणा रही कि एक बार कोविड संक्रमित होने के बाद आदमी टेंशन फ्री हो जाता है। मगर ओपी की खबर मिलने के बाद ब्यूरोक्रेट्स ही नहीं बल्कि राजधानी के बड़े नेता भी सहम गए। मंत्री अंडरग्राउंड हो गए। ओपी पाल देवेंद्र नगर के आफिसर्स कालोनी में रहते हैं। वहां के कई अधिकारियों और उनके यहां काम करने वाले संक्रमित हो चुके हैं। ओपी के बाद मंत्रालय और इंद्रावती भवन में अघोषित अवकाश जैसी स्थिति निर्मित हो गई थी। पाॅजिटिव केसों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। पता चला है, लाॅकडाउन के दौरान कोविड अस्पतालों की सुविधाएं बढ़ाने पर काम किया जाएगा।
घोड़ा चले हाथी की चाल
आदिवासी नेता मोहन मरकाम को जब पीसीसी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब कौन जानता था कि वे सवार को ही पटखनी देकर अलग राह पकड़ लेंगे। जाहिर है, मरकाम को पीसीसी चीफ बनवाने में टीएस सिंहदेव का हाथ था। अमरजीत भगत को मंत्री बनाने के लिए वे इसी शर्त पर राजी हुए थे कि मरकाम को पार्टी की कमान सौंपी जाए। चरणदास महंत का भी इसमें पूरा समर्थन मिला था। मगर सियासत में निष्ठा और वफादारी जैसी कोई चीज स्थायी होती नहीं। एक समय था, जब महंत पार्टी के प्रेसिडेंट थे और उन्होंने मरकाम को कोंडागांव ब्लाॅक अध्यक्ष बनाया था। वही महंत अपने गृह जिला जांजगीर का जिलाध्यक्ष नहीं बदलवा पा रहें। इसको लेकर हाॅट-टाॅक तक हो चुका है। टीएस की भी संगठन संबंधी कई सिफारिशों को मरकाम अनसूना कर चुके हैं। अब घोड़ा ढाई घर चलने की बजाए हाथी की चाल चलने लगे तो बाबा और दाउ दुखी तो होंगे ही न।
एसपी की लिस्ट
सूबे के कुछ जिलों के एसपी बदलने की चर्चा काफी दिनों से चल रही है। खासकर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर, गरियाबंद, जांजगीर जैसे कुछ जिलों के कप्तानों के नाम इसमें शामिल बताए जाते हैं। हालांकि, गरियाबंद का ज्यादा दिन नहीं हुआ है, लेकिन नाम चर्चा में है। मगर कोरोना के बढ़ते ग्राफ के दौरान नहीं लगता कि सरकार इस समय एसपी को बदलेगी। इसलिए, जो आईपीएस एसपी बनने के भागीरथ प्रयास में लगे हुए हैं, उन्हें अब कुछ दिन और वेट करना पड़ेगा।
केडीपी बन गए लेखक
पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की बाट जोहते रिटायर आईएएस केडीपी राव ने अब अखबारों में लेखन प्रारंभ कर दिया है। वे पिछले साल 31 अक्टूबर को एसीएस से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हीं के साथ उस समय के चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर भी रिटायर हुए थे। लेकिन, उन्हें छोटी-मोटी ही सही, पोस्टिंग मिल गई। केडीपी राव की रिटायरमेंट के दौरान राज्य सूचना आयुक्त बनाने की खबर थी। लेकिन, खबर परवान नहीं चढ़ सकी। हालांकि, अभी कई नियुक्तियां होनी है। जाहिर है, केडीपी उम्मीद से तो होंगे ही।
डीजीपी का आदेश और…
डीजीपी डीएम अवस्थी ने बिलासपुर जिले के बिल्हा थाने के टीआई का बलरामपुर ट्रांसफर किया। उन्होंने सिंगल आर्डर निकाला, इससे समझा जा सकता है कि शिकायत कुछ गंभीर टाईप की रही होगी। लेकिन, ट्रांसफर पर अमल नहीं हुआ। तीन लाईन के आदेश में बकायदा डीजीपी का दस्तखत है…तत्काल प्रभाव से लिखा है। उसके बाद भी एक टीआई बिलासपुर से हिलने के लिए तैयार नहीं हो रहा तो फिर सोचने वाली बात है। डीजीपी कोई भी रहे, कुर्सी का सम्मान तो होना ही चाहिए। आईपीएस अफसरों को भी इस पर मंथन करना चाहिए।
सितंबर लास्ट या…
बिहार में 29 नवंबर तक सरकार गठित होनी है। इसलिए, इस महीने के आखिरी या फिर अक्टूबर के पहले हफ्ते चुनाव का बिगुल बज जाएगा। समझा जाता है चुनाव आयोग मतदान का 15 से 20 नवंबर तक के बीच का कोई डेट फायनल करेगा। बिहार चुनाव के साथ ही छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा का उपचुनाव भी होगा। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन से खाली हुई इस सीट के लिए तय है ट्रेंगुलर फाइट होगी। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस, भाजपा और छजपा मैदान में होगी।
राडार पर
जांजगीर पुलिस ने कीटनाशक कंपनी के नाम पर व्यापारियों का गर्दन मरोड़ा है, वह सरकार की नोटिस में आ गई है। बताते हैं, एक कीटनाशक कंपनी के ट्रेडर्स कंपनी का पैसा लेकर फरार हो गया। कंपनी ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई और उधर पुलिस की निकल पड़ी। पुलिस ने ट्रेडर्स समेत अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और उस अन्य का पुलिसिया ट्रिक अपनाते हुए कई कीटनाशक कारोबारियों को लपेट लिया। आतंक ऐसा था कि कोरोना में जेल भेजने का हवाला देकर एक-एक से दस-दस पेटी तक वसूला गया। ऐसे में सरकार के राडार पर तो आना ही था।
आईपीएस के बाद अब आईएफएस?
आईपीएस के बाद अब आईएफएस की बहुप्रतीक्षित डीपीसी की अटकलें शुरू हो गई है। पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी समेत दर्जन भर से अधिक आईएफएस कतार में हैं। लोगों को हैरानी राकेश चतुर्वेदी को लेकर है। सरकार में उनकी ठीक-ठाक पैठ नजर आती थी। चीफ सिकरेट्री से भी अच्छी ट्यूनिंग है। इसके बाद वे हेड आफ फाॅरेस्ट नहीं बन पा रहे। और, जब पीसीसीएफ का अपना नहीं हो पा रहा तो बाकी के लिए वे कैसे प्रयास करेंगे…सवाल तो है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. अमित जोगी के कांग्रेस में शामिल होने के क्या सारे रास्ते अब बंद हो चुके हैं?
2. किस जिले को कलेक्टर नहीं, उनकी पत्नी चलाती हैं?
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