रविवार, 5 फ़रवरी 2023

रायपुर में एयरोसिटी

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 फरवरी 2023

रायपुर में एयरोसिटी

दिल्ली की तरह अपने रायपुर में भी एयरपोर्ट के पास एयरोसिटी बनेगी। पता चला है, जल्द ही इसका प्रॉसेज प्रारंभ होने वाला है। एयरपोर्ट के आसपास की जमीनों का लैंड यूज बदलने की कवायद शुरू हो गई है। सुब्रत साहू की जगह इसीलिए जनकराम पाठक को आवास और पर्यावरण विभाग का दायित्व सौंपा गया। सुब्रत के पास वर्कलोड काफी था। जनक के साथ जीतेंद्र शुक्ला ज्वाइंट सिकरेट्री होंगे। जीतेंद्र पिछले हफ्ते ही बेमेतरा कलेक्टर से रायपुर वापिस लौटे हैं। वे लंबे समय तक नगर निगमों के कमिश्नर रहे हैं...फिर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर भी। सो, जनक और जीतेंद्र की जोड़ी एयरोसिटी पर शीघ्र ही काम शुरू कर देगी। कोशिश है...एयरोसिटी सुविधाओं के मामले में दिल्ली से पीछे न हो। वहां होटल, क्लब के साथ ही लग्जरी बंगले बनेंगे। एयरोसिटी बनने से ओल्ड और नवा रायपुर के बीच कनेक्शन बढ़ेगा...नवा रायपुर भी डेवलप होगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 26 जनवरी के भाशण में भी एयरोसिटी बनाने का जिक्र किया था।

ऐसा भी खेला

रजिस्ट्री विभाग के जरिये राजधानी में बड़ा खेला चल रहा है। दरअसल, 25 डिसमिल से कम कृषि जमीन को प्लॉट माना जाता है और उसका मूल्यांकन प्लॉट के गाइडलाइन रेट से किया जाता है। प्लॉट के रेट और कृषि भूमि के रेट में पांच से दस गुना का फर्क रहता है। लेकिन शहरो में खेती-किसानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ये नियम निकाला कि अगर क्रेता अपना खेती का रकबा बढ़ाने के लिए अपने कृषि भूमि के सीमा से लगे भूमि को खरीदे, तब 25 डिसमिल से कम बिना लगी भूमि को भी कृषि भूमि मानी जाएगी। लेकिन, नौकरशाहों से लेकर भूमाफिया, इसका खूब फायदा उठा रहे हैं। आलम यह है कि रजिस्ट्री अधिकारियों के जरिये 25 डिसमिल से कम किसी भी जमीन को कृषि भूमि के रेट में धड़ल्ले से रजिस्ट्री किया जा रहा है। कुछ आईएएस अधिकारियों के यहां मारे गए छापे में इसका खुलासा हुआ। अलबत्ता, अधिकारियों, भूमाफियाओं और रजिस्ट्री अधिकारियों के इस मिली-जुली कुश्ती से सरकार को ना केवल स्टांप और रजिस्ट्री खर्चे का नुकसान हो रहा है, बल्कि इनकम टैक्स, कैपिटल गेन टैक्स, कच्चे के रकम में अदायगी के फलस्वरूप मनी लांड्रिंग को बढ़ावा मिल रहा है।

दाऊ भी नेता प्रतिपक्ष

पिछले तरकश में छत्तीसगढ़ नेता प्रतिपक्ष की अभिशप्त कुर्सी का जिक्र किया गया था...उसका सार यह था कि सूबे में जो भी नेता प्रतिपक्ष बनता है...या तो उसकी राजनीति खत्म हो जाती है या सिमट जाती है। तरकश की खबर पढ़कर सीएम भूपेश बघेल के एक पुराने करीबी व्यक्ति का फोन आया। बोले, क्या बताए भैया...अपने दाऊजी भी नेता प्रतिपक्ष बनना चाह रहे थे। 2013 में जब चुनाव जीते तो अगले दिन राहुल गांधी का दाऊ के पास फोन आया। राहुल बोले, सीपी मैम याने कांग्रेस प्रेसिडेंट मैम चाहती हैं कि आप पीसीसी चीफ बनें। मगर दाऊ की इच्छा थी नेता प्रतिपक्ष बनने की। वे हौले से बोले...राहुलजी, अधिकांश बड़े नेता चुनाव हार गए हैं, मेरी इच्छा थी कि मैं नेता प्रतिपक्ष बनूं, ताकि सदन में मजबूती से सरकार को घेरी जा सकें...सीपी मैम से एक बार बात करके देखिएगा। राहुल गांधी बोले, ठीक है। इसके बाद दाउजी निकल गए दौरे में। शाम तक जब दिल्ली से कोई फोन नहीं आया तो दाऊ के मन में शंकाएं उठने लगीं...कहीं मुंह खोल कर गलती तो नहीं हो गई...पता चला नेता प्रतिपक्ष के चक्कर में पीसीसी चीफ का पद भी हाथ से निकल गया। देर रात जब पाटन के एक कार्यकर्ता के यहां दाऊ चाय पी रहे थे तो उसी नंबर से फिर फोन आया। राहुल बोले, सीपी मैम चाहती हैं, आप पीसीसी चीफ ही बनें। इस तरह दाऊ नेता प्रतिपक्ष बनने से बाल-बाल बच गए। अगर नेता प्रतिपक्ष बने होते तो....जाहिर है जो भी बना उसका सब कुछ अच्छा नहीं रहा।

आदिवासी हिंदू नहीं

सरकार के आदिवासी मंत्री कवासी लखमा ने बड़ा बयान दिया है, आदिवासी हिंदू नहीं हैं। वैसे आदिवासी इलाकों में पोस्टर भी दिख रहे, आदिवासी हिंदू नहीं। उसमें सुप्रीम कोर्ट का हवाला भी दिया जा रहा। आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है। मगर सियासी पंडितों का मानना है, फौरी तौर पर इससे भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है। हालाकि, यह भी सही है कि सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले भाजपा शासन काल में ही बस्तर और सरगुजा में काफी चीजें शुरू हो गई थीं। पिछले चुनाव में बीजेपी इसे समझ नहीं पाई। और जो हुआ, उसे बताने की जरूरत नहीं। चुनावी साल में आदिवासी मंत्री ने जोर शोर से यह राग अलापा है तो समझा जाना चाहिए कहीं पर निगाहें हैं, कहीं पर निशाना है।

मंत्रिमंडल में सर्जरी

रायपुर में इस महीने कांग्रेस का अधिवेशन होने जा रहा है। सोनिया, राहुल, प्रियंका से लेकर पूरी कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में रहेगी। सियासी गलियारों में अटकलें चल रही कि अधिवेशन के तुरंत बाद सीएम मंत्रिमंडल की सर्जरी करेंगे। सरकार के चार साल से ज्यादा हो गए, सीएम भूपेश बघेल एक बार भी मंत्रिमंडल में परिवर्तन नहीं कर पाए हैं। पहले ढाई ढाई साल का इशू रहा। फिर यूपी का चुनाव आ गया और इसके बाद राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकल गए। इस साल नवंबर में चुनाव में जाने से पहले कोशिश होगी कि कुछ फ्रेश चहरों को लेकर सीएम भूपेष मैदान में उतरे।

मंत्री के दावेदार

केंद्रीय मंत्री के प्रबल दावेदार मीडिया से बात कर रहे थे। सवाल हुआ...लोग कह रहे हैं कि इस समय चुनाव हो जाए तो कांग्रेस एकतरफा सरकार बना लेगी। नेताजी भी इसे मान लिए। बोले, हां...मैं गलत नहीं बोलूंग...कांग्रेस मजबूत तो है। इस स्पष्टाविदाता के चलते नेताजी की ताजपोशी कहीं खतरे में तो नहीं पड़ जाएगी।

सरकार का नवाचार

सीएम भूपेश बघेल ने 26 जनवरी के भाषण में नवाचार आयोग के गठन का ऐलान किया था। और हफ्ते भर में इसका क्रियान्वन भी हो गया। पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड को नवाचार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। ढांड पौने चार साल सूबे के प्रशासनिक मुखिया रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद यह उनकी दूसरी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग होगी। पहली पोस्टिंग रेरा चेयरमैन की रही। पिछले महीने ही रेरा का कार्यकाल उनका समाप्त हुआ। नवाचार का गठन भी सरकार का एक नवाचार है। क्योंकि, दीगर किसी राज्य में इस नाम का कोई आयोग नहीं है। प्रशासनिक सुधार आयोग नाम से कुछ राज्यों ने जरूर आयोग बनाया है। विवेक ढांड ने भी बताया आयोग प्रदेश में इनोवेशन का वातावरण तैयार करेगा। इसमें प्रशासनिक सुधार भी शामिल होगा।

सिक्रेट्री का मजा नहीं

2007 बैच के आईएएस प्रमोट होकर सचिव बन गए। उनका पोस्टिंग आदेश भी निकल गया...मगर पोस्टिंग यथावत रही। हिमशिखर गुप्ता पहले स्पेशल सेक्रेटरी स्वतंत्र प्रभार थे। अब वहीं सेक्रेटरी हो गए। उनके अलावा सभी वहीं-के-वहीं। याने किसी को विभाग का इंडिपेंडेट चार्ज नहीं। हालांकि, सचिवों की संख्या अब ढाई दर्जन से अधिक हो गई है। लिहाजा, सरकार के पास अब विकल्प की कमी नहीं है। अब जिसका मुकद्दर ठीक रहेगा, उसे ही अच्छे विभागों का सिकरेट्री बनने का मौका मिलेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ से विजय बघेल केंद्रीय मंत्री बनेंगे या गुहाराम अजगले?

2. अगर मंत्रिमंडल की सर्जरी हुई तो बाहर जाने वालों में पहले नम्बर पर कौन मंत्री होंगे?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें