तरकश, 17 मार्च 2024
संजय के. दीक्षित
मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?
लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले छत्तीगसढ़ में ऐसे ट्रांसफर हुए कि लगा जैसे तबादलों पर से बैन हट गया हो। जाहिर है, बैन जब हटता है तो आखिरी दिनों में ऐसे ही आर्डर निकलते हैं। डेढ़ दिन वैसा ही कुछ रहा। इलेक्शन कमीशन के प्रेस कांफ्रेंस की खबर आते ही आदेशों की झ़ड़ी लग गई। सीईसी राजीव कुमार की पीसी होती रही और आदेश निकलते रहे। आखिर, दो महीने की बात थी। अप्रैल और मई तक ही तो वेट करना है। 4 जून को काउंटिंग हो जाएगी। पर मंत्रीजी लोग धीरज नहीं रख पाए। बृजमोहन जी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मगर बाकी मंत्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं। मंत्रिमंडल में सर्जरी की कोई आशंका भी नहीं। इतनी जल्दी सर्जरी होती भी नहीं। फिर मंत्रियों की हड़बड़ी लोगों को समझ में नहीं आई। अरे भाई, दो महीने बाद सरकार भी रहेगी और आप भी मंत्री रहेंगे, फिर ट्रांसफर को लेकर इतनी बेचैनी क्यों? सरकार की साख को इससे धक्का पहुंचता है।
छत्तीसगढ़ के सियासी योद्धा
छत्तीसगढ़ में तीन ऐसे सियासी योद्धा रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि पार्टी ने उन्हें सीट बदल-बदलकर लोकसभा चुनाव लड़ाया और वे जीते भी। नेता थे विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी और दिलीप सिंह जूदेव। हालांकि, विद्याचरण शुक्ल के चलते महासमुंद संसदीय सीट को देश में पहचान मिली...इस सीट से वे पांच बार सांसद चुने गए। मगर वे रायपुर और उससे बहुत पहले बलौदा बाजार से भी चुनाव लड़े और जीते थे। इसी तरह अजीत जोगी मरवाही से चार बार विधायक रहे ही शहडोल, रायगढ़ से एक-एक बार और महासमुंद सीट से दो बार चुनाव लड़े। रायगढ़ और महासमुद लोकसभा सीट से एक-एक बार जीते भी। इसके बाद अब दिलीप सिंह जूदेव। जूदेव की लोकप्रियता का ग्राफ छत्तीसगढ़ में सबसे उपर रहा। वे ऐसे लीडर थे, जो जशपुर से 300 किलोमीटर दूर जांजगीर और बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनावी रण में उतरे और अच्छे-खासे मतों से विजयी हुए। मगर अब छत्तीसगढ़ में इस कद के न नेता बचे और न उनकी लोकप्रियता है और न वैसा सियासी इच्छाशक्ति। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के जरिये भूपेश बघेल ने जरूर इस ट्रेक पर चलने की कोशिश की, मगर वे डिरेल्ड हो गए।
अभी मैं कलेक्टर...
छत्तीसगढ़ बनने से दो साल पहले 1998 की बात है। तब लोकसभा का चुनाव हुआ था और अटलजी की 13 महीने की सरकार बनी थी। उस दौरान रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस से अजीत जोगी मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी से नंदकुमार साय। रायगढ़ के कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। चुनाव प्रचार के दौरान शैलेंद्र ने कांग्रेस की कुछ गाड़ियों को जब्त करवा दिया। बताते हैं, अजीत जोगी ने उन्हें फोन किया। कलेक्टर ने नियमों का हवाला दिया तो जोगीजी भड़क गए। उन्होंने कहा, नियम-कायदा मैं भी जानता हूं, मैं भी कलेक्टर रहा हूं। शैलेंद्र काफी तेज-तर्रार आईएएस थे। उन्होंने यह कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया कि आप कलेक्टर रहे हैं और मैं अभी हूं। हालांकि, जोगीजी बेहद कम मार्जिन, यही कोई पांचेक हजार मतों से चुनाव जीत गए। मगर छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शैलेंद्र सिंह को पहले आर्डर में ही बिलासपुर कलेक्टर से मंत्रालय में बिना विभाग का डिप्टी सिकरेट्री बना दिया गया था। बहरहाल, अब ऐसे दम वाले कलेक्टरों का नस्ल विलुप्त हो गया। खासकर, छत्तीसगढ़ में।
लिफाफे में 300
एक सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाता इसलिए नाराज हैं कि वे शादी, छठी, बरही में जाते हैं तो उनके लिफाफे से 300 रुपए से ज्यादा निकलता नहीं। कभी-कभार ही 500 होता है, जब सांसद जी किसी बड़े आदमी के यहां जाते हैं। अब इस जमाने में तीन सौ का क्या मोल? सामान्य आदमी बड़े नेताओं को अपने घरेलू कार्यक्रमों में बुलाता है तो उसका उद्देश्य रुतबा बढ़ाना तो होता ही है मगर एक उम्मीद भी होती है कि नेताजी ने कुछ ठीक-ठाक ही किया होगा। बहरहाल, 300 वाले मुद्दे ने नेताजी का ग्राफ काफी गिरा दिया है। चूकि पार्टी ने उन्हें टिकिट दे दिया है तो उसे सीट निकालने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। वरना, खतरा मुंह बाये खड़ा है।
2005 बैच हुआ ताकतवर!
हर दौर में ब्यूरोक्रेसी का एक-दो बैच हमेशा प्रभावशाली रहा है। जैसे अभी विष्णुदेव साय सरकार में आईएएस, आईपीएस के 2005 बैच का जादू चल रहा है। अधिकांश महत्वपूर्ण जगहों पर इस बैच के अफसर विराजमान हैं। सीएम सचिवालय में 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत सिकरेट्री हैं तो अब उन्हें सुशासन विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। 2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल फायनेंस सिकरेट्री के साथ ही जीएसटी और जीएडी संभाल रहे हैं। पिछले दो सालों को छोड़ दें फायनेंस में डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन जैसे एसीएस लेवल के आईएएस रहे हैं। 2005 बैच की संगीता आर. आवास और पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री के साथ ही पौल्यूशन बोर्ड की चेयरमैन का दायित्व संभाल रही हैं। इन पदों पर कभी बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह जैसे अफसर रहे हैं। इसी बैच के आईएएस एस, प्रकाश के पास ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ सिकरेट्री की भी जिम्मेदारी हैं। तो राजेश टोप्पो सिंचाई संभाल रहे हैं। 2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा रायपुर पुलिस रेंज के आईजी के साथ ही ईओडब्लू, एसीबी के आईजी हैं। कुछ दिनों में वे इन दोनों जांच एजेंसियों के चीफ बन जाएंगे। वैसे, ये बैच कांग्रेस शासन काल में जरूर हांसिये पर रहा मगर बीजेपी के समय इन सभी अफसरों के पास अच्छे पोर्टफोलियो रहे।
ऋचा को फारेस्ट या हेल्थ?
1994 बैच की एसीएस रैंक की आईएएस अफसर ऋचा शर्मा का सेंट्रल डेपुटेशन समाप्त हो गया है। रिलीव होने के बाद वे अभी अवकाश पर हैं। अप्रैल के फर्स्ट वीक में वे लौटेंगी। ऋचा भारत सरकार में वन और जलवायु परिवर्तन में ज्वाइंट सिकरेट्री रह चुकी हैं। सो, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें फारेस्ट सिकरेट्री बनाया जाएगा या फिर हेल्थ सौंपा जाएगा। रेणु पिल्ले के हटने के बाद मनोज पिंगुआ को सरकार ने अभी हेल्थ की जिम्मेदारी सौंपी है। गृह, जेल के साथ वन तथा स्वास्थ्य। जाहिर है, ये तीनों काफी बड़े विभाग हैं...एक सिकरेट्री के लिए ये कतई संभव नहीं। सो, समझा जा रहा है, मनोज को टेम्पोरेरी तौर पर हेल्थ दिया गया है। ऋचा के लौटने पर मनोज का वर्क लोड कम किया जाएगा। अब देखना है कि ऋचा को हेल्थ का दायित्व मिलता है या फिर फॉरेस्ट का।
आईएएस का वर्चस्व
पिछला पांच साल डिप्टी कलेक्टरों और प्रमोटी आईएएस के लिए स्वर्णिम युग रहा। पहली बार ऐसा हुआ कि डीए में हमेशा आगे रहने वाले स्टेट वालों से आठ परसेंट पीछे हो गए थे। मगर अब स्टेट वाले पीछे हो गए और ऑल इंडिया सर्विस वाले केंद्र के बराबर पहुंच गए हैं। यहीं नहीं, पोस्टिंग में भी यह झलक रहा है। बड़े-बड़े विभागों में बैठे राज्य प्रशासनिक सेवा या प्रमोटी आईएएस की जगह अब आरआर वाले ले रहे हैं। मंत्रालय में तीन महीने पहले तक पांच प्रमोटी आईएएस सिकरेट्री थे, अब सिर्फ एक नरेंद्र दुग्गे बचे हैं। पिछली सरकार में अच्छी पोस्टिंग की वजह से साइडलाइन किए गए आईएएस भी वापिस लौट रहे हैं। सारांश मित्तर, पुष्पेद्र मीणा, विनीत नंदनवार को स्वतंत्र प्रभार मिल गए हैं। विनीत एपीओ याने अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर से सीधे ब्रेवरेज कारपोरेशन के एमडी बन गए हैं। हालांकि, उनके विरोधियों ने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहने के दौरान मां दंतेश्वरी मंदिर कारिडोर में घपले घोटाले की मुहिम चलवाकर उन्हें दंतेवाड़ा से हटवाया था मगर जांच में ऐसा कुछ मिला नहीं। लगता है, दंतेश्वरी माई की कृपा विनीत पर हुई है। वरना, एपीओ से सीधे...।
नॉट प्रमोटी आईएएस
सामान्य प्रशासन विभाग के राज्य प्रशासनिक सेवा शाखा में 2013 में शहला निगार स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार रहीं। उसके बाद इस विभाग में कभी आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस नहीं रहे। शहला के बाद करीब तीन साल रीता शांडिल्य इस विभाग की सिकरेट्री रहीं और उनके बाद पिछले सात साल से डीडी सिंह। राप्रेस संघ के विरोध के बाद सरकार ने डीडी सिंह को हटाकर 11 साल बाद डायरेक्ट आईएएस अंबलगन पी को एसएएस शाखा की जिम्मेदारी सौंपी है। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचे को ठीक करने के लिए आरआर को वहां बिठाया गया है। बता दें, छत्तीसगढ़ में चार सौ से अधिक एसएएस अफसर हैं। और ये सरकार और जनता के बीच के असली सेतु होते हैं।
कलेक्टरों के लिए शर्मनाक
जब छत्तीसगढ़ में बड़े जिले होते थे, तब भी कलेक्टर आफिस में मिल जाते थे। मगर अब दो-दो ब्लॉक के जिले हो गए, उसके बाद कलेक्टर आफिस नहीं आते और आते भी हैं तो अपने हिसाब से कभी वीसी हुआ तो आ गए या फिर मन पड़ा तो दो-एक घंटा बैठ लिए। आलम यह है कि सूबे के मुखिया को कहना पड़ रहा है कि कलेक्टर टाईम से आएं। कलेक्टर, एसपी कांफें्रस में सीएम ने कलेक्टरों से दो टूक कहा कि जब पांच दिन का सप्ताह हो गया है, तो पांच दिन अच्छे से काम करें, 10 बजे आफिस पहुंचे। वाकई! ये कलेक्टरों के लिए शर्मनाक है।
डीएमएफ दोषी?
कलेक्टर कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने डीएमएफ को लेकर कलेक्टरों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मुझे पता है कि पहले के कुछ कलेक्टर डीएमएफ में खूब भ्रष्टाचार किए हैं। उन्होंने कलेक्टरों को वार्निंग दी कि अब डीएमएफ में गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। दरअसल, भारत सरकार ने नेताओं की बजाए कलेक्टरों को माइनिंग फंड की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी कि कलेक्टर एक अथॉरिटी होते हैं...जिलों में न्यायपूर्ण काम होंगे। मगर छत्तीसगढ़ में डीएमएफ ने कलेक्टरांं को भ्रष्ट बना दिया। पैसा आदमी का दिमाग खराब कर देता है...छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कई-कई सौ करोड़ डीएमएफ फंड है। कलेक्टर उसके मालिक होते हैं। कलेक्टरों का एक सूत्रीय कार्य हो गया है कि डीएमएफ के पैसे को कैसे खर्च किया जाए। कलेक्टरों के कंपीटिशन में एसपी भी शुरू हो गए। कलेक्टर जिले का काम इसी गुनतारे में लगे रहते हैं कि डीएमएफ के करोड़ों रुपए को किस मद में खर्च किया जाए कि ज्यादा-से-ज्यादा कमीशन मिल जाए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. ट्रांसफर के प्रेशर से घबराए किस-किस विभाग के सिकरेट्री भगवान से गुहार लगा रहे थे, प्रभु जल्दी आचार संहिता लगवा दें?
2. गृह विभाग ने दमदारी से बड़े-बड़े ट्रांसफर किए मगर हफ्ते-दस दिन में ही उसे कई को निरस्त क्यों करना पड़ गया?
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