तरकश, 24 मार्च 2024
संजय के. दीक्षित
लोकसभा चुनाव और 2 नेताओं का भाग्योत्कर्ष
लोकसभा का टिकिट मिलने से मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कितने खुश हैं ये तो पता नहीं। मगर छत्तीसगढ़ के तीन शीर्ष नेताओं के भाग्योत्कर्ष में लोकसभा चुनाव की बड़ी भूमिका रही है। छत्तीसगढ़ बनने से पहिले 1998 में अजीत जोगी शहडोल संसदीय सीट से चुनाव लड़े और पराजित हो गए थे। मगर उनकी हार में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की कुर्सी छिपी हुई थी। जरा सोचिए, जोगी अगर शहडोल से चुनाव जीत गए होते तो उन पर मध्यप्रदेश का लेवल लग जाता। और फिर दूसरे राज्य का एमपी छत्तीसगढ़ का सीएम कैसे बनता? याने जोगीजी के लिए शहडोल इलेक्शन लकी रहा। उसके बाद वे 99 में रायगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़े और जीते। फिर इसके दो साल बाद राज्य बना तो प्रथम मुख्यमंत्री अपाइंट हुए। इसके बाद डॉ0 रमन सिंह। कवर्धा से चुनाव हारने के बाद वे खाली थे। पार्टी ने 99 के इलेक्शन में उन्हें राजनांदगांव सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा के खिलाफ चुनावी रण में उतारा। वोरा मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री, यूपी के राज्यपाल और केंद्र में कई विभागों के मंत्री रह चुके थे। ऐसे हाईप्रोफाइल नेता को चुनाव में पटखनी देने का इनाम रमन सिंह को मिला और उन्हें केद्र में राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद फिर छत्तीसगढ़ में पार्टी प्रेसिडेंट और उसके बाद 2003 में मुख्यमंत्री। कहने का आशय यह है कि अगर रमन सिंह ने लोकसभा चुनाव नहीं जीते होते तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ होता। जोगी और रमन के अलावे छत्तीसगढ़ में एक दिग्गज नेता ऐसे हुए, जो लोकसभा चुनाव के जरिये देश में अपने साथ रायपुर, महासमुंद और छत्तीसगढ की पहचान स्थापित किए। करीब 45 साल की सियासत में विद्याचरण शुक्ल ने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। हमेशा लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाए और आठ बार संसद में पहुंचे। उस समय कांग्रेस के पास विधायकों की फौज होती थी, मगर दो बार हारने के बाद भी विद्या भैया ने कभी पिछले दरवाजे याने राज्यसभा में जाने का प्रयास नहीं किया।
मंत्री का रांग नंबर
खटराल पीएस के चक्कर में एक मंत्रीजी बोल्ड होने से बाल-बाल बच गए। दरअसल हुआ ये कि पीएस चाह रहे थे कि सीमेंट कंपनी वाले उनकी खुशामद करें। मगर उसने पीएस को लिफ्ट नहीं दिया। सो, उन्होंने मंत्री के दिमाग में भर दिया कि पहले वाली सरकार में फलां सीमेंट प्लांट वाला बड़ा ध्यान रखता था और अब रिस्पांस नहीं दे रहा है। मंत्रीजी ठहरे सीधे-सादे...बोले, मंत्री को क्या समझ रखा है, बुलाओ उसके अफसरों को। मंत्रीजी के यहां सीमेंट प्लांट के सबसे बड़े अफसर सिर लटकाए पेश हुए। मंत्रीजी बोले...मैं आपसे बात नहीं करूंगा, अपने मालिक से बात कराओ। अब अफसर न मंत्रीजी को ना कर सकता था और ना ही मालिक से सीधे बात। सीमेंट कंपनी के मालिक देश के नामी उद्योगपति हैं, अफसर सीमेंट प्लांट जैसी छोटी यूनिट के हेड। भला इतने बड़े इंड्रलिस्ट से कैसे बात कर सकते थे। यह बात बीजेपी के एक बड़े नेता के कान तक पहुंची। उन्होंने मंत्रीजी को बुलाकर समझाया, ऐसे रांग नंबर डायल करोगे तो निबट जाओगे। असल में, उद्योगपति इतने बड़े लेवल के हैं कि पीएम और गृह मंत्री के नीचे शायद ही किसी से बात करते हो। अब मंत्रीजी उनसे बात कर रौब झाड़ते तो समझना बड़ा आसान है कि उनका फिर क्या होता।
अब ट्रांसफर नहीं
छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का ऐलान होते तक ट्रांसफर की झड़ी लगी रही। एकबारगी लगा जैसे ट्रांसफर पर से बैन समाप्त होने का लास्ट दिन आ गया है। अव्वल तो ये कि कई विभागों के ट्रांसफर आदेश मीडिया में जारी नहीं हुए...ट्रांसफर करके गुपचुप सर्वसंबंधितों को आदेश भेज दिए गए। इसमें अंदर की खबर यह है कि सरकार भी तबादलों से खुश नहीं है। अधिकांश आदेश रोक दिए गए थे। मगर लोकसभा चुनाव की मजबूरी थी। मंत्री से लेकर नेता तक लगे रिरियाने। कार्यकर्ता काम कैसे करेंगे? नेता लगे महिलाओं टाईप मुंह फुलाने। हालांकि, कार्यकर्ताओं की आड़ में कई विभागों में जमकर खेला हुआ। मगर अब सुनने में आ रहा कि ये लास्ट था। अब जब बैन खुलेगा, तभी इस तरह थोक में तबादले होंगे। उससे पहले बिल्कुल नहीं।
पार्टी में घिरे भूपेश
राजनांदगांव संसदीय सीट से कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उतारकर मुकाबले को हाई प्रोफाइल बना दिया है। मगर भूपेश पर बीजेपी से ज्यादा घर के भीतर से हमले हो रहे हैं। वो भी सार्वजनिक ढंग से। घायल फिल्म का उस डायलॉग की तरह। सन्नी देयोल के घायल में एक मशहूर डायलॉग था...पिंजरे में बंद शेर को बच्चे भी फल्ली फेंक कर मारते हैं। बहरहाल, विडंबना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को चुनाव लड़ने वाले चेहरों का टोटा है वहीं, जहां पार्टी मुकाबले में है, वहां पुराना हिसाब चूकता करने की सियासत हो रही है। असल में, कांग्रेस नेताओं को डर इस बात का भी है कि राजनांदगांव चुनाव से भूपेश बघेल की सियासी हैसियत कहीं बढ़ न जाए। ऐसे में, भूपेश के लिए डगर कठिन है।
वन ईयर पोस्टिंग
राज्य सरकार ने सूचना आयोग में खाली चार पदों में से दो पर नियुक्ति कर दी। इनमें से दो पद 2022 में खाली हुए थे और दो पद चार दिन बाद 28 मार्च को खाली हो जाएंगे। पिछली सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का विज्ञापन किया था मगर तब प्रॉसिजर कंप्लीट होने के बाद भी नियुक्ति नहीं कर पाई और आचार संहिता लग गया था। बीजेपी की सरकार ने 28 मार्च को खाली हो रहे दो सूचना आयुक्तों के लिए विज्ञापन किया था। मगर सही कंडीडेट नहीं मिलने की वजह से मुख्य सूचना आयुक्त की पोस्टिंग नहीं की गई। यही नहीं, चार में से सिर्फ दो पदों पर नियुक्ति हुई है। रिटायर आईएएस नरेंद्र शुक्ला को सूचना आयुक्त बनाया गया है। नरेंद्र शुक्ला का कार्यकाल सबसे छोटा सिर्फ एक साल दो महीने का होगा। क्योंकि, अगले साल वे 65 वर्ष के हो जाएंगे। यह पहली बार होगा, जब इतने कम समय के लिए किसी सूचना आयुक्त की नियुक्ति हुई होगी। चलिए, अच्छा है, अगले साल एक वैकेंसी और हो जाएगी। याने दावेदारों की उम्मीदें बनी रहेंगी।
छत्तीसगढ़ के अमिताभ?
आरपी मंडल के रिटायर होने के बाद अमिताभ जैन नवंबर 2020 में छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री अपाइंट किए गए थे। अमिताभ का टेन्योर सवा तीन साल से ज्यादा हो गया है। उनसे पहिले बीजेपी सरकार में ही विवेक ढांड पूरे चार साल सीएस रहे। रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान डीएस मिश्रा और एमके राउत लाख प्रयास करते रहे मगर ढांड की कुर्सी को हिला नहीं पाए। लंबा कार्यकाल में दूसरे नंबर पर हैं पी जाय उम्मेन। वे सवा तीन साल सीएस रहे। अमिताभ अब उन्हें क्रॉस कर गए हैं। याने ढांड के बाद दूसरे नंबर पर। अमिताभ का अगले साल मई में रिटायरमेंट है। इससे पहले, इसी साल नवंबर में उनका चार साल हो जाएगा। याने इस साल नवंबर में वे ढांड का रिकार्ड ब्रेक कर देंगे। ढांड की तरह अमिताभ भी माटी पुत्र हैं। दल्लीराजहरा के रहने वाले अमिताभ मध्यप्रदेश हायर सेकेंड्री बोर्ड में मेरिट में टॉप आए थे। दो बार वे सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं। भारत सरकार में रहने के दौरान लंदन में भी पोस्टेड रहे।
चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग
छत्तीसगढ़ कैडर के एक आईएएस अफसर को एक बड़ी चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग मिली है। उनके लिए दुनिया की सीमा कोई मायने नहीं रखेगी। इस विभाग में आमतौर पर आईपीएस ज्यादा जाते हैं। क्योंकि, आईपीएस के नेचर का ये काम है। मगर प्रतिनियुक्ति पर चल रहे आईएएस अधिकारी अपनी इच्छा से इस विभाग में गए हैं। यह पोस्टिंग काफी संवेदनशील मानी जाती है लिहाजा, उसका नाम नहीं लिखा जा सकता।
सचिवों की पोस्टिंग
अप्रैल के फर्स्ट वीक में सेंट्रल डेपुटेशन से दो आईएएस अफसर छत्तीसगढ़ लौटेंगे। इनमें ऋचा शर्मा और सोनमणि बोरा शामिल हैं। ऋचा एसीएस लेवल की हैं तो सोनमणि प्रिंसिपल सिकरेट्री। दो सीनियर सिकरेट्रीज के आने पर उनकी पोस्टिंग के लिए एक और प्रशासनिक सर्जरी की जाएगी। इसके लिए कुछ सचिवों के पास अतिरिक्त प्रभार है, उसे कम किया जाएगा। छत्तीसगढ़ में सचिवों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है, उससे आने वाले समय में वे विभागों के लाले पड़ जाएंगे। याने नीचे लेवल पर अब सचिवों को अब एकाध विभागों से संतोष करना पड़ेगा। वरना, पिछले डेढ़ दशक से अधिकांश सचिव दो-दो, तीन-तीन विभाग संभालते रहे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ में संघ और संगठन में से इस समय किसका पौव्वा भारी चल रहा है?
2. मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे चलने वाले उप मुख्यमंत्री अरुण साव सियासत में पीछे कैसे हो रहे हैं?
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