शनिवार, 6 अप्रैल 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: नो कैबिनेट मिनिस्टर

 तरकश, 7 अप्रैल 2024

संजय के. दीक्षित

नो कैबिनेट मिनिस्टर 

जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था, तब केंद्र की राजनीति में छत्तीसगढ़ का दबदबा होता था। विद्याचरण शुक्ल 23 साल के उम्र में केंद्र में कैबिनेट मंत्री बन गए थे। हालांकि, उनसे अलावे पुरूषोतम कौशिक और बृजलाल वर्मा भी थोड़े दिनों के लिए केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहे। मगर नाम कमाया विद्या भैया ने। ये कहने में कोई हर्ज नहीं कि विद्या भैया के नाम से छत्तीसगढ़ और रायपुर की देश में पहचान बनी। विद्या भैया ने छत्तीसगढ़ को दिया भी बहुत कुछ...कोलकाता से पहले रायपुर में दूरदर्शन केंद्र खुल गया था। रायपुर को काफी पहले हवाई नक्शे से जोड़ने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। 1994 तक नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में विद्याचरण पावरफुल मंत्री रहे। लेकिन, नरसिम्हा राव सरकार के पतन के बाद छत्तीसगढ़ का केंद्रीय मंत्री का कोटा ही खतम हो गया। वो ऐसे कि नरसिम्हा राव सरकार के बाद कांग्रेस सत्ता से 10 साल बाहर रही। एचडी देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकार में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधितव जीरो रहा। 1998 से 2004 तक अटलजी की सरकार में अलग-अलग समय में छत्तीसगढ़ से तीन राज्य मंत्री बनाए गए। रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव और रमेश बैस। मनमोहन सिंह की दूसरी पारी के आखिरी दिनों में चरणदास महंत को केंद्रीय राज्य मंत्री बनने का मौका मिल पाया। 10 साल बाद 2004 में लौटी बीजेपी की सरकार ने विष्णुदेव साय और उनके बाद रेणुका सिंह को राज्य मंत्री बनाया। मगर केंद्र में राज्य मंत्री सिर्फ सहयोगी के तौर पर होते हैं। कह सकते हैं संख्या बल के लिए। जिम्मेदारी और जलवा पूरा कैबिनेट मंत्रियों का रहता है।

सरोज पाण्डेय को मौका?

अब तीन दशक बाद इस बार छत्तीसगढ़ से केंद्रीय मंत्री बनने का योग दिख रहा है। कोरबा से अगर सरोज पाण्डेय जीत गई तो केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनने की पूरी संभावना है। क्योंकि, सियासत में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ रही है। बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री हैं मगर वे मास लीडर नहीं हैं। सुषमा स्वराज के जाने के बाद दिल्ली में सिर्फ स्मृति ईरानी बच गई हैं। ऐसे में, सरोज पाण्डेय का चांस बन सकता है। सरोज चूकि सांसद रह चुकी हैं, विधायक और मेयर भी। महाराष्ट्र की पार्टी प्रभारी समेत राष्ट्रीय स्तर पर कई अहम दायित्व संभाल चुकी हैं। जाहिर है, उन्हें राज्य मंत्री तो नहीं ही बनाया जाएगा।

खतरे में नेताजी का विकेट

छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक बड़े नेता दिल्ली में जरूर ट्रेप हो गए थे मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा कभी नहीं हुआ। मगर एक नेताजी ऐसे घनचक्कर में फंस गए हैं कि उनकी रात की नींद उड़ गई है। खबर ये है कि 250 करोड़ की सप्लाई में गड़बड़झाला को जिन लोगों ने लीक किया, वे ही लोग नेताजी को भी ट्रेप कर लिए। दरअसल, सप्लाई करने वाला नेताजी को सेट करने गया था कि भाई साब, देख लीजिए...हल्ला न हो और पेमेंट भी जारी हो जाए। मगर जिस बड़े सप्लायर ने इस स्कैम को लीक कराया, उसी ने नेताजी को फंसवा भी डाला...होटल के कमरे में उसी के लोगों ने पहले से कैमरे लगा दिए थे। अब सब कुछ ऑन कैमरा है, तो फिर क्या होगा? यह सवाल उसी तरह का है कि शेर सामने आ जाए तो...? जो करेगा शेर करेगा...अब देखना है लोकसभा चुनाव के बाद क्या होता है।

यादवों का बड़ा नेता

कांग्रेस पार्टी ने भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। बताते हैं, देवेंद्र यादव को बिहार के नेता चंदन यादव का साथ मिला और राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में साथ देने का ईनाम। मगर पैराशूट प्रत्याशी होने का नुकसान उन्हें यह हो रहा कि बिलासपुर में कांग्रेस नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। बिलासपुर के कांग्रेसी इसलिए खफा हैं कि कांग्रेस का गढ़ रहा बिलासपुर में पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए अदद एक प्रत्याशी नहीं दिखा। चलिये रिजल्ट क्या होगा यह देवेंद्र यादव को भी पता है और कांग्रेस के लोगों को भी। फायदा देवेंद्र को यह होगा कि वे छत्तीसगढ़ में यादवों के अब स्थापित नेता हो जाएंगे। और जांच एजेंसियांं के निशाने पर आने से दो-एक महीने की उन्हें मोहलत मिल गई है।

5 निर्दलीय उम्मीदवार

ये बहुत कम लोगों का मालूम होगा कि बस्तर देश की पहली संसदीय सीट है, जहां के वोटरों ने पांच बार निर्दलीय को चुनाव जीता कर दिल्ली भेजा है। यहीं नहीं, 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में मुचकी कोसा ने देश के सर्वाधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज किया था। मुचकी ने एक लाख 41 हजार मतों से कांग्रेस उम्मीवार को पराजित किया था।

ऐसे भी कलेक्टर

लोकसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान कुछ कलेक्टरों ने तहसीलदारों का ट्रांसफर कर दिया। इसको लेकर सीईओ रीना बाबा कंगाले बेहद नाराज हुई। उन्होंने न केवल नोटिस थमाई बल्कि दो-एक कलेक्टरों को फोन पर फटकारा भी। बताते हैं, एक कलेक्टर का मासूमियत भरा जवाब सुन आयोग के अफसर भी सन्न रह गए। कलेक्टर ने कहा, मैं देखता हूं आचार संहिता में तहसीलदारों का ट्रांसफर कैसे हुआ और किसने किया? किसी कलेक्टर के लिए वाकई ये बड़ा शर्मनाक है कि उसे पता नहीं कि नाक के नीचे तहसीलदारों को बदल दिया गया और उसे पता ही नहीं चला। ऐसे कलेक्टरों के जिले में क्या हो रहा होगा, भगवान मालिक हैं।

शिकायत कलेक्टरों की

ये भी कुछ अटपटा सा लग रहा कि बीजेपी की सरकार में बीजेपी नेता कलेक्टरों के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग में रायपुर के आसपास के चार-पांच जिलों के साथ ही एक माईनिंग डिस्ट्रिक्ट के कलेक्टर की गंभीर शिकायतें बीजेपी नेताओं ने की है। एक जिले में कांग्रेस के पोस्टर, बैनर हटाने को लेकर इतना रायता फैला कि चुनाव आयोग के अफसरों को देर रात तक जागकर उसे हैंडिल करना पड़ा। बीजेपी नेताओं नें इसकी शिकायत उच्च स्तर पर कर दी, इससे खलबली मच गई। बताते हैं, आचार संहिता नहीं होता तो कलेक्टर की छुट्टी हो गई होती। अब अगर अच्छे मार्जिन से बीजेपी प्रत्याशी की जीत वहां नहीं मिली तो लोकसभा चुनाव के बाद पहले आदेश में कलेक्टर का विकेट उड़ना तय है।

चुनावी ड्यूटी और आईएएस

आईएएस अफसर सबसे अधिक इलेक्शन आब्जर्बर बनने से घबराते हैं। अधिकांश अफसरों की कोशिश होती है कि किसी तरह बच निकला जाए। यही वजह है कि हर बार दो-चार, पांच के नाम कट जाते हैं। मगर इस बार अभी तक दो ही अफसरों के नाम कटे हैं। एक तंबोली अय्यजा फकीरभाई और दूसरा सुधाकर खलको। तंबोली सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए हैं और सुधाकर खलको का एंजिया प्लास्टि हुआ है। इसलिए, सुधाकर के संबंध में चुनाव आयोग ने रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा। बाकी इस बार सिकरेट्री रैंक के अफसर अविनाश चंपावत भी चुनावी ड्यूटी में फंस गए। दरअसल, उनका नाम केंद्र सरकार से गया था। फरवरी तक वे दिल्ली में पोस्टेड थे। यहां ज्वाईन करने के बाद जीएडी ने लिस्ट से नाम हटाने आयोग को पत्र भेजा मगर उस पर सुनवाई नहीं हुई। हालांकि, पहली बार डायरेक्टर एग्रीकल्चर की भी चुनाव में ड्यूटी लग गई है। एग्रीकल्चर डायरेक्टर की पोस्टिंग के चलते जीएडी ने सारांश मित्तर का नाम हटाने आयोग को लेटर भेजा था, मगर आयोग राजी नहीं हुआ।

राजनांदगांव सिरदर्द

राजनांदगांव संसदीय सीट सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती नहीं है, चुनाव आयोग के लिए भी सिरदर्द हो गया है। नामंकन दाखिल करने के आखिरी दिन 240 नामंकन फार्म लेने की खबर ने रायपुर सीईओ आफिस से लेकर भारत निर्वाचन आयोग तक को बेचैन कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में कोई एक आदमी नामंकन दाखिल नही ंकर सकता। इसके पीछे कोई बड़ा हाथ होगा। आयोग के पास यह फीडबैक पहुंचा था कि कोई महिला विधायक सारे नामंकन भरवा रही है। इस पर तय यह हुआ कि विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाए। क्योंकि, कोई लोगों को गोलबंद करके नामंकन नहीं भरवा सकता। मगर शाम होते तक वो हो नहीं पाया जिसकी बड़ी चर्चा थी। राजनांदगांव में नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत के हेट स्पीच को लेकर भी आयोग ने सीईओ आफिस से रिपोर्ट मांगी और फिर कार्रवाई का आदेश दिया। सीईओ आफिस को उसे भी तामिल कराना पड़ा। जाहिर है, राजनांदगांव को लेकर आयोग को काफी मगजमारी करनी पड़ रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में तीन विधायकों को मंत्री बनने का अवसर मिलेगा?

2. क्या ये सही है कि आपसी सिर फुटौव्वल के चलते चार महीने पहले तक सरकार में रही कांग्रेस पार्टी की छत्तीसगढ़ में दुर्दशा हो रही है?


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