रविवार, 28 अप्रैल 2024

Chhattisgar Tarkash: एसपी-आईजी में टकराव!

 तरकश, 28 अप्रैल 2024

संजय के. दीक्षित

एसपी-आईजी में टकराव!

छत्तीसगढ़ के एक पुलिस रेंज के आईजी और वहां के एसपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। दोनों के बीच रिश्ते इतने तल्ख होते जा रहे कि अब बर्तन की टकराने की आवाजें घर से बाहर सुनाई पड़ने लगी हैं। असल में, एसपी बड़े तेज हैं...हेठा नहीं खाते। पिछली सरकार में बड़े लोगों से भिड़कर कुर्सी गंवा दिए मगर झुके नहीं। उधर, आईजी भी गड़बड़ नहीं मगर कभी बड़े जिले में काम किए नहीं, सो सबआर्डिनेट से काम कैसे लिया जाता है...डिसिजन टेकिंग का भी थोड़ा प्राब्लम है। जाहिर है, दोनों के बीच टकराव बढ़ना ही था। लिहाजा, इगो की लड़ाई इस कदर बढ़ गई है कि थर्ड पार्टी से शिकायतें करवाई जा रही हैं। सिपाही, दरोगा का एक ट्रांसफर कर रहा तो दूसरा उसे निरस्त कर दे रहा। डीजीपी अशोक जुनेजा और खुफिया चीफ अमित कुमार को कुछ करना चाहिए...समझा-बूझा ही दें। वरना, पुलिस के घर की बातें बाहर आए, ये ठीक नहीं।

सिकरेट्री की पोस्टिंग

सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटे आईएएस सोनमणि बोरा को सरकार ने पोस्टिंग दे दी है। उन्हें आदिम जाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग का प्रमुख सचिव बनाया गया है। इस विभाग में एमके राउत और आरपी मंडल जैसे अफसर सिकरेट्री रहे हैं। राउत चार साल, सरजियस मिंज तीन साल और डीडी सिंह ने पांच साल इस विभाग को संभाला। मगर सभी के पास अलग से दो-एक विभाग और होते थे। इसलिए, वरना...। आदिम जाति में कुछ है नहीं...क्या खाएं, क्या निचोड़े...ट्राईबल हॉस्टल में पलंग, चादर, बिस्तर खरीदी के अलावा कुछ खास नहीं। जिलों के बजट पर कलेक्टर्स कब्जा जमा लेते हैं। बहरहाल, सोनमणि को सिर्फ आदिम जाति विभाग मिला है इसलिए समझा जाता है कि अगले फेरबदल में कुछ और ऐड होगा। क्योंकि, भारत सरकार में तीन साल काम करके आए अफसर को आदिम जाति में...ये थोड़ा अटपटा लग रहा है। अब सरकार आदिम जाति विभाग में कुछ नया करने के लिए सोनमणि को लाई होगी तो फिर बात अलग है। सोनमणि प्रमख सचिव रैंक के अफसर हैं। इस लेवल पर सिर्फ दो ही अफसर हैं छत्तीसगढ़ में। निहारिका बारिक और खुद सोनमणि।

ऋचा को हेल्थ?

अगले महीने याने मई फर्स्ट वीक में एसीएस ऋचा शर्मा भी डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट रही हैं। ऋचा को हेल्थ दिए जाने की संभावना ज्यादा लग रही है। हेल्थ अभी ऋचा के ही बैचमेट मनोज पिंगुआ के पास है। रेणु पिल्ले के हटने के बाद सरकार ने मनोज को हेल्थ की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी है। मगर उनके पास गृह, जेल और वन तथा जलवायु परिवर्तन भी है। वे पहले से ओवर लोडेड थे, उसके बाद हेल्थ भी। जाहिर है, किसी भी सिकरेट्री के लिए ये तीनों बड़े विभाग संभव नहीं। वैसे भी, होम और फॉरेस्ट वाले मनोज को छोड़ना नहीं चाहेंगे। क्योंकि, वे जमीन से दो इंच उपर रहने वाले ब्यूरोक्रेट्स नहीं हैं और न ही खामोख्वाह टांग अड़ाते। सो, सभी उनसे कंफर्ट रहते हैं। बहरहाल, हेल्थ विभाग में पहले भी दो महिला अफसर सिकरेट्री रह चुकी हैं। रेणु पिल्ले, निहारिका बारिक। हेल्थ को पटरी पर लाने के लिए ऋर्चा बेस्ट च्वाइस हो सकती हैं। हेल्थ की स्थिति क्या है, ये बताने की जरूरत नहीं। दसेक साल पहले फूड की भी यही स्थिति थी। फूड को ठीक करने का काम ऋचा ने ही किया था। मार्कफेड हालांकि, सहकारिता में आता है मगर नियंत्रण फूड का रहता है। इसमें धान खरीदी और सूखत के नाम पर करोड़ों का वारा न्यारा होता था। ऋचा ने कड़ाई कर 17 परसेंट तक के सूखा को एक परसेंट पर ला दिया था। इसी तरह राईस माफियाओं पर भी अंकुश लगा दी थी। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य महकमे को वॉट लगाने वाले अधिकारियों, डॉक्टरों और मेडिकल माफियाओं को ऋचा जैसे तेज-तर्रार अफसर ही दुरूस्त कर सकता है।

करोड़ों का खेला

कोविड के दौरान जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में अतिरिक्त आईसीयू बनाने के लिए भारत सरकार ने करीब एक हजार करोड़ का फंड दिया था। इनमें जिला अस्पतालों में 100 और मेडिकल कालेज अस्पतालों में 150 बेड बनना था। अधिकांश जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों ने आईसीयू बनाया नहीं मगर मोटे कमीशन के चक्कर में लगभग 700 करोड़ का उपकरण खरीद डाला। अब बिल्डिंग बनी नही ंतो करोड़ों के उपकरण का क्या किया जाए...कबाड़ में करोड़ों के उपकरण पड़े हुए हैं। नए मेडिल् कालेजों के लिए सरकार ने पैसे सेंक्शन किए हैं, उसके अभी भवन बने नहीं, मगर स्वास्थ्य विभाग के खटराल अधिकारी उपकरणों की खरीदी शुरू कर दिए हैं। मेडिकल माफियाओं ने छत्तीसगढ़ के हेल्थ सिस्टम को खतम कर दिया है...इसके लिए सरकार को एक्सट्रा एफर्ट करना होगा।

600 करोड़ का टेंडर कांड

एक हाई प्रोफाइल विभाग में एक आईएएस अफसर बड़ा खेला करना चाहते थे...एक ही बार में दो-तीन पुश्तों का इंतजाम हो जाए। उन्होंने इधर-उधर करके 600 करोड़ का टेंडर जारी कर दिया। अपने लोगों को काम दिलाने अपने होम स्टेट से रिश्तेदारों को भी रायपुर बुला लिया। मगर उपर में इसकी भनक लग गई। और, अफसर को टेंडर निरस्त करना पड़ गया। आचार संहिता के बाद अफसर की छुट्टी हो जाए, तो आश्चर्य नहीं।

सुंदरी शौकीन अफसर

मंत्रालय के एक अफसर का सुंदरियों का शौक जा नहीं रहा। दरअसल, मौका का फायदा उठाते हुए उन्होंने अपने महकमे में अधिकांश महिलाओं की पोस्टिंग कर लिया है। उनके विभाग के मुलाजिमों की परेशानी यह है कि जब भी साहब के कमरे में जाओ तो कोई-न-कोई अतिसुंदर लेडी मौजूद रहती है। खैर, साहब का ये पुराना शगल है। मध्यप्रदेश के समय रायपुर के पड़ोसी जिले में पोस्टेड थे। वहां एक बड़े होटल में रंगे हाथ एक महिला मुलाजिम के पति ने उन्हें पकड़ लिया था। गुस्से में उसने अफसर की पिटाई भी कर डाली थी। पत्नी की बेवफाई से पति का गुस्सा आप समझ सकते हैं, अफसर को टॉवेल में भागना पड़ा था...छत्तीसगढ़ के पुराने अधिकारी आपको बता देंगे।

कलेक्टर को फटकार

इसी स्तंभ में कुछ साल पहले एक मंत्री और कलेक्टर के बीच विवाद का जिक्र किया गया था। मामला था मध्यप्रदेश के दौर में बिलासपुर जिले का। बिलासपुर के कलेक्टर होते थे उदय वर्मा, जो बाद में भारत सरकार में कई विभागों के सिकरेट्री रहे। उस समय स्व0 अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे और बिलासपुर से चित्रकांत जायसवाल मंत्री। तारीख और साल याद नहीं, मगर अर्जुन सिंह का बिलासपुर दौरा था। उन्हें रिसीव करने चकरभाटा हवाई पट्टी पर कई मंत्री पहुंचे थे, उनमें चित्रकांत जायसवाल भी थे। और सीएम आएंगे तो कलेक्टर रहेंगे ही। सीएम का प्लेन लैंड करने से पहले किसी बात पर मंत्री जायसवाल कलेक्टर पर भड़क गए। कलेक्टर को यह गवारा नहीं हुआ। उन्होंने कुछ बोला तो नहीं, मगर गाड़ी में बैठ बिना सीएम की अगुवानी किए बिना लौट गए। अर्जुन सिंह मंत्री और कलेक्टर, दोनों की वर्किंग के बारे में जानते थे, इसलिए इस मामले को अनसूना कर दिया। सालों पुरानी घटना इसलिए मौजूं हो गई कि इस महीने के प्रारंभ में सूबे में बड़ी घटना हुई। इस दौरान एक पूर्व मंत्री कलेक्टर पर बुरी तरह भड़क गए। उन्होंने यहां तक कह डाला कि कार्यसमिति में कलेक्टर के मामले को उठाउंगा। बड़े नेताओं को मालूम होना चाहिए कि कलेक्टर, एसपी सिर्फ अफसर नहीं होते। वे एक संस्थान होते हैं। सो, सार्वजनिक जगहों पर उनके साथ नेताओं के इस तरह के आचरण को वाजिब नहीं ठहराया जा सकता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने वाले नेता अब स्थायी तौर पर इसी पार्टी में अपना ठिकाना बना लेंगे या उपयुक्त समय देखकर फिर अपने घर लौट जाएंगे?

2. छत्तीसगढ़ में वोटर खामोश है, इसका मतलब क्या है?


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