रविवार, 22 जुलाई 2012

तरकश, 22 जुलार्इ


नाम के 

जवाहर श्रीवास्तव राज्य के पहले प्रमोटी आर्इएएस होंगे, जिन्हें प्रींसिपल सिकरेट्री बनने का मौका मिलने जा रहा हैं। उनके लिए शुक्रवार को मंत्रालय में डीपीसी हुर्इ और दो-एक रोज में आदेश निकल जाएगा। प्रमोटी आर्इएएस बहुत हुआ तो सिकरेट्री तक पहुंच पाते हैं। इस लिहाज से जवाहर का पीएस बनना एक अहम प्रशासनिक घटना होगी। पुराने अफसरों का याद होगा, अविभाजित मध्यप्रदेश में प्रमोटी में अभी तक सिर्फ मोहन गुप्त पीएस बन पाए। 56 साल में किसी और को यह मौका नहीं मिल पाया। जवाहर को भी यह उपलबिध इसलिए हासिल होने जा रही है, क्योंकि वे राजभवन में पोस्टेड है। वैसे, एसवी प्रभात के बाद श्रीवास्तव दूसरे आर्इएएस होंगे, जिनका प्रमोशन सिर्फ उनके नाम और पैसे के लिए होगा। पीएस बनने के बाद श्रीवास्तव की पेंशन बढ़ जाएगी और रिटायर पीएस लिख सकेंगे। मगर राज्य को उनसे कोर्इ फायदा नहीं होने वाला। 31 अगस्त को वे रिटायर हो जाएंगे। इसी तरह प्रभात भी अप्रैल अंत में एसीएस बनें और मर्इ में रिटायर हो गए।

मेहरबान

सरकार इस साल दो आर्इएएस पर खूब मेहरबान रही.......पहला, एसवी प्रभात और दूसरे डीएस मिश्रा। डेपुटेशन न मिलने पर नौकरी से इस्तीफा देने की धमकी देने वाले प्रभात को सरकार ने रिटायरमेंट से चंद दिनों पहले मनुहार करके बुलाकर एसीएस बनाया। और अब मिश्राजी को उपकृत करने के लिए एक्स कैडर में एसीएस का एक पोस्ट कि्रयेट कर डाला। विवेक ढांड जिसके लिए डेढ़ साल से सरकार का मुंह ताकते रहे, मिश्रा उसे बिना कुछ किए, बलिक समय से बहुत पहले पा गए.....एसीएस बनने की अब औपचारिकता भर बची है। सो, मंत्रालय के लोगों को तो यह खटकेगा ही। आखिर, मिश्रा तीन साल तक आउट आफ फार्म रहे। ढार्इ साल में उनका चार बार विभाग बदला......कृषि, वन, पंचायत और अब वित्त। और सबमें उनका एक जैसा पारफारमेंस रहा। मगर अब मिला तो छप्पड़ फाड़ के। ऐसे में, बेटर पारफारमेंस वाले आर्इएएस यह मानते हैं कि सरकार इसी तरह के अफसरों को तोहफे देती है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। अशोक विजयवर्गीय, पीसी दलेर्इ से लेकर सरजियस मिंज तक ढेरों उदाहरण हंै। ये ऐसे अफसर हैं, जिनसे सेवा के दौरान अपनी एक उपलबिध पूछा जाए तो शायद वे सोच में पड़ जाएं।

अगले हफते

कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित सूची इस हफते निकल जाएगी। अधिक-से-अधिक शुक्रवार तक। बरसात में बाढ़ को देखते हालांकि सरकार आगे-पीछे हो रही थी। मगर फाइनली अब सब ओके हो गया है। सूची के बारे में जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, करीब दर्जन भर कलेक्टर इधर-से-उधर किए जाएंगे। कुछ को बड़े जिले की कमान सौंपी जाएगी, तो कुछ जिले से वापस रायपुर बुलाएं जाएंगे। राजधानी के बोर्ड और निगमों में बैठे तीन आर्इएएस को भी कलेक्टर बनाए जाने की खबर है। रायपुर जिला छोटा हो गया है, इसलिए यहां ऐसे आर्इएएस को पोस्ट करने पर विचार किया जा रहा है, जो निगम-बोर्ड के साथ ही कलेक्टरी भी कर ले। प्रभावित होने वाले जिलों में रायपुर से लेकर बिलासपुर, जांजगीर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा, महासमुंद, दंतेवाड़ा का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। सूत्रों का दावा है, रमन सरकार की दूसरी पारी का यह सबसे बड़ा और आखिरी फेरबदल होगा। अभी जो कलेक्टर पोस्ट किए जाएंगे, वो ही अगले साल विधानसभा चुनाव कराएंगे। इसलिए, सोच-समझकर लिस्ट बनार्इ जा रही है।

ढांड को होम

विवेक ढांड को एसीएस बनाने के बाद सरकार के सामने सवाल खड़ा हो गया है, उन्हें विभाग क्या दिया जाए। आमतौर पर प्रमोशन मिलने पर विभाग बदलता है। अलबत्ता, एसीएस होने पर तो इसे और जरूरी समझा जा रहा है। ढांड के कद के हिसाब से कृषि उत्पादन आयुक्त का एक पोस्ट है। अन्य राज्यों में यह कददावर पोस्ट माना जाता है और मप्र में तो हमेशा सीनियर और अच्छे अफसर एपीसी रहे हैं। मगर अभी दिक्कत यह है, छह महीने पहले ही एमके राउत को इसका दायित्व दिया गया है। इसलिए, इतना जल्दी चेंज संभव नहीं है। ढांड के लायक एक पोस्ट बचता है, होम। होम में एनके असवाल है और उनका करीब चार साल हो गया है। विकल्प के अभाव में होम बदला नहीं जा रहा था। कलेक्टरों की लिस्ट के साथ ही मंत्रालय में भी दो-तीन फेरबदल होंगे, इसमें ढांड को पंचायत के साथ ही होम भी मिल जाए तो अचरज नहीं।

गडढा

बिजली बिल पर सीएम को विधानसभा में सफार्इ देनी पड़ी। तो सुबोध सिंह जैसे ठीक-ठाक छबि के एमडी को भी जगह-जगह जवाब देना पड़ रहा है। लाख कोशिशों के बाद विभाग के अफसर समझ नहीं पा रहे कि गडढा है कहां। जबकि, इसमें स्तरहीन मीटरों को इसके लिए नहीं बख्शा जा सकता। हल्की कंपनियों के मीटर गरमी में 40 डिग्री से अधिक टेम्परेचर होते ही जंप करने लगते हैं। पिछले साल भी तो ऐसा ही हुआ था। इस बार रेट बढ़ गए हैं, इसलिए चोट ज्यादा महसूस हो रही है। मीटर की गड़बड़ी के लिए ही आखिर, एमको कंपनी को ब्लैकलिस्टेड किया गया था। असल में, वितरण कंपनी के परचेज विभाग में बड़ा खेल होता है। कर्इ ऐसे लोग हैं, जो गुनताड़ा करके सालों से जमे हैं। मनोज खरे जोगी सरकार के समय 2001 में र्इर्इ, परचेज बनें। बीच में कुछ दिन के लिए बाहर रहे। मगर 2005 में जब राजीब रंजन सीएसर्इबी के चेयरमैन बनें, खरे को फिर परचेज में ले आए। और इसके बाद से वे वहीं जमे हुए हैं। गुरू रंजन 2008 में क्लीन बोल्ड हो गए मगर खरे, वहीं र्इर्इ रहे और अब वहीं एसर्इ बन कर क्रीज पर डटे हुए हैं। प्रायवेट कंपनियां भी आजकल एक जगह पर दो-एक साल से अधिक नहीं रखती। सरकार को ये सब भी तो देखना चाहिए।

पुअर पारफारमेंस

विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस का पारफारमेंस पुअर नहीं तो अच्छा भी नहीं कहा जा सकता। छह दिन में एक भी मौका ऐसा नहीं आया, जब विपक्ष ने सरकार को बैकफुट पर जाने पर मजबूर कर दिया। कोरसागुड़ा मुठभेड़ पर सत्ता पक्ष द्वारा चर्चा के लिए तत्काल राजी हो जाने से हंगामा करने का अवसर नहीं मिल पाया। गर्भाशय कांड पर स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल उल्टे सताधारी दल पर भारी पड़ गए। सत्ता पार्टी की इस पर तैयारी ही नहीं थी। बिजली की अनाप-शनाप बिलिंग जैसे गंभीर विषय को सत्ताधारी पार्टी के देवजी भार्इ ने उठाया। उन्होंने अपनी ही सरकार पर सवालों की बौछारें कर दी और विपक्षी विधायक टुकुर-टुकुर देखते रहे। बलिक राजकमल सिंघानिया ने दिल्ली का मुदा उठाकर सीएम को पलटवार करने का मौका दे दिया। सीएम ने कहा, दिल्ली में छत्तीसगढ़ से दोगुना रेट है। साथ में, यह भी.....छत्तीसगढ़ में सबके सस्ती बिजली है। और यही अगले दिन अखबारों की सुर्खिया भी बनीं। जबकि, बिजली दर वृद्धि मसले पर सरकार को घेरने के लिए अच्छे अवसर थे। मोहम्मद अकबर को छोड़कर ऐसा नहीं लगा कि विपक्ष विधायकों ने सत्र के लिए कोर्इ तैयारी की हो। अकबर, अपनी तैयारी और हाजिरजवाबी से बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत जैसे कर्इ मंत्रियों को घेरने में कामयाब रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. संघ से भाजपा में आए संगठन के किस नेता ने जशपुर में 75 एकड़ जमीन खरीदी है?
2. धान खरीदी की व्यवस्था अगर चाक-चौबंद हो जाए तो मार्कफेड के अफसरों और राज्य के नेताओं को हर साल कितने करोड़ का नुकसान होगा?

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