शनिवार, 14 जुलाई 2012

तरकश, 15 जुलार्इ

दूसरा बाम्बरा



पुलिस महकमे में संविदा नियुकित न तो भारतीय पुलिस मैन्यूल में है और ना ही किसी और राज्य ने ऐसा किया है। अलबत्ता, यूपी, राजस्थान जैसे राज्यों में इक्का-दुक्का केस ऐसे हुए हैं, तो उन्हें ला एंड आर्डर से अलग रखा गया है। छत्तीगढ़ ही अकेला राज्य है, जहां 65 साल की उम्र में बर्दी पहनकर जीएस बाम्बरा राजधानी की पोलिसिंग संभाल रहे हैं। और अब, 30 जून को रिटायर हुए एडिशनल एसपी आर्इएच खान को यह गौरव हासिल होने जा रहा है। हालांकि, खान की राह में आय से अधिक संपतित का एक बड़ा रोड़ा आ गया है। बेहिसाब संपतित की जांच करने के बाद र्इओडब्लू ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। और आर्इजी प्रशासन पवनदेव ने नोटशीट में इसका ब्यौरा लिखकर डीजीपी को भेज भी दिया है। लेकिन जैक इतना तगड़ा है कि लगता नहीं, खान की फाइल को कोर्इ रोक पाएगा।

6 दिन का सीएस


रिटायरमेंट के बाद एसवी प्रभात के पुनर्वास का प्रस्ताव सीएम ने भले ही खारिज कर दिया मगर चीफ सिकरेट्री की पदास्थापना पटिटका में अपना नाम लिखाकर प्रभात ने छत्तीसगढ़ में अपने-आपको अजर-अमर कर लिया। याद होगा, मर्इ में सुनील कुमार के छुटटी जाने पर प्रभात छह दिन तक सीएस के प्रभार में रहे थे। और उसी दौरान उन्होंने यह कारनामा कर डाला। सुनील कुमार जब छुटटी से लौटे, तो प्रभात के नीचे फिर उनका नाम लिखा गया। जीएडी का स्पष्ट रुल है, सरकार जिसका पदास्थपना आदेश निकालती है, उसी का नाम पटिटका में दर्ज होता है। मगर, तेज-तर्रार और नियम-कायदों से एक इंच इधर-से-उधर नहीं होने वाले सुनील कुमार के चेम्बर में नियमों को ओवरलुक कर दिया गया, लोगों को अचरज हो रहा है। सवाल यह भी मौजूं हैं, अगर ये चलता है तो बाकी का क्या कुसूर था। कार्यवाहक सीएस का नाम अगर लिखा जाए तो दो-तीन पटिटका भर कम पड़ जाएगी। पी जाय उम्मेन के समय सरजियस मिंज 10 बार से भी अधिक सीएस के प्रभार में रहे थे। 10 बार उनका भी नाम लिखना चाहिए। फिर पी रावघव से लेकर बीकेएस रे भी हैं। असल में, प्रभार एक प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि नर्इ नियुकित। अभी तक राप्रसे अधिकारी संजय अलंग को लोग बोलते थे, जो मार्कफेड में दो दिन एमडी रहे और उनका नाम पटिटका में लिखा गया। मगर विलो स्टैंंडर्ड का काम करने में आर्इएएस भी कम नहीं हैं।

कांग्रेस र्इकी खा


कांग्रेस नेता घर ठीक होने का लाख दावा कर रहे हों, मगर धरातल पर सब कुछ ठीक नहीं है। बलिक एनएसयूआर्इ नेता के सिटंग आपरेशन के बाद तो खार्इ और बढ़ गर्इ है। गुट कम नहीं हो रहे हैं। जोगी गुट, पटेल गुट, चौबे गुट और न जाने कर्इ। आलम यह है, विधानसभा में भी इसकी झलक देखने को मिल जा रही है। गुरूवार को लंबोदर बलियार और दारा सिंह को मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे द्वारा श्रंद्धाजलि देने के बाद जोगीजी का नम्बर आया। उन्होंने दारा सिंह के बारे में एक संदर्भ में पूर्व के वक्ताओं में मुख्यमंत्री का दो बार जिक्र किया और चौबे के नाम की जगह किसी ने ऐसा कहा....और दूसरों ने ऐसा कहा....कहकर काम चला लिया। हो सकता है, इसके पीछे उनकी कोर्इ मंशा न हो किन्तु सदन के भीतर जोगीजी अगर नेता प्रतिपक्ष का नाम लेने से बचेंगे तो इसकी चर्चा तो होगी ही।

गरीबों के नेता


नेता बाहर में कुछ और तथा सदन में कुछ और बात करते है....शुक्रवार को विधानसभा में इसका एक वाकया देखने को मिला। पैसे के लिए कम उम्र की महिलाओं का गर्भाशय निकालने के मामले में आश्चर्यजनक ढंग से देवजी भार्इ पटेल और अजीत जोगी डाक्टरों के साथ खड़े नजर आए। प्रश्नकाल में देवजी ने डाक्टरों के साथ नाइंसाफी का सवाल उठाया तो जोगीजी भी उनके साथ हो गए। जबकि, मीडिया में मामला उछलने पर सबसे पहले उन्होंने ही डाक्टरों के खिलाफ कठोर कार्रवार्इ करने की मांग की थी। लेकिन सदन में दोनों नेता दोषी डाक्टरों के खिलाफ कार्रवार्इ की मांग तो कर रहे थे, साथ ही, जिन डाक्टरों पर कार्रवार्इ हुर्इ है, उसका विरोध भी। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल इसे ताड़ गए। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा.....इस सदन में दो तरह की बात हो रही है.....डाक्टरों ने 25 साल की महिलाओं का गर्भाशय निकाल डाला है......सदन चाहेगा तो राज्य के सभी डाक्टरों की जांच करा दूंगा....। अब सकपकाने की बारी जोगी और देवजी की थी।

बढि़यां भाषण


कोरसगुड़ा मुठभेड़ पर कांगे्रस के स्थगन प्रस्ताव पर गुरूवार को सदन में अच्छी चर्चा हुर्इ। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने मार्मिक भाषण दिया। जोगीजी 58 मिनट बोले और इस दौरान सदन में सन्नाटा वाली सिथति रही। मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्री, विधायक, अध्यक्षीय दीर्घा से लेकर अधिकारी दीर्घा और पत्रकार दीर्घा खचाखच भरा था। रविंद्र चौबे का भाषण भी प्रभावी रहा। इसके बाद सीएम ने भी टू दि प्वांट इसका जवाब दिया। अरसे बाद लोगों ने ऐसी चर्चा सुनीं।  

रिजल्ट


सीएम ने जुलार्इ के शुरू में एक झटके में देवचंद सुराना को हटाकर युवा एवं तेज वकील संजय अग्रवाल को राज्य का नया महाधिवक्ता बनाया तो संध और संगठन के लोगों को यह बहुत रास नहीं आया था। पार्टी में खूब खुसुर-पुसुर हुर्इ थी.... अग्रवाल जोगी सरकार के समय डिप्टी एजी रहे.....। मगर हफते भर में मिले रिजल्ट से सबका मुंह बंद हो गया है। नया आरक्षण सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। और विपक्ष 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को असंभव बताते हुए सरकार पर आदिवासियों को गुमराह करने का आरोप लगा रही थी। ऐसे में हार्इकोर्ट से सरकार के पक्ष में फैसला आ जाए तो सरकार के लिए इसकी अहमियत समझी जा सकती है। बताते हैं, महाधिवक्ता और उनकी टीम पूरी तैयारी के साथ सरकार का पक्ष रखा और नतीजा सामने है। इसके अलावा महाधिवक्ता ने दो-तीन और स्टे वैकेंट कराया है। सरकार को अब उम्मीद है, सबसे महत्वकांक्षी परियोजना कमल विहार का रास्ता भी अब साफ हो जाएगा। अंदर की बात भी यही है। संजय को लाया भी इसीलिए गया था। दरअसल, पुराने एजी के रहते आदिवासी आरक्षण और कमल विहार असंभव था।  

अंत में दो सवाल आपसे


1. गर्भाशय कांड में अजीत जोगी डाक्टरों की हिमायत कर रहे हैं तो समझ में आता है......उनकी पत्नी डाक्टर हैं मगर देवजी पटेल के डाक्टरों के साथ खड़े होने की क्या वजह है?
2. सीएम द्वारा कलेक्टर और एसपी को जय-बीरु की तरह काम करने की नसीहत देने के बाद भी किस जिले के कलेक्टर और एसपी के बीच संवादहीनता की सिथति है?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें