शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

तरकश, 14 अक्टूबर

दीया तले.....


अच्छी खबर है, अपने तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार सेवा गारंटी की स्थिति जानने संभाग मुख्यालयों में जाएंगे। उम्मीद है, उनके दौरे से हालात में कुछ फर्क आएगा। मगर इससे पहले, मंत्रालय का एक वाकया सुनिये और फिर अंदाज लगाइये, कैसी चल रही है, सेवा गारंटी। बिलासपुर के कोटा कालेज के युवा स्पोट्र्स टीचर नीलेश मिश्रा की इस साल मार्च में निधन हो गया। हायर एजुकेशन में आने से पहले पांच साल वे ट्रायबल में रहे थे। जाहिर है, सेवा में इस पांच साल के जुड़ जाने से पेंशन बढ़ जाएगी। इसके लिए सिर्फ दो लाइन लिखना है......हायर एजुकेशन डायरेक्टरेट से फाइल चली। डिस्पैच नम्बर 548 की फाइल 28 मई को मंत्रालय में आई। और 11 अक्टूबर तक धूल खाती रही। इस बीच तीन बार सिकरेट्री आरसी सिनहा से एप्रोच किया गया और पांच बार डिप्टी सिकरेट्री चैधरी से। दिखवाते हैं, में पौने पांच महीने निकल गए। लगातार तगादा और 11 को चौधरी के पास आधा धंटा बैठने के बाद फाइल मिली और तब जाकर उसे आगे की कार्यवाही के लिए सिकरेट्री के पास गई। और सुनिये, सीएम के गृह जिले कवर्धा के रिटायर प्रींसिपल आरपी श्रीवास्तव पिछले 20 बरसों से पेंशन, पीएफ और ग्रेच्यूटी के लिए जूझ रहे हैं। अब 81 साल के हो गए हैं। जोगी सरकार के समय स्कूल शिक्षा विभाग ने उनका सर्विस रिकार्ड गुमा दिया। 8 अक्टूबर को पेंशन के लिए हाईकोर्ट के बिहाफ मंे बनी हाईपावर कमेटी के सामने छड़ी के सहारे पहुंचे श्रीवास्तव रो पड़े.....पूछा, क्या मेरे मरने के बाद मेरे पैसे मिलेंगे। सरकार में काम कैसे होते हैं, इसकी ये सच्चाई है।   

अच्छी चूक


राज्य बंटवारे के समय कैडर आबंटन में जाने-अनजाने में की गई चूक से सूबे के दर्जन भर से अधिक आईपीएस अफसरों की किस्मत बदल गई। आलम यह है, छत्तीसगढ़ भेजने का विरोध करने वाले ही आईपीएस अफसरों की आज मौजा-ही-मौजा है। याद होगा, उस समय यहां से मध्यप्रदेश जाने के लिए यही अफसर कैसे तड़फड़ा रहेे थे। शायद उन्हें लगा था, गरीब, आदिवासी और नक्सली स्टेट में आकर, कहां फंस गए। तब, इनकी कई बैठकें हुई थी और तय किया गया, वे मघ्यप्रदेश जाकर रहेंगे। इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। इसके बाद, वे सुप्रीम कोर्ट गए। 2005 में शीर्ष कोर्ट ने तो इनके पक्ष में फैसला दिया था कि छत्तीसगढ और एमपी सरकार सहमत हो, तो कैडर चेंज कर दिया जाए। यहां की सरकार ने तो सहमति भी दे दी थी, लेकिन मध्यप्रदेश तैयार नहीं हुआ। और मामला अटक गया। कोर्ट जाने वालों में अनिल नवानी, रामनिवास, आरके विज, राजेश मिश्रा प्रमुख थे। कल्पना कीजिए, मध्यप्रदेश सरकार कहीं सहमत हो गई होती तो क्या होता? अनिल नवानी न डीजीपी बनते और ना ही रामनिवास को वहां स्पेशल डीजी बनने का चांस मिलता। और ना ही विज को लगातार इतना इम्पार्टेंस मिलता। आखिर, ठीक ही कहा गया है, जो होता है, अच्छा होता है। पर, लोग समझते कहां हैं।

राजनीति

राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में दुर्ग-जगदलपुर ट्रेन आठ दिन विलंब से प्रारंभ हो पाई। दरअसल, 3 अक्टूबर की जब तारीख तय हुई थी, तब टीएमसी के मुकुल राय रेल मंत्री थे। और टीएमसी को छत्तीसगढ़ से क्या वास्ता। इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने कह दिया था। मगर ऐन टाईम पर, उनकी पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। इसके बाद कांग्रेस के सीपी जोशी रेल मंत्री बनें तो तय हुआ कि रमन सिंह के साथ रेल राज्य मंत्री मुनिअप्पा हरी झंडी दिखाएंगे। मगर कर्नाटक के मुनिअप्पा को छत्त्तीसगढ़़ में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा। उन्होंने कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत को अधिकृत कर दिया। इस चक्कर में 3 के बजाए 11 अक्टूबर को ट्रेन चालू हो सकी।

पास का लफड़ा

पास के लफड़े में पाप सिंगर हनी सिंह का राजधानी में 12 अक्टूबर का प्रोग्राम रद्द हो गया। एक हजार से लेकर 25 सौ तक के हनी नाइट के टिकिट थे। इसके बाद भी युवाओं में इतना के्रज था कि पांच हजार टिकिट यूं ही बिक गए। नेट पर भी उसकी बुकिंग हो रही थी। मगर राजधानी के युवा नेताओं को पर्याप्त पास देने में आयोजकों ने आनाकानी कर दी। इसके बाद जिला प्रशासन से शिकायत हो गई। पिछले महीने बी डब्लू केनियान की पुल पार्टी में हाथ जला चुका प्रशासन ने प्रोग्राम केंसिल करने में जरा-सी भी देर नहीं की। हालांकि, रायपुर कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी का माथा इसलिए भी ठनका कि प्रोग्राम के लिए गल्र्स के लिए अलग से और रियायती दर पर टिकिट की बुकिंग हो रही थी। और इसमें बखेड़ा हो सकता था।

देखा-देखी

आईएफएस अफसरों के कैडर आबंटन का प्रोसेज शुरू होने के बाद आईएएस एसोसियेशन भी पिछले हफ्ते जागा और कैडर रिव्यू के लिए लेटर दिया। एसोसियेशन ने 18 से 27 जिले होने का हवाला देते हुए आबंटन बढ़ाने की मांग की है। चलिए, अब कोई आरोप नहीं लगाएगा कि आइ्र्रएएस एसोसियेशन क्लबबाजी के अलावा कोई काम नहीं करता।  

मुश्किलें

राज्य सूचना आयोग की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। आयोग के खिलाफ आरटीआई एसोसियेशन के मोर्चा खोलने के बाद राज्य उपभोक्ता फोरम ने भी अब तलवार लटका दिया है। एक प्रकरण की सुनवाई में फोरम ने माना है, राज्य सूचना आयोग से किसी को समय पर सूचना नही ंमिलती है, तो आवेदक उपभोक्ता की केटेगरी में आएगा और इस पर उपभोक्ता फोरम का प्रकरण चल सकता है। इसके तहत फोरम, आयोग को सूचना तो नहीं दिलवाएगा, मगर क्षतिपूर्ति देने का आदेश दे सकता है।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक सीनियर डीआईजी का नाम बताइये, जो डेपुटेशन पर दिल्ली गए, तो अपना कूक और अर्दली भी ले गए?
2. सूबे के सब कांग्रेस नेता मिलकर भी, अजीत जोगी को किनारे क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

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